RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 14 भोजन के पोषक तत्व-सूक्ष्म मात्रिक
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Rajasthan Board RBSE Class 11 Home Science Chapter 14 भोजन के पोषक तत्व-सूक्ष्म मात्रिक
RBSE Class 11 Home Science Chapter 14 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के सही उत्तर चुनें –
(i) आयोडीन की कमी से कौन-सा रोग होता है?
(अ) गलगण्ड
(ब) रिकेट्स
(स) रतौंधी
(द) फ्लोरोसिस
उत्तर:
(अ) गलगण्ड।
(ii) एक सामान्य व्यक्ति के शरीर में लोहे की मात्रा होती है –
(अ) 5-6 ग्राम
(ब) 4-5 ग्राम
(स) 3-4 ग्राम
(द) 6-7 ग्राम
उत्तर:
(ब) 4-5 ग्राम।
(iii) पैलाग्रा रोग का सबसे गम्भीर लक्षण है –
(अ) त्वचा का रोग
(ब) अतिसार
(स) पागलपन
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) पागलपन
(iv) थायमिन की कमी से होने वाला रोग है –
(अ) बेरी-बेरी
(ब) रतौंधी
(स) रक्ताल्पता
(द) पैलाग्रा
उत्तर:
(अ) बेरी-बेरी
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. विटामिन ‘के’ ………… के लिए आवश्यक है।
2. कैरेटोमलेशिया ………… की कमी से होता है।
3. अस्थि मृदुलता को ……… भी कहते हैं।
4. फ्लोरीन की अधिकता से ………… रोग हो जाता है।
उत्तर:
1. रक्त का थक्का जमने में
2. विटामिन ‘ए’
3. रिकेट्स
4. फ्लोरोसिस।
प्रश्न 3.
विटामिन कितने प्रकार के होते हैं? समझाइए।
उत्तर:
घुलनशीलता के आधार पर विटामिन को मुख्य दो वर्गों में बाँटा गया है –
(A) जल में घुलनशील विटामिन तथा
(B) वसा में घुलनशील विटामिन।
(A) जल में घुलनशील विटामिन:
ये विटामिन शरीर में निर्मित नहीं हो पाते। अत: इन्हें भोजन से प्राप्त करना आवश्यक है। ये जल में घुलनशील होते हैं। अत: इनकी आवश्यकता से अधिक मात्रा शरीर से जल के साथ बाहर निकाल दी जाती है। जल में घुलनशील विटामिन निम्नलिखित हैं –
1. विटामिन बी काम्पलैक्स:
यह निम्नलिखित विटामिनों का समूह है –
- विटामिन बी1 या थायमिन
- विटामिन बी2 या राइबोफ्लेविन
- निकोटनिक अम्ल या नियासिन या निकोटिनामाइड
- विटामिन बी6 या पाइरीडॉक्सिन
- पैन्टोथेनिक अम्ल
- फोलिक अम्ल
- कोलीन
- बायोटिन
- पैरा अमीनो बैंजोइक अम्ल
- विटामिन ‘बी12‘ या साइनोकोबालेमिन।
2. विटामिन ‘सी’ या एस्कार्बिक अम्ला:
(B) वसा में घुलनशील विटामिन:
इनमें से कुछ विटामिन हमारे शरीर में निर्मित हो जाते हैं परन्तु वे शरीर को पर्याप्त आवश्यकतानुसार प्राप्त नहीं होते हैं। अत: इन विटामिन्स की प्राप्ति के लिए भोजन पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इनके निम्न प्रकार हैं –
- विटामिन ‘ए’ तथा कैरोटीन
- विटामिन ‘डी’
- विटामिन ‘ई’ तथा
- विटामिन के।
प्रश्न 4.
भोजन में फोलिक अम्ल का क्या महत्व है?
उत्तर:
फोलिक अम्ल का भोजन में होना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि यह हमारे शरीर में निम्नलिखित कार्य करता है –
- फोलिक अम्ल विटामिन बी, के साथ मिलकर अस्थिमज्जा में लाल रक्त कणिकाओं के निर्माण तथा परिपक्वता के लिए आवश्यक है।
- फोलिक अम्ल प्यूरिन्स तथा पिरिमिडीन्स के निर्माण में कोन्एन्जाइम की तरह कार्य करता है।
- फोलिक अम्ल हिस्टिडीन, टाइरोसिन तथा ट्रिफ्टोफैन अमीनो अम्ल के चपापचय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह शरीर में विभिन्न जैविक तथा रासायनिक प्रक्रियाओं को सम्पन्न करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 5.
विटामिन ‘ए’ के कार्यों को समझाइए।
उत्तर:
विटामिन ‘ए’ के कार्य –
1. आँखों की सामान्य दृष्टि:
विटामिन ‘ए’ आँखों की सामान्य दृष्टि के लिए अत्यंत आवश्यक है। नेत्र के दृष्टि पटल में दो प्रकार के कोष पाए जाते हैं –
श्लाका (Rods) एवं शंकु (Cons) जो कि मंद व तेज रोशनी में देखने तथा रंगों की पहचान करने में सहायता करते हैं। इनमें वर्णक भी होते हैं। श्लाका में रोडोप्सिन तथा शंकु में आइडोप्सिन वर्णक होते हैं। इनमें ऑप्सिन नामक प्रोटीन होता है। विटामिन ‘ए’-एल्डिहाइड, ऑप्सिन प्रोटीन के साथ मिलकर रोडोप्सिन में बदल जाता है जिसे (Visual Purple) कहते हैं।
रोशनी की उपस्थिति में रोडोप्सिन ब्लीच होकर विटामिन ‘ए’-एल्डिहाइड तथा ऑप्सिन में बदल जाता है। इस प्रकार कम रोशनी में रोडोप्सिन तथा तेज रोशनी में आइडोप्सिन का निर्माण होता है और यह चक्र निरन्तर निर्बाध गति से चलता रहता है। इस प्रकार आँख द्वारा प्रकाश में देखने की शक्ति विटामिन ‘ए’ की उपस्थिति पर निर्भर है।
2. एपीथीलियम ऊतकों के स्वास्थ्य में:
विटामिन ‘ए’ एपीथीलियम ऊतकों की क्रियाशीलता तथा स्थिरता रखने में सहायक है। हमारे शरीर के सभी बाह्य तथा आंतरिक अंग इसी ऊतक से आच्छादित रहते हैं। ये ऊतक श्लेष्मा सावित करते हैं तथा अंगों को बाहरी जीवाणुओं, विषाणुओं तथा रोगाणुओं से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
3. शारीरिक वृद्धि व विकास:
विटामिन ‘ए’ शारीरिक वृद्धि एवं विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शोधों से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि विटामिन ‘ए’ के अभाव में कोशिकाओं की विभाजन क्रिया में 30 प्रतिशत तक की कमी हो जाती है।
4. प्रजनन अंगों के स्वास्थ्य में सहायक:
विटामिन ‘ए’ प्रजनन अंगों के उत्तम स्वास्थ्य तथा प्रजनन क्रिया को सुचारु रूप से सम्पन्न होने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। विटामिन ‘ए’ की कमी से यौन हार्मोन का स्रावण पर्याप्त नहीं हो पाता। इसके अभाव में पुरुष एवं स्त्री के प्रजनन अंगों में विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
5. अस्थियों की वृद्धि में सहायक:
विटामिन ‘ए’ अस्थियों की सामान्य वृद्धि एवं विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
6. संक्रमण प्रतिरोधक:
यह शरीर में रोग प्रतिरोधक की तरह कार्य करता है।
7. नाड़ी संस्थान को स्वस्थ रखने में:
विटामिन ‘ए’ नाड़ी संस्थान के ऊतकों की बेहतर क्रियाशीलता के लिए आवश्यक है। इसके अभाव में मायलीन शीघ्र नष्ट हो जाती है जिससे नाड़ी संस्थान में विकृति उत्पन्न हो जाती है।
8. विटामिन ‘ए’ ग्लूको प्रोटीन के संश्लेषण में:
श्वेत रक्त कणिकाओं को स्वस्थ रखने में तथा प्रोटीन के संश्लेषण में भी योगदान करता है।
प्रश्न 6.
