RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 8 सामाजिक समझौता सिद्धान्त एवं विकासवादी सिद्धान्त
RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 8 सामाजिक समझौता सिद्धान्त एवं विकासवादी सिद्धान्त
Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Chapter 8 सामाजिक समझौता सिद्धान्त एवं विकासवादी सिद्धान्त
RBSE Class 11 Political Science Chapter 8 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Political Science Chapter 8 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हॉब्स की पुस्तक का क्या नाम है?
उत्तर:
लेवियाथन।
प्रश्न 2.
रूसो ने अपने सम्प्रभु का क्या नाम दिया है?
उत्तर:
सामान्य इच्छा।
प्रश्न 3.
लॉक ने कैसी प्राकृतिक अवस्था का वर्णन किया है?
उत्तर:
लॉक ने प्राकृतिक अवस्था को शान्ति, सद्भावना, पारस्परिक सहयोग एवं सुरक्षा की अवस्था बताया है।
प्रश्न 4.
विकासवादी सिद्धान्त के मुख्य तत्वों के नाम लिखिए।
उत्तर:
विकासवादी सिद्धान्त के मुख्य तत्व हैं
- मूल सामाजिक प्रवृत्ति
- रक्त सम्बन्ध
- धर्म
- शक्ति
- आर्थिक आवश्यकताएँ
- राजनैतिक चेतना।
प्रश्न 5.
रूसो ने मानव स्वभाव की मूल प्रवृत्तियाँ क्या बतायी हैं?
उत्तर:
- स्वतन्त्रता
- आत्मनिर्भरता।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
रूसो की सामान्य इच्छा क्या थी?
उत्तर:
रूसो के दर्शन का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्वे सामान्य इच्छा है। इसके माध्यम से रूसो ने स्वतन्त्रता, सत्ताहित, कर्तव्य, वैयक्तिकता एवं सम्पूर्णता आदि का समाधान प्रस्तुत किया। सामान्य इच्छा ने लोक प्रभुता एवं प्रजातन्त्र के मार्ग को प्रशस्त किया है। रूसो ने सामान्य इच्छा को स्पष्ट करने के लिए दो प्रकार की इच्छाओं का वर्णन किया है-
- यथार्थ इच्छा,
- आदर्श इच्छा।
1. यथार्थ इच्छा – यह मनुष्य के स्वार्थ पर आधारित इच्छा है। यह वह इच्छा है जब व्यक्ति किसी विषय पर व्यक्तिगत हित से प्रेरित होकर सोचता है। यह इच्छा भावना प्रधान, स्वार्थी, संकुचित, पक्षपातपूर्ण, विवेकहीन, परिवर्तनशील, अस्थिर तथा कामना प्रधान होती है।
2. आदर्श इच्छा – यह मनुष्य की परमार्थ पर आधारित इच्छा है। यह वह इच्छा है जो सम्पूर्ण समाज के लिए कल्याणकारी है। इसमें व्यक्तिगत हित के स्थान पर सामाजिक हित की प्रधानता होती है। सामान्य इच्छा, बहुमत की इच्छा ही हो, यह आवश्यक नहीं है।
सामान्य इच्छा वास्तव में समाज में व्याप्त समस्त आदर्श इच्छाओं का योग है। यदि एक व्यक्ति की इच्छा भी आदर्श इच्छा है तो वह सामान्य इच्छा ही मानी जाएगी। इस प्रकार रूसो सम्प्रभुता का अधिवास समाज की आदर्श इच्छाओं के योग अर्थात् सामान्य इच्छा में मानता है। रूसो की यह सामान्य इच्छा सम्प्रभु है तथा यह अहस्तांतरणीय, अदेय, अविभाज्य, सर्वव्यापक एवं बाध्यकारी सर्वोच्च सत्ता है।
प्रश्न 2.
मानव स्वभाव के विषय में हॉब्स के क्या विचार हैं?
उत्तर:
थॉमस हॉब्स के अनुसार मानव स्वभाव – थॉमस हॉब्स इंग्लैण्ड के एक राजनीतिक विचारक थे। इन्होंने अपनी पुस्तक लेवियाथन में सामाजिक समझौता सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। हॉब्स ने अपनी पुस्तक में मानव के नकारात्मक स्वभाव का वर्णन किया है। इनके अनुसार मनुष्य मूल रूप से एक असामाजिक प्राणी, स्वभावतः एकाकी, स्वार्थी, अहंकारी एवं झगड़ालू है।
वह शक्ति से प्रेम करता है। वह अपने सुख एवं स्वार्थों की पूर्ति के लिए संघर्षरत है। तथा संघर्ष में सफलता के लिए वह झूठ, कपट, हिंसा आदि का सहारा लेता है। हॉब्स के अनुसार, मनुष्य में सद्गुण भी होते हैं परन्तु वे उसके स्वभाव के अंग नहीं होते। इस प्रकार थॉमस हॉब्स के अनुसार मनुष्य स्वभावत: दीन, हीन व पाश्विक प्रवृत्ति से युक्त था।
प्रश्न 3.
राज्य के विकास में धर्म का क्या योगदान है?
उत्तर:
राज्य के विकास में धर्म का योगदान – राज्य के विकास में धर्म का महत्त्वपूर्ण योगदान है। रक्त सम्बन्ध की भाँति ही धर्म ने भी आदिम मनुष्य एवं समाज को जोड़ने का कार्य किया। समान रक्त सम्बन्ध से जुड़े लोगों के देवता, धार्मिक विश्वास एवं आस्थाएँ एक जैसी ही होती हैं। प्राचीन समय में धर्म के दो महत्त्वपूर्ण आयाम थे। पितृ पूजा एवं प्रकृति पूजा। पितृ पूजा के कारण मनुष्यों में सजातीयता व बन्धुत्व का भाव अक्षुण्ण रहता है। जिन लोगों के आराध्य देव एक थे, उनमें एकता का भाव होता था।
धर्म ने लोगों की संगठनात्मक शक्ति को बल प्रदान किया। धर्म ने प्राचीन काल में असभ्य मनुष्यों को सभ्यता प्रदान की और उनमें अनुशासन का भाव उत्पन्न किया। धर्म ने ही प्राचीनकाल में यत्र-तत्र बिखरी हुई जातियों को एकता के सूत्र में पिरोया तथा उनमें एकता व अनुशासन का भाव उत्पन्न किया। राज्य और धर्म को सम्बन्ध आदिम युग से ही नहीं था वरन् यह वर्तमान युग में भी है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, सऊदी अरब एवं अफगानिस्तान आदि राज्यों में धर्म और राजनीति में गहरा सम्बन्ध देखा जाता है।
प्रश्न 4.
लॉक की प्राकृतिक अवस्था में मानव कैसा था?
उत्तर:
जॉन लॉक इंग्लैण्ड के राजनीतिक चिंतक थे। इन्होंने राज्य की उत्पत्ति का सामाजिक समझौता सिद्धान्त प्रतिपादित किया। इन्होंने राज्य के विकास को महत्वपूर्ण प्राकृतिक अवस्था में शान्ति, सद्भावना, पारस्परिक सहयोग एवं सुरक्षा को महत्त्वपूर्ण बताया। मनुष्य के परोपकारी एवं विवेकपूर्ण स्वभाव के कारण प्राकृतिक अवस्था शान्तिपूर्ण थी।
प्राकृतिक अवस्था में सभी मनुष्य समान थे। यह स्वतन्त्रता की अवस्था थी, स्वच्छन्दती की नहीं, क्योंकि लोग प्राकृतिक कानूनों एवं नैतिकता के नियमों को मानते थे। प्राकृतिक कानूनों की सर्वमान्य व्याख्या की कोई व्यवस्था नहीं थी। उस समय का एक ही प्राकृतिक कानून था कि, “तुम दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो, जिसकी अपेक्षा तुम दूसरों से करते हो।” इस प्रकार लॉक ने प्राकृतिक अवस्था को पूर्णतः नैतिक, सामाजिक एवं कर्तव्य बोध की अवस्था माना।
प्रश्न 5.
राज्य के विकास में शक्ति का क्या योगदान है?
उत्तर:
राज्य के विकास में शक्ति का योगदान – राज्य के विकास में शक्ति का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। युद्ध शक्ति को व्यावहारिक रूप प्रदान करने वाला साधन था। ‘जैक्स’ नामक राजनीतिक विचारक ने कहा है कि, “युद्ध ने राजा को जन्म दिया।” प्राचीन काल में शक्ति के आधार पर ही निर्णय होते थे, संघर्ष में पराजित व्यक्ति या कबीले को गुलाम बनना पड़ता था।
राज्य के विकास में शक्ति की भूमिका युद्ध और विजय की गतिविधियों से भी स्पष्ट है। शक्तिशाली शत्रु का खतरा छोटे-छोटे समूहों को एकता के सूत्र में बँधने की प्रेरणा देता है। मनुष्य की मूल प्रवृत्ति यह है कि वह दूसरे लोगों पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहता है। राज्य के विकास में जब कृषि, निवास स्थान तथा सम्पत्ति का विकास हुआ। तब इनकी रक्षा के लिए युद्ध होने लगे।
जनता शक्तिशाली व्यक्ति का नेतृत्व स्वीकार करने लगी। शक्ति से शासन के प्रति भक्ति के भाव उत्पन्न होने लगे जनता की भक्ति ने शासक को मजबूती प्रदान की और राज्य का विकास हुआ। शक्ति, राज्य उत्पत्ति का कारण है लेकिन इसे एकमात्र कारण नहीं माना जा सकता। राज्य की उत्पत्ति में अन्य कारकों में रक्त सम्बन्ध, धर्म, आर्थिक अवधारणाएँ, मूल सामाजिक प्रवृत्ति एवं राजनैतिक चेतना आदि का भी योगदान रहा है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त को समझाइए।
उत्तर:
रूसो का सामान्य इच्छा सिद्धान्त रूसो के राजनीतिक दर्शन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्व सामान्य इच्छा का सिद्धान्त है। व्यक्ति समझौते द्वारा समुदाय के लिए अपनी शक्ति का जो परित्याग करता है, उससे उसकी वैयक्तिक इच्छा का स्थान एक सामान्य इच्छा ले लेती है। रूसो ने सामान्य इच्छा की पृष्ठभूमि में ‘यथार्थ इच्छा’ और ‘आदर्श इच्छा’ में अन्तर किया है, जो इस प्रकार है
(i) यथार्थ इच्छा – सामान्यतया यथार्थ इच्छा और आदर्श इच्छा का एक ही अर्थ लिया जाता है, परन्तु रूसो के द्वारा इनका प्रयोग विशेष अर्थों में किया जाता है। रूसो के अनुसार, यथार्थ इच्छा मानव की इच्छा का वह भाग है। जिसका लक्ष्य व्यक्तिगत स्वार्थ की पुष्टि हो और जो स्वयं व्यक्ति केन्द्रित हो। इसके अन्तर्गत सामाजिक हित की अपेक्षा व्यक्तिगत स्वार्थ ही प्रबलता होती है।
(ii) आदर्श इच्छा – इसके विपरीत आदर्श इच्छा मानव की वह इच्छा है जिसका लक्ष्य सम्पूर्ण समाज का कल्याण है। इस इच्छा के अनुसार मानव स्वयं के हित को सामाजिक हित का अभिन्न अंग मानता है तथा सम्पूर्ण समाज के हित को दृष्टि में रखते हुए ही वस्तुस्थिति पर विचार करता है। सामान्य इच्छा का निर्माण – रूसो के अनुसार, जब कोई प्रश्न जनता के समक्ष उपस्थित होता है, तो जनता का प्रत्येक व्यक्ति अपनी – अपनी तरह उस पर विचार – विमर्श करने के साथ विचारों का आदान-प्रदान भी करता है। विचारों के इस आदान-प्रदान से व्यक्तियों की स्वार्थयुक्त इच्छा नष्ट हो जाती है और सामान्य इच्छा का निर्माण होता है।
सामान्य इच्छा की विशेषताएँ:
रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- लोक कल्याणकारी-सामान्य इच्छा लोक कल्याणकारी होती है। यह आदर्श इच्छाओं का योग होती है। रूसो के अनुसार, सामान्य इच्छा सदैव अच्छी होती है और सम्पूर्ण समाज को कल्याण करने के लिए होती है।
- अखण्डता – सामान्य इच्छा में परस्पर विरोध नहीं होता। इसमें विभिन्नता में एकता पायी जाती है।
- स्थायी – सामान्य इच्छा क्षणिक एवं भावात्मक आवेगों का परिणाम नहीं होती अपितु मानव कल्याण की स्थायी प्रवृत्ति होती है।
- अविभाज्य – रूसो के अनुसार, सामान्य इच्छा का विभाजन नहीं किया जा सकता। जिस प्रकार जीव अपने व्यक्तित्व को समाप्त किये बिना अपना विभाजन नहीं कर सकता, उसी प्रकार राजनैतिक समाज में सामान्य इच्छा का विभाजन नहीं हो सकता।
- अदेयता – सामान्य इच्छा अदेय है। इसका हस्तांतरण नहीं किया जा सकता।
- विवेक पर आधारित – सामान्य इच्छा तर्क और विवेक पर आधारित होती है। यह व्यक्तिगत स्वार्थ से भ्रष्ट नहीं होती है।
- निरंकुश – सामान्य इच्छा सर्वोच्च और निरंकुश होती है। इस पर व्यक्ति या व्यक्ति समूह, परम्पराओं आदि से रोक नहीं लगायी जा सकती है।
सामान्य इच्छा का महत्व:
आलोचनाओं के बाद भी रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त का राजनीति में बहुत अधिक महत्व है, जो निम्नलिखित है
- रूसो की सामान्य इच्छा का विचार प्रजातन्त्र के लिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे यह पता चलता है कि सत्ता का आधार जन स्वीकृति है।
- यह सिद्धान्त व्यक्ति और समाज दोनों को महत्व प्रदान करता है।
- सामान्य इच्छा को सिद्धान्त राष्ट्रवाद की प्रेरणा देता है।
- यह सिद्धान्त आंगिक एकता के सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है।
प्रश्न 2.
