RB 11 HindiRB 11 Hindi Course

RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 6 हार की जीत

RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 6 हार की जीत

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 6 हार की जीत

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 6 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

प्रश्न 1.
‘हार की जीत’ कहानी किस प्रकार की है?
(क) आदर्शवादी
(ख) प्रगतिवादी
(ग) यथार्थवादी
(घ) आदर्शोन्मुख यथार्थवादी।
उत्तर:
(घ) आदर्शोन्मुख यथार्थवादी।

प्रश्न 2.
इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।” बाबा भारती के ऐसा कहने का कारण –
(क) लोगों को अच्छा नहीं लगेगा।
(ख) लोग दुःखी हो जायेंगे।
(ग) लोग भयभीत हो जायेंगे।
(घ) अपाहिज-गरीबों पर लोग विश्वास नहीं करेंगे।
उत्तर:
(घ) अपाहिज-गरीबों पर लोग विश्वास नहीं करेंगे।

प्रश्न 3.
बाबा भारती के घोड़े का नाम था –
(क) मुल्तान
(ख) सुलतान
(ग) धीरू’
(घ) वीरू
उत्तर:
(ख) सुलतान

प्रश्न 4.
“बहुत दिनों से अभिलाषा थी, आज उपस्थित हो सका हूँ।” ये शब्द थे –
(क) ग्रामीण के
(ख) बाबा भारती के
(ग) राहगीर के
(घ) खड्गसिंह के
उत्तर:
(घ) खड्गसिंह के

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 6 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
खड्गसिंह ने स्वयं को किसका सौतेला भाई बताया?
उत्तर:
खड्गसिंह ने स्वयं को दुर्गादत्त वैद्य का सौतेला भाई बताया।

प्रश्न 2.
”विचित्र जानवर है देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे।” ये शब्द बाबा भारती ने किसके लिए कहे?
उत्तर:
ये शब्द बाबा भारती ने अपने सुलतान घोड़े के लिए कहे।

प्रश्न 3.
डाकू खड्गसिंह ने किस विधि से बाबा भारती से घोड़ा प्राप्त किया?
उत्तर:
डाकू खड्गसिंह ने अपाहिज बनकर धोखा देने के तरीके से बाबा भारती से घोड़ा प्राप्त किया।

प्रश्न 4.
बाबा भारती को किस प्रकार की भ्रान्ति हो गयी थी?
उत्तर:
बाबा भारती को ऐसी भ्रान्ति हो गयी थी कि वे अपने घोड़े से बिछुड़ने पर जीवित नहीं रह पायेंगे ।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।” ये शब्द किसने, किससे तथा क्यों कहे?
उत्तर:
ये शब्द बाबा भारती ने सुलतान घोड़े को लक्ष्य कर कहे। डाकू खड्गसिंह अपाहिज बनकर बाबा भारती से घोड़ा छीन ले गया था। बाबा को यह आशंका थी कि जब लोग इस धोखेबाजी की घटना को सुनेंगे, तो वे गरीबों एवं अपाहिजों पर करुणा-या नहीं रखेंगे, उनकी बातों पर विश्वास करना छोड़ देंगे। इससे मानवता और सदाशयता की हानि होगी। परन्तु जब डाकू खड्गसिंह उनका घोड़ा चुपचाप वापिस बाँध गया, तो बाबा भारती को विश्वास हो गया कि अब गरीबों की सहायता से कोई मुँह नहीं मोड़ेगा।

प्रश्न 2.
बाबा भारती घोड़े की किस प्रकार सेवा करते थे?
उत्तर:
बाबा भारती को भगवद्-भजन के बाद जो समय बचता, वह घोड़े की सेवा में अर्पण हो जाता। वे रोजाना अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते और उसे देख-देखकर प्रसन्न होते थे। वे ऐसी लगन, ऐसे प्यार और स्नेह से अपने सुलतान घोड़े की देखभाल करते थे कि मानो वह उनका अतीव प्रियजन हो। उन्हें रुपया, माल-असबाब, जमीन तथा नागरिक सुखमय जीवन से भी घृणा थी। वे गाँव के बाहर एक छोटे मन्दिर में रहते थे। वे सुलतान से अतिशय प्रेम करते थे और उसके दाना-पानी का पूरा ध्यान रखते थे।

प्रश्न 3.
घोड़े सुलतान को देखकर बाबा भारती को कैसे आनन्द की प्राप्ति होती थी?
उत्तर:
बाबा भारती को अपने घोड़े सुलतान को देखकर अतिशय आनन्द मिलता था। जैसे माँ को अपने बेटे को देखकर, साहूकार को अपने देनदार और किसान को अपने लहलहाते खेत को देखकर आनन्द आता है, उसी प्रकार बाबा भारती को अपने घोड़े को देखकर आनन्द मिलता था। इस कारण सुलतान से बिछुड़ने की बात से उन्हें असह्य वेदना होती थी। वे उसके बिना एक क्षण भी नहीं रह सकने की बात सोचते रहते थे।

