RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 9 सरकार का अर्थ, स्वरूप – अधिनायक तंत्र, कुलीन तंत्र एवं लोकतंत्र
RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 9 सरकार का अर्थ, स्वरूप – अधिनायक तंत्र, कुलीन तंत्र एवं लोकतंत्र
Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Chapter 9 सरकार का अर्थ, स्वरूप – अधिनायक तंत्र, कुलीन तंत्र एवं लोकतंत्र
RBSE Class 11 Political Science Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Political Science Chapter 9 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सरकार के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
सरकार के चार प्रकार होते हैं-
- राजतन्त्र
- अधिनायक तन्त्र
- कुलीन तन्त्र
- लोकतन्त्र।
प्रश्न 2.
सरकार का अर्थ बताइये।
उत्तर:
राज्य को मूर्त रूप प्रदान करने वाली संस्था को सरकार कहा जाता है। इसके द्वारा ही राज्य को निर्धारित, अभिव्यक्त और क्रियान्वित किया जाता है।
प्रश्न 3.
सरकार को आंग्ल भाषा में क्या कहा जाता है? लिखिए। ‘
उत्तर:
सरकार को आंग्ल भाषा में ‘गवर्नमेण्ट’ (Government) कहा जाता है।
प्रश्न 4.
अधिनायक तन्त्र क्या है?
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र से आशय एक व्यक्ति या व्यक्ति समूह के उस शासन से है, जो राज्य में सत्ता पर बलपूर्वक अधिकार कर लेता है / लेते हैं एवं मनमाने ढंग से उसका प्रयोग करता है / करते हैं।
प्रश्न 5.
अधिनायक तन्त्र का आंग्ल भाषा का शब्द लिखिए।
उत्तर:
‘अधिनायक तन्त्र को आंग्ल भाषा में ‘डिक्टेटरशिप’ (Dictatorship) कहते हैं।
प्रश्न 6,
अधिनायक तन्त्र का कोई एक गुण बताइये।
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र में शासक के आदेशों में एकता व कठोरता पायी जाती है।
प्रश्न 7.
अधिनायक तन्त्र का कोई एक दुर्गुण बताइये।।
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का हनन होता है।
प्रश्न 8.
कुलीन तन्त्र को समझाइये।
उत्तर:
‘कुलीन तन्त्र’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ऐरिस्टोक्रेसी’ (Aristocracy) का हिन्दी रूपान्तर है। यह शब्द ग्रीक : भाषा के ऐरिस्टोस (श्रेष्ठ) और क्रेटोस (शासन) से निर्मित है। इस प्रकार शाब्दिक दृष्टि से कुलीन तन्त्र का अर्थ है। श्रेष्ठ व्यक्तियों का शासन। आधुनिक अर्थ में जब प्रभुसत्ता का वास कुछ व्यक्तियों में होता है तो उसे कुलीन तन्त्र कहते हैं।
प्रश्न 9.
कुलीन तन्त्र का आंग्ल भाषा का शब्द लिखिए।
उत्तर:
कुलीन तन्त्र को आंग्ल भाषा में ‘ऐरिस्टोक्रेसी’ (Aristocracy) कहा जाता है।
प्रश्न 10.
कुलीन तन्त्र का एक लाभ बताइये।
उत्तर:
कानून की सर्वव्यापकता होना।
प्रश्न 11.
कुलीन तन्त्र का कोई एक दुर्गुण बताइये।
उत्तर:
कुलीन तन्त्र का सबसे बड़ा दुर्गुण यह है कि ऊँचे कुल में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति शासन की योग्यता रखता : हो, यह आवश्यक नहीं है।
प्रश्न 12.
लोकतन्त्र क्या है? बताइये।
उत्तर:
लोकतन्त्र शासन का वह रूप है जिसमें शासन की सत्ता जनता के पास रहती है, जिसका प्रयोग जनता स्वयं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करती है।
प्रश्न 13.
लोकतन्त्र का आंग्ल भाषा का शब्द लिखिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र को आंग्ल भाषा में डेमोक्रेसी’ (Democracy) कहते हैं।
प्रश्न 14.
लोकतन्त्र का एक महत्वपूर्ण लाभ बताइये।
उत्तर:
लोगों में राजनैतिक जागरूकता का विकास होता है।
प्रश्न 15.
लोकतन्त्र का कोई एक मुख्य दुर्गुण बताइये।
उत्तर:
लोकतन्त्र का एक मुख्य दुर्गुण फैसला लेने में लेट-लतीफी होना है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सरकार का अर्थ एवं उसके स्वरूप को समझाइये।
उत्तर:
सरकार राज्य के चार आवश्यक तत्वों में से एक है-किसी भी निश्चित भू-भाग पर बसा हुआ मानव समुदाय, उस समय तक राज्य नहीं कहा जा सकता, जब तक कि वह राजनीतिक रूप से संगठित न हो। किसी भी राज्य के लिए सरकार आवश्यक है, भले ही उसका स्वरूप केसी भी क्यों न हो। राज्य अदृश्य है, जिसके द्वारा स्वयं कार्य नहीं किया जा सकता। राज्य अपनी सम्प्रभुता शक्ति का उपयोग सरकार के माध्यम से ही करता है।
राज्य एक अमूर्त संस्था है, इसे मूर्त रूप प्रदान करने वाली संस्था को ही सरकार कहा जाता है। राज्य एक अमूर्त संस्था है। सरकार ही राज्य के स्वरूप को निर्धारित करती है। सरकार के विभिन्न रूपे होते हैं, जिनमें राजतन्त्र, कुलीन तन्त्र, अधिनायक तन्त्र एवं लोकतन्त्र प्रमुख हैं। वैधानिक दृष्टि से इनमें से सरकार के किसी भी रूप को अपनाया जा सकता है, लेकिन वर्तमान समय में लोकतन्त्र को ही सर्वाधिक श्रेष्ठ शासन व्यवस्था माना जाता है।
प्रश्न 2.
अधिनायक तन्त्र की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र की आलोचनात्मक व्याख्या-अधिनायक तन्त्र की आलोचनात्मक व्याख्या इस प्रकार हैं
- यह व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं विकास में बाधक माना जाता है।
- यह राष्ट्र के लिए घातक माना जाता है।
- यह तन्त्र आम जनता के शोषण का प्रतीक माना जाता है।
- इस प्रकार के शासन में सामाजिक कल्याण की भावना समाप्त होती चली जाती है।
- इसमें नागरिक स्वतन्त्रताओं का दमन होता है।
- इस प्रकार के शासन में शासक पर किसी भी प्रकार का नियन्त्रण नहीं होने से शक्तियों के दुरुपयोग की सम्भावना बनी रहती है।
- यह साम्राज्यवादी प्रवृत्ति एवं उग्र राष्ट्रीयता का समर्थक होता है, जो विश्व शान्ति के कार्य में बाधक होते हैं।
- यह एक अस्थिर शासन होता है। हिंसा और दमन के सहारे लम्बे समय तक शासन नहीं चलाया जा सकता।
प्रश्न 3.
अधिनायक तन्त्र की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र की विशेषताएँ – अधिनायक तन्त्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
- अधिनायक तन्त्र लोकतन्त्र, व्यक्तिवाद एवं उदारवाद का विरोधी होता है।
- यह हिंसा व षड्यन्त्र में विश्वास करता है।
- इस तन्त्र में समस्त शक्तियाँ राज्य में निहित होती हैं।
- इसमें एक दल का शासन होता है।
- यह उग्र राष्ट्रवादी विचारधारा का समर्थन करता है।
- इसमें विरोधी राजनेताओं की गतिविधियों पर प्रतिबन्ध होता है।
- यह तन्त्र साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद में आस्था रखता है।
- इस प्रकार के शासन में धार्मिक स्वतन्त्रता का कोई स्थान नहीं होता है।
- इस तन्त्र में राज्य का सर्वोच्च स्थान होता है।
- इसमें राज्य, राष्ट्र, समाज एवं शासन में कोई भेद नहीं किया जाता है।
- यह अन्तर्राष्ट्रीय जनमत की उपेक्षा करता है।
प्रश्न 4.
कुलीन तन्त्र की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कुलीन तन्त्र की विशेषताएँ-कुलीन तन्त्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
- कुलीन तन्त्र लोकतन्त्र एवं धनिक तन्त्र के समन्वय से निर्मित होता है।
- कुलीन तन्त्र के निर्माण के लिए तीन तत्व, यथा-जन्म, सम्पत्ति एवं योग्यता की अनिवार्यता एवं समन्वय अनिवार्य है।
- इस प्रकार के शासन में कानून की सर्वव्यापकता होती है।
- इसमें बुद्धि, गुण और संस्कृति के आधार पर राज्य और सरकार का संचालन किया जाता है।
- इसमें वंशानुगतता एवं आयु का निर्धारण समाहित होता है।
- प्लेटो के अनुसार यह बुद्धिमान व्यक्तियों का शासन है।
- कुलीन तन्त्र का सबसे प्रबल तत्व धनिक तन्त्र है।
- इसमें गणना की अपेक्षा गुण पर अधिक बल दिया जाता है।
प्रश्न 5.
कुलीन तन्त्र के सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्षों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कुलीन तन्त्र के सकारात्मक पक्ष – कुलीन तन्त्र में गणना की अपेक्षा गुण पर अधिक बल दिया जाता है। इसमें बुद्धि, गुण एवं संस्कृति के आधार पर राज्य और सरकार का संचालन किया जाता है। इसमें यह मान लिया जाता है। कि राजनीतिक दायित्वों का भार वहन करने के लिए सभी व्यक्ति समान रूप से योग्य नहीं होते।
शासन करने की क्षमता से केवल कुछ विरले लोग ही सम्पन्न होते हैं। यह राजतन्त्र एवं लोकतन्त्र के मध्य की शासन व्यवस्था है। इसमें स्थायित्व और संयम के तत्व पर्याप्त मात्रा में विद्यमान होते हैं। प्रत्येक शासन में, चाहे उसका रूप केसा भी हो, कुलीनतन्त्र का कुछ-न-कुछ अंश अवश्य विद्यमान होता है।
इस प्रकार के शासन में कानूनों की सर्वव्यापकता पायी जाती है। कुलीन तन्त्र के नकारात्मक पक्ष-कुलीन तन्त्र का सर्वाधिक नकारात्मक पक्ष यह है कि यह आवश्यक नहीं कि ऊँचे कुल अथवा अभिजात वर्ग में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति शासन की योग्यता रखता हो और यदि जन्म की बात छोड़कर केवल योग्यता के आधार पर ही सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों का शासन स्थापित करने का निर्णय किया जाए तो प्रश्न यह होगा कि
श्रेष्ठ का चुनाव कौन करे। मानव समाज सर्वश्रेष्ठ चुनने की कला से अनभिज्ञ है। अतः व्यवहार में कुलीन तन्त्र परम्परागत अभिजात वर्ग का, धनिकों का अथवा शक्तिशालियों का शासन हो जाता है। जनता ऐसे प्रशासन में भाग नहीं ले पाती। अतः वह राजनीतिक शिक्षा से वंचित रह जाती है। यह शासन आधुनिक लोकतान्त्रिक विचारधारा के प्रतिकूल है।
प्रश्न 6.
अधिनायक तन्त्र और कुलीन तन्त्र में अन्तर बताइये।
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र-अधिनायक तन्त्र से आशय एक व्यक्ति या व्यक्ति समूह के उस शासन से है जो राज्य में सत्ता पर बलपूर्वक अधिकार कर लेते हैं और उसका असीमित रूप से प्रयोग करते हैं। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में शासन सर्वशक्तिशाली, निरंकुश, स्वेच्छाचारी बन सकता है। वह दूसरे मनुष्यों को मनोवैज्ञानिक रूप से अपने नियन्त्रण में रखकर उनकी भावनाओं, इच्छाओं व स्वतन्त्रताओं का दमन कर सकता है।
न्याय, समानता, स्वतन्त्रता की भावना इसमें नहीं के बराबर होती है। इसमें आम जनता पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। जो व्यक्ति शासक की इच्छाओं को मानने से इंकार करता है उसको हिंसात्मक तरीके से बल प्रयोग कर बदले की भावना से दण्डित किया जाता है। यह लोकतान्त्रिक विचारधारा के प्रतिकूल है।
कुलीन तन्त्र-कुलीन तन्त्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें राज्य सत्ता कुलीन अर्थात् जन्म के आधार पर कुछ व्यक्तियों के हाथों में केन्द्रित होती है। यूनान में कुलीन तन्त्र एक मान्य शासन प्रणाली थी। प्लेटो और अरस्तू ने इसका विस्तृत विवेचन किया है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में जन साधारण शासक वर्ग से बिलकुल अलग रहता है और उसके लिए यह सम्भव नहीं होता कि वह शासकों की श्रेणी में पहुँच सके।
कुलीन तन्त्र में कानून की सर्वव्यापकता होती है। इसमें बुद्धि-गुण और संस्कृति के आधार पर राज्य और सरकार का संचालन किया जाता है। इसमें वंशानुगतता और आयु की निर्धारण जनित स्थिति समाहित होती है।
प्रश्न 7.
“लोकतन्त्र विश्व को सर्वोत्तम शासन है।” सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
“लोकतन्त्र विश्व का सर्वोत्तम शासन है।” इस बात के समर्थन में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं
- लोकतन्त्र जनता को स्वतन्त्रता, समानता, न्याय के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक रूप से व्यापक अधिकार प्रदान करता है।
- लोकतन्त्र का मूल आधार जनकल्याण है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में सरकार द्वारा अपनी नीतियों, कार्यक्रमों एवं आदेशों के माध्यम से जनता को अधिकाधिक जनहित करने का प्रयास किया जाता है।
- लोकतन्त्र में जनता को विभिन्न प्रकार की स्वतन्त्रताएँ प्रदान की जाती हैं तथा उनकी रक्षा के लिए न्यायालय में जाने का प्रावधान होता है।
- लोकतन्त्र में व्यक्ति की योग्यताओं, क्षमताओं एवं उसके व्यक्तित्व के विकास के समुचित एवं समान अवसर प्रदान किए जाते हैं।
- लोकतन्त्र में युद्ध का विरोध कर समस्त राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को शान्तिपूर्ण ढंग से बातचीत द्वारा, कानून निर्माण एवं सन्धि-समझौता द्वारा सुलझाया जाता है।
- लोकतन्त्र ऐसा शासन है जिसमें स्थायित्व होता है। इसमें क्रान्ति की सम्भावनाएँ बहुत कम होती हैं।
- लोकतन्त्र में नागरिकों में राष्ट्रीय चरित्र व नैतिकता का विकास होता है।
- लोकतन्त्र अनेक जातियों, समुदायों, वर्गों एवं संगठनों के मध्ये सांस्कृतिक एकता स्थापित करता है।
- लोकतन्त्र में प्रत्येक कार्य जन सहयोग से होता है।
प्रश्न 8.
लोकतन्त्र की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र की विशेषताएँ-लोकतन्त्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- लोकतन्त्र में जनता सर्व शक्तिमान होती है। यह शासन पर अप्रत्यक्ष रूप से नियन्त्रण रखती है।
- लोकतन्त्र में शासन की गतिविधियों में सहभागिता करने के लिए नागरिकों को वयस्क मताधिकार का अधिकार दिया जाता है।
- लोकतन्त्र में नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होती है।
- लोकतन्त्र में राजनीतिक एवं सामाजिक समानता पायी जाती है।
- लोकतंत्र नागरिक को स्वतंत्रता व अधिकार समान रूप से उपलब्ध कराता है।
- लोकतन्त्र में संस्थागत आधारभूत ढाँचों का वर्णन संविधान में किया जाता है।
- लोकतन्त्र में जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों में उत्तरदायित्व की भावना होती है।
- लोकतन्त्र में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका होती है।
- लोकतन्त्र में बहुमत का शासन होता है।
- लोकतन्त्र में चुनाव निर्धारित समय पर होते हैं।
प्रश्न 9.
लोकतन्त्र की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र की आलोचनात्मक व्याख्या – यद्यपि वर्तमान समय में लोकतान्त्रिक शासन को शासन का सर्वश्रेष्ठ रूप माना जाता है। यही कारण है कि विश्व के अधिसंख्य देशों में यही शासन व्यवस्था अस्तित्व में है। अनेक विशेषताओं के होने के बावजूद इसमें कुछ कमियाँ दिखायी देती हैं। जैसे-जैसे समय व्यतीत होता है, इसमें सार्वजनिक राजनीति के स्थान पर व्यक्तिकरण की राजनीति बढ़ती चली जाती है।
इस शासन में धन एवं समय का बहुत अपव्यय होतो है। विभिन्न दलों में भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति पनपने लगती है। व्यवहारतः यह शासन जनता के प्रति अनुत्तरदायी सिद्ध होता है। यही नहीं लोकतन्त्र में धीरे-धीरे उदासीनता को दृष्टिकोण उत्पन्न होने लगता है। लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था पर यह भी आक्षेप है कि यह धनवानों का शासन है।
प्रश्न 10.