राज्य की उत्पत्ति के विकासवादी सिद्धान्त पर एक निबन्ध लिखो।
उत्तर:
राज्य की उत्पत्ति का विकासवादी सिद्धान्त राज्य की उत्पत्ति की सही व्याख्या विकासवादी सिद्धान्त द्वारा की गयी है। यह सिद्धान्त मनोवैज्ञानिक, ऐतिहासिक और समाजशास्त्रीय प्रमाणों पर आधारित है। इसके अनुसार राज्य न तो कृत्रिम संस्था है और न ही दैवीय उत्पत्ति है। यह सामाजिक जीवन में कई तत्वों; यथा – रक्त सम्बन्ध, धर्म, शक्ति, राजनैतिक, चेतना आर्थिक गतिविधियों आदि का सम्मिलित रूप है। इस प्रकार राज्य सब के हित साधक के रूप में विकसित हुआ। इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य का विकास आदिकाल से होता चला आ रहा है।
इस क्रमिक विकास से ही राज्य राष्ट्रीय राज्य का स्वरूप प्राप्त किया है। बर्गेस नामक राजनीतिक विचारक के अनुसार, “राज्य मानव समाज का निरन्तर विकास है जिसका आरम्भ अत्यन्त अधूरे और विकृत रूप से हुआ।” लीकॉक के अनुसार, “राज्य की उत्पत्ति क्रमिक विकास के आधार पर हुई।” राज्य के इस क्रमिक विकास में अनेक तत्वों ने योगदान दिया। जिनमें स्वाभाविक (मूल) सामाजिक प्रवृत्ति, राजनीतिक चेतना, रक्त सम्बन्ध, धर्म, शक्ति एवं आर्थिक आवश्यकताएँ आदि हैं।”
(1) स्वाभाविक सामाजिक प्रवृत्ति-राज्य मनुष्य की स्वाभाविक सामाजिक प्रवृत्ति का परिणाम है। अरस्तू ने मनुष्य को स्वाभाविक रूप से सामाजिक प्राणी माना है और कहा है कि यदि व्यक्ति समाज से बाहर रह सकता है तो वह या तो देवता है अथवा पशु। राज्य व्यक्ति के जीवन के लिए अस्तित्व में आया और सद्जीवन की प्राप्ति के लिए बना हुआ है।
इससे यह स्पष्ट है कि राज्य एक स्वाभाविक संस्था है और वह मनुष्य की सामाजिक प्रकृति का ही परिणाम है। सामान्यतया मनुष्य राज्य एवं समाज के बिना नहीं रह सकता। सभ्यता के विकास के साथ-साथ सामाजिक भावना दृढ़ होती गयी और सामाजिक चेतना का विकास हुआ। इसके साथ ही राजनीतिक संस्थाओं एवं राज्य का विकास हुआ।
(2) रक्त सम्बन्ध – प्राचीन काल में रक्त सम्बन्ध ने एकता और संगठन के भाव उत्पन्न किये। हेनरी मेन के अनुसार, “समाज के प्राचीनतम इतिहास की आधुनिकतम शोध इस बात की ओर संकेत करता है कि मनुष्य को एकता के सूत्र में बाँधने वाला प्रारम्भिक तत्व रक्त सम्बन्ध ही था।” मैकाइवर ने लिखा है कि “रक्त सम्बन्ध समाज को जन्म देता है और समाज अन्त में राज्य को जन्म देता है।”
(3) धर्म – रक्त सम्बन्ध के समान धर्म ने भी राज्य के विकास में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। रक्त सम्बन्ध और राज्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। विल्सन के अनुसार, “प्रारम्भिक समाज में धर्म और रक्त सम्बन्ध उनकी एकता की अभिव्यक्ति थी। गेटेल के अनुसार, “रक्त सम्बन्ध और धर्म एक सिक्के के दो पहलू हैं।” धर्म ने आदिम युग में मनुष्य में पाश्विकता की जगह आदर, आज्ञापालन और नैतिकता का भाव उत्पन्न किया।
आदिम युग में धर्म का एक अन्य रूप शक्ति की पूजा थी। व्यक्ति जिन विषयों को समझ नहीं पाता, उनकी पूजा करने लगता है इससे वह एकता के सूत्र में बँधता है। राज्य और धर्म को सम्बन्ध आदिम समय था। आज भी है-पाकिस्तान, बांग्लादेश, भारत, सऊदी अरब, अफगानिस्तान आदि देशों में धर्म और राजनीति में गहरा सम्बन्ध देखा जाता है।
(4) शक्ति – राज्य के विधान में शक्ति का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। युद्ध शक्ति को व्यावहारिक रूप प्रदान करने वाला साधन था। युद्ध ने राजा को जन्म दिया। मनुष्य की एक मूल प्रवृत्ति है कि वह दूसरों पर अपना अधिपत्य स्थापित करना चाहता है। राज्य के विकास में जब खेती, निवास स्थान और सम्पत्ति का विकास हुआ तब इसकी रक्षा के लिए युद्ध होने लगे। जनता शक्तिशाली व्यक्ति का नेतृत्व स्वीकार करने लगी। शक्ति से शासक के प्रति भक्ति के भाव जगे और जन शक्ति ने शासक को मजबूत बनाया इस प्रकार राज्य का विकास हुआ।
(5) आर्थिक आवश्यकताएँ-राज्य की उत्पत्ति एवं विकास में मनुष्य की आवश्यकताओं का भी विशेष महत्व रहा है। गैटेल ने कहा कि “आर्थिक गतिविधियों जिनके द्वारा मनुष्य ने भोजन, निवास आदि की बुनियादी सुविधाओं को प्राप्त किया और वाद में सम्पत्ति के उदय ने उसकी सुरक्षा हेतु राज्य के जन्म को अपरिहार्य बना दिया। राज्य द्वारा ही समाज की
आर्थिक व्यवस्था का संचालन होता है तथा लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
(6) राजनैतिक चेतना-राज्य के विकास में धर्म, रक्त सम्बन्ध व सामाजिक चेतना के साथ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्व राजनीतिक चेतना का है। इस राजनीतिक चेतना के द्वारा कुछ निश्चित राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है। लोगों की सुरक्षा, सम्पत्ति की सुरक्षा एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण बढ़ते परिवारों के सम्बन्धों को निर्धारित करने के लिए ऐसे राजनीतिक संगठन एवं कानूनों की आवश्यकता अनुभव की गई जो व्यवस्था बनाए रख सकते हैं। यद्यपि प्रारम्भ में राजनीतिक संगठनों एवं कानून का स्वरूप स्पष्ट एवं विकसित नहीं था, किन्तु इसने राज्य के विकास में निर्णायक योगदान दिया है।
प्रश्न 3.
सामाजिक समझौता सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर:
सामाजिक समझौता सिद्धान्त राज्य की उत्पत्ति सम्बन्धी सिद्धान्तों में सामाजिक समझौता सिद्धान्त सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस सिद्धान्त का जन्म राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धान्त के विरोध में हुआ। 17वीं एवं 18वीं शताब्दी में इस सिद्धान्त की बहुत अधिक महत्ता रही। सामाजिक समझौता सिद्धान्त एक काल्पनिक सिद्धान्त माना जाता है। इसके अनुसार राज्य ईश्वर द्वारा निर्मित न होकर एक मानवनिर्मित संस्था है। इसकी उत्पत्ति उस सामाजिक समझौते का परिणाम है जिसे मनुष्य ने प्राकृतिक अवस्था का अन्त करने के लिए किया था।
इस सिद्धान्त के समर्थकों का मत है कि अराजक काल या प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य राज्य संस्था के अभाव में ही अपना जीवन व्यतीत करता था। इस अराजक काल में मनुष्यों की दशा केसी थी, इस विषय पर राजनीतिक विचारकों में मतभेद हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार इस काल में एक आदर्श दशा थी जिसमें सभी मनुष्य धर्म के अनुसार ही एक – दूसरे से व्यवहार करते थे। अन्य विद्वान इस अवस्था में मानव जीवन को दीन, मलिन एवं पाश्विक मानते हैं। बाद में मानव को अनेक कारणों से राज्य संस्था की आवश्यकता महसूस हुई और उन्होंने परस्पर मिलकर आपस में एक समझौता किया जिसके फलस्वरूप राज्य की उत्पत्ति हुई।
राज्य संस्था के उदय के पश्चात् मनुष्यों ने स्वयं अपने को समाज और राज्य संस्था के नियन्त्रण के अधीन कर लिया। राज्य के समक्ष आत्मसमर्पण कर देने के बदले में मनुष्य को सम्पूर्ण समाज का संरक्षण प्राप्त हो गया। सिद्धान्त की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं विकास-राज्य उत्पत्ति का सामाजिक समझौता सिद्धान्त आधुनिक होते हुए भी ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत प्राचीन है।
इस सिद्धान्त को बहुत अधिक समर्थन प्राप्त हुआ। महाभारत के शान्तिपर्व में इस सिद्धान्त का विस्तार से वर्णन मिलता है। आचार्य चाणक्य (कौटिल्य) ने राज्य संस्था की उत्पत्ति के सम्बन्ध में इसी सिद्धान्त को स्वीकार किया। जैन व बौद्ध साहित्य में भी इस सिद्धान्त का उल्लेख मिलता है।
वहीं पाश्चात्य काल में यूनान के सोफिस्ट विचारकों ने सर्वप्रथम इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उन्होंने राज्य को एक कृत्रिम संस्था मानते हुए इसे एक समझौते का फल माना। रोमन विचारकों ने भी इस बात पर बल दिया कि जनता राजसत्ता का एक अन्तिम स्रोत है। रिचर्ड हूकर नामक विद्वान ने इस सिद्धान्त की सर्वप्रथम वैज्ञानिक रूप से व्याख्या की।
ग्रोसियस एवं स्पिंनोजा नामक विद्वानों ने इसका पोषण किया। 16वीं से 18वीं शताब्दी के मध्य यूरोप में अनेक ऐसे विचारक उत्पन्न हुए जिन्होंने इस सिद्धान्त को विशुद्ध रूप में प्रतिपादित किया लेकिन इस सिद्धान्त को वैज्ञानिक एवं विधिवत् रूप से प्रतिपादित करने का श्रेय थॉमस हॉब्स, जॉन लॉक एवं रूसो को है।
हॉब्स इस सिद्धान्त के माध्यम से निरंकुश राजतन्त्र, लॉक सीमित राजतन्त्र एवं रूसो लोकप्रिय प्रभुसत्ता को न्यायसंगत ठहराने का प्रयत्न करते हैं। हॉब्स के अनुसार प्रत्येक समय मृत्यु के भय के कारण मनुष्य ने आपस में समझौता कर राज्य की उत्पत्ति की। लॉक के अनुसार, मनुष्य ने अनेक असुविधाएँ दूर करने के लिए सामाजिक समझौता द्वारा राज्य का निर्माण किया। रूसो के अनुसार, मानव ने अपनी खोई हुई स्वतन्त्रता को प्राप्त करने के लिए एक समझौता किया जिससे राज्य का निर्माण हुआ।
प्रश्न 4.
लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
लॉक का सामाजिक समझौता सिद्धान्त लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धान्त का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है
(1) मानव स्वभाव – मानव स्वभाव के विषय में लॉक सकारात्मक विचार प्रस्तुत करता है। हॉब्स मानव में पाश्विक प्रवृत्तियों को मान्यता देता है। वहीं लॉक मानवीय गुणों को स्वीकार करता है। लॉक मनुष्य को विचारवान और बुद्धिमान प्राणी मानता है। लॉक के अनुसार, मानव में प्रेम, सहानुभूति, दया, सहयोग परमार्थ आदि मानवीय गुण स्वभाविक रूप से मौजूद होते हैं। वह अपने जीवन के निर्देश प्राकृतिक कानूनों से प्राप्त करता है।
(2) प्राकृतिक अवस्था – लॉक ने प्राकृतिक अवस्था के चित्रण में मानव के सकारात्मक पक्ष को दर्शाया है। इनके अनुसार प्राकृतिक अवस्था शान्ति, सद्भावना, परस्पर सहयोग एवं सुरक्षा की अवस्था थी। प्राकृतिक अवस्था में सभी मनुष्य समान थे। यह स्वतन्त्रता की अवस्था थी, स्वच्छन्दता अवस्था की नहीं थी क्योंकि लोग प्राकृतिक कानूनों और नैतिकता के नियमों को मानते थे। प्राकृतिक कानूनों की सर्वमान्य व्याख्या की कोई व्यवस्था नहीं थी। लोग अपने विवेकानुसार प्राकृतिक कानूनों की व्याख्या करते थे।
लॉक के अनुसार, “प्राकृतिक व्यवस्था में सभी व्यक्तियों को तीन अधिकार प्राप्त थे-
- जीवन का अधिकार
- स्वतन्त्रता का अधिकार
- सम्पत्ति का अधिकार।
(3) समझौते का कारण – प्राकृतिक अवस्था में प्राकृतिक नियम के अनुसार शान्तिमय जीवन व्यतीत करते हुए भी मनुष्य के सम्मुख तीन प्रकार की असुविधाएँ उत्पन्न हुईं-
- प्राकृतिक नियमों में स्पष्टता नहीं थी।
- प्राकृतिक कानूनों की व्याख्या करने वाली कोई संस्था अथवा निष्पक्ष न्यायाधीश नहीं थे।
- प्राकृतिक नियमों के अनुरूप अधिकृत निर्णयों को कार्यान्वित करने के लिए कोई शक्ति नहीं थी।
(4) समझौते का स्वरूप – लॉक के अनुसार, सभी मनुष्यों ने मिलकर दो समझौते किये-पहले समझौते में प्राकृतिक अवस्था का अन्त कर एक समाज की स्थापना की गई। दूसरा समझौता राजा और जनता के मध्य हुआ। इसमें प्रजा द्वारा शासक को कानून बनाने, उनकी व्याख्या करने और उनको लागू करने का अधिकार दिया गया। यद्यपि राजा की शक्ति पर प्रतिबन्ध भी लगा दिया गया कि, उसके द्वारा निर्मित कानून प्राकृतिक नियमों के अनुसार ही होने चाहिए। दूसरे समझौते से राज्य का निर्माण होता है। यदि शासक सार्वजनिक हित के विरुद्ध कार्य करता है, तो समाज को यह अधिकार है कि वह उसे सत्ता से हटा दे।
(5) समझौते की विशेषताएँ-
- राज्य की स्थापना मनुष्य की इच्छा से हुई है। अतः राज्य जन सहमति का परिणाम है।
- राज्य निर्माण के लिए समझौते की प्रक्रिया में एक के स्थान पर दो समझौते हुए, पहले समझौते से नागरिक समाज एवं दूसरे समझौते से सरकार की स्थापना हुई।
- प्रथम समझौते के तहत सभी व्यक्ति अपने अधिकार व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह को नहीं वरन् सम्पूर्ण समाज को समर्पित करते हैं।
- द्वितीय समझौते में राजा भी पक्षकार है। इस कारण राजा का दायित्व है कि मनुष्यों के प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा करे।
- शासक समझौते का भागीदार है, उस पर समझौते की समस्त शर्ते लागू होती हैं।
- समझौते द्वारा एक सीमित और मर्यादित राज-सत्ता की स्थापना होती है।
- समझौता राज्य और शासन में अन्तर स्पष्ट करता है। पहला स्थायी है, जबकि दूसरा अस्थायी है। दोनों के कार्य अलग – अलग हैं। इस प्रकार यह सिद्धान्त शक्ति विभाजन का समर्थन करता है।
- आत्याचारी शासक के विरुद्ध क्रान्ति करने का अधिकार यह सिद्धांत जनता को देता है।
प्रश्न 5.
