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RBSE Solutions for Class 11 History Chapter 3 यूरोप में पुनर्जागरण एवं रिफोरमेशन आन्दोलन तथा औद्योगिक क्रान्ति

RBSE Solutions for Class 11 History Chapter 3 यूरोप में पुनर्जागरण एवं रिफोरमेशन आन्दोलन तथा औद्योगिक क्रान्ति

Rajasthan Board RBSE Class 11 History Chapter 3 यूरोप में पुनर्जागरण एवं रिफोरमेशन आन्दोलन तथा औद्योगिक क्रान्ति

RBSE Class 11 History Chapter 3 पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 History Chapter 3 अति लघूरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण से क्या आशय है?
उत्तर:
समाज में व्याप्त निराशा एवं उत्साहहीनता के वातावरण को समाप्त कर नवीन चेतना का उदय होना ही पुनर्जागरण कहलाता है।

प्रश्न 2.
कुस्तुन्तुनिया के पतन के दो महत्वपूर्ण परिणाम बताइए।
उत्तर:

  1. कुस्तुन्तुनिया के पतन से यूरोप का पूर्वी देशों के साथ होने वाला व्यापारिक स्थल मार्ग बन्द हो गया।
  2. व्यापारिक गतिविधियाँ रुक जाने के कारण यूनानी विद्वानों, कलाकारों तथा दार्शनिकों को आजीविका चलाने हेतु यूरोप के अन्य देशों में पलायन करना पड़ा।

प्रश्न 3.
मानवतावाद का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
पुनर्जागरण का प्रतिनिधित्व करने वाले फ्रोसंस्को पैट्रार्क को मानवतावाद का जनक कहा जाता है।

प्रश्न 4.
पुनर्जागरण कालीन तीन मूर्तिकारों के नाम बताइए।
उत्तर:
पुनर्जागरण कालीन तीन मूर्तिकार थे –

  1. लोरेंजो गिबेर्ती
  2. दोनातेल्लो
  3. माइकेल एंजलो।

प्रश्न 5.
‘दी मोर्निग स्टार ऑफ रिफोरमेशन’ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
रिफोरमेशन आन्दोलन के प्रमुख सुधारक जॉन वाईक्लिफ को ‘द मार्निग स्टार ऑफ रिफोरमेशन’ कहा जाता है।

प्रश्न 6.
मार्टिन लूथर द्वारा लिखित तीन परिपत्रों के नाम बताइये।
उत्तर:
मर्टिन लूथर द्वारा लिखित तीन परिपत्र निम्नलिखित हैं –

  1. जर्मन सामंत वर्ग को सम्बोधन।
  2. ईश्वर के चर्च की बैबीलोनियाई कैद।
  3. ईसाई व्यक्ति की मुक्ति।

प्रश्न 7.
आक्सबर्ग आन्दोलन की स्वीकृति क्या है?
उत्तर:
आक्सबर्ग आन्दोलन की स्वीकृति का आशय प्रोटेस्टेण्ट वाद को सैद्धान्तिक स्वीकृति मिलने से है।

प्रश्न 8.
रिफोरमेशन आन्दोलन में अक्टूबर 1517 ई. का ऐतिहासिक महत्व बताइये।
उत्तर:
1517 ई. में एक जर्मन भिक्षु मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अभियान चलाया। उनका तर्क था कि मनुष्य को ईश्वर से सम्पर्क स्थापित करने के लिए पादरी की आवश्यकता नहीं है। इस आन्दोलन को प्रोटेस्टेंट सुधारवाद का नाम दिया गया।

प्रश्न 9.
सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति किस देश में हुई?
उत्तर:
सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति ब्रिटेन में हुई।

प्रश्न 10.
कृषि में हुए किन्हीं दो आविष्कारों को लिखिए।
उत्तर:

  1. जेटल की बीज बोने वाली ड्रिल मशीन
  2. एच. मैक कोरनिक की फसल काटने वाली मशीन।

प्रश्न 11.
फर्दिनांद दे लैस्सैप कौन था?
उत्तर:
फर्दिनांद द लस्सैप फ्रांसीसी इंजीनियर थे, जिन्होंने 1869 ई. में स्वेज नहर का निर्माण कराया।

RBSE Class 11 History Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पुनर्जागरण का शाब्दिक अर्थ है-‘फिर से जागना’ परन्तु व्यावहारिक दृष्टि में इस शब्द का प्रयोग मध्य युग में समाज की बौद्धिक चेतना एवं तर्कशक्ति के उदय के लिए किया गया। पुनर्जागरण ने मध्ययुगीन आडम्बरों को समाप्त करने के साथ भौतिकवाद, स्वतंत्रता की भावना, उन्नत आर्थिक व्यवस्था एवं राष्ट्रवाद को स्थापित किया। पुनर्जागरण शब्द का प्रयोग उन समस्त बौद्धिक परिवर्तनों के लिए किया गया है जो मध्यकाल के अंत तथा आधुनिक युग के प्रारम्भ में दृष्टिगोचर हुए।

प्रश्न 2.
पुनर्जागरण के पाँच कारण लिखिए।
उत्तर:
यूरोप में पुनर्जागरण के उदय के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –

  1. मुस्लिम जगत व ईसाई जगत के मध्य होने वाले युद्ध (क्रुसेड) के कारण यूरोपवासियों का पूर्व के लोगों से सम्पर्क हुआ जिससे यूरोप के लोगों को नवीन तथा प्रगतिशील ज्ञान का बोध हुआ, इससे यूरोप में पुनर्जागरण का उदय हुआ।
  2. तुर्को का 1453 ई. में रोम की राजधानी कुस्तुन्तुनिया पर अधिकार हो जाने के कारण यूनानी विद्वान और कलाकार इटली चले गये, जिससे यूनानी साहित्य, कला, दर्शन का प्रचार-प्रसार हुआ और पुनर्जागरण की शुरुआत हुई।
  3. नये देशों जैसे भारत व अमेरिका की खोज ने यूरोप के लोगों को वहाँ की संस्कृति से परिचित कराया। इससे पुनर्जागरण के प्रति जागरूकता उत्पन्न हुई।
  4. कुछ महान वैज्ञानिकों द्वारा ब्रह्माण्ड की खोज, कलाकारों के चित्रों तथा नये वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण भी पुनर्जागरण का उद्भव हुआ।
  5. व्यापारिक गतिविधियों से यूरोप के लोगों का अन्य देशों की संस्कृतियों के साथ मेलजोल बढ़ा जिससे पुनर्जागरण को नई दिशा मिली।

प्रश्न 3.
मानवतावाद क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मानवतावाद एक जीवन दर्शन है जिसमें मनुष्य और उसके लौकिक जीवन को विशेष महत्व दिया जाता है। मानवतावाद में मनुष्य के चिन्तन का केन्द्र बिन्दु मानव था। यह दर्शन इस विश्वास पर आधारित था कि व्यक्ति अपने बारे में खुद निर्णय लेने और अपनी दक्षता को आगे बढ़ाने में समर्थ है। मानवतावादियों ने तत्कालीन समाज की प्रमुख समस्याओं पर कड़ा प्रहार किया था। इन्होंने मध्ययुगीन यूरोपीय व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाई। माइकल एंजलो, मैकियावेली, दांते आदि पुनर्जागरण काल के प्रमुख मानवतावादी चिन्तक थे। फ्रोसंस्को पैट्रार्क को मानवतावाद का पिता कहा जाता है।

प्रश्न 4.
पुनर्जागरण का केन्द्र इटली ही क्यों बना?
उत्तर:
पुनर्जागरण का केन्द्र इटली में होने के निम्न कारण थे –

  1. विदेशी व्यापार का प्रमुख केन्द्र इटली था। वहाँ के समृद्ध मध्यम वर्ग ने धार्मिक नियंत्रण की उपेक्षा की।
  2. इटली के व्यापारी वर्ग को एशिया के लोगों की सभ्यता व संस्कृति ने प्रभावित किया। अतः इटली पुनर्जागरण का केन्द्र बिन्दु बन गया।
  3. नेपल्स, फ्लोरेन्स, मिलान, वेनिस जैसे समृद्ध नगरों के उच्चकोटि के रहन-सहन ने यूरोपवासियों को प्रभावित किया, जिससे एक नयी पुनर्जागरण की प्रवृत्ति का संचार हुआ।
  4. कुस्तुन्तुनिया पर तुर्को का अधिकार हो जाने से यूनानी कलाकार एवं विद्वान इटली में आकर बस गए तथा अपने साथ प्राचीन साहित्य लेकर आए। इस साहित्य के अतुल ज्ञान ने यूरोप के लोगों को जागृत कर दिया।

प्रश्न 5.
रिफोरमेशन के तत्कालीन कारण क्या थे?
उत्तर:
रिफोरमेशन आन्दोलन का तात्कालिक कारण क्षमापत्रों की बिक्री को माना जाता है। धन की लालसा से चर्च . के अधिकारियों ने मोक्ष का व्यापार आरम्भ कर दिया। पोप लियो दशम् ने पाप-मोचन पत्र बनवाये जिन्हें क्षमापत्र भी कहते हैं। इन्हें खरीदकर कोई भी ईसाई अपने पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकता था। 1517 ई. में पादरी टेटजेल जर्मनी के बिटनबर्ग पहुँचा जहाँ मार्टिन लूथर ने इसे क्षमापत्रों की बिक्री करते देखा तथा भारी विरोध किया। पोप ने मार्टिन लूथर को पंथ बहिष्कृत कर दिया। इस घटना के साथ ही रिफोरमेशन आन्दोलन की शुरुआत हो गयी।

प्रश्न 6.
प्रति सुधार आन्दोलन क्या था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यूरोप में एक के बाद एक प्रोटेस्टैंट राज्य बनते जा रहे थे। ऐसी स्थिति में कैथोलिक चर्च को बचाने व प्रोटेस्टेंट आन्दोलन को रोकने के लिए कुछ सुधारात्मक उपाय किये गये। ये सुधारात्मक उपाय रिफोरमेशन आन्दोलन की प्रतिक्रिया स्वरूप शुरू किये गये थे। अत: इसे प्रतिवादी रिफोरमेशन आन्दोलन कहा जाता है। इस सुधार का उद्देश्य चर्च के संगठन और धार्मिक सिद्धान्तों में आये दोषों को दूर करना व चर्च के अन्दर व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकना था।

प्रश्न 7.
काल्विन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
प्रोटेस्टेण्ट मत के समर्थक कॉल्विन का जन्म 1509 ई. में फ्रांस में हुआ था। यह पहला सुधारक था जो अटूट विश्वास के साथ एक ऐसा पवित्र सम्प्रदाय स्थापित करना चाहता था जिसको अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हो। लूथर के विचारों से प्रेरित होकर उसने प्रोटेस्टेन्ट मत को अपनाया। उसने स्विट्जरलैण्ड में ईसाइयत की स्थापनाएँ (इन्स्टीट्यूट्स ऑफ द क्रिश्चियन रिलीजन) नामक पुस्तक की रचना की जो प्रोटेस्टेण्टवाद के इतिहास में सबसे प्रभावशाली ग्रंथ साबित हुआ। कॉल्विन के सिद्धान्तों का आधार ईश्वर की इच्छा की सर्वोच्चता है। कॉल्विन मत को मानने वाले व्यापारी वर्ग के लोग अधिक थे। कॉल्विनवाद का प्रचार स्विट्जरलैण्ड, डच, नीदरलैण्ड और जर्मन पैलेटिनेट में हुआ। 1564 ई. में कॉल्विन की मृत्यु हो गयी।

प्रश्न 8.
धार्मिक न्यायालय पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
धार्मिक न्यायालय की स्थापना रिफोरमेशन आन्दोलन के दौरान की गई। इस न्यायालय के माध्यम से प्रोटेस्टेंटवादियों की प्रगति को रोकने, ढुलमुल कैथोलिकों का पता लगाकर उन्हें दण्डित करने तथा धर्म विरोधियों, विद्रोही धर्म प्रचारकों को कठोरतम दण्ड दिये जाने का प्रावधान किया गया था।

प्रश्न 9.
यूरोप में औद्योगिक क्रांति के पाँच कारक लिखिए।
उत्तर:
यूरोप में औद्योगिक क्रांति के निम्न कारक थे –

  1. इंग्लैण्ड की जनसंख्या में काफी वृद्धि हो गई थी, जिसके कारण वस्तुओं की मांग बहुत अधिक बढ़ गई थी। इसलिए ब्रिटेन के लोगों का ध्यान औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने की ओर गया।
  2. 18वीं शताब्दी में कृषि, व्यवसाय, यातायात आदि क्षेत्रों में अनेक आविष्कार हुए। इन आविष्कारों ने औद्योगिक क्रांति को सफल बनाने में योगदान दिया।
  3. कुशल श्रमिकों की उपलब्धता भी औद्योगिक क्रांति का प्रमुख कारण थी।
  4. बैंकों के विकास ने औद्योगिक क्रांति के उद्देश्य को सफलता प्रदान की।
  5. लन्दन, अफ्रीका, वेस्टइण्डीज के मध्य व्यापार की उन्नति ने औद्योगिक क्रांति को बढ़ावा दिया।

प्रश्न 10.
औद्योगिक क्रांति के समय वस्त्र उद्योग में हुए आविष्कारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के समय वस्त्र उद्योग में निम्नलिखित आविष्कार हुए –

  1. 1733 ई. में जॉन नामक बुनकर ने फ्लाइंग शटल की खोज की, जिससे कपड़े बुनने में तेजी आयी।
  2. 1764 ई. में ब्लैकबर्न निवासी जेम्स हारग्रीब्स ने ‘स्पिनिंग जेन” नामक मशीन का आविष्कार किया।
  3. 1764 ई. में रिचर्ड आर्कराइट ने ‘वाटर फ्रेम’ नामक सूत कातने की मशीन का आविष्कार किया।
  4. 1779 ई. में सेम्युअल क्राम्टन ने ‘म्यूल’ नामक मशीन का आविष्कार किया। इससे कता हुआ धागा बहुत मजबूत और श्रेष्ठ होता था।
  5. 1787 ई. में एडमण्ड कार्टराइट ने शक्ति से चलने वाले ‘पावरलूम’ नामक करघे का आविष्कार किया। इससे किसी भी प्रकार के धागे से बुनाई की जा सकती थी।

प्रश्न 11.
औद्योगिक क्रांति के समय लौह उद्योग में आविष्कारों से क्या परिवर्तन हुआ ?
उत्तर:
18वीं शताब्दी में ब्रिटेन में लौह उद्योग के क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति हुई। इस प्रगति को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के तहत समझ सकते है –

  1. 1709 ई. में अब्राहम डर्बी द्वारा ‘धमन भट्टी’ का आविष्कार किया गया, जिसमें सर्वप्रथम कोक का इस्तेमाल किया गया। इससे लौह अयस्क को पिघलाने और साफ करने का कार्य सरल हो गया।
  2. उक्त प्रक्रिया द्वारा ढलवाँ लोहे से पिटवाँ लोहे का विकास हुआ जो कम भंगुर था।
  3. हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी और बेलन मिल का आविष्कार किया, जिसमें परिशोधित लोहे की छड़ें तैयार करने के लिए भोप की शक्ति का योग किया जाता था।
  4. हेनरी बेस्सेमर ने इस्पात बनाने की एक विधि खोजी जिससे सस्ता इस्पात कम समय में तैयार होने लगा।
  5. 1800 ई. से 1830 ई. के दौरान ब्रिटेन ने अपने लौह उत्पादन को चौगुना बढ़ा लिया।

