RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 पादप ऊतक संवर्धन
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 पादप ऊतक संवर्धन
Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 16 पादप ऊतक संवर्धन
RBSE Class 12 Biology Chapter 16 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 12 Biology Chapter 16 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सर्वप्रथम परागकोश संवर्धन द्वारा अगुणित पादप विकसित करने का श्रेय किसे प्राप्त है-
(अ) जौहरी एवं माहेश्वरी
(ब) हैबरलैण्ड
(स) पी.आर.व्हाइट
(द) गुहा एवं माहेश्वरी
उत्तर:
(द) गुहा एवं माहेश्वरी
प्रश्न 2.
संक्रमित पादप से रोगरहित पादप विकसित किए जाते हैं-
(अ) भ्रूण संवर्धन द्वारा
(ब) जड़ संवर्धन द्वारा
(स) परागकण संवर्धन द्वारा
(द) प्ररोह शीर्ष संवर्धन द्वारा
उत्तर:
(द) प्ररोह शीर्ष संवर्धन द्वारा
प्रश्न 3.
पादप ऊतक संवर्धन का जनक कहलाते हैं-
(अ) रॉबर्ट हुक
(ब) हैबरलैण्ड
(स) स्टीवर्ड।
(द) कोकिंग
उत्तर:
(ब) हैबरलैण्ड
प्रश्न 4.
Ti प्लाज्मिड पाया जाता है-
(अ) ए. ट्यूमेफेसिएन्स में
(ब) ए. राइजोजिन्स में
(स) ई.कोली में
(द) बैसिलस थूरिजिएन्सिस में
उत्तर:
(अ) ए. ट्यूमेफेसिएन्स में
प्रश्न 5.
पादप कोशिका भित्ति के एन्जाइमी अपघटन से प्रोटोप्लास्ट प्राप्त करने का श्रेय है-
(अ) टी. मुरासिगे को
(ब) ई. बॉल को
(स) एफ. डब्लू बेन्ट को
(द) ई.सी. कोकिंग को
उत्तर:
(द) ई.सी. कोकिंग को
प्रश्न 6.
त्रिगुणित पादप संवर्धन हेतु निम्नलिखित में से कौन-सा कतॊतक प्रयुक्त होता है-
(अ) प्ररोह तन्त्र
(ब) भ्रूण
(स) भ्रूणपोष
(द) परागकोष
उत्तर:
(स) भ्रूणपोष
प्रश्न 7.
पादपों में अप्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण किया जाता है-
(अ) जीन गन द्वारा
(ब) वैद्युत छिद्रण द्वारा
(स) सूक्ष्म इन्जेक्शन द्वारा
(द) एग्रोबैक्टीरियम द्वारा
उत्तर:
(द) एग्रोबैक्टीरियम द्वारा
प्रश्न 8.
कीट प्रतिरोधी Bt जीन निम्नलिखित में से किसमें पाया जाता है-
(अ) बैसीलस सबटिलिस
(ब) बैसीलस थूरिन्जिएन्सिस
(स) बैसीलस एन्थेसिस
(द) स्यूडोमोनास सिट्राई
उत्तर:
(ब) बैसीलस थूरिन्जिएन्सिस
प्रश्न 9.
‘गोल्डन राइस’ में निम्नलिखित में से किसकी पूर्ति हेतु जीन स्थानान्तरित किया गया?
(अ) विटामिन A
(ब) विटामिन C
(स) विटामिन D
(द) विटामिन B
उत्तर:
(अ) विटामिन A
प्रश्न 10.
‘फ्लैवर सावर’ टमाटर की विशेषता है-
(अ) सूखारोधी
(ब) उच्च लवण सान्द्रता प्रतिरोधी
(स) कठोर फलभित्ति
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(स) कठोर फलभित्ति
प्रश्न 11.
बीटी (Bt) जीन-युक्त कपास कहलाती है
(अ) एसेप्टिक कॉटन
(ब) रोमिल कॉटन
(स) गोल्डन कॉटन
(द) किलर कॉटन
उत्तर:
(द) किलर कॉटन
RBSE Class 12 Biology Chapter 16 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पूर्णशक्तता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
कोशिका सिद्धान्त के अनुसार पादप की प्रत्येक कोशिका में जिस पादप की यह कोशिका है, के सभी लक्षण विद्यमान होते हैं तथा इसमें उस सम्पूर्ण पादप को विकसित करने की क्षमता होती है। पादप कोशिका (Plant cell) की यह क्षमता ही पूर्णशक्तता (Totipotency) कहलाती है।
प्रश्न 2.
कृत्रिम बीज क्या है?
उत्तर:
कृत्रिम बीज (Artificial/Synthetic seed)-संपुटीकृत कायिक भ्रूण को ही कृत्रिम बीज कहते हैं।
प्रश्न 3.
कैलस किसे कहते हैं?
उत्तर:
कैलस (Callus)-नवसंवर्धित विभज्योतकी कोशिकाओं का असंगठित समूह कैलस अथवा किण कहलाता है।
प्रश्न 4.
अगुणित पादप संवर्धन का क्या महत्व है?
उत्तर:
अगुणित पादप प्राप्त करने की तकनीक का उपयोग पादप प्रजनन में शुद्ध वंश क्रम प्राप्त करने में किया जाता है। सोलेनेसी कुल के पादपों में सबसे अधिक अगुणित पादप विकसित किए गए हैं।
प्रश्न 5.
ऊतक संवर्धन में प्रयुक्त संवर्धन माध्यम कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
प्रायोगिक आवश्यकताओं के आधार पर संवर्धन माध्यम तरल अथवा अर्ध ठोस (Semi solid) हो सकता है। सामान्य प्रयोगों के लिए एम.एस. माध्यम का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 6.
सूक्ष्म प्रवर्धन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सूक्ष्म प्रवर्धन (Micropropation)-ऊतक संवर्धन विधि से पादप जनन की क्रिया सूक्ष्म प्रवर्धन कहलाती है।
प्रश्न 7.
प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण की किन्हीं तीन विधियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण की तीन विधियाँ हैं-
- जीन गन
- वैद्युत छिद्रण
- लिपोसोम की मध्यस्थता द्वारा जीन स्थानान्तरण
प्रश्न 8.
अप्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अप्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण-अप्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण विधि के अन्तर्गत स्थानान्तरित DNA का स्थानान्तरण किसी वाहक के द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 9.
कृत्रिम (संपुटीकृत) बीज के मुख्य घटक क्या हैं?
उत्तर:
कृत्रिम (संपुटीकृत) बीज के मुख्य घटक हैं-भ्रूण व प्ररोह कालिका, पोषक पदार्थ, पादप वृद्धि नियामक, पीड़कनाशी व प्रतिजैविक पदार्थ।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए-
(अ) संवर्धन माध्यम
(ब) प्रोटोप्लास्ट
(स) कर्तेतक
(द) पराजीनी पादप
उत्तर:
(अ) संवर्धन माध्यम (Culture Medium)—वह कृत्रिम । माध्यम जिसमें पादप कोशिकाओं, ऊतक अंगों तथा सम्पूर्ण तन्त्र को संवर्धित करते हैं, संवर्धन माध्यम कहलाता है।
(ब) केतक (Explant)-पौधे के वे भाग जिनका उपयोग ऊष्मा संवर्धन हेतु किया जाता है जैसे-विभज्योतक ऊतक, जड़ तथा पत्ती, पुष्प व पुष्पीय भाग आदि।
(द) पराजीनी पादप (Transgenic plants)-ट्रांसजेनिक पादप आनुवंशिकतः अभियान्त्रित (Engineered) पादप हैं जिन्हें पादप प्रजनन उपगमन (Approch) में पुनर्योगज डी.एन.ए तकनीक (Recombinant DNA Technique) द्वारा नई विशेषताओं का समावेश कर विकसित किया जाता है। ये नवीन गुण उनके संततियों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी बने रहते हैं।
RBSE Class 12 Biology Chapter 16 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जीन स्थानान्तरण की माइक्रोइंजेक्शन विधि को समझाइए।
उत्तर:
सूक्ष्म इंजेक्शन विधि (Mirco injection method)—इस विधि के द्वारा वांछित DNA को सीधे ही पादप जीवद्रव्यों अथवा कोशिकाओं में 0.5-1.0 माइक्रोमीटर व्यास की काँच की सूई अथवा माइक्रोपिपेट की सहायता से कोशिकाद्रव्य अथवा केन्द्रक में अन्तः क्षेपित (inject) किया जाता है। पृथक्कृत जीवद्रव्यकों में जीन स्थानान्तरण की यह उपयुक्त विधि है।
प्रश्न 2.
