RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 9 निराला भाई
RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 9 निराला भाई
Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 9 निराला भाई
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा ने ‘निराला भाई’ संस्मरण में किसके व्यक्तित्व को उभारा है –
(क) स्वयं के
(ख) प्रसाद के
(ग) पंत के
(घ) निराला के
उत्तर:
(घ) निराला के
प्रश्न 2.
महादेवी वर्मा और निराला दोनों ही कौनसी काव्यधारा के प्रमुख स्तम्भ थे?
(घ) निराला के
(क) छायावादी
(ख) प्रगतिवादी
(ग) प्रयोगवादी
(घ) नवलेखन।
उत्तर:
(क) छायावादी
प्रश्न 3.
‘अपरा’ काव्य कृति पर निरालाजी को पुरस्कार मिला –
(क) पाँच हजार रुपये का
(ख) दस हजार रुपये का
(ग) सात हजार रुपये का
(घ) इक्कीस सौ रुपये का
उत्तर:
(घ) इक्कीस सौ रुपये का
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा ने ‘औढरदानी’ किसे कहा है?
उत्तर:
महादेवी वर्मा ने महाकवि निराला को औढरदानी कहा है।
प्रश्न 2.
महादेवी वर्मा ने निराला को भाई क्यों बनाया?
उत्तर:
ऐसे भुक्खड़ को अपना भाई कौन बहिन बनायेगी? निराला की इस भावनामयी चुनौती को मानकर महादेवी ने उन्हें अपना भाई बनाया।
प्रश्न 3.
निरालाजी ने अपने वस्त्रों को कौनसे रंग में रंग दिया था?
उत्तर:
निरालाजी ने गेरु रंग से अपने वस्त्रों को रंग दिया था।
प्रश्न 4.
निरालाजी को समझने के लिए किन दो गुणों का होना आवश्यक है?
उत्तर:
निरालाजी को समझने के लिए समानधर्मी चेतना एवं संवेदनानुभूतिइन दो गुणों का होना आवश्यक है।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
निराला के व्यक्तित्व को महादेवी ने प्रतिभा से झड़े जूही के फूल’ क्यों कहा है?
उत्तर:
किसी समाचार-पत्र में कवि सुमित्रानन्दन पन्त के निधन का असत्य समाचार पढ़कर निरालाजी इतने व्यथित हुए कि लड़खड़ाकर महादेवी के पास बैठ गये और अव्यक्त वेदना की तरंगों से अश्रुपात करने लगे। उस समय उनकी झुकी हुई पलकों से चूने वाले अश्रुकण ऐसे चमक रहे थे कि मानो किसी भव्य प्रतिमा से जूही के फूल झड़ रहे हों। इस प्रकार महादेवी ने कविवर निराला के संवेदनाशील व्यक्तित्व तथा करुणाशीलता के अतिरेक से बहाये गये आँसुओं को लेकर उक्त वाक्य कहा है।
प्रश्न 2.
“युग-स्रष्टा साहित्यकार’ महादेवी के अनुसार किसे कहा जा सकता है?
उत्तर:
महादेवी वर्मा के अनुसार जो साहित्यकार समकालीन विषम स्थितियों से संघर्ष करता हुआ अपनी संवेदनाओं की अभिव्यक्ति करता है और अपनी असाधारण प्रतिभा से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष बाधाओं को चुनौती देता हुआ, सभी आघातों को सहज भाव से झेलता हुआ लक्ष्य तक पहुँचता है, उसी को युग-स्रष्टा साहित्यकार कहा जा सकता है। निरालाजी ऐसे ही विद्रोही साहित्यकार थे। वे अपने जीवन में निरन्तर संघर्ष करते रहे, सामाजिक विकृत परिवेश में भी सतत् जागरूक रहकर मानवता का अमृत-पान करते रहे और अपनी अनुभूतियों को साहित्य में अभिव्यक्ति देते रहे।
प्रश्न 3.
दम्भ और स्पर्धा, अज्ञान और भ्रान्ति के कारण कौन-सी समस्या को सामना वर्तमान मानव कर रहा है?
उत्तर:
वर्तमान काल में दम्भ और स्पर्धा, अज्ञान और भ्रान्ति का कोहरा छाया हुआ है। इस कोहरे या धुंधलेपन के कारण व्यक्ति न तो स्वयं को सही ढंग से पहचान रहा है और न दूसरों को पहचान पाता है। जीवन के सहयात्रियों को अब सही ढंग से पहचानना कठिन हो गया है। इस कारण भीड़भाड़ से भरे हुए समाज में रहने पर भी आज का मानव अकेलेपन की अनुभूति से ग्रस्त है, वह स्वयं को अजनबी मान रहा है और अपनी यथार्थता जानने के लिए भटक रहा है। मानव आज इसी समस्या से जूझ रहा है जो कि अत्यधिक विकट बन गई है।
प्रश्न 4.