RBSE Class 11 History Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण के कारण और परिणाम बताइए।
उत्तर:
यूनान और रोम की प्राचीन सभ्यता की समाप्ति के बाद यूरोप में मध्ययुग प्रारम्भ हो चुका था। 13 से 16वीं शताब्दी के मध्य यूरोप में कुछ ऐसी विशिष्ट परिस्थितियाँ पैदा हुई जिन्होंने मनुष्य को चेतनायुक्त बनाया। यही चेतना पुनर्जागरण कहलाता है। यूरोप में पुनर्जागरण के निम्नलिखित कारण थे –

1. क्रुसेड:
मुस्लिम व ईसाई लोगों के मध्य होने वाले धर्म युद्ध के कारण यूरोपवासी पूर्व के लोगों के सम्पर्क में आये। उन्हें नये विचारों तथा नवीन प्रगतिशील ज्ञान का बोध हुआ जिससे लोगों के मस्तिष्क पर चर्च का प्रभाव कमजोर पड़ने लगा। फलस्वरूप पुनर्जागरण का जन्म हुआ।

2. व्यापारिक समृद्धि:
क्रूसेड के बाद यूरोप के पूर्वी देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हुए। नये शहरों का उदय हुआ। ये नगर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र बन गए। यहाँ पर विभिन्न देशों के व्यापारियों एवं यात्रियों का निरन्तर आवागमन होने लगा, जिससे विचारों का आदान-प्रदान हुआ। लोग अच्छाई और बुराई के बारे में वाद-विवाद करने लगे जिससे वैचारिक स्वतंत्रता बढ़ी और ज्ञान में वृद्धि हुई। इस स्थिति ने पुनर्जागरण के विकास को गति प्रदान की।

3. कागज और मुद्रण यंत्र का आविष्कार:
मुद्रण यंत्र के आविष्कार ने बौद्धिक विकास का मार्ग खोल दिया। 1455 ई. में गुटेनबर्ग द्वारा टाइप मशीन के आविष्कार से रोम साहित्य को जन-जन तक पहुँचाना सरल हो गया। इससे लोगों में पुनर्जागरण की भावना उत्पन्न हुई।

4. कुस्तुन्तुनिया पर तुर्कों का अधिकार:
1453 ई. में कुस्तुन्तुनिया पर तुर्को का अधिकार हो जाने से यूनानी विद्वान, कलाकार तथा दार्शनिक जीविकोपार्जन हेतु यूरोप के अन्य देशों में चले गये। ये अपने साथ यूनानी ज्ञान, विज्ञान तथा नयी चिन्तन पद्धति साथ ले गये जिससे यूनान एवं रोम संस्कृतियों में परस्पर समन्वय स्थापित हुआ और पुनर्जागरण का जन्म हुआ।

5. मानवतावाद का विकास:
मानवतावाद के उदय ने लोगों में मनुष्य-जीवन पर धर्म के नियंत्रण के प्रति रोष उत्पन्न किया। मानवतावादियों ने अंधविश्वासों एवं धर्माधिकारियों की जीवन प्रणाली की आलोचना की तथा जनता को सुसंस्कृत बनाने के लिए प्राचीन रोमन और यूनानी साहित्य पर जोर दिया, जिससे लोगों में पुनर्जागरण की भावना का जन्म हुआ।

6. मंगोल साम्राज्य का उदय:
मंगोल साम्राज्य के उदय से एशिया और यूरोप के बीच सम्पर्क स्थापित हुआ। मार्कोपोलो ने अपने यात्रा वृत्तांत में मंगोल साम्राज्य की समृद्धि के बारे में लिखा। इससे यूरोप वासियों में चेतना का प्रसार हुआ।

पुनर्जागरण के परिणाम:
पुनर्जागरण ने साहित्य, कला एवं विज्ञान ही नहीं अपितु मानव जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित किया। ऐसी स्थिति में पुनर्जागरण के निम्नलिखित परिणाम हुए –

  1. पुनर्जागरण ने मनुष्य को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान किया। अब मनुष्य अपने विचारों को व्यक्तिगत रूप से किसी भी प्रकार से अभिव्यक्त कर सकता था।
  2. पुनर्जागरण ने मनुष्य को भौतिकवादी बना दिया। प्रकृति पर विजय, वैज्ञानिक आविष्कार तथा भौगोलिक खोज मनुष्य का लक्ष्य बन गये।
  3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण व तार्किक विवेचन ने मध्यकालीन धर्म ग्रंथों में चली आ रही परम्पराओं और सिद्धान्तों का खण्डन किया तथा धर्म सुधार को गति प्रदान की।
  4. पुनर्जागरण के माध्यम से लोगों में पुरातन ज्ञान के प्रति प्रेम उत्पन्न हुआ।
  5. पुनर्जागरण से धर्म व पोप की सत्ता कमजोर पड़ने लगी फलस्वरूप लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास’ हुआ। राष्ट्रीयता की भावना ने लोगों की अपने राष्ट्र के विकास में रुचि उत्पन्न की।

प्रश्न 2.
रिफोरमेशन आन्दोलन में मार्टिन लूथर की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मार्टिन लूथर का जन्म जर्मनी में 1483 ई. में हुआ था। उनकी रुचि धर्मशास्त्रों के अध्ययन में थी। इन्होंने 1517 ई. में ‘नाइंटी फाइव थिसेज’ की रचना की। 1522 ई. में इन्होंने बाइबिल का जर्मन भाषा में अनुवाद किया। मार्टिन लूथर रोम में पोप के वैभवशाली, पतित, निरंकुश और स्वेच्छाचारी जीवन शैली को देखकर अत्यन्त निराश हुए। उनके हृदय में विद्रोह की भावना उत्पन्न हुई।

इसका एक अन्य कारण ईसाई पादरियों द्वारा क्षमापत्र के माध्यम से लोगों से धन ऐंठने की लालसा भी थी। मार्टिन लूथर ने इसका विरोध किया तथा कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अभियान प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि मनुष्य को ईश्वर से सम्पर्क साधने के लिए पादरी की आवश्यकता नहीं है। इन्होंने अपने विचारों को जनता तक पहुँचाने के लिए तीन पम्पलेट प्रकाशित किए।

1. जर्मन सामंत वर्ग को सम्बोधन:
इस पम्पलेट द्वारा लूथर ने ईसाई अधिकारी वर्ग के विशेषाधिकार समाप्त करने पर जोर दिया।

2. ईश्वर के चर्च की बेबीलोनियाई कैद:
इस पम्पलेट द्वारा उन्होंने पोप और उसकी व्यवस्था पर प्रह्मर किया।

3. ईसाई व्यक्ति की मुक्ति:
इस पम्पलेट में उन्होंने मुक्ति के अपने सिद्धान्तों का उल्लेख किया।

मार्टिन लूथर ने अपने आन्दोलन को प्रोटेस्टेंट सुधारवाद का नाम दिया। उन्होंने जर्मनी, स्विट्जरलैण्ड के शासकों को विदेशी प्रभाव से मुक्त होने की सलाह दी। पोप वे चर्च के अधिकारियों ने लूथर को चर्च विरोधी प्रचार रोकने को कहा परन्तु मार्टिन लूथर ने स्पष्ट किया कि वह ऐसा तभी कर सकते हैं जबकि तर्क द्वारा उसके एक भी विचार को धर्म विरुद्ध सिद्ध कर दिया जाय।

इस प्रकार उन्होंने चर्च द्वारा निर्धारित कर्मों के स्थान पर आस्था को जारी रखा। परिणामस्वरूप लूथर के समर्थकों की संख्या बढ़ने लगी। प्रत्येक शासक को अपनी प्रजा का धर्म चुनने की स्वतंत्रता प्राप्त हुई। 1552 ई. से पूर्व प्रोटेस्टेटों द्वारी चर्च की जो सम्पत्ति छीनी गई थी, उसे मान्यता मिली। इस प्रकार रिफोरमेशन आन्दोलन में मार्टिन लूथर का योगदान अत्यधिक सराहनीय रहा।

प्रश्न 3.
रिफोरमेशन आन्दोलन ने यूरोप को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
सोलहवीं शताब्दी में पुनर्जागरण से प्रभावित यूरोपवासियों ने पोप की निरंकुशता व प्रभुत्व के विरुद्ध और चर्च की कुप्रथाओं, आडम्बरों व पाखण्डों को नष्ट करने के लिए जो आन्दोलन चलाया उसे रिफोरमेशन आन्दोलन कहा गया। इस सुधारवादी आन्दोलन के फलस्वरूप धार्मिक उथल-पुथल हुई तथा ईसाइयत के नये सम्प्रदाय अस्तित्व में आये। रिफोरमेशन आन्दोलन ने यूरोप के लोगों की धार्मिक, शैक्षिक, आर्थिक व नैतिक सभी गतिविधियों को प्रभावित किया। इसके प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं –

1 धर्म पर प्रभाव:
रिफोरमेशन आन्दोलन से सम्पूर्ण यूरोप में कैथोलिक चर्च की प्रभुसत्ता सदैव के लिए समाप्त हो गई। अब यूरोप में प्रोटेस्टेण्टवाद से प्रभावित ईसाई चर्चे की स्थापना होने लगी। संक्षेप में कहा जा सकता है कि ईसाई धर्म दो वर्गों में बंट गया-कैथोलिक एवं प्रोटेस्टेंट।

2. राष्ट्रवाद की भावना का प्रसार:
रिफोरमेशन आन्दोलन की सफलता ने राष्ट्रीय राजा की शक्ति और प्रतिष्ठा का विकास किया। प्रोटेस्टेंटवाद ने राज्यों को अपना धर्म चुनने की स्वतंत्रता प्रदान की तथा रोमन कैथोलिक पोप के आधिपत्य को समाप्त किया। धार्मिक अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार राजाओं को दे दिया गया। राज्यों की शक्ति में वृद्धि के साथ लोगों में राष्ट्रवाद व राष्ट्रप्रेम का उदय हुआ।

3 शिक्षा पर प्रभाव:
धर्मसुधार आन्दोलन से शिक्षा के प्रसार में तेजी आयी। सामाजिक संस्थाओं एवं राज्य द्वारा कई विद्यालय खोल गये। अब प्रगतिशील, तर्क आधारित तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त शिक्षा दी जाने लगी।

4 जनभाषा का विकास:
धर्म सुधार आन्दोलन के कारण प्रादेशिक भाषाओं को भी मान्यता मिली। अनेक धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र जनभाषाओं में लिखे गये धर्म सुधारवादियों ने अनेक साहित्यिक ग्रन्थों की रचना जन भाषाओं में की।

5 अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
धर्म सुधार आन्दोलन के पश्चात् चर्च की भूमि को कृषकों में वितरित किया गया, जिससे राज्य के राजस्व में वृद्धि हुई। चर्च के बंधन से मुक्त होकर व्यापारी पूँजी निवेश द्वारा व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग धन्धों का विकास करने लगे इससे श्रम की महत्ता स्थापित हुई तथा राष्ट्रीय पूँजी में वृद्धि हुई।

6 नैतिकता पर प्रभाव:
धर्म सुधार आन्दोलन ने मनुष्य को सरल, सादा, त्यागमय और नैतिकता से पूर्ण जीवन यापन की शिक्षा दी। प्रोटेस्टेंटवादियों ने ईश्वर प्राप्ति का मार्ग नैतिकता बताया। कॉल्विन के अनुयायियों ने सरल एवं सादा जीवन तथा व्यक्तिगत नैतिक अनुशासन के आदर्श प्रस्तुत किये।

प्रश्न 4.
औद्योगिक क्रांति के कारण विभिन्न क्षेत्रों में हुए परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
18वीं शताब्दी में वाणिज्य और औद्योगिक क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति हुई जो ब्रिटेन से प्रारम्भ होकर सम्पूर्ण यूरोप में फैल गई। विद्वानों ने इसे औद्योगिक क्रांति की संज्ञा दी। औद्योगिक क्रांति ने अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक व्यवस्था के साथ-साथ राजनैतिक व्यवस्था को भी प्रभावित किया। औद्योगिक क्रांति के कारण विभिन्न क्षेत्रों में जो परिवर्तन आये वे निम्नलिखित हैं –

1. कृषि के क्षेत्र में परिवर्तन:
17वीं शताब्दी तक कृषि में प्राचीन पद्धति को प्रयोग में लाया जाता था परन्तु जैसे ही नगरों की आबादी बढ़ी, नये उद्योगों का विस्तार हुआ, किसानों को अधिक अन्न तथा कपास का उत्पादन करना पड़ा। नये-नये आविष्कारों ने कृषि क्रांति को जन्म दिया। सर्वप्रथम यार्कशायर के जर्मीदार जेटल ने बीज बोने की ड्रिल मशीन बनायी जिससे बीज बोने का कार्य सरल हो गया।

‘एनल्स ऑफ एग्रीकल्चर’ पत्रिका के प्रकाशन के माध्यम से आर्थर यंग ने किसानों को कृषि सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी दी। 1793 ई. में अमेरिका निवासी विटन ने अनाज को भूसे से अलग करने की मशीन तथा 1834 ई. में साइरस के एच. मैक कोरनिक ने फसल काटने वाली मशीन का आविष्कार किया जिससे उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि हुई।

2. वस्त्र उद्योग में परिवर्तन:
इंग्लैण्ड ने भारत से कच्चे कपास का आयात शुरू कर दिया। कपास की कटाई और बुनाई इंग्लैण्ड में की जाने लगी। 1733 ई. में जॉन नामक बुनकर ने फ्लाइंग शटल की खोज की जिससे कपड़े बुनने में तेजी आयी। 1764 ई. में जेम्स हारग्रीब्स ने ‘स्पिनिंग जेनी’ का आविष्कार किया। 1764 ई. में रिचर्ड आर्कराइट ने ‘वाटरफ्रेम’ नामक सूत कातने की मशीन बनायी।

3. लौह उद्योग में नये तकनीकी परिवर्तन:
लौह अयस्क को शुद्ध करने के लिए विभिन्न विधियों की खोज की गयी। 1709 ई. में अब्राहम डर्बी द्वारा धमन भट्टी का आविष्कार किया गया जिसमें सर्वप्रथम कोक का प्रयोग किया गया। हेनरी कोर्ट ने आलोडन भट्टी का आविष्कार किया, जिसके द्वारा शुद्ध और अच्छा लोहा बनाना संभव हुआ। हेनरी बेस्सेमर ने जल्दी और सस्ता इस्पात तैयार करने की विधि खोजी। इन सबके परिणामस्वरूप 1800 ई. से 1830 ई. तक इग्लैण्ड ने अपने लौह उत्पादन को चौगुना बढ़ा लिया।