प्रश्न 4.
खड्गसिंह द्वारा छद्म-तरीके से घोड़ा प्राप्त करने के तुरन्त बाद की बाबा भारती की दशा का वर्णन करो।
उत्तर:
बाबा भारती ने जिसे अपाहिज मानकर अपने घोड़े पर बिठाया था, वह डाकू खड्गसिंह था। छद्म-तरीके से घोड़ा प्राप्त करने पर खड्गसिंह उसे दौड़ाये लिये जाने लगा। उस समय बाबा भारती के मुख से भय, विस्मय और निराशा से मिली हुई चीख निकल गई। डाकू उनकी प्रिय वस्तु को छीन रहा था, इस कारण उनमें भय उत्पन्न हुआ, जो व्यक्ति अपाहिज बनकर घोड़े पर बैठा था, वह उसे एकाएक यों छीन ले जायेगा, इससे विस्मय और डाकू से घोड़ा न मिलने से और आगे से गरीबों पर विश्वास न करने की चिन्ता से वे निराशा से ग्रस्त हो गये थे।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘हार की जीत’ कहानी की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
बाबा भारती गाँव के बाहर एक मन्दिर में रहते थे। उनके पास एक घोड़ा था, उसे वे बेहद चाहते थे। वे उसकी पूरी देखभाल करते थे। उसका नाम सुलतान था। घोड़ा अत्यन्त सुन्दर था, उसकी चाल मोहक थी। डाकू खड्गसिंह ने उस घोड़े की प्रसिद्धि सुनी थी। एक दिन वह बाबा भारती के पास आया और उस घोड़े को देखकर खूब प्रशंसा की। उसने उसकी चाल भी देखी और जाते समय कहा कि अब मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूंगा।

डाकू खड्गसिंह की बात से बाबा भारती डर गये। वे सावधानी से रखवाली करने लगे। बहुत दिनों के बाद वे सन्ध्या समय घूमने जा रहे थे। एक पेड़ के नीचे एक अपाहिज मिला। उसने तीन मील आगे रामांवाला तक छोड़ने का निवेदन किया। बाबा भारती ने उसे घोड़े पर बिठा लिया। परन्तु वह तो डाकू खड्गसिंह था। वह घोड़े को दौड़ाकर ले जाने लगा। तब बाबा भारती ने कहा कि इस घटना को किसी से मत कहना, अन्यथा कोई किसी गरीब की सहायता नहीं करेगा। डाकू खड्गसिंह पर बाबा भारती की बात का गहरा प्रभाव पड़ा। इस कारण कुछ दिनों के बाद वह उस घोड़े को बाबा के अस्तबल में बाँधकर चला गया। सुबह घोड़े के हिनहिनाने से बाबा को पता चला, तो घोड़े से लिपटे और बोले कि अब कोई गरीब की सहायता से मुँह नहीं मोड़ेगा।

प्रश्न 2.
खड्गसिंह तथा बाबा भारती की कुटिया में जो संवाद हुआ उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एक दिन दोपहर को डाकू खड्गसिंह बाबा भारती के पास आया और नमस्कार कर बैठ गया। तब उनमें संवाद होने लगा। बाबा ने उसका हाल-चाल पूछा और कहा कि इधर कैसे आ गये? खड्गसिंह ने कहा कि आपके घोड़े की प्रसिद्धि सुनकर, उसे देखने चले आया। बाबा भारती ने कहा कि विचित्र घोड़ा है, देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे। खड्गसिंह ने कहा कि मैंने भी बड़ी प्रशंसा सुनी है। कहते हैं कि देखने में बड़ा सुन्दर है। तब बाबा भारती ने कहा कि उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी।

जो उसे एक बार देख लेता है उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है। इस प्रकार बाबा भारती की कुटिया में सुलतान घोड़े की सुन्दरता, चाल-ढाल आदि को लेकर उन दोनों में संवाद हुआ। उसके बाद खड्गसिंह ने अस्तबल में जाकर वह घोड़ा देखा तथा उसकी चाल भी देखी । अन्त में जब खड्गसिंह जाने लगा, तो उसने बाबा भारती से कहा कि यह घोड़ा मैं अब आपके पास नहीं रहने दूंगा, अर्थात् इसे बलात् ले जाऊँगा।

प्रश्न 3.
हार की जीत’ कहानी का उद्देश्य सविस्तार लिखिए।
उत्तर:
‘हार की जीत’ कहानी का उद्देश्य यह बतलाना है कि यदि स्वार्थ की चिन्ता नं करके परहित या मानव-कल्याण के भाव से आचरण किया जावे, तो दुष्ट व्यक्ति में भी मानवता की भावना उत्पन्न हो सकती है। खड्गसिंह एक प्रसिद्ध डाकू था। वह बाबा भारती के घोड़े को प्राप्त करना चाहता था। अपाहिज व्यक्ति बनकर उसने बाबाजी से घोड़ा अपने अधिकार में कर लिया था, किन्तु घोड़ा जाने का बाबाजी को कोई दु:ख न था। उन्हें तो चिन्ता इस बात की थी कि यदि इस घटना का लोगों को पता लग गया तो वे गरीब व्यक्ति पर विश्वास करना छोड़ देंगे। बाबा भारती की यही मानवतावादी बात डाकू को प्रभावित कर गयी।

