RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 7 राज्य की उत्पत्ति के सिद्धान्त (दैवीय, शक्ति, मातृ एवं पितृ सत्तात्मक)
RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 7 राज्य की उत्पत्ति के सिद्धान्त (दैवीय, शक्ति, मातृ एवं पितृ सत्तात्मक)
Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Chapter 7 राज्य की उत्पत्ति के सिद्धान्त (दैवीय, शक्ति, मातृ एवं पितृ सत्तात्मक)
RBSE Class 11 Political Science Chapter 7 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Political Science Chapter 7 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मानव स्वभाव के विषय में शक्ति सिद्धान्त के क्या विचार हैं?
उत्तर:
शक्ति सिद्धान्त के अनुसार मानव स्वभाव में प्रभुत्व की लालसा एवं आक्रामकता होती है।
प्रश्न 2.
मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त में परिवार का मुखिया कौन होता है?
उत्तर:
मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त में परिवार का मुखिया माता होती है।
प्रश्न 3.
महाभारत के शान्तिपर्व में राज्य की उत्पत्ति के विषय में क्या उल्लेख है?
उत्तर:
महाभारत के शान्ति पर्व में राज्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में दैवीय सिद्धान्त का उल्लेख मिलता है।
प्रश्न 4.
पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त का दोष क्या है?
उत्तर:
पितृ सत्तात्मक व्यवस्था का सम्पूर्ण विश्व में न होना।
प्रश्न 5.
दैवीय.सिद्धान्त शासन के किस रूप को श्रेष्ठ मानता है?
उत्तर:
दैवीय सिद्धान्त राजतन्त्र को श्रेष्ठ मानता है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
उत्तर:
मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त की आलोचना – राज्य की उत्पत्ति के मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त की प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं
- इस सिद्धान्त को ऐतिहासिक प्रमाणिकता प्राप्त नहीं है अर्थात् इतिहास से यह पूरी तरह प्रमाणित नहीं होता है कि प्रारम्भिक परिवार पुरुष प्रधान थे या स्त्री प्रधान।।
- यह सिद्धान्त राज्य के विकास हेतु परिवार के अतिरिक्त अन्य उत्तरदायी तत्वों की उपेक्षा करता है।
- यह सिद्धान्त सामाजिक अधिक है, राजनीतिक कम। यह समाज के विकास की ही व्याख्या करता है, राज्य के विकास की नहीं।
- यह एक सरल सिद्धान्त है, जबकि राज्य की उत्पत्ति जटिल विकास का परिणाम है।
- यह व्यवस्था सम्पूर्ण विश्व में विद्यमान नहीं थी। कई स्थानों पर मातृ प्रधान एवं पितृ प्रधान दोनों व्यवस्थाओं के उदाहरण मिले हैं।
- स्त्री, पुरुष की अपेक्षा निर्बल मानी जाती है। अत: इससे वंश का चलना उचित प्रतीत नहीं होता है।
प्रश्न 2.
शक्ति सिद्धान्त की कमियों का उल्लेख करो।
उत्तर:
शक्ति सिद्धान्त की कमियाँ – राज्य उत्पत्ति के शक्ति सिद्धान्त की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं
- शक्ति राज्य निर्माण का सहायक तत्व है। एकमात्र निर्णायक तत्व नहीं है।
- यह सिद्धान्त मानव स्वभाव की एकांगी व्याख्या करता है।
- यह सिद्धान्त केवल शक्ति को ही राज्य का आधार मानता है, जबकि राज्य का आधार शक्ति नहीं, इच्छा है। टी.एच. ग्रीन के अनुसार, लोगों की इच्छा के बिना न तो राज्य संगठित हो सकता है और न ही स्थापित रह सकता है।
- यह सिद्धान्त राज्य को निरकुंश बनाता है।
- यह सिद्धान्त युद्ध और क्रान्ति में विश्वास करता है। अतः यह प्रजातन्त्र का विरोधी है।
- यह सिद्धान्त उग्र राष्ट्रवाद एवं साम्राज्यवाद का पोषक है।
- यह सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और विश्व बन्धुत्व का विरोधी है।
- यह सिद्धान्त भौतिक शक्ति को ही महत्व प्रदान करता है, जबकि वर्तमान युग में आध्यात्मिक, तकनीकी एवं वैधानिक शक्ति को भी महत्व प्रदान किया जाता है।
प्रश्न 3.
दैवीय सिद्धान्त राज्य के क्या कर्त्तव्य बताता है?
उत्तर:
दैवीय सिद्धान्त राज्य की उत्पत्ति का सबसे प्राचीन एवं एक काल्पनिक सिद्धान्त है। राज्य एक दैवीय संस्था है इसको स्वयं ईश्वर ने लोगों के लाभ के लिए बनाया है। ईश्वर या तो स्वयं राज्य पर शासन करता है या अपने किसी प्रतिनिधि को शासन करने भेज देता है। राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है और वह केवल ईश्वर के प्रति उत्तरदायी है। राज्य का शासक अर्थात् राजा किसी कानून के अधीन नहीं है। राजा कानूनों का निर्माण करता है।
पृथ्वी पर कोई शक्ति उसकी इच्छा एवं शक्ति पर रोक नहीं लगा सकती। राज्य के आदेश ही कानून हैं तथा उसके कार्य हमेशा न्यायपूर्ण और उदार होते हैं। राज्य की सत्ता पैतृक होती है। राजा की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र उत्तराधिकारी होता है। राज्य के प्रतिनिधि राजा को जनता की भलाई के लिए जनोपयोगी कार्य करने चाहिए। यदि वह अत्याचार करता है, तो जनता को उसका विरोध नहीं करना चाहिए। स्वयं ईश्वर उसके बुरे कार्यों का हिसाब माँग लेगा।
प्रश्न 4.
पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त – पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- प्राचीन समय में समाज की इकाई परिवार था।
- परिवार का आधार स्थायी वैवाहिक सम्बन्ध थी।
- परिवार में पुरुष ही परिवार को मुखिया होता था।
- वंशावली केवल पुरुषों में खोजी जाती थी। स्त्री पक्ष को कोई भी उत्तराधिकार परिवार में प्राप्त नहीं था।
- पितृसत्तात्मक परिवार में मुखिया के व्यापक एवं असीमित अधिकार राजनीतिक सत्ता के मूल स्रोत थे।
- पितृसत्तात्मक परिवारों से ही कुल, कुलों से ही जनपद और जनपदों से ही राज्य का विकास हुआ है।
- रक्त सम्बन्ध परिवार के सदस्यों की एकता का मुख्य सूत्र था।
- परिवार में मुखिया की शक्तियाँ निरपेक्ष र्थी।
- राज्य के विकास का आधार पितृ प्रधान व्यवस्था थी।
प्रश्न 5.