4. भाप की शक्ति के आविष्कार से परिवर्तन:
भाप-शक्ति का उपयोग सर्वप्रथम खनन उद्योगों में किया गया। खानों में पानी भरने की गंभीर समस्या से मुक्ति पाने के लिए 1712 ई. में टामसन न्येकोमेन ने एक वाष्प इंजन का आविष्कार किया। वाष्प इंजन में ऊर्जा की खपत अधिक होती थी। अतः 1769 ई. में जेम्सवॉट ने कम खर्चीला तथा अधिक उपयोगी वाष्प इंजन । बनाया। इससे कारखानों में शक्ति चालित ऊर्जा मिलने लगी।

5. परिवहन के साधनों में परिवर्तन:
ब्रिटेन में भारी वस्तुओं के परिवहन को सस्ता करने के लिए ब्रिटेन ने नहरों का निर्माण कराया। प्रथम नहर वर्सली कैनाल 1761 ई. में जेम्स बिंडली द्वारा बनाई गयी, जिसका उद्देश्य वर्सले (स्थान) के कोयले को शहर तक ले जाना था। 1788 ई. से 1796 ई. तक नहर निर्माण की 46 परियोजनाएँ शुरू की गयीं, जिसे ‘नहरोन्माद’ कहा गया। 1869 ई में फ्रांसीसी इंजीनियर फदिनांद द लैस्सैप ने स्वेज नहर का निर्माण कराया।

1814 ई. में प्रथम रेल इंजन स्टीफेनम का रॉकेट निर्मित हुआ। 1801 ई. में रिचर्ड ट्रेविथिक ने ‘पफिंग डेबिल’ का आविष्कार किया। 1814 ई. में जार्ज स्टीफेन्स ने रेल इंजन बनाया जिसे ब्लचर के नाम से जाना जाता था। यातायात से सम्बन्धित आविष्कारों में 1825 ई. में स्टॉकटन तथा डार्लिंगटन शहरों के मध्य 9 मील लम्बे रेलमार्ग पर रेल चलायी गयी। 1830 ई. में लिवरपूल और मेनचेस्टर को आपस में रेलमार्ग द्वारा जोड़ा गया।

RBSE Class 11 History Chapter 3 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 History Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
1300 से 1550 ई. के मध्य पुनर्जागरण की नवीन विचारधारा का प्रारम्भ कहाँ हुआ?
(क) थाइलैण्ड
(ख) हॉलैण्ड
(ग) जर्मनी
(घ) इटली
उत्तर:
(घ) इटली

प्रश्न 2.
तुर्को ने किस वर्ष कुस्तुन्तुनिया पर अधिकार कर लिया?
(क) 1554 ई.
(ख) 1453 ई.
(ग) 1428 ई.
(घ) 1470 ई.
उत्तर:
(ख) 1453 ई.

प्रश्न 3.
सर्वप्रथम छापेखाने के आविष्कारक कौन थे?
(क) जोहन्नेस गुटनबंर्ग
(ख) कैक्सटन
(ग) पैट्रार्क
(घ) मैकियावली
उत्तर:
(क) जोहन्नेस गुटनबंर्ग

प्रश्न 4.
मानवतावाद का पिता किसे माना जाता है?
(क) टामसमूर को
(ख) माइकल एंजलो को
(ग) पैट्रार्क को
(घ) मार्टिन लूथर को
उत्तर:
(ग) पैट्रार्क को

प्रश्न 5.
‘डि मोनार्किया’ एवं ‘डिवाइन कॉमेडी’ के लेखक निम्न में से कौन हैं?
(क) शेक्सपीयर
(ख) मान्टेन
(ग) जाफरे चौसर
(घ) दांते
उत्तर:
(घ) दांते

प्रश्न 6.
आधुनिक चाणक्य की संज्ञा निम्न में से किसे दी जाती है?
(क) मैकियावली
(ख) टामसमूर
(ग) रेबलेस
(घ) पैट्रार्क
उत्तर:
(क) मैकियावली

प्रश्न 7.
मार्टिन लूथर का पोप के विरुद्ध होने व कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अभियान चलाने का तात्कालिक कारण क्या था?
(क) धार्मिक कुरीतियाँ
(ख) क्षमापत्रों का विक्रय
(ग) पादरी वर्ग का राजनीति में हस्तक्षेप
(घ) पादरियों का विलासितापूर्ण जीवन
उत्तर:
(ख) क्षमापत्रों का विक्रय

प्रश्न 8.
ब्रिटेन में औद्योगिक विकास का काल था –
(क) 1300 से 1550 ई.
(ख) 1760 ई से 1820 ई.
(ग) 1700 से 1740 ई.
(घ) 1550 से 1580 ई.
उत्तर:
(ख) 1760 ई से 1820 ई.

प्रश्न 9.
इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति होने का प्रमुख कारण था –
(क) जनसंख्या वृद्धि
(ख) अनुकूल भौगोलिक स्थिति
(ग) विस्तृत औपनिवेशिक साम्राज्य
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 10.
स्वेज नहर के निर्माता कौन थे?
(क) जार्ज स्टीफेन्स
(ख) फदिनांद द लैस्सैप
(ग) जेम्स ब्रिडली
(घ) टामसन न्यूकोमेन
उत्तर:
(ख) फदिनांद द लैस्सैप

सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1.
मिलान कीजिए –

RBSE Solutions for Class 11 History Chapter 3 यूरोप में पुनर्जागरण एवं रिफोरमेशन आन्दोलन तथा औद्योगिक क्रान्ति image 1
उत्तर:
1. (घ), 2.(ङ), 3.(च), 4. (अ), 5. (झ), 6. (ज), 7. (ग), 8. (ख), 9. (क), 10. (छ)

प्रश्न 2.
मिलान करो –
RBSE Solutions for Class 11 History Chapter 3 यूरोप में पुनर्जागरण एवं रिफोरमेशन आन्दोलन तथा औद्योगिक क्रान्ति image 2
उत्तर:
1. (ज), 2. (छ), 3. (च), 4. (क), 5. (ख), 6. (ग), 7. (घ), 8. (ङ)।

RBSE Class 11 History Chapter 3 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग कब, किसने और किसके लिए किया?
उत्तर:
पुनर्जागरण शब्द फ्रेंच भाषा के ‘रेनेसाँ’ शब्द का हिन्दी रूपान्तर है इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग इटली के वैसारी। नामक व्यक्ति ने 16वीं शताब्दी में स्थापत्य एवं मूर्तिकला में आये परिवर्तनों के लिए किया था।

प्रश्न 2.
इटली में किन समृद्ध नगरों की स्थापना हुई?
उत्तर:
इटली के व्यापारिक गतिविधियों का केन्द्र बन जाने से नेपल्स, फ्लोरेन्स, मिलान, वेनिस जैसे समृद्ध नगरों की स्थापना हुई।

प्रश्न 3.
पुनर्जागरण का अग्रदूत किन्हें माना जाता है?
उत्तर:
इटली के महान कवि दांते (1265-1321 ई.) को पुनर्जागरण का अग्रदूत माना जाता है।

प्रश्न 4.
दांते की विश्व विख्यात रचना कौन-सी है?
उत्तर:
दांते की विश्व विख्यात रचना ‘डिवाइन कॉमेडी है।

प्रश्न 5.
क्रुसेड किसे कहा जाता है?
उत्तर:
11वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के मध्य मुस्लिम जगत व ईसाई जगत के मध्य होने वाले युद्ध को क्रुसेड कहा जाता है।

प्रश्न 6.
ब्रिटेन में छापेखाने की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर:
ब्रिटेन में छापेखाने की स्थापना कैक्सटन ने 1477 ई. में की।

प्रश्न 7.
बोकेसियो कौन था? उसकी कृतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
बोकेसियो मानवतावाद के जनक पैट्रार्क का शिष्य था। उसने एक सौ कहानियों का संग्रह ‘‘डेकोमेरोन” नामक पुस्तक की रचना की। उसकी दूसरी रचना “जीनियोलॉजी ऑफ गौड्स” है।

प्रश्न 8.
अँग्रेजी काव्य का पिता किसे कहा जाता है?
उत्तर:
अँग्रेजी काव्य का पिता पुनर्जागरण कालीन कवि जाफरे चौसर (1340-1400 ई.) को कहा जाता है।

प्रश्न 9.
राज्य के धर्म निरपेक्षीकरण की बात किस ग्रंथ में की गई है?
उत्तर:
राज्य के धर्म निरपेक्षीकरण की बात मैकियावली की पुस्तक ‘द प्रिंस’ में कही गयी है।

प्रश्न 10.
अपनी पुस्तक ‘यूटोपिया’ के माध्यम से किसने आदर्श समाज का चित्र प्रस्तुत किया?
उत्तर:
सर टामस मूर जो इंग्लैण्ड के निवासी थे, ने अपनी पुस्तक यूटोपिया के माध्यम से एक आदर्शवादी समाज का चित्र प्रस्तुत किया।

प्रश्न 11.
सामंती एवं मध्यमवर्गीय समाज के मध्य हुए द्वन्द्व को किस नाटककार ने अपने नाटक में प्रस्तुत किया है?
उत्तर:
ब्रिटेन के विलियम शेक्सपीयर (1564-1616 ई.) ने सामंती एवं मध्यमवर्गीय समाज के मध्य हुए द्वन्द्व को अपने नाटकों में प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 12.
पुनर्जागरण की भावना की पूर्ण अभिव्यक्ति इटली के कौन-कौन से तीन कलाकारों की कृतियों में मिलती है?
उत्तर:
पुनर्जागरण की भावना की पूर्ण अभिव्यक्ति इटली के लियोनार्डो द विंची, माइकल एंजलो और राफेल की कृतियों में मिलती है।

प्रश्न 13.
स्थापत्य कला में प्राचीन यूनान और रोम शैली के समन्वय के दो उदाहरण बताइए।
उत्तर:
यूनान और रोमन शैली के समन्वय के दो उदाहारण फ्लॉरेंस का कैथेड्रल और संत पीटर का गिरजाघर है।

प्रश्न 14.
‘द लास्ट सपर’ और ‘मोनालिसा’ नामक प्रसिद्ध चित्रों की रचना किसने की?
उत्तर:
‘द लास्ट सपर’ और ‘मोनालिसा’ नामक प्रसिद्ध चित्रों की रचना लियोनार्डो द विंची ने की।

प्रश्न 15.
गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया?
उत्तर:
इंग्लैण्ड के वैज्ञानिक और गणितज्ञ आइज़क न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।

प्रश्न 16.
वायुमापक यंत्र और दूरबीन के आविष्कारक कौन हैं?
उत्तर:
वायुमापन यंत्र और दूरबीन का आविष्कार इटली के गैलीलियो ने किया। प्रश्न 17. धर्म सुधार आन्दोलन की शुरुआत कब हुई? उत्तर-धर्म सुधार आन्दोलन की शुरुआत 16वीं शताब्दी में हुई।

प्रश्न 18.
धर्म सुधार आन्दोलन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पोप की निरंकुशता व प्रभुत्व के विरुद्ध और चर्च की कुरीतियों, आडम्बरों, पाखण्डों तथा शोषण को नष्ट करने । के लिए जो आन्दोलन आरम्भ किया गया, उसे धर्म सुधार आन्दोलन कहा जाता है।

प्रश्न 19.
धर्म सुधार आन्दोलन के दौरान किसी भी राजा को धर्म व पद से हटाने के लिए पोप व उसके अधिकारियों ने किस विशेषाधिकार का प्रयोग किया?
उत्तर:
धर्म सुधार आन्दोलन के दौरान किसी भी राजा को धर्म व पद से हटाने के लिए पोप व उसके अधिकारियों ने ‘एक्स कम्यूनिकेश’ नामक विशेषाधिकार का प्रयोग किया।

प्रश्न 20.
इन्टरडिक्ट क्या था?
उत्तर:
इन्टरडिक्ट एक विशेषाधिकार था जिसका प्रयोग करके किसी भी राज्य के चर्च को बन्द किया जा सकता था।

प्रश्न 21.
‘द मॉर्निग स्टार ऑफ रिफोरमेशन’ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जॉन वाईक्लिफ को ‘द मॉर्निग स्टार ऑफ रिफोरमेशन’ कहा जाता है।

प्रश्न 22.
मार्टिन लूथर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
मार्टिन लूथर का जन्म जर्मनी के एक साधारण किसान परिवार में 1483 ई. में हुआ।

प्रश्न 23.
इग्नेशियस लोयोला कौन था?
उत्तर:
इग्नेशियस लोयोला स्पेन का एक बहादुर सैनिक था, जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन कैथोलिक चर्च के लिए समर्पित कर दिया। इसने 1534 ई. में सोसाइटी ऑफ जेसस की स्थापना की।

प्रश्न 24.
औद्योगिक क्रांति की शुरुआत सर्वप्रथम किस देश से हुई?
उत्तर:
औद्योगिक क्रांति की शुरुआत सर्वप्रथम इंग्लैण्ड से हुई।

प्रश्न 25.
औद्योगिक क्रांति का प्रारम्भ किस उद्योग से हुआ?
उत्तर:
औद्योगिक क्रांति का प्रारम्भ सूती वस्त्र उद्योग से हुआ।

प्रश्न 26.
रेल द्वारा खानों से बंदरगाहों तक कोयला ले जाने के लिए भाप इंजन का आविष्कार किसने किया?
उत्तर:
रेल के द्वारा खानों से बंदरगाहों तक कोयला ले जाने के लिए भाप इंजन का आविष्कार जार्ज स्टीफेन्स ने किया।

प्रश्न 27.
इंग्लैण्ड में प्रथम रेलवे लाइन कब व किन शहरों के मध्य बनायी गयी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में प्रथम रेलवे लाइन 1825 ई. में स्टॉकटन व डार्लिंगटन शहरों के मध्य बनायी गयी।

प्रश्न 28.
इंग्लैण्ड की प्रथम नहर का नाम बताइए। इसका निर्माण कब और किसके द्वारा हुआ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड की पहली नहर वर्सली कैनाल थी। इसका निर्माण 1761 ई. में जेम्स ब्रिडली द्वारा करवाया गया था।

प्रश्न 29.
औद्योगिक क्रांति शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किन विद्वानों द्वारा किया गया?
उत्तर:
सर्वप्रथम फ्रांस के जार्जिस मिशले एवं जर्मनी के फ्राइडिक एंजेल्स द्वारा औद्योगिक क्रांति शब्द का प्रयोग किया गया।

प्रश्न 30.
1709 ई. में धमन भट्टी का आविष्कार किसने किया?
उत्तर:
अब्राहम डर्बी ने 1709 ई. में धमन भट्टी का आविष्कार किया।

RBSE Class 11 History Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
पुनर्जागरण की परिभाषा:
हेनरी लुक्स:
हेनरी लुक्स के अनुसार, “पुनर्जागरण से तात्पर्य 13वीं शताब्दी के बाद इटली में विकसित हुए उन सांस्कृतिक परिवर्तनों से है जो 1600 ई. तक यूरोप के अन्य भागों में फैले थे।”

