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RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 3 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंध

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 3 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंध

Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Chapter 3 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंध

RBSE Class 11 Political Science Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 3 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीति विज्ञान और इतिहास में दो अन्तर लिखिए।
उत्तर:

  1. राजनीति विज्ञान की अध्ययन पद्धति पर्यवेक्षणात्मक एवं दार्शनिक है, जबकि इतिहास की अध्ययन पद्धति वर्णनात्मक है।
  2. राजनीति विज्ञान का उद्देश्य है-अतीत के अनुभवों से लाभ उठाकर वर्तमान और भविष्य को । अधिक सुखद व लाभदायक बनाना। जबकि इतिहास का उद्देश्य है-मात्र अतीत की तटस्थ जानकारी प्राप्त करना।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान के सम्बन्ध के बारे में कोई दो पहलू लिखिए।
उत्तर:

  1. राज्य और उसकी संस्थाओं को अच्छी तरह समझने के लिए मनोविज्ञान आधार प्रदान करता है।
  2. राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान की राजनीतिक क्रियाकलापों से सम्बन्धित अध्ययन सामग्री प्रदान करता है।

प्रश्न 3.
राजनीति विज्ञान और नीतिशास्त्र में कोई दो अन्तर लिखिए।
उत्तर:

  1. राजनीति विज्ञान का क्षेत्र सीमित है, जबकि नीतिशास्त्र का क्षेत्र अधिक व्यापक है।
  2. राजनीति विज्ञान एक वर्णनात्मक एवं व्यावहारिक विज्ञान है, जबकि नीतिशास्त्र केवल आदर्शात्मक एवं सैद्धान्तिक शास्त्र है। .

प्रश्न 4.
राजनीति विज्ञान भूगोल से किस प्रकार जुड़ा है?
उत्तर:
राजनीति विज्ञान, भूगोल से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। किसी भी देश के समाज की राजनीतिक समस्याओं एवं जीवन को समझने के लिए वहाँ के भूगोल का पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है। भूगोल न केवल किसी देश की गृहनीति को प्रभावित करता है वरन् उसकी विदेश नीति को भी प्रभावित करता है।

प्रश्न 5.
राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र में कौन-सा अधिक व्यापक है?
उत्तर:
राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र में से समाजशास्त्र का क्षेत्र अधिक व्यापक है। समाजशास्त्र समाज के समस्त पक्षों एवं मनुष्य के सभी सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है, जबकि राजनीति विज्ञान मनुष्य के केवल राजनीतिक सम्बन्धों, राज्य एवं उसकी शासन व्यवस्था का ही अध्ययन करता है।

प्रश्न 6.
राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र में कोई दो अन्तर लिखिए।
उत्तर:

  1. राजनीतिशास्त्र का सम्बन्ध मनुष्य के राजनीतिक जीवन से है, जबकि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध मनुष्य के आर्थिक जीवन से है।
  2. राजनीति विज्ञान आदर्शात्मक विज्ञान है, जबकि अर्थशास्त्र वर्णनात्मक विज्ञान है।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न (शब्द सीमा 100 शब्द)

प्रश्न 1.
राजनीति विज्ञान और इतिहास में अन्तर बताइए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान और इतिहास में अन्तर-राजनीति विज्ञान और इतिहास में निम्नलिखित अन्तर हैं
(i) अध्ययन पद्धति में अन्तर – राजनीति विज्ञान की अध्ययन पद्धति चिन्तन मूलक है। इसमें केवल राजनीतिक पक्ष से सम्बन्धित घटनाओं का ही अध्ययन किया जाता है एवं पर्यवेक्षणात्मक, तुलनात्मक, वैज्ञानिक एवं दार्शनिक पद्धतियों के आधार पर सामान्य नियमों तथा सिद्धान्तों की खोज की जाती है। इतिहास की अध्ययन पद्धति वर्णनात्मक होती है। उसमें घटनाओं को कालक्रम के अनुरूप तटस्थ वर्णन किया जाता है।

(ii) क्षेत्र का अन्तर – राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनीतिक जीवन एवं राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करता है। यह अतीत, वर्तमान और भविष्य का भी अध्ययन करता है, जबकि इतिहास मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन का व समस्त संस्थाओं के अतीत का अध्ययन करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान का क्षेत्र संकीर्ण है और इतिहास का क्षेत्र व्यापक है।

(iii) उद्देश्य का अन्तर – राजनीति विज्ञान का उद्देश्य है-अतीत के अनुभवों से लाभ उठाकर वर्तमान और भविष्य को अधिक सुखद व लाभदायक बनाना, जबकि इतिहास का उद्देश्य है-अतीत की वास्तविक घटनाओं का अध्ययन करना।

(iv) प्रकृति का अन्तर – राजनीति विज्ञान की प्रकृति आदर्शात्मक है, जबकि इतिहास की प्रकृति तथ्यात्मक है।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में अन्तर बताइए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में अन्तर-राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में निम्नलिखित अन्तर हैं

(i) अध्ययन सामग्री में अन्तर – राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध मनुष्य के राजनीतिक जीवन से है, जबकि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध मनुष्यों के आर्थिक जीवन से है। राजनीति विज्ञान के अध्ययन का मुख्य विषय राज्य है, जबकि अर्थशास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय घन अथवा सम्पत्ति है।

(ii) प्रकृति में अन्तर – राजनीति विज्ञान आदर्शात्मक विज्ञान है, जबकि अर्थशास्त्र वर्णनात्मक विज्ञान है। राजनीति विज्ञान नैतिक व सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से विचार करता है, जबकि अर्थशास्त्र केवल भौतिक दृष्टि से विचार करता है।

(iii) उद्देश्य में अन्तर – राजनीति विज्ञान व्यक्ति का व्यक्ति के रूप में अध्ययन करता है, जबकि अर्थशास्त्र व्यक्ति का अध्ययन धन अथवा सम्पत्ति के रूप में करता है।

(iv) क्षेत्र में अन्तर – राजनीति विज्ञान का क्षेत्र व्यापक है, जबकि अर्थशास्त्र का क्षेत्र राजनीति विज्ञान की तुलना में संकीर्ण है। अर्थशास्त्र में मुख्य रूप से आर्थिक पक्ष का ही अध्ययन होता है, जबकि राजनीति विज्ञान में अन्य पक्षों, जैसे–राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व नैतिक आदि पर भी विचार किया जाता है।

प्रश्न 3.
सभी सामाजिक विज्ञानों के मध्य घनिष्ठ सम्बन्धों के दार्शनिक आधार क्या हैं?
उत्तर:
मनुष्य एक सामाजिक अथवा राजनीतिक प्राणी है। मानव जीवन के अनेक पक्ष होते हैं; जैसे-राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक आदि। मनुष्य के जीवन के इन विभिन्न पक्षों का अध्ययन करने के लिए अनेक शास्त्र; जैसे-राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास, नीतिशास्त्र आदि का विकास हुआ है। ये शास्त्र मनुष्य के जीवन के किसी न किसी पक्ष से सम्बन्धित हैं, इसलिए ये सामाजिक विज्ञान हैं और परस्पर एक-दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध रखते हैं।

प्राचीन समय से ही समाज विज्ञान के विभिन्न विषय अन्तर्सम्बन्धित माने जाते रहे हैं। राजनीति वैज्ञानिकों ने समय-समय पर समाज विज्ञानों को पृथक्-पृथक करने के प्रयत्नों पर आपत्तियाँ कीं और समाज विज्ञानों की अन्तर्निर्भरता पर बल दिया क्योंकि समस्त समाज विज्ञान मनुष्य को सामाजिक प्राणी मानते हैं तथा मनुष्य जीवन को श्रेष्ठ बनाना इनका लक्ष्य होता है। एकता का यही आधार समाज विज्ञानों को जोड़ता है।

मानव जीवन के विविध पक्षों का अध्ययन करने वाले विषय अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखते हुए भी परस्पर सम्बन्धित होते हैं, इनको पृथक् करना सम्भव नहीं है। समाज विज्ञान के समस्त विषय एक – दूसरे की जानकारी और ज्ञान भण्डार से लाभान्वित होते हैं। समाज विज्ञान का कोई भी विषय आत्मनिर्भर नहीं होता है, विभिन्न विषय आवश्यक रूप से आत्मनिर्भर होते हैं। इसी कारण समाज विज्ञान के किसी भी एक विषय का सार्थक अध्ययन करने हेतु अन्य विषयों का अध्ययन आवश्यक हो जाता है।

प्रश्न 4.
राजनीति विज्ञान और भूगोल का पारस्परिक क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
राजनीति विज्ञान और भूगोल में पारस्परिक सम्बन्ध – राजनीति विज्ञान और भूगोल में घनिष्ठ सम्बन्ध है। राजनीति विज्ञान राज्य का अध्ययन करता है, राज्य के तत्वों में निश्चित भू – भाग को आवश्यक तत्व माना गया है। भू-भाग का अध्ययन भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है। भूगोल का सम्बन्ध पृथ्वी, इसके आकार, खनिज पदार्थ, जलवायु का स्वरूप आदि से होता है। भौगोलिक दशाओं और परिस्थितियों का प्रभाव उस देश की राजनीति और इतिहास पर निश्चित रूप से पड़ता है।

अरस्तू और बोदाँ ने भूगोल और राजनीति की घनिष्ठता को स्वीकारा है। रूसो ने शासन के विभिन्न स्वरूपों एवं जलवायु में घनिष्ठ सम्बन्ध बताया है। तानाशाही के लिए गर्म जलवायु, बर्बरता के लिए ठण्डी जलवायु एवं अच्छे जनतन्त्रीय शासन के लिए सम जलवायु उपयुक्त होती है।

मॉन्टेस्क्यू ने भौगोलिक परिस्थितियों का सामाजिक एवं राजनीतिक संस्थाओं और विशेषकर स्वतन्त्रता पर सर्वाधिक प्रभाव माना है। उन्होंने ठण्डे देशों के लिए राजनीतिक स्वतन्त्रता एवं गर्म देशों के लिए दासता स्वाभाविक बतायी। किसी भी देश के समाज की राजनीतिक समस्याओं एवं जीवन को समझने के लिए वहाँ के भूगोल का पर्याप्त ज्ञान होना अति आवश्यक है।

भूगोल किसी भी देश की घरेलू नीति के साथ-साथ विदेश नीति को भी प्रभावित करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका एवं रूस जैसे देशों की शक्ति में वृद्धि का मुख्य कारण उनकी प्राकृतिक सम्पदा है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पश्चिमी एशिया.के देशों का महत्त्व और प्रभाव उनकी भौगोलिक स्थिति, खनिज पदार्थों एवं खनिज तेल के विशाल भण्डारों के कारण ही है। स्विट्जरलैण्ड की अनुकूल भौगोलिक स्थिति होने के कारण ही वहाँ प्रत्यक्ष लोकतन्त्र सफल रहा है।

प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कारण ही आज नेपाल व भूटान जैसे देश राजनीतिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। आधुनिक राजनीति विज्ञानियों ने राजनीति पर भौगोलिक परिस्थितियों के प्रभाव को स्वीकारा है। फलस्वरूप भू – राजनीति नामक नये विषय का विकास हुआ है जो भौगोलिक तत्वों के राजनीतिक प्रभावों का अध्ययन करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान और भूगोल घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“राजनीति विज्ञान उन सभी विज्ञानों से सम्बन्धित है, जो संगठित समाज में मनुष्यों से सम्बन्ध रखते हैं।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि राजनीति विज्ञान उन सभी विज्ञानों से सम्बन्धित है, जो संगठित समाज में मनुष्यों से सम्बन्ध रखते हैं। मनुष्य एक विवेकशील एवं सामाजिक प्राणी है। मानव जीवन के अनेक पक्ष होते हैं; जैसे-राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक आदि। मनुष्य का राजनीतिक जीवन तो सम्पूर्ण सामाजिक जीवन का एक पक्ष मात्र होता है।

मानव जीवन के विभिन्न पक्षों का व्यवस्थित अध्ययन करने के लिए पृथक् – पृथक् विषयों का विकास हुआ है; जैसे-राजनीति विज्ञान, मानव के राजनीतिक पक्ष से सम्बन्धित समस्याओं एवं प्रश्नों का अध्ययन करता है, अर्थशास्त्र व्यक्ति के आर्थिक पक्ष का समाजशास्त्र के रीति-रिवाजों, परस्पराओं आदि सामाजिक पक्षों का, नीतिशास्त्र मानव जीवन को श्रेष्ठ बनाने का तथा इतिहास भूतकालीन जीवन का अध्ययन करता है। मानव जीवन के विविध पक्षों का अध्ययन करने वाले ये विषय अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखते हुए भी परस्पर सम्बन्धित होते हैं। इनको पृथक् करना सम्भव नहीं है।

प्राकृतिक विज्ञानों सहित समाज विज्ञान के समस्त विषय एक – दूसरे की जानकारी और ज्ञान भण्डार से लाभान्वित होते हैं। कोई भी विषय आत्मनिर्भर नहीं होता, विभिन्न विषय आवश्यक रूप से अन्त:निर्भर होते हैं। इसी कारण समाज विज्ञान के किसी भी विषय का सार्थक अध्ययन करने हेतु अन्य विषयों का अध्ययन आवश्यक हो जाता है। राजनीति विज्ञान, समाज विज्ञान के अन्तर्गत सम्मिलित है। राजनीति विज्ञान की अन्य विषयों से घनिष्ठता की परम्परा प्राचीन समय से ही प्रचलन में रही है।

राजनीति विज्ञान की अन्य समाज विज्ञानों से घनिष्ठता स्थापित करते हुए प्रसिद्ध विद्वान गार्नर ने कहा है कि, “हम दूसरे सहायक विज्ञानों का यथावत ज्ञान प्राप्त किए बिना राजनीति विज्ञान एवं राज्यों का पूर्ण ज्ञान ठीक उसी प्रकार प्राप्त नहीं कर सकते, जिस प्रकार गणित के बिना यन्त्र विज्ञान और रसायन विज्ञान के बिना जीव – विज्ञान को यथावत ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता।”

राजनीति विज्ञान का सबसे प्रमुख गुण यह है कि वह सामाजिक विज्ञान की अन्य शाखाओं के निष्कर्षों को ग्रहण करने की तत्परता रखता है। राजनीति विज्ञान का अन्य सभी सामाजिक विज्ञानों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। हम संगठित समाज में रहते हैं, राजनीति विज्ञान उन सभी विज्ञानों से सम्बन्धित है, जो संगठित समाज में मनुष्यों से सम्बन्ध रखते हैं। इतिहास ने अतीत की राजनीतिक घटनाओं व तथ्यों का एक ऐसा संग्रह प्रदान किया है जिससे राजनीति विज्ञान को अपने सिद्धान्तों के निर्धारण में सहायता मिलती है।

अर्थशास्त्र के अन्तर्गत आर्थिक क्रियाओं ने राज्य की उत्पत्ति एवं उसके विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। आज भी आर्थिक क्रियाएँ राजनीतिक संस्थाओं के विकास में सहायक बन रही हैं। वहीं राज्य की नीतियाँ समाज के आर्थिक ढाँचे व व्यवस्थित रूप को निर्धारित करती हैं। नीतिशास्त्र राज्य को अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती है। नीतिशास्त्र का व्यापक रूप ही राजनीति है। राज्य और उसकी संस्थाओं को अच्छी तरह समझने के लिए मनोविज्ञान आधार प्रदान करता है। राजनीतिक अनुसन्धान में मनोवैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग निरन्तर बढ़ता जा रहा है।

राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत अध्ययन किए जाने वाले राजनीतिक जीवन’ और ‘राजनीतिक विश्व’ उस विश्व का ही भाग हैं, जिसकी प्रकृति और जिसके मूल की खोज दर्शन शास्त्र के अध्ययन का विषय है। राजनीति विज्ञान और भूगोल का घनिष्ठ सम्बन्ध है। राजनीति में भूगोल के बढ़ते हुए महत्त्व के कारण भू-राजनीति नाम से एक नये विषय का निर्माण हुआ है जो भौगोलिकता के राजनीतिक प्रभावों का उल्लेख करता है।

गणनाशास्त्र का भी राजनीति विज्ञान के साथ निर्भरता का सम्बन्ध है। राजनीतिविज्ञान द्वारा प्राप्त तथ्यों को गणना द्वारा भी अभिव्यक्त किया जाता है। आज राजनीतिक अर्थशास्त्र, ‘राजनीतिक इतिहास, राजनीतिक समाजशास्त्र आदि राजनीति विज्ञान की विभिन्न शाखाओं का अस्तित्व में आना। इस बात का प्रतीक है कि राजनीति विज्ञान अन्य सामाजिक विज्ञानों से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।

प्रश्न 2.
“राजनीति विज्ञान के बिना इतिहास का कोई फल नहीं, इतिहास के बिना राजनीति विज्ञान की कोई जड़ नहीं।”(सीले) इस कथन के प्रकाश में राजनीति विज्ञान का इतिहास के साथ सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान का इतिहास के साथ सम्बन्ध राजनीति विज्ञान और इतिहास में घनिष्ठ सम्बन्ध है। राजनीति विज्ञान राज्य के अतीत, वर्तमान और भविष्य का अध्ययन करता है।

इतिहास समस्त मानव सभ्यता के अतीत का अध्ययन करता है तथा इस सम्बन्ध में राज्य के अतीत का भी अध्ययन करता है। राजनीति विज्ञान और इतिहास की घनिष्ठता को जॉन सीले ने स्पष्ट करते हुए कहा है कि, “राजनीति विज्ञान के बिना इतिहास का कोई फल नहीं है, फलत: इतिहास के बिना राजनीति विज्ञान की कोई जड़ नहीं।” सीले के अनुसार राजनीतिक संस्थाओं और घटनाओं को ऐतिहासिक सन्दर्भ में ही अच्छी तरफ समझा जा सकता है।

राजनीति विज्ञान ऐतिहासिक तथ्यों के द्वारा सामान्य सिद्धान्तों और नियमों की खोज करता है। सीले ने पुनः दोनों विषयों की अन्तर्निर्भरता स्पष्ट करते हुए कहा है कि इतिहास के उदार प्रभाव के बिना राजनीति बर्बर है और राजनीति के साथ अपना सम्बन्ध भुला देने से इतिहास साहित्य मात्र रह जाता है।

सीले के कथनानुसार, इतिहास और राजनीति विज्ञान अन्त में एक जैसे हो जाएँगे। राजनीति विज्ञान और इतिहास में पारस्परिक अन्तर्निर्भरता है। दोनों एक – दूसरे के पूरक हैं, एक के अभाव में दूसरे का अध्ययन निरर्थक और सारहीन है। इतिहास की राजनीति विज्ञान को देन

(i) राजनीति विज्ञान का अध्ययन इतिहास पर निर्भर – राजनीति विज्ञान का अध्ययन इतिहास पर निर्भर होता है। इतिहास राजनीति विज्ञान को अध्ययन सामग्री प्रदान करता है। किसी भी युग के राजनीतिक चिन्तन को समझने के लिए उस युग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का ज्ञान आवश्यक होता है।

(ii) इतिहास, राजनीति विज्ञान के सिद्धान्त एवं आदर्श निर्धारण में सहायक – इतिहास अतीत की राजनीतिक घटनाओं एवं तथ्यों का एक ऐसा संग्रह होता है जिससे राजनीति विज्ञान को अपने सिद्धान्तों एवं आदर्शों के निर्धारण में सहायता मिलती है।
गैटेल ने ठीक ही कहा है कि, “राजनीतिक संस्थाओं को उनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में ही समझा जा सकता है।”

(iii) इतिहास, राजनीति की प्रयोगशाला एवं मार्गदर्शक – इतिहास, राजनीति विज्ञान की प्रयोगशाला एवं मार्गदर्शक माना जाता है। इतिहास से ही अतीत की नीतियाँ, उनके परिणामों और वैकल्पिक नीतियों की जानकारी प्राप्त होती है। राजनीतिक क्षेत्र में इन घटनाओं को प्रयोग कहा जाता है और इतिहास को प्रयोगशाला कहा जाता है। अतीत में किए गए प्रयोग वर्तमान की समस्याओं को सुलझाने में और भविष्य को सुन्दर बनाने में सहायक होते हैं।

राजनीति विज्ञान की इतिहास को देन:
जिस प्रकार राजनीतिशास्त्र इतिहास से बहुत कुछ ग्रहण करता है, उसी प्रकार इतिहास भी राजनीति शास्त्र से बहुत कुछ ग्रहण करता है, यथा:
(i) राजनीति विज्ञान द्वारा इतिहास को दृष्टिकोण प्रदान करना-राजनीति विज्ञान, इतिहास को दृष्टिकोण प्रदान करता है। इतिहास, राजनीति विज्ञान से घटनाओं को समझने एवं उनकी व्याख्या करने का दृष्टिकोण प्राप्त करता है क्योंकि ऐतिहासिक तथ्यों को समझने में राजनीति विज्ञान ही इतिहास की सहायता करता है।

(ii) राजनीति विज्ञान द्वारा इतिहास के अध्ययन को सारगर्भित बनाना-राजनीतिक विज्ञान, इतिहास के अध्ययन को सारगर्भित बनाता है। राजनीतिक घटनाएँ ही इतिहास का निर्माण करती हैं। यदि राजनीतिक घटनाओं, आन्दोलनों और विचारधाराओं को ठीक प्रकार से मूल्यांकन नहीं किया जाए तो इतिहास सम्बन्धी अध्ययन अनुपयोगी सिद्ध होता है।

(iii) राजनीतिक विचारधाराओं से इतिहास का निर्माण होना-राजनीतिक विचारधाराएँ, राजनीतिक दर्शन एवं मूल्य ही इतिहास का निर्माण करते हैं। जैसे आज उदारवादी लोकतन्त्र की राजनीतिक विचारधारा अनेक देशों में नवीन घटनाओं को जन्म दे रही है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि इतिहास और राजनीति विज्ञान एक-दूसरे के पूरक और अन्तर्सम्बन्धित हैं।

प्रश्न 3.
राजनीति विज्ञान के नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान से सम्बन्धों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान को नीतिशास्त्र से सम्बन्ध राजनीति विज्ञान और नीतिशास्त्र में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। नीतिशास्त्र उचित व अनुचित पर विचार करता है। तथा इसमें नैतिकता के नियमों का अध्ययन और आचरण के नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। यह मानव व्यवहार की अच्छाई-बुराई तथा आदर्शों से सम्बन्धित है। प्राचीन भारतीय विचारकों ने राजनीति विज्ञान का सदाचार और धर्म के साथ निकट सम्बन्ध माना है।

नीतिशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन:
(i) राज्य के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता देना – वही देश सर्वाधिक उन्नति करता है जिसके नागरिक आदर्श आचरण करते हैं। प्रत्येक राज्य का लक्ष्य अधिकाधिक आदर्श नागरिक तैयार करना होता है। राज्य अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति नीतिशास्त्र के माध्यम से ही कर सकता है। अरस्तू ने ठीक ही कहा है, “राज्य सद्जीवन की प्राप्ति के लिए ही अस्तित्व में है।

(ii) कानूनों का आधार नैतिक मान्यताएँ – राज्य द्वारा जिन कानूनों का निर्माण किया जाता है उनका आधार प्रचलित नैतिक मान्यताएँ ही होती हैं। राज्य व्यवहार में ऐसे कानूनों को लागू भी नहीं कर सकता। जिनके पीछे नैतिक बल न हो। गैटेल ने ठीक ही कहा है कि, “जब नैतिक विचार स्थायी और प्रचलित हो जाते हैं तो कानून का रूप ले लेते हैं।”

राजनीति विज्ञान की नीतिशास्त्र को देन:
(i) राज्य नैतिक जीवन के लिए परिस्थितियों का निर्माण करता है – मनुष्य का नैतिक कल्याण राज्य के सहयोग बिना असम्भव है। राज्य शान्ति और व्यवस्था बनाए रखता है, बाह्य आक्रमणों एवं आन्तरिक शत्रुओं से समाज की रक्षा करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान उस व्यावहारिक वातावरण को जन्म देता है जिसमें समाज नैतिक जीवन व्यतीत कर सके।

(ii) राज्य द्वारा नैतिक मूल्यों को लागू करना – प्रत्येक समाज में अनेक कुरीतियाँ परम्परागत नैतिक मूल्यों के रूप में उपस्थिति रहती हैं। ये समाज की प्रगति में बाधक होती हैं। राज्य इस प्रकार की अवास्तविक नैतिक मान्यताओं को समाप्त कर उसके स्थान पर विवेकपूर्ण नैतिक मूल्यों को कानून के सहयोग से स्थापित करता है। राजनीति विज्ञान का मनोविज्ञान से सम्बन्ध मनोविज्ञान व्यक्ति के मन की क्रियाओं तथा उसके बाह्य व्यवहार का अध्ययन करता है।

यह विभिन्न मानसिक अवस्थाओं में मनुष्य के आचरण पर प्रभाव डालता है। राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन दोनों विषयों की घनिष्ठता को सर्वप्रथम बैजहॉट ने 1873 ई. में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘फिजिक्स एण्ड पॉलिटिक्स’ में स्वीकारा था। मनोविज्ञान विभिन्न परिस्थितियों में मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन है और मानवीय व्यवहार व उसकी प्रकृति को समझे बिना राजनीति विज्ञान का अध्ययन ठीक प्रकार से नहीं किया जा सकता।

मनोविज्ञान की राजनीति विज्ञान को देन:

  1. मनोविज्ञान राजनीति विज्ञान का आधार है – मनोविज्ञान वास्तविक अर्थों में राजनीति विज्ञान को आधार प्रदान करता है। राज्य और उसकी संस्थाओं को अच्छी तरह समझने के लिए मनोविज्ञान एक आधार का कार्य करता है।
  2. राजनीतिक अनुसन्धान में मनोवैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग – राजनीति में मनोवैज्ञानिक तथ्यों की उपयोगिता को स्वीकारते हुए वर्तमान राजनीति विज्ञानी मनोवैज्ञानिक अध्ययन पद्धति के प्रयोग पर जोर देने लगे हैं।
  3. क्रान्ति से सुरक्षा हेतु मनोवैज्ञानिक ज्ञान आवश्यक – जब शासन की नीतियाँ जनता के मनोविज्ञान के अनुसार निर्धारित की जाती हैं तो जन – असन्तोष जन्म नहीं लेता और क्रान्ति की सम्भावना भी सीमित हो जाती है। जब शासन जनता के मनोविज्ञान की उपेक्षा करता है तो क्रान्ति और जन आन्दोलन जन्म लेते हैं।

राजनीति विज्ञान की मनोविज्ञान को देन:

  1. मनोविज्ञान को अध्ययन सामग्री प्रदान करना-राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान को अध्ययन सामग्री प्रदान करता है। मानव के राजनीतिक व्यवहार से सम्बन्धित तथ्यों का संग्रह करने के लिए मनोविज्ञान, राजनीति विज्ञान की सहायता लेता है।
  2. सामाजिक मनोविज्ञान को प्रभावित करना-राजनीति विज्ञान समाज के मनोविज्ञान को भी प्रभावित करता है। शासन प्रणाली का स्वरूप एवं राजनीतिक दर्शन वहाँ के लोगों के मनोविज्ञान को प्रभावित करते हैं। लोकतान्त्रिक शासन में नागरिकों का व्यवहार सैनिक समाज में रहने वाले नागरिकों से भिन्न होता है। अतः कोई भी मनोवैज्ञानिक राजनीतिक अध्ययन की उपेक्षा नहीं कर सकता। इस प्रकार कहा जा सकता है कि राजनीति विज्ञान, नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।

प्रश्न 4.
“राजनीतिशास्त्र अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिशास्त्र का अर्थशास्त्र से सम्बन्ध:
राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र का घनिष्ठ सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। प्राचीन यूनान में दोनों विषयों को राजनीतिक अर्थशास्त्र के रूप में जाना जाता था। प्राचीन भारतीय विचारक कौटिल्य ने राजनीति शास्त्र पर रचित अपने ग्रन्थ का नाम ‘अर्थशास्त्र’ रखा था। राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र की पारस्परिकता को अग्र प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है अर्थशास्त्र की राजनीतिशास्त्र को देन

  1. राज्य की उत्पत्ति व विकास में आर्थिक क्रियाओं की भूमिका-राज्य की उत्पत्ति और उसके विकास में आर्थिक क्रियाओं की प्रभावी भूमिका रही है। आज भी राजनीतिक संस्थाओं के विकास में आर्थिक क्रियाएँ सहयोगी की भूमिका निभा रही हैं।
  2. राज्य के क्रियाकलापों के पर आर्थिक परिस्थितियों को प्रभाव-राज्य के क्रियाकलापों एवं उसकी नीतियों पर आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव होता है।
  3. क्रान्ति, विद्रोह एवं आन्दोलन का आर्थिक आधार होता है-आर्थिक असन्तोष से किसी भी देश एवं समाज़ में क्रान्ति, विद्रोह अथवा आन्दोलन की परिस्थितियों का निर्माण होता है। प्रायः राजनीतिक असन्तोष का मूल कारण आर्थिक असन्तोष होता है, जैसे-फ्रांस की राज्य क्रान्ति का प्रमुख कारण आर्थिक असन्तोष था। 1917 की सोवियत संघ की साम्यवादी क्रान्ति का मूल कारण तत्कालीन आर्थिक दुरावस्था को माना जाता है।

राजनीतिशास्त्र की अर्थशास्त्र को देन:

  1. अर्थव्यवस्था का स्वरूप राज्य की नीतियों पर निर्भर-राज्य की नीतियाँ समाज के आर्थिक ढाँचे व व्यवस्थित स्वरूप को निर्धारित करती हैं। समाज के आर्थिक विकास पर प्रशासन के स्तर को भी स्पष्ट प्रभाव पड़ता है।
  2. वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण शासन के स्वरूप पर निर्भर-किसी भी देश में उत्पादन के साधनों, वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण शासन के स्वरूप पर निर्भर करता है। समाजवादी राज्यों में उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर राज्य का नियन्त्रण होता है जबकि पूँजीवादी राज्यों में उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर व्यक्तियों का निजी नियन्त्रण होता है, राज्य का नियन्त्रण नहीं होता है।
  3. आर्थिक समस्याओं का कारण एवं समाधान राज्य पर निर्भर-आर्थिक समस्याओं का उद्गम और स्माधान राज्य की नीतियों पर निर्भर करता है। विवेकशील एवं तर्कसंगत शासकीय नीतियों द्वारा इनका समाधान होता है, जबकि अविवेकपूर्ण नीतियों से इन समस्याओं का स्वरूप विकराल होकर राज्य – व्यवस्था के लिए संकट का कारण बन सकता है।