वह सोचता था कि बाबा को घोड़े के जाने का तनिक भी दु:ख नहीं है और ये गरीबों के बारे में चिन्तित हैं। इससे उसका हृदय बदल गया। वह बाबा को मनुष्य नहीं, देवता मानने लगा। तब वह रात के अंधेरे में उनका घोड़ा उनके अस्तबल में बाँध आया। इस प्रकार कहानी में मानवता के आधार पर परहित और त्याग की भावना का महत्त्व स्पष्ट किया गया है। अतः इस कहानी का मूल भाव एवं उद्देश्य मानवता का आचरण करने की और सविचारों को अपनाने की प्रेरणा देना है और यह उद्देश्य अन्त में सहजता से व्यंजित हुआ है।

प्रश्न 4.
घोड़ा लौटने के बाद अगर संयोगवश खड्गसिंह से बाबा मिल जाते, तो दोनों में क्या वार्ता होती? कल्पना के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
डाकू खड्गसिंह ने बाबा की कुटी पर आकर सुलतान घोड़े को एक बार देख लिया था। उसने जाते समय बाबा से कह दिया था कि मैं यह घोड़ा आपके पास नहीं रहने दूंगा। एक बार स्वयं को अपाहिज व्यक्ति बतलाकर डाकू ने बाबा से घोड़े पर बिठा लेने के लिए कहा था। बाबा भारती ने अपाहिज की सहायता करना अपना फर्ज मानकर उसे घोड़े पर बिठाया। डाकू मौका पाकर घोड़ा लेकर भागने लगा था। तब बाबा ने उस घटना की किसी से चर्चा न करने के लिए डाकू से कहा था। उनके मानवतावादी कथन से प्रभावित होकर डाकू सुलतान घोड़े को बाबा की कुटी पर लौटा गया था।

इस घटना के बाद यदि खड्गसिंह और बाबा भारती का कभी मिलन हो जाता, तो खड्गसिंह अपने व्यवहार के लिए क्षमा-याचना करता, वह मानवता एवं परहित की भावना रखने को हृदय से स्वीकार करता और मनुष्यता का हित चाहने के लिए बाबी की खूब प्रशंसा भी करता । एक प्रकार से वह बाबा भारती का भक्त बन जाता और सन्मार्ग पर चलने की इच्छा प्रकट करता। बाबा भारती भी उसे मानवता का पाठ पढ़ाकर वैसा आचरण करने को कहते।

व्याख्यात्मक प्रश्न –

1. बाबाजी भी …………. पास न रहने दूंगा।
2. सहसा उन्हें झटका …………………. जरा ठहर जाओ।
3. और यह कहते-कहते ………… मनुष्य नहीं देवता है।
उत्तर:
इन अंशों की व्याख्या सप्रसंग व्याख्या के अन्तर्गत दी गई है। वहाँ देखिए।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 6 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
“अपनी वस्तु की प्रशंसा दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका हृदय भी अधीर हो गया।” यहाँ ‘उनका’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(क) डाकू खड्गसिंह के लिए
(ख) गाँव के व्यक्ति के लिए
(ग) कुटी के किसी व्यक्ति के लिए
(घ) बाबा भारती के लिए।
उत्तर:
(घ) बाबा भारती के लिए।

प्रश्न 2.
“केवल एक प्रार्थना करता हूँ, उसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।” प्रार्थना कौन कर रहा था?
(क) डाकू खड्गसिंह
(ख) बाबा भारती का एक शिष्य
(ग) बाबा भारती
(घ) गाँव से आया हुआ एक व्यक्ति
उत्तर:
(ग) बाबा भारती

प्रश्न 3.
“अब घोड़े का नाम न लो। मैं तुमसे इसके विषय में कुछ न कहूँगा। मेरी प्रार्थना यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।” वाक्य से बाबा भारती की कौनसी चारित्रिक विशेषता अभिव्यक्त होती है –
(क) स्पष्टवादिता
(ख) भोलापन
(ग) मनुष्यता पर विश्वास की भावना
(घ) शास्त्र ज्ञान
उत्तर:
(ग) मनुष्यता पर विश्वास की भावना

प्रश्न 4.
अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।” कथन में किस भाव की अभिव्यक्ति हुई है –
(क) मानवता पर आस्था
(ख) गरीबों के प्रति सदाशयता
(ग) उच्च वर्ग के प्रति विरक्ति
(घ) अन्धविश्वास
उत्तर:
(क) मानवता पर आस्था

प्रश्न 5
“परन्तु फाटक पर पहुँचकर उनको अपनी भूल प्रतीत हुई। साथ ही घोर निराशा ने पाँवों को मन-मन-भर को भारी बना दिया।” बाबा भारती की यह स्थिति क्यों हुई –
(क) अस्तबल में घोड़े की अनुपलब्धता से
(ख) खड्गसिंह के विश्वासघात से।
(ग) मानवता पर विश्वास उठ जाने से
(घ) रात्रि के सन्नाटे और निस्तब्धता से
उत्तर:
(क) अस्तबल में घोड़े की अनुपलब्धता से

