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RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 19 भारत में ब्रिटिश शासन के अवसान के कारण।

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Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Chapter 19 भारत में ब्रिटिश शासन के अवसान के कारण।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 19 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 19 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
काँग्रेस की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
28 दिसम्बर, 1885 को काँग्रेस की स्थापना हुई।

प्रश्न 2.
भारत छोड़ो आन्दोलन कब शुरू हुआ?
उत्तर:
9 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ।

प्रश्न 3.
काँग्रेस की स्थापना कहाँ पर हुई?
उत्तर:
काँग्रेस की स्थापना बम्बई में हुई।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 19 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ब्रह्म समाज के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ब्रह्म समाज के कार्य:
ब्रह्म समाज की स्थापना 20 अगस्त, 1828 को राजा राममोहन राय द्वारा की गयी। ब्रह्म समाज का प्रमुख उद्देश्य हिन्दू समाज को बुराइयों को दूर करना, ईसाई धर्म के भारत में बढ़ते प्रभाव को रोकना एवं सभी धर्मों में आपसी एकता स्थापित करना। राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज के माध्यम से भारतीय समाज में व्याप्त विभिन्न कुरीतियों, जैसे-सती प्रथा, बाल विवाह, बहुविवाह आदि के विरुद्ध आवाज उठाई।

राय ने सती प्रथा के उन्मूलन हेतु आन्दोलन किये जिसके परिणामस्वरूप 1829 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने सती प्रथा को अवैध घोषित कर दिया। इसके अतिरिक्त राजा राममोहन राय ने स्त्री शिक्षा, प्रेस की स्वतन्त्रता व प्राकृतिक अधिकारों यथा–जीवन, स्वतन्त्रता, सम्पत्ति का समर्थन किया। उन्होंने जमींदारी प्रथा का विरोध किया।

प्रश्न 2.
एटलांटिक चार्टर से आप क्या समझते हो?
उत्तर:
एटलांटिक चार्टर:
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वैश्विक शान्ति की स्थापना हेतु एक नयी विश्व संस्था की दिशा में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट एवं ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री चर्चिल ने विश्व शान्ति के आधारभूत सिद्धान्तों की व्याख्या की। इस पर दोनों देशों के नेताओं ने 14 अगस्त, 1941 को हस्ताक्षर किए। जिसे एटलांटिक चार्टर के नाम से जाना जाता है। एटलांटिक चार्टर में यह प्रस्ताव था कि द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् प्रत्येक उपनिवेशित राष्ट्र को आत्म-निर्णय का अधिकार होगा। लेकिन ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री चर्चिल ने इसे भारत में लागू करने से इंकार कर दिया।

जब संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने चर्चिल पर भारत से समझौते के लिए दबाव डाला तथा कहा कि यह चार्टर सम्पूर्ण विश्व में लागू होगा। इससे भी ब्रिटेन पर नैतिक दबाव पड़ा। 1945 ई. में ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री बने क्लीमेंट एटली ने अटलांटिक चार्टर का सम्मान करते हुए। भारत को स्वतन्त्र करने का भरोसा दिलाया। इससे भारत की स्वतन्त्रता का मार्ग प्रशस्त हुआ।

प्रश्न 3.
उदारवादी एवं उग्रराष्ट्रीय विचारधारा के नेताओं के नाम लिखो।
उत्तर:
उदारवादी विचारधारा के नेता:
भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के उदारवादी युग के प्रमुख नेता गोपालकृष्ण गोखले, दादा भाई नौरोजी, महादेव गोविन्द रानाडे, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, फिरोजशाह मेहता, के.टी. तैलंग, ए. ओ. ह्यूम, आनन्द मोहन घोष एवं उमेशचन्द्र बनर्जी आदि प्रमुख थे। उग्रराष्ट्रीय विचारधारा के नेता – भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के उग्रराष्ट्रीय विधारधारा के प्रमुख नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय, विपिन चन्द्रपाल एवं अरविन्द घोष आदि थे।

प्रश्न 4.
लॉर्ड लिटन की दमनकारी नीतियों की जानकारी दीजिए।
उत्तर:
लॉर्ड लिटन की दमनकारी नीतियाँ:
लॉर्ड लिटन 1876 ई. से 1880 ई. तक भारत का वायसराय रहा। इसने अनेक दमनकारी नीतियों से भारतीय जनता को परेशान किया। इसके शासनकाल की प्रमुख दमनकारी नीतियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. भारतीय नागरिक सेवा में भर्ती की आयु घटाकर 19 वर्ष कर देना।
  2. अंकाल के समय दिल्ली में विशाल दरबार आयोजन कर भारतीय धन का अपव्यय करना।
  3. सन् 1876 में भारतीयों के लिए शस्त्र अधिनियम पारित कर उन्हें शस्त्रं रखने के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य कर दिया। बिना लाइसेंस के शस्त्र रखना व उनका व्यापार करना दण्डनीय अपराध बन गया। यूरोपियों व ऐंग्लो इण्डियनों पर यह कानून लागू नहीं होता था।
  4.  प्रेस की स्वतन्त्रता समाप्त करने के लिए 1878 ई. में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट पारित करना।
  5. साम्राज्य विस्तार हेतु अफगानिस्तान पर आक्रमण कर धन का अत्यधिक अपव्यय करना आदि।
  6. भारत विरोधी आर्थिक नीति लागू करना।
  7. लिटन ने ‘मुक्त व्यापार की नीति’ का अनुसरण करते हुए 29 वस्तुओं पर आयात कर हटा दिया और सूती वस्त्र पर आयात शुल्क आधा कर दिया। इससे भारतीय वस्त्र उद्योग पर बुरा प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 5.
महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए किन्हीं तीन 3 प्रमुख आन्दोलनों को बताइये।
उत्तर:
महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए तीन आन्दोलन:
महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए तीन प्रमुख आन्दोलन। निम्नलिखित हैं –
1. असहयोग आन्दोलने:
महात्मा गाँधी द्वारा संचालित इस आन्दोलन का प्रारम्भ जनवरी 1921 में किया गया। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश भारत की समस्त राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक संस्थाओं का बहिष्कार करना था जिससे कि सरकारी तन्त्र ठप्प हो जाएं। इस आन्दोलन ने सम्पूर्ण भारत को एक नवीन ऊर्जा प्रदान की। इस आन्दोलन की प्रमुख बात हिन्दू-मुस्लिम एकता का विकास होना था।

2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन:
महात्मा गाँधी द्वारा संचालित इस आन्दोलन को प्रारम्भ 12 मार्च, 1930 को उनकी दांडी यात्रा से हुआ। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य पूर्ण स्वराज्य को प्राप्त करना था। इसके लिए कानून का उल्लंघन करने का निश्चिय किया गया। अपना संकल्प व्यक्त करने के लिए स्वतन्त्रता प्रेमी भारतीयों ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन एवं सत्याग्रह आन्दोलन का आयोजन किया। इस आन्दोलन में मध्यम वर्ग, मजदूर व किसान भी सम्मिलित हुए। नमक जैसे मुद्दे को लेकर चलाया गया यह आन्दोलन अशा से भी अधिक सफल रहा।

3. भारत छोड़ो आन्दोलन:
9 अगस्त, 1942 से प्रारम्भ यह गाँधीजी का तीसरा महत्त्वपूर्ण आन्दोलन था। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भारत से ब्रिटिश शासन का तत्काल अन्त करना था। इसमें गाँधी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया था। यह आन्दोलन अब तक हुए समस्त आन्दोलनों में से सर्वाधिक उग्र आन्दोलन था। गाँधी जी सहित काँग्रेस के प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के बाद समाजवादी काँग्रेस ने इनका नेतृत्व किया। यद्यपि यह आन्दोलन अपने लक्ष्य में सफल नहीं रहा, परन्तु इसने भारत में ऐसी अपूर्व जागृति उत्पन्न कर दी कि भारत पर लम्बे समय तक ब्रिटिश शासन असम्भव हो गया।

प्रश्न 6.
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के उदय को समझाइए।
उत्तर:
28 दिसम्बर, 1885 को अवकाश प्राप्त अंग्रेज अधिकारी एलन ऑक्टोवियन ह्यूम ने 72 राजनैतिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर बम्बई में गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज के भवन में काँग्रेस की नींव रखी जिसके प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने की। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध पनप रहे घोर असन्तोष के कारण हो सकने वाले विस्फोट की स्थिति को शान्त करना था। इसके अतिरिक्त काँग्रेस के अन्य प्रमुख उद्देश्यों में देशहित की दिशा में प्रयत्नशील भारतीयों ने परस्पर सम्पर्क एवं मित्रता के प्रोत्साहन देना, देश के अन्दर धर्म, वंश एवं प्रान्त सम्बन्धी विवादों को खत्म कर राष्ट्रीय एकता की भावना को प्रोत्साहित करना।

शिक्षित वर्ग की पूर्ण सहमति से महत्वपूर्ण एवं आवश्यक सामाजिक विषयों पर विचार – विमर्श करना तथा यह निश्चित करना कि आने वाले वर्षों में भारतीय जनकल्याण के लिए किस दशा में और किस आधार पर कार्य किया जाय। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन के निर्देश व मार्गदर्शन में गठित इस संगठन का दृष्टिकोण था कि भारतीयों में देशभक्ति की राष्ट्रीय भावनाओं को वैधानिक प्रवाह में मोड़ा जाए और भारतीयों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जाए।

प्रश्न 7.
श्रीमती एनीबेसेन्ट ने किस प्रकार भारतीय जनमानस को प्रभावित किया?
उत्तरे:
श्रीमती एनीबेसेन्ट का भारतीय जनमानस पर प्रभाव:
श्रीमती एनीबेसेन्ट एक भारतभक्त आयरिश महिला थीं। भारत में वे सन् 1893 में आयीं। भारत में रहते हुए उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी का खूब प्रचार किया। इन्होंने हिन्दू धर्म को अपनाकर अपना जीवन समर्पित कर दिया। शिक्षा के प्रसार के अतिरिक्त थियोसोफिकल आन्दोलन के द्वारा बाल विवाह, कन्या-विवाह, वे विक्रय तथा छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने में सहयोग दिया। एनीबेसेन्ट ने शिक्षा के प्रसार हेतु 1898 ई. में काशी में ‘बनारस हिन्दू संस्कृत कॉलेज’ स्थापना की। उन्होंने सितम्बर 1916 में होमरूल आन्दोलन चलाया। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नजरबन्द कर दिया।

उन्हें सन् 1917 के कलकत्ता काँग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। सन् 1919 के बाद राष्ट्रीय आन्दोलन में गाँधी युग के प्रारम्भ होने के बाद भारतीय राजनीति में उनकी सक्रिय भूमिका लगभग समाप्त हो गयी। उन्होंने एक बार कहा था कि सभी धर्मों का अध्ययन करने के बाद में इसे निष्कर्ष पर पहुँची हूँ कि हिन्दूधर्म के समान कोई भी दूसरा धर्म पूर्ण वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिकता की भावना से अभिप्रेरित नहीं है।

प्रश्न 8.
वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट से आप क्या समझते हो?
उत्तर:
वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट:
गवर्नर जनरल लॉर्ड लिटन के शासन काल में भारतीय समाचार – पत्रों की स्वतन्त्रता पर रोक लगाने के लिए एक अधिनियम 1879 ई. में पारित किया गया जिसे वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट (देशी भाषा समाचार – पत्र, अधिनियम) कहते हैं। भारत की ब्रिटिश सरकार ने 1857 ई. की क्रान्ति के पश्चात् प्रेस की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, क्योंकि अनेक अंग्रेजी और भारतीय भाषा के अखबारों में ब्रिटिश नीतियों की कड़ी आलोचना होने लगी। इस पर वायसराय लॉर्ड लिटन ने मार्च 1878 में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट पास किया।

जिसे 1879 में लागू किया गया था, इसके द्वारा किसी भी भारतीय भाषा में छपने वाले अखबार में प्रकाशक को सरकार के विरुद्ध भड़काने वाली सामग्री नहीं छापने का अनुबन्ध-पत्र देने के लिये आदेश दिया जा सकता था। इस कानून की अवहेलना करने पर अखबार को एक बार चेतावनी देने तथा इस पर भी कानून के विरुद्ध जाने पर सरकार को उसे बन्द करने का अधिकार मिल गया। इसके तहत्।

