RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 21 मानव का अध्यावरणी तंत्र
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 21 मानव का अध्यावरणी तंत्र
Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 21 मानव का अध्यावरणी तंत्र
RBSE Class 12 Biology Chapter 21 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Biology Chapter 21 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मानव की त्वचा का विकास होता है —
(अ) मीसोडर्म से
(ब) एक्टोडर्म से
(स) एक्टोडर्म व मीसोडर्म से
(द) एक्टोडर्म वे एण्डोडर्म से
उत्तर:
(स) एक्टोडर्म व मीसोडर्म से
प्रश्न 2.
मानव की त्वचा की सबसे बाहरी पर्त कहलाती है —
(अ) किण स्तर
(ब) कणी स्तर
(स) शूल स्तर
(द) स्वच्छ स्तर
उत्तर:
(अ) किण स्तर
प्रश्न 3.
एलीडिन नामक पदार्थ पाया जाता है —
(अ) कणी स्तर
(ब) शूल स्तर
(स) किण स्तर
(द) स्वच्छ स्तर
उत्तर:
(द) स्वच्छ स्तर
प्रश्न 4.
कैरोटोहाइलिन नामक पदार्थ पाया जाता है —
(अ) शूल स्तर
(ब) कणी स्तर
(स) अंकुरण स्तर
(द) किण स्तर
उत्तर:
(ब) कणी स्तर
प्रश्न 5.
अधिचर्म के व्युत्पन्न संरचनाएँ होती हैं —
(अ) नाखून
(ब) स्वेद ग्रंथियाँ
(स) तेल ग्रंथियाँ
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
प्रश्न 6.
तैलीय ग्रंथियाँ होती हैं —
(अ) एपोक्राइन
(ब) मीरोक्राइन
(स) होलोक्राइन
(द) एक्राइन
उत्तर:
(स) होलोक्राइन
प्रश्न 7.
त्वचा का अवरोधी स्तर कहलाता है —
(अ) किण स्तर
(ब) स्वच्छ स्तर
(स) कणी स्तर
(द) शूल स्तर
उत्तर:
(ब) स्वच्छ स्तर
प्रश्न 8.
स्वेद ग्रंथियाँ होती हैं —
(अ) एपोक्राइन
(ब) मीरोक्राइन
(स) एक्राइन
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) एक्राइन
प्रश्न 9.
रोम में वर्णक कण पाये जाते हैं —
(अ) वल्कुट स्तर में
(ब) क्यूटिकल में
(स) मेड्यूला में
(द) उपरोक्त सभी में
उत्तर:
(अ) वल्कुट स्तर में
प्रश्न 10.
त्वचा के नीचे पाया जाने वाला वसीय स्तर सहायक होता है —
(अ) त्वचा को सुडौल बनाने में
(ब) तापरोधी स्तर बनाने में
(स) खाद्य संग्रह में
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(ब) तापरोधी स्तर बनाने में
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 21 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
त्वचा के द्वारा कौन-सा विटामिन संश्लेषित होता है ?
उत्तर:
विटामिन-डी।
प्रश्न 2.
मिबोमियन ग्रंथियाँ मानव शरीर में कहाँ पायी जाती हैं ?
उत्तर:
पलकों की बरौनियों (Eye-lashes) के नीचे।
प्रश्न 3.
मानव की दुग्ध ग्रंथियाँ किसका रूपान्तरण है ?
उत्तर:
तेल ग्रंथियों का।
प्रश्न 4.
स्तन ग्रंथियाँ किस प्रकार की ग्रंथियाँ होती है?
उत्तर:
स्तन ग्रंथियाँ एपोक्राइन प्रकार की होती हैं।
प्रश्न 5.
त्वचा को “हरफनमौला” क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
शरीर में त्वचा अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करती है, अतः इसे शरीर का हरफनमौला अंग कहा जाता है।
प्रश्न 6.
मानव की त्वचा का रंग कौन से वर्णक की उपस्थिति के कारण होता है ?
उत्तर:
मिलेनिन वर्णक की उपस्थिति के कारण।
प्रश्न 7.
चर्म स्तर का उद्भव किससे होता है ?
उत्तर:
भ्रूणीय मीसोडर्म से।
प्रश्न 8.
चर्म स्तर में कौन-सी प्रोटीन पाई जाती है ?
उत्तर:
केरेटोहाएलिन प्रोटीन।
प्रश्न 9.