लोकतन्त्र और कुलीन तन्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र – प्रभुसत्ता का वास जब सम्पूर्ण जनता में निहित होता है तो उसे लोकतन्त्र कहते हैं। लोकतान्त्रिक शासन जनता का शासन होता है। इसमें जनता प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से अर्थात् अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी सरकार बनाती है। इसमें सरकार का अस्तित्व जनता के हितों की पूर्ति के लिए होता है। सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। जनता को अपने चुने हुए प्रतिनिधियों की सरकार को आगामी चुनाव में बदलने का अधिकार होता है।
कुलीन तन्त्र – शासन में प्रभुसत्ता का वास जब कुछ ही व्यक्तियों में होता है तो उसे कुलीन तन्त्र कहा जाता है। कुलीन तन्त्र में राजनीतिक सत्ता समाज के उस अल्पवर्ग के हाथों में होती है जिसका आधार ज्ञान, बुद्धि या विवेक नहीं बल्कि मुख्य रूप से धन एवं उच्च वर्ग में जन्म होता है। यद्यपि प्लेटो ने कुलीन तन्त्र का अर्थ श्रेष्ठ व्यक्तियों के शासन के रूप में लिया है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में जनसाधारण शासन और शासकों से ईष्र्या करता है। सामान्य जनता के साथ असमानता का व्यवहार किया जाता है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में क्रान्ति भी हो सकती है।
प्रश्न 11.
लोकतन्त्र और अधिनायक तन्त्र में अन्तर बताइए।
उत्तर:
लोकतन्त्र और अधिनायक तन्त्र में अन्तर-लोकतन्त्र और अधिनायक तन्त्र में निम्नलिखित अन्तर हैं
- लोकतन्त्र का मूल आधार जनकल्याण है, जबकि अधिनायक तन्त्र में जनकल्याण के नाम पर स्वयं के हितों की पूर्ति की जाती है।
- लोकतन्त्र में जनता को विभिन्न प्रकार की स्वतन्त्रताएँ प्रदान की जाती हैं, जबकि अधिनायक तंत्र में समस्त प्रकार की नागरिक स्वतन्त्रताओं का अन्त कर दिया जाता है। प्रेस व मीडिया पर कठोर नियन्त्रण होता है।
- लोकतन्त्र में व्यक्ति की योग्यताओं, क्षमताओं व उसके व्यक्तित्व के विकास के समुचित व समान अवसर प्रदान किये जाते हैं, जबकि अधिनायक तन्त्र में व्यक्ति का कोई महत्व नहीं है। उसका कार्य केवल शासन के आदेशों का पालन करना मात्र होता है।
- लोकतान्त्रिक शासन युद्ध का विरोध कर सभी समस्याओं का शान्तिपूर्ण समाधान चाहता है, जबकि अधिनायक तन्त्र समस्त समस्याओं का समाधान युद्ध को मानता है।
- लोकतन्त्र में क्रान्ति की सम्भावना बहुत कम होती है, जबकि अधिनायक तन्त्र हिंसा एवं आतंक पर आधारित होता है।
- लोकतन्त्र में सरकार का विरोध सम्भव है, जबकि अधिनायक तन्त्र में यह सम्भव नहीं है।
प्रश्न 12.
क्या.लोकतन्त्र का विकल्प अधिनायक तन्त्र हो सकता है ? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
क्या लोकतन्त्र का विकल्प अधिनायक तन्त्र हो सकता है?-लोकतन्त्र का विकल्प अधिनायक तन्त्र नहीं हो सकता। यद्यपि अधिनायक तंत्र में सुदृढ़, स्थिर वं दक्ष शासन होता है। आर्थिक समृद्धि एवं समाज सुधार की दृष्टि से अधिनायक तन्त्र अच्छा होता है। इन सब अच्छाइयों के बावजूद अधिनायक तन्त्र में अनेक कमियाँ हैं; जैसे-शासन का निरंकुश होना, व्यक्ति के अधिकारों व उसकी स्वतन्त्रताओं को कोई महत्व नहीं मिलना, अभिव्यक्ति के साधनों पर कठोर नियन्त्रण होना आदि।
इस शासन व्यवस्था में व्यक्ति के कर्त्तव्य ही कर्तव्य होते हैं, अधिकार नहीं। इन सभी कमियों के कारण अधिनायकतन्त्र लोकतन्त्र का विकल्प नहीं हो सकता। वहीं लोकतन्त्र में समस्त प्रकार की नागरिक स्वतन्त्रताएँ विद्यमान होती हैं, अभिव्यक्ति की भी आजादी होती है। यह व्यक्तित्व के विकास के अनुकूल है। यह शान्ति का समर्थक है।
लोकतन्त्र में क्रान्ति की सम्भावनाएँ भी सीमित होती हैं। लोकतन्त्र में राजनीतिक व सामाजिक समानता है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में जनता सर्वशक्तिमान होती है। अतः इन सब बातों के आधार पर कहा जा सकता है कि अधिनायक तन्त्र लोकतन्त्र का विकल्प नहीं हो सकता। हम अधिनायक तन्त्र की अच्छाइयों को अपनाकर लोकतन्त्र को और अधिक सुदृढ़ बना सकते हैं।
प्रश्न 13.
लोकतन्त्र बनाम अधिनायक तन्त्र और कुलीन तन्त्र में अन्तर बताइये।
उत्तर:
लोकतन्त्र बनाम अधिनायक तन्त्र और कुलीनतन्त्र में निम्नलिखित अन्तर हैं:
लोकतन्त्र – ऐसा शासन जहाँ प्रभुसत्ता का वास सम्पूर्ण जनता में होता है तो उसे लोकतन्त्र कहते हैं। यह शासन जनता का शासन होता है। इसमें जनता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अर्थात् अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी सरकार बनाती है। इसमें सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। वह जन कल्याण के कार्य करती है।
अच्छा कार्य न करने पर। जनता अपने प्रतिनिधियों को आगामी चुनाव में बदलने का अधिकार रखती है। अधिनायक तन्त्र-ऐसा शासन जिसमें प्रभुसत्ता का वास एक व्यक्ति में होता है, उसे अधिनायक तन्त्र कहा जाता है। इसमें सत्ता एक व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह के पास होती है। वह अपनी सैन्य शक्ति के बल पर सत्तारूढ़ रहता है। इस प्रकार के शासन में जनता को किसी भी प्रकार की स्वतन्त्रता नहीं होती, जनता के पास कोई अधिकार भी नहीं होता। इसमें व्यक्ति का कोई महत्व नहीं होता। यह शासन समस्त समस्याओं का समाधान युद्ध को मानता है।
हिंसा व आतंक पर आधारित होने के कारण इसमें क्रान्ति की सम्भावना बनी रहती है। यह लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के विरुद्ध होता है। कुलीन तन्त्र-ऐसा शासन जिसमें प्रभुसत्ता का वास कुछ व्यक्तियों में होता है, उसे कुलीन तन्त्र कहते हैं। कुलीन तन्त्र में राजनीतिक सत्ता समाज के उस अल्पवर्ग के हाय में होती है, जिसका आधार ज्ञान, बुद्धि या विवेक नहीं, बल्कि मुख्य रूप से धनी और उच्च वर्ग में जन्म होता है।
इसमें वंशानुगतता और आयु की निर्धारण जनित स्थिति समाहित होती है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में भी क्रान्ति होने की संभावना बनी रहती है। इसमें जन साधारण शासन व शासक वर्ग से ईष्र्या करता है। सामान्य जनता के साथ असमानता का व्यवहार किया जाता है। कुलीनतन्त्र लोकतन्त्रात्मक विचारधारा के प्रतिकूल होता है।
प्रश्न 14.
वर्तमान भूमण्डलीकरण के युग में कौन – सी शासन प्रणाली सर्वोत्तम हो सकती है? इसके पक्ष में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान भूमण्डलीकरण के युग में लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली ही सर्वोत्तम हो सकती है क्योंकि भूमण्डलीकरण के कारण वैश्विक एकता की अवधारणा विकसित हुई है। इस एकता के प्रसार एवं सुदृढ़ीकरण में लोकतन्त्र ही सहायक हो सकता है क्योंकि यह मानवाधिकार की संकल्पना को फलीभूत करने में सहायक हो सकता है। यद्यपि लोकतान्त्रिक शासन में कुछ विसंगतियाँ अवश्य विद्यमान हैं, इसके बावजूद यह शासन की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली हैं। वर्तमान वैश्वीकरण की प्रक्रिया में सम्पूर्ण विश्व वैश्विक गाँव’ के रूप में बदल रहा है। ऐसी दशा में जनता द्वारा जनता. पर, जनता का शासन’ ही उपयुक्त है।
प्रश्न 15.
वर्तमान में कुलीन तन्त्र अथवा अधिनायक तन्त्र शासन प्रणाली अप्रासंगिक क्यों हो गयी है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान में कुलीन तन्त्र अथवा अधिनायक तन्त्र शासन प्रणालियों के अप्रासंगिक होने के कारण-वर्तमान विश्व सद्भावना, भाईचारा एवं शान्ति की ओर अग्रसर हो रहा है। अतः ऐसी स्थिति में विभिन्न देशों की शासन प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिसमें जनता स्वयं अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन चलाए, उनकी स्वतन्त्रता पर किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध न हो।
सरकार जन कल्याण के कार्य करे, नैतिकता, सामाजिक व राजनीतिक समानता का विकास हो, जन सहयोग की भावना हो, चारों ओर शान्ति स्थापित रहे, हिंसा के लिए कोई स्थान न हो। शक्तियों का एक ही हाथ में केन्द्रीयकरण न हो। राज्य में किसी नागरिक का किसी भी प्रकार से शोषण न हो आदि। इन समस्त बातों की पूर्ति कुलीन तन्त्र एवं अधिनायक तन्त्र शासन प्रणालियों में सम्भव नहीं है।
जहाँ कुलीन तन्त्र में शासन धनी तथा उच्च वर्ग में पैदा होने वाले व्यक्तियों के हाथों में होता है। जनता के साथ असमानता का व्यवहार किया जाता है। कई बार हिंसक क्रान्तियाँ भी हो जाती हैं। वहीं अधिनायक तन्त्र में शासक निरंकुश होता है। वह हिंसा का सहारा लेकर शासन करता है। जनता की समस्त स्वतन्त्रताओं का दमन कर दिया जाता है। इसमें जनता की भावनाओं को ठेस पहुँचायी जाती है। इस प्रकार इन दोनों शासन प्रणालियों में लाभ कर्म एवं हानियाँ अधिक हैं। अतः वर्तमान में कुलीन तन्त्र, अधिनायक तन्त्र शासन प्रणालियाँ अप्रासंगिक हो गयी हैं।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सरकार के अर्थ एवं उसके स्वरूप को समझाइए।
उत्तर:
सरकार का अर्थ मानव तथा समाज के सर्वोच्च कल्याण की दृष्टि से राज्य एक महत्वपूर्ण और आवश्यक संस्था मानी जाती है। राज्य के चार आवश्यक तत्व माने गये हैं-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार और सम्प्रभुता। इन चार तत्वों में सरकार राज्य का संगठनात्मक तत्व है। सरकार के अभाव में राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती।
सरकार ही वह साधन है जिसके द्वारा राज्य अपने उद्देश्यों की पूर्ति करता है। सरकार राज्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है, यह राज्य की आत्मा है। आशय यह है कि सरकार राज्य की अभिव्यक्ति है, परन्तु सरकार सम्प्रभुता सम्पन्न नहीं है, उसके पास जो भी शक्ति है वह शक्ति उसने राज्य के प्रतिनिधि के रूप में प्राप्त की है।
सरकार के विभिन्न स्वरूप-सरकार के विषय में देशकाल तथा परिस्थिति के अनुरूप परिवर्तन आते रहे हैं। जिस प्रकार राज्य की उत्पत्ति और प्रकृति के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है उसी प्रकार सरकारों के वर्गीकरण के बारे में भी विद्वानों में एक मत का अभाव है। राज्य एक अमूर्त संस्था है। सरकार ही राज्य के स्वरूप को निर्धारित करती है। सरकार के विभिन्न रूप होते हैं। सरकार के स्वरूप के आधार पर ही राज्य का स्वरूप निर्धारित होता है।
उदाहरण के रूप में; रूस में सन् 1917 में बोल्शेविक क्रान्ति के पश्चात् लेनिन के नेतृत्व में साम्यवादी सरकार की स्थापना हुई। इस साम्यवादी सरकार के स्वरूप के आधार पर ही रूस को सर्वाधिकारवादी राज्य की संज्ञा दी गई। आज जिन देशों में लोकतान्त्रिक सरकारें हैं उन्हें लोकतान्त्रिक राज्य कहा जाता है। यद्यपि सरकारों के वर्गीकरण के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य को अभाव फिर भी है।
सरकार के विभिन्न स्वरूपों में राजतन्त्र, कुलीनतन्त्र, अधिनायक तन्त्र एवं लोकतन्त्र प्रमुख हैं—
(1) राजतन्त्र – राजतन्त्र वह शासन प्रणाली है जिसमें राज्य की सर्वोच्च सत्ता एक व्यक्ति अर्थात् राजा या सम्राट में निहित होती है। ऐतिहासिक दृष्टि से राजतन्त्र सम्भवत: सबसे प्राचीन शासन प्रणाली है।
प्रारम्भिक युगों में यह संसार के प्रायः समस्त देशों में प्रचलित थी। राजतंत्र में गुण की अपेक्षा दोष अधिक होते हैं। अयोग्य और स्वार्थी राजाओं के हाथों में राजतंत्र अन्यायी शासन का रूप ले लेता है। राजतंत्र की विकृत रूप में निरंकुश तंत्र है। अत: वर्तमान में राजतन्त्र को त्याज्य शासन प्रणाली माना जाता है।
(2) कुलीन तन्त्र-इसका अभिप्राय है, ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें राजसत्ता कुलीन अर्थात् जन्म के आधार पर कुछ व्यक्तियों के हाथों में केन्द्रित हो। यूनान में कुलीन तन्त्र एक मान्य शासन प्रणाली थी। प्लेटो और अरस्तू ने इसकी समर्थन किया। कुलीन तन्त्र में कानून की सर्वव्यापकता होती है।
इसमें बुद्धि, गुण और संस्कृति के आधार पर राज्य और सरकार का संचालन किया जाता है। किन्तु इस प्रकार के शासन में सामान्य जनता के साथ असमानता का व्यवहार किया जाता है। इस प्रकार की शासन प्रणाली सामाजिक प्रगति के मार्ग में बाधक होती है। यह लोकतन्त्रात्मक विचारधारा के प्रतिकूल होती है। कुलीन तंत्र का विकृत रूप धनिक तन्त्र या वर्ग तन्त्र है।
(3) अधिनायक तन्त्र-इस प्रकार के शासन तन्त्र में सत्ता एक व्यक्ति या एक दल में केन्द्रित होती है। अधिनायक का सत्ता पर एकाधिकार होता है। इस व्यवस्था में शासक की शक्ति असीमित होती है। इसे असंवैधानिक तरीकों से सत्ता प्राप्त होती है और यह अपनी सैन्य शक्ति के बल पर आसीन रहता है। शासन की शक्तियों का केन्द्रीकरण पाया जाता है। शासन कानून पर आधारित न होकर स्वेच्छाचारिता पर आधारित होता है।
इस प्रकार की शासन व्यवस्था में शासक जनता को मनोवैज्ञानिक रूप से अपने नियन्त्रण में रखकर उनकी भावनाओं, इच्छाओं और स्वतन्त्रताओं को नष्ट करता है। न्याय, समानता एवं स्वतन्त्रता की भावना इस प्रकार के शासन में नाममात्र की होती है। इसमें नागरिकों पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। जो व्यक्ति शासक की इच्छाओं को मानने से इंकार का देता है उसके विरुद्ध बल प्रयोग किया जाता है।
(4) लोकतन्त्र – यह सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली के रूप में स्वीकार किया गया शासन है। इसमें जनता की स्वतन्त्रता, समानता, न्याय के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक रूप से व्यापक अधिकार भी प्रदान किये जाते हैं। लोकतन्त्र के पीछे जनशक्ति पायी जाती है। जन हित, जनकल्याण व विकास के कार्यों के लिए लोकतन्त्र के व्यापक सिद्धान्तों, लक्ष्यों, मान्यताओं तथा उद्देश्यों की स्थापना एवं प्राप्ति के लिए इस शासन पद्धति को स्थापित किया गया है। लोकतन्त्र में व्यक्ति समुदाय व संस्था के कार्यों में सत्ता की हिस्सेदारी समान रखी गयी है। इसमें जन इच्छा ही सम्प्रभुता का प्रतीक मानी जाती है। जनता सर्वशक्तिमान है। जनता शासन पर नियन्त्रण रखती है।
प्रश्न 2.