हॉब्स के सामाजिक समझौता सिद्धान्त पर निबन्ध लिखो।
उत्तर:
रॉब्स का सामाजिक समझौता सिद्धान्त हॉब्स के राज्य उत्पत्ति के सामाजिक समझौता सिद्धान्त का वर्णन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है
(1) मानव स्वभाव – हॉब्स मनुष्य को मूल रूप से एक असामाजिक प्राणी मानता है। मनुष्य स्वार्थी एवं झगड़ालू होता है। मनुष्य अपने सुख एवं स्वार्थों की पूर्ति हेतु अन्य लोगों से संघर्ष में लिप्त रहता है। संघर्ष में सफलता प्राप्त करने के लिए झूठ, कपट, हिंसा इत्यादि का सहारा लेता है। इस प्रकार मनुष्य स्वभावत: दानवी लक्षणों से युक्त होता है। सद्गुणों का मनुष्य में अभाव पाया जाता है। इस प्रकार हॉब्स मानव स्वभाव का नकारात्मक वर्णन करता है।
(2) प्राकृतिक अवस्था – हॉब्स ने राज्य तथा समाज की स्थापना से पूर्व की अवस्था को प्राकृतिक अवस्था की संज्ञा दी है। मनुष्य के स्वभाव में समाहित आसुरी प्रवृत्तियों के कारण ही प्राकृतिक अवस्था अत्यन्त कष्टमय, दारुण व संघर्षपूर्ण थी। यह अवस्था निरन्तर युद्ध एवं संघर्ष की अवस्था थी। इसमें प्रत्येक व्यक्ति दूसरे के विरुद्ध अघोषित संघर्ष की स्थिति में था। मानव जीवन एकाकी, दरिद्र, कुत्सित, बर्बर और क्षणिक था। इस प्रकार हॉब्स प्राकृतिक अवस्था को संघर्ष एवं युद्ध की अवस्था बताता है।
(3) समझौते का कारण – प्राकृतिक अवस्था में जीवन की असुरक्षा तथा असामयिक मृत्यु के भय ने व्यक्तियों को प्राकृतिक अवस्था को समाप्त कर व्यवस्थित राजनीतिक समाज के निर्माण करने हेतु प्रेरित किया।
(4) समझौते का स्वरूप – प्राकृतिक अवस्था में निरन्तर संघर्ष की स्थिति से परेशान लोगों ने ‘बुद्धि’ और ‘विवेक’ के द्वारा आत्मरक्षा हेतु ‘राज्य’ का निर्माण किया। इस राजनीतिक समाज के निर्माण के लिए प्रत्येक व्यक्ति ने अन्य व्यक्तियों के साथ समझौता किया कि “मैं स्वयं पर शासन करने का अपना अधिकार इस व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह को स शर्त के आधार पर सौंपता हूँ कि तुम भी अपना शासनाधिकार इस व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह को सौंप दोगे एवं स्वशासन के अधिकार को छोड़ दोगे।”
इस प्रकार प्राकृतिक अवस्था में रहने वाले मनुष्य ने आत्मरक्षा के अधिकार को छोड़कर अपने समस्त अधिकारों का परित्याग कर दिया। इस प्रकार समझौते के द्वारा लौकिक प्रभु, जिसे लेवियाथन कहा गया है कि उत्पत्ति हुई है। इससे पूर्व समाज एवं राज्य की कोई सत्ता नहीं थी। लेवियाथन के जन्म से ही दोनों का प्रादुर्भाव हुआ। लेवियाथन को सर्वोच्च असीमित निरकुंश शक्ति प्राप्त थी। अत: इसे सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न शासक या सम्प्रभु की संज्ञा दी गई।
(5) समझौते की विशेषताएँ – हॉब्स के समझौते की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं
- हॉब्स के अनुसार, व्यक्तियों के मध्य एक समझौता हुआ। समझौते के परिणामस्वरूप समाज व राज्य का निर्माण एक साथ हुआ। हॉब्स समाज, राज्य और सरकार में कोई अन्तर नहीं करता है।
- हॉब्स का समझौता राजा और प्रजा के मध्य नहीं हुआ वरन् यह समझौता परस्पर जनता के बीच हुआ है।
- राजा समझौते का पक्षकार नहीं है, वह तो समझौते का परिणाम मात्र है। अतः समझौते की कोई शर्त राजा पर लागू नहीं होती है। राजा निरंकुश होता है।
- व्यक्तियों ने समस्त अधिकारों को समझौते के द्वारा परित्याग कर दिया। अतः राजा के समस्त आदेश मानने के लिए प्रजा बाध्य थी। उसकी आज्ञा ही कानून था। वह सर्वोच्च शासक था। वह कानून से भी ऊपर था।
- समझौता सामाजिक और राजनैतिक दोनों हैं। अत: इससे एक साथ समाज की स्थापना तथा शान्ति और व्यवस्था हेतु राज्य की उत्पत्ति होती है।
- मनुष्य अपने समस्त अधिकार शासक को सौंपता है। केवल आत्मरक्षा का अधिकार ही उसके पास रहता है।
(6) सिद्धान्त की आलोचनाएँ-हॉब्स द्वारा की गई सामाजिक समझौते सिद्धान्त की आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं
- मानव स्वभाव की एकांगी व्याख्या – हॉब्स द्वारा की गई मानव स्वभाव की व्याख्या एकपक्षीय है। उसने मनुष्य स्वभाव का नकारात्मक चित्रण ही प्रस्तुत किया है, जबकि मनुष्य में स्वार्थ के साथ – साथ परमार्थ की भावना भी होती है।
- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, न कि एकाकी – हॉब्स मनुष्य को एकाकी प्राणी मानता है, जबकि वास्तव में मनुष्य सामाजिक प्राणी होता है। मनुष्य स्वभाव एवं आवश्यकता दोनों ही कारणों से समाज में रहना पसन्द करता है।
- प्राकृतिक अवस्था का चित्रण काल्पनिक – इतिहास में आदिम युग के शोध से यह सिद्ध हो गया है कि मनुष्य निरन्तर युद्ध की स्थिति में जीवन व्यतीत नहीं किया है।
- समझौते की कल्पना असम्भव – हॉब्स के मतानुसार, मनुष्य प्राकृतिक अवस्था में स्वार्थी और झगड़ालू था तो ऐसे मनुष्य से ऐसे समझौते की आशा नहीं की जा सकती। समझौते के लिए विवेक की आवश्यकता होती है। जो हॉब्स के अनुसार मनुष्य में नहीं थी।
- राज्य और सरकार में अन्तर नहीं – हॉब्स राज्य और सरकार में कोई अन्तर नहीं करता है। विलोबी ने कहा है। कि हॉब्स के सिद्धान्त की सबसे बड़ी मूल यह है कि उसने राज्य और सरकार में कोई भेद नहीं किया है।
- लोकतन्त्र विरोधी – राजा को निरंकुश शक्तियाँ देना व्यक्ति के साथ न्याय नहीं है। अराजकता में मनुष्य दु:खी था, किन्तु ‘निरंकुश शासन में भी व्यक्ति की स्थिति दास जैसी थी। इस प्रकार हॉब्स के विचारे लोकतन्त्र विरोधी हैं।
- राज्य कृत्रिम संस्था नहीं – हॉब्स राज्य को समझौते का परिणाम बताकर एक कृत्रिम संस्था बताता है, जबकि हम सभी जानते हैं कि राज्य मानव स्वभाव की उपज है। अत: यह एक प्राकृतिक संस्था है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
राज्य की उत्पत्ति के सिद्धान्त के मुख्य प्रतिपादक हैं
(अ) हीगल और काण्ट
(ब) प्लेटो, लेनिन
(स) गिलक्राइस्ट और गेटेल
(द) हॉब्स, लॉक, रूसो।
उत्तर:
(द) हॉब्स, लॉक, रूसो।
प्रश्न 2.
रूसो का मुख्य नारा था
(अ) एकला चलो रे
(ब) अहस्तक्षेप
(स) प्रकृति की ओर लौटो
(द) दुनिया के मजदूरों एक हो।
उत्तर:
(स) प्रकृति की ओर लौटो
प्रश्न 3.
निरंकुश राजतन्त्र का समर्थन किया है
(अ) हॉब्स ने
(ब) लॉक ने
(स) बैन्थम ने
(द) रूसो ने।
उत्तर:
(द) रूसो ने।
प्रश्न 4.
रूसो की कृति का नाम है
(अ) लेवियाथन
(ब) सोशल कान्ट्रेक्ट
(स) दास केपिटल
(द) द मार्डन स्टेट
उत्तर:
(ब) सोशल कान्ट्रेक्ट
प्रश्न 5.
राज्य के विकास के लिये आवश्यक तत्व है
(अ) धर्म
(ब) भाषा
(स) प्रादेशिकता
(द) जाति
उत्तर:
(अ) धर्म
RBSE Class 11 Political Science Chapter 8 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Political Science Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
राज्य की उत्पत्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है
(अ) सामाजिक समझौता सिद्धान्त
(ब) शक्ति सिद्धान्त
(स) दैवीय सिद्धान्त
(द) पितृ प्रधान सिद्धान्त
उत्तर:
(अ) सामाजिक समझौता सिद्धान्त
प्रश्न 2.
निम्न में से किस विद्वान ने सामाजिक समझौता सिद्धान्त की वैज्ञानिक रूप से व्याख्या प्रस्तुत की
(अ) कौटिल्य
(ब) अरस्तू
(स) लास्की
(द) रिचर्ड हूकर
उत्तर:
(द) रिचर्ड हूकर
प्रश्न 3.
हॉब्स की कृति का नाम है
(अ) लेवियाथन
(ब) सोशल कान्ट्रेक्ट
(स) दास केपीटल
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(अ) लेवियाथन
प्रश्न 4.
निम्न में से किस विद्वान ने अपनी पुस्तक में नकारात्मक स्वभाव का वर्णन किया है
(अ) रूसो
(ब) थॉमस हॉब्स
(स) रिचर्ड हूकर
(द) जॉन लॉक।
उत्तर:
(ब) थॉमस हॉब्स
प्रश्न 5.
हॉब्स के अनुसार सम्प्रभु था / थी
(अ) समझौते का एक पक्ष
(ब) समझौते का परिणाम।
(स) सीमित राजतन्त्र
(द) लोगों के प्रति जवाबदेही
उत्तर:
(ब) समझौते का परिणाम।
प्रश्न 6.
निम्न में से कौन – सा विद्वान अपने सामाजिक समझौता सिद्धान्त में राज्य और सरकार में अन्तर नहीं करपाया
(अ) थॉमस हॉब्स
(ब) जॉन लॉक
(स) रूसो
(द) अरस्तू।
उत्तर:
(अ) थॉमस हॉब्स
प्रश्न 7.
राज्य की उत्पत्ति के किस सिद्धान्त के अनुसार राज्य की स्थापना से पूर्व के काल को प्राकृतिक अवस्था के नाम से जाना जाता है
(अ) दैवीय सिद्धान्त
(ब) सामाजिक समझौता सिद्धान्त
(स) मातृ-प्रधान सिद्धान्त
(द) पितृ सत्तात्मक सिद्धान्त
उत्तर:
(ब) सामाजिक समझौता सिद्धान्त
प्रश्न 8.
शासन की निरंकुशता का प्रतिपादन किसने किया?
(अ) हॉब्स ने
(ब) लॉक ने
(स) रिकार्डो ने
(द) प्लेटो ने।
उत्तर:
(अ) हॉब्स ने
प्रश्न 9.
“शासक समझौते का पक्ष नहीं, परिणाम है” यह कथन किस विचारक से सम्बन्धित है?
(अ) लॉक
(ब) रूसो
(स) हॉब्स
(द) अरस्तू।
उत्तर:
(स) हॉब्स
प्रश्न 10.
लॉक द्वारा लिखित पुस्तक का नाम है
(अ) लेवियाथन .
(ब) सोशल कान्ट्रेक्ट
(स) दि ट्रीटाइजेज ऑन गवर्नमेंट
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(स) दि ट्रीटाइजेज ऑन गवर्नमेंट
प्रश्न 11.
लॉक अपने सामाजिक समझौता सिद्धान्त के आधार पर समर्थन करता है
(अ) निरंकुश राजतन्त्र का
(ब) सीमित राजतन्त्र का
(स) अधिनायकवाद को
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) सीमित राजतन्त्र का
प्रश्न 12.
निम्न में से कौन-सा विद्वान मनुष्य को एक सामाजिक एवं विवेकशील प्राणी मानता है
(अ) जॉन लॉक
(ब) रूसो
(स) हॉब्स
(द) माल्थस
उत्तर:
(अ) जॉन लॉक
प्रश्न 13.
जॉन लॉक का ‘सम्प्रभु’ है
(अ) सरकार
(ब) सामान्य इच्छा
(स) राजनैतिक समाज
(द) लेवियाथन।
उत्तर:
(स) राजनैतिक समाज
प्रश्न 14.
लॉक के सिद्धान्त में मनुष्यों के मध्य कितने समझौते हुए
(अ) एक
(ब) दो
(स) तीन
(द) चार
उत्तर:
(ब) दो
प्रश्न 15.
लॉक के प्रथम समझौते में निर्माण होता है
(अ) समाज का
(ब) सरकार का
(स) इन दोनों का
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) समाज का
प्रश्न 16.
लॉक के द्वितीय समझौते में निर्माण होता है
(अ) सरकार का
(ब) समाज को
(स) राज्य का
(द) अधिकार का
उत्तर:
(स) राज्य का
प्रश्न 17.
कौन – सा विद्वान अपने सामाजिक समझौता सिद्धान्त में अत्याचारी शासक के विरुद्ध जनता को क्रान्ति का अधिकार देता है
(अ) लॉक
(ब) रूसो
(स) हॉब्स
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) लॉक
प्रश्न 18.
निम्न में से किस विद्वान के विचारों से उदारवादी विचारधारा को बल मिला
(अ) रूसो
(ब) लॉक
(स) अरस्तू
(द) हॉब्स
उत्तर:
(ब) लॉक
प्रश्न 19.
निम्न में से किस विद्वान के विचारों का फ्रांसीसी क्रान्ति पर प्रभाव पड़ा
(अ) लॉक
(ब) मॉण्टेस्क्यू
(स) रूसो
(द) प्लेटो
उत्तर:
(स) रूसो
प्रश्न 20.
सामाजिक समझौता सिद्धान्त के किस प्रतिपादक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में व्यक्ति ‘उदात्त वनचर’ था
(अ) रूसो
(ब) लॉक
(स) हॉब्स
(द) मैकाइवर
उत्तर:
(अ) रूसो
प्रश्न 21.
रूसो का प्रभुसत्ताधारी है
(अ) सरकार
(ब) राज्य
(स) समाज
(द) सामान्य इच्छा
उत्तर:
(द) सामान्य इच्छा
प्रश्न 22.
निम्न में से कौन-सी सामान्य इच्छा है?
(अ) आदर्श इच्छाओं का योग
(ब) यथार्थ इच्छा
(स) आदर्श इच्छा
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) आदर्श इच्छाओं का योग
प्रश्न 23.
रूसो के दर्शन का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व है.
(अ) सामान्य इच्छा सिद्धान्त
(ब) लोक प्रभुता
(स) दैवीय सिद्धान्त
(द) यथार्थ इच्छा
उत्तर:
(अ) सामान्य इच्छा सिद्धान्त
प्रश्न 24.
रूसो की सामान्य इच्छा की विशेषता है
(अ) अखण्डता
(ब) अविभाज्य
(स) स्थायी
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 25.
राज्य की उत्पत्ति का सबसे उपयुक्त सिद्धान्त है
(अ) मातृ प्रधान सिद्धान्त
(ब) पितृ प्रधान सिद्धान्त
(स) विकासवादी सिद्धान्त
(द) सामाजिक समझौता सिद्धान्त
उत्तर:
(स) विकासवादी सिद्धान्त
प्रश्न 26.
“जो व्यक्ति समाज में नहीं रहते वे या तो देवता होते हैं या जंगली जानवर।” यह कथन किस विद्वान से सम्बन्धित
(अ) अरस्तू से
(ब) प्लेटो से
(स) जैक्स से
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) अरस्तू से
प्रश्न 27.
यह किस विद्वान का कथन है, “रक्त सम्बन्ध समाज को जन्म देता है और समाज राज्य को जन्म देता है।”
(अ) गिलक्राइस्ट
(ब) मैकाइवर
(स) जैक्स
(द) बर्गेस
उत्तर:
(द) बर्गेस
प्रश्न 28.
राज्य के विकास से सम्बन्धित तत्व नहीं है
(अ) रक्त सम्बन्ध
(ब) धर्म
(स) राजनैतिक चेतना
(द) मीडिया
उत्तर:
(अ) रक्त सम्बन्ध
प्रश्न 29.
वर्तमान समय में राज्य के विकास का प्रमुख कारण है
(अ) राजनैतिक चेतना
(ब) आर्थिक आवश्यकताएँ
(स) मूल सामाजिक प्रवृत्ति
(द) शक्ति
उत्तर:
(ब) आर्थिक आवश्यकताएँ
RBSE Class 11 Political Science Chapter 8 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
यूनान में सोफिस्ट वर्ग ने सर्वप्रथम किस विचार का प्रतिपादन किया?
उत्तर:
सामाजिक समझौता सिद्धान्त का।
प्रश्न 2.