शरीर पर थायमिन की कमी के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
थायमिन की कमी के प्रभाव-मद्यपान करने वाले व्यक्तियों में थायमिन की कमी अक्सर हो जाती है। उन लोगों में भी थायमिन की कमी पायी जाती है जो कार्बोज का तो अत्यधिक मात्रा में सेवन करते हैं किन्तु दाल, हरी पत्तेदार सब्जियाँ आदि का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं करते हैं। थायमिन की कमी से बेरी-बेरी रोग हो जाता है।
इसे तीन मुख्य प्रकारों में बाँटा गया है –
1. शुष्क बेरी:
बेरी वयस्कों में होता है। इसमें माँसपेशियाँ क्षीण हो जाती हैं। फलतः शरीर कंकाल की तरह दिखने लगता है। इसमें नाड़ी संस्थान प्रभावित होता है, पैर सुन्न हो जाते हैं, चलने-फिरने में अत्यधिक कठिनाई होती है। चिड़चिड़ापन, भुलक्कड़पन, आत्महत्या का विचार आना, नाड़ी संस्थान में विकृति आ जाने के कारण होता है।
2. आर्द्र बेरी:
बेरी में शरीर में सूजन आ जाती है। सजन प्रारम्भ में पैरों में होती है जो धीरे-धीरे बढ़कर हाथों, चेहरे एवं गर्दन में भी आ जाती है। इसमें हृदय कमजोर व निर्बल हो जाता है, हृदय गति में अस्वाभाविक परिवर्तन आ जाते हैं। साँस में कठिनाई होती है। यदि समय रहते इलाज न कराया जाए तो हृदय गति अवरुद्ध होने के कारण व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
3. बाल बेरी:
बेरी रोग शिशुओं में होता है। दूध पिलाती माता के आहार में जब पर्याप्त मात्रा में विटामिन बी, नहीं होता या अत्यधिक मात्रा में पॉलिश किए गये चावल का प्रयोग आहार के रूप में करती है जिसके कारण दूध में इस विटामिन की कमी हो जाती है। इससे स्तनपान करने वाले शिशुओं में भी इस विटामिन की कमी हो जाती है।
शिशुओं में यह रोग तब भी पाया जाता है जब उन्हें थायमिन रहित आहार दिया जाता है। इस रोग में बच्चों की माँसपेशियाँ नष्ट हो जाती हैं, शरीर में पानी भर जाता है, हृदय व यकृत का आकार बढ़ जाता है, भूख में कमी हो जाती है, पाचन शक्ति क्षीण हो जाती है तथा उल्टी व दस्त हो जाते हैं।
4. थायमिन की अत्याधिक कमी से वर्निक्स कॉरसाकॉफ्स सिंड्रोम हो जाता है। विशेषकर उन व्यक्तियों में जो प्रतिदिन अत्यधिक मद्यपान करते हैं। इस रोग में आँखों की पेशियाँ कमजोर, क्षीण, निर्बल एवं नाजुक हो जाती हैं, नेत्र गोलक के घूमने की गति में असाधारण रूप से वृद्धि हो जाती है, चाल विकृत हो जाती है।
प्रश्न 7.
लोहे के कार्य व कमी के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
लोहे के कार्य –
- लौह हीमोग्लोबिन के निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक खनिज लवण है। हीमोग्लोबिन में हीम लौह तथा ग्लोबिन प्रोटीन होता है। हीम के अभाव में हीमोग्लोबिन का निर्माण नहीं होता।
- पेशियों में लोहा मायोग्लोबिन के रूप में उपस्थित होता है जो कि संकुचन क्रिया के लिए अति आवश्यक है।
- श्वसन क्रिया में भाग लेने वाले एन्जाइम्स का निर्माण लौह तत्त्व से ही होता है।
- लौह प्रतिरक्षी कोशिकाओं के निर्माण में भाग लेता है। लोहे की कमी के प्रभाव-लोहे की कमी से ‘रक्ताल्पता’ रोग हो जाता है।
रक्ताल्पता रक्त में हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य से कम होने पर उत्पन्न स्थिति है। यह रोग प्रायः गर्भवती माँ एवं 1 वर्ष के शिशु जिन्हें माता का दूध छुड़ा दिया जाता है, को अधिक होता है। इस रोग के कारण शिशु की त्वचा का रंग पीला पड़ जाता है। बच्चों की वृद्धि एवं विकास धीमा हो जाता है। गर्भावस्था में भ्रूण के रक्त के निर्माण के लिए अधिक लोहे की आवश्यकता पड़ती है। आवश्यकता पूरी न होने पर साँस लेने में परेशानी, थकावट, चक्कर आना तथा पीली त्वचा होना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 8.
नियासिन की कमी के क्या प्रभाव हैं?
उत्तर:
नियासिन की कमी के प्रभाव:
भोजन में नियासिन की कमी कई महीने तक रहने के पश्चात, पैलाग्रा के लक्षण प्रकट होते है। पैलाग्रा रोग को 3Ds रोग भी कहते हैं क्योंकि इसमें तीन लक्षण पाए जाते हैं जिनका प्रथम अक्षर D होता है।
1. अतिसार (Diarrhoea):
अतिसार पाचन संस्थान में विकार उत्पन्न होने से होता है। इसमें पाचन अंगों में गड़बड़ियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। होठों की श्लेष्मिक कला क्षीण होकर नष्ट हो जाती है जिसके कारण मुँह पूरी तरह खुल नहीं पाता है, फिर जीभ, गला व मुँह प्रभावित होते हैं। जीभ व होंठ गहरे लाल रंग के हो जाते हैं। किसी भी भोजन को खाने व निगलने में बहुत परेशानी होती है।
2. त्वचा का रोग (Dermatitis):
नियासिन के अभाव से त्वचा का रोग हो जाता है। शरीर के वे भाग जो खले रहते हैं तथा जिनका सीधा सम्पर्क सूर्य के प्रकाश से होता है, अधिक प्रभावित होते हैं। फिर त्वचा खुरदरी लाल हो जाती है, पपड़ी पड़ने लगती है, छोटे-छोटे दाने आ जाते हैं, उन पर घाव आ जाते हैं।
3. पागलपन (Dementia):
मानसिक विक्षिप्तता पैलाग्रा रोग का सबसे गम्भीर लक्षण है। यदि पैलाग्रा रोग गम्भीर रूप धारण कर लेता है तो पागलपन; जैसे लक्षण दृष्टिगोचर हो जाते हैं। इस स्थिति में नाड़ी संस्थान में विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। रोगी हमेशा तनावग्रस्त रहता है, स्मरण शक्ति क्षीण हो जाती है, बेहोशी के दौरे पड़ने लगते हैं, रोगी द्वारा अनैच्छिक मल-मूल का विसर्जन होने लगता है।
RBSE Class 11 Home Science Chapter 14 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Home Science Chapter 14 बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प का चयन कीजिए –
प्रश्न 1.
विटामिन शब्द दिया गया –
(अ) केशीमियर फंक द्वारा
(ब) आइजेकमेन द्वारा
(स) वर्जीलियस द्वारा
(द) डॉ. डैम द्वारा
उत्तर:
(अ) केशीमियर फंक द्वारा
प्रश्न 2.
रेटीनॉल होता है –
(अ) विटामिन-A
(ब) विटामिन-B
(स) विटामिन-C.
(द) विटामिन-D
उत्तर:
(अ) विटामिन-A
प्रश्न 3.
रिकेट्स रोग का कारण है, भोजन में –
(अ) विटामिन-C की कमी
(ब) विटामिन-D की कमी
(स) लौह तत्त्व की कमी
(द) नियासिन की कमी
उत्तर:
(ब) विटामिन-D की कमी
प्रश्न 4.
विटामिन-C का उत्कृष्ट स्रोत है –
(अ) नमक
(ब) बैंगन
(स) आँवला
(द) पालक
उत्तर:
(स) आँवला
प्रश्न 5.