सेबाइन:
सेबाइन के शब्दों में, “पुनर्जागरण एक सामूहिक अभिव्यक्ति है जिसका प्रयोग मध्यकाल के अंत और आधुनिक युग के आरम्भ के समय दृष्टिगोचर सभी बौद्धिक परिवर्तनों के लिए किया गया।”

उपर्युक्त परिभाषा:
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट होता है कि मध्यकाल से आधुनिक युग तक जिज्ञासा और शिक्षा द्वारा ज्ञान-विज्ञान, कृषि, उद्योग, कला, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में परिवर्तन स्वरूप जो प्रगति हुई उसे पुनर्जागरण कहा जा सकता है।

प्रश्न 2.
इटली के मध्यम वर्ग की पुनर्जागरण में क्या भूमिका रही?
उत्तर:
इटली यूरोप व एशिया के मध्य होने वाले व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। इस विदेशी व्यापार से इटली में एक समृद्ध मध्यम वर्ग का उदय हुआ। मध्यम वर्ग के शक्तिशाली हो जाने से इस वर्ग के लोगों ने सामंतों व पोप की परवाह नहीं की और मध्यकालीन धार्मिक रुढ़िवादिता को नकार दिया। मध्यम वर्ग पूर्वी देशों की सभ्यता, संस्कृति तथा रहन-सहन से प्रभावित था। अत: इस वर्ग में पुनर्जागरण की नवीन प्रवृत्ति का संचार हुआ।

प्रश्न 3.
पुनर्जागरण की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पुनर्जागरण ने एक नवीन विचारधारा को जन्म दिया तथा मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ थीं –

  1. पुनर्जागरण ने मनुष्य को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अवसर दिया जिससे तर्क एवं चिन्तन की विचारधारा को बढ़ावा मिला।
  2. मानवतावाद के चिन्तकों ने मानव जीवन के महत्व को स्वीकार किया एवं मनुष्य के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु मानव बन गया।
  3. लोगों में पुनर्जागरण का प्रसार करने हेतु प्रादेशिक भाषाओं में साहित्य की रचना हुई, जिससे प्रादेशिक भाषाओं का विकास हुआ।
  4. पुनर्जागरण ने नवीन भौगोलिक खोजों को जन्म दिया। नये समुद्री मार्ग से नये देशों की खोज हुई।
  5. मानव उपयोगी वैज्ञानिक अन्वेषण हुए, विचारों की पुष्टि के लिए नवीन प्रयोग पर बल दिया गया।
  6. सहज सौन्दर्य की उपासना पुनर्जागरण की विशेषता रही।

प्रश्न 4.
कुस्तुन्तुनिया पर तुर्कों का अधिकार हो जाने से पुनर्जागरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1453 ई. में कुस्तुन्तुनिया पर तुर्कों का अधिकार हो जाने से यूरोप व पूर्वी देशों के साथ होने वाले व्यापार का स्थल मार्ग बन्द हो गया। कुस्तुन्तुनिया यूनानी सभ्यता, संस्कृति, दर्शन, एवं कला का महान केन्द्र रहा था। तुर्को की विजय के बाद यूनानी विद्वान व कलाकार जीविकोपार्जन हेतु यूरोप के अन्य देशों में चले गये। वे अपने साथ प्राचीन-रोम एवं यूनान का ज्ञान-विज्ञान तथा नई चिन्तन पद्धति भी ले गये, जिससे अन्य देशों के लोग इस ज्ञान-विज्ञान से परिचित हुए व उनमें पुनर्जागरण की भावना का उदय हुआ।

प्रश्न 5.
पुनर्जागरण में मुद्रण यन्त्र के आविष्कार की क्या भूमिका रही?
उत्तर:
अरबवासियों से प्रेरणा लेकर यूरोपवासियों ने कागज निर्माण करने की कला सीखी। 1455 ई. में गुटेनबर्ग द्वारा टाइपिंग मशीन के आविष्कार तथा 1477 ई. में कैक्सटन द्वारा ब्रिटेन में छापाखाने की स्थापना से प्राचीन यूनानी-रोम साहित्य व नवीन विचारों को यूरोप के जनसामान्य तक पहुँचाना सरल हो गया। ज्ञान पर वर्ग विशेष का एकाधिकार समाप्त हो गया। लोगों में ज्ञान व आत्मविश्वास के बढ़ने से अंधविश्वास व रुढ़ियाँ कमजोर पड़ने लगीं। इस प्रकार मुद्रण यन्त्र के आविष्कार ने व्यक्ति की बौद्धिक चेतना के विकास का मार्ग प्रशस्त किया जो पुनर्जागरण के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण बात थी।

प्रश्न 6.
मानवतावादी चिन्तकों की पुनर्जागरण के प्रति क्या अवधारणा थी?
उत्तर:
मानवतावादी जीवन दर्शन में मनुष्य और उसके लौकिक जीवन को विशेष महत्व दिया जाता है। मानवतावादी चिंतन इस विश्वास पर आधारित है कि व्यक्ति स्वयं के लिए निर्णय लेने व अपनी दक्षता को आगे बढ़ाने में समर्थ है। पैट्रार्क, माइकल एंजलो, मैकियावली एवं दांते आदि पुनर्जागरण काल के प्रमुख मानवतावादी थे।

इन मानवतावादियों ने तत्कालीन समाज में फैले पाखण्डों एवं अंधविश्वासों का खण्डन कर मध्ययुगीन यूरोपीय व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाई और धार्मिक विषयों के स्थान पर विज्ञान सौन्दर्यशास्त्र, इतिहास, एवं भूगोल जैसे विषयों के अध्ययन पर जोर दिया। ये लोग मानव स्वतंत्रता और राष्ट्रवाद के पक्षधर थे। मानवतावाद ने यूरोप में पुनर्जागरण को एक नई दिशा प्रदान की, जिसका केन्द्र बिन्दु मनुष्य था।

प्रश्न 7.
लियोनार्डो द विंची कौन था? वह क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:
लियोनार्डो द विंची इटली का एक महान चित्रकार था। वह चित्रकार होने के साथ-साथ एक मूर्तिकार, वैज्ञानिक, गणितज्ञ, इंजीनियर, संगीतकार एवं दार्शनिक भी था। संक्षेप में कहा जा सकता है कि वह बहुमुखी प्रतिभा का धनी था। उसके बनाये चित्रों में ‘लास्ट सपर’ और ‘मोनालिसा’ प्रसिद्ध हैं। ‘लास्ट सपर’ में ईसा मसीह और उनके अनुयायी व्यक्ति ही नहीं बल्कि विभिन्न जीवन मूल्यों के प्रतिनिधि लगते हैं। ‘मोनालिसा’ साधारण सी दिखने वाली स्त्री का चित्र है जिसकी रहस्यमयी मुस्कान आज भी दर्शकों के लिए रहस्य है। ‘वर्जिन ऑफ राक्स’ में लियोनार्डो ने वर्जिन मेरी और शिशु ईसा की सुन्दरता का चित्रण किया है।

प्रश्न 8.
पुनर्जागरण काल में विज्ञान के क्षेत्र में क्या प्रगति हुई?
उत्तर:
पुनर्जागरण द्वारा मनुष्य को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अवसर मिला जिससे मानव के मन में एक नये दृष्टिकोण ने प्रकृति के रहस्य को जानने की जिज्ञासा को जन्म दिया। 16 वीं शताब्दी में विज्ञान के क्षेत्र में कई सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये। ये निम्नलिखित हैं –

  1. पौलेण्ड के वैज्ञानिक कोपरनिकस ने सूर्य केन्द्रित सौरमंडलीय सिद्धान्त बनाया जिससे यह सिद्ध हुआ कि समस्त ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं।
  2. जर्मन खगोलशास्त्री जॉन कैपलर ने कोपरनिकस के सिद्धान्तों की गणितीय आधार पर प्रमाणों द्वारा पुष्टि की।
  3. इंग्लैण्ड के वैज्ञानिक और गणितज्ञ आइजक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
  4. फ्रांसीसी गणितज्ञ एवं दार्शनिक देकार्ते ने बीजगणित का ज्यामिती में प्रयोग करना सिखाया।
  5. इटलीवासी गैलीलियो ने पेण्डुलम के सिद्धान्त, वायुमापन यंत्र व दूरबीन का आविष्कार किया।

उक्त खोजों ने सिद्ध कर दिया कि ज्ञान विश्वास पर नहीं अपितु अवलोकन एवं प्रयोगों पर आधारित है। वैज्ञानिकों की खोजों से विभिन्न क्षेत्रों में कई अन्वेषण हुए जिससे यह बात सामने आयी कि संसार सुव्यवस्थित नियमों से चलता है न कि देव योग से।

प्रश्न 9.
16 वीं शताब्दी में यूरोप में धर्म सुधार की आवश्यकता क्यों पड़ी?
उत्तर:
16 वीं शताब्दी से पूर्व यूरोप में धार्मिक क्षेत्र में अनेक बुराइयाँ, जैसे – पाखण्ड, आडम्बर, अंधविश्वास आदि विद्यमान थी। पोप की सत्ता ही सर्वोच्च थी। धर्माधिकारियों को असीमित अधिकार प्राप्त थे तथा वे इन अधिकारों का दुरुपयोग करने लगे थे। मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक चर्च के प्रभाव में रहता था, परन्तु जैसे-जैसे मनुष्य में बौद्धिक चेतना का प्रसार हुआ वैसे-वैसे एक नई चिन्तन धारा ने पुराने आडम्बरों तथा धर्मविश्वासों को हिलाकर रख दिया।

छापेखाने के आविष्कार ने स्थानीय भाषाओं के विकास और लेखन को गति दी। नये साहित्य के सृजन से लोगों को अपने जीवन को जानने एवं समझने का नया दृष्टिकोण मिला। मध्यम वर्ग तथा वाणिज्य, व्यापार के उदय तथा राष्ट्रीय राज्य के उत्कर्ष और तर्क पर आधारित ज्ञान विस्तार ने धर्म और चर्च में सुधारवादी परिवर्तन आवश्यक कर दिये। फलस्वरूप धर्म सुधार आन्दोलन का जन्म हुआ।

प्रश्न 10.
पोप व चर्च के धर्माधिकारियों से मध्यम वर्ग क्यों नाराज था?
उत्तर:
मध्यम वर्ग पूँजी निवेश द्वारा अपनी शर्तों पर उत्पादन करना चाहता था। यह वर्ग स्वयं द्वारा अर्जित धन से ऐश्वर्य का जीवन बिताना चाहता था जबकि मनुष्य का जीवन चर्च और सामंतो द्वारा नियंत्रित था। अत: चर्च के प्रतिबन्ध से मुक्ति प्राप्त करने के लिए इसे वर्ग ने रोजगार के नये साधन प्रदान कर दयनीय कृषकों व श्रमिकों को अपनी ओर आकृष्ट किया। इस वर्ग ने चर्च में एकत्रित अतुल सम्पत्ति का विरोध किया तथा चर्च की विचारधारा के विरुद्ध समुद्री यात्रा और ब्याज की लेन-देन भी शुरू कर दिया। मध्यम वर्ग को राज्यों को कर देने पर राजकीय संरक्षण भी प्राप्त हुआ, जिससे उन्होंने संगठित होकर धार्मिक रूढ़िवादिता के विरुद्ध आवाज उठायी।

प्रश्न 11.
चर्च के पोप के पास कौन-कौन से विशेषाधिकार थे? इनका प्रयोग कैसे किया जाता था?
उत्तर:
चर्च के पदाधिकारी, पादरी एवं पोप प्रतिबन्ध मुक्त, भ्रष्ट और विलासितापूर्ण जीवन जी रहे थे। पोप के पास पादरियों को चुनने की स्वतंत्रता थी। अत: चर्च के पदों की बिक्री होने लगी जिसमें पादरियों के संबंधियों को लाभ मिलता था। धर्माधिकारियों पर किसी भी राजा का कानून लागू नहीं होता था। पोप स्वयं को सम्पूर्ण ईसाई जगत का सम्राट मानता था। इसके प्रतिनिधि ‘लिमेंट’ एवं ‘नन सिमस’ राज्यों पर नियंत्रण रखते थे। ‘एक्स कम्यूनिकेश’ नामक विशेषाधिकार से किसी भी राजा को धर्म व पद से हटाया जा सकता था। इन्टरडिक्ट नामक विशेषाधिकार से किसी राज्य के चर्च को बन्द किया जा सकता था। ये दोनों विशेषाधिकार पोप के पास थे जिससे राजा और प्रजा. दोनों चर्च से भयभीत रहते थे।

प्रश्न 12.
बुद्धिजीवी वर्ग की चर्च के प्रति क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर:
भक्तिवादी, मानवतावादी और सुधारवादी चिन्तकों की मान्यता थी कि पोप एवं पादरी जो स्वयं पतित और पापी । है, पापों से मुक्ति कैसे दिला सकते हैं भक्तिवादी विचारकों ने ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा एवं भक्ति भाव को मुक्ति का मार्ग । बताया। दांते, लोरेन्जो, बोकेसियों आदि मानवतावादी चिन्तक जीवन के सुख को चर्च से अधिक महत्व देते थे। सुधारवादी चर्च में व्याप्त दुर्व्यवस्था और पादरियों के जीवन चरित्र में सुधार लाना चाहते थे। इनमें मार्टिन लूथर, जॉन वाईक्लिफ, जान हंस जैसे सुधारक प्रमुख थे। इन्होंने बाइबिल की सात्विक व्याख्या प्रस्तुत कर इसे सच्चा धर्म घोषित किया तथा चर्च व पादरियों की कटु आलोचना की।

प्रश्न 13.
धर्म सुधार आन्दोलन में आर्थिक कारण किस प्रकार उत्तरदायी रहे?
उत्तर:
चर्च के पास बहुत अधिक सम्पत्ति थी जिसका उपयोग चर्च के पदाधिकारी अपने विलासितापूर्ण जीवन के लिए करते थे। राजाओं को सेना एवं प्रशासन के प्रबंध के लिए धन की आवश्यकता पड़ती थी परन्तु पादरियों द्वारा वसूल किया गया कर रोम चला जाता था। चर्च व उसके पदाधिकारी कर से मुक्त थे। राज्यों के शासक चर्च पर कर लगाना चाहते थे परन्तु चर्च के पादरी इसका विरोध करते थे। चर्च जनता से अनेक प्रकार के कर वसूलता था साथ ही चर्च का राज्यों को कोई सहयोग नहीं था। इस कारण जनता, शासक, सुधारवादी सभी चर्च के नियमों व आदेशों के विरुद्ध हो गये एवं धर्म सुधार की माँग करने लगे।

प्रश्न 14.
इरेस्मस के विचारों ने धर्म सुधार आन्दोलन को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
मानवतावादी लेखक इरेस्मस हॉलैण्ड का निवासी था। वह उच्चकोटि का विद्वान एवं विचारक था। इरेस्मस ने अपने लेखों में पादरियों की अज्ञानता एवं उनके आडम्बरों की व्यंग्यपूर्ण शैली में आलोचना की। 1511 ई. में उसने ‘इन प्रेज ऑफ फॉली’ नामक पुस्तक की रचना की जिसमें पादरियों की जीवन शैली पर व्यंग्य किया गया था। 1516 ई. में उसने ईसाइयत के सिद्धान्तों की सात्विक व्याख्या करने वाले ‘न्यू टेस्टामेन्ट’ का नवीन संस्करण प्रकाशित कराया। इरेस्मस की लेखन शैली प्रभावपूर्ण होने के कारण प्रसिद्ध हो गयी। उसके लेखों ने अन्य विसंगतियो की अपेक्षा पोप के वर्चस्व को अधिक आघात दिया।