राजनीतिशास्त्र का समाजशास्त्र से सम्बन्ध:
राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है। राज्य के एक सामाजिक – राजनीतिक संस्था होने के कारण दोनों एक-दूसरे पर आश्रित हैं। समाजशास्त्र समाज सम्बन्धी समस्त विषयों का अध्ययन करता है। राजनीतिशास्त्र का सम्बन्ध सामाजिक जीवन के राजनीतिक आयाम से है। अतः राजनीतिशास्त्र भी समाजशास्त्र का ही एक भाग है।

राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र की पारस्परिकता को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है समाजशास्त्र की राजनीतिशास्त्र को देन समाजशास्त्र को अन्य सामाजिक शास्त्रों को समान ही राजनीतिशास्त्र का भी आधार कहा जाताव है। समाजशास्त्र ने राजनीतिशास्त्र के अध्ययन में अत्यधिक सहायता की है।

राज्य की उत्पत्ति, विकास एवं संगठन को समझने में राजनीतिशास्त्र को समाजशास्त्र से अत्यधिक सहायता प्राप्त हुई है। यह समाजशास्त्र का ही प्रभाव है कि आधुनिक राजनीतिशास्त्र में राजनीतिक संस्थाओं के स्थान पर राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन पर विशेष बल दिया जाता है।

राजनीतिशास्त्र की समाजशास्त्र को देन:
राजनीतिशास्त्र भी समाजशास्त्र को अध्ययन – सामग्री प्रदान करता है। समाजशास्त्र में समाज की उत्पत्ति और विकास के अतिरिक्त राज्य की उत्पत्ति, विकास एवं उसके द्वारा समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन किया जाता है। राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र को वे तथ्य प्रदान करता है जिनकी सहायता से समाजशास्त्र समाज के राजनीतिक जीवन का कुशलतापूर्वक अध्ययन करता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जहाँ अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है, वहीं समाजशास्त्र की भी राजनीतिशास्त्र से निकटता स्थापित है।

प्रश्न 5.
राजनीतिशास्त्र के दर्शनशास्त्र तथा भूगोल से सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिशास्त्र का दर्शनशास्त्र से सम्बन्ध राजनीतिशास्त्र और दर्शनशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है। दर्शनशास्त्र जीवन व जगत की प्रकृति एवं उसके मूल सम्बन्धी मानव की खोज से सम्बन्धित शास्त्र है। वहीं राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत अध्ययन किए जाने वाले राजनीतिक जीवन तथा राजनीतिक विश्व, उस विश्व का ही भाग हैं, जिसकी प्रकृति और मूल की खोज दर्शनशास्त्र के अध्ययन का विषय हैं। इस दृष्टि से इन दोनों विषयों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। राजनीतिशास्त्र एवं दर्शनशास्त्र के पारस्परिक सम्बन्ध का अध्ययन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है

(i) उद्देश्य की समानता – राजनीतिशास्त्र और दर्शनशास्त्र के उद्देश्य में साम्यता दिखाई देती है। राजनीतिशास्त्र का उद्देश्य राज्य और राजनीतिक जीवन के स्वरूप एवं उसके मूल की खोज करना है वहीं दर्शनशास्त्र का उद्देश्य इस बात की खोज करना है कि सृष्टि क्या है, विश्व क्या है और इन सबके मूल में क्या है। ये दोनों ही विषय अपने अध्ययन के विषय के मूल तथा उसकी प्रकृति का अध्ययन करने के लिए निरन्तर क्रियाशील हैं।

(ii) अध्ययन के स्वरूप की समानता – राजनीतिशास्त्र में व्यावहारिक राजनीति के अध्ययन के साथ-साथ सैद्धान्तिक अध्ययन पर भी बल दिया जाता है। राज्य की उत्पत्ति, राज्य का उद्देश्य, स्वतन्त्रता, समानता, विधि, सम्प्रभुता आदि राजनीतिक धारणाओं एवं विचारधाराओं आदि का अध्ययने इस विषय में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। दर्शनशास्त्र भी सैद्धान्तिक और वैचारिक अध्ययन का विषय है। जीवन की प्रकृति एवं उसका मूल तत्त्व, चेतनअचेतन एवं द्वैतवाद आदि उसकी विषय-वस्तु के प्रमुख तत्व हैं।

(iii) अध्ययन पद्धति की समानता – राजनीतिशास्त्र की प्रमुख रूप से दो अध्ययन पद्धतियाँ हैं –

  1. आनुभविक वैज्ञानिक पद्धति,
  2. दार्शनिक पद्धति। वहीं दर्शनशास्त्र की अध्ययन पद्धति भी दार्शनिक है। इस प्रकार दोनों विषयों में अध्ययन पद्धति की समानता दिखाई देती है।

राजनीतिशास्त्र का भूगोल से सम्बन्ध:
राजनीतिशास्त्र राज्य का अध्ययन करता है। राज्य के तत्वों में निश्चित भू – भाग को आवश्यक तत्व माना गया है। भू-भाग का अध्ययन भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है। भूगोल का सम्बन्ध पृथ्वी, इसके आकार, खनिज पदार्थ, जलवायु आदि से होता है। भौगोलिक दशाओं और परिस्थितियों का प्रभाव उस देश की राजनीति पर पड़ता है। अतः राजनीतिशास्त्र और भूगोल में घनिष्ठ सम्बन्ध होना स्वाभाविक है। राजनीतिशास्त्र और भूगोल के पारस्परिक सम्बन्ध का अध्ययन हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत कर सकते हैं

  1. भूगोल के विभिन्न तत्व, जैसे- भूमि, जलवायु, वनस्पति, समुद्र तट, नदियाँ, पर्वत आदि किसी भी देश के राजनीतिक इतिहास एवं वहाँ की सभ्यता व संस्कृति पर अमिट छाप छोड़ते हैं।
  2. किसी भी देश के समाज की राजनीतिक परिस्थितियों, राजनीतिक समस्याओं एवं जीवन को समझने के लिए वहाँ के भूगोल का पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है।
  3. भूगोल न केवल किसी देश की घरेलू नीति को प्रभावित करता है बल्कि उसकी विदेश नीति को भी प्रभावित करता है।
  4. आधुनिक राजनीतिशास्त्रियों ने राजनीति पर भौगोलिक परिस्थितियों के प्रभाव को स्वीकारा है, फलस्वरूप भू – राजनीति नामक नए विषय का विकास हुआ है जो भौगोलिक तत्वों के राजनीतिक प्रभावों का अध्ययन करता है।
  5. राजनीति द्वारा भी भूगोल प्रभावित होता है। उदाहरण के रूप में, वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास, प्राकृतिक संसाधनों के अन्धाधुन्ध दोहन ने अनेक पर्यावरणीय और जलवायु सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न की हैं। ओजोन परत का क्षय, ग्रीन हाउस प्रभाव आदि समस्याओं से सम्बन्धित राजनीतिक निर्णय देश के भौगेलिक स्वरूप को प्रभावित करते हैं, जैसेभारत – पाकिस्तान का विभाजन। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राजनीतिशास्त्र के दर्शनशास्त्र के साथ – साथ भूगोल से भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। ये दोनों विषय राजनीतिशास्त्र को प्रभावित करने के साथ-साथ उससे प्रभावित भी हो रहे हैं।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
“साध्य ही नहीं साधन भी पवित्र होने चाहिए।” यह कथन राजनीति विज्ञान को जिस समाज विज्ञान के निकट लाता है, वह है
(अ) समाजशास्त्र
(ब) मनोविज्ञान
(स) नीतिशास्त्र
(द) इतिहास।
उत्तर:
(स) नीतिशास्त्र

प्रश्न 2.
“राजनीति विज्ञान के बिना इतिहास का कोई फल नहीं, इतिहास के बिना राजनीति विज्ञान की कोई जड़ नहीं।” यह कथन किसका है?
(अ) बिलोबी
(ब) सीले
(स) बर्गेस
(द) लार्ड एक्टन
उत्तर:
(ब) सीले

प्रश्न 3.
निम्नांकित में से कौन – सा राजनीति विज्ञान का केन्द्रीय विषय है
(अ) परिवार
(ब) समूह
(स) वर्ग
(द) राज्य
उत्तर:
(द) राज्य

प्रश्न 4.
निम्नांकित में से कौन-सा राजनीति विज्ञान का विषय नहीं है?
(अ) राज्य
(ब) राजनीतिक दल
(स) चर्च (धर्म)
(द) नागरिक
उत्तर:
(स) चर्च (धर्म)

प्रश्न 5.
आधुनिक राजनीति विज्ञान निकट है
(अ) दर्शनशास्त्र के
(ब) मनोविज्ञान के
(स) अर्थशास्त्र के
(द) सांख्यिकी के
उत्तर:
(स) अर्थशास्त्र के

प्रश्न 6.
मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाला अनुशासन है
(अ) मनोविज्ञान
(ब) दर्शनशास्त्र
(स) अर्थशास्त्र
(द) समाजशास्त्र।
उत्तर:
(अ) मनोविज्ञान

प्रश्न 7.
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र दोनों का उद्देश्य है-
(अ) आर्थिक लाभ
(ब) ब्याज कमाना
(स) आयात और निर्यात
(द) मानव कल्याण
उत्तर:
(द) मानव कल्याण

RBSE Class 11 Political Science Chapter 3 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
“राजनीतिशास्त्र का राजनीतिक अर्थव्यवस्था या अर्थशास्त्र से गहरा सम्बन्ध है।” यह कथन है
(अ) पॉल जेनेट का
(ब) केटलिन का
(स) बर्गेस का
(द) सीले का।
उत्तर:
(अ) पॉल जेनेट का

प्रश्न 2.
मनुष्य के जीवन का पहलू है / हैं
(अ) राजनीतिक
(ब) आर्थिक
(स) नैतिक
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
मनुष्य के जीवन के विविध पहलुओं का अध्ययन करने वाला शास्त्र है/हैं
(अ) राजनीतिशास्त्र
(ब) समाजशास्त्र
(स) अर्थशास्त्र
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4.
सामाजिक विज्ञान की अन्य शाखाओं के निष्कर्षों को ग्रहण करने की तत्परता निम्न में से किस शास्त्र का सबसे बड़ा गुण है
(अ) भूगोल ।
(ब) अर्थशास्त्र
(स) राजनीतिशास्त्र
(द) नीतिशास्त्र।
उत्तर:
(स) राजनीतिशास्त्र

प्रश्न 5.
“सम्भवतः राजनीति विज्ञान का सबसे बड़ा गुण उसकी विनम्रता है।” यह कथन है
(अ) गार्नर का
(ब) रोठी का
(स) मार्क्स का
(द) लॉस्की का।
उत्तर:
(ब) रोठी का

प्रश्न 6.
“राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र अभिन्न हैं और वास्तव में ये एक वस्तु के दो पहलू हैं।” किस राजनीतिशास्त्री | का कथन है
(अ) गार्नर का
(ब) केटलिन का
(स) महात्मा गाँधी का
(द) मैकियावेली का।
उत्तर:
(ब) केटलिन का

प्रश्न 7.
राजनीतिशास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय है
(अ) राज्य
(ब) स्वतन्त्रता
(स) संगठन
(द) सत्ता।
उत्तर:
(अ) राज्य

प्रश्न 8.
निम्न में से किस विषय में मनुष्यों के वैधानिक सम्बन्धों का ही अध्ययन किया जाता है
(अ) अर्थशास्त्र में
(ब) दर्शनशास्त्र में
(स) नीतिशास्त्र में
(द) राजनीतिशास्त्र में।
उत्तर:
(द) राजनीतिशास्त्र में।

प्रश्न 9.
समाजशास्त्र विषय है
(अ) वर्णनात्मक
(ब) आदर्शात्मक
(स) नैतिक
(द) आर्थिक।
उत्तर:
(अ) वर्णनात्मक

प्रश्न 10.
राज्य के अतीत, वर्तमान एवं भविष्य का अध्ययन करने वाला विषय है
(अ) भूगोल
(ब) राजनीतिशास्त्र
(स) समाजशास्त्र
(द) इतिहास।
उत्तर:
(ब) राजनीतिशास्त्र

प्रश्न 11.
यह किसका कथन है कि “यद्यपि इतिहास व राजनीतिशास्त्र की सीमाएँ आरम्भ से अन्त तक परस्पर सम्बन्धित हैं, किन्तु वे वास्तव में भिन्न और स्वतन्त्र शास्त्र हैं।”
(अ) अर्नेस्ट वाकर
(ब) बर्गेस
(स) बोदां
(द) हॉब्स।
उत्तर:
(अ) अर्नेस्ट वाकर

प्रश्न 12.
अतीत की राजनीतिक घटनाओं व तथ्यों का ऐसा संग्रह जिससे राजनीतिशास्त्र में अपने सिद्धास्त्रों के निर्धारण में सहायता मिलती है, कहलाता है
(अ) अर्थशास्त्र
(स) इतिहास
(द) मनोविज्ञान
उत्तर:
(स) इतिहास

प्रश्न 13.
अपने काल क्रमानुसार अध्ययन से इतिहास, राजनीति के विद्यार्थी को एक परिपक्वता और विकास की भावना देता है। इसलिए सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के लिए अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है।” यह कथन है
(अ) बार्कर का
(ब) लिप्सन का
(स) गिडिंग्स को
(द) केटलिन का।
उत्तर:
(ब) लिप्सन का

प्रश्न 14.
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध है
(अ) आर्थिक क्रियाओं से
(ब) राज्य की नीतियों से
(स) राज्य के कार्यों से
(द) समाज की उत्पत्ति और विकास से।
उत्तर:
(अ) आर्थिक क्रियाओं से

प्रश्न 15.
“अर्थशास्त्र का सम्बन्ध मुख्यतः वस्तुओं से होता है और राजनीतिशास्त्र का व्यक्तियों से।” यह कथन है
(अ) प्लेटो का
(ब) अरस्तू का
(स) महात्मा गाँधी का
(द) आइवर ब्राउन का।
उत्तर:
(द) आइवर ब्राउन का।

प्रश्न 16.
“अर्थशास्त्र के बिना राजनीतिशास्त्र अवास्तविक व महत्वहीन रचना मात्र है।” यह कथन है-”
(अ) चार्ल्स बियर्ड को
(ब) गेटेल का
(स) प्लेटो का
(द) एक्टन का।
उत्तर:
(अ) चार्ल्स बियर्ड को

प्रश्न 17.
धर्महीन राजनीति, राजनीति नहीं होती है, धर्महीन राजनीति मृत्यु जाल है क्योंकि वह आत्मा के पतन का कारण बनती है। यह कथन है
(अ) मैकियावेली का
(ब) रूसो का
(स) महात्मा गाँधी का
(द) फॉय का।
उत्तर:
(स) महात्मा गाँधी का

प्रश्न 18.
हम राजनीतिक कार्यों के औचित्य का निश्चय की मान्यताओं के आधार पर ही करते हैं।
(अ) नीतिशास्त्र
(ब) अर्थशास्त्र
(स) दर्शनशास्त्र
(द) भूगोल।
उत्तर:
(अ) नीतिशास्त्र