अर्थाभाव ने निरालाजी को ‘परिवार सुख’ से वंचित कैसे किया?
उत्तर:
निरालाजी के जीवन में सदा अर्थाभाव रहा। उनकी पत्नी एक पुत्री एवं एक पुत्र को छोड़कर स्वर्ग चली गई थीं। वे पुत्री का स्वयं लालन-पालन करने में असमर्थ रहे। ननिहाल में वह बड़ी हुई, उसका विवाह हुआ, परन्तु नव-यौवन में ही उसका निधन हो गया। तब निरालाजी निरुपाय दर्शक बने रहे। वे पुत्र को भी उचित शिक्षा-सुविधा नहीं दे सके। इस कारण वे उसकी भी उपेक्षा के पात्र बने । परिवार में माता, बहिन, भाई आदि का साथ भी नहीं रहा। इस तरह अर्थाभाव से निरालाजी का जीवन एकाकी ही व्यतीत हुआ और वे परिवार-सुख से वंचित रहे।
प्रश्न 5.
इक्कीस सौ की पुरस्कार राशि का उपयोग निरालाजी ने कहाँ किया?
उत्तर:
‘अपरा’ नामक रचना पर महाकवि निराला को इक्कीस सौ रुपये पुरस्कार में मिले। उन्होंने इस राशि को संकल्पित अर्थ बताया और इसका उपयोग स्वयं के लिए करना अनुचित माना। उन्होंने महादेवी वर्मा से कहा कि स्वर्गीय मुंशी नवजादिक लाल की विधवा को पचास रुपये प्रतिमास के हिसाब रुपये भेजे जावें। इस प्रकार उक्त पुरस्कार राशि का उपयोग निरालाजी ने दूसरों की सहायता करने में किया। निरालाजी अत्यधिक उदार स्वभाव के थे और स्वयं धनहीन रहकर भी दूसरों की दिल खोलकर सहायता करते थे।
प्रश्न 6.
पारस पत्थर की अमूल्यता किसमें है?
उत्तर:
पारस पत्थर स्वयं तो पत्थर ही रहता है। वह एक प्रकार से अनगढ़ शिला-खण्ड होता है। इस कारण अपने आकार-प्रकार आदि से उसका कोई मूल्य नहीं रहता है, परन्तु वह सामान्य-से लोहे का स्पर्श करके उसे सोना बना देता है। इस प्रकारे पारस पत्थर सामान्य लोहे को सोना बनाकर उसका मूल्य बढ़ा देता है, अर्थात् पारस पत्थर की अमूल्यतो दूसरों का मूल्य बढ़ाने में है। उसका स्वयं का मूल्य तो जितना है उतना ही रहता है, परन्तु साधारण लोहे को सोने में बदलकर उसकी मूल्यवृद्धि करने में उसका विशेष महत्त्व है।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा के ‘निराला भाई’ संस्मरण के आधार पर निरालाजी के व्यक्तित्व की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘निराला भाई’ संस्मरण में महादेवी वर्मा ने निरालाजी के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताओं का वर्णन किया है। यहाँ उनकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार निरूपित हैं
- अस्त-व्यस्त जीवन – निरालाजी का जीवन सदा अस्त-व्यस्त रहा। उन्हें परिवार का सुख नहीं मिला और सदा वेदनामय एकाकी जीवन बिताना पड़ा। फिर भी वे संघर्ष करते रहे।
- उदारता एवं आत्मीयता – निरालाजी अपने पास की चीजों को जरूरतमंदों को देते थे। वे अतिथि को खुले दिल से स्वागत करते थे और स्वयं अर्थाभाव में. रहकर भी दूसरों की आर्थिक सहायता करते रहते थे। मुंशी नवजादिक लाल की विधवा की आर्थिक सहायता उदारता से की। पन्तजी की मृत्यु का असत्य समाचार सुनकर वे अत्यधिक व्याकुल हुए। उनमें आत्मीयता प्रबल रूप में थी।
- असाधारण प्रतिभाशाली – निरालाजी असाधारण प्रतिभाशाली थे। उनके द्वारा रचा गया साहित्य सामाजिक चेतना एवं क्रान्तदर्शी भावना से मण्डित है।
- वेदनामय जीवन – निरालाजी का शरीर भव्य एवं विशाल था। उनमें अन्याय का विरोध करने की भावना थी, परन्तु पारिवारिक या व्यक्तिगत जीवन सभी तरह से अभावों से ग्रस्त एवं वेदनामय था।
- अन्य – अपने स्वभाव से वे निराला ही थे, उदारता में महाप्राण थे, तो अत्यन्त निर्धनता एवं विरक्त होने से वैरागी थे। साहित्य-साधना के विशिष्ट साधक और लेखिका के स्नेही भाई थे। उनके व्यक्तित्व में अनेक गुण एक साथ विद्यमान थे।
प्रश्न 2.
