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RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 13 राष्ट्रीय आन्दोलन के उद्भव के कारण

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 13 राष्ट्रीय आन्दोलन के उद्भव के कारण

Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Chapter 13 राष्ट्रीय आन्दोलन के उद्भव के कारण

RBSE Class 11 Political Science Chapter 13 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 13 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वामी दयानन्द सरस्वती को गीता का नायक किसने कहा?
उत्तर:
रोमन रोलां ने।

प्रश्न 2.
आर्य समाज के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
स्वामी दयानन्द सरस्वती।

प्रश्न 3.
ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की?
उत्तर:
राजा राममोहन राय ने।

प्रश्न 4.
भारत में रेल यातायात का प्रादुर्भाव कब हुआ?
उत्तर:
1853 ई. में।

प्रश्न 5.
आधुनिक संचार साधनों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आधुनिक संचार साधनों से अभिप्राय ऐसे साधनों से है जिनके द्वारा सन्देशों को उनके उद्गम स्थान से गंतव्य स्थान तक शीघ्रातिशीघ्र भेजा जा सकता है। उदाहरण – इण्टरनेट, मोबाइल फोन, उपग्रह संचार, फैक्स, टेलीफोन आदि।

प्रश्न 6.
भारत में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली को किसने लागू किया?
उत्तर:
लार्ड मैकाले ने।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय आन्दोलन में महती भूमिका निभाने वाले चार समाचार – पत्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. दि इण्डियन मिरर
  2. दि मराठा
  3. दि केसरी
  4. दि हिन्दू।

प्रश्न 8.
राष्ट्रीय आन्दोलन की पहली आजादी की लड़ाई कब हुई?
उत्तर:
1857 ई. में।

प्रश्न 9.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के चरणों को उल्लेखित कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के तीन चरण निम्नानुसार हैं-

  1. उदारवादी आन्दोलन का युग
  2. अतिवादी आन्दोलन का युग
  3. क्रान्तिकारी आन्दोलन एवं गाँधीजी की समानान्तर भूमिका का युग।

प्रश्न 10.
राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रारम्भिक चरण को किस युग की उपमा दी जाती है?
उत्तर:
उदारवादी युग की।

प्रश्न 11.
अतिवादी युग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
1906 ई. से प्रारम्भ भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के द्वितीय चरण को अतिवादी युग कहा जाता है।

प्रश्न 12.
उदारवादियों को प्रारम्भिक लक्ष्य क्या था?
उत्तर:
उदारवादियों का प्रारम्भिक लक्ष्य शासन में सुधार लाना एवं भारतीयों को उसमें अधिकाधिक हिस्सा दिलाया।

प्रश्न 13.
अतिवादियों का लक्ष्य क्या था?
उत्तर:
पूर्ण स्वराज्य को प्राप्त करना।

प्रश्न 14.
राष्ट्रीय आन्दोलन का अन्तिम चरण किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
क्रान्तिकारी एवं गाँधीवादी आन्दोलन के संयुक्त चरण के नाम से।

प्रश्न 15.
राष्ट्रीय आन्दोलन के किन्हीं दो कारणों को उल्लेखित कीजिए।
उत्तर:

  1. अंग्रेजों द्वारा भारतीयों का आर्थिक शोषण
  2. सामाजिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 13 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के राष्ट्रीय जागरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भारत का राष्ट्रीय जागरण – अठारहवीं सदी के पूर्व मध्य तक भारत में सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं आर्थिक उथल-पुथल प्रारम्भ होने लगी थी। बढ़ते अंधविश्वास एवं जातीय भेदभाव, अंग्रेजी सत्ता के प्रभाव, भारतीय एकता में अभाव आदि के कारण भारतीय समाज, संस्कृति एवं सम्पन्नता पर दुष्प्रभाव होने लगा। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए, आम जनता एवं अन्य अनेक समाजसेवियों द्वारा समाज के कल्याण एवं देश की अखण्डता एवं सम्पन्नता को बनाए रखने के लिए प्रयास प्रारम्भ किए गए जो आगे चलकर भारत के राष्ट्रीय जागरण के रूप में उभर कर सामने आये।

प्रश्न 2.
भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के राजनीतिक कारण कौन-से थे?
उत्तर:
भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के राजनीतिक कारण – भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन प्रारम्भ होने का सबसे बड़ा कारण अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति एवं भारतीयों पर किए जाने वाले अत्याचार थे। यह आन्दोलन ब्रिटिश शासन के अत्याचारों एवं गुलामी से मुक्ति पाने के लिए संचालित किया गया। भारतीयों को सेना व प्रशासन में उच्च पदों से वंचित रखना, भारतीयों से भेदभाव रखना, 1857 ई. की क्रान्ति के पश्चात् भारतीयों का अपमान व अत्याचार, कानून के समक्ष अंग्रेजों व भारतीयों में असमानता रखना, भारतीय समाचार – पत्रों के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने के लिए वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट पारित करना, भारतीय जमींदारों से भूमि छीनना, जनता से कर अधिक लेना, शस्त्र रखने के लिए भारतीयों को लाइसेंस लेना अनिवार्य करना आदि कुछ ऐसे कारण थे जिन्होंने भारतीयों में ब्रिटिश शासन के प्रति आक्रोश उत्पन्न किया और वे आन्दोलित हो उठे।

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय आन्दोलन का अभिप्राय क्या है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन का अभिप्राय-ब्रिटिश शासन के अत्याचारों एवं गुलामी से छुटकारा प्राप्त करने के लिए भारतीयों द्वारा एक संगठित देशव्यापी आन्दोलन का संचालन किया गया था, जिसे राष्ट्रीय आन्दोलन कहते हैं। इस आन्दोलन का काल 1857 ई. से 15 अगस्त, 1947 तक रहा। अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के साथ भेदभाव किया जाना, राष्ट्रीय संस्कृति को समाप्त करना। अन्यायपूर्ण नीतियाँ लागू करना एवं आर्थिक शोषण करना आदि भारतीयों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध किए गए राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रमुख कारण थे। भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन शान्तिपूर्ण एवं क्रान्तिकारी ढंग से

संचालित हुआ। इसने एक जन आन्दोलन का रूप ले लिया। इसमें सभी धर्मों के लोग सम्मिलित हुए। इस आन्दोलन का स्वरूप केवल राजनीतिक ही नहीं था बल्कि इसके सामाजिक और आर्थिक पक्ष भी थे। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन किसी दल विशेष. या वर्ग विशेष द्वारा संचालित आन्दोलन नहीं है वरन् राष्ट्रीय स्वाधीनता के लिए भारतीय जनता के संग्राम एवं ब्रिटिश विस्तारवादी नीति तथा भारतीयों के प्रति अंग्रेजों के अत्याचारों की प्रतिक्रिया का परिणाम है।

प्रश्न 4.
आर्य समाज से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आर्य समाज – आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द थे। इन्होंने 10 अप्रैल, 1875 को आर्य समाज की स्थापना की। स्वराज्य शब्द पर स्वामी जी द्वारा विशेष बल देने के कारण आर्य समाज के आन्दोलन ने राष्ट्रीय चरित्र धारण कर लिया। आर्य समाज के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

  1. वेदों की सत्यता पर बल।
  2. वैदिक रीति से हवन व मन्त्र पाठ करना।
  3. सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने पर बल दिया।
  4. अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करना।
  5. पौराणिक विश्वासों, मूर्तिपूजा और अवतारवाद का विरोध करना।
  6. स्त्री शिक्षा तथा विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन देना।
  7. ईश्वर सर्वशक्तिमान, निराकार व नित्य है।
  8. सभी से धर्मानुसार प्रीतिपूर्वक यथा योग्य व्यवहार करने पर बल दिया।
  9.  हिन्दी व संस्कृत भाषा के महत्व एवं प्रसार में वृद्धि करना।
  10. सब की उन्नति में अपनी उन्नति और सबकी भलाई में अपनी भलाई समझना।

आर्य समाज को शिक्षा के क्षेत्र में भी विशेष योगदान रहा है। आर्य समाज के नाम से विद्यालय, महाविद्यालय एवं गुरुकुल व अन्य संस्थाएँ संचालित हैं जिनकी शैक्षिक उन्नयन में महत्वपूर्ण भूमिका है।

प्रश्न 5.
भारत के सामाजिक और धार्मिक सुधार आन्दोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
भारत के सामाजिक और धार्मिक सुधार आन्दोलन – भारत में 19वीं शताब्दी में अनेक धार्मिक एवं , सामाजिक सुधार आन्दोलन प्रारम्भ हुए। इन आन्दोलनों ने भारत में फैली हुई धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र की कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज, स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज, स्वामी, विवेकानन्द ने रामकृष्ण मिशन एवं श्रीमती ऐनीबेसेन्ट ने थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना की। राजा राममोहन राय ने सामाजिक बुराइयों को दूर कर आधुनिक शिक्षा के प्रसार पर बल दिया।

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज के माध्यम से धार्मिक व राष्ट्रीय नवजागरण का कार्य किया। उन्होंने स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग एवं स्वराज्य। एनीबेसेन्ट ने हिन्दू धर्म व संस्कृति की श्रेष्ठता की प्रशंसा की। स्वामी विवेकानन्द ने 1893 ई. में शिकागो के धर्म सम्मेलन में वेदान्त के उपदेश देकर विश्व में भारत का मान बढ़ाया। उन्होंने राजनैतिक स्वतन्त्रता और अतीत के गौरव के सम्मान पर बल दिया। भारत माता की सेवा को ही एकमात्र धर्म बताया। भारत में राष्ट्रवाद को गति देने में इन धार्मिक व सामाजिक सुधार आन्दोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