ब्रिटिश सरकार विभिन्न प्रदेशों में छपने वाले भाषायी समाचार – पत्रों पर नियमित रूप से नजर रखने लगी। यदि किसी रिपोर्ट की बागी करार दिया जाता था, तो अखबार को पहले चेतावनी दी जाती थी और यदि चेतावनी की अनसुनी हुई, तो अखबार को जब्त किया जा सकता था तथा छपाई की मशीन छीनी जा सकती थी। इससे भारतीय लोगों में आक्रोश फैला एवं राष्ट्रवाद पनपा।

प्रश्न 9.
1857 की क्रान्ति के बारे में वीर सावरकर के क्या विचार थे?
उत्तरे:
1857 की क्रान्ति के बारे में वीर सावरकर के विचार- भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन के क्रान्तिकारी नेताओं में वीर विनायक दामोदर सावरकर का उल्लेखनीय स्थान है। वे महान् क्रान्तिकारी, महान् देश भक्त और महान् संगठनवादी थे। उन्होंने आजीवन देश की स्वतन्त्रता के लिए जो तप और त्याग किया उसकी प्रशंसा शब्दों में नहीं की जा सकती है। वे अपने तप और त्याग का बिना कुछ पुरस्कार लिये हुए ही चिरनिद्रा में सो गये। सावरकर को जनता ने वीर की उपाधि से विभूषित किया। अर्थात् वे वीर सावरकर कहे जाते थे। वे सचमुच भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के महान् योद्धा थे। वे सिपाही भी थे, सेनापति भी थे। उन्होंने स्वतन्त्रता के महान् योद्धा थे। वे सिपाही भी थे, सेनापति भी थे।

उन्होंने स्वतन्त्रता के लिए स्वयं युद्ध तो किया ही सहस्त्रों युवकों को भी युद्ध के लिए प्रेरणा दी। उन्होंने 10 मई, 1907 को लन्दन के ‘इण्डिया हाउस’ में 1857 की क्रान्ति की अर्द्धशताब्दी मनाने का निश्चय किया। 1857 की क्रान्ति मराठी में एक पुस्तक प्रकाशित की और इसे आजादी की पहली लड़ाई बतलाया।

सावरकर प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने 1857 के ‘गदर को ‘गदर’ न कहकर ‘ भारत के प्रथम स्वतन्त्रता युद्ध’ की संज्ञा प्रदान की। वीर सावरकर के अनुसार, “1857 की क्रान्ति स्वतन्त्रता प्राप्त के लिए प्रथम युद्ध था, यह केवल सैनिक विद्रोह ही नहीं बल्कि सामाजिक ज्वालामुखी था जिसमें दबी हुई। शक्तियों ने अभिव्यक्ति प्राप्त की थी।”

प्रश्न 10.
ब्रिटिश शासन के अन्त में किन प्रमुख वैश्विक कारणों का योगदान रहा?
उत्तर:
ब्रिटिश शासन के अन्त में प्रमुख वैश्विक कारणों का योगदान:
प्रथम विश्वयुद्ध एवं द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप ब्रिटेन की स्थिति कमजोर पड़ गयी तथा संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ का एक विश्व शक्ति के रूप में उदय हुआ। यह दोनों देश उपनिवेशवाद के विरुद्ध थे। इसी काल में विश्व के कई अन्य देशों में भी राजतन्त्र वह उपनिवेशवाद के विरुद्ध अनेक क्रान्तियाँ हो रही थीं। 1917 में रूस में हुई क्रान्ति ने भारतीय लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध खड़ा होने के लिए एक नैतिक बल प्रदान किया।

इसके अतिरिक्त विश्व के विभिन्न भागों में अन्य स्वतन्त्र हो रहे देशों से भी भारतीय लोगों को प्रेरणा प्राप्त हुई और उनमें उत्साह का संचार हुआ जिससे भारतीयों ने अंग्रेजों से मुक्ति पाने हेतु अपने संघर्ष को तीव्र कर दिया। वहीं, दूसरी ओर, अंग्रेजों के विरुद्ध विश्व के अन्य प्रमुख देशों, यथा-जापान, जर्मनी एवं फ्रांस ने अपने यहाँ से स्वतन्त्रता आन्दोलन संचालित करने हेतु भारतीय स्वतन्त्रता प्रेमियों को स्थान उपलब्ध करवाया।

विदेशों में पढ़ रहे भारतीय विद्यार्थियों ने इन देशों में रहकर स्वतन्त्रता आन्दोलन को नई दिशा दी। सन् 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ के उदय से भी ब्रिटेन की उपनिवेशवादी प्रवृत्ति को गहरा आघात लगा। संयुक्त राष्ट्र संघ में सम्मिलित देशों ने विश्व में फैले हुए उपनिवेशवाद का घोर-विरोध किया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारत से ब्रिटिश शासन के समापन में वैश्विक कारणों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 19 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में ब्रिटिश शासन के अवसान के कारणों पर लेख लिखो।
उत्तर:
भारत में ब्रिटिश शासन के अवसान के कारण भारत में ब्रिटिश शासन के अवसान के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
1. विभिन्न राजनैतिक एवं सामाजिक संगठनों का उदय:
भारत में 19वीं शताब्दी में अनेक धार्मिक और समाज सुधार आन्दोलन प्रारम्भ हुए। इन आन्दोलनों ने धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र में व्याप्त विकृतियों के निराकरण का प्रयास किया जिससे भारत में राष्ट्रीय एकता की भावना सुदृढ़ हुई। राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज, स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज, स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण मिशन तथा श्रीमती एनीबेसेन्ट ने थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना की।

राजा राममोहन राय को ‘आधुनिक भारत का पिता’ तथा ‘नए युग का अग्रदूत’ भी कहा जाता है। स्वामी दयानन्द सरस्वती न आर्य समाज के माध्यम से धार्मिक और राष्ट्रीय नवजागरण का कार्य किया। उन्होंने देशवासियों में राष्ट्रीय चेतना का संचार किया। श्रीमती एनीबेसेन्ट ने हिन्दू धर्म व संस्कृति की श्रेष्ठता की प्रशंसा की, इससे भारतवासी स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए आन्दोलन करने को प्रेरित हुए। इन धार्मिक व सामाजिक आन्दोलनों के परिणामस्वरूप राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई तथा लोग संगठित होने लगे।

2. दोषपूर्ण ब्रिटिश शासन प्रणाली:
भारत में ब्रिटिश शासन भारतीय राजनीतिक व्यवस्था से पूर्णरूप से अलग था। भारत में देशी राजाओं ने धार्मिक व शिक्षण संस्थाओं, कवियों, कलाकारों, महात्माओं को कर मुक्त जायदाद दे रखी थी। वहीं ब्रिटिश राज ने इन्हें समाप्त कर दिया। नई कर व्यवस्था से किसान वर्ग भी मुसीबत में आ गया। अंग्रेजों की न्याय व्यवस्था भारतीय न्याय व्यवस्था से न केवल महँगी, दीर्घकालीन एवं निष्पक्षहीन थी बल्कि प्रशासनिक दृष्टि से भी दोषपूर्ण थी। आम राजकाज की भाषा अंग्रेजों हो जाने के कारण लोगों की मुसीबतें बढ़ गयीं। भारतीयों को अंग्रेजों की तुलना में हेय दृष्टि से भी देखा जाता था।

3. अंग्रेजी शिक्षा का प्रभाव:
द्यपि लॉर्ड मैकाले अंग्रेजी शिक्षा एवं भाषा का प्रचलन करके भारतीयों को मानसिक दृष्टि से गुलाम बनाना चाहता था, लेकिन अंग्रेजी भाषा भारतीयों के लिए विश्व सम्पर्क भाषा बन गयी। भारतीय युवक उच्च शिक्षा में रुचि लेने लगे और इससे राष्ट्रीय जागृति को प्रोत्साहित किया।

4. सन् 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम:
यद्यपि सन् 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम असफल रहा, किन्तु ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह को कुचलने के बाद जिस प्रकार के अमानवीय अत्याचार किए, उससे भारतीय जनता के असन्तोष में अत्यधिक वृद्धि हुई। अंग्रेजों ने गाँव के गाँव जला दिए, निर्दोष ग्रामीणों का कत्लेआम किया। इस प्रकार के अत्याचारों से भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति भयंकर घृणा की भावना उत्पन्न हुई और अंग्रेजों से बदला लेने की भावना जागृत हुई।

5.  भारत का आर्थिक शोषण:
भारतीयों में अंग्रेजों द्वारा किये गये आर्थिक शोषण के विरुद्ध भारी असन्तोष था। अंग्रेजों ने भारत के कुटीर उद्योगों को नष्ट कर दिया। यहाँ से सस्ते भाव से कच्चा माल लेते थे और अंग्रेज उसे तैयार करके ऊँचे दामों में बेच देते थे। विदेशी पूँजी का भारत में निवेश, विदेशी आयात के माध्यम से भारत का शोषण किया। इंग्लैण्ड में भारत की गृह सरकार का सारा खर्च भारत द्वारा ही वहन किया जाता था, भारत के धने का अपहरण, कुटीर उद्योगों का विनाश, किसानों का शोषण आदि की भारतीयों ने विरोध किया।

6. सामाजिक परिवर्तन:
अंग्रेजी शिक्षा के कारण सामाजिक एवं धार्मिक कुरीतियों, आडम्बरों से भारतीयों का मोह भंग होने लगा। अंग्रेजी शिक्षा के कारण भारत में डॉक्टर, वकील, शिक्षक एवं नौकरी करने वालों का नया वर्ग उत्पन्न हुआ। इन लोगों ने भी भारत में राष्ट्रीय जागृति के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।

7. यूरोप के विद्वानों द्वारा भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का महिमामण्डन:
विदेशी विद्वानों द्वारा की गयी खोजों से भी भारतीयों की राष्ट्रीय भावनाओं को बल मिला। सर विलियम जोन्स, मैक्स मूलर, जैकोबी, कोल ब्रुक, रौथ, ए. बी. कीथ और बुर्नफ आदि विद्वानों ने भारत के संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थों को अध्ययन किया और उनका अंग्रेजी में अनुवाद किया।

पाश्चात्य विद्वानों ने यह भी बताया कि ये भारतीय ग्रन्थ, संसार की सभ्यता की अमूल्य निधियाँ हैं। उनके मत में भारत की सभ्यता एवं संस्कृति विश्व की प्राचीन तथा श्रेष्ठ संस्कृति है। इससे विश्व के समक्ष प्राचीन भारतीय गौरव स्पष्ट हुआ। भारतीयों को जब अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता का ज्ञान हुआ तो उनका आत्मविश्वास जागृत हुआ। वे भारत की स्वतन्त्रता के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन में सम्मिलित हो गए।

8. साहित्य एवं समाचार – पत्रों का योगदान:
राष्ट्रीय आन्दोलन में भारतीय साहित्य एवं समाचार-पत्रों का पर्याप्त योगदान रहा। इनके माध्यम से राष्ट्रवादियों को निरन्तर प्रेरणा तथा प्रोत्साहन मिला। इन समाचार-पत्रों के माध्यम से ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति की आलोचना की जाती थी और राजनीतिक अधिकारों की माँग की जाती थी। उस समय के प्रमुख समाचार – पत्रों में संवाद-कौमुदी’, ट्रिब्युने, हिन्दू पैट्रियट, इण्डियन मिरर, न्यू इण्डियन केसरी एवं आर्य दर्शन आदि उल्लेखनीय हैं।

भारतीय साहित्यकार दादाभाई नौरोजी, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की कृतियाँ एवं ‘बंकिम चन्द्र चटर्जी’ के ‘आनन्द मठ’ तथा ‘वन्देमातरम्, टैगोर के जन – गण – मन, मैथिलीशरण गुप्त की ‘भारत भारती’ एवं साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की कृतियों ने भारतीय जनमानस में क्रान्ति फैला दी और नई आशा का संचार किया।

9. इलबर्ट बिल पर विवाद:
सन् 1883 ई. में लॉर्ड रिपन की परिषद् कानूनी सदस्य इलबर्ट द्वारा ऐसा बिल लाया गया जिसमें भारतीय मजिस्ट्रेटों को अंग्रेज़ों के मुकदमों की सुनवाई करने एवं उन्हें दण्ड देने का अधिकार दिया गया। इसके विरुद्ध सभी अंग्रेजों ने आन्दोलन किया और बाध्य होकर सरकार ने वह बिल वापस ले लिया। इससे भारतीय लोगों को यह बात महसूस हो गयी कि संगठित आन्दोलन से अंग्रेजी सरकार को मजबूर किया जा सकता है। इससे भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न हुई।