साहित्यकार के जीवन का विश्लेषण उसके साहित्य के मूल्यांकन से कठिन है। तर्क-सम्मत विवेचना कीजिए।
उत्तर:
महादेवी वर्मा ने कविवर निरालाजी के साहित्य एवं उनके व्यक्तिगत जीवन को लेकर ऐसा कहा है। किसी साहित्य के मूल्यांकन की एक कसौटी होती है, उसके कुछ सिद्धान्त एवं मार्गदर्शक बिन्दु होते हैं। इस प्रकार कोई भी समीक्षक या आलोचक साहित्यकार की कृतियों की समीक्षा करते समय सिद्धान्तों के साथसाथ अपने दृष्टिकोण का भी समावेश कर लेता है। फलस्वरूप प्रत्येक समालोचक के द्वारा जो मूल्यांकन किया जाता है, उसमें अन्तर आ सकता है। क्योंकि यह कविता के विशेष भाव, विशेष प्रतिपाद्य, एक विशेष रंग एवं लय आदि का जो स्वरूप एक आलोचक को जैसा लगता है, वैसा ही दूसरे को भी लगे यह जरूरी नहीं है।
उस कविता का रहस्यार्थ एक की समझ में कुछ विशेष आ सकता है तो दूसरे के लिए। वह सामान्य बन जाता है। एक साहित्यकार का जीवन व्यक्तिगत वेदना-व्यथा से भरा रहता है, फिर भी वह किसी को लाभ पहुँचा सकता है और किसी को नहीं, किसी को उसका जीवन समाज के लिए आदर्श बन जाता है। इस तरह साहित्यकार का व्यक्तिगत जीवन आदर्शों या मूल्यों की दृष्टि से विश्लेषित किया जाता है, परन्तु उसके साहित्य के मूल्यांकन में दृष्टिकोण में भिन्नता आ सकती है। ऐसी स्थिति में मूल्यांकन करते समय सतर्कता की जरूरत पड़ती है।
प्रश्न 3.
‘अतिथि देवो भव’ के सन्दर्भ में प्राचीन और आधुनिक व्यवहार के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘अतिथिदेवो भव’ की प्राचीन भावना अतिथि-सत्कार की पवित्र परम्परा से जुड़ी रही है। प्राचीन समय में अतिथि के लिए आसन की व्यवस्था करना, भोजन स्वयं सुरुचि से पकाना, अतिथि की इच्छा का ध्यान रखना और पूज्य-भाव से सम्मान-सत्कार करना गृहस्थ का पवित्र धर्म माना जाता था। हमारे देश के ग्रामीण परिवेश में अभी भी कुछ घरों में यह प्राचीन संस्कार दिखाई देता है, परन्तु आधुनिक युग में इसमें काफी परिवर्तन आ गया है। वैसे तो अब अतिथियों के सत्कार के अवसर कम ही दिखाई देते हैं।
लोगों में आधुनिक सभ्यता का छिछला और भद्दा भाव-व्यापार चल पड़ा है। इस कारण अब यदि अतिथि देवता की सेवा करनी पड़े, तो बेयरा, नौकरों आदि के द्वारा यह कार्य सम्पन्न करा दिया जाता है। खाना पकाने वाला रसोइया या सेवक खाना पकाकर मेज पर सजा देता है और गृहपति को खाने की मेज पर आतिथ्य का कोरा दिखावा करना पड़ता है। इतना-सा ही कर्तव्य करके अतिथि-सेवा का कर्म पूरा हो जाता है। अब अतिथि सत्कार के प्राचीन संस्कार लुप्त हो गये हैं और बड़प्पन का कोरा दिखावा रह गया है।
प्रश्न 4.
