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RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 18 भारत में संवैधानिक विकास – 1935 को भारत शासन अधिनियम

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 18 भारत में संवैधानिक विकास – 1935 को भारत शासन अधिनियम

Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Chapter 18 भारत में संवैधानिक विकास – 1935 को भारत शासन अधिनियम

RBSE Class 11 Political Science Chapter 18 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 18 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1935 के अधिनियम के अन्तर्गत संघ के निर्माण के साथ क्या शर्त थी?
उत्तर:
1935 के अधिनियम के अन्तर्गत संघ के निर्माण के लिए शर्त यह थी कि समस्त देशी रियासतों के कुल। क्षेत्र की 50 प्रतिशत जनसंख्या की आधी रियासतें संघ में सम्मिलित होने की इच्छा प्रकट करें।

प्रश्न 2.
भारतीय शासन अधिनियम, 1935 के अन्तर्गत गठित केन्द्रीय विधान मण्डल के दोनों सदनों के नाम क्या थे?
उत्तर:
1. संघीय विधान
2. सभा राज्य परिषद।

प्रश्न 3.
गवर्नर जनरल को 1935 के अधिनियम द्वारा प्रदत्त स्वविवेकी शक्तियाँ बताइए।
उत्तर:
1.सुरक्षाविदेशी
2.मामलेअवशिष्ट
3. शक्तियाँ।

प्रश्न 4.
प्रांतीय स्वायत्तता से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रांतीय स्वायत्तता से तात्पर्य यह है कि प्रत्येक प्रांत में अपनी कार्यपालिका एवं विधान मण्डले होना, जिन्हें अपने क्षेत्र में अनन्य अधिकार प्राप्त हों तथा वे केन्द्रीय शासन व केन्द्रीय विधान मण्डल से अधिकांशतः स्वतंत्र हों।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 18  लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1935 के अधिनियम की कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
1935 के अधिनियम की विशेषताएँ:
1935 के अधिनियम की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. विस्तृत अधिनियम – इस अधिनियम में 451 धारायें वे 15 अनुसूचियाँ थीं परन्तु प्रस्तावना का अभाव था। इससे पूर्व ब्रिटिश संसद ने इससे बड़ा कानून कभी नहीं बनाया था।
  2. केन्द्र में द्वैध शासन की स्थापना -1935 के अधिनियम द्वारा प्रांतों में जिस द्वैध शासन का अन्त किया गया उसी द्वैध शासन की स्थापना केन्द्र में की गई। सुरक्षा, विदेशी मामले, धार्मिक मामले एवं कबायली क्षेत्रों की व्यवस्था आदि केन्द्रीय विषयों को गवर्नर के पास रखा गया।
  3. प्रान्तीय स्वायत्तता -1905 के अधिनियम द्वारा लागू प्रान्तों में द्वैध शासन को समाप्त करके उन्हें पूर्ण स्वाधीनता प्रदान की गई। सम्पूर्ण प्रान्तीय शासन लोकप्रिय मंत्रियों को सौंपा गया।
  4. शक्ति विभाजन – प्रस्तावित संघ की स्थापना के उद्देश्य की पूर्ति हेतु केन्द्र व प्रान्तीय सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया। तीन सूचियों (संघ सूची, प्रांतीय सूची एवं समवर्ती सूची) की व्यवस्था की गयी।

प्रश्न 2.
‘प्रांतों में उत्तरदायी शासन अपूर्ण था।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1935 के अधिनियम द्वारा प्रांतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई थी। प्रांतों में वैध शासन को समाप्त करके उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गई। प्रांतों के सभी विभागों पर मंत्रियों का नियंत्रण स्थापित कर दिया गया जो विधान सभा में बहुमत प्राप्त दल के सदस्य होते थे तथा विधान सभा के प्रति संयुक्त रूप से उत्तरदायी होते थे। यह भी निश्चित किया गया कि मंत्रिमण्डल सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत के आधार पर कार्य करेगा।

लेकिन प्रांतों में इस प्रकार का उत्तरदायी शासन अपूर्ण था। अधिनियम के अनुसार यद्यपि प्रांतों को स्वतन्त्रता प्रदान की गई थी लेकिन गवर्नर और गवर्नर जनरल के विवेकाधिकार एवं विशेष उत्तरदायित्वों के माध्यम से प्रांतों के शासन में हस्तक्षेप की गुजाइश भी रखी गयी थी। केन्द्रीय शासन के पास इस प्रकार की शक्तियाँ र्थी, जिसके माध्यम से प्रांतीय क्षेत्र में हस्तक्षेप किया जा सके। गवर्नर जनरल आपातकाल की घोषणा करके प्रांतीय स्वायत्तता को समाप्त कर सकता था।

कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी विभिन्न मंत्रियों को प्रदान तो कर दी गई थी लेकिन प्रांत में शांति बनाए रखने का उत्तरदायित्व गवर्नर का था। इस उत्तरदायित्व की आड़ में गवर्नर आन्दोलनों का दमन कर सकता था तथा नागरिक स्वतंत्रताओं को कुचल सकता था। मंत्रियों की स्थिति कमजोर थी। सामूहिक उत्तरदायित्व का अभाव था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रांतों में उत्तरदायी शासन अपूर्ण था।

प्रश्न 3.
संघीय न्यायालय के संगठन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संघीय न्यायालय का संगठन:
1935 के अधिनियम द्वारा एक संघीय न्यायालय की स्थापना की गयी। इस न्यायालय का अधिकार क्षेत्र प्रान्तों तथा रियासतों तक फैला हुआ था। न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश, दो अन्य न्यायाधीश की नियुक्तियों का प्रावधान था। न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष रखी गयी। मुख्य न्यायाधीश का १ 7000 व अन्य न्यायाधीशों को रे 5500 मासिक वेतन निर्धारित किया गया।

इस न्यायालय को मौलिक व अपील सम्बन्धी अधिकार दिये गये। संघीय न्यायालय का कर्तव्य था कि वह संविधान की व्याख्या करे तथा इस बात का ध्यान रखे कि प्रान्तीय तथा संघीय सरकारें एक-दूसरे के क्षेत्र का अतिक्रमण न करें। यद्यपि इस सम्बन्ध में अन्तिम शक्ति लन्दन स्थित ‘प्रिवी परिषद कौन्सिल’ को प्राप्त थी।

प्रश्न 4.
1935 के अधिनियम के कोई चार दोष गिनाइए।
उत्तर:
1935 के अधिनियम के दोष:
1935 के अधिनियम के चार प्रमुख दोष अग्रलिखित थे –

  1. निरर्थक अधिनियम – भारतीयों के मतानुसार इस अधिनियम में न तो स्वाधीनता का प्रावधान था, न ही औपनिवेशिक स्वराज्य का कहीं उल्लेख था। अतः यह भारतीयों के लिए निरर्थक था।
  2. भारत की समस्या का समाधान नहीं – भारत में निरन्तर आजादी की माँग उठ रही थी। ब्रिटिश बौद्धिकों व श्रमिक दल के नेताओं का मनना था कि यह अधिनियम भारत की समस्या का कोई समाधान प्रस्तुत नहीं करता है।
  3. संरक्षण एवं आरक्षण की व्यवस्था का दोषपूर्ण होना – सन् 1935 के अधिनियम के अन्तर्गत की गयी संरक्षण तथा आरक्षण की व्यवस्था भारत में उत्तरदायी शासन को असफल करने की सोची – समझी योजना थी। ये प्रावधान ब्रिटिश साम्राज्यवाद की रक्षा के उपाय थे। अल्पसंख्यकों, लोक सेवाओं एवं देशी रियासतों के सम्बन्ध में गवर्नर जनरल एवं प्रान्तीय गवर्नरों को विशेष दायित्व सौंपे गए थे। स्वविवेकीय शक्तियाँ लोकतन्त्र की भावना के विपरीत थीं।
  4. आत्मनिर्णय के अधिकार का अभाव – 1935 के अधिनियम में नवीन संविधान को स्वतः विकसित होने या भारतीयों द्वारा अपने भाग्य निर्धारण का अधिकार नहीं था। भारत पर ब्रिटिश पार्लियामेंट वे भारत मन्त्री के नियन्त्रण में कोई कमी नहीं की गयी।

प्रश्न 5.
क्या गवर्नर जनरल संवैधानिक अध्यक्ष नहीं था? स्पष्ट करें।
उत्तर:
1935 के भारत शासन अधिनियम के द्वारा द्वैध शासन को समाप्त करके प्रान्तों को स्वशासित राजनीतिक इकाई का रूप प्रदान किया गया। केन्द्रीय हस्तक्षेप में उन्हें स्वतन्त्रता प्रदान की गयी। प्रान्तों को प्रान्तीय सूची के 54 विषयों पर विधायी, प्रशासकीय एवं वित्तीय क्षेत्र से सत्ता प्रदान की गयी। इस अधिनियम के तहत प्रान्तीय स्वशासन में गवर्नर को एक संवैधानिक अध्यक्ष के रूप में कार्य करना था किन्तु इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर को एक संवैधानिक अध्यक्ष न बनाकर वास्तविक अध्यक्ष बना दिया गया था।

उसे सम्पूर्ण प्रान्तीय शासन पर नियन्त्रण रखने की शक्ति प्राप्त थी। वह अध्यादेश जारी कर सकता था। उसे विधान मण्डल द्वारा पारित किसी भी विधेयक को स्वीकार करने अथवा अस्वीकार कर पुनर्विचार हेतु लौटाने की शक्ति प्राप्त थी। वह किसी भी विधेयक को गवर्नर जनरल की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रख सकता था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि गवर्नर संवैधानिक अध्यक्ष नहीं था।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 18 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय शासन अधिनियम, 1935 के प्रावधानों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारतीय शासन अधिनियम, 1935 के प्रमुख:
प्रावधानों का आलोचनात्मक परीक्षण प्रो. कूपलैण्ड ने 1935 के अधिनियम को ‘रचनात्मक राजनीतिक विचार की एक महान् सफलता’ बताया। उनके मत में इस अधिनियम ने भारत के भाग्य का हस्तान्तरण अंग्रेजों के हाथों से भारतीयों के हाथों में सम्भव बना दिया। अधिनियम का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करने के उपरान्त प्रो. कूपलैण्ड के विचारों से सहमत होना सम्भव नहीं है।