प्रश्न 19.
सम्पूर्ण सामाजिक वैयक्तिक जीवन से सम्बन्धित शास्त्र है
(अ) अर्थशास्त्र
(ब) दर्शनशास्त्र
(स) नीतिशास्त्र
(द) भूगोल।
उत्तर:
(स) नीतिशास्त्र

प्रश्न 20.
व्यक्ति के मन की क्रियाओं एवं उसके बाह्य व्यवहार का अध्ययन करने वाला शास्त्र है(
(अ) दर्शनशास्त्र
(ब) नीतिशास्त्र
(स) समाजशास्त्र
(द) मनोविज्ञान।
उत्तर:
(द) मनोविज्ञान।

प्रश्न 21.
‘फिजिक्स एण्ड पॉलिटिक्स’ नामक पुस्तक के लेखक हैं
(अ) बैजहॉट
(ब) दुर्चीम
(स) वालेस
(द) प्लेटो।
उत्तर:
(अ) बैजहॉट

प्रश्न 22.
“राजनीतिशास्त्र की जड़े मनोविज्ञान में निहित हैं।” यह कथन है
(अ) वुडवर्थ का
(ब) स्वाउट का
(स) ब्राइस का
(द) लिप्सन का।
उत्तर:
(स) ब्राइस का

प्रश्न 23.
जीवन और जगत की प्रकृति तथा उसके मूल सम्बन्धी मानव की खोज से सम्बन्धित शास्त्र है
(अ) अर्थशास्त्र
(ब) दर्शनशास्त्र
(स) राजनीतिशास्त्र
(द) मनोविज्ञान।
उत्तर:
(ब) दर्शनशास्त्र

प्रश्न 24.
दर्शनशास्त्र की अध्ययन पद्धति है
(अ) वर्णनात्मक
(ब) तुलनात्मक
(स) दार्शनिक
(द) वैज्ञानिक।
उत्तर:
(स) दार्शनिक

प्रश्न 25.
निम्न में से किस विद्वान ने दार्शनिक पद्धति का प्रयोग नहीं किया
(अ) प्लेटो ने
(ब) रूसो ने
(स) ग्रीन ने
(द) गार्नर ने।
उत्तर:
(द) गार्नर ने।

प्रश्न 26.
निम्न में से किस विद्वान ने राजनीति विज्ञान और भूमि के सम्बन्ध की घनिष्ठता पर बल दिया है
(अ) बोदां ने
(ब) मान्टेस्क्यू ने
(स) रूसो ने
(द) रायटर ने।
उत्तर:
(अ) बोदां ने

प्रश्न 27.
भौगोलिक तत्वों के राजनीतिक प्रभावों का अध्ययन करता है
(अ) भू-राजनीति
(ब) भूगोल
(स) समाजशास्त्र
(द) राजनीतिशास्त्र।
उत्तर:
(अ) भू-राजनीति

प्रश्न 28.
ठोस तथ्यों से सम्बन्धित विज्ञान है
(अ) राजनीतिशास्त्र
(ब) समाजशास्त्र
(स) गणनाशास्त्र
(द) भूगोल।
उत्तर:
(द) भूगोल।

प्रश्न 29.
गणनाशास्त्र का क्रियात्मक प्रयोग होता है
(अ) नीति निर्धारण में
(ब) कानून का निर्णय करने में
(स) राजशक्ति का प्रयोग करने में
(द) उपर्युक्त सभी में।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी में।

प्रश्न 30.
राजनीतिशास्त्र का घनिष्ठ सम्बन्ध है
(अ) अर्थशास्त्र से
(ब) दर्शनशास्त्र से
(स) इतिहास से’
(द) उपर्युक्त सभी से।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी से।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 3 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीति विज्ञान की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
उत्तर:
राजनीति विज्ञान की सबसे बड़ी विशेषता सामाजिक विज्ञान की अन्य शाखाओं के निष्कर्षों को ग्रहण करने की तत्परता है।

प्रश्न 2.
प्रो. कैटलिन ने राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र के सम्बन्ध को किस प्रकार परिभाषित किया है?
उत्तर:
प्रो. कैटलिन के अनुसार, “राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र अभिन्न हैं तथा वास्तव में ये एक वस्तु के दो पहलू हैं।”

प्रश्न 3.
राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र में दो अन्तर लिखिए।
उत्तर:

  1. राजनीतिशास्त्र का क्षेत्र संकीर्ण है, जबकि समाजशास्त्र का क्षेत्र व्यापक है।
  2. राजनीतिशास्त्र आदर्शात्मक विषय है, जबकि समाजशास्त्र वर्णनात्मक विषय है।

प्रश्न 4.
समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में विषयवस्तु के आधार पर अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र के अध्ययन की विषयवस्तु व्यक्ति और समाज है, जबकि राजनीतिशास्त्र के अध्ययन की। विषयवस्तु राज्य है।

प्रश्न 5.
समाजशास्त्र की राजनीति विज्ञान को क्या देन है?
उत्तर:
राजनीति विज्ञान राज्य के ढाँचे का अध्ययन करता है जो मूल रूप से सामाजिक ढाँचे का ही एक हिस्सा है। सामाजिक विकास की जानकारी के माध्यम से ही राज्य और राजनीतिक विकास का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
राजनीतिशास्त्र की समाजशास्त्र को क्या देन है?
उत्तर:
राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र को वह तथ्य प्रदान करता है जिनकी सहायता से समाजशास्त्र समाज के राजनीतिक जीवन का कुशलतापूर्वक अध्ययन करता है। समाजशास्त्र राज्य की उत्पत्ति, संगठन व कार्य आदि का ज्ञान राजनीतिशास्त्र से ही प्राप्त करता है।

प्रश्न 7.
बार्कर के अनुसार राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बार्कर के अनुसार, “राजनीतिशास्त्र सिर्फ राजनीतिक समुदायों का अध्ययन करता है जो एक संविधान द्वारा संयुक्त किए गए हैं और एक ही सरकार के अन्तर्गत हैं। समाजशास्त्र सभी समुदायों का अध्ययन करता है। राजनीतिशास्त्र एक सिद्धान्त के रूप में स्वीकार कर लेता है कि मनुष्य एक सामाजिक – राजनैतिक प्राणी है। वह, समाजशास्त्र की भाँति यह बताने का प्रयास नहीं करता कि वह ऐसा प्राणी क्यों है?”

प्रश्न 8.
राजनीतिक समाजशास्त्र क्या है?
उत्तर:
राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र का पारस्परिक सहयोग ज्ञान के विकास के लिए आवश्यक है। इन दोनों शास्त्रों का सहयोग ज्ञान की एक नई शाखा के रूप में विकसित हो रहा है, जिसे राजनीतिक समाजशास्त्र के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 9.
इतिहास का अर्थ बताइए।
उत्तर:
मानव सभ्यता के विकास की कहानी ही इतिहास है। इतिहास मनुष्यों, समाजों एवं राज्यों के कार्यों, प्रयासों, सफलताओं व असफलताओं का योग है।

प्रश्न 10.
इतिहास की राजनीति विज्ञान को क्या देन है?
उत्तर:
इतिहास, राजनीति विज्ञान के सिद्धान्त एवं आदर्श निर्धारण में सहायक है। यह राजनीति विज्ञान की । प्रयोगशाली एवं मार्गदर्शक के रूप में भूमिका निभाती है।

प्रश्न 11.
राजनीति विज्ञान की इतिहास को क्या देन है?
उत्तर:
राजनीति विज्ञान इतिहास को दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह इतिहास के अध्ययन को सारगर्भित बनाता है। राजनीतिक घटनाएँ ही इतिहास का निर्माण करती हैं।

प्रश्न 12.
उद्देश्य के आधार पर राजनीति विज्ञान और इतिहास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान का उद्देश्य है-अतीत के अनुभवों से लाभ उठाकर वर्तमान और भविष्य को अधिक सुखद व लाभदायक बनाना, जबकि इतिहास को उद्देश्य है-मात्र अतीत की तटस्थ जानकारी प्रदान करना।

प्रश्न 13.
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के सम्बन्ध के बारे में कोई दो पहलू लिखिए।
उत्तर-:

  1. राज्य की नीतियाँ समाज के आर्थिक ढाँचे व व्यवस्थित स्वरूप को निर्धारित करती हैं।
  2. राज्य की उत्पत्ति एवं विकास में आर्थिक क्रियाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

प्रश्न 14.
राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र के सम्बन्ध को गैटेल नामक विद्वान ने किस प्रकार परिभाषित किया है?
उत्तर:
गैटेल के अनुसार, “आर्थिक परिस्थितियाँ राज्य के संगठन, विकास एवं क्रियाकलापों पर प्रभाव डालती हैं। और प्रत्युत्तर में राज्य अपने कानूनों द्वारा आर्थिक परिस्थितियों को बदलता है।”

प्रश्न 15.
गुरुमुख निहाल सिंह ने राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के सम्बन्ध को किस प्रकार परिभाषित किया है?
उत्तर:
गुरुमुख निहाल सिंह के अनुसार, “प्रारम्भिक दिनों में अर्थशास्त्र को राजनीतिविज्ञान की एक शाखा माना जाता था तथा उसके अध्ययन का विषय राज्य के लिए राजस्व प्राप्त करना था। इसी प्रकार इसे ‘घरेलू अर्थशास्त्र की अपेक्षा ‘राजनीतिक अर्थशास्त्र’ कहा जाता था। राजनीतिक अर्थशास्त्र यह प्रकट करता है कि अर्थशास्त्र राजनीति विज्ञान के अधीन है।”

प्रश्न 16.
अर्थशास्त्र द्वारा राजनीति विज्ञान को दी जाने वाली देन के कोई दो बिन्दु बताइए।
उत्तर:

  1. आर्थिक कारक राज्य और शासन के स्वरूप को प्रभावित करते हैं।
  2. आर्थिक कारणों से किसी भी देश और समाज में क्रान्ति, विद्रोह अथवा आन्दोलन की परिस्थितियों का निर्माण होता है।

प्रश्न 17.
राजनीति विज्ञान के अर्थशास्त्र पर कोई दो प्रभाव बताइए।
उत्तर:

  1. अर्थव्यवस्था का स्वरूप राज्य की नीतियों पर निर्भर करता है।
  2. आर्थिक समस्याओं का कारण और समाधान राज्य पर निर्भर होता है।

प्रश्न 18.
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:

  1. राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध मनुष्य के राजनीतिक जीवन से है, जबकि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध मनुष्य के आर्थिक जीवन से है।
  2. राजनीति विज्ञान आदर्शात्मक विज्ञान है, जबकि अर्थशास्त्र वर्णनात्मक विज्ञान है।

प्रश्न 19.
राजनीति विज्ञान और नीतिशास्त्र का पारस्परिक सम्बन्ध क्या है?
उत्तर:

  1. नीतिशास्त्र राज्य के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है।
  2.  राज्य द्वारा नैतिक मूल्यों को लागू किया जाता है।

प्रश्न 20.
“राज्य सद्जीवन की प्राप्ति के लिए ही अस्तित्व में है।” यह कथन किस विद्वान का है?
उत्तर:
अरस्तू का।

प्रश्न 21.
राजनीतिशास्त्र और नीतिशास्त्र के मध्य घनिष्ठता को स्वीकार करने वाले किन्हीं चार विद्वानों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. प्लेटो
  2. अरस्तू
  3. महात्मा गाँधी
  4. लॉर्ड एक्टन।

प्रश्न 22.
राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान में कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:

  1. राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध व्यक्ति की केवल राजनीतिक क्रियाओं से होता है, जबकि मनोविज्ञान का सम्बन्ध व्यक्ति की सभी मानसिक क्रियाओं से होता है।
  2. राजनीति विज्ञान यथार्थवादी एवं आदर्शवादी विज्ञान है, जबकि मनोविज्ञान एक यथार्थवादी विज्ञान है।

प्रश्न 23.
राजनीति विज्ञान और दर्शनशास्त्र के सम्बन्ध के बारे में कोई दो बातें लिखिए।
उत्तर:

  1. दोनों ही विषय अपने अध्ययन के विषय के मूल एवं उसकी प्रकृति का अध्ययन करने के लिए प्रयत्नशील हैं।
  2. दोनों ही विषयों का समस्त अध्ययन सैद्धान्तिक एवं वैचारिक है।

प्रश्न 24.
राजनीति विज्ञान और दर्शनशास्त्र में कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:

  1. राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनीतिक जीवन का अध्ययन करता है, जबकि दर्शनशास्त्र समस्त जीव जगत एवं सृष्टि के नियामक तत्त्वों का अध्ययन करता है।
  2. राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध साकार, मूर्त व प्रत्यक्ष से है, जबकि दर्शनशास्त्र का सम्बन्ध निराकार, अमूर्त व अप्रत्यक्ष से है।

प्रश्न 25.
अरस्तू ने राजनीति विज्ञान और भूगोल की पारस्परिकता को किस प्रकार व्यक्त किया?
उत्तर:
अरस्तू ने सर्वप्रथम इस बात का प्रतिपादन किया था कि भूमि, जलवायु, समुद्र तट, पहाड़, नदियाँ तथा खाड़ियाँ आदि राजनीतिक, इतिहास एवं किसी देश की सभ्यता और संस्कृति पर अमिट छाप छोड़ देती हैं।

प्रश्न 26.
किसे विचारक ने राजनीति विज्ञान और भूमि के सम्बन्ध की घनिष्ठता पर बल दिया?
उत्तर:
बोदां ने।

प्रश्न 27.
रूसो ने जलवायु और सरकार के स्वरूप के सम्बन्ध में क्या कहा है?
उत्तर:
रूसो के अनुसार, “गर्म जलवायु निरंकुश शासन के लिए, ठण्डी जलवायु बर्बरता के लिए और सम जलवायु अच्छे जनतन्त्रीय शासन के लिए उपयुक्त होती है।

प्रश्न 28.
राजनीति विज्ञान और भूगोल में प्रमुख अन्तर लिखिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान एक समाज विज्ञान है, इसकी अध्ययन सामग्री राज्य सरकार एवं विधि आदि हैं, जबकि भूगोल एक प्राकृतिक विज्ञान है, इसकी अध्ययन सामग्री विभिन्न देशों की प्राकृतिक दशा, जलवायु व वनस्पति आदि हैं।

प्रश्न 29.
राजनीति विज्ञान और गणनाशास्त्र में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
राजनीति विज्ञान द्वारा प्राप्त तथ्यों की गणना, गणनाशास्त्र द्वारा ही अभिव्यक्त की जाती है।

RBSE Class 11 political science Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन बताइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन – समाजशास्त्र एक ऐसा सामान्य और मूलभूत समाज विज्ञान है। जो कि मानव के सामाजिक विज्ञान के मूल तथ्यों का अध्ययन करता है। यह मानव जीवन के समस्त सामाजिक, कानूनी, राजनैतिक, धार्मिक और आर्थिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन का अध्ययन हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत कर सकते हैं

(i) राजनीति विज्ञान का आधार – समाजशास्त्र का अध्ययन बहुत विस्तृत है। इसके अन्तर्गत मनुष्य के समस्त सामाजिक, सम्बन्धों पर विचार किया जाता है। राजनीति विज्ञान राज्य के ढाँचे का अध्ययन करता है जो मूल रूप से सामाजिक ढाँचे का ही एक हिस्सा है। राज्य से पूर्व भी सामाजिक संरचनाएँ अस्तित्व में थीं। अतः सामाजिक विकास की जानकारी के माध्यम से ही राज्य एवं राजनीतिक विकास का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