सामाजिक समझौता सिद्धान्त का वैज्ञानिक एवं विधिवत् रूप से प्रतिपादन किन-किन विद्वानों ने किया?
उत्तर:
थॉमस हॉब्स, लॉक एवं रूसो ने।
प्रश्न 3.
हॉब्स के अनुसार मानव स्वभाव केसी है?
अथवा
हॉब्स के अनुसार मानव स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हॉब्स के अनुसार मानव स्वभाव अहंकारी, स्वार्थी एवं झगड़ा था।
प्रश्न 4.
थॉमस हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक अवस्था केसी थी?
उत्तर:
थॉमस हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक अवस्था अत्यन्त कष्टमय, पाश्विक एवं संघर्षपूर्ण थी।
प्रश्न 5.
हॉब्स के ‘लेवियाथन’ का अर्थ बताइए।
उत्तर:
लेवियाथन’ हॉब्स का कल्पित निरंकुश राजा है।
प्रश्न 6.
हॉब्स के अनुसार मनुष्यों द्वारा समझौता करने का क्या कारण है?
उत्तर:
जीवन एवं सम्पत्ति की असुरक्षा एवं मृत्यु के भय से मनुष्यों द्वारा समझौता किया गया।
प्रश्न 7.
हॉब्स द्वारा प्रतिपादित सामाजिक समझौता सिद्धान्त में जनता ने किस अधिकार का परित्याग नहीं किया?
उत्तर:
आत्मरक्षा के अधिकार का।
प्रश्न 8.
थॉमस हॉब्स किस प्रकार के शासन को उपासक था?
उत्तर:
राजतन्त्र का
प्रश्न 9.
हॉब्स के समझौते की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
- समझौता सामाजिक और राजनीतिक दोनों है।
- समझौता व्यक्तियों के मध्य होता है।
प्रश्न 10.
हॉब्स के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की किन्हीं दो कमियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- मनुष्य के स्वभाव की गलत व्याख्या।
- समझौते की असम्भव कल्पना।
प्रश्न 11.
राजनीति विज्ञान में हॉब्स के योगदान के कोई दो बिन्दु बताइए।
उत्तर:
- वैज्ञानिक अध्ययन, चिन्तन, तर्क एवं बुद्धि का समावेश।
- सम्प्रभुता सिद्धान्त का प्रतिपादन।
प्रश्न 12.
किस राजनीतिक विचारक के समय में इंग्लैण्ड में रक्तहीन क्रान्ति हुई थी ?
उत्तर:
जॉन लॉक के समय में।
प्रश्न 13.
जॉन लॉक किस प्रकार के शासन का समर्थक था?
उत्तर:
सीमित राजतन्त्र का।
प्रश्न 14.
जॉन लॉक द्वारा लिखित प्रसिद्ध ग्रन्थ कौन-सा है?
उत्तर:
‘टू ट्रिटाइजेज ऑन गवर्नमेंट’
प्रश्न 15.
जॉन लॉक मानव को किस प्रकार का प्राणी मानता है?
उत्तर:
जॉन लॉक मनुष्य को एक सामाजिक एवं विवेकशील प्राणी मानता है।
प्रश्न 16.
लॉक के अनुसार व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
- जीवन का अधिकार
- स्वतन्त्रता का अधिकार
- सम्पत्ति का अधिकार
प्रश्न 17.
“तुम दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो जिसकी अपेक्षा तुम दूसरों से करते हो।” यह कथन किस विचारक से संबद्ध हैं ?
उत्तर:
जॉन लॉक से।
प्रश्न 18.
लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य को हो रही असुविधाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में कौन – कौन – सी कमियाँ थीं?
अथवा
मनुष्य ने कौन – कौन – सी असुविधाओं से मुक्ति पाने के लिए समझौता किया?
उत्तर:
- प्राकृतिक नियमों की अस्पष्टता
- प्राकृतिक नियमों की व्याख्या करने के लिए निष्पक्ष न्यायाधीश का अभाव
- प्राकृतिक नियमों को लागू करने वाली शक्ति का अभाव।
प्रश्न 19.
सामाजिक समझौता सिद्धान्त के किस प्रतिपादक ने अपने सिद्धान्त में दो समझौतों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
जॉन लॉक ने
प्रश्न 20.
जॉन लॉक द्वारा वर्णित समझौतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- सामाजिक समझौता
- सरकारी समझौता
प्रश्न 21.
लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
- एक स्थान पर दो समझौते होना।
- राज्य का निर्माण जन सहमति का परिणाम है।
प्रश्न 22.
लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की कोई दो कमियाँ लिखिए।
उत्तर:
- मानव स्वभाव की एक पक्षीय व्याख्या
- प्राकृतिक अवस्था का गलत चित्रण।
प्रश्न 23.
आधुनिक चिन्तन में लॉक के कोई दो योगदान बताइए।
उत्तर:
- प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त का प्रतिपादन करना
- बहुमत पर आधारित लोकतन्त्र का विकास करना।
प्रश्न 24.
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त की व्याख्या किसने प्रस्तुत की?
उत्तर:
जॉन लॉक ने।
प्रश्न 25.
रूसो ने अपने जनतान्त्रिक विचारों का प्रतिपादन करने के लिए कब, किस ग्रन्थ की रचना की?
उत्तर:
1762 ई. में ‘दी सोशल कॉन्ट्रेक्ट’ का।
प्रश्न 26.
फ्रांसीसी क्रान्ति का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जीन जैक्स रूसो को।
प्रश्न 11.
राजनीति विज्ञान में हॉब्स के योगदान के कोई दो बिन्दु बताइए।
उत्तर:
- वैज्ञानिक अध्ययन, चिन्तन, तर्क एवं बुद्धि का समावेश।
- सम्प्रभुता सिद्धान्त का प्रतिपादन।
प्रश्न 12.
किस राजनीतिक विचारक के समय में इंग्लैण्ड में रक्तहीन क्रान्ति हुई थी ?
उत्तर:
जॉन लॉक के समय में।
प्रश्न 13.
जॉन लॉक किस प्रकार के शासन का समर्थक था?
उत्तर:
सीमित राजतन्त्र का।
प्रश्न 14.
जॉन लॉक द्वारा लिखित प्रसिद्ध ग्रन्थ कौन – सा है?
उत्तर:
‘टू ट्रिटाइजेज ऑन गवर्नमेंट’
प्रश्न 15.
जॉन लॉक मानव को किस प्रकार का प्राणी मानता है?
उत्तर:
जॉन लॉक मनुष्य को एक सामाजिक एवं विवेकशील प्राणी मानता है।
प्रश्न 16.
लॉक के अनुसार व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
- जीवन का अधिकार
- स्वतन्त्रता का अधिकार
- सम्पत्ति का अधिकार।
प्रश्न 17.
“तुम दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो जिसकी अपेक्षा तुम दूसरों से करते हो।” यह कथन किस विचारक से संबद्ध हैं ?
उत्तर:
जॉन लॉक से
प्रश्न 18.
लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य को हो रही असुविधाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में कौन-कौन-सी कमियाँ थीं?
अथवा
मनुष्य ने कौन-कौन-सी असुविधाओं से मुक्ति पाने के लिए समझौता किया?
उत्तर:
- प्राकृतिक नियमों की अस्पष्टता
- प्राकृतिक नियमों की व्याख्या करने के लिए निष्पक्ष न्यायाधीश का अभाव
- प्राकृतिक नियमों को लागू करने वाली शक्ति का अभाव।
प्रश्न 19.
सामाजिक समझौता सिद्धान्त के किस प्रतिपादक ने अपने सिद्धान्त में दो समझौतों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
जॉन लॉक ने
प्रश्न 20.
जॉन लॉक द्वारा वर्णित समझौतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- सामाजिक समझौता।
- सरकारी समझौता।
प्रश्न 21.
लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
- एक स्थान पर दो समझौते होना।
- राज्य का निर्माण जन सहमति का परिणाम है।
प्रश्न 22.
लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की कोई दो कमियाँ लिखिए।
उत्तर:
- मानव स्वभाव की एक पक्षीय व्याख्या
- प्राकृतिक अवस्था का गलत चित्रण।
प्रश्न 23.
आधुनिक चिन्तन में लॉक के कोई दो योगदान बताइए।
उत्तर:
- प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त का प्रतिपादन करना
- बहुमत पर आधारित लोकतन्त्र का विकास करना।
प्रश्न 24.
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त की व्याख्या किसने प्रस्तुत की?
उत्तर:
जॉन लॉक ने।
प्रश्न 25.
रूसो ने अपने जनतान्त्रिक विचारों का प्रतिपादन करने के लिए कब, किस ग्रन्थ की रचना की?
उत्तर:
1762 ई. में ‘दी सोशल कॉन्ट्रेक्ट’ का।
प्रश्न 26.
फ्रांसीसी क्रान्ति का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जीन जैक्स रूसो को।
प्रश्न 27.
रूसो ने प्राकृतिक अवस्था के आरम्भ में मनुष्य को क्या संज्ञा दी है?
उत्तर:
उदात्त वनचर की।
प्रश्न 28.
“मनुष्य जब पैदा होता है तब स्वतन्त्र होता है बाद में वह प्रत्येक स्थान पर जंजीरों में जकड़ा हुआ होता है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन रूसों का है।
प्रश्न 29.
रूसो के समझौते सिद्धांत का परिणाम बताइए।
उत्तर:
रूसो के समझौते सिद्धांत के परिणामस्वरूप जीवन की असुरक्षा, हिंसा और अराजकता समाप्त हो गई है। तथा राज्य की उत्पत्ति हुई है।
प्रश्न 30.
रूसो किस प्रकार के राज्य की कल्पना करता है?
उत्तर:
रूसो प्रत्यक्ष लोकतान्त्रिक राज्य की कल्पना करता है।
प्रश्न 31.
सामान्य इच्छा के सिद्धान्त के प्रतिपादक कौन हैं?
उत्तर:
जीन जैक्स रूसो।
प्रश्न 32.
रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तरं:
- व्यक्ति को सकारात्मक स्वतन्त्रता प्राप्त होना।
- समझौते से सामान्य इच्छा का निर्माण होना।
प्रश्न 33.
रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की कोई दो कमियाँ लिखिए।
उत्तर:
- साम्राज्यवाद का पोषक
- प्राकृतिक अवस्था का गलत चित्रण।
प्रश्न 34.
मानव स्वभाव को नकारात्मक वर्णन कौन – सा विद्वान करता है?
उत्तर:
थॉमस हॉब्स।
प्रश्न 35.
प्राकृतिक अवस्था को संघर्ष एवं युद्ध की अवस्था किसने बताया?
उत्तर:
थॉमस हॉब्स ने।
प्रश्न 36.
लॉक की प्राकृतिक अवस्था केसी थी?
उत्तर:
लॉक की प्राकृतिक अवस्था शान्ति और सहयोग की अवस्था थी।
प्रश्न 37.
मानव स्वभाव के सकारात्मक एवं नकारात्मक गुणों का वर्णन कौन – सा विद्वान करता है?
उत्तर:
रूसो।
प्रश्न 38.
लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था केसी थी?
उत्तर:
शान्ति व सहयोग की।
प्रश्न 39.
रूसो अपने समझौता सिद्धान्त में मनुष्य के कौन – कौन – से दो रूप मानता है?
उत्तर:
- व्यक्तिगत।
- सामाजिक।
प्रश्न 40.
दार्शनिक आधार पर सामाजिक समझौता सिद्धान्त की कोई दो कमियाँ लिखिए।
उत्तर:
- राज्य एक कृत्रिम संस्था न होकर मानवीय स्वभाव पर आधारित प्राकृतिक संस्था है।
- यह सिद्धान्त राज्य को व्यक्तिवादी समझौते का परिणाम बताकर विद्रोह और अराजकता को प्रोत्साहन देता है।
प्रश्न 41.
सामाजिक समझौता सिद्धान्त के कोई दो महत्व बताइए।
उत्तर:
- राज्य का आधार जनसहमति है, शासक नहीं।
- इस सिद्धांत ने दैवीय सिद्धान्त के अधिकांश तर्को का खण्डन किया।
प्रश्न 42.
रूसो के दर्शन का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व कौन – सा है?
उत्तर:
सामान्य इच्छा सिद्धान्त।
प्रश्न 43.
रूसो ने व्यक्ति की इच्छाओं को किन दो भागों में वर्गीकृत किया?
उत्तर:
- यथार्थ इच्छा
- आदर्श इच्छा।
प्रश्न 44.
रूसो ने सामान्य इच्छा सिद्धान्त के माध्यम से किन वस्तुस्थितियों का समाधान प्रस्तुत किया?
उत्तर:
रूसो ने सामान्य इच्छा सिद्धान्त के माध्यम से स्वतन्त्रता, सत्ताहित, कर्तव्य, वैयक्तिता एवं सम्पूर्णता आदि वस्तुस्थितियों का समाधान प्रस्तुत किया।
प्रश्न 45.
रूसो के अनुसार यथार्थ इच्छा क्या है?
उत्तर:
रूसो के अनुसार, यथार्थ इच्छा वह इच्छा है जब व्यक्ति किसी विषय पर व्यक्तिगत हित या स्वार्थ भावना से सोचने का कार्य करता है।
प्रश्न 46.
यथार्थ इच्छा की कोई विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
यथार्थ इच्छा भावना प्रधान, स्वार्थी, संकुचित, पक्षपातपूर्ण एवं विवेकहीन होती है।
प्रश्न 47.
रूसो के अनुसार आदर्श इच्छा क्या है?
उत्तर:
रूसो के अनुसार आदर्श इच्छा वह इच्छा है जो सम्पूर्ण समाज का कल्याण करती है। इसमें व्यक्तिगत हित पर. सामाजिक हित की प्रधानता होती है।
प्रश्न 48.
आदर्श इच्छा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
आदर्श इच्छा समाज प्रधान, ज्ञान युक्त, नि:स्वार्थ, व्यापक, विवेकपूर्ण एवं नैतिक इच्छा होती है।
प्रश्न 49.
रूसो की सामान्य इच्छा क्या है?
उत्तर:
रूसो की सामान्य इच्छा आदर्श इच्छाओं का योग है।
प्रश्न 50.
डॉ. आशीर्वादम् के अनुसार सामान्य इच्छा को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
डॉ. आशीर्वादम् के अनुसार, “सामान्य इच्छा एक समाज के सदस्यों की आदर्श इच्छाओं का योग या एकीकरण का रूप है।”
प्रश्न 51.
रूसो की सामान्य इच्छा की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
- विभिन्नता में एकता
- लोककल्याणकारी।
प्रश्न 52.
रूसो की सामान्य इच्छा की कोई दो कमियाँ लिखिए।
उत्तर:
- अस्पष्ट व कठिन
- राज्य की निरंकुशता की पोषक।
प्रश्न 53.
रूसो की सामान्य इच्छा का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
रूसो की सामान्य इच्छा का विचार प्रजातन्त्र के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि रूसो के अनुसार यह प्रजातंत्र का मूल तत्व है।
प्रश्न 54.
किस सिद्धान्त को राज्य की उत्पत्ति का वैज्ञानिक एवं तर्कसंगत सिद्धान्त माना जाता है?
उत्तर:
विकासवादी सिद्धान्त को।
प्रश्न 55.
“जो व्यक्ति समाज में नहीं रहते वे या तो देवता होते हैं या जंगली जानवर।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
अरस्तू का।
प्रश्न 56.
राजनैतिक चेतना से क्या आशय है?
उत्तर:
राजनैतिक चेतना से आशय राज्य की उत्पत्ति के उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रति जागरूकता से है।
प्रश्न 57.
राज्य में कानून एवं न्याय आदि व्यवस्था का विकास किस कारण हुआ है? .