प्रश्न 6.
ब्रिटिश शासन ने राष्ट्रीय आन्दोलन में किस प्रकार योगदान दिया?
उत्तर:
ब्रिटिश शासन का राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान – ब्रिटिश शासन ने भारत में अपने शासन को मजबूती प्रदान करने के लिए तथा भारत के आर्थिक शोषण के लिए राजनैतिक, सैनिक, आर्थिक एवं बौद्धिक आदि समस्त क्षेत्रों में आधुनिक पद्धतियों का ही प्रयोग किया। अंग्रेजों ने अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया। अंग्रेजी भाषा के प्रचलन से अंग्रेज भारतीयों को मानसिक दृष्टि से गुलाम बनाना चाहते थे। लेकिन अंग्रेजी भाषा भारतीयों के लिए विश्व सम्पर्क की भाषा बन गई। पश्चिमी देशों के साहित्य का अध्ययन करके भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना व स्वतन्त्रता की भावना जागृत हुई।

परिवहन एवं संचार के साधनों के विकास से भारतीय एक – दूसरे के सम्पर्क में आए जिससे राष्ट्रवाद को बढ़ावा. मिला। छापेखाने के विकास से भारतीय समाचार-पत्र भारतीय राष्ट्रवाद का दर्पण बन गए। अंग्रेजों द्वारा आर्थिक शोषण एवं जातीय भेदभाव से भारतीयों में ब्रिटिश शासन के प्रति आक्रोश उत्पन्न हुआ। ये समस्त कार्य ब्रिटिश शासन ने अपने हित के लिए किए लेकिन भारतीयों ने अपनी एकता की स्थापना के लिए इनका उपयोग किया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ब्रिटिश शासन ने अपने कुछ आधुनिक कार्यों के द्वारा न चाहते हुए भी राष्ट्रीय आन्दोलन में सहयोग प्रदान किया।

प्रश्न 7.
परिवहन एवं संचार के साधनों की स्थापना का राष्ट्रीय आन्दोलन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
परिवहन एवं संचार के साधनों की स्थापना का राष्ट्रीय आन्दोलन पर प्रभाव – ब्रिटिश सरकार ने भारत में अपनी प्रशासनिक सुविधा, सैनिक रक्षा के उद्देश्य, आर्थिक विस्तार एवं व्यापारिक शोषण की बातों को ध्यान में रखकर परिवहन का जाल बिछा दिया। पक्के मार्गों का देश में एक जाल बिछ गया जिससे प्रांत एक – दूसरे से तथा ग्रामीण क्षेत्र बड़े-बड़े शहरों से जुड़ गये। रेलों ने सम्पूर्ण देश को बाँधने की कार्य किया। आधुनिक डाक व्यवस्था एवं बिजली के तार ने देश को समेकित करने में सहायता की।

अन्तर्देशीय पत्रों के लिए 2 पैसे का एक समान टिकट और समाचार – पत्रों तथा पार्सलों को इससे भी कम दर में भेजने की व्यवस्था ने देश के सामाजिक, शैक्षणिक, बौद्धिक तथा राजनीतिक जीवन में एक परिवर्तन पैदा कर दिया। डाकखानों के द्वारा, जो देश के कोने – कोने में काम करते थे, राष्ट्रीय साहित्य स्थान-स्थान पर भेजा जा सकता था। अंग्रेजों ने यह सुविधाएँ यद्यपि अपने हित के लिए स्थापित की थीं, लेकिन इनके कारण भारतीयों के मध्य भौगोलिक दूरियाँ कम हुईं। वे परस्पर एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित करने लगे। इस प्रकार इन साधनों ने भारतीयों को संगठित कर राष्ट्रीय आन्दोलन को गति प्रदान की।

प्रश्न 8.
आधुनिक शिक्षा प्रणाली का राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान दर्शाइए।
उत्तर:
आधुनिक शिक्षा प्रणाली का राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान-आधुनिक शिक्षा के नाम पर अंग्रेजों ने भारतीय सभ्यता व संस्कृति को समाप्त करने के लिए 1835 ई. में लॉर्ड मैकाले के सुझाव पर भारत में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देना प्रारम्भ किया। अंग्रेज चाहते थे कि भारत में एक ऐसे वर्ग का निर्माण किया जाये जो रक्त और वर्ण से तो भारतीय हो किन्तु रुचि, विचार, भाषा आदि से अंग्रेज हो। अंग्रेज बहुत सीमा तक इस मनोरथ में सफल हुए। भारतवर्ष में ऐसे व्यक्तियों के वर्ग की स्थापना होनी प्रारम्भ हो गयी, जो प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को हेय दृष्टि से देखने लगे और अपने आपको पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति में ढालने लगे।

इसे पाश्चात्य शिक्षा ने दुष्प्रभाव के साथ-साथ भारतीयों को लाभान्वित भी किया। अंग्रेजी भाषा के ज्ञान के कारण भारतीय विद्वानों ने पश्चिमी देशों के साहित्य का अध्ययन किया। ये साहित्य स्वतन्त्रता की भावना से ओत-प्रोत थे जिससे भारतवासियों में वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था के प्रति असन्तोष उत्पन्न हुआ और प्रशासन के सुधार की माँगें जोर पकड़ने लगीं। राजा राममोहन राय, दादा भाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले, व्योमेश चन्द्र बनर्जी आदि नेता अंग्रेजी शिक्षा की ही देन थे।

प्रश्न 9.
ब्रह्म समाज की स्थापना क्यों हुई?
उत्तर:
ब्रह्म समाज की स्थापना 28 अगस्त, 1828 को भारत में सामाजिक व सांस्कृतिक पुनर्जागरण में सहयोग देने के लिए तथा भारत में ईसाई धर्म के प्रसार को रोकने तथा भारतीय समाज को कुरीतियों से मुक्त करने के लिए राजा राममोहन राय द्वारा की गई। ब्रह्म समाज मूल रूप से वेद और उपनिषदों पर आधारित है। ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

  1. ईश्वर एक है वह सृष्टि का निर्माता, पालक, अनादि, अनन्त, निराकार है।
  2. ईश्वर की उपासना बिना किसी जाति सम्प्रदाय के आध्यात्मिक रीति से करनी चाहिए।
  3. पाप कर्म के प्रायश्चित एवं बुरी प्रवृत्तियों के त्याग से ही मुक्ति सम्भव है।
  4. आत्मा अजर व अमर है। वह ईश्वर के प्रति उत्तरदायी है।
  5. आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रार्थना आवश्यक है।
  6. ईश्वर के लिए सभी समान है और वह सभी की प्रार्थना समान रूप से स्वीकार करता है।
  7. ब्रह्म समाज कर्मफल के सिद्धान्त में विश्वास करता है।
  8. सत्य के अन्वेषण में विश्वास रखता है।

ब्रह्म समाज ने सती प्रथा, बाल – विवाह, बहु-विवाह, छुआछूत व नशा आदि कुप्रथाओं का विरोध किया।

प्रश्न 10.
समाचार-पत्रों ने किस प्रकार राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान दिया?
उत्तर:
समाचार – पत्रों का राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान – भारत राष्ट्रीय आन्दोलन में समाचार-पत्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। इन समाचार-पत्रों के माध्यम से राष्ट्रवादियों को निरन्तर प्रेरणा और प्रोत्साहन मिला। उस समय के प्रमुख समाचार-पत्रों में दि इण्डियन मिरर, दि बंगाली, दि हिन्दू पेट्रिअट, दि मराठा, दि बाम्बे क्रानिकल, दि केसरी, दि हिन्दू, दि इन्दू प्रकाश, दि आन्ध्र प्रकाशिका, दि कोहिनूर आदि प्रमुख थे। इन समाचार – पत्रों में ब्रिटिश सरकार की अन्यायपूर्ण नीतियों का पर्दाफाश किया जाता था, जिससे जनसाधारण में ब्रिटिश शासन के प्रति घृणा व असन्तोष की भावना उत्पन्न होती थी।

इन समाचार – पत्रों के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सन् 1878 में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट पारित किया। इस प्रकार भारतीय समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया गया। भारतीय समाचार-पत्रों ने प्रतिनिधि सरकार, स्वतन्त्रता एवं प्रजातन्त्रीय संस्थाओं को जनता में लोकप्रिय बनाया। यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि भारतीय समाचार-पत्र भारतीय राष्ट्रवाद का दर्पण और जनता को शिक्षित करने का माध्यम बन गये।

प्रश्न 11.
राष्ट्रीय आन्दोलन में मध्यम वर्ग की भूमिका को बताइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन में मध्यम वर्ग की भूमिका- भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में मध्यम वर्ग ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। इस वर्ग ने तत्परता से अंग्रेजी सीख ली तथा नौकरियाँ भी प्राप्त कर लीं। यह नवीन श्रेणी अपनी शिक्षा, समाज में उच्च स्थान एवं प्रशासक वर्ग के समीप होने के कारण आगे आ गई। यह भारतीय समाज का एक छोटा-सा अंग था परन्तु गतिशील था। इसमें उद्देश्य की एकता और आशा की भावना थी।

यह मध्यम वर्ग आधुनिक भारत की नवीन आत्मा बन गया। इस वर्ग ने समस्त भारत में अपनी शक्ति का संचार कर दिया। लोगों को राष्ट्रभक्ति के लिए प्रेरित किया। अंग्रेजों द्वारा भारतीय जनता पर किये जाने वाले अत्याचारों से भी विश्व को अवगत कराया तथा अंग्रेजों से मुक्ति प्राप्त करने हेतु रास्ते सुझाए इस मध्यम वर्ग ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को इसके विकास के समस्त चरणों में नेतृत्व प्रदान किया।