“निराला को महाप्राण कहा जाता है।” पठित संस्मरण के आधार पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
निरालाजी का हृदय उदारता, आत्मीयता, करुणा एवं सहानुभूति से व्याप्त था। इस कारण स्वयं अर्थाभाव से ग्रस्त रहते हुए भी वे जरूरतमन्दों की आर्थिक सहायता करते थे। वे किसी गरीब विद्यार्थी को परीक्षा-शुल्क जमा करा देते थे, तो किसी तांगे वाले की माँ को मनीआर्डर भेजते थे, किसी दिवंगत मित्र की भतीजी के विवाह में आर्थिक मदद देते थे, तो मुंशी नवजादिक लाल की विधवा को मासिक सहायता देने में उदारता दिखाते थे। ‘अपरा’ पर मिली पुरस्कार राशि को वे संकल्पित अर्थ मानते थे।
महादेवी द्वारा सर्दी से बचाव के लिए उन्हें रजाई और कोट बनाकर दिया गया, तो उन्हें वे किसी गरीब का कष्टं दूर करने की करुणा से दे चुके थे। स्वयं के घर में विपन्न दशा रहती थी, परन्तु अतिथि सत्कार में कोई कमी नहीं रखना चाहते थे। निरालाजी को परिवार-सुख नहीं मिला था, जीवन में अनेक दुःख झेलने पड़े थे, परन्तु दृढ़ता से अपने कवि-कर्म में लगे रहे और अपनी कविताओं में विषमता एवं शोषण के प्रति आक्रोश व्यक्त करते रहे, मानवता के कल्याण की कामना करते रहे। इस तरह निरालाजी अपने डीलडौल से, अपनी हार्दिक भावनाओं, अपने आचरण तथा साहित्य-रचना से महाप्राण थे। अतः उनके लिए यह विशेषणे सर्वथा उचित। प्रयुक्त हुआ है।
व्याख्यात्मक प्रश्न –
1. प्रायः एक स्पर्धा का तार ………….. विफल न कर देगा।
2. मेरे मौन में ……….. कितने भिन्न है।
3. उनकी दृष्टि ………. विरोध नहीं होता।
4. घृणा का भाव ………….. sareena सम्भव नहीं।
5. जीवन की दृष्टि ………… न घटा सकता है।
6. असाधारण प्रतिभावान ………….. घेर लेती है।
उत्तर:
सप्रसंग व्याख्या आगे दी जा रही है, वहाँ देखिए।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 9 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
निराला किससे समृद्ध भाई थे?
(क) धन-वैभव से
(ख) साहित्य-सौन्दर्य से
(ग) हृदय की निधियों से
(घ) भव्य शरीर-रचना से
उत्तर:
(ग) हृदय की निधियों से
प्रश्न 2.
महादेवी वर्मा के द्वारा जो अनुमान-पत्र बनाया गया, उससे उन्हें किस बात पर गर्व हुआ था?
(क) अपने अर्थशास्त्र के ज्ञान पर
(ख) अपने गृहस्थ-जीवन पर
(ग) निरालाजी की सुव्यवस्था पर
(घ) निरालाजी की निर्बन्ध उदारता पर।
उत्तर:
(क) अपने अर्थशास्त्र के ज्ञान पर
प्रश्न 3.
निरालाजी कैसे महाकवि थे?
(क) मर्यादावादी
(ख) समाजवादी
(ग) क्रान्तिकारी विद्रोही
(घ) प्रकृतिवादी।
उत्तर:
(ग) क्रान्तिकारी विद्रोही
प्रश्न 4.
एक बार किसी समाचार-पत्र ने क्या असत्य खबर छाप दी थी?
(क) निरालाजी का स्वर्गवास हो गया।
(ख) गुप्तजी का आकस्मिक निधन हो गया।
(ग) पुत्री सरोज दुनिया से चल बसी
(घ) पन्तजी का स्वर्गवास हो गया।
उत्तर:
(घ) पन्तजी का स्वर्गवास हो गया।
प्रश्न 5.
निरालाजी ने एक बार गेरु मंगवाया
(क) अंगराग के लिए
(ख) पित्ती रोग-निवारण के लिए।
(ग) अपने वस्त्र रंगने के लिए
(घ) अपने घर की पुताई के लिए।
उत्तर:
(ग) अपने वस्त्र रंगने के लिए
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा को किसका स्मरण कर हँसी आ जाती थी? .
उत्तर:
निरालाजी के अस्त-व्यस्त जीवन को व्यवस्थित करने के असफल प्रयासों का स्मरण करने पर महादेवी वर्मा को हँसी आ जाती थी।
प्रश्न 2.
”तब से फिर कभी उनको बजट बनाने का दुस्साहस मैंने नहीं किया।” किस घटना के बाद लेखिका ने ऐसा कहा?
उत्तर:
निरालाजी के औढरदानी स्वभाव को बदलने एवं रोक पाने में स्वयं को असमर्थ देखकर लेखिका ने ऐसा कहा।
प्रश्न 3.
गुप्तजी को ट्रेन में बैठाकर निरालाजी क्या समाचार देना नहीं भूले?
उत्तर:
निरालाजी महादेवी वर्मा को यह समाचार देना नहीं भूले कि रात में गुप्तजी उनके घर में सुखपूर्वक सोये।।
प्रश्न 4.
अतिथि सत्कार के सम्बन्ध में निरालाजी के कैसे संस्कार थे?