भारतीय नेताओं ने अधिनियम पर प्रतिक्रियाएँ व्यक्त। अधिराज्य के स्थान पर पूर्ण स्वतन्त्रता के घोषित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील काँग्रेस के राष्ट्रीय नेता इस अधिनियम की व्यवस्था से सन्तुष्ट नहीं थे। मदनमोहन मालवीय के अनुसार, यह अधिनियम हम पर थोपा गया है। बाहर से यह कुछ जनतन्त्रीय शासन व्यवस्था से मिलता-जुलता है, परन्तु शरीर से खोखला है।” सी. राजगोपालाचारी ने इस व्यवस्था को द्वैध शासन से भी बुरा माना।

पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने इसे ‘दासता के घोषणा-पत्र’ की संज्ञा दी। अधिनियम में आरक्षण व संरक्षण की व्यवस्था के कारण ब्रिटिश राजनीतिज्ञ एटली ने इसे ‘अविश्वास का प्रतीक’ कहा। भारत शासन अधिनियम, 1935 के प्रमुख प्रावधानों की निम्नलिखित तरह से आलोचना की जाती है

(1) इंग्लैण्ड में आलोचना:
कट्टर ब्रिटिश उदारवादी समझते थे कि 1935 के अधिनियम द्वारा भारतीयों को जो अधिकार एवं उत्तरदायित्व दिये जा रहे हैं, वे उनके अनुकूल नहीं हैं।

(2) निरर्थक अधिनियम:
भारतीयों के मतानुसार इस अधिनियम में न तो स्वाधीनता का प्रावधान था न ही औपनिवेशक स्वराज्य को कहीं उल्लेख था। अत: यह भारतीयों के लिए निरर्थक था।

(3) यह अधिनियम एक धोखा व मुखौटा मात्र था:
भारतीय आलोचकों का मानना था कि यह अधिनियम भारतीयों के हाथों में कोई वास्तविक शक्ति नहीं सौंपता था। अत: यह अधिनियम जनता के लिए एक “धोखा” और मुखौटा मात्र था।

(4) भारत की समस्या का समाधान नहीं:
ब्रिटिश बौद्धिकों व श्रमिक दल के नेताओं का मानना था कि यह अधिनियम भारत की समस्या का कोई समाधान प्रस्तुत नहीं करता था।

(5) निर्माण में भारतीय जनता की सहभागिता नहीं:
इस अधिनियम के निर्माण में भारतीय जनता अथवा उसके प्रतिनिधियों का कोई हाथ नहीं था। जवाहरलाल नेहरू ने इस अधिनियम को ‘दासता का आज्ञा – पत्र’ कहा था।

(6) दोषपूर्ण संघीय व्यवस्था:
1935 के अधिनियम द्वारा प्रस्तावित अखिल भारतीय संघ की योजना में यद्यपि संघीय व्यवस्था के कई लक्षण; जैसे-शक्ति विभाजन, लिखित व कठोर संविधान, स्वतन्त्र न्यायिक सत्ता व दो सरकारें आदि विद्यमान थे लेकिन इसमें गम्भीर दोष भी थे। संघ में बेमेल इकाइयों को मिलाने का प्रयास किया गया।

(7) प्रान्तीय स्वायत्तता एक भ्रम:
यह अधिनियम प्रान्तों में स्वायत्तता का प्रावधान करता था। प्रान्तीय विधान मण्डल के सदस्य निर्वाचित होते थे। कार्यपालिका को विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी बनाया गया परन्तु केन्द्रीय शासन के पास ऐसी शक्तियाँ थीं, जिनके माध्यम से प्रान्तीय क्षेत्र में हस्तक्षेप किया जा सकता था। गवर्नर जनरल आपातकाल की घोषणा करके प्रान्तीय स्वायत्तता को समाप्त कर सकता था।

(8) संरक्षण एवं आरक्षण की व्यवस्था का दोषपूर्ण होना:
सन् 1935 के अधिनियम के अन्तर्गत की गयी संरक्षण और आरक्षण की व्यवस्था भारत में उत्तरदायी शासन को असफल करने की सोची-समझी योजना थी। वस्तुतः ये प्रावधान ब्रिटिश साम्राज्यवाद की रक्षा के उपाय मात्र थे।

(9) साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली का विस्तार:
साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली की प्रारम्भ से ही आलोचना की जा। रही थी, परन्तु फिर भी इसको न केवल कायम रखा गया अपितु दूसरा विस्तार करके इसे आंग्ल भारतीयों, यूरोपियनों, भारतीय ईसाइयों और हरिजनों पर भी लागू कर दिया गया। फलस्वरूप भारतीय राजनीतिक वातावरण कटुतायुक्त बन गया।

(10) आत्मनिर्णय के अधिकार का अभाव:
भारतीयों को अपने भाग्य का निर्णय करने का इस अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं था। अधिनियम द्वारा भारत पर ब्रिटिश संसद या भारत मन्त्री के नियन्त्रण में कोई कमी नहीं की गयी। अतः इस अधिनियम में भारत की प्रगति का कोई कार्यक्रम नहीं था।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय विधान मण्डल के संगठन, शक्ति व स्थिति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
केन्द्रीय विधान मण्डल भारत शासन अधिनियम, 1935 के द्वारा केन्द्रीय विधान मण्डल का स्वरूप द्विसदनीय रखा गया जिसमें एक सदन संघीय विधान सभा एवं दूसरा सदन राज्य परिषद था। संघीय विधान सभा की सदस्य संख्या 375 एवं राज्य परिषद की। सदस्य संख्या 260 निर्धारित की गयी। संघीय विधान सभा का चुनाव अप्रत्यक्ष एवं राज्य परिषद का चुनाव प्रत्यक्ष चुनाव प्रक्रिया द्वारा किया जाना था। प्रान्तीय स्तर पर 11 में से 6 विधान मण्डलों को द्विसदनात्मक बनाया गया।

1935 के इसी अधिनियम द्वारा मताधिकार का विस्तार किया गया। यह मताधिकार पहले की तुलना में अधिक लोगों को प्राप्त हुआ, परन्तु सभी लोगों को अभी भी मताधिकार प्राप्त नहीं हो सका। संघीय विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया। राज्य परिषद को एक स्थायी सदन बनाया गया। इसके सदस्य 9 वर्ष के लिए चुने जाते थे, किन्तु एक तिहाई सदस्य हर तीसरे वर्ष अवकाश ग्रहण करते थे। विधानसभा एवं राज्य परिषद के निर्वाचन क्षेत्र अभी भी सम्प्रदाय, विविध वर्गों के हिसाब से गठित किए गए थे।

भारत शासन अधिनियम, 1935 के अन्तर्गत केन्द्रीय विधान मण्डल के गठन का विवरण सारिणी 2: प्रान्तीय विधायिका की संरचना

प्रान्तों के नाम विधायिका की अधिकतम संख्या विधान परिषद की अधिकतम संख्या
असम  108 22
बिहार 152 30
बंगाल 250 65
बम्बई 175 30
मद्रास 215 56
संयुक्त प्रान्त (यू.पी.) 228 60
मध्य प्रान्त और बरार 112
उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रान्त 50
उड़ीसा 60
पंजाब 175
सिंध। 60

केन्द्रीय विधान मण्डल की शक्तियाँ:
1935 के भारत शासन अधिनियम द्वारा केन्द्रीय विधानमण्डलों को पहले की तुलना में अधिक शक्तियाँ प्रदान की गयीं। मन्त्रिपरिषद को विधानसभा के प्रति उत्तरदायी बनाया गया। विधान सभा को अविश्वास प्रस्ताव द्वारा मन्त्रिपरिषद को हटाने का अधिकार प्रदान किया गया। विधान मण्डल के सदस्य मन्त्रियों से प्रश्न, पूरक प्रश्न पूछकर एवं कई प्रकार के प्रस्ताव लाकर उन पर नियन्त्रण रख सकते थे। बजट सम्बन्धी विषयों पर भी विधान मण्डल को नियन्त्रण की शक्तियाँ प्रदान की गर्थी । लगभग 80 प्रतिशत अनुदान माँगों पर विधान मण्डल का नियन्त्रण स्थापित किया गया। विधान मण्डल को पहले की अपेक्षा सामान्य विधि के निर्माण के क्षेत्र में अधिक शक्तियाँ प्रदान की गयीं।

प्रश्न 3.
1935 के अधिनियम में प्रस्तावित संघीय योजना क्या थी? आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
उत्तर:
1935 के अधिनियम में प्रस्तावित संघीय योजना:
1935 के भारत शासन अधिनियम द्वारा यह निर्णय लिया गया कि केन्द्र में ब्रिटिश प्रान्तों और देशी रियासतों को मिलाकर एक संघ स्थापित किया जाए। यह संघ 11 ब्रिटिश प्रान्तों, 6 चीफ कमिश्नर प्रान्तों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मिलित हों। अधिनियम के अनुसार, प्रान्तों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, परन्तु देशी रियासतों के लिए यह ऐच्छिक थी। प्रत्येक देशी रियासत को, जो संघ में सम्मिलित होना चाहती थी, एक स्वीकृति लेख या प्रवेश लेख पर हस्ताक्षर करने थे।

