RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 प्रकाश संश्लेषण
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 प्रकाश संश्लेषण
Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 10 प्रकाश संश्लेषण
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पर्णहरित अणु के केन्द्र में कौन-सा तत्व पाया जाता है।
(अ) Fe
(ब) Mg
(स) Ni
(द) Cu
प्रश्न 2.
वर्णक तन्त्र – II का सम्बन्ध है –
(अ) जल के प्रकाशीय अपघटन से
(ब) CO2 के अपचयन से
(स) पुष्पन से।
(द) उपरोक्त सभी से
प्रश्न 3.
प्रकाश तन्त्र- I व प्रकाश- II में अभिकिया केन्द्र है, क्रमशः
(अ) P700 एवं P680
(ब) P680 एवं P700
(स) P580 एवं P700
(द) P700 एवं P580
प्रश्न 4.
O2 का उत्पन्न होना किससे सम्बन्धित है –
(अ) PS – I
(ब) PS – II
(स) फाइटोक्रोम
(द) उपरोक्त सभी
प्रश्न 5.
C3 एवं C4 पौधों में एक प्रमुख अन्तर करने वाली प्रक्रिया क्या है
(अ) ग्लाइकोलाइसिस
(ब) प्रकाशीय श्वसन
(स) वाष्पोत्सर्जन
(द) प्रकाश संश्लेषण
प्रश्न 6.
प्रकाश संश्लेषण की इकाई है
(अ) क्वान्टासोम
(ब) माइक्रोसोम
(स) पराक्सीसोम
(द) स्फीरोसोम
प्रश्न 7.
जल के प्रकाशीय अपघटन हेतु आवश्यक होता है –
(अ) Mn
(ब) Mg
(स) Zn
(द) Fe
प्रश्न 8.
प्रकाश संश्लेषण क्रिया के दौरान –
(अ) CO2 एवं जल दोनों का ऑक्सीकरण होता है।
(ब) CO2 एवं जल दोनों का अपचयन होता है।
(स) जल का अपचयन व CO2 का ऑक्सीकरण होता है।
(द) CO2 का अपचयन एवं जल को ऑक्सीकरण होता है।
प्रश्न 9.
प्रकाश संश्लेषण में विमुक्त ऑक्सीजन का स्रोत है –
(अ) जल
(ब) CO2
(स) उपरोक्त दोनों
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 10.
प्रकाश संश्लेषण की अप्रकाशिक अभिक्रिया सम्पन्न होती है –
(अ) ग्रेना में
(ब) स्ट्रोमा में
(स) माइटोकॉन्ड्रिया में
(द) उपरोक्त सभी में
प्रश्न 11.
निम्न में से क्रेज आन्तरिकी (Kranz anatomy) पायी जाती है –
(अ) C3 पादपों में
(ब) C4 पादपों में
(स) मांसलभिदों में
(द) उपरोक्त सभी में
प्रश्न 12.
C4 चक्र का प्रथम स्थाई उत्पाद है –
(अ) पाइरूविक अम्ल
(ब) आक्जेलोऐसीटिक अम्ल
(स) मैलिक अम्ल
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 13.
CO2 के 6 अणुओं के अपचयन के लिए अचक्रीय फास्फोरिलीकरण में होते हैं।
(अ) 24 H+
(ब) 36 H+
(स) 32 H+
(द) 12 H+
प्रश्न 14.
प्रकाश संश्लेषण सक्रिय विकिरण (PAR) में निम्न तरंग दैर्घ्य पायी जाती है –
(अ) 340 – 450 nm
(ब) 400 – 700 nm
(स) 500 – 600 nm
(द) 450 – 950 nm
उत्तरमाला
1. (ब)
2. (अ)
3. (अ)
4. (ब)
5. (ब)
6. (अ)
7. (अ)
8. (द)
9. (अ)
10. (ब)
11. (ब)
12. (ब)
13. (अ)
14. (ब)
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रकाश संश्लेषण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में हरे पादपों द्वारा वायुमण्डल से CO2 तथा H2O ग्रहण करके कार्बनिक पदार्थों के संश्लेषण की क्रिया प्रकाश-संश्लेषण (Photo-synthesis) कहलाती है।
प्रश्न 2.
प्रकाश संश्लेषण का प्रथम स्थायी उत्पाद क्या है?
उत्तर
3-कार्बन परमाणु मुक्त फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल (Phosphoglyceric acid)
प्रश्न 3.
पर्णहरित ‘a’ तथा पर्णहरित ‘b’ में क्या अन्तर है?
उत्तर
पर्णहरित ‘a’ सार्वत्रिक वर्णक (universal pirment) होता है जबकि क्लोरोफिल (पर्णहरित) ‘b’ सहायक वर्णक है।
प्रश्न 4.
NADP का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर
निकोटिनामाइड ऐडेनीन डाइ फॉस्फेट (Nicotinamide Adenine diphosphate)
प्रश्न 5.
प्रकाशीय-श्वसन में भाग लेने वाले कोशिकांगों का नाम लिखिए।
उत्तर
हरितलवक (Chloroplast), परऑक्सीसोम (Peroxysome) तथा माइटोकॉण्डिया (Mitochondria)।
प्रश्न 6.
पादप वार्यिकी का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर
क्लाउड़े बरनार्ड (Claude Bernard)
प्रश्न 7.
प्रकाश संश्लेषण में प्रकाशिक तथा अप्रकाशिक अभिक्रिया के स्थल का नाम बताइए।
उत्तर
प्रकाशिक अभिक्रिया स्थल-ग्रेना
अप्रकाशिक अभिक्रिया स्थल-स्ट्रोमा
प्रश्न 8.
सीमाकारी कारक का नियम क्या है?
उत्तर
इस नियम के अनुसार “यदि कोई प्रक्रिया अनेक कारकों द्वारा प्रभावित होती है, तो अमुक समय में उस प्रक्रिया की दर उस कारक पर निर्भर करती है या उस कारक से सीमित होती है, जो सबसे कम मात्रा में उपस्थित होता है।”
प्रश्न 9.
जैवमण्डल में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला प्रोटीन कौन-सा हैं?
उत्तर
RUBISCO प्रोटीन
प्रश्न 10.
रेडड्राप (लाल पतन) की घटना दृश्य स्पैक्ट्रम के किस भाग में होती है?
उत्तर
दृश्य स्पैक्ट्रम के लाल क्षेत्र में।
प्रश्न 11.
प्रकाश संश्लेषण में सहयोगी वर्णक कौन-से हैं?
उत्तर
कैरोटिनॉइड्स (Caratinoids) तथा फाइकोविलिन्स (Phycobillins)
प्रश्न 12.
प्रकाश श्वसने एक नष्टकारी अभिक्रिया है, क्यों?
उत्तर
इस करिया में भोज्य पदार्थ श्वसन क्रिया के समान विघटित होते हैं। लेकिन इसमें ऊर्जा मुक्त नहीं होती है। इसलिए यह एक नष्टकारी अभिक्रिया है।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रकाश संश्लेषण में प्रयुक्त वर्णन कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
पादप प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण वर्णकों (Pigments) के रूप में करते हैं, इसलिए इन्हें प्रकाश संश्लेषणी वर्णक (Photosynthetic pigments) कहा जाता है। पादपों में मुख्यतः तीन प्रकार के वर्णक (Pigments) पाये जाते हैं :
- पर्णहरित (Chlorophylls) : जल में विलेय होते हैं।
- कैरोटिनॉइड्स (Carotenoids) : जल में अविलेय होते हैं।
- फाइकोविलिन्स (Phycobillins) : जल में अविलेय होते हैं।
इनमें पर्णहरित मुख्य या प्रधान वर्णक है तथा अन्य सभी सहायक वर्णक हैं।
प्रश्न 2.
हरितलवक की संरचना का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर
वह कोशिकांग जहाँ प्रकाश संश्लेषण की अभिक्रिया सम्पन्न होती है, हरितलवक (chloroplast) कहलाता है। पेड़-पौधों के सभी हरे भागों तथा पत्तियों में हरितलवक पाया जाता है। उच्चश्रेणी के पादपों में हरितलवक पर्णमध्योतक कोशिकाओं (Mesophyle cells) में उपस्थित रहता है। पत्ती की एक कोशिका में 20-40 हरितलवक पाये जाते हैं। प्रत्येक हरितलवक लाइपोप्रोटीन की दो एकक झिल्लियों (unit memberanes) द्वारा घिरा रहता है। इन दोनों झिल्लियों के मध्य परिकला अवकाश पाया जाता है। बाह्यकला प्रोटॉनों के प्रति पारगम्यता तथा आन्तरिक कला प्रोटॉनों के प्रति अपारगम्य होती है। हरितलवक के दो आन्तरिक भाग होते हैं, जिन्हें ग्रेना (Grana) एवं स्ट्रोमा (Stroma) कहा जाता है। स्ट्रोमा या पीठिका हरितलवक का मैट्रिक्स भाग होता है, जिसमें प्रोटीनयुक्त विषमांगी तरल पदार्थ विद्यमान रहते हैं। इसमें 70S राइबोसोम, द्विकुण्डलित DNA, आस्पियोफिलिक बूंदें घुलित लवण एवं एन्जाइम पाये जाते हैं।
प्रश्न 3.