उत्तर:
अतिथि सत्कार के सम्बन्ध में निरालाजी के वैसे ही पुरातन संस्कार थे, जो इस देश के ग्रामीण किसानों में आज भी दिखाई देते हैं।
प्रश्न 5.
महादेवी वर्मा कौन-सा समाचार निरालाजी से छिपाना चाहती थी?
उत्तर:
महादेवी वर्मा किसी समाचार-पत्र में प्रकाशित पन्तजी के स्वर्गवास होने का असत्य समाचार निरालाजी से छिपाना अर्थात् उन्हें नहीं बताना चाहती थी।
प्रश्न 6.
निरालाजी रात भर पन्तजी की कुशलतां का समाचार जानने के लिए कहाँ रहे?
उत्तर:
निरालाजी रातभर पार्क में खुले आकाश के नीचे ओस से भीगी हुई दूब पर बैठे रहे और सवेरे पन्तजी की कुशलता का समाचार जानने की प्रतीक्षा करते रहे।
प्रश्न 7.
निरालाजी ने किस धन का उपयोग अपने लिए करना अनुचित बताया?
उत्तर:
निरालाजी ने ‘अपरा’ पर प्राप्त पुरस्कार स्वरूप धन को संकल्पित अर्थ बताया और अपने लिए उसका उपयोग करना अनुचित माना।।
प्रश्न 8.
निरालाजी ने पाव भर गेरु मँगवाने को कहा तो महादेवी ने क्या समझा?
उत्तर:
महादेवी ने समझा कि निरालाजी को पित्ती निकल आयी है, क्योंकि उसी रोग में गेरु मिले आटे के पुए खाने से आराम मिलता है तथा गेरु के चूर्ण को शरीर पर मसला जाता है।
प्रश्न 9.
निरालाजी ने गैरिक-परिधान कब पहने थे?
उत्तर:
एकादशी को सुबह स्नान, हवन आदि करके निरालाजी ने वैरागी बनने का निश्चय कर गैरिक-परिधान पहने थे।
प्रश्न 10.
निरालाजी विचारों से तथा आचरण से कैसे थे?
उत्तर:
निरालाजी विचारों से क्रान्तदर्शी एवं विद्रोही थे और आचरण से वे क्रान्तिकारी थे।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा ने निरालाजी को कैसी भाई बताया?
उत्तर:
महादेवी वर्मा ने बताया कि निरालाजी का जीवन निर्धनता एवं कष्टमय रहा। उनके पास सुख-सुविधाओं का अभाव था, परन्तु उदारता एवं मानवीय संवेदनाओं से भरा हृदय था। उनमें भ्रातृत्व-भाव की कोई कमी नहीं थी। इस कारण वे कोई दुराव-छिपाव नहीं रखते थे। वे अनेक उच्च गुणों से सम्पन्न महाप्राण मानव थे। भौतिक दृष्टि से निरालाजी की विपन्नता को लक्ष्यकर लेखिका ने उन्हें नि:स्व भाई बताया।
प्रश्न 2.
उनके व्यवस्थापक के नाते यह दान-खाता मेरे हिस्से आ पड़ा।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निरालाजी ने अपने मासिक खर्च का बजट बनाने की जिम्मेदारी महादेवी वर्मा को दी और कहीं से तीन सौ रुपये लाकर उनके पास जमा किये। परन्तु दूसरे ही दिन निरालाजी ने किसी विद्यार्थी को देने के लिए पचास रुपये और किसी मित्र को देने के लिए साठ रुपये माँग लिये। अगले दिन चालीस रुपये मनीआर्डर के लिए और सौ रुपये दिवंगत मित्र की भतीजी के विवाह के लिए माँग लिये। इस प्रकार तीसरे दिन उनका जमा रुपया समाप्त हो गया। तब महीने भर का शेष खर्चा महादेवीजी के हिस्से में इसलिए आया कि वह उनके व्यवस्थापक की जिम्मेदारी निभा रही थी।
प्रश्न 3.
“इस कटु सत्य पर, आने वाले युग विश्वास कर सकेंगे, यह कहना कठिन है।” इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महादेवी वर्मा ने निरालाजी की निर्धनता के प्रसंग में कहा है कि उन्होंने अपनी कवि-प्रतिभा से उत्कृष्ट साहित्य-रचना की तथा उनकी रचनाओं को प्रकाशित करने से कई प्रकाशकों को लाभ मिला। परन्तु निरालाजी को उसका पूरा प्रतिफल नहीं मिल सका। इस कारण वे भिक्षा माँग कर जीवन-यापन हेतु विवश हो गये। थे। यह कटु सत्य था, परन्तु भविष्य में उनके साहित्य का अध्ययन करने वाले लोग इस सत्य पर विश्वास नहीं कर पायेंगे या कम ही विश्वास करेंगे।
प्रश्न 4.