वर्निक्स कॉरसाकॉफ्स सिंड्रोम का कारण है –
(अ) नियासिन की अधिकता
(ब) एस्कार्बिक अम्ल की अधिकता
(स) आयोडीन की कमी
(द) थायमिन की कमी।
उत्तर:
(द) थायमिन की कमी।
रिक्त स्थान भरिए –
निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थान भरिए –
1. आँखों की सामान्य दृष्टि के लिए भोजन में ………… अत्यंत आवश्यक है।
2. ………… को अस्थि विकृतिनाशक विटामिन भी कहते हैं।
3. विटामिन-सी को ………… भी कहते हैं।
4. थायमिन विटामिन की खोज ………… रोग का उपचार करते हुई।
5. राइबोफ्लेविन में …………नामक पेन्टोज शर्करा पायी जाती है।
उत्तर:
1. विटामिन-ए,
2. विटामिन-डी
3. एस्कार्बिक अम्ल
4. बेरी-बेरी
5. राइबोज
सुमेलन
स्तम्भ A तथा स्तम्भ B के शब्दों का मिलान कीजिए
स्तम्भ A स्तम्भ B
1. विटामिन बी1 (a) एस्कार्बिक अम्ल
2. विटामिन बी12 (b) थायमिन
3. विटामिन सी (c) नियासिन
4. रतौंधी (d) सायनोकोबालेमिन
5. पैलाग्रा (e) विटामिन-ए
उत्तर:
1. (b) थायमिन
2. (d) सायनोकोबालेमिन
3. (a) एस्कार्बिक अम्ल
4. (e) विटामिन-ए
5. (c) नियासिन
RBSE Class 11 Home Science Chapter 14 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जल में घुलनशील दो विटामिनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
विटामिन-बी काम्पलैक्स तथा विटामिन ‘सी’।
प्रश्न 2.
वसा में घुलनशील दो विटामिनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
विटामिन ‘डी’ तथा विटामिन ‘के’।
प्रश्न 3.
हमारे शरीर में रेटिनॉल कहाँ पाया जाता है?
उत्तर:
आँखों के रेटिना के रॉड्स एवं कोन्स में।
प्रश्न 4.
ल्यूकोपेनिया रोग किस विटामिन की कमी से होता है?
उत्तर:
विटामिन ‘ए’ की कमी से।
प्रश्न 5.
विटामिन ‘ए’ की कमी से होने वाले दो रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- जैरोफ्थैलमियाँ
- कैरेटोमलेशिया।
प्रश्न 6.
विटामिन ‘ए’ की अधिकता से कौन-सा रोग हो जाता है?
उत्तर:
हाइपरविटामिनोसिस।
प्रश्न 7.
विटामिन ‘डी’ की कमी से होने वाले दो रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- रिकेट्स
- ऑस्टोमलेशिया।
प्रश्न 8.
विटामिन ‘ई’ की खोज किसने की?
उत्तर:
1922 ई. में ईवान्स तथा विशप ने।
प्रश्न 9.
विटामिन ‘ई’ के दो मुख्य रूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
- टोकोफेरोल,
- टोकीट्रीनॉल।
प्रश्न 10.
कौन-सा विटामिन रक्त का थक्का बनाने में सहायता करता है?
उत्तर:
विटामिन ‘के’ रक्त का थक्का बनाने में सहायता करता है।
प्रश्न 11.
स्कर्वी रोग किस विटामिन की कमी से होता है?
उत्तर:
स्कर्वी रोग विटामिन ‘सी’ की कमी से होता है।
प्रश्न 12.
‘पैलाग्रा विरोधक विटामिन’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
विटामिन ‘बी2 या नियासिन को ‘पैलाग्रा विरोधक विटामिन’ कहते हैं।
प्रश्न 13.
हाइपर कैल्सिमिया रोग का क्या कारण होता है?
उत्तर:
भोजन में कैल्सियम का अधिक ग्रहण करना।
प्रश्न 14.
हीमोग्लोबिन का मुख्य संघटक तत्त्व कौन-सा है?
उत्तर:
हीमोग्लोबिन का मुख्य संघटक तत्त्व लौह है।
प्रश्न 16.
क्रेटिनिज्म रोग का क्या कारण है?
उत्तर:
भोजन में आयोडीन की कमी।
प्रश्न 16.
भोजन में फ्लोरीन की कमी से होने वाले रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- डेंटल फ्लोरोसिस
- कंकाल फ्लोरोसिस।
RBSE Class 11 Home Science Chapter 14 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वसा में घुलनशील विटामिन एवं जल में घुलनशील विटामिन में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
वसा में घुलनशील एवं जल में घुलनशील विटामिन में अन्तरवसा में घुलनशील विटामिन जल में घुलनशील विटामिन ये वसा तथा वसीय विलयनों में विलेय हैं।
प्रश्न 2.
विटामिन ‘ए’ की अधिकता के प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
विटामिन ए की अधिकता के प्रभाव:
- भख में कमी
- जोड़ों में दर्द
- आँख की रेटिना में रक्त स्राव
- यकृत के आकार में वृद्धि होना
- पैर की हडिडयों में सूजन
- सिर दर्द एवं चिड़चिड़ापन
- साँस लेने में कठिनाई
- बालों का झड़ना
- होठों पर फुसियाँ व छाले।
प्रश्न 3.
विटामिन ‘ए’ की कमी के उपचार तथा विटामिन ‘ए’ की प्राप्ति के स्रोत बताइए।
उत्तर:
विटामिन ‘ए’ की कमी के प्रभाव के उपचार:
यदि विटामिन ‘ए’ की कमी हो तो 100 Mg विटामिन ‘ए’ 10 दिनों तक दिया जाना चाहिए। परन्तु यदि अत्यधिक कमी हो तो 500 Mg तक विटामिन ‘ए’ लगातार कुछ सप्ताह तक दी जानी चाहिए। विटामिन ‘ए’ की प्राप्ति के स्रोत-विटामिन ‘ए’ प्रमुख रूप से मछलियों के यकृत के तेल में उपस्थित रहता है। अन्य जन्तु भोज्य पदार्थ; जैसे – यकृत, अण्डा, मक्खन, दूध आदि से भी विटामिन ‘ए’ प्राप्त होता है। वनस्पति भोज्य पदार्थों; जैसे-चौलाई, धनिया पत्ता, गाजर, सहजन के पत्ते, पुदीना, पालक आदि में भी विटामिन ‘ए’ उपस्थित होता है।
प्रश्न 4.
विटामिन ‘डी’ के प्रकारों को समझाइए।
उत्तर:
विटामिन ‘डी’ वसा में घुलनशील दूसरा महत्त्वपूर्ण विटामिन है। इसे अस्थि विकृति नाशक विटामिन भी कहते हैं। रिकेट्स प्रतिरोधक पदार्थों तथा स्टीरॉल्स यौगिकों को ही सम्मिलित रूप से विटामिन ‘डी’ कहते हैं।
- विटामिन डी2 – इसे अर्गोस्टीरॉल या प्रोविटामिन ‘डी’ भी कहते हैं। यह सूर्य की पराबैंगनी किरणों की क्रिया से कैल्सीफैराल बनाता है। यह फफूंदी एवं खमीर में पाया जाता है।
- विटामिन डी3 – इसे 7- डीहाइड्रोकोलेस्ट्रॉल भी कहते हैं। मनुष्य की त्वचा के नीचे 7- डीहाइड्रोकोलेस्ट्रॉल उपस्थित होता है जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों के सम्पर्क में आकर विटामिन ‘डी’ के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
प्रश्न 5.
विटामिन ‘डी’ की अधिकता के प्रभाव तथा इसकी प्राप्ति के स्रोत लिखिए।
उत्तर:
विटामिन ‘डी’ की अधिकता के प्रभाव-विटामिन ‘डी’ की अधिकता से भूख कम हो जाती है, जी मिचलाने लगता है, उल्टियाँ होने लगती हैं, प्यास बढ़ जाती है तथा बहुमूत्रता हो जाती हैं। बच्चा बहुत सुस्त व कमजोर हो जाता है, माँसपेशियों का क्षय होने लगता है। विटामिन ‘डी’ की कमी न होने पर कैल्शियम धमनियों, गुर्दो तथा फेफड़ों में जमा होने लगता है, जिससे मृत्यु भी हो सकती है।
प्रश्न 6.