ब्लैकमेन का पादप कार्यिकी में क्या योगदान है?
उत्तर
ब्लैकमेन ने प्रकाश संश्लेषण की अप्रकाशिक अभिक्रियाओं (Dark reactions) का अध्ययन किया जिसमें स्वांगीकरण शक्ति के प्रयोग से CO2 का अपचयन कार्बोहाइड्रेट में होता है। तथा ब्लैकमेन ने सीमाकरी कारकों का सिद्धान्त (Theory of limiting factors) का प्रतिपादन किया। इस सिद्धान्त के अनुसार कोई प्रक्रिया अनेक कारकों द्वारा प्रभावित होती है तब अमुक समय में इस प्रक्रिया की दर उस कारक पर निर्भर करती है, जो सबसे कम मात्रा में उपस्थित होता है।
प्रश्न 4.
हरितलवक की रासायनिक संरचना संक्षेप में समझाइए।
उत्तर
अप्रकाशिक अभिक्रिया की खोज ब्लैकमेन (Blackman, 1905) द्वारा की गयी थी परन्तु इससे सम्बन्धित सभी जैव रासायनिक अभिक्रियाओं को अध्ययन केल्विन एवं साथियों द्वारा किया गया था। प्रकाश संश्लेषण की यह अभिक्रिया हरितलवक के स्ट्रोमा (Stroma) में होती है तथा इस अभिक्रिया में वायुमण्डल से प्राप्त CO2 को अपचयन या स्थिरीकरण शर्करा में किया जाता है। इसलिए इन अभिक्रियाओं को कार्बन स्थिरीकरण भी कहा जाता है। इस अभिक्रिया में CO2 का अपचयन प्रकाशिक अभिक्रिया से प्राप्त उत्पाद ATP एवं NADPH + H+ द्वारा होता है। हरे पादपों में कार्बन स्थिरीकरण की क्रिया तीन प्रकार से सम्पन्न होती है –
(अ) कैल्विन बेन्सन चक्र, C3 चक्र (Calvin Benson cycle, C3 cycle)
(ब) हैच स्ले क चक्र, C4 चक्र, (Hatch-slack cycle, C4 cycle)
(स)क्रेसूलेशियन अम्ल उपापचय चक्र (Crassulacean acid metabolism, CAM cycle)
प्रश्न 5.
C3 एवं C4 चक्र में क्या अन्तर है? समझाइए।
उत्तर
C3 एवं C4 चक्र में प्रमुख अन्तर
क्र०सं० | लक्षण | C3 चक्र | C4 चक्र |
1. | अनुकूल तापमान | 10 – 25°C | 30 – 40°C |
2. | क्रेज शारीरिकी | अनुपस्थित | उपस्थित |
3. | प्रथम स्थाई उत्पाद | फास्फोग्लिसरिक अम्ल (3C) | आक्सेलोऐसीटिक अम्ल (4C) |
4. | CO4 का स्थिरीकरण स्थल | केवल पर्ण मध्योतक कोशिकाएँ | पर्ण मध्योतक एवं पूल आच्छद कोशिका |
5. | CO2 का प्रथम ग्राही | R4BP (पंच कार्बन यौगिक) | PEP (तीन कार्बन यौगिक) |
6. | कार्बोक्सिलीकरण के लिए | RUBISCO | PEP कार्बोक्सिलेन एवं RUBISCO |
7. | प्रकाश श्वसन | उपस्थित | अनुपस्थित |
8. | उत्पादकता | नष्टकारी प्रकाश श्वसन के कारण कम | नष्टकारी श्वसन की अनुपस्थिति के कारण अधिक |
प्रश्न 6.
क्रेसुलेसियन अम्ल उपापचय द्वारा CO2 स्थिरीकरण होना शुष्कोभिद् तथा माँसलोभिद पादपों में कार्यिकी अनुकूलन है। समझाइए।
उत्तर
क्रेसुलेसियन अम्ल उपापचय माँसलोभिद (Succulents) एवं शुष्कोभिद (herophytes) में पाये जाने वाला कार्यिकी अनुकूलन (Physiological adaptation) है, जिसके द्वारा जल हानि के बिना ही पौधे कार्बनिक पदार्थों का निर्माण कर लेते हैं। इस उपापचयी क्रिया का अध्ययन क्रेसुलेसी कुल के पादपों पर किया गया, इसलिए इसे क्रेसुलेसिश्न अम्ल उपापचय कहा जाता है। कुछ प्रमुख CAM पादप येगेव यक्का, अनन्नास, नागफनी आदि हैं।
प्रश्न 7.
प्रकाशीय फॉस्फोरिलीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
अनेक प्रयोगों के आधार पर प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में निम्न परिकल्पनाएँ प्रेक्षित हुई हैं –
- पर्णहरित एवं सहायक वर्णकों द्वारा अवशोषित प्रकाश ऊर्जा का उपयोग जल प्रकाशिक अपघटन (Photolysis of water) में होता है, जिसमें O2, H+ तथा इलेक्ट्रॉनों (e–) का निष्कासन होता है।
- निष्कासित इलेक्ट्रॉन का प्रवाह प्रकाश तंत्रों (Photosystems) के विभिन्न ग्राहियों से होता है, जिसमें अन्तिम रूप से ATP एवं NADPH + H+ के रूप में ऊर्जा संग्रहित होती है।
- प्राप्त उच्च ऊर्जा के अणु (ATP एवं NADPH + H+) CO2 के अपचयन में सहायक होते हैं, जिस शर्करा (carbohydrates) का उत्पादन होता है। अतः प्रकाश संश्लेषण एक ऑक्सीकरण-अपचयन (redox) अभिक्रिया है, जिसमें जल का ऑक्सीकरण तथा कार्बनडाइऑक्साइड का अपचयन होता है।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशिक अभिक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर
अनेक प्रयोगों के आधार पर प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में निम्न परिकल्पनाएँ प्रेक्षित हुई हैं –
- पर्णहरित एवं सहायक वर्णकों द्वारा अवशोषित प्रकाश ऊर्जा का उपयोग जल प्रकाशिक अपघटन (Photolysis of water) में होता है, जिसमें O2, H+ तथा इलेक्ट्रॉनों (e–) का निष्कासन होता है।
- निष्कासित इलेक्ट्रॉन का प्रवाह प्रकाश तंत्रों (Photosystems) के विभिन्न ग्राहियों से होता है, जिसमें अन्तिम रूप से ATP एवं NADPH + H+ के रूप में ऊर्जा संग्रहित होती है।
- प्राप्त उच्च ऊर्जा के अणु (ATP एवं NADPH + H+) CO2 के अपचयन में सहायक होते हैं, जिस शर्करा (carbohydrates) का उत्पादन होता है। अतः प्रकाश संश्लेषण एक ऑक्सीकरण-अपचयन (redox) अभिक्रिया है, जिसमें जल का ऑक्सीकरण तथा कार्बनडाइऑक्साइड का अपचयन होता है।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया मुख्यतः दो चरणों में सम्पन्न होती है, ये चरण एक-दूसरे से भिन्न होते हैं किन्तु परस्पर पूरक होते हैं। ये चरण इस प्रकार हैं –
I. प्रकाशिक अभिक्रियाएँ (Light reactions) – प्रथम चरण में प्रकाशिक अभिक्रियाएँ प्रकाश की उपस्थिति में सम्पन्न होती हैं। इसमें स्वांगीकरण शक्ति (Assimilatory power) को निर्माण होता है। प्रकाशिक अभिक्रिया हरितलवक में ग्रेना (Granna) में सम्पन्न होती है।
II. अप्रकाशिक या ब्लैकमेन अभिक्रियाएँ (Dark or Blackman reactions) – इस चरण में होने वाली अभिक्रियाओं के लिए प्रकाश की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती है। इस अभिक्रिया में स्वांगीकरण शक्ति का प्रयोग CO2 के शर्करा में अपचयन हेतु किया जाता है। यह अभिक्रिया हरितलवक के स्ट्रोमा में सम्पन्न होती है। ताप गुणांक (temperature factor) एवं अन्य प्रयोगों से यह सिद्ध किया जा चुका है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रकाश से प्रभावित होती है, जिसे प्रकाशिक अभिक्रिया कहा जाता है जबकि दूसरी प्रक्रिया तापमान से प्रभावित होती है, जिसे अप्रकाशिक अभिक्रिया (dark reaction) कहते हैं। प्रकाशिक अभिक्रियाओं के लिए ताप गुणांक (Q = 1) तथा अप्रकाशिक अभिक्रियाओं के लिए ताप गुणांक (Q = 2 या 3) होता है।
प्रश्न 2.