निरालाजी का हृदय सद्भाव से किस तरह भरा रहता था? बताइए।
उत्तर:
महादेवी वर्मा ने बताया कि निरालाजी भले ही अन्याय का विरोध करने में लेखनी उठाते रहे, परन्तु वे आचरण से क्रूरता और घृणा नहीं रखते थे। वे स्वयं किसी से भयभीत नहीं रहते थे, तो किसी के प्रति क्रूर भी नहीं दिखाई देते थे। वे तो सभी के प्रति सदाशयता एवं सद्भाव रखते थे और यथासम्भव सहायतासहयोग करके दूसरों का कष्ट दूर करना चाहते थे। अर्थाभाव से ग्रस्त रहने पर भी उनका हृदय करुणा एवं संवेदना से भरा रहता था।
प्रश्न 5.
निरालाजी को क्या अभिशाप झेलना पड़ा? बताइये।
उत्तर:
निरालाजी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा थी, परन्तु उन्हें अपने युग का अभिशाप भी झेलना पड़ा। उन्हें परिवार का सुखमय वातावरण नहीं मिला। सर्वप्रथम पत्नी का निधन हुआ, फिर नवविवाहिता पुत्री की मृत्यु हुई और पुत्र की उपेक्षा का पात्र बनना पड़ा। विशिष्ट कोटि की साहित्य-रचना की, परन्तु उसका पूरा प्रतिफल नहीं मिला। निरालाजी को जीवन में पग-पग पर ठोकरें खानी पड़ीं। शोषण-उत्पीड़न का विरोध करने वाले को स्वयं उनका शिकार होना पड़ा। एकाकी एवं निर्धनता का जीवन जीना पड़ा। यह सब उस अद्भुत प्रतिभाशाली के लिए अभिशाप ही था।
प्रश्न 6.
निरालाजी की कौन-सी त्रिवेणी सदा प्रवाहमयी रही है? संस्मरण के आधार पर बताइये।
उत्तर:
महादेवी वर्मा ने संस्मरण में बताया कि निरालाजी का जीवन निर्धनता से ग्रस्त रहा। इस अर्थ-प्रधान युग में वे संघर्ष करते हुए काव्य-साधना करते। उन्होंने जीवन में अनेक आघात सहे, परन्तु उन्होंने कभी हार नहीं मानी ये सब बातें उनकी शक्ति के प्रमाण हैं। इस तरह निरालाजी के कठोर श्रम, गम्भीर दर्शन और सजग कला की त्रिवेणी सदा प्रवाहमयी रही, वह न तो सूखी और न कहीं विलीन हुई। इन्हीं विशेषताओं के कारण वे निराला और महाप्राण भी कहलाये।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘निराला भाई’ संस्मरण में महादेवी वर्मा ने निरालाजी के साहित्य का जो महत्त्व बताया, उस पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
महादेवी वर्मा ने बताया कि निरालाजी असाधारण प्रतिभा वाले कवि थे, वे अपने युग के अनुपम काव्य-साधक थे। उन्होंने जितना भी साहित्य रचा, वह उत्कृष्ट कोटि का है। वस्तुतः निरालाजी के साहित्य का महत्त्व बताने में सभी आलोचक अपने-अपने ढंग से समीक्षा करते हैं। उनके साहित्य का महत्त्व इस कारण है कि मानवीय संवेदना उसमें प्रचुर मात्रा में है। चिन्तनशीलता में निराला एक ओर दार्शनिक लगते हैं, तो दूसरी ओर मानवता के साधक प्रतीत होते हैं।
उन्होंने समाज की विषम दशा को स्वयं भोगा था। इस कारण उनके साहित्य में क्रान्तदर्शी दृष्टि के साथ ही आक्रोश, विद्रोह और क्रान्तिकारी स्वर उभरा है। इसी प्रकार उन्होंने जहाँ क्रान्ति के लिए ओजस्वी आह्वान किया है, ओज गुण वाले भावों को अभिव्यक्ति दी है, वहीं आध्यात्मिकता का चिन्तन भी व्यक्त किया है। वे नारी-सम्मान के पक्षधर रहे हैं, परन्तु अवसाद, नैराश्य और वेदना से मुक्त नहीं रहे हैं। वे सदैव कठोर परिश्रम, संघर्ष एवं सद्भाव आदि से पूरित रहे हैं, तो गम्भीर सामाजिक चेतना के उद्घोषक भी रहे हैं। इस प्रकार निरालाजी का व्यक्तित्व उनके साहित्य में स्पष्ट झलकता है और यही उनके साहित्य का महत्त्व भी है।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –
प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा के साहित्यिक व्यक्तित्व का परिचय दीजिए।