प्रश्न 12.
ऐतिहासिक शोध का राष्ट्रीय आन्दोलन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
ऐतिहासिक शोध का राष्ट्रीय आन्दोलन पर प्रभाव – ऐतिहासिक शोध का भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। सर विलियम जोन्स, मोनियर, विलियम्स, मैक्समूलर, रॉथ तथा सस्सन जैसे विदेशी विद्वानों के प्राचीन भारतीय इतिहास में शोध करने के फलस्वरूप भारतीयों को भारत की समूह सांस्कृतिक परम्परा का ज्ञान होने लगा। इस क्षेत्र में विशेष रूप से कनिंघम जैसे पुरातत्वविदों की खुदाइयों ने भारत की महानता तथा गौरव का वह चित्र प्रस्तुत किया जो रोम तथा यूनान की प्राचीन सभ्यताओं से किसी भी रूप में कम गौरवशाली नहीं था।

इन यूरोपीय विद्वानों ने वेदों तथा उपनिषदों की साहित्यिक श्रेष्ठता तथा मानव मन के सुन्दर विश्लेषण के लिए उनका गुणगान किया। अनेक यूरोपीय विद्वानों ने यह बताया कि भारतीय आर्य उसी मानव श्रृंखला के लोग हैं, जिससे यूरोपीय जातियों का जन्म हुआ था। इस प्रकार अनेक अनुसन्धानों के फलस्वरूप भारत की प्राचीन आध्यात्मिक श्रेष्ठता और सभ्यता के चिन्ह भारतीयों के सम्मुख आये। अत: उनके मन में अपनी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के प्रति गौरव की भावना उत्पन्न हुई। इन सभी तत्वों ने उनमें एक नया आत्मविश्वास जगाया तथा उनकी देशभक्ति और राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन प्रदान किया।

प्रश्न 13.
राष्ट्रीय आन्दोलन पर समकालीन यूरोपीय आन्दोलन का कितना प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन पर समकालीन यूरोपीय आन्दोलनों का प्रभाव- भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन पर समकालीन यूरोपीय आन्दोलनों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। फ्रांस की क्रान्तियों ने भारतीयों में भी राष्ट्रीयता की भावना जागृत की। इटली तथा यूनान की स्वाधीनता से भारतीयों के उत्साह में वृद्धि हुई।

जर्मनी, रुमानिया और सर्बिया के राष्ट्रीय आन्दोलन, इंग्लैण्ड में सुधारवादी कानूनों के पारित होने तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के स्वतन्त्रता संग्राम ने भी भारतीयों को राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए प्रेरित किया। भारतीय बुद्धिजीवियों द्वारा विदेशी क्रान्तिकारियों पर व्याख्यान दिए गए। इस प्रकार विदेशों में हुए विभिन्न आन्दोलनों ने भारतीय जनता में देशभक्ति व देशप्रेम की भावना को जागृत किया। इससे भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने हेतु प्रेरित हुए।

प्रश्न 14.
जातीय भेद ने किस प्रकार भारतीय जनमानस को उद्वेलित किया?
उत्तर:
जातीय भेद द्वारा भारतीय जनता का उद्वेलित होना-जातीय भेदभाव की भावना ने भारतीय जनमानस को राष्ट्रीय रूप से एक होने के लिए प्रेरित किया। जातीय भेद के आधार पर अंग्रेजों की भारतीय जनता से घृणा की प्रतिक्रिया । सेभारतीय जनता में राष्ट्रीय भावनाओं का जन्म हुआ। 1857 की क्रान्ति के पश्चात् अंग्रेजों और भारतीयों में जातीय कटुता बहुत अधिक बढ़ गई।

अंग्रेजों द्वारा श्वेत जाति की श्रेष्ठता का विचार, भारतीयों के प्रति अभिमानी एवं उद्दण्ड रवैया, भारतीयों के रंग, भाषा, धर्म एवं सामाजिक रीति-रिवाजों की उपेक्षा तथा सार्वजनिक जीवन में भारतीयों को बार – बार तिरस्कार, भारतीयों के लिए असहनीय था। इसके अतिरिक्त कानून के समक्ष अंग्रेजों और भारतीयों में असमानता रखी जाती थी। इस प्रकार अंग्रेजों द्वारा जातीय भेदभाव ने भारतीयों में असन्तोष उत्पन्न किया। जाति के आधार अपमानित भारतीयों में इसे अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध बहुत अधिक आक्रोश था।

प्रश्न 15.
1857 की आजादी की लड़ाई का राष्ट्रीय आन्दोलन पर प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
1857 की आजादी की लड़ाई का राष्ट्रीय आन्दोलन पर प्रभाव-सन् 1857 की लड़ाई भारत में राष्ट्रीय जागरण का अति महत्वपूर्ण प्रारम्भिक चरण था। इस स्वतन्त्रता की लड़ाई में अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध देशी राजाओं, सैनिकों एवं भारतीय नागरिकों ने अपना योगदान दिया। यद्यपि सन् 1857 की लड़ाई असफल रही, किन्तु ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह को कुचलने के बाद जिस प्रकार के अमानवीय अत्याचार किए, उससे भारतीय जनता के असन्तोष में अत्यधिक वृद्धि हुई। अंग्रेजों ने गाँव के गाँव जला दिए, निर्दोष ग्रामीणों का खुलेआम कत्ल किया। इस प्रकार के अत्याचारों से भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति भयंकर घृणा की भावना उत्पन्न हुई और अंग्रेजों से बदला लेने की भावना जागृत हुई।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 13 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय राष्ट्रीय जागरण के उद्भव में उत्तरदायी कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन के उद्भव में उत्तरदायी कारण:
1. सामाजिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण – सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में आधुनिक भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की पृष्ठभूमि तैयार की। देश में संचालित सामाजिक एवं धार्मिक आन्दोलनों ने अन्धविश्वास एवं रूढ़िवाद की शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष में प्रगतिशील भूमिका निभाई तथा देशभक्ति की भावनाओं को जगाया जिसका राष्ट्रीय आन्दोलन पर व्यापक प्रभाव पड़ा।

2. ब्रिटिश शासन का प्रभाव – अंग्रेजों द्वारा भारत का आर्थिक एवं सांस्कृतिक शोषण किये जाने के कारण उनकी नीतियों का विरोध हुआ। 1837 से 1857 ई. तक ब्रिटिश नीतियों के विरुद्ध अनेक विद्रोह हुए। इनमें नागरिक विद्रोह,
आदिवासियों के विद्रोह, किसान विद्रोह सम्मिलित थे। भारतीयों को यह समझ में आ गया कि ब्रिटिश साम्राज्यवादी सत्ता भारत के लिए हितकर नहीं हो सकती।

3. सन् 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम – स्वतन्त्रता की इस लड़ाई में अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध देशी राजाओं, सैनिकों एवं भारतीय नागरिकों ने अपना योगदान दिया। यद्यपि सन् 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम असफल रहा। ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह को कुचलने के बाद जिस प्रकार के अमानवीय अत्याचार किए, उससे भारतीय जनता के असन्तोष में अत्यधिक वृद्धि हुई।

4. भारत का आर्थिक शोषण – भारतीयों में अंग्रेजों द्वारा किये जा रहे आर्थिक शोषण के विरुद्ध भारी असन्तोष था। अंग्रेजों ने भारत के प्राचीन हस्तशिल्प एवं उद्योग-धन्धों को नष्ट कर दिया। अंग्रेज यहाँ से सस्ते भाव में कच्चा माल लेते थे और उसे तैयार करके ऊँचे दामों में बेच देते थे। विदेशी पूँजी का भारत में निवेश, विदेशी आयात के माध्यम से भारत का शोषण किया।

5. भारत की राजनैतिक एकता – अंग्रेज सरकार द्वारा पूरे भारत में शासन स्थापित करने के परिणामस्वरूप भारत राजनीतिक दृष्टि से एक सूत्र में बँध गया। भारत का प्रशासन एक केन्द्रीय सत्ता के अन्तर्गत आने के कारण यहाँ एक समान कानून व नियम लागू किए गये। इससे देश में राजनीतिक एकता स्थापित हुई तथा राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रोत्साहन मिला।

6. समकालीन यूरोपीय आन्दोलनों का प्रभाव – यूरोप के विभिन्न देशों, यथा-फ्रांस, यूनान एवं इटली, आयरलैण्ड में हो रहे स्वतन्त्रता आन्दोलन से भारतीयों के उत्साह में वृद्धि हुई। इस यूरोपीय राष्ट्रवाद ने उभरते हुए भारतीय राष्ट्रवाद को प्रभावित किया।

7. पश्चिमी शिक्षा का प्रभाव – सन् 1835 ई. में लार्ड मैकाले के सुझाव पर भारत ने अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देना प्रारम्भ किया गया। अंग्रेज सरकार चाहती थी कि इस शिक्षा के माध्यम से भारतीय सभ्यता, संस्कृति व राष्ट्रीय चेतना को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया जाए लेकिन इसका विपरीत प्रभाव पड़ा। कुछ स्वतन्त्रता प्रेमी लोगों ने अंग्रेजी भाषा का ज्ञान प्राप्त कर पश्चिम के साहित्य का अध्ययन प्रारम्भ किया। वहाँ के स्वतन्त्रता संग्राम के बारे में अध्ययन किया जिससे उनमें राष्ट्रीय चेतना व स्वतन्त्रता की भावना जाग्रत हुई, जो परोक्ष रूप से भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए वरदान सिद्ध हुई।

8. तीव्र परिवहन एवं संचार साधनों का विकास – अंग्रेजों ने भारत में प्रशासनिक सुविधाओं, जैसे-सैनिक रक्षा के उद्देश्य, आर्थिक विस्तार एवं व्यापारिक शोषण की बातों को ध्यान में रखकर रेलों व सड़कों का विकास किया। अंग्रेजों ने यह सुविधाएँ यद्यपि अपने हित के लिए विकसित की थीं, लेकिन इनके कारण भारतीयों के मध्य भौगोलिक दूरियाँ कम हुईं। वे परस्पर एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित करने लगे। इस प्रकार इन साधनों ने भारतीयों को संगठित कर राष्ट्रीय आन्दोलन को गति प्रदान की।

