RBSE Solutions for Class 11 Physics Chapter 12 ऊष्मीय गुण
RBSE Solutions for Class 11 Physics Chapter 12 ऊष्मीय गुण
Rajasthan Board RBSE Class 11 Physics Chapter 12 ऊष्मीय गुण
RBSE Class 11 Physics Chapter 12 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 11 Physics Chapter 12 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
किस ताप पर डिग्री सेन्टीग्रेड व फॉरेनहाइट पैमाना बराबर होते हैं?
उत्तर:
वह ताप – 40° है, जिस पर फॉरेनहाइट तथा सेल्सियस पैमानों के पाठ्यांक समान होंगे।
प्रश्न 2.
विशिष्ट ऊष्मा की इकाई क्या होती है?
उत्तर:
विशिष्ट ऊष्मा का मात्रक SI पद्धति में JKg-1K-1 होता है। या Cal gm-1 K-1/cal mol-1K-1
प्रश्न 3.
किसी पदार्थ की तीन अवस्थाएँ (ठोस, द्रव व गैस) एक बिन्दु पर साम्यावस्था में हैं, वह बिन्दु क्या कहलाता है?
उत्तर:
त्रिक बिन्दु कहते हैं।
प्रश्न 4.
ऊष्मा संचरण की किस विधि के लिये माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है?
उत्तर:
विकिरण विधि के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है।
प्रश्न 5.
आदर्श कृष्णिका के लिये अवशोषण गुणांक शून्य होता है। यह कथन सत्य है अथ्वा असत्य?
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 6.
किरचॉफ के नियम अनुसार अच्छे अवशोषक होते हैं।
उत्तर:
अच्छे उत्सर्जक
प्रश्न 7.
वीन के विस्थापन नियम के अनुसार अधिकतम उत्सर्जन के लिये तरंगदैर्घ्य (λm) व परम ताप के गुणन का मान क्या होता है ?
उत्तर:
b = 2.9 × 10-3 mK
प्रश्न 8.
पूर्ण सूर्यग्रहण के समय फॉनहॉफर रेखायें अपेक्षाकृत काली होती हैं या चमकीली?
उत्तर:
चमकीली
RBSE Class 11 Physics Chapter 12 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
तापमापी में पारे का उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
पारे के तापमापी में काँच की केशनली में भरे पारे के ऊष्मीय प्रसार गुण के कारण इसका प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 2.
ऊष्मा द्वारा बर्फ की अवस्था परिवर्तन को समझाइये।
उत्तर:
हम एक बीकर में कुछ बर्फ के क्यूब लेते हैं तथा बर्फ का ताप (0°C) नोट कर लेते हैं। अब हम उस बीकर को एक स्टैण्ड पर लगाकर बर्नर द्वारा गर्म करते हैं व तापमापी की सहायता से हर मिनट के बाद बीकर के अन्दर का ताप नोट करते हैं और विडोलक की सहायता से विडोलित करते हैं। जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है। तब यह देखते हैं कि जब तक बीकर में बर्फ उपस्थित रहती है तब तक ताप नहीं बढ़ता है। अर्थात् ऊष्मा की लगातार आपूर्ति होने पर भी ताप के मान में कोई परिवर्तन नहीं होता है। यहाँ पर ऊष्मा की आपूर्ति का उपयोग बर्फ (ठोस) से जल (द्रव) रूप में अवस्था परिवर्तन हो रहा है।

प्रश्न 3.
ऊष्मा संचरण की चालन विधि के महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
हम जानते हैं, ठोसों में अणु, अपनी साम्यावस्थाओं के इर्द-गिर्द कम्पन करते हैं। ऊष्मीय ऊर्जा देने पर इनके कम्पनों के आयाम में वृद्धि होती है लेकिन ये अपनी साम्यावस्था के इर्द-गिर्द कम्पन यथावत करते रहते हैं। जब वस्तु में, उच्च ताप क्षेत्र से निम्न ताप क्षेत्र की ओर ऊष्मा का संचरण इस प्रकार से हो कि एक कण अपनी साम्यावस्था के इर्द-गिर्द कम्पन करते हुए अपने पड़ोसी कण को ऊर्जा स्थानान्तरित करे, तो ऊर्जा संचरण की इस विधि को चालन कहते हैं। उदाहरण के लिए, ऊष्मीय चालन के कारण ही किसी छड़ का एक सिरा गर्म करने पर धीरे-धीरे दूसरा सिरा भी गर्म होने लगता है।
प्रश्न 4.
वीन के विस्थापन नियम में विस्थापन शब्द क्यों आता है ?
उत्तर:
वीन के विस्थापन नियम से,
λm × T = नियतांक
यह प्रदर्शित करता है कि जैसे-जैसे वस्तु का ताप बढ़ता जाता है, उत्सर्जित विकिरण की अधिकतम ऊर्जा निम्न तरंगदैर्घ्य की ओर विस्थापित होती जाती है।
प्रश्न 5.