शक्ति सिद्धान्त की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
शक्ति सिद्धान्त की विशेषताएँ-राज्य की उत्पत्ति के शक्ति सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- शक्ति राज्य की उत्पत्ति का एकमात्र आधार है। यहाँ शक्ति से आशय आर्थिक, भौतिक एवं सैनिक शक्ति से है।
- प्रभुत्व की लालसा एवं आक्रामकता मानव स्वभाव के अनिवार्य घटक हैं।
- प्रकृति का यह शाश्वत नियम है कि ‘शक्ति ही न्याय’ है। शक्ति ही सर्वोच्च होती है।
- प्रत्येक राज्य में सदैव अल्पसंख्यक शक्तिशाली ही शासन करते हैं और बहुसंख्यक शक्तिहीन केवल अनुकरण करते हैं।
- वर्तमान समय में सभी राज्यों का अस्तित्व शक्ति पर केन्द्रित है।
- राज्य का उद्देश्य है-शक्ति का संवर्द्धन और उसका सफल प्रयोग करना।
RBSE Class 11 political science Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राज्य की उत्पत्ति के सन्दर्भ में शक्ति सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
राज्य की उत्पत्ति का शक्ति सिद्धान्त शक्ति सिद्धान्त के अनुसार राज्य की उत्पत्ति का एकमात्र कारण शक्ति या बल प्रयोग है। राज्य का उदय शक्तिशाली व्यक्तियों के द्वारा निर्बल व्यक्तियों को अपने अधीन करने की प्रवृत्ति के कारण हुआ है। अन्य शब्दों में कहें तो ‘युद्ध’ राज्य की उत्पत्ति का प्रमुख कारण था। युद्ध में विजेता शासक बन गया और पराजित प्रजा बन गयी।
राज्य शक्तिशाली लोगों द्वारा निर्बलों पर अधिकार और प्रभुत्व का परिणाम है अर्थात् प्रभुत्व की लालसा मनुष्यों को आपसी संघर्ष की ओर ले जाती है और इस संघर्ष में जो मनुष्य अपनी अजेय शक्ति से दूसरों को गुलाम बनाया वही सबसे पहले राजा बना। शक्तिशाली मनुष्य अधिसंख्य कमजोर लोगों को अपनी वीरता के बल पर अपना अनुयायी बना लेते हैं। इन अनुयायियों को वह कबीले के रूप में संगठित करता है और स्वयं उनका सरदार बन जाता है।
शक्ति सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ / मान्यताएँ शक्ति सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ / मान्यताएँ निम्नलिखित हैं
- शक्ति राज्य की उत्पत्ति का एकमात्र आधार है। यहाँ शक्ति से आशय आर्थिक, भौतिक एवं सैनिक शक्ति से है।
- प्रभुत्व की लालसा एवं आक्रामकता मानव स्वभाव के अनिवार्य घटक है।
- प्रकृति का यह शाश्वत नियम है कि ‘शक्ति ही न्याय’ है। शक्ति ही सर्वोच्च होती है।
- प्रत्येक राज्य में सदैव अल्पसंख्यक शक्तिशाली ही शासक होते हैं और बहुसंख्यक शक्तिहीन केवल अनुकरण करते हैं।
- वर्तमान समय में भी राज्यों का अस्तित्व शक्ति पर केन्द्रित है।
- राज्य का उद्देश्य है शक्ति का संवर्द्धन और उसका सफल प्रयोग करना।
शक्ति सिद्धान्त का प्रयोग:
- मध्यकाल में इस सिद्धान्त का प्रयोग ईसाई धर्मगुरुओं ने राज्य को दूषित और चर्च को श्रेष्ठ संस्था बताने में किया।
- व्यक्तिवादी विचारकों ने व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में सरकार के हस्तक्षेप को रोकने के लिए इसका उपयोग किया।
- समाजवादी एवं अराजकतावादी विचारकों ने भी व्यक्ति की स्वतन्त्रता हेतु इस सिद्धान्त का व्यापक रूप से प्रयोग किया।
- फासीवादी और नाजीवादियों ने भी इस सिद्धान्त का समर्थन और अपने हित में इनका प्रयोग किया।
शक्ति सिद्धान्त की आलोचना:
शक्ति सिद्धान्त की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जाती है
- शक्ति राज्य निर्माण का सहायक तत्व है, एकमात्र निर्णायक तत्व नहीं है। यद्यपि इसने राज्य की उत्पत्ति में प्रमुख भूमिका का निर्वाह किया परन्तु इसकी उत्पत्ति के अन्य कारण चेतना, धर्म, रक्त सम्बन्ध आदि भी रहे।
- यह सिद्धान्त केवल शक्ति को ही राज्य का आधार मानता है जबकि राज्य का आधार शक्ति नहीं इच्छा है। लोगों की इच्छा के बिना न तो राज्य संगठित हो सकता है और न स्थापित रह सकता है। लोग राज्य के आदेशों का पालन शक्ति के भय से नहीं, अपने विवेक और बुद्धि से करते हैं।
- यह सिद्धान्त मानव स्वभाव की एकांगी व्याख्या करता है।
- यह सिद्धान्त युद्ध एवं क्रान्ति में विश्वास करता है अतः यह प्रजातन्त्र का विरोधी है।
- यह सिद्धान्त उग्र राष्ट्रवाद तथा साम्राज्यवाद को बढ़ावा देता है।
- यह सिद्धान्त केवल भौतिक शक्ति पर बल देता है। आधुनिक काल में आध्यात्मिक, तकनीकी और वैधानिक शक्ति को भी महत्त्व दिया जाता है।
शक्ति सिद्धान्त का महत्त्व: शक्ति सिद्धान्त में अनेक कमियाँ होने के बावजूद इसकी अपनी उपयोगिता है
- प्राचीनकाल से ही राज्य के नाम और विकास में शक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
- प्राचीन समय में अराजकतावादी समाज को संगठित करने एवं उसमें अनुशासन एवं आज्ञापालन का विचार शक्ति के कारण ही आया।
- वर्तमान समय में यह देखने को मिलता है कि जब राज्य शक्तिशाली नहीं होते हैं, तो अराजकता और विघटन का शिकार हो जाते हैं।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि शक्ति सिद्धान्त ने राज्य की उत्पत्ति में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इसने राज्य के विकास में शक्ति के व्यापक महत्व को प्रकट किया है।
प्रश्न 2.