केल्विन बेन्सन चक्र द्वारा CO2 का स्थिरीकरण समझाइए।
उत्तर
(अ) कैल्विन बेन्सन चक्र, C3 चक्र (Calvin Benson cycle, C3 cycle) – सन् 1946-53 के मध्य में केल्विन, बेन्सन एवं साथियों (Calvin, Benson and et al. 1946-53) ने प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का शर्करा में परिवर्तन के पथ की खोज रेडियोएक्टिव ट्रेसर तकनीक द्वारा की थी। इस प्रयोग के लिए उन्होंने एक कोशिकीय हरी-शैवाल क्लोरेला (Chlorella) एवं सिनेडे स्मस (Scendesmus) पर कार्बन-14 आइसोटोप युक्त 14CO2 का उपयोग किया था। इस अध्ययन के बाद उन्होंने बताया कि इस अभिक्रिया में तीन कार्बन परमाणु युक्त 3-फॉस्फोग्लिसिरिक अम्ल का निर्माण होता है। इसलिए इस प्रक्रम को C3 चक्र कहा जाता है। इस कार्य के लिए केल्विन एवं बेन्सन को 1961 में नोबेल पुरस्कार दिया गया है। इस चक्र की महत्वपूर्ण अभिक्रियाएँ इस प्रकार हैं –
1. राइबुलोस मोनोफॉस्फेट का फॉस्फोरिलीकरण (Phosphorylation of Ribose monophosphate) – अप्रकाशिक अभिक्रिया में CO2 ग्रहण करने वाला यौगिक 5 कार्बन युक्त शर्करा राइबुलोस 1, 5 बाइफॉस्फेट (RuBP) होता है। इसका निर्माण राइबुलोस मोनोफॉस्फेट के फॉस्फोपेन्टोकाइनेज एन्जाइम एवं ATP की उपस्थिति में होता है। एक ग्लूकोज अणु के निर्माण के लिए 6 अंणु CO2 ग्रहण करने के लिए 6 अणु राइबुलोज 1, -5 बाइफॉस्फेट प्रयुक्त होता है।
2. राइबुलोस-1, 5 बाइफॉस्फेट का कार्बोक्सिलीकरण (कार्बोक्सिलीकरण प्रावस्था) (Carboxylation of Ribose 1, 5 biphosphate (Carboxylation phase) ) – प्रथम फास्फोरिलीकरण द्वारा निर्मित राइबुलोस 1, 5 बाइफॉस्फेट CO2 ग्राही की भाँति कार्य करता है। इस अभिक्रिया में राइबुलोस 1, 5 बाइफॉस्फेट के 6 अणु कार्बोक्सिलेज एन्जाइम की उपस्थिति में 6 अणु कार्बन डाइ ऑक्साइड एवं 6 अणु जल के साथ क्रिया करके तीन अणु फास्फोग्लिरिक अम्ल के 12 अणुओं का निर्माण करते हैं। जिसे अप्रकाशिक अभिक्रिया का प्रथम स्थायी यौगिक कहते हैं।
3. फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का फॉस्फोरिलीकरण (Phosphorylation of phosphoglyceric acid) – कार्बोक्सिकरण अभिक्रिया में निर्मित 3-फास्फोग्लिसरिक अम्ल के 12 अणु फास्फोग्लिसरिक काइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में ATP के 12 अणुओं का प्रयोग 1, 3 डाइफास्फोग्लिसिरिक अम्ल के 12 अणुओं का निर्माण करते हैं।
4. 1, 3 डाइफॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का अपचयन (Reduction of 1, 3 disphosphoglyceric acid) – इस अपचयन अभिक्रिया में कार्बोक्सिलीकरण एवं फॉस्फोरिलीकरण से निर्मित 12 अणु 1, 3 डाइफॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का अपचयन प्रकाशिक अभिक्रियाओं में बनने वाली अपचयन सामर्थ्य NADPH + H+ के 12 अणुओं द्वारा होता है, जिसके फलस्वरूप फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड के 12 अणु निर्मित होते हैं। यह अभिक्रिया ट्रायोजफास्फेट डिहाइड्रोजिनेज एन्जाइम की उपस्थिति में होती है।
इस अभिक्रिया में निर्मित 3-फास्फोग्लिसरेल्डिहाइड के 12 अणुओं में से मात्र 2 अणु शर्करा (ग्लूकोज) 5 का निर्माण करते हैं जो बाद में सुक्रोज या स्टार्च में परिवर्तित हो जाते हैं। बचे हुए 10 अणु पुनयोंजन जैव रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा 6-अणु राइबुलोस मोनोफास्फेट का निर्माण करते हैं। जो रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेकर केल्विन चक्र की निरन्तरता को बनाए रखते हैं।
5. हेक्सोज शर्करा का निर्माण (संश्लेषण प्रावस्था) (Formation of haxose sugar synthetic phase) – अपचयन प्रावस्था से निर्मित 12 अणु फॉस्फोग्लिसटेल्डिहाइड में से 2 अणु निम्न जैव रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा ग्लूकोज का 1 अणु निर्मित करते हैं।
उपरोक्त सभी अभिक्रियाएँ ग्लाइकोलाइसिस प्रक्रिया के विपरीत क्रम में होने के कारण इसे ग्लाइकोलाइटिक उत्क्रमण (Glycolytic reversion) कहा जाता है।
प्रश्न 3.
प्रकाशीय फॉस्फोरिलीकरण से आप क्या समझते हैं? इस प्रक्रिया को विस्तार से समझाइए।
उत्तर
अनेक प्रयोगों के आधार पर प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में निम्न परिकल्पनाएँ प्रेक्षित हुई हैं –
- पर्णहरित एवं सहायक वर्णकों द्वारा अवशोषित प्रकाश ऊर्जा का उपयोग जल प्रकाशिक अपघटन (Photolysis of water) में होता है, जिसमें O2, H+ तथा इलेक्ट्रॉनों (e–) का निष्कासन होता है।
- निष्कासित इलेक्ट्रॉन का प्रवाह प्रकाश तंत्रों (Photosystems) के विभिन्न ग्राहियों से होता है, जिसमें अन्तिम रूप से ATP एवं NADPH + H+ के रूप में ऊर्जा संग्रहित होती है।
- प्राप्त उच्च ऊर्जा के अणु (ATP एवं NADPH + H+) CO2 के अपचयन में सहायक होते हैं, जिस शर्करा (carbohydrates) का उत्पादन होता है। अतः प्रकाश संश्लेषण एक ऑक्सीकरण-अपचयन (redox) अभिक्रिया है, जिसमें जल का ऑक्सीकरण तथा कार्बनडाइऑक्साइड का अपचयन होता है।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया मुख्यतः दो चरणों में सम्पन्न होती है, ये चरण एक-दूसरे से भिन्न होते हैं किन्तु परस्पर पूरक होते हैं। ये चरण इस प्रकार हैं –
I. प्रकाशिक अभिक्रियाएँ (Light reactions) – प्रथम चरण में प्रकाशिक अभिक्रियाएँ प्रकाश की उपस्थिति में सम्पन्न होती हैं। इसमें स्वांगीकरण शक्ति (Assimilatory power) को निर्माण होता है। प्रकाशिक अभिक्रिया हरितलवक में ग्रेना (Granna) में सम्पन्न होती है।
II. अप्रकाशिक या ब्लैकमेन अभिक्रियाएँ (Dark or Blackman reactions) – इस चरण में होने वाली अभिक्रियाओं के लिए प्रकाश की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती है। इस अभिक्रिया में स्वांगीकरण शक्ति का प्रयोग CO2 के शर्करा में अपचयन हेतु किया जाता है। यह अभिक्रिया हरितलवक के स्ट्रोमा में सम्पन्न होती है। ताप गुणांक (temperature factor) एवं अन्य प्रयोगों से यह सिद्ध किया जा चुका है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रकाश से प्रभावित होती है, जिसे प्रकाशिक अभिक्रिया कहा जाता है जबकि दूसरी प्रक्रिया तापमान से प्रभावित होती है, जिसे अप्रकाशिक अभिक्रिया (dark reaction) कहते हैं। प्रकाशिक अभिक्रियाओं के लिए ताप गुणांक (Q = 1) तथा अप्रकाशिक अभिक्रियाओं के लिए ताप गुणांक (Q = 2 या 3) होता है।
प्रश्न 4.