कृष्णिका पर टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
आदर्श कृष्णिको वह वस्तु होती है जो अपने पृष्ठ पर आपतित सभी तरंगदैर्घ्य के सम्पूर्ण विकिरण को पूर्णतः अवशोषित कर लेती है। अतः आदर्श कृष्णिका के लिए अवशोषण गुणांक a = 1 होता। है। इसका कारण इसके परावर्तन (r) तथा पारगमन गुणांक शून्य होते हैं।
किसी कृष्णिका द्वारा उत्सर्जित विकिरण को कृष्णिका विकिरण कहा जाता है। एक आदर्श कृष्णिका, एक आदर्श अवधारणा मात्र है। ज्ञात पदार्थों में काजल तथा प्लेटिनम की कालिख (Platinum black) लगभग कृष्णिको व्यवहार दर्शाते हैं। सूर्य को भी लगभग आदर्श कृष्णिका माना जाता है। इस प्रकार आदर्श कृष्णिका का काला होना आवश्यक नहीं है। कृष्णिका में उत्सर्जित विकिरण की प्रकृति उसके घनत्व, द्रव्यमान, आकार तथा प्रकृति पर निर्भर नहीं करती, यह केवल उसके ताप पर निर्भर करती है।
एक व्यावहारिक कृष्णिका, जो लगभग एक आदर्श कृष्णिका का व्यवहार दर्शाती है, उसका निर्माण फेरी नामक वैज्ञानिक ने किया था तथा इसे फेरी कृष्णिका भी कहते हैं। प्रत्येक ताप पर कृष्णिका का उत्सर्जन स्पेक्ट्रम सतत है लेकिन भिन्न-भिन्न तरंगदैर्ध्य पर विकिरणों की मात्रा भिन्न-भिन्न है। किसी नियत ताप पर कृष्णिको ऊर्जा वितरण वक्र तथा तरंगदैर्ध्य अक्ष के मध्य क्षेत्रफल उसकी कुल उत्सर्जन क्षमता (E) के बराबर व कृष्णिको के ताप (T) की चतुर्थ घात के अनुक्रमानुपाती होता है। यहाँ पर
E ∝ T4 तथा E = σT4
जहाँ σ एक नियतांक है, जिसे स्टीफन नियतांक कहते हैं।
प्रश्न 6.
उत्सर्जित व अवशोषित क्षमता में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
उत्सर्जित क्षमता (Emissive Power)
(1) किसी निश्चित ताप (T) पर वस्तु के एकांक पृष्ठ क्षेत्रफल से एकांक समय में तरंगदैर्घ्य (λ) पर एकांक स्पेक्ट्रमी परास से उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा की मात्रा को उस पृष्ठ की λ के लिए स्पेक्ट्रमी उत्सर्जन क्षमता (eλ) कहते हैं।
(2) इसका मात्रक Jm-2s-1 micron-1 अथवा Wm-2 micron-1 होता है।
अवशोषण क्षमता (Absorption Power)
(1) किसी निश्चित तरंगदैर्घ्य (λ) पर किसी पृष्ठ के एकांक क्षेत्रफल द्वारा प्रति एकांक स्पेक्ट्रमी परास में अवशोषित विकिरण ऊर्जा की मात्रा व उसी समय में उस पर आपतित कुल विकिरण ऊर्जा की
मात्रा के अनुपात को उस पृष्ठ की स्पेक्ट्रमी अवशोषण क्षमता (aλ) कहते हैं।
(2) यदि किसी पृष्ठ पर स्पेक्ट्रमी परास λ व λ + dλ में कुल आपतित विकिरण ऊर्जा dQ है तो अवशोषित विकिरण ऊर्जा aλdQ होगी जहाँ aλ मात्रकहीन होता है।
प्रश्न 7.
त्रिक बिन्दु से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामान्यतः पदार्थ ठोस, द्रव तथा गैस तीनों अवस्थाओं में पाया जाता है। पदार्थ की विभिन्न अवस्थाएँ इसकी प्रावस्थाएँ कहलाती हैं। उदाहरणार्थ-पानी की तीन प्रावस्थाएँ होती हैं- (1) बर्फ (ठोस), (2) जल (द्रव), (3) भाप (गैस) किसी पदार्थ के दाबताप प्रावस्था आरेख में वह बिन्दु जिसके संगत दाब (P0) तथा ताप (T0) पर पदार्थ एक साथ ही ठोस, द्रव तथा वाष्प तीनों प्रावस्थाओं में रह सकता है, उस पदार्थ का त्रिक बिन्दु कहलाता है।
प्रश्न 8.
ऊष्मा व ताप के मध्य अन्तर को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
ऊष्मा (Heat)
- ऊष्मा, ऊर्जा का ही एक स्वरूप है। ऊष्मा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक अथवा एक वस्तु से दूसरी वस्तु में स्थानांतरित किया जा सकता है। सूर्य हमारे लिये ऊष्मा का मुख्य स्रोत है।
- नाभिकीय ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा आदि को ऊष्मीय ऊर्जा में परिवर्तित कर मानव कल्याण के कई कार्य किये जा सकते हैं।
- कैलोरी तथा जूल ऊष्मा मापन की इकाई हैं।
- 1 कैलोरी = 4.186 जूल।
1 किलो कैलोरी = 4.186 × 103 जूल।
1 कैलोरी = 4.2 जूल लिया जाता है।
ताप (Temperature)
- किसी पदार्थ का ताप वह भौतिक गुण है जो ऊष्मा संचरण (Transfer of Heat) की दिशा का बोध कराता है, जब एक ऊष्मीय निकाय दूसरे निकाय के सम्पर्क में लाया जाता है।
- तापान्तर के कारण, विभिन्न वस्तुओं के मध्ये जिस ऊर्जा का आदान-प्रदान होता है, उसे ऊष्मा कहते हैं।
- ताप किसी वस्तु का वह गुण है जो यह बताता है कि कोई वस्तु अन्य वस्तु के साथ तापीय साम्य में है या नहीं।
RBSE Class 11 Physics Chapter 12 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ऊष्मा संचरण की तीनों विधियों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