इस स्वीकृति प्रपत्र में वह रियासत उन शर्तों का उल्लेख करती थी, जिन पर वह संघ में सम्मिलित होने को तैयार होती थी। संघ की इकाइयों को अपने आन्तरिक मामलों में स्वशासन प्राप्त था। संघ और उसकी इकाइयों के विवादों को सुलझाने के लिए संघीय न्यायालय की स्थापना की गयी। केन्द्र में एक संघीय कार्यकारिणी तथा द्विसदनीय व्यवस्थापिका की स्थापना की गयी परन्तु शर्त पूरी न हो पाने के कारण यह संघ स्थापित नहीं हो सका।

प्रस्तावित संघीय योजना की आलोचनात्मक विवेचना:
सभी दल अखिल भारतीय संघ के निर्माण के पक्ष में थे, किन्तु अपने स्वार्थों की पूर्ति के कारण वे आपस में एक दूसरे के विरोधी भी थे। इस कारण एक अच्छी संघीय प्रणाली की अनेक विशेषताओं को इसमें छोड़ दिया गया था। इसे संघीय योजना की आलोचना के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं –

  1. संघ में इकाइयों के सम्मिलित होने की अनिवार्यता सभी के लिए समान नहीं – ब्रिटिश प्रान्त का संघ में मिलना आवश्यक था, परन्तु देशी रियासतों को उनकी इच्छा पर छोड़ दिया गया। कुछ देशी रियासतें संघ में सम्मिलित होने की इच्छुक थीं, परन्तु अधिकांश नहीं।
  2. समान स्तर का अभाव – केन्द्र व प्रान्तों के मध्य संवैधानिक व कार्यकारी शक्तियों के प्रसार में समानता थी, वहीं पर देशी रियासतों के मामलों में समरूपता नहीं थी।
  3. गवर्नर जनरल की स्वेच्छाचारी शक्तियाँ – कुछ महत्वपूर्ण कार्य, जैसे-सुरक्षा, विदेशी मामले और अवशिष्ट शक्तियाँ गवर्नर जनरल के पास रखी गयीं। विधानमण्डल को न तो गवर्नर जनरल से प्रश्न करने का अधिकार था, न उसके आचरण पर बहस हो सकती थी। वह निरंकुश शासक की तरह व्यवहार करता था।
  4.  संघ की इकाइयों में स्वायत्तता की कमी – अखिल भारतीय संघ में प्रान्त व देशी रियासतों को स्वायत्तता प्राप्त थी परन्तु केन्द्रीय शासन में पूर्णतः उत्तरदायी सरकार नहीं थी। गवर्नर जनरल को ही प्रमुख शक्तियाँ प्राप्त थीं और वह किसी के प्रति उत्तरदायी भी नहीं था।
  5. शक्तियों का विभाजन उचित नहीं – संघीय योजनानुसार केन्द्र व प्रान्तों के मध्य शक्तियों का बँटवारा किया गया। केन्द्र, प्रान्त व समवर्ती  सूचियाँ, शक्तियों का विभाजन करती थीं, परन्तु अवशिष्ट शक्तियाँ गवर्नर जनरल के पास देशी रियासतों के प्रशासकों के पास थीं।
  6. संघीय व्यवस्था में एकात्मक तत्व – गवर्नर जनरल को प्रान्तीय मामलों में हस्तक्षेप करने के अत्यधिक अधिकार प्राप्त थे। इस कारण इकाइयों की स्वायत्तता सीमित हो गयी थी जबकि संघ में ऐसा नहीं होता था।

प्रश्न 4.
1935 के अधिनियम में उल्लिखित प्रान्तीय स्वायत्तता से आप क्या समझते हैं? इस पर क्या प्रतिबन्ध लगाये गये थे, जो इसे पंगु बनाते थे?
उत्तर:
1935 के अधिनियम में उल्लिखित प्रान्तीय स्वायत्तता से आशय:
प्रान्तीय स्वायत्तता भारत शासन अधिनियम, 1935 की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता थी। प्रान्तीय स्वायत्तता के दो अर्थ लिये जा सकते हैं – प्रथम अर्थ यह है कि प्रान्तों को अपने एक निश्चित क्षेत्र में स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य करने का अधिकार होना चाहिए अर्थात् प्रान्त निश्चित क्षेत्र में केन्द्रीय नियन्त्रण या बाहरी नियन्त्रण से स्वतन्त्र होने चाहिए। प्रान्तीय स्वायत्तता का दूसरा अर्थ प्रान्तों में उत्तरदायी शासन की स्थापना से है।

अर्थात् प्रान्त में शासन सत्ता ऐसे लोकप्रिय मन्त्रियों के हाथ में होनी चाहिए, जो विधान मण्डल के प्रति और विधान मण्डल के माध्यम से जनता के प्रति उत्तरदायी हों। प्रान्तों में 1919 के अधिनियम द्वारा स्थापित द्वैध शासन को समाप्त करके प्रान्तों को स्वशासित राजनीतिक इकाई का रूप प्रदान किया गया। केन्द्रीय हस्तक्षेप से स्वतन्त्रता दी गयी। उन्हें प्रान्तीय सूची के 54 विषयों पर विधायी, प्रशासकीय और वित्तीय क्षेत्र में अधिकार प्रदान किये गये। इसे ही प्रान्तीय स्वायत्तता कहा जाता है।

प्रान्तीय स्वायत्तता को पंगु बनाने वाले प्रतिबन्ध:
भारतीय शासन अधिनियम, 1935 द्वारा स्थापित प्रान्तीय स्वायत्तता वास्तविकता से दूर थी। बाह्य व आन्तरिक रूप से इस पर कई प्रतिबन्ध लगा दिए गए थे जो इसे पंगु बनाते थे। प्रमुख प्रतिबन्ध निम्नलिखित हैं

(अ) प्रान्तीय स्वायत्तता पर बाह्य प्रतिबन्ध:
1935 के भारत शासन अधिनियम द्वारा प्रान्तीय स्वायत्तता पर केन्द्रीय हस्तक्षेप की अनेक व्यवस्थाएँ की गयीं जबकि इसे बाह्य नियन्त्रण से मुक्त होना चाहिए था। प्रान्तीय स्वायत्तता पर प्रमुख बाह्य प्रतिबन्ध निम्नलिखित थे –

1. संकटकालीन स्थिति की घोषणा:
अधिनियम की धारा 102 के अन्तर्गत गवर्नर जनरल संकटकालीन स्थिति तथा गम्भीर आन्तरिक अव्यवस्था या अशान्ति तथा युद्ध के वास्तविक या सम्भावित खतरों की स्थिति में संकटकालीन स्थिति की घोषणा कर सकता था। ऐसी घोषणा हो जाने पर संघीय विधान मण्डल, प्रान्तीय विषयों पर कानून बना सकता था।

2.  प्रान्तों पर केन्द्र का नियन्त्रण:
धारा 156 के अनुसार गवर्नर जनरल प्रान्तीय सरकारों को शान्ति और सुरक्षा के लिए आवश्यक निर्देश जारी कर सकता था। ऐसे में यदि गवर्नर धारा 93 के अनुसार संवैधानिक तन्त्र के विफल होने की घोषणा कर देता, तो प्रान्तीय शासन का सारा अधिकार उसके अधीन हो जाता।

3.  प्रान्तीय कानूनी क्षेत्र में गवर्नर जनरल का नियन्त्रण:
कुछ विशेष प्रकार के विधेयक अथवा संशोधन गवर्नर जनरल की पूर्व अनुमति के बिना प्रान्तीय विधानमण्डल में प्रस्तुत नहीं किये जा सकते थे।

4.  प्रान्तीय विधान मण्डलों द्वारा पारित विधेयकों को गवर्नर द्वारा गवर्नर जनरल की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रखना:
गवर्नर द्वारा प्रान्तीय विधान मण्डलों द्वारा पारित विधेयकों को, गवर्नर जनरल की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रखा जाता था, गवर्नर जनरल चाहे तो उसे भारत मन्त्री के माध्यम से ब्रिटिश सम्राट की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रख सकता था।

5. गवर्नर जनरल के विशेष उत्तरदायित्व:
इनकी पूर्ति हेतु गवर्नर जनरल प्रान्तीय क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकता था। वह प्रान्तीय मन्त्रियों को आवश्यक निर्देश दे सकता था।

(ब) प्रान्तीय स्वायत्ता पर आन्तरिक प्रतिबन्ध:
प्रान्तीय शासन आन्तरिक क्षेत्र में भी स्वतन्त्र नहीं था। आन्तरिक रूप से प्रान्तीय स्वायत्तता पर अग्र सीमायें थीं –

1. प्रान्त में गवर्नर की भूमिका संवैधानिक अध्यक्ष से बड़ी होना:
प्रान्तीय स्वायत्तता के लिये गवर्नर की भूमिका संवैधानिक अध्यक्ष की होनी चाहिए थी परन्तु गवर्नर वास्तविक अध्यक्ष बना दिया गया था। सम्पूर्ण प्रान्त उसके अधीन था। उसे अध्यादेश जारी करने, विधान मण्डल द्वारा पारित विधेयक को अस्वीकार करने, गवर्नर जनरल की स्वीकृति हेतु विधेयक को सुरक्षित रख लेने के अधिकार प्राप्त थे।

2. वित्तीय क्षेत्र में गवर्नर की असीमित शक्ति:
वित्तीय क्षेत्र में गवर्नर को असीमित शक्तियाँ प्राप्त थीं। प्रान्त का बजट उसकी निगरानी में बनता था। उसे विधान मण्डल से पारित कराने का दायित्व भी उसी का था। विधान मण्डल द्वारा सुझाये गये किसी संशोधन को मानना और न मनाना गवर्नर की इच्छा पर निर्भर था।