विटामिन ‘ई’ की खोज किस प्रकार हुई? इसके प्रकार लिखिए।
उत्तर:
विटामिन ‘ई’:
सन् 1922 ई. में ईवान्स तथा विशप ने चूहों पर प्रयोग करके बताया कि वसा में घुलनशील एक विशेष तत्त्व चूहों में प्रजनन क्रिया के लिए आवश्यक है। इस तत्त्व को विटामिन ‘ई’ नाम दिया गया जो सन्तानोत्पत्ति में विशेष रूप से सहायक होता है। इसलिए इसे बाँझपन विरोधक विटामिन भी कहते हैं। रासायनिक संरचना के अनुरूप इसका नाम बीटा (β) टोकोफेरॉल कहा गया।
विटामिन ‘ई’ के प्रकार:
विटामिन ‘ई’ के मुख्यत: दो प्रकार हैं –
- टोकोफेरॉल
- टोकीट्रीनौल।
दोनों प्रकारों में से टोकोफेरॉल अत्यधिक क्रियाशील होता है।यह भी तीन प्रकार का होता है – एल्फा (α), बीटा (β), तथा गामा (γ)।
प्रश्न 7.
विटामिन ‘के’ की खोज किसने की? विटामिन ‘के’ के प्रकार बताइए।
उत्तर:
विटामिन ‘के’-इसकी खोज सर्वप्रथम डॉ. डैम ने की थी। उन्होने सन् 1934 ई. में मुर्गी के चूजों पर किए गए प्रयोगों के आधार पर बताया कि विटामिन ‘के’ उनमें रक्त के बहने को रोककर, रक्त का थक्का जमाने में सहायक है। इस विटामिन को रक्तस्राव प्रतिरोधी विटामिन भी कहते हैं।
विटामिन K के प्रकार:
यह मुख्यत: दो प्रकार का होता है –
- विटामिन K1,- यह हरी पत्तेदार सब्जियों में पाया जाता है। इसे फाइलोक्वीनोन भी कहते हैं।
- विटामिन K2, – यह सड़ी-गली मछलियों से प्राप्त होता है। इसे फ्रैन्क्वीनोन भी कहते हैं।
प्रश्न 8.
विटामिन ‘K’ की कमी के प्रभाव तथा अधिकता के परिणाम बताइए।
उत्तर:
विटामिन ‘K’ की कमी के प्रभाव:
विटामिन ‘K’ की कमी से रक्त में प्रौधोम्बिन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे रक्त का थक्का बनने का समय बढ़ जाता है। इस कारण रक्त स्राव काफी हो जाता है। बाहरी या आंतरिक चोट लगने पर रक्त का थक्का नहीं बन पाता है, जिसके कारण रक्त अवरुद्ध नहीं हो पाता। यह स्थिति हेमेज कहलाती है। विटामिन ‘K’ की अधिकता के परिणाम – विटामिन ‘K’ की अधिकता से लाल रक्त कणिकाएँ टूटने लगती हैं, जिसके करण हीमोलाइटिक रक्ताल्पता हो जाती है। इसके कारण जी मिचलाना, उल्टी होना, चक्कर आना, त्वचा पीली हो जाना, आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
प्रश्न 9.
विटामिन ‘K’ की प्राप्ति के स्रोत बताइए।
उत्तर:
विटामिन ‘K’ विभिन्न वनस्पति भोज्य पदार्थों में उपस्थित रहता है। हमारी आँतों में कुछ बैक्टीरिया भी विटामिन ‘K’ का निर्माण करते हैं। वनस्पति भोज्य पदार्थों में हरी पत्तियों वाली सब्जियाँ विशेष रूप से इसकी प्राप्ति के स्रोत हैं। यह अनाजों, दालों, अंडा, दूध, मांस तथा मछली में प्रचुरता में मिलता है।
प्रश्न 10.
विटामिन-C की प्राप्ति के स्रोत बताइए।
उत्तर:
आँवला एवं अमरूद विटामिन ‘C’ की प्राप्ति के उत्कृष्ट साधन हैं। सभी खट्टे-रसीले फलों; जैसे-नींब, संतरा, अनन्नास, आम, पपीता तथा सब्जियों; जैसे – टमाटर, चौलाई, बंदगोभी, धनिया पत्ता, सहजन की पत्तियाँ, मूली की पत्तियों आदि में विटामिन-C प्रचुरता में पाया जाता है। अंकुरित दालों एवं अनाजों में इसकी मात्रा बढ़ जाती है।
प्रश्न 11.
राइबोफ्लोविन के कार्य समझाइए।
उत्तर:
राइबोफ्लोविन के कार्य –
- राइबोफ्लेविन, कार्बोहाइड्रेट, वसा व प्रोटीन के चपापचय में सहायक एन्जाइम के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह इन्सुलिन हार्मोन की सक्रियता के लिए अतिआवश्यक है।
- त्वचा को सुन्दर, कांतिमय, आकर्षक, सजल एवं चमकदार बनाए रखने में राइबोफ्लेविन महत्त्वपूर्ण है।
- राइबोफ्लेविन आँखों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसके अभाव से नेत्रों की रक्त कोशिकाओं में घाव हो जाता है।
- राइबोफ्लेविन शरीर के कोषों का भरण पोषण करता है तथा इनकी भीतरी शक्ति की विमुक्ति के लिए भी आवश्यक है।
प्रश्न 12.
राइबोफ्लेविन की कमी के प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
राइबोफ्लेविन की कमी के प्रभाव –
1. इस की कमी से चेहरे की त्वचा, आँखों एवं नाड़ी संस्थान पर प्रभाव पड़ता है। त्वचा लाल हो जाती है तथा घाव हो जाते हैं। होठों के किनारों में घाव हो जाते हैं, जिनसे रक्त निकलने लगता है।
इसे ‘एनयुलर स्टोमैटाइटिस’ कहते हैं। होठों के किनारे फटने लगते हैं इसे ‘चिलोसिस’ कहा जाता है। जीभ पर छाले पड़ जाते है। जीभ का रंग स्वाभाविक न रहकर कुछ बैंगनी सा हो जाता है, इसे ‘ग्लोसिट्स’ कहते हैं।
2. राइबोफ्लेविन की कमी से आँखें प्रभावित होती हैं, आँखों द्वारा रोशनी सह – पाने की क्षमता क्षीण हो जाती है। आँखों से चिपचिपा पदार्थ निकलने लगता है। समय पर उपचार न होने से आँखों की रोशनी सदा के लिए जा सकती है।
3. शारीरिक वृद्धि रुक जाती है। भूख नहीं लगती। पाचनशक्ति क्षीण हो जाती है।
4. राइबोफ्लेविन की कमी से पुरुषों के अंडकोषों पर घाव हो जाते है।
प्रश्न 13.
राइबोफ्लेविन तथा नियासिन की प्राप्ति के स्रोत बताइए।
उत्तर:
राइबोफ्लेविन की प्राप्ति के स्रोत:
राइबोफ्लेविन की मात्रा भेजन में बहुत कम होती है इसके प्रमुख स्रोत यकृत, सूखा खमीर, दूध, अण्डा, मांस, मछली, साबुत अनाज, दालें तथा हरी पत्ती वाली सब्जियाँ हैं।
प्रश्न 14.
विटामिन B3 के कार्य लिखिए।
उत्तर:
विटामिन B3 या नियासिन को पैलाग्रा विरोधक विटामिन भी कहते हैं। इसके कार्य निम्नलिखित हैं –
- नियासिन, कार्बोज, वसा एवं प्रोटीन के चपापचय में महत्त्वपूर्ण होता है।
- यह नाड़ी संस्थान को स्वस्थ रखने में सहायक होता है।
- यह विटामिन ‘ए’ को रेटीनॉल में परिवर्तित करने में सहायक होता है।
- यहा शारीरिक वृद्धि में सहायक होता है।
- त्वचा को स्वस्थ एवं कांतिमय बनाने में सहायक होता है।
प्रश्न 15.
विटामिन B12 के कार्य लिखिए।
उत्तर:
विटामिन B12:
यह B समूह का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विटामिन है। इसमें कोबाल्ट नामक महत्त्वपूर्ण खनिज होता है जिसकी उपस्थिति के कारण इससे साएनोकोबालेमिन भी कहते हैं। विटामिन B12 के प्रमुख कार्य अग्रलिखित हैं –
- यह एक को-एन्जाइम की तरह कार्य करता है।
- यह RBCs की परिपक्वता के लिए आवश्यक है।
- यह कार्बोज, वसा व प्रोटीन के उपापचय में सक्रिय भूमिका निभाता है।
- यह भूख को बढ़ाता है तथा वसा को यकृत में संग्रहित होने से बचाता है।
- नाड़ी ऊतक में होने वाले चपापचय में सहायक होता है।
प्रश्न 16.