10. लॉर्ड लिटन की दमनकारी नीतियाँ:
लॉर्ड लिटन के सन् 1876 से सन् 1880 के शासनकाल में अनेक अन्यायपूर्ण नीतियों को अपनाया गया जिससे राष्ट्रीय असन्तोष प्रारम्भ हुआ। लॉर्ड लिटन की अन्यायपूर्ण नीतियाँ निम्नलिखित र्थी भारतीयों को नागरिक सेवा में भर्ती होने से रोकने के लिए आयु 21 से घटाकर 19 वर्ष कर दी, दिल्ली में महारानी विक्टोरिया के सम्मान में विशाल दरबार का आयोजन कर अत्यधिक धन का अपव्यय किया, भारतीयों को शस्त्र रखने के लिए लाइसेन्स लेना अनिवार्य कर दिया तथा भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों पर कठोर, नियन्त्रण स्थापित कर दिया।

11. भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का उदय:
28 दिसम्बर, 1885 को एलन ऑक्टोवियन ह्यूम ने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना की। इनका दृष्टिकोण था कि भारतीयों की देशभक्ति की राष्ट्रीय भावनाओं को वैधानिक प्रवाह में मोड़ा जाए और भारतीयों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जाए। काँग्रेस के नेतृत्व में देश के स्वतन्त्रता आन्दोलनों को एक नई दिशा मिली।

12. वैश्विक घटना चक्र:
प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध के कारणं सम्पूर्ण विश्व के घटनाक्रम में तेजी से परिवर्तन आया और संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ के एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में उदय से ब्रिटेन की स्थिति कमजोर हो गयी। वहीं कई देशों में उपनिवेशवाद के विरुद्ध क्रान्तियाँ हो रही थीं इसने भारतीयों को स्वतन्त्रता को एक नई प्रेरणा दी।

13. क्रान्तिकारी आन्दोलन:
क्रान्तिकारियों के सहयोग के बिना स्वतन्त्रता की बात सोचना व्यर्थ है। क्रान्तिकारियों के गुप्त संगठन, भारतीयों जवानों को गोला बारूद बनाने एवं शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण देते थे। इसमें प्रमुख महाराष्ट्र में अभिनव भारत, बंगाल में अनुशीलन समिति एवं युगान्तर आदि प्रमुख थे। क्रान्तिकारियों ने भारत एवं विदेशों में रहकर भारतीयों की स्वतन्त्रता के लिए अपनी गतिविधियों को जारी रखा। यह क्रान्तिकारी आन्दोलन भी भारत में ब्रिटिश शासन के अवसान का एक प्रमुख कारण बना।

प्रश्न 2.
इलबर्ट बिल विवाद को समझाइए।
उत्तर:
इलबर्ट बिल विवाद लॉर्ड रिपन 1880 ई. से 1884 ई.तक ब्रिटिश भारत के वायसराय रहे। इलबर्ट, लॉर्ड रिपन की परिषद् में विधि सदस्य था। लार्ड रिपन के समय में भारत में न्यायिक क्षेत्र में जाति विभेद विद्यमान था और भारतीय न्यायाधीशों को यूरोपियन अपराधियों के मुकदमें सुनने का अधिकार नहीं था। लॉर्ड रिपन न्यायिक क्षेत्र में सुधार लाना चाहते थे। लॉर्ड रिपन के पूर्व अंग्रेज अपराधियों से सम्बन्धित फौजदारी मामले केवल यूरोपीय न्यायाधीश ही सुन सकते थे तथा निर्णय दे सकते थे।

इस विभेद को समाप्त करने के लिए एवं न्याय व्यवस्था में एकरूपता लाने के लिए 1883 ई. में लॉर्ड रिपन की परिषद् के विधि सदस्य इलबर्ट ने परिषद् में एक विधेयक प्रस्तुत किया जिसका उद्देश्य भारतीय न्यायाधीशों को भी यूरोपिन अपराधियों के मुकदमे सुनने का अधिकार देना था। लेकिन यह विधेयक एक भीषण विवाद का कारण बन गया। भारत में निवासित अंग्रेजों ने इस विधेयक को अपना जातीय अपमान समझा और संगठित होकर विरोध किया।

भारत और इंग्लैण्ड में इलबर्ट विधेयक के विरुद्ध आन्दोलन करने के लिए ‘यूरोपियन रक्षा संघ’ का गठन किया गया। विधेयक की आलोचना करने के लिए अंग्रेजों ने भारत एवं इंग्लैण्ड में अनेक सभाओं का भी आयोजन किया। उन्होंने वायसराय लॉर्ड रिपन और उसकी कार्यकारिणी व परिषद् के सदस्यों के सामाजिक बहिष्कार का भी कार्यक्रम तैयार किया। अंग्रेजों के इस विरोध को ‘सफेद विद्रोह’ कहा जाता है। कई महीनों के निरन्तर संघर्ष के पश्चात् लॉर्ड रिपन मूल बिल को पारित करवाने में असफल रहें।

1884 ई. में इसे संशोधित रूप में पारित किया जा सका। इसके तहत् भारतीय न्यायाधीशों को अंग्रेजों के विरुद्ध मुकदमे सुनने का अधिकार तो दिया गया, परन्तु यह शर्त लगा दी गयी कि भारतीय न्यायाधीश उस फौजदारी मुकदमें की सुनवाई, ऐसी ज्यूरी की सहायता से ही कर सकते हैं, जिसके कम – से – कम आधे सदस्य अंग्रेज अर्थात् यूरोपीय हों। इस विवाद से भारतीय लोगों को इस बात का आभास हो गया कि संगठित आन्दोलन से ब्रिटिश सरकार को झुकाया जा सकता है। इससे कुछ भारतीय क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीय लोगों की देशभक्ति की भावना को अधिक जोर – शोर से भड़काया।

इस इलबर्ट बिल विवाद ने भारतीयों को यह शिक्षा दी कि संगठित हुए बिना अपनी माँगों को नहीं मनवाया जा सकता। फलस्वरूप भारतीय राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ। हेनरी कॉटन ने ठीक ही कहा कि, “इस विधेयक के विरोध में किए गए यूरोपीय आन्दोलन ने भारत की राष्ट्रीय विचारधारा को जितनी एकता प्रदान की उतनी तो विधेयक पारित होने पर भी नहीं हो सकती थी।” इस आन्दोलन से प्रभावित होकर भारतीयों ने भी राष्ट्रीय संस्था के निर्माण का निश्चय किया। परिणामस्वरूप काँग्रेस की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया तथा राष्ट्रीय आन्दोलन की गति तीव्र हुई।

प्रश्न 3.
1857 के स्वतन्त्रता संग्राम का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1857 के स्वतन्त्रता संग्राम को प्रभाव 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम ने भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना को विकसित कर राष्ट्रीय आन्दोलन की आधारशिला रखी। 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित थे –

1. भारतीयों में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास:
1857 का स्वतन्त्रता संग्राम भारत की आजादी की लड़ाई में मील का पत्थर सिद्ध हुआ। विभिन्न शासक, सैनिक व नेता एक-दूसरे के सम्पर्क में आए। आम भारतीयों में साहस, आत्मगौरव व कर्तव्यपरायणता एवं जीवनशक्ति का विकास हुआ। भारतीयों में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास हुआ और हिन्दू-मुस्लिम एकता ने जोर पकड़ना प्रारम्भ किया। जिसका कालान्तर में राष्ट्रीय आन्दोलन में अच्छी योगदान रहा।

2. ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन की समाप्ति:
सन् 1857 के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से भारत की सत्ता को अपने हाथ में ले लिया। 1858 के भारत सरकार अधिनियम द्वारा भारत का प्रशासन ब्रिटिश सम्राट को दे दिया। नियन्त्रण मण्डल एवं संचालक मण्डल को समाप्त करके भारत के शासन के संचालन हेतु भारत राज्य सचिव का पद सृजित किया तथा 15 सदस्य वाली इण्डिया कौंसिल का गठन किया गया जो भारत सचिव को प्रशासनिक कार्यों में सलाह देती थी। 1 नवम्बर, 1858 ई. को लॉर्ड केनिंग ने इलाहाबाद में महारानी विक्टोरिया की घोषणा पढ़कर सुनाई, जिसमें भारतीय प्रशासन को सीधे ब्रिटिश ताज (क्राउन) के अधीन लाये जाने की बात कही गयी थी, गवर्नर-जनरले का पदनाम वायसराय कर दिया गया।

3. क्षेत्र के अन्धा धुन्ध विस्तार की नीति को त्यागना:
महारानी विक्टोरिया के आदेशानुसार, क्षेत्रों के अन्धाधुन्ध विस्तार की नीति को त्याग दिया गया, स्थानीय राजाओं को उनके गौरव एवं अधिकारों को पुनः वापस करने की बात कही गयी और साथ ही धार्मिक शोषण.खत्म करने एवं सेवाओं में बिना भेदभाव के नियुक्ति की बात की गयी।

4.  देशी रियासतों के प्रति नीति परिवर्तन:
भारतीय देशी रियासतों के असहयोग के कारण ही 1857 ई. में कम्पनी राज्य भारत में समाप्त नहीं हुआ था। अतः महारानी ने अपनी घोषणा में देशी राजाओं को अधिकार, सम्मान वगौरव की रक्षा का विश्वास दिलाया। विजय और विलय की नीति का परित्याग करते हुए देशी राज्यों के शासकों को दत्तक पुत्र गोद लेने की अनुमति दी गयी। बिना किसी भेदभाव के योग्यतानुसार सेवा में नियुक्ति की बात भी कही गई, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ।

5. सैनिक पुनर्गठन:
1857 की क्रान्ति में अंग्रेजों को सैनिकों ने ही सबक सिखाया था। 1861 में पील कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार सेना में अब ब्रिटिश सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गई और तोपखाना भारतीयों के पास नहीं रखा गया इस बात का भी ध्यान रखा गया कि एक क्षेत्र या समुदाय के सैनिक एक साथ सैनिक टुकड़ियों में न रह सकें।

6. ‘फूट डालो एवं राज करो’ नीति प्रभावी:
1857 की क्रान्ति में हिन्दुओं और मुसलमानों ने साम्प्रदायिक सौहार्द की एकता की मिसाल कायम की थी। इससे अंग्रेज घबरा गए और उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य को जन्म दिया। फूट डालो और राज करो” नीति का अंग्रेजों ने अनुसरण किया।

7. भारतीयों की प्रशासन में आंशिक भागीदारी:
अंग्रेज शासक इस बात को अच्छी तरह समझ गए थे कि उनके समक्ष 1857 ई. का संकट शासक व शासितों के मध्य सम्पर्क के अभाव कारण ही हुआ है। 1861 ई. के परिषद् अधिनियम के द्वारा तीन भारतीयों को विधायी परिषद् का सदस्य बनाया गया।

8.  आर्थिक शोषण की नीति प्रारम्भ:
अब तक भारत में अंग्रेजों का ध्यान साम्राज्य विस्तार की ओर अधिक था। 1857 की क्रान्ति के पश्चात् उन्होंने विस्तारवादी नीति का त्याग कर दिया अब उनका ध्यान भारत के धन की ओर अधिक गया। 1857 की क्रान्ति के दमन पर होने वाले व्यय का वित्तीय भार भारतीयों पर डाल दिया गया। भारत में दिए गए। सार्वजनिक ऋण का ब्याज प्रभार एवं यहाँ से अर्जित पूँजी लाभ के रूप में भारत से निष्कासित होकर इंग्लैण्ड जाने लगी।

प्रश्न 4.
अंग्रेजों ने किस तरह भारत का आर्थिक शोषण किया?
उत्तर:
अंग्रेजों द्वारा भारत का आर्थिक शोषण अंग्रेजों द्वारा भारत का आर्थिक शोषण निम्नलिखित प्रकार से किया गया:
1. भारतीय धन की निकासी:
वह धन जो भारत से बाहर मुख्य रूप से इंग्लैण्ड को भेजा जाता था और जिसके बदले में कुछ भी नहीं प्राप्त होता था उसे ही धन की निकासी कहा गया। धन की यह निकासी इंग्लैण्ड की ओर धात्विक मुद्रा के रूप में कम हुई परन्तु वस्तुओं के निर्यात के रूप में धन भारत से बाहर अधिक गया। ईस्ट इण्डिया कम्पनी जो भी राजस्व भारत में एकत्र करती थी उसी से वस्तुओं को क्रय करके अपने देश को निर्यात कर देती थी। दादाभाई नौरोजी ने कहा कि, “भारत का धन ही भारत से बाहर जाता है और फिर वही धन भारत को पुनः ऋण के रूप में दिया जाता है, जिसके लिए उसे और ब्याज के रूप में जुटाना पड़ता है, यह सब एक दुश्चक्र था जिसे तोड़ना कठिन था।”