3. मन्त्रियों पर गवर्नर का नियन्त्रण:
प्रान्त में मन्त्रियों की नियुक्ति, पदच्युति एवं उनके मध्य विभागों के बँटवारे का दायित्व गवर्नर का था। मन्त्रिमण्डल की बैठक भी गवर्नर द्वारा बुलाई जाती थी। गवर्नर की ये शक्तियाँ प्रान्तीय स्वायत्तता को पंगु बना देती थीं।

4. मन्त्रियों के साथ सिविल सेवा के अधिकारियों का असहयोग:
मन्त्रियों के साथ सिविल सेवा के अधिकारियों का रवैया असहयोगपूर्ण रहता था जो प्रान्तीय स्वायत्तता के लिए अहितकर था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रान्तीय स्वायत्तता दिखावा मात्र थी। अत: भारतीयों ने इसके प्रति भारी असन्तोष था। प्रान्तों के लिए वास्तविक स्वायत्तता की माँग हेतु आन्दोलन चलाए गए।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 18 वस्तुनिष्ठ प्रश्न।

प्रश्न 1.
केन्द्रीय विधान मण्डल के निम्न सदन संघीय विधान सभा की सदस्य संख्या कितनी थी –
(अ) 260
(ब) 375
(स) 250
(द) 545
उत्तर:
(ब) 375

प्रश्न 2.
संघीय न्यायालय के न्यायाधीश कितनी वर्ष की आयु तक अपने पद पर रह सकते थे –
(अ) 65 वर्ष
(ब) 60 वर्ष
(स) 55 वर्ष
(द) आजीवन।
उत्तर:
(अ) 65 वर्ष

प्रश्न 3.
भारतीय शासन अधिनियम, 1935 द्वारा अवशिष्ट शक्तियाँ किसे सौंपी गयी थीं –
(अ) गवर्नर
(ब) केन्द्रीय विधान मण्डल
(स) गवर्नर जनरल
(द) भारत सचिव।
उत्तर:
(स) गवर्नर जनरल

प्रश्न 4.
भारतीय शासन अधिनियम, 1935 में अनुच्छेद व परिशिष्ट की संख्या क्या थी –
(अ) 450 व 11
(ब) 460 व 12
(स) 395 व 15
(द) 451 व 15
उत्तर:
(द) 451 व 15

RBSE Class 11 Political Science Chapter 18 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 18 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से किस वर्ष भारत की संवैधानिक समस्या के निराकरण हेतु भावी सुधार योजना के सम्बन्ध में एक श्वेत पत्र प्रकाशित किया गया –
(अ) मार्च, 1933
(ब) अप्रैल, 1922
(स) मई, 1935
(द) अगस्त, 1947
उत्तर:
(अ) मार्च, 1933

प्रश्न 2.
1935 के भारत शासन अधिनियम में कितनी धाराएँ है –
(अ) 401
(ब) 102
(स) 15
(द) 451.
उत्तर:
(द) 451.

प्रश्न 3.
1935 के भारत शासन अधिनियम की प्रमुख विशेषता थी –
(अ) विस्तृत अधिनियम
(ब) केन्द्र में द्वैध शासन
(स) प्रान्तीय स्वायत्तता
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4.
1935 के अधिनियम के अन्तर्गत कुल कितने ब्रिटिश प्रान्तों को प्रस्तावित अखिल भारतीय संघ में सम्मिलित होना था –
(अ) 10
(ब) 8
(स) 11
(द) 6.
उत्तर:
(स) 11

प्रश्न 5.
निम्न में से किस अधिनियम द्वारा प्रान्तीय स्वायत्तता प्रदान की गयी –
(अ) 1909 के अधिनियम द्वारा।
(ब) 1919 के अधिनियम द्वारा
(स) 1935 के अधिनियम द्वारा
(द) 1947 के अधिनियम द्वारा।
उत्तर:
(स) 1935 के अधिनियम द्वारा

प्रश्न 6.
1935 के भारत शासन अधिनियम में एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना का विचार प्रस्तुत किया गया था –
(अ) 11 ब्रिटिश प्रान्तों को मिलाकर
(ब) छ: चीफ कमिश्नर क्षेत्रों को मिलाकर
(स) देशी रियासतों को मिलाकर
(द) उपर्युक्त सभी को मिलाकर।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी को मिलाकर।

प्रश्न 7.
निम्न में किस अधिनियम द्वारा द्वैध शासन को प्रान्तों में समाप्त कर केन्द्र में लागू किया गया –
(अ) 1935 का भारत शासन अधिनियम
(ब) 1892 का अधिनियम
(स) 1909 का अधिनियम
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) 1935 का भारत शासन अधिनियम

प्रश्न 8.
प्रस्तावित अखिल भारतीय संघ योजना का प्रमुख दोष था –
(अ) समान स्तर का अभाव
(ब) संघ इकाइयों में स्वायत्तता की कमी
(स) शक्तियों का उचित विभाजन न होना
(द) उपर्युक्त सभी नाकर।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी नाकर।

प्रश्न 9.
प्रस्तावित संघीय योजना में संघीय व्यवस्था का आधारभूत लक्षण था –
(अ) लिखित व कठोर संविधान
(ब) दो सरकारों व उनके मध्य शक्ति विभाजन
(स) निष्पक्ष न्यायाधिकरण
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 10.
1935 के अधिनियम के द्वारा संघीय सूची में कितने विषय रखे गए –
(अ) 35:
(ब) 59
(स) 54
(द) 5.
उत्तर:
(ब) 59

प्रश्न 11.
भारत शासन अधिनियम, 1935 के द्वारा प्रान्तीय सूची में कितने विषय रखे गए –
(अ) 36
(ब) 54
(स) 59
(द) 26.
उत्तर:
(ब) 54

प्रश्न 12.
1935 के अधिनियम के तहत समवर्ती सूची में सम्मिलित विषयों की संख्या थी –
(अ) 36
(ब) 54
(स) 46
(द) 60.
उत्तर:
(अ) 36

प्रश्न 13.
1935 के अधिनियम में राज्य परिषद के सदस्यों की कुल संख्या निर्धारित की गयी –
(अ) 260
(ब) 375
(स) 590
(द) 120.
उत्तर:
(अ) 260

प्रश्न 14.
1935 के अधिनियम में समवर्ती सूची में कानून बनाने का अधिकार था –
(अ) केवल केन्द्र सरकार को
(ब) केवल प्रान्तीय सरकार को
(स) केन्द्र व प्रान्त सरकार को
(द) इनमें से किसी को नहीं।
उत्तर:
(स) केन्द्र व प्रान्त सरकार को

प्रश्न 15.
निम्न में से किस अधिनियम द्वारा संघीय न्यायालय की स्थापना की गयी –
(अ) 1935 के अधिनियम द्वारा
(ब) 1919 के अधिनियम द्वारा।
(स) 1909 के अधिनियम द्वारा
(द) 1947 के अधिनियम द्वारा।
उत्तर:
(अ) 1935 के अधिनियम द्वारा

प्रश्न 16.
भारत परिषद का अन्त किस एक्ट द्वारा किया गया –
(अ) 1919 के एक्ट द्वारा
(ब) 1935 के एक्ट द्वारा
(स) 1909 के एक्ट द्वारा
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ब) 1935 के एक्ट द्वारा

प्रश्न 17.
1935 के अधिनियम द्वारा निम्न में से किस नए वर्ग को पृथक् प्रतिनिधित्व दिया गया –
(अ) आंग्ल भारतीय
(ब) भारतीय ईसाई
(स) हरिजन
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 18.
बर्मा को भारत से किस अधिनियम के द्वारा अलग कर दिया गया –
(अ) भारत शासन अधिनियम, 1919
(ब) भारत शासन अधिनियम, 1935
(स) भारतीय परिषद् अधिनियम, 1909
(द) इनमें में कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) भारत शासन अधिनियम, 1935

प्रश्न 19.
1935 के भारत शासन अधिनियम की किस धारा के अन्तर्गत गवर्नर संवैधानिक गतिरोध की स्थिति में प्रान्तीय शासन अपने हाथ में ले सकता था –
(अ) धारा 93
(ब) धारा 75
(स) धारा 102
(द) धारा 135.
उत्तर:
(अ) धारा 93

प्रश्न 20.
प्रांतीय स्वायत्तता पर बाह्य प्रतिबन्ध था –
(अ) प्रान्तों पर केन्द्र का नियन्त्रण
(ब) संकटकालीन स्थिति की घोषणा
(स) गवर्नर जनरल के विशेष उत्तरदायित्व
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 21.
प्रांतीय स्वायत्तता पर आन्तरिक प्रतिबन्ध था –
(अ) मन्त्रियों पर गवर्नर का नियन्त्रण
(ब) वित्तीय क्षेत्र में गवर्नर की असीमित शक्तियाँ
(स) प्रान्त में गवर्नर की भूमिका संवैधानिक अध्यक्ष से बड़ी होना
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 22.
1935 के अधिनियम के तहत प्रान्तीय स्वायत्तता लागू होने के पश्चात् प्रान्तीय सरकारों का गठन हुआ –
(अ) जुलाई, 1937 में
(ब) अप्रैल 1937 में
(स) अगस्त, 1947 में
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) जुलाई, 1937 में

प्रश्न 23.
निम्न में से किस अधिनियम का भारतीय संविधान पर सर्वाधिक प्रभाव है –
(अ) भारतीय परिषद अधिनियम, 1909
(ब) भारत शासन अधिनियम, 1919
(स) भारत शासन अधिनियम, 1935
(द) भारत स्वतन्त्रता अधिनियम, 1947
उत्तर:
(स) भारत शासन अधिनियम, 1935

प्रश्न 24.
भारतीय संविधान में 1935 के अधिनियम से सम्बन्धित प्रावधान था –
(अ) संघीय योजना
(ब) द्विसदनीय विधान मण्डल का विचार
(स) राज्यपाल का पद
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 25.
“1935 का अधिनियम तो दासता का घोषणा – पत्र है।” यह कथन किसका है –
(अ) पं. जवाहर लाल नेहरू का
(ब) सी. राजगोपालाचारी का
(स) बल्लभभाई पटेल का
(द) गोपालकृष्ण गोखले का।
उत्तर:
(अ) पं. जवाहर लाल नेहरू का