राज्य की उत्पत्ति का सबसे प्राचीन सिद्धान्त कौन-सा है? उसे विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
राज्य की उत्पत्ति का सबसे प्राचीन सिद्धान्त राज्य की उत्पत्ति का दैवीय सिद्धान्त है। इसका विवरण निम्नलिखित है
दैवीय सिद्धान्त का उदय एवं विकास – ‘दैवीय सिद्धान्त’ के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति देवताओं एवं ईश्वर ने की है, इस सम्बन्ध में प्राचीन भारतीय चिन्तन तथा पाश्चात्य एवं अन्य अनेक देशों के चिन्तन में विवरण मिलता है, यथा
(i) पाश्चात्य चिन्तन – पाश्चात्य राजनीतिक चिन्तन में भी राज्य के ईश्वरीय रूप का प्रतिपादन हुआ है जिसका विवरण निम्न प्रकार है
- यहूदी धर्म – इस सिद्धान्त का सर्वप्रथम समर्थन यहूदियों ने किया था। यहूदी धर्म ग्रन्थों में स्वयं ईश्वर को ही राजा माना गया है।
- मिस्र – प्राचीन मिस्र में राजा को ‘सूर्य-पुत्र’ कहा गया है।
- चीन एवं जापान – चीन में राजा को ‘स्वर्ग पुत्र’ एवं जापान में राजा को ‘सूर्य-पुत्र’ कहा गया है।
- यूनान व रोम – यहाँ भी दैवीय सिद्धान्त को मान्यता प्रदान की गयी है।
- बाईबिल – बाईबिल में भी राज्य को ईश्वरीय सृष्टि के मत का प्रतिपादन करते हुए समस्त राजकीय शक्तियों का स्रोत ईश्वर को माना गया है।
(ii) भारतीय चिन्तन – प्राचीन भारतीय चिन्तकों के अनुसार राज्य की उत्पत्ति ईश्वर द्वारा हुई है। भारतीय परम्परा के अन्तर्गत महाभारत के शान्तिपर्व में दैवी सिद्धान्त का संकेत मिलता है। मनुस्मृति में कहा गया है कि इस लोक में अराजकता फैल जाने के कारण जब लोग इधर-उधर भाग रहे थे तब ईश्वर ने राजा का निर्माण किया। भारत में राजा को सूर्य-पुत्र कहा गया है। इसी प्रकार नेपाल में राजा को विष्णु का अवतार माना गया है।
दैवीय सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ दैवीय सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- राज्य एक ईश्वर निर्मित संस्था है। राज्य न तो स्वयं विकसित संस्था है एवं न ही वह मानवकृत संस्था है।
- राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होता है। राजा दैवीय गुणों से सम्पन्न होता है तथा राजा की शक्तियाँ ईश्वर प्रदत्त हैं।
- राजा की शक्ति असीमित हैं एवं वह निरंकुश है। जनता को उसके विरुद्ध कोई अधिकार प्राप्त नहीं है तथा जनता उसके विरुद्ध विद्रोह नहीं कर सकती।
- राजतन्त्र सर्वोत्तम शासन है। राज्य का यह रूप ईश्वर के विधान के अनुरूप ही होता है।
- राजपद वंशानुगत है। जनता इस अधिकार को छीन नहीं सकती।
- इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य, राजा और शासन तीनों समानार्थी हैं इनमें कोई अन्तर नहीं है।
- राजा ईश्वर के ही प्रति उत्तरदायी होता है न कि जनता के प्रति । ईश्वर की तरह राजसत्ता के आदेश सर्वोच्च, उचित तथा न्यायसंगत होते हैं।
- इस सिद्धान्त के अंनुसार राजा की आज्ञाओं का पालन करना जनता को अनिवार्य कर्तव्य है। इसका उल्लंघन धार्मिक दृष्टि से पाप है।
दैवीय सिद्धान्त की आलोचना-दैवीय सिद्धान्त की आलोचना निम्नलिखित हैं
- अवैज्ञानिक सिद्धान्त – दैवीय सिद्धान्त की मान्यताओं को केवल धार्मिक विश्वासों के आधार पर ही सही माना जा सकता है वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर नहीं।
- निरंकुशता का पोषक – राजा, प्रजा के प्रति उत्तरदायी नहीं होने के कारण राजसत्ता पूर्ण निरंकुश एवं अधिनायकवादी बन गई।
- लोकतान्त्रिक भावनाओं के विपरीत – यह सिद्धान्त लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था के प्रतिकूल है।
- अतिवादी दृष्टिकोण – इस सिद्धान्त में राजा को पूर्ण शक्ति सम्पन्न एवं दैवीय गुणों से सम्पन्न बताया गया है, जो कि अतिवादी दृष्टिकोण है।
- धार्मिक सिद्धान्त – आज के युग में जहाँ बहुत से लोग ईश्वर तथा धर्म में आस्था नहीं रखते, उनके लिए इसकी कोई उपयोगिता नहीं है।
- ऐतिहासिक प्रमाणों का अभाव-इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि राजा ईश्वर को प्रतिनिधि है। यह सिद्धान्त राजनैतिक चेतना, रक्त सम्बन्ध एवं आर्थिक आवश्यकता आदि की भी उपेक्षा करता है।
- प्रतिक्रियावादी सिद्धान्त – यह सिद्धान्त जनता के मन में राजा के प्रति अंधभक्ति उत्पन्न करता है जो विवेक सिद्धान्त के विरुद्ध है।
- रूढ़िवादी सिद्धान्त – यह सिद्धान्त एक रूढ़िवादी सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त की मान्यताओं में कोई जनहितकारी परिवर्तन नहीं किये जा सकते हैं क्योंकि राजा के प्रति विरोध को ईश्वर के प्रति अपराध एवं पाप माना गया है। दैवीय सिद्धान्त का महत्व-यद्यपि वर्तमान में दैवीय उत्पत्ति का सिद्धान्त राज्य की उत्पत्ति की सही व्याख्या नहीं। करता है, तथापि इसका अपना महत्त्व है। दैवीय सिद्धान्त का महत्व इस प्रकार है
- यह सिद्धान्त राज्य की उत्पत्ति की क्रमबद्ध व्याख्या करने का प्रथम प्रयास था। जिस पर आगे चलकर राज्य की उत्पत्ति के नये-नये सिद्धान्त विकसित हुए।
- इस सिद्धान्त ने प्रारम्भिक अराजकतापूर्ण समाज में शान्ति तथा व्यवस्था स्थापित करने में भी योगदान दिया।
- इस सिद्धान्त ने जनता के मन में आज्ञापालन एवं अनुशासन की भावना को विकसित किया।
- इस सिद्धान्त ने राज्य के विकास में धर्म के प्रभाव को स्थापित किया।
प्रश्न 3.
पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त राज्य की उत्पत्ति का यह एक प्राचीन सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त का उल्लेख हमें यूनान, रोम एवं यहूदियों के प्राचीन इतिहास में देखने को मिलता है। यहूदियों की धार्मिक पुस्तक ओल्ड टेस्टामेंट, ईसाइयों की बाईबिल के अतिरिक्त रोम और भारत के भी विभिन्न धर्मग्रन्थों में इस सिद्धान्त की विभिन्न बातें देखने को मिलती हैं। इस सिद्धान्त के प्रमुख व्याख्याकार हेनरीमेन हैं। हेनरीमेन के अनुसार, प्राचीन समय में समाज परिवारों का समूह था।
परिवार के मुखिया वृद्ध पुरुष को पिता के रूप में असीमित शक्तियाँ प्राप्त र्थी। वह अपनी इच्छा के अधीन सम्पत्ति का विनिमय कर सकता था, अपनी सन्तान को सम्पत्ति से बेदखल कर सकता था और उनका जहाँ चाहे विवाह कर सकता था। इसी क्रम में परिवार के विस्तार एवं विघटन के कारण अनेक परिवार बने लेकिन इन परिवारों पर मूल परिवार के मुखिया का अधिकार बना रहा। धीरे – धीरें पितृ प्रधान परिवार का विकास हुआ। परिवार से गोत्र तथा गोत्र से कबीलों का निर्माण हुआ, कबीलों से राज्य की उत्पत्ति हुई।
पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ: पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं
- प्राचीन समय में समाज की इकाई परिवार था।
- परिवार का आधार स्थायी वैवाहिक सम्बन्ध था।
- परिवार में पुरुष ही परिवार का मुखिया होता था एवं पितृसत्तात्मक तत्वों की प्रधानता थी।
- वंशावली केवल पुरुषों से खोजी जाती थी। स्त्री पक्ष को कोई भी उत्तराधिकार परिवार में प्राप्त नहीं था।
- पितृसत्तात्मक परिवार में मुखिया के व्यापक तथा असीमित अधिकार राजनीतिक सत्ता के मूल स्रोत थे।
- पितृसत्तात्मक परिवारों से ही कुल, कुलों से ही जनपद और जनपदों से ही राज्य का विकास हुआ है।
पितृसत्तात्मक सिद्धान्त की आलोचना – पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त की आलोचना निम्नलिखित है
- अत्यधिक सरल सिद्धान्त – राज्य की उत्पत्ति का पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त एक अत्यन्त सरल सिद्धान्त है, जबकि राज्य की उत्पत्ति जटिल विकास का परिणाम है जिसमें अनेक छोटे एवं बड़े तत्वों का योगदान है।
- पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त का सभी जगह अस्तित्व नहीं – इस सिद्धान्त का सम्पूर्ण विश्व में अस्तित्व नहीं है। एशिया और आस्ट्रेलिया में मातृ प्रधान व्यवस्था के उदाहरण देखने को मिलते हैं।
- प्रारम्भिक सामाजिक इकाई कबीला थी – मार्गन, मैक्सवेल आदि राजनीतिक विचारकों के मतानुसार प्रारम्भिक सामाजिक इकाई कबीला थी। कबीला टूटने पर गोत्र और गोत्र से परिवार का निर्माण हुआ। इनके अनुसार वंश स्त्री से चलता था, पुरुष से नहीं।
- समाजशास्त्रीय सिद्धान्त – यह सिद्धान्त राज्य की उत्पत्ति का राजनीतिक सिद्धान्त कम और समाजशास्त्रीय सिद्धान्त अधिक लगता है।
- पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त का महत्व – पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त का महत्व निम्नलिखित है
- राज्य की उत्पत्ति के पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त राज्य के विकास में रक्त सम्बन्धों के योगदान को उचित रूप में विश्लेषित करता है क्योंकि राज्य को परिवारों का विकसित रूप माना जाता है।
- इस सिद्धान्त के कारण राज्य में आज्ञापालन तथा अनुशासन की भावना का प्रभाव स्थापित हुआ है।
प्रश्न 4.
मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त:
मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त राज्य की उत्पत्ति का एक प्रमुख प्राचीन सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक मेक्लेन, मॉर्गन और जैक्स हैं। इनका मत था कि राज्य की उत्पत्ति पितृ मूलक समाज से न होकर मातृ मूलक समाज से हुई है। आदिमकाल में विवाह की संस्था संस्थापित नहीं थी और इसी कारण वैवाहिक सम्बन्ध टूट जाते थे और स्वैच्छिक आधार पर पति – पत्नी सम्बन्ध स्थिर व विकसित होते थे।
समाज में स्थायी विवाह की संस्थाएँ नहीं र्थी। समाज में बहुपतित्व की व्यवस्था थी। इस व्यवस्था में नारी के अनेक पति होते थे। उनकी होने वाली सन्तानों को पिता नहीं; माता के कुल के नाम से जाना जाता था। सम्पत्ति और सत्ता की अधिकारिणी माता होती थी। इस व्यवस्था के विकास ने आगे चलकर राज्य को जन्म दिया।
मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त की विशेषताएँ / मान्यताएँ – मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ / मान्यताएँ निम्नलिखित हैं
- स्थायी वैवाहिक सम्बन्ध का अभाव था। इस कारण माता से ही वंशानुक्रम का आरम्भ होता था। अतः सम्बन्ध सूत्र का माध्यम स्त्री थी।
- सम्पत्ति एवं सत्ता पर स्त्रियों का ही एकाधिकार एवं उत्तराधिकार था। अतः परिवार का प्रधान पुरुष न होकर स्त्री होती थी।
- मातृ सत्तात्मक परिवारों में माता शक्ति का केन्द्र थी। उसके द्वारा संचालित गृह-शासन में राज्य के अंकुर विद्यमान थे।
सिद्धान्त की आलोचना – मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त की आलोचना निम्नलिखित है
- अत्यन्त सरल सिद्धान्त – यह एक सरल सिद्धान्त है, जबकि राज्य की उत्पत्ति जटिल विकास का परिणाम है, जिसमें अनेक छोटे और बड़े तत्वों का योगदान हैं।
- प्रमाणिक सिद्धान्त नहीं – यह सिद्धान्त समाज के विकास पर तो प्रकाश डालता है, परन्तु यह सिद्धान्त केवल यह अनुमान लगता है, कि समाज का और विशेषकर परिवार का आरम्भ केसे हुआ। इसे राज्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्राणक नहीं माना जा सकता है।
- राजनीतिक नहीं सामाजिक सिद्धान्त – यह सिद्धान्त राज्य के विकास के स्थान पर समाज के विकास की ही व्याख्या करता है। इस दृष्टि से यह सिद्धान्त सामाजिक अधिक राजनीतिक कम है।
- अन्य तत्वों की उपेक्षा – यह सिद्धान्त राज्य के विकास के लिए उत्तरदायी अन्य तत्वों की अनदेखी करता है।
- स्त्री, पुरुष की अपेक्षा निर्बल – स्त्री परिवार में पहचान का माध्यम तो थी परन्तु वह शक्ति का सक्रिय धारक बिल्कुल नहीं थी।
- संसार में मातृ प्रधान और पितृ प्रधान दोनों प्रकार के उदाहरण देखने को मिलते हैं।
मातृ प्रधान सिद्धान्त का महत्त्व – राज्य के विकास में मातृ प्रधान सिद्धान्त का महत्त्व निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट है
- राज्य की उत्पत्ति के मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त राज्य के विकास में रक्त सम्बन्धों के योगदान को उचित रूप में विश्लेषित करते हैं क्योंकि राज्य को परिवारों का विकसित रूप माना जाता है।
- इन सिद्धान्त के कारण राज्य में आज्ञापालन तथा अनुशासन की भावना का भी महत्व स्थापित हुआ है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
राज्य की उत्पत्ति का कौन – सा सिद्धान्त मध्ययुग में लोकप्रिय रहा।
(अ) शक्ति सिद्धान्त
(ब) सामाजिक समझौता सिद्धान्त
(स) दैवीय सिद्धान्त
(द) पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त
उत्तर:
(अ) शक्ति सिद्धान्त
प्रश्न 2.
प्रथम राजा एक भाग्यशाली योद्धा था, यह कथन है
(अ) बिस्मार्क
(ब) ओपेन हाइमर
(स) गेटल
(द) वाल्टेयर
उत्तर:
(द) वाल्टेयर
प्रश्न 3.
निम्न में से किस विचारक ने शक्ति सिद्धान्त का समर्थन किया।
(अ) वाल्टेयर
(ब) रूसो
(स) हेनरी मेन
(द) बिस्मार्क
उत्तर:
(अ) वाल्टेयर
प्रश्न 4.
पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त का प्रमुख समर्थक है।
(अ) लीकाक
(ब) हेनरी मेन
(स) गिल क्राइस्टे
(द) हाब्स।
उत्तर:
(ब) हेनरी मेन
प्रश्न 5.
बहुपति प्रथा किस सिद्धान्त में मानी जाती है?
(अ) मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त
(ब) पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त
(स) दैवीय सिद्धान्त
(द) शक्ति सिद्धान्त।
उत्तर:
(अ) मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त
RBSE Class 11 Political Science Chapter 7 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Political Science Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
राज्य की उत्पत्ति का सबसे प्राचीन सिद्धान्त है
(अ) दैवीय सिद्धान्त
(ब) मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त
(स) शक्ति सिद्धान्त
(द) सामाजिक समझौता सिद्धान्त।
उत्तर:
(अ) दैवीय सिद्धान्त
प्रश्न 2.
राज्य की उत्पत्ति का दैवीय सिद्धान्त राज्य को किसका प्रतिनिधि मानता है
(अ) जनता को
(ब) ईश्वर का
(स) सत्ता का
(द) उपर्युक्त सभी का।
उत्तर:
(ब) ईश्वर का
प्रश्न 3.
“राज्य ईश्वरीय संस्था है।” इस मान्यता का प्रतिपादन किस सिद्धान्त के द्वारा किया गया है?
(अ) दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त
(ब) मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त
(स) शक्ति सिद्धान्त
(द) सामाजिक समझौता सिद्धान्त।
उत्तर:
(अ) दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त
प्रश्न 4.
‘पैट्रियाकी’ पुस्तक के लेखक हैं
(अ) गार्नर
(ब) लास्की
(स) राबर्ट फिल्मर
(द) जैक्स।
उत्तर:
(स) राबर्ट फिल्मर
प्रश्न 5.