9. आधुनिक समाचार-पत्रों का उभरना – अंग्रेजों ने भारत में कारखाना स्थापित कर समाचार-पत्र व सस्ता साहित्य प्रकाशित करना प्रारम्भ कर दिया। भारतीय लोगों ने भी राष्ट्रीय आन्दोलन से सम्बन्धित समाचार पत्र प्रकाशित कराये। भारतीय समाचार-पत्र भारतीय राष्ट्रवाद का दर्पण तथा जनता को शिक्षित करने का माध्यम बन गये।

10. अंग्रेजों द्वारा भारतीयों से भेदभावपूर्ण नीति अपनाना – भारतीयों को सेना व प्रशासन में उच्च पदों से वंचित रखना, भारतीयों से जातिगत भेदभाव रखना, 1857 ई. में क्रान्ति के बाद भारतीयों का अपमान व अत्याचार, कानून के समक्ष अंग्रेजों व भारतीयों में असमानता आदि अंग्रेजों द्वारा किये गये कई ऐसे कार्य थे जिससे भारतीयों में असन्तोष उत्पन्न हुआ।

11. इतिहास में शोध का प्रभाव – सर विलियम जोन्स, मोनियर, विलियम्स, मैक्स मूलर, रॉथ तथा सस्सन जैसे विदेशी विद्वानों द्वारा भारतीय इतिहास में शोध करने के फलस्वरूप, भारत को सामूहिक सांस्कृतिक परम्परा का ज्ञान होने लगा। इससे विश्व के समक्ष प्राचीन भारतीय गौरव स्पष्ट हुआ। भारतीयों को जब अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता का ज्ञान हुआ, तो उनका आत्मविश्वास जागृत हुए। वे भारत की स्वतन्त्रता के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन में सम्मिलित हो गए।

12. मध्यमवर्गीय बुद्धिजीवियों का उत्थान – अंग्रेजों के प्रशासनिक तथा आर्थिक क्षेत्र की नवीन प्रक्रिया से नगरों में एक नवीन मध्यमवर्गीय नागरिकों की श्रेणी उत्पन्न हुई। इस नवीन श्रेणी ने तत्परता से अंग्रेजी भाषा सीखी क्योंकि इससे नौकरियाँ प्राप्त करने में सुविधा हो जाती थी और दूसरों से संम्मान भी मिलता था।

यह नवीन श्रेणी अपनी शिक्षा, समाज में उच्च स्थान तथा प्रशासक वर्ग के समीप होने के कारण आगे आ गई। यह मध्यम वर्ग आधुनिक भारत की नवीन आत्मा बन गया तथा इसने समस्त भारत में अपनी शक्ति का संचार कर दिया। इसी वर्ग ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस को इसके विकास के सभी चरणों में नेतृत्व प्रदान किया।

प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में हुए राष्ट्रीय उत्थान के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
19र्वी शताब्दी के अन्तिम चरण अर्थात् 1850 के पश्चात् हुए राष्ट्रीय उत्थान के लिये निम्नलिखित कारण प्रमुख रूप से उत्तरदायी रहे
1. सुधार आन्दोलनों का प्रभाव – राष्ट्रीय उत्थान में धार्मिक व सामाजिक सुधार आन्दोलनों का उल्लेखनीय योगदान रहा। समाज व धर्म के क्षेत्र में बहुत – सी कुरीतियाँ व अंधविश्वास व्याप्त थे। सुधार आन्दोलनों के परिणामस्वरूप आधुनिक भारत के निर्माण को प्रोत्साहन मिला तथा राष्ट्रीयता की पृष्ठभूमि तैयार हुई।

2. अँग्रेजी शिक्षा का प्रभाव – मैकाले ने 1835 में भारत में शिक्षा का माध्यम अँग्रेजी निश्चित किया जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय चेतना को नष्ट करना था किन्तु इसका विपरीत प्रभाव हुआ। अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त भारतीयों ने पाश्चात्य साहित्य पढ़ा। मिल, स्पेन्सर आदि के विचारों को पढ़कर तथा अमेरिका, इटली व आयरलैण्ड के स्वतन्त्रता संग्रामों के बारे में जानकर भारतीयों के मन में भी राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत हुई।

3. समाचार – पत्रों व पत्रिकाओं का प्रभाव – एक स्वतन्त्र प्रेस व विदेशी राज एक दूसरे के विरोधी होते हैं। इस काल के प्रमुख समाचार-पत्र थे-संवाद कौमुदी, बॉम्बे समाचार, बंगदूत, अमृत बाजार पत्रिका, ट्रिब्यून, हिन्दू, केसरी आदि। इनमें ब्रिटिश सरकार की अन्यायपूर्ण नीति की आलोचना की गई थी। इससे भी राष्ट्रीय चेतना को बल मिला।

4. भारत का आर्थिक शोषण – ब्रिटिश सरकार की आर्थिक शोषण की नीति ने भारतीय उद्योगों को पूर्णतया नष्ट कर दिया। व्यापार पर भी अँग्रेजों का नियंत्रण स्थापित हो गया। निर्यात होने वाली भारतीय वस्तुओं पर भारी कर लगाया जाता था जबकि ब्रिटिश माल पर आयात कर की छूट थी। भारत से कच्चा माल ले जाकर मशीनों से तैयार ब्रिटिश माल लाकर भारतीय बाजारों में बेचा जाता था। इससे आर्थिक स्थिति शोचनीय होती गई और भारतीयों में असन्तोष बढ़ता गया।

5. जाति विभेद नीति – 1857 के विद्रोह के बाद भारतीयों को घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगा। सार्वजनिक स्थलों पर उनके साथ भेदभावपूर्ण तथा अपमानजनक व्यवहार किया जाता था। न्याय के क्षेत्र में भी भेदभाव किया जाता था इससे भारतीयों ने विद्रोह की भावना पनपने लगी। इससे राष्ट्रीयता की भावना का तीव्र गति से संचार हुआ।

6. सरकारी नौकरियों में भेदभाव-सन् 1858 में महारानी विक्टोरिया की घोषणा में कहा गया था कि सरकारी पदों पर नियुक्ति केवल योग्यता के आधार पर ही की जायेगी तथा भारतीयों व यूरोपियनों में कोई भेद नहीं किया जायेगा किन्तु व्यवहार में इसका पालन नहीं किया गया। इससे भारतीयों के मन में क्षोभ उत्पन्न हुआ तथा आन्दोलन की प्रोत्साहन मिला।

7. यातायात व संचार के साधनों का विकास – ब्रिटिश सरकार ने यद्यपि स्वहित की भावना से यातायात व संचार के साधनों का जाल बिछाया था किन्तु इससे भारतीयों की परस्पर दूरी कम हुई। विचारों का आदान-प्रदान हुआ तथा जन – साधारण में जाग्रति आई।

8. लॉर्ड लिटन की अन्यायपूर्ण नीति-लॉर्ड लिटन (1876-80) ने प्रतिक्रियावादी शासन की स्थापना की। उदाहरणार्थ – भारतीय लोक सेवा की आयु घटाकर 21 से 18 वर्ष करना; दक्षिण में पड़ रहे भीषण अकाल के समय दिल्ली में शाही दरबार का आयोजन; साम्राज्यवादी नीति के तहत अफगानिस्तान पर आक्रमण तथा इन सबके लिये भारतीय जनता से अधिकाधिक करों की वसूली आदि। इससे जनता ब्रिटिश शासन के और भी विरुद्ध हो गई।

9. भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना-सन् 1885 में अपनी स्थापना के समय भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस एक राष्ट्रीय संस्था थी जो सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करती थी। प्रारम्भ में यह ब्रिटिश सरकार का अस्तित्व भारत के हित में समझती थी किन्तु शनैः – शनैः इसके उद्देश्यों में परिवर्तन होता गयो तथा राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व इसके हाथों में आ गया।

10. लॉर्ड कर्जन की दमन नीति – लॉर्ड कर्जन (1898-1905) एक कुशल प्रशासक था किन्तु वह भारतीयों से घृणा करता था। उसके समय में कई प्रतिकूल अधिनियम पारित हुए। सन् 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया गया। उसने यह राष्ट्रीयता की लहर को रोकने के लिये किया था किन्तु इसका विपरीत प्रभाव हुआ। बंगाल क्रान्तिकारियों का • केन्द्र बन गया तथा धीरे-धीरे यह आन्दोलन देश के विभिन्न हिस्सों में भी फैल गया। इस प्रकार उपर्युक्त कारणों ने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध ने भारतीयों में राष्ट्रीयता का तीव्र गति से संचार किया।

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय आन्दोलन की विशेषताओं को संक्षेप में समझाते हुए इसके चरणों को उल्लिखित कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रमुख विशेषताएँ:
1. लम्बी अवधि-भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन एक लम्बी अवधि तक चला। इस आन्दोलन का प्रारम्भ अठारहवीं शताब्दी के मध्य ही हो गया था फिर भी 1857 ई. में प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम शुरू हुआ और 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना के साथ आन्दोलन का जो रूप उपस्थित हुआ, उसकी समाप्ति 15 अगस्त, 1947 को हुई।

2. क्रान्तिकारी एवं शान्तिपूर्ण आन्दोलन – भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान अतिवादियों ने क्रान्तिकारी साधनों का प्रयोग किया। इसके अतिरिक्त महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह जैसे शान्तिपूर्ण तरीकों को भी स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु अपनाया गया।