RBSE Class 11 Political Science Chapter 18 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत शासन अधिनियम, 1935 की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
1. अखिल भारतीय संघ की
2. योजना प्रान्तीय स्वायत्तता।

प्रश्न 2.
भारत शासन अधिनियम, 1935 के द्वारा केसी शासन व्यवस्था का सुझाव दिया गया?
उत्तर:
संघीय शासन व्यवस्था का।

प्रश्न 3.
1935 अधिनियम में कितनी धाराएँ व अनुसूचियाँ थीं?
उत्तर:
451 धाराएँ एवं 15 अनुसूचियाँ।

प्रश्न 4.
भारतीय शासन अधिनियम, 1935 में प्रस्तावित भारतीय संघ की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. लिखित व कठोर संविधान
  2. संघीय न्यायालय।

प्रश्न 5.
अखिल भारतीय संघीय योजना के कोई दो दोष लिखिए।
उत्तर:

  1. संघ में इकाइयों के सम्मिलित होने की अनिवार्यता सभी के लिए समान नहीं,
  2. गवर्नर जनरल की स्वेच्छाचारी शक्तियाँ।

प्रश्न 6.
किस अधिनियम द्वारा द्वैध शासन को प्रान्तों में समाप्त कर केन्द्र में लागू कर दिया गया?
उत्तर:
भारत शासन अधिनियम, 1935 के द्वारी।

प्रश्न 7.
1935 के भारत शासन अधिनियम के अन्तर्गत केन्द्र एवं प्रान्तों में सत्ता विभाजन हेतु कितनी सूचियाँ दी गयी थीं?
उत्तर:
तीन सूचियाँ दी गई थीं –
1. संघ सूची
2. प्रान्तीय सूच
3. समवर्ती सूची।

प्रश्न 8.
1935 के अधिनियम में संघ सूची में सम्मिलित किन्हीं चार विषयों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. जल, थल व वायु सेना
2. विदेशी मामले
3. डाक व तार
4. बीमा।

प्रश्न 9.
1935 के अधिनियम में प्रान्तीय सूची में सम्मिलित किन्हीं चार विषयों के नाम लिखिए।
उत्तर:

1. शान्ति
2. न्याय
3.  शिक्षा
4. स्थानीय स्वशासन।

प्रश्न 10.
संरक्षण एवं आरक्षण की व्यवस्था का सम्बन्ध किस अधिनियम से है?
उत्तर:
भारत शासन अधिनियम, 1935 से।

प्रश्न 11.
1935 के अधिनियम के तहत स्थापित संघीय न्यायालय को कौन – कौन से अधिकार दिए गए?
उत्तर:
संघीय न्यायालय को संविधान की व्याख्या करने, केन्द्र व प्रान्तीय सरकारों को एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करने से रोकने के अधिकार दिए गए।

प्रश्न 12.
1935 के अधिनियम के अन्तर्गत स्थापित संघीय न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील कहाँ की जा सकती थी?
उत्तर:
ब्रिटेन स्थित ‘प्रिवी कौंसिल’ में।

प्रश्न 13.
1935 के अधिनियम में भारत परिषद के सम्बन्ध में क्या प्रावधान किया गया था?
उत्तर:
भारत परिषद का अन्त कर दिया गया था।

प्रश्न 14.
1935 के अधिनियम द्वारा किन-किन नए वर्गों को पृथक् प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया?
उत्तर:
आंग्ल भारतीयों, भारतीय ईसाइयों, यूरोपियनों एवं हरिजनों को।

प्रश्न 15.
1935 के अधिनियम में किन-किन प्रांतों को भारत से अलग कर दिया गया?
उत्तर:
1. बर्मा
2. अदन।

प्रश्न 16.
प्रान्तीय स्वायत्तता पर किन्हीं दो बाह्य प्रतिबन्धों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. संकटकालीन स्थिति की घोषणा
  2. प्रान्तों पर केन्द्र का नियन्त्रण।

प्रश्न 17.
प्रान्तीय स्वायत्तता पर कोई दो आन्तरिक प्रतिबन्धों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. वित्तीय क्षेत्र में गवर्नर की असीमित शक्ति
  2. मन्त्रियों पर गवर्नर का नियन्त्रण।

प्रश्न 18.
1935 के भारत शासन अधिनियम की धारा 102 में क्या उल्लिखित है?
उत्तर:
1935 के भारत शासन अधिनियम की धारा 102 में उल्लेखित था, कि “गवर्नर जनरल गम्भीर आन्तरिक अव्यवस्था या अशान्ति एवं युद्ध के वास्तविक या सम्भावित खतरों की स्थिति में संकटकालीन स्थिति की घोषणा करेगा।”

प्रश्न 19.
1935 के भारत शासन अधिनियम की धारा 156 में क्या उल्लिखित था?
उत्तर:
1935 के भारत शासन अधिनियम की धारा 156 में उल्लिखित था कि “गवर्नर जनरल, प्रान्तीय सरकारों को भारत में शक्ति तथा सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक निर्देश जारी कर सकेगा।”

प्रश्न 20.
1935 के अधिनियम के तहत प्रान्तीय सरकारों का गठन कब हुआ?
उत्तर:
जुलाई, 1937 में।

प्रश्न 21.
1935 के अधिनियम के तहत प्रान्तों को स्वायत्तता मिलने के पश्चात् किन-किन प्रान्तों में चुनाव हुए?
उत्तर:
संयुक्त प्रान्त, बिहार, उड़ीसा, मद्रास, बम्बई, मध्य प्रान्त, असम, बंगाल, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त, पजाब एवं सिंध।

प्रश्न 22.
किन-किन प्रान्तों में काँग्रेस को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ?
उत्तर:
संयुक्त प्रान्त, बिहार, उड़ीसा, बम्बई, मद्रास एवं मध्य प्रान्त में।

प्रश्न 23.
कम्युनिस्ट पार्टी को किस प्रान्त में बहुमत प्राप्त हुआ?
उत्तर:
पंजाब में।

प्रश्न 24.
मुस्लिम लीग को किस प्रान्त में बहुमत प्राप्त हुआ?
उत्तर:
सिन्ध में।

प्रश्न 25.
स्वतंत्र भारत के संविधान पर 1935 के अधिनियम के कोई दो प्रभाव बताइए।
उत्तर:

  1. संघीय योजना
  2. द्विसदनीय विधानमण्डल का विचार।

प्रश्न 26.
भारतीय शासन अधिनियम, 1935 की सी. राजगोपालाचारी ने क्या आलोचना की?
उत्तर:
सी. राजगोपालाचारी ने भारत शासन अधिनियम, 1935 को द्वैध शासन से भी बुरा बतलाया।

प्रश्न 27.
भारतीय शासन अधिनियम, 1935 के बारे में मदन मोहन मालवीय ने क्या कहा था?
उत्तर:
मदनमोहन मालवीय के अनुसार, “यह नया अधिनियम हम पर बाहर से थोपा गया है, यह जनतन्त्रीय शासन व्यवस्था से मिलता है, परन्तु भीतर भी बिल्कुल खोखला है।”

प्रश्न 28.
भारतीय शासन अधिनियम, 1935 की कोई दो कमियाँ लिखिए।
उत्तर:

  1. दोषपूर्ण संघीय व्यवस्था,
  2. प्रान्तीय स्वायत्तता-एक भ्रम।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 18 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1935 के भारत शासन अधिनियम को पारित करने के पीछे मुख्य उत्तरदायी कारण बताइए।
उत्तर:
1935 के भारत शासन अधिनियम को पारित करने के पीछे मुख्य उत्तरदायी कारण:
1919 का भारत शासन अधिनियम भारतीय जनता की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरा। अंग्रेजों की नीतियों से भारतीय अत्यधिक नाराज हुए। उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन को तीव्र कर दिया। असहयोग आन्दोलन ने राष्ट्रीय आन्दोलन को जन आन्दोलन बना दिया। सविनय अवज्ञा आन्दोलन ने भी स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु भारतीय जनता की भावना में वृद्धि कर दी।

अत: भारतीयों में बढ़ते हुए असन्तोष को दूर करने के लिए ब्रिटिश सरकार को सुधारों के लिए विवश होना पड़ा। वहीं 1930, 1931 एवं 1932 ई. में ब्रिटिश शासन द्वारा आयोजित गोलमेज सम्मेलनों में किए गए विचार के आधार पर मार्च 1933 में भावी सुधार योजना के सम्बन्ध में श्वेत पत्र जारी किया गया। इस श्वेत पत्र के सुझावों के आधार पर एक विधेयक फरवरी, 1935 में ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत किया गया। ब्रिटिश संसद में पारित विधेयक को 2 अगस्त, 1935 को सम्राट से स्वीकृति प्राप्त होने पर, यह भारतीय शासन अधिनियम, 1935 कहलाया।

प्रश्न 2.
भारत शासन अधिनियम, 1935 की दो प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भारत शासन अधिनियम, 1935 की दो प्रमुख विशेषताएँ:
भारत शासन अधिनियम, 1935 की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थी –

1. विस्तृत अधिनियम – इस अधिनियम में 451 धाराएँ व 15 अनुसूचियाँ थीं परन्तु प्रस्तावना का अभाव था। इससे पूर्व ब्रिटिश संसद ने इससे बड़ा कानून कभी नहीं बनाया।

2. ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता – इस अधिनियम मे किसी भी प्रकार के परिवर्तन करने का अधिकार प्रान्तीय विधान मण्डलों तथा संघीय व्यवस्थापिका को नहीं दिया गया था। इस सम्बन्ध में शक्ति ब्रिटिश संसद के पास ही बनी रही। प्रान्तीय एवं केन्द्रीय व्यवस्थापिकाएँ कुछ विशेष सीमाओं के अन्तर्गत रहते हुए अधिनियम में संशोधन की अनुशंसा कर सकती थीं। इस प्रकार, राजसत्ता ब्रिटिश संसद के पास ही विद्यमान रही।

प्रश्न 3.
1935 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा स्थापित संघीय व्यवस्था के प्रमुख लक्षण अथवा विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
1935 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा स्थापित संघीय व्यवस्था के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ):
1935 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा स्थापित संघीय व्यवस्था के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) निम्नलिखित थी –

  1. अखिल भारतीय संघ का प्रस्ताव – भारतीय शासन अधिनियम 1935 के अन्तर्गत 11 ब्रिटिश प्रांतों, 6 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों और देशी रियासतों को मिलाकर अखिल भारतीय संघ बनाने की प्रस्ताव था। रियासतों का संघ में मिलना अथवा न मिलना उनकी स्वेच्छा पर छोड़ दिया गया। शर्त यह भी थी कि संघ की स्थापना तभी की जाएगी जबकि समस्त देशी रियासतों के कुल क्षेत्र की 50% जनसंख्या की आधी रियासतें संध में सम्मिलित होने की इच्छा प्रकट करें।
  2.  प्रान्तीय स्वायत्तता – संघ की इकाइयों को अपने आन्तरिक मामलों में स्वशासन प्राप्त था।
  3. संघीय न्यायालय – संघ और उसकी इकाइयों के विवादों को सुलझाने के लिए संघीय न्यायालय की स्थापना की गयी।
  4. शक्तियों का विभाजन – संघ व प्रान्तों के मध्य तीन सूचियों – संघीय सूची, प्रान्तीय सूची, समवर्ती सूची–के माध्यम से शक्तियों का विभाजन किया गया, लेकिन अवशिष्ट शक्तियाँ संघीय या प्रान्तीय व्यवस्थापिकाओं को प्रदान न कर गवर्नर जनरल को दी गयीं।

प्रश्न 4.
1935 के अधिनियम द्वारा प्रस्तावित संघीय योजना के कोई तीन दोष लिखिए।
उत्तर:
1935 के अधिनियम द्वारा प्रस्तावित संघीय योजना के दोष:
1935 के अधिनियम द्वारा प्रस्तावित संघीय योजना के प्रमुख तीन दोष निम्नलिखित हैं –

  1. समान स्तर का अभाव – केन्द्र व प्रान्तों के मध्य संवैधानिक व कार्यकारी शक्तियों के प्रसार में तो समानता थी, लेकिन देशी रियासतों के मामलों में समरूपता नहीं थी।
  2. संघीय व्यवस्था में एकात्मक तत्व – गवर्नर जनरल को प्रान्तीय मामलों में हस्तक्षेप करने के अत्यधिक अधिकार प्राप्त थे। इस कारण इकाइयों की स्वायत्तता सीमित हो गयी थी, जबकि संघ में ऐसा नहीं होता है।
  3. संघ की इकाइयों में स्वायत्तता की कमी – अखिल भारतीय संघ में प्रान्त व देशी रियासतों को स्वायत्तता प्राप्त थी, परन्तु केन्द्रीय शासन में पूर्णतः उत्तरदायी सरकार नहीं थी। गवर्नर जनरल को अत्यधिक शक्तियाँ प्राप्त थीं तथा वह किसी के प्रति उत्तरदायी भी नहीं था।

प्रश्न 5.
भारत शासन अधिनियम, 1935 के अन्तर्गत प्रस्तावित संघ की स्थापना हेतु किए गए शक्ति विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत शासन अधिनियम, 1935 के अन्तर्गत प्रस्तावित संघ की स्थापना के उद्देश्य की पूर्ति हेतु केन्द्रीय व प्रान्तीय सरकारों के मध्य शक्तियों का विभाजन निम्नलिखित प्रकार से किया गया –
1. संघ सूची – इसमें राष्ट्रीय महत्व के 59 विषय रखे गये, जिनमें जल, थल व वायु सेना, विदेशी मामले, डाकतार, मुद्रा व टंकण, संघीय लोक सेवायें, संचार, बीमा तथा बैंक इत्यादि सम्मिलित थे। इन पर केन्द्रीय विधान मण्डल को कानून बनाने का अधिकार था।

2. प्रान्तीय सूची – इसमें स्थानीय महत्त्व के 54 विषय सम्मिलित थे, जिनमें शान्ति, न्याय, न्यायालय, प्रान्तीय लोक सेवायें, स्थानीय स्वशासन, अस्पताल व जन स्वास्थ्य, कृषि, नहरें, जंगल, शिक्षा, सड़क आदि आते थे। इन पर प्रान्तीय सरकारों को कानून बनाने का अधिकार दिया गया।

3. समवर्ती सूची – इसमें 36 विषयों-दीवानी व फौजदारी कानून, विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, दत्तक पुत्र, स्वीकार करना, ट्रस्ट, कारखाने तथा श्रम कल्याण आदि को समाहित किया गया। इन विषयों पर केन्द्र व प्रान्त दोनों सरकारें कानून बना सकती र्थी परन्तु मतभेद की स्थिति में संघीय व्यवस्थापिका का कानून ही मान्य होने का प्रावधान था।

4. अवशिष्ट शक्तियाँ – ये शक्तियाँ गवर्नर जनरल को सौंपी गयी थीं। वह अपनी इच्छानुसार, केन्द्र या प्रान्त के किसी भी विधान मण्डल से कानून बनवा सकता था।

प्रश्न 6.
भारतीय शासन अधिनियम, 1935 में उल्लिखित संरक्षण एवं आरक्षण की व्यवस्था को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय शासन अधिनियम, 1935 में उल्लिखित संरक्षण एवं आरक्षण की व्यवस्था:
ब्रिटिश शासन भारतीयों को उत्तरदायी शासन प्रदान करने में सतर्कता रख रहा था। ब्रिटिश शासकों का मानना था कि भारतीयों द्वारा उत्तरदायी शासन का संचालन करने में त्रुटियाँ की जा सकती हैं। वे अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा हेतु पहले ही पर्याप्त व्यवस्था कर लेना चाहते थे।

अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल एवं गवर्नरों को विभिन्न परिस्थितियों में केन्द्र एवं प्रान्त के उत्तरदायी शासन में हस्तक्षेप करने के व्यापक अधिकार प्रदान किए गए। गवर्नर जनरल तथा गवर्नरों के ये विस्तृत अधिकार ही अधिनियम के संरक्षण व आरक्षण थे। 1935 के अधिनियम में की गयी संरक्षण और आरक्षण की यह व्यवस्था लोकतन्त्र के अनुरूप नहीं थी।

प्रश्न 7.
प्रान्तीय स्वायत्तता पर आरोपित बाह्य प्रतिबन्धों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रान्तीय स्थायत्तता पर आरोपित बाह्य प्रतिबन्ध:
प्रान्तीय स्वायत्तता पर आरोपित बाह्य प्रतिबन्ध निम्नलिखित थे –

1. संकटकालीन स्थिति की घोषणा – भारत शासन अधिनियम 1935 की धारा 102 में उल्लिखित था, कि गवर्नर जनरल ग़म्भीर आन्तरिक अव्यवस्था या अशान्ति एवं युद्ध के वास्तविक तथा सम्भावित खतरों की स्थिति में संकटकालीन स्थिति की घोषणा करेगा। इस घोषणा के बाद केन्द्रीय विधान मण्डल को प्रान्तीय सूची के विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार मिल जाने का प्रावधान था।

2. प्रान्तों पर केन्द्र का नियन्त्रण – भारत शासन अधिनियम की धारा 156 के अन्तर्गत गवर्नर जनरल, प्रान्तीय सरकारों को भारत में शक्ति तथा सुरक्षा बनाये रखने के लिये आवश्यक निर्देश जारी कर सकेगा।

3. प्रान्तीय कानूनी क्षेत्र में गवर्नर जनरल का नियन्त्रण – कुछ विशेष प्रकार के विधेयक तथा संशोधन गवर्नर जनरल की पूर्व अनुमति के बिना प्रान्तीय विधान मण्डल में प्रस्तुत नहीं किये जा सकते थे।

4. गवर्नर जनरल के अधिकार – गवर्नर द्वारा प्रान्तीय विधान मण्डलों द्वारा पारित विधेयकों को गवर्नर जनरल की स्वीकृति हेतु रखना। गवर्नर जनरल चाहे, तो उन्हें भारत मन्त्री के माध्यम से ब्रिटिश सम्राट की स्वीकृति हेतु सुरक्षित, रख सकता था।

5. गवर्नर जनरल के विशेष उत्तरदायित्व – इनकी पूर्ति हेतु गवर्नर जनरल प्रान्तीय क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकता था। वह प्रान्तीय मन्त्रियों को आवश्यक निर्देश दे सकता था।

प्रश्न 8.
प्रान्तीय स्वायत्तता पर आरोपित आन्तरिक प्रतिबन्धों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रान्तीय स्वायत्तता पर आरोपित आन्तरिक प्रतिबन्ध:
प्रान्तीय स्वायत्तता पर आरोपित आन्तरिक प्रतिबन्ध निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत हैं –

1. प्रान्त में गवर्नर की भूमिका संवैधानिक न होकर वास्तविक हो जाए – प्रान्त में गवर्नर की भूमिका संवैधानिक अध्यक्ष की होनी चाहिए थी परन्तु गवर्नर वास्तविक अध्यक्ष बना दिया गया था। सम्पूर्ण प्रान्त उसके अधीन था। उसे अध्यादेश जारी करने, विधान मण्डल द्वारा पारित विधेयक को अस्वीकार करने, गवर्नर जनरल की स्वीकृति हेतु उसे सुरक्षित रख लेने के अधिकार प्राप्त थे।