2. भारतीय हस्तशिल्प उद्योग को नष्ट करना:
अंग्रेजों ने भारतीय उद्योगों का भी विनाश कर दिया। अंग्रेजों ने ऐसी नीतियाँ बनायीं कि भारतीय हस्तशिल्प उद्योग पूरी तरह बर्बाद हो गया। भारतीय माल को इंग्लैण्ड में प्रतिबन्धित कर दिया गया। उस पर भारी कर लगा दिए गए तथा इंग्लैण्ड में बने सामान से भारतीय बाजार भर दिए गए। इंग्लैण्ड की मशीनों से बनी वस्तुएँ भारत में हाथ से बनी वस्तुओं की अपेक्षा अधिक सस्ती थीं। लोग इंग्लैण्ड से बना सस्ता सामान खरीदने लगे। उद्योगों के बन्द होने से करोड़ों की संख्या में लोग बेरोजगार हो गए और यहाँ के निवासियों के सम्मुख न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की भी समस्या उत्पन्न हो गयी। इस तरह देशी उद्योगों ने विदेशी व्यापार तो खोया ही बल्कि देशी बाजार भी खो दिया।

3. कृषि का विनाश:
अंग्रेजों के आगमन के पहले भारतीय कृषि आत्मनिर्भर थी। परन्तु अंग्रेजों के आने के पश्चात् धीरे-धीरे कृषि का विनाश होना प्रारम्भ हो गया। किसानों पर अत्यधिक कर लाद दिए गए जिसके कारण किसानों की आर्थिक देशा खराब हो गयी। किसानों ने कृषि कार्य छोड़कर अन्य कार्य अपना लिए। अंग्रेजों ने बलपूर्वक किसानों से अधिक भू-कर वसूला।

जो किसान अधिक भूमि-कर न चुकाता था। उसकी जमीन छीन ली जाती थी। कृषि के व्यवसायीकरण के अन्तर्गत अंग्रेजों ने खाद्यान्न फसलों की बजाय व्यावसायिक फसलों को उगाने के लिए भारतीय किसानों को मजबूर किया। इसका परिणाम यह हुआ कि खाद्यान्न फसलों की कमी से भुखमरी एवं अकाल जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी। अंग्रेजों की नीति के कारण भारतीय कृषि पूरी तरह बर्बाद हो गयी।

4. अंग्रेजों की स्वतन्त्र व्यापार नीति:
ब्रिटिश सरकार ने स्वतन्त्र व्यापार नीति का निर्माण किया। इस नीति के प्रावधानों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया। अंग्रेजों ने अपने व्यापारिक हितों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक नीतियों को निर्धारण किया जो भारतवर्ष के लिए अत्यन्त बुरी सिद्ध हुई । इंग्लैण्ड में औद्योगीकरण ने भारत के कुटीर उद्योग धन्धों को नष्ट कर दिया। ब्रिटेन अपनी स्वतन्त्र व्यापार नीति से अधिक – से – अधिक पूँजी एकत्रित करना चाहता था और वह भारतीयों का शोषण करके अपनी नीति में सफल भी रहा।।

प्रश्न 5.
साहित्य एवं समाचार – पत्रों का ब्रिटिश शासन के अवसान में क्या योगदान रहा?
उत्तर:
साहित्य एवं समाचार – पत्रों का ब्रिटिश शासन के अवसान में योगदान भारत से ब्रिटिश शासन के अवसान एवं स्वतन्त्रता आन्दोलन को तीव्र करने में साहित्य एवं समाचार-पत्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। इसका वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है –

1. छापेखाने का आविष्कार:
1800 ई. में कोलकाता के समीप श्रीरामपुर में छापेखाने की शुरुआत हो गई। इससे बड़े पैमाने पर पुस्तकों एवं समाचार-पत्रों का छपना प्रारम्भ हो गया। छपाई से पुस्तकों की कीमतें गिरीं। पुस्तकों के उत्पादन में लगने वाले समय व श्रम में कमी आयी। बाजार में पुस्तकों की उपलब्धता में तीव्र गति से वृद्धि हुई और पाठक वर्ग भी बढ़ गया। इस बढ़े हुए भारतीय पाठक वर्ग ने अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

2. साहित्य का योगदान:
भारतीय साहित्यकारों एवं कवियों के राष्ट्र प्रेम से भरपूर साहित्य की रचना की। ‘आनंद मठ’ एवं ‘नील दर्पण’ नाटकों के मंचन से राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। बंकिमचन्द्र चटर्जी का आनन्द मठ देशभक्ति का पर्याय बन गया। ‘वन्दे मातरम्’ गीत इन्हीं की देन है। तत्कालीन साहित्यकारों ने मातृभूमि के प्रति विशेष आस्था प्रकट की थी। बंकिमचन्द्र का ‘वन्दे मातरम्’ गीत भारत के राष्ट्रीय आन्दोलनकारियों की प्रेरणा का मुख्य स्रोत बन गया।

भारतीय लेखक दादाभाई नौरोजी, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की कृतियों एवं बंकिमचन्द्र चटर्जी के आनन्द मठ एवं वन्देमातरम्, रबीन्द्र नाथ टैगोर के जन – गण – मन, मैथिलीशरण गुप्त की ‘भारत भारती’ एवं साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की कृतियों ने भारतीय जनमानस में क्रान्ति ला दी और नई आशा का संचार किया।

सुब्रमण्यम भारती ने 1917 ई. की रूसी क्रान्ति की प्रशंसा करते हुए कविताएँ लिखीं। अन्य साहित्यकारों में हेमचन्द्र बनर्जी, नवीनचन्द्र सेन, आर.सी. दत्त, बद्रीनारायण चौधरी, प्रतापनारायण मिश्र व बालकृष्ण भट्ट आदि ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय भावना के जागरण में विशेष योगदान दिया।

3. समाचार – पत्रों का योगदान:
समाचार – पत्र एवं पत्रिकाएँ संचार के सुगम साधन हैं। पहले अधिकांश समाचार – पत्र अंग्रेजी भाषा में निकलते थे, उन पर अंग्रेजों का अधिकार था लेकिन बाद में देशी भाषाओं में भी समाचार – पत्र भारत में ब्रिटिश शासन के अवसान के कारण निकलने लगे। इन समाचार – पत्रों में ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों की आलोचना होती थी। इससे परेशान होकर सरकार ने 1879 ई. में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू कर दिया, जिसने भारतीय समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता पर रोक लगा दी। इससे लोगों में आक्रोश फैला एवं राष्ट्रवाद पनपा।

भारतीय समाचार – पत्रों ने जनमत के बनाने एवं राष्ट्रीयता के प्रसार में मुख्य भूमिका निभाई। दि इण्डियन मिरर, दि बंगाली, दि क्रॉनिकल, दि हिन्दू पेट्रियट, दि मराठा, दि केसरी, दि आन्ध्र प्रकाशिका, दि हिन्दू, दि इन्दु प्रकाश, दि कोहिनूर आदि अनेकों अंग्रेजी एवं भारतीय भाषा समाचार-पत्रों ने इस क्षेत्र में बहुत कार्य किया तथा अंग्रेज शासकों के गलत कार्यों को प्रकाशित किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने प्रतिनिधि सरकार, स्वतन्त्रता तथा प्रजातन्त्रीय संस्थाओं को जनता में लोकप्रिय बनाया। समाचार-पत्रों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी की साम्राज्यवादी एवं शोषण नीति का खुलकर विरोध किया।

दैनिक समाचार – पत्रों एवं साप्ताहिक पत्रों के माध्यम से भारतीय समाज सुधारकों एवं राजनीतिक विचारकों के विचार जनता के पास जाने लगे। ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने ‘सोम प्रकाश’ एवं हरिश्चन्द्र मुखर्जी ने हिन्दू पैट्रियट’ का प्रकाशन किया। 1868 ई. में ‘अमृते बाजार पत्रिका’ का प्रकाशन हुआ। बाल गंगाधर तिलक ने मराठी भाषा में ‘केसरी’ व अंग्रेजी में ‘मराठा’ प्रकाशित किया। इन समाचार-पत्रों ने भारत में बलिदान एवं राष्ट्रवाद का वातावरण तैयार किया। इस प्रकार यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारतीय समाचार-पत्र भारतीय राष्ट्रवाद का दर्पण बन गए और जनता को शिक्षित करने का माध्यम बन गये। इस प्रकार साहित्य और समाचार-पत्रों ने ब्रिटिश शासन के अवसान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 19 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण का पिता किसे कहा जाता है?
(अ) राजा राममोहन राय
(ब) स्वामी विवेकानन्द
(स) स्वामी दयानन्द
(द) मैडम ब्लेवेटस्की।
उत्तर:
(अ) राजा राममोहन राय

प्रश्न 2.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना कब हुई?
(अ) 1893
(ब) 1895
(स) 1875
(द) 1897
उत्तर:
(द) 1897

प्रश्न 3.
आर्य समाज की स्थापना कब हुई?
(अ) 10 अप्रैल 1875
(ब) 6 अप्रैल 1883
(स) 22 अगस्त 1857
(द) 2 अप्रैल 1902
उत्तर:
(अ) 10 अप्रैल 1875

प्रश्न 4.
काँग्रेस की स्थापना किसने की?
(अ) महात्मा गाँधी
(ब) ए. ओ. ह्यूम
(स) पट्टाभिसीतारमैया
(द) दादा भाई नौरोजी
उत्तर:
(ब) ए. ओ. ह्यूम

प्रश्न 5.
अलीगढ़ आन्दोलन किसने चलाया?
(अ) दादाभाई नौरोजी
(ब) विवेकानन्द
(स) सर सैयद अहमद
(द) मो. अली जिन्ना।
उत्तर:
(स) सर सैयद अहमद

प्रश्न 6.
एनीबेसेंट किस संस्था से जुड़ी हुई थी?
(अ) ब्रह्म समाज
(ब) थियोसोफिकल सोसायटी
(स) आर्य समाज
(द) रामकृष्ण मिशन।
उत्तर:
(ब) थियोसोफिकल सोसायटी

RBSE Class 11 Political Science Chapter 19 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 19 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में स्वतन्त्रता का सूर्य उदय हुआ –
(अ) 15 अगस्त, 1947
(ब) 26 जनवरी, 1950
(स) 1 नवम्बर, 1956
(द) 1 मई, 1897.
उत्तर:
(अ) 15 अगस्त, 1947

प्रश्न 2.
ब्रह्म समाज के संस्थापक थे –
(अ) राजा राममोहन राय
(ब) स्वामी दयानन्द सरस्वती
(स) स्वामी विवेकानन्द
(द) कर्नल आल्कॉट।
उत्तर:
(अ) राजा राममोहन राय

प्रश्न 3.
ब्रह्म समाज की स्थापना हुई
(अ) 15 अगस्त, 1857 को
(ब) 20 अगस्त, 1828 को
(स) 5 मई, 1897 को
(द) 26 जनवरी, 1950 को।
उत्तर:
(ब) 20 अगस्त, 1828 को

प्रश्न 4.
अद्वैतवाद के समर्थक थे
(अ) स्वामी विवेकानन्द
(ब) मैडम ब्लेवेटस्की
(स) लॉर्ड लिटन
(द) राजा राममोहन राय।
उत्तर:
(द) राजा राममोहन राय।

प्रश्न 5.
राजा राममोहन राय निम्न में से किस भाषा के ज्ञाता थे?
(अ) अंग्रेजी
(ब) लैटिन
(स) फारसी
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 6.
आर्य समाज के संस्थापक थे –
(अ) स्वामी दयानन्द सरस्वती
(ब) स्वामी विवेकानन्द
(स) सर सैयद अहमद खाँ
(द) राजा राममोहन राय।
उत्तर:
(अ) स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रश्न 7.
स्वराज्य, स्वधर्म एवं स्वदेशी की विचारधारा के प्रबल समर्थक थे –
(अ) स्वामी विवेकानन्द
(ब) स्वामी दयानन्द सरस्वती
(स) राजा राममोहन राय
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रश्न 8.
निम्न में से किस समाज सुधारक ने ‘वेदों की महत्ता’ पर बल दिया?
(अ) स्वामी रामकृष्ण परमहंस
(ब) स्वामी विवेकानन्द
(स) राधास्वामी पेरियार
(द) स्वामी दयानन्द सरस्वती।
उत्तर:
(द) स्वामी दयानन्द सरस्वती।