प्रश्न 15.
मार्टिन लूथर कौन था? उसने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध कौन-सा अभियान चलाया?
उत्तर:
मार्टिन लूथर जर्मन युवा भिक्षु थे। इन्हें धर्म सुधार का प्रवर्तक भी कहा जाता है। इनका जन्म 1483 ई. में हुआ था। इन्होंने 1517 ई. में ‘नाइंटी फाइव थिसेज’ नामक ग्रन्थ की रचना की। 1522 ई. में इन्होंने बाइबिल का जर्मन भाषा में अनुवाद किया। | 1517 ई. में पादरियों ने धन की लालसा में बिटनबर्ग में क्षमापत्र नामक दस्तावेज की बिक्री आरंभ कर दी। मार्टिन लूथर ने इस दस्तावेज के माध्यम से लोगों से धन ऐंठने की आलोचना की और कैथोलिक चर्च के विरुद्ध आन्दोलन प्रारंभ कर दिया। उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि मनुष्य को ईश्वर से संपर्क साधने के लिए पादरियों की आवश्यकता नहीं है। उनके इस आन्दोलन को प्रोटेस्टेंट सुधार आन्दोलन कहा जाता है।

प्रश्न 16.
आँग्सबर्ग की संधि किनके मध्य हुई? इसके प्रमुख प्रावधान क्या थे?
उत्तर:
1546 ई. से 1555 ई. तक जर्मनी में गृहयुद्ध चला। इस गृहयुद्ध का अंत सम्राट फर्डिनेण्ड और प्रोटेस्टेंटों के मध्य हुई आँग्सबर्ग की संधि से हुआ। इस संधि के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे –

  1. प्रत्येक राज्य अपना धर्म चुनने के लिए स्वतन्त्र हो गया।
  2. 1552 ई. से पहले प्रोटेस्टेंटों ने चर्च की जो सम्पत्ति छीनी थी उसको मान्यता दे दी गई।
  3. लूथरवाद को मान्यता दी गई।
  4. कैथोलिक बाहुल्य क्षेत्रों में लूथरवादियों को धर्म परिवर्तित करने के लिए बाध्य न करने पर सहमति बनी।
  5. कैथोलिक पादरियों को प्रोटेस्टेंट विचारधारा स्वीकार करने पर अपना पद त्यागना होगा।

प्रश्न 17.
‘पूर्व का नियत’ सिद्धान्त क्या है? इसका प्रतिपादन किसने किया?
उत्तर:
पूर्व का नियत’ सिद्धान्त काल्विनवाद की देन है। इस सिद्धान्त के प्रतिपादक प्रोटेस्टेण्ट मत के समर्थक काल्विन हैं। काल्विन अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता एवं ख्याति प्राप्त पवित्र सम्प्रदाय स्थापित करना चाहते थे। उनका मानना था कि ईश्वर की इच्छा ही सर्वोच्च है। ईश्वर की इच्छा से सब कुछ होता है। मनुष्य की मुक्ति ईश्वर के अनुग्रह से ही हो सकती है। मनुष्य का जन्म होते ही यह निश्चित हो जाता है कि उसको मुक्ति मिलेगी या नहीं। इसे ही ‘पूर्व का नियत’ सिद्धान्त कहते हैं।

प्रश्न 18.
ब्रिटेन में धर्म सुधार आन्दोलन का नेतृत्व किसने किया?
अथवा
ब्रिटिश एंग्लीकनवाद क्या था?
उत्तर:
जब यूरोप में धर्म सुधार आन्दोलन चल रहा था तो ब्रिटेन भी इसके प्रभाव से अछूता न रहा। ब्रिटेन में इस आन्दोलन का नेतृत्व इंग्लैण्ड के राजाओं ने किया। इंग्लैण्ड के शासक हेनरी अष्ठम ने राष्ट्रीय चर्च की स्थापना की। हेनरी और पोप के मध्य आपसी मतभेद थे। हेनरी ने एक्ट ऑफ सुपरमेसी पास कराकर ब्रिटेन के चर्च का सर्वोच्च पद प्राप्त कर लिया। ब्रिटेन ने रोम से संबंध तोड़ लिए तथा ब्रिटेन के चर्च को एंग्लीकन चर्च का नाम दिया और पोप को वार्षिक कर भेजना बन्द कर दिया। हेनरी के उत्तराधिकारी के शासन काल में आँग्ल चर्च प्रोटेस्टेंट बन गया। प्रोटेस्टेंट के समर्थको ने धर्म सुधार में भाग लिया। इस प्रकार ब्रिटेन का रिफोरमेशने आन्दोलन एंग्लीकनवाद के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 19.
प्रतिवादी रिफोरमेशन आन्दोलन का क्या कारण था?
उत्तर:
धर्म सुधार आन्दोलन की लोकप्रियता ने लोगों में कैथोलिक चर्च के विरुद्ध रोष उत्पन्न कर दिया। यूरोप में प्रोटेस्टेंटवाद की लहर ने कैथोलिक चर्च को बहुत हानि पहुँचाई। यूरोप में एक के बाद एक प्रोटेस्टेंट राज्य बनते जा रहे थे। ऐसी स्थिति में कैथोलिक चर्च को बचाने व प्रोटेस्टेण्ट आन्दोलन को रोकने के लिए कुछ सुधारात्मक उपाय किये गये। ये सुधारात्मक उपाय रिफोरमेशन आन्दोलन के प्रतिक्रिया स्वरूप शुरु किये गए थे, इसलिए इसे प्रतिवादी रिफोरमेशन कहते हैं। इस सुधार आन्दोलन का उद्देश्य चर्च के धार्मिक सिद्धान्तों में आये दोषों को दूर करना तथा भ्रष्टाचार को रोकना था।

प्रश्न 20.
ट्रेन्ट की सभा में कौन-कौन से निर्णय लिए गए?
उत्तर:
इटली के ट्रेन्ट नामक स्थान पर कैथोलिक धर्म सभा का आयोजन हुआ। इस सभा में सुधारवादी चिन्तकों ने कैथोलिक धर्म सिद्धान्तों की सात्विक व्याख्या की। इस सभा में दो प्रकार के निर्णय लिए गए –

  1. सिद्धान्तगत
  2. सुधार संबंधी।

सिद्धान्तगत निर्णयों में बाइबिल की व्याख्या का अधिकार चर्च के पास ही रहा। सभी संस्कार अपरिवर्तनीय माने गये। पोप को चर्च का सर्वोच्च अधिकारी और सर्वमान्य व्याख्याकार स्वीकार किया गया। सुधारात्मक उपायों में चर्च के पदों की बिक्री समाप्त कर दी गई तथा पादरियों को आदर्शमय जीवन बिताने के निर्देश दिये गये। पादरियों को उचित एवं उपयुक्त शिक्षा देने का प्रबंध किया गया। लोकभाषाओं को मान्यता मिली व क्षमापत्रों की बिक्री रोक दी गई और संस्कार संबंधी कार्यों के लिए आर्थिक लाभ लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

प्रश्न 21.
धर्म सुधार आन्दोलन का आर्थिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
धर्म सुधार आन्दोलन ने आर्थिक विकास को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया जिससे आर्थिक क्षेत्र में निम्न लिखित सुधार हुए –

  1. व्यापार एवं वाणिज्य के क्षेत्र में वृद्धि हुई।
  2. चर्च की भूमि को कृषकों में वितरित किया गया, जिससे राज्य के राजस्व में वृद्धि हुई।
  3. व्यापारी पूँजी निवेश द्वारा उद्योग धन्धों का विकास करने लगे।
  4. राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई।
  5. श्रम की महत्ता स्थापित हुई, जिसका उपयोग राष्ट्र के औद्योगिक विकास के लिए किया गया।

प्रश्न 22.
औद्योगिक क्रांति का अर्थ तथा परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जब उद्योगों में नई तकनीकी, नई वैज्ञानिक विधियाँ, नई मशीनें, अधिक पूँजी व श्रम का निवेश करके अपेक्षाकृत अधिक उत्पादन करके अधिक लाभ कमाया जाता है तो उसे औद्योगिक क्रान्ति कहते हैं।
औद्योगिक क्रांति की परिभाषा:
डेविज के अनुसार:
औद्योगिक क्रांति का तात्पर्य उन परिवर्तनों से है जिन्होंने यह सम्भव कर दिया था कि मनुष्य उत्पादन के प्राचीन उपायों को त्यागकर विस्तृत रूप से कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन कर सके।”

एन्साइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइंसेज खण्ड आठ के अनुसार:
आर्थिक और तकनीकी विकास जो 18 वीं शताब्दी में अधिक सशक्त और तीव्र हो गया था, जिसके फलस्वरूप आधुनिक उद्योगवाद का जन्म हुआ, उसे औद्योगिक क्रांति कहा जाता है।”

प्रश्न 23.
औद्योगिक क्रांति से पूर्व लौह उद्योग में क्या समस्याएँ थी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में कोयला अयस्क, सीसा, ताँबा, राँगा (टिन) आदि खनिज बहुतायत मात्रा में उपलब्ध थे, परन्तु 18 वीं शताब्दी तक वहाँ इस्तेमाल करने योग्य लोहे का अभाव था। औद्योगिक विकास हेतु लोहे की माँग को पूरा नहीं किया जा सकता था। लोहा प्राप्त करने की प्राचीन पद्धति श्रमसाध्य एवं महँगी थी। लौह प्रगलन के द्वारा ही लौह, खनिज में से शुद्ध तरल धातु के रूप में निकाला जाता था। लौह अयस्क से लोहे की पूरी मात्रा अलग करना मुश्किल था। लोहे से बनी मशीनें काफी वजनदार होती थीं और उनमें जंग भी लग जाती थी। इन सब समस्याओं से निपटने के लिए औद्योगिक क्रांति द्वारा कई विधियों की खोज हुई जिससे धातु कर्म उद्योग में क्रांति. आ गई।

प्रश्न 24.
औद्योगिक क्रांति के नकारात्मक परिणाम बताइए।
उत्तर:
औद्योगिक क्रांति के नकारात्मक परिणाम निम्नलिखित थे –

  1. कारखानों की खुल जाने से लोगों ने शहरों की ओर पलायन करना आरंभ कर दिया जिससे किसानों की जमीन पर भू-स्वामियों का आधिपत्य हो गया।
  2. रोजगार के तलाश में आये लोगों से नगरों की जनसंख्या में वृद्धि हुई जिससे आवास, स्वास्थ्य, सफाई एवं पेयजल आदि की समस्याएँ बढ़ी।
  3. कारखानों के मालिकों ने स्त्रियों और बच्चों को काम पर रखकर उनका शोषण करना आरंभ कर दिया।
  4. औद्योगिक क्रांति के कारण कुटीर उद्योग नष्ट हो गये। अब माल कारखानों में शीघ्रता से तैयार होने लगा।
  5. मशीनों का आविष्कार हो जाने से अनेक कामगार बेरोजगार हो गये।
  6. औगेगिक क्षेत्रों में मजदूरों के गन्दे वातावरण, दूषित पर्यावरण, गन्दी बस्तियों में रहने के कारण अनेक महामारियाँ जैसे चेचक, जा, क्षयरोग, फैलने लगीं।
  7. भोग विलास की वस्तुओं का बड़ी मात्रा में उत्पादन होने से लोग भोग विलासी हो गये तथा शराब आदि नशे की वस्तुओं का सेवन करने लगे जिससे उनका नैतिक पतन हुआ।

RBSE Class 11 History Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण का अर्थ एवं परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
पुनर्जागरण का अर्थपुनर्जागरण का अर्थ है ‘फिर से जाग जाना या जीवित हो जाना या पुनर्जन्म। यह शब्द फ्रांसीसी भाषा के रिनेसाँ शब्द से उत्पन्न हुआ है। 16वीं शताब्दी के प्रारम्भ में यूरोपवासियों ने मध्यकाल की निर्जीव एवं मृतपाय प्राचीन रोम और यूनानी सभ्यता को पुनर्जीवित कर प्रतिष्ठित करने के जो प्रयास किए, उसे ही इतिहास में पुनर्जागरण के नाम से जाना जाता है।
पुनर्जागरण की परिभाषाएँ:

1. फ्रांस के इतिहासकार जूलन मिसीलेट दो व्यापक आयामों की ओर संकेत करते हैं जिसमें पुनर्जागरण के सुधारवादी समग्र प्रयत्न आ जाते है। ये दो आयाम हैं दुनिया की खोज और मनुष्य की खोज’। दुनिया की खोज से तात्पर्य पन्द्रहवीं एवं सोलहवीं शताब्दी की उन भौगोलिक उपलब्धियों से है जिन्होंने अटलॉटिक, प्रशान्त एवं हिन्द महासागर को व्यापार के लिए खोला और पुरानी दुनिया के लोगों को अमेरिका की नई दुनिया तथा दक्षिणी अफ्रीका व आस्ट्रेलिया का परिचय कराया। मनुष्य की खोज के अन्तर्गत मानव शक्ति के उस पक्ष को लिया गया, जिसके द्वारा उसने मध्यकालीन पोपशाहीं को अस्वीकार किया तथा विकसित एवं रचनात्मक दृष्टि का अवलम्बन किया।

2. सेबाइन के शब्दों में “पुनर्जागरण एक सामूहिक अभिव्यक्ति है जिसका प्रयोग मध्यकाल के अन्त और आधुनिक युग के आरम्भ के समय दृष्टिगोचर सभी बौद्धिक परिवर्तनों के लिए किया गया।”

3. फिशर ने लिखा है कि “मानवतावादी आन्दोलन का प्रारम्भ धर्म के क्षेत्र में नवीन दृष्टिकोण स्थापत्य एवं चित्रकला का नया स्वरूप, व्यक्तिवादी सिद्धान्तों का विकास, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और छापेखाने का आविष्कार इत्यादि विशेषताओं को सामूहिक रूप से सांस्कृतिक नवजागरण कहते है।”

उपर्युक्त विद्वानों के विचारों से यही स्पष्ट होता है कि पुनर्जागरण एक ऐसा बौद्धिक एवं उदार सांस्कृतिक आन्दोलन था जिसमें मनुष्य मध्यकालीन बन्धनों से मुक्त होकर स्वतन्त्र चिन्तन की ओर अग्रसर हुआ था।

पुनर्जागरण की विशेषताएँ:
पुनर्जागरण की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं –

1. मानववाद:
पुनर्जागरण की एक प्रमुख विशेषता ‘मानववाद’ थी। मानववाद का अर्थ है ‘मानव जीवन में रूचि लेना, मानव की समस्याओं का अध्ययन करना, मानव का आदर करना, मानव-जीवन के महत्त्व को स्वीकार करना तथा उसके जीवन को सुधारने और समृद्ध एवं उन्नत बनाने का प्रयत्न करना। मानववाद का जन्मदाता ‘पैट्रार्क’ था।