हेचस्लेक चक्र को वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता बताइए।
उत्तर
केपरीलोव (Kaprilav, 1960) ने मक्का के पौधे पर तथा कोर्टचाक (C, E. Korte chak, 1965) एवं उनके सहयोगियों ने गन्ने की पत्तियों पर प्रकाश-संश्लेषण क्रिया का अध्ययन कर पाया कि प्रथम स्थायी यौगिक CO2 ग्रहण करने के पश्चात् C3 चक्र के अनुसार 3PGA अणु का निर्माण न करके चार कार्बन युक्त ऑक्सेलो ऐसीटिक अम्ल (OAA) का निर्माण करते हैं। हेच तथा स्लेक (MD Hatch and C.R Slack, 1966) ने उपर्युक्त परिणामों की पुष्टि की एवं इस चक्र के पूर्ण पथ की खोज की। इसलिए इस चक्र को हेच-स्लेक चक्र (Hatch-slack cycle) कहा जाता है। प्रथम स्थायी यौगिक में 4 कार्बन युक्त परमाणु होने के कारण इसे C4 चक्र भी कहते हैं। यह चक्र एकबीजपत्री (मक्का, बाजरा, गन्ना) तथा द्विबीजपत्री (अमरेंथस तथा यूफोरबिया) पादपों के अतिरिक्त अन्य पादपों में भी पाया जाता है।
C4 पादपों की संरचनात्मक विशिष्टता (Structural specificity of C4 plants)
C4 पादपों की पत्तियों में दो प्रकार की प्रकाश संश्लेषणी कोशिकाएँ। (Photosynthetic cell) पायी जाती हैं। जिन्हें क्रमशः पर्णमध्योतक कोशिकाएँ (Mesophyll cells) व पूल अच्छद (Bundle sheath cell) कहते हैं। मूल आच्छद कोशिकाएँ संवहन पूल के चारों ओर एक या दो स्तरों में मालारूपी क्रम में व्यवस्थित होती हैं। क्रेच (Krantz) जर्मनी भाषा का शब्द होता है, जिसे माला (Wreath) कहते हैं इसलिए पत्तियों की इस संरचना को क्रेज शारीरिकी (Krantz antonomy) कहते हैं। C4 पादपी की पत्तियों में दो प्रकार के हरितलवक उपस्थित रहते हैं। पर्णमध्योत्तक कोशिकाओं में पाये जाने वाले हरितलवक छोटे तथा सुविकसित ग्रेना युक्त होते हैं जबकि पूल आच्छद कोशिकाओं में पाये जाने वाला हरितलवक बड़े तथा ग्रेनाविहीन होते हैं। थाइलेकॉइड केवल स्ट्रोमा पटिलिकाओं में उपस्थित रहते हैं। C4 पादपों में प्रकाशिक अभिक्रिया पर्णमध्योतक कोशिकाओं में सम्पन्न होती है तथा अप्रकाशिक अभिक्रिया (CO2 का स्वांगीकरण) पूल अच्छद कोशिकाओं में सम्पन्न होती है।
C4 चक्र की क्रियाविधि (Mechanism of C4 cycle)
C4 चक्र में वायुमण्डल से प्राप्त CO2 रन्ध्रों द्वारा पर्णमध्योतक कोशिकाओं (Mesophyll cells) के कोशिका द्रव्य में प्रवेश करती है। इस CO2 को तीन कार्बन युक्त फॉस्फोइनोल पाइरूविक अम्ल (PEP) द्वारा ग्रहण कर PEP कार्बोक्सिलेज एन्जाइम की उपस्थिति में चार कार्बन परमाणु युक्त यौगिक ऑक्सेलोऐसीटिक अम्ल (Oxaloucetic acid, OAA) में परिवर्तित कर दिया जाता है। उसके बाद ऑक्सेलोऐसिटिक अम्ल मलिक अम्ल में अपचयित हो जाता है तथा इस चरण में NADPH + H+ ऑक्सीकृत होता है जिससे NADP+का निर्माण होता है।
मैलिक अम्ल पर्णमध्योतक (Mesophyll cell) कोशिकाओं से पूल आच्छद कोशिकाओं में प्रवेश करता है। मलिक अम्ल के डीकार्बोक्सिलीकरण से CO2 मुक्त होती है तथा पाइरुविक अम्ल का निर्माण होता है। पाइरुविक अम्ल पर्णमध्योतक कोशिकाओं में प्रवेश करता है जहां ATP से जुड़कर फास्फोइनोल पाइरूविक अम्ल का निर्माण करता है, जो इस चक्र की निरन्तरता को बनाए रखता है। पूल आच्छद कोशिकाओं से प्राप्त CO2, C3 चक्र में प्रवेश कर शर्करा का निर्माण करती है। इस प्रकार पर्णमध्यातक कोशिकाओं में C4 चक्र द्वारा CO2 इकट्ठी हो जाती है। तथा पूल आच्छद कोशिकाओं में C3 चक्र का अनुपालन करते हुए CO2 का स्थिरीकरण कार्बोहाइड्रेट में कर दिया जाता है।
C4 चक्र एवं C4 पादपों की विशेषताएँ (Characteristics of C4 Cycle and C4 plants)
- C4 पादप CO2 को अति निम्न सान्द्रता पर भी प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करने में सक्षम होते हैं। अतः जैविक दृष्टि से यह एक अनुकूल विशेपता है।
- C1 पादपों में प्रकाश श्वसन (Photorespiration) की क्रिया नहीं होने से इनकी उत्पादकता C, पादपों से अधिक होती है।
- C4 ‘चक्र का प्रमुख एन्जाइम (PEP carboxylase) CO2 की निम्न सान्द्रता पर भी क्रियाशील रहता है।
- C4 पादपों को कम जल वाले स्थान (शुष्क वातावरण) एवं उच्च तापक्रम (30 – 45°C) वाले क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है।
अतः उपरोक्त विशेषताओं से स्पष्ट है कि C4 पादप उष्णकटिबन्ध क्षेत्र में सर्वाधिक सफल पादप हैं।
प्रश्न 5.
निम्न पर टिप्पणियाँ लिखिए –
(i) प्रकाश संश्लेषी वर्णक
(ii) प्रकाशतन्त्र – I तथा प्रकाशतन्त्र – II
(iii) जल का प्रकाशिक अपघटन
(iv) C4 चक्र का महत्त्व
(v) प्रकाश श्वसन एवं प्रकाश संश्लेषण
उत्तर
(i) पादप प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण वर्णकों (Pigments) के रूप में करते हैं, इसलिए इन्हें प्रकाश संश्लेषणी वर्णक (Photosynthetic pigments) कहा जाता है। पादपों में मुख्यतः तीन प्रकार के वर्णक (Pigments) पाये जाते हैं :
- पर्णहरित (Chlorophylls) : जल में विलेय होते हैं।
- कैरोटिनॉइड्स (Carotenoids) : जल में अविलेय होते हैं।
- फाइकोविलिन्स (Phycobillins) : जल में अविलेय होते हैं।
इनमें पर्णहरित मुख्य या प्रधान वर्णक है तथा अन्य सभी सहायक वर्णक हैं।
(ii) I. प्रकाशिक अभिक्रियाएँ (Light reactions) – प्रथम चरण में प्रकाशिक अभिक्रियाएँ प्रकाश की उपस्थिति में सम्पन्न होती हैं। इसमें स्वांगीकरण शक्ति (Assimilatory power) को निर्माण होता है। प्रकाशिक अभिक्रिया हरितलवक में ग्रेना (Granna) में सम्पन्न होती है।
II. अप्रकाशिक या ब्लैकमेन अभिक्रियाएँ (Dark or Blackman reactions) – इस चरण में होने वाली अभिक्रियाओं के लिए प्रकाश की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती है। इस अभिक्रिया में स्वांगीकरण शक्ति का प्रयोग CO2 के शर्करा में अपचयन हेतु किया जाता है। यह अभिक्रिया हरितलवक के स्ट्रोमा में सम्पन्न होती है। ताप गुणांक (temperature factor) एवं अन्य प्रयोगों से यह सिद्ध किया जा चुका है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रकाश से प्रभावित होती है, जिसे प्रकाशिक अभिक्रिया कहा जाता है जबकि दूसरी प्रक्रिया तापमान से प्रभावित होती है, जिसे अप्रकाशिक अभिक्रिया (dark reaction) कहते हैं। प्रकाशिक अभिक्रियाओं के लिए ताप गुणांक (Q = 1) तथा अप्रकाशिक अभिक्रियाओं के लिए ताप गुणांक (Q = 2 या 3) होता है।
(iii) जल का प्रकाशिक अपघटन एवं ऑक्सीजन का निकास (Photolysis of water and liberation of oxygen) – क्लोरोफिल द्वारा ग्रहण की गयी ऊर्जा का उपयोग जल के प्रकाशिक अपघटन में किया। जाता है। जल के इस अपघटन से O2 मुक्त होती है। जिसको प्रयोग श्वसन
(Respiration) में होता है। तथा शेष O2 वायुमण्डल में मुक्त हो जाती है। इस अभिक्रिया में मैग्नीज आयन (Mn++)तथा क्लोराइड (Cl–) आयन का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
2H2O → 4H + 4e– + O2
(iv) C4 चक्र एवं C4 पादपों की विशेषताएँ (Characteristics of C4 Cycle and C4 plants)
- C4 पादप CO2 को अति निम्न सान्द्रता पर भी प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करने में सक्षम होते हैं। अतः जैविक दृष्टि से यह एक अनुकूल विशेपता है।
- C1 पादपों में प्रकाश श्वसन (Photorespiration) की क्रिया नहीं होने से इनकी उत्पादकता C, पादपों से अधिक होती है।