अधिनायक तन्त्र के प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र के प्रमुख लक्षण अधिनायक तन्त्र के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं
1. राज्य को सर्वोच्च स्थान – अधिनायक तन्त्र में राज्य ही सर्वोच्च होता है। राज्य के ऊपर अन्य कोई नहीं है। जनता, समुदाय, संघ, संगठनों, संस्थाओं, धर्म आदि में राज्य को उच्च स्थान दिया जाता है। राज्य का मुख्य उद्देश्य युद्ध करना और युद्ध में विजय प्राप्त करना होता है। इसके अतिरिक्त राज्य का कोई कार्य नहीं है।
2. लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के विरुद्ध – अधिनायक तन्त्र को लोकतन्त्र का शत्रु माना जाता है। जनता के लिए न्याय, समानता व स्वतन्त्रता की संकल्पना नहीं होती। जनता और शासक वर्ग के मध्य अन्तर कर दिया जाता है।
3. शक्ति और हिंसा में विश्वास – अधिनायक तन्त्र का आधार शक्ति, हिंसा, बल-प्रयोग, दमन व उपद्रव है। तानाशाह शक्ति के बल पर ही सत्ता प्राप्त करते हैं और शक्ति की बल पर ही सत्ता में बने रहते हैं।
4. एक दल का शासन – इस व्यवस्था में शासन पर एक दल का एकाधिकार बना रहता है। इसमें शासन का विरोध, शासन की आलोचना तथा विरोधी राजनीतिक दलों का कोई स्थान नहीं होता। सैनिक तानाशाही में राजनीतिक दलों के गठन की भी आज्ञा नहीं होती है।
5. उग्रवादी विचारधारा का समर्थन – अधिनायक तन्त्र में राष्ट्रीय नारे व घोषणाएँ आदि को इतना अधिक महत्व दिया जाता है कि वे उग्रवादी विचारधारा का रूप धारण कर लेते हैं हिटलर, मुसोलिनी की विचारधारा इसका उदाहरण हैं।
6. विरोधियों को अन्त – अधिनायक तन्त्र में राज्य की जो भी व्यक्ति आलोचना करती है उसे गिरफ्तार कर जेल में बन्द कर दिया जाता है। इसके विरोधी राजनेताओं की गतिविधियों पर पाबन्दी लगा दी जाती है।
7. शक्तियों का केन्द्रीकरण – अधिनायक तन्त्र में समस्त प्रकार की शक्तियों का केन्द्रीकरण कर दिया जाता है। नीचे के स्तर की शक्ति को छीनकर, शक्ति केन्द्रीय स्तर की ओर बढ़ाई जाती है। शासन के समस्त निर्णय उच्च स्तर पर ही लिए जाते हैं। इसमें निर्णय कठोरता से लागू किए जाते हैं।
8. साम्राज्यवाद में आस्था – अधिनायक तन्त्र एक साम्राज्यवादी विचारधारा है। यह अपने राष्ट्र का विस्तार चाहती है और इस हेतु युद्ध का रास्ता अपनाती है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में विश्व प्रेम, अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं वसुधैव कुटुम्बकम का कोई महत्व नहीं होता है।
9. जनमत निर्माण के साधनों का सरकारीकरण – अधिनायक तन्त्र.अपनी राजनीतिक विचारधारा को ही पूर्ण एवं एकमात्र सत्य मानता है। वह अपनी विचारधारा के प्रचार के लिए तथा अन्य विरोधी विचारधाराओं के विरोध के लिए शिक्षा, साहित्य, प्रेस, टेलीविजन, रेडियो एवं सिनेमा आदि जनमत निर्माण के साधनों पर नियन्त्रण रखता है।
10. व्यक्ति पूजा – अधिनायक तन्त्र में एक ही व्यक्ति सर्वोत्तम नेता होता है जिसे राष्ट्रीय एकता एवं सम्मान के प्रतीक के रूप में श्रद्धा और विश्वास का पात्र माना जाता है। इसी नेता के पास समस्त बातों के सम्बन्ध में अन्तिम निर्णायक शक्ति होती है और उसके शब्द ही कानून होते हैं।
11. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का शत्रु – अधिनायक तन्त्र में एक व्यक्ति और एक दल का शासन होता है। इसमें समस्त प्रकार की नागरिक स्वतन्त्रताओं का अन्त कर दिया जाता है। अधिनायक किसी भी प्रकार का विरोध सहन नहीं कर सकते।
12. अन्तर्राष्ट्रीय जनमत की उपेक्षा – अधिनायक तन्त्र अपने राष्ट्रीय हित की रक्षा तथा विकास के लिए विदेश नीति का संचालन कठोरतापूर्वक करता है और आवश्यकता पड़ने पर अन्तर्राष्ट्रीय जनमत एवं संस्थाओं की उपेक्षा भी करता है।
प्रश्न 3.
लोकतन्त्र के गुण व दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र के गुण लोकतन्त्र के गुण अग्रलिखित हैं
1. जनहितकारी – लोकतांत्रिक शासन को जनता के कल्याण, विकास व सुविधा का प्रतीक माना जाता है। लोकतन्त्र में शासन की नीतियाँ, कार्यक्रमों, आदेशों के माध्यम से जन साधारण का अधिक – से – अधिक जनहित करने का प्रयास किया जाता है। लोकतान्त्रिक सरकार जनता के प्रतिनिधियों द्वारा संचालित होती है। ये प्रतिनिधि एक निश्चित समय के लिए चुने जाते हैं। इसके बाद उन्हें पुनः जनता की अदालत में जवाब देना पड़ता है। अतः ये प्रतिनिधि अपने -अपने क्षेत्र में जनता का पूर्ण ध्यान रखते हैं।
2. नागरिकों में नैतिकता का विकास – लोकतन्त्र में, नागरिकों में राष्ट्रीय चरित्र व नैतिकता का विकास होता . है। देश – भक्ति, त्याग, बलिदान, सेवा, सहनशीलता आदि गुणों का विकास नागरिकों को राष्ट्र से जोड़े रखने का काम करता है। नैतिकता लोकतन्त्र को भ्रष्ट होने से रोकती है। नैतिकता से नागरिकों में आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न होती। है। लोकतन्त्र में अच्छे आदर्शों का संकल्प दोहराया जाता है।
3. सांस्कृतिक एकता – लोकतन्त्र अनेक जातियों, समुदायों, वर्गों, संगठनों के मध्य सांस्कृतिक एकता स्थापित करने का प्रयत्न करता है। लोकतन्त्र सभी नागरिकों के हितों का संरक्षण करता है। सभी के कल्याण के बारे में सोचता है। सभी को साथ लेकर आगे बढ़ने की बात ही सांस्कृतिक लोकतन्त्र की स्थापना का आधार है। इसमें कला, साहित्य, संस्कृति को समान दृष्टि से बरकरार रखने का प्रयास किया जाता है।
4. क्रान्ति से सुरक्षा – अधिनायक तन्त्र में जहाँ अत्याचारी निरंकुश शासकों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए जनता के पास एकमात्र साधनं क्रान्ति है। वहीं लोकतन्त्र में एक निश्चित अन्तराल के बाद चुनाव की व्यवस्था के अन्तर्गत जनता को सरकार को पुनः चुनने, वर्तमान सरकार को बनाये रखने या उसे अपदस्थ करके सरकार बनाने के लिए विपक्ष को मौका देने या न देने का अवसर मिलता है। इस प्रकार लोकतन्त्र में जनता संवैधानिक ढंग से ही सरकार को पदच्युत कर सकती है। इससे लोकतन्त्र में जनता को क्रान्ति का मार्ग अपनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
5. जन – सहयोग – लोकतन्त्र में जन-सहयोग के बिना कोई कार्य सम्पन्न नहीं होता है। जनता आर्थिक विकास के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करती है। राष्ट्र के रचनात्मक विकास एवं निर्माण के लिए श्रमदान करती है। लोकतन्त्र जनता में जन-सहयोग की भावना उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है। लोकतन्त्र में राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करने के लिए जन-सहयोग की उम्मीद की जाती है।
6. राजनीतिक प्रशिक्षण प्रदान करना – लोकतन्त्र नागरिकों को राजनीतिक प्रशिक्षण प्रदान करता है। इसमें स्थानीय संस्थाओं के माध्यम से जनता को प्रारम्भ से ही राजनीतिक पद सम्भालने की शिक्षा मिलती रहती है। इससे नागरिकों की राजनीति में रुचि जागृत होती है तथा वे हर सम्भव प्रयत्नों के द्वारा सरकार के कार्यों में भाग लेना चाहते हैं।
7. सर्वाधिक कार्यकुशल प्रशासन – लोकतन्त्र किसी भी अन्य शासन की तुलना में सर्वाधिक कार्य कुशल शासन प्रणाली है क्योंकि इसके शासकों को जनता के प्रति उत्तरदायी रहना पड़ता है। जैसा कि गार्नर ने लिखा है कि “लोकप्रिय निर्वाचन, लोकप्रिय नियन्त्रण और लोकप्रिय उत्तरदायित्व की व्यवस्था से कारण दूसरे किसी भी शासन व्यवस्था की अपेक्षा यह शासन अधिक कार्यकुशल होता है।”
लोकतन्त्र के दोष लोकतन्त्र के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं:
(1) अयोग्य व्यक्तियों का शासन-अरस्तू ने लोकतन्त्र को शासन का विकृत रूप मानते हुए इसे अयोग्य शासन माना था । लोकतन्त्र में जो व्यक्ति, नेता, राजनीतिज्ञ शामिल होते हैं, वे अयोग्य इसलिए माने जाते हैं क्योंकि उन्हें राजनीति का प्रशिक्षण प्राप्त नहीं होता है। मात्र साधारण योग्यता के आधार पर शासन व्यवस्था में सम्मिलित होना अयोग्यता का सूचक है।
(2) भ्रष्टाचार-लोकतन्त्र में शासन विभिन्न दलों द्वारा किया जाता है। सत्ताधारी दल अपने दल के व्यक्तियों को उच्च पदों पर आसीन करता रहता है। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
(3) राजनैतिक दुष्प्रचार – लोकतन्त्र में जनता के समक्ष चुनाव के समय जो समस्याएँ पेश की जाती हैं वे वास्तविक रूप में प्रस्तुत न कर इस रूप में प्रस्तुत की जाती हैं कि जनता भ्रमित हो जाती है। लोकतन्त्र में जाति, धर्म की दुहाई दी जाती है। एक-दूसरे पर अनुचित आक्षेप लगाये जाते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि प्रजातन्त्र में राजनीतिक दुष्प्रचार किया जाता है।
(4) मतदाताओं की उदासीनता – लोकतन्त्र की सफलता के लिए जागरूक जनता का होना अति आवश्यक है। किन्तु व्यवहार में मतदाताओं में उदासीनता ही देखने को मिलती है। इसका उदाहरण है-सभी मतदाताओं द्वारा अपने मताधिकार का प्रयोग न करना। ऐसी स्थिति में जनता की इच्छाओं का सही प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता है।
(5) धन व समय का अपव्यय-लोकतन्त्र में धन और समय का बहुत अपव्यय होता है। इसमें व्यवस्थापन की। प्रक्रिया में बहुत समय बर्बाद हो जाता है। चुनाव की प्रक्रिया में बहुत धन खर्च हो जाता हैं।
(6) दलीय व्यवस्था दोषपूर्ण – लोकतन्त्र में राजनीतिक दल दोषपूर्ण दलीय व्यवस्था को उत्पन्न करते चले जाते हैं। कहीं पर दो दलीय प्रणाली तो कहीं पर बहुदलीय प्रणाली पायी जाती है। राजनीतिक दल एक-दूसरे से हमेशा असहयोग व संघर्ष की स्थिति में ही रहते हैं। राजनीतिक दलों का असहयोग लोकतन्त्र की असफलता को बढ़ावा देता है।
(7) सामाजिक समानता का अभाव – जिन देशों में लोकतन्त्र की स्थापना हुई, उनमें अधिकांश में यह देखने को मिला है कि वहाँ ऊँच-नीच, गरीबी-अमीरी, वर्ग-संघर्ष, आर्थिक असमानताओं के कारण सामाजिक समानता स्थापित नहीं हुई है।
(8) अल्पसंख्यक लोगों का शासन – लोकतन्त्र बहुसंख्यक जनता पर अल्पसंख्यक लोगों का शासन माना जाता है। चुनावों द्वारा शासन करने के लिए जो प्रतिनिधि जो चुने जाते हैं, वे अल्पसंख्यक होते हैं। लोकतन्त्र में पेशेवर राजनीतिज्ञ ही शासन में रहते हैं। निरन्तर ये ही शासन करने का प्रयास करते हैं। कभी दल बदल लेते हैं तो कभी अपने आप को बदलकर जनता के सामने दूसरा मुखौटा लगाकर आ जाते हैं। दूसरे व्यक्तियों को अवसर हीं नहीं मिलता है।
प्रश्न 4.
कुलीन तन्त्र सरकार के गुण एवं दोषों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
कुलीन तन्त्र सरकार के गुण कुलीन तन्त्र सरकार का सबसे बड़ा गुण यह है कि इसमें गणना की अपेक्षा गुण पर अधिक बल दिया जाता है। इसमें यह मान लिया जाता है कि राजनीतिक दायित्वों का भार वहन करने के लिए समस्त व्यक्ति समान रूप से योग्य नहीं होते और शासन करने की क्षमता से केवल कुछ विरले लोग ही सम्पन्न होते हैं।
कुलीन तंत्र मुख्यत: अनुदार (कन्जरवेटिव) शासन होता है। यह राजतन्त्र और लोकतन्त्र के मध्य की चीज है और इसमें स्थायित्व तथा संयम के तत्वे पर्याप्त मात्रा में विद्यमान होते हैं। प्रत्येक शासन में, उसका रूप केसा भी हो, कुलीन तन्त्र का कुछ-न-कुछ अंश निश्चित रूप से विद्यमान होता है।
कुलीन तन्त्र में कानून की सर्वव्यापकता होती है। इसमें बुद्धि, गुण और संस्कृति के आधार पर राज्य और सरकार का संचालन किया जाता है। इस प्रकार की सरकार में वंशानुगतता और आयु की निर्धारण जनित स्थिति समाहित होती है। प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ने अपने आदर्श राज्य में आयु आधारित कुलीन तन्त्र को स्वीकार किया है। उन्होंने इसमें प्रौढ़ एवं अनुभवी व्यक्ति को ही राजा और शासन संचालन का अधिकार प्रदान किया है।
कुलीन तन्त्र सरकार के दोष कुलीन तन्त्र सरकार का सबसे बड़ा दोष यह है कि ऊँचे कुलीन अथवा अभिजात्य वर्ग में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति सरकार चलाने की योग्यता रखता हो, यह आवश्यक नहीं है और यदि जन्म की बात छोड़करे केवल योग्यता के आधार पर ही सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों का शासन स्थापित करने का निर्णय किया जाए तो प्रश्न यह उठता है कि सर्वश्रेष्ठ का चुनाव कौन करे ? मानव समाज सर्वश्रेष्ठ को चुनने की कला से अनभिज्ञ है। अतः व्यवहार में कुलीन तंत्र या तो परम्परागत अभिजात्य वर्ग की धनिकों की अथवा शक्तिशालियों की सरकार हो जाती है। जनता ऐसी सरकार में भाग नहीं ले पाती है।
अत: वह राजनीतिक शिक्षा से वंचित रह जाती है। वैसे भी किसी भी वर्ग विशेष का शासन आधुनिक लोकतान्त्रिक विचारधारा के प्रतिकूल है। कुलीन तन्त्र का अनुदार तत्व सामाजिक प्रगति के मार्ग में बाधा बन जाता है। कई बार कुलीन तन्त्रीय सरकार में क्रान्ति भी हो जाती है। धीरे-धीरे सरकार में रहते हुए कुलीन वर्ग भी स्वार्थी हो। जाता है और सरकार का रूप विकृत हो जाता है। जनसाधारण सरकार और शासकों से ईष्र्या करने लगता है।
सामान्य जनता अपने और शासकों के बीच गुण और चरित्र के आधार पर कोई अन्तर नहीं कर पाती है। सामान्य जनता के साथ असमानता का व्यवहार किया जाता है। शासक वर्ग का एक अंग युद्ध अथवा किसी भी अन्य कारण से अत्यधिक नाराज हो जाता है। और वह सम्पत्ति के विभाजन की माँग करता है। इस प्रकार कुलीन तन्त्रीय सरकार में क्रान्ति हो जाती है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि कुलीन तन्त्रीय सरकार लोकतान्त्रिक विचारधारा के प्रतिकूल सरकार है। अतः इस प्रकार का शासन गुणों की अपेक्षा अधिक दोषों वाला होता है।
प्रश्न 5.