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 6 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अपने सुलतान घोड़े को देखकर बाबा भारती को किस भाव का अनुभव होता था?
उत्तर:
बाबा भारती को सुलतान घोड़े को देखकर आनंद का अनुभव होता था।

प्रश्न 2.
अपाहिज होने का दिखावा किसने और क्यों किया था?
उत्तर:
अपाहिज होने का दिखावा डाकू खड्गसिंह ने बाबा भारती का घोड़ा प्राप्त करने के लिए किया था।

प्रश्न 3.
बाबा भारती ने सुलतान की ओर से इस तरह मुँह कब मोड़ लिया, जैसे उनका उससे कभी कोई सम्बन्ध न था?
उत्तर:
डाकू खड्गसिंह से यह कहने के बाद, कि तुम इस घटना को किसी के आगे प्रकट न करना, बाबा भारती ने सुलतान की ओर से मुँह मोड़ लिया था।

प्रश्न 4.
बाबा भारती ने खड्गसिंह से क्या प्रार्थना की थी?
उत्तर:
बाबा भारती ने खड्गसिंह से प्रार्थना की थी कि नकली अपाहिज बनकर घोडा छीन ले जाने की घटना को किसी के सामने प्रकट मत करना।

प्रश्न 5.
“बाबाजी ! इसमें आपको क्या डर है?” खड्गसिंह ने किस डर की बात की?
उत्तर:
खड्गसिंह ने यह बात की कि अपाहिज द्वारा घोड़ा छीन लेने से बाबाजी की बदनामी नहीं होगी। बदनामी तो धोखा देने वाले की होती है।

प्रश्न 6.
बाबा भारती के कथन का डाकू खड्गसिंह पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
बाबा भारती के कथन का यह प्रभाव पड़ा कि खड्गसिंह उन्हें परोपकारी देवता मानने लगा और उसने उनका घोड़ा चुपचाप लौटा दिया।

प्रश्न 7.
‘विचित्र जानवर है। देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे।” यह कथन किसने किससे कहा?
उत्तर:
यह कथन बाबा भारती ने डाकू खड्गसिंह से कहा।

प्रश्न 8.
”उसकी आँखों में नेकी के आँसू थे।” इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस कथन का आशय है कि डाकू खड्गसिंह ने बाबा भारती का घोड़ा लौटाकर नेकी का काम किया था, इससे उसकी आँखों में आँसू आ गये थे।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“अपनी निज की हानि को मनुष्यत्व की हानि पर न्यौछावर कर देना चाहिए”-कहानी के इस संदेश को समझाइये।
उत्तर:
बाबा भारती का घोड़ा अनेक विशेषताओं से युक्त था। वह सुन्दर, बलवान और तेज दौड़ने वाला था। डाकू खड्गसिंह ने स्वयं को अपाहिज बतलाकर बाबा भारती को धोखा दिया था और उनका घोड़ा छीन लिया था। बाबा ने घोड़ा छिन जाने का दुःख न मानकर डाकू से कहा था कि इस घटना को कहीं प्रकट मत करना, अन्यथा लोग गरीबों पर विश्वास करना छोड़ देंगे। इस प्रकार व्यक्तिगत हानि की चिन्ता त्यागकर मनुष्यता बनाए रखने की बात ही कहानी में सन्देश रूप में व्यक्त हुई है।

प्रश्न 2.
धोखे से बाबा भारती का घोड़ा प्राप्त करके डाकू खड्गसिंह के सोच में आपको क्या परिवर्तन दिखाई दिया है?
उत्तर:
डाकू खड्गसिंह जब पहली बार बाबा भारती के पास आया था तब उसके मन में सुलतान को प्राप्त करने की चाह थी। उस समय उसने कहा था कि मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूंगा। बाद में उसने स्वयं अपाहिज का वेश बनाकर बाबा के घोड़े को अपने अधिकार में ले लिया था। परन्तु बाबा भारती द्वारा मानवता के नाते परहित का चिन्तन कर उस घटना को गोपनीय रखने की बात से उसकी सोच में परिवर्तन आ गया। उसे बाबा भारती के विचार ऊँचे और भाव पवित्र प्रतीत हुए। बाबा, भारती उसे देवता तुल्य प्रतीत हुए। तब छीनने का भाव रखने वाला खड्ग़सिंह घोड़े को स्वयं ही लौटा आया था।

प्रश्न 3.
घोड़ा प्राप्त करने के लिए डाकू खड्गसिंह ने अपाहिज व्यक्ति होने का किस प्रकार दिखावा किया?
उत्तर:
बाबा एक दिन सन्ध्या के समय घोड़े पर बैठकर घूमने जा रहे थे, तब एक वृक्ष की छाया में कराहते व्यक्ति ने बाबा से कहा – “बाबा ! मैं दु:खिया हूँ, मुझ पर दया करो।” बाबा के पूछने पर उसने बताया कि मुझे यहाँ से तीन मील दूर जाना है। वहाँ मेरा सौतेला भाई रहता है, वह वैद्य है। बाबा ने दया करके उसे घोड़े पर बिठा दिया और स्वयं घोड़े की लगाम पकड़कर पैदल चलने लगे। वह व्यक्ति लगाम छुड़ाकरे घोड़े को दौड़ाकर ले गया। वह डाकू खड्गसिंह था। इस तरह उसने अपाहिज होने को दिखावा किया था।