- C4 ‘चक्र का प्रमुख एन्जाइम (PEP carboxylase) CO2 की निम्न सान्द्रता पर भी क्रियाशील रहता है।
- C4 पादपों को कम जल वाले स्थान (शुष्क वातावरण) एवं उच्च तापक्रम (30 – 45°C) वाले क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है।
अतः उपरोक्त विशेषताओं से स्पष्ट है कि C4 पादप उष्णकटिबन्ध क्षेत्र में सर्वाधिक सफल पादप हैं।
(v) पौधों के प्रकाश संश्लेपी भाग में प्रकाश की उपस्थिति में सामान्य श्वसन के अतिरिक्त होने वाला श्वसन जिसमें O2 द्वारा कार्बनिक यौगिक ऑक्सीकृत होते हैं तथा ऊर्जा का उत्पादन नहीं होता है एवं CO2 विमुक्त होती हैं, को प्रकाश-श्वसन (Photorespiration) कहा जाता हैं। प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में भोज्य पदार्थों का श्वसन अभिक्रिया के समान विघटन होता है किन्तु ऊर्जा मुक्त नहीं होती है, इसलिए इसे नष्टकारी क्रिया भी माना जाता है।
प्रकाश-श्वसन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम क्रोटकोव (Krotkov, 1963) द्वारा किया गया। यह क्रिया केवल C3 पादपों में होती है। ऑटो वारबर्ग (Otto warberg, 1920) ने बताया कि O2 की उपस्थिति में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया संदमित (Retard) हो जाता है। ऑक्सीजन के इस प्रभाव को वारबर्ग (Warberg effect) कहते हैं। ओरगेन तथा बौ (Oregen and Bow 1971) ने वारबर्ग प्रभाव का स्पष्टीकरण करते हुए बताया कि O2 तथा CO2 में RUBISCO के लिए प्रतिस्पर्धा होती है। RUBISCO, CO2 की अधिकता में काबोंक्सीलेज के समान तथा O2 की उपस्थिति में ऑक्सीनेज एन्जाइम की तरह कार्य करता है। इस प्रकार RUBISCO ऑक्सीकृत होकर फॉस्फोग्लाइकोलिक अम्ल (2 कार्बन युक्त यौगिक) का निर्माण करता है। इसलिए इसे C2 चक्र (C2 cycle) या ग्लाइकोलेट चक्र (Glycolate cycle) कहा जाता है। इस कारण से PGA का निर्माण नहीं होता है तथा CO2 के स्वांगीकरण की दर कम हो जाती है।
इस चक्र का अध्ययन डेकर एवं टिओ (Deeker and Ti), 1959) द्वारा किया गया था। प्रकाश-श्वसन की सम्पूर्ण अभिक्रिया हरितलवक, पराऑक्सीसोम व माइटोकॉण्डूिया नामक तीन कोशिकांगों में पूर्ण होती है। ये अंग प्रकाश-श्वसन में एक इकाई की भाँति कार्य करते हैं।
प्रश्न 6.
प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारकों की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
उत्तर
प्रकाश संश्लेषण क्रिया विभिन्न जैविक रासायनिक क्रियाओं के समान वातावरणीय व आनुवंशिक कारकों पर निर्भर करती है। इस कारकों को दो भागों-आन्तरिक एवं बाह्य कारकों में रखा गया है। बाह्य कारक या पर्यावरणीय कारक (External or Enviromental factors) के अन्तर्गत प्रकाश, CO2 की उपलब्धता, तापमान, मृदाजल आदि हैं, जो प्रकाश-संश्लेषण क्रिया को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। इन कारकों के अध्ययन से पूर्व ब्लैकमैन का सीमाकारी नियम तथा सेक्स का प्रधानबिन्दु संकल्पना का अध्ययन जरूरी है।
सेक्स की प्रधान बिन्दु संकल्पना (Sach’s Cardinial point Hypotlysis) – यह सिद्धान्त सेक्स (Sach’s 1860) द्वारा प्रतिपादित किया गया, जिसके अनुसार प्रकाश संश्लेषण वे किसी भी अन्य कार्यिकी क्रिया को प्रभावित करने वाले कारक प्रमुख तीन मानों (Value) पर निर्भर करते हैं –
- न्यूनतम मान या बिन्दु – कारक की वह मात्रा जिस पर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रारम्भ होती है।
- श्रेष्ठतम या अनुकूलतम मान बिन्दु – कारक की उस मात्री को प्रदर्शित करता है जिस पर प्रकाश संश्लेषण की दर अधिकतम होती है।
- अधिकतम मान या बिन्दु – कारक की वह मात्रा है जिस पर प्रकाश संश्लेषण अभिक्रिया रुक जाती है।
इन तीनों अवस्थाओं को प्रधान विन्दु (Cardinal points) कहा जाता है।
ब्लैकमेन का सीमाकारी कारकों का सिद्धान्त (Blackman’s theory of limiting factors) – ब्लैकमैन (Backman, 1905) ने सीमाकारी कारकों का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। यह सिद्धान्त पूर्व में प्रकाशित लिबिग का निम्नतम का नियम (Lebeig’s law of minimum) का परिवर्तित रूप हैं। ब्लैकमेन के सीमाकारी नियम के अनुसार यदि कोई क्रिया अनेक कारकों द्वारा प्रभावित होती है तब अमुक समय में उस क्रिया की दर उस कारक पर निर्भर करती है या उसके कारक से सीमित होती है, जो सबसे कम मात्रा में उपस्थित रहता है। सीमाकारी कारक में वृद्धि होने से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बढ़ जाती है। जैसे प्रकाश संश्लेषण क्रिया के लिए प्रकाश की उपलब्धता है किन्तु CO2 की अनुपस्थिति हैं तो इस परिस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया CO2 की उपलब्धता पर निर्भर करती हैं। यदि CO2 एवं प्रकाश दोनों सीमाकारी हैं तो प्रकाश संश्लेषण क्रिया की दर अधिक सीमाकारी कारक की मात्रा पर निर्भर करती है।
A. बाह्य या पर्यावरणीय कारक (External factors or enviromental factors) – प्रकाश संश्लेषण क्रिया को प्रभावित करने वाले बाह्य कारकों के अन्तर्गतः प्रकाश, तापमान, कार्बन डाइ ऑक्साइड आदि आते हैं।
(i) प्रकाश (Light) – प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रकाश वर्णक्रम (Spectrum) के दृश्य क्षेत्र (Visible region) में होती है। इसका तरंगदैर्घ्य परास 400 nm से 700 nm होता है तथा इसे प्रकाश संश्लेषणी संक्रिया विकिरण (Photosynthetically Active Radiation, PAR) कहा जाता है।
प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रकाश तीव्रता पर निर्भर करती है। प्रकाश संश्लेषण की सर्वाधिक दर दृश्य स्पैक्ट्रम के लाल क्षेत्र में तथा उससे कम नीले क्षेत्र में होती है। हरे रंग के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं होती है। क्योंकि हरे रंग का प्रकाश पत्तियों द्वारा अवशोषित नहीं होता है। प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने पर प्रकाश संश्लेषण की दर बढ़ती है। परन्तु उच्च तीव्रता पर प्रकाश संश्लेषण की दर घट जाती है, क्योंकि या तो प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले अन्य कारक सीमाकारी हो जाते हैं। अथवा हरितलवक एवं अन्य कोशिकीय अवयव प्रकाश ऑक्सीकरण द्वारा नष्ट हो जाता है, जिसे आपतन (Solarization) कहते हैं।
(ii) तापक्रम (Temperature) – प्रकाश संश्लेषण की क्रिया तापक्रम की व्यापक परास सीमाओं में सम्पन्न होती है। कुछ कोनीफर्स (conifers) जैसे- जुनीपेरस में -35°C पर भी प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया होती है। कुछ मरुद्भिद् पादपों में 55°C तथा गर्म जल में पाये जाने वाले शैवालों में 75°C पर प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया होती है। अधिकांश पादपों में प्रकाश-संश्लेषण की दर 10°C से 35°C पर सर्वाधिक होती है परन्तु कुछ समय पश्चात् दर में कमी आने लगती है क्योंकि उच्चताप पर प्रकाश संश्लेषणी एन्जाइम विकृत (Denature) होने लगते हैं तथा C3 चक्र के प्रमुख एन्जाइम RUBISC0 की CO2 के प्रति बन्धुता घटने लगती हैं।