(ii) राजनीति विज्ञान के अध्ययन में सहायता – समाजशास्त्र ने राजनीति विज्ञान के अध्ययन में अत्यधिक सहायता की है। राज्य की उत्पत्ति, विकास एवं संगठन को समझने में राजनीति विज्ञान को समाजशास्त्र से अत्यधिक सहयोग प्राप्त हुआ है। यह समाजशास्त्र का ही प्रभाव है कि वर्तमान काल में राजनीति विज्ञान में राजनीतिक संस्थाओं के स्थान पर  राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन पर विशेष बल दिया जा रहा है जिसके अध्ययन में समाजशास्त्रीय अध्ययन पद्धतियाँ अत्यन्त सहायक सिद्ध हुई हैं।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान की समाजशास्त्र को देन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान की समाजशास्त्र को देन – राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध सामाजिक जीवन के राजनीतिक आयाम से है। वस्तुतः राजनीति विज्ञान भी समाजशास्त्र का ही एक भाग है। राजनीति विज्ञान भी समाजशास्त्र को सहयोग प्रदान करता है। राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र को वे तथ्य प्रदान करता है जिनकी सहायता से समाजशास्त्र समाज के राजनीतिक जीवन का कुशलतापूर्वक अध्ययन करता है।

समाजशास्त्र राज्य की उत्पत्ति, संगठन, कार्य आदि का ज्ञान राजनीति विज्ञान से ही प्राप्त करता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो राजनीति विज्ञान भी समाजशास्त्र को अध्ययन सामग्री प्रदान करता है। समाजशास्त्र में समाज की उत्पत्ति और विकास के अतिरिक्त राज्य की उत्पत्ति, विकास एवं उसके द्वारा समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 3.
इतिहास की राजनीति विज्ञान को देन का उल्लेख कीजिए।
अथवा
इतिहास का राजनीति विज्ञान पर प्रभाव का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इतिहास की राजनीति विज्ञान को देन (प्रभाव) – इतिहास मानव सभ्यता के विकास की कहानी है। यह समस्त मानव सभ्यता के अतीत का अध्ययन करता है और इस सम्बन्ध में इतिहास राज्य के अतीत का भी अध्ययन करता है। इतिहास की राजनीति विज्ञान को देन का अध्ययन हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत कर सकते हैं

(i) राजनीति विज्ञान का अध्ययन इतिहास पर निर्भर – इतिहास, राजनीति विज्ञान को अध्ययन सामग्री प्रदान करता है। राज्य की राजनीतिक व्यवस्थाएँ एवं संरचनाएँ विकास का परिणाम होती हैं। किसी भी युग के रचिनीतिक चिंतन को समझने के लिए उस युग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का ज्ञान आवश्यक होता है।

(ii) इतिहास, राजनीति विज्ञान के सिद्धान्त एवं आदर्श निर्धारण में सहायक – ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर ही सामान्य राजनीतिक सिद्धान्तों का निर्माण किया जाना सम्भव होता है। प्लेटो ने आदर्श राज्य और दार्शनिक राजा के शासन का प्रतिपादन ऐतिहासिक अनुभव के आधार पर ही किया था।

(iii) इतिहास, राजनीति की प्रयोगशाला तथा मार्गदर्शक – इतिहास, राजनीति विज्ञान की प्रयोगशाला एवं मार्गदर्शक माना जाता है। अतीत में राजनीतिक क्षेत्र में किए गए कार्यों के परिणाम एवं प्रभाव का विवरण इतिहास में मिलता है। अतीत में किए गए प्रयोग वर्तमान की समस्याओं को सुलझाने में और भविष्य को बनाने में सहायक होते हैं।’

प्रश्न 4.
इतिहास भी राजनीति विज्ञान से बहुत कुछ ग्रहण करता है।’ कथन को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
एक अनुशासन के रूप में इतिहास पर राजनीति विज्ञान के प्रभाव को बताइए।
अथवा
राजनीति विज्ञान की इतिहास को देन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान की इतिहास को देन – जिस प्रकार राजनीति विज्ञान, इतिहास से बहुत कुछ ग्रहण करता है, उसी प्रकार इतिहास भी रार्जनीति विज्ञान से बहुत कुछ ग्रहण करता है। राजनीति विज्ञान की इतिहास को देन (प्रभाव) का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है.

(i) राजनीति विज्ञान द्वारा इतिहास को दृष्टिकोण प्रदान करना – राजनीति विज्ञान, इतिहास को दृष्टिकोण प्रदान करता है। इतिहास, राजनीति विज्ञान से घटनाओं को समझने और उनकी व्याख्या करने का दृष्टिकोण प्राप्त करता है क्योंकि ऐतिहासिक तथ्यों को समझने में राजनीति विज्ञान ही इतिहास की सहायता करता है।

(ii) राजनीति विज्ञान द्वारा इतिहास के अध्ययन को सारगर्भित बनाना – राजनीति विज्ञान, इतिहास के अध्ययन को सारगर्भित बनाता है। राजनीतिक घटनाएँ ही इतिहास का निर्माण करती हैं। यदि राजनीतिक घटनाओं, आन्दोलनों एवं विचारधाराओं का सम्यक् मूल्यांकन नहीं किया जाए तो इतिहास सम्बन्धी अध्ययन निरर्थक सिद्ध होता है।

(iii) राजनीतिक विचारधाराओं से इतिहास का निर्माण होना – राजनीतिक विचारधाराओं से इतिहास का निर्माण होता है, किन्तु मुख्य रूप से राजनीतिक दर्शन, विचारधाराएँ एवं मूल्य ही इतिहास का निर्माण करते हैं। उदाहरण के रूप में, रूसो की विचारधारा ने फ्रांस की राज्य क्रान्ति के लिए वैचारिक पृष्ठभूमि तैयार की। आज भी उदारवादी लोकतन्त्र की राजनीति विचारधारा अनेक देशों में नवीन घटनाओं को जन्म दे रही है।

प्रश्न 5.
अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में विषयवस्तु सम्बन्धी समानता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन दोनों विषयों के घनिष्ठ सम्बन्ध को व्यक्त करते हुए गैटेल ने कहा है कि, “आर्थिक परिस्थितियाँ राज्य के संगठन, विकास एवं क्रियाकलापों पर प्रभाव डालती हैं और प्रत्युत्तर में राज्य अपने कानूनों द्वारा आर्थिक परिस्थितियों को बदलता है।” वहीं गार्नर ने भी ठीक कहा है कि, “बहुत-सी आर्थिक समस्याओं का समाधान राजनीतिक संस्थाओं द्वारा किया जाना आवश्यक है, जबकि दूसरी ओर राज्य से सम्बन्धित बहुत-सी समस्याओं की उत्पत्ति का कारण आर्थिक होता है।”

दोनों विषयों में घनिष्ठता का प्रमुख कारण यह है कि दोनों विषये समान रूप से मानव का अध्ययन करते हैं। दोनों का उद्देश्य मानव कल्याण है, दोनों विषयों की विषयवस्तु में साम्यता दिखाई देती है। साम्यवाद, समाजवाद, पूँजीवाद एवं सार्वजनिक वित्त ऐसे कुछ विषय हैं, जो अर्थशास्त्र व राजनीति विज्ञान में पढ़ाए जाते हैं। वर्तमान समय में लोककल्याणकारी अवधारणा, उदारवाद एवं भूमण्डलीकरण जैसे विषय समान रूप से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान से सम्बन्धित हैं। इस प्रकार दोनों विषयों में विषयवस्तु के आधार पर समानता दिखाई देती है।

प्रश्न 6.
अर्थशास्त्र का राजनीति विज्ञान को देन का उल्लेख कीजिए।
अथवा
अर्थशास्त्र ने राजनीतिशास्त्र को किस प्रकार प्रभावित किया है? बताइए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र ने राजनीति विज्ञान को विभिन्न रूपों में प्रभावित किया है। अर्थशास्त्र द्वारा राजनीति विज्ञान को दी जाने वाली देन का अध्ययन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है

(i) राज्य की उत्पत्ति एवं विकास में आर्थिक क्रियाओं की भूमिका – प्राचीनकाल से ही राज्य की उत्पत्ति एवं उसके विकास में आर्थिक क्रियाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वर्तमान समय में भी आर्थिक क्रियाएँ राजनीतिक संस्थाओं के विकास में सहायक बन रही हैं। मार्क्स के अनुसार, “आदिम समाज में जब निजी सम्पत्ति की संस्था उत्पन्न हुई, तो राज्य का उदय हुआ और जब भी समाज के आर्थिक ढाँचे में परिवर्तन हुआ तो राज्य के संगठन पर भी उसका प्रभाव पड़ा।”

(ii) राज्य के कार्यों व नीतियों पर आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव – किसी भी राज्य के क्रियाकलापों एवं उसकी नीतियों के पीछे आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव होता है। हिटलर ने आर्थिक प्रभुत्व की कोशिश में विश्वयुद्ध की विभीषिका में दुनिया को झोंक दिया। आज भी वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की नीतियाँ न केवल अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति बल्कि राज्यों की आन्तरिक घरेलू राजनीति व निर्णयों को भी प्रभावित करती हैं।

(iii) क्रान्ति, विद्रोह, युद्धों एवं आन्दोलनों को प्रमुख कारण आर्थिक असन्तोष होना – आर्थिक कारणों से किसी भी देश एवं समाज में क्रान्ति, विद्रोह, युद्ध अथवा आन्दोलन आदि की परिस्थितियों का निर्माण होता है। प्रायः राजनीतिक असन्तोष का मुख्य कारण आर्थिक असन्तोष होता है। 1789 की फ्रांसीसी क्रान्ति तथा 1917 की सोवियत साम्यवादी क्रान्ति का मूल कारण तत्कालीन आर्थिक दुरावस्था ही थी।

प्रश्न 7.
राजनीति विज्ञान की अर्थशास्त्र को देन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान की अर्थशास्त्र को देन-राजनीतिक दशाएँ, व्यवस्था एवं निर्णय अर्थव्यवस्था को निश्चित रूप से प्रभावित करते हैं। राजनीति विज्ञान की अर्थशास्त्र को देन का उल्लेख निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है
(i) अर्थव्यवस्था का स्वरूप राज्य की नीतियों पर निर्भर – किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का स्वरूप केसा होगा, इसका निर्धारण उस देश की शासन व्यवस्था और उसकी नीतियों पर निर्भर करता है। समाजवादी देशों में आर्थिक जीवन पर राज्य का नियन्त्रण बढ़ जाता है, जबकि पूँजीवाद देशों में आर्थिक जीवन पर राज्य का नियन्त्रण नहीं होता है। सरकार द्वारा अपनाई जाने वाली कर व्यवस्था, निवेश नीति, मुद्रा प्रणाली, आयात – निर्यात, उद्योग, कृषि आदि नीतियों से देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।

(ii) वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण प्रणाली शासन के स्वरूप पर निर्भर – किसी भी देश में उत्पादन के साधनों, वस्तुओं का उत्पादन का वितरण शासन के स्वरूप पर निर्भर करता है। समाजवादी राज्यों में उत्पादन के साधनों एवं वितरण पर राज्य का नियन्त्रण होता है, जबकि पूँजीवादी राज्यों में उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर व्यक्तियों का निजी नियन्त्रण होता है, राज्य का नियन्त्रण नहीं होता।

(iii) राज्य के आर्थिक विकास पर प्रशासन के स्तर का प्रभाव – राज्य के आर्थिक विकास पर प्रशासन के स्तर का प्रभाव पड़ता है। उच्च स्तर के प्रशासनिक ढाँचे द्वारा अपने दायित्वों को कुशलतापूर्वक निभाने से आर्थिक विकास तीव्र होगा। वहीं प्रशासनिक ढाँचे के भ्रष्ट होने पर आर्थिक विकास में रुकावट आएगी।

(iv) आर्थिक समस्याओं का कारण एवं समाधान राज्य पर निर्भर-राज्य जिन समस्याओं का समाधान करता है उनमें से अधिकांशतः आर्थिक प्रकृति की होती हैं। उदाहरण के रूप में; करारोपण, बेरोजगारी, श्रम, कर पद्धति, उदारीकरण, अनुदान आदि।

प्रश्न 8.
किन-किन सन्दर्भो में नीतिशास्त्र ने राजनीति विज्ञान को प्रभावित किया है? बताइए।
उत्तर:
नीतिशास्त्र ने राजनीति विज्ञान को निम्नलिखित सन्दर्भो में प्रभावित किया है
(i) राज्य के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता देना – वही देश सर्वाधिक उन्नति करता है जिसके नागरिक आदर्श आचरण करते हों। प्रत्येक राज्य का लक्ष्य अधिकाधिक आदर्श नागरिक तैयार करना होता है। राज्य अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति नीतिशास्त्र के द्वारा ही प्राप्त कर सकता है। राज्य के आदर्श स्वरूप की कल्पना भी नीतिशास्त्र द्वारा ही प्रेरित होती है। लार्ड एक्टन ने ठीक ही कहा है, “राजनीतिशास्त्र नैतिक सिद्धान्त के बिना व्यर्थ है।”

(ii) नीतिशास्त्र का व्यापक रूप ही राजनीति है – नीतिशास्त्र का सम्बन्ध व्यक्तिगत नैतिकता से होता है, लेकिन जब उन्हीं बातों का सम्बन्ध समाज से होता है तथा व्यक्तिगत नैतिकता को सामाजिक जीवन में लागू किया जाता है तो वह राजनीति विज्ञान का विषय बन जाता है।

(iii) कानूनों का आधार नैतिक बल – यद्यपि राज्य के पास असीमित विधिक प्रभुसत्ता होती है, फिर भी व्यवहार में राज्य ऐसे कानूनों को लागू नहीं कर सकता जिनके पीछे नैतिक बल नहीं होता है। क्योंकि नैतिकताविहीन कानून विद्रोहों और आन्दोलनों को जन्म देते हैं। महात्मा गाँधी के अनुसार, “कानून नैतिकता पर आधारित होना चाहिए और यदि कानून नैतिकताविहीन है तो नागरिकों को कानून की सविनय अवज्ञा का अधिकार है।” गैटेल के अनुसार, “जब नैतिक विचार स्थायी और प्रचलित हो जाते हैं, तो कानून का रूप ले लेते हैं।”

प्रश्न 9.
“राजनीतिशास्त्र भी नीतिशास्त्र को प्रभावित करता है। कैसे? बताइए।
उत्तर:
राजनीतिशास्त्र एवं नीतिशास्त्र का सम्बन्ध एक पक्षीय नहीं है, राजनीति विज्ञान भी नीतिशास्त्र को विभिन्न रूपों में प्रभावित करता है, जिसका वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के रूप में प्रस्तुत है
(i) राज्य नैतिक जीवन के लिए वातावरण का निर्माण करता है – मनुष्य का नैतिक कल्याण राज्य के सहयोग के बिना असम्भव है। राजनीति शास्त्र उस व्यावहारिक वातावरण का निर्माण करता है जिसमें समाज नैतिक जीवन व्यतीत कर सके। राज्य शान्ति और व्यवस्था बनाए रखता है, बाह्य आक्रमणों एवं आन्तरिक शत्रुओं से समाज की रक्षा करता है।