कुलीन तन्त्र एवं अधिनायक तन्त्र सरकारों के मध्य क्या – क्या अन्तर हैं? विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
कुलीन तन्त्र एवं अधिनायक तन्त्र सरकारों के मध्य अन्तर:
कुलीन तंत्र – कुलीन तन्त्र का निर्माण लोकतन्त्र एवं धनिक तन्त्र के समन्वय से होता है। इसके निर्माण हेतु तीन अवयव नितांत आवश्यक होते हैं-जन्म, योग्यता एवं सम्पत्ति। इस तंत्र में बुद्धि, गुण एवं संस्कृति के आधार पर सरकार का संचालन किया जाता है। इस तंत्र में वंशानुगतता एवं आयु की निर्धारिता होती है।
महान विद्वान अरस्तू ने कुलीन तंत्र के अन्तर्गत प्रौढ़ एवं अनुभवी व्यक्तियों को ही राज्य एवं शासन संचालन का अधिकार दिया है। कुलीन तंत्र में क्रान्ति के कारणों का विश्लेषण करते हुए अरस्तू कहते हैं कि इस तंत्र में क्रान्ति इस कारण होती है। कि इसमें शासकों की सत्ता बहुत सीमित होती है।
वस्तुतः इस शासन में जन साधारण शासकों से घृणा करता है। आम लोग अपने व शासकों के बीच गुण एवं चरित्र के आधार पर कोई अन्तर नहीं कर पाते। कुलीन तंत्र में सामान्य जनता के साथ असमानता का व्यवहार प्रदर्शित होता है। शासक वर्ग का एक अंग युद्ध अथवा किसी भी अन्य कारण से अत्यन्त उग्र हो ।
जाता है। वह सम्पत्ति के विभाजन की माँग करता है-ये सब बातें क्रांति का कारण बनती हैं। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि कुलीन तन्त्र में सबसे प्रबल तत्व धनिक तंत्र है। अधिनायक तंत्र-इस तरह की सरकार अथवा शासन में संप्रभुता एक ही व्यक्ति के हाथों में सीमित होती है।
सम्प्रभुता एक ही व्यक्ति में केन्द्रित होने के कारण वह अपनी स्वेच्छाचारी शक्ति के अनुसार आदेश पारित करता है और उनका पालन करवाता है। इस तरह के शासन अथवा सरकार में आम जनता की भावनाओं एवं इच्छाओं का सम्मान न करना ही शासक का परम कर्तव्य होता है।
अधिनायकवादी सरकार में शासक का पद योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि बल एवं शक्ति तथा हिंसा के सहारे पाने का प्रयत्न किया जाता है। इस प्रकार के शासन में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका से संबंधित शक्तियाँ एक ही व्यक्ति में सन्निहित होती हैं। वस्तुतः यह सर्वाधिकारवादी शक्तियों का प्रयोग करता है।
इस प्रकार के शासन तन्त्र का कई प्रकार से वर्गीकरण किया गया है-
- प्राचीन युग का अधिनायक तन्त्र
- समकालीन अधिनायक तंत्र।
पुनः समकालीन अधिनायंक तंत्र को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है
- सर्वाधिकारवादी अधिनायक तंत्र
- स्वेच्छाचारी अधिनायक तंत्र।
दोनों प्रकार की सरकारों के मध्य अन्तर का विश्लेषण – कुलीन तन्त्र एवं अधिनायक तन्त्र की सरकारों के बीच के अन्तर का विश्लेषण करने पर यह बात पूर्णतया स्पष्ट हो जाती है कि प्रकृति एवं प्रकार की दृष्टि से कुलीन तन्त्र सरकार अधिनायक तन्त्र सरकार से अधिक उदार होती है। यद्यपि दोनों में लोकतान्त्रिक मूल्यों का अभाव पाया जाता है।
जहाँ कुलीन तन्त्र सरकार में धनिक तन्त्र प्रभावी रहता है वहीं अधिनायक तन्त्र सरकार में किसी व्यक्ति विशेष की स्वेच्छाचारिता प्रभावी होती है। कुलीन तन्त्र सरकार में तो जनता के साथ केवल असमानता का व्यवहार किया जाता है किन्तु अधिनायकवादी शासन तन्त्र में जनता को महत्व ही नहीं दिया जाता। कुलीन तन्त्र सरकार में शक्तियों का विकेन्द्रीकरण कुछ सीमा तक विद्यमान होता है। अधिनायक तन्त्र सरकार में शक्तियाँ पूर्णतया केन्द्रीकृत होती हैं।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
कुलीन तन्त्र की विशेषता है?
(अ) जन सामान्य का शासन
(ब) धनिक लोगों का शासन
(स) क्रान्तिकारियों का शासन
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) धनिक लोगों का शासन
प्रश्न 2.
संघ “बहुशासनतन्त्रवादी राज्य है” किसने कहा?
(अ) विलोबी।
(ब) अम्बेडकर
(स) बेजहॉट
(द) लास्की।
उत्तर:
(अ) विलोबी।
प्रश्न 3.
राष्ट्राध्यक्ष का निर्वाचन होता है
(अ) राजतन्त्र में
(ब) लोकतन्त्र में
(स) गणतन्त्र में
(द) संवैधानिक राजतन्त्र में।
उत्तर:
(स) गणतन्त्र में
प्रश्न 4.
“केवल अधिनायकतन्त्र ही ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासक की सत्ता ही एकमात्र औचित्य हुआ करती है।” यह कथन किसका है?
(अ) मैकाइवर
(ब) लुडोविसी
(स) बन्स्र
(द) लिंकन।
उत्तर:
(अ) मैकाइवर
प्रश्न 5,
“लोकतन्त्र दुष्टों का कुलीन तन्त्र है।” यह कथन किसका है?
(अ) टेलीअँड
(ब) लुडोविसी
(स) लिंकन
(द) गार्नर।
उत्तर:
(अ) टेलीअँड
RBSE Class 11 Political Science Chapter 9 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Political Science Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
फ्रांस में निम्न में से किस शासन व्यवस्था ने एक लम्बे समय तक शासन किया
(अ) अधिनायक तन्त्र
(ब) कुलीन तन्त्र
(स) लोकतन्त्र
(द) जनतन्त्र।
उत्तर:
(अ) अधिनायक तन्त्र
प्रश्न 2.
निम्न में से किस शासन व्यवस्था में सम्प्रभुता एक ही व्यक्ति के हाथों में केन्द्रित होती है
(अ) लोकतन्त्र
(ब) कुलीन तन्त्र
(स) अधिनायक तन्त्र
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(स) अधिनायक तन्त्र
प्रश्न 3.
जिस शासन प्रणाली में जनता को किसी भी प्रकार की स्वतन्त्रता नहीं होती हैं, वह है
(अ) राजतन्त्र
(ब) कुलीन तन्त्र
(स) लोकतन्त्र
(द) अधिनायक तन्त्र।
उत्तर:
(द) अधिनायक तन्त्र।
प्रश्न 4.
किस प्रकार की सरकारें प्रत्येक बात का निर्णय युद्ध के द्वारा करना चाहती हैं
(अ) लोकतन्त्रीय सरकारें
(ब) अधिनायक तन्त्रीय सरकारें
(स) राजतन्त्रीय सरकारें
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ब) अधिनायक तन्त्रीय सरकारें
प्रश्न 5.
निम्न में से अधिनायक तन्त्र की विशेषता है
(अ) लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के विरुद्ध होना
(ब) विरोधियों का अन्त
(स) एक दल का शासन
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 6.
जब प्रभुसत्ता का वास कुछ व्यक्तियों में होता है, तो उसे कहा जाता है
(अ) अधिनायक तन्त्र
(ब) कुलीन तन्त्र
(स) जनतन्त्र
(द) राजतन्त्र।
उत्तर:
(ब) कुलीन तन्त्र
प्रश्न 7.
जब प्रभुसत्ता का वासं सम्पूर्ण जनता में होता है, तो उसे कहा जाता है
(अ) लोकतन्त्र
(ब) अधिनायक तन्त्र
(स) राजतन्त्र
(द) कुलीन तन्त्र।
उत्तर:
(अ) लोकतन्त्र
प्रश्न 8.
अरस्तु के अनुसार लोकतन्त्र के स्वरूप हैं
(अ) एक
(ब) तीन
(स) चार
(द) दो।
उत्तर:
(द) दो।
प्रश्न 9.
प्रत्यक्ष लोकतन्त्र से सम्बन्धित देश है
(अ) स्विट्जरलैण्ड
(ब) भारत
(स) चीन
(द) नेपाल।
उत्तर:
(अ) स्विट्जरलैण्ड
प्रश्न 10.
अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र का उदाहरण है
(अ) चीन
(ब) भारत
(स) स्विट्जरलैण्ड
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) भारत
प्रश्न 11.
निम्न में से किस देश में संवैधानिक राजतन्त्र स्थापित है
(अ) भारत
(ब) चीन
(स) ब्रिटेन
(द) संयुक्त राज्य अमेरिका।
उत्तर:
(स) ब्रिटेन
प्रश्न 12.
लोकतन्त्र का प्रमुख लक्षण है
(अ) वयस्क मताधिकार
(ब) विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
(स) लिखित संविधान
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 13.
लोकतन्त्र का गुण है
(अ) जनहित
(ब) भ्रष्टाचार
(स) राजनीतिक तन्त्र
(द) जनता की उदासीनता।
उत्तर:
(अ) जनहित
प्रश्न 14.
लोकतन्त्र को अवगुण है
(अ) सांस्कृतिक एकता
(ब) जन सहयोग
(स) राजनीतिक प्रशिक्षण
(द) अयोग्यता।
उत्तर:
(द) अयोग्यता।
प्रश्न 15.
निम्न में से किस विद्वान ने लोकतन्त्र को शासन का विकृत रूप मानते हुए इसे अयोग्य शासन माना है
(अ) अरस्तू ने
(ब) प्लेटो ने
(स) लास्की ने
(द) मैकाइवर ने।
उत्तर:
(अ) अरस्तू ने
प्रश्न 16.
बहुसंख्यक जनता पर अल्पसंख्यक लोगों को शासन माना जाता है
(अ) जनतन्त्र
(ब) लोकतन्त्र
(स) कुलीन तन्त्र
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) लोकतन्त्र
प्रश्न 17.
गणतन्त्रवादी लोकतन्त्र का प्रतीक देश है
(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका
(ब) चीन
(स) भारत
(द) ब्रिटेन।
उत्तर:
(स) भारत
प्रश्न 18.
लोकतन्त्र की सफलता की प्रमुख शर्त है
(अ) शिक्षा का प्रचार व प्रसार
(ब) राजनीतिक चेतना
(स) आर्थिक लोकतन्त्र
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 9 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
किस प्रकार की शासन व्यवस्था में जनसाधारण की भावनाओं और इच्छाओं को कुचलना शासक की प्रवृत्ति होती है?
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र में।
प्रश्न 2.
सिसली में कब व किसने अधिकनायकवाद लागू किया था।
उत्तर:
सन् 1860 ई. में गेरीबाल्डी ने।
प्रश्न 3.
कौन-सी शासन व्यवस्था में शासक सर्वशक्तिशाली, निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी बन सकता है?
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र में।
प्रश्न 4.
अधिनायकवाद को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अल्फ्रेड कार्बन के अनुसार, “अधिनायकवादी तन्त्र एक ऐसे व्यक्ति का शासन होता है जिसमें शासक को पद छल, कपट, हिंसा, बल आदि के द्वारा ही प्राप्त किया जाता है।”
प्रश्न 5.
अधिनायक तन्त्र के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
- प्राचीन युग का अधिनायक तन्त्र
- समकालीन अधिनायक तन्त्र।
प्रश्न 6.
प्राचीन युग में अधिनायक तन्त्र की स्थापना क्यों की जाती थी?
उत्तर:
प्राचीन युग में शासक के समक्ष आकस्मिक संकट उत्पन्न होने पर उसका सामना करने के लिए अधिनायक तन्त्र की स्थापना की जाती थी।
प्रश्न 7.
समकालीन अधिनायक तन्त्र की स्थापना किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
समकालीन अधिनायक तन्त्र की स्थापना राज्य में स्वतन्त्र रूप से राज-क्रान्ति करके बल व हिंसा के आधार पर शक्ति को प्राप्त करने वाला व्यक्ति करता है।
प्रश्न 8.
ऐलेन बाल के अनुसार, आधुनिक युगीन अधिनायक तन्त्र के प्रकार बताइए।
उत्तर:
- सर्वाधिकारवादी अधिनायक तन्त्र
- स्वेच्छाचारी अधिनायक तन्त्र।
प्रश्न 9.
सर्वाधिकारवादी अधिनायक तन्त्र का उदय क्यों व कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1930 की औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् विज्ञान एवं तकनीकी तथा संचार के साधनों आदि का विकास होने के कारण सर्वाधिकारवादी अधिनायक तन्त्र का उदय हुआ।
प्रश्न 10.
स्वेच्छाचारी अधिनायक तन्त्र विश्व में कहाँ देखने को मिलता है?
उत्तर:
एशिया, अफ्रीका एवं लैटिन अमेरिका के देशों में।
प्रश्न 11.
अधिनायक तन्त्र की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
- लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के विरुद्ध
- राज्य को सर्वोच्च स्थान।
प्रश्न 12.
सरकार के किस रूप में नागरिकों को किसी प्रकार की स्वतन्त्रता नहीं होती?
उत्तर:
अधिनायकतन्त्र में।
प्रश्न 13.
कौन-सी शासन व्यवस्था में एक पार्टी का शासन होता है?
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र में।
प्रश्न 14.
पीटर मर्कल के अनुसार अधिनायक तन्त्र के कोई दो लक्षण बताइए।
उत्तर:
- इस तन्त्र में प्रचार पर नियन्त्रण स्थापित होता है।
- समाज़, संगठन, संस्थाओं व संघों पर कठोर नियन्त्रण।
प्रश्न 15.
डॉ. सी.बी. गेना के अनुसार अधिनायक तन्त्र के कोई दो लक्षण बताइए।
उत्तर:
- नेता की सर्वोच्चता
- शासक की कथनी-करनी में अन्तर।
प्रश्न 16.
अधिनायक तन्त्र के कोई दो गुण बताइए।
उत्तर:
- कार्यकुशलता में वृद्धि
- युद्धकालीन परिस्थितियों का तत्परता से सामना
प्रश्न 17.
अधिनायक तन्त्र के कोई दो दोष लिखिए।
उत्तर:
- व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधक
- जन साधारण के शोषण का प्रतीक।
प्रश्न 18. ‘
कुलीन तन्त्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब प्रभुसत्ता का वास कुछ व्यक्तियों में होता है तो उसे कुलीन तन्त्र कहते हैं।
प्रश्न 19.
कुलीन तन्त्र का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
श्रेष्ठ व्यक्तियों का शासन।
प्रश्न 20.
अरस्तु के अनुसार कुलीन तन्त्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अरस्तु के अनुसार, “कुलीन तन्त्र एक ऐसा शासन विधान है जिसमें अच्छे नागरिक एवं अच्छे व्यक्ति के गुणों में पूर्णरूपेण समानती होती है।”
प्रश्न 21.
कुलीन तन्त्र किसके मिश्रण से बनता है?
उत्तर:
कुलीन तन्त्र लोकतन्त्र व धनिक तन्त्र के मिश्रण से बनता है।
प्रश्न 22.
कुलीन तन्त्र के निर्माण के लिए अनिवार्य तत्वों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जन्म, सम्पत्ति एवं योग्यता की अनिवार्यता और मिश्रण।
प्रश्न 23.
अरस्तू ने अपने आदर्श राज्य में किस प्रकार के कुलीन तन्त्र को स्वीकार किया है?
उत्तर:
अरस्तू ने अपने आदर्श राज्य में आयु आधारित कुलीन तन्त्र को स्वीकार किया है।
प्रश्न 24.
कुलीन तन्त्र का सबसे प्रबल तत्व कौन-सा है?
उत्तर:
धनिक तन्त्र।
प्रश्न 25.
लोकतन्त्र का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
जनता की शक्ति।
प्रश्न 26.
लोकतन्त्र से क्या आशय है?
उत्तर:
लोकतन्त्र शासन का वह रूप है जिसमें शासन की सत्ता स्वयं जनता के पास रहती है तथा जिसका प्रयोग जनता स्वयं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करती है।
प्रश्न 27.
सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली के रूप में किस तंत्र को स्वीकार किया गया है?
उत्तर:
लोकतन्त्र को।
प्रश्न 28.
अब्राहम लिंकन के अनुसार लोकतन्त्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अब्राहम लिंकन के अनुसार, “लोकतन्त्र जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन है।”
प्रश्न 29.
अरस्तु के अनुसार लोकतन्त्र के प्रकार बताइए।
उत्तर:
- विशुद्ध लोकतन्त्र
- विकृत लोकतन्त्र।
प्रश्न 30.
वर्तमान समय में लोकतन्त्र के चार रूपों का नाम लिखिए।
उत्तर:
- सजनीतिक लोकतन्त्र
- सामाजिक लोकतन्त्र
- आर्थिक लोकतन्त्र
- धार्मिक लोकतन्त्र।
प्रश्न 31.
राजनीतिक लोकतन्त्र की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
- समस्त नागरिकों को निश्चित आयु प्राप्त करने पर वयस्क मतदान का अधिकार समान रूप से प्रदान करना।
- सभी नागरिकों को शासन की आलोचना का अधिकार।
प्रश्न 32.
लोकतन्त्र हमें क्या सिखाता है?
उत्तर:
लोकतन्त्र हमें, सहनशीलता, त्याग एवं बलिदान करना सिखाता है।
प्रश्न 33.
लोकतन्त्र के कितने प्रकार हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र के दो प्रकार हैं-
- प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र
- संवैधानिक राजतन्त्र एवं गणतन्त्रवादी लोकतन्त्र।
प्रश्न 34.
प्रत्यक्ष लोकतन्त्र से क्या आशय है?
उत्तर:
प्रत्यक्ष लोकतन्त्र में जनता शासन के कार्यों में प्रत्यक्ष सहभागिता रखती है, कानून निर्माण करने व लागू करने तथा शासकीय अधिकारियों को चुनने के लिए जनता सर्वसम्मति से निर्णय लेती है।
प्रश्न 35.
वर्तमान में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र कहाँ पर स्थापित है?
उत्तर:
वर्तमान में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र स्विट्जरलैण्ड के कुछ केन्टनों में संचालित है।
प्रश्न 36.
प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की सफलता के लिए कितने प्रकार के जनमत संग्रह की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
- ऐच्छिक जनमत संग्रह
- अनिवार्य जनमत संग्रह।
प्रश्न 37.
वर्तमान में किस देश को प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की प्रयोगशाला माना जाता है?
उत्तर:
स्विट्जरलैण्ड को।
प्रश्न 38.
अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र से क्या आशय है?
उत्तर:
अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र से आशय उस शासन प्रणाली से है जिसमें राज्य की जनता अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन का संचालन करती है।
प्रश्न 39.
किस प्रकार के लोकतन्त्र में जनता वास्तविक शासन की शक्ति की प्रतीक मानी जाती है?