(iii) कार्बन डाइ ऑक्साइड (Carbon dioxide, CO2) – वातावरण में कार्बनडाइऑक्साइड 0.03% (300 ppm) होती है। वातावरण में CO2 की मात्रा बढ़ने से कुछ समय तक प्रकाश संश्लेषण की दर बढ़ जाती है एवं यह बढ़ोत्तरी अन्य कारक के सीमाकारी होने तक जारी रहती है। सामान्यत: प्रकाश संश्लेष्ण की दर में वृद्धि CO2 की 1% सान्द्रता तक होती है परन्तु इससे अधिक CO2 सान्द्रती पादपों पर विषाक्त प्रभाव डालती है, जिससे रन्ध्र बन्द हो जाते हैं और गैसों का विनमय घट जाता है। C,3पादपों में CO2 की सान्द्रता 0.05% तक बढ़ाने पर प्रकाश-संश्लेषण की दर बढ़ जाती है जबकि C4 पादपों में CO2 की सान्द्रता 0.03% तक बढ़ाने पर प्रकाश-संश्लेषण की दर बढ़ जाती है।
(iv) जल (Water) – जल प्रकाश-संश्लेषण अभिक्रिया का एक प्रमुख अभिकारक है क्योकि यह अभिक्रिया में हाइड्रोजन दाता के रूप में कार्य करता है। पादपों द्वारा कुल अवशोषित जल का केवल 1% भाग ही प्रकाश संश्लेषण में उपयोग किया जाता है। अतः यह प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सीमाकारी कारक नहीं होता है। यह अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावकारी होता है। मृदा जल की अधिक कमी होने पर यह सीमाकारी कारक बन जाता है एवं प्रकाश संश्लेषण की दर को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। जल की कमी से रंध्र बन्द हो जाते हैं, जिससे गैसीय विनिमय (Gaseous exchange) रुक जाता है तथा पर्ण का जल विभव (Water potential) कम हो जाता है।
(v) ऑक्सीजन (0xygen) – ऑक्सीजन की सान्द्रता में वृद्धि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करती है। यह RUBISCO के लिए प्रतिस्पर्धात्मक संदमक (Competitive inhibitor) का कार्य करती है। C3 पादपों में ऑक्सीजन की सान्द्रता में वृद्धि होने से RUBISCO काबोंग्लिसलेज की जगह ऑक्सीजनेज एन्जाइम व्यवहार प्रदर्शित करता है, जिससे प्रकाशीय श्वसन क्रिया आरम्भ हो जाती है।
आन्तरिक कारक (Internal factors) – प्रकाश-संश्लेष्ण की क्रिया आन्तरिक कारकों जैसे-पर्णहरित, संचित भोजन की मात्रा एवं पत्ती की आन्तरिक संरचना द्वारा प्रभावित होती है।
- पर्णहरित (Chlorophyll) – पर्णहरित प्रकाश संश्लेषण क्रिया का मुख्य वर्णक है जो प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करता है। सामान्यतः प्रकाश संश्लेषण की दर क्लोरोफिल की मात्रा बढ़ने पर बढ़ती है, यदि अन्य कारकों को मानक रखा जाए।
- संचित भोजन की मात्रा (Amount of stored food) – पादप कोशिकाओं में प्रकाश-संश्लेषण क्रिया द्वारा अन्तिम उत्पादों का संचय होता है तथा इनके लगातार संचय से प्रकाश-संश्लेषण की दर मन्दित हो जाती है परन्तु इन उत्पादों का पादप के दूसरे भागों में स्थानान्तरण होने से प्रकाश-संश्लेषण की दर पुनः बढ़ जाती है।
- पत्ती की आन्तरिक संरचना (Internal structure of leaf) – प्रकाश संश्लेषण की दर रन्ध्रों की संख्या, वितरण एवं उनकी संरचना द्वारा प्रभावित होती है। रन्ध्रों की अधिक संख्या एवं अधिक समय तक खुला रहना अधिक कार्बनडाइऑक्साइड को प्रेरित करता है जिससे प्रकाश-संश्लेषण की दर तीव्र हो जाती हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
क्रेज शारीरिकी किन पौधों में पायी जाती है?
उत्तर
C4 पौधों में
प्रश्न 2.
ऐसे स्वपोषी जीव का नाम बताइए जिसमें हरितलवक अनुपस्थित रहता है।
उत्तर
सायनोबैक्टीरिया (Cynobacteria)।
प्रश्न 3.
प्रकाश-संश्लेषण सम्बन्धी शोध में प्रयुक्त शैवाल का नाम लिखिए।
उत्तर
क्लोरेला (Chlorella)।
प्रश्न 4.
C4 चक्र को किसने प्रस्तावित किया?
उत्तर
एम०डी० हैच तथा सी०आर० स्लैक ने।
प्रश्न 5.
प्रकाश अभिक्रिया की स्कीम-2 किसने प्रस्तुत की?
उत्तर
आर० हिल व बेन्डाल (R. Hill & Bendall, 1960) ने।
प्रश्न 6.
हरितलवक के किस भाग में प्रकाश अभिक्रिया होती है?
उत्तर
ग्रेना में।
प्रश्न 7.
हरितलवक के किस भाग में अप्रकाशिक अभिक्रिया होती है?
उत्तर
स्ट्रोमा में।
प्रश्न 8.
प्रकाश अभिक्रिया के दोनों तंत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर
प्रकाश तन्त्र (PS-I) एवं प्रकाश तन्त्र (PS-II)।
प्रश्न 9.
ऐसे दो पादपों के नाम लिखिए जिनमें रात्रि में रन्ध्र खुलते हैं?
उत्तर
नागफनी एवं अगेव।
प्रश्न 10.
हिल अभिक्रिया के तीन उत्पादों के नाम लिखिए।
उत्तर
ऑक्सीजन, ATP तथा NADPH2।
प्रश्न 11.
क्वाण्टम लब्धि किसे कहते हैं?
उत्तर
अवशोषित प्रकाश की प्रति क्वाण्टा में विमोचित ऑक्सीजन अणुओं की संख्या क्वाण्टम लब्धि (Quantum yield) कहलाती है।
प्रश्न 12.
NADP का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर
निमेटिनामाइड एडीनीन डाइफॉस्फेट।
प्रश्न 13.
C3 पादपों में CO2 ग्राही कौन होता है?
उत्तर
रिबुलोज वाइ फॉस्फेट (RuBP)।
प्रश्न 14.
C3 पौधों में CO2 ग्राही कौन होता है?
उत्तर
फास्फोइनोल पाइरुविक अम्ल (PEP)।
प्रश्न 15.
CAM चक्र किन पादपों में पाया जाता है?
उत्तर
मांसल पौधों में।
प्रश्न 16.
किसी प्रकाश संश्लेषी जीवाणु का नाम लिखिए।
उत्तर
क्लोरोबियम (Chlorobium)।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
रेडड्रॉप (लाल पतन) किसे कहते हैं?
उत्तर
राबर्ट इमरसन (Robert Emerson) ने पता लगाया कि जब पौधों को 680 mµ से अधिक की तरंगदैर्घ्य (लाल रंग) दी जाती है तब क्वाण्टा लब्धि में कमी आ जाती है, जिसे रेडड्राप (लाल पतन) कहते हैं।
प्रश्न 2.
प्रकाश संश्लेषण की रासायनिक अभिक्रिया के सारांश को प्रदर्शित करने वाले निम्न समीकरण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
प्रकाश संश्लेषण एक उपापचयी अभिक्रिया है। इसमें वायुमण्डलीय CO2 तथा अवशोषित जल का उपयोग करके क्लोरोफिल (Chlorophyll) तथा प्रकाश की उपस्थिति में ग्लूकोज (शर्करा) का निर्माण होता है तथा O2 उत्पाद के रूप में निकलती है।
हिल (1941) रुबेन तथा कामेन (1943) आदि ने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि प्रकाश संश्लेषण में O2 जल के प्रकाशीय अपघटन से प्राप्त होती है। उपरोक्त समीकरण में ग्लूकोज (Glucose) के एक अणु के निर्माण के लिए 6 अणु CO2 के तथा 12 अणु जल के प्रयुक्त होते हैं और 6 अणु जल के तथा 6 अणु O2 के निकल जाते हैं।
प्रश्न 3.
प्रकाश का गुण प्रकाश संश्लेषण क्रिया को किस तरह प्रभावित करता है?
उत्तर
प्रकाश संश्लेषी वर्णक दृश्य स्पैक्ट्रम की तरंगदैर्घ्य (400mµ – 800mµ) को अवशोषित कर सकते हैं। हरे पौधों में लाल प्रकाश में प्रकाश संश्लेषण सर्वाधिक तथा लाल शैवालों में नीले प्रकाश में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया सर्वाधिक होती है।
प्रश्न 4.
कम्पेशेसन बिन्दु क्या है?
उत्तर
संतुलन प्रकाश तीव्रता (Compensation point) शाम एवं सुबह के समय पौधों के लिए एक समय ऐसा आता है, जब पत्तियों और वायुमण्डल के मध्य गैसों का आदान-प्रदान नहीं होता अर्थात् कम प्रकाश प्रखरता के कारण प्रकाश संश्लेषण एवं श्वसन दरें समान हो जाती हैं। इस समय CO2 तथा O2 का वायुमण्डल से विनमय (exchange) नहीं होता है, इसे कम्पेशेसन बिन्दु कहते हैं।
प्रश्न 5.
सोलराइजेशन (Salarization) किसे कहते है?
उत्तर
अत्यधिक तीव्र प्रकाश में क्लोरोफिल का प्रकाशीय ऑक्सीकरण होने लगता है, इस स्थिति में प्रकाश-संश्लेषण की दर घट जाती है। इसे सोलराइजेशन (Salarization) कहते हैं।
प्रश्न 6.