‘टूल्स ऑफ की मोनार्कीज’ के रचयिता हैं
(अ) रॉबर्ट फिल्मर
(ब) जेम्स प्रथम
(स) लुई 14 वाँ
(द) मॉर्गन
उत्तर:
(ब) जेम्स प्रथम
प्रश्न 6.
दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त की प्रमुख विशेषता है
(अ) राज्य ईश्वर निर्मित संस्था है।
(ब) राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है।
(स) राजपद वंशानुगत है।
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 7.
“राजा की आज्ञाओं का पालन करना प्रजा के लिए अनिवार्य है।” यह कथन राज्य की उत्पत्ति के किस सिद्धान्त से सम्बन्धित है
(अ) दैवीय उत्पत्ति का सिद्धान्त
(ब) शक्ति सिद्धान्त
(स) सामाजिक समझौता, सिद्धान्त
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(अ) दैवीय उत्पत्ति का सिद्धान्त
प्रश्न 8.
प्रजातान्त्रिक विचारधारा के उदय के कारण राज्य उत्पत्ति के किस सिद्धान्त ने अपना महत्व खो दिया
(अ) शक्ति सिद्धान्त
(ब) सामाजिक समझौता सिद्धान्त
(स) मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त
(द) दैवीय सिद्धान्त
उत्तर:
(द) दैवीय सिद्धान्त
प्रश्न 9.
राज्य परिवारों का विकसित रूप है, इस विचार को कौन-से सिद्धान्त वाले विचारक मानते हैं?
(अ) शक्ति सिद्धान्त वाले
(ब) पितृ / मातृ सत्ता सिद्धान्त वाले
(स) दैवीय सिद्धान्त वाले
(द) विकासवादी सिद्धान्त वाले
उत्तर:
(ब) पितृ / मातृ सत्ता सिद्धान्त वाले
प्रश्न 10.
निम्न में से किस राजनीतिक विचारक ने कहा कि “प्राचीन समय में समाज परिवारों का समूह था और उस परिवार का सबसे वृद्ध व्यक्ति परिवार का मुखिया होता था।”
(अ) मॉर्गन ने
(ब) जैक्स ने
(स) हेनरीमेन ने
(द) राबर्ट फिल्मर ने।
उत्तर:
(स) हेनरीमेन ने
प्रश्न 11.
निम्न में से किस विद्वान ने परिवार से राज्य के विकास को बताया है
(अ) लीकॉक ने
(ब) मॉर्गन ने
(स) जैक्स ने
(द) ग्रीन ने।
उत्तर:
(अ) लीकॉक ने
प्रश्न 12.
पितृ सत्ता सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक हैं
(अ) हीगल
(ब) हेनरीमेन
(स) प्लेटा
(द) ग्रीन।
उत्तर:
(ब) हेनरीमेन
प्रश्न 13.
निम्न में से राज्य उत्पत्ति के किस सिद्धान्त से यहूदियों की धार्मिक पुस्तक ‘ओल्ड टेस्टमेंट’ का सम्बन्ध है
(अ) मातृप्रधान सिद्धान्त से
(ब) शक्ति सिद्धान्त से
(स) पितृ सत्ता सिद्धान्त से
(द) समझौता सिद्धान्त से।
उत्तर:
(स) पितृ सत्ता सिद्धान्त से
प्रश्न 14.
मातृ – प्रधान सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक हैं
(अ) मेक्लेनन
(ब) मॉर्गन
(स) जैक्स
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 15.
“प्राचीन समाज में स्थायी विवाह संस्थाएँ नहीं थीं।” यह मत राज्य उत्पत्ति के किस सिद्धान्त से सम्बन्ध रखता
(अ) मातृ प्रधान सिद्धान्त से
(ब) पितृ प्रधान सिद्धान्त से
(स) शक्ति सिद्धान्त से
(द) सामाजिक समझौता सिद्धान्त से
उत्तर:
(अ) मातृ प्रधान सिद्धान्त से
प्रश्न 16.
राज्य की उत्पत्ति का जो सिद्धान्त ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ के सिद्धान्त पर आधारित है, वह है
(अ) सामाजिक समझौता सिद्धान्त
(ब) शक्ति सिद्धान्त
(स) दैवीय सिद्धान्त
(द) ऐतिहासिक सिद्धान्त
उत्तर:
(ब) शक्ति सिद्धान्त
प्रश्न 17.
“शक्ति के बिना न कोई राज्य जीवित रहता है और न जीवित रह सकता है।” यह कथन है
(अ) ब्लंटशली का
(ब) अरस्तू का
(स) लीकॉक को
(द) ग्रीन का
उत्तर:
(अ) ब्लंटशली का
प्रश्न 18.
युद्ध का समर्थन करता है
(अ) समझौता सिद्धान्त
(ब) दैवीय सिद्धान्त
(स) शक्ति सिद्धान्त
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(स) शक्ति सिद्धान्त
प्रश्न 19.
“ज्य की उत्पत्ति का आधार शक्ति नहीं, इच्छा है।” यह कथन है
(अ) अरस्तू का
(ब) टी.एच. ग्रीन का
(से) ट्रिश्के को
(द) ब्लंटशली का
उत्तर:
(ब) टी.एच. ग्रीन का
प्रश्न 20.
निम्न में से राज्य उत्पत्ति के किस सिद्धान्त का फासीवादी एवं नाजीवादियों ने समर्थन किया
(अ) शक्ति सिद्धान्त का
(ब) सामाजिक समझौता सिद्धान्त का
(स) पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त का
(द) मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त का
उत्तर:
(अ) शक्ति सिद्धान्त का
RBSE Class 11 Political Science Chapter 7 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राज्य उत्पत्ति के किन्हीं दो सिद्धान्तों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त,
- शक्ति सिद्धान्त।
प्रश्न 2.
राज्य की उत्पत्ति का काल्पनिक सिद्धान्त कौन – सा है?
उत्तर:
दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त।
प्रश्न 3.
राज्य की उत्पत्ति के किस सिद्धान्त के अनुसार राज्य मानव निर्मित संस्था न होकर दैवीय संस्था है?
उत्तर:
दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त के अनुसार।
प्रश्न 4.
दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त के सर्वप्रथम समर्थक कौन थे?
उत्तर:
यहूदी।
प्रश्न 5.
राबर्ट फिल्मर ने अपनी पुस्तक ‘पैट्रियाकी’ में पृथ्वी का प्रथम राजा किसने माना है?
उत्तर:
आदम को।
प्रश्न 6.
इंग्लैण्ड के राजा जेम्स प्रथम द्वारा लिखित पुस्तक का नाम बताइए।
उत्तर:
टूल्स ऑफ फ्री मोनार्कीज।
प्रश्न 7.
दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त के अनुसार राजा को किस नाम से जाना जाता था?
उत्तर:
सूर्यपुत्र के नाम से।
प्रश्न 8.
नेपाल में राजा को किसका अवतार माना जाता था?
उत्तर:
विष्णु का।
प्रश्न 9.
“राजसत्ता पूर्ण निरकुंश सर्वोच्च एवं असीमित होती है। ऐसा ईश्वर की इच्छा से होता है।” यह मान्यता किस सिद्धान्त की है?
उत्तर:
दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त की।
प्रश्न 10.
दैवीय सिद्धान्त सत्ता के उत्तराधिकार की किस रूप में व्याख्या करता है?
उत्तर:
यह सिद्धान्त वंशानुगत आधार पर सत्ता के उत्तराधिकार की व्याख्या करता है।
प्रश्न 11.
दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त की कोई दो विशेषताएँ / मान्यताएँ लिखिए।
उत्तर:
- राज्य ईश्वर निर्मित संस्था है
- राजसत्ता निरंकुश है।
प्रश्न 12.