किन्हीं दो कीटपीड़क प्रतिरोधी पादपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कीट प्रतिरोधी पादप-
- बीटी कपास-इसे किलर कपास के नाम से भी जाना जाता है। बीटी कपास में बैसीलस यूरेनजिएंसिस (Bacillus thuringiensis) नामक जीवाणु से तैयार की जाती है।
- बी.टी. ब्रिजल ( बीटी बैंगन, B.T. Brinjal)-बीटी बैंगन जिसे बी.टी. कॉटन के रूप में विकसित किया गया है। यह आनुवंशिक संशोधित फसल है। इसमें भी बीटी जीवाणु का प्रयोग होता है।
प्रश्न 3.
ऊतक संवर्धन के विभिन्न चरणों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ऊतक संवर्धन के विभिन्न चरण निम्नलिखित हैं-
शून्य चरण—इस चरण को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- कर्णोतकों का चयन एवं पूर्ण उपचार
- कत्ततकों का सतही निर्जर्मीकरण ।
प्रथम चरण-संवर्धन आरम्भन—इस चरण में सतही निर्जर्गीकृत कत्ततकों को संवर्धन माध्यम पर स्थानान्तरित कर संवर्धन कक्ष में रखा जाती है। संवर्धन कक्ष में इनसे कैलस अथवा अंग जनन प्रारम्भ होता है।
द्वितीय चरण–प्रथम चरण में स्थापित संवर्धनों को नए पोषण माध्यम पर स्थानान्तरित कर उनका गुणन करना।
तृतीय चरण–सम्पूर्ण पादप का पुनरुद्भवन करना।
चतुर्थ चरण-ऊतक संवर्धन द्वारा विकसित पादपों का दृढ़ीकरण एवं वातानुकूलन।
प्रश्न 4.
सामान्य भ्रूण व कायिक भ्रूण में क्या अन्तर है?
उत्तर:
सामान्य भ्रूण-संतति कोशिकाओं से निर्मित भ्रूण सामान्य भ्रूण कहलाता है। ये भ्रूण जननिक अथवी संतति कोशिकाओं से विकसित होता है। सामान्य भ्रूण द्विगुणित होता है।
कायिक भ्रूण-जिस भ्रूण का विकास कायिक कोशिकाओं से होता है, उसे कायिक भ्रूण कहते हैं। कायिक भ्रूण अगुणित अथवा द्विगुणित हो सकते हैं। भ्रूण का अगुणित अथवा द्विगुणित होना उन कोशिकाओं की प्रकृति पर निर्भर करता है जिनमें उनका विकास हुआ है।
प्रश्न 5.
सूक्ष्म प्रवर्धन की विधियों के नाम व उनकी उपयोगिता बताइए।
उत्तर:
सूक्ष्म प्रवर्धन की विधियों के नाम-
- कैलस संवर्धन (Callus culture)—इसे दो भागों में बाँटा जाता है-
- अंगोद्भवन (Organogenesis)
- कायिक भ्रूणोद्भवन (Somatic embryo genesis)
- अंग संवर्धन
- भ्रूण संवर्धन
- परागकोष तथा परागकण संवर्धन
- कोशिका निलम्बन संवर्धन
- जीवद्रव्य संवर्धन
सूक्ष्म प्रवर्धन के उपयोग-सूक्ष्म प्रवर्धन तकनीक से बहुत ही कम समय व कम स्थान पर अधिक संख्या में पौधों का उत्पादन किया जा सकता है। इस तकनीक के उपयोग से आर्किड्स की कई जातियों जैसे-सिम्बिडियम (Cymbidium), कटेलीया (Cattleya), डेन्ड्रोबियम (Dendrobium) वाण्डी (Vanda) तथा कई शोभाकारी पादपों जैसे—गुलदाऊदी, कार्नेशन, जरबेरा, बिगोनिया आदि का बहुगुणन व्यावसायिक स्तर पर किया जा चुका है। भारतवर्ष में कई विश्वविद्यालय तथा संस्थाओं में वानिकी व बागवानी महत्व के अनेकों पादपों का इस विधि की सहायता से सफलतापूर्वक गुणन किया जा चुका है।
प्रश्न 6.
भ्रूण बचाव तकनीक क्या है? इसकी उपयोगिता लिखिए।
उत्तर:
भ्रूण बचाव तकनीक (Embryo rescue technique)-अन्तरजातीय संकरण से बनने वाले दुर्लभ भ्रूणों के बचाव में इस तकनीक का उपयोग किया जाता है अन्तरजातीय संकरण से निर्मित भ्रूण बहुत संवेदनशील होते हैं। नई किस्म के पौधों के विकास के लिए इन भ्रूणों का संरक्षण एवं नष्ट होने से बचाना बहुत आवश्यक होता है। भ्रूण बचाव तकनीक के माध्यम से इन भ्रूणों का बचाव एवं संरक्षण किया जाता है।
प्रश्न 7.
Ti प्लाज्मिड पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
Ti प्लाज्मिड मृदा में पाए जाने वाले तथा द्विबीजपत्री पादपों को संक्रमित करने वाले जीवाणु एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमेफेसिएंस (Agrobacterium tumcfaciens) में पाया जाता है। यह जीवाणु संक्रमित पादपों में अनियंत्रित कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है। यही कारण है कि इनमें पीटिका या अर्बुद (Gall) का निर्माण हो जाता है। इस पीटिका को किरीट पिटिका या क्राऊन गॉल (Crown gall) कहा जाता है। पादपों में अनियंत्रित कोशिका विभाजन वे इसके कारण होने वाला ब्राऊन गॉल का निर्माण एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमेफेसिएंस जीवाणु में उपस्थित टी.आई. (Ti = Tmour inducing) प्लाज्मिड के कारण होता है। पादप कोशिकाओं में ए. ट्यूमेफेसिएंस के संक्रमण की प्रक्रिया के दौरान टी.आई. प्लाज्मिड की एक प्रति का समाकलन (Iutegration) परपोषी के संजीन (Genome) में हो जाता है। परपोषी के संजीन में समाकलित होने वाले Ti DNA के खण्ड को T-DNA कहते हैं।
प्रश्न 8.