हम जानते हैं कि तापान्तर होने के कारण ऊष्मा का संचरण एक निकाय से दूसरे निकाय में होता है। सामान्यतया यह संचरण तीन विधियों के द्वारा होता है—(i) चालन (Conduction), (ii) संवहन (Convection) एवं (iii) विकिरण (Radiation)। सामान्यतः ठोसों में ऊष्मा का संचरण चालन विधि द्वारा जबकि द्रवों व गैसों में ऊष्मा का संचरण संवहन विधि द्वारा होता है। जबकि विकिरण विधि का उदाहरण सूर्य से प्राप्त ऊष्मी है। चालन व संवहन धीमी गति के साथ तथा विकिरण तेज गति की विधा है। चालन व संवहन के लिये माध्यम की आवश्यकता होती है जबकि विकिरण के लिये नहीं।
चालन (Conduction)
हम जानते हैं कि ठोसों में अणु अपनी साम्यावस्थाओं के इर्दगिर्द कम्पन करते रहते हैं। ऊष्मीय ऊर्जा देने पर इनके कम्पनों के आयाम में वृद्धि होती है, लेकिन ये अपनी साम्यावस्था के इर्द-गिर्द कम्पन यथावत् करते रहते हैं। जब वस्तु में उच्च ताप क्षेत्र से निम्न ताप क्षेत्र की ओर ऊष्मा का संचरण इस प्रकार से हो कि एक कण अपनी साम्यावस्था के इर्द-गिर्द कम्पन करते हुए अपने पड़ोसी कण को ऊर्जा स्थानान्तरित करे, तो ऊर्जा संचरण की इस विधि को चालन कहते हैं।
उदाहरण के लिए यदि धातु की छड़ के एक सिरे को हाथ में पकड़कर दूसरे सिरे को गर्म किया जाये तो ऊष्मा छड़ के गर्म सिरे से चालन द्वारा हाथ में पकड़े ठण्डे सिरे की ओर जाने लगती है, जिससे हाथ में पकड़े हुए छड़ का सिरा भी गर्म हो जाता है। ठोसों में तथा पारे में ऊष्मीय संचरण, चालन द्वारा ही होता है।
- चालन पदार्थ की सभी अवस्थाओं में सम्भव होता है।
- ठोसों में केवल चालन संभव है।
- चालन एक धीमी प्रक्रिया है। इसमें द्रव का प्रवाह नहीं होता है।
- ऊष्मा जिस माध्यम से प्रवाहित होती है उसका ताप बढ़ जाता है।
- जब द्रव तथा गैस को ऊपर से गर्म किया जाता है तो इनमें ऊपर से नीचे की ओर ऊष्मा संचरण होता है।
- धात्विक ठोसों में मुक्त इलेक्ट्रॉन ऊष्मीय ऊर्जा ले जाते हैं। अतः ऊष्मी के अच्छे चालक होते हैं।
संवहन (Convection)
ऊष्मीय संचरण की इस विधि में माध्यम का कण, स्रोत से ऊष्मा ग्रहण कर अपने स्थान से विस्थापित हो जाता है एवं उसके स्थान पर अन्य कण ऊर्जा ग्रहण करने के लिये आ जाता है। इस प्रकार माध्यम में, गतिशील कणों की श्रृंखला बन जाती है जिसमें ठण्डे कण स्रोत की ओर तथा अपेक्षाकृत गर्म कण स्रोत से परे गति करते हैं। इस श्रृंखला को संवहन धारा कहते हैं।
उदाहरण के लिये यदि एक पात्र में जल लेकर गर्म किया जाये तो पहले पात्र की तली का जल गर्म होगा। गर्म जल का घनत्व ठण्डे जल के घनत्व की अपेक्षा कम होता है। अतः गर्म जल के हल्के कण ऊपर उठने लगते हैं तथा उनका स्थान लेने के लिये ठण्डे जल के अपेक्षाकृत भारी कण नीचे आने लगते हैं जल के कणों के इस प्रकार ऊपर वे नीचे चलने से जल में धारायें बन जाती हैं जिन्हें संवहन धाराएँ कहते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि सम्पूर्ण जल का ताप एक समान नहीं हो जाता। पारे के अतिरिक्त सभी द्रवों एवं गैसों में ऊष्मा का संचरण मुख्यतः संवहन द्वारा ही होता है। इसका कारण यह है कि द्रव तथा गैसों के कण एक स्थान से दूसरे स्थान तक सरलता से जा सकते हैं द्रवों तथा गैसों में ऊष्मा का संचरण चालन द्वारा भी सम्भव है, परन्तु गैसों की तुलना में यह बहुत कम होता है।
विकिरण (Radiation)
विकिरण, ऊष्मा संचरण की वह विधि है जिसमें माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है।
उदाहरण के लिये सूर्य से पृथ्वी तक ऊष्मीय ऊर्जा का आगमन, विकिरण विधि से ही सम्भव है, क्योंकि सूर्य और पृथ्वी के मध्य, करोड़ों किलोमीटर की दूरी में केवल निर्वात होता है।
सभी ठोसों में ऊष्मीय संचरण चालन से तथा द्रवों एवं गैसों में संवहन विधि से होता है जिसमें पारा एक अपवाद है, द्रव होते हुए भी इसमें ऊष्मीय संचरण चालन विधि से होता है। यदि किसी द्रव को सबसे ऊपरी सतह से गर्म किया जाये तो उसमें ऊष्मीय संचरण चालन विधि द्वारा ही सम्भव होता है। सर्वाधिक गति 3 × 108 मी./से. से ऊष्मीय संचरण, विकिरण विधि द्वारा होता है।
उदाहरणार्थ-जब हम जलती हुई अंगीठी के समीप खड़े होते हैं तो हमें गर्मी का अनुभव होता है परन्तु हमारे व अंगीठी के बीच की वायु गर्म नहीं होती। विकिरण के मार्ग में पर्दा लगा देने पर विकिरण को रोका जा सकता है| यही कारण है कि धूप में छाता लगाकर सूर्य के ऊष्मीय विकिरण से बचा जा सकता है।
प्रश्न 2.