दैवीय सिद्धान्त के पतन के कारण बताइए।
उत्तर:
- सामाजिक समझौता सिद्धान्त का उदय
- प्रजातान्त्रिक विचारधारा का उदय
- राज्य और चर्च का संघर्ष।
प्रश्न 13.
दैवीय सिद्धान्त के कोई दो दोष / आलोचना लिखिए।
उत्तर:
- निरंकुशता का पोषक,
- प्रजातन्त्र विरोधी।
प्रश्न 14.
राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति ईश्वर ने की है तथा राजा उसका प्रतिनधि है। इसलिए वह ईश्वर के प्रति ही उत्तरदायी है। इस प्रकार यह सिद्धान्त निरंकुश राजतन्त्र का समर्थन करता है।
प्रश्न 15.
दैवीय सिद्धान्त के कोई दो महत्व बताइए।
उत्तर:
- दैवीय सिद्धान्त ने प्रारम्भिक अराजकता पूर्ण समाज में शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित करने में योगदान दिया।
- इस सिद्धान्त ने राज्य के विकास में धर्म के प्रभाव को प्रतिपादित किया।
प्रश्न 16.
अरस्तु के अनुसार राज्य को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अरस्तु के अनुसार, “राज्य परिवार और ग्रामों का समुदाय है जिसका लक्ष्य पूर्ण और आत्मनिर्भर जीवन है।”
प्रश्न 17.
अरस्तु के अनुसार राज्य की उत्पत्ति किस प्रकार हुई?
उत्तर:
अरस्तु के अनुसार, “जब अनेक परिवार संयुक्त हो जाते हैं तो ग्राम का निर्माण होता है अर्थात् ग्राम से ही राज्य की उत्पत्ति होती है।”
प्रश्न 18.
पितृ सत्ता सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक विद्वान कौन हैं?
उत्तर:
हेनरीमेन।
प्रश्न 19.
पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त में परिवार का मुखिया कौन होता है?
उत्तर:
परिवार का सबसे वृद्ध व्यक्ति।
प्रश्न 20.
पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त के कोई दो प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
- परिवार में पुरुष ही परिवार का मुखिया होता था
- परिवार का आधार स्थायी वैवाहिक सम्बन्ध था।
प्रश्न 21.
पितृ सत्ता सिद्धान्त की कोई दो आलोचनाएँ लिखिए।
उत्तर:
- पितृ प्रधान सिद्धान्त सभी जगह लागू नहीं
- प्रारम्भिक सामाजिक इकाई कबीला थी।
प्रश्न 22.
पितृ सत्ता सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पितृ सत्ता सिद्धान्त के अनुसार पुरुष प्रधान परिवार से गोत्र और गोत्र से कबीलों का निर्माण हुआ तथा कबीलों से राज्य की उत्पत्ति हुई।
प्रश्न 23.
मातृ प्रधान सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक कौन हैं?
उत्तर:
मातृ प्रधान सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक मेक्लेनन, मॉर्गन एवं जैक्स आदि हैं।
प्रश्न 24.
मातृ प्रधान सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मातृ प्रधान सिद्धान्त के अनुसार राज्य परिवारों का विकसित रूप है। अस्थायी विवाह सम्बन्धों के कारण माता ही परिवार की मुखिया एवं राज्य की शासक बनी।
प्रश्न 25.
मातृ प्रधान सिद्धान्त की कोई दो आलोचनाएँ लिखिए।
उत्तर:
- अत्यधिक सरल सिद्धान्त
- राज्य के विकास के लिए उत्तरदायी मान्यताओं की उपेक्षा।
प्रश्न 26.
शक्ति सिद्धान्त के अनुसार राज्य की उत्पत्ति का एकमात्र कारण क्या है?
उत्तर:
शक्ति।
प्रश्न 27.
शक्ति सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शक्ति सिद्धान्त के अनुसार राज्य की उत्पत्ति का एकमात्र आधार शक्ति है। राज्य शक्तिशाली व्यक्तियों द्वारा निर्बलों को अधीन करने की प्रवृत्ति का परिणाम है।
प्रश्न 28.
किसने कहा कि राज्य का आधार रक्त और लौह होना चाहिए।
उत्तर:
बिस्मार्क ने।
प्रश्न 29.
राज्य की उत्पत्ति का कौन – सा सिद्धान्त साम्राज्यवाद को बढ़ावा देता है?
उत्तर:
शक्ति सिद्धान्त।
प्रश्न 30.
शक्ति से क्या आशय है?
उत्तर:
शक्ति से आशय भौतिक एवं सैनिक शक्ति से है।
प्रश्न 31.
शक्ति सिद्धान्त की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
- शक्ति राज्य की उत्पत्ति का एकमात्र आधार है,
- वर्तमान में राज्यों का अस्तित्व शक्ति पर ही निर्भर है।
प्रश्न 32.
अराजकतावादी एवं समाजवादी विचारकों ने व्यक्ति की स्वतन्त्रता हेतु किस सिद्धान्त का प्रयोग कया?
उत्तर:
शक्ति सिद्धान्त का।
प्रश्न 33.
शक्ति सिद्धान्त की कोई दो आलोचनाएँ लिखिए।
उत्तर:
- यह सिद्धान्त राज्य को निरकुंश बनाता है
- अन्तर्राष्ट्रीय क्रान्ति एवं विश्व बन्धुत्व का विरोधी है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त की प्रमुख मान्यताएँ बताइए।
उत्तर:
राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ / मान्यताएँ – राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ / मान्यताएँ निम्नलिखित हैं
- राज्य एक ईश्वर निर्मित संस्था है। राज्य न तो स्वयं विकसित संस्था है एवं न ही वह मानवकृत संस्था है।
- राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होता है। राजा की शक्तियाँ ईश्वर प्रदत्त हैं।
- राजा की शक्तियाँ असीमित हैं जनता को उसके विरुद्ध कोई अधिकार प्राप्त नहीं है तथा जनता उसके विरुद्ध विद्रोह नहीं कर सकती।
- राजतन्त्र सर्वोत्तम शासन है। राज्य का यह रूप ईश्वर के विधान के ही अनुरूप होता है।
- इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य, राजा और शासन तीनों समानार्थी हैं इनमें कोई अन्तर नहीं है।
- राजा ईश्वर के प्रति ही उत्तरदायी होता है न कि जनता के प्रति । ईश्वर की ही तरह राजसत्ता के आदेश सर्वोच्च, उचित तथा न्यायसंगत होते हैं।
- इस सिद्धान्त के अनुसार राजा की आज्ञाओं का पालन करना जनता का अनिवार्य कर्तव्य है। इसका उल्लंघन धार्मिक दृष्टि से पाप है।
प्रश्न 2.
राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त का प्रयोग एवं पतन के कारण लिखिए।
उत्तर:
राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त का प्रयोग:
- राजाओं ने अपनी शक्ति मजबूत करने तथा अपने लिए आम जनता की अन्धभक्ति प्राप्त करने के लिए इस सिद्धान्त का प्रयोग किया।
- लोकतन्त्र के विरोध के लिए इसका प्रयोग किया गया।
- राजा और पोप के संघर्ष में भी राजा को श्रेष्ठ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया गया। पतन के कारण-दैवीय सिद्धान्त के पतन के कारण निम्नलिखित हैं
- सामाजिक समझौता सिद्धान्त का उदय जिसने यह प्रतिपादित किया कि राज्य दैवीय संस्था न होकर एक मानवीय संस्था है।
- राजा तथा चर्च में चले संघर्ष ने भी इसके पतन में भूमिका निभाई।
- प्रजातान्त्रिक विचारधारा के उदय के कारण भी इस सिद्धान्त ने अपना महत्त्व खो दिया।
प्रश्न 3.
दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त की प्रमुख कमियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त की आलोचनाएँ बताइए।
उत्तर:
राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त की प्रमुख कमियाँ / आलोचनाएँ – राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त की प्रमुख कमियाँ / आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं
- ऐतिहासिक प्रमाणों का अभाव – इतिहास में इस बात का कोई प्रमाण नहीं कि राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है। यह सिद्धान्त राजनैतिक चेतना, आर्थिक आवश्यकता, रक्त सम्बन्ध आदि की भी उपेक्षा करता है।
- निरंकुशता का पोषक – राजा, प्रजा के प्रति उत्तरदायी नहीं होने के कारण राजसत्ता पूर्णतया निरंकुश एवं अधिनायकवादी बन गई।
- अतिवादी दृष्टिकोण-इस सिद्धान्त में राजा को पूर्ण शक्ति सम्पन्न तथा दैवीय गुणों से सम्पन्न बताया। है, जो कि एक अतिवादी दृष्टिकोण है।
- लोकतान्त्रिक भावनाओं के विपरीत – यह सिद्धान्त प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था के प्रतिकूल है।
- रूढ़िवादी सिद्धान्त – यह सिद्धान्त एक रूढ़िवादी सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त की मान्यताओं में जनहितकारी । परिवर्तन नहीं किये जा सकते हैं क्योंकि राजा के प्रति विरोध को ईश्वर के प्रति अपराध एवं पाप माना गया है।
- धार्मिक सिद्धान्त – आज के युग में जहाँ बहुत से लोग ईश्वर तथा धर्म में आस्था नहीं रखते, उनके लिए इसकी कोई उपयोगिता नहीं है। आज के लोकतान्त्रिक एवं बुद्धिवादी युग में यह सिद्धान्त उचित प्रतीत नहीं होता है।
- अवैज्ञानिक – दैवीय सिद्धान्त की मान्यता को केवल धार्मिक विश्वासों के आधार पर ही सही माना जा सकता है, तर्क के आधार पर नहीं।
प्रश्न 4.
राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त का महत्त्व – यद्यपि वर्तमान समय में दैवीय उत्पत्ति का सिद्धान्त राज्य की उत्पत्ति की सही व्याख्या नहीं करता है इसके बावजूद भी इसको अपना महत्त्व है। दैवीय सिद्धान्त का महत्त्व निम्नलिखित प्रकार है
- राज्य की उत्पत्ति की क्रमबद्ध व्याख्या – यह सिद्धान्त राज्य की उत्पत्ति की क्रमबद्ध व्याख्या करने का प्रथम प्रयास था जिस पर आगे चलकर राज्य की उत्पत्ति के नये-नये सिद्धान्त विकसित हुए।
- शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित करने में योगदान – इस सिद्धान्त ने प्रारम्भिक अराजकतापूर्ण समाज में शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित करने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस सिद्धान्त ने लोगों को राजा के नेतृत्व में संगठित किया।
- आज्ञापालन एवं अनुशासन की भावना का विकास – इस सिद्धान्त ने जनता के मन में आज्ञापालन एवं अनुशासन की भावना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- धर्म के प्रभाव को प्रतिपादित करना – इस सिद्धान्त के द्वारा जिस समय नैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक आदर्शों का अभाव था, उस समय धर्म ने जनता को सुरक्षित एवं व्यवस्थित जीवन प्रदान किया।
प्रश्न 5.
पितृ सत्ता सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
उत्तर:
पितृ सत्ता सिद्धान्त की आलोचना – पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त की आलोचना निम्नलिखित है
- अत्यन्त सरल सिद्धान्त – राज्य की उत्पत्ति का पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त अत्यन्त सरल सिद्धान्त है, जबकि राज्य की उत्पत्ति जटिल विकास का परिणाम है जिसमें अनेक छोटे एवं बड़े तत्वों का योगदान है।
- पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त का सभी जगह अस्तित्व नहीं – इस सिद्धान्त का सम्पूर्ण विश्व में अस्तित्व नहीं है। एशिया और ऑस्ट्रेलिया में मातृ प्रधान व्यवस्था के उदाहरण देखने को मिलते हैं।
- प्रारम्भिक सामाजिक इकाई कबीला थी – मॉर्गन, मैक्सवेल आदि के अनुसार प्रारम्भिक सामाजिक इकाई कबीला थी। कबीला टूटने पर गोत्र और गोत्र से परिवार का निर्माण हुआ। इनके अनुसार वंश स्त्री से चलता था, पुरुष से नहीं।
- समाजशास्त्रीय सिद्धान्त – यह सिद्धान्त राज्य उत्पत्ति का राजनीतिक सिद्धान्त कम और समाज शास्त्रीय सिद्धान्त अधिक लगता है।
प्रश्न 6.
पितृ एवं मातृ सत्ता सिद्धान्त का महत्व बताइए।
उत्तर:
पितृ एवं मातृ सत्ता सिद्धान्त का महत्व – राज्य उत्पत्ति के पितृ एवं मातृ सत्ता सिद्धान्त की अनेक आलोचनाओं के बावजूद इनका अपना एक विशेष महत्व है। इस महत्त्व का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है
(i) रक्त सम्बन्ध का महत्त्व-पितृ एवं मातृ सत्ता – ये दोनों ही सिद्धान्त राज्य के विकास में रक्त सम्बन्धों के योगदान को उचित रूप से विश्लेषित करते हैं। राज्य की उत्पत्ति का विकासवादी सिद्धान्त भी इस बात को स्वीकार करता है कि राज्य के विकास में रक्त सम्बन्धों का अत्यधिक महत्व रहा है। समाज में परिवार एकता की प्रमुख इकाई थी।
(ii) आज्ञापालन एवं अनुशासन की भावना का विकास – पितृ एवं मातृ सत्ता सिद्धान्त के कारण ही राज्य में आज्ञापालन एवं अनुशासन की भावना का महत्व स्थापित हुआ।
प्रश्न 7.
“शक्ति के कारण ही राज्य की उत्पत्ति हुई।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
“शक्ति के कारण ही राज्य की उत्पत्ति हुई” यह कथन राज्य की उत्पत्ति के शक्ति सिद्धान्त से सम्बन्धित है। रसिद्धान्त के अनुसार राज्य की उत्पत्ति का मूल आधार शक्ति है। प्रारम्भ में शक्ति का प्रयोग अधिक बलशाली लोगों कमजोर व्यक्तियों को अपने अधीन करने के लिए किया। दूसरे शब्दों में कहें तो, शक्ति अर्थात् युद्ध ने राज्य की उत्पत्ति : में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
शक्ति के उपयोग से संगठन प्रारम्भ हुआ और धीरे – धीरे राज्य नामक राजनीतिक संगठन का विकास हुआ। यह सिद्धान्त इस तथ्य की पुष्टि करता है कि सर्वप्रथम कबीलों का संगठन शक्ति के आधार पर हुआ होगा तत्पश्चात् कबीले के सरदार के नेतृत्व में जो राज्य विकसित हुआ होगा, उसका आधार केवल शक्ति ही रही है। इससे स्पष्ट होता है। कि शक्ति के कारण ही राज्य की उत्पत्ति हुई।
प्रश्न 8.