प्रश्न 9.
रामकृष्ण परमहंस निम्न में से किस समाज सुधारक के गुरु थे?
(अ) स्वामी विवेकानन्द
(ब) राजा राममोहन राय
(स) गोविन्द गुरु
(द) जाम्भोजी।
उत्तर:
(अ) स्वामी विवेकानन्द

प्रश्न 10.
निम्न में से किसने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की?
(अ) गोविन्द गुरू ने
(ब) स्वामी विवेकानन्द ने
(स) राजा राममोहन राय ने
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) स्वामी विवेकानन्द ने

प्रश्न 11.
भारत में थियोसोफिकल सोसायटी के कार्य को किसने गति प्रदान की?
(अ) मैडम ब्लेवेटस्की ने
(ब) कर्नल ऑल्कॉट ने।
(स) श्रीमती एनीबेसेन्ट ने
(द) सर सैयद अहमद खाँ ने।
उत्तर:
(स) श्रीमती एनीबेसेन्ट ने

प्रश्न 12.
निम्न में से किस मुस्लिम समाज सुधारक ने मुसलमानों को अंग्रेजों का वफादार बनने का सन्देश दिया?
(अ) सर सैयद अहमद खाँ
(ब) मिर्जा गुलाम अहमद
(स) मुहम्मद कासिम
(द) अब्दुल लतीफ।
उत्तर:
(अ) सर सैयद अहमद खाँ

प्रश्न 13.
भारत में ब्रिटिश शासन के अवसान का प्रमुख कारण था
(अ) विभिन्न सामाजिक एवं राजनैतिक संगठनों का उदय
(ब) आर्थिक शोषण
(स) पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 14.
निम्न में से किस समाज सुधारक ने सम्पूर्ण विश्व में हिन्दू संस्कृति को विश्वविख्यात किया?
(अ) स्वामी विवेकानन्द
(ब) महात्मा गाँधी
(स) रामकृष्ण परमहंस
(द) राजा राममोहन राय।
उत्तर:
(अ) स्वामी विवेकानन्द

प्रश्न 15.
‘Poverty and Un British Rule of India’ नामक पुस्तक के लेखक थे
(अ) स्वामी दयानन्द सरस्वती
(ब) स्वामी विवेकानन्द
(स) दादाभाई नौरोजी
(द) बाल गंगाधर तिलक।
उत्तर:
(स) दादाभाई नौरोजी

प्रश्न 16.
प्रसिद्ध राष्ट्रवादी समाचार पत्र था
(अ) हिन्दू पैट्रियट
(ब) अमृत बाजार पत्रिका
(स) केसरी
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 17.
‘आनन्द मठ’ नामक उपन्यास के लेखक थे –
(अ) बंकिमचन्द्र चटर्जी
(ब) मैथिलीशरण गुप्त
(स) रबीन्द्र नाथ टैगोर
(द) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
उत्तर:
(अ) बंकिमचन्द्र चटर्जी

प्रश्न 18.
निम्न में से किस अंग्रेज वायसराय ने महारानी विक्टोरिया के सम्मान में दिल्ली में भव्य समारोह आयोजित किया था?
(अ) लार्ड क्लाइव
(ब) लार्ड इरविन
(स) लॉर्ड डफरिन
(द) लार्ड लिटन
उत्तर:
(द) लार्ड लिटन

प्रश्न 19.
निम्न में से किस वायसराय के समय में इलबर्ट बिल पर विवाद हुआ था?
(अ) लॉर्ड रिपन
(ब) लॉर्ड रीडिंग
(स) लॉर्ड डफरिन
(द) लॉर्ड मिन्टो।
उत्तर:
(अ) लॉर्ड रिपन

प्रश्न 20.
निम्न में से किस भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी ने 1857 की क्रान्ति को ‘स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए प्रथम युद्ध’।
बताया?
(अ) खुदीराम बोस
(ब) बाल गंगाधर तिलक
(स) विनायक दामोदर सावरकर
(द) महात्मा गाँधी।
उत्तर:
(स) विनायक दामोदर सावरकर

प्रश्न 21.
निम्न में से किस वर्ष भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना हुई?
(अ) 1885 ई.
(ब) 1985 ई.
(स) 1950 ई.
(द) 1930 ई.
उत्तर:
(अ) 1885 ई.

प्रश्न 22.
काँग्रेस के प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष थे
(अ) सुरेन्द्रनाथ बनर्जी
(ब) दादाभाई नौरोजी
(स) महादेव गोविन्द रानाडे
(द) व्योमेश चन्द बनर्जी।
उत्तर:
(द) व्योमेश चन्द बनर्जी।

प्रश्न 23.
निम्न में से काँग्रेस के उदारवादी नेता थे
(अ) गोपालकृष्ण गोखले.
(ब) दादाभाई नौरोजी जी
(स) महादेव गोविन्द रानाडे
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 24.
निम्न में से काँग्रेस के उग्र राष्ट्रवादी नेता था
(अ) बाल गंगाधर तिलक
(ब) लाला लाजपत राय
(स) विपिन चन्द्र पॉल
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 25.
निम्न में से किस वर्ष महात्मा गाँधी को भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ?
(अ) 1915 ई.
(ब) 1947 ई.
(स) 1920 ई.
(द) 1885 ई.
उत्तर:
(अ) 1915 ई.

प्रश्न 26.
निम्न में से प्रमुख क्रान्तिकारी नेता थे
(अ) श्यामजी कृष्ण वर्मा
(ब) विनायक दामोदर सावरकर
(स) रास बिहारी बोस
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 27.
निम्न में से किस वर्ष रूसी क्रान्ति हुई?
(अ) 1917 ई.
(ब) 1919 ई.
(स) 1939 ई.
(द) 1945 ई.
उत्तर:
(अ) 1917 ई.

RBSE Class 11 Political Science Chapter 19 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में ब्रिटिश शासन की समाप्ति के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(i) दोषपूर्ण ब्रिटिश शासन प्रणाली
(ii) क्रान्तिकारी आन्दोलन।

प्रश्न 2.
भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण के पिता कौन थे?
उत्तर:
राजा राममोहन राय।

प्रश्न 3.
ब्रह्म समाज की स्थापना कब व किसने की?
उत्तर:
ब्रह्म समाज की स्थापना 20 अगस्त, 1828 को राजा राममोहन राय ने की।

प्रश्न 4.
राजा राममोहन राय किस प्रकार भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण के जनक थे?
उत्तर:
राजा राममोहन राय ने सर्वप्रथम भारत में व्याप्त अज्ञान, अन्धविश्वास एवं सामाजिक सांस्कृतिक अध:पतन के विरुद्ध संघर्ष किया। इसलिए उन्हें भारतीय पुनर्जागरण का जनक कहा जाता है।

प्रश्न 5.
राजा राममोहन राय द्वारा प्रकाशित किन्हीं तीन समाचार-पत्रों का नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. संवाद कौमुदी (बांग्ला भाषा)
  2. मिरात उल अखबार (फारसी)
  3. बंगदूत (हिन्दी)।

प्रश्न 6.
भारत का कौन-सा समाज सुधारक स्वतन्त्रता का समर्थक एवं प्रशासन में स्वेच्छाचारिता का समर्थक था?
उत्तर:
राजा राममोहन राय।

प्रश्न 7.
आर्य समाज की स्थापना कब व किसने की?
उत्तर:
आर्य समाज की स्थापना 1 अप्रैल, 1875 को स्वामी दयानन्द सरस्वती ने की।

प्रश्न 8.
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने किस बात पर बल दिया?
उत्तर:
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने वेदों की महत्ता को स्वीकार किया तथा एक ही ईश्वर की सन्तान होने के नाते, सभी को भाई-भाई बताकर जाति भेद मिटाकर समानता को अपनाने पर बल दिया।

प्रश्न 9.
स्वामी विवेकानन्द के गुरु कौन थे?
उत्तर:
स्वामी रामकृष्ण परमहंसे।

प्रश्न 10.
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का भारतीय संस्कृति के सम्बन्ध में क्या:मत था?
उत्तर:
स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने भारतीय संस्कृति को आध्यात्मिक मानते हुए श्रेष्ठ सनातन संस्कृति माना।

प्रश्न 11.
रामकृष्ण मिशन के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द।

प्रश्न 12.
स्वामी विवेकानन्द का योगदान बताइए।
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द ने सम्पूर्ण विश्व में हिन्दू संस्कृति को विश्व विख्यात किया तथा लोगों में धार्मिक एवं राजनीतिक चेतना जागृत की।

प्रश्न 13.
थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना कब व किसने की?
उत्तर:
सन् 1875 में मैडम ब्लेवेटस्की एवं अमेरिकी कर्नल ऑल्कॉट ने।

प्रश्न 14.
एनीबेसेंट ने भारत में किस सामाजिक संस्था का प्रचार किया?
उत्तर:
थियोसोफिकल सोसायटी का।

प्रश्न 15.
भारत में अंग्रेजी शिक्षा के जनक कौन थे?
उत्तर:
लॉर्ड मैकाले।

प्रश्न 16.
दादाभाई नौरोजी ने अपनी किस पुस्तक में अंग्रेजों के आर्थिक षड्यन्त्र का खुलासा किया था?
उत्तर:
Poverty and Un British Rule in India नामक पुस्तक में।

प्रश्न 17.
अंग्रेजों की किस नीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया?
उत्तर:
स्वतन्त्र व्यापार नीति ने।

प्रश्न 18.
किन्हीं दो यूरोपीय विद्वानों के नाम लिखिए जिन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति का महिमामन्डन। किया?
उत्तर:

  1. मैक्समूलर
  2. विलियम जोन्स।

प्रश्न 19.
किन्हीं चार राष्ट्रवादी समाचार – पत्रों के नाम लिखिए जिन्होंने लोगों में जन जागृति उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।
उत्तर:

1.  हिन्दू पैट्रियट
2. हिन्दी मिरर
3. अमृत बाजार पत्रिका
4. केसरी।

प्रश्न 20.
भारत में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट कब लागू हुआ?
उत्तर:
1879 ई. में।

प्रश्न 21.
वन्दे मातरम् किसके द्वारा लिखा गया था?
उत्तर:
बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा।

प्रश्न 22.
भारत के राष्ट्रगान ‘जन – गण – मन’ के रचयिता कौन हैं?
उत्तर:
रबीन्द्रनाथ टैगोर।

प्रश्न 23.
किन्हीं चार साहित्यकारों के नाम लिखिए जिनकी कृतियों ने भारतीय जनमानस में क्रान्ति फैला दी?
उत्तर:

  1.  लोकमान्य गंगाधर तिलक
  2.  बंकिमचन्द्र चटर्जी
  3. दादाभाई नौरोजी
  4.  रबीन्द्र नाथ टैगोर।

प्रश्न 24.
डलबर्ट बिल भारत शासन व्यवस्था में किस सुधार से सम्बन्धित था?
उत्तर:
न्याय व्यवस्था में।

प्रश्न 25.
लॉर्ड रिपन की कानूनी परिषद के एक सदस्य का नाम लिखिए।
उत्तर:
इलबर्ट।

प्रश्न 26.
1857 की क्रान्ति स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए प्रथम युद्ध था।’ यह कथन किसका है?
उत्तर:
वीर विनायक दामोदर सावरकर का।

प्रश्न 27.
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के संस्थापक कौन थे?
अथवा
काँग्रेस की स्थापना में सबसे प्रमुख भूमिका किसने निभायी?
उत्तर:
एलन ऑक्टोवियन ह्यूम।

प्रश्न 28.
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का प्रारम्भिक उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध पनप रहे। असन्तोष के कारण हो सकने वाले विस्फोट की स्थिति का शान्त करना।

प्रश्न 29.
दादाभाई नौरोजी ने 1906 में काँग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में काँग्रेस का क्या उद्देश्य बताया?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका एवं अन्य उपनिवेशों की भाँति स्वशासन प्राप्त करना।