2. वित्तीय क्षेत्र में गवर्नर की असीमित शक्तियाँ – प्रान्त का बजट गवर्नर की निगरानी में बनता था। उसे विधान मण्डल से पारित कराने का दायित्व भी उसी का था। विधान मण्डल द्वारा सुझाये गये किसी संशोधन को मानना तथा न मानना गवर्नर की इच्छा पर निर्भर था।

3. मन्त्रियों पर गवर्नर का नियन्त्रण – प्रान्त में मन्त्रियों की नियुक्ति, पदच्युति तथा उनके मध्य विभागों के बँटवारे का दायित्व गवर्नर का था। मन्त्रिमण्डल की बैठक भी गवर्नर द्वारा बुलाई जाती थी। गवर्नर की ये शक्तियाँ प्रान्तीय स्वायत्तता को पंगु बना देती थीं।

4. मंत्रियों के साथ सिविल सेवा के अधिकारियों का असहयोगपूर्ण व्यवहार – मन्त्रियों के साथ सिविल सेवा के अधिकारियों का असहयोगात्मक व्यवहार भी प्रान्तीय स्वायत्तता के लिए नुकसानदेह था। इसी आधार पर कहा गया है कि प्रान्तीय स्वायत्तता मात्र दिखावा थी। अतः भारतीयों ने इसके प्रति असन्तोष जताया तथा प्रान्तों के लिये वास्तविक स्वायत्तता की माँग की।

प्रश्न 9.
प्रान्तीय स्वायत्तता का क्रियान्वयन किस प्रकार किया गया? बताइए।
उत्तर:
प्रान्तीय स्वायत्तता को क्रियान्वयन:
ब्रिटिश शासन द्वारा 1935 के अधिनियम में उल्लिखित प्रान्तीय स्वायत्तता को लागू करने का प्रयास किया गया। 1937 में चुनाव कराने की तिथियाँ घोषित की गयीं। 3 अप्रैल, 1937 तक चुनाव सम्पन्न हुये। 11 में से 6 प्रान्तों, यथा-संयुक्त प्रान्त, बिहार, उड़ीसा, बम्बई, मद्रास तथा मध्य प्रान्त में काँग्रेस को स्पष्ट बहुमत, 3 प्रान्तों यथा – असम, बंगाल एवं उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त में काँग्रेस बड़े दल के रूप में तथा पंजाब में कम्युनिस्ट पार्टी तथा सिन्ध में मुस्लिम लीग बहुमत में थी। आरम्भ में दलों ने मन्त्रिमण्डल गठन में रुचि नहीं दिखाई। ब्रिटिश शासन के द्वारा गवर्नरों का सहयोग मिलने के आश्वासन के बाद जुलाई, 1937 में प्रान्तीय सरकारों का गठन हुआ। कुछ प्रान्तों में कार्य भी अच्छा हुआ।

प्रश्न 10.
स्वतंत्र भारत के संविधान पर, 1935 के अधिनियम के कोई तीन प्रमुख प्रभाव बताइए।
उत्तर:
स्वतंत्र भारत के संविधान पर 1935 के अधिनियम के प्रमुख प्रभावे:
स्वतंत्र भारत के संविधान पर 1935 के अधिनियम के तीन प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं –

  1. संघीय योजना – 1935 के अधिनियम में प्रस्तावित अखिल भारतीय संघ की योजना वर्तमान के भारतीय संघ में देखी जा सकती है। संघ की इकाई, केन्द्र को अधिक शक्ति देने, शक्ति विभाजन की व्यवस्था आदि 1935 के अधिनियम से ही प्रभावित हैं।
  2. द्विसदनीय विधानमण्डल का विचार – वर्तमान संविधान में केन्द्र व कुछ राज्यों में द्विसदनीय विधान मण्डल की जो व्यवस्था की गयी है, वह 1935 के अधिनियम पर ही आधारित है।
  3. संवैधानिक संकट के प्रावधान – राज्यों में संवैधानिक संकट खड़ा होने पर उनके शासन प्रबन्ध को केन्द्र अपने हाथ में राष्ट्रपति के माध्यम से ले सकता है, यह भी 1935 के अधिनियम में उल्लिखित व्यवस्था पर आधारित है।

प्रश्न 11.
भारत शासन अधिनियम, 1935 के महत्व को बताइए।
उत्तर:
भारत शासन अधिनियम ,1935 का महत्त्व:
भारत शासन अधिनियम, 1935 का महत्व निम्नलिखित हैं –

  1. उत्तरदायी शासन की स्थापना -1935 के भारत शासन अधिनियम के कारण प्रान्तों में उत्तरदायी शासन स्थापित हुआ।
  2. भारत के राजनैतिक एकीकरण का प्रयास – इस अधिनियम ने भारत के पूर्ण एकीकरण का मार्ग भी प्रशस्त किया। देशी रियासतों को अखिल भारतीय संघ में शामिल करने की योजना, भारत के राजनैतिक एकीकरण का प्रयास था।
  3. स्वतंत्र भारत के संविधान का आधार – भारत की स्वतन्त्रता के बाद देशी रियासतों को भारतीय संघ में विलय की प्रेरणा 1935 के अधिनियम में प्रस्तावित अखिल भारतीय संघ की देन थी। स्वतन्त्रता के बाद बनाया गया भारत का यह अधिनियम एक मुख्य आधार है।
  4. राजनैतिक प्रशिक्षण प्रदान करना – इस अधिनियम के माध्यम से प्रान्तीय स्वायत्तता से सम्बन्धित राजनैतिक प्रशिक्षण भारतीयों को प्राप्त हुआ। यह प्रशिक्षण संविधान निर्माण व स्वतन्त्रता के पश्चात भारतीय शासन को संचालित करने में सहायक सिद्ध हुआ।

प्रश्न 12.
भारत शासन अधिनियम 1935 में उल्लिखित संघीय व्यवस्था को हम दोषपूर्ण केसे सिद्ध कर सकते हैं?
उत्तर:
संघीय व्यवस्था का दोषपूर्ण होना:
1935 के भारत शासन अधिनियम द्वारा प्रस्तावित अखिल भारतीय संघ की योजना में यद्यपि संघीय व्यवस्था के कई लक्षण; जैसे-शक्ति को विभाजन, लिखित व कठोर संविधान, स्वतन्त्र न्यायिक सत्ता वे दो सरकारें आदि विद्यमान थे; लेकिन इसमें गम्भीर दोष भी थे। संघ में बेमेले इकाइयों को मिलाने का प्रयास किया।

यह प्रस्तावित संघ ने तो भारतीयों को सत्ता का हस्तान्तरण करता था और न ही इसमें आत्म निर्णय, सामान्य नागरिकता का प्रावधान था। गवर्नर जनरल व गवर्नरों को तानाशाह जैसी शक्तियाँ प्राप्त र्थी, जो संघीय व्यवस्था को आघात पहुँचाती थीं। संघीय न्यायाधिकरण की शक्तियाँ भी सर्वोच्च नहीं थीं। उसके निर्णय के विरुद्ध ब्रिटेन स्थित ‘प्रिवी कौंसिल में अपील की जा सकती थी।

प्रश्न 13.
1935 के भारत शासन अधिनियम के बारे में कहा जाता है कि इसमें दी गयी प्रान्तीय स्वायत्तता एक भ्रम थी। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1935 का भारत शासन अधिनियम प्रान्तों में स्वायत्तता का प्रावधान करता था। प्रान्तीय विधानमण्डल के सदस्य निर्वाचित होते थे। कार्यपालिका को व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया, परन्तु केन्द्रीय शासन के पास ऐसी शक्तियाँ थी, जिनके माध्यम से प्रान्तीय क्षेत्र में हस्तक्षेप किया जा सकता था।

गवर्नर जनरल आपातकाल की घोषणा करके प्रान्तीय स्वायत्तता को समाप्त कर सकता था। प्रान्तों में गवर्नरों को कई प्रकार के अधिकार प्राप्त थे, जो स्वायत्तता का गला घोंटते थे। मन्त्रियों की स्थिति कमजोर थी। सामूहिक उत्तरदायित्व का अभाव था। उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि 1935 के भारत शासन अधिनियम में दी गयी प्रान्तीय स्वायत्तता मात्र भ्रम थी।

प्रश्न 14.
1935 के भारत शासन अधिनियम में ‘भारतीयों को आत्म निर्णय’ के अधिकार का अभाव था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1935 के भारत शासन अधिनियम में आत्मनिर्णय के अधिकार का अभाव था। भारतीयों को अपने भाग्य का निर्णय करने का इस अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं था। यह अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा निर्मित हुआ और उसी को भारत की प्रगति का निर्णायक स्वीकार किया गया। अधिनियम द्वारा भारत पर ब्रिटिश संसद अथवा भारत मन्त्री के नियन्त्रण में कोई कमी नहीं की गयी। इस अधिनियम में भारत की प्रगति का कोई कार्यक्रम नहीं था। प्रत्यक्ष रूप से यह अधिनियम राष्ट्रीय मांगों को पूरा करने के लिए बनाया गया था, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से यह साम्राज्यवादी हितों का ही पोषक था।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 18 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत शासन अधिनियम, 1935 की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत शासन अधिनियम, 1935 की प्रमुख विशेषताएँ –
1. विस्तृत अधिनियम:
1935 के अधिनियम में 451 धारायें वे 15 अनुसूचियाँ र्थी परन्तु प्रस्तावना का अभाव था। इससे पूर्व ब्रिटिश संसद ने इससे बड़ा कानून कभी नहीं बनाया था।