उत्तर:
राजनैतिक चेतना के कारण।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हॉब्स द्वारा प्रस्तुत प्राकृतिक अवस्था की संकल्पना में मानव केसा था?
उत्तर:
हॉब्स ने राज्य तथा समाज की स्थापना से पूर्व की अवस्था को प्राकृतिक अवस्था की संज्ञा दी है। हॉब्स ने अपनी पुस्तक में मनुष्य के नकारात्मक स्वभाव का वर्णन किया है। उसके अनुसार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह स्वार्थी, अहंकारी और झगड़ालू प्राणी है। वह सदैव शक्ति से स्नेह करता है और शक्ति प्राप्त करने का प्रयास करता रहता है। हॉब्स के अनुसार मनुष्य अपने कार्य पूरे करने के लिये छल-कपट का आश्रय लेता है। झूठ, प्रपंच, शत्रुता उसके प्रमुख साधन होते हैं। हॉब्स के अनुसार, मनुष्य में सद्गुण भी होते हैं।
परन्तु वे उसके स्वभाव के अंग नहीं होते हैं। मनुष्य के स्वभाव में आसुरी प्रवृत्तियों के कारण ही प्राकृतिक अवस्था अत्यन्त कष्टमय, दारुण व संघर्षपूर्ण थी। यह अवस्था निरन्तर युद्ध एवं संघर्ष की अवस्था थी। इसमें प्रत्येक व्यक्ति दूसरे के विरुद्ध अघोषित संघर्ष की स्थिति में था। इस प्रकार प्राकृतिक अवस्था में मानव जीवन एकाकी, दरिद्र, कुत्सित, बर्बर और क्षणिक था।
प्रश्न 2.
हॉब्स के अनुसार राज्य और व्यक्ति के आपसी सम्बन्धों को समझाइए।
उत्तर:
हॉब्स के अनुसार राजा निरंकुश होता है। वह असीमित शक्तियों का मनमाने ढंग से उपयोग कर सकता है। हॉब्स जनता या व्यक्ति को राजा या राज्य के विरोध एवं उसके खिलाफ विद्रोह का अधिकार नहीं देता है। अतः राजा के समस्त आदेश मानने के लिए प्रजा बाध्य है। राजा की आज्ञा ही कानून है। किन्तु राज्य में व्यक्ति को आत्मरक्षा का अधिकार प्राप्त है। राजा या राज्य के किसी आदेश से या निर्णय से यदि आत्मरक्षा को खतरा हो, तो व्यक्ति राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर सकता है। इस विद्रोह के अधिकार को मान्यता देने के कारण ही हॉब्स निरंकुशतावादी होते हुए भी व्यक्तिवादी है।
प्रश्न 3.
हॉब्स के समझौता सिद्धांत’ की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। .
उत्तर:
हॉब्स के समझौता सिद्धांत’ की प्रमुख विशेषताएँ – हॉब्स के ‘समझौता सिद्धांत’ की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
- समझौते से एक ही साथ राज्य तथा सरकार का निर्माण-हॉब्स के अनुसार, व्यक्तियों के मध्य एक ही समझौता हुआ। इस समझौते के परिणामस्वरूप समाज व राज्य का निर्माण एक साथ हुआ। हॉब्स समाज, राज्य और सरकार में कोई अन्तर नहीं करता है।
- समझौता परस्पर जनता के बीच-हॉब्स का समझौता राजा और प्रजा के मध्य नहीं हुआ वरन् यह समझौता परस्पर जनता के बीच हुआ है।
- राजा समझौते का पक्षकार नहीं, बल्कि परिणाम-राजा समझौते का पक्षकार नहीं है, वह तो समझौते का परिणाम मात्र है। अतः समझौते की कोई शर्त राजा पर लागू नहीं होती है। राजा निरंकुश होता
- व्यक्तियों के समस्त अधिकारों का परित्याग तथा शासक की सर्वोच्चता-व्यक्तियों ने समस्त अधिकारों का समझौते के द्वारा परित्याग कर दिया। अंतः राजा के समस्त आदेश मानने के लिए प्रजा बाध्य थी। उसकी आज्ञा ही कानून थी। वह सर्वोच्च शासक था, वह कानून से भी ऊपर थी।
- समझौता सामाजिक के साथ – साथ राजनैतिक भी-यह समझौता सामाजिक और राजनैतिक दोनों । अतः इससे समाज में गति की स्थापना हेतु राज्य की उत्पत्ति होती है।
- मनुष्य द्वारा अपने अधिकार शासक को सौंपना–मनुष्य अपने समस्त अधिकार शासक को सौंपता है। केवल आत्मरक्षा का अधिकार ही उसके पास रहता है।
- जनता को विद्रोह का अधिकार नहीं-शासक का आदेश ही कानून होता है। अत: जनता को विद्रोह का अधिकार नहीं होता।
प्रश्न 4.
हॉब्स के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की किस प्रकार आलोचना हुई? उल्लेख कीजिए। या हाब्स के सामारिक समझौता सिद्धांत की कमियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हॉब्स के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की आलोचना / कमियाँ निम्नलिखित हैं.
- मानव स्वभाव की एकांगी व्याख्या – हॉब्स ने मानव स्वभाव की एकपक्षीय व्याख्या की है, उसने मानव स्वभाव का नकारात्मक पक्ष ही प्रस्तुत किया है। वस्तुत: मनुष्य में स्वार्थ के साथ – साथ परमार्थ की भावना भी होती है।
- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, न कि एकाकी – हॉब्स मनुष्य को एकांकी प्राणी मानता है। जबकि वास्तव में मनुष्य सामाजिक प्राणी होता है। मनुष्य स्वभाव एवं आवश्यकता दोनों ही कारणों से समाज में रहना पसन्द करता है।
- प्राकृतिक का अवस्था काल्पनिक चित्रण – इतिहास में आदिम युग के शोध से यह सिद्ध हो गया कि मनुष्य निरन्तर युद्ध की स्थिति में जीवित नहीं रहता है।
- समझौते की असम्भव कल्पना – हॉब्स के मतानुसार, मनुष्य प्राकृतिक अवस्था में स्वार्थी और झगड़ालू था तो ऐसे मनुष्य से समझौते की आशा नहीं की जा सकती है। समझौते के लिए विवेक की आवश्यकता होती है जो हॉब्स के अनुसार मनुष्य में नहीं था।
प्रश्न 5.
हॉब्स के समझौता सिद्धान्त का योगदान एवं महत्व बताइए।
उत्तर:
हॉब्स के सामाजिक समझौता सिद्धान्त का योगदान एवं महत्व – इंग्लैण्ड के निवासी थॉमस हॉब्स ने राज्य की उत्पत्ति के सामाजिक समझौता सिद्धान्त का वैज्ञानिक रूप में प्रतिपादन किया था। अनेक आलोचनाओं के बावजूद हॉब्स के सिद्धान्त का राजनैतिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है। हॉब्स एकमात्र ऐसा राजनीतिक विचारक था जिसने राजनैतिक अध्ययन में वैज्ञानिक, अध्ययन, चिन्तन एवं तर्क व बुद्धि का समावेश किया।
हॉब्स ने यह प्रतिपादित किया कि राज्य ईश्वर निर्मित न होकर मानव निर्मित इकाई है। इनकी अन्य प्रमुख देन सम्प्रभुता सिद्धान्त एवं शासन की निरंकुशता का प्रतिपादन है। इसके अतिरिक्त हॉब्स ने यह भी प्रतिपादित किया कि शासन की स्थापना मनुष्य के हितों के लिए होती है। व्यक्ति को साध्य एवं राज्य को साधन मानकर राज्य के कार्यों का विधिवत् संचालन किया जाना चाहिए।
प्रश्न 6.
जॉन लॉक के अनुसार मानव स्वभाव एवं प्राकृतिक अवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जॉन लॉक के अनुसार मानव स्वभाव – जॉन लॉक मनुष्य को स्वभावत: विचारवान तथा बुद्धिमान प्राणी मानता. है। उसके अनुसार मानव में प्रेम, सहानुभूति, दया, सहयोग, परमार्थ आदि मानवीय गुण स्वाभाविक रूप से विद्यमान होते हैं। मानव अपने जीवन के निर्देश प्राकृतिक कानूनों से प्राप्त करता था। वह मूल रूप से अच्छा, शान्तिप्रिय, नैतिक एवं नियमों का पालन करने वाला है। इस प्रकार लॉक मनुष्य के स्वभाव का सकारात्मक वर्णन करता है। वह मनुष्यों को विवेकशील एवं शान्तिप्रिय मानता है।
प्राकृतिक अवस्था का चित्रण – लॉक के अनुसार, मनुष्य के परोपकारी और विवेकपूर्ण होने के कारण प्राकृतिक अवस्था शान्तिपूर्ण थी। प्राकृतिक अवस्था में सभी मनुष्य समान थे। यह स्वतन्त्रता की अवस्था थी, लेकिन इसमें अराजकता या स्वच्छन्दता नहीं थी क्योंकि लोग प्राकृतिक कानूनों एवं नैतिकता के नियमों को मानते थे। लेकिन प्राकृतिक कानूनों की व्याख्या लोग अपने विवेकानुसार करते थे। लॉक के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में सभी व्यक्तियों को तीन प्रकार के अधिकार प्राप्त थे। ये थे-
- जीवन का अधिकार,
- स्वतन्त्रता का अधिकार और
- सम्पत्ति का अधिकार मनुष्य इन अधिकारों का उपयोग इस प्रकार करता था कि दूसरे व्यक्तियों के अधिकारों का हनन न हो।
उस समय की कानून था कि, “तुम दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो, जिसकी अपेक्षा तुम दूसरों से करते हो।” इस प्रकार रूसी के अनुसार यह अवस्था नैतिकता, विवेकशीलता एवं सामाजिकता की अवस्था थी।
प्रश्न 7.
लॉक द्वारा प्रस्तुत ‘समझौता सिद्धांत’ के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लॉक स्वरूप – लॉक के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था की असुविधाओं को दूर करने के लिए मनुष्यों ने परस्पर समझौता किया। लॉक दो समझौतों का उल्लेख करता है
(i) सामाजिक समझौता – पहले समझौते को लॉक सामाजिक समझौता कहता है। यह समझौता सभी मनुष्यों के बीच किया गया था। इस समझौते द्वारा समाज का जन्म हुआ। इसका उद्देश्य जीवन की स्वतन्त्रता, सम्पत्ति एवं आन्तरिक व बाह्य संकटों से रक्षा करना था।
इस समझौते के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति अपने इस प्राकृतिक अधिकार को छोड़ने के लिए सहमत हुआ कि वह स्वयं प्राकृतिक नियम की व्याख्या करने, लागू करने तथा उसके अनुसार दूसरों को दण्ड देने का कार्य नहीं करेगा। इसके द्वारा मनुष्य ने जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पत्ति की रक्षा का उत्तरदायित्व समाज को सौंपा तथा शेष अधिकार अपने पास रखे। जो कोई उन अधिकारों का उल्लंघन करेगा, समाज उसको दण्ड देगा।
(ii) सरकारी समझौता – यह समझौता शासक (सरकार) व समाज एवं जनता के बीच हुआ। इस समझौते से राज्य का निर्माण होता है। राज्य का मुख्य कार्य प्राकृतिक नियमों की व्याख्या करना और उन्हें लागू करना है। यदि सरकार अर्थात् राजा सार्वजनिक हित के विरुद्ध कार्य करता है तो समाज को यह अधिकार है कि वह उसे हटाकर नयी सरकार का गठन करे। इस हेतु समाज अपनी शक्ति सरकार को प्रदान करता है।
प्रश्न 8.
लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ – लॉक के सामाजिक स्वयं सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
- राज्य की स्थापना मनुष्य की इच्छा से हुई है। अत: राज्य जन सहमति का परिणाम है।
- इस समझौते की प्रक्रिया में एक स्थान पर दो समझौते हुए। प्रथम समझौते से समाज एवं दूसरे समझौते से राज्य की स्थापना हुई।
- प्रथम समझौते में सभी व्यक्ति अपने अधिकार व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह को नहीं वरन् सम्पूर्ण समाज को समर्पित करते हैं।
- द्वितीय समझौते में राज्य भी पक्षकार है, इस कारण राजा का दायित्व है कि वह मनुष्यों के प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा करें।
- समझौते के तहत एक सीमित और मर्यादित राज सत्ता की स्थापना होती है।
- समझौता राज्य और शासन में अन्तर स्पष्ट करता है। पहला समझौता स्थायी है, जबकि दूसरा अस्थायी है। दोनों के कार्य अलग – अलग हैं। इस प्रकार यह सिद्धान्त शक्ति विभाजन का समर्थन करता है।
- अत्याचारी शासक के विरुद्ध क्रान्ति करने का अधिकार, यह समझौता जनता को देता है।
प्रश्न 9.
लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की किन आधारों पर आलोचना हुई? उल्लेख कीजिए।
अथवा
लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धांत में क्या कमियाँ रहीं? मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की कमिया / आलोचना-लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की प्रमुख कमियाँ / आलोचना निम्नलिखित हैं
- प्राकृतिक अवस्था का अव्यावहारिक चित्रण – लॉक प्राकृतिक अवस्था को अत्यन्त नैतिक तथा सुखमय बताता है किन्तु आदिम युग की ऐतिहासिक खोज इस धारणा को एक पक्षीय मानती है। मनुष्य प्राकृतिक अवस्था में इतना शांत और नैतिक नहीं था।
- प्राकृतिक अधिकारों की त्रुटिपूर्ण व्याख्या – लॉक ने प्राकृतिक अवस्था में जीवन स्वतन्त्रता एवं सम्पत्ति के अधिकारों के अस्तित्व की बात कही है जबकि राजनीतिक समाज से पूर्व अधिकारों का अस्तित्व कल्पना मात्र ही प्रतीत होता है।
- मानव स्वभाव की एक पक्षीय व्याख्या – लॉक मानव स्वभाव में अच्छाइयाँ देखता है। वह व्यक्ति को शान्तिप्रिय और विवेकपूर्ण ही मानता है, किन्तु मानव स्वभाव में स्वार्थ और परमार्थ दोनों के तत्व पाये जाते हैं।
- वैधानिक सम्प्रभुता को मान्यता नहीं-लॉक राजनीतिक सम्प्रभुता के महत्व को स्वीकार करता है किन्तु वैधानिक सम्प्रभुता के सिद्धान्त को मान्यता प्रदान नहीं करता है।
प्रश्न 10.
लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धान्त का आधुनिक चिन्तन में योगदान बताइए।
उत्तर:
लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धान्त का आधुनिक चिन्तन में योगदान – जॉन लॉक इंग्लैण्ड के एक प्रमुख राजनीतिक विचारक थे। इनके समय में ही इंग्लैण्ड में रक्तहीन या गौरवमयी क्रान्ति हुई थी। इन्होंने सीमित राजतन्त्र को श्रेष्ठ शासन व्यवस्था बताया। इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘टू ट्रिटाइजेज ऑन गवर्नमेंट’ है। इन्होंने राज्य उत्पत्ति के.सामाजिक समझौता सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। अनेक आलोचनाओं के बावजूद लॉक के सिद्धान्त का आधुनिक चिन्तन में महत्वपूर्ण योगदान है जो इस प्रकार है
- इन्होंने प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, जिसने आधुनिक युग में मौलिक अधिकारों के निर्माण के लिए पृष्ठभूमि तैयार की।
- इन्होंने जनसहमति के सिद्धान्त का प्रतिपादन कर आधुनिक युग के बहुमत पर आधारित लोकतन्त्र की अवधारणा का विकास किया।
- इनके विचारों से उदारवादी विचारधारा को बल मिला।
- इनके सीमित राजतन्त्र के सिद्धान्त ने फ्रांस के विचारक मॉण्टेस्क्यू के शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का मार्ग प्रशस्त किया।
प्रश्न 11.