प्रश्न 30,
उदारवादी राष्ट्रीयता के काल में ब्रिटिश शासन के समक्ष काँग्रेस द्वारा किस प्रकार की माँगे उठायी जाती थीं?
उत्तर:
उदारवादी राष्ट्रीयता के काल में काँग्रेस द्वारा ब्रिटिश शासन के समक्ष अपनी माँगे माँग-पत्र, स्मृति-पत्र, प्रतिनिधि मण्डल आदि के द्वारा उठायी जाती थीं।

प्रश्न 31.
काँग्रेस के किन्हीं 4 उदारवादी नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. दादाभाई नौरोजी
  2. महादेव गोविन्द रानाडे
  3. गोपालकृष्ण गोखले
  4. फिरोजशाह मेहता

प्रश्न 32,
काँग्रेस के किन्हीं चार उग्र राष्ट्रवादी विचारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. बाल गंगाधर तिलक
  2. लाला लाजपतराय
  3. विपिनचन्द्र पाल
  4.  अरविन्द घोष।

प्रश्न 33.
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में संचालित किन्हीं दो आन्दोलनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1.  सविनय अवज्ञा आन्दोलन
2. भारत छोड़ो आन्दोलन।

प्रश्न 34.
भारतीय क्रान्तिकारियों के किन्हीं दो गुप्त संगठनों का नाम लिखिए जो भारतीय जवानों को गोली बारूद बनाने एवं शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण देते थे?
उत्तर:
1. अभिनव भारत
2. अनुशीलन समिति।

प्रश्न 35.
विदेशों में रहकर भारतीय स्वतन्त्रता हेतु क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन करने वाले किन्हीं चार क्रान्तिकारियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. श्याम जी कृष्ण वर्मा
  2. मैडम भीकाजी कामा
  3. रासबिहारी बोस
  4. वीर विनायक दामोदर सावरकर।

प्रश्न 36.
प्रथम विश्वयुद्ध की समयावधि बताइए।
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्ध 1914 से 1918 के मध्य हुआ था।

प्रश्न 37.
1941 ई. के एटलांटिक चार्टर में क्या प्रस्ताव था?
उत्तर:
1941 ई. के एटलांटिक चार्टर में प्रस्ताव था कि द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् प्रत्येक उपनिवेशित राष्ट्र को आत्मनिर्णय का अधिकार होगा।

प्रश्न 38.
किस ब्रिटिश प्रधानमन्त्री ने एटलांटिक चार्टर को भारत में लागू करने से इंकार कर दिया था।
उत्तर:
चर्चिल ने।

प्रश्न 39.
किन्हीं दो देशों का नाम लिखिए जिन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलनों का समर्थन किया था?
उत्तर:
1. जर्मनी
2. जापान

प्रश्न 40.
सन् 1945 में ब्रिटेन में किस पार्टी की सरकार बनी?
उत्तर:
लेबर पार्टी की।

प्रश्न 41.
ब्रिटेन में सन् 1945 में हुए चुनावों में लेबर पार्टी का कौन-सा नेता प्रधानमन्त्री बना?
उत्तर:
क्लीमेंट एटली।

प्रश्न 42.
राष्ट्रवाद का अग्रदूत किसे कहा जाता है?
उत्तर:
राजा राममोहन राय को।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 19 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्य समाज के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आर्य समाज के कार्य:
आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल, 1875 को स्वामी दयानन्द सरस्वती ने की थी। स्वामी जी स्वराज्य, स्वधर्म एवं स्वदेशी की विचारधारा के प्रबल समर्थक थे। स्वामीजी ने आर्य समाज के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों की आलोचना की और उन्हें दूर करने के लिए जनसमर्थन जुटाया। उन्होंने छुआछूत, बाल विवाह, कन्यावध, पर्दा प्रथा, मूर्ति पूजा, श्राद्ध, धार्मिक अन्धविश्वास एवं रूढ़ियों का विरोध किया। स्त्री शिक्षा एवं स्त्री अधिकारों का समर्थन किया। उन्होंने कहा वेदों के अध्ययन का अधिकार स्त्रियों को भी पुरुषों के बराबर है। आर्य समाज शुद्धि आन्दोलन में विश्वास रखते थे। विशेष परिस्थितिवश अन्य धर्म स्वीकार करने वाले हिन्दुओं का बौद्धिक रीति से शुद्धिकरण कर पुनः हिन्दू धर्म में लेने पर जोर दिया।

प्रश्न 2.
रामकृष्ण मिशन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
रामकृष्ण मिशन:
स्वामी रामकृष्ण परमहंस भारतीय संस्कृति को आध्यात्मिक मानते हुए श्रेष्ठ सनातन संस्कृति मानते थे। उनके निधन के पश्चात् उनके योग्यतम शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने इस संस्था की स्थापना 5 मई, 1897 को की। रामकृष्ण मिशन भारत के विभिन्न प्रान्तों तथा अमेरिका, फिजी, मॉरीशस आदि देशों में शाखाएँ हैं। रामकृष्ण मिशन ऐसे आदर्शों एवं सिद्धान्तों का प्रचार करता है जिसे सभी धर्मों व संस्कृतियों के लोग अपना सके।

मिशन के माध्यम से उपदेश, शिक्षा, चिकित्सा, अकाल, बाढ़, भूकम्प व संक्रामक रोगों से पीड़ितों की सहायता का कार्य भी किया जाता है। स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण मिशन के माध्यम से रूढ़िवाद तथा अन्धविश्वास, निर्धनता, अशिक्षा, छुआछूत एवं वर्गभेद को दूर करने का प्रयास किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने जनकल्याण की भावना को भी प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 3.
इस्लामिक धार्मिक सुधार आन्दोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इस्लामिक धार्मिक सुधार आन्दोलन:
मुगल साम्राज्य के पतन के पश्चात् मुसलमानों की स्थिति में गिरावट आ गयी। मुसलमानों ने अंग्रेजी शिक्षा का भी विरोध किया। मुस्लिम समाज में कुरीतियों का बोलबाला था जिससे उनकी सामाजिक एवं राजनैतिक भागीदारी कम हो गयी। इसी दौरान सर सैयद अहमद खाँ जैसे समाज सुधारक ने मुसलमानों में फैली हुई कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने 1875 ई. में अलीगढ़ स्कूल की स्थापना की।

1875 ई. में ही इसे कॉलेज बनाकर इसका नाम मुहम्मद एंग्लो ओरिएन्टल कॉलेज रखा गया जो आगे चलकर 1920 ई. में अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय बना। उन्होंने मुसलमानों को अंग्रेजों का वफादार बनने का सन्देश दिया। बहावी आन्दोलन में मुस्लिम समाज से रूढ़ियों को दूर कर शिक्षा का प्रसार किया। इससे मुसिलमानों में सामाजिक एवं राजनैतिक विचारों का जन्म हुआ और वे स्वतन्त्रता के प्रति जागरूक हुए।

प्रश्न 4.
थियोसोफिकल सोसायटी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना रूसी महिला मैडम ब्लेवेटस्की एवं अमेरिकी कर्नल एच.एस. ऑल्कॉट ने सितम्बर 1875 ई. में न्यूयॉर्क में की। ये दोनों 1879 ई. में भारत आये। 1886 ई. में थियोसोफिकल सोसायटी का अन्तर्राष्ट्रीय कार्यालय अड्यार (मद्रास वर्तमान चेन्नई) में खोला गया। इस संगठन की स्थापना का उद्देश्य प्राच्य धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन करना था। इस सोसायटी ने हिन्दू, बौद्ध एवं पारसी धर्म के उत्थान के लिए प्रयास किये।

यह सोसायटी हिन्दू धर्म के आध्यात्मिक दर्शन, कर्म सिद्धान्त एवं आत्मा के पुनर्जन्म सिद्धान्त का समर्थन करती है। इस सोसायटी ने भारतीयों में राष्ट्रीय गीत की भावना को भी विकसित किया। भारत में इस संस्था का आगमन स्वामी दयानन्द सरस्वती के आमन्त्रण पर हुआ था। सन् 1893 में आयरलैण्ड की एनीबेसेंट ने इस सोसायटी के कार्य को गति प्रदान की। यह 1907 ई. में कर्नल ऑल्कॉट की मृत्यु के पश्चात् थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष बनीं।

प्रश्न 5.
दोषपूर्ण ब्रिटिश शासन प्रणाली किस प्रकार भारत से अपने अवसान में सहायक बनी? बताइए।
उत्तर:
दोषपूर्ण ब्रिटिश शासन प्रणाली:
ब्रिटिश शासन की दोषपूर्ण प्रणाली भी भारत से इसके अवसान का एक प्रमुख कारण बनी। भारत में अंग्रेजों के आगमन से पूर्व शासन व्यवस्थाएँ एक अलग ही प्रकार की थीं। देशी राजाओं द्वारा कवियों, कलाकारों, साधु – सन्तों, धार्मिक व शिक्षण संस्थाओं को कर्जमुक्त जमीन दे रखी थी। इसके अतिरिक्त देश की न्याय व्यवस्था भी सस्ती व निष्पक्ष थी। वहीं अंग्रेजों के आगमन से विभिन्न वर्गों को दी जाने वाली कर्जमुक्त भूमि की व्यवस्था समाप्त कर दी गयी।

नवीन कर व्यवस्था से कृषक वर्ग भी मुसीबत में आ गया। अंग्रेजों की न्याय व्यवस्था भारतीय न्याय व्यवस्था से न केवल महँगी, दीर्घकालीन एवं निष्पक्षहीन थी बल्कि प्रशासनिक दृष्टि से भी दोषपूर्ण थी। आम राजकाज की भाषा अंग्रेजी हो जाने के कारण लोगों की मुसीबतें बढ़ गयौँ। भारतीयों को अंग्रेजों की तुलना में हेय दृष्टि से भी देखा जाता था।

प्रश्न 6.
पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव ने किस प्रकार ब्रिटिश शासन के अवसान में सहायता की? बताइए।
अथवा
पाश्चात्य शिक्षा परोक्ष रूप से भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए वरदान सिद्ध हुई है। कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सन् 1835 ई. में लॉर्ड विलियम बैंटिंक के शासनकाल में लॉर्ड मैकाले के सुझाव पर भारत में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देना प्रारम्भ किया गया। पाश्चात्य शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य, भारतीय सभ्यता, संस्कृति एवं राष्ट्रीय चेतना को पूर्ण रूप से समाप्त कर एक ऐसे वर्ग का निर्माण करना था, जो रक्त और वर्ण से भारतीय हो, किन्तु रुचि, विचार, शब्द एवं बुद्धि से अंग्रेज बन जाए। इस उद्देश्य में अंग्रेजों को पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई क्योंकि इस पद्धति से शिक्षित लोग अपनी संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति का गुणगान करने लगे। वहीं पाश्चात्य शिक्षा के दुष्प्रभाव के साथ-साथ इसने भारतीयों को लाभान्वित भी किया। अंग्रेजी भाषा के ज्ञान के कारण भारतीयों ने विदेशी साहित्य को पढ़ना प्रारम्भ कर दिया।

जिसमें उन्हें अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम, फ्रांस की राज्य क्रान्ति, इटली में विदेशी सत्ता के विरुद्ध संघर्ष एवं आयरलैण्ड के स्वतन्त्रता संग्राम की जानकारी प्राप्त हुई। ऐसे भारतीयों में अपनी स्वतन्त्रता एवं लोकतन्त्रात्मक मूल्यों के प्रति आस्था. बढ़ने लगी और उन्होंने ब्रिटिश सरकार से उसी की भाषा में संवाद कर अपने अधिकार प्राप्ति के लिए संघर्ष प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार पाश्चात्य शिक्षा का भारत में नींव डालने का अंग्रेजों का उद्देश्य भले ही राष्ट्रीय भावनाओं को रोककर रहा हो, परोक्ष रूप से वह भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए वरदान सिद्ध हुई।

प्रश्न 7.
भारत का आर्थिक शोषण किस प्रकार ब्रिटिश शासन के अवसान में सहायक बना? बताइए।
उत्तर:
भारतीयों में अंग्रेजों द्वारा किए गए आर्थिक शोषण के विरुद्ध भारी असन्तोष था। अंग्रेजों की स्वतन्त्र व्यापार नीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया। इंग्लैण्ड के औद्योगीकरण ने भारत के प्राचीन हस्तशिल्प, कुटीर उद्योगों को नष्ट कर दिया। यहाँ से सस्ती दरों पर कच्चा माल प्राप्त कर इंग्लैण्ड भेजा जाता था और वहाँ के कारखानों में माल तैयार होकर भारतीय बाजारों में आता था जिससे यहाँ के लोगों में बेरोजगारी फैल गयी। भारत के सूती, ऊनी, रेशमी, लोहा, चमड़ा एवं चीनी उद्योगों को नष्ट किया जा रहा था। भारत के उद्योग धन्धों को चौपट करने के लिए भारतीय सामान पर आयात शुल्क लगाया गया।