2. स्वतन्त्र-चिन्तन:
इस युग में अनेक विचारकों ने अन्ध-विश्वास की प्रवृत्तियों का विरोध किया और यह विचार प्रस्तुत किया कि किसी भी बात को स्वीकारने से पहले मनुष्य को अपने विवेक का प्रयोग कर लेना चाहिए। इस प्रकार स्वतन्त्र-चिन्तन अथवा बुद्धिवाद का उत्कर्ष पुनर्जागरण युग की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। बुद्धिवाद के प्रवर्तकों में रोजन बेकन का नाम अग्रणी है ।

3. विज्ञान वाद:
पुनर्जागरण काल में विचारों की पुष्टि के लिए प्रयोग वाद अथवा विज्ञान वाद को बढ़ावा मिला। वैज्ञानिक चेतना के प्रवर्तकों में ‘फ्रांसिस बेकन’ (1561-1626ई.) का नाम प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है।

4. सहज सौन्दर्य की उपासना:
पुनर्जागरण कालीन साहित्य एवं कला में सहज सौन्दर्य की उपासना का दिग्दर्शन होता है। इस युग की कला एवं साहित्य पर मानववादी प्रभाव स्पष्टतः परिलक्षित होता है। अब कला और साहित्य में सौन्दर्य एवं प्रेम की उपेक्षा नहीं की गयी। सौन्दर्य के प्रदर्शन को कला में स्थान मिला।

5 कला की प्रगति:
भवन निर्माण कलां, मूर्तिकला, संगीत कला, चित्रकला तथा नक्काशी आदि का इस युग में विकास हुआ। इटली के दो नगरं ‘फ्लोरेंस’ तथा ‘वेनिस’ ने इसमें अधिक भाग लिया और चित्रकारी, शिल्प तथा स्थापत्य कला को काफी आगे बढ़ाया।

6. देशज भाषाओं का विकास:
पुनर्जागरण ने लोगों की बोलचाल की भाषा को गरिमा एवं सम्मान दिया क्योंकि इन भाषाओं के माध्यम से बहुत जल्दी ज्ञानार्जन कर सकते थे तथा विचारों को सुगमता से अभिव्यक्त कर सकते थे।

प्रश्न 2.
“तेरहवीं से सोलहवीं शताब्दी के मध्य का काल यूरोप में पुनर्जागरण का काल था।” सिद्ध कीजिए।
अथवा
किन परिस्थितियों ने मनुष्य के मस्तिष्क में पुनर्जागरण की अवधारणा को जन्म दिया?
उत्तर:
यूरोप में मध्यकाल का आरम्भ रोम और यूनानी सभ्यता की विलुप्ति के साथ हुआ। मध्ययुग में लोगों के धार्मिक व सामाजिक जीवन पर चर्च का पूर्ण नियंत्रण था। पांडित्य परम्पराओं, सामन्ती शोषण, शासकीय अराजकता एवं निराशा का वातावरण था। ऐसे वातावरण में 13 वीं शताब्दी में कुछ ऐसी परिस्थितियों का जन्म हुआ जिन्होंने मानव के विचारों में परिवर्तन ला दिया। इन परिस्थितियों में मनुष्य उन आदर्शों तथा मूल्यों को महत्व देने लगा जो इससे पूर्व नगण्य समझे जाते थे। वे परिस्थितियाँ निम्नलिखित थीं –

1. लौकिक जगत के प्रति आस्था:
इस युग में धर्म के अलौकिक स्वरूप के स्थान पर लौकिक जगत के प्रति आस्था बढ़ी। मानव जीवन में धर्म के हस्तक्षेप व नियंत्रण की उपेक्षा की जाने लगी। धार्मिक संकीर्णता के स्थान पर लोगों में स्वतन्त्रता तथा आत्मनिर्भरता का विकास हुआ।

2. मानवतावाद का विकास:
इस युग में मनुष्य के जीवन के महत्व को स्वीकार किया जाने लगा। मानवतावाद के अनुसार जीवन का लक्ष्य.ईश्वर की सेवा करना या सैनिक कारनामा कर दिखाना नहीं बल्कि लोगों की भलाई के लिए कार्य करना था। मानवतावाद ने मनुष्य को अध्ययन का केन्द्रबिन्दु बना दिया।

3. तर्क को महत्व:
मनुष्य में बौद्धिक चेतना का संचार हुआ जिसने तर्क व चिन्तन की विचारधारा को बढ़ावा दिया। मानवतावाद के विकास से मनुष्य को स्वतंत्र अभिव्यक्ति करने का अवसर मिला जिससे धर्म व समाज की बुराइयों को लेकर तर्क-वितर्क आरंभ हो गये।

4 प्राकृतिक सौन्दर्य की अनुभूति:
धर्मशास्त्रों के वैराग्य और आध्यात्म को छोड़ मनुष्य ने प्राकृतिक सौन्दर्य, माधुर्य, मानव प्रेम व भौतिक सुखों को जीवन का सार स्वीकार किया और सहज सौन्दर्य की उपासना होने लगी।

5. भौतिकवादी दृष्टिकोण:
व्यापार ने यूरोप वासियों को अन्य देशों के लोगों के साथ जोड़ दिया। उनके रहन-सहन एवं संस्कृति आदि के संपर्क में आकर यूरोप के लोग भौतिकवादी बन गये। विद्वानों, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों और कलाकारों ने मानव संसार को समृद्ध और सुन्दर बनाने की बात पर जोर दिया।

6 वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
वैज्ञानिक दृष्टिकोण व तार्किक विवेचन से मध्यकालीन धर्मग्रंथों में चली आ रही परम्पराओं |’ को खण्डन हुआ। अंधविश्वास के स्थान पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण का जन्म हुआ।

7. बौद्धिक दृष्टिकोण:
बुद्धिजीवी वर्ग ने ईसाई धर्म के विश्वासों और प्रचलित मान्यताओं की परीक्षा तर्क की कसौटी पर की। धार्मिक विश्वासों और परम्पराओं के संबंध में लोगों ने तर्क वितर्क करना प्रारम्भ कर दिया। उपर्युक्त परिस्थितियों ने यूरोप के लोगों को पुनर्जागरण के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 3.
पुनर्जागरण काल में किस प्रकार के साहित्य का सृजन हुआ?
या
पुनर्जागरण काल में साहित्य के क्षेत्र में क्या प्रगति हुई?
या
मध्यकालीन साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में यूरोप के पुनर्जागरण को किस प्रकार दर्शाया?
उत्तर:
पुनर्जागरण से पूर्व यूरोप में लैटिन व यूनानी भाषा में ही साहित्य का सृजन होता था। क्षेत्रीय व स्थानीय भाषाओं का महत्व कम था 1455 ई. में जर्मनी के जोहान्नेस गुटनबर्ग द्वारा किये गये छापेखाने के आविष्कार से स्थानीय भाषाओं में भी साहित्य का सृजन आरम्भ हो गया। पुनर्जागरण काल में फ्रेंच, स्पेनिश, पुर्तगाली, जर्मन, अँग्रेजी, डच, स्वीडिस आदि क्षेत्रीय भाषाओं का विकास हुआ। पुनर्जागरण कालीन साहित्य की निम्नलिखित विशेषतायें थीं –

  1. साहित्य की मुख्य विषयवस्तु चर्च था।
  2. धार्मिक विषयों के स्थान पर मनुष्य के जीवन और उसके कार्यों को महत्व दिया गया।
  3. साहित्य आलोचना प्रधान, मानवतावादी और व्यक्तिवादी हो गया।

पुनर्जागरण काल में साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं द्वारा समाज में व्याप्त बुराइयों, सामन्ती शोषण तथा आर्थिक दोषों की कटु आलोचना की। पुनर्जागरण काल में निम्नलिखित ग्रंथों की रचना हुई।

1. डिवाईन कॉमेडी:
यह पुस्तक फ्लोरेंस निवासी दांते की रचना है, जिसमें ईसाई कहानियों एवं धर्मशास्त्रों की चर्चा है।

2. डि मोनार्किया:
यह दांते द्वारा रचित राजनैतिक पुस्तक है, जिसमें वे पवित्र रोमन साम्राज्य के नेतृत्व में इटली के एकीकरण की बात करते हैं।

3. बितानोओ:
यह भी दांते की एक अन्य रचना है, जो प्रेम गीत संग्रह के रूप में है।

4. डेकोमेरोन:
यह पुस्तक मानवतावाद के जनक पैट्रार्क के शिष्य बोकेसियो की सर्वश्रेष्ठ रचना है। इसमें सौ कहानियों का संग्रह है। इनकी दूसरी रचना जीनियोलॉजी ऑफ गोड्स है।

5 पातागुवेल और ‘गारगेंतुआ”:
रेबलेस द्वारा रचित ये दोनों ग्रंथ वैचारिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण हैं।

6. कैन्टबरी टैल्स:
यह अँग्रेजी काव्य के पिता जाफरे चौसर की कृति है जिसमें सैक्सन बोली का कलात्मक प्रयोग किया गया है। चौसर की रचनाओं में सांसारिक चीजों, मनुष्य की कमजोरियों व उसके स्वभाव का वर्णन है।

7 यूटोपियो:
टामस मूर की कृति ‘यूटोपिया’ में आदर्शवादी समाज की कल्पना की गई है जिसमें सामाजिक बुराइयों एवं आर्थिक दोषों का निरूपण किया गया है।

8. इन द प्रेज ऑफ फाली:
हॉलैण्ड के इरेस्मस की इस रचना में तत्कालीन युग के सामंती जीवन पर व्यंग्य किया गया है।

9. डिफेन्डर ऑफ पीस:
राजनीतिक चिन्तन के क्षेत्र में फ्रांस के मार्सिग्लियों की इस कृति में पोप के राजनैतिक हस्तक्षेप की आलोचना की गयी है।

10. द प्रिंस:
मैकियावली द्वारा लिखी गई यह पुस्तक चिन्तन, धर्म से परे है। इस ग्रंथ में राज्य के धर्म निरपेक्षीकरण की बात की गई है। इस पुस्तक में मैकियावली ने राजनैतिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है।

इन ग्रंथों के अतिरिक्त महान कवि एवं नाटककार विलियम शेक्सपीयर ने अपने नाटकों मर्चेन्ट ऑफ वेनिस, रोमियो जूलियट, हेमलेट, मेकबेथ आदि में सामंती तथा मध्यवर्गीय समाज के मध्य के द्वन्द्व को प्रस्तुत किया है। एडमंड स्पेसर का फेयरी क्वीन और क्रिस्टोफरे मार्लो की कृतियों तैमूरलंग ग्रेट, एडवर्ड, ‘द ज्यु ऑफ माल्टा’ और डा. फॉस्टस में राष्ट्रवाद और भौतिकवाद की झलक देखने को मिलती है। इस प्रकार पुनर्जागरण काल साहित्य सृजन का काल था जिससे यूरोप का साहित्य, मानव जीवन में सुधार के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।

प्रश्न 4.
चौदहवीं से सत्रहवीं शती के दौरान यूरोप में कला के क्षेत्र में हुई प्रगति का विस्तृत वर्णन करो।
उत्तर:
चौदहवीं से सत्रहवीं शताब्दी तक यूरोप में पुनर्जागरण का काल रहा। इस काल में कला के प्रत्येक क्षेत्र में प्राचीन परम्परा को त्यागकर एक नई और स्वतंत्र शैली का विकास हुआ। कला धर्म के बन्धनों से मुक्त होकर यथार्थवादी हो गई। कला का स्वरूप धर्म के स्थान पर व्यक्तिवादी हो गया। इस युग की कला में जीवन के सहज सौन्दर्य का जीवन्त एवं स्वाभाविक अंकन देखने को मिलता है।

1. चित्रकला:
पुनर्जागरण काल में चित्रकला के क्षेत्र में अद्भुत विकास हुआ। उदासी एवं एकरसता के स्थान पर चित्रकला जीवन्त एवं आकर्षक हो गयी। इसमें प्रकृति एवं जनसाधारण को स्थान मिला। इस युग के प्रमुख चित्रकारों का वर्णन निम्नलिखित है –

(i) लियोनार्दो द विन्ची (1452 – 1519):
यह एक महान् चित्रकार था। यह फ्लोरेंस का निवासी था। इसकी प्रतिभा बहुमुखी थी। यह वैज्ञानिक, गणितज्ञ, इंजीनियर, संगीतज्ञ, दार्शनिक व चित्रकार था। इसने अपने चित्रों को यथार्थ बानने के लिए मानव शरीर का गहन अध्ययन किया। उसकी सर्वश्रेष्ठ कृति ‘मोनालिसा’ एवं ‘द लास्ट सपर’ है।
RBSE Solutions for Class 11 History Chapter 3 यूरोप में पुनर्जागरण एवं रिफोरमेशन आन्दोलन तथा औद्योगिक क्रान्ति image 3
(ii) माइकेल एंजिलो (1475 – 1520 ई.):
इसकी गिनती अद्वितीय चित्रकारों में की जाती है। यह कलाकार के साथ-साथ मूर्तिकार, स्थापत्यकार, इंजीनियर और कवि भी था। चित्रकारी के क्षेत्र में उसका अद्भूत योगदान वेटिकन में पोप के महल ‘सिसटाइन चैपल’ की छः हजार वर्गमीटर छत का सुन्दर चित्रांकन था।

(iii) राफेल (1483 – 1520 ई.):
राफेल इस युग का महान् चित्रकार था। राफेल के चित्र सजीवता और सुन्दरता के कारण आज भी विश्व प्रसिद्ध हैं। उसके चित्रों में मातृत्व का हृदयग्राही सौन्दर्य तथा बालकों का मनोहारी बात्सल्य रूप दिखाई देता है। उसकी सर्वश्रेष्ठ रचना जीसस क्राइस्ट की माँ ‘मेडोना’ का चित्र है।

2. मूर्तिकला:
मूर्तिकला में यथार्थवादी अंकन की शुरूआत इटली की मूर्तिकला में देखी जा सकती है। मूर्तिकला के क्षेत्र में लॉरेन्जों, गिबर्टी, दोनातेल्लो ओर माइकेल एंजिलो का नाम विशेष उल्लेखनीय है।

(i) गिबर्टी (1378 – 1455):
यह एक महान् मूर्तिकार था। इसने फ्लोरेंस के गिरजाघर के लिए सुन्दर दरवाजा निर्मित किया, जिसकी प्रशंसा करते हुए एंजिलो ने कहा था, “ये द्वार तो स्वर्ग के द्वार पर रखे जाने योग्य हैं।”

(ii) दोनातेल्लो (1386 – 1466 ई.):
यह एक प्रसिद्ध मूर्तिकार था। इसकी बनाई हुई 15 फीट ऊँची पेता की मूर्ति श्रेष्ठ कलाकृति मानी जाती है।

(iii) माइकेल एंजिलो:
यह भी एक महान् मूर्तिकार एवं चित्रकार था। इसके सबसे महान चित्र लास्ट जजमेंट को देखने से पता चलता है कि मनुष्य भय और आतंक से ग्रस्त है तथा ईश्वर के प्रेम और दया की कोई आशी नहीं है।