उत्तर:
छायावादी युग में नारी-संवेदना को कवित्वपूर्ण शैली के माध्यम से मूर्त रूप देने वाली महादेवी वर्मा को आदरणीय एवं अग्रणी स्थान है। हिन्दी साहित्य में संस्मरण एवं रेखाचित्र विधा की श्रीवृद्धि करने में इनका अनुपम योगदान रहा है। अपने सम्पर्क में आने वाले शोषित व्यक्तियों, साहित्यकारों, जीव-जन्तुओं आदि का संवेदनात्मक चित्रण कर महादेवी वर्मा ने अतीव मार्मिकता प्रदान की है। ये छायावादी काव्य-चेतना से मण्डित कवयित्री रही हैं। इनकी कविताओं में आन्तरिक वेदना और पीड़ा की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है, जिससे वे इस लोक से परे किसी अव्यक्त सत्ता की ओर अभिमुख दिखाई देती हैं। इनकी प्रतिभा कविता और गद्य इन दोनों में अलग-अलग स्वभाव लेकर सक्रिय रही है। गद्य के क्षेत्र में इनका दृष्टिकोण सामाजिक सरोकार के प्रति संवेदनामय रहा है। अनुभूति की तरलता एवं अव्यक्त रहस्य-भावना के कारण इन्हें आधुनिक युग की मीराँ कहा जाता है।
महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 ई. में फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश) में तथा निधन सन् 1987 में हुआ। ये प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या रहीं। इनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-‘नीहार’, ‘रश्मि ‘, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘दीपशिखा’ तथा ‘यामा’ (काव्य-संग्रह); ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘पथ के साथी’ तथा ‘मेरा परिवार’ (संस्मरण-रेखाचित्र); ‘ श्रृंखला की कड़ियाँ’, ‘आपदा’ इत्यादि (निबन्ध-संग्रह)। ज्ञानपीठ पुरस्कार, भारत-भारती पुरस्कार तथा पद्मभूषण से सम्मानित हुईं।
निराला भाई लेखिका परिचय-
आधुनिक हिन्दी काव्यधारा की प्रमुख कवयित्री, गद्य की विविध विधाओं की लेखिका एवं चित्रकला-निपुण महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में सन् 1907 ई. में हुआ। कविता रचना में ये जितनी।
अन्तर्मुखी रहीं, गद्य-रचना में उतनी ही संवेदनामयी रही हैं। गद्य-लेखिका के रूप में इन्होंने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इन्होंने अपने सम्पर्क में आने वाले शोषित-पीड़ित व्यक्तियों, साहित्यकारों तथा जीव-जन्तुओं आदि के संवेदनात्मक संस्मरण-रेखाचित्र अत्यन्त मार्मिक शैली में लिखे। इन्होंने गद्य-रचनाओं में अपनी अभिव्यक्ति को पूर्ण संवेदना एवं भावुकता के साथ कवित्व-शैली के माध्यम से मूर्त रूप देने का प्रयास किया।
‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘पथ के साथी’, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ और ‘मेरा परिवार’ आदि इनकी प्रसिद्ध गद्य-रचनाएँ और उल्लेखनीय रेखाचित्र-संग्रह हैं। कवयित्री रूप में इनकी ‘सान्ध्यगीत’, ‘दीपशिखा’, ‘यामा’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’ तथा ‘आधुनिक कवि’ आदि काव्य-कृतियाँ प्रसिद्ध हैं। महादेवी वर्मा का जीवनान्त सन् 1987 में हुआ।
पाठ-सार
महादेवी वर्मा द्वारा लिखित ‘निराला भाई’ श्रेष्ठ संस्मरण है। इसका सार इस प्रकार है राखी-बन्ध भाई-पिछली घटना को स्मरण कर लेखिका बताती है कि उन्होंने एक बार निरालाजी की कलाई पर राखी बाँधी और उन्हें अपना भाई बनाया। तब से उन्हें निःस्व निराला-हृदय भाई मिला।
अस्त-व्यस्त जीवन-निराला का जीवन अस्त-व्यस्त रहा। उसे व्यवस्थित करने में लेखिका ने काफी प्रयास किये, परन्तु औढरदानी निराला के उदग्र हृदय के कारण लेखिका इसमें सफल नहीं हो सकीं।