ऊतक संवर्धन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ऊतक संवर्धन (Tissue culture)-पादप जीवद्रव्यक, कोशिका, ऊतक अंग अथवा सम्पूर्ण तंत्र को निर्जर्गीकृत (Sterlite) एवं नियन्त्रित (Controlled) अवस्थाओं में रासायनिक रूप से ज्ञात संवर्धन माध्यम पर संवर्धित करने की प्रक्रिया ऊतक संवर्धन (Tissue culture) कहलाती है। पादप ऊतक संवर्धन को प्रथम प्रयास जर्मनी के वैज्ञानिक गोटलिब हेबरलैण्ड द्वारा वर्ष 1902 में किया गया था।
RBSE Class 12 Biology Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ऊतक संवर्धन के इतिहास पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
ऊतक संवर्धन का इतिहास (History of Tissue Culture)—ऊतक संवर्धन का इतिहास कोशिका (Cell) की खोज के साथ प्रारम्भ होता है। इस क्षेत्र में सर्वप्रथम रॉबर्ट हुक (Robert Hook) नामक वैज्ञानिक ने वर्ष 1665 में सर्वप्रथम कोशिका की खोज कर पहला कदम रखा। इसके पश्चात् सन् 1839 में मैथियास जैकब स्लाइडेन तथा थियोडोर खान ने कोशिका सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त के अनुसार, कोशिका शरीर की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। इस सिद्धान्त को आगे बढ़ाते हुए रूडोल्फ विरच्यून ने स्पष्ट किया कि प्रत्येक कोशिका अपनी पूर्ववर्ती कोशिका से निर्मित होती है। इस तथ्य के आधार पर प्रस्तुत कोशिका सिद्धान्त जीव विज्ञान के क्षेत्र में मील का पत्थर सिद्ध हुआ। आधुनिक कोशिका सिद्धान्त के अनुसार-
- कोशिका शरीर की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।
- प्रत्येक नवीन कोशिका का निर्माण उसकी पूर्णवर्ती कोशिका से होता है।
- कोशिका में सभी प्रकार की उपापचयी (Metabolic) क्रियाएँ समान होती हैं।
- सजीवों में आनुवंशिक सूचनाओं का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरण कोशिका के माध्यम से ही होता है।
कोशिका सिद्धान्त कहता है कि किसी पादप की प्रत्येक कोशिका में उस पादप के सभी लक्षण विद्यमान होते हैं तथा उस कोशिका में उस पादप को विकसित करने की क्षमता पायी जाती है। पादप कोशिका में पायी जाने वाली यह क्षमता पूर्णशक्तता (Totipotancy) कहलाती है। पूर्णशक्तता शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1909 में मौर्गन नामक वैज्ञानिक द्वारा किया गया था। पादप कोशिका से पूर्ण पादप के विकास की संकल्पना सर्वप्रथम 1907 में जर्मन वैज्ञानिक हैबरलैण्ड ने प्रस्तुत की। उल्लेखनीय है कि अधिकांश जन्तुओं में पूर्ण शक्तता की क्षमता का अभाव होता है।
पादप ऊतक संवर्धन (Plant tissue Culture) का प्रथम प्रयास 1902 में वैज्ञानिक मोटलिब हेबरलैण्ड द्वारा किया गया था। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि पादप जीवद्रव्यक, कोशिका, ऊतक, अंग अथवा सम्पूर्ण तन्त्र को निर्जर्मीकृत (Sterile) एवं नियन्त्रित (Controlled) अवस्थाओं में रासायनिक रूप से ज्ञाते संवर्धन माध्यम पर संवर्धित करने की प्रक्रिया ऊतक संवर्धन (Tissue culture) कहलाती है।
ऊतक संवर्धन के क्षेत्र में वैज्ञानिकों द्वारा अनेक खोजें एवं योगदान किया गया। इसके अन्तर्गत 1922 में डब्ल्यू. के रॉबिन्स ने प्ररोह तथा शीर्ष को सफलतापूर्वक संवर्धन किया। 1926 में एफ.डब्लू. बेण्ट द्वारा वृहिद हार्मोन ऑक्सिन की खोज की गई। दीर्घकालिक वृद्धिशील संवर्धनों की स्थापना आर.जे. मोगेर्ट व साथियों द्वारा 1939 में की गयी। 1946 में बॉल द्वारा प्ररोह शीर्ष संवर्धनों द्वारा सम्पूर्ण पादप का विकास किया गया। 1959 में जे. रेनर्ट (J. Renneret) द्वारा गाजर के निलम्बन संवर्धनों से भ्रूण को विकास किया गया। इसी श्रृंखला में एस. गुहा मुखर्जी व एस.सी. माहेश्वरी द्वारा धतूरे के परागकणों के संवर्धन द्वारा सर्वप्रथम अगुणित पादप विकसित किए गए। वर्ष 1983 में एम.डी. चिल्टन द्वारा तम्बाकू के ट्रांसजीनी पादप का संवर्धन किया गया।
पादप ऊतक संवर्धन के क्षेत्र में शोध एवं अनुसंधान निरन्तर जारी हैं, इस क्षेत्र में वैज्ञानिकों द्वारा अनेक सफलताएँ प्राप्त की गयी हैं।
प्रश्न 2.
पराजीनी पादप क्या हैं? इनके विकास व उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पराजीनी पादप (Transgenic Plants)-ट्रांसजैनिक पादप आनुवंशिकतः अभियान्त्रित (Engineered) पादप हैं जिन्हें पादप प्रजनन उपगमन (Approch) में पुनयोंगज डी.एन.ए. तकनीक (Recombinant DNA Technique) द्वारा नई विशेषताओं का समावेश कर विकसित किया जाता है। ये नवीन गुण उनकी सन्ततियों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी उपस्थित रहते हैं। आनुवंशिकतः अभियान्त्रित जीवों को ही आनुवंशिकत: रूपान्तरित जीव (Genetically Modified Organism-GMOs) कहते हैं। इस प्रकार के पादपों से प्राप्त खाद्य उत्पादों को आनुवंशिकत: रूपान्तरित खाद्य कहा जाता है।
जीन अभियान्त्रिकी तकनीक की सहायता से एकबीजपत्री व द्विबीजपत्री की अनेक पादप जातियों के ट्रांसजैनिक पौधे तैयार कर इनके प्रयोगशाला से बाहर कृषि में परीक्षण किए गए हैं।
पादप जातियों के पराजीनी (ट्रांसजैनिक) पादप निम्नलिखित चरणों में विकसित किए जाते हैं-
- वाहक (Vector) का चयन एवं स्थानान्तरित किए जाने वाले जीन को पृथक करना।
- पुनयोंगज प्लाज्मिड का निर्माण एवं एग्रोबैक्टीरियम का रूपान्तरण।
- रूपान्तरित एग्रोबैक्टीरियम का पादप कोशिकाओं में स्थानान्तरण।
- रूपान्तरित पादप कोशिकाओं का चयन, संवर्धन एवं पुनर्जनन।
- विकसित पराजीनी पादपों में वांछित जीन की अभिव्यक्ति।
पराजीनी पादपों से सम्बन्धित कृषि व औषधि विज्ञान में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ
1. कीट-प्रतिरोधकता (Insect resistance)–बैसीलस थुरेनजिएंसिस (Bacillus thuringiensis) नामक जीवाणु जिसे संक्षेप में Bt के नाम से सम्बोधित किया जाता है, प्राकृतिक रूप से मृदा में पाया जाता है। इस जीवाणु की सबसे पहले वर्ष 1911 में पहचान की गयी, उसी समय यह खोज की गयी कि इसके द्वारा 4 शलभ जातियों के लार्वा की मृत्यु हो गयी। 1961 में अमेरिका में इसका जैव कीटनाशी (Biopesticide) के रूप में पंजीयन किया गया। इस जीवाणु में Bt जीन उपस्थित होता है जो कीटनाशी प्रोटीन का संकेतने करता है। इस जीन को क्राई (Cry) जीन भी कहा जाता है। इस जीन को Bt जीवाणु से पृथक कर इसे कपास में स्थानान्तरित किया गया तथा इस प्रकार विकसित कपास की किस्म Bt कपास अथवा किलर कपास (Killer cotton) कहलाती है। यह कपास गोलक शलभ (Boll worm) के प्रति प्रतिरोधी होती है।
2. शाकनाशी प्रतिरोधकता (Herbicide resistance)-सामान्यतः अधिकांश शाकनाशी पौधों को इनमें आवश्यक अमीनो अम्लों के संश्लेषण को निरोधित कर मारते हैं। जैसे-ग्लाइफोसेट (Glyphosate) शाकनाशी एवं एन्जाइमें 5-इनोल पाइरूविल शिकीमेट-3-फॉस्फोसिन्थेज (EPSPs) की क्रियाशीलता का दमन करता है, जो एरोमेटिक अमीनो अम्लों के संश्लेषण में उपयोग किया जाता है। अनेक पादपों में EPSPs एन्जाइम के अधिक उत्पादन से सम्बन्धित जीन को स्थानान्तरित करके ग्लाइफोसेट के प्रभाव को कम किया गया है। टमाटर, पिटुनिया आदि में इस प्रकार के पराजीनी पादप विकसित किए जा चुके हैं। आनुवंशिकी अभियान्त्रिकी तकनीक द्वारा फसलों व आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण प्रतिबल प्रतिरोधकता वाले पराजीनी पादप उत्पन्न किए जा चुके हैं।
3. नरबंध्यता उत्पन्न करना (Development of male sterility)-पादप प्रजनन में संकरण हेतु प्रयोगों में बन्ध्य नर (Sterile male) पादप अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। बन्ध्य नर विकसित होने पर विपुंसन (Emasculation) जैसी क्रियाओं पर समय, श्रम व धन व्यय करने की आवश्यकता नहीं रहती है। बैसिलस एमाइलोलिक्वेफिसिएन्ज (Bacillus amyloliquefaciens) से प्राप्त बारनेज जीन (Barnase gene) को एग्रोबैक्टीरियम की सहायता से तोरिया (Rape seed) के संजीन से समाकलित कर नर बन्ध्य पादप प्राप्त किए जा सकते हैं। बारनेज जीन द्वारा परागकोषों में टेपिटल आर.एन.ए. नष्ट हो जाता है जिससे बन्ध्य नर पाप विकसित होते हैं।
4. फलों में विलम्बित परिपक्वन (Delayed fruit ripening)-अमेरिका में विकसित पराजीनी टमाटर-फ्लेवर सावर (Flavr savr) टमाटर की एक आनुवंशिकतः अभियांत्रित किस्म है। इस किस्म के टमाटर सामान्य टमाटरों की अपेक्षा अधिक समय तक सुस्वादिष्ट अवस्था में रह सकते हैं। टमाटर की इस किस्म का विकास कोशिका भित्ति को अपघटित करने वाले एन्जाइम पौलीगेलेक्ट्रोनेज (Polygalacturonase) की मात्रा को कम कर के किया गया। यह एन्जाइम फलों के पकने के लिए उत्तरदायी होता है।
5. पराजीनी पादप जैव किण्वणक (Transgenic plant bioreactor)-आनुवंशिकत: रूपान्तरित पादपों को जैवकिण्वकों की तरह उपयोग में लिया जाता है। इस प्रकार के ट्रांसजैनिक पादपों में विभिन्न प्रकार के रसायनों का निर्माण होता है। जैव प्रौद्यौगिकी का यह क्षेत्र जैव आण्विक कृषि के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न 3.
जीन स्थानान्तरण की अप्रत्यक्ष (वाहक निर्देशित) विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जीन स्थानान्तरण की अप्रत्यक्ष ( वाहक निर्देशित ) विधियों का वर्णन निम्नलिखित हैं-
(अ) वाहक निर्देशित या अप्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण-इस विधि में स्थानान्तरित किए जाने वाले DNA का स्थानान्तरण किसी वाहक के द्वारा किया जाता है। इसकी तीन विधियाँ हैं-
1. एग्रोबैक्टीरियम निर्देशित जीन स्थानान्तरण-इस प्रकार का जीन स्थानान्तरण ट्यूमर प्रेरक प्लाज्मिड (Tumour inducing plasmid; Ti Plasmid) पर आधारित है। Ti प्लाज्मिड मृदा में पाये जाने वाले तथा द्विबीजपत्री पादपों को संक्रमित करने वाले जीवाणु एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमेफिसिएंस (Agrobacterium tumefaciens) में पाया जाता है।
यह जीवाणु संक्रमित पादपों में अनियंत्रित कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है जिसके कारण उनमें पीटिका या अर्बुद (Gall) का निर्माण हो जाता है। इस पीटिका को किरीट पिटिका या क्राऊन गॉल (Crown gall) कहते हैं। पादपों में अनियन्त्रित कोशिका विभाजन व इसके कारण होने वाला क्राऊन गॉल का निर्माण एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमेफिसिएंस जीवाणु में उपस्थित टी.आई. (Ti = Tumour inducing) प्लाज्मिड के कारण होता है। पादप कोशिकाओं में ए. ट्यूमेफिसिएंस के संक्रमण की प्रक्रिया के दौरान टी.आई. प्लाज्मिड की एक प्रति का समाकलन (Integration) परपोषी के संजीन (Genome) में हो जाता है। परपोषी के संजीन में समाकलित होने वाले Ti के डी.एन.ए को खण्ड T-DNA (Transfer-DNA = स्थानान्तरित डी.एन.) कहलाता है। पादपों में ए. ट्यूमेफेसिएन्स के संक्रमण की प्रक्रिया Ti प्लाज्मिर्ड तथा एग्रोबैक्टीरियम में गुणसूत्रे पर (सह संयोजी रूप से बन्द वृत्ताकार डी.एन.ए.- Covalently closed circular . DNA; CCC-DNA) स्थित जीनों द्वारा नियंत्रित रहती है।