उत्तर:
अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में।।
प्रश्न 40.
अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में कितने प्रकार की शासन प्रणालियाँ स्थापित की जाती हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में दो प्रकार की शासन प्रणालियाँ स्थापित की जाती हैं-
- अध्यक्षीय शासन प्रणाली
- संसदीय शासन प्रणाली।
प्रश्न 41.
संवैधानिक राजतन्त्र क्या है?
उत्तर:
ऐसे लोकतान्त्रिक राज्य, जहाँ राज्य का मुखिया वंशानुगत आधार पर नियुक्त होता है, संवैधानिक राजतन्त्र कहलाते हैं।
प्रश्न 42.
संवैधानिक राजतन्त्र वाले एक देश का नाम लिखिए।
उत्तर:
ब्रिटेन।
प्रश्न 43.
आज अधिकांश देशों में किस प्रकार का लोकतन्त्र स्थापित है?
उत्तर:
अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र।
प्रश्न 44.
गणतन्त्रवादी लोकतन्त्र क्या है?
उत्तर:
जिस शासन प्रणाली में राज्य के अध्यक्ष का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर होता है। तथा जिसे जनता द्वारा निर्वाचित अध्यक्ष के रूप में ही स्वीकार किया जाता है, गणतन्त्रवादी तन्त्र कहलाता है।
प्रश्न 45.
गणतन्त्रवादी लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले देश का नाम लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका।
प्रश्न 46.
लोकतन्त्र के कोई दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:
- विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
- सामाजिक व राजनीतिक समानता।
प्रश्न 47.
लोकतन्त्र के कोई दो गुण लिखिए।
उत्तर:
- जनह्नित
- नैतिकता का विकास।
प्रश्न 48.
लोकतन्त्र के कोई दो दोष लिखिए।
उत्तर:
- भ्रष्टाचार
- समय व धन का अपव्यय।
प्रश्न 49.
लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक किन्हीं दो शर्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- शिक्षा का प्रचार – प्रसार
- लोकतन्त्र के प्रति समर्पण।
प्रश्न 50.
लोकतन्त्र में नागरिक जागरूकता से क्या आशय है?
उत्तर:
लोकतन्त्र में नागरिक जागरूकता से आशय यह है कि चुनावों में जनता अपने विवेक से निर्णय लेकर मतदान के माध्यम से योग्य उम्मीदवारों को ही शासन के लिए चुने।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अधिनायक तन्त्र का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसे परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र का अर्थ एवं परिभाषा-अधिनायक तन्त्र लोकतन्त्र की विरोधी विचारधारा है। इसमें सत्ता एक व्यक्ति या एक दल में केन्द्रित होती है। अधिनायक का सत्ता पर एकाधिकार होता है। इस व्यवस्था में शासन की शक्तियाँ असीमित होती हैं। अधिनायक असंवैधानिक तरीकों से सत्ता प्राप्त करता है और अपनी सैन्य शक्ति के बल पर आसीन रहता है। शासन में शक्तियों का केन्द्रीकरण पाया जाता है। शासन कानून पर आधारित नहीं होता है। राजा अपनी स्वेच्छाचारी शक्ति के अनुसार आदेश जारी कर उन्हें लागू करवाता है। | अधिनायक तन्त्र की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
- मैकाइवर के अनुसार, “केवल अधिनायक तन्त्र ही ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासक की इच्छा ही सत्ता का एकमात्र औचित्य हुआ करती है।”
- अल्फ्रेड काबन के अनुसार, “अधिनायकवादी तन्त्र एक ऐसे व्यक्ति का शासन होता है, जिसमें शासक का पद छल, कपट, हिंसा, बल आदि के द्वारा ही प्राप्त किया जाता है।”
- न्यूमैन के अनुसार, अधिनायक तन्त्र से हमारा अभिप्राय एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के उस समूह के शासन से है जो राज्य में सत्ता पर बलपूर्वक अधिकार कर लेते हैं और उसका असीमित रूप से प्रयोग करते हैं।” ।
प्रश्न 2.
अधिनायक तन्त्र के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र के प्रकार-अधिनायक तन्त्र के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:
(i) प्राचीन युग का अधिनायक तन्त्र-इस प्रकार के अधिनायक तन्त्र की स्थापना शासक के समक्ष किसी भी प्रकार का आकस्मिक संकट उत्पन्न होने पर उसका सामना किये जाने हेतु की जाती है। उदाहरण के लिए, रोम में शान्ति व कानून व्यवस्था स्थापित करने के लिए विशेष अधिकारियों को विशेष शक्तियाँ अलग से प्रदान की जाती थीं। इसलिए संकट का सामना करने के लिए असीम शक्तियों का प्रयोग करते हुए उनका सामना किया जाता था।
इसमें संकट विशेष की परिस्थितियों के बाद अधिनायक अधिकारी का कार्य भी समाप्त हो जाता था। इसी प्रकार सिसली (इटली) के शासक गेरीबाल्डी ने 1860 ई. में इसी तरह का प्रयोग किया था। यह अधिनायक तन्त्र लोककल्याणकारी, उत्तरदायी एवं वैध होने के साथ-साथ शासन पर नियन्त्रण रखने के लिए लाभदायक सिद्ध होता रहा है।
(ii) समकालीन अधिनायक तन्त्र-इस प्रकार के अधिनायक तन्त्र की स्थापना किसी राज्य में स्वतन्त्र रूप से राज-क्रान्ति करके बल व हिंसा के आधार पर की जाती है। इसमें शासक षड्यन्त्रों के माध्यम से सत्ता प्राप्त करता है। यह शासक किसी भी नियन्त्रण से मुक्त होता है। वर्तमान समय में सैनिक शासन, आपातकाल और तानाशाही को जनता पर थोपने के लिए लागू किया जाता है। लोकतान्त्रिक देशों में समकालीन रूप से तांत्रिक सत्ता के दुरुपयोग, लोकतन्त्र की हत्या, मानवीय स्वतन्त्रताओं पर प्रतिबन्ध लगाने आदि के लिए इसका प्रयोग किया जाने लगा है।
प्रश्न 3.
सर्वाधिकारवादी अधिनायक तन्त्र किस प्रकार कार्य करता है?
उत्तर:
सन् 1930 की औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् सर्वाधिकारवादी अधिनायक तन्त्र का जन्म हुआ। साम्यवादी रूस, चीन, इटली एवं जर्मनी में इस तरह के शासन तन्त्र की स्थापना के प्रयास किये गये। इसके साथ ही बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी में भी यही शासन तन्त्र स्थापित हुआ था। सर्वाधिकारवादी तन्त्र निम्नलिखित तरह से कार्य करता है
- एक दल विशेष के द्वारा राष्ट्रीय नीति के रूप में इसकी स्थापना की जाती है।
- यह राजनीतिक रूप से स्थापित होकर सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक रूप से मान्यता प्राप्त कर लेता है।
- इसमें न्यायपालिका के निर्णय पर भी शासक का नियन्त्रण होता है। सरकार का अर्थ, स्वरूप-अधिनायक तन्त्र, कुलीन तन्त्र.एवं लोकतन्त्र
- जनता द्वारा इसका विरोध नहीं किया जाता बल्कि इसकी स्थापना एवं क्रियान्वयन में जनता द्वारा व्यापक समर्थन किया जाता है।
- सम्पूर्ण राजनीतिक विचारधारा के रूप में इसे सक्रियता से संचालित किया जाता है।
- इस प्रकार की शासन व्यवस्था का विस्तार भी किया जाता है।
प्रश्न 4.
स्वेच्छाचारी अधिनायक तन्त्र के अन्तर्गत कौन-कौन से कार्य किये जाते हैं?
उत्तर:
स्वेच्छाचारी अधिनायक तन्त्र के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रकार के कार्य किये जाते हैं
- इस प्रकार की शासन व्यवस्था में लिप्त लोगों के हाथों में सत्ता होने से दूसरे राजनीतिक दलों पर प्रतिबन्ध, रोक लगाकर उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता
- इसमें स्वतन्त्र चुनावों पर रोक लगाकर स्वेच्छाचारी तरीके से सत्ता का दुरुपयोग किया जाता है।
- सत्ता में जो वर्ग होता है वह शक्ति, बल, छल, कपट, षड्यन्त्र आदि के माध्यम से उस पर नियन्त्रण बनाये रखने का प्रयास करता है।
- इस प्रकार की शासन व्यवस्था में नागरिक स्वतन्त्रताओं, मौलिक अधिकारों, प्रेस आदि पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है।
- इसमें सैनिक विद्रोह करके सैनिक शासन थोपा जा सकता है।
- इसमें संवैधानिक संशोधन तीव्रता के साथ किया जाता है। शासक अपना पद बचाने के लिए मनमाने तरीके से आदेश जारी करता है।
प्रश्न 5.
अधिनायक तन्त्र के लक्षण बताइए।
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र के लक्षण-अधिनायक तन्त्र के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं
- यह लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के विरुद्ध माना जाता है। इसमें जनता की भावना का ध्यान नहीं रखा जाता है।
- इस प्रकार की शासन व्यवस्था में एक-दूसरे के विरुद्ध विश्वास की भावना समाप्त हो जाती है।
- इस प्रकार की शासन व्यवस्था में राज्य को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। राज्य का मुख्य कार्य युद्ध करना और उसमें विजय प्राप्त करना ही होता है। इसके अतिरिक्त राज्य का कोई कार्य नहीं होता है।
- इस तन्त्र में उग्रवादी विचारधारा का समर्थन किया जाता है।
- इस तन्त्र में जो राज्य की आलोचना करता है उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है।
- इस व्यवस्था में शासन पर एक ही दल का एकाधिकार होता है।
- इस तन्त्र में सभी प्रकार की शक्तियों का केन्द्रीकरण कर दिया जाता है। शासन के समस्त निर्णय उच्च स्तर पर लिए जाते हैं और उन्हें कठोरतापूर्वक लागू किया जाता है।
- इस तन्त्र में किसी भी प्रकार की स्वतन्त्रता को स्थान प्राप्त नहीं होता है।
प्रश्न 6.
अधिनायक-तन्त्र शासन प्रणाली के प्रमुख गुण बताइए।
उत्तर:
अधिनायक-तंत्र शासन प्रणाली के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं
- इसमें राष्ट्र की एकता, एकीकरण, अखण्डता एवं सुरक्षा की स्थापना अनिवार्य होती है।
- इस तन्त्र में राष्ट्र के लिए बलिदान करने के लिए नागरिकों का आह्वान किया जाता है।
- इसमें शासक के आदेशों में एकता व कठोरता पायी जाती है।
- इस प्रकार के शासन में समय की पाबन्दी होने के कारण कार्य कुशलता में वृद्धि होती है।
- इसमें राष्ट्र का बहुमुखी व सर्वव्यापी विकास किया जाता है।
- इसमें युद्धकालीन परिस्थितियों का सामना करने में सतर्कता रखी जाती है।
- यह तन्त्र जन सहभागिता के बिना ही संचालित किया जाता है।
- इसमें शासक के कार्यों में गोपनीयता रखी जाती है।
- यह शासन नागरिकों को अनुशासित करने का माध्यम माना जा सकता है।
प्रश्न 7.
अधिनायक तन्त्र के पाँच दोष बताइए।
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र के दोष-अधिनायक तन्त्र के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं
- इस प्रकार के शासन में सभी प्रकार की नागरिक स्वतन्त्रताओं का अन्त कर दिया जाता है। उन्हें संघ बनाने एवं विचार अभिव्यक्ति की भी स्वतन्त्रता नहीं रहती है।
- यह तंत्र जनसाधारण के शोषण का प्रतीक माना जाता है।
- इस प्रकार के शासन में व्यक्ति का कोई महत्व नहीं होता। व्यक्ति की स्थिति उस दास के समान होती है जिसका एकमात्र कार्य अपने स्वामी के आदेशों का पालन करना होता है।
- अधिनायक तन्त्र में शासन की शक्तियों का केन्द्रीकरण होता है। शासक पर किसी भी प्रकार का नियन्त्रण नहीं होने से शक्तियों के दुरुपयोग की सम्भावना बनी रहती है।
- सामाजिक कल्याण की भावना लुप्त होती चली जाती है। इसमें बेकारी, भुखमरी असहाय लोगों को अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है।
प्रश्न 8.
कुलीन तन्त्र शासन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कुलीन तन्त्र शासन से अभिप्राय-कुलीन तन्त्र शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘एरिस्टोक्रेसी’ शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है जो ग्रीक भाषा के दो शब्दों ‘एरिस्टॉस’ तथा ‘फ्रेटॉस’ शब्दों के योग से बना है ‘ऐरिस्टॉस’ अर्थात् ‘ श्रेष्ठ और ‘क्रेटोस’ अर्थात् ‘शासन’। इस तरह से शब्द व्युत्पत्ति के आधार पर कुलीन तन्त्र का अर्थ है-‘ श्रेष्ठ व्यक्तियों का शासन’।
प्लेटो बुद्धिमानों के वर्ग को उच्च वर्ग कहता था और उन्हीं बुद्धिमानों का शासन चाहता था। शासन के इस स्वरूप में राजनीतिक सत्ता समाज के अल्पवर्ग के हाथों में आ जाती है। अतः जब प्रभुसत्ता को वास कुछ व्यक्तियों में होता है, तो उसे कुलीन तन्त्र कहा जाता है। अरस्तु के अनुसार, “कुलीन तन्त्र एक ऐसा शासन विधान है जिसमें अच्छे नागरिक एवं अच्छे व्यक्तियों के गुणों में पूर्णरूपेण समानता होती है।”
कुलीन तन्त्र में कानून की सर्वव्यापकता होती है। इसमें बुद्धि, गुण और संस्कृति के आधार पर राज्य और सरकार का संचालन किया जाता है। अरस्तू ने अपने आदर्श राज्य में आयु आधारित कुलीन तन्त्र को स्वीकार किया है। उसने इसमें प्रौढ़ और अनुभवी व्यक्ति को ही राज्य और शासन संचालन का अधिकार दिया है।
प्रश्न 9.
अरस्तू ने कुलीन तन्त्र में क्रान्ति होने के कौन-कौन से कारण बताए हैं?
उत्तर:
अरस्तु के अनुसार कुलीन तन्त्र में क्रान्ति के कारण-प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक अरस्तु के अनुसार कुलीन तन्त्र ऐसा शासन विधान है जिसमें अच्छे नागरिक एवं अच्छे व्यक्तियों के गुणों में पूर्णरूपेण समानता होती है। अरस्तू ने अपने आदर्श राज्यों में आयु आधारित कुलीन तन्त्र को स्वीकार किया है, उसने इसमें प्रौढ़ और अनुभवी व्यक्ति को ही राज्य और शासन संचालन का अधिकार दिया है। अरस्तू ने बताया कि कुलीन तन्त्र में क्रान्ति इस कारण से होती है कि यहाँ शासकों की सत्ता अत्यन्त सीमित होती है। आम जनता शासकों एवं उनकी शासन व्यवस्था से ईष्र्या करती है।
वह अपने और शासक के मध्य गुण व चरित्र के आधार पर कोई अन्तर नहीं मानती है। शासक वर्ग सामान्य जनता के साथ असमानता का व्यवहार करता है। शासक वर्ग का एक अंग युद्ध अथवा अन्य किसी कारण से अत्यधिक नाराज हो जाता है तो वह सम्पत्ति के बँटवारे की माँग करता है। इस तरह कुलीन तन्त्र में क्रान्ति हो जाती है।
प्रश्न 10.
लोकतन्त्र का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसे परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र का अर्थ एवं परिभाषा – लोकतन्त्र राजनीति विज्ञान की अत्यन्त महत्वपूर्ण अवधारणा है। इस अवधारणा से तात्पर्य राजव्यवस्था में जनता की भागीदारी अर्थात् जनता के शासन से है। प्रभुसत्ता का वास जब सम्पूर्ण जनता में होता है तो उसे लोकतन्त्र, प्रजातन्त्र तथा जनतन्त्र कहा जाता है। लोकतन्त्र न केवल शासन का एक स्वरूप है वरन् जीवन-दर्शन भी है। लोकतन्त्र की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
- डायसी के अनुसार, “लोकतन्त्र शासन का वह स्वरूप है जिसमें शासक वर्ग सम्पूर्ण राष्ट्र का एक वृहद् भाग होता है।”
- अब्राहम लिंकन के अनुसार, “जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन ही वास्तविक लोकतन्त्र है।”
- प्रो. लास्की के अनुसार, “लोकतन्त्र शासन का वह स्वरूप है जिसके अन्तर्गत मनुष्य को अपना शासन, कार्य व निर्णय करने का अवसर मिलता है। शासन द्वारा निर्मित कानून सभी पर समान रूप से लागू होता है।”
प्रश्न 11.