प्रश्न 4.
“खड्गसिंह केवल एक प्रार्थना करता हूँ, उसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह कथन. बाबा भारती का है। इससे यह प्रकट होता है कि अपनी एक बात डाकू खड्गसिंह से मनवाने की उनकी तीव्र इच्छा थी। यदि उनकी वह माँग पूरी न होती तो बाबा भारती को अत्यधिक कष्ट होता। वह कष्ट घोड़े के जाने से होने वाले कष्ट से बहुत बड़ा कष्ट होता। वह बात मान ली जाए तभी तो उन्होंने डाकू से यों ही न कहकर उसे प्रार्थना के रूप में कहा था कि मानवता एवं परहित की खातिर इस घटना को किसी पर प्रकट मत करना।

प्रश्न 5.
बाबा भारती गरीबों को महत्त्व देते थे, कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाबा भारती भगवद्-भजन करते थे और रुपया, माल, असबाब आदि से लगाव नहीं रखते थे। उनके भीतर गरीबों के प्रति बहुत सहानुभूति थी। तभी तो अपाहिज को उन्होंने घोड़े पर बिठाया था और स्वयं पैदल चलने लगे थे। उन्होंने घोड़े की चिन्ता छोड़कर, गरीबों के प्रति अपनी चिन्ता व्यक्त की। वे चाहते थे। कि लोग गरीबों की सहायता करना न छोड़े और मानवता को हानि न पहुँचे। इसी आशय से उन्होंने डाकू से प्रार्थना की थी।

प्रश्न 6.
“हानि ने उन्हें हानि की तरफ से बेपरवाह कर दिया था।” इस कथन का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
डाकू खड्गसिंह ने धोखे से बाबा भारती से उनका प्रिय घोड़ा छीन लिया था। जब घोड़ा बाबा के पास था तब वे उसकी बहुत सेवा करते थे। वे रात को लाठी लेकर उसका पहरा भी देते थे, किन्तु घोड़े के चले जाने से हुई हानि के कारण अब उन्हें और कोई हानि होने की चिन्ता नहीं थी। घोड़ा चोरी होने की चिन्ता भी अब समाप्त हो गयी थी। घोड़े के अलावा हानि या चोरी हो जाने योग्य अन्य कोई कीमती वस्तु अब उनके पास नहीं थी। इस कारण उन्होंने पहरा देना भी छोड़ दिया था और अब बेपरवाह रहने लगे थे।

प्रश्न 7.
जब डाकू खड्गसिंह घोड़े को बाबा के अस्तबल में बाँध गया, तब बाबा भारती पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
डाकू द्वारा घोड़ा लौटाये जाने से बाबा भारती पर दो प्रकार की प्रतिक्रियाएँ हुईं। एक तो उन्हें बिछुड़े हुए अपने अत्यन्त प्रिय घोड़े को पाकर प्रसन्नता हुई। वे घोड़े के गले से लिपट कर रोये, उन्होंने उसके मुँह पर थपकियाँ दीं। दूसरे, उन्हें इस बात का विश्वास हो गया कि आगे भी कोई गरीबों की सहायता से मुँह नहीं मोड़ेगा। गरीब की सहायता करने से स्वयं बाबा को कोई हानि नहीं हुई थी। उन्हें उनका घोड़ा मिल गया था।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“हार की जीत’ कहानी प्रेम और मनुष्यता के ताने-बाने से बुनी गई एक सफल कहानी है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘हार की जीत’ कहानी के कथनानुसार बाबा भारती वैरागी तपस्वी थे, परन्तु अपने घोड़े सुलतान के प्रति उनका मन असीम प्रेम से भरा था। वे भगवद्भजन से बचे समय में अपने घोड़े का पालन-पोषण करते थे। उन्हें वह घोड़ा अत्यन्त प्रिय था, सच्चा प्रेमी अपने प्यार को भी इतना न चाहता होगा ऐसा स्नेह उनका अपने घोड़े के प्रति था। साथ ही वे गरीबों एवं असहायों के प्रति पूरी सहानुभूति रखते थे। डाकू खड्गसिंह द्वारा घोड़ा छीन लेने पर उन्हें अपनी हानि की चिन्ता न होकर मनुष्यता की हानि की चिन्ता हो रही थी।