ट्रांसफर डी.एन.ए के दोनों सिरों पर 25 क्षारक युग्मों या न्यूक्लियोटाइडों का सीधे दोहराया (Direct repeats) गया क्रम होता है, जो T-DNA को बायाँ व दायाँ सिरा कहलाते हैं। पादप कोशिका में जिस जीन का स्थानान्तरण करना होता है। उसे इन दोनों सिरों के मध्य समायोजित या समाकलित किया जाता है। पादपों में एग्रोबैक्टीरियम के संक्रमण के कारण या तो पिटिका का निर्माण होता है अथवा ऐमिल मूल (Hairy roots) विकसित होती है। ये दोनों प्रक्रियाएँ एग्रोबैक्टीरियम की प्रजातियों पर निर्भर करती है। परन्तु एग्रोबैक्टीरियम के संक्रमण द्वारा परपोषी की कोशिकाएँ रूपान्तरित हो जाती हैं।
एग्रोबैक्टीरियम ट्युमीफेसियन्यस के Ti प्लाज्मिड के द्वारा पादपों में ट्यूमर होने का खतरा बना रहता है। अत: ट्रांसजैनिक पादप विकसित करने हेतु ट्यूमर प्रेरित करने वाले जीन (T-DNA) को पृथक कर उसके स्थान पर वांछित जीन को संयोजित कर इस रूपान्तरित ‘Ti प्लाज्मिड को एग्रोबैक्टीरियम में उपस्थित कर दिया जाता है। अब इस वांछित जीन युक्त एग्रोबैक्टीरियम का उस पादप के ऊतकों अथवा संवर्धनों के साथ यह संवर्धन किया जाता है, जिसमें इस वांछित जीन को स्थानान्तरण करना है। सामान्यतः टमाटर, तम्बाकू, पिटुनिया, गुलाब आदि की पत्तियों की बिम्बों या वलयों (Discs = वृत्ताकारे टुकड़े) का सहसंवर्धन हेतु उपयोग किया जाता है, क्योंकि पत्ती के कटे हुए वलयों या डिस्कों द्वारा उत्पादित ऐसीटोसिरोंगोन (Acetosyringone) Ti प्लाज्मिड के आपेरोन्स को सक्रिय करता है।
उन आपेरोन्स के सक्रियण द्वारा वांछित DNA युक्त Ti प्लाज्मिड अनेक कोशिकाओं में प्रवेश कर पादप संजीन में समाकलित हो जाता है। दो-तीन दिनों के सहसंवर्धन के पश्चात् रूपान्तरित पाए कोशिकाओं को उपयुक्त संवर्धन माध्यम पर संवर्धित कर रूपान्तरित पादप कोशिकाओं का चयन करते हैं। जीन स्थानान्तरण की इस तकनीक का उपयोग द्विबीजपत्री पादपों के लिए ही किया जा सकता है। कई अनुसंधान संस्थानों में कार्यरत वैज्ञानिकों द्वारी Ti प्लाज्मिडे को जीन वाहक के रूप में प्रयोग किया जाता है। T-DNA में वांछित व उपयोगी जीनों को निवेशित करे अनेकों पादपों में लाभदायक लक्षणों जैसे शाकनाशियों (Herbicides), रोगाणुओं (Pathogens) तथा प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति प्रतिरोधकता, पोषकमान में वृद्धि (गोल्डन राइस, विटामिन ‘ए’ की पूर्ति) नाइट्रोजन यौगिकीकरण क्षमता में सुधार आदि विकसित किये जा चुके हैं।
2. विषाणु निर्देशित जीन स्थानान्तरण (Virus mediated gene transfer)-डी.एन.ए तथा आर.एन.ए वाइरस दोनों ही वांछित जीनों के उत्तम वाहकों की तरह कार्य करते हैं। डी.एन.ए संजीन (Genome) वाले दो वाइरस समूहों कॉलिमों वाइरस (Calulimo viruses) तथा जेमिनी वाइरस (Gemini viruses) के द्वारा सर्वाधिक जीन स्थानान्तरण किए गये हैं। रिट्रोवाइरसे, लेन्टीवाइरस, एडिनोवाइरस आदि का भी आनुवंशिके अभियान्त्रिकी के क्षेत्र में जीन स्थानान्तरण हेतु उपयोग किया जाता है।
3. इन-प्लान्टा तकनीक (In-planta method)-जीन स्थानान्तरण की इस तकनीक में फल्जडमेन तथा मार्कक्स (1987) ने आनुवंशिकतः रूपान्तरित एग्रोबैक्टीरियम को ऐरेबीडोपासिस के बीजों के साथ रखा तथा इन बीजों को उगाकर पादप विकसित किए। इस प्रकारे विकसित पादपों से प्राप्त बीजों को प्रतिजैविक मुक्त माध्यम पर अंकुरित करवाकर रूपान्तरित पादपों की पहचान की। इसी प्रकार अंकुरित बीजों के विभेदित भ्रूण के शीर्ष विभज्योतक को एग्रोबेक्टीरियम में संक्रमित करवाकर भी आनुवंशिकत: रूपान्तरित पादप प्राप्त किए जा सकते हैं। जीन स्थानान्तरण की इस विधि में वांछित जीन सीधे ही पादप में प्रवेशित किए जाते हैं। इसलिए इसे इन प्लांटा तकनीक के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 4.
ऊतक संवर्धन के विभिन्न चरणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऊतक संवर्धन के विभिन्न चरण निम्नलिखित हैं” शून्य चरण–इस चरण को दो भागों में विभाजित किया जा सकती है-
(i) कर्तेतकों का चयन एवं पूर्ण उपचार-कत्तोंतकों का चयन प्रायोगिक आवश्यकताओं के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है। चयनित कत्ततकों को सतही निर्जर्मीकरण से पूर्व नल के नीचे बहते हुए जल में ट्वीन-20 (Tween-20) की सहायता से प्रक्षालित किया जाता है, जिससे उनकी सतह पर उपस्थित मिटटी के कणों एवं सूक्ष्मजीवों को हटाया जा सके। यह प्रक्रिया कत्ततकों का पूर्व उपचार कहलाती है।
(ii) कराँतकों का सतही निर्जर्गीकरण–विभिन्न प्रकार के सतही निर्जर्मीकारकों जैसे—मरक्यूरिक क्लोराइड (HgCl2) इथेनॉल, सिल्वर नाइट्रेट (AgNO2), ब्रोमीन व क्लोरीन जल आदि द्वारा चयनित कत्ततकों को लेमिनार एयर फ्लो बैंच में उपचारित किया जाता है, जिससे उनकी सतह पर उपस्थित सूक्ष्मजीवों को पूरी तरह से नष्ट किया जा सके।
प्रथम चरण-संवर्धन आरम्भन—इस चरण में सतही निर्जर्मीकृत कत्ततकों को संवर्धन माध्यम पर स्थानान्तरित कर संवर्धन कक्ष में रखा जाता है। संवर्धन कक्ष में इनसे कैलस अथवा अंग जनन प्रारम्भ होता है।
द्वितीय चरण-द्वितीय चरण के अन्तर्गत प्रथम चरण में स्थापित संवर्धनों को नये पोषके माध्यम पर स्थानान्तरित कर उनका गुणन कराया जाता है।
तृतीय चरण-तृतीय चरण के अन्तर्गत संपूर्ण पादप का, पुन:रुद्भवन कराया जाता है।
चतुर्थ चरण-ऊतक संवर्धन द्वारा विकसित पादपों का दृढ़ीकरण एवं वातानुकूलन कराया जाता है।
प्रश्न 5.
जीन स्थानान्तरण की विधियों का सचित्र विवरण दीजिए। उत्तर- पादपों में जीन स्थानान्तरण की विधियाँ-पादपों में जीन स्थानान्तरण कई विधियों द्वारा किया जा सकता है। इनमें से निम्नांकित दो विधियाँ अधिक प्रभावी व प्रचलित हैं-
(अ) वाहक निर्देशित अथवा अप्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण (Vector mediated or Indirect gene transfer)
(देखें विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 3).