विटामिन B12, की कमी के प्रभाव बताइए। पर्निसियस रक्ताल्पता के लक्षण लिखिए।
उत्तर:
विटामिन B12 की कमी के प्रभाव – विटामिन B12, की कमी से पर्निसियस रक्ताल्पता नामक रोग हो जाता है। जब आमाशयक रस में पर्याप्त मात्रा में अन्तः कारक तत्त्व उपस्थित नहीं होता है तब विटामिन B12, का अवशोषण ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है। फलतः शरीर में इस विटामिन की कमी हो जाती है।
पर्निसियस रक्ताल्पता के लक्षण:
- मुँह में छाले होना।
- आमाशयक एन्जाइम व रस स्रावित करने वाली कोशिकाओं का क्षीण होना।
- अस्थिमज्जा के स्वरूप में परिवर्तन होना।
- RBCs की संख्या कम होना।
- हीमोग्लोबिन की कमी होना।
- त्वचा पीली पड़ना एवं नाड़ी विकार उत्पन्न होना।
प्रश्न 17.
विटामिन B12 की प्राप्ति के स्रोत लिखिए।
उत्तर:
विटामिन B,, की प्राप्ति के स्रोत-विटामिन BI, केवल प्राणिज भोज्य पदार्थों में ही पाया जाता है। वनस्पतिज भोज्य पदार्थों में यह बिलकुल भी नहीं होता है। भेड़, बकरी, सुअर, बैल आदि के यकृत इसके उत्कृष्ट स्रोत हैं। माँस, मछली, अंडा, वृक्क आदि में इसकी प्रचुरता रहती है। यह दूध में भी पाया जाता है।
प्रश्न 18.
फोलिक अम्ल की कमी के प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
फोलिक अम्ल की कमी के प्रभाव-फोलिक अम्ल की कमी होने पर रुधिर में लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण कम होने लगता है जिससे रक्त में इनकी संख्या बहुत कम हो जाती है। इसे मैगालोब्लास्टिक रक्ताल्पता कहते हैं। इस स्थिति में रक्त में हीमोग्लोबिन की प्रतिशत मात्रा अत्यन्त कम हो जाती है तथा लाल रक्त कणिकाओं की संख्या बहुत कम हो जाती है।
प्रश्न 19.
फोलिक अम्ल की अधिकता के प्रभाव लिखिए। इसकी प्राप्ति के स्रोत भी बताइए।
उत्तर:
फोलिक अम्ल की अधिकता के प्रभाव-फोलिक अम्ल जल में आंशिक घुलनशील होता है। फोलिक अम्ल के अधिक सेवन से इसका निष्कासन मूत्र द्वारा नहीं हो पाता है। जिसके कारण वृक्क नलिकाओं में रवे के रूप में इकट्ठा हो जाता है जिससे वृक्क में पथरी जम जाती है।
प्राप्ति के स्रोत: फोलिक अम्ल प्रमुख रूप से सूखे खमीर, यकृत, गेहूँ का भ्रूण, चावल की ऊपरी परत, साबुत अनाज, दाल व हरी सब्जियों में पाया जाता है।
प्रश्न 20.
कैल्सियम की कमी के प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
कैल्सियम की कमी के प्रभाव –
- कैल्सियम की कमी से वृद्धि रुक जाती है। अस्थियों में कैल्सीफिकेशन की क्रिया नहीं हो पाती है। अस्थियाँ कमजोर – एवं दुर्बल हो जाती हैं और उनमें विकृति आ जाती है। इसे रिकेट्स कहते हैं।
- प्रौढ़ावस्था में कैल्सियम की कमी से ‘ऑस्टोमलेशिया’ रोग हो जाता है जिसमें शरीर की अस्थियों से कैल्सियम का विसर्जन अधिक होने लगता है। फलस्वरूप थोड़ी सी चोट से भी अस्थि भंग हो जाता है।
- गर्भावस्था में कैल्सियम की कमी होने से गर्भस्थ शिशु माता के शरीर से ही कैल्सियम ग्रहण करने लगता है अत: गर्भवती महिला की श्रोणिमेखला संकुचित हो जाती है।
- वृद्धावस्था में कैल्सियम की कमी से हड्डियाँ कमजोर होकर टूटने लगती हैं जिसे ऑस्टोपोरोसिस कहते हैं।
प्रश्न 21.
कैल्सियम की अधिकता के प्रभाव तथा कैल्सियम की प्राप्ति के स्रोत लिखिए।
उत्तर:
कैल्सियम की अधिकता के प्रभाव-शरीर में कैल्सियम की अधिकता “हाइपर-कैल्सिमिया” कहलाती है। कैल्सियम की अधिकता बच्चों व प्रौढ़ व्यक्तियों दोनों में ही हो सकती है। इसमें भूख कम हो जाती है, वमन होती है तथा माँसपेशियाँ ढीली पढ़ जाती हैं। रक्त में कैल्सियम की मात्रा बढ़ जाती है। साथ ही रक्त में यूरिया, प्लाज्मा, कोलेस्ट्रॉल भी बढ़ जाते हैं। कैल्सियम की प्राप्ति के स्त्रोत-दुग्ध एवं सभी दुग्ध उत्पाद कैल्सियम प्राप्ति के स्रोत हैं। कैल्सियम की प्राप्ति के अन्य स्रोत हरी पत्ते वाली सब्जियाँ, फूल-गोभी, हरी सरसों, दाल एवं सूखे मेवे हैं।
RBSE Class 11 Home Science Chapter 14 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विटामिन का ऐतिहासिक विवरण दीजिए।
उत्तर:
19वीं सदी के पूर्व तक वैज्ञानिकों को पौष्टिक तत्त्वों के केवल कार्बोज, प्रोटीन, वसा तथा खनिज लवणों के बारे में ही जानकारी थी। 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कुछ वैज्ञानिकों द्वारा कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन व खनिज लवण के कृत्रिम मिश्रण से भोजन तैयार कर चूहों पर प्रयोग किए गए और देखा गया कि इस कृत्रिम भोजन से चूहों की वृद्धि रुक जाती है। इससे निष्कर्ष निकला कि प्राकृतिक भोजन में इन चार तत्त्वों के अतिरिक्त कुछ और तत्त्व हैं जो शरीर की वृद्धि के लिए आवश्यक हैं।
विटामिन शब्द केशीमियर फंक (Casimir Funk) द्वारा 1912 में दिया गया था। चावल के ऊपरी खोल से प्राप्त तत्त्व से बेरी-बेरी की स्थिति ठीक हो जाती है, यह खोजते हुए उन्होंने आइजेक मैन (Eijekmane) की कल्पना की पुष्टि की कि यह बीमारी किसी खाद्य तत्त्व की कमी से होती है। यह तत्त्व शरीर के लिए आवश्यक समझा गया तथा बेरी-बेरी विरोधी तत्त्व में नाइट्रोजन पाया गया। इस प्रकार इसे विटामिन नाम दिया गया। लेकिन बाद में कई विटामिनों में नाइट्रोजन नहीं पाये जाने के कारण अन्तिम ‘e’ को हटाकर इसका नाम Vitamin हो गया।
प्रश्न 2.