3. सांविधानिक विकास – भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ-साथ सांविधानिक विकास का कार्य भी चलता रहा। सन् 1861, 1892, 1909, 1919 एवं 1935 के भारतीय परिषद् अधिनियमों एवं भारत शासन अधिनियमों को पारित कर उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई। अन्त में 1947 ई. के भारत स्वतन्त्रता अधिनियम के तहत भारत को अंग्रेजों की दासता से स्वतन्त्रता प्राप्त हुई।

4. जन आन्दोलन – भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रारम्भ बुद्धिजीवियों द्वारा किया गया। लेकिन बाद में इसने जन आन्दोलन का रूप धारण कर लिया। इस आन्दोलन में किसान और मजदूर भी सम्मिलित हो गये। इस प्रकार भारत की स्वतन्त्रता के लिए चलाये जा रहे राष्ट्रीय आन्दोलन ने एक जन आन्दोलन का रूप ले लिया।

5. धार्मिक आन्दोलन – भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में धर्म सुधार आन्दोलनों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज, राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज, स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण मिशन एवं एनीबेसेन्ट ने थियोसोफिकल सोसायटी के माध्यम से धार्मिक और राष्ट्रीय नवजागरण का कार्य किया और समाज की बुराईयों को दूर करने का प्रयास किया।

6. सामाजिक एवं आर्थिक आन्दोलन – भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वरूप राजनीतिक ही नहीं था, इस आन्दोलन के सामाजिक तथा आर्थिक पक्ष भी थे। महात्मा गाँधी ने सामाजिक कुरीतियों एवं आर्थिक दुर्बलताओं के विरुद्ध भी अभियान चलाया और राजनीतिक कार्यक्रम के साथ-साथ सामाजिक एवं आर्थिक कार्यक्रम को भी रखा। आर्थिक तथा सामाजिक त्रुटियों को दूर करना भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का एक प्रमुख लक्ष्य था।

7. आन्दोलन के विश्वव्यापी प्रभाव – भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के विभिन्न घटनाक्रमों का सम्पूर्ण विश्व पर प्रभाव पड़ा। भारत में चल रहे स्वतन्त्रता के संग्राम से प्रभावित होकर बर्मा, इण्डोनेशिया एवं अफ्रीकी देशों ने भी स्वतन्त्रता का संघर्ष प्रारम्भ कर दिया।

8. आन्दोलन का राष्ट्रीय स्वरूप – भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में सभी धर्मों के लोग, महिलाएँ, विद्यार्थी, किसान एवं मजदूर संघ सम्मिलित हुए। सभी ने एकजुट होकर भारत में ब्रिटिश शासन का विरोध किया।

राष्ट्रीय आन्दोलन के चरण:
1. प्रथम चरण – राष्ट्रीय आन्दोलन के इस चरण का प्रारम्भ 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ। इस चरण में शान्तिपूर्ण एवं अनुनय-विनयपूर्ण तरीके से स्वतन्त्रता प्राप्ति के प्रयास किये गये। 1905 ई. तक चले इस युग को उदारवादी युग के नाम से जाना गया।

2. द्वितीय चरण – राष्ट्रीय आन्दोलन का यह चरण 1906 से प्रारम्भ हुआ। इसे अतिवादी आन्दोलन का युग कहा गया। उदारवादी काल में कुछ ऐसी घटनाएँ हुईं जिनसे अंग्रेजों से भारतीय रुष्ट हो गये और उनकी न्यायप्रियता से विश्वास उठ गया। वे सोचने को बाध्य हुए कि स्वराज्य माँगने से नहीं, संघर्ष से ही मिल सकता है। संघर्ष द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्त करने का मार्ग अपनाने वाली इस धारा को ही ‘उग्र राष्ट्रीयता’ या ‘अतिवादी आन्दोलन’ के नाम से जाना जाता है।

3. तृतीय चरण – राष्ट्रीय आन्दोलन का यह चरण मुख्य रूप से 1922 ई. के पश्चात् प्रारम्भ हुआ। यह चरण क्रान्तिकारी एवं गाँधीवादी आन्दोलन का संयुक्त चरण कहलाता है। राष्ट्रीय आन्दोलन के इस चरण में क्रान्तिकारी गतिविधियाँ हुईं तथा गाँधीजी ने भी राष्ट्रीय आन्दोलन में अपनी भूमिका का निर्वाह किया। राष्ट्रीय आन्दोलन के इस चरण में अंग्रेजी शासन के विरोध हेतु क्रान्तिकारी एवं गाँधीवादी, ये दोनों धाराएँ समानान्तर चलती रहीं।

प्रश्न 4.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में उदारवादी, अतिवादी, क्रान्तिकारी एवं गाँधीजी की भूमिका, लक्ष्य आदि को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में उदारवादियों की भूमिका एवं लक्ष्य:
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में सन् 1885 से 1905 तक का काल उदारवादी युग कहलाता है। प्रमुख उदारवादी नेताओं में दादा भाई नौरोजी, महादेव रानाडे, फिरोजशाह मेहता, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, गोपालकृष्ण गोखले, पं. मदन मोहन मालवीय, ए. ओ. ह्यूम, आनन्द मोहन घोष एवं उमेश चन्द्र बनर्जी आदि प्रमुख थे। उदारवादी नेताओं ने ब्रिटिश सम्राट के प्रति विश्वास और सहयोग की नीति अपनायी एवं याचना, स्मृति पत्रों एवं प्रतिनिधि मण्डलों के आधार पर भारतीय जनता को राजनीतिक अधिकार दिलाने का प्रयत्न करते रहे।

उनका मानना था कि ब्रिटिश शासन भारत के लिए लाभदायक सिद्ध हुआ है। ब्रिटिश शासन के कारण भारत में शिक्षा व संचार के साधनों का विकास हुआ है। वे ब्रिटिश सरकार से किसी भी स्थिति में संघर्ष नहीं चाहते थे। उनकी हिंसा में आस्था नहीं थी और अपने लक्ष्य के लिए वे क्रान्तिकारी मार्ग भी नहीं अपनाना चाहते थे। उदारवादियों का विश्वास था कि ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध बल प्रयोग कर दबाव बढ़ाने से प्रतिक्रिया होगी तथा वे लोगों के साथ निर्दयतापूर्ण व्यवहार करने लगेंगे। इससे जनता के कष्टों में वृद्धि होगी। उदारवादियों का लक्ष्य भारत में स्वशासन की स्थापना करना था। स्वशासन की धारणा को यह लक्ष्य ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन स्वशासन तक सीमित था।

अतिवादियों की भूमिका एवं लक्ष्य-उदारवादी काल में कुछ ऐसी घटनाएँ हुईं जिनसे अंग्रेजों से भारतीय नाराज हो गए और उनकी न्यायप्रियता से विश्वास उठ गया तथा वे यह सोचने को मजबूर हो गये कि स्वराज्य माँगने से नहीं बल्कि संघर्ष से ही मिल सकता है। संघर्ष द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्त करने के मार्ग को अपनाने वाली इस धारा को अतिवादी आन्दोलन के नाम से जाना जाता है। अतिवादी नेताओं ने सन् 1906 से सन् 1919 तक भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व किया। प्रमुख अतिवादी नेताओं में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष व विपिनचन्द्र पाल आदि सम्मिलित थे। अतिवादियों को लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति था। इन्होंने स्वदेशी आन्दोलन तथा बहिष्कार के साधन अपनाए।

जिससे जनता में आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास एवं राष्ट्रीयता की नयी लहर उत्पन्न कर दी। अतिवादी त्याग और कष्ट के लिए सदैव तत्पर रहते थे। इन्होंने अंग्रेजों के प्रति असहयोग का भाव रखा ये तत्काल सुधारों के समर्थक थे। इनका विश्वास था कि स्वतन्त्रता दान में प्राप्त नहीं की जाती बल्कि उसे शक्ति से प्राप्त किया जाता है। क्रान्तिकारियों की भूमिका- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में क्रान्तिकारियों की भूमिका 1922 ई. के पश्चात् प्रारम्भ होती है।

प्रमुख क्रान्तिकारी नेताओं में सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, विनायक दामोदर सावरकर, खुदीराम बोस, बटुकेश्वर दत्त, चापेकर बन्धु, लाला हरदयाल, राम प्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, राजेन्द्र लाहिड़ी, अशफाक उल्लाह ख़ाँ, श्यामकृष्ण जी वर्मा, राजगुरु आदि सम्मिलित थे। ये क्रान्तिकारी देश भक्ति की भावना से परिपूर्ण थे।

वे शान्तिपूर्ण संघर्ष में विश्वास नहीं करते थे। हिंसा व आतंक द्वारा अंग्रेजी शासन को पूर्णत: नष्ट करना चाहते थे। इनका लक्ष्य भारत में क्रान्ति लाकर विदेशी शासन का अन्त करके सच्चा लोकतन्त्र स्थापित करना था। गाँधीजी की भूमिका एवं लक्ष्य-राष्ट्रीय आन्दोलन का अन्तिम चरण क्रान्तिकारी आन्दोलन के साथ गाँधीवादी आन्दोलन से भी सम्बन्धित था। गाँधीवादी आन्दोलन का यह चरण मुख्यत: 1922 ई. से प्रारम्भ होता है।

भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने सन् 1919 में भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व सम्भाला और उसके पश्चात् वे जीवनपर्यन्त राष्ट्रीय आन्दोलन के केन्द्र बिन्दु बने रहे। इसीलिए 1919 से लेकर भारत की स्वतन्त्रता तक के राष्ट्रीय आन्दोलन के काल को ‘गाँधीयुग’ के नाम से जाना जाता है।