राजनीतिक लोकतन्त्र को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक लोकतन्त्र – यह लोकतन्त्र का एक प्रमुख रूप है। लोकतन्त्र की स्थापना के पीछे राजनीतिक समानता स्थापित करने का मुख्य लक्ष्य रखा गया। इसके अन्तर्गत राजनीतिक प्रणाली में जनता की भागीदारी समान रूप से रखी गयी। जनता को राजनैतिक क्षेत्र में समान अधिकार प्रदान किये गये ताकि राजनीतिक लोकतन्त्र की सुगमतापूर्वक स्थापना हो सके। राजनीतिक लोकतन्त्र के अन्तर्गत लोगों को निम्न अधिकार प्रदान किये गये हैं
- नागरिकों को राजनीतिक समानता, स्वतन्त्रता तथा न्याय की स्थापना के लिए राजनीतिक लोकतन्त्र में सहभागिता रखने का अधिकार प्रदान किया गया है।
- सभी नागरिकों को निश्चित आयु प्राप्त कर वयस्क मताधिकार का अधिकार समान रूप से प्रदान किया गया है।
- नागरिकों को किसी भी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण करने व प्रचार करने का अधिकार दिया गया है।
- नागरिकों को चुनाव में उम्मीदवार के रूप में खड़े होने का समान अधिकार दिया गया है।
- सभी नागरिकों को सरकार की आलोचना करने का अधिकार दिया गया है।
प्रश्न 12.
सामाजिक लोकतन्त्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सामाजिक लोकतन्त्र से अभिप्राय-लोकतन्त्र की जड़े समाज से मजबूत होती हैं। यदि समाज में वर्ग संघर्ष व असमानताएँ फैली रहेंगी तो लोकतन्त्र ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर पाएगा। अतः समाज में समानता, सद्भावना, एकता भ्रातृत्व का विकास करना अति आवश्यक है, तभी लोकतन्त्र मजबूत होगा। समाज में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा कर सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना लोकतन्त्र के लिए आवश्यक है।
समाज में जाति, धर्म, रंग, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव समाप्त करने का संकल्प लिया जाना आवश्यक है। लोकतन्त्र समाज में महिलाओं के हितों को सुरक्षा प्रदान करने का पूरा प्रयास करता है ताकि महिलाओं को पुरुषों के बराबर समानता प्राप्त हो सके। इसे ही सामाजिक लोकतन्त्र कहते हैं।
प्रश्न 13.
आर्थिक लोकतन्त्र को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक लोकतन्त्र-आर्थिक लोकतन्त्र के अन्तर्गत अमीरी और गरीबी के मध्य का अन्तर समाप्त किये जाने का प्रयास किया जाता है। लोगों को आर्थिक स्वतन्त्रता दी जाती है। रोजगार के साधनों में समान अवसर की समानता प्रदान की जाती है। पुरुष व महिलाओं को रोजगार देने के प्रयास किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त शोषण, बन्धुआ मजदूरी एवं बाल मजदूरी जैसी समस्याओं के समाधान का प्रयास किया जाता है। इसमें जीवन को उच्च स्तर की ओर ले जाने के लिए व्यक्तिगत आय तथा राष्ट्रीय आय के साधनों में वृद्धि की जाती है।
आर्थिक लोकतन्त्र में बड़े – बड़े उद्योगों तथा लघु उद्योगों के बीच सन्तुलन स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग के आर्थिक कल्याण को प्राथमिकताएँ दी जाती हैं। आर्थिक लोकतन्त्र की प्राप्ति के लिए समाजवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया जाता है। राजनीतिक लोकतन्त्र की स्थापना के लिए देश में आर्थिक लोकतन्त्र की स्थापना बहुत जरूरी है। अतः वर्तमान युग में आर्थिक लोकतन्त्र की स्थापना हेतु राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किया जा रहा है।
प्रश्न 14.
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में अन्तर – प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में निम्नलिखित अन्तर हैं
प्रत्यक्ष लोकतन्त्र – प्रत्यक्ष लोकतन्त्र में जनता प्रत्यक्ष रूप से शासन का संचालन करती है। स्वयं सभा के रूप में एकत्रित होकर कानून बनाती है तथा शासन संचालन करने वालों पर पूर्ण नियन्त्रण रखती है। वर्तमान में स्विट्जरलैण्ड के कुछ केन्टन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के एक दो राज्यों में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र प्रचलित है। प्राचीन काल में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र नगरों व राज्य तक सीमित था जिसमें समस्त जनता शासन के कार्यों में प्रत्यक्ष रूप से सहभागिता रखती थी।
अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र-इस प्रकार के लोकतन्त्र में जनता निश्चित अवधि के लिए शासन चलाने हेतु प्रतिनिधियों को चुनाव गुप्त मतदान प्रणाली के आधार पर करती है। प्रत्यक्ष लोकतन्त्र में जनता वास्तविक शासन की शक्ति का प्रतीक होती है। चुने हुए प्रतिनिधि व्यवस्थापिका, कार्यपालिका के माध्यम से सरकार चलाते हैं और न्यायपालिका के सदस्यों का भी चुनाव करते हैं। वर्तमान में अधिकांश देशों में अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र ही है।
प्रश्न 15.
लोकतन्त्र और अधिनायक तन्त्र में कोई दो अन्तर लिखिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र और अधिनायक तन्त्र में अन्तर – लोकतन्त्र और अधिनायक तन्त्र में दो अन्तर निम्नलिखित हैं
(i) नागरिक स्वतन्त्रताओं के आधार पर – लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में जनता को विभिन्न प्रकार की स्वतन्त्रताएँ दी जाती हैं और उनकी रक्षा के लिए न्यायपालिका की शरण में भी जाने का प्रावधान होता है। जबकि अधिनायक तन्त्र में सभी प्रकार की नागरिक स्वतन्त्रताओं का अन्त कर दिया जाता है। प्रेस एवं मीडिया पर कठोर राजकीय नियन्त्रण होता है। समाचार-पत्र एवं अभिव्यक्ति के अन्य साधन जैसे टेलीविजन व रेडियो आदि शासक के एजेन्ट बनकर रह जाते हैं।
(ii) जनकल्याण के आधार पर – लोकतन्त्र का मूल आधार जनकल्याण है। लोकतान्त्रिक शासन को जनता के कल्याण, विकास एवं सुविधा का प्रतीक माना जाता है। लोकतान्त्रिक शासन की नीतियों, कार्यक्रमों एवं आदेशों के माध्यम से आम जनता का अधिकाधिक जनहित करने का प्रयास किया जाता है, जबकि अधिनायक तन्त्र में जनकल्याण के दावे दिखावा मात्र होते हैं। शासक जनकल्याण के नाम पर शक्ति का संचय करता है और जनहित के स्थान पर स्वयं के हितों की पूर्ति करता है।
प्रश्न 16.
अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में कितने प्रकार की शासन प्रणालियाँ स्थापित की जाती हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में शासन प्रणालियों के प्रकार – अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है तथा ये प्रतिनिधि शासन का संचालन करते हैं। वर्तमान में अधिकांश देशों में अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र है। अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में दो प्रकार की शासन प्रणालियाँ स्थापित की जाती हैं
(i) अध्यक्षीय शासन प्रणाली – इस प्रकार की शासन प्रणाली में कार्यपालिका का अध्यक्ष वास्तविक रूप से स्वयं शक्तियों का प्रयोग करता है। यह देश की जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के सदन के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। उदाहरण – संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति। यहाँ राष्ट्रपति कार्यपालिका की शक्तियों को स्वयं प्रयोग करता है। वह यहाँ की व्यवस्थापिका (काँग्रेस) के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है।
(ii) संसदीय शासन प्रणाली – इस प्रकार की शासन प्रणाली में कार्यपालिका के अध्यक्ष की वास्तविक शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में मन्त्रिपरिषद् करती है। अध्यक्ष नाममात्र का प्रधान होता है। कार्यपालिका, व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है। उदाहरण- भारत में कार्यपालिका के अध्यक्ष राष्ट्रपति की शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में मन्त्रिपरिषद् करती है।
प्रश्न 17.
संवैधानिक राजतन्त्र एवं गणतन्त्रवादी लोकतन्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संवैधानिक राजतन्त्र एवं गणतन्त्रवादी लोकतन्त्र में अन्तर| संवैधानिक राजतन्त्र-यह एक प्रकार का लोकतन्त्र होता है। इसमें राज्य का मुखिया (अध्यक्ष) वंशानुगत आधार पर नियुक्त होता है। इसमें सैद्धान्तिक रूप से राजतन्त्र पाया जाता है लेकिन व्यावहारिक रूप से अप्रत्यक्ष लोक़तन्त्र पाया जाता है।
वंशानुगत आधार पर नियुक्त राज्य के मुखिया (राजा या सम्राट) की शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में मन्त्रिपरिषद् करती है। राजा, राज करता है, शासन नहीं। राजा स्वयं अपने कार्यों के प्रति उत्तरदायित्व नहीं रखता है बल्कि राजा के कार्यों के लिए अन्य व्यक्ति उत्तरदायी होते हैं? उदाहरण-ब्रिटेन, यहाँ आज भी संवैधानिक राजतन्त्र स्थापित है।
गणतन्त्रवादी लोकतन्त्र – यह भी एक प्रकार का लोकतन्त्र होता है जिसमें राज्य के अध्यक्ष अर्थात् राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर होता है। चुने हुए राज्याध्यक्ष को जनता द्वारा निर्वाचित अध्यक्ष के रूप में ही स्वीकार किया जाता है। यह गणतन्त्रवादी व्यवस्था का प्रतीक होता है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका। यहाँ इसी प्रकार की गणतन्त्रवादी व्यवस्था को अपनाया गया है।
प्रश्न 18.
लोकतन्त्र के किन्हीं दो लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र के लक्षण:
(i) बहुमत का शासन – लोकतन्त्र चुनाव पर आधारित होता है। चुनावों में जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है, उसे शासन करने का अधिकार होता है। शासन चलाने के लिए बहुमत दल के नेता द्वारा कार्यपालिका का गठन किया जाता है। तथा बहुमत के आधार पर ही नीति-निर्माण किया जाता है।
(ii) स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका – लोकतन्त्र में न्यायपालिका को स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष रूप से न्याय करने के लिए स्थापित किया जाता है। लोकतन्त्र में न्यायपालिका संविधान की रक्षा व नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का कार्य करती है। यदि कार्यपालिका अथवा संसद संविधान के दायरे से बाहर जाकर कानून बनाने का प्रयास करती है तो न्यायपालिका अपनी न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के द्वारा उसे निरस्त कर देती है।
प्रश्न 19.
लोकतन्त्र के गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र के गुण – लोकतन्त्र के निम्नलिखित गुण हैं
- लोकतन्त्र जनहितकारी होता है।
- लोकतन्त्र आम जनता को राजनीतिक प्रशिक्षण प्रदान करता है।
- यह व्यक्ति को नैतिक शिक्षा प्रदान करता है।
- यह क्रान्ति से सुरक्षा प्रदान करती है।
- यह समानता पर आधारित होता है।
- लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में व्यक्तियों की स्वतन्त्रताएँ सुरक्षित रहती हैं।
- लोकतन्त्र में समस्त कार्य जनसहयोग से होते हैं।
- यह अनेक जातियों, समुदायों, वर्गों एवं संगठनों के मध्य सांस्कृतिक एकता स्थापित करने का प्रयास करता है।
- इसमें व्यक्ति और उसके व्यक्तित्व का आदर किया जाता है।
- यह अन्य शासन व्यवस्थाओं की अपेक्षा अधिक कार्यकुशल शासन व्यवस्था है।
- यह अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति में विश्वास करता है।
- जनमत पर आधारित होने के कारण यह कभी निरंकुश व अत्याचारी नहीं होता है।
प्रश्न 20.
लोकतन्त्र के कोई तीन दोष लिखिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र के दोष – लोकतन्त्र के तीन दोष निम्नलिखित हैं:
(i) भ्रष्ट शासन व्यवस्था – व्यावहारिक परिप्रेक्ष्य में लोकतन्त्र में झूठ, जालसाजी, बेईमानी एवं रिश्वतखोरी का बोलबाला रहता है। राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए झूठा और कपटपूर्ण घोषणा – पत्र बनाते हैं, नेता जनता से झूठे वायदे करते हैं और अपने समर्थकों को खुश करने के लिए अनुचित व अनैतिक साधनों का प्रयोग करते हैं। राजनीतिक दल चुनावों में उद्योगपतियों व अपराधियों से चन्दा प्राप्त करते हैं। चुनाव जीतने के पश्चात् वे उन्हें विभिन्न प्रकार से लाभ पहुँचाते हैं।
(ii) अयोग्य व्यक्तियों का शासन – लोकतन्त्र में धन व शक्ति के आधार पर अयोग्य व्यक्ति शासन में प्रवेश करते हैं। उन्हें राजनीति का कोई सघन प्रशिक्षण प्राप्त नहीं होता है। मात्र साधारण योग्यता के आधार पर शासन व्यवस्था के शीर्ष पर पहुँच जाते हैं।
(iii) सामाजिक समानता का अभाव – व्यवहारतः लोकतन्त्र में सामाजिक समानता स्थापित नहीं हो पाती है। इसका प्रमुख कारण लोकतान्त्रिक देशों में ऊँच – नीच, अमीरी – गरीबी, वर्ग संघर्ष एवं आर्थिक असमानताओं के कारण सामाजिक समानता का स्थापित नहीं होना है।
प्रश्न 21.
लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक दशाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक दशाएँ-लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक दशाएँ। निम्नलिखित हैं
- शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए।
- नागरिकों में राजनीतिक जागरूकता का होना आवश्यक है।
- जनता को स्वच्छ नेतृत्व देने के लिए राजनीतिक आचार संहिता का पालन किया जाना चाहिए।
- राज्य के प्रत्येक नागरिक में उच्च कोटि की देश भक्ति भावना की होनी चाहिए।
- आर्थिक लोकतन्त्र की पूर्ण स्थापना आवश्यक है।
- नागरिकों में एकता की भावना मजबूत स्थिति में होनी चाहिए।
प्रश्न 22.
“लोकतन्त्र अयोग्य व्यक्तियों का शासन है।” केसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र अयोग्य व्यक्तियों का शासन-शासन एक कला है जिसके लिए अत्यन्त निपुणता, योग्यता एवं अनुभव की आवश्यकता होती है। लोकतन्त्र में बहुमत का शासन होता है और सत्ता उन व्यक्तियों के हाथ में होती है जो शासन के विषय में कुछ नहीं जानते। शासन का ज्ञान, प्रशिक्षण एवं अनुभव सभी व्यक्तियों में नहीं पाया जाता है। मात्र साधारण योग्यता के आधार पर शासन व्यवस्था में भर्ती होना अयोग्यता का द्योतक है। लोकतन्त्र में धन, शक्ति के आधार पर अयोग्य व्यक्ति शासन में प्रवेश करते हैं, इसलिए लोकतन्त्र में अयोग्य व्यक्तियों की भीड़ पायी जाती है।
लोकतन्त्र में गुणों की अपेक्षा संख्या पर अधिक ध्यान दिया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति में राजनीतिक समस्याओं को समझने एवं प्रतिनिधियों को चुनने की योग्यता नहीं होती। अज्ञानता के कारण मतदाता किसी ऐसे व्यक्ति को अपना मत दे देता है जो शासन के योग्य नहीं होता। लेकी नामक राजनीतिक विचारक ने ठीक ही लिखा है, “लोकतन्त्र में गुणों की अपेक्षा मतों की संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है। मत गिने जाते हैं, तोले नहीं जाते। लोकतन्त्र में शासन अज्ञानियों, अशिक्षितों एवं अयोग्य व्यक्ति के हाथों में होता है। यह भीड़ का शासन है।”
प्रश्न 23.