इसीलिए उन्होंने डाकू से कहा कि इस घटना का किसी को पता न चले अन्यथा लोग गरीबों पर विश्वास करना छोड़े देंगे। बाबा भारती के इस कथन से डाकू खड्गसिंहं के हृदय पर इतना प्रभाव पड़ा कि वह भी मनुष्यत्व से भरकर सोचने लगा कि “ऐसा मनुष्य, मनुष्य नहीं देवता है।” तब वह चुपचाप सुलतान घोड़े को अस्तबल में छोड़ गया। इस तरह प्रेम और मनुष्यता की जीत हुई। अतः प्रस्तुत कहानी के कथानक में प्रेम एवं मानवीय भावों की सुन्दर व्यंजना हुई है। इस दृष्टि से एक सफल कहानी है।

प्रश्न 2.
‘हार की जीत’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता के आधार पर उदाहरण सहित प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में बाबा भारती और डाकू खड्गसिंह के बारे में वर्णन हुआ है। डाकू खड्गसिंह ने अपाहिज का दिखावा कर बाबा से घोड़ा छीनकर अपने अधिकार में कर लिया था। इससे बाबा की हार और डाकू की जीत हो गयी थी। परन्तु डाकू खड्गसिंह बाबा भारती द्वारा कहे गये शब्दों से प्रभावित होकर स्वयं उनका घोड़ा लौटा गया था। वह बाबा के व्यवहार से इतना प्रभावित हुआ कि वह बाबा भारती को मनुष्य नहीं, देवता मानने लगा था। इस प्रकार हारे हुए बाबा भारती हारकर भी जीत गये थे। इस तरह कहानी में मनुष्यता की जीत दिखलाई गई है।

शीर्षक का पूरी कहानी से सम्बन्ध है। शीर्षक छोटा, नवीन, मौलिक, कौतूहल उत्पन्न करने वाला, आकर्षक है। जो बाबा भारती घोड़ा धोखे से छीने जाने के कारण इस बात से चिन्तित थे कि अब कोई गरीबों पर विश्वास न करेगा, वे ही इस बारे में आश्वस्त हो गये थे कि अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा। इस प्रकार हार की जीत होने से यह शीर्षक कहानी के लिए उपयुक्त है। कहानी शीर्षक की सार्थकता को सिद्ध करने वाली है।

प्रश्न 3.
“ऐसा मनुष्य, मनुष्य नहीं देवता है।” डाकू खड्गसिंह की इस मान्यता के औचित्य पर विचार कीजिए।
उत्तर:
पहले तो डाकू खड्गसिंह यह सोचता था कि ऐसा घोड़ा खड्गसिंह के पास होना चाहिए था, इस साधु को ऐसी चीजों से क्या लाभ? बाबा भारती को सुलतान नाम का घोड़ा अनेक विशेषताओं से युक्त था। डाकू उसे हर स्थिति में प्राप्त करना चाहता था। दूसरों की चीज छीनने में उसे कोई दु:ख या संकोच नहीं था। एक अपाहिज व्यक्ति का वेश बनाकर उसने धोखा देकर बाबा भारती से घोड़ा छीन लिया था। बाबा भारती ने घोड़ा छीनकर भागते हुए डाकू से कहा था कि यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका, मैं तुमसे वापस करने के लिए न कहूँगा।

उन्होंने क्रोध व्यक्त न कर डाकू से प्रार्थना की थी कि तुम इस घटना को किसी के सामने प्रकट मत करना कारण यह है कि लोगों को यदि इस घटना का पता लग गया, तो वे किसी गरीब पर विश्वास न करेंगे। घोड़ा डाकू के पास पहुँच जाने पर बाबा ने घोड़े की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया था जैसे उनका उससे कभी कोई सम्बन्ध न था। बाबा के ये विचार सुनकर डाकू सोचने लगा कि ऐसा मनुष्य, मनुष्य नहीं देवता है।

प्रश्न 4.
‘हार की जीत’ कहानी के आधार पर बाबा भारती की चारित्रिक विशेषताएँ बतलाइए।
उत्तर:
बाबा भारती ‘हार की जीत’ कहानी के प्रमुख पात्र हैं। उनके चरित्र की निम्न विशेषताएँ प्रमुखता से व्यक्त हुई हैं। श्रेष्ठ भक्त-बाबा भारती भगवद्-भंजन करते थे। वे बाबा या साधु थे, इसलिए भजन ही उनका मुख्य काम था। वे गाँव के बाहर एक छोटे-से मन्दिर में रहते थे। वे रुपया, माल, असबाब, जमीन, यहाँ तक कि नागरिक जीवन से भी सम्बन्ध तोड़ चुके थे।

घोडे से अपनत्व-भाव-उनका अपने घोड़े के प्रति लगाव था। वे उसे सब प्रकार से सुखी रखने का प्रयत्न करते थे। भगवद्-भजन से जो समय बचता उसे वे घोड़े की देखभाल में लगाते थे। वे अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते थे। मानवीय संवेदना-बाबा में गरीबों के प्रति सहानुभूति, दया का भाव था। किसी को अपाहिज जानकर वे उसे घोड़े पर बिठा सकते थे। खड्गसिंह द्वारा घोड़ा छीनकर ले जाने पर उन्हें चिन्ता इस बात की हुई थी कि इस घटना से लोग कहीं गरीबों पर विश्वास करना न छोड़ दें। मनुष्यत्व तथा परहित की खातिर वे अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु त्याग सकते थे।