इस काल में गाँधी जी तीन प्रमुख आन्दोलन किए, यथा-असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन एवं भारत छोड़ो आन्दोलन। इन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन को जन आन्दोलन का रूप दिया। इनके नेतृत्व में सभी वर्गों के लोग संगठित होकर राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने लगे। इन्होंने अहिंसात्मक क्रान्ति का मार्ग अपनाया और उसके बल पर राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के लक्ष्य को प्राप्त किया।

इन्होंने खादी कार्यक्रम, स्वदेशी आन्दोलन, नशाबंदी, हरिजनोद्धार, महिला उत्थान, गृह उद्योग का प्रचार, हिन्दू-मुस्लिम एकता, बेसिक शिक्षा आदि से सम्बन्धित रचनात्मक कार्य किये। ये सत्य-अहिंसा व शान्ति के बल पर स्वतन्त्रता प्राप्त करना चाहते थे और उसमें सफल भी हुए।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में सामाजिक व सांस्कृतिक पुनर्जागरण के जनक थे-
(अ) स्वामी दयानन्द सरस्वती
(ब) फिरोजशाह मेहता
(स) मैकाले
(द) कौटिल्य।
उत्तर:
(अ) स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रश्न 2.
किस समाचार-पत्र ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में जनजागरण में महती भूमिका निभाई
(अ) अमृत बाजार पत्रिका
(ब) राजस्थान पत्रिका
(स) दैनिक भास्कर
(द) दिव्य भास्कर।
उत्तर:
(अ) अमृत बाजार पत्रिका

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय आन्दोलन के उदय के कारणों में शामिल नहीं है
(अ) समकालिक यूरोपीय आन्दोलनों का प्रभाव
(ब) अंग्रेजों द्वारा भारत का आर्थिक शोषण
(स) जातीय भेदभाव
(द) अंग्रेजों का उदारतापूर्ण व्यवहार।
उत्तर:
(द) अंग्रेजों का उदारतापूर्ण व्यवहार।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आन्दोलन का चरण नहीं है
(अ) उदारवादी आन्दोलन का युग
(ब) अतिवादी आन्दोलन का युग
(स) क्रान्तिकारी आन्दोलन एवं गाँधीजी की भूमिका
(द) अलगाववादी युग।
उत्तर:
(द) अलगाववादी युग।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 13 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
हमारे देश में राष्ट्रीय आन्दोलन का उदय एवं विकास उपज है
(अ) साम्राज्यवादी व्यवस्था की।
(ब) राजनीतिक व्यवस्था की
(स) सामाजिक व्यवस्था की
(द) राजनीतिक व्यवस्था की।
उत्तर:
(अ) साम्राज्यवादी व्यवस्था की।

प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की समयावधि है
(अ) 1857 ई.-1905 ई.
(ब) 1905 ई.-1947 ई.
(स) 1857 ई-1947 ई.
(द) 1922 ई.-1947 ई.।
उत्तर:
(स) 1857 ई-1947 ई.

प्रश्न 3.
भारतीय पुनर्जागरण के जनक कहलाते हैं
(अ) स्वामी विवेकानन्द व रामकृष्ण परमहंस
(ब) स्वामी विवेकानन्द व दयानन्द सरस्वती
(स) स्वामी स्वरूपानन्द व राजा राममोहन राय।
(द) स्वामी दयानन्द सरस्वती व राजा राममोहन राय।
उत्तर:
(द) स्वामी दयानन्द सरस्वती व राजा राममोहन राय।

प्रश्न 4.
स्वामी दयानन्द सरस्वती को ‘इलियड का नायक’ किसने कहा?
(अ) रोमन रोलां ने
(ब) स्वामी विवेकानन्द ने
(स) लार्ड मैकाले ने
(द) राजा राममोहन राय ने।
उत्तर:
(अ) रोमन रोलां ने

प्रश्न 5.
थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना किसने की?
(अ) स्वामी विवेकानन्द ने
(ब) एनीबेसेन्ट ने
(स) रोमन रोलां ने
(द) बाल गंगाधर तिलक ने।
उत्तर:
(ब) एनीबेसेन्ट ने

प्रश्न 6.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के उदय का प्रमुख कारण था
(अ) सामाजिक व सांस्कृतिक पुनर्जा-रण
(ब) भारत की राजनीतिक एकता
(स) पश्चिमी शिक्षा का प्रभाव
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 7.
‘अंग्रेजी प्रशासन का सबसे प्रमुख अंग था उसकी अवैयक्तिकता” यह कथन किस विद्वान का है?
(अ) पर्सिबेल स्पीयर को
(ब) लार्ड मैकाले का
(स) हरबर्ट स्पेन्सर का
(द) रूसो का।
उत्तर:
(अ) पर्सिबेल स्पीयर को

प्रश्न 8.
परतन्त्र भारत में देश को जोड़ने वाला प्रमुख साधन था।
(अ) सड़क
(ब) रेल
(स) हवाई जहाज
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) रेल

प्रश्न 9.
निम्न में से किसके सुझाव पर भारत में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रारम्भ हुई?
(अ) लार्ड मैकाले
(ब) लार्ड क्लाइव
(स) एडसिन आरनल्ड
(द) गोपाल कृष्ण गोखले।
उत्तर:
(अ) लार्ड मैकाले

प्रश्न 10.
निम्न में से किस वर्ष अंग्रेज सरकार ने वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट पारित किया था?
(अ) 1920 ई. में
(ब) 1878 ई. में.
(स) 1857 ई. में
(द) 1946 ई. में।
उत्तर:
(ब) 1878 ई. में.

प्रश्न 11.
निम्न में से किस भारतीय समाचार-पत्र ने जनमत के निर्माण एवं राष्ट्रीयता के प्रसार में मुख्य भूमिका निभायी
(अ) दि इण्डियन मिरर
(ब) दि बंगाली
(स) दि मराठी
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 12.
निम्न में से किस विदेशी विद्वान ने प्राचीन भारतीय इतिहास में शोध किया
(अ) सर विलियम जोन्स
(ब) मैक्समूलर
(स) रॉथ
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 13.
प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कब हुआ?
(अ) 1857 ई. में.
(ब) 1956 ई. में.
(स) 1942 ई. में
(द) 1946 ई. में।
उत्तर:
(अ) 1857 ई. में.

प्रश्न 14.
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का स्थापना वर्ष है
(अ) 1854 ई.
(ब) 1855 ई.
(स) 1947 ई.
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) 1855 ई.

प्रश्न 15.
“ब्रिटिश सरकार शक्ति के बिना भारत नहीं छोड़ सकती” यह कथन है
(अ) महात्मा गाँधी का
(ब) राजा राममोहन राय का
(स) आर. सी. मजूमदार का
(द) बाल गंगाधर तिलक का।
उत्तर:
(अ) महात्मा गाँधी का

प्रश्न 16.
महात्मा गाँधी द्वारा संचालित स्वतन्त्रता आन्दोलन था
(अ) असहयोग आन्दोलन
(ब) सत्याग्रह आन्दोलन
(स) भारत छोड़ो आन्दोलन
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 17.
यह किस महान व्यक्ति का कथन है-“स्वदेशी राज्य विदेशी राज्य से श्रेष्ठ होता है।”
(अ) स्वामी विवेकानन्द
(ब) स्वामी दयानन्द सरस्वती
(स) रामकृष्ण परमहंस
(द) एनीबेसेंट।
उत्तर:
(ब) स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रश्न 18.
अतिवादी आन्दोलन का प्रारम्भ वर्ष है
(अ) 1906 ई.
(ब) 1947 ई.
(स) 1922 ई.
(द) 1958 ई.।
उत्तर:
(अ) 1906 ई.

प्रश्न 19.
1905 ई. तक के राष्ट्रीय आन्दोलन के युग को किस नाम से जाना जाता है
(अ) अतिवादी युग
(ब) उदारवादी युग
(स) गाँधीवादी युग
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) उदारवादी युग

प्रश्न 20.
निम्न में से किस राष्ट्रीय आन्दोलन के किस चरण का लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति था
(अ) दूसरा चरण
(ब) प्रथम चरण
(स) तृतीय चरण
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) दूसरा चरण

RBSE Class 11 Political Science Chapter 13 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हमारे देश में राष्ट्रीय आन्दोलन का उदय एवं विकास केसे हुआ?
उत्तर:
हमारे देश में राष्ट्रीय आन्दोलन का उदय एवं विकास साम्राज्यवादी व्यवस्था की उपज है।

प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की कालावधि बताइए।
उत्तर:
1857 ई. से 15 अगस्त, 1947 तक।

प्रश्न 3.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के उदय के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. सामाजिक व सांस्कृतिक पुनर्जागरण
  2. पश्चिमी शिक्षा का प्रभाव।

प्रश्न 4.
भारतीय पुनर्जागरण के जनक कौन थे?
उत्तर:
स्वामी दयानन्द सरस्वती एवं राजा राममोहन राय।।

प्रश्न 5.
किन्हीं दो सामाजिक संगठनों का नाम बताइए जिन्होंने भारत में सामाजिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण में सहयोग प्रदान किया?
उत्तर:

  1. आर्य समाज
  2. ब्रह्म समाज।

प्रश्न 6.
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने किस शब्द पर विशेष बल दिया?
उत्तर:
स्वराज्य शब्द पर।

प्रश्न 7.
आर्यसमाज के आन्दोलन ने राष्ट्रीय चरित्र किस प्रकार धारण कर लिया?
उत्तर:
स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा स्वराज्य पर विशेष बल देने के कारण आर्य समाज के आन्दोलन ने राष्ट्रीय चरित्र धारण कर लिया।

प्रश्न 8.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना किसने की?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द ने।