उदारता व आत्मीयता-निराला अपने पास की चीजों का दान उदारता से करते थे। लेखिका द्वारा बनवाई गई रजाई व कोट आदि भी वे किसी को दे चुके थे। एक बार मैथिलीशरण गुप्त उनके अतिथि बने, तो घर पर सभी चीजों का अभाव होने पर भी उन्होंने आत्मीयता में कोई कमी नहीं रखी। एक बार पन्तजी के निधन का असत्य समाचार आया, तो निराला रातभर रोते रहे। ‘अपरा पर जो पुरस्कार राशि मिली, उसे संकल्पित अर्थ मानकर, उदारता से जरूरतमन्दों को बाँट दिया।
संन्यासियों जैसा जीवन-निराला का जीवन संन्यासियों जैसा था। वे सब सुविधाएँ सुलभ न होने पर भी स्वयंपाकी बने थे। एक बार उन्होंने गेरु में कपड़े रंग लिये थे और भिक्षा माँग कर जीवन-यापन करने का निश्चय कर चुके थे। वस्तुतः निराला आत्मतोष एवं त्याग-भावना के कारण पूर्णतया वैरागी थे।
असाधारण व्यक्तित्व-लेखिका बताती है कि निराला अपने शरीर, जीवन एवं साहित्य सभी में असाधारण थे। उनका विशाल डीलडौल देखकर सभी पर आतंक छा जाता था। उनमें दर्प एवं विश्वास का एक साथ समावेश था, तो अन्याय का विरोध करने में क्रान्तदर्शी थे तथा आचरण से पूरे क्रान्तिकारी भी थे।
अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा-वे रूढ़ियों का विद्रोह करने वाले, गलित समाज को लेकर आक्रोश प्रकट करने वाले और काव्य-प्रतिभा के अनुपम महाप्राण स्रष्टा थे। उनकी सृजन- क्षमता अनेक किंवदन्तियों से आबद्ध थी। वेदनामय पारिवारिक जीवन-निराला के जीवन में परिवार का घेरा नहीं था। माता, बहिन, भाई आदि न होने से पत्नी का जो सहारा था, वह भी समाप्त हो गया था। मातृहीन पुत्री का विवाह के बाद निधन हुआ तो पुत्र की उचित शिक्षा की व्यवस्था नहीं कर सके। इस तरह पारिवारिक जीवन वेदनामय रहा। फिर भी वे अपने साहित्य से मानवता का अमृत-पान करते रहे।
साहित्यकार व्यक्तित्व का मूल्यांकन-निराला के जीवन के समान उनके साहित्य का मूल्यांकन कठिन है। उनका जीवन सामाजिक भावना से कर्ममय रहा, विविध भावों से उर्वर रहा। अतः आलोचकों में विशेष दृष्टि अपेक्षित है।
यथार्थ जीवन की व्याख्या-लेखिका बताती हैं कि निराला जैसे असाधारण प्रतिभावान साहित्यकार के जीवन की यथार्थ व्याख्या, उनके इतिवृत्त की यथार्थ प्रतिकृति उपस्थित कर पाना कठिन कार्य है। परन्तु संसार के भावी नवीन-पथ पर निराला का व्यक्तित्व मानवीय संवेदना का सन्देश देता रहेगा।
कठिन शब्दार्थ-
अश्रुमुखी = जिसके चेहरे पर आँसू हो, वह। भुक्खड़ = भूखा। स्वेद = पसीना। भारती = सरस्वती, वाणी। उच्छल-महानदे = उछलती हुई बड़ी नदी। निःस्व = निर्धन। द्विविधा = अनिर्णय की दशा। दीप्ति = चमक। नापित = नाई। अन्तर्ध्यान = तिरोहित, नजरों से ओझल। उपवास = भूखा रहना। पुरातन = अति प्राचीन। निस्तब्ध = शान्त। सौहार्द्र = हार्दिक अपनत्व भाव। सांस्थिक = संस्था से सम्बन्धित। संकल्पित = किसी को देने के लिए नियत। स्वयंपाकी = स्वयं खाना बनाकर खाने वाला। तत्त्वतः = मूल रूप से। दुर्वह = कठिन। द्वाभा = दोनों की आभा। गैरिकपरिधान = गेरु से रंगा वस्त्र। अधोवस्त्र = नीचे का वस्त्र। मधुकरी = भिक्षा।
भग्नावशेष = टूटे-फूटे, खण्डहर जैसे। झंझा = आँधी-तूफान। छिछले = उथले। महार्घता = बहुमूल्य होना। बन्धनशून्य = बन्धन रहित। उत्तरीय = दुपट्टा। क्रान्तदर्शी = दूर तक की उज्ज्वल विचारधारा। दृप्तदृष्टि = सन्तुष्ट दृष्टि। बद्धमूल = स्थिर। कुहेलिका = कोहरा। लौहसार = कठिन जकड़न। आघातों = चोटों। संसृति = संसार। उद्भासित = प्रकट, सुस्पष्ट। प्रतिकृति = नकल, चित्र।