रूसो के अनुसार प्राकृतिक अवस्था को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
रूसो द्वारा प्रतिपादित ‘प्राकृतिक अवस्था’ की अवधारणा को समझाइए।
उत्तर:
रूसो द्वारा प्रतिपादित प्राकृतिक अवस्था – रूसो प्राकृतिक अवस्था को दो चरणों में बाँटता है
(i) प्रथम चरण – प्रथम चरण में मनुष्य को स्वार्थ और परमार्थ का ज्ञान न होने के कारण वह स्वतन्त्र था। उसका जीवन सरल था, व आवश्यकताएँ सीमित थीं। इस अवस्था में मनुष्य सुखी, सन्तुष्ट और स्वावलम्बी था। भोलापन उसको मूल लक्षण था। उसमें न छल था, न कपट। उसे नैतिकता या नैतिकता का ज्ञान नहीं था। रूसो इस अवस्था के मानव को उदात्त वनचर (नोबल सेवेज) की संज्ञा देता है।
(ii) द्वितीय चरण – रूसो के अनुसार उपर्युक्त प्राकृतिक अवस्था अधिक समय तक नहीं रह सकी। धीरे-धीरे उसका पतन होने लगा। पतन का मुख्य कारण था सम्पत्ति का उदय। इसने व्यक्ति को स्वार्थी बना दिया और प्राकृतिक अवस्था की अच्छाई को समाप्त कर दिया। फलस्वरूप स्वार्थ, हिंसा, कलह व द्वेष का जन्म हुआ। स्वतन्त्रता एवं आत्मनिर्भरता के समाप्त होने से मानव का जीवन असुरक्षित हो गया।
प्रश्न 12.
रूसो द्वारा प्रतिपादित सामाजिक समझौता सिद्धान्त’ के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रूसो द्वारा प्रतिपादित ‘सामाजिक समझौता सिद्धान्त’ का स्वरूप-रूसो अपने सामाजिक समझौता सिद्धान्त में मनुष्य के दो रूप मानता है-व्यक्तिगत एवं सामाजिक। रूसो के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में जब संघर्ष और युद्ध प्रारम्भ हो गया तब सभी लोग दुखी होकर इस परिस्थिति से बचने के उपाय सोचने लगे अन्ततः मनुष्य ने व्यक्तिगत रूप से प्राकृतिक अवस्था का अन्त कर नागरिक समाज की स्थापना करने का निश्चय किया। समझौते के तहत सभी ने व्यक्तिगत रूप से समाज के लिए अपने अधिकारों का समर्पण कर दिया। समझौते के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण समाज में एक सामान्य इच्छा उत्पन्न हुई तथा सभी व्यक्ति इस सामान्य इच्छा के अनुसार कार्य करने लगे। चूँकि प्रत्येक व्यक्ति समाज का सदस्य होता है।
अतः समझौते के फलस्वरूप निर्मित समाज का अंग होने के कारण वह सामाजिक हैसियत से अपने इन अधिकारों को पुनः प्राप्त कर लेता है। समझौते के फलस्वरूप जीवन की असुरक्षा, हिंसा, अराजकता आदि समाप्त हो जाती है और राज्य की उत्पत्ति होती है। रूसो प्रत्यक्ष लोकतान्त्रिक राज्य की कल्पना करता है जिससे सम्पूर्ण शक्ति समाज में सामान्य इच्छा के नाम से संगृहीत रहती है। यदि सरकार समाज की सामान्य इच्छा के विरुद्ध कार्य करती है, तो जनता को उसे हटाने का अधिकार होता है।
प्रश्न 13.
रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की चार प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ – रूसो के अनुसार सामाजिक समझौता सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- समझौते के अन्तर्गत व्यक्ति के दो रूप – रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धांत के अन्तर्गत व्यक्ति के व्यक्तिगत एवं सामूहिक ये दो रूप प्रकट होते हैं। व्यक्तिगत रूप में व्यक्ति अपने समस्त अधिकार समाज को समर्पित कर देता है और समाज के सदस्य के रूप में व्यक्ति उन अधिकारों को पुनः प्राप्त कर लेता है जिनका परित्याग उसने समझौते के समय किया था।
- व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कोई प्रभाव नहीं – इस समझौते से व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अपितु व्यक्ति को सकारात्मक स्वतन्त्रता प्राप्त होती है।
- सामान्य इच्छा को निर्माण – समझौते से सामान्य इच्छा का निर्माण होता है। वह सम्प्रभु होती है। सरकार तथा समाज के समस्त व्यक्तियों को उसकी आज्ञा का पालन करना पड़ता है। किसी को भी उसकी आज्ञा के उल्लंघन का अधिकार नहीं है।
- केवल एक सामाजिक समझौता – रूसो सामाजिक समझौते का ही उल्लेख करता है। राजनैतिक समझौते का नहीं।
प्रश्न 14.
रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की कमियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की कमियाँ – रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं
- प्राकृतिक अवस्था काल्पनिक – रूसो ने जिस प्राकृतिक अवस्था का चित्रण किया है वह इतिहास सम्मत न होकर काल्पनिक है। ऐतिहासिक खोजों से स्पष्ट हो चुका है कि प्राकृतिक अवस्था में मानव शान्तिप्रिय नहीं था।
- परस्पर विरोधी – रूसो के मतानुसार समझौता व्यक्तिगत और सामाजिक पक्ष के मध्य होता है, जब समाज था ही नहीं तो सामाजिक पक्ष कहाँ से आ गया।
- साम्राज्यवाद का पोषक – रूसो की सामान्य इच्छा तानाशाही शासन का संकेत देती है, जो उचित नहीं है। ऐसे शासन में प्रजा पर अत्याचार की सम्भावना रहती है।
- व्यक्ति की दोहरी स्थिति – रूसो व्यक्ति को दोहरा व्यक्तित्व प्रदान करता है। वह शासक होने के साथ-साथ आज्ञापालक भी है। इससे व्यक्ति की स्थिति हास्यास्पद बन जाती है।
प्रश्न 15.
हॉब्स, लॉक एवं रूसो के मानव स्वभाव के बारे में विचारों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
हॉब्स, लॉक एवं रूसो के मानव स्वभाव के बारे में विचारों की तुलना:
हॉब्स मानव स्वभाव का नकारात्मक वर्णन करता है। इसके अनुसार मानव स्वभाव क्रूर, स्वार्थी, हिंसक, भय एवं शक्ति से प्रेरित है तथा उसमें पाश्विक प्रवृत्तियों की प्रधानता है। उसने मनुष्य में पाश्विक प्रवृत्तियों का कारण प्रतिस्पर्धा, अविश्वास एवं यश प्राप्ति को बताया। वह मनुष्य को बुरे गुणों की खान बताता है।
लॉक मनुष्य के स्वभाव का सकारात्मक वर्णन करता है। वह मनुष्य को विवेकशील और शान्तिप्रिय बताता है। वह स्वभाव से अच्छा, दयालु, सहयोग, परमार्थ आदि उदार भावनाओं से युक्त है। वह अपने जीवन के निर्देश प्राकृतिक कानूनों से ग्रहण करता है। | रूसो मानव स्वभाव के सकारात्मक एवं नकारात्मक गुणों का वर्णन करता है।
रूसी के अनुसार, प्रारम्भ में मानव स्वभावतः अच्छा था, वह उदात्त वनचर था लेकिन आगे चलकर सम्पत्ति का प्रादुर्भाव होने के कारण उसमें ‘तेरे-मेरे’ का भाव आ गया। , उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि जहाँ हॉब्स मानव को स्वभावतः स्वार्थी, हिंसक व क्रूर बताता है वहीं लॉक व रूसो के अनुसार मानव स्वभावतः अच्छा है।
प्रश्न 16.
हॉब्स, लॉक एवं रूसो के प्राकृतिक अवस्था के बारे में विचारों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
हॉब्स, लॉक एवं रूसो के प्राकृतिक अवस्था से सम्बन्धित विचारों की तुलना हॉब्स के अनुसार, मनुष्य के स्वभाव में दानवी प्रवृत्तियाँ समाहित होने के कारण प्राकृतिक अवस्था अत्यन्त कष्टमय, दारुण व संघर्षपूर्ण थी। यह अवस्था निरन्तर युद्ध एवं संघर्ष की अवस्था थी। इसमें प्रत्येक व्यक्ति दूसरे के विरुद्ध अघोषित संघर्ष की स्थिति में था।
सबल व्यक्ति, निर्बल व्यक्ति पर अत्याचार करता था। सर्वत्र हिंसा का वातावरण था तथा नैतिकता का अभाव था। लॉक के अनुसार, मनुष्य के परोपकारी एवं विवेकपूर्ण होने के कारण प्राकृतिक अवस्था शान्तिपूर्ण थी। इस अवस्था में सभी मनुष्य समान थे। लोग प्राकृतिक नियमों और नैतिकता को मानते थे। जीवन, स्वतन्त्रता एवं सम्पत्ति आदि के प्राकृतिक अधिकार उस समय प्रचलित थे। इस प्रकार प्राकृतिक अवस्था पूर्ण रूप से नैतिक, सामाजिक एवं कर्तव्य बोध की अवस्था थी।
रूसो के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था एक आदर्श अवस्था थी। इस अवस्था में मनुष्य स्वर्गिक आनन्द का जीवन व्यतीत करता था। उसमें स्वार्थ की भावना नहीं थी लेकिन प्राकृतिक अवस्था की यह स्थिति लम्बे समय तक नहीं रह सकी। मनुष्य में परिवार और सम्पत्ति बनाने की इच्छा उत्पन्न हुई। सम्पत्ति के उद्भव से मानव का स्वाभाविक विकास, समानता और स्वतन्त्रता समाप्त हो गयी।
प्रश्न 17.
हॉब्स, लॉक व रूसो के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में मानव द्वारा किए गए समझौते के कारण बताइए।
उत्तर:
हॉब्स, लॉक व रूसो के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में:
मानव द्वारा किए गए समझौते के कारण हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मानव के निरन्तर संघर्षरत रहने के कारण वह अपने जीवन व सम्पत्ति की सुरक्षा चाहता था। अतः वह अपने जीवन में सम्पत्ति की सुरक्षा हेतु समझौते के लिए बाध्य हुआ। लॉक के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में प्राकृतिक नियमों की व्याख्या करने, उन्हें लागू करने एवं न्याय करने वाली सत्ता के अभाव को दूर करने के लिए तथा सम्पत्ति के अधिकार की रक्षा करने के लिए समझौता किया गया। रूसो के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में जब कलह एवं युद्ध प्रारम्भ हो गया तो उससे छुटकारा पाने के लिए मनुष्यों ने प्राकृतिक अवस्था का अन्त कर जीवन व सम्पत्ति की रक्षा तथा समाज को पुनः आदर्श रूप देने के लिए मिलकर समझौता किया।
प्रश्न 18.
दार्शनिक आधार पर सामाजिक समझौता सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
उत्तर:
दार्शनिक आधार पर सामाजिक समझौता सिद्धान्त की आलोचना-दार्शनिक आधार पर सामाजिक समझौता सिद्धान्त की आलोचना निम्नलिखित तरह से की जाती है
- राज्य की सदस्यता ऐच्छिक नहीं-इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य को एक ऐसे संगठन के रूप में वर्णित किया गया है जिसकी सदस्यता ऐच्छिक है, लेकिन राज्य की सदस्यता ऐच्छिक नहीं, वरन् अनिवार्य होती है। इस दृष्टि से यह सिद्धान्त त्रुटिपूर्ण है।
- राज्य कृत्रिम संस्था नहीं इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य मनुष्य की कृति है जबकि राज्य मानवीय स्वभाव पर आधारित प्राकृतिक संस्था है। राज्य मनुष्यों की स्वाभाविक सामाजिक प्रवृत्ति का ही परिणाम है।
- विद्रोह और अराजकता को प्रोत्साहन – यह सिद्धान्त राज्य को व्यक्तिगत समझौते का परिणाम बताकर जनता में विद्रोह और अराजकता को प्रोत्साहन प्रदान करता है।
- प्राकृतिक अधिकार लागू होना सम्भव नहीं-अधिकारों को लागू करने के लिए शक्ति को होना अति आवश्यक होता है। शान्ति से प्राकृतिक अधिकारों का लागू होना सम्भव नहीं है।
प्रश्न 19.
वैधानिक (कानूनी) आधार पर सामाजिक समझौता सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
उत्तर:
वैधानिक (कानूनी) आधार पर सामाजिक समझौता सिद्धान्त की आलोचना-वैधानिक (कानूनी) आधार पर सामाजिक समझौता सिद्धान्त की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की गयी
(i) प्राकृतिक अवस्था में समझौता सम्भव नहीं-कोई भी समझौता तभी मान्य होता है, जब राज्य उसे मान्यता प्रदान करता है और उसे लागू करने का दायित्व स्वीकार करता है। परन्तु तथाकथित समझौता तब किया गया था, जब राज्य का अस्तित्व ही नहीं था।
(ii) समझौता भावी पीढ़ियों के लिए अन्याय-कानूनी दृष्टि से कोई समझौता तभी बाध्यकारी होता है जब उसे स्वेच्छा से स्वीकार किया जाए। परन्तु तथाकथित सामाजिक समझौते के अन्तर्गत तो आने वाली पीढ़ियाँ भी युग-युगान्तर के लिए उसकी शर्तों से बँध गयीं। अत: यह समझौता त्रुटिपूर्ण था।
प्रश्न 20.
रूसो द्वारा प्रतिपादित ‘सामान्य इच्छा’ की अवधारणा की कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
रूसो द्वारा सामान्य इच्छा’ की अवधारणा की प्रमुख विशेषताएँ-रूसो की सामान्य इच्छा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- लोक कल्याणकारी – सामान्य इच्छा लोक कल्याणकारी होती है। यह आदर्श इच्छाओं का योग होती है। रूसो के अनुसार सामान्य इच्छा हमेशा अच्छी होती है और सम्पूर्ण समाज का कल्याण करने के लिए होती है।
- अखण्डता – सामान्य इच्छा में परस्पर विरोध नहीं होता है। इसमें विभिन्नता में एकता पायी जाती है।
- स्थायी – सामान्य इच्छा क्षणिक एवं भावात्मक आवेगों का परिणाम नहीं होती बल्कि मानव कल्याण की स्थायी प्रवृत्ति होती है।
- अविभाज्य – रूसो के अनुसार सामान्य इच्छा का विभाजन नहीं किया जा सकता है। जिस प्रकार जीव अपने व्यक्तित्व को समाप्त किये बिना अपना विभाजन नहीं कर सकता है। उसी प्रकार राजनैतिक समाज में सामान्य इच्छा का विभाजन नहीं हो सकता है।
प्रश्न 21.
रूसी के सामान्य इच्छा सिद्धान्त की कोई चार कमियाँ लिखिए।
उत्तर:
रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त की कमियाँ-रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं
- अस्पष्ट व कठिन – रूसो के सामान्य इच्छा का विचार अव्यावहारिक एवं अस्पष्ट है। रूसो सत्य को सामान्य इच्छा मानता है, किन्तु वह इस बात का उत्तर नहीं देता कि सत्य निश्चित कौन करेगा। सामान्य इच्छा वास्तव में निर्धारित केसे होगी। यह भी स्पष्ट नहीं है।
- यथार्थ इच्छा और आदर्श इच्छा का अन्तर काल्पनिक-मनुष्य में व्यक्तिगत स्वार्थ और लोकहित दोनों की प्रवृत्ति पायी जाती है। इन्हें अलग नहीं किया जा सकता है। कौन-सी इच्छा आदर्श है एवं कौन – सी सामान्य, इसका पता लगाना बहुत कठिन है।
- सामान्य हित की व्याख्या कठिन – सामान्य इच्छा सिद्धान्त में कौन-सा कार्य सामान्य हित का है और कौन – सा : नहीं इसका पता लगाना कठिन है।
- प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र उपयुक्त नहीं – सामान्य इच्छा प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र स्थापित करती हैं जो विशाल देशों के लिए उपयुक्त नहीं है।
प्रश्न 22.
रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त का महत्त्व – आलोचनाओं के बावजूद रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त का राजनीति में बहुत अधिक महत्व है, जिसका वर्णन निम्नलिखित हैं
- प्रजातन्त्र के लिए महत्त्वपूर्ण – रूसी की सामान्य इच्छा का विचार प्रजातन्त्र के लिए महत्त्वपूर्ण है। इससे यह पता चलता है कि शासन-सत्ता का आधार जन स्वीकृति है। कानूनों के निर्माण में जनता का प्रत्यक्ष रूप में सहयोग होना चाहिए। सरकार को हमेशा जनता के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए। मैकाइवर नामक राजनीतिक विचारक ने ठीक ही कहा है कि सामान्य इच्छा का प्रयोग शासन को स्वशासन में परिवर्तित कर देता है।
- राष्ट्रवाद की प्रेरणा – सामान्य इच्छा का सिद्धान्त राष्ट्रवाद को प्रेरणा प्रदान करता है। इसने इस धारणा को जन्म दिया कि समान्तर एकता, साहचर्य व आत्मीयता की भावना जीवन के श्रेष्ठ मूल्य हैं।
- व्यक्ति और समाज को महत्व-रूसो की सामान्य इच्छा का सिद्धान्त व्यक्ति और समाज दोनों को महत्व प्रदान करता है।
- आंगिक एकता के सिद्धान्त का प्रतिपादन-रूसो की सामान्य इच्छा का सिद्धान्त आंगिक एकता के सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है।
प्रश्न 23.
“राज्य की उत्पत्ति और विकास में मनुष्य की आर्थिक आवश्यकताओं का विशेष महत्व रहा है।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राज्य की उत्पत्ति और विकास में मनुष्य की आर्थिक आवश्यकताओं का विशेष महत्व रहा है। गेटेल ने कहा है कि “आर्थिक गतिविधियाँ जिनके द्वारा मनुष्य ने भोजन, निवास आदि की बुनियादी आवश्यकताओं को प्राप्त किया। बाद में सम्पत्ति एवं धन संचय किया, राज्य के निर्माण में महत्त्वपूर्ण तत्व रही हैं।” सम्पत्ति के उदय ने उसकी सुरक्षा हेतु राज्य के जन्म को अनिवार्य बना दिया।
राज्य द्वारा ही समाज की आर्थिक व्यवस्था का संचालन होता है तथा लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। समाज के विभिन्न वर्गों के हित संघर्षों का राज्य ही समाधान करता है। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति हेतु राज्य का जन्म हुआ। प्लेटो, हॉब्स, लॉक एवं रूसो आदि ने भी इसका समर्थन किया है।
प्रश्न 24.
राजनैतिक चेतना क्या है? राज्य के विकास में राजनैतिक चेतना के योगदान को बताइए।
उत्तर:
राजनैतिक चेतना से आशय – राजनैतिक चेतना से आशय राज्य की उत्पत्ति के उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रति जागरूकता से है। . राज्य के विकास में राजनैतिक चेतना का योगदान – राज्य के विकास में धर्म, रक्त सम्बन्ध व सामाजिक चेतना के साथ – साथ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्व राजनीतिक चेतना है। इस राजनैतिक चेतना के द्वारा कुछ निश्चित राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है।
लोगों की सुरक्षा, सम्पत्ति की रक्षा एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण बढ़ते परिवारों के सम्बन्धों को निर्धारित करने के लिए ऐसे राजनीतिक संगठनों एवं कानूनों की जरूरत महसूस की गई, जो व्यवस्था बनाए रख सके। मानव समाज का जैसे – जैसे विकास हुआ, उसकी आवश्यकताएँ एवं जटिलताएँ भी बढ़ती चली गयीं। इन सभी का समाधान राजनैतिक चेतना के माध्यम से ही हुआ। राजनैतिक चेतना के कारण ही कानून, न्याय आदि व्यवस्था का विकास हुआ। वर्तमान समय में भी राजनैतिक चेतना राज्य के विकास का एक प्रमुख कारण है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न।
प्रश्न 1.
राज्य की उत्पत्ति के ‘सामाजिक समझौता सिद्धान्त’ के विचारों की आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
राज्य की उत्पत्ति का सामाजिक समझौता सिद्धान्त राज्य की उत्पत्ति से सम्बन्धित सामाजिक समझौता’ सिद्धान्त एक काल्पनिक सिद्धान्त माना जाता है। इसके अनुसार राज्य का निर्माण प्राकृतिक अवस्था में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा पारस्परिक समझौते के आधार पर किया गया है। इस सिद्धान्त के प्रमुख प्रवर्तक विद्वान हैं-हॉब्स, लॉक एवं रूसो।
इन्होंने मानव स्वभाव, प्राकृतिक अवस्था, समझौते के कारण, सामाजिक समझौता एवं समझौते का परिणाम आदि के आधार पर इस सिद्धान्त का पृथक्-पृथक् रूप से विवेचन किया है सामाजिक समझौता सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ-हॉब्स, लॉक एवं रूसो द्वारा विवेचिंते सामाजिक समझौता सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) मानव स्वभाव की व्याख्या – हॉब्स, लॉक तथा रूसो, इन तीनों ही विचारकों ने प्राकृतिक अवस्था के विवेचन से पूर्व मानव स्वभाव की व्याख्या की है एवं उसके आधार पर प्राकृतिक अवस्था का चित्रण किया है। लॉक, रूसो ने मानव को स्वभावत: अच्छा बताया है, वहीं हॉब्स ने मानव को स्वार्थी, झगड़ालू व अहंकारी बताया है।
(ii) प्राकृतिक अवस्था की स्थिति की कल्पना-राज्य कोई सनातन संस्था नहीं है, यह सदा – सर्वदा से विद्यमान नहीं है। तीनों ही विद्वानों-हॉब्स, लॉक और रूसो ने राज्य से पूर्व की अवस्था का चित्रण किया है जिसे उन्होंने प्राकृतिक अवस्था’ कहा है।
(iii) समझौते के कारण – राज्यविहीन प्राकृतिक अवस्था व्यक्तियों के लिए हितकारी नहीं थी। लॉक और रूसो ने प्रारम्भ में तो प्राकृतिक अवस्था को अच्छी एवं शांतिमय बताया है। लेकिन बाद में कुछ कारणों से यथा स्वार्थी प्रवृत्ति आदि के कारण यह संघर्ष पूर्ण तथा अराजक बन गई। वे उससे छुटकारा प्राप्त करना चाहते थे।
(iv) सामाजिक समझौता सिद्धान्त – प्राकृतिक अवस्था से मुक्ति प्राप्त करने के लिए सभी व्यक्तियों ने समानता के आधार पर पारस्परिक सहमति और सहयोग से सामाजिक समझौता किया। इस प्रकार प्राकृतिक अवस्था के लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से प्राकृतिक अवस्था का त्याग कर नागरिक समाज का निर्माण किया।
(v) समझौते का परिणाम – ‘नागरिक समाज’ अपनी पूर्व प्राकृतिक अवस्था से मूलतः इस अर्थ में भिन्न या कि इसमें राज्य मौजूद है तथा समाज का नियमन प्रभुसत्ता द्वारा किया जाता है। सामाजिक समझौते में यह कल्पना की गई थी कि राज्य का निर्माण मनुष्यों ने मिलकर सभी के हित साधन के उद्देश्य से किया है।
सामाजिक समझौता सिद्धान्त की आलोचना:
दो शताब्दियों तक लोकप्रिय रहने के पश्चात् उन्नीसवीं शताब्दी में इस सिद्धान्त को अस्वीकार करने के साथ – साथ इसकी ऐतिहासिक, दार्शनिक, तार्किक एवं वैधानिक आधार पर आलोचना प्रारम्भ हो गयी। सामाजिक समझौता सिद्धान्त की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की गई
(i) ऐतिहासिक आधार पर आलोचना – ऐतिहासिक आधार पर सामाजिक समझौता सिद्धान्त की अनेक विद्वानों ने आलोचना की। अंग्रेज दार्शनिक ह्यूम ने कहा कि आदिम अवस्था में इस समझौते का कोई प्रमाण नहीं मिलता। ग्रीन नामक विद्वान ने इसे कपोल कल्पित बताया जबकि हेनरीमेन ने इसे व्यर्थ की वस्तु कहा। अधिकांश विचारकों ने इस सिद्धान्त को कल्पनाशील एवं अप्रमाणिक सिद्धान्त माना। उनके अनुसार इस सिद्धान्त ने मानव स्वभाव की एकपक्षीय व्याख्या की है। राज्य विकास का परिणाम है, निर्माण का नहीं।
(ii) दार्शनिक आधार पर आलोचना – दार्शनिक आधार पर सामाजिक समझौता सिद्धान्त की विभिन्न विद्वानों ने आलोचना की है यथा, यह सिद्धान्त राज्य की कल्पना ऐसे संगठन से करता है जिसकी सदस्यता ऐच्छिक हो, जबकि राज्य की सदस्यता अनिवार्य होती है। राज्य एक कृत्रिम संस्था न होकर मानवीय स्वभाव पर आधारित प्राकृतिक संस्था है। यह सिद्धान्त विद्रोह और अराजकता को प्रोत्साहन देता है।
(iii) वैधानिक (कानूनी) आधार पर आलोचना – कई विद्वानों ने वैधानिक आधार पर इस सिद्धान्त की आलोचना की। उनके अनुसार वैधानिक आधार पर यह समझौता खरा नहीं उतरता है। प्राकृतिक अवस्था में रहते हुए यदि लोगों के मध्य समझौता होता है तो वैधानिक दृष्टि से वह गलत है। क्योंकि समझौते को कानूनी मान्यता देने के लिए राज्य की स्वीकृति की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक अवस्था में राज्य था ही नहीं, समझौता जिन लोगों के मध्य होता है उन्हीं पर लागू होता है। अतः वैधानिक दृष्टि से यह समझौता मान्य नहीं है।
प्रश्न 2.
जीन जैक्स रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
जीन जैक्स रूसो का सामाजिक समझौता सिद्धान्त जीन जैक्स रूसो एक यूरोपीय विद्वान थे। इनका जन्म स्विट्जरलैण्ड के जिनेवा नामक शहर में हुआ था। यह भी हॉब्स व लॉक की तरह सामाजिक समझौता सिद्धान्त के समर्थक थे। रूसो ने राज्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में सामाजिक समझौता सिद्धान्त में हॉब्स एवं लॉक की विचारधाराओं का मिश्रित रूप में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है।
रूसो जनतन्त्र का पक्षधर जबकि राजाओं के दैवीय अधिकारों का घोर विरोधी थे। 1785 ई. की फ्रांस की राज्य क्रान्ति पर इनके विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा इसलिए इन्हें इस क्रान्ति का जनक भी कहा जाता है। रूसो ने अपने सामाजिक समझौता सिद्धान्त का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया है
(1) मानव स्वभाव – मानव स्वभाव के सम्बन्ध में रूसो के विचार हॉब्स एवं लॉक दोनों से भिन्न हैं। मनुष्य को रूसो ने सर्वथा निर्दोष और निश्पाप माना है। उनके अनुसार स्वतन्त्रता और आत्मनिर्भरता उसके स्वभाव के विशेष गुण हैं। वह घृणा, ईष्र्या, चिन्ता, अहंकार आदि गुणों से मुक्त होता है। मनुष्य अच्छा और नि:स्वार्थी होता है तथा तर्क के बजाय भावनाओं से प्रेरित होता है।
(2) प्राकृतिक अवस्था – रूसो प्राकृतिक अवस्था को दो चरणों में विभक्त करते हैं-
- प्रथम चरण
- द्वितीय चरण। प्रथम चरण में स्वार्थ एवं परमार्थ का ज्ञान न होने के कारण मनुष्य स्वतंत्र था। दूसरे चरण में सम्पत्ति का उदय होने के कारण व्यक्ति स्वार्थी बन गया। इस चरण में स्वार्थ, हिंसा, कलह एवं द्वेष आदि दुर्गुणों का जन्म हुआ।
(3) समझौते का स्वरूप-प्राकृतिक अवस्था में जब संघर्ष और युद्ध प्रारम्भ हो गया तब सब लोग दुखी होकर इस परिस्थिति से बचने के उपाय सोचने लगे। अन्ततः मनुष्यों ने प्राकृतिक अवस्था का अन्त कर नागरिक समाज की स्थापना करने का निश्चय किया। समझौते के तहत सभी ने समाज के लिए अपने अधिकारों का समर्पण कर दिया। समझौते के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण समाज की एक सामान्य इच्छा उत्पन्न हुई तथा सभी व्यक्ति इस सामान्य इच्छा के अनुसार कार्य करने लगे।
(4) समझौते की विशेषताएँ – समझौते की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) समझौते के अन्तर्गत व्यक्ति के दो रूप – समझौते के अन्तर्गत व्यक्ति के व्यक्तिगत और सामूहिक दो रूप प्रकट होते हैं। व्यक्तिगत रूप में व्यक्ति अपने समस्त अधिकार समाज को समर्पित कर देता है और समाज के सदस्य के रूप में व्यक्ति उन अधिकारों को पुनः प्राप्त कर लेता है जिनका परित्याग उसने समझौते के समय किया था।
(ii) समझौता व्यक्ति की स्वतन्त्रता को बाधित नहीं करता – यह समझौता व्यक्ति की स्वतन्त्रता को बाधित करने के स्थान पर स्वतन्त्रता में वृद्धि करता है।
(iii) सामान्य इच्छा का निर्माण – समझौते से सामान्य इच्छा का निर्माण होता है। वह सम्प्रभु होती है। सरकार तथा समाज के सभी व्यक्तियों को उसका पालन करना पड़ता है। किसी को भी उसका उल्लंघन का अधिकार नहीं है।
(iv) सामान्य इच्छा सदैव औचित्यपूर्ण – सामान्य इच्छा सदैव औचित्यपूर्ण होती है। अतः लोगों का परम कर्तव्य है कि सामान्य इच्छा के अनुसार ही कार्य करें।
(v) समझौते के द्वारा सामाजिक स्वतन्त्रती की प्राप्ति – समझौते के द्वारा प्राकृतिक, स्वतन्त्रता का अन्त हो जाती है और उसके स्थान पर सामाजिक स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। मनुष्य व्यक्तिगत रूप से जो कुछ समझौते के माध्यम से खोता है उसके बदले में वह सामाजिक स्वतन्त्रता और अपनी वस्तुओं पर स्वामित्व प्राप्त करता है।
(vi) केवल एक सामाजिक समझौता – रूसो सामाजिक समझौते का ही उल्लेख करते हैं, राजनीतिक समझौते का नहीं। अत: सामान्य इच्छा पर आधारित सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न समाज की स्थापना होती है।
(5) सरकार को हटाने का अधिकार-सामान्य इच्छा को मूर्तरूप देने वाली सरकार यदि निरंकुश होकर सीमाओं का अतिक्रमण करती है, तो उसे हटाया जा सकता है। रूसो के समझौता सिद्धान्त की आलोचनाएँ।
- प्राकृतिक अवस्था काल्पनिक – रूसो ने जिस प्राकृतिक अवस्था का चित्रण किया है। वह इतिहास सम्मत न होकर काल्पनिक है। ऐतिहासिक खोजों से स्पष्ट हो चुका है कि प्राकृतिक अवस्था में मानव शान्तिप्रिय नहीं था।
- परस्पर विरोधी – रूसो के मतानुसार समझौता व्यक्तिगत और सामाजिक पक्षों के मध्य होता है। जब समाज था ही नहीं तो सामाजिक पक्ष कहाँ से आ गया।
- साम्राज्यवाद का पोषक – रूसो की सामान्य इच्छा तानाशाही शासन का संकेत देती है जो उचित नहीं है। ऐसे शासन में जनता पर अत्याचार की सम्भावना बनी रहती है।
- व्यक्ति का दोहरा व्यक्तित्व – रूसो व्यक्ति को दोहरा व्यक्तित्व प्रदान करते हैं। व्यक्ति शासक होने के साथ-साथ आज्ञापालक भी है। इससे व्यक्ति की स्थिति हास्यापद बन जाती है।
- राज्य समझौते का नहीं वरन् विकास को परिणाम है-रूसो राज्य को सामाजिक समझौते का परिणाम मानते हैं। राज्य सदियों के विकास का परिणाम है। किसी काल्पनिक एवं अनैतिहासिक समझौते का परिणाम नहीं है।
- सिद्धान्त का महत्त्व-रूसो के सामाजिक समझौते सिद्धान्त का बहुत अधिक महत्व है। इनके सामान्य इच्छा सिद्धान्त का आधुनिक युग के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा ! जेन सहमति और जनतन्त्र के विचारों ने उस समय की व्यवस्था । पर इतना प्रभाव डाला कि फ्रांस में क्रान्ति हुई तथा स्वतन्त्रता और भाईचारे के सिद्धान्त का विकास हुआ।
प्रश्न 3.