विभिन्न विचारकों ने शक्ति सिद्धान्त का प्रयोग किस प्रकार किया है? बताइए।
उत्तर:
राज्य की उत्पत्ति के शक्ति सिद्धान्त से आशय यह है कि राज्य की उत्पत्ति का मूल आधार शक्ति है। प्रत्येक राज्य में हमेशा ही शक्तिशाली व्यक्तियों का निर्बलों पर शासन होता आया है। इतिहास इस तथ्य का साक्षी है और वर्तमान में भी राज्यों का अस्तित्व केवल शक्ति पर ही केन्द्रित है। विभिन्न विचारकों ने शक्ति सिद्धान्त का प्रयोग निम्नांकित प्रकार से किया है
- मध्यकाल में इस सिद्धान्त का उपयोग धर्मगुरुओं ने राज्य को दूषित और चर्च को श्रेष्ठ संस्था बताने में किया।
- व्यक्तिवादियों ने व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में सरकार के हस्तक्षेप को रोकने के लिए इसका उपयोग किया।
- फासीवादी और नाजीवादियों ने भी इस सिद्धान्त का समर्थन और प्रयोग किया।
- अराजकतावादी व समाजवादी विचारकों ने भी व्यक्ति की स्वतन्त्रता हेतु इस सिद्धान्त का व्यापक रूप से प्रयोग किया।
प्रश्न 9.
शक्ति सिद्धान्त के महत्त्व को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राज्य के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शक्ति सिद्धान्त का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राज्य के सन्दर्भ में महत्व – राज्य की उत्पत्ति के शक्ति सिद्धान्त के अनुसार राज्य की उत्पत्ति का मूल आधारे शक्ति है। प्रारम्भ में शक्ति का प्रयोग अधिक शक्तिशाली लोगों ने कमजोर व्यक्तियों को दबाने के लिए किया। शक्ति के उपयोग से संगठन प्रारम्भ हुआ और धीरे-धीरे राज्य नामक राजनीतिक संगठन का विकास हुआ। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राज्य के सन्दर्भ में शक्ति सिद्धान्त का बहुत अधिक महत्त्व है। यह निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट है
- इस सिद्धान्त ने राज्य के विकास में शक्ति के योगदान को विस्तृत रूप में प्रतिपादित किया है।
- इस सिद्धान्त ने शक्ति के व्यापक रूप को हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है।
- इस सिद्धान्त ने आर्थिक, सैनिक तथा राजनैतिक शक्ति आदि के विभिन्न रूपों की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
दैतीय उत्पत्ति सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन दैवीय उत्पत्ति सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन निम्नलिखित है
- अवैज्ञानिक सिद्धान्त – दैवीय सिद्धान्त की मान्यताओं को केवल धार्मिक विश्वासों के आधार पर ही सही माना जा सकता है, तर्क के आधार पर नहीं।
- निरंकुशता को पोषक – राजा, प्रजा के प्रति उत्तरदायी नहीं होने के कारण राजसत्ता पूर्ण निरंकुश एवं अधिनायकवादी बन गई।
- लोकतान्त्रिक भावनाओं के विपरीत-यह सिद्धान्त प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था के प्रतिकूल है।
- अतिवादी दृष्टिकोण – इस सिद्धान्त में राजा को पूर्ण शक्ति सम्पन्न एवं दैवीय गुणों से सम्पन्न कहा गया है। जोकि एक अतिवादी दृष्टिकोण है।
- धार्मिक सिद्धान्त – आज के समय में जहाँ बहुत से लोग ईश्वर तथा धर्म में आस्था नहीं रखते, उनके लिए इसकी कोई उपयोगिता नहीं है।
- रूढ़िवादी सिद्धान्त – यह सिद्धान्त एक रूढ़िवादी सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त की मान्यताओं में जनहितकारी परिवर्तन नहीं किये जा सकते हैं क्योंकि राजा के प्रति विरोध को ईश्वर के प्रति अपराध एवं पाप माना गया है।
- ऐतिहासिक प्रमाणों का अभाव – इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है। यह सिद्धान्त राजनैतिक चेतना, रक्त सम्बन्ध एवं आर्थिक आवश्यकता आदि की भी उपेक्षा करता है।
- प्रतिक्रियावादी सिद्धान्त – यह सिद्धान्त जनता के मन में राजा के प्रति अन्धभक्ति उत्पन्न करता है जो सिद्धान्त के विरुद्ध है।
- केवल राजतन्त्र पर लागू सिद्धान्त – राज्य उत्पत्ति का यह सिद्धान्त केवल राजतन्त्र पर लागू होता है, लोकतन्त्र या कुलीन तन्त्र पर लागू नहीं होता है।
निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि इस सिद्धान्त ने तत्कालीन समय में समाज को अराजकता से बचाकर लोगों को राजा के नेतृत्व में संगठित किया। जिस समय नैतिक, सामाजिक और आर्थिक आदर्शों का अभाव था, उस समय धर्म ने सुरक्षित और व्यवस्थित जीवन दिया।
प्रश्न 2.
राज्य की उत्पत्ति के शक्ति सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
राज्य की उत्पत्ति का शक्ति सिद्धान्त। शक्ति सिद्धान्त के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति का एकमात्र कारण शक्ति या बल प्रयोग है। राज्य का उदय शक्तिशाली व्यक्तियों के द्वारा निर्बल व्यक्तियों को अपने अधीन करने की प्रवृत्ति के कारण हुआ है। अन्य शब्दों में कहें तो युद्ध राज्य की उत्पत्ति का प्रमुख कारण था।
युद्ध में विजेता शासक बन गया और पराजित प्रजा बन गये। राज्य बलवानों द्वारा निर्बलों पर अधिकार और प्रभुत्व का परिणाम है अर्थात् प्रभुत्व की लालसा मनुष्यों को आपसी संघर्ष की ओर ले जाती है ओर इस संघर्ष में जो मनुष्य अपनी अजेय शक्ति से दूसरों को पराधीन बनाता है वही सबसे पहले राजा बना।
राज्य उत्पत्ति के शक्ति सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन: राज्य उत्पत्ति के शक्ति सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन निम्नलिखित है
- शक्ति, राज्य निर्माण का सहायक तत्व है, एकमात्र निर्णायक तत्व नहीं है। यद्यपि इसने राज्य की उत्पत्ति में प्रमुख भूमिका का निर्वाह किया परन्तु इसकी उत्पत्ति के अन्य कारण चेतना, धर्म, रक्त सम्बन्ध आदि भी रहे।
- यह सिद्धान्त केवल शक्ति को ही राज्य का आधार मानता है, जबकि राज्य का आधार शक्ति नहीं, इच्छा है। लोगों की इच्छा के बिना न तो राज्य संगठित हो सकता है और न स्थापित रह सकता है। लोग राज्य के आदेशों का पालन शक्ति के भय से नहीं, अपने विवेक और बुद्धि से करते हैं।
- यह सिद्धान्त मानव स्वभाव की एकांगी व्याख्या करता है।
- यह सिद्धान्त युद्ध एवं क्रान्ति में विश्वास करता है। अतः यह प्रजातन्त्र का विरोधी है।
- यह सिद्धान्त उग्र राष्ट्रवाद तथा साम्राज्यवाद को बढ़ावा देता है।
- यह सिद्धान्त केवल भौतिक शक्ति पर जोर देता है। आधुनिक समय में आध्यात्मिक तकनीकी और वैधानिक शक्ति का भी महत्त्व दिया जाता है।
- यह सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय शक्ति एवं विश्व बन्धुत्व का विरोध करता है।
- यह सिद्धान्त राज्य को निरकुंश बनाता है जिससे आम जनता की स्वतन्त्रता बाधित होती है और जनतन्त्र का विनाश होता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राज्य की उत्पत्ति एवं विकास में यद्यपि शक्ति ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है लेकिन वर्तमान में यह सिद्धान्त अधिक मान्य नहीं है।