(ii) राज्य द्वारा नैतिक मूल्यों को लागू करना – प्रत्येक समाज में अनेक कुरीतियाँ परम्परागत नैतिक मूल्यों के रूप में उपस्थित रहती हैं जो कि समाज की प्रगति में बाधक होती हैं। राज्य इस प्रकार की अवास्तविक नैतिक मान्यताओं को समाप्त करता है तथा उनके स्थान पर कानून के सहयोग से विवेकपूर्ण नैतिक मूल्यों की स्थापना करता है। हीगल व बोसांके जैसे विचारकों ने ठीक ही कहा है कि, “राज्य स्वयं नैतिकता का मूर्त रूप है जो कि नैतिकता का निर्धारण करता है। राज्य नैतिकता से ऊपर है और सही अर्थ में वह नैतिक भावना व मूल्यों को जन्म देता है।”

प्रश्न 10.
राजनीतिशास्त्र व नीतिशास्त्र में आधारभूत अन्तर बताइए। यवा राजनीति विज्ञान और नीतिशास्त्र में भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिशास्त्र व नीतिशास्त्र में आधारभूत अन्तर:
राजनीतिशास्त्र और नीतिशास्त्र में पारस्परिक अन्तर्निर्भरता होते हुए भी मौलिक अन्तर (भेद) दिखाई देता है। जिसका वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है

  1. क्षेत्र का अन्तर – राजनीति शास्त्र का क्षेत्र सीमित हैं जबकि नीतिशास्त्र का क्षेत्र व्यापक है। राजनीतिशास्त्र केवल राजनीतिक कार्यों, राजनीतिक आचरण एवं राजनीतिक पक्ष का ही अध्ययन करता है, जबकि नीतिशास्त्र सम्पूर्ण सामाजिक वैयक्तिक जीवन से सम्बन्धित है।
  2. प्रकृति का अन्तर – राजनीति शास्त्र एक वर्णनात्मक और व्यावहारिक शास्त्र है, जबकि नीतिशास्त्र केवल आदर्शात्मक एवं सैद्धान्तिक शास्त्र है। राजनीति शास्त्र का सम्बन्ध मूर्त आकार व प्रत्यक्ष बातों से है, जबकि नीतिशास्त्र का सम्बन्ध अमूर्त निराकार एवं अप्रत्यक्ष बातों से है।
  3. भौतिक व नैतिक बल की दृष्टि से अन्तर – राजनीतिक आदेशों एवं कानूनों के पीछे राज्य की भौतिक शक्ति कार्य करती है, जबकि नैतिक मूल्यों व नियमों के पीछे मात्र नैतिक बल होता है।

प्रश्न 11.
मनोविज्ञान की राजनीति विज्ञान को देन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मनोविज्ञान की राजनीति विज्ञान को देन – मनोविज्ञान, राजनीति विज्ञान पर प्रभाव डालता है। मनोविज्ञान की राजनीति विज्ञान को देन को उल्लेख निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है
(i) मनोविज्ञान, राजनीति विज्ञान का आधार – राज्य और उसकी संस्थाओं को भली-भाँति समझने के लिए मनोविज्ञान आधार प्रदान करता है। ब्राइस नामक राजनीतिक विचारक ने ठीक ही कहा है कि, “राजनीति शास्त्र की जड़ें मनोविज्ञान में निहित हैं।” इसका आशय है कि राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन सामाजिक मनोविज्ञान के सन्दर्भ में किया जाना चाहिए।

(ii) राजनीतिक अनुसन्धान में मनोवैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग – राजनीति में मनोवैज्ञानिक तथ्यों की बढ़ती हुई उपयोगिता को स्वीकारते हुए वर्तमान राजनीतिविज्ञानी मनोवैज्ञानिक अध्ययन पद्धति के प्रयोग पर बल देने लगे हैं। यह पद्धति किसी राष्ट्र की जनता के राजनीतिक व्यवहार का विश्लेषण करती है तथा इससे प्राप्त मनोवैज्ञानिक तथ्यों को राजनीति विज्ञान में उपयोग किया जाता है।

(iii) क्रान्ति से सुरक्षा हेतु मनोविज्ञान आवश्यक – राज्य और सरकार की स्थिरता का आधार मनोविज्ञान है। जब शासन की नीतियाँ जनता के मनोविज्ञान के अनुसार निर्धारित की जाती हैं तो जन असन्तोष जन्म नहीं लेता और क्रान्ति की सम्भावना भी सीमित हो जाती है। वहीं जब शासन जनता के मनोविज्ञान की उपेक्षा करता है तो क्रान्ति और जन – आन्दोलन जन्म लेते हैं। उदाहरण के लिए, फ्रांस में 1789 ई. की क्रान्ति के मूल में शासकों द्वारा जनता के मनोविज्ञान की उपेक्षा निहित थी।

प्रश्न 12.
राजनीति विज्ञान की मनोविज्ञान को देन का उल्लेख कीजिए।
अथवा
राजनीति विज्ञान का मनोविज्ञान को योगदान बताइए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान की मनोविज्ञान को देन/योगदान – राजनीति विज्ञान भी मनोविज्ञान को प्रभावित करता है। राजनीति विज्ञान की मनोविज्ञान को देन/योगदान का उल्लेख निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है
(i) मनोविज्ञान को अध्ययन सामग्री प्रदान करना – राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान को राजनीतिक क्रियाकलापों से सम्बन्धित अध्ययन सामग्री प्रदान करता है। मनोविज्ञान व्यक्ति के मन की क्रियाओं तथा उसके बाह्य व्यवहार का अध्ययन है। मानव के राजनीतिक व्यवहार से सम्बन्धित तथ्यों का संग्रह करने के लिए मनोविज्ञान, राजनीति विज्ञान की सहायता लेता है। राजनीति विज्ञान के ज्ञान के अभाव में मनोविज्ञान का अध्ययन अधूरा होता है।

(ii) सामाजिक मनोविज्ञान को प्रभावित क़रना – राजनीति विज्ञान समाज के मनोविज्ञान को भी प्रभावित करता है। प्रत्येक देश की शासन व्यवस्था का वहाँ की जनता के विचारों एवं आचरण पर प्रभाव पड़ता है। शासन प्रणाली का स्वरूप एवं राजनीतिक दर्शन वहाँ के लोगों के मनोविज्ञान को प्रभावित करते हैं।

लोकतान्त्रिक शासन में नागरिकों का व्यवहार सैनिक शासन में रहने वाले नागरिकों से भिन्न होता है। उदाहरण के लिए; द्वितीय विश्वयुद्ध से पूर्व नाजी जर्मनी, फासिस्ट इटली एवं जापान की अधिनायकवादी व्यवस्थाओं ने इन देशों की जनता को साम्राज्यवादी व युद्धप्रिय बनाया था। किन्तु आज इन देशों में लोकतन्त्र है तथा इनकी जनता शान्तिप्रिय और मानवतावादी है।

प्रश्न 13.
राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान में कोई दो अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान में अन्तर – राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान परस्पर सम्बन्धित हैं किन्तु राजनीति केवल मनोविज्ञान पर निर्भर नहीं है। राजनीति के सामाजिक एवं आर्थिक पक्ष भी होते हैं। अतः दोनों में मूलभूत अन्तर निम्नलिखित हैं
(i) अध्ययन क्षेत्र में अन्तर – राजनीति विज्ञान मात्र बाह्य राजनीतिक क्रियाओं का अध्ययन करता है, जबकि मनोविज्ञान व्यक्ति की समस्त मानसिक क्रियाओं का अध्ययन आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टि से करता है।

(ii) प्रकृति में अन्तर – राजनीति विज्ञान यथार्थवादी होने के साथ-साथ एक आदर्शवादी विज्ञान भी है, जबकि मनोविज्ञान मानव व्यवहार एवं स्वभाव का यथार्थवादी अध्ययन करता है। राजनीति विज्ञान राजनीतिक जीवन के सन्दर्भ में क्या था, क्या है, एवं क्या होना चाहिए का अध्ययन करता है, जबकि मनोविज्ञान मनुष्य की मनोवृत्ति क्या थी और क्या है।

का अध्ययन करता है, किन्तु यह विचार नहीं करता है कि उसे क्या होना चाहिए।’ कैटलिन नामक राजनीतिक विचारक ने दोनों के अन्तर को स्पष्ट करते हुए ठीक ही कहा है कि “मनोविज्ञान मानसिक क्रियाओं का अध्ययन है, जबकि राजनीति विज्ञान संकल्पबद्ध कार्यों का अध्ययन है।”

प्रश्न 14.
अध्ययन के स्वरूप की समानता के आधार पर दर्शनशास्त्र और राजनीतिशास्त्र का पारस्परिकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अध्ययन के स्वरूप की समानता के आधार पर राजनीतिशास्त्र और दर्शनशास्त्र में पारस्परिक सम्बन्ध दिखाई देते हैं। दर्शनशास्त्र जीवन और जगत की प्रकृति तथा उसके मूल सम्बन्धी मानव की खोज से सम्बन्धित शास्त्र है। यह अनुशासन उन सिद्धान्तों का अध्ययन करता है जिनका प्रतिपादन सृष्टि, जीवन और जगत के सम्बन्ध में किया गया है।

राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत अध्ययन किये जाने वाले राजनीतिक जीवन’ और ‘राजनीतिक विश्व’ उस विश्व का ही भाग है, जिसकी प्रकृति एवं मूल की खोज दर्शनशास्त्र के अध्ययन का विषय है। दर्शनशास्त्र सैद्धान्तिक तथा वैचारिक अध्ययन का विषय है। जीवन, प्रकृति एवं उसका मूल तत्व चेतन, अचेतन एवं द्वैतवाद आदि दर्शनशास्त्र के प्रमुख अध्ययन विषय हैं। यद्यपि राजनीति विज्ञान का समस्त अध्ययन विषय मात्र सैद्धान्तिक और वैचारिक नहीं है।

वर्तमान में राजनीति विज्ञान में व्यावहारिक राजनीति के अध्ययन पर अधिक बल दिया जाता है। लेकिन आज भी सैद्धान्तिक अध्ययन इस विषय के सम्पूर्ण अध्ययन का एक प्रमुख भाग बना हुआ है। राज्य की उत्पत्ति, राज्य के उद्देश्य, स्वतन्त्रता, समानता, विधि, सम्प्रभुता आदि अनेक राजनीतिक धारणाओं तथा राजनीतिक विचारधाराओं का अध्ययन इस विषय में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।

प्रश्न 15.
दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में अन्तर:
दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में पास्परिक अन्तर्निर्भरता होते हुए भी मौलिक अन्तर विद्यमान हैं जो निम्न प्रकार हैं
(i) क्षेत्र का अन्तर – दर्शनशास्त्र सम्पूर्ण जीवन जगत तथा सृष्टि के नियामक तत्व का अध्ययन करता है, जबकि राजनीति विज्ञान के अध्ययन का क्षेत्र मुख्य रूप से मानव का राजनीतिक जीवन और राजनीतिक विश्व है।

(ii) प्रकृति में अन्तर – दर्शनशास्त्र की मूल प्रकृति सैद्धान्तिक एवं वैचारिक है, जबकि राजनीति विज्ञान की प्रकृति सैद्धान्तिक और वैचारिक ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक अध्ययन तथा तथ्यात्मक विश्लेषण भी उसकी प्रकृति का एक प्रमुख अंग है। दर्शनशास्त्र का सम्बन्ध मुख्य रूप से निराकार, अमूर्त एवं अप्रत्यक्ष बातों से है, जबकि राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध मुख्य रूप से साकार, मूर्त एवं प्रत्यक्ष बातों से है।

प्रश्न 16.
भूगोल और राजनीति विज्ञान में भेद कीजिए।
अथवा
भूगोल और राजनीति शास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूगोल और राजनीति विज्ञान में भेद (अन्तर)-भूगोल और राजनीति विज्ञान में घनिष्ठ सम्बन्ध है, परन्तु फिर भी इन दोनों विषयों को एक नहीं माना जा सकता, इनमें कुछ मौलिक अन्तर निम्नलिखित हैं

  1. विषयवस्तु में अन्तर- भूगोल के अन्तर्गत विभिन्न देशों की प्राकृतिक दशा, जलवायु, वनस्पति, भूमि आदि का अध्ययन किया जाता है, जबकि राजनीति विज्ञान एक समाज विज्ञान है। इसके अन्तर्गत राज्य, सरकार एवं विधि का अध्ययन किया जाता है।
  2. प्रकृति में अन्तर – भूगोल एक तथ्यात्मक विज्ञान है। यह ठोस तथ्यों से सम्बन्धित है, जबकि राजनीति विज्ञान एक आदर्शात्मक एवं विवरणात्मक विज्ञान है। यह तथ्यों के साथ-साथ आदर्श का भी चित्रण करता है।
  3. निश्चितता में अन्तर – भूगोल एक निश्चित विज्ञान है। इसके अन्तर्गत नियमों में निश्चितता रहती है, जबकि राजनीति विज्ञान अनिश्चित विज्ञान है। इसके अन्तर्गत नियमों में निश्चितता नहीं रहती है।

प्रश्न 17.
गणनाशास्त्र और राजनीति विज्ञान का पारस्परिक क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
गणनाशास्त्र और राजनीति विज्ञान में पारस्परिक सम्बन्ध – गणनाशास्त्र और राजनीति विज्ञान में घनिष्ठ सम्बन्ध है। गणनाशास्त्र को सांख्यिकी भी कहा जाता है। यह एक विज्ञान और कला है जिसमें किसी अनुसन्धान क्षेत्र से सम्बन्धित तथा विविध कारणों द्वारा प्रभावित, सामूहिक संख्यात्मक तथ्यों के संकलन, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण एवं निर्वचन की रीतियों का विधिवत् अध्ययन किया जाता है। राजनीति विज्ञान द्वारा प्राप्त तथ्यों को गणना द्वारा ही अभिव्यक्त किया जाता है।

कानून का निर्माण करने में, नीति निर्धारण में एवं राजशक्ति का प्रयोग करने में गणनाशास्त्र (सांख्यिकी) का ही क्रियात्मक प्रयोग होता है। जब कोई विषय व्यवस्थापिका के समक्ष विचार के लिए लाया जाता है तो गणनाशास्त्र की सहायता से ही उसके पक्ष या विपक्ष में विचार किया जाता है। किसी भी राज्य की सरकार जब कानून का निर्माण करती है तथा जिस नीति का अनुसरण करती है और जो कार्य करती है, उनका क्या परिणाम होता है इसका आंकलन भी गणनाशास्त्र की सहायता से ही होता है।

शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार द्वारा किए गए प्रयासों के फलस्वरूप साक्षरता के प्रतिशत में कितनी वृद्धि हुई है अथवा बीमारियों में कितने प्रतिशत की कमी हुई है, इस तथ्य का ज्ञान की गणनाशास्त्र द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। जन्म, मृत्यु, विवाह, तलाक आदि विभिन्न विषयों की गणनाएँ राज्य की नीति निर्धारण में बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस प्रकार राजनीति विज्ञान और गणनाशास्त्र में निकट सम्बन्ध स्थापित है।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, स्पष्ट कीजिए।
अथवा
राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र की पारस्परिकता का वर्णन कीजिए।
अथवा
राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र का सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
अथवा
समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान के अन्तर्सम्बन्ध का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिविज्ञान और समाजशास्त्र की पारस्परिकता / अन्तर्सम्बन्ध:
राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध है। ये दोनों एक – दूसरे पर आश्रित हैं क्योंकि राज्य एक सामाजिक – राजनीतिक संस्था है। समाजशास्त्र मौलिक सामाजिक विज्ञान है। समाजशास्त्र समाज से सम्बन्धित समस्त विषयों का अध्ययन करता है। राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध सामाजिक जीवन के राजनीतिक आयाम से है।