थॉमस हॉब्स, लॉक एवं रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धान्त सम्बन्धी विचारों की तुलना कीजिए।
अथवा
सामाजिक समझौता सिद्धान्त का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
उत्तर:
थॉमस, हॉब्स, लॉक एवं रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धान्त सम्बन्धी विचारों की तुलना हॉब्स, लॉक और रूसो तीनों ही राज्य की उत्पत्ति के सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का प्रतिपादन अपने – 0अपने ढंग से करते हैं। इसलिए इनके विचारों में भी अन्तर पाया जाता है। इनके विचारों की तुलना निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत की गई है
(1) मानव स्वभाव के चित्रण के आधार पर तुलना:
(i) हॉब्स – हॉब्स के अनुसार मानव स्वभाव क्रूर, स्वार्थी, हिंसक, भय तथा शक्ति से प्रेरित था। उसमें पाश्विक प्रवृत्तियों की प्रधानता थी। वह झगड़ालू प्रवृत्ति का था। हॉब्स मनुष्य को बुरे गुणों की खान बताता है।
(ii) लॉक – लॉक के अनुसार मानव स्वभाव से अच्छा, दयालु, सहयोग, परमार्थ आदि उदार भावनाओं से युक्त है। लॉक मनुष्य के स्वभाव का सकारात्मक वर्णन करता है। वह मनुष्य को विवेकशील व शान्तिप्रिय मानता है।
(iii) रूसो – रूसो के अनुसार प्रारम्भ में मानव स्वभावतः अच्छा था, वह उदात्त वनचरे था लेकिन आगे चलकर सम्पत्ति के प्रादुर्भाव के कारण उसमें ‘तेरे – मेरे’ का भाव आ गया। रूसो मानव को निष्पाप व भोला – भाला कहता है, तो उसे बर्बर व जंगली भी बताता है।
स्पष्ट है कि हॉब्स जहाँ मानव को स्वभावत: स्वार्थी, एकाकी, संघर्षप्रिय तथा स्वार्थी बताता है, वहीं लॉक तथा रूसो के अनुसार मानव स्वभावत: अच्छा है।
(2) प्राकृतिक दशा के चित्रण के आधार पर अन्तर:
- हॉब्स – हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक अवस्था अघोषित संघर्ष एवं युद्ध की स्थिति से युक्त थी। उसमें हिंसा का पुट तथा नैतिकता का अभाव था। इस अवस्था में बलवान व्यक्ति निर्बल व्यक्ति पर अत्याचार करता था।
- लॉक – लॉक का कहना है कि प्राकृतिक अवस्था, हॉब्स की प्राकृतिक अवस्था के बिलकुल विपरीत थी। सभी लोग प्राकृतिक नियमों के अनुसार अपना जीवनयापन करते थे। यह नैतिकता, विवेकशीलता व सामाजिकता की अवस्था थी।
- रूसो – रूसो ने भी प्राकृतिक अवस्था को परम आनन्द और सुख की अवस्था बताया है। इस अवस्था में विषमता का अभाव था। मानव की आवश्यकता सीमित रहती थी, उसे न तो कोई भय था और न ही कोई चिन्ता। इससे स्पष्ट होता है कि प्राकृतिक अवस्था के सम्बन्ध में हॉब्स के विचार, लॉक तथा रूसो के विचारों के बिलकुल विरोधी हैं।
(3) समझौते के कारण के सम्बन्ध में तुलना:
- हॉब्स – प्राकृतिक अवस्था में सतत् संघर्ष से उत्पन्न अराजकता को समाप्त करने के लिए जीवन रक्षा के लिए मनुष्य समझौते को बाध्य हुआ।
- लॉक – प्राकृतिक अवस्था में प्राकृतिक नियमों की व्याख्या करने, उन्हें लागू करने तथा न्याय करने वाली सत्ता के अभाव को दूर करने के लिए समझौता किया गया।
- रूसो – प्राकृतिक अवस्था में व्यक्तिगत सम्पत्ति के सृजन से उत्पन्न हुई विषमता को दूर करने, जीवन की रक्षा एवं समाज को फिर से आदर्श रूप देने के लिए समझौता किया गया।
(4) समझौते के स्वरूप के आधार पर अन्तर:
- हॉब्स – हॉब्स के अनुसार राज्य का निर्माण करने के लिए ही व्यक्तियों ने समझौता किया। इसमें मनुष्य आत्मरक्षा के अधिकार को छोड़कर समस्त अधिकार शासक को सौंपता है।।
- लॉक – लॉक के अनुसार समझौते दो तरह के हुए, पहले सामाजिक समझौते के द्वारा राज्य या समाज की स्थापना हुई और दूसरे समझौते (सरकारी समझौते) के द्वारा सरकार की स्थापना हुई।
- रूसो – रूसो के अनुसार समझौते के द्वारा सामान्य इच्छा का निर्माण हुआ।
(5) सम्प्रभुता के आधार पर अन्तर
- हॉब्स – हॉब्स ने निरंकुश राजतन्त्र का समर्थन किया है। हॉब्स के समझौते में राजा (सम्प्रभु) समझौते का पक्ष नहीं है, बल्कि समझौते का परिणाम है। अत: राजा या संप्रभु के विरुद्ध क्रान्ति नहीं की जा सकती।
- लॉक – लॉक सीमित राजतन्त्र का समर्थन करता है। लॉक के दूसरे समझौते में सम्प्रभु (सरकार) समझौते को पक्ष है और वह समझौते की शर्तों से बँधी हुई है। शर्तों को पूरा करने पर समाज उसे हटा सकता है।
- रूसो – रूसो लोकतन्त्र का समर्थन करता है और जनहितकारी इच्छा को सम्प्रभु बताता है, जिसे वह सामान्य इच्छा कहता है। यह सामान्य इच्छा जनता में निवास करती है।
(6) सत्ता के हस्तान्तरण के आधार पर तुलना:
हॉब्स व्यक्ति की सत्ता का पूर्ण हस्तानांतरण करती है। लॉक व्यक्ति की सत्ता को सीमित हस्तानांतरण करता है, जबकि रूसो व्यक्ति की सत्ता का रूपान्तरण कर देता है।
प्रश्न 4.
हॉब्स, लॉक एवं रूसो के अनुसार सामाजिक समझौता के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हॉब्स, लॉक एवं रूसो के अनुसार सामाजिक समझौते का स्वरूप थॉमस हॉब्स के अनुसार सामाजिक समझौते का स्वरूप – थॉमस हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में निरन्तर संघर्ष की स्थिति से परेशान लोगों ने ‘बुद्धि’ एवं ‘विवेक’ के द्वारा आत्मरक्षा हेतु ‘राज्य’ का निर्माण किया। हॉब्स के अनुसार सभी मनुष्य एकत्र होकर आपस में एक समझौता करते हैं कि मैं अपने समस्त अधिकार इस शासक या समूह को सौंपता हूँ तथा तुम भी अपने समस्त अधिकार इसे सौंप दो।
समझौते के परिणामस्वरूप आत्मरक्षा को छोड़कर समस्त अधिकार व्यक्ति शासक को सौंपे देते हैं। यह समझौता निरंकुश और अमर्यादित होता है। चूंकि यह समझौता शासक और व्यक्तियों के मध्य नहीं होता। अतः यह केवल सामाजिक समझौता है, राजनैतिक समझौता नहीं है।इस समझौते के द्वारा लौकिक प्रभु जिसे लेवियाथन कहा गया है, की उत्पत्ति होती है।
इससे पूर्व समाज एवं राज्य की कोई सत्ता नहीं थी। इसके उद्भव से ही दोनों का जन्म हुआ। लेवियाथन को सर्वोच्च अधिकार प्राप्त थे। अत: इसे सम्पूर्ण प्रभुत्व – सम्पन्न शासक या सम्प्रभु की संज्ञा दी गयी। जॉन लॉक के अनुसार सामाजिक समझौते का स्वरूप-जॉन लॉक के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य ने विभिन्न प्रकार की
असुविधाओं से बचने के लिए दो समझौते किए-
- सामाजिक समझौता,
- राजनैतिक समझौता (सरकारी समझौता)
लॉक के अनुसार, पहले समझौते में प्राकृतिक अवस्था का अन्त कर एक समाज की स्थापना की गयी। दूसरा समझौता राजा और जनता के मध्य हुआ। इसमें प्रजा द्वारा राजा को कानून बनाने, उनकी व्याख्या करने तथा उनको लागू करने का अधिकार दिया गया। यदि शासक सार्वजनिक हित के विरुद्ध कार्य करता है तो समाज को यह अधिकार है कि वह उसे सत्ता से हटाकर किसी अन्य को सत्ता सौंप दे।
जीन जैक्स रूसो के अनुसार सामाजिक समझौते का स्वरूप – जीन जैक्स रूसो के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में जब कलह और युद्ध प्रारम्भ हो गया तो इससे छुटकारा पाने के लिए मनुष्यों ने प्राकृतिक अवस्था का अन्त कर नागरिक समाज की स्थापना करने का निश्चय किया और इसके लिए परस्पर समझौता किया।
रूसो अपने सिद्धान्त में मनुष्य के दो रूप मानता है – व्यक्तिगत और सामाजिक। रूसो के अनुसार प्राकृतिक अवस्था से छुटकारा पाने के लिए लोगों की व्यक्तिगत हैसियत और सामाजिक हैसियत के मध्य समझौता होता है। व्यक्तिगत हैसियत में व्यक्ति अपनी स्वतन्त्रता और अन्य अधिकारों का त्याग समाज के लिए कर देते हैं।
समाज का अंग होने के कारण वे अपनी सामाजिक हैसियत से उन अधिकारों को पुनः प्राप्त कर लेते हैं। समझौते के परिणामस्वरूप सामान्य इच्छा उत्पन्न हुई। सभी व्यक्ति इस सामान्य इच्छा के अन्तर्गत रहते हुए कार्य करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व तथा पूर्ण शक्ति को एक सामान्य इच्छा के अधीन कर देता है एवं समूह के रूप में व्यक्तित्व व शक्ति प्राप्त कर लेता है।
प्रश्न 5.
रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त की किन-किन आधारों पर आलोचना की जा सकती है? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
रूसो का सामान्य इच्छा सिद्धान्त एवं उसकी आलोचना:
रूसो के राजनीतिक दर्शन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व सामान्य इच्छा का सिद्धान्त है। राज्य की उत्पत्ति के दौरान व्यक्ति समझौते द्वारा समुदाय के लिए अपनी शक्ति का परित्याग करता है, उससे उसकी वैयक्तितक इच्छा का स्थान एक सामान्य इच्छा ले लेती है। अपने सिद्धान्त के माध्यम से रूसो ने स्वतन्त्रता, कर्तव्य, सत्ताहित, वैयक्किता एवं सम्पूर्णता आदि का समाधान प्रस्तुत किया है। सामान्य इच्छा ने लोक प्रभुसत्ता एवं प्रजातन्त्र के मार्ग को प्रशस्त किया है। रूसो ने व्यक्ति की दो इच्छाएँ बतायी हैं-
- यथार्थ इच्छा,
- आदर्श इच्छा।
यथार्थ इच्छा वह इच्छा है जब व्यक्ति किसी विषय पर व्यक्तिगत हित एवं स्वार्थ की भावना से सोचने का कार्य करता है। आदर्श इच्छा वह इच्छा है जो सम्पूर्ण समाज का कल्याण करती है। इस इच्छा में व्यक्ति स्वयं के हित को सामाजिक हित का अंग मानता है। रूसो के मतानुसार जब कोई प्रश्न जनता के समक्ष उपस्थित होता है, तो जनता का प्रत्येक व्यक्ति अपने – अपने ढंग से उस पर विचार – विमर्श करता है एवं विचारों का आदान – प्रदान करता है। विचारों के इस आदान – प्रदान से व्यक्तियों की स्वार्थमयी इच्छा नष्ट हो जाती है और सामान्य इच्छा का निर्माण होता है। रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जाती है
- अस्पष्ट व कठिन – रूसो की ‘सामान्य इच्छा’ का विचार अव्यावहारिक तथा अस्पष्ट है। रूसो सत्य को सामान्य इच्छा मानता है। परन्तु वह इस बात का उत्तर नहीं देता कि सत्य निश्चित कौन करेगा। सामान्य इच्छा वास्तव में निर्धारित केसे होगी, यह भी स्पष्ट नहीं है।
- यथार्थ इच्छा और आदर्श इच्छा का अन्तर काल्पनिक-मनुष्य में व्यक्तिगत स्वार्थ और लोकहित दोनों की प्रवृत्ति पायी जाती है। इन्हें कभी भी अलग नहीं किया जा सकता है। कौन-सी इच्छा आदर्श है और कौन – सी सामान्य इसका पता लगाना बहुत कठिन कार्य है।
- सामान्य हित की व्याख्या कठिन – सामान्य इच्छा सिद्धान्त में कौन-सा कार्य सामान्य हित का है और कौन-सा नहीं इसका पता लगाना बहुत कठिन है।
- प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र उपयुक्त नहीं – सामान्य इच्छा प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र स्थापित करती है, जो विशाल देशों के लिए उपयुक्त नहीं है।
- काल्पनिक सिद्धान्त – यह सिद्धान्त काल्पनिक अधिक और व्यावहारिक कम लगता है। रूसो की यह धारणा कि विचारों के आदान-प्रदान से सामान्य इच्छा उत्पन्न होती है, मिथ्या धारणा है।
- राज्य की निरंकुशता का पोषक – रूसो की ‘सामान्य इच्छा’ का निर्धारण शासकों द्वारा किया जायेगा। शासक सामान्य इच्छा की आड़ में अपनी इच्छा जनता पर लादने का प्रयास करेंगे और अत्याचार करेंगे।
- व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का विरोधी – रूसो की ‘सामान्य इच्छा’ का विरोध नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में कोई भी व्यक्ति इसका विरोध नहीं कर सकता।