विटामिन ‘ए’ का संक्षिप्त विवरण देते हुए इसके प्रकार बताइए।
उत्तर:
विटामिन ‘ए’-वसा में घुलनशील विटामिन ‘ए’ की खोज सबसे पहले हुई। यह केवल प्राणिज भोज्य पदार्थों में पाया जाता है। वनस्पतिज भोज्य पदार्थों में कैरोटिनॉइड्स होता है, जो शरीर में जाकर विटामिन ‘ए’ में परिवर्तित हो जाता है। इसलिए कैरोटिनाइड्स को प्रोविटामिन ‘ए’ भी कहते हैं। विटामिन A के प्रकार-विटामिन ‘ए’ मुख्यत: चार प्रकार के होते हैं। कई भोज्य पदार्थों में एक से अधिक प्रकार के विटामिन A पाए जाते हैं।
- विटामिन A रेटिनोल – यह केवल प्राणिज भोज्य पदार्थों में पाया जाता है।
- विटामिन A एल्डिहाइड – यह आँखों के रेटिना के रॉड्स एवं शंकु में उपस्थित रोडोप्सिन तथा आइडोप्सिन पिगमेंट में उपस्थित रहता है और आँखों की स्वस्थ दृष्टि में सहायक होता है।
- विटामिन A रेटीनॉइक अम्ल – इसका निर्माण शरीर में होता है तथा यह शारीरिक वृद्धि एवं विकास के लिए नितांत आवश्यक है।
- विटामिन A2 – यह केवल ताजे पानी में पायी जाने वाली मछलियों के यकृत में पाया जाता है। क्रियाशीलता में यह विटामिन बहुत कम सक्रिय है।
- βकैरोटीन (B-Carotene) – यह वनस्पतिज भोज्य पदार्थों में पाया जाता है। यह गहरे लाल रंग का रवेदार पदार्थ होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह अत्यंत उपयोगी एवं लाभकारी है। शरीर में पहुँचकर यह विटामिन A में परिवर्तित हो जाता है।
प्रश्न 3.
विटामिन A की कमी के प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
विटामिन A की कमी के प्रभाव – विटामिन A की कमी से निम्नलिखित व्याधियाँ उत्पन्न हो जाती हैं –
1. रतौंधी:
यह आँखों का रोग है। इसके लक्षण विटामिन A की हीनता होने के प्रारम्भ में ही परिलक्षित होने शुरू हो जाते हैं। इस रोग में कम प्रकाश में ठीक तरह देखने की क्षमता नहीं होती, विशेष रूप से जब उजाले से अंधेरे में जाया जाये या तेज धूप से कमरे में आया जाए।
2. जैरोफ्थेलमिया:
जब विटामिन A की हीनता बहुत अधिक समय तक तथा बहुत तीव्रता में होती है तो यह रोग हो जाता है। इसमें आँख की कॉर्निया झिल्ली सूख जाती है तथा सूजन आ जाती है। इसका कारण कार्निया में कैरोटिनाइजेशन क्रिया है। इसके कारण कॉर्निया का भीतरी भाग धुंए युक्त बादल की तरह दिखाई देने लगता है। धीरे-धीरे आँख की रोशनी समाप्त हो जाती है।
3. बिटाँट का धब्बा:
इसमें कंजक्टाइवा एपीथीलियम पर सलेटी सफेद रंग का तिकोना धब्बा आ जाता है।
4. जैरोसिस कंजक्टाइवा:
विटामिन-A की कमी से कन्जक्टाइवा सूखकर मोटी हो जाती है। इन पर झुर्रियाँ पड़ जाती हैं। कभी-कभी इन पर घाव भी हो जाते हैं। 5. जैरोसिस कॉर्निया–इसमें अश्रु ग्रन्थियाँ सूख जाती हैं जिससे आँसुओं का निकलना बन्द हो जाता है।
6. कैरेटोमलेशिया:
आँखों से संबंधित विभिन्न रोगों की अन्तिम अवस्था कैरेटोमलेशिया होती है। इसमें कॉर्निया बहुत कोमल हो जाता है, उस पर घाव हो जाते हैं तथा बैक्टीरिया आक्रमण कर देते हैं जिसका परिणाम पूर्ण रूप से आँख की दृष्टि समाप्त होना अर्थात् अन्धा होना है।
7. फ्राइनोडर्मा:
विटामिन A के अभाव में त्वचा की स्वेद ग्रन्थियाँ ठीक प्रकार से कार्य नहीं करती हैं, जिसके कारण पसीना नहीं निकलता है तथा त्वचा सूखी, रुक्ष, कठोर एवं खुरदरी हो जाती हैं।
8. शारीरिक वृद्धि में रुकावट:
लम्बे समय तक विटामिन – A के अभाव में अस्थियों की वृद्धि एवं विकास ठीक से नहीं हो पाता है।
9. प्रजनन शक्ति क्षीण होना:
विटामिन A.की कमी से पुरुषों की जननेन्द्रयों पर प्रभाव पड़ता है। यौन हार्मोन का स्रावण कम होता है। शुक्राणु कम मात्रा में बनते हैं।
प्रश्न 4.
विटामिन D के कार्य समझाइए।
उत्तर:
विटामिन D के कार्य –
1. विटामिन – D की रक्त में एल्केलाइन फॉस्फेट्स एन्जाइम की मात्रा को नियंत्रित करता है जो कि हडिडयों द्वारा कैल्सियम तथा फास्फोरस की अवशोषण दर बढ़ाने में सहायक है। इसके अभाव में इन दोनों ही खनिज लवणों का अवशोषण नहीं हो पाता है, अत: अधिकांश कैल्सियम तथा फास्फोरस बिना अवशोषित हुए ही शरीर से बाहर निकल जाता है। इससे दाँतों एवं अस्थियों का विकास ठीक से नहीं हो पाता है।
2. विटामिन – D द्वारा रक्त में कैल्सियम तथा फास्फोरस की मात्रा नियंत्रित होती है। जब इन दोनों लवण की मात्रा रक्त में कम होती है तब यह दोनों लवण हड्डियों से निकलकर रक्त में मिल जाते हैं। इस प्रकार रक्त में कैल्सियम तथा फास्फोरस का स्तर बना रहता है।
3. विटामिन – D शारीरिक वृद्धि एवं विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
4. विटामिन – D पैराथारॉइड ग्रन्थि से निकलने वाले हार्मोन को नियंत्रित एवं नियमित करता है।
5. विटामिन – D छोटी आंत के म्यूकोसा में प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया में सहायता करता है।
प्रश्न 5.
विटामिन-D की कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शरीर में विटामिन – D की कमी के कारण रक्त में एल्केलाइन फास्फेटेज की मात्रा बढ़ जाती है। इसकी कमी के द्वारा कैल्सियम व फास्फोरस का ठीक तरह अवशोषण नहीं हो पाता है अतः हडिडयाँ एवं दाँत कमजोर हो जाते हैं।
विटामिन – D की कमी के कारण निम्न बीमारियाँ हो जाती हैं –
1. रिकेट्स – यह अधिकांशत: बच्चों को प्रभावित करता है। इसमें विटामिन – D, कैल्सियम तथा फास्फोरस की काफी कमी हो जाती है। यह रोग ऐसे स्थानों पर अधिक होता है, जहाँ अत्यधिक भीड़-भाड़, अत्यधिक धुआँ एवं औद्योगिक स्थान होते हैं और सूर्य का प्रकाश कम प्राप्त होता है।
2. माँसपेशीय मरोड़ – विटामिन D की कमी से कैल्सियम तथा फास्फोरस के चपापचय में असमानताएँ उत्पन्न हो जाती है तब माँसपेशीय मरोड़ रोग हो जाता है।
3. दाँतों का सड़ना – विटामिन-D के अभाव में बच्चों में समय पर दाँत नहीं उगते। दाँतों के डेन्टीन तथा इनेमल भाग में कैल्सियम फास्फेट का जमाव नहीं हो पाता है। स्वस्थय दाँत का निर्माण नहीं हो पाता है।
4. अस्थि मृदलता (आस्टोमलेशिया) – इसे प्रौढ़ रिकेट्स भी कहते हैं। इस रोग में विटामिन D अथवा कैल्सियम की कमी से अस्थियों में कैल्सीफिकेशन की क्रिया ठीक से नहीं हो पाती है। यह रोग विशेष रूप से गर्भवती तथा दुग्ध पान कराने वाली स्त्रियों में हो जाता है जो मुख्यत: वनस्पति आहार लेती हैं तथा घर के अन्दर पर्दे में रहता हैं। इसमें भी अस्थियाँ कोमल हो जाती है और झुक जाती है। अस्थि भंग की संभावना बढ़ जाती है।
प्रश्न 6.
विटामिन D की कमी के प्रभावों की रूपरेखा दीजिए।
उत्तर:
विटामिन D की कमी के प्रभाव
प्रश्न 7.