प्रश्न 5.
किन क़ारणों ने यूरोप में धर्म सुधार आन्दोलन को जन्म दिया? विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप अनेक बुराइयों, जैसे–आडम्बर, अंधविश्वास एवं पाखण्ड आदि से जकड़ा हुआ था। पुनर्जागरण से प्रभावित लोगों ने सोलहवीं शताब्दी में पोप के धार्मिक प्रभुत्व को समाप्त करने, चर्च की कुरीतियों, धार्मिक पाखण्डों व अंधविश्वासों के विरुद्ध जो आन्दोलन प्रारंभ किया उसे धर्म सुधार आन्दोलन हा गया।

धर्म सुधार आन्दोलन के कारण:
1. पुनर्जागरण का प्रभाव:
पुनर्जागरण के कारण बौद्धिक चेतना को उदय हुआ, जिसने मनुष्य को स्वतंत्र चिन्तन शक्ति प्रदान की। इस चिन्तन शक्ति से यूरोप में मनुष्य ने चर्च की मध्यस्थता का परित्याग किया तथा अज्ञानता के आवरण को हटाकर धर्म में सुधार की माँग की।

2. मानवतावाद का प्रभाव:
मानवतावाद ने कैथोलिक चर्च के अनेक अनुयायियों को अपनी ओर आकर्षित किया। इसविचार धारा ने ईसाई धर्म की सात्विक व्याख्या कर चर्च में व्याप्त कुरीतियों की आलोचना की तथा धर्म । सुधार का मार्ग प्रशस्त किया।

3. चर्च के अन्तर्गत व्याप्त बुराइयाँ:
चर्च के अधिकारी चर्च के पदों की बिक्री कर अपने संबंधियों को पद का लाभ देते थे। चर्च के ऊपर राज्य का कोई कानून लागू नहीं होता था। चर्च के पादरी कर मुक्त थे। पोप स्वयं को ईसाई जगत का सम्राट मानता था। चर्च के पास ‘एक्स कम्यूनिकेश’ तथा ‘इन्टरडिक्ट’ नामक विशेषाधिकार थे जिससे वे राज्य व धर्म पर नियंत्रण रखते थे। राजा तथा प्रजा दोनों चर्च से भयभीत रहते थे। इन बुराइयों ने राज्यों के शासकों के हृदय में रोष उत्पन्न किया। फलस्वरूप धर्म सुधार आन्दोलन शुरू हुआ।

4. चर्च द्वारा जनता का शोषण:
चर्च जनता से अनेक प्रकार के कर वसूलता था। धर्म के नाम पर धन ऐंठकर चर्च एक धनी संस्था बन चुका था। इस कारण यूरोपीय किसानों व जन सामान्य ने चर्च द्वारा लगाये गए अनेक प्रकार के करों का विरोध किया।

5. चर्च की अतुल्य सम्पत्ति:
चर्च के पास अपार सम्पत्ति थी। चर्च राज्य को कोई कर नहीं देता था। राजाओं को सेना एवं प्रशासन का खर्च चलाने के लिए धन की आवश्यकता पड़ती थी परन्तु चर्च राज्यों को कोई सहयोग नहीं देता था। इस बात से राज्यों के शासक चर्च के विरुद्ध हो गये। फलस्वरूप उन्होंने धर्म सुधार आन्दोलन को समर्थन दिया।

6. मध्यम वर्ग की महत्वाकांक्षा:
पुनर्जागरण काल में व्यापार के विकास और राष्ट्रीय राज्यों के उदय से यूरोप में एक नवीन मध्यम वर्ग का उदय हुआ। मध्यम वर्ग ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए प्रचलित रूढ़िवादी परम्पराओं का विरोध किया जिससे धर्म सुधार आन्दोलन शुरू हो गया।

7. पोप का राजनीति में हस्तक्षेप:
पोप अपने विशेषाधिकारों के कारण स्वयं को शासकीय व्यवस्था तथा कानून से ऊपर मानता था। पोप अपनी शक्ति का दुरुपयोग राज्यों के राजनैतिक कार्यों में करने लगा। इन कारणों से राजा चर्च के प्रभुत्व के विरोधी हो गये तथा धर्म सुधार आन्दोलन के समर्थक बन गये।

8. बौद्धिक प्रक्रिया:
यूरोप के भक्तिवादी, मानवतावादी और सुधारवादी, बुद्धिजीवी तथा विचारक अपने तर्को से पोप और पादरियों के अनैतिक, भ्रष्ट एवं विलासितापूर्ण जीवन का विरोध करने लगे। पोप ने उन्हें धर्म विरोधी घोषित किया जिससे धर्म सुधार आन्दोलन को बल मिला।

9. क्षमापत्रों की बिक्री:
पोप पादरियों ने जनता से धन ऐंठने के लालच में क्षमापत्र (पाप से मुक्ति दिलाने वाला पत्र) की बिक्री आरंभ कर दी। धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने पादरियों के इस कृत्य का घोर विरोध किया। पोप ने लूथर को पंथ बहिष्कृत किया जिससे कैथोलिक चर्च के विरुद्ध आन्दोलन आरंभ हो गया।

10. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास:
प्रयोग और परीक्षण की नवीन वैज्ञानिक पद्धति ने सृष्टि व मानवोत्पत्ति की। रूढ़िवादी सोच को नकार दिया। ऐसी स्थिति में लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हुआ, जिससे धर्म सुधार आन्दोलन को नयी दिशा मिली।

प्रश्न 6.
धर्म सुधार आन्दोलन के प्रमुख सुधारक कौन-कौन थे? उनकी इस आन्दोलन में क्या भूमिका रही?
उत्तर:
सोलहवीं शताब्दी में जब यूरोप के लोगों ने चर्च की कुरीतियों, आडम्बरों, अंधविश्वासों का विरोध करने के लिए आन्दोलन चलाया तो कई समाज सुधारकों ने उनके आंदोलन का समर्थन किया। इन्होंने चर्च व पादरियों की कटु आलोचना की और बाइबिल को धर्म का सच्चा पथ प्रदर्शक घोषित किया। धर्म सुधार आन्दोलन के प्रमुख सुधारक निम्नलिखित थे –

1. जॉन वाईक्लिफ:
इन्होंने ईसाई चर्च के आडम्बरों की आलोचना की तथा सामान्य मनुष्य को बाइबिल के अनुसार जीवनयापन करने की प्रेरणा दी। वाईक्लिफ प्रगतिवादी विचारक थे। इन्होंने जनता पर अपने विचारों से विशेष छाप छोड़ी। इसलिए इन्हें ‘द मार्निग स्टार ऑफ रिफोरमेशन’ की संज्ञा दी जाती है। इन्होंने चर्च की सम्पत्ति पर राज्य को अधिकार कर लेने की भी वकालत की।

2. जॉन हंस:
जॉन हंस वाइक्लिफ के विचारों से प्रभावित थे। उनका मानना था कि मुक्ति के लिए बाइबिल का अध्ययन ही उचित है, चर्च जाने की आवश्यकता नहीं है। इन्होंने भी पोप के आदेशों को नकारने की प्रेरणा दी। फलस्वरूप इन्हें नास्तिक घोषित कर जिन्दा जलाया गया।

3. सेवानरोला:
इनका मानना था कि धर्माधिकारियों का जीवन आदर्शमय, सादा एवं सरल होना चाहिए न कि भोग विलास से भरा । पोप ने इन्हें पादरियों की निन्दा करने से रोका। पोप के आदेश को अनसुना करने पर इनको प्राणदण्ड दिया गया।

4. इरेस्मस:
हॉलैण्ड निवासी मानवतावादी लेखक इरेस्मस अपनी कृति ‘इन प्रेज ऑफ फॉली’ में लिखे गये व्यंग्यों के कारण लोकप्रिय हुए। इस पुस्तक में उन्होंने व्यंग्यपूर्ण शैली में पादरियों की अज्ञानता एवं उनके पाखण्डों की कटु आलोचना की। 1516 ई. में ईसाइयत के मूल सिद्धान्तों की सात्विक व्याख्या करने के लिए ‘न्यू टेस्टामेन्ट’ का नवीन संस्करण प्रकाशित कराया।

5. मार्टिन लूथर:
मार्टिन लूथर जर्मन युवा भिक्षु थे। इन्होंने 1517 ई. में क्षमापत्रों की बिक्री के विरुद्ध आन्दोलन किया, जिसे कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अभियान या प्रोटेस्टेंटवाद कहते है। इन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया कि ईश्वर से संपर्क करने के लिए पादरी की आवश्यकता नहीं है। उनके इन विचारों से नाराज होकर जर्मनी व स्विट्जरलैण्ड के चर्च ने पोप व कैथोलिक चर्च से अपने संबंध समाप्त कर लिए। 1546 ई. में इस महान धर्म सुधारक की मृत्यु हो गयी।
RBSE Solutions for Class 11 History Chapter 3 यूरोप में पुनर्जागरण एवं रिफोरमेशन आन्दोलन तथा औद्योगिक क्रान्ति image 4
6. ज्विंगली:
यथार्थवादी एवं मानवतावादी चिन्तक ज्विंगली का जन्म 1484 ई. में हुआ। इन्होंने पोप का विरोध किया और पवित्र बाइबिल को ही मनुष्य को एक मात्र निर्देशक घोषित किया। 1525 ई. में इन्होंने सुधारवादी चर्च की स्थापना की। इन्होंने लूथर के चर्च विरोधी विचारों के साथ समन्वय करके ईसाइयों के लिए सरल प्रार्थना की परम्परा का सूत्रपात किया।

7. कॉल्विन:
1509 ई. में फ्रांस में जन्में कॉल्विन प्रोटेस्टेंटवाद के समर्थक थे। कॉल्विन के अनुसार ईश्वर की इच्छा सर्वोच्च है। सब कुछ ईश्वर के अनुसार होता है। ईश्वर के अनुग्रह से ही मुक्ति सम्भव है। उन्होंने ‘इन्स्टीट्यूट्स ऑफ द क्रिश्चियन रिलीजन’, नामक पुस्तक की रचना की। यह धार्मिक पुस्तक प्रोटेस्टैंटवाद के इतिहास में सबसे प्रभावशाली सिद्ध हुई। इन सभी सुधारकों ने अपने विचारों और रचनाओं से लोगों को प्रभावित किया जिससे धर्म में सुधार के प्रयासों की माँग उठने लगी फलस्वरूप धर्म सुधार आन्दोलन हुआ।

प्रश्न 7.
प्रतिवादी धर्म सुधार आन्दोलन क्या था इसे सफल बनाने के साधनों का वर्णन करो।
उत्तर:
प्रतिवादी धर्म सुधार आन्दोलन का अर्थ:
पुनर्जागरण का जो वातावरण तैयार किया उसमें कैथोलिक चर्च में सुधार के लिए वाइक्लिफ और हँस जैसे लोगों ने आवाज उठाई तो उन्हें दबा दिया गया और पोप तथा धर्माधिकारी विलासिता में डूबे रहे। किन्तु जब लूथर और काल्विन ने विद्रोह किया तो कैथोलिक चर्च के लिए जीवन-मरण का संकट पैदा हो गया। जबे यूरोप में एक के बाद एक प्रोटेस्टेण्ट राज्य बनते जा रहे थे तो कैथोलिक चर्च को बचाने व प्रोटेस्टेण्ट आन्दोलन को रोकने के लिए कुछ सुधारात्मक उपाय किए गये। ये सुधारात्मक उपाय ‘रिफारमेशन आन्दोलन के प्रतिवाद (प्रतिक्रिया स्वरूप) में ही शुरू किए गये। अतः इसे प्रतिधर्म सुधार आन्दोलन या’ काउण्टर रिफारमेशन’ था। प्रतिवादी धर्म सुधार आन्दोलन कहते है।

प्रतिधर्म सुधार आन्दोलन को सफल बनाने के प्रमुख उपाय:
1. ट्रेन्ट की सभा (कौंसिल):
उत्तरी इटली के ट्रेण्ट नामक स्थान पर कैथोलिक धर्म सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में अनेक सुधारवादी चिन्तकों को बुलाया गया, जो कैथोलिक धर्म सिद्धान्तों की सात्त्विक व्याख्या कर सकें। इस सभा में दो तरह के निर्णय लिए गये सिद्धान्तगत और सुधार सम्बन्धी। | सुधारात्मक उपायों में चर्च के पदों की बिक्री समाप्त कर दी गई। पादरियों को निर्देश दिए गये कि वे अपने कार्य-क्षेत्र में रहकर आदर्शमय नैतिक जीवन बिताये। पादरियों को उपयुक्त शिक्षा देने का प्रबन्ध किया गया।

2. धार्मिक न्यायालय (इक्वीजिशन न्यायालय):
धार्मिक न्यायालय की स्थापना प्रोटेस्टेण्टवादियों की प्रगति को रोकने तथा दुलमुल कैथोलिकों का पता लगाने, उन्हें दण्डित करने तथा नास्तिक धर्म विरोधी विद्रोही धर्म-प्रचारकों को कठोरतम दण्ड दिए जाने के लिए की गई। सोसाइटी ऑफ जेसस की स्थापना 1534 ई. में की गई। इस सोसाइटी थी स्थापना करने वाले ‘इग्नेशियस लायोला’ थे। प्रशिक्षण में सफल होने पर उन्हें विशिष्ट कार्य पादरी, डाक्टर, शिक्षक, कूटनीतिक, दूत इत्यादि कार्य दिया जाता था।
इस संस्था के सदस्यों को अनुशासन में रहकर कैथोलिक धर्म की नि:स्वार्थ सेवा करने, दीनता, पवित्रता का जीवन जीने तथा आज्ञापालन की और पोप के प्रति समर्थन की शपथ लेनी होती थी। इस संस्था के सदस्यों को कैथोलिक ईसाई मत का प्रचार-प्रसार करने के लिए भारत, चीन, अमेरिका आदि अनेक देशों में भेजा गया।

प्रश्न 8.
औद्योगिक क्रांति के सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में होने के क्या कारण थे?
या
औद्योगिक क्रांति ने इंग्लैण्ड में ही क्यों जन्म लिया?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में सबसे पहले औद्योगीकरण का अनुभव किया गया। इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति प्रारंभ होने के पीछे निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं –

1. खनिज बाहुल्य क्षेत्रों की प्रचुरता:
इंग्लैण्ड में कोयले वे लोहे की खाने प्रचुर मात्रा में थीं। इनका उपयोग लगभग सभी उद्योगों की मशीनों में होता था। वहाँ कच्चे माल की बस्तियाँ स्थापित हो गई जिससे कच्चा माल सस्ते दामों पर मिलने लगा।

2. विस्तृत औपनिवेशिक साम्राज्य:
ब्रिटेन के पास विशाल औपनिवेशिक साम्राज्य था। उदाहरण के लिए भारत भी। ब्रिटेन को उपनिवेश था। यहाँ से कच्चे माल के रूप में कपास ब्रिटेन भेजी जाने लगी और ब्रिटेन में मशीनों द्वारा तैयार माल अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बिकने लगा।