प्रश्न 5.
“प्रेम मनुष्य जीवन को संबल है। उसकी सीमा में पशु-पक्षी भी आ जाते हैं।” कथन की सार्थकता को व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
‘हार की जीत’ कहानी में कहानीकार ने जीवन में प्रेम की भावना के महत्त्व पर प्रकाश डाला है। उसने बताना चाहा है कि मनुष्य को मनुष्य से ही नहीं, अपितु जीवमात्र से, पशु-पक्षियों से भी प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। दूसरों से इस प्रकार प्रेमभाव रखने से अपना हृदय भी पवित्र होता है, शान्ति मिलती है। तभी तो रुपया, माल, असबाब, जमीन और नागरिक जीवन से भी घृणा करने वाला बाबा भारती अपने पालतू सुलतान घोड़े के प्रति बहुत प्रेमभाव रखते थे।

उससे बिछुड़ने की कल्पना से ही उन्हें दु:ख होता था और वे सोचते थे कि मैं इस घोड़े के बिना नहीं रह सकेंगा। वे सुलतान घोड़े को सुखी रखने में कोई कमी नहीं रखना चाहते थे। उसकी देखभाल, ऐसी लगन, ऐसे प्यार, ऐसे स्नेह से करते थे कि कोई सच्चा प्रेमी भी अपने प्रियजन को इतना प्यार न करता होगा। बाबा भारती का घोड़े के प्रति प्रेमपूर्ण व्यवहार दिखाकर लेखक ने यही स्पष्ट किया है कि मनुष्य अपने जीवन में प्रेम-भाव को बड़ा सहारा मानती है। अतः प्रेम-पात्र चाहे कोई भी हो, उसके प्रति प्रेम बिना भेदभाव के किया जाना चाहिए।

प्रश्न 6.
“हार की जीत’ कहानी मानवीयता की जीत की कहानी है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाबा भारती भगवद्-भजन करते थे और शेष समय में वे अपने सुलतान घोड़े को खिलाने-पिलाने, उस पर बैठकर सैर करने में व्यतीत करते थे। उन्हें वह घोड़ा अत्यन्त प्रिय था। घोड़े में कई विशेषताएँ थीं। डाकू खड्गसिंह ने घोड़े की प्रसिद्धि सुन रखी थी। अवसर पाकर एक दिन वह बाबा के पास आया। बाबा ने उसे घोड़ा दिखाया और उसकी विशेषताओं की चर्चा की। खड्गसिंह ने घोड़े को दौड़ाकर देखा। जाते समय खड्गसिंह कह गया कि बाबा मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूंगा।

कुछ दिनों बाद डाकू खड्गसिंह अपाहिज बनकर आया। बाबा से उसने घोड़े पर बैठने की स्वीकृति प्राप्त की और फिर वह घोड़े को लेकर भागने लगा। तब बाबा ने उससे कहा कि यह घटना किसी को मत बताना, अन्यथा लोग गरीबों की सहायता करना छोड़ देंगे। खड्गसिंह पर इस कथन का बड़ा प्रभाव पड़ा। वह एक रात को घोड़े को अस्तबल में बाँध गया। इस प्रकार इसमें लोक-कल्याण की भावना और मानवता की जीत हुई है, मानवीय सविचारों को विजयी दिखाया गया है।

प्रश्न 1.
कहानीकार सुदर्शन का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
सुदर्शन का मूल नाम बद्रीनाथ था। ये प्रेमचन्द की परम्परा के प्रमुख कथाकार माने जाते हैं। इन्होंने अपनी कहानियों में सामाजिक जीवन के विविध पक्षों को उकेरा है। सामाजिक जीवन की विसंगतियों को चित्रित करते हुए इन्होंने आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को अभिव्यक्ति दी है। प्रेमचन्द के समान ही सुदर्शन की कहानियों में घटना-प्रधान, वर्णनात्मक, सहज प्रवाहयुक्त और मुहावरेदार भाषा प्रयुक्त है। पात्रों एवं घटनाओं का चित्रण करने में ये परिवेश के चक्रव्यूह में फंसे मानव की नियति और उसकी मन:स्थिति को अभिव्यक्त करने में सफल रहे हैं। इनकी कहानियों के पात्र साधारण कोटि के मजदूर, किसान तथा शहरी मध्यवर्ग के लोग हैं तथा उनके माध्यम से मानवीय संवेदनाओं की मार्मिक व्यंजना की गई है।

सुदर्शन की कई कहानियाँ अतीव लोकप्रिय हैं, यथा-‘हार की जीत’, ‘अलबम’, ‘कवि की स्त्री’, ‘पत्थरों का सौदागर’ आदि। इनकी कहानियाँ ‘पुष्पलता’, ‘तीर्थयात्रा’, ‘सुदर्शन सुधा’, ‘सुप्रभात’, ‘परिवर्तन’, ‘पनघट’, ‘नगीना’, ‘चार कहानी’ आदि संग्रहों में संकलित हैं। ‘अंजना’, ‘भाग्यचक्र’, ‘आनरेरी मजिस्ट्रेट’, ‘सिकन्दर’ आदि कई उत्तम नाटक तथा ‘अमर अभिलाषा’, ‘भाग्यवन्ती’, ‘प्रेम पुजारिन’, ‘देहाती देवता’ इनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं।