(अ) वाहक निर्देशित अथवा अप्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण-इस विधि में स्थानान्तरित किए जाने वाले DNA का स्थानान्तरण किसी वाहक के द्वारा किया जाता है। इसकी तीन विधियाँ हैं-
1. एग्रोबैक्टीरियम निर्देशित जीन स्थानान्तरण–इस प्रकार का जीन स्थानान्तरण ट्यूमर प्रेरक प्लाज्मिड (Tumour inducing plasmid; Ti plasmid) पर आधारित है। T; प्लाज्मिड मृदा में पाये जाने वाले तथा द्विबीजपत्री पादपों को संक्रमित करने वाले जीवाणु एग्रोबैक्टीरियम । ट्यूमेफेसिएंस (Agrobacterium tumefaciens) में उपस्थित होता है।
यह जीवाणु संक्रमित पादपों में अनियंत्रित कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है। जिसके कारण उनमें पीटिका या अर्बुद (Gall) का निर्माण हो जाता है। इस पीटिका को किरीट पीटिका या क्राऊन गॉल (Crown gall) कहा जाता है। पादपों में अनियंत्रित कोशिका विभाजन व इसके कारण होने वाला क्राऊन गॉल का निर्माण एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमेफेसिएंस जीवाणु में उपस्थित टी.आई (Ti = Tumour inducing) प्लाज्मिड के द्वारा होता है। पादप कोशिकाओं में ए. ट्यूमेफेसिएंस के संक्रमण की प्रक्रिया के दौरान टी.आई. प्लाज्मिड की एक प्रति को समाकलन (Integration) परपोषी के संजीन (Genome) में हो जाती हैं।
परपोषी के संजीन में समाकलित होने वाले ‘Ti के डी.एन.ए का खण्ड T-DNA (Pransfer-DNA = स्थानान्तरित डी.एन.ए) कहलाता है। पादपों में ए. ट्यूमेफेसिएन्स के संक्रमण की प्रक्रिया Ti प्लाज्मिड तथा एग्रोबैक्टीरियम के गुणसूत्र पर (सहसंयोजी रूप से बन्द वृत्ताकार डी.एन.एCovalently closed circular-DNA; CCC-DNA) स्थित जीनों द्वारा नियंत्रित रहती है। ट्रांसफर डी.एन.ए के दोनों सिरों पर 25 क्षारक युग्मों या न्यूक्लियोटाइडों का सीधे दोहराया (Direct repeats) गया क्रम होता है, जो T-DNA का दायाँ व दाँया सिरा कहलाते हैं। पादप कोशिका में जिस जीन का स्थानान्तरण करना होता है उसे इन दोनों सिरों के मध्य समायोजित या समाकलित किया जाता है। पादपों में एग्रोबैक्टीरियम के संक्रमण के कारण या तो पीटिका का निर्माण होता है अथवा रोगिल मूल (Hairy roots) विकसित होती है। ये दोनों प्रक्रियायें एग्रोबैक्टीरियम की प्रजातियों पर निर्भर करती है। परन्तु एग्रोबैक्टीरियम के संक्रमण द्वारा परपोषी की। कोशिकाएँ रूपान्तरित हो जाती हैं।
20वीं शताब्दी के आरम्भ में एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमेफेसिएन्स तथा इसकी सम्बन्धित जातियों को पादप रोग जनक के रूप में ही जाना जाता था परन्तु पिछले 3 दशकों से इसकी पादप कोशिकाओं में डी.एन.ए स्थानान्तरण की । क्षमताओं के कारण इसका उपयोग पादप आनुवंशिक अभियान्त्रिकी के क्षेत्र में किया जाने लगा। आनुवंशिक अभियांत्रिकी के क्षेत्र में इसके उपयोग के कारण इसे प्राकृतिक आनुवंशिक अभियन्ता (Natural genetic engineer) कहा जाता है।
इस जीवाणु के प्लाज्मिड पर जो जीन उपस्थित होते हैं उनके द्वारा उत्पादित अमीनो अम्लों के आधार पर जीन रूपान्तरण का पादपों में पता लगाया जा सकता है। जो कोशिकाएँ आनुवंशिक रूप से रूपान्तरित होती हैं, उनमें ओपीन (Opines) का निर्माण होता है। ये ओपीन विभिन्न प्रकार के होते हैं जो एग्रोबैक्टीरियम के विभेदों पर निर्भर करते हैं। ऑक्टोपीन व नोपालीन (Octapine and nopaline) ए. ट्यूमेफेसिएन्स के विभेदों द्वारा जबकि एग्रोपीन व मैनोपीन (Agropine and manopine) नामकं ओपीन का निर्माण एवं राइजोजिन्स के द्वारा होता है।
एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसियन्स के Ti प्लाज्मिड़ के द्वारा पादपों में ट्यूमर होने का खतरा बना रहता है। अतः ट्रांसजैनिक पादप विकसित करने के लिए ट्यूमर प्रेरित करने वाले जीन (T-DNA) को पृथक कर उसके स्थान पर वांछित जीन को संयोजित कर इस रूपान्तरित Ti प्लाज्मिड को एग्रोबैक्टीरियम में स्थापित कर दिया जाता है। अब इस वांछित जीन युक्त एग्रोबैक्टीरियम का उस पादप के ऊतकों अथवा संवर्धनों के साथ सह संवर्धन किया जाता है, जिसमें इस वांछित जीन का स्थानान्तरण करना है। सामान्यत: टमाटर, तम्बाकू, पिटुनिया, गुलाब आदि की पत्तियों की बिम्बों या वलयों (Discs = वृत्ताकार टुकड़े) का सहसंवर्धन के लिए उपयोग किया जाता है, क्योंकि पत्ती के कटे हुए वलयों या डिस्कों द्वारा उत्पादित ऐसीटोसिरोगोन (Acetosyringone) Ti प्लाज्मिड के ओपेरोन्स को सक्रिय करता है। इन आपेरोन्स के सक्रियण द्वारा वांछित DNA युक्त Ti-प्लामिड अनेक कोशिकाओं में प्रवेश कर पादप संजीन में समाकलित हो जाता है। दो-तीन दिनों के सहसंवर्धन के बाद रूपान्तरित पादप कोशिकाओं को उपयुक्त संवर्धन माध्यम पर संवर्धित कर रूपान्तरित पादप कोशिकाओं का चयन करते हैं। जीन स्थानान्तरण की इस तकनीक का उपयोग द्विबीजपत्री पादपों के लिए ही किया जा सकता है। कई अनुसंधान संस्थानों में कार्यरत वैज्ञानिकों द्वारा Ti प्लाज्मिड को जीन वाहक के रूप में प्रयोग किया जाता है। T-DNA में वांछित व उपयोगी जीनों को निवेशित कर अनेकों पादपों में लाभदायक लक्षणों जैसे शाकनाशियों (Herbicides) रोगाणुओं (Pathogens) तथा प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति प्रतिरोधकता, पोषकमान में वृद्धि (गोल्डन राइस, विटामिन ‘ए’ की पूर्ति) नाइट्रोजन यौगिकीकरण क्षमता में सुधार आदि विकसित किये जा चुके हैं।
एग्रोबैक्टीरियम जीवाणु प्राकृतिक रूप से एकबीजपत्री पादपों को संक्रमित नहीं करते परन्तु 1994 में जापान के वैज्ञानिक चावल के पौधे में Ti प्लाज्मिड द्वारा रूपान्तरण को प्रेरित करने में सफल रहे।