प्रश्न 9.
भारत के बारे में स्वामी विवेकानन्द के क्या विचार थे?
उत्तर:
हमारे देश भारत के बारे में स्वामी विवेकानन्द के विचार थे-“एक बार पुनः भारत द्वारा विश्व जीता जाएगा।”

प्रश्न 10.
भारत में थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना किसने की?
उत्तर:
श्रीमती ऐनीबेसेन्ट ने।

प्रश्न 11.
अंग्रेजों ने भारत में परिवहन एवं संचार के साधनों का विकास क्यों किया?
उत्तर:
अंग्रेजों ने भारत में प्रशासनिक सुविधा, सैनिक रक्षा, आर्थिक विस्तार एवं व्यापारिक शोषण के लिए परिवहन एवं संचार के साधनों का विकास किया।

प्रश्न 12.
ब्रिटिश शासन में देश को बाँधने वाला सबसे बड़ा साधन क्या था?
उत्तर:
रेलवे।

प्रश्न 13.
आधुनिक संचार के साधनों ने भारत में राष्ट्रवाद को किस प्रकार बढ़ावा दिया?
उत्तर:
आधुनिक संचार साधनों ने भारत के विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों को एक-दूसरे से सम्बन्ध बनाए रखने में सहयोग प्रदान किया जिससे राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिला।

प्रश्न 14.
अंग्रेजों ने कब व किसके सुझाव पर भारत में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देनी प्रारम्भ किया?
उत्तर:
1835 ई. में लॉर्ड मैकाले के सुझाव पर।

प्रश्न 15.
भारत में अंग्रेजों द्वारा प्रदत्त पश्चिमी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
भारतीय सभ्यता, संस्कृति एवं राष्ट्रीय चेतना को पूर्ण रूप से समाप्त करना।

प्रश्न 16.
भारतीय विद्वानों ने किन – किन विदेशी विद्वानों के साहित्य का अध्ययन किया?
उत्तर:
वाल्टेयर, बर्क, हरबर्ट स्पेन्सर, रूसो, जे. एस. मिल व बेन्थम आदि विद्वानों के साहित्य का।

प्रश्न 17.
भारतीयों को स्वतन्त्रता के लिए प्रेरित करने वाली किन्हीं दो विदेशी क्रान्तियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. फ्रांस की राज्य क्रान्ति
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका का स्वतन्त्रता संग्राम।

प्रश्न 18.
उन विचारकों के नाम लिखिए जिन्होंने भारत के लिए अंग्रेजी शिक्षा को अपरिहार्य बताया।
उत्तर:

  1. राजा राममोहन राय
  2. दादा भाई नौरोजी।

प्रश्न 19.
ब्रिटिश सरकार ने वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट कब पारित किया?
उत्तर:
1878 ई. में।

प्रश्न 20.
किन्हीं दो विदेशी विद्वानों के नाम लिखिए जिन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास पर शोध किया?
उत्तर:

  1. सर विलियम जोन्स
  2. मैक्समूलर।

प्रश्न 21.
किन्हीं दो भारतीय स्वतन्त्रता सेनानियों का नाम लिखिए जिन्होंने मैजिनी एवं गैरीबाल्डी के आन्दोलन पर व्याख्यान दिए एवं लेख लिखे।
उत्तर:

  1. सुरेन्द्र नाथ बनर्जी
  2. लाला लाजपत राय।

प्रश्न 22.
भारत में ब्रिटिश आर्थिक नीति का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
भारत से सस्ती दरों पर कच्चा माल प्राप्त करना एवं तैयार माल की खपत के लिए भारत को एक मूल्यवान मण्डी बनाना।

प्रश्न 23.
जातीय भेद की भावना ने किस प्रकार भारतीयों को राष्ट्रीय रूप से एक होने के लिए प्रेरित किया?
उत्तर:
अंग्रेज श्वेत नस्ल के थे। उनके द्वारा भारतीयों के साथ रंग के आधार पर भेदभाव व घृणा की जाती थी। अंतः जातीय भेद के आधार पर अंग्रेजों की भारतीयों से घृणा ने उन्हें राष्ट्रीय रूप से एक होने के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 24.
भारत में राष्ट्रीय जागरण का अति महत्वपूर्ण प्रारम्भिक चरण कौन-सा था?
उत्तर:
1857 का स्वतन्त्रता संग्राम।

प्रश्न 25.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की कोई दो विशेषताएँ (लक्षण) लिखिए।
उत्तर:

  1. आन्दोलन की लम्बी अवधि
  2. विश्वव्यापी प्रभाव।

प्रश्न 26.
“स्वदेशी राज्य विदेशी राज्य से श्रेष्ठ होता है।” यह किस महापुरुष का कथन है?
उत्तर:
स्वामी दयानन्द सरस्वती का।

प्रश्न 27.
लन्दन टाइम्स समाचार-पत्र के उस विशेष प्रतिनिधि का नाम बताइए जो 1857 की क्रान्ति के समय भारत में मौजूद था।
उत्तर:
सर विलियम हावर्ड रसल।

प्रश्न 28.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के द्वितीय चरण को किस युग की उपमा दी गयी है?
उत्तर:
अतिवादी आन्दोलन के युग की।

प्रश्न 29.
अतिवादियों के प्रमुख कार्यक्रम क्या थे?
उत्तर:
स्वदेशी की संकल्पना, बहिष्कार एवं राष्ट्रीय शिक्षा।

प्रश्न 30.
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रथम चरण कब प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 13 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेजों द्वारा भारत का आर्थिक शोषण किस प्रकार राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रेरणा स्रोत बना?
अथवा
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के उदय में अंग्रेजों द्वारा भारत के आर्थिक शोषण की प्रमुख भूमिका थी। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के उदय में अंग्रेजों द्वारा भारत के आर्थिक शोषण की भूमिका – भारत में ब्रिटिश आर्थिक नीति का प्रमुख उद्देश्य एक ओर भारत से सस्ती दरों पर कच्चा माल प्राप्त करना था तथा दूसरी ओर तैयार माल की खपत के लिए भारत को एक मूल्यवान मण्डी बनाना था। ब्रिटिश सरकार की आर्थिक शोषण की नीति ने प्राचीन भारतीय हस्तशिल्प एवं कुटीर उद्योगों सहित सभी बड़े उद्योगों को नष्ट कर दिया। इनमें सूती, रेशमी, ऊनी कपड़े, लोहे, चमड़े व चीनी उद्योग प्रमुख थे। अंग्रेज भारत से कच्चा माल ब्रिटेन ले जाते थे और वहाँ से मशीनों द्वारा निर्मित माल भारत में लाकर बेचते थे।

यह माल भारत में लघु एवं कुटीर उद्योग-धन्धों से निर्मित माल से बहुत सस्ता होता था। अंग्रेजों ने भारतीय वस्तुओं पर, जो बाहर जाती थीं, भार कर लगा दिया और भारत में आने वाले माल पर आयात कर में अत्यधिक छूट देने के कारण भारतीय बाजार बाहर से आयातित वस्तुओं से भर गए। यहाँ के निवासियों के सम्मुख न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की भी समस्या उत्पन्न हो गयी।

कुटीर उद्योगों की समाप्ति पर लोगों का झुकाव कृषि की ओर हुआ किन्तु अकालों, कुटिल भू-राजस्व नीति एवं प्राकृतिक प्रकोपों के कारण उनकी स्थिति और भी दयनीय हो गयी। अंग्रेजों की इस आर्थिक शोषण की नीति के विरुद्ध भारतीय जनता में भारी असन्तोष था। इसी असन्तोष के कारण भारतीय जनता ने राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेना प्रारम्भ कर दिया।

प्रश्न 2.
ब्रिटिश शासक भारत में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा का प्रसार क्यों करना चाहते थे?
अथवा
भारत में अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने के पीछे अंग्रेजों का क्या उद्देश्य था? क्यों वे अपने उद्देश्य में सफल रहे?
उत्तर:
ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदान करने का मुख्य उद्देश्य भारतीय सभ्यता, संस्कृति एवं राष्ट्रीय चेतना को पूर्ण रूप से समाप्त करना था। अंग्रेज, अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से भारतीयों के एक ऐसे वर्ग का निर्माण करना चाहते थे, जो रक्त और वर्ण से भारतीय हो किन्तु रुचि, विचार, शब्द और बुद्धि से अंग्रेज बन जाए। इस उद्देश्य में अंग्रेजों को पर्याप्त सफलता भी प्राप्त हुई क्योंकि इस पद्धति से शिक्षा प्राप्त करने वाले भारतीय लोग अपनी संस्कृति को भुलाकर पाश्चात्य संस्कृति का गुणगान करने लगे।

प्रश्न 3.
अंग्रेजी भाषा के ज्ञान से भारतीयों को किस प्रकार लाभ प्राप्त हुआ?
अथवा
‘अंग्रेजी भाषा का ज्ञान भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए वरदान सिद्ध हुआ’ – कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अंग्रेजी भाषा का ज्ञान प्राप्त करके भारतीयों ने पश्चिमी देशों के साहित्य का अध्ययन प्रारम्भ कर दिया। भारतीय विद्वानों को वाल्टेयर, हरबर्ट स्पेन्सर, जे. एस. मिले, रूसो, बेन्थम आदि के विचारों का ज्ञान हुआ। जब भारतीयों ने अमेरिका के स्वतन्त्रता संग्राम, फ्रांस की राज्य क्रान्ति, इटली में विदेशी सत्ता के विरुद्ध संघर्ष तथा आयरलैण्ड के स्वतन्त्रता संग्राम के सम्बन्ध में अध्ययन किया तो उनमें राष्ट्रीय चेतना व स्वतन्त्रता की भावना जागृत हुई।