नागरिकों की राजनीतिक चेतना किस प्रकार लोकतन्त्र को सफल बना सकती है? बताइए।
उत्तर:
लोकतन्त्र की सफलता के लिए नागरिकों में राजनीतिक चेतना का होना अत्यन्त आवश्यक है। लोकतन्त्र में राजनीतिक चेतना से आशय यह है कि चुनावों में जनता अपने विवेक से निर्णय लेकर मतदान के माध्यम से योग्य उम्मीदवारों को ही शासन के लिए चुने। साधारण से साधारण व्यक्ति राजनीति एवं शासन में अपनी भूमिका को समझकर उसका निर्वाह करे। सहयोगात्मक रवैया अपनाते हुए विचार अभिव्यक्ति करे। जनमत तैयार करे।
जनता के निर्णय में सहभागिता का निर्वाह करे। जनता उदासीन दृष्टिकोण का त्याग करे। स्वयं सार्वजनिक नैतिकता का पालन कर नेताओं के व्यवहार एवं भ्रष्टाचार पर नियन्त्रण रखे। जनता का प्रभाव नेताओं पर पड़ना चाहिए ताकि जनता के नियन्त्रण में रहकर शासन संचालन हेतु नेताओं को बाध्य किया जा सके तभी लोकतन्त्र सफल हो सकता है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अधिनायक तन्त्र का अर्थ एवं परिभाषा देते हुए इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ:
अधिनायक तन्त्र लोकतन्त्र की विरोधी विचारधारा है। इसमें सत्ता एक व्यक्ति या एक दल में केन्द्रित होती है। अधिनायक का सत्ता पर एकाधिकार होता है। इस व्यवस्था में शासक की शक्ति असीमित होती है, उसे असंवैधानिक तरीकों से सत्ता प्राप्त होती है और अपनी सैन्य शक्ति के बल पर गद्दी पर आसीन रहता है। शासन में शक्तियों का केन्द्रीकरण पाया जाता है। शासन कानून पर आधारित नहीं होता है। राजा अपनी स्वेच्छाचारी शक्ति के अनुसार आदेश जारी कर कानून लागू करता है।
शासक किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है। शासन की कोई निश्चित अवधि नहीं होती। जनसाधारण की भावनाओं, इच्छाओं को कुचलना ही शासक का परम कर्तव्य होता है। ऐसे तन्त्र में शासक का पद योग्यता के आधार पर नहीं वरन् शक्ति एवं बल के माध्यम से हिंसा के माध्यम से पाने का प्रयास किया जाता है। अधिनायक तन्त्र की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं मैकाइवर के अनुसार, “केवल अधिनायक तंत्र ही ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासक की इच्छा ही सत्ता का एकमात्र औचित्य हुआ करती है।”
न्यूमैन के अनुसार, “अधिनायक तन्त्र से हमारा अभिप्राय एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के उस समूह के शासन से है, जो राज्य में सत्ता को बलपूर्वक प्राप्त कर लेते हैं और उसका असीमित रूप से प्रयोग करते हैं।” अल्फ्रेड काबन के अनुसार, “अधिनायकवादी तन्त्र एक ऐसे व्यक्ति शासन होता है, जिसमें शासक का पद छल, कपट, हिंसा, बल आदि के द्वारा ही प्राप्त किया जाता है।”
अधिनायक तन्त्र के प्रकार अधिनायक तन्त्र के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:
(क) प्राचीन अधिनायक तन्त्र – प्राचीन युग में यह व्यवस्था संकट का मुकाबला करने एवं लोक कल्याण के लक्ष्यों को शीघ्रता से प्राप्त करने के उद्देश्य से अपनायी जाती थी। प्राचीन रोम में इस प्रकार को ही अधिनायक तन्त्र था। वहाँ कानून तथा शान्ति व्यवस्था स्थापित करने के लिए विशेष अधिकारियों को विशेष शक्तियाँ अलग से प्रदान की जाती थीं।
इसलिए संकट का सामना करने के लिए असीम शक्यितों की प्रयोग करते हुए उनका सामना किया जाता था। संकट जनित परिस्थितियों के बाद अधिनायक अधिकारियों का कार्य भी समाप्त हो जाता है। सिसंली (इटली) के शासक गैरीबाल्डी ने 1860 ई. में इसी प्रकार के अधिनायक तन्त्र का प्रयोग किया था।
(ख) समकालीन (वर्तमान) अधिनायक तन्त्र – इस तंत्र के अन्तर्गत एक ही व्यक्ति की इच्छा के आधार पर शासन संचालित होता है। इस व्यक्ति पर किसी प्रकार का अंकुश नहीं होता है। यह अधिनायकं तन्त्र किसी राज्य में स्वतन्त्र रूप से राजक्रान्ति करके बल व.हिंसा के आधार पर स्थापित होता है। इसमें षड्यन्त्रों के माध्यम से सत्ता प्राप्त की जाती है। वर्तमान समय में यह सैनिक शासन, आपातकाल और तानाशाही को जनता पर थोपने के लिए लागू किया जाता है। लोकतान्त्रिक देशों में समकालीन रूप से सत्ता का दुरुपयोग, लोकतन्त्र की हत्या एवं मानवीय स्वतंत्रताओं पर प्रतिबन्ध लगाने आदि के लिए इसका प्रयोग किया जाने लगा है।
प्रश्न 2.
ऐलेन बाल के अनुसार आधुनिक युगीन अधिनायक तन्त्र के रूप निर्धारित कीजिए।
उत्तर:
ऐलेन बाल के अनुसार आधुनिक युगीन अधिनायक तन्त्र के रूप-सामान्यतया अधिनायक तन्त्र से अभिप्राग्न एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह के शासन से है जो राज्य में सत्ता पर बलपूर्वक अधिकार कर लेते हैं और उसका असीमित रूप से प्रयोग करते हैं। इसमें व्यक्ति की भूमिका राज्य के लिए एक दास की हो जाती है। वर्तमान समय में कई देशों में अधिनायक तन्त्र कई रूप ग्रहण कर रहा है। ऐलेन बाल नामक राजनीतिक विचारक ने आधुनिक युगीन अधिनायक तन्त्र का विस्तार से वर्णन किया है। ऐलेन बाल के अनुसार, आधुनिक युगीन अधिनायक तन्त्र के प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं
(क) सर्वाधिकारवादी अधिनायक तन्त्र-सन् 1930 की औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् विज्ञान एवं तकनीकी संचार के साधनों आदि का विकास होने के कारण इस शासन प्रणाली का जन्म हुआ। इसमें एक ही व्यक्ति सर्वोच्च सत्ता की शक्तियों का प्रयोग करता है। द्वितीय विश्व युद्धकालीन अवस्था में पूर्वी यूरोप में सर्वाधिकारवादी राज्य स्थापित करने के प्रयास किये गये थे। विश्व के विभिन्न देशों यथा-बुल्गारिया, रूमानिया, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी आदि में इस प्रकार के तन्त्र की स्थापना के प्रयास किये गये। सर्वाधिकारवादी अधिनायक तन्त्र अंग्र प्रकार से कार्य करता है
- इसकी स्थापना एक दल विशेष के द्वारा राष्ट्रीय नीति के रूप में की जाती है।
- यह राजनीतिक रूप से स्थापित होकर सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक रूप से मान्यता प्राप्त कर लेता है।
- इसमें न्यायपालिका के निर्णय पर भी शासन का नियन्त्रण होता है।
- जनता द्वारा इसका विरोध नहीं किया जाता बल्कि इसकी स्थापना एवं क्रियान्वयन में जनता द्वारा सहयोग किया जाता है।
- इसे सम्पूर्ण राजनीतिक विचारधारा के रूप में सक्रियता से संचालित किया जाता है।
- इसका विस्तार करने का प्रयास किया जाता है। इसे जनता भी ग्रहण करती है।
(ख) स्वेच्छाचारी अधिनायक तन्त्र-जिन देशों में लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली अपनायी गयी थी वहाँ स्वेच्छाचारी अधिनायक तन्त्र को एक अस्थायी शासक व्यवस्था के रूप में अल्पकालीन अवधि के लिए ग्रहण किया जाता रहा है। यह एशिया, अफ्रीका एवं लैटिन अमेरिका के देशों में देखने को मिलता है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था के अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य किये जाते हैं
- शासन व्यवस्था में लगे हुए लोगों के हाथों में सत्ता होने से दूसरे राजनीतिक दलों पर प्रतिबन्ध, रोक लगाकर उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता है।
- इसमें स्वतन्त्र चुनावों पर पाबन्दी लगाकर स्वेच्छाचारी तरीके से सत्ता का दुरुपयोग किया जाता है।
- सत्तासीन वर्ग शक्ति, बल, छल, कपट, षड्यन्त्र आदि के माध्यम से नियन्त्रण बनाये रखने का प्रयास करता है।
- नागरिक स्वतन्त्रताओं, मौलिक अधिकारों, प्रेस आदि पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है।
- इसमें सैनिक विद्रोह करके सैनिक शासन थोपने की संभावना बनी रहती है।
- इसमें संवैधानिक संशोधन तीव्रता के साथ किया जाता है। शासक अपना पद बचाने के लिए मनमाने तरीके से आदेश देता है।
प्रश्न 3.
अधिनायक तन्त्र के गुणों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र के गुण अधिनायक तन्त्र के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं
(i) शासन में एकता एवं कुशलता – अधिनायक तन्त्र में शासन – शक्ति एक व्यक्ति में निहित होती है। कानून निर्माण, प्रशासन एवं न्यायिक निर्णय सभी कार्य एक व्यक्ति के द्वारा ही किये जाते हैं। एक ही व्यक्ति के अधिकार के अन्तर्गत सम्पूर्ण शासन व्यवस्था होने के कारण शासन एवं संगठन में कार्यकुशलता एवं सरलता आ जाती है।
(ii) आर्थिक विकास – इस प्रकार की शासन व्यवस्था में राष्ट्र को आर्थिक विकास बहुमुखी रूप में किया जाता है। राष्ट्र में योजनाओं, विकास कार्यों को प्रशासन की देख-रेख में सतर्कता के साथ पूर्ण किया जाता है। यदि कोई पूँजी और श्रम सम्बन्धी संमस्या होती है तो उसका भी समाधान किया जाता है।
(iii) सुदृढ़ शासन – तानाशाही शासन देश को एक मजबूत और सुदृढ़ सरकार प्रदान करता है। नियन्त्रण और अनुशासन इसके दो मूल स्तम्भ हैं। निर्बल सरकार का कोई भी आसानी से अन्त कर सकता है परन्तु सृदृढ़ सरकार को सम्पूर्ण विश्व में विशेष आदर और सम्मान के साथ देखा जाता है।
(iv) संकटकाल के लिए अधिक उपयुक्त – अधिनायक तन्त्रीय शासन व्यवस्था संकटकालीन परिस्थितियों में अधिक उपयुक्त होती है। किसी भी प्रकार का राष्ट्रीय संकट उत्पन्न होने पर शीघ्रता एवं साहस के साथ कार्य करने की आवश्यकता होती है। अधिनायक तन्त्र में अधिनायक राष्ट्रीय संकट के समय शीघ्रतापूर्वक साहस के साथ निर्णय लेने में सक्षम होता है। अधिनायक अपने निर्णयों को गुप्त भी रखते हैं जिससे शत्रु को देश का भेद ज्ञात करना मुश्किल हो जाता है।
(v) उच्च गुणों को प्रोत्साहन – अधिनायकवादी शासन व्यवस्था में वहाँ के नागरिकों में त्याग, बलिदान, अनुशासन एवं देशभक्ति की भावनाओं को प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।
(vi) कम खर्चीली शासन व्यवस्था – अन्य शासन प्रणालियों की तुलना में अधिनायकतन्त्रवादी शासन व्यवस्था कम खर्चीली होती है क्योंकि इसमें चुनाव प्रबन्ध तथा शासन प्रबन्ध के लिए अधिक खर्च नहीं किया जाता है एवं न ही इसमें अनावश्यक पदों, आयोगों एवं जाँच समितियों की आवश्यकता होती है।
(vii) समाज – सुधार – अधिनायक तन्त्रवादी देश में शासक देश को मजबूती करने प्रदान करने के लिए सामाजिक बुराइयों को दूर करते हैं और सामाजिक सुधारों को अपनाते हैं।
(viii) उत्तरदायित्व का विभाजन नहीं – अधिनायक तन्त्र में एक ही व्यक्ति सम्पूर्ण राष्ट्रीय हितों का संरक्षक होता है। वह अपने राजनीतिक कर्तव्यों को धार्मिक क्रियाओं के समान उत्साहपूर्वक पूर्ण करता है।
प्रश्न 4.
लोकतन्त्र का अर्थ एवं इसके रूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र का अर्थ लोकतन्त्र को अंग्रेजी में Democracy कहा जाता है। Democracy शब्द की उत्पत्ति यूनानी शब्द Demo व Crata से हुई है, जिनका अर्थ-जनता की शक्ति। अतः शाब्दिक रूप में लोकतन्त्र का अर्थ-जनता का शासन होता है। जब प्रभुसत्ता का वास सम्पूर्ण जनता में होता है तो उसे लोकतन्त्र कहा जाता है।
इसी आधार पर अब्राहम लिंकन, डायसी, लास्की एवं ब्राइस ने लोकतन्त्र को परिभाषित किया है अब्राहम लिंकन के अनुसार, “जनता को, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन ही वास्तविक लोकतन्त्र है।” डायसी के अनुसार, “लोकतन्त्र शासन का वह स्वरूप है जिसमें शासक वर्ग सम्पूर्ण राष्ट्र का एक वृहद् भाग होता है।”
ब्राइस के अनुसार, “लोकतन्त्र सम्पूर्ण समाज के सदस्यों में निहित होता है जिसमें सम्पूर्ण समाज एक पद्धति से कार्य करता है। इसकी शासन पद्धति बहुसंख्यकों के हाथों में होती है। जिस समाज में लोक एक मत नहीं होते हैं उस समाज में जन-इच्छा का पता लगाने के लिए कोई उपाय नहीं किया जा सकता है।” लोकतन्त्र के रूप-अरस्तू ने लोकतन्त्र के दो स्वरूपों की व्याख्या इस प्रकार की है–
- विशुद्ध लोकतन्त्र
- विकृत लोकतन्त्र।
(i) विशुद्ध लोकतन्त्र-यदि शासक का उद्देश्य सद्गुण का विकास करना है और उसका शासन जन कल्याण पर आधारित है तो वह शासन का शुद्ध या सही रूप है। ऐसा लोकतन्त्र विशुद्ध लोकतन्त्र कहलाता है।
(ii) विकृत लोकतन्त्र-यदि शासक का उद्देश्य जनहित के स्थान पर स्वार्थ हो जाता है, तो सरकार’का रूप विकृत हो जाता है। ऐसा लोकतन्त्र विकृत लोकतन्त्र कहलाता है। आधुनिक समय में विशुद्ध लोकतन्त्र के स्थान पर विकृत लोकतन्त्र का विस्तार होता जा रहा है। इससे लोकतन्त्र का रूप भी बदलता जा रहा है। लोकतन्त्र को व्यापक अर्थों में दर्शन, जीवन, कार्य-पद्धति के रूप में समझने का प्रयास किया जो रहा है। इसके चार, रूप निम्नलिखित हैं
(1) राजनीतिक लोकतन्त्र-राजनीतिक लोकतन्त्र की स्थापना हेतु जनता को राजनीतिक क्षेत्र में समान अधिकार प्रदान किए गए हैं। प्रमुख अधिकार निम्नलिखित हैं
- नागरिकों को राजनीतिक समानता, स्वतन्त्रता तथा न्याय की स्थापना के लिए राजनीतिक लोकतन्त्र में सहभागिता करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
- सभी नागरिकों को एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद वयस्क मताधिकार का अधिकार समान रूप से प्रदान किया गया है।
- नागरिकों को किसी भी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण करने व प्रचार करने का अधिकार दिया गया है।
- नागरिकों को चुनाव में उम्मीदवार के रूप में खड़े होने का समान अधिकार दिया गया है।
- सभी नागरिकों को सरकार की आलोचना करने का अधिकार दिया गया है।
(2) सामाजिक लोकतन्त्र – सामाजिक समानता स्थापित करने के दृष्टिकोण से समाज में सद्भावना, भ्रातृत्व की भावना, एकंता का विकास करना लोकतन्त्र के लिए अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि लोकतन्त्र की जड़े समाज से ही मजबूत होती हैं। यदि समाज में वर्ग संघर्ष व असमानताएँ फैली रहेंगी तो लोकतन्त्र ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर पाएगा। समाज में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा कर सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना लोकतन्त्र के लिए आवश्यक है। समाज में जाति, धर्म, भाषा, रंग, लिंग को भेदभाव समाप्त करने का संकल्प लिया जाता है। सामाजिक लोकतन्त्र समाज में महिलाओं के हितों को सुरक्षा प्रदान करने का पूर्ण प्रयास करता है ताकि महिलाओं को पुरुषों के बराबर समानता प्राप्त हो सके।
(3) आर्थिक लोकतन्त्र – वर्तमान समय में राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक लोकतन्त्र की स्थापना का प्रयास किया जा रहा है। आर्थिक लोकतन्त्र की स्थापना की बिना राजनीतिक लोकतन्त्र अधूरा है। आर्थिक लोकतन्त्र में अमीरी और गरीबी के मध्य का अन्तर समाप्त किये जाने का प्रयास किया जाता है। रोजगार के साधनों में अवसर की समानता स्थापित की जाती है। समाजवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया जाता है। आर्थिक लोकतन्त्र में शोषण, बंधुआ मजदूरी, बाल मजदूरी आदि का निराकरण करने का प्रयास किया जाता है।
प्रश्न 5.