किरचॉफ के नियम का कथन लिखकर सत्यापन कीजिये तथा यह बताइये कि क्यों लाल काँच हरा प्रतीत होता है?
उत्तर:
इस नियम के अनुसार निश्चित ताप पर किसी तरंगदैर्घ्य λ के लिए विभिन्न वस्तुओं की स्पेक्ट्रमी उत्सर्जन क्षमता (eλ) तथा स्पेक्ट्रमी अवशोषण क्षमता (aλ) का अनुपात एक स्थिरांक होता है। इस स्थिरांक का मान उसी ताप परे λ तरंगदैर्घ्य के लिए आदर्श कृष्णिका की उत्सर्जन क्षमता (Eλ) के बराबर होता है।” अर्थात् सभी वस्तुओं के लिए
= स्थिरांक = Eλ
प्रमाण (Proof)- माना T ताप पर परिवेश में स्थित एक वस्तु पर, λ तथा λ + dλ के मध्य तरंगदैर्घ्य के ऊष्मीय विकिरण की dθ मात्रा, प्रति सेकण्ड प्रति इकाई क्षेत्रफल आपतित होती है। अतः वस्तु द्वारा प्रति सेकण्ड इकाई क्षेत्रफल अवशोषित विकिरण की मात्रा
Q1 = aλdQ
वस्तु द्वारा λ तथा λ + dλ के मध्य तरंगदैर्घ्य के उत्सर्जित विकिरण की मात्रा प्रति सेकण्ड प्रति इकाई क्षेत्रफल
Q2 = eλdλ
लेकिन तापीय संतुलन की अवस्था में
Q1 = Q2
∴ aλdQ = eλdλ …………… (1)
aλ = 1 (कृष्णिका के लिए)
तथा eλ = Eλ अतः समीकरण (1) से।
dQ= Eλdλ. …………. (2)
समीकरण (1) में मान रखने पर
aλ. Eλdλ = eλdλ
या E = ……………. (3)
यही किरचॉफ का नियम है।
इस नियम से यह स्पष्ट है कि eλ का मान अधिक होने पर उस स्तु के लिए aλ का मान भी अधिक होता है। अर्थात् अच्छे उत्सर्जक, अच्छे अवशोषक होते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि वस्तु निम्न ताप पर जिन तरंगदैर्यों के विकिरणों का अवशोषण करती है, उच्च ताप पर होने पर उन्हीं तरंगदैर्यों के विकिरणों का उत्सर्जन भी करती है।
जब किसी श्वेत तप्त हरे रंग के काँच को अंधेरे में देखा जाये तो इसका रंग लाल दिखने लगता है। इसे किरचॉफ के नियम से समझा जा सकता है। सामान्य ताप पर कोई काँच हरा इसलिए दिखाई देता है। क्योंकि यह हरे रंग को परावर्तित कर देता है जबकि अन्य सभी रंगों को अवशोषित कर लेता है । जब इसी काँच को श्वेत तप्त तो किरचॉफ के नियमानुसार यह हरे रंग को छोड़कर शेष सभी रंगों के संगत तरंगदैर्यो के विकिरण उत्सर्जित करता है। शेष सभी रंगों का औसत प्रभाव लाल रंग जैसा होता है। इसलिए उच्च ताप पर वह लाल दिखाई देता है।
प्रश्न 3.
न्यूटन के शीतलन के नियम का कथन लिखिये तथा उसके प्रायोगिक सत्यापन की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
इस नियम के अनुसार यदि वस्तु एवं वातावरण में ताप का अन्तर (ताप आधिक्य) अधिक नहीं हो तो वस्तु के शीतलन की दर, ताप आधिक्य के समानुपाती होती है” अर्थात् यदि वस्तु का ताप T तथा परिवेश का ताप T0 है तो शीतलन की दर = ∝ (T – T0)
यहाँ ऋणात्मक चिन्ह यह व्यक्त करता है कि समय बढ़ने पर वस्तु की ऊष्मा Q का मान कम हो जाता जायेगा।
⇒ R = = -K (T – T0) ………….. (1)
यहाँ पर K शीतलन नियतांक है जो वस्तु के पृष्ठ के क्षेत्रफल तथा उसकी प्रकृति पर निर्भर करता है तथा R शीतलन की दर है।
शीतलन की दर से अभिप्राय, वस्तु द्वारा एकांक समय में कुल विकिरण ऊर्जा की हानि से होता है। यह नियम कृष्णिका के लिये पूर्णतः सत्य होता है एवं अन्य वस्तुयें भी इसका पालन लगभग करती हैं। इस नियम की पालना के लिये यह आवश्यक है कि ऊष्मा की हानि केवल विकिरण विधि से ही हो।
यदि किसी वस्तु का द्रव्यमान m व विशिष्ट ऊष्मा S है तो वस्तु द्वारा उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा की दर
अर्थात् जब किसी वस्तु तथा परिवेश का तापान्तर कम हो तो वस्तु के ताप गिरने की दर, वस्तु तथा परिवेश के तापान्तर के समानुपाती होती है।
समी. (2) से
T – T0 = C’e-K’t
T = T0 + C’e-K’t …………. (3)
समी. (3) की सहायता से एक विशिष्ट ताप परिसर में शीतलन का समय ज्ञात किया जा सकता है तथा इस समी. से स्पष्ट होता है कि वस्तु का ताप समय के साथ चरघातांकी रूप से कम होता जाता है।
वस्तु चूँकि पूरे समय तक एक ही ताप पर नहीं रहती है अतः ताप आधिक्य की गणना करते समय, समी. (1) तथा (2) में वस्तु के ताप (T) के स्थान पर वस्तु का औसत ताप प्रयुक्त करते हैं। यहाँ पर T1 तथा T2 वस्तु के प्रारंभिक व अन्तिम ताप हैं। समी. (1) से