भारत के उद्योग धन्धों एवं दस्तकारों को सुनियोजित ढंग से नष्ट कर दिया गया। दस्तकारी व उद्योगों के ठप्प होने से जो भारतीय कृषि की ओर पलायन कर गए थे, उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य की कुटिल भू-राजस्व नीतियों का सामना करना पड़ा। प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी दादाभाई नौरोजी ने आम जनता को अपने लेखों से अंग्रेजों के आर्थिक षड्यन्त्र का खुलासा किया। इससे आम भारतीय में तीव्रता से ब्रिटिश सरकार के प्रति आक्रोश पनपा। इस प्रकार अंग्रेजों द्वारा भारतीय का किया गया आर्थिक शोषण। उसके शासन के अवसान में सहायक बना।

प्रश्न 8.
यूरोप के विद्वानों ने भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का किस प्रकार महिमामण्डन किया?
उत्तर:
विदेशी विद्वानों द्वारा की गयी खोजों से भी भारतीयों की राष्ट्रीय भावनाओं को बल मिला। सर विलियम जोन्स, मैक्स मूलर, जैकोबी, कोल ब्रुक, रौथ, ए. बी. कीथ, मोनियर एवं बुर्नक आदि विद्वानों ने भारत के संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थों का अध्ययन किया और उनका अंग्रेजी में अनुवाद किया। पाश्चात्य विद्वानों ने यह भी बताया कि ये भारतीय ग्रन्थ, संसार की सभ्यता की अमूल्य निधियाँ हैं। उनके मत में भारत विश्व के समक्ष प्राचीन तथा श्रेष्ठ संस्कृति है। कनिंघम जैसे पुरातत्वविदों की खुदाइयों ने भारत की महानता तथा गौरव का वह चित्र प्रस्तुत किया जो रोम तथा यूनान की प्राचीन सभ्यताओं से किसी भी पक्ष में कम गौरवशाली नहीं था।

इन यूरोपीय विद्वानों ने वेदों तथा उपनिषदों की साहित्यिक श्रेष्ठता एवं मानव मन के सुन्दर विश्लेषण के लिए उसका गुणगान किया। बहुत से यूरोपीय विद्वानों ने यह सिद्धान्त प्रस्तुत किया कि भारतीय आर्य उसी मानव श्रृंखला के लोग हैं जिससे यूरोपीय जातियाँ उपजी हैं। इससे शिक्षित भारतीयों के आत्मसम्मान में एक मनोवैज्ञानिक वृद्धि हुई । इन सभी तत्वों ने इनमें एक नया आत्मविश्वास जगाया और उनकी देशभक्ति एवं राष्ट्रवाद को प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 9.
इलबर्ट विल विवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इलबर्ट बिल विवाद:
सन् 1880 में लॉर्ड रिपन, लॉर्ड लिटन के स्थान पर भारत के जनरल वायसराय बने। उन्होंने भारत में अनेक सुधार किये’ वे न्यायिक क्षेत्र में भी सुधार चाहते थे क्योंकि भारत में न्यायिक क्षेत्र में जाति – भेद विद्यमान था और भारतीय न्यायाधीशों को यूरोपियन अपराधियों के फौजदारी मुकदमे सुनने का अधिकार नहीं था। । लॉर्ड रिपन की परिषद् के विधि सदस्य इलबर्ट ने इस आशय का एक विधेयक प्रस्तुत किया कि भारतीय न्यायाधीशों को भी यूरोपियन अपराधियों के फौजदारी मुकदमे सुनने का अधिकार होना चाहिए।

इस इलबर्ट विधेयक से अंग्रेज बहुत अधिक नाराज हो गये। उन्होंने इसे अपना जातीय अपमान समझा। इस हेतु उन्होंने संगठित होकर इसका विरोध करने का निश्चय किया। विरोध हेतु उन्होंने यूरोपियन रक्षा संघ का गठन किया और एक आन्दोलन चलाया। लॉर्ड रिपन ने इस विवाद को समाप्त करने के लिए इलबर्ट बिल में संशोधन कराया।

प्रश्न 10.
1857 का स्वतन्त्रता संग्राम भारत में ब्रिटिश शासन के अवसान का एक प्रमुख कारण था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1857 का स्वतन्त्रता संग्राम भारत की स्वतन्त्रता हेतु एक महत्वपूर्ण कदम था। 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन हेतु एक महत्वपूर्ण आधारशिला थी। यह भारत में राष्ट्रीय जागरण का एक महत्वपूर्ण प्रारम्भिक चरण था। इस स्वतन्त्रता की लड़ाई में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विभिन्न शासक, सैनिक एवं नेता एक-दूसरे के सम्पर्क में आये। यद्यपि यह आन्दोलन साधनों, क्रान्तिकारियों के मध्य समन्वय की कमी एवं समुचित योजना के अभाव के कारण अपने मूल लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ रहा। इस आन्दोलन को कुचलने में अंग्रेजों ने पाशविकता का परिचय दिया।

अंग्रेजों ने गाँव के गाँव जला दिये एवं निर्दोष ग्रामीणों का कत्ले आम किया। इस प्रकार के अत्याचारों से भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति भयंकर घृणा की भावना उत्पन्न हुई। अंग्रेजों से बदला लेने की भावना जागृत हुई। इसने आम जनता के मन में स्वतन्त्रता के प्रति संघर्ष के बीज बो दिये और भारत में राष्ट्रवाद व पुनर्जागरण की अंकुरण हुआ। इससे आम भारतीयों में भी साहस, आत्म गौरव, कर्तव्यपरायणता एवं जीवन – शक्ति का विकास हुआ। वीर सावरकर के अनुसार, “यह स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए प्रथम युद्ध था। यह केवल सैनिक विद्रोह ही नहीं बल्कि सामाजिक ज्वालामुखी था जिसमें दबी हुई शक्तियों ने अभिव्यक्ति प्राप्त की।

प्रश्न 11.
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रमुख क्रान्तिकारी नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रमुख क्रान्तिकारी- भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में क्रान्तिकारियों ने महान् योगदान दिया है। इनके सहयोग के बिना स्वतन्त्रता की बात सोचना भी निरर्थक है। क्रान्तिकारियों ने न केवल भारत में रहकर वरन विदेशों में भारतीय स्वतन्त्रता के लिए आन्दोलन चलाए। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख क्रान्तिकारी निम्नलिखित थे –

  1. प्रफुल्ल चाकी
  2. खुदीराम बोस
  3. अरविन्द घोष
  4. वारीन्द्र कुमार
  5. श्यामजी कृष्ण वर्मा
  6. मैडम भीकाजी कामा
  7. एम. बरकतुल्ला
  8. अजीत सिंह
  9. वी. एस अय्यर
  10. लाला हरदयाल
  11. रासबिहारी बोस
  12. सोहन सिंह भकना
  13.  विनायक दामोदर सावरकर
  14. उवैदुल्ला सिंधी
  15. मानवेन्द्रनाथ राय आदि।

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय आन्दोलन का युग (1920-1947) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1920 से 1947 के मध्य के समय को राष्ट्रीय आन्दोलन का युग कहा जाता है। इस काल में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के नेतृत्व में देश में स्वतन्त्रता आन्दोलनों को एक नई दिशा मिली। दक्षिण अफ्रीका से लौटने के पश्चात् महात्मा गाँधी ने भारतीय राजनीति में सक्रिय रूप से प्रवेश किया। उन्होंने अपने अहिंसक आन्दोलनों से देश की आम जनता को स्वतन्त्रता आन्दोलनों से जोड़ दिया।

महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सन् 1919 में असहयोग आन्दोलन, 1929 ई. में सविनय अवज्ञा आन्दोलन एवं 1942 ई. में भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया गया। यह आन्दोलन बहुत अधिक सफल रहे। इन आन्दोलनों ने भारत से ब्रिटिश शासन के अवसान में महत्वपूर्ण भूमिका को निर्वाह किया। भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रारम्भ होने के अवसर पर 8 अगस्त, 1942 को गाँधीजी द्वारा भारत छोड़ो प्रस्ताव का भाषण बहुत ही प्रभावी एवं मार्मिक था। जिसे सम्पूर्ण देश का समर्थन प्राप्त हुआ।

प्रश्न 13.
भारत को स्वतन्त्रता प्रदान करने के लिए ब्रिटिश शासन पर किन-किन महाशक्तियों का प्रभाव पड़ा? बताइए।
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्धं एवं द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ एक विश्व शक्ति के रूप में उदित हुए। इससे ब्रिटेन की स्थिति कमजोर हो गयी। इन दोनों शक्तियों ने उपनिवेशवाद का विरोध किया। विश्व के अन्य कई देशों में भी उपनिवेशवाद एवं राजतन्त्र के विरुद्ध क्रान्तियाँ हो रही थीं।

फ्रांस, जापान एवं जर्मनी आदि देशों ने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन को अपने यहाँ से संचालित करने के लिए स्थान उपलब्ध कराया। वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ के उदय से भी उपनिवेशवाद को झटका लगा। इंग्लैण्ड ने अमेरिका व इंग्लैण्ड के मध्य हुए एटलांटिक चार्टर समझौते का भी पालन किया, जिसका अमेरिका में रोष व्यक्त किया।

इसका भी ब्रिटेन पर भारत को स्वतन्त्र करने का दबाव पड़ा। वहीं ऑस्ट्रेलिया की संसद ने भी भारत को पूर्ण स्वराज्य देने की वकालत की। द्वितीय विश्वयुद्ध में जब जापान ने सिंगापुर, मलाया, इण्डोनेशिया एवं अण्डमान निकोबार द्वीप को फतह कर लिया। यहाँ तक कि बर्मा के पतन के पश्चात् जापानी सेना रंगून तक पहुँच गयी जिससे ब्रिटेन न केवल घबरा गया बल्कि भारत में राजनैतिक गतिरोध को दूर करने के लिए एक योजना के साथ क्रिप्स को भारत भेज दिया।

जर्मनी, रूस, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन आदि देशों ने भी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का समर्थन किया। 1945 में इंग्लैण्ड में हुए आम चुनावों में वहाँ की सत्तारूढ़ पार्टी की पराजय से चर्चिल के स्थान पर लेबर पार्टी के क्लीमेंट एटली ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री बने जिनकी भारत के प्रति सहृदयता भी थी। यहाँ तक कि इनके चुनावी घोषणापत्र में भी भारत को स्वतन्त्र करने का उल्लेख था। इससे भी स्वतन्त्रता का एक मार्ग प्रशस्त हुआ।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 19 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
19वीं सदी के किन-किन सामाजिक एवं राजनैतिक संगठनों ने भारतवासियों में राष्ट्रीयता की भावना विकसित करने का कार्य किया ? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
19वीं सदी के प्रमुख सामाजिक एवं राजनीतिक संगठन:
धार्मिक पुनरुत्थान और भारत के ऐतिहासिक गौरव के प्रति श्रद्धाभाव के कारण 19वीं शताब्दी के इन संगठनों ने देशवासियों में राष्ट्रीयता की भावना विकसित करने का कार्य किया।
19वीं सदी के प्रमुख सामाजिक एवं राजनीतिक संगठन अग्रलिखित थे।

(1) ब्रह्म समाज:
राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना 20 अगस्त, 1828 को की। ब्रह्म समाज मूल रूप से वेद और उपनिषदों पर आधारित था। ब्रह्म समाज सभी धर्मों के प्रति सहनशील था। राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज के माध्यम से सतीप्रथा का विरोध किया उन्होंने अँग्रेजी गवर्नर जनरल विलियम बैंटिंक से 1829 ई. में सतीप्रथा विरोधी कानून बनवा कर इस प्रथा को गैर-कानूनी घोषित करवाना था। इसके अतिरिक्त राजा राममोहन राय ने बाल विवाह, बहु विवाह, छुआछूत, नशा आदि कुप्रथाओं का भी विरोध किया।