विटामिन E के कार्य समझाइए।
उत्तर:
विटामिन E के कार्य –
- विटामिन E मे ऑक्सी-प्रतिरोधक गुण होता है, इसलिए यह आँतों में कैरोटीन तथा विटामिन-A के ऑक्सीकरण को रोकता है। इस प्रकार यह कैरोटीन और विटामिन-A को नष्ट होने से बचाता है।
- विटामिन E लाल रक्त कणिकाओं के निर्माण मे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह लाल रक्त कणिकाओं को ऑक्सीकारक पदार्थों द्वारा टूटने-फूटने से बचाता है। इस तरह यह लाल रक्त कणिकाओं की जीवन अवधि बढ़ाता है।
- यह कोशिकीय आवरणों की रचनात्मक एकता बनाए रखने में सहायता करता है।
- विटामिन-E सामान्य प्रजनन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- विटामिन E न्यूक्लिक अम्ल तथा प्रोटीन के चपापचय मे महत्त्वपूर्ण होता है तथा यह हीम प्रोटीन के संश्लेषण में सहायक होता है।
- विटामिन E यकृत को विभिन्न विषैले पदार्थों से सुरक्षा प्रदान करता है।
प्रश्न 8.
विटामिन E की कमी के प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
विटामिन E की कमी के प्रभाव:
1. प्रजनन क्षमता में कमी-विटामिन E की कमी से प्रजनन अंग ठीक प्रकार से कार्य नहीं करते हैं। यौन हार्मोन्स के स्रावण में असंतुलन एवं गड़बड़ियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। स्त्रियों के शरीर में भ्रूण गर्भावस्था में ही मर जाता है तथा पुरुषों में शुक्राणु उत्पन्न करने वाली कोशिकाओं का नाश होने लगता है।
2. यकृत का नेक्रोसिस:
विटामिन E यकृत की विषैले तथा अन्य हानिकारक पदार्थों से सुरक्षा करता है। जब शरीर में विटामिन E की कमी हो जाती है तब यकृत में विषैले तत्त्वों का जमाव होने लगता है जिससे धीरे-धीरे यकृत की कोशिकाएँ नष्ट होने लगती हैं।
3. एरिथ्रोसाइट हीमोलाइसिस:
विटामिन E की हीनता से लाल रक्त कणिकाएँ जल्दी-जल्दी टूटती रहती हैं। अस्थि मज्जा लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण भी शीघ्रता से नहीं कर पाता है। अतः रक्तहीनता हो जाती है।
4. मांसपेशीय ऐंठन:
विटामिन E की कमी से शरीर की पेशियों में कमजोरी हो जाती है तथा अनावश्यक संकुचन होने लगता है।
प्रश्न 9.
विटामिन-K के कार्य बताइए।
अथवा
रुधिर का थक्का बनाने में विटामिन K की भूमिका बताइए।
उत्तर:
विटामिन K का मुख्य कार्य शरीर में चोट लगने रक्त बहने वाले स्थान पर रुधिर का थक्का जमाकर रक्त को रोकना है। यह रक्त के एक तत्त्व प्रोथ्रोम्बिन के निर्माण में सहायक होता है। प्रोथ्रोम्बिन, थ्रोम्बिन में परिवर्तित होकर फाइब्रिन बनाता है जिसके कारण रुधिर का थक्का बनता है। रक्त में उपस्थित बिम्बाणु (Platelets) तथा कुछ रुधिर कारक क्षतिग्रस्त ऊतकों से मिलकर थ्रोम्बोप्लास्टिन बनाते हैं। ये रुधिर कारक कैल्सियम आयन तथा रुधिर प्लाज्मा से मिलकर क्रिया करते हैं और प्रोथ्रोम्बिन को सक्रिय करते हैं।
सक्रिय प्रौथ्रोम्बिन कुछ रुधिर कारकों के साथ मिलकर रासायनिक क्रिया करता है तो एक नवीन पदार्थ का निर्माण होता है जिसे थ्रोम्बिन कहते हैं रूधिर प्लाज्मा में फाइब्रिनोजन नामक एक घुलनशील प्रोटीन होता है। जो थ्रोम्बिन से मिलकर रासायनिक क्रिया करता है और फाइब्रिनोजन को एक अघुलनशील प्रोटीन फाइब्रिन में बदल देता है। इसमें ही रक्त कणिकाएँ फँस जाती हैं तथा रक्त जम जाता है। विटामिन K के अभाव में प्रौथ्रोम्बिन का निर्माण नहीं होता है। अत: रक्त का थक्का बनाने की क्रिया सम्पन्न नहीं हो पाती है।
प्रश्न 10.
विटामिन-C के विभिन्न कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विटामिन-C या एस्कार्बिक अम्ल:
इसकी खोज स्कर्वी रोग का उपचार व कारण ढूंढ़ते हुए हुई। यह सफेद क्रिस्टलीय, पानी में घुलनशील विटामिन है। यह अतिशीघ्र ही ऑक्सीकृत हो जाता है, विशेष रूप से क्षार, ताप, प्रकाश व ताँबा धातु की उपस्थित में।
कार्य:
- विटामिन-C, अंत: कोशिकीय पदार्थ तथा कोलेजन का निर्माण करता है जो विभिन्न कोशिकाओं को ऊतकों, जैसे—कोशिकाएँ, अस्थि, दाँत बन्धक ऊतकों को जोड़ने के काम आता है।
- यह फैरिक लवण को फेरस लवण में परिवर्तित करता है। जिससे यह पाचन नाल द्वारा अवशोषित हो जाता है।
- यह शरीर में कई चपापचयी क्रियाओं को सम्पन्न करने में एन्जाइम की भाँति कार्य करता है।
- यह अस्थियों की स्वास्थ्य वृद्धि, विकास एवं निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है। इस विटामिन की हीनता से अस्थियों में परिवर्तन आ जाता है। क्योंकि अस्थि मैट्रिक्स तथा संयोजक पदार्थों का निर्माण ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है।
- यह एक महत्त्वपूर्ण एन्टीऑक्सीडेन्ट के रूप में कार्य करता है। यह श्वेत रक्त कणिकाओं की क्रियाशीलता को बनाए रखने में मदद करता है तथा शरीर को रोगों के संक्रमण से बचाता है।
- यह रक्तवाहनियों को स्वस्थ रखने में सहायक है तथा उनकी दीवारों को मजबूती व दृढ़ता प्रदान करता है।
- यह द्वारा कोलेजन का निर्माण होता है जो घावों को शीघ्र भरने में मदद करता है।
- यह संक्रमण की स्थिति में; जैसे – तपैदिक, निमोनिया आदि में शारीरिक कोशिकाओं को नष्ट होने से बचाए रखता है। इस प्रकार यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
प्रश्न 11.
विटामिन-C की कमी के प्रभाव लिखिए।
अथवा
स्कर्वी रोग क्या होता है? इसके कारण व रोग के लक्षण लिखिए।
उत्तर:
विटामिन – C की कमी के प्रभावशरीर में लम्बे समय तक विटामिन-C की कमी रहने से स्कर्वी रोग हो जाता है। स्कर्वी रोग मुख्यत: दो प्रकार का होता है –
1. वयस्कों में स्कर्वी-वयस्कों में यह रोग लम्बे समय तक विटामिन-C रहित आहार लेने से होता है।
लक्षण:
- वजन में कमी एवं शारीरिक कमजोरी होना।
- लौह तत्त्व का अवशोषण ठीक प्रकार से न होना जिससे रक्ताल्पता रोग हो जाता है।
- त्वचा सूखी, खुरदरी, पीली, चमकहीन हो जाती है।
- मसूड़े सूख जाते हैं तथा दाँत कमजोर होकर गिरने लगते हैं।
- शरीर मांसपेशियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं।
2. बच्चों में स्कर्वी-बच्चों में विटामिन-C की कमी से यह रोग होता है। यह रोग छ: माह से कम उम्र के शिशुओं में –
नहीं होता है। यह 6-12 माह के शिशुओं में अधिक होता है। बच्चों में यह अत्यन्त ही खतरनाक होता है।
लक्षण:
- बच्चे चिड़चिड़े, आलसी एवं सुस्त हो जाते हैं।
- पैरों में सूजन आ जाती है तथा दर्द रहने लगता है।
- रक्त वाहनियों की दीवारें फट जाती हैं।
- घाव जल्दी नहीं भरते हैं।
- मसूड़े सूज जाते हैं, मुंह से बदबू आने लगती है।
- छाती के सामने की हड्डी अन्दर की ओर धंस जाती है।
- साँस लेने में कठिनाई होने लगती है, शरीर नीला पड़ जाता है, शरीर में ऐंठन होने लगती है तथा बच्चे की मृत्यु हो जाती है।
प्रश्न 12.