तेल ग्रंथियाँ में पाये जाने वाले तेलीय पदार्थ का नाम लिखो।
उत्तर:
सीबम।
प्रश्न 10.
बालों की गति का संचालन करने वाली पेशियों का नाम लिखो।
उत्तर:
ऐरेक्टर पिलाई पेशियाँ (Arrector pili muscles) ।
प्रश्न 11.
‘रेटे पेग्स’ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अधिचर्म के अंकुरण स्तर पर उपस्थित उभारों को ‘रेटे पेग्स कहते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 21 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मानव की त्वचा के अधिचर्म में पाये जाने वाले विभिन्न स्तरों का वर्णन करो।
उत्तर-
अधिचर्म के पाँच उप-स्तर होते हैं-
- मैल्पीधी स्तर,
- स्पाइनोसम स्तर,
- ग्रॅन्युलोसम स्तर,
- ल्यूसिडियम स्तर तथा
- कॉरनियम स्तर।
- मैल्पीधी स्तर (Stratum Malpighi)-यह अधिचर्म का सबसे भीतरी स्तर होता है, जो चर्म के ठीक बाहर स्थित होता है। यह स्तर जीवित, स्तम्भाकार कोशिकाओं का बना होता है।
- स्पाइनोसम स्तर (Stratum Spinosum)-मैल्पीधी स्तर के बाहर स्थित कई कतारों की कोशिकाएँ बहुकोणीय होती हैं तथा शाखित दिखाई देती है। इस स्तर का कार्य अधिचर्म को दृढ़ता प्रदान करना है।
- ग्रैन्यूलोसम स्तर (Stratum granulosum)-इस स्तर की कोशिकाओं के कोशिका द्रव में “किरेटीहाएलिन” प्रोटीन के कण पाये जाते हैं।
- ल्यूसीडियम स्तर (Stratum lucidium)-इस स्तर की कोशिकाओं में “एलीडीन” नामक पदार्थ भरा होता है।
- कॉरनियम स्तर (Stratum Corneum)-यह स्तर चपटी, पतली एवं शल्काकार निर्जीव कोशिकाओं से बना सबसे बाहरी स्तर है।
प्रश्न 2.
मानव की त्वचा के उदग्र काट का नामांकित चित्र बनाओ।
उत्तर:
कृपया चित्र संख्या मानव के सम्पूर्ण शरीर पर बाह्म आवरण के रूप में त्वचा पायी जाती है। त्वचा एवं त्वचा के विभिन्न व्युत्पन्न (Derivatives) मिलकर एक अध्यावरणी तंत्र (Integumentary System) बनाते हैं। मानव की त्वचा में मीसोडर्मल कोशिकाएँ (Mesodermal cells), वर्णक मैलेनिन (Melanin) युक्त होती हैं। यह संयोजी ऊतक द्वारा नीचे आधारीय भाग. में पायी जाने वाली पेशियों से जुड़ी रहती हैं। त्वचा का पेशीय स्तर (Mascular layer) एवं देहगुहीय उपकला (Coelomic epithelium) मिलकर देह भित्ति (Body wall) बनाते हैं का अवलोकन करें।
प्रश्न 3.
त्वचा में पाये जाने वाले रोम की संरचना एवं उसके कार्य लिखो।
उत्तर:
रोम अधिचर्म के सजीव एवं सक्रिय मैल्पीधी स्तर से बनते हैं। इसके निम्नलिखित भाग होते हैं —
- रोम पुटक (Hair Follicle)-रोम का आधार भाग चर्म में धेसा होता है तथा यह थैली के आकार की रचना बनाता है। इस थैली को रोम पुटक कहते हैं।
- रोम की जड़ (Hair root)-रोम पुटक के तल पर स्थित कोशिकाएँ सक्रियता से विभाजित होती रहती हैं तथा इन्हीं से रोम की जड़ का निर्माण होता है। जड़ चर्म में पैंसी रहती है।
- रोम पैपिला (Hair papila)-रोम पुटक की तली पर एक छिछला गड्डा होता है तथा इसमें चर्म की रुधिर कोशिकाएँ एक घना गुच्छा बना लेती हैं। इस गुच्छे को रोम पैपिला कहते हैं।
- रोम काण्ड (Hair shaft)-चर्म से बाहर त्वचा की सतह पर निकला हुआ रोम का ठोस भाग, रोम काण्ड कहलाता है। यह रोम का निर्जीव भाग होता है क्योंकि यहाँ पर रोम की कोशिकाओं का किरेटीनीकरण (Keratinization) हो जाता है।
- ऐरेक्टर पिलाई पेशियाँ (Arrector pili muscles)-ये विशेष पेशियाँ पुटिका से निकलकर चर्म में लगी रहती हैं और बालों की गति का संचालन करती हैं भय या ठण्ड लगने की अवस्था में बालों का खड़ा होना इनके द्वारा नियंत्रित होता है।
प्रश्न 4.
मानव की त्वचा में पाई जाने वाली तेल ग्रंथियों का वर्णन करो।
उत्तर:
तेल या सिबेसियस ग्रंथियाँ (Oil or sebaceous glands)-ये ग्रंथियाँ बालों की जड़ों एवं पुटिकाओं के पास पाई जाती हैं तथा पुटिका की एपीथीलियम के वलन से बनती हैं। ये ग्रंथियाँ पुटिका में ही खुलती हैं। तेल ग्रन्थियाँ होलोक्राइन होती हैं जिनमें स्राव भर जाने । पर ग्रंथि कोशिका टूटकर स्रावित पदार्थ के साथ ही बाहर चली जाती है। तेल ग्रंथियाँ रचना में शाखित एवं कोष्ठीय होती हैं। इन ग्रंथियों में दूध के समान गाढ़ा तेल जैसा पदार्थ बनता है, जिसे सीबम (Sebum) कहते हैं। यह रोम काण्ड को चिकना रखता है, इससे त्वचा चिकनी और जल रोधी रहती है। हथेली और तलुओं के अलावा तेल ग्रंथियाँ शरीर के सभी भागों पर पायी जाती हैं। इन ग्रंथियाँ से सूर्य के प्रकाश में विटामिन डी का संश्लेषण भी हो सकता है।
प्रश्न 5.
स्वेद ग्रंथियाँ का वर्णन करो।
उत्तर:
स्वेद ग्रंथियाँ (Sweat glands)-ये ग्रंथियाँ सरल नलिकाकार ग्रंथियाँ हैं। इनका निचला कुण्डलित भाग चर्म में नीचे धैसा रहता है। इनकी महीन नलिका अधिचर्म की सतह पर बाहर खुलती है। इन ग्रंथियाँ से पसीने का स्रावण होता है। पसीने में जल, कुछ लवण, यूरिया की कुछ मात्रा और CO2 , होते हैं। इन्हीं कारणों से पसीना नमकीन होता है। ये एक्राइन या मोरोक्राइन प्रकार की ग्रंथियाँ होती हैं जिनका स्रावी पदार्थ कोशिका झिल्ली से रिस-रिस कर बाहर आता है। मानव में ऐपोक्राइन स्वेद ग्रंथियाँ आँख की पलकों, जननांगों के पास, गुदा तथा चुचकों के पास पायी जाती हैं। स्वेद ग्रंथियाँ हथेली, तलुओं और बगल में सर्वाधिक होती हैं। स्वेद ग्रंथियों का मुख्य कार्य शरीर के ताप का नियमन करना है।
प्रश्न 6.
स्तन ग्रंथियों का वर्णन करो।
उत्तर-
स्तन ग्रंथियाँ (Mammary glands)–मानव में ये ग्रंथियों वक्ष भाग में स्थित होती हैं। ये ग्रंथियाँ चर्म की गहराई में स्थित होती हैं। इनकी रचना संयुक्त नलिकाकार या संयुक्त कूपिकीय प्रकार की होती है। स्तन में कई नलिकाएँ मिलकर सह नलिकाएँ बनाती हैं। ये ग्रंथियाँ एपोक्राइन प्रकार की होती हैं। स्तन ग्रंथियाँ मादा में सक्रिय होती हैं तथा दुग्ध का स्रावण करती हैं जिससे शिशु का पोषण किया जाता है। स्तन ग्रंथियों की वृद्धि एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्टान हॉरमोन्स (Hormocnes) द्वारा नियन्त्रित होती है तथा इनमें दुग्ध का निष्कासन ऑक्सीटोसीन हॉर्मोन द्वारा होता है। साधारणतः स्तन ग्रंथियाँ तेल ग्रंथियाँ के रूपान्तरण से बनती हैं।
प्रश्न 7.
त्वचा के पाँच कार्य लिखो।
उत्तर-
त्वचा को हरफनमौला वाला अंग कहा जाता है। इसके पाँच प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं —
- शरीर की सुरक्षा (Protection of body)- यह शरीर का सुरक्षात्मक आवरण बनाती है जो आन्तरांगों को बाहरी चोट, रगड़, धक्कों आदि से बचाती है। यह हानिकारक जीवाणुओं, कृमियों, फहूँद आदि के प्रवेश को रोकती है, व इनसे सुरक्षा करती है। त्वचा से व्युत्पन्न संरचनाओं जैसे-रोम, नाखून आदि की सहायता से शरीर के कोमल अंगों को सुरक्षित । रखती है। त्वचा जल अवरोधी का कार्य करती है। तीव्र प्रकाश में उपस्थित पराबैंगनी किरणों से रक्षा करती है।
- शरीर का ताप नियंत्रण (Temperature regulation of body)-मानव समतापी प्राणी है। अतः वातावरण के ठंडे या गर्म होने पर भी शरीर का तापक्रम निश्चित ही रहता है। स्वस्थ मनुष्य का
तापक्रम 984°F रहता है। त्वचा के नीचे उपस्थित वसीय स्तर ताप | प्रतिरोधी स्तर बनाता है। स्वेद ग्रंथियाँ (Sweat glands) शीतलन प्रणाली (Cooling system) बनाती हैं। शरीर का ताप बढ़ने पर स्वेद ग्रंथियाँ अधिक सक्रिय हो जाती हैं तथा पसीने का स्रावण करने लगती हैं। जो त्वचा की सतह से भाप बनकर उड़ता है व शरीर को ठण्डा करता है। ताप का नियमन हाइपोथैलेमस स्थित तापस्थायी केन्द्र के निर्देशों अनुसार किया जाता है। - शरीर की आकृति (Shape of the body)-त्वचा शरीर | की आकृति बनाये रखने में सहायक होती है।
- खाद्य संग्रह (Storage of food materials)-त्वचा के वसीय ऊतक में वसा का संचय किया जाता है जो खाद्य भण्डार का कार्य करता है।
- उत्सर्जन (Excretion)-त्वचा द्वारा स्रावित पसीने में लवण, यूरिया एवं CO2 , पाये जाते हैं। अतः इन्हें बाहर निकाल कर उत्सर्जन में | सहायता करती है।
प्रश्न 8.
श्रृंगी भवन किसे कहते हैं ? इससे बनने वाले कौन-कौन से अंग है, उनके नाम लिखो।
उत्तर:
श्रृंगी भवन (Keratinization)-अधिचर्म की बाहरी कोशिकाओं में निर्जीव किरेटिन बनने की प्रक्रिया को किरेटिनाइजेशन या श्रृंगीभवन कहते हैं। मानव में इस प्रक्रिया द्वारा सुरक्षा हेतु बाह्य कंकाल के विभिन्न अंग बनते हैं-जैसे बाल, नाखून आदि।
प्रश्न 9.
ऐरेक्टर पिलाई पेशियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
ऐरेक्टर पिलाई पेशियाँ (Arrector pili muscles)ये विशेष प्रकार की पेशियाँ हैं जो अरेखित तंतुओं की बनी होती हैं। ये पेशियाँ पुटिका (follicle) से निकलकर चर्म में लगी रहती हैं और बालों की गति का संचालन करती है। जब ये संकुचित होती हैं तो बाल खड़े हो जाते हैं। भय की अवस्था में या ठण्ड लगने पर बालों का खड़ा होना। इन्हीं पेशियाँ द्वारा नियंत्रित होता है। इन पेशियों के चारों ओर तंत्रिका-तंतु लिपटे रहते हैं।
प्रश्न 10.
आँख व कान से सम्बन्धित त्वचीय ग्रंथियों का वर्णन करो।
उत्तर:
आँख से सम्बन्धित त्वचीय ग्रंथियों को मीबोमियन ग्रंथियाँ कहते हैं तथा कान से सम्बन्धित त्वचीय ग्रंथियाँ को सेरूमिनस ग्रंथियाँ कहते हैं।
मीलोमियन ग्रंथियाँ (Meibomian glands)-ये सीबेसियस ग्रंथियों के रूपान्तरण से बनती हैं। ये ग्रंथियाँ पलकों की बरौनिया (Eyelashes) के नीचे पायी जाती हैं। ये एक तैलीय पदार्थ का स्रावण करती हैं जो कार्निया को चिकना रखता है। यह कार्निया पर पतली फिल्म बनाता है व उसकी सुरक्षा करता है।
सेमिनस ग्रंथियाँ (Seruminous Glands)-ये बाह्य कर्णनाल की त्वचा में स्थित होती हैं। ये कुण्डलित व नलिकाकार ग्रंथियाँ होती हैं। ये स्वेद ग्रंथियों से रूपान्तरित होती हैं। ये सीबेसियस ग्रंथियों के साथ मिलकर सेरूमन नामक कर्ण मोम का स्रावण करती हैं। यह सेरूमन कर्ण पटह की सुरक्षा करता है।
प्रश्न 11.
गंध ग्रंथियाँ कहाँ होती हैं इनका प्रमुख कार्य क्या है ?
उत्तर:
मूलाधार या वक्षण ग्रंथियाँ (Perineal glands)-ये सीबेसियस ग्रंथियों का रूपान्तरण होती हैं। ये ग्रंथियाँ गुदा एवं मूत्र जनन छिद्र के बीच मूलाधार या वक्षण क्षेत्र में स्थित होती हैं। ये एक गंध युक्त पदार्थ का स्रावण करती हैं अतः इसे गन्ध ग्रंथियाँ (Scent glands) भी कहते हैं। ये एपोक्राइन प्रकार की ग्रंथियाँ होती हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 21 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मानव की त्वचा के विभिन्न भागों का सचित्र वर्णन करो।
उत्तर:
कृपया अनुच्छेद मानव की त्वचा में दो प्रमुख स्तर होते हैं
I. अधिचर्म (Epidermis) तथा
II. चर्म (Dermis)
I. अधिचर्म (Epidermis):
यह भ्रूणीय एक्टोडर्म (Ectoderm) से विकसित होती है। इसमें रूधिर घाहिनियों का अभाव होता है। शरीर के भिन्न-भिन्न भागों में इसकी मोटाई भिन्न-भिन्न होती है। जिन भागों में रगड़ लगती है वहाँ यह सबसे अधिक मोटी होती है, जैसे-तलुए एवं हथेली। नेत्र व कार्निया में यह अत्यधिक पतली होती है। अधिचर्म की कोशिकाएँ अनेक परतों की बनी होती हैं इसलिए इसे स्तरित एपिथीलियल ऊतक (Stratified epithelial tissue) कहते हैं। भीतर से बाहर की ओर अधिचर्म में क्रमशः पाँच स्तर पाये जाते हैं
1. अंकुरण स्तर या मैल्पीघी स्तर (Stratum germinativum or stratum malpighi)-यह अधिचर्म का सबसे भीतरी स्तर होता है जो चर्म के ठीक बाहर स्थित होता है। इस स्तर की कोशिकाएँ जीवित होती हैं। ये चर्म से निर्मित आधारकला (Basement membrane) से चिपकी रहती हैं। यह स्तर स्तम्भकार कोशिकाओं (Columnar cells) का बना होता है। यह स्तर चर्म में स्थित रूधिर कोशिकाओं से पोषण ग्रहण करता रहता है। इसकी कोशिकाएँ सदैव विभाजित होती रहती है जिससे नई पर्ते बनकर बाहर की ओर खिसकती रहती हैं। इस स्तर की कोशिकाएँ जगह-जगह पर कगारों के रूप में बाहर की ओर उभरी रहती हैं। इन उभारों को रीटी पेग्स (Rete Pegs) कहते हैं। वर्णक कोशिकाएँ (Pigment Cells) इन कोशिकाओं के बीच में उपस्थित होती हैं तथा त्वचा को रंग प्रदान करती हैं। इनमें मिलेनिन वर्णक भरा होता है।
2. शूल स्तर या स्पाइनोसम स्तर (Stratum spinosum)अंकुरण स्तर या मैल्पीधी स्तर के बाहर स्थित कई कतारों की कोशिकाएँ बहुकोणीय (Polyhedral) होती हैं तथा शाखित दिखाई देती हैं। यह स्तर शूल स्तर या स्पाइनोसम स्तर (Stratum spinosum) कहलाता है। इस स्तर का कार्य अधिचर्म को दृढ़ता प्रदान करना है।
3. कणीस्तर या ग्रेन्युलोसम स्तर (Stratum granulosum)| शूल स्तर के बाहर की ओर 5-6 पर्वो की कोशिकाएँ ग्रेन्यूलोसम स्तर बनाती हैं। इस स्तर की कोशिकाओं के काशिकाद्रव्य में केरेटोहाएलिन (Keratohyline) नामक प्रोटीन के सूक्ष्म कण भरे होते हैं।
4. स्वच्छ स्तर या ल्यूसिडियम स्तर (Startum lucidium)– कणी स्तर के बाहर की 3-4 पर्ते चपटी कोशिकाओं की बनी होती हैं। इनके कोशिकाद्रव्य में एलीडिन (Eleidin) नामक पदार्थ भरा होता है जो केरेटोहाएलिन के विघटन से निर्मित होता है। इनका केन्द्रक नष्ट हो जाता है और ये कोशिकाएँ पारदर्शी हो जाती हैं। इसे अवरोधक स्तर भी। कहते हैं क्योंकि इससे त्वचा जलरोधी हो जाती है।
5. किणस्तर या कॉरनियम स्तर (Stratum corneum)-यह अधिचर्म का सबसे बाह्य स्तर है जो चपटी व पतली शल्काकार (Scalelike) कोशिकाओं का बना होता है। ये कोशिकाएँ (Non-living) निर्जीव हो जाती है क्योंकि इनका एलीडिन युक्त कोशिकाद्रव्य सूख जाता है और मृत पदार्थ हार्न (सींग) या किरेटिन में परिवर्तित हो जाते हैं। यह स्तर सबसे मोटा होता है क्योंकि इस स्तर में कोशिकाओं की 8-10 पर्ते होती हैं। तलुओं और हथेली पर किण स्तर अधिक मोटा होता है।
किण स्तर की कोशिकाएँ निर्जीव, चपटी तथा पतली होती हैं, जो अंकुरण स्तर से लगातार वृद्धि के कारण ऊपर खिसकती रहती हैं और त्वचा से अलग होती रहती हैं। इससे त्वचा की सफाई होती रहती है तथा त्वचा रोगाणु रहित होती रहती है।
श्रृंगीभवन (Keratinization)– अधिचर्म की बाहरी कोशिकाओं में एक निर्जीव पदार्थ बनने की प्रक्रिया को किरेटिनाइजेशन या श्रृंगीभवन (Keratinization or hornification) कहते हैं। मानव में इस प्रक्रिया द्वारा सुरक्षा हेतु बाह्य कंकाल के विभिन्न अंग निर्मित हैं जैसे-बाल, नाखून आदि।
यह भ्रणीय मीसोडर्म (Embryonal mesodermis) से निर्मित त्वचा का भीतरी भाग होता है। यह अधिचर्म के नीचे स्थित होता है तथा अधिचर्म से लगभग 2-3 गुना मोटा होता है। यह लोचदार एवं मजबूत भाग होता है। इस स्तर का अधिकांश भाग तंतुमय संयोजी ऊतक (Fibrous connective tissue) का बना होता है। इसमें श्वेत कॉलेजन तंतु, पीले लचीले तंतु, रुधिर वाहिनियाँ, तंत्रिकाएँ, अरेखित पेशी तंतु, त्वक संवेदांग, त्वक ग्रंथियाँ, रोम पुटिकाएँ आदि संरचनाएँ पायी जाती हैं।
चर्म को दो भागों में विभेदित किया जाता है —
- पेपिलरी स्तर (Papillary layer)-यह स्तर पतला होता है। इसमें पतले कॉलेजन तंतु, लचीले तंतु तथा रुधिर वाहिनियों की । अधिकता होती है। इसमें रसांकुर (villi) समान प्रवर्ध पाये जाते हैं व अधिचर्म इसी पर टिकी होती है।
- जालिका स्तर (Reticular layer)-रेटिकुलर स्तर मोटा । होता है व इसमें तंतु मोटा व दूर-दूर तक फैले रहते हैं। इस भाग में त्वक ग्रन्थियाँ, रोम पुटिकाएँ, त्वक संवेदांग व वसीय स्तर पाए जाते हैं।
चर्म के निचले भाग में मोटा वसीय ऊतक (Adipose tissue) का स्तर पाया जाता है जो तापरोधी स्तर बनता है। यह त्वचा को सुडौल बनाये रखने में भी सहायक होता है। का अध्ययन करें।
प्रश्न 2.
मानव की त्वचा के व्युत्पन्न कौन-कौन से हैं, वर्णन करो।
उत्तर:
कृपया अनुच्छेद 21.3 त्वचा के व्युत्पन्न (Derivative of skin)
मानवं की त्वचा में विशेष रचनाएँ पायी जाती हैं, जिन्हें त्वचा के व्युत्पन्न कहते हैं, जैसे
- रोम (Hair)
- त्वक ग्रंथियाँ (Cutaneous glands)
रोम तथा इसकी संरचना (Hair and its structure)