अत: राजनीति विज्ञान भी समाजशास्त्र का ही एक भाग है। समाजशास्त्र समस्त सामाजिक विज्ञानों की जननी है जिनका मनुष्य के अध्ययन के साथ सम्बन्ध है। इस प्रकार समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान की भी जननी है। राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र की पारस्परिकता अथवा सम्बन्ध निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है

(i) समाजशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन – समाजशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र बहुत विस्तृत है। इसके अन्तर्गत मानव के समस्त सामाजिक सम्बन्धों, यथा-राजनैतिक, आर्थिक, नैतिक आदि पर विचार किया जाता है। यदि इस अर्थ में देखा जाए तो समाजशास्त्र को अन्य सामाजिक विज्ञानों के समान ही राजनीति विज्ञान का भी आधार कहा जा सकता है। समाजशास्त्र ने राजनीति विज्ञान के अध्ययन में बहुत अधिक सहायता प्रदान की है।

राज्य की उत्पत्ति, विकास एवं संगठन आदि को समझने में राजनीति विज्ञान को समाजशास्त्र से अत्यधिक सहयोग प्राप्त हुआ है। राजनीतिशास्त्रियों ने अनेक नवीन अध्ययन पद्धतियों और सिद्धान्त, जैसे – व्यवहारवाद, समूह सिद्धान्त, राजनीतिक व्यवस्था सिद्धान्त एवं राजनीतिक विकास सिद्धान्त आदि समाजशास्त्र से ही राजनीति विज्ञान में अपनाए गए हैं। यह समाजशास्त्र का ही प्रभाव है कि आधुनिक राजनीति विज्ञान में राजनीतिक संस्थाओं के स्थान पर राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन पर विशेष बल दिया जाता है।

(ii) राजनीति विज्ञान की समाजशास्त्र को देन – राजनीति विज्ञान भी समाजशास्त्र को अध्ययन सामग्री प्रदान करता है। राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र को वे तथ्य प्रदान करता है जिनकी सहायता से समाजशास्त्र समाज के राजनीतिक जीवन का कुशलतापूर्वक अध्ययन करता है।

समाजशास्त्र राज्य की उत्पत्ति, संगठन व कार्य आदि का ज्ञान राजनीति विज्ञान से ही प्राप्त करता है। राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र की पारस्परिक घनिष्ठता के सम्बन्ध में एच, गिडिंग्स ने ठीक ही कहिा है कि, “समाजशास्त्र के प्राथमिक सिद्धान्तों से अन्जान व्यक्ति को राजनीति शास्त्र पढ़ाना वैसा ही है जैसा कि न्यूटने के गति सम्बन्धी नियमों से अन्जान व्यक्ति को अन्तरिक्ष शास्त्र या ऊष्मागतिकी पढ़ाना।”

प्रो. केटलिन नामक राजनीति विचारक ने तो यहाँ तक कहा है कि, “राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र अभिन्न हैं और वास्तव में ये एक ही वस्तु के दो पहलू हैं। इसलिए कहा गया है कि समाजशास्त्री को राजनीतिशास्त्री भी होना चाहिए। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान का पारस्परिक सहयोग ज्ञान के विकास के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
राजनीति शास्त्र और समाजशास्त्र के मध्य भेद को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र में अन्तर / भेद राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र में अन्तर्सम्बद्धता है एवं दोनों में अन्तर की स्पष्ट सीमा रेखा खींचना सम्भव नहीं है। इसके बावजूद दोनों के मध्य महत्त्वपूर्ण अन्तर / भेद निम्नलिखित हैं।
(i) क्षेत्र के आधार पर अन्तर – राजनीति विज्ञान का क्षेत्र संकीर्ण है, जबकि समाजशास्त्र का क्षेत्र व्यापक है। राजनीति विज्ञान मनुष्य के केवल राजनीतिक सम्बन्धों, राज्य एवं उसकी शासन व्यवस्था का ही अध्ययन करता है, जबकि समाजशास्त्र समाज के समस्त पक्षों एवं मनुष्य के सभी सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। गिलक्राइस्ट नामक राजनीतिक विचारक ने राजनीति विज्ञान को एक विशिष्ट शास्त्र तथा समाजशास्त्र को एक विस्तृत शास्त्र माना।

(ii) उद्देश्य के आधार पर अन्तर – राजनीति विज्ञान एक आदर्शात्मक विज्ञान है, जबकि समाजशास्त्र वर्णनात्मक विज्ञान है। समाजशास्त्र केवल इस बात का अध्ययन करता है कि क्या हो चुका है और क्या हो रहा है। समाजशास्त्र इस
आदर्श का अध्ययन नहीं करता है कि क्या होना चाहिए परन्तु राजनीति विज्ञान इस बात की विवेचना भी करता है कि क्या होना चाहिए। राजनीति विज्ञान का उद्देश्य एक आदर्श स्वरूप की प्राप्ति है।

(iii) विषयवस्तु के आधार पर अन्तर – राजनीति विज्ञान मानव जीवन के राजनीतिक पक्ष का अध्ययन करता है, इसके अध्ययन का मुख्य विषय राज्य है, जबकि समाजशास्त्र मानव जीवन के समस्त पक्षों का अध्ययन करता है। इसमें मानव तथा सामाजिक संस्थाओं के विकास और उत्पत्ति के कारणों की खोज की जाती है। इस प्रकार समाजशास्त्र के अध्ययन का विषय व्यक्ति और समाज है। राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र की तरह सामाजिक तत्वों की खोज नहीं करता है।

वह तो प्रारम्भ से ही यह मानकर चलता है कि मानव एक सामाजिक प्राणी है। राजनीति विज्ञान का प्रारम्भ ही मानव को राजनीतिक प्राणी मानकर होता है, जबकि समाजशास्त्र इससे पहले की स्थिति का विवेचन कर यह बताता है कि मानव क्यों और केसे राजनीतिक प्राणी बना? राजनीति विज्ञान मानव के चेतन कार्यों का ही अध्ययन करता है, जबकि समाजशास्त्र मानव के चेतन और अचेतन समस्त प्रकार के कार्यों का अध्ययन करता है।

(iv) प्राचीनता के आधार पर अन्तर – समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान की अपेक्षा अधिक प्राचीन है। राजनीति विज्ञान का जन्म समाजशास्त्र के पश्चात् ही हुआ है। समाजशास्त्र संगठित समुदायों के अतिरिक्त असंगठित समुदायों का भी अध्ययन करता है। राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध केवल संगठित समाज से ही होता है।

(v) दृष्टिकोण के आधार पर अन्तर – राजनीति विज्ञान में मनुष्यों के कानूनी एवं वास्तविक सम्बन्धों का विवेचन होता है, जबकि समाजशास्त्र कानूनी सम्बन्धों के साथ-साथ रीति – रिवाजों, व्यवहारों, शिष्टाचार, नैतिकता, धार्मिक एवं आर्थिक जीवन के विकास का भी अध्ययन करता है।

प्रश्न 3.
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र की पारस्परिकता का वर्णन कीजिए।
अथवा
अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान एक-दूसरे के सहायक एवं पूरक हैं।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के घनिष्ठ सम्बन्ध को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र की पारस्परिकता / सम्बन्ध राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र का घनिष्ठ सम्बन्ध है।
प्राचीन यूनान में दोनों विषयों को राजनीतिक अर्थशास्त्र’ के रूप में जाना जाता था। दोनों विषय एक – दूसरे के सहायक एवं पूरक हैं। दोनों एक-दूसरे पर अत्यधिक प्रभाव डालते हैं।

दोनों के घनिष्ठ सम्बन्धों को गैटेल नामक राजनीतिक विचारक ने इस प्रकार व्यक्त किया है-“आर्थिक परिस्थितियाँ राज्य के संगठन, विकास तथा क्रियाकलापों पर प्रभाव डालती हैं और प्रत्युत्तर में राज्य अपने कानूनों द्वारा आर्थिक परिस्थितियों को बदलता है।” इसी सम्बन्ध में गार्नर का कथन भी उल्लेखनीय है कि “बहुत-सी आर्थिक समस्याओं का समाधान राजनीतिक संस्थाओं द्वारा किया जाना आवश्यक है, जबकि दूसरी ओर राज्य से सम्बन्धित बहुत भी समस्याओं की उत्पत्ति का कारण आर्थिक होता है।”

(1) अर्थशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन अर्थशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन का अध्ययन निम्न बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है
(i) राज्य की उत्पत्ति एवं विकास में आर्थिक क्रियाओं की भूमिका – राज्य की उत्पत्ति और उसके विकास में आर्थिक क्रियाओं की प्रभावी भूमिका रही है। आज भी राजनीतिक संस्थाओं के विकास में आर्थिक क्रियाएँ सहयोग की। भूमिका निभा रही हैं। मार्क्स के अनुसार, “आदिम समाज में जब निजी सम्पत्ति की संस्था उत्पन्न हुई तो राज्य का जन्म हुआ और जब भी समाज के आर्थिक ढाँचे में परिवर्तन हुआ तो राज्य के संगठन पर भी उसका प्रभाव पड़ा।”

(ii) राज्य के क्रियाकलापों के पीछे आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव – राज्य के क्रियाकलापों एवं उसकी नीतियों के पीछे आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव होता है। उदाहरण के रूप में, हिटलर ने आर्थिक प्रभुत्व की कोशिश में सम्पूर्ण विश्व को विश्वयुद्ध की विभीषिका में झोंक दिया था। यूरोपीय देशों ने स्वयं के आर्थिक स्वार्थों से प्रेरित होकर सामाज्यवादी नीतियों का अनुसरण किया।

आज भी वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की नीतियाँ न केवल अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित कर रही हैं वरन् राज्यों की घरेलू राजनीतिक निर्णयों को भी प्रभावित करती हैं। आर्थिक परिस्थितियाँ ही विभिन्न देशों के कानूनों पर भी प्रभाव डालती हैं। भारत सरकार द्वारा अपनाए गए गरीबी हटाओ कार्यक्रम, भूमि सुधार जैसे कानून आर्थिक कल्याण से ही प्रेरित रहे हैं।

(iii) क्रान्ति, विद्रोह एवं आन्दोलन का आर्थिक आधार होता है-आर्थिक कारणों से किसी भी देश और समाज में क्रान्ति, विद्रोह अथवा आन्दोलन की परिस्थितियों का निर्माण होता है। राजनीतिक इतिहास के अध्ययन से ज्ञात होता है। कि राजनीतिक क्रान्तियों व युद्धों का प्रमुख कारण भी आर्थिक असन्तोष होता है। महान् यूनानी दार्शनिक अरस्तु ने आर्थिक विषमता को ही क्रान्ति का मूल कारण माना है।

1789 ई. की फ्रांस की राज्य क्रान्ति का प्रमुख कारण आर्थिक असन्तोष ही था। 1917 ई. की सोवियत संघ की साम्यवादी क्रान्ति का मूल कारण तत्कालीन आर्थिक दुरावस्था ही थी। जर्मनी में नाजी तानाशाही, इटली में फासिस्ट तानाशाही एवं स्पेन में गृह युद्ध का प्रमुख कारण आर्थिक असन्तोष ही था। इसी प्रकार पश्चिमी पाकिस्तान के आर्थिक शोषण ने पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह को जन्म दिया और वह बांग्लादेश के रूप में एक स्वतन्त्र देश बना।

(2) राजनीति विज्ञान की अर्थशास्त्र को देन:
राजनीतिक दशाएँ, व्यवस्था एवं निर्णय अर्थव्यवस्था को निश्चित रूप में प्रभावित करते हैं। राजनीति विज्ञान की अर्थशास्त्र को देन का उल्लेख निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है।

(i) अर्थव्यवस्था का स्वरूप राज्य की नीतियों पर निर्भर-किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का स्वरूप कैसा होगा, इसका निर्धारण उस देश की शासन व्यवस्था और उसकी नीतियों पर निर्भर करता है। पूँजीवादी देशों में आर्थिक जीवन पर राज्य का नियन्त्रण नहीं होता, जबकि समाजवादी देशों में आर्थिक जीवन पर राज्य का नियन्त्रण बढ़ जाता है।

(ii) राज्य के आर्थिक विकास पर प्रशासन के स्तर का प्रभाव – राज्य के आर्थिक विकास पर प्रशासन के स्तर का प्रभाव पड़ता है। यदि प्रशासनिक ढाँचा उच्च स्तर का है और अपने दायित्वों को कुशलतापूर्वक निभाने में समर्थ है तो आर्थिक विकास शीघ्र होगा। वहीं यदि प्रशासनिक ढाँचा भ्रष्ट है तो आर्थिक विकास में निश्चित रूप से रुकावट आएगी।

(iii) आर्थिक समस्याओं का कारण एवं समाधान राज्य पर निर्भर – राज्य जिन समस्याओं का समाधान करता है उनमें से अधिकांशतः आर्थिक प्रकृति की होती हैं। करारोपण, बेरोजगारी, मजदूरी, पेन्शन, कर पद्धति, अनुदान, कृषि नीति, उद्योग नीति, बजट निर्माण, सार्वजनिक ऋण, उदारीकरण आदि समस्याएँ आर्थिक प्रकृति की होती हैं। राज्य नीतियों द्वारा ही इनके समाधान का प्रयास करता है।

(iv) वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण की प्रणाली शासन के स्वरूप पर निर्भर – किसी भी देश में उत्पादन के साधन, वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण शासन के स्वरूप पर निर्भर करता है। समाजवादी राज्यों में उत्पादन के साधनों एवं वितरण पर राज्य का नियन्त्रण होता है, जबकि पूँजीवादी राज्यों में उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर निजी नियन्त्रण होता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, दोनों ही शास्त्र अपनी मूल इकाई व्यक्ति के कल्याण के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।

प्रश्न 4.
राजनीति विज्ञान और नीतिशास्त्र के मध्य अन्तर्सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
अथवा
राजनीतिशास्त्र और नीतिशास्त्र की पारस्परिकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान और नीतिशास्त्र के मध्य अन्र्तसम्बन्ध / पारस्परिकता राजनीति विज्ञान का अन्य विषयों की भाँति नीतिशास्त्र से भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। नीतिशास्त्र उचित और अनुचित पर विचार करता है तथा इसमें नैतिकता के नियमों का अध्ययन और आचरण के नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। यह मानव व्यवहार की अच्छाई-बुराई तथा आदर्शों से सम्बन्धित है। प्राचीन भारतीय विचारकों ने राजनीति विज्ञान का सदाचार और धर्म के साथ निकटता का सम्बन्ध माना है।

(1) नीतिशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन:
नीतिशास्त्र ने राजनीतिशास्त्र को अग्रलिखित सन्दर्भो में प्रभावित किया है-
(i) राज्य के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता देना-वही देश सर्वाधिक उन्नति करता है जिसके नागरिक आदर्श आचरण करते हैं। प्रत्येक राज्य का लक्ष्य अधिकाधिक आदर्श नागरिक तैयार करना होता है। राज्य अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति नीतिशास्त्र के माध्यम से ही कर सकता है।