हार की जीत लेखक परिचय-

सुदर्शन प्रेमचन्द की कहानी-परम्परा के प्रमुख कहानीकार हैं। इनका जन्म सियालकोट में हुआ। इनका मूल नाम बद्रीनाथ है। सुदर्शन ने बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त की। पहले इन्होंने उर्दू में कहानियाँ लिखीं, बाद में हिन्दी में लिखने लगे। सुदर्शन की कहानियाँ भी प्रेमचन्द के समान घटना-प्रधान, वर्णनात्मक, सहज प्रवाहयुक्त और मुहावरेदार भाषा में लिखित हैं। इन्होंने अपनी कहानियों में आदर्शोन्मुख यथार्थवाद और पात्रों के आदर्श चरित्र की प्रतिष्ठा की है। ये मानवीय संवेदनाओं के मार्मिक अंकन में सिद्धहस्त रहे हैं। रचनाएँ-सुदर्शन की ‘हार की जीत’, ‘अलबम’, ‘आशीर्वाद’, ‘न्याय मंत्री’, ‘एथेन्स का सत्यार्थी’, ‘कवि की स्त्री’, ‘संसार की सबसे बड़ी कहानी’, ‘राजपूतनी का प्रायश्चित्त’ आदि प्रसिद्ध कहानियाँ हैं। ‘हार की जीत’ उनकी अमर कहानी है।

पाठ-सार

सुदर्शन की ‘हार की जीत’ काफी प्रभावपूर्ण कहानी है। इसका सार इस प्रकार है बाबा भारती का घोड़े से लगाव-जिस प्रकार माँ को अपने बेटे को देखकर आनन्द मिलता है, उसी प्रकार बाबा भारती को अपने सुलतान घोड़े को देखकर मिलता था। वे भजन करते थे, सब कुछ त्याग चुके थे। धन-दौलत से उनका कोई मोह नहीं था, परन्तु वे अपने घोड़े को बहुत चाहते थे और उसकी पूरी देखभाल करते थे। उनका घोड़ा अत्यन्त सुन्दर था और उसकी चाल बड़ी मोहक थी। बाबा भारती सन्ध्या समय सुलतान पर चढ़कर आठ-दस मील सैर कर आते थे।

डाकू खड्गसिंह को आतंक-खड्गसिंह उस इलाके का कुख्यात डाकू था। लोग उसका नाम सुनकर काँप जाते थे। उसने बाबा भारती के घोड़े की प्रसिद्धि सुनी थी। वह एक दिन बाबा भारती के पास आया। उसने घोड़ा देखकर प्रशंसा की। बाबा ने घोड़े की चाल दिखाई। तब जाते-जाते खड्गसिंह ने कहा कि यह घोड़ा आपके पास न रहने दूंगा। इस बात से बाबा भारती डर गये और घोड़े की रखवाली सावधानी से करने लगे। घोड़े को छीन लेना-बहुत दिनों के बाद बाबा भारती सन्ध्या समय सुलतान पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। सहसा एक वृक्ष के नीचे पड़ा अपाहिज कराहता हुआ दिखाई दिया। बाबा ने उसे रामांवाला तक पहुँचाने के उद्देश्य से घोड़े पर बैठा दिया। कुछ दूर चलते ही वह अपाहिज घोड़े को दौड़ाकर ले भागा। वह अपाहिज डाकू खड्गसिंह था।

बाबा की मानवीय संवेदना-बाबा ने आवाज देकर खड्गसिंह को रोका और कहा कि तुम इस घटना को किसी से मत कहना, वरना लोग किसी गरीब की सहायता नहीं करेंगे। डाकू खड्गसिंह पर प्रभाव-बाबा भारती के इस कथन का डाकू खड्गसिंह पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि कुछ दिन बाद वह रात में घोड़े को उनके अस्तबल में बाँध गया। प्रात:काल जब बाबा उठे, तो घोड़े के हिनहिनाने से उसके पास जाकर लिपट गये और कहने लगे कि अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह नहीं मोड़ेगा।

कठिन शब्दार्थ-

असह्य = न सह सकने योग्य। अभिलाषा = इच्छा। अस्तबल = घोड़ों को बाँधने का स्थान, घुड़शाला। साँप लोट गया = ईष्र्या से ग्रस्त हो गया। बाहुबल = शारीरिक शक्ति। खरहरा = घोड़े की गर्दन पर कंघी करना। अपाहिज = अपंग। प्रयोजन = उद्देश्य। वियोगी = विरह से व्यथित व्यक्ति। नांई = समान। दिल टूटना = बहुत दु:ख होना। कीर्ति = यश। अंकित = छाप पड़ना। कंगला = दरिद्र। नेकी = अच्छा काम। मेधा = बुद्धि।

The Complete Educational Website

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *