RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 18 तेल, रेशे, मसाले एवं औषधि उत्पादक पादप
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 18 तेल, रेशे, मसाले एवं औषधि उत्पादक पादप
Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 18 तेल, रेशे, मसाले एवं औषधि उत्पादक पादप
RBSE Class 12 Biology Chapter 18 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 12 Biology Chapter 18 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
किस पादप में वसीय तेल नहीं मिलता है।
(अ) सरसों
(ब) नारियल
(द) गुलाब
(स) सूरजमुखी
उत्तर:
(स) सूरजमुखी
प्रश्न 2.
किस पादप से रेशे तथा वसीय तेल दोनों प्राप्त होते हैं।
(अ) नारियल
(ब) कपास
(द) अलसी
(स) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) अलसी
प्रश्न 3.
तीव्र गंध वाला एलिल आइसोथायोसाइनेट किस पादप के तेल में पाया जाता है।
(अ) सोयाबीन
(ब) सरसों
(द) अरण्डी
(स) मूंगफली
उत्तर:
(ब) सरसों
प्रश्न 4.
भ्रूणपोष से तेल किस पादप से मिलता है?
(अ) सूरजमुखी
(ब) नारियल
(द) ऑयल पाम
(स) मूंगफली
उत्तर:
(ब) नारियल
प्रश्न 5.
पूँज पादप के किस अंग से प्राप्त की जाती है?
(अ) पर्णो से
(ब) तने से
(द) मूलों से
(स) बीजों से
उत्तर:
(अ) पर्णो से
प्रश्न 6.
क्रोटोलेरिया जंशिया से प्राप्त रेशा कहलाता है-
(अ) कपास
(ब) कोयर
(द) सन
(स) जूट
उत्तर:
(स) जूट
प्रश्न 7.
लौंग पौधे का कौन-सा अंग है।
(अ) पुष्प कलिकायें
(ब) बीज
(द) फल
(स) उपरोक्त कोई नहीं
उत्तर:
(अ) पुष्प कलिकायें
प्रश्न 8.
लाल मिर्च को तीखापन जिस यौगिक के कारण है, वह है
(अ) कुर्कुमिन
(ब) कैप्सेइसिन
(द) थाइमोल
(स) एनिथॉल
उत्तर:
(ब) कैप्सेइसिन
प्रश्न 9.
फादर ऑफ मेडिसिन कौन है?
(अ) चरक
(ब) हिप्पोक्रेट्स
(द) थियोफ्रास्टस
(स) धनवन्तरि
उत्तर:
(ब) हिप्पोक्रेट्स
प्रश्न 10.
मार्फिन किस पादप में होता है-
(अ) अफीम
(ब) कुनैन
(ब) हींग
(स) सर्पगन्धा
उत्तर:
(अ) अफीम
RBSE Class 12 Biology Chapter 18 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सरसों के तेल की तीखी गंध किस पदार्थ की उपस्थिति से होती है ?
उत्तर:
सरसों के तेल की तीखी गंध गंधक युक्त यौगिक एलिल आइसो थायोसाइनेट की उपस्थिति के कारण होती है।
प्रश्न 2.
अरण्डी का वानस्पतिक नाम तथा कुल का नाम लिखिए।
उत्तर:
अरण्डी (Castor Oil Plant)
वानस्पतिक नाम – रिसिनस काम्युनिस (Ricinus communis)
कुल – यूफोर्बिएसी (Euphorbiaceae)
प्रश्न 3.
सौंफ के बीज चबाने पर मीठे क्यों लगते हैं?
उत्तर:
एनिथोल व फेनचोन यौगिकों की उपस्थिति के कारण।
प्रश्न 4.
हल्दी का पीला रंग किससे है?
उत्तर:
हल्दी का पीला रंग कुरकुमिन (Curcumin) की उपस्थिति के कारण है।
प्रश्न 5.
कुनैन किस रोग में उपयोगी है?
उत्तर:
कुनैन मलेरिया रोग में अत्यन्त प्रभावकारी औषधि है।
प्रश्न 6.
तेल तथा चर्बी में क्या अन्तर है?
उत्तर:
तैल-इसको वायु में खुला रखने पर इसकी सतह पर एक लचीली परत बन जाती है। यह प्रक्रिया अर्धशुष्कन तेलों में वायु के साथ लम्बे समय तक सम्पर्क के दौरान होती है तथा अशुष्कन तेलों में ऐसा नहीं होता है। जैसे-अलसी, बिनौला तथा अरण्डी। वसा या चर्बी -ये सामान्य तापक्रम पर ठोस अथवा अर्धठोस अवस्था में रहते हैं। जैसे-नारियल का तेल।
RBSE Class 12 Biology Chapter 18 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अशुष्कन व शुष्कन तेल में सोदाहरण विभेदन कीजिए।
उत्तर:
अशुष्कन व शुष्कन में विभेदन
प्रश्न 2.
स्थिर तेल, रेशे, मसाले तथा औषधि प्रदान करने वाले एक-एक पादप का वानस्पतिक नाम तथा उपयोगी पादप भाग बताइये।
उत्तर:
स्थिर तेल प्रदान करने वाला पादप मूंगफली (Groundnut)
वानस्पतिक नाम – एरेकिस हाइपोजिया (Arachis hypogea)
तेल के लिये उपयोगी पादप भाग- बीज ।
रेशे प्रदान करने वाला पादप कपास (Cotton)
वानस्पतिक नाम – गॉसीपियम हिर्स्टम (Gossypium hirsutum)
उपयोगी पादप भाग- रेशे के लिये बाह्यबीजचोल पर स्थित सतह रेशे। वसीय तेलों के लिये बीज
मसाले प्रदान करने वाला पादप लौंग (Clove)
वानस्पतिक नाम – सिजीजियम एरोमेटिकम (Syzygium aromaticum)
उपयोगी पादप भाग – शुष्क पुष्प कलिकाएँ
औषधि प्रदान करने वाला पादप
कुनैन, या सिनकोना (Quinine tree, or Cinchorna tree)
वानस्पतिक नाम – सिनकोना ऑफिसिनेलिस (Cinchond officinalis)
उपयोगी पादप भाग- स्तम्भ की शुष्क छाल
प्रश्न 3.
अफीम के ऐल्केलाइड्स का विवरण दीजिए।
उत्तर:
अफीम के एल्केलाइड्स- अफीम में लगभग 25 से अधिक प्रकार के ऐल्केलाइड्स होते हैं जिनमें कुछ प्रमुख ऐल्केलाइड्स इस प्रकार से हैं; जैसे–मॉर्फीन (Morphine), कोडीन (Codeine), थीबेन (Thebaine), नारकोटीन (Narcotine), पेपावेरीन (Papavarine), ऑपियानिन (Opianine) आदि।
प्रश्न 4.
बीजों से प्राप्त मसालों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
1. काली मिर्च (Black Pepper)
वानस्पतिक नाम – पाइपर नाइग्रम (Piper nigrum)
कुल – पाइपिरेसी (Piperaceae)
उपयोगी पादप भाग -अपरिपक्व शुष्क ड्रप फल काली मिर्च का मसाले के रूप में व्यापक उपयोग किया जाता है।
2. सौंफ (Fennel)
वानस्पतिक नाम – फीनीकुलम वल्गेअर (Foeniculum vulgare)
कुल – एपीएसी या अम्बेलीफेरी (Apiaceae, or Umbelliferae)
उपयोगी पादप भाग- परिपक्व क्रीमोकार्प फल।
सौंफ का प्रयोग मसाले के रूप में अचार आदि को तैयार करने में किया जाता है।
प्रश्न 5.
उत्पत्ति के आधार पर पादप रेशों का वर्गीकरण लिखिए।
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर पादप रेशों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है-
- सतह रेशे (Surface Fibres)-यह रेशे पौधे के बीज या फल की सतह पर अतिवृद्धि के रूप में उत्पन्न होते हैं; जैसे- कपास।
- मृद, स्तम्भ या बास्ट रेशे (Soft, stem or Bast Fibres)-इन रेशों को द्विबीजपत्री स्तम्भ के फ्लोएम रेशों व परिरम्भ से प्राप्त किया जाता है। यह एक विशेष प्रकार की संकीर्ण, दीर्घित एवं काष्ठीय दृढ़ीकृत कोशिकाएँ होती हैं। जैसे- जूट, सन, पटसन।
- कड़े या पर्ण रेशे (Hard or Leaf Fibres)-ये एकबीजपत्रियों के पर्यों से प्राप्त किये जाते हैं, जैसे-मुंज, ऐरा, पटेरी।
प्रश्न 6.
कुनैन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कुनैन (Quinine Tree)
वानस्पतिक नाम – सिनकोना ऑफिसिनेलिस (Cinchona officinalis)
कुल – रूबिएसी (Rubiaceae)
उपयोगी पादप भाग – स्तम्भ की शुष्क छाल
कुनैन के पादप को जिसे सिनकोना भी कहा जाता है। दक्षिण अमेरिका के ऐन्डिस प्रदेश से प्राप्त किया जाता है। इसके अलावा भारत, इण्डोनेशिया तथा जावा को कुनैन के प्रमुख उत्पादक देश के रूप में जाना जाता है। नीलगिरी पर्वतमाला तथा सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला आदि पर्वतीय क्षेत्रों में इसके वृक्ष उगाये जाते हैं।
कुनैन की भारतीय जातियाँ–सिनकोना ऑफिसिनेलीस, सि. केलिसाया, सि. लेजरियाना तथा सि. सक्सीरूबा हैं।
कुनैन एक सदाबहार मध्यम वृक्ष या झाड़ी होता है। कुनैन की छाल को स्तम्भ से छीलकर, सुखाकर औषधि प्राप्त की जाती है। इसकी विभिन्न जातियों की छाल से 30 प्रकार के ऐल्केलाइड्स में से कुनैन, क्विनीडीन तथा सिन्कोनीडोन प्रमुख हैं। कुनैन मलेरिया की अत्यन्त प्रभावकारी औषधि के रूप में प्रयोग होता है। इसके अलावा कुनैन को निमोनिया तथा अमीबीय पेचिश में भी उपयोग किया जाता है।
RBSE Class 12 Biology Chapter 18 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उपयोगिता के आधार पर पादप रेशों का वर्गीकरण देते हुए, वस्त्र रेशों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपयोगिता के आधार पर पादप रेशों को छ: वर्गों में बाँटा गया है-
- वस्त्र रेशे (Textile Fiberes)- इन रेशों का प्रयोग कपड़े, रस्सियाँ , बोरे, सुतली आदि बनाने में किया जाता है, जैसे-कपास, जूट, सन आदि।
- कुर्च या ब्रुश रेशे (Brush Fibres)-ये रेशे झाडू, ब्रुश बनाने के लिये प्रयुक्त किये जाते हैं। जैसे-खजूर की पत्तियाँ।
- गुँथने तथा खुरदरे बुनने वाले रेशे (Plaiting and rough weaving fibres)-इन रेशों का प्रयोग टोकरियाँ, चटाइयाँ, कुर्सियों की सीट आदि बनाने में किया जाता है। जैसे- बॉस।
- भराव रेशे (Filling Fibers)–उदाहरण-कपास, मदार, सेमल, कोयर (नारियल) आदि के रेशे भराव रेशों के नाम से जाने जाते हैं। जो कि रजाइयाँ, गद्दे तथा तकिये आदि के भरने में प्रयुक्त किये जाते हैं।
- प्राकृतिक रेशे (Natural Fibres)-शहतूत (Broussonetia papyrifera) की छाल से टापा वस्त्र (Tapa cloth) बनाया जाता है।
- कागज बनाने वाले रेशे (Paper making fibres)–बाँस, | नीलगिरि (Eucalyptus) कई प्रकार की घासे, सफेदा (Populus alba) आदि सभी कागज बनाने वाले रेशे हैं। इनसे कागज, बोर्ड आदि बनाये जाते हैं।
वस्त्र रेशे (Textile Fibers)
कपास (Cotton)
वानस्पतिक नाम – गॉसीपियम जातियाँ (Gossypium spp.)
कुल – मालवेसी (Malvaceae)
आर्थिक दृष्टि से उपयोगी पादप भाग-रेशों के लिये बाह्यबीजचोल (Testa) पर स्थित सतह रेशे, वसीय तेलों के लिये बीज। कपास की कई जातियाँ हैं। जैसे-गा.हिर्स्टम (G.hirsutum), गॉ. हर्बेसियम | (G.herbaceum), गॉ. आर्बोरियम (G. arboreum) तथा गॉ. बाबेंडेन्स (G. barbadense) आदि प्रमुख हैं।
भारत प्राचीन काल से कपास तथा इससे सम्बन्धित उत्पादों के निर्माण का प्रमुख केन्द्र था। भारत में उत्पादित ढाका की मलमल (Dacca Muslin) विश्व प्रसिद्ध थी।।
पादप- यह एकवर्षीय, 2-6 फीट ऊँचा पादप है। इसका तना उत्रे, अशाखित, काष्ठीय, भूरे रंग का होता है। पत्तियाँ हस्ताकार, पालिवत, पुष्प बड़े, सवृन्त, सहपत्र तीन, बड़े, दलपुंज बड़े प्रायः पीले, व्यावर्तित पुंकेसर असंख्य, एकसंघी, फल विदारक सम्पुटिका (Loculicidal capsules) होते हैं। तरुण फल को डोडी (Boll) कहते हैं। कपास का बीज अण्डाकार, भूरा तथा बाह्यबीजचोल पर लम्बे, सफेद रेशेमय अतिवृद्धियाँ उत्पन्न होती हैं। लिन्ट या स्टेपल (Lint or staple) व्यापारिक रेशा होता है तथा इसी के साथ छोटे रेशे फज (Fuzz) भी होते हैं।
MCu-2, 3, Ak-277, सुजाता, महालक्ष्मी, वराहलक्ष्मी आदि सभी कपास की उन्नत किस्में हैं।
कपास के उपयोग-
- कपास के रेशे (रूई से) सूती वस्त्र, समिश्र वस्त्र (Blended clothes), होजरी पदार्थ उत्पादित किये जाते हैं।
- रेशे शुद्ध सेल्युलोज होने के कारण उद्योग में कच्ची सामग्री के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
- इनका प्रयोग कम्बल, रस्से, दरियाँ, फर्श व टायरों को बनाने में किया जाता है।
- गद्दे, तकिये, रजाई भरने में।
- इस रेशे से अवशोषक रूई, पट्टियाँ आदि बनायी जाती हैं।
- कपास के बीज का प्रयोग अर्धशुष्कन खाद्य तेल को प्राप्त करने में भी किया जाता है।
सन, सनई (San, Sunhemp)
वानस्पतिक नाम – क्रोटेलेरिया जन्सिया (Crotalaria juncea)
कुल – लेग्युमिनोसी (Leguminosae) अथवा फेबेसी (Fabaceae)
उपकुल – पेपिलियोनेटी (Papilionatae)
उपयोगी पादप भाग – स्तम्भ फ्लोएम रेशे तथा परिरम्भ रेशे।
सन की उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप से मानी जाती है। भारत में इसकी खेती आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु व मध्यप्रदेश तथा कुछ अन्य राज्यों में की जाती है। सन की खेती रेशे व हरी खाद के लिये की जाती है। पादप-सन हेम्प का पादप काफी लम्बा (1.5 मीटर), एकवर्षी, शाकीय क्षुप है। इसकी खेती वर्षा ऋतु में की जाती है। इसके रेशे को स्तम्भ से बास्ट रेशे के रूप में प्राप्त किया जाता है। इस रेशे का स्तम्भ से पृथक्करण पूयीविरेशन या अपगलन (Retting) विधि द्वारा किया जाता है। इस प्रक्रिया में पके हुए पौधों के समूह (Bundle) को जल में डुबोकर 5-7 दिन तक सड़ाया जाता है। सड़ाने का कार्य क्लोस्ट्रिडियम ब्यूटेरिकम जीवाणु करते हैं। इसके पश्चात रेशों को स्तम्भ से छीलकर, धोकर व सुखाकर गोंठों में बाँध लिया जाता है।
रेशों का उपयोग-
- सन के रेशों को बटकर (Twist) मुख्यत: रस्से बनाये जाते हैं।
- इन रेशों से किरमिच (Canvas), बोरियाँ, मछली पकड़ने के जाल व पतली डोरियाँ बनायी जाती हैं।
- अपरिपक्व रेशों से सिगरेट का कागज, टिशु पेपर बनाये जाते हैं।
- पूरा पादप हरी खाद के रूप में उपयोगी होता है।
- बीजों से प्राप्त गोंद छपाई उद्योग में उपयोगी होता है।
प्रश्न 2.
सर्पगन्धा तथा हींग का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सर्पगन्धा तथा हींग का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है-
सर्पगंधा (Serpent Wood)
वानस्पतिक नाम – रोवॉल्फिया सपेण्टाइना (Rauvolfia serpentina)
कुल – एपोसाइनेसी (Apocynaceae)
उपयोगी पादप भाग – शुष्क मूलें व मूलों की छाल।
उत्पत्ति- इस पादप को ‘पागल की दवा’ कहा जाता है। भारत ही इसका मूल उत्पत्ति स्थान है। इसके अलावा यह अन्य प्रदेशों जैसेबांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार (बर्मा), थाइलैण्ड, इण्डोनेशिया, मलेशिया तथा अफ्रीका में पाया जाता है। यह भारत में असोम, हिमालय के तराई प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र व अन्यत्र व्यावसायिक स्तर पर उगाया जाता है।
पादप-
- सर्पगन्धा पादप एक बहुवर्षीय, सदाहबाहर, रोमरहित, छोटी झाड़ी होती है।
- इसकी जड़े कंदिल, लहरदार टेढ़ी-मेढ़ी (साँप की आकृति की) झुरींदार व खुरदरी, छाल हल्के भूरे रंग की होती है। इनकी ताजा मूलों में साँप की गंध आती है।
- सर्पगन्धा की पर्णे सरल, चक्रिक, बड़ी भालाकार होती हैं।
- पुष्पक्रम-यह ससीमाक्षी होता है। इसके पुष्प-छोटे सफेद या हल्के गुलाबी रंग के तथा फल एकबीजीय कैप्सूल होते हैं।
- पादप की मूलों व छाल से औषधि प्राप्त की जाती है।
- सर्पगन्धा की मूल-छाल में सर्वाधिक (90%) ऐल्केलोइड्स होते हैं। रिसर्पिन सबसे महत्त्वपूर्ण ऐल्केलाइड्स है तथा अन्य हैं-रिसरपिनिन, अजामेलिन, अजामेलिनन, रॉवोल्फिनिन आदि।
उपयोग-
- इसका उपयोग मानसिक रोगों व अनिद्रा, मिर्गी में रिसार्पिन व उच्च रक्त चाप में सर्पेन्टाइन का उपयोग किया जाता है।
- यह तीव्र पागलपन की प्रभावशाली दवा है।
- इसे सर्पदंश, बिच्छू व कीड़ों के प्रतिविष (Antitoxin) के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
- यह सुगम प्रसव के लिये प्रसूता को दिया जाता है।
- सर्पगन्धा काढ़ा का प्रयोग दस्त, पेचिस एवं आँतों के दर्द में लाभकारी होता है। यह काढ़ा कृमिहर (Anthelimitic) भी होता है।
- सर्पगन्धा से सरपीना, सर्पगन्धा टेबलेट, घनवटी, गुटिका, स्लीपिल्स आदि औषधियों का निर्माण होता है।
हींग (Asafoetida)
वानस्पतिक नाम – फेरुला ऐसोफोइटिडा (Ferula asafoetida)
कुल – एपीएसी, या अम्बेलीफेरी (Apiaceae, or Umbellifere)
उपयोगी पादप भाग- मूलकंदों से स्रावित ओलियो गमरेजिन
पादप –
- यह पादप एक बहुवर्षी छोटी झाड़ी है।
- इसकी मूलें व मूलकंदों की आकृति शंक्वाकार होती है।
- इसका स्तम्भ उर्ध्व, पर्णे बड़ी व विभाजित होती हैं।
- हींग पादप का पुष्पक्रम छत्रक होता है।
- इसके पुष्प एकलिंगी वह द्विलिंगी तथा फल छोटे होते हैं।
- हींग की खेती अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, ईरान, पाकिस्तान व भारत (जम्मू-कश्मीर) में की जाती है।
- हींग के पादप से हींग प्राप्त करने के लिए एक वर्ष आयु की झाड़ियों को जमीन के समीप से काट दिया जाता है। इस भाग से ओलियोरेजिन रिसकर गाढ़ा हींग बन जाता है।
- हींग की गंध पाइनीन तथा स्वाद फेरुलिक अम्ल के कारण होता है।
औषधीय उपयोग-
- हींग कृमिहर (Anthelmintic), प्रतिउद्धेष्टि (Antispasmodic), वाजीकारक (Aphrodisiac), वातहर (Carminative), स्वेदनकारी (Diaphoretic), पाचक, (Digestive) मूत्रक (Vretic) कफोत्सारक (Expectorant) रेचक (Laxative) तथा उद्दीपक (Stimulant) होती है।
- इसका प्रयोग कुछ विशेष रोगों के लिये किया जाता है। जैसे- चिरकाली श्वसनीशोथ (Chronic bronchitis), उदरशूल (Colicpain), दाँत दर्द, अजीर्ण, मंदाग्नि, आफरा, मूर्छा, पेट फूलना मिर्गी आदि।
- हिंग्वास्टक चूर्ण, योगराज, गुग्गल, हिंगड़ी वटी आदि प्रमुख आयुर्वेदिक योग का निर्माण हींग से किया गया है।
- हमारे भोज्य पदार्थों में प्रयुक्त सामग्री में हींग को प्रमुख मसाले का स्थान प्राप्त है।
प्रश्न 3.
मसालों पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
मसाले (Spices)- हिल (1952) ने मसालों की परिभाषा इस प्रकार दी है-“सामान्य रूप से शुष्क व कड़े पादप पदार्थ जिनमें सगंध तेल (Essential oil) उपस्थित हो, मसाले कहलाते हैं, जिनका प्रयोग चूर्ण रूप में किया जाता है। इन्हें खाद्य अनुबंध (Food adjuncts) कहा जाता है। इनका प्रयोग भोजन को स्वादिष्ट, सुगन्धयुक्त, पाचक व पोषक बनाने के लिये किया जाता है। भारतीय मसालों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-
1. लौंग (Clove)—इसका वानस्पतिक नाम – सिजीजियम ऐरोमेटिकम (Syzygium aromaticum) कुल – मिटेंसी (Myrtaceae) है। उपयोगी पादप भाग – शुष्क पुष्प कलिकाएँ हैं। लौंग ससीम पुष्पक्रम से उत्पन्न होते हैं। लौंग अखुली पुष्प कलिकाओं को सुखाकर प्राप्त किया जाता हैं। लौंग में रुचिकर तीव्र गंध इसमें उपस्थित वाष्पशील तेल यूजिनोल (Euginol) की उपस्थिति के कारण होती है। लौंग गर्म मसाले का प्रमुख घटक है। वातहर होने के कारण इसका प्रयोग अजीर्ण तथा जठर खिंचाव में किया जाता है।
2. काली मिर्च (Black Pepper) इसका वानस्पतिक नाम पाइपर नाइग्राम जो पाइसिरेसी कुल का सदस्य है। काली मिर्च के अपरिपक्व शुष्क ड्रप को मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसे मसालों का राजा कहा जाता है। इसका मसाले व औषधि के रूप में व्यापक उपयोग किया जाता है। इसे आयुर्वेदिक चूर्गों में घटक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
3. हल्दी (Turmeric)-मसालों का जिक्र हो तो हल्दी का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह कुरकुमा लौंगा (Curcuma longa) वानस्पतिक नाम से जानी जाने वाली जिन्जीबरेसी कुल की सदस्य है। हल्दी के सुखाए हुए भूमिगत रूपान्तरित प्रकन्द (Rhizome) को मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग सब्जियों, अचार आदि के निर्माण में आवश्यक रूप से किया जाता है। यह एक प्रभावशाली रक्तशोधक औषधि है। इसके अलावा इसे चोट लगने पर त्वचा रोगों, सौंदर्य प्रसाधनों, सूती, रेशमी वस्त्रों को रंगने, धार्मिक व सांस्कृतिक उत्सवों में पवित्र पदार्थ के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। यह सर्दी, जुकाम, खांसी, पीलिया व दमा में अत्यन्त लाभकारी औषधि है।
4. लालमिर्च (Chillies)-यह कैप्सिकम एनुअम (Capsicum annuam) सोलेनेसी (Salanaceae) कुल की सदस्य है। इसके परिपक्व लाल शुष्क बेरी फल को मसाले के रूप में तथा कच्चे हरे फल सब्जी के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। लाल मिर्च का चूर्ण प्रमुख मसाला है। एशिया तथा अफ्रीकी देशों में इसका प्रयोग सब्जियों,
नमकीनों, सास चटनियों व आचार में बहुतायत से किया जाता है।
5. सौंफ (Fennel) : इसका वानस्पतिक नाम फीनीकुलम वगैर (Foeniculum vulgare) है जो ऐपीएसी, या अम्बेलीफेरी कुल का सदस्य है। सौंफ के भिदुर फल (Schizocarpic) क्रीमोकार्प का प्रयोग मसाले के रूप में अचार, बिस्कुट व अन्य पदार्थ बनाने में किया जाता है।
6. धनिया (Coriander) : इसका वानस्पतिक नाम-कोरिएन्ड्रम सेटाइवम (coriandrum sativum) है जो एपीएसी, या अम्बेलीफेरी कुल का सदस्य है तथा इसका परिपक्व क्रीमोकार्प फल व पत्तियाँ उपयोग की जाती हैं। इन शुष्क फलों के चूर्ण को मसाले के रूप में सब्जियाँ, कड़ी, चाट, चटनियाँ बनाने में प्रयोग किया जाता है।
7. जीरा (Cumin) : इसे क्यूमिनम साइमिनस (Cuminum cyminurm) वानस्पतिक नाम से जाना जाता है जो कि एपीएसी, या अम्बेलीफेरी कुल का सदस्य है। इसका फल लम्बा, अण्डाकार तथा शुष्क, परिपक्व क्रीमोकार्प होता है। जो कि उपयोगी पादप भाग होने के कारण सब्जियों को तड़का (छौंक) लगाने व सगंधित आदि करने में प्रयोग होता है। भूने हुए जीरे के चूर्ण का उपयोग दही-बड़ों, जलजीरा व आयुर्वेदिक चूर्गों में किया जाता है।
8. अजवायन (Lovage) जिसे ट्रेकीस्पर्मम ऐमी (Trachyspermum ammi) वानस्पतिक नाम से जाना जाता है, यह ऐपीएसी, अम्बेलीफेरी कुल का सदस्य है। इसके भी शुष्क, परिपक्व क्रीमोकार्प फल को प्रयोग में लाया जाता है। अजवायन मसालों में प्रमुख स्थान रखते हुए मठरी, पकौड़ी, बिस्कुट आदि के पकाने में प्रयुक्त होता है। प्रसव के उपरान्त प्रसूता को अजवायन के लड्डू खिलाये जाते हैं।
प्रश्न 4.
राजस्थान के प्रमुख औषधीय पादपों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
राजस्थान के प्रमुख औषधीय पादपों का वर्णन निम्न प्रकार है।
1. अश्वगंधा (Asutagandha)
वानस्पतिक नाम – विथैनिया सोम्नीफेरा (Withania somnifera)
कुल – सोलेनेसी (Solanaceae)
उपयोगी पादप भाग- मूलें।
औषधीय उपयोग – यह एक शक्तिवर्धक औषधि है, जिसका उपयोग स्नायुओं की कमजोरी को दूर करने के लिये किया जाता है।
2. सतावर (Asparagus)
वानस्पतिक नाम – ऐस्पेरेगस रेसीमोसम (Asparagus racemosus)
कुल – लिलिएसी (Liliaceae)
उपयोगी पादप भाग – मूलें
औषधीय उपयोग – यह एक शक्तिवर्धक औषधि के रूप में प्रयुक्त होती है।
3. सफेद मूसली (Safed musli)
वानस्पतिक नाम – ऐस्पेरेगम एडसेण्डेन्स (Asparagus adscendens)
अथवा
क्लोरोफाइटम बोरिविलिएनम (Chorophytum borivilianum)
कुल – लिलिएसी (Liliaceae)
उपयोगी पादप भाग – मूलें
औषधीय उपयोग – इसका उपयोग शारीरिक दुर्बलता को समाप्त करने के लिये किया जाता है। यह एक शक्तिवर्धक औषधि है।
4. अर्जुन (Arjun)
वानस्पतिक नाम – टर्मिनेलिया अर्जुना (Terminalia arjuna) कुल – कोम्ब्रिटेसी (Combretaceae) उपयोगी पादप भाग – स्तम्भ की छाल औषधीय उपयोग – इसका प्रयोग हृदय रोगों में विशेषतया किया जाता है।
5. नीम (Neem)
वानस्पतिक नाम – अजेडिरेक्टा इण्डिका (Azadiracta indica) कुल – मीलिएसी (Meliaceae) उपयोगी पादप भाग – इसकी तने की छाल, पत्तियाँ आदि विशेष रूप से औषधीय महत्त्व की होती हैं।
औषधीय उपयोग – यह उत्तम निर्जमीकारी है।
6. ब्राह्मी (Brahmi)
वानस्पतिक नाम – सेन्टेला एशियेटिका (Centela asiatica)
कुल – एपीएसी (Apiaceae)
उपयोगी पादप भाग – इनकी पणें विशेष उपयोगी हैं।
औषधीय उपयोग – इसका प्रयोग विशेषकर स्मरण शक्ति को तीव्र करने के लिये किया जाता है।
7. ग्वारपाठा (Aloe vera)
वानस्पतिक नाम – ऐलोवेरा (Aloe vera)
कुल – लिलिएसी (Liliaceae)
उपयोगी पादप भाग–पणे
औषधीय उपयोग – शक्तिवर्धक एवं त्वचा को स्वस्थ करने के लिये प्रयुक्त होती है।
8. तुलसी (Holibasil)
वानस्पतिक नाम – ओसीसम सैक्टम (Ocimum sanctum)
कुल – लेमिएसी (Lamiaceae)
उपयोगी उपयोग- इन्हें खाँसी, बुखार आदि में प्रयोग किया जाता
9. सोनामुखी
वानस्पतिक नाम – केसिया एन्गस्टिफोलिया (Cassia angustifolia)
कुल – सीजलपिनिएसी (Caesalpiniaceae)
उपयोगी पादप भाग – पर्णे
औषधीय उपयोग – रेचक के रूप में प्रयोग किया जाता है।
10. गुगल (Guggal)
वानस्पतिक नाम – कोमीफोरा वाइटाई (Commiphora wightii)
कुल – बसेरेसी (Burseraceae)
उपयोगी पादप भाग – स्तम्भ स्राव
औषधीय उपयोग- गठिया, मोटापे में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।