2. विषाणु निर्देशित जीन स्थानान्तरण (Virus mediated gene transfer)-DNA तथा RNA वाइरस दोनों ही वांछित जीनों के उत्तम वाहक के रूप में कार्य करते हैं। कॉलिमों वाइरस (Calulimo viruses) तथा जेमिनी वाइरस (Gemini viruses) के द्वारा अत्यधिक जीन स्थानान्तरण किए गए हैं। लेन्टीवाइरस, रिट्रोवाइरस, एडिनोवाइरस आदि का भी आनुवंशिक अभियांत्रिकी के क्षेत्र में जीन स्थानान्तरण के लिए उपयोग किया जाता है।
3. इन-प्लान्टा तकनीक (In-planta method)—इस तकनीक में फेल्जडमेन तथा मार्कक्स ने सन् 1987 में आनुवंशिकतः रूपान्तरित एग्रोबैक्टीरियम को ऐरेबीडोपसिस के बीजों के साथ रखा तथा इन बीजों को उगाकर पादप विकसित किए। इस प्रकार से विकसित पादपों से प्राप्त बीजों को अंकुरित करवाकर रूपान्तरित पादपों की पहचान की। इस विधि में वांछित जीनों को सीधे ही पादपों में प्रवेशित किया जाता है। इस कारण इसे इन-प्लान्टा तकनीक कहा जाता है।
(ब) प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण (Direct gene transfer)
पादपों में प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण निम्नलिखित विधियों से किया जा सकता है-
(क) रासायनिक विधियाँ (Chemical Methods)-कुछ रसायन जैसे पॉलिईथाइलिन ग्लाइकोल (PEG), पॉलिविनाइल ऐल्कोहल, कैल्सियम फॉस्फेट आदि रासायनिक पदार्थ पादप जीवद्रव्यकों में DNA के प्रवेश को प्रेरित करते हैं। रासायनिक विधियों में PEG का उपयोग बहुतायत से हुआ है। इस विधि में जीवद्रव्यकों में पहले प्लाज्मिड DNA तथा कुछ समय पश्चात 15-25 प्रतिशत PEG मिलाया जाता है। PEG की यह मात्रा जीवद्रव्यकों में DNA अन्तर्ग्रहण को प्रेरित करती है। PEG निर्देशित जीन स्थानान्तरण में जीवद्रव्यकों को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है। इस प्रकार रूपान्तरित जीवद्रव्यकों को चयनित माध्यम (Selected medium) पर संवर्धित कर मार्कर जीनों की सहायता से रूपान्तरित जीवद्रव्यकों का चयन कर लिया जाता है। लिपोसोम्स डाई ईथाइल अमीनो ईथाइल (DEEAE) डेक्सट्रॉन प्रोटीन्स आदि के द्वारा भी पादपों एवं जन्तुओं में जीन स्थानान्तरण किया जा सकता है।
(ख) जीन स्थानान्तरण की भौतिक विधियाँ (Physical methods of gene transfer)-पादपों में प्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण कई भौतिक विधियों द्वारा भी प्रभावी रूप से किया जाता है। कुछ प्रमुख भौतिक विधियाँ निम्नलिखित हैं।
(1) जीन गन (Gene Gun)-जीन गन को कणिका बंदूक (Particle gun), शॉट गन (Shot gun), माइक्रोप्रोजेक्टाइल (Micro projectile) आदि नामों से भी जाना जाता है। इस युक्ति से भित्ति युक्त पादप कोशिकाओं में जीन स्थानान्तरण सम्भव है। इस तकनीक का सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1987 में क्लीन (Klein) द्वारा प्याज की कोशिकाओं में DNA तथा वाइरस RNA स्थानान्तरण हेतु किया गया था। इस प्रक्रिया में वांछित DNA से विलोपित स्वर्ण अथवा टंगस्टन के 1-3 माइक्रो मीटर व्यास के कणों को जिन्हें माइक्रोपार्टिकल्स अथवा सूक्ष्मकणिकाएँ भी कहते हैं, को मेक्रोप्रोजेक्टाइल की सहायता से उच्च वेग से लक्ष्य कोशिकाओं में दाग दिया जाता है। ये वांछित DNA से विलोपित स्वर्ण अथवा टंगस्टन के कण कोशिका भित्ति को भेदकर कोशिका के अन्दर प्रविष्ट हो जाते हैं जहाँ वांछित DNA पादप कोशिका के DNA से समाकलित होकर ट्रांसजैनिक DNA का निर्माण करता है। इस विधि के उपयोग से सोयाबीन, गेहूँ, धान मक्का, तम्बाकू आदि में सफलतापूर्वक जीन स्थानान्तरित किए जा चुके हैं। यह विधि विश्व स्तर पर सभी प्रकार के पादपों के लिए प्रयोग में लायी जा रही है।
(2) वैद्युत छिद्रण (Electroporation)-जीन स्थानान्तरण की इस विधि में लक्ष्य प्रोटोप्लास्ट (जीवद्रव्यक), पादप कोशिकाओं अथवा ऊतकों को उच्च वोल्टता (High voltage) के स्पन्द (Pulse) दिए जाते हैं। जिससे प्लाज्माकला में क्षणिक अस्थायी छिद्र बन जाते हैं। इन क्षणिक बनने वाले छिद्रों के द्वारा वांछित DNA कोशिकाओं में प्रवेश कर जाता है। लक्ष्य कोशिकाओं अथवा ऊतकों को वांछित DNA युक्त घोल में रखकर उच्च वोल्टता के स्पंद दिए जाते हैं जिससे यह DNA पहले कोशिका तथा बाद में केन्द्रक में प्रवेश कर कोशिका के DNA में समाकलित हो जाता है। एकबीजपत्री पादपों में जीनस्थानान्तरण हेतु इस विधि का वहत् स्तर पर उपयोग किया जा रहा है।
(3) लिपोसोम की मध्यस्थता द्वारा जीन स्थानान्तरण (Liposome mediated gene transfer)-जीन स्थानान्तरण की इस विधि में गोलाकार वसीय अणुओं (Lipid molecules) का उपयोग किया जाता है, जिनके भीतर जल के साथ वांछित DNA भरा रहता है। ये DNA युक्त लिपिड केप्स्यूल पहले कोशिका कला से चिपक जाते हैं तत्पश्चात उससे संयुग्मित हो जाते हैं। इनमें उपस्थित वांछित DNA पहले कोशिका में तथा । बाद में केन्द्रक में प्रवेश कर पोषक संजीन से समाकलित हो जाता है।
लिपोसोम निर्देशित जीन स्थानान्तरण की तकनीक जिसे लिपोफेक्सन (Lipofection) भी कहते हैं, जीवाणुओं, जन्तुओं व पादप कोशिकाओं में जीन स्थानान्तरण की अत्यधिक प्रभावी तकनीक है।
(4) सूक्ष्म इंजेक्शन (Micro injection)-इस विधि के द्वारा वांछित DNA को सीधे ही पादप जीवद्रव्यकों अथवा कोशिकाओं में 0.5-1.0 माइक्रोमीटर व्यास की कॉच की सूई अथवा माइक्रोपिपेट की सहायता से कोशिकाद्रव्य अथवा केन्द्रक में अन्तः क्षेपित (Inject) किया जाता है। पृथक्कृत जीवद्रव्यकों में जीन स्थानान्तरण की यह उपयुक्त विधि उपरोक्त जीन स्थानान्तरण की विधियों के अतिरिक्त निम्नलिखित विधियों का भी जीन स्थानान्तरण में उपयोग किया जाता है।
(5) लेडर निर्धारित जीन स्थानान्तरण।
(6) सिलिकोन कार्बाइड तन्तु निर्धारित जीन स्थानान्तरण।
प्रश्न 6.