2. अखिल भारतीय संघ का प्रस्तावे:
1935 के अधिनियम द्वारा यह निर्णय लिया गया कि केन्द्र में ब्रिटिश प्रान्तों तथा देशी रियासतों को मिलाकर एक संघ स्थापित किया जाए। यह संघ 11 ब्रिटिश प्रान्तों, 6 चीफ कमिश्नर प्रान्तों तथा उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था जो स्वेच्छा से संघ में सम्मिलित हों। अधिनियम के अनुसार, प्रान्तों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, परन्तु देशी रियासतों के लिए यह ऐच्छिक था। प्रत्येक देशी रियासत को, जो संघ में सम्मिलित होना चाहती थी, एक स्वीकृति – लेख या प्रवेश – लेख पर हस्ताक्षर करना होता था।

इस स्वीकृति प्रपत्र में वह रियासत उन शर्तों का उल्लेख करती थी, जिन पर वह संघ में सम्मिलित होने को तैयार होती थी। संघ की इकाइयों को अपने आन्तरिक मामलों में स्वशासन प्राप्त था। संघ और उसकी इकाइयों के विवादों को सुलझाने के लिए एक संघीय न्यायालय की स्थापना की गयी। केन्द्र में एक ‘संघीय कार्यकारिणी’ तथा ‘द्विसदस्यीय व्यवस्थापिका’ की स्थापना की गयी। परन्तु शर्त पूरी न हो पाने के कारण यह संघ स्थापित नहीं हो सका।

3.  केन्द्र में द्वैध शासन की स्थापना:
1935 के अधिनियम द्वारा प्रान्तों में जिस द्वैध शासन का अन्त किया गया, उसी द्वैध शासन की स्थापना केन्द्र में की गयी। संघीय विषयों को दो भागों में बाँटा गया–आरक्षित विषय तथा हस्तान्तरित विषय। आरक्षित विषयों में प्रतिरक्षा, धर्म सम्बन्धी मामले, विदेशी मामलों तथा कबायली क्षेत्रों की व्यवस्था सम्मिलित थी। इन विषयों को गवर्नर जनरल के हाथ में सुरक्षित रखा गया। हस्तान्तरित विषयों के शासन के लिए गवर्नर जनरल की सहायता तथा परामर्श के लिए एक मन्त्रिमण्डल की व्यवस्था की गयी थी।

4. प्रान्तीय स्वायत्तता:
इस अधिनियम के द्वारा प्रान्तों में द्वैध शासन को समाप्त करके, उन्हें पूर्ण स्वाधीनता प्रदान। की गयी। सम्पूर्ण प्रान्तीय शासन लोकप्रिय मन्त्रियों को सौंपा गया।

5. शक्ति विभाजन:
1935 के अधिनियम द्वारा संघ व प्रान्तों के मध्य शक्ति विभाजन हेतु तीन सूचियाँ बनायी गर्दी-संघीय सूची, प्रान्तीय सूची और समवर्ती सूची। संघीय सूची में अखिल भारतीय महत्व के 59 विषय सम्मिलित किए गए। प्रान्तीय सूची में प्रान्तीय महत्व के 54 विषय सम्मिलित किए गए। समवर्ती सूची में 36 विषय थे।

6. संरक्षण और आरक्षण की व्यवस्था:
ब्रिटिश शासन का मानना था कि भारतीयों द्वारा उत्तरदायी शासन का संचालन करने में त्रुटियाँ की जा सकती हैं। इसीलिए वे अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा हेतु पहले से ही समुचित व्यवस्था कर लेना चाहते थे। अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल एवं गवर्नरों को विभिन्न परिस्थितियों में केन्द्र तथा प्रान्त में उत्तरदायी शासन में हस्तक्षेप करने के व्यापक अधिकार प्रदान किए गए।

7. विधानमण्डलों का विस्तार और मताधिकार में वृद्धि:
इस अधिनियम के द्वारा संघीय व्यवस्थापिका में दो सदनों की व्यवस्था की गयी, जिनमें से एक संघीय विधान सभा एवं दूसरी राज्य परिषद थी। केन्द्र में विधानसभा के सदस्यों की संख्या 375 तथा राज्य परिषद् में सदस्यों की संख्या 260 निर्धारित की गयी।

8. संघीय न्यायालय:
इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गयी कि संघ एवं संघ की इकाइयों (देशी रियासतों तथा ब्रिटिश प्रान्तों) के आपसी झगड़ों का निर्णय करने के लिए एक संघीय न्यायालय की स्थापना की जाएगी। संघीय न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गयी। संघीय न्यायालय को मौलिक एवं अपील सम्बन्धी अधिकार दिए गए। अन्तिम शक्ति लन्दन स्थित ‘प्रिवी कौन्सिल’ को प्राप्त थी।

9. ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता:
इस अधिनियम में किसी भी प्रकार का परिवर्तन करने का अधिकार प्रान्तीय विधानमण्डलों तथा संघीय व्यवस्थापिका को नहीं दिया गया था। इस सम्बन्ध में शक्ति ब्रिटिश संसद के पास ही बनी रही।

10. भारत परिषद् की समाप्ति:
भारत परिषद के भारत विरोधी दृष्टिकोण के कारण भारतीय जनता द्वारा भारत परिषद की समाप्ति की मांग की जा रही थी। अतः 1935 के अधिनियम द्वारा इस परिषद को समाप्त कर दिया गया तथा इसके स्थान पर भारत सचिव के लिए कुछ परामर्शदाता नियुक्त किए जाने की व्यवस्था की गई।

11. बर्मा, बरोर एवं अदन के सम्बन्ध में परिवर्तन:
इस अधिनियम द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया तथा अदन को भारत सरकार के नियन्त्रण से मुक्त कर दिया गया। यद्यपि बरार के ऊपर निजाम हैदराबाद की नाम मात्र की सत्ता स्वीकार कर ली गयी। परन्तु उसको शासन की दृष्टि से मध्य प्रान्त का अंग बना दिया गया।

12. साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार:
यह स्पष्ट हो गया था कि साम्प्रदायिक चुनाव पद्धति भारत के हित में नहीं थी, किन्तु अंग्रेजों ने भारतीयों में फूट डालने की अपनी नीति के अनुसार संघीय तथा प्रान्तीय विधानमण्डल में विभिन्न सम्प्रदायों एवं विशेष हितों को प्रतिनिधित्व देने के लिए इस पद्धति को न केवल जारी रखा, वरन् आंग्ल – भारतीयों, भारतीय ईसाइयों, यूरोपियनों तथा हरिजनों के लिए भी इस पद्धति का विस्तार कर दिया।

प्रश्न 2.
स्वतंत्र भारत के संविधान पर 1935 के भारत शासन अधिनियम के प्रभावों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
‘भारतीय संविधान पर 1935 के भारत शासन अधिनियम को सर्वाधिक प्रभाव था।’ इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत के वर्तमान संविधान पर 1935 के भारत शासन अधिनियम का प्रभाव:
भारत के वर्तमान संविधान पर 1935 के भारत शासन अधिनियम का सर्वाधिक प्रभाव था। इसका विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है –

1. संघीय योजना:
सन् 1935 के भारत शासन अधिनियम में प्रस्तावित अखिल भारतीय संघ की योजना वर्तमान के भारतीय संघ में देखी जा सकती है। संघ की इकाई, केन्द्र को अधिक शक्ति देने, शक्ति विभाजन की व्यवस्था आदि 1935 के अधिनियम से ही प्रभावित हैं।

2. द्विसदनीय विधान मण्डल का विचार:
वर्तमान संविधान में केन्द्र व कुछ राज्यों में द्विसदनीय विधान मण्डल की जो व्यवस्था की गयी है वह सन् 1935 के अधिनियम पर ही आधारित है।

3. संवैधानिक संकट के प्रावधान:
राज्यों में संवैधानिक संकट उत्पन्न होने पर उसके शासन प्रबन्ध को केन्द्र अपने हाथ में राष्ट्रपति के माध्यम से ले सकता है। यह व्यवस्था, 1935 के भारत शासन अधिनियम से ही ली गयी है।

4. राज्यपाल को पद:
स्वतंत्र भारत के संविधान में उल्लिखित राज्यपाल पद की व्यवस्था, 1935 के अधिनियम में उल्लिखित गवर्नर के पद के प्रावधानों से ग्रहण की गई है।

5.  एक विस्तृत वैधानिक प्रलेख:
भारत का वर्तमान संविधान इस मामले में 1935 के भारत शासन अधिनियम के समान एक विस्तृत वैधानिक प्रलेख हैं। इसमें भी केन्द्र सरकार के प्रमुख अंगों के साथ – साथ प्रान्तीय सरकारों की व्यवस्था का भी उल्लेख किया गया है।

6. राष्ट्रपति द्वारा संकटकाल की घोषणा:
स्वतन्त्र भारत के संविधान में राष्ट्रपति द्वारा संकटकाल की घोषणा से सम्बन्धित प्रावधान 1935 के भारत शासन अधिनियम से लिया गया है। भारतीय संविधान में संकटकाल की घोषणा से सम्बन्धित प्रावधान धारा 352 व 353 की भाषा 1935 के भारत शासन अधिनियम की धारा 102 से मिलती – जुलती है।

7.  राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग:
वर्तमान संविधान की धारा 256 में कहा गया है कि राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग देश की संसद एवं कार्यपालिका के निर्देशानुसार किया जायेगा। भारतीय संविधान में यह धारा 1935 के भारत शासन अधिनियम की धारा 126 के अनुरूप है।

8. संघीय कानून को मान्यता :
भारतीय संविधान की धारा 251 में यह उल्लेख किया गया है कि संघीय कानून और राज्य के कानून में विरोध होने की स्थिति में संघीय कानून को सर्वोच्चता प्रदान की जाएगी। भारतीय संविधान का यह प्रावधान 1935 के भारत शासन अधिनियम की धारा 107 के प्रावधान पर आधारित हैं।

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