लोकतन्त्र का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र का वर्गीकरण लोकतन्त्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है:
- प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र
- संवैधानिक राजतन्त्र एवं गणतन्त्रवादी लोकतन्त्र।
(1) प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र – प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लोकतन्त्रे दोनों को एक श्रेष्ठ शासन व्यवस्था माना जाता है। दोनों का वर्णन निम्नलिखित है
(i) प्रत्यक्ष लोकतन्त्र – प्रत्यक्ष लोकतन्त्र से आशय लोकतन्त्र के उस रूप से है जिसमें जनता प्रत्यक्ष रूप से शासन का स्वयं संचालन करती है। इसके अन्तर्गत कानून निर्माण करने, कानून को लागू करने एवं राजकीय अधिकारियों को चुनने के लिए जनता सर्वसम्मति से निर्णय करती है।
प्राचीन काल में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र नगर व राज्य तक सीमित था। यूनान के नगर राज्यों में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र प्रचलित था। वर्तमान में स्विट्जरलैण्ड के केन्टनों में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र पाया जाता है। प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की सफलता के लिए दो प्रकार के जनमत संग्रहों की आवश्यकता रहती है
- ऐच्छिक जनमत संग्रह,
- अनिवार्य जनमत संग्रह। इन दोनों के माध्यम से जनता शासन की गतिविधियों का संचालन करती है।
(ii) अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र (प्रतिनिध्यात्मक लोकतन्त्र) – अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र से आशय लोकतन्त्र के उस रूप से है। जिसमें जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है। ये प्रतिनिधि शासन का संचालन करते हैं। वर्तमान में अधिकांश देशों में लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था प्रचलित है। इस प्रकार के लोकतन्त्र में जनता वास्तविक शासन की शक्ति का प्रतीक होती है। अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में दो प्रकार की शासन प्रणालियाँ स्थापित की जाती हैं
(अ) अध्यक्षीय शासन प्रणाली – इंस प्रकार की शासन प्रणाली में कार्यपालिका का अध्यक्ष वास्तविक रूप से स्वयं शक्तियों का प्रयोग करता है। वह देश की जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के सदन के प्रति उत्तरदायित्व नहीं रखता है। उदाहरण – संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति।।
(ब) संसदीय शासन प्रणाली – इस प्रकार की शासन प्रणाली में कार्यपालिका के अध्यक्ष की वास्तविक शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में उसकी मन्त्रिपरिषद् करती है। कार्यपालिका का अध्यक्ष नाममात्र का प्रधान होता है। कार्यपालिका, व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है। उदाहरण- भारत में कार्यपालिका के अध्यक्ष (राष्ट्रपति) की । शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में मन्त्रिपरिषद् करती है।
(2) संवैधानिक राजतन्त्र एवं गणतन्त्रवादी लोकतन्त्र – विश्व में संवैधानिक राजतन्त्र एवं गणतन्त्रवादी लोकतन्त्र भी देखने को मिलता है। इनका वर्णन निम्नलिखित है
(i) संवैधानिक राजतन्त्र – यह ऐसा शासन तंत्र है जिसमें राज्य का मुखिया वंशानुगत आधार पर नियुक्त होता है। इसमें सैद्धान्तिक रूप से राजतन्त्र पाया जाता है लेकिन व्यावहारिक रूप से अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र पाया जाता है। वंशानुगत आधार पर नियुक्त राज्य के मुखिया (राजा या सम्राट) की शक्तियों का उपयोग प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में मन्त्रिपरिषद् करती है। राजा राज करता है, शासन नहीं। राजा स्वयं अपने कार्यों के प्रति उत्तरदायी नहीं होता, बल्कि राजा के कार्यों के लिए अन्य व्यक्ति उत्तरदायी होते हैं। उदाहरण के लिए – ब्रिटेन। यहाँ आज भी संवैधानिक राजतन्त्र स्थापित है।
(ii) गणतन्त्रवादी लोकतन्त्र – इसमें राज्य के अध्यक्ष का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर होता है। चुने हुए राज्याध्यक्ष को जनता द्वारा निर्वाचित अध्यक्ष के रूप में ही स्वीकार किया जाता है। यह गणतन्त्रवादी व्यवस्था का प्रतीक होता है। उदाहरण के लिए-संयुक्त राज्य अमेरिका। यहाँ इसी प्रकार की गणतन्त्रवादी व्यवस्था को अपनाया गया है।
प्रश्न 6.
लोकतन्त्र के प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
लोकतन्त्र के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) लोकतन्त्र के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) निम्नलिखित हैं।
(i) बहुमत का शासन – लोकतन्त्र चुनाव पर आधारित होता है और चुनाव में जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है, उसे शासन करने का अधिकार होता है। शासन चलाने के लिए बहुमत दल के नेता द्वारा कार्यपालिका का गठन किया जाता है तथा बहुमत के आधार पर ही नीति-निर्माण किया जाता है।
(ii) सर्वव्यापी लोकतन्त्र – लोकतन्त्र में सर्वव्यापकता पायी जाती है। यह शासन व्यवस्था प्रत्येक नागरिक के भाग लेने, लोकतन्त्र में विश्वास रखने, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता रखने। समान अवसर की उपलब्धि एवं जनता के सुख के लिए कार्य करती है। इसमें आम जनता की इच्छा ही सम्प्रभुता का प्रतीक मानी जाती है।
(iii) वयस्क मताधिकार – लोकतन्त्र में स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनावों में गुप्त मतदान प्रणाली के आधार पर जनता अपना मत देती है। जनता अपनी इच्छानुसार निर्भीक होकर मतदान करती है। लोकतन्त्र में शासन चलाने के लिए उम्मीदवारों का चयन करने के लिए जनता अपने राजनीतिक अधिकारों का उपयोग करती है।
(iv) विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता – लोकतन्त्र में देश के सभी नागरिकों को विचार, भाषण, सम्मेलन बुलाने, संगठन बनाने की स्वतन्त्रता तथा निवास स्थान, आवागमन, व्यापार, व्यवसाय आदि की स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होती हैं।
(v) सामाजिक व राजनैतिक समानता-लोकतन्त्र में सामाजिक समानता के अन्तर्गत सद्भावना व भाईचारे का विकास किया जाता है। यह किसी भी प्रकार का सामाजिक भेदभाव उत्पन्न नहीं करता है बल्कि समाज में जो असमानता है उसे कम करने का प्रयास करता है।
(vi) मौलिक अधिकार एवं कर्त्तव्य – लोकतन्त्र नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है। लोगों को भ्रमण करने, निवास करने, निजी व्यक्तिगत सम्पत्ति रखने, रोजगार चुनने, संघ बनाने, धर्म को मानने आदि के सम्बन्ध में समान मौलिक अधिकार दिये जाते हैं।
यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो वह न्यायालय की शरण लेकर अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है।
(vii) लिखित संविधान – लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में एक लिखित संविधान होता है जिसके द्वारा सभी की शक्तियों का बँटवारा किया जाता है। केन्द्र और राज्यों के मध्य जब कोई विवाद उत्पन्न होता है तब संविधान के दायरे में उन विवादों का समाधान निकालने का प्रयास किया जाता है। संविधान के द्वारा शासन के अंग समान रूप से समान शक्तियों का प्रयोग करते हैं।
(viii) उत्तरदायित्व – लोकतन्त्र में सरकार जनता तथा उसके प्रतिनिधियों के प्रति उत्तरदायी होती है। इसका कारण यह है कि इसमें जनता को शासन की आलोचना करने के अधिकार सहित सभी नागरिक और राजनीतिक स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होती हैं।
(ix) स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका – लोकतन्त्र में न्यायपालिका को स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष रूप से कार्य करने के लिए स्थापित किया जाता है। लोकतन्त्र में न्यायपालिका संविधान की रक्षा व नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का कार्य करती है। यदि कार्यपालिका अथवा संसद संविधान के दायरे के बाहर जाकर कानून बनाने का प्रयास करती है अथवा बना लेती है तो न्यायपालिका न्यायिक पुनरावलोकन शक्ति के द्वारा उसे निरस्त कर देती है।
प्रश्न 7.
लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्तों का वर्णन कीजिए।
अथवा
लोकतन्त्र की सफलता के लिए किन-किन परिस्थितियों का होना आघश्यक है? बताइए।
उत्तर:
लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्ते लोकतन्त्र की सफलता के लिए अग्रलिखित शर्तों का पूरा होना आवश्यक है
(i) शिक्षा का प्रचार – प्रसार – लोकतन्त्र की सफलता के लिए एक आवश्यक शर्त है – शिक्षा। शिक्षा के माध्यम से ही नागरिकों को अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान होता है। शिक्षा से ही लोकतन्त्र के प्रति श्रद्धा और विश्वास की भावना उत्पन्न होती है। शिक्षा ग्रहण करने से ही जीवन में मूल्यों, आदर्शो, विश्वासों में परिवर्तन आता है।
यह जाति, धर्म, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर मनुष्य को मानवता से जोड़ने का प्रयास करती है। जिस देश में अशिक्षा अधिक होगी वहाँ के नागरिक लोकतन्त्र, कानून, शासन, संविधान के प्रति उतने ही अनिभिज्ञ होंगे। शिक्षा से नागरिकों में अधिकारों के प्रति समझ उत्पन्न होती है। अतः लोकतन्त्र की सफलता के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षा का प्रसार होना चाहिए।
(ii) राजनीतिक चेतना – लोकतन्त्र की सफलता के लिए नागरिकों में राजनीतिक चेतना का होना अति आवश्यक है। देश को नागरिक राजनीति एवं शासन में अपनी भूमिका को समझे। वह चुनावों में अपने विवेक से निर्णय लेकर मतदान के माध्यम से योग्य उम्मीदवारों को ही शासन के लिए चुने। उदासीनता के दृष्टिकोण को त्यागे। जनता नेताओं के व्यवहार एवं भ्रष्टाचार पर नियन्त्रण रखकर उनसे सार्वजनिक नैतिकता का पालन कराये।
(iii) राजनीतिक आचार संहिता – लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्थाओं में प्रायः यह देखा जाता है कि राजनीतिक दल एवं राजनीतिज्ञ राजनीतिक आचार संहिता का पालन नहीं करते हैं। लोकतन्त्र की सफलता के लिए इसका पालन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। आचार संहिता की मुख्य बातें है-लोकतन्त्र में ईमानदार, चरित्रवान एवं देशभक्त नेताओं का होना।
नैतिकता, राजनीतिक परम्पराओं व मर्यादाओं का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। पद, धन के लालच में इनको उल्लंघन नहीं करना चाहिए। नेताओं को दल एवं शासन के लिए कार्य करने की इच्छा होनी चाहिए। व्यक्तिगत लाभ, सम्पत्ति संग्रह की भावना से ऊपर उठकर लोकतन्त्र की सफलता के लिए समर्पित होना चाहिए।
(iv) लोकतन्त्र के प्रति समर्पण – लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्थाओं में प्रायः देखा जाता है कि जिस पीढ़ी के द्वारा इसकी स्थापना की जाती है। इसके पश्चात् आगे आने वाली पीढ़ियाँ लोकतन्त्र के प्रति समर्पित नहीं होकर विघटनकारी ताकतों को जन्म देने लगती हैं। यह नागरिकों वे राष्ट्र के साथ-साथ लोकतन्त्र के लिए भी घातक सिद्ध होता है। अतः लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि समाज के प्रत्येक वर्ग, जाति, सम्प्रदाय में देशभक्ति के साथ-साथ लोकतन्त्र के मूल्यों, आदर्शों व मान्यताओं के प्रति समर्पण की भावना होनी चाहिए।
(v) आर्थिक लोकतन्त्र – आर्थिक लोकतन्त्र के अभाव में राजनीतिक लोकतन्त्र अधूरा माना जाता है। नागरिकों में आर्थिक समानता, रोजगार के अवसरों की पर्याप्त उपलब्धता, गरीबी व अमीरी, वेतन की समानताएँ एवं पदों की समानताएँ आर्थिक लोकतन्त्र की पूर्व शर्त हैं। आर्थिक विषमताओं में लोकतन्त्र सफल नहीं हो पाता है।
(vi) राष्ट्रीय एकता- – लोकतन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक माना जाता है कि नागरिकों में एकता की भावना बनी रहे। राष्ट्रीय गतिविधियों, रुचियों एवं आयोजनों में संगठित रहकर जनता को एकता का परिचय देना चाहिए। एकता का अभाव होने पर देश आन्तरिक रूप से कमजोर हो जाता है।
प्रश्न 8.
लोकतन्त्र को अधिनायक तन्त्र से बेहतर क्यों समझा जाता है? विस्तारपूर्वक बताइए।
अथवा
अधिनायक तन्त्र व लोकतन्त्र की तुलना कीजिए।
अथवा
अधिनायक तन्त्र से लोकतन्त्र श्रेष्ठ है क्यों? बताइए।
उत्तर:
लोकतन्त्र अधिनायक तन्त्र से बेहतर है / लोकतन्त्र व अधिनायक तन्त्र की तुलना लोकतन्त्र को अधिनायक तन्त्र से बेहतर समझा जाता है, इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
(1) जनकल्याण की दृष्टि से – लोकतन्त्र का मूल आधार जनकल्याण है क्योंकि लोकतान्त्रिक सरकार जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा संचालित होती है, जो कि जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं, यदि वे जनकल्याण से विमुख होंगे तो जनता अगले चुनाव में उन्हें नहीं चुनेगी। दूसरी ओर अधिनायकतन्त्रवादी शासन में जनकल्याण के दावे मात्र दिखावटी होते हैं। अधिनायक जनकल्याण के नाम पर शक्ति का संचय करता है और जनहित के स्थान पर स्वयं के हितों की पूर्ति करता है।
(2) नागरिक स्वतन्त्रताओं की दृष्टि से – नागरिक स्वतन्त्रताओं व उनके उपभोग की दृष्टि से भी लोकतन्त्र अधिनायक तन्त्र से अच्छा है। लोकतान्त्रिक शासन में जनता को विभिन्न प्रकार की स्वतन्त्रताएँ प्रदान की जाती हैं तथा उनकी रक्षा के लिए न्यायालय में जाने का प्रावधान होता है। दूसरी ओर अधिनायकतन्त्र में सभी प्रकार की नागरिक स्वतन्त्राओं का अन्त कर दिया जाता है। प्रेस तथा मीडिया पर कठोर सरकारी नियन्त्रण होता है।
(3) शान्ति की स्थापना की दृष्टि से – अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व्यवस्था की दृष्टि से भी लोकतन्त्र, अधिनायक तन्त्र से श्रेष्ठ है। लोकतन्त्र जहाँ युद्ध का विरोध कर सभी समस्याओं को शान्तिपूर्ण ढंग से बातचीत द्वारा, कानून-निर्माण व सन्धि-समझौतों द्वारा सुलझाना चाहता है। वहीं अधिनायक तन्त्र सभी समस्याओं का हल युद्ध को मानता है क्योंकि वह साम्राज्यवादी है।
(4) व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास की दृष्टि से – लोकतन्त्र में व्यक्ति की योग्यताओं, क्षमताओं एवं उसके व्यक्तित्व के विकास हेतु समुचित तथा समान अवसर प्रदान किये जाते हैं, जबकि अधिनायक तन्त्र में व्यक्ति का कोई महत्व नहीं होता है। व्यक्ति का कार्य केवल स्वामी के आदेशों का पालन करना मात्र होता है।
(5) शासन के स्थायित्व की दृष्टि से – लोकतन्त्र एक ऐसा शासन है जिसमें क्रान्ति की सम्भावनाएँ बहुत कम होती हैं। चुनाव प्रक्रिया एक तरह से क्रान्ति के स्थानान्तरण का कार्य करती है। अधिनायकतन्त्र में शासन हिंसा तथा आतंक पर आधारित होता है। इतिहास साक्षी है ऐसे शासन से मुक्ति पाने के लिए अनेक बार क्रान्ति का सहारा लिया गया है। वस्तुतः लोकतन्त्र अधिनायक तन्त्र से अच्छा शासन है।
(6) स्वशासन की दृष्टि से – लोकतन्त्र में सत्ता का विकेन्द्रीकरण होता है। इसमें स्थानीय स्वशासन संस्थाओं की स्थापना की जाती है जिससे कि सामान्य जनता भी इनके माध्यम से शासन कार्य में भाग ले सके। इससे उसमें नागरिक चेतना का विकास होता हैं एवं राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत होती है, जबकि अधिनायक तन्त्र में सत्ता का केन्द्रीकरण देखने को मिलता है। शासक के पास असीमित शक्ति होती है। वह भ्रष्ट और अत्याचारी हो जाता है। नागरिक में चेतना का विकास नहीं हो पाता है। उसमें राष्ट्र प्रेम की भावना भी दिखावे की ही रहती है।
(7) कार्यकुशलता की दृष्टि से – लोकतन्त्र शासन की कार्यकुशलता को बनाए रखता है क्योंकि वह जनता के प्रति उत्तरदायी होता है। जनता की शासन में भागीदारी के कारण शासन की नीतियों को जनसहयोग भी मिलता है। वहीं दूसरी ओर अधिनायक तन्त्र में सत्ता का केन्द्रीकरण होने से प्रारम्भ में तो शासन में लोकतन्त्र की तुलना में अधिक कार्यकुशलता होती है और राष्ट्र का विकास शीघ्र होता है लेकिन शीघ्र ही आन्तरिक भ्रष्टाचार से राष्ट्र का विकास रुक जाता है। इसे जनता का उत्साहपूर्ण सहयोग भी प्राप्त नहीं हो पाता है।
(8) उत्तरदायी शासन की दृष्टि से – लोकतन्त्र में शासक वर्ग जनता द्वारा निर्वाचित होती है इसलिए वह अपनी नीतियों एवं कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होता है फलस्वरूप वह अत्याचारी नहीं बन पाता है, जबकि अधिनायक तन्त्र में शासक निरंकुश होता है। वह जनता के प्रति उत्तरदायी भी नहीं होता है। जनता सदैव उसके आदेशों का पालन करने के लिए मजबूर होती है।
(9) मानव की गरिमा की दृष्टि से – लोकतन्त्र व्यक्ति की गरिमा को स्वीकार करता है। वह व्यक्ति की स्वतन्त्रता एवं समानता का सम्मान करता है जबकि अधिनायक तन्त्र स्वभाव से ही सर्वाधिकारवादी है। वह व्यक्ति की स्वतन्त्रता में विश्वास नहीं करता है।
(10) भय और क्रान्ति की दृष्टि से – लोकतन्त्र में सामान्य जनता व शासक वर्ग एक-दूसरे से भय से पीड़ित नहीं। होते न ही लोकतन्त्र में क्रान्ति की आवश्यकता होती है। जो सरकार जनमत का आदर नहीं करती, जनता उसे आगामी चुनाव में मताधिकार का प्रयोग कर हटा देती है। अधिनायक तन्त्र में सामान्य जनता शासक की शक्ति से भयग्रस्त रहती। है। उसे शासक की प्रत्येक आज्ञा का पालन करना पड़ता है। कई बार जनता शासक से मुक्ति पाने के लिए क्रान्ति कर उसे हटा देती है। उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि लोकतन्त्र निश्चित रूप से अधिनायक तन्त्र से श्रेष्ठ शासन व्यवस्था है।