यहाँ पर t वस्तु के ताप T1 से T2 तक ठण्डे होने में लगा समय
(1) यदि वस्तु के ताप तथा समय के बीच शीतलन वक्र आलेख खींचें तो यह वस्तु का ताप सामने दिये गये चित्रानुसार प्राप्त होता है। जिसे शीतलन वक़ कहते हैं।
उपरोक्त ग्राफ से स्पष्ट है कि शीतलन वस्तु तथा परिवेश के बीच तापान्तर पर निर्भर करता है तथा आरम्भ में शीतलन की दर उच्च है तथा वस्तु के ताप में कमी होने पर यह दर घट जाती है।
(2) यदि समय एवं दो वस्तुओं के ताप में शीतलन वक्र खींचे जायें तो ये चित्रानुसार प्राप्त होते हैं।
चित्र से स्पष्ट है कि समान परिस्थितियों में दो वस्तुओं को ठण्डा करने पर भी ताप में ह्रास की दर समान नहीं होगी क्योंकि वस्तु की प्रकृति अलग-अलग है।
(3) नीचे चित्र में ताप आधिक्य एवं ताप में क्लास की दर के मध्य आरेख दर्शाया गया है। यह आरेख कम ताप आधिक्य पर एक सरल रेखा होता है। इससे सिद्ध होता है कि ताप में ह्रास की दर ताप आधिक्य के समानुपाती होती है। अधिक ताप आधिक्य के होने पर आरेख सरल रेखा से विचलित हो जाता है।
(4) log (T – T0) व समय t के मध्य आलेख खींचने पर चित्रानुसार ऋणात्मक प्रवणता की एक सरल रेखा प्राप्त होती है जो समीकरण
loge (T – T0) = -K’t + C की पुष्टि करती है।
प्रायोगिक सत्यापन-अब हम न्यूटन के शीतलन के नियम का प्रायोगिक सत्यापन करेंगे। इसके लिए प्रायोगिक व्यवस्था चित्र में दर्शायी गई है। इसमें एक दोहरी दीवारों वाला एक पात्रे (V) लेते हैं, जिसकी दीवारों के मध्य जल भरा गया है। उक्त पात्र जल से भरा ताँबे का कैलोरीमापी (C) चित्रानुसार रखते हैं। दोनों पात्रों में चित्रानुसार कॉर्क की सहायता से तापमापी T व T0 लगाये गये हैं।
अब हम एक निश्चित समयान्तराल के बीच में कैलोरीमापी के ताप का पाठ्यक्रम नोट करते हैं। अब यदि हम t व loge(T – T0) के मध्य वक्र खींचें तो हमें उपरोक्त चित्रानुसार एक सरल रेखीय वक्र प्राप्त होता है, जिसकी प्रवणता ऋणात्मक होती है। यह प्रयोग न्यूटन के शीतलन के नियम का सत्यापन करता है।
न्यूटन के शीतलन के नियम से सीमा बन्धन (Limitations)
- वस्तु तथा परिवेश के तापान्तर का मान परिवेश के परम ताप की तुलना में कम होना चाहिये।
अर्थात् (T – T0) << To
(T0 = परिवेश का परम ताप) - ऊष्मा का संचरण केवल विकिरण विधि से होना चाहिये।
- ऊष्मा उत्सर्जन के लिये कृष्णिका (काले पृष्ठ) को उपयोग होना चाहिये, क्योंकि सिद्धान्ततः न्यूटन का नियम स्टीफनबोल्ट मान नियम से प्राप्त होता है।
प्रश्न 4.
स्टीफन के नियम की व्याख्या कीजिये व इसके न्यूटन के शीतलन के नियम को व्युत्पन्न कीजिये।
उत्तर:
किसी वस्तु के पृष्ठ से प्रत्येक ताप पर विकिरण ऊर्जा का उत्सर्जन होता रहता है। वस्तु का ताप बढ़ने पर उसके पृष्ठ से विकिरण ऊर्जा (ऊष्मीय विकिरण) का उत्सर्जन बढ़ता जाता है। वस्तु द्वारा कुल ऊष्मीय विकिरण के उत्सर्जन की दर तथा वस्तु के ताप में सम्बन्ध का नियम सन् 1879 ई. में रूसी वैज्ञानिक जोसेफ स्टीफन ने दिया। इसे स्टीफन का नियम कहते हैं। इस नियम के अनुसार, ”किसी कृष्णिका के एकांक पृष्ठीय क्षेत्रफल से प्रति सेकण्ड उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा उसके परमताप की चतुर्थ घात के अनुक्रमानुपाती होती है।”
माना कृष्णिका का परमताप T हो तथा उसके प्रति एकांक क्षेत्रफल द्वारा प्रति सेकण्ड विकिरण ऊर्जा (E) हो तो E ∝ T 4
⇒ E = σT2
यहाँ σ एक समानुपाती नियतांक है जिसे स्टीफन का नियतांक कहते हैं। इसका मान 5.67 × 10-8 जूल/मी.2 से. K4 या
होता है।