सूक्ष्म प्रवर्धन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संवर्धन के प्रकार (Types of Culture)-प्रायोगिक उद्देश्यों के आधार पर संवर्धन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
1. कैलस संवर्धन (Callus Culture)-जैसा कि पूर्व में बताया। गया है, कैलस संवर्धन हेतु पौधे के किसी भी भाग का कत्तोंतक के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार के संवर्धन में पादप कोशिकाएँ अनियन्त्रित विभाजनों द्वारा अविभेदित कोशिकाओं के समूह अर्थात् कैलस (Callus) का निर्माण करती हैं। पादप वृद्धि नियंत्रकों की उचित मात्रा व ऑक्सिन तथा साइटोकाइनिन्स के संयोगों द्वारा कैलस से जड़, प्ररोह, भ्रूणाभ व सम्पूर्ण पादपक (Plantlet) विकसित किए जा सकते हैं। कैलस से । पादपों का पुनर्जनन निम्नलिखित विधियों द्वारा सम्पन्न होता है|
(i) अंगोभवन (Organogenesis)
(ii) कायिक भ्रूणोद्भवन (Somatic embryogenesis)
(i) अंगोभवन (Organogenesis)-कोशिकाओं के असंगठित समूह कैलस से विभेदन की प्रक्रिया द्वारा पादप अंग जैसे जड़, प्ररोह, कलिका आदि का विकास होना अंगजनन अथवा अंगोद्भवन कहलाता है। कैलस से जड़ों का विकास राइजोजेनेसिस का जड़जनन (Rhizogencsis) तथा प्ररोह का विकास प्ररोहजनन (Caulogenesis) कहलाता है। जड़ व प्ररोह जनन ऑक्सीन, साइटोकानिन अनुपात, संवर्धन माध्यम की भौतिक अवस्थाओं, रासायनिक संगठन तथा कर्त्तातक की प्रकृति पर निर्भर करता है। सामान्यत: आक्सिन-साइटोकाइनिन के उच्च अनुपात पर जड़ जनन व निम्न अनुपात पर प्ररोहजनन की प्रक्रियाएँ सम्पन्न होती हैं।
(ii) कायिक भ्रूणोद्भवन (Somatic embryogenesis)-जब भ्रूण का निर्माण कायिक ऊतकों की कोशिकाओं से होता है तब भ्रूण जनन की प्रक्रिया कायिक भ्रूणोद्भवन कहलाती है। कायिक भ्रूण अगुणित अथवा द्विगुणित हो सकता है। भ्रूण का अगुणित अथवा द्विगुणित होना उने । कोशिकाओं की प्रकृति पर निर्भर करता है जिनसे इनका विकास हुआ है। कायिक भ्रूणोद्भवन की प्रक्रिया का सर्वप्रथम प्रदर्शन रीनर्ट व स्टीवर्ड (Reinert and Steward) द्वारा सन् 1958 में किया गया, जब इन्होंने गाजर (डॉकसे कैरोटा) के कैलस व निलम्बन संवर्धन द्वारा कायिक भ्रूणों का संवर्धन किया।
(2) अंग संवर्धन (Organ Culture)-किसी पादप के विभिन्न अंगों जैसे मूल, अण्डाशय आदि को संवर्धन माध्यम पर संवर्धित कर सम्पूर्ण पादप को विकसित करना अंग संवर्धन कहलाता है।
(3) भ्रूण संवर्धन (Embryo Culture)-पौधों के अपरिपक्व अथवा पूर्ण परिपक्व भ्रूण के संवर्धन को भ्रूण संवर्धन कहते हैं। भ्रूण संवर्धन का उपयोग अपरिपक्व भ्रूण के विकास तथा परिपक्व भ्रूण की वृद्धि एवं अंकुरण को प्रेरित करने हेतु किया जाता है। अपरिपक्व भ्रूण संवर्धन को भ्रूण बचाव या भ्रूण रक्षा (Embryo rescue) भी कहा जाता है। भ्रूण बचाव तकनीक का उपयोग दूरस्थ संकरण में अल्पविकसित भ्रूण को बचाने में किया जाता है, जिससे संकरण से प्राप्त होने वाले दुर्लभ जननक्षम पादप विकसित किए जा सकें।
(4) पराग कोष तथा परागकण संवर्धन (Anther and Pollen grain culture)-अर्धसूत्री विभाजन के अध्ययन हेतु पराग कोष का पात्रे संवर्धन (Invitro culture) सर्वप्रथम जापानी वैज्ञानिक शिमाकुरे (Shimakure) द्वारा सन् 1943 में किया गया था। सन् 1964 में भारतीय वैज्ञानिक शिप्रा गुहा मुखर्जी तथा सतीश चन्द्र महेश्वरी ने धतूरे के पौधे के परागकोष व पराग कक्ष संवर्धन से अगुणित पादप प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। अंगुणित पादप प्राप्त करने की तकनीक का उपयोग पादप प्रजनन में शुद्धवंश क्रम (Pure line) प्राप्त करने में किया जाता है। सोलेनेसी कुल के पादपों में से सबसे अधिक अगुणित पादप विकसित किए गए हैं। |
(5) कोशिका निलम्बन संवर्धन (Cell Suspension Culture)–तरल माध्यम में कोशिकाओं के संवर्धन को निलम्बन संवर्धन कहते हैं। निलम्बन संवर्धन का उपयोग व्यावसायिक स्तर पर जैव सक्रिय अणुओं (Bioactive molecules) तथा द्वितीयक उपापचयजों के संश्लेषण व उत्पादन में किया जाता है। विगलित या एकल पादप कोशिकाओं को सामान्यत: वातित (Aerated) तरल संवर्धन माध्यम पर संवर्धित किया जाता है। इन कोशिकाओं को पृथक रखने एवं संवर्धन माध्यम में ऑक्सीजन की आपूर्ति बनाए रखने हेतु संवर्धनों को घूर्णी हल्तिंत्र पर रखा जाता है।
(6) जीवद्रव्यक संवर्धन (Protoplast Culture)-जीवद्रव्यक संवर्धन की प्रक्रिया में सर्वप्रथम निर्जर्मीकृत चयनित कर्त्तातकों को सेल्यूलेज, हेमीसेल्यूलेज व पैक्टीनेज एन्जाइमों से उपचारित कर इन्हें भित्ति रहित किया जाता है। इन भित्तिरहित पादप कोशिकाओं जिनको जीवद्रव्यक (Protoplast) कहते हैं, को पहले तत्त्व संवर्धन माध्यम पर, तत्पश्चात अर्धठोस माध्यम पर संवर्धित कर पादपों का निर्माण, अंगजनन, कायिक भ्रूण, जनन की विधियों द्वारा किया जाता है। जीवद्रव्यक संवर्धन की प्रक्रिया का उपयोग साइब्रिड निर्माण में किया जाता है।
प्रश्न 7.
संवर्धन माध्यम के विभिन्न घटक कौन-कौन से हैं ? बताइए।
उत्तर:
ऊतक संवर्धन के लिए प्रयोगशाला आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित होनी चाहिए तथा इस प्रयोगशाला का निर्माण कीट-पतंगों, सूक्ष्मजीवों एवं पादपों के बीज या अन्य भागों के संग्रहण के लिए कार्य करने वाली प्रयोगशालाओं के पास नहीं करना चाहिए। ऊतक संवर्धन प्रयोगशाला का निर्माण करते समय उसकी बनावट तथा कार्य-क्षेत्रों की स्थिति का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस कार्य के लिए प्रयोगशाला में संवर्धन माध्यम निर्माण कक्ष (Culture Media Preparation room), काँच के सामान का प्रक्षालन कक्ष (Glassware washing room), अभिलेख (Record) कक्ष, निर्जर्मीकृत स्थानान्तरण क्षेत्र व संवर्धन कक्ष (Culture room) होने चाहिए। ऊतक संवर्धन तकनीक द्वारा विकसित पादपों के दृढ़ीकरण (Hardening), देशानुकूलन यो पर्यानुकूलन (Acclimatization) एवं संग्रहण के लिए ग्रीनहाउस या पौधशाला (Nursery) का निर्माण करना भी आवश्यक है। एक आदर्श ऊतक संवर्धन प्रयोगशाला के विभिन्न कार्यक्षेत्रों में आवश्यक सुविधाओं एवं उपकरणों को निम्नलिखित सारणी में दर्शाया गया है-