श्वसन एवं प्रकाश श्वसन में अन्तर बताइए।
उत्तर
- श्वसन की क्रिया सभी पादपों में जबकि प्रकाश श्वसन की क्रिया केवल C3 पादपों में होती है।
- श्वसन क्रिया में ग्लूकोस प्रयुक्त होता है जबकि प्रकाश श्वसन क्रिया में ग्लाइकोलेट प्रयुक्त होता है।
प्रश्न 7.
आप कैसे सिद्ध करोगे कि प्रकाश संश्लेषण में प्रकाश की आवश्यकता होती है?
उत्तर
इस प्रयोग को सिद्ध करने के लिए गमले में लगा एक स्वस्थ पौधा लेकर पहले 48 घण्टे के लिए अंधेरे में रख देते हैं जिससे पत्तियों में संचित मण्ड समाप्त हो जाए। अब इस पौधे की किसी पत्ती पर दोनों ओर काले कागज की चौकोर पट्टी क्लिप (Clip) की सहायता से लगाते हैं। पौधे को धूप में रख देते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया आरम्भ हो जाती है तथा कुछ समय बाद पत्ती को तोड़कर उसका मण्ड परीक्षण (Starch test) करते हैं। परीक्षण से ज्ञात होता है कि पत्ती के कागज लगाए भाग में प्रकाश न मिलने के कारण मण्ड का निर्माण नहीं होता है तथा शेष भाग ने मण्ड (Starch) परीक्षण दिया।
प्रश्न 8.
प्रकाशिक तथा अप्रकाशिक अभिक्रिया में अन्तर लिखिए।
उत्तर
प्रकाशिक एवं अप्रकाशिक अभिक्रिया में अन्तर
प्रकाशिक अभिक्रिया | अप्रकाशिक अभिक्रिया | |
1. | इसके लिए प्रकाश आवश्यक है। | इसके लिए प्रकाश की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती है। |
2. | हरितलवक के ग्रेना (Granna) में होती है। | हरितलवक के स्ट्रोमा (Stroma) में होती है। |
3. | ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है। | CO2 प्रयुक्त होती है। |
4. | वर्णकों की आवश्यकता होती है। | वर्णक तन्त्र महत्वपूर्ण नहीं है। |
प्रश्न 9.
PS-I एवं PS-II में अन्तर लिखिए।
उत्तर
PS-I एवं PS-II में अन्तर
प्रकाश तन्त्र – I (PS – I) | प्रकाश तन्त्र – II (PS – II) | |
1. | इसका अभिक्रिया केन्द्र P700 होता है। | इसका अभिक्रिया केन्द्र P680 होता है। |
2. | यह प्रकाश फॉस्फेटीकरण के चक्रीय तथा अचक्रीय दोनों पदों में भाग लेता है। | यह केवल अचक्रीय फॉस्फेटीकरण में भाग लेता है। |
3. | यह PS-II से इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है। | यह प्रकाश जल अपघटन में इलेक्ट्रॉन लेता है। |
4. | यह इलेक्ट्रॉन NADP+ को देता है। | यह P700 को इलेक्ट्रॉन देता है। |
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रकाश श्वसन से आप क्या समझते हो? प्रकाश श्वसन में भाग लेने वाले कोशिकांगों के नाम लिखिए। प्रकाश श्वसन की क्रियाविधि समझाइए।
उत्तर
पौधों के प्रकाश संश्लेपी भाग में प्रकाश की उपस्थिति में सामान्य श्वसन के अतिरिक्त होने वाला श्वसन जिसमें O2 द्वारा कार्बनिक यौगिक ऑक्सीकृत होते हैं तथा ऊर्जा का उत्पादन नहीं होता है एवं CO2 विमुक्त होती हैं, को प्रकाश-श्वसन (Photorespiration) कहा जाता हैं। प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में भोज्य पदार्थों का श्वसन अभिक्रिया के समान विघटन होता है किन्तु ऊर्जा मुक्त नहीं होती है, इसलिए इसे नष्टकारी क्रिया भी माना जाता है।
प्रकाश-श्वसन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम क्रोटकोव (Krotkov, 1963) द्वारा किया गया। यह क्रिया केवल C3 पादपों में होती है। ऑटो वारबर्ग (Otto warberg, 1920) ने बताया कि O2 की उपस्थिति में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया संदमित (Retard) हो जाता है। ऑक्सीजन के इस प्रभाव को वारबर्ग (Warberg effect) कहते हैं। ओरगेन तथा बौ (Oregen and Bow 1971) ने वारबर्ग प्रभाव का स्पष्टीकरण करते हुए बताया कि O2 तथा CO2 में RUBISCO के लिए प्रतिस्पर्धा होती है। RUBISCO, CO2 की अधिकता में काबोंक्सीलेज के समान तथा O2 की उपस्थिति में ऑक्सीनेज एन्जाइम की तरह कार्य करता है। इस प्रकार RUBISCO ऑक्सीकृत होकर फॉस्फोग्लाइकोलिक अम्ल (2 कार्बन युक्त यौगिक) का निर्माण करता है। इसलिए इसे C2 चक्र (C2 cycle) या ग्लाइकोलेट चक्र (Glycolate cycle) कहा जाता है।
इस कारण से PGA का निर्माण नहीं होता है तथा CO2 के स्वांगीकरण की दर कम हो जाती है। इस चक्र का अध्ययन डेकर एवं टिओ (Deeker and Ti), 1959) द्वारा किया गया था। प्रकाश-श्वसन की सम्पूर्ण अभिक्रिया हरितलवक, पराऑक्सीसोम व माइटोकॉण्डूिया नामक तीन कोशिकांगों में पूर्ण होती है। ये अंग प्रकाश-श्वसन में एक इकाई की भाँति कार्य करते हैं।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
(i) क्रेज शारीरिकी
(ii) C4 पादपों की विशेषताएँ
उत्तर
(ii) C4 चक्र एवं C4 पादपों की विशेषताएँ (Characteristics of C4 Cycle and C4 plants)
- C4 पादप CO2 को अति निम्न सान्द्रता पर भी प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करने में सक्षम होते हैं। अतः जैविक दृष्टि से यह एक अनुकूल विशेपता है।
- C1 पादपों में प्रकाश श्वसन (Photorespiration) की क्रिया नहीं होने से इनकी उत्पादकता C, पादपों से अधिक होती है।
- C4 ‘चक्र का प्रमुख एन्जाइम (PEP carboxylase) CO2 की निम्न सान्द्रता पर भी क्रियाशील रहता है।
- C4 पादपों को कम जल वाले स्थान (शुष्क वातावरण) एवं उच्च तापक्रम (30 – 45°C) वाले क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है।
अतः उपरोक्त विशेषताओं से स्पष्ट है कि C4 पादप उष्णकटिबन्ध क्षेत्र में सर्वाधिक सफल पादप हैं।
प्रश्न 3.