3. जनसंख्या वृद्धि:
जनसंख्या वृद्धि के लिए बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण श्रमिक व मजदूर पर्याप्त मात्रा में मिलने लगे। कारखानों, मिलों आदि के खुल जाने से नगरों की जनसंख्या में वृद्धि हुई और लोग कारखानों में मजदूरों के रूप में रोजगार पाने लगे।

4. स्थानीय प्राधिकरणों का बाजार व्यवस्था में हस्तक्षेप न होना:
17 वीं शताब्दी से इंग्लैण्ड के तीनों हिस्सों-इंग्लैण्ड, वेल्स और स्काटलैण्ड पर एक ही सम्राट का शासन था। सम्पूर्ण राज्य में एक कानून व्यवस्था, एक ही मौद्रिक प्रणाली एवं एक ही बाजार व्यवस्था थी। इस बाजार में स्थानीय प्राधिकरणों का कोई हस्तक्षेप नहीं था अर्थात् वे अपने क्षेत्र से होकर जाने वाले माल पर कोई कर नहीं लगा सकते थे।

5. मुद्रा का विनिमय के रूप में प्रयोग:
17 वीं शताब्दी के अंत तक मुद्रा का प्रयोग विनिमय यानि आदान-प्रदान के रूप में होने लगा था। लोग अपनी कमाई वस्तुओं के बजाय मुद्रा के रूप में लेने लगे। इससे लोगों को अपनी आमदनी को खर्च करने के लिए तथा वस्तुओं की बिक्री के लिए बाजार की आवश्यकता थी। इस प्रकार बाजार का विकास हुआ जो औद्योगिक क्रान्ति के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण बात थी।

6. बैंक प्रणाली का विकास:
ब्रिटेन में बैंकों का विकास हुआ। 1694 ई. में बैंक ऑफ इंग्लैण्ड की स्थापना हुई। यह बैंक देश की वित्तीय प्रणाली का केन्द्र था। 1784 ई. तक ब्रिटेन में लगभग 100 से अधिक प्रांतीय बैंक थे जिनसे लोगों को उद्योग धन्धे चलाने के लिए ऋण मिल सकता था।

7. राजनैतिक स्थायित्व:
ब्रिटेन में 17 वीं शताब्दी से राजनीतिक स्थिरता का दौर शुरू हुआ। सम्पूर्ण ब्रिटेन में एक ही राजा का शासन, एक कानून व्यवस्था, एक ही बाजार व्यवस्था ने उत्पादन व बिक्री पर नियंत्रण रखा।

8. अनुकूल भौगोलिक स्थिति:
इंग्लैण्ड का अधिकतम भाग समुद्र के निकट स्थित होने के कारण यह भाग कपास उद्योग के लिए अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुआ। इसीकारण सर्वप्रथम वस्त्र उद्योग इंग्लैण्ड में प्रारंभ हुआ।

9. कृषि क्रांति:
18 वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड एक बड़े आर्थिक परिवर्तन के दौर से गुजरा जिसे कृषि क्रांति कहते हैं। इसके तहत बड़े जमीदारों ने छोटे किसानों की जमीन और सार्वजनिक जमीनों पर कब्जा कर लिया, जिससे उत्पादन तो बढ़ा परन्तु भूमिहीन, चरवाहे एवं पशुपालक आदि रोजगार की तलाश में नगरों, चले गये।

10. वैज्ञानिक आविष्कार:
18 वीं शताब्दी में ब्रिटेन में अनेक वैज्ञानिक हुए, जिन्होंने कृषि, व्यवसाय, यातायात आदि क्षेत्रों में कई आविष्कार किये। इन आविष्कारों ने औद्योगिक क्रांति को सफल बनाने में योगदान दिया। इसके अतिरिक्त भाप-शक्ति के आविष्कार ने भी औद्योगिक क्रांति को बढ़ावा दिया।

प्रश्न 9.
औद्योगिक क्रांति के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
औद्योगिक क्रान्ति के कारण:
इंग्लैण्ड की औद्योगिक क्रान्ति के निम्नलिखित कारण थे –

1. इंग्लैण्ड की राजनीतिक दशा:
इंग्लैण्ड की पार्लियामेण्ट की शासन-पद्धति इतनी स्थिर थी कि देश की शान्ति किसी भी प्रकार के उतार-चढ़ाव से ढाँवाडोल नहीं हो सकती थी। राजनीतिक शान्ति ने व्यापार और उद्योगों की उन्नति के लिए उचित वातावरण प्रदान किया।

2. पुनर्जागरण एवं भौगोलिक खोजें:
पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप मानव में नूतन उत्साह का संचार हुआ। भौगोलिक खोजो के परिणामस्वरूप यूरोपवासी दूसरे देशों के सम्पर्क में आये। दूसरे महाद्वीपों में नई-नई बस्तियाँ बसाई गयी और इन बस्तियों के साथ व्यापार-वाणिज्य शुरु हुआ। बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए मशीनों तथा यन्त्रों का आविष्कार आवश्यक था। इस प्रकार पुनर्जागरण औद्योगिक क्रान्ति का अप्रत्यक्षरूप से कारण बना।

3. जनसंख्या में वृद्धि:
ज्यों-ज्यों यूरोप की जनसंख्या बढ़ती गई त्यों-त्यों रोजी-रोटी की समस्या भी बढ़ती गई। इस प्रकार से लोग कृषि-कर्म के अलावा अन्य कार्यों को करने की ओर प्रवृत्त हुए। दूसरी बात यह भी थी कि जनसंख्या में वृद्धि के कारण दैनिक उपयोग की वस्तुओं की माँग भी बहुत बढ़ गई थी। बढ़ती हुई माँगों ने मनुष्य को औद्योगिक विकास के लिए प्रोत्साहित किया।

4. औपनिवेशिक प्रतिस्पर्धा:
प्रत्येक देश अन्य देशों की तुलना में उन्नत होना चाहता था। यह एक प्रकार की प्रतिस्पर्धा थी। औपनिवेशिक साम्राज्य का विकास इस प्रतिस्पर्ट्स का सीधा परिणाम था। औपनिवेशिक साम्राज्यों ने कच्चे माल को उपलब्ध कराने और पक्के माल को खपाने की सम्भावना बताकर औद्योगिक क्रान्ति में सहायता पहँचाई।

5. रहन-सहन के स्तर में वृद्धि:
जैसे-जैसे मनुष्य को सुविधाएँ मिलती गई, वैसे-वैसे उसके रहन-सहन का स्तर . भी उन्नत होता गया। बढ़ती हुई आवश्यकताओं से औद्योगिक विकास को बहुत बल मिला।

6. उपनिवेशों की स्थापना:
नवीन भौगोलिंक खोजों ने यूरोप के देशों को अपने उपनिवेश स्थापित करने की प्रेरणा दी। इन उपनिवेशों तक पहुँचने के लिए यूरोप के देशों को आवागमन के साधनों का विकास करना पड़ा। साथ ही उपनिवेशों से कच्चा माल भी प्राप्त हुआ और पक्के माल के लिए बाजार उपलब्ध हुए। इस प्रकार उपनिवेशों की स्थापना ने औद्योगिक क्रान्ति लाने में विशेष सहायता प्रदान की।

7. सस्ते मजदूर:
कृषि-प्रणाली में परिवर्तन हो गया था। इस परिवर्तन के फलस्वरूप कृषि का काम बड़ी-बड़ी मशीनों से होने लगा। गाँवों में रहने वाले बहुत से बेरोजगार कृषक विवश होकर नगरों में मजदूरी करने लगे। ये थोड़ी मजदूरी पर भी काम करने को तैयार थे। फलस्वरूप उद्योगों के लिए सस्ते मजदूर उपलब्ध होने लगे। अतः लोगों को उद्योग-धन्धे एवं कारखाने स्थापित करने के लिए विशेष प्रोत्साहन मिला।

8. लोहे और कोयले के प्राकृतिक भण्डार:
जिस प्रकार नई मशीनों व नये यन्त्रों के निर्माण के लिए लोहे की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार कारखानों की मशीनों को चलाने के लिए शक्ति की आवयकता होती है। यह शक्ति कोयले से प्राप्त हो सकती है। इंग्लैण्ड में लोहे और कोयले के बड़े-बड़े प्राकृतिक भण्डार थे जो उद्योगों को जीवन शक्ति देने वाले थे। अतः इन भण्डारों ने भी औद्योगिक क्रांति की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

प्रश्न 10.
औद्योगिक क्रांति का अर्थ एवं परिभाषा बताते हुए इस क्रांति द्वारा ब्रिटेन में आये परिवर्तनों का वर्णन करो।
उत्तर:
पुनर्जागरण और धर्मसुधार आन्दोलन से यूरोप में बौद्धिक चिन्तन को गति मिली और इसी के परिणाम स्वरूप अठारहवीं शताब्दी तक वाणिज्यवाद और औद्योगिक क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रान्ति हुई। इस औद्योगिक क्रान्ति ने अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था के साथ-साथ राजनैतिक व्यवस्था को भी प्रभावित किया।

औद्योगिक क्रान्ति का अर्थ:
औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग यूरोपीय विद्वान फ्रांस के ‘जार्जिस मिशले’ और जर्मनी के ‘काइड्रिक एजेन्स’ द्वारा किया गया। अंग्रेजी में इस शब्द का प्रयोग दार्शनिक और अर्थशास्त्री ‘ऑरनाल्ड टायन्बी’ द्वारा उन परिवर्तनों का वर्णन करने के लिए किया गया जो ब्रिटेन के औद्योगिक विकास में 1760 ई. से 1820 ई के मध्य हुए थे।

औद्योगिक क्रान्ति की परिभाषाएँ:
विभिन्न इतिहासकारों ने औद्योगिक क्रान्ति की परिभाषाएँ भिन्न-भिन्न प्रकार से दी है –

1. जी. डब्ल्यू साऊथगेट के अनुसार, “औद्योगिक क्रान्ति औद्योगिक प्रणाली में परिवर्तन थी जिसमें हस्त शिल्प के स्थान पर शक्ति संचालित यन्त्रों से काम लिया जाने लगा तथा औद्योगिक संगठन में भी परिवर्तन हुआ। घरों में उद्योग चलाने की अपेक्षा कारखानों में काम होने लगा।”

2. सी.डी. हेजंन के अनुसार, “कुटीर उद्योग का मशीनीकरण औद्योगिक क्रान्ति है।”

3. डेविन के अनुसार, ”औद्योगिक क्रान्ति का तात्पर्य उन परिवर्तनों से है जिन्होंने यह सम्भव कर दिया था कि मनुष्य उत्पादन के प्राचीन उपायों को त्यागकर विस्तृत रूप से कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन कर सके।”

औद्योगिक क्रान्ति से ब्रिटेन में निम्नलिखित परिवर्तन हुए –

  1. हथकरघों व कुटीर उद्योगों का स्थान मशीनों ने ले लिया।
  2. मशीनों के संचालन हेतु जल शक्ति के स्थान पर बाष्पशक्ति प्राकृतिक तेल तथा बिद्युत शक्ति का प्रयोग किया। जाने लगा।
  3. इस्पात की माँग की पूर्ति के लिए इस्पात के कारखाने खोले गये।
  4. कृषि का व्यवसायीकरण किया गया। कृषि कार्य में मशीनों का प्रयोग होने लगा।
  5. पूँजी का उपयोग बढ़ा तथा बैंकिंग पद्धति का विकास हुआ।
  6. कम मानव श्रम एवं अधिकतम उत्पादन के सिद्धान्त को अपनाया गया।
  7. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हेतु संगठित व्यापार तन्त्र विकसित किया गया।
  8. यातायात के साधनों के विकास के लिए रेल इंजन और यन्त्र चालित जहाजों का प्रयोग किया गया।

प्रश्न 11.
औद्योगिक क्रांति के क्या-क्या परिणाम हुए? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक क्रांति के सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार के परिणाम रहे। जहाँ एक ओर इस क्रांति से उत्पादन एवं व्यापार में अपार वृद्धि हुई, वहीं दूसरी ओर कुटीर उद्योग धन्धे बन्द हो गये तथा लोगों को नगरों की ओर पलायन करना पड़ा। औद्योगिक क्रांति के परिणाम को चार प्रमुख रूपों में बाँटा जा सकता है –

1. आर्थिक परिणाम:

  • मशीनों के प्रयोग से उत्पादन में असाधारण वृद्धि हुई जिससे कामगारों का समय बचने लगा। इस समय का उपयोग वे अन्य कार्यों में करने लगे।
  • मशीनों के द्वारा तैयार माल सस्ती व टिकाऊ होने के कारण कुटीर उद्योगों का विनाश हो गया।
  • बैंक प्रणाली विकसित हुई तथा आयात व निर्यात के व्यापार में वृद्धि हुई, जिससे देशों में आपसी निर्भरता बढ़ गई।
  • बढ़ती हुई भाँग की पूर्ति होने से आर्थिक संतुलन स्थापित हुआ।
  • बड़े-बड़े उद्योगपति उद्योगों में पूंजी निवेश करने लगे जिससे औद्योगिक पूँजीवाद का विकास हुआ।
  • कारखाने खुल जाने व ग्रामीण जनता के नगरों में पलायन करने से नगरों का विकास होने लगा।

2. सामाजिक परिणाम:

  • भोग विलास की वस्तुओं के उत्पादन से मनुष्य के नैतिक मूल्यों में गिरावट आयी।
  • रोजगार प्राप्त करने के लिए नगरों की ओर पलायन करने वाले ग्रामीणों के संयुक्त परिवार में बिखराव उत्पन्न : हुआ।
  • समाज दो वर्गों में बँट गया-एक कारखानों के मालिक और दूसरे मजदूर वर्ग। अमीर-गरीब की खाई और गहरी हो गयी।
  • सामाजिक विषमताएँ बढ़ गईं। मानवीय संबंधों में गिरावट आयी। उद्योगपति दिन प्रतिदिन अमीर होते गये और मजदूर अधिक निर्धन हो गए।
  • औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों के दूषित पर्यावरण, एवं गन्दी बस्तियों में रहने के कारण अनेक महामारियाँ फैलने लगीं।
  • मशीनों का आविष्कार होने से अनेक मजदूर बेकार हो गये जिससे बेरोजगारी में वृद्धि हुई।

3. राजनैतिकं परिणाम:

  • अर्थव्यवस्था में सुधार होने से लोगों में लोकतंत्र की माँग बढ़ गई। लोग आर्थिक रूप से सम्पन्न होने के कारण राजनीति में हस्तक्षेप करने लगे।
  • औद्योगिक क्रांति ने साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया। विश्व में तनाव एवं अशांति बढ़ गई और मानवता को प्रथम एवं द्वितीय विश्वयुद्ध का सामना करना पड़ा।
  • मध्यम वर्ग सशक्त होने के कारण राजनीति पर अपना दबाब बनाने का प्रयास करने लगा।

4. वैचारिक परिणाम:

  • औद्योगिक क्रांति ने आर्थिक उदारवाद को जन्म दिया।
  • औद्योगिक क्रांति ने समाजवाद को जन्म दिया। समाज में प्रत्येक वर्ग के लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए।

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