विटामिन B, अर्थात् थायमिन का विवरण देते हुए इसके कार्य लिखिए।
उत्तर:
विटामिन.B, (थायमिन)-इस विटामिन की खोज बेरी-बेरी रोग का उपचार करते हुए हुई। यह रोग अधिकांशत: उन क्षेत्रों में अधिक होता है जहाँ पॉलिश किए हुए चावलों का मुख्य रूप से सेवन होता है। थायमिन पानी में तेजी से घुल जाता है। अम्लीय माध्यम में यह स्थिर रहता है तथा क्षारीय माध्यम में यह कमरे के तापक्रम पर ही नष्ट हो जाता है। भोजन में खाने का सोडा प्रयोग करने पर थायमिन नष्ट हो जाता है।
थायमिन के कार्य –
- शरीर में थायमिन, फास्फेट के साथ मिलकर थायमिन पाइरोफॉस्फेट बनाता है, जो कार्बोहाइड्रेट के चपापचय में सहायता करता है।
- थायमिन पाचन संस्थान की मांसपेशियों की गति को सामान्य रखकर पाचन क्रिया में सहायता करता है।
- विटामिन नाड़ियों की सामान्य स्थिति बनाए रखने में सहायक होता है।
- थायमिन डी.एन.ए तथा आर.एन.ए. के निर्माण में सहायता करता है।
- यह श्वेत रक्त कणिकाओं की रोगाणु-भक्षण क्षमता में वृद्धि करता है।
- शरीर के भीतरी अंगों का स्वास्थ्य एवं क्रियाशीलता बनाए रखने में थायमिन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 13.
शरीर में कैल्सियम की उपस्थिति तथा इसके कार्य लिखिए।
उत्तर:
शरीर में अन्य खनिज लवणों की अपेक्षा कैल्सियम की मात्रा सबसे अधिक रहती है। शरीर के कुल भार का 2 प्रतिशत कैल्सियम होता है। शरीर में कुल जमा कैल्सियम का 99 प्रतिशत भाग अस्थियों एवं दाँतों में उपस्थित रहता है तथा शेष 1 प्रतिशत कैल्सियम अन्य कोमल तन्तुओं, रक्त के सीरम तथा अन्य तरल पदार्थों में पाया जाता है।
कैल्सियम के कार्य:
1. अस्थियों एवं दाँतों का निर्माण – भ्रूण के विकास के दौरान ही भ्रूण में एक मजबूत परन्तु लचीला प्रोटीन मैट्रिक्स हडिडयों के निर्माण के लिए बनना प्रारम्भ हो जाता है। उम्र बढ़ने के साथ ही उपास्थि में कैल्सियम का जमाव होने लगता है और अधिकांश उपास्थियाँ, अस्थियों में बदल जाती हैं क्योंकि अस्थियों का मैट्रिक्स कैल्सियम फास्फोरस तथा अन्य खनिजों के कारण कड़ा हो जाता है। फलत: अस्थियाँ कठोर होने लगती हैं।
2. शारीरिक वृद्धि एवं विकास में-कैल्सियम की कमी का प्रभाव प्रोटीन पर पड़ता है। प्रोटीन शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए नितान्त आवश्यक है।
3. रक्त का थक्का बनाने में कैल्सियम रक्त जमाने की क्रिया में सहायक है।
थ्रोम्बोप्लास्टिन + कैल्सियम + विटामिन K + ट्रिप्टेन एन्जाइम = प्रोथ्रोम्बिन
प्रोथ्रोम्बिन + Ca++ + विटामिन K + रक्त कारक CV एवं VIII = थ्रोम्बिन
थ्रोम्बिन + फाइब्रिनोजन = फाइब्रिन ↑
फाइब्रिन + रक्त कणिकाएँ = रक्त का थक्का।
4. माँसपेशियों के संकुचन पर नियंत्रण – कैल्सियम माँसपेशियों के फैलने एवं सिकुड़ने की क्रिया को नियंत्रित कर उन्हें क्रियाशील बनाए रखने में सहयोग करता है।
5. हृदय – गति का संतुलन – हृदय की माँसपेशियों के लिए इन्हें आवृत किए तन्तुओं के तरल पदार्थों में पर्याप्त मात्रा में कैल्सियम का रहना आवश्यक होता है।
6. कई एन्जाइम को क्रियाशील बनाए रखने में कैल्सियम सहायता करता है।
7. कैल्सियम को कोशिका भित्तियों में से द्रव्यों के आने-जाने से नियंत्रित करता है।
प्रश्न 14.
शरीर में फास्फोरस की उपस्थित, इसके कार्य, कमी के प्रभाव तथा प्राप्ति का स्रोत बताइए।
उत्तर:
फास्फोरस:
कैल्सियम के बाद खनिज तत्त्वों में फास्फोरस की मात्रा अधिकतम होती है। हमारे शरीर के कुल भार का 1 प्रतिशत भाग फास्फोरस होता है। कुल फास्फोरस का 80 प्रतिशत भाग कैल्सियम के साथ मिलकर कैल्सियम फास्फेट बनाता है जिससे अस्थियाँ एवं दाँतों का निर्माण होता है।
फास्फोरस के कार्य –
- फास्फोरस, कैल्सियम के साथ मिलकर कैल्सियम फास्फेट बनाता है जो कि एक घुलनशील लवण होता है, जो अस्थियों एवं दाँतों के निर्माण में अहम् भूमिका निभाता है।
- यह न्यूक्लियोप्रोटीन एवं न्यूक्लिक अम्ल के निर्माण के लिए एक अतिआवश्यक खनिज लवण है।
- कार्बोज के चपापचय में फास्फोरस की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- फास्फोरस में अधिक हाइड्रोजन आयन्स के संयुक्त होने की क्षमता के कारण यह एक बफर की तरह कार्य करता है।
- फास्फोरस ऊर्जा उत्पादन की क्रिया में सहायक होता है।
- यह कोशिका निर्माण एवं इनके विकास में सहायक होता है।
- यह शरीर में कैल्सियम का अवशोषण बढ़ाता है।
फास्फोरस की कमी का प्रभाव:
फास्फोरस अधिकांश खाद्य पदार्थों में उन्मुक्त रूप से पाया जाता है अत: इसकी कमी के प्रभाव नहीं पाये जाते। परन्तु जो व्यक्ति अम्ल का अधिक उपयोग करते हैं, उनके शरीर में फास्फोरस की कमी हो जाती है। इसकी कमी से उत्पन्न लक्षण, थकान, भूख न लगना, हड्डियों का खनिज लवण विहीनीकरण होने लगता है।
फास्फोरस की प्राप्ति के स्रोत:
आहार जिसमें अच्छी मात्रा में कैल्सियम व प्रोटीन उपस्थित होंगे, उसमें फास्फोरस भी उपस्थित होगा। दूध, अण्डा, मांस, मछली, मुर्गी, आटा, तिल, जई का आटा आदि इसके उत्कृष्ट स्रोत हैं। अनाज दालें, सूखे मेवे, मटर, चना, चुकन्दर, बादाम आदि भी इसके अच्छे स्रोत हैं।
प्रश्न 15.
निम्नलिखित खनिजों के कार्य, कमी के प्रभाव तथा प्राप्ति के स्रोत लिखिए पोटेशियम, सोडियम, सल्फर, मैग्नीशियम तथा आयोडीन।
उत्तर:
खनिज लवण, इनके कार्य, कमी के प्रभाव एवं स्रोत- खनिज लवण.
प्रश्न 16.
निम्नलिखित खनिज लवणों के कार्य, कमी के प्रभाव तथा स्रोत लिखिएफ्लोरीन, ताँबा, जस्ता तथा मैंगनीज।
उत्तर:
खनिज लवण, इनके कार्य, कमी के प्रभाव तथा स्रोत