केल्विन बेन्सन चक्र का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर
(अ) कैल्विन बेन्सन चक्र, C3 चक्र (Calvin Benson cycle, C3 cycle) – सन् 1946-53 के मध्य में केल्विन, बेन्सन एवं साथियों (Calvin, Benson and et al. 1946-53) ने प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का शर्करा में परिवर्तन के पथ की खोज रेडियोएक्टिव ट्रेसर तकनीक द्वारा की थी। इस प्रयोग के लिए उन्होंने एक कोशिकीय हरी-शैवाल क्लोरेला (Chlorella) एवं सिनेडे स्मस (Scendesmus) पर कार्बन-14 आइसोटोप युक्त 14CO2 का उपयोग किया था। इस अध्ययन के बाद उन्होंने बताया कि इस अभिक्रिया में तीन कार्बन परमाणु युक्त 3-फॉस्फोग्लिसिरिक अम्ल का निर्माण होता है। इसलिए इस प्रक्रम को C3 चक्र कहा जाता है। इस कार्य के लिए केल्विन एवं बेन्सन को 1961 में नोबेल पुरस्कार दिया गया है। इस चक्र की महत्वपूर्ण अभिक्रियाएँ इस प्रकार हैं –
1. राइबुलोस मोनोफॉस्फेट का फॉस्फोरिलीकरण (Phosphorylation of Ribose monophosphate) – अप्रकाशिक अभिक्रिया में CO2 ग्रहण करने वाला यौगिक 5 कार्बन युक्त शर्करा राइबुलोस 1, 5 बाइफॉस्फेट (RuBP) होता है। इसका निर्माण राइबुलोस मोनोफॉस्फेट के फॉस्फोपेन्टोकाइनेज एन्जाइम एवं ATP की उपस्थिति में होता है। एक ग्लूकोज अणु के निर्माण के लिए 6 अंणु CO2 ग्रहण करने के लिए 6 अणु राइबुलोज 1, -5 बाइफॉस्फेट प्रयुक्त होता है।
2. राइबुलोस-1, 5 बाइफॉस्फेट का कार्बोक्सिलीकरण (कार्बोक्सिलीकरण प्रावस्था) (Carboxylation of Ribose 1, 5 biphosphate (Carboxylation phase) ) – प्रथम फास्फोरिलीकरण द्वारा निर्मित राइबुलोस 1, 5 बाइफॉस्फेट CO2 ग्राही की भाँति कार्य करता है। इस अभिक्रिया में राइबुलोस 1, 5 बाइफॉस्फेट के 6 अणु कार्बोक्सिलेज एन्जाइम की उपस्थिति में 6 अणु कार्बन डाइ ऑक्साइड एवं 6 अणु जल के साथ क्रिया करके तीन अणु फास्फोग्लिरिक अम्ल के 12 अणुओं का निर्माण करते हैं। जिसे अप्रकाशिक अभिक्रिया का प्रथम स्थायी यौगिक कहते हैं।
3. फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का फॉस्फोरिलीकरण (Phosphorylation of phosphoglyceric acid) – कार्बोक्सिकरण अभिक्रिया में निर्मित 3-फास्फोग्लिसरिक अम्ल के 12 अणु फास्फोग्लिसरिक काइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में ATP के 12 अणुओं का प्रयोग 1, 3 डाइफास्फोग्लिसिरिक अम्ल के 12 अणुओं का निर्माण करते हैं।
4. 1, 3 डाइफॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का अपचयन (Reduction of 1, 3 disphosphoglyceric acid) – इस अपचयन अभिक्रिया में कार्बोक्सिलीकरण एवं फॉस्फोरिलीकरण से निर्मित 12 अणु 1, 3 डाइफॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का अपचयन प्रकाशिक अभिक्रियाओं में बनने वाली अपचयन सामर्थ्य NADPH + H+ के 12 अणुओं द्वारा होता है, जिसके फलस्वरूप फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड के 12 अणु निर्मित होते हैं। यह अभिक्रिया ट्रायोजफास्फेट डिहाइड्रोजिनेज एन्जाइम की उपस्थिति में होती है।
इस अभिक्रिया में निर्मित 3-फास्फोग्लिसरेल्डिहाइड के 12 अणुओं में से मात्र 2 अणु शर्करा (ग्लूकोज) 5 का निर्माण करते हैं जो बाद में सुक्रोज या स्टार्च में परिवर्तित हो जाते हैं। बचे हुए 10 अणु पुनयोंजन जैव रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा 6-अणु राइबुलोस मोनोफास्फेट का निर्माण करते हैं। जो रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेकर केल्विन चक्र की निरन्तरता को बनाए रखते हैं।
5. हेक्सोज शर्करा का निर्माण (संश्लेषण प्रावस्था) (Formation of haxose sugar synthetic phase) – अपचयन प्रावस्था से निर्मित 12 अणु फॉस्फोग्लिसटेल्डिहाइड में से 2 अणु निम्न जैव रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा ग्लूकोज का 1 अणु निर्मित करते हैं।
उपरोक्त सभी अभिक्रियाएँ ग्लाइकोलाइसिस प्रक्रिया के विपरीत क्रम में होने के कारण इसे ग्लाइकोलाइटिक उत्क्रमण (Glycolytic reversion) कहा जाता है।
प्रश्न 4.
प्रकाश संश्लेषी वर्णकों पर लेख लिखिए।
उत्तर
पादप प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण वर्णकों (Pigments) के रूप में करते हैं, इसलिए इन्हें प्रकाश संश्लेषणी वर्णक (Photosynthetic pigments) कहा जाता है। पादपों में मुख्यतः तीन प्रकार के वर्णक (Pigments) पाये जाते हैं :
1. पर्णहरित (Chlorophylls) : जल में विलेय होते हैं।
2. कैरोटिनॉइड्स (Carotenoids) : जल में अविलेय होते हैं।
3. फाइकोविलिन्स (Phycobillins) : जल में अविलेय होते हैं।
इनमें पर्णहरित मुख्य या प्रधान वर्णक है तथा अन्य सभी सहायक वर्णक हैं।
1. पर्णहरित (Chlorophyll) – पर्णहरित हरे रंग का महत्त्वपूर्ण वर्णक है, जो प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में प्रयुक्त होता है। पादप जगत में लगभग 7 प्रकार के वर्णक पाये जाते हैं- (Chl’a’, Chl’b’, Chl’c’, Chl’d’, Chle’, Becterioviridin एवं Bacteriochlorophyll) इनमें Chl’a’ को सार्वत्रिक वर्णक कहा जाता है, जो जीवाणुओं को छोड़कर सभी प्रकाश संश्लेषी पादपों में पाया जाता है। क्लोरोफिल-b (Chl ‘b’) सहायक वर्णक की भाँति व्यवहार प्रदर्शित करता है, यह सभी प्रकाश संश्लेषी पादपों एवं ‘हरे शैवालों में विद्यमान रहता है। क्लोरोफिल वर्णक कार्बनिक विलायकों (Organic solvents) में विलेय होते हैं। क्लोरोफिल ‘b’ के घुलनशीलता सर्वाधिक होती है।
पर्णहरित अणु की संरचना (Structure of Chlorophyll molecule) – सर्वप्रथम सन् 1912 में विल्सटॉटर, स्टॉल तथा फिशर ने क्लोरोफिल की रासायनिक संरचना का अध्ययन किया। क्लोरोफिल एक ध्रुवीय अणु (Polar Molecule) है। इसमें एक सुविकसित पोरफाइन वलय (Porphyne Ring) द्वारा निर्मित शीर्ष (Head) तथा फाइटोल श्रृंखला (Phytol Chain) द्वारा निर्मित पूँछ (Tail) होती है। क्लोरोफिल अणु का शीर्ष में चार पाइरोल वलय (rings) विद्यमान होती है, जो परस्पर मेथिल बन्धों द्वारा संयुक्त होकर चक्रीय टेट्रापाइरोल वलय बनाती है। टेट्रापाइरोल वलय के केन्द्र में मैग्नीशियम का आयनिक परमाणु पाया जाता है। चतुर्थ पाइरोल रिंग एक लम्बी एल्कोहॉल श्रृंखला से जुड़ती है, जिसे फाइटोल पूँछ (Phytol tail) कहा जाता है। क्लोरोफिल ‘a’ का अणुसूत् C55H72O5N4Mg होता है तथा क्लोरोफिल ‘b’ का अणुसूत्र C55H70O5N4Mg होता है। क्लोरोफिल ‘a’ अणु में पोरफाइरिन सिरे के तीसरे कार्बन पर मेथिल (-CH3) समूह संलग्न रहता है जबकि क्लोरोफिल ‘b’ में इस स्थान पर एल्डिहाइड समूह होता है। क्लोरोफिल ‘a’ नीले हरे रंग का तथा क्लोरोफिल ‘b’ पीले-हरे रंग का वर्णक होता है।
(2) कैरोटिनॉइड्स (Carotenoids) – सामान्यतः पादपों में क्लोरोफिल के साथ पाये जाने वाले वर्णक को कैरोटिनॉइड्स कहा जाता है। ये वर्णक उन विकिरणों को अवशोषित करते हैं तथा ऊर्जा को क्लोरोफिल तक पहुँचाते हैं, जिनका अवशोषण क्लोरोफिल द्वारा नहीं किया जा सकता है। अतः इन्हें सहायक वर्णक भी कहा जाता है। सर्वप्रथम कैरोटिनॉइड्स को वेकेनरोडर (Wackenroder, 1831) ने गाजर द्वारा प्राप्त किया। पौधो में दो प्रकार के कैरोटिनॉइड पाये जाते हैं- कैरोटिन तथा जैन्थोफिल
- कैरोटिन (Carotene) – ये हाइड्रोकार्बन (hydrocarbons) होते हैं। इनका मूलानुपाती सूत्र C40H56 होता है। इन वर्णकों का रंग सामान्यतः लाल होता है। उदाहरण-लॉइकोपिन, α कैरोटिन, β कैरोटिन।
- पर्णपीत या जैन्थोफिल (Xanthophyll or Carotenoles) – इस प्रकार के वर्णकों में कार्बन, हाइड्रोजन के अतिरिक्त ऑक्सीजन परमाणु भी पाये जाते हैं। इनका मूलानुपाती सूत्र C40H56O2 होता है। इनका रंग पीला या भूरा होता है। उदाहरण-ल्यूटिन, जियाजैथिन, क्रिप्टोजैन्थिन, नियोजैन्थिन आदि। सभी हरे पादपों में जैन्थोफिल में ल्यूटिन तथा कैरोटिन में B-कैरोटिन पाये जाते हैं।
3. फाइकोबिलिन्स (Phycobilins) – ये वर्णक केवल लाल व नीले हरे शैवालों में पाये जाते हैं तथा दो प्रकार के होते हैं –
- फाइकोइरीथ्रिन (Phyeoerythrin) – यह लाल रंग का वर्णक है जो लाल शैवालों (रोडोफाइसी) (Rhodophyceae) में पाया जाता है।
- फाइकोसायनिन (Phycocyanin) – यह नीले रंग का वर्णक है जो प्रमुखतः नील हरित शैवालों (Cyanophyceae) में पाया जाता है।