राजा राममोहन राय, फिरोजशाह मेहता, दादा भाई नौरोजी, व्योमेश चन्द्र बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले आदि नेता अंग्रेजी शिक्षा की ही देन थे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनेक भारतीय विद्वान इंग्लैण्ड गए तथा वहाँ के स्वतन्त्र व उदात्त वातावरण से इतने अधिक प्रभावित हुए कि भारत आने पर उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान दिया। शिक्षा के अंग्रेजी माध्यम ने भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँधा परिणामस्वरूप भारत में राष्ट्रीयता की भावना निरन्तर प्रबल होती गयी।

प्रश्न 4.
आप केसे कह सकते हैं कि भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वरूप राष्ट्रीय था?
उत्तर:
भारत को ब्रिटिश दासता से मुक्त कराने हेतु राष्ट्रीय आन्दोलन एक लम्बे समय तक चला जो 1857 से प्रारम्भ होकर 15 अगस्त, 1947 को समाप्त हुआ। इस दौरान भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में विभिन्न जातियों, धर्मों व वर्गों के लोग सम्मिलित हुए। इस आन्दोलन में हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध एवं पारसी धर्म को मनाने वाले लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

महिलाओं ने भी इस आन्दोलन में बढ़ – चढ़ कर भाग लिया। किसानों एवं मजदूर संघों ने ब्रिटिश शासन का पुरजोर विरोध किया। विद्यार्थियों ने इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए अपने प्राण तक दे दिये। सम्पूर्ण देश में लोगों ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई, शराब की दुकानों पर धरना दिया।

सरकारी स्कूल एवं कॉलेजों का बहिष्कार किया गया। सभी लोग कानूनी व गैर-कानूनी तरीकों को अपनाकर हर हालत में अंग्रेजी दासता से मुक्ति प्राप्त करना चाहते थे। किसी विषय पर सम्पूर्ण देश की एकजुटता पर लन्दन टाइम्स के विशेष प्रतिनिधि सर विलियम हावर्ड रसल ने 1857 की क्रान्ति के विषय में ठीक ही लिखा है “वह एक ऐसा युद्ध था, जिसमें लोग अपने धर्म के नाम पर, अपनी कौम के नाम पर, बदला लेने के लिए और अपनी आशाओं को पूरा करने के लिए उठे थे। उस युद्ध में समूचे राष्ट्र ने अपने ऊपर से विदेशियों के जुए को फेंककर उसकी जगह देशी नरेशों की पूरी सत्ता और देशी धर्मों का पूरा अधिकार फिर से स्थापित करने का संकल्प कर लिया था।”

RBSE Class 11 Political Science Chapter 13 निबंधात्मक प्रश्न :

प्रश्न 1.
भारतीयों पर पश्चिमी शिक्षा पद्धति के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
“पश्चिमी शिक्षा ने दुष्प्रभाव के साथ भारतीयों को लाभान्वित भी किया।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीयों पर पश्चिमी शिक्षा पद्धति का नकारात्मक प्रभाव (दुष्प्रभाव):
भारतीय सभ्यता, संस्कृति एवं राष्ट्रीय चेतना को समाप्त करने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने भारतवर्ष में अंग्रेजी शिक्षा प्रारम्भ करने का प्रावधान किया। 1835 ई. में लार्ड मैकाले के सुझाव पर भारतीयों को अंग्रेजी माध्यम से पाश्चात्य देने की व्यवस्था की गई। अंग्रेज चाहते थे कि भारत में एक ऐसे वर्ग का निर्माण किया जाए जो रक्त और वर्ग से तो भारतीय हों, किन्तु रुचि, विचार, भाषा, शब्द एवं बुद्धि आदि से अंग्रेज हों।

अंग्रेज बहुत सीमा तक अपने इस मनोरथ में सफल भी हुए। अंग्रेजी माध्यम में पाश्चात्य शिक्षा के प्रचार से भारत में ऐसे व्यक्तियों के वर्ग की स्थापना होनी प्रारम्भ हो गयी जो प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति को हेय दृष्टि से देखने लगे और अपने आपको पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति में ढालने लगे। इस प्रकार की शिक्षा भारतीयों के लिए एक दुष्प्रभाव के रूप में थी।

भारतीयों पर पश्चिमी शिक्षा पद्धति का सकारात्मक प्रभाव-पाश्चात्य शिक्षा ने दुष्प्रभाव के साथ – साथ भारतीयों को लाभान्वित भी किया। अंग्रेजी भाषा के ज्ञान के कारण भारतीयों ने पश्चिमी देशों के साहित्य का अध्ययन करना प्रारम्भ कर दिया। अंग्रेजी साहित्य स्वतन्त्रता की भावना से ओत-प्रोत था।

भारतीयों ने अंग्रेजी साहित्य पढ़कर, वाल्टेयर, बर्क, हरबर्ट स्पेन्सरे, रूसो, जे. एस. मिल, बैन्थम आदि के विचारों का ज्ञान प्राप्त किया। जब भारतीयों ने फ्रांस की राज्य क्रान्ति, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्वतन्त्रता संग्राम, इटली में विदेशी सत्ता के विरुद्ध संघर्ष एवं आयरलैण्ड के स्वतन्त्रता संग्राम का अध्ययन किया तो उनमें राष्ट्रीय चेतना एवं स्वतन्त्रता की भावना उत्पन्न हुई।

उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनेक भारतीय इंग्लैण्ड भी गए। वे वहाँ के स्वतन्त्र एवं उदार वातावरण से इतने प्रभावित हुए कि भारत आने पर उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान दिया। शिक्षा के अंग्रेजी माध्यम ने भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँधा फलस्वरूप भारतीयों में वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था के प्रति असन्तोष उत्पन्न हुआ और प्रशासन में सुधार की माँग जोर पकड़ने लगी।

राजा राममोहन राय, फिरोजशाह मेहता, दादा भाई नौरोजी, गोपालकृष्ण गोखले, व्योमेश चन्द्र बनर्जी आदि नेता अंग्रेजी शिक्षा की ही देन थे। इस प्रकार पाश्चात्य शिक्षा को भारत में स्थापित करने का अंग्रेजों का उद्देश्य भले ही भारतीयों की राष्ट्रीय भावनाओं को रोकने का रहा हो, परोक्ष रूप से वह भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए वरदान सिद्ध हुई।

प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन पर आधुनिक शिक्षा के प्रचलन को प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन पर आधुनिक शिक्षा का प्रभाव:
आधुनिक शिक्षा प्रणाली के प्रचलन से आधुनिक पाश्चात्य विचारों को अपनाने में सहायता मिली जिससे भारतीय राजनीतिक सोच को एक नई दिशा मिली। सर चार्ल्स ई. टे. विलियन, टी. वी. मैकाले तथा समकालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम ने जब सन् 1935 में देश में अंग्रेजी शिक्षा प्रारम्भ की जो कि अत्यन्त महत्वपूर्ण निर्णय के रूप में साबित हुई। ट्रेविलियन महोदय द्वारा एक सभा में भारतीय समिति के सम्मुख 1835 में कहा कि भारत में अंग्रेजी राज सदैव नहीं बना रह सकता।

इसका एक न एक दिन अन्त होना परमावश्यक है, या तो उन भारतीय लोगों के हाथों जो राजनीतिक परिवर्तन को आदर्श मानते हैं अथवा उन लोगों के हाथों जो अंग्रेजी पढ़ लिख जाएँगे और राजनीतिक परिवर्तन के अंग्रेजी आदर्श को मानने लगेंगे। यदि यह परिवर्तन लोगों के हाथों होगी तो इसमें बहुत समय लगेगा और भारत तथा अंग्रेजों के सम्बन्धों को तोड़ना न तो इतन’ हिंसात्मक होगा और न ही अंग्रेजों के लिए इतना हानिकारक क्योंकि सांस्कृतिक तथा व्यापारिक सम्बन्ध बने रहेंगे।

सन् 1833 में कॉमन सभा में दिए गए भाषण में मैकाले ने कहा कि “यह संभव है कि भारतीय सर्वसाधारण मत हमारी प्रणाली के अधीन विकसित हो जाए और हमारी प्रणाली से भी आगे निकल जाएँ अर्थात् हम अपने उत्तम प्रशासन के फलस्वरूप अपनी यूरोपीय भाषा में शिक्षित होकर किसी भविष्य काल में यूरोपीय संस्थाओं की मांग करें।

पाश्चात्य शिक्षा का प्रचार यद्यपि प्रशासनिक आवश्यकताओं के लिए किया गया था परन्तु इससे नवशिक्षित वर्ग के लिए पाश्चात्य, उत्तरवादी विचारधारा के द्वार खुल गए थे। मिल्टन, शैली, बेन्थम, मिल, स्पेन्सर, रूसो तथा वाल्टेयर ने भारतीय बुद्धिजीवियों में स्वतंत्रता, राष्ट्रीयता तथा स्वशासन की भावनाएँ जगा र्दी और उन्हें अंग्रेजी हुकूमत का विरोधाभास अखरने लगा।

नए बुद्धिजीवी लोग प्रायः कनिष्ठ प्रशासक, वकील, डॉक्टर, अध्यापक इत्यादि ही थे। इनमें से कुछ तो इंग्लैण्ड से शिक्षा ग्रहण करके आए थे। भारत लौटने पर उन्हें अनुभव हुआ कि उनके मौलिक अधिकार शून्य के बराबर हैं। उन्होंने अपने अधिकारों के बारे में सोचना प्रारम्भ किया। 1833 के चार्टर एक्ट तथा विक्टोरिया की 1858 की घोषणा के बावजूद ऊँचे पदों के द्वार भारतीयों के लिए बन्द ही थे। इससे असंतोष प्रबल हुआ। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, मनमोहन घोष, लाल मोहन घोष, और अरविन्द घोष जैसे लोग राष्ट्र आन्दोलन की ओर इसलिए ही आए।

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