सन् 1884 ई. में वैज्ञानिक बोल्ट्ज मैन (Boltzmann) ने स्टीफन नियम का सैद्धान्तिक अध्ययन किया तथा प्रमाणित किया कि यह नियम केवल आदर्श कृष्णिका के लिये ही लागू होता है अतः इसी नियम को स्टीफन-बोल्ट्ज़मैन नियम भी कहा जाता है। यह नियम केवल उत्सर्जित ऊष्मीय विकिरण ऊर्जा के बारे में बताता है जबकि वस्तु के परिणामी विकिरण हानि की दर को नहीं बताता है। प्रोवोस्ट का ऊष्मा विनिमय का सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक वस्तु (जिसका ताप 0K से अधिक है), प्रत्येक ताप पर ऊष्मीय विकिरण उत्सर्जित करती है एवं अपने चारों ओर विद्यमान वातावरण से ऊष्मा अवशोषित भी करती है। यदि वस्तु द्वारा अवशोषित ऊष्मा की मात्रा उसके द्वारा उत्सर्जित ऊष्मा की मात्रा से अधिक हो तो वस्तु के ताप में वृद्धि होती है, इसके विपरीत वस्तु द्वारा अवशोषित ऊष्मा की मात्रा उसके द्वारा उत्सर्जित ऊष्मा की मात्रा से कम हो तो वस्तु के ताप में कमी होने लगती है।
किसी वस्तु द्वारा उत्सर्जित कुल विकिरण की मात्रा (शीतलन की दर ) (Rate of Cooling)
यदि कृष्ण पिण्ड का ताप T तथा वातावरण का ताप T0 हो, तो पिण्ड के प्रति एकांक क्षेत्रफल द्वारा प्रति सेकण्ड उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा
E1 = σ T4 ………….(1)
एवं पिण्ड के प्रति एकांक क्षेत्रफल द्वारा प्रति सेकण्ड अवशोषित विकिरण ऊर्जा
E2 = σ T04 ……………… (2)
इसलिये कृष्ण पिण्ड के प्रति एकांक क्षेत्रफल द्वारा प्रति सेकण्ड उत्सर्जित नेट विकिरण ऊर्जा
E = E1 – E2 = σ T4 – σ T04
E = σ (T4 – T04) ……………(3)
यदि वस्तु आदर्श कृष्णिका नहीं हो तो E = σ er (T4 – T04) …………(4)
यहाँ er वस्तु की उत्सर्जकता है एवं मात्रक हीन है।
यदि वस्तु का क्षेत्रफल A हो तो dt समय में वस्तु द्वारा उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा
dQ = σ er A dt (T4 – T04) जूल
dQ = कैलोरी
∴ वस्तु द्वारा उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा की दर अर्थात् वस्तु के शीतलन की दर
R = =
(T4 – T04) कैलोरी/से. …..(5)
यह नियम स्टीफन का शीतलन नियम कहलाता है। यदि वस्तु का द्रव्यमान m तथा विशिष्ट ऊष्मा S हो तो शीतलन की दर
स्टीफन के नियम से न्यूटन के शीतलन के नियम का सत्यापन (Deduction of Newton’s Law of Cooling by Stefan’s Law)
स्टीफन के नियमानुसार यदि वस्तु का ताप T व वातावरण का ताप T0 हो तो वस्तु द्वारा एक सेकण्ड में उत्सर्जित कुल ऊष्मा अर्थात् ऊष्मीय विकिरण में हानि की दर
(यहाँ पर द्विपद् प्रमेय का प्रयोग किया गया है और की उच्च घातों को नगण्य लिया गया है।)
अतः R = (4T03) ΔT
∴ R = स्थिरांक × ΔT
या R = स्थिरांक × (T – T0)
अतः स्टीफन के नियम से तापान्तर अल्प होने पर शीतलन की दर तापान्तर (ताप आधिक्य) के समानुपाती होती है, यही न्यूटन का शीतलन का नियम भी है।
यदि वस्तु तथा परिवेश का ताप आधिक्य अधिक हो तो शीतलन की दर (T4 – T04) के समानुपाती होगी।
न्यूटन के शीतलन नियम की सहायता से किसी द्रव की विशिष्ट ऊष्मा ज्ञात की जा सकती है।
प्रश्न 5.
पदार्थों में अवस्था परिवर्तन की विस्तार से व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
द्रव की तीनों भौतिक अवस्थाओं (ठोस, द्रव, गैस) से हम भली प्रकार से परिचित हैं। किसी भी पदार्थ का इन तीनों ही अवस्थाओं में अस्तित्व सम्भव है।
उदाहरणार्थ-पानी विस्तृत रूप से तीनों अवस्थाओं में पाया जाता है-कभी बर्फ (ठोस) के रूप में, कभी पानी (द्रव) तथा भाप (गैस) के रूप में। इतना ही नहीं, पानी की इन तीनों अवस्थाओं में परस्परीय रूपान्तर से भी हम अच्छी तरह से परिचित हैं। जब बर्फ को गरम करते हैं तो वह पिघल कर पानी का रूप ले लेता है। अधिक गरम करने पर उबल कर वह भाप में परिवर्तित हो जाता है। भाप को ठण्डी करने पर वह पुनः पानी में परिवर्तित होती है और जब पानी को हिमांक (0°C) तक ठण्डा करते हैं तो वह जम कर पुनः बर्फ बन जाता है।
इस प्रकार प्रत्येक पदार्थ ठोस, द्रव और गैस तीनों ही अवस्थाओं में उपलब्ध होता है एवं एक अवस्था से दूसरी, अवस्था में परिवर्तित किया जा सकता है।
अवस्था परिवर्तन के सम्बन्ध में और जानकारी प्राप्त करने के। लिए हम निम्नलिखित प्रयोग पर विचार करते हैं।
हम एक बीकर में कुछ बर्फ के क्यूब लेते हैं तथा बर्फ का ताप (0°C) नोट कर लेते हैं। अब उसे बीकर को एक स्टैण्ड पर लगाकर बर्नर द्वारा गर्म करते हैं व तापमापी की सहायता से हर मिनट के पश्चात् बीकर के अंदर का ताप नोट करते हैं और विडोलक की सहायता से विडोलित करते हैं। तब यह देखते हैं कि जब तक बीकर में बर्फ उपस्थित है तब तक ताप नहीं बढ़ता है अर्थात् ऊष्मा की सतत् आपूर्ति होने पर भी ताप के मान में कोई परिवर्तन नहीं होता है। यहाँ आपूर्तित की जा रही ऊष्मा का उपयोग बर्फ (ठोस) से जल (द्रव) रूप में अवस्था परिवर्तन में हो रहा है।
ठोस से द्रव से अवस्था परिवर्तन को गलन व द्रव से ठोस में अवस्था परिवर्तन को संघनन कहते हैं। यह देखा गया है कि ठोस पदार्थ की सम्पूर्ण मात्रा पिघलने तक ताप नियत रहता है। पदार्थ का वह ताप जिस पर ठोस व द्रव अवस्था परस्पर तापीय साम्य में सहवर्ती होती है। उसे पदार्थ का गलनांक कहते हैं।
अवस्था परिवर्तन के लिये मुख्यतः दो विशेष बातें हैं
(1) अवस्था परिवर्तन एक निश्चित ताप पर होता है।
(2) जिस समय अन्तराल में अवस्था का परिवर्तन होता है उस बीच पदार्थ का ताप स्थिर रहता है, जब तक पूरे पदार्थ का अवस्था परिवर्तन नहीं हो जाता। अतः अवस्था परिवर्तन में पदार्थ ताप में परिवर्तन नहीं होता, यद्यपि उसकी ऊष्मा की मात्रा में परिवर्तन होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है, वह परिवर्तन जिसमें पदार्थ अपनी भौतिक अवस्था को परिवर्तित करता है, अवस्था परिवर्तन कहलाता है।”
सम्पूर्ण बर्फ के जल बनने पर समय के साथ ताप का मान बढ़ने लगता है और यह प्रक्रिया 100°C तक चलती रहती है और फिर यहाँ ताप 100°C पर स्थित हो जाता है। जल अब ऊष्मा का उपयोग जल (द्रव) से वाष्प (गैस) में अवस्था परिवर्तन में होने लगता है। द्रव से गैस में अवस्था परिवर्तन को वाष्पन कहते हैं। हमें यह ज्ञात होता है। कि बीकर का ताप 100°C पर स्थिर रहता है जब तक कि से सम्पूर्ण जल वाष्प में परिवर्तन न हो जाये अर्थात् ताप का वह मान जहाँ पर द्रव व गैस (वाष्प) तापीय साम्यावस्था में सहवर्ती रहे उसे पदार्थ का क्वथनांक कहते बर्फ का पानी (द्रव) हैं। सम्पूर्ण प्रक्रिया को सामने दिए गए आलेख से निरूपित किया जा सकता है।
अवस्था परिवर्तन की कुछ मुख्य क्रियाएँ निम्नलिखित हैं
- गलन- ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तन को गलन कहते हैं। यह क्रिया जिस निश्चित ताप पर होती है, वह गलनांक कहलाता है।
- क्वथन- जब कोई पदार्थ पूर्णतः किसी निश्चित ताप पर द्रव अवस्था से गैस अवस्था में आता है तो इस परिवर्तन को क्वथन कहते हैं। यह क्रिया जिस निश्चित ताप पर होती है, वह क्वथनांक कहलाता है।
- वाष्पन- ऊपरी सतह से द्रव प्रत्येक ताप पर गैसीय अवस्था में परिवर्तित होता रहता है। यह क्रिया वाष्पन कहलाती है।
- द्रवण या संघनन- वह क्रिया जिसमें गैस का ताप कम करने पर वह एक निश्चित ताप पर गैस अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तित हो जाती है, द्रवण या संघनन कहलाती है। यह ताप द्रवनांक कहलाता है।
- ऊर्ध्वपातन- कुछ ठोस पदार्थ (जैसे नौसादर, कपूर, आयोडीन, शुष्क हिम, नेफ्थीलीन इत्यादि) ऐसे होते हैं, जो गर्म करने पर बिना द्रवित हुए भी ठोस अवस्था से सीधे गैस अवस्था में आ जाते हैं तथा ठण्डा होने पर सीधे ठोस में बदल जाते हैं। इस क्रिया को ऊर्ध्वपातन कहते हैं।
- हिमायन- द्रव से ठोस अवस्था में परिवर्तन हिमायन (Freezing) कहलाता है। इस क्रिया के लिये आवश्यक निश्चित ताप हिमांक (Freezing point) कहलाता है।
- पुनर्हिमायन- दाब वृद्धि के कारण ठोस के पिघलने तथा दाब घटते ही पुनः जम जाने की घटना को पुनर्हिमायन कहते हैं। यही कारण है कि बर्फ के टुकड़ों को मुट्ठी में लेकर दबाने से वे पिघल जाते हैं तथा मुट्ठी ढीली करने पर वे पुनः जम कर आपस में जुड़ जाते
नोट-किसी पदार्थ के गलनांक तथा हिमांक समान होते हैं। इसी प्रकार किसी पदार्थ के क्वथनांक तथा द्रवनांक समान होते हैं।
RBSE Class 11 Physics Chapter 12 आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
ओरायन तारा मण्डल में राइजेल तारे की ज्योति सुर्य की 17,000 गुना है। यदि सूर्य की सतह का ताप 6000 K हो तो इस तारे का ताप ज्ञात करो।
हल:
किसी भी तारे की ज्योति αT4
T → ताप है।
प्रश्न 2.
कोई व्यक्ति किसी बैलगाड़ी के लकड़ी के पहिये की नेमी पर लोहे के रिंग चढ़ाता है। यदि 37°C पर नेमी व लोहे की रिंग का व्यास क्रमशः 5.443 व 5.434 m है तो लोहे को किस ताप पर गर्म किया जाये कि नेमी पहिये में ठीक से बैठ जाये? यहाँ लोहे का रेखीय प्रसार गुणांक 1.20 × 10-5 K-1 है।
हल:
दिया है
T1 = 37°C = 37 + 273
T1 = 310 K
T1K ताप पर लम्बाई l1 = 5.434 m
T2K ताप पर लम्बाई l2 = 5.443 m
लम्बाई में वृद्धि Δl = l2 – l1
= 5.443 – 5.434
= 0.009 m
हम जानते हैं
Δl = l1 α (T2 – T1)
मान रखने पर
0.009 = 5.434 × 1.20 × 10--5(T2 – 310)
⇒ T2 – 310 =
⇒ T2 – 310 =
⇒ T2 – 310 = 138.02
∴ T2 = 138.02 + 310
= 448.02 K
या T2 = 448.02 – 273
= 175.02°C
प्रश्न 3.
यदि पारे का कांच के सापेक्ष आभासी प्रसार गुणांक 0.00040 7°C वे इसका-वास्तविक प्रसार 0.00049/°C है कांच का रेखीय प्रसार गुणांक ज्ञात कीजिये।
हल:
दिया हैपारे का काँच के सापेक्ष आभासी प्रसार गुणांक
γa = 0.00040/°C
वास्तविक प्रसार गुणांक γr = 0.00049
अर्थात् हम जानते हैं γr = γa + γg
γg = γr – γa
= 0.00049 – 0.00040
= 0.00009/°C
काँच का रेखीय प्रसार गुणांक =
= 0.00003/°C
प्रश्न 4.
35 सेमी. लम्बी धातु की छड़ का एक सिरा भाप में, दुसरा बर्फ में रहता है। यदि 10 gm m-1 की दर से बर्फ पिघल रही है तो उस धातु की ऊष्मा चालकता ज्ञात करो। यदि छड़ का अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 7 cm व बर्फ की गलन गुप्त ऊष्मा 3.4 × 105 Jkg-1 है।
हल:
छड़ की लम्बाई l = 35 सेमी. = 0.35 मीटर
छड़ का अनुप्रस्थ परिच्छेद A = 7 सेमी.2
= 7 × 10-4 मी.2
छड़ के सिरों का तापान्तर Δθ = भाप का ताप – बर्फ का ताप
= 100°C – 0°C = 100°C
Q =
मान रखने पर =
Q = 12K जूल ……….. (1)
परन्तु यह ऊष्मा m= 10 ग्राम
अतः = 10 × 10-3 किग्रा. बर्फ पिघला देती है।
Q = m × L
जहाँ L = बर्फ की गलन गुप्त ऊष्मा
= 3.4 × 105 जूल/किग्रा
Q= 10 × 10-3 × 3.4 × 105
= 3400 जूल ………(2)
समीकरण (1) तथा (2) को बराबर करने पर
12K = 3400
K =
= 2.833 × 102 जूल/मी. से.°C
प्रश्न 5.
किसी बर्तन में भरे जल का ताप 5 मिनट में 90°C से 80°C हो जाता है जबकि कमरे का ताप 20°C है तब 63°C से 55°C ताप गिरने में कितना समय लगेगा?
हल:
न्यूटन के शीतलन के नियम से
प्रश्नानुसार दिया है
T1 = 90°C
T2 = 80°C
T0 = 20°C
तथा समय t = 5 मिनट
सूत्र में मान रखने पर
प्रश्न 6.
यदि सूर्य के प्रत्येक cm पृष्ठ से ऊर्जा 1.5 × 103 cals-1 cm-2 की दर से विकिरत हो रही है। यदि स्टीफन नियतांक 5.7 × 10-8 Js2-1 m-2 K-4 हो तो सूर्य के पृष्ठ का ताप केल्विन में ज्ञात करो।
हल:
दिया हैसूर्य के प्रत्येक सेमी. से ऊर्जा = 1.5 × 103 cal s-1cm-2
प्रश्न 7.
127°C का ताप वाले किसी कृष्णिका के तल से 1.6 × 106 Jcm-2 की दर से उत्सर्जन हो रहा है। कृष्णिको का ताप का मान ज्ञात करो जिस पर उत्सर्जन दर 81 × 106 Jcm-2 हो।
हुल:
स्टीफन के नियम से उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा की दर
E = σT4
दिया है T1 = 127°C = 127 + 273 = 40OK,
E1 = 1.6 × 106 J cm-2
E2 = 81 × 106 J cm-2
T2 = ?
= 400 × 2.668 = 400 × 3
= 1200 K
प्रश्न 8.
प्रारम्भिक ताप 300°C पर कृष्णिको कोष्ठ के अंदर गलनशील बर्फ द्वारा 0.35°Cs-1 की दर से ठंडी की जाती है। यदि द्रव्यमान, विशिष्ट ऊष्मा और वस्तु का पृष्ठीय क्षेत्रफल क्रमशः 32 gm, 0.10 calgm-1 0C-1 तथा 8 cm2 हो तो स्टीफन के नियतांक की गणना करो।
हल:
Tप्रारम्भिक = 300°C = 300 + 273 = 573 K
ठण्डी करने की दर = 0.35°C s-1 =
दिया है m = 32 gram
Cp = 0.10 calgm-10C-1
Cp = 0.10 × 4.2 × 1000 J Kg-1C-1
हम जानते हैं- Q = mCpΔT …………… (1)