(ii) कानूनों का आधार नैतिक बल-राज्य द्वारा जिन कानूनों का निर्माण किया जाता है उनको आधार प्रचलित नैतिक बले ही होता है। कानूनों की जन स्वीकार्यता के लिए कानून का नैतिक बल के अनुरूप होना आवश्यक होता है। जिन कानूनों के पीछे नैतिक बल नहीं होता, वे जनता द्वारा स्वीकार्य नहीं होते। इस सन्दर्भ में महात्मा गाँधी का कथन उल्लेखनीय है, उनके अनुसार, “कानून नैतिकता पर आधारित होना चाहिए और यदि कानून नैतिकताविहीन है तो नागरिकों को कानून की सविनय अवज्ञा का अधिकार है।”

(iii) नीतिशास्त्र का व्यापक रूप ही राजनीति है-नीतिशास्त्र का सम्बन्ध व्यक्तिगत नैतिकता से होता है, लेकिन उन्हीं बातों का सम्बन्ध समाज से हो जाता है तथा व्यक्तिगत नैतिकता को सामाजिक जीवन में लागू किया जाता है तब वह राजनीति विज्ञान का विषय बन जाता है।

(iv) राज्य के शिक्षक व मार्गदर्शक के रूप में कार्य करना-नीतिशास्त्र राज्य के शिक्षक व मार्गदर्शक के रूप में भी कार्य करता है। राज्य के कर्तव्य, नागरिकों के हित, राज्य का कार्य क्षेत्र, राज्य का आदर्श स्वरूप तथा आदर्श राज्य की प्राप्ति आदि बातों का निश्चय नैतिकता के आधार पर ही किया जा सकता है।

(2) राजनीति विज्ञान की नीतिशास्त्र को देन:
राजनीति विज्ञान और नीतिशास्त्र का सम्बन्ध एक पक्षीय न होकर द्विपक्षीय है। राजनीति विज्ञान भी नीतिशास्त्र को प्रभावित करता है।
(i) राज्य नैतिक जीवन के लिए परिस्थितियों का निर्माण करता है – मनुष्य का नैतिक कल्याण राज्य के सहयोग के बिना असम्भव है। राज्य शान्ति और व्यवस्था बनाए रखता है, बाह्य आक्रमणों एवं आन्तरिक शत्रुओं में समाज की रक्षा करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान उस व्यावहारिक वातावरण को जन्म देता है जिसमें समाज नैतिक जीवन व्यतीत कर सके। राज्य अनैतिक व्यक्तियों से नैतिक व्यक्तियों की रक्षा करता है।

(ii) राज्य द्वारा नैतिक मूल्यों को लागू करना – प्रत्येक समाज में अनेक कुरीतियाँ परम्परागत नैतिक मूल्यों के रूप में उपस्थित रहती हैं, ये समाज की प्रगति में बाधक होती हैं। राज्य इस प्रकार की अवास्तविक नैतिक मान्यताओं को समाप्त कर उसके स्थान पर विवेकपूर्ण नैतिक मूल्यों को कानून के सहयोग से स्थापित करता है। उदाहरण के रूप में, राज्य द्वारा भारतीय संविधान में नीति – निर्देशक तत्वों को सम्मिलित किया गया है। सती प्रथा, बाल-विवाह, दहेज प्रथा, छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने का प्रयत्न किया गया है।

प्रश्न 5.
राजनीति विज्ञान का मनोविज्ञान के साथ सम्बन्ध का विश्लेषण कीजिए।
अथवा
राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिविज्ञान और मनोविज्ञान के मध्य सम्बन्ध/प्रभाव मनोविज्ञान व्यक्ति के मन की क्रियाओं और उसके बाह्य व्यवहार का अध्ययन करता है। यह विभिन्न मानसिक अवस्थाओं में मनुष्य के आचरण पर प्रभाव डालता है। राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन दोनों विषयों की घनिष्ठता को सर्वप्रथम बेजहॉट नामक विद्वान ने अपनी पुस्तक ‘फिजिक्स एण्ड पॉलिटिक्स’ में 1873 ई. में प्रकाशित किया था। राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान परस्पर अनुपूरक व सहयोगी हैं। इन दोनों की पारस्परिकता को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है।

(1) मनोविज्ञान की राजनीति विज्ञान को देन:
(i) मनोविज्ञान, राजनीति विज्ञान का आधार है – मनोविज्ञान वास्तविक अर्थों में राजनीति विज्ञान को आधार प्रदान करता है। राज्य और उसकी संस्थाओं को अच्छी तरह समझने के लिए मनोविज्ञान आधार प्रदान करता है। ब्राइस नामक राजनीतिक विचारक ने ठीक ही कहा है कि राजनीतिशास्त्र की जड़े मनोविज्ञान में निहित हैं।”

इसका अर्थ यह है कि राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन सामाजिक मनोविज्ञान के सन्दर्भ में किया जाना चाहिए।राजनीति का अध्ययन करने से पूर्व मानव स्वभाव का अध्ययन करना आवश्यक होता है। मनोविज्ञान के द्वारा राजनीति को समझा जा सकता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि राजनेता व राजनीतिक विचारक को व्यक्तिगत और सामाजिक मनोविज्ञान का ज्ञान होना आवश्यक है।

(ii) राजनीतिक अनुसन्धान में मनोवैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग – राजनीति में मनोवैज्ञानिक तथ्यों की उपयोगिता को स्वीकारते हुए वर्तमान राजनीतिविज्ञानी राजनीतिक अनुसन्धान में मनोवैज्ञानिक अध्ययन पद्धति के प्रयोग पर जोर देने लगे हैं। मनोवैज्ञानिक पद्धति यह बताती है कि मानव के राजनीतिक व्यवहार के पीछे बुद्धि, तर्क व विवेक के स्थान पर अबुद्धिवादी भावनाओं, आदतों, प्रवृत्तियों एवं अनुकरणों के संकेत आदि तत्वों का विशेष महत्त्व होता है।

(iii) क्रान्ति से सुरक्षा हेतु मनोवैज्ञानिक ज्ञान आवश्यक – जब शासन की नीतियाँ जनता के मनोविज्ञान के अनुसार निर्धारित की जाती हैं तो उन असन्तोष जन्म नहीं लेता है और क्रान्ति की सम्भावना भी सीमित हो जाती है किन्तु जब शासन जनता के मनोविज्ञान की उपेक्षा करता है तो क्रान्ति और जन-आन्दोलन जन्म लेते हैं। 1789 ई. की फ्रांस की राज्य क्रान्ति के मूल में शासकों द्वारा जनता के मनोविज्ञान की उपेक्षा करना निहित था।

(2) राजनीति विज्ञान की मनोविज्ञान को देन:
(i) मनोविज्ञान को आधार सामग्री प्रदान करना – राजनीति विज्ञान मनोविज्ञान को राजनीतिक क्रियाकलापों से, सम्बन्धित अध्ययन सामग्री प्रदान करता है जिससे मनोविज्ञान और भी अधिक समृद्ध हो जाता है। मनोविज्ञान व्यवहार का ज्ञान है। मानव के राजनीतिक व्यवहार से सम्बन्धित तथ्यों का संग्रह करने के लिए मनोविज्ञान राजनीति विज्ञान की सहायता लेता है। अतः राजनीति विज्ञान के ज्ञान के बिना मनोविज्ञान का अध्ययन अधूरा होता है।

(ii) सामाजिक मनोविज्ञान को प्रभावित करना – राजनीति विज्ञान समाज के मनोविज्ञान को भी प्रभावित करना है शासन प्रणाली का स्वरूप एवं राजनीतिक दर्शन वहाँ के लोगों के मनोविज्ञान को प्रभावित करते हैं। लोकतान्त्रिक शासन में राज्य के नागरिकों का व्यवहार सैनिक शासन में निवास कर रहे नागरिकों से भिन्न होता है। अत: कोई भी मनोवैज्ञानिक राजनीतिक अध्ययन की उपेक्षा नहीं कर सकता। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राजनीति विज्ञान और सामाजिक मनोविज्ञान परस्पर अनुपूरक व सहयोगी हैं। दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 6.
राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मनोविज्ञान और राजनीति विज्ञान में भेद बताइए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान में अन्तर/भेद राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान परस्पर सम्बन्धित, अनुपूरक व सहयोगी हैं, किन्तु राजनीति विज्ञान केवल मनोविज्ञान पर ही निर्भर नहीं है। राजनीति विज्ञान के सामाजिक एवं आर्थिक आधार भी होते हैं। अत: इन दोनों में मूलभूत अन्तर । विद्यमान हैं, जो निम्नलिखित प्रकार से हैं

(i) अध्ययन क्षेत्र की दृष्टि से अन्तर – राजनीति विज्ञान व्यक्ति की केवल राजनीतिक क्रियाओं का अध्ययन करता है जबकि मनोविज्ञान व्यक्ति के मन की क्रियाओं और उसके बाह्य व्यवहार का अध्ययन है। यह विज्ञान विभिन्न मानसिक अवस्थाओं में मनुष्य के आचरण पर प्रभाव डालता है। यह व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं का अध्ययन आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक दृष्टि से कर सकता है।

(ii) प्रकृति की दृष्टि में अन्तर – राजनीति विज्ञान यथार्थवादी होने के साथ-साथ आदर्शवादी विज्ञान भी है, जबकि मनोविज्ञान मानव व्यवहार एवं स्वभाव का यथार्थवादी अध्ययन करता है। राजनीति विज्ञान राजनीतिक जीवन के सन्दर्भ में ‘क्या था’, ‘क्या है’ एवं ‘क्या होना चाहिए’ का अध्ययन करता है, जबकि मनोविज्ञान मनुष्य की मनोवृत्ति ‘क्या थी’,

और क्या है’, का अध्ययन करता है किन्तु यह विचार नहीं करता है कि क्या होना चाहिए। कैटलिन नामक राजनीतिक विचारक ने दोनों के अन्तर को स्पष्ट करते हुए ठीक ही कहा है कि, “मनोविज्ञान मानसिक क्रियाओं का अध्ययन है, जबकि राजनीति विज्ञान संकल्पबद्ध कार्यों का अध्ययन है।”

(iii) विकास की दृष्टि से अन्तर – राजनीति विज्ञान एक अति प्राचीन शास्त्र है। एक अनुशासन के रूप में इसका पर्याप्त विकास हो चुका है। वहीं मनोविज्ञान एक नवीन शास्त्र है। यह अभी विकास की अवस्था में ही है। इसका विकास वैयक्तिक अनुभवों के आधार पर सामान्यीकरण तक ही हुआ है।

(iv) आधारभूत धारणा की दृष्टि से अन्तर – राजनीति विज्ञान मनुष्य को मूलरूप से एक बुद्धिमान, विवेकशील एवं सभ्य प्राणी मानकर चलता है, जबकि मनोविज्ञान मनुष्य को मूल रूप में एक ऐसा मानव मानता है जो बुद्धि के स्थान। पर भावनाओं के आवेग व संवेग से संचालित होता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राजनीति विज्ञान एवं मनोविज्ञान में अत्यधिक घनिष्ठ सम्बन्ध होने के बावजूद इनमें आधारभूत अन्तर भी हैं। वस्तुत: राजनीति विज्ञान में मनोविज्ञान की पद्धति के प्रयोग की एक सीमा है।

प्रश्न 7.
राजनीति विज्ञान और दर्शनशास्त्र की पारस्परिकता को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
राजनीति विज्ञान और दर्शनशास्त्र की समानताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान और दर्शनशास्त्र की पारस्परिकता / समानताएँ:
दर्शनशास्त्र जीवन और जगत की प्रकृति तथा उसके मूल सम्बन्धी मानव की खोज से सम्बन्धित विषय है। यह उन सिद्धान्तों का अध्ययन करता है जिनका प्रतिपादन सृष्टि, जीवन और जगत के सम्बन्ध में किया गया है। राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत अध्ययन किए जाने वाले राजनीतिक जीवन एवं राजनीतिक विश्व’ उस विश्व का ही भाग है, जिसकी प्रकृति तथा जिसके मूल की खोज दर्शनशास्त्र के अध्ययन का विषय है। इस दृष्टि से इन दोनों विषयों का परस्पर सम्बन्ध दिखाई देता है। राजनीति विज्ञान और दर्शनशास्त्र में अनेक समानताएँ हैं, जिनका वर्णन निम्नलिखित हैं।

(i) उद्देश्यों की समानता – दर्शनशास्त्र का उद्देश्य इस बात की खोज करना है कि सृष्टि क्या है, विश्व क्या है तथा इन सब के मूल में क्या है। वहीं राजनीति विज्ञान का उद्देश्य भी राज्य तथा राजनीतिक जीवन के स्वरूप एवं उसके मूल की खोज करना है। ये दोनों ही विषय अपने अध्ययन के विषय के मूल एवं उसकी प्रकृति का अध्ययन करने के लिए प्रयासरत हैं। इस प्रकार दोनों विषयों का उद्देश्य समान है।

(ii) अध्ययन पद्धति की समानता – दर्शनशास्त्र की अध्ययन पद्धति, दार्शनिक पद्धति है। इसी प्रकार राजनीति विज्ञान की भी दो प्रमुख अध्ययन पद्धतियाँ हैं-प्रथम, आनुभविक वैज्ञानिक पद्धति एवं द्वितीय, दार्शनिक पद्धति । राजनीति विज्ञान की आनुभविक वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत तुलनात्मक, पर्यवेक्षणात्मक और वैज्ञानिक आदि विभिन्न पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है। वहीं दार्शनिक पद्धति का भी प्रयोग राजनीति विज्ञान में प्रचलित है।

प्लेटो, थॉमस मूर, रूसो, हीगल, ग्रीन एवं बोसांके आदि प्रमुख दार्शनिक एवं राजनीतिक विचारकों ने राजनीति विज्ञान में आनुभविक वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया है। राजनीति विज्ञान में आनुभविक वैज्ञानिक पद्धति को अपनाने वाले विचारक भी किसी-न-किसी रूप में तर्क एवं कल्पना का सहारा लेते हैं।

(iii) अध्ययन के स्वरूप की समानता – दर्शनशास्त्र सैद्धान्तिक एवं वैचारिक अध्ययन का विषय है। जीवन की प्रकृति एवं उसके मूल तत्व चेतन, अचेतन एवं द्वैतवाद आदि इसकी विषयवस्तु के प्रमुख तत्व हैं, वहीं राजनीति विज्ञान का भी समस्त विषयवस्तु सैद्धान्तिक और वैचारिक होने के साथ व्यावहारिक भी है। राजनीति विज्ञान में व्यावहारिक राजनीति के अध्ययन पर अधिक बल दिया जाता है।

राज्य की उत्पत्ति, राज्य का उद्देश्य, स्वतन्त्रता, समानता, विधि, सम्प्रभुता के साथ – साथ ऐसी अनेक राजनीतिक धारणाओं और राजनीतिक विचारधाराओं का अध्ययन इस विषय में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राजनीति विज्ञान एवं दर्शनशास्त्र में घनिष्ठ पारस्परिकता है। दोनों विषय अनेक समानताएँ लिए हुए हैं।

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