वे पाश्चात्य ज्ञान व शिक्षा के अध्ययन को भी भारत के विकास और प्रगति के लिए आवश्यक मानते थे। वे स्वतन्त्रता के समर्थक व प्रशासन में स्वेच्छाचरिता के विरोधी थे। इन्होंने न्यायपालिका में सुधार, भूमिकर को कम करने की माँग एवं सेना के भारतीयकरण की माँग से भारतीय जनता में राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न की। ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धान्त थे –

  1. ईश्वर एक है वह सृष्टि का निर्माता, पालक, अनादि, अनन्त, निराकार है।
  2. ईश्वर की उपासना बिना किसी जाति सम्प्रदाय के आध्यात्मिक रीति से करनी चाहिए।
  3. पाप कर्म के प्रायश्चित एवं बुरी प्रवृत्तियों के त्याग से ही मुक्ति सम्भव है।
  4. आत्मा अजर व अमर है। वह ईश्वर के प्रति उत्तरदायी है।
  5. आध्यात्मिक उन्नति के लिये प्रार्थना आवश्यक है।
  6.  ईश्वर के लिए सभी समान हैं। और वह सभी की प्रार्थना समान रूप से स्वीकार करता है।
  7. ब्रह्म समाज कर्मफल के सिद्धान्त में विश्वास करता है।
  8. सत्य के अन्वेषण में विश्वास रखता है।

(2) आर्य समाज:
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 10 अप्रैल, 1875 को आर्य समाज की स्थापना की। स्वामी दयानन्द सरस्वती स्वराज्य, स्वधर्म एवं स्वदेशी की विचारधारा के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने देश में फैली व्याप्त कुरीतियों की आलोचना की और उन्हें दूर करने के लिए जन समर्थन जुटाया। उन्होंने छुआछूत, बाल विवाह, कन्या वध, पर्दा प्रथा, मूर्ति पूजा, श्राद्ध, धार्मिक अन्धविश्वास रूढ़ियों एवं जाति भेद का विरोध किया। स्त्री शिक्षा एवं स्त्री अधिकारों का समर्थन किया उन्होंने कहा वेदों के अध्ययन का अधिकार स्त्रियों को भी पुरुषों के बराबर है। आर्य समाजी शुद्धि आन्दोलन में विश्वास रखते थे।

विशेष परिस्थितिवश अन्य धर्म स्वीकार करने वाले हिन्दुओं का वैदिक रीति से शुद्धिकरण कर पुनः हिन्दू धर्म में लेने पर जोर दिया। इससे आम भारतीय विशेष कर उत्तरी भारत के लोगों ने इनके द्वारा शुरू आर्य समाज को अपनाकर देश में राष्ट्र प्रेम की भावना जगाने का कार्य किया। आर्य समाज के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. वेदों की सत्यता पर बल।
  2. वैदिक रीति से हवन व मन्त्र पाठ करना।
  3. सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने पर बल दिया
  4. अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए।
  5. पौराणिक विश्वासों, मूर्तिपूजा और अवतारवाद का विरोध करना।
  6. स्त्री शिक्षा तथा विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन देना।
  7. ईश्वर सर्वशक्तिमान, निराकार व नित्य है।
  8. सभी से धर्मानुसार प्रेमपूर्वक यथायोग्य व्यवहार करने पर बल दिया।
  9.  हिन्दी व संस्कृत भाषा के महत्त्व एवं प्रसार में वृद्धि करना।
  10. सबकी उन्नति में अपनी उन्नति और सबकी भलाई में अपनी भलाई समझना।

(3) इस्लामिक धार्मिक सुधार आन्दोलन:
मुगल साम्राज्य के पतन के पश्चात् मुसलमानों की स्थिति में गिरावट आ गई। मुसलमानों ने अंग्रेजी शिक्षा का भी विरोध किया। मुस्लिम समाज में कुरीतियों का बोलबाला था जिससे उनकी सामाजिक एवं राजनैतिक भागीदारी कम हो गई। इसी दौरान सर सैयद अहम्मद खाँ जैसे समाज सुधारक ने मुसलमानों में फैली हुई कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया।

उन्होंने अलीगढ़ में मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की। उन्होंने मुसलमानों को अँग्रेजों का वफादार बनने का संदेश दिया। बहावी आन्दोलन ने मुस्लिम समाज से रूढ़ियों को दूर कर शिक्षा का प्रसार किया। इससे मुसलमानों में सामाजिक एवं राजनैतिक विचार का जन्म हुआ और वे स्वतन्त्रता के प्रति जागरूक हुए।

(4) रामकृष्ण मिशन:
स्वामी रामकृष्ण परमहंस भारतीय संस्कृति को आध्यात्मिक मानते हुए श्रेष्ठ सनातन संस्कृति मानते थे। उनके निधन के पश्चात् उनके योग्यतम शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने इस संस्था की स्थापना 5 मई, 1897 में की। रामकृष्ण मिशन भारत के विभिन्न प्रान्तों तथा अमेरिका, फिजी, मॉरिशस आदि देशों में शाखाएँ हैं। रामकृष्ण मिशन ऐसे आदर्शों एवं सिद्धान्तों का प्रचार करता है जिसे सभी धर्मों व संस्कृति के लोग अपना सकें।

मिशन के माध्यम से उपदेश, शिक्षा, अकाल, बाढ़, भूकम्प व संक्रामक रोगों से पीड़ितों की सहायता का कार्य भी किया जाता था। स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण मिशन के माध्यम से रुढ़िवाद अंधविश्वास, निर्धनता, अशिक्षा, छुआछूत एवं वर्गभेद को दूर करने का प्रयत्न किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने जन कल्याण की भावना को भी प्रोत्साहित किया।

(5) थियोसोफिकल सोसायटी:
थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना रूसी महिला मैडम ब्लेवेटस्की एवं अमेरिकी कर्नल ऑल्कॉट द्वारा सन् 1875 में की गई। भारत में इसका पदार्पण 1886 में हुआ। इन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के आमन्त्रण पर भारत आकर यहाँ के लोगों को हिन्दू धर्म व संस्कृति को श्रेष्ठ बताया तथा धर्म सुधार के कार्य किए। सन् 1893 में आयरलैण्ड की श्रीमती एनीबेसेन्ट ने इस कार्य को गति प्रदान की एवं भारत में वैचारिक क्राँति की सूत्रधार बनीं। यह सन् 1907 से 1933 ई. तक थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्षा रहीं। इन्होंने भारत में थियोसोफिकल सोसायटी का खूब प्रचार प्रसार किया।

प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का उदय एवं उनके कार्यकाल का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का उदय:
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 28 दिसम्बर, 1885 को अवकाश प्राप्त अँग्रेज अधिकारी एलन ऑक्टोवियन ह्यूम ने की। ह्यूम ने 72 राजनैतिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर बम्बई के गोकुल दास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में काँग्रेस की नींव रखी। काँग्रेस के 72 कार्यकर्ताओं में दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, दिनशॉ एदलजी वाचा, काशीनाथ तेलंग, वी. राघवा चार्य, एन. जी. चन्द्रावरकर एवं एम. सुब्रमण्यम आदि प्रमुख थे।

काँग्रेस के प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता बंगाल के जाने-माने वकील व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने की। इसके महामन्त्री स्वयं ए. ओ. सूम बने। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन के मार्गदर्शन में गठित इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य भारत में ब्रिटिश शासन के प्रति बढ़ रहे असन्तोष के कारण हो सकने वाले विस्फोट को स्थिति की शाँत करना था। हम कह सकते हैं कि काँग्रेस की स्थापना ह्यूम ने एक ‘सुरक्षा वाल्व’ के रूप में की।

इनका दृष्टिकोण था कि भारतीय जनता में देश भक्ति की राष्ट्रीय भावनाओं को वैधानिक प्रवाह में मोड़ा जाए तथा भारतीयों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में सुधार लाने का प्रयत्न किया जाए। दिसम्बर 1906 में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुए अधिवेशन में उन्होंने बताया कि काँग्रेस का उद्देश्य संयुक्त राज्य अमेरिका एवं अन्य उपनिवेशों की भाँति स्वशासन प्राप्त करना था।

काँग्रेस का कार्यकाल:
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कार्यकाल को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है–
1. उदारवादी राष्ट्रीयता का काल (1885 -1905)-1885 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना के साथ ही इस पर राष्ट्रीय नेताओं का वर्चस्व स्थापित हो गया। तत्कालीन उदारवादी राष्ट्रीय नेताओं के प्रमुख थे – दादाभाई नौरोजी, महादेव गोविन्द रानाडे, फिरोजशाह मेहता सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, दिनशॉ एदलजी वाचा, व्योमेश चन्द्र बनर्जी, गोपालकृष्ण गोखले एवं पण्डित मदनमोहन मालवीय आदि थे।

काँग्रेस की स्थापना के आरम्भिक 20 वर्षों में उसकी नीति अत्यन्त ही उदार थी इसलिए इस काल को काँग्रेस के इतिहास में उदारवादी राष्ट्रीयता का काल माना जाता है। उदारवादी नेताओं का मानना था कि संविधानिक तरीके अपनाकर ही हम देश को स्वतन्त्र करा सकते हैं। इस समय काँग्रेस पर धनाड्य, मध्यवर्गीय, बुद्धिजीवी, जिनमें वकील, डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार एवं साहित्यकार सम्मिलित थे, का प्रभाव था।

उदारवादी नेताओं की अँग्रेजों की न्यायप्रियता में पूर्व निष्ठा थी और ये अँग्रेजों को अपना शत्रु नहीं बल्कि मित्र मानते थे। ये नेता प्रार्थना-पत्रों, प्रतिवेदनों, स्मरणपत्रों एवं शिष्टमण्डलों के द्वारा सरकार के समक्ष अपनी माँगों को रखते थे। इनके इसी लचीलेपन एवं संयत व्यवहार के कारण ही उग्रपंथी नेताओं ने इसे राजनीतिक भिक्षावृति कहा।

2. उग्रराष्ट्रीयता का काल (1906 -1919):
इस काल में एक ओर उग्र राष्ट्रवादी तो दूसरी ओर क्रान्तिकारी आन्दोलन चलाए गए। दोनों ही ब्रिटिश शासन से मुक्ति और पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति के लिए लड़ रहे थे। एक ओर उग्र राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग बहिष्कार आन्दोलन को आधार बनाकर लड़ रहे थे तो दूसरी ओर क्रान्तिकारी विचारधारा के लोग बम और बन्दूकों के उपयोग से स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहते थे। जहाँ एक ओर उग्रराष्ट्रवादी शांतिपूर्ण सक्रिय राजनीतिक आन्दोलनों में विश्वास करते थे। वहीं क्रान्तिकारी अंग्रेजों को भारत से भगाने में शक्ति और हिंसा के उपयोग में विश्वास करते थे।

उग्रराष्ट्रवादी विचारधारा के प्रमुख नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, विपिन चन्द्रपाल एवं अरविन्द घोष आदि थे। इनके द्वारा चलाए गए आन्दोलनों में जहाँ आम जनता में राष्ट्रवादी भावना तीव्र हुई, वहीं ब्रिटिश सरकार में भय का संचार हुआ। स्वदेशी आन्दोलन को देश की मुक्ति का साधन मानते हुए जनता में आत्म सम्मान और आत्मनिर्भरता का संचार हुआ।

3. राष्ट्रीय आन्दोलन का युग (1920 -1947):
गाँधीजी ने 1915 ई. में भारतीय राजनीति में प्रवेश किया। गाँधी जी भारत के उन कुछ चमकते हुए सितारों में से एक थे जिन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया एवं राष्ट्रीय एकता के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। इन्होंने अपने अहिंसक आन्दोलनों में देश के आम व्यक्तियों को स्वतंत्रता आन्दोलनों से जोड़ दिया।

महात्मा गाँधी के नेतृत्व में संचालित असहयोग आन्दोलन (192022) सविनय अवज्ञा आन्दोलन (1929 ई.), भारत छोड़ो आन्दोलन (1942 ई.) ने ब्रिटिश शासन के ताबूत में कील ठोकने का कार्य किया। कांग्रेस के नेतृत्व में देश में स्वतंत्रता आन्दोलनों को एक नवीन दिशा प्राप्त हुई। यद्यपि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् महात्मा गांधी ने कहा कि कांग्रेस का भविष्य में राजनीतिक दुरुपयोग नहीं हो इसलिए इसका विसर्जन कर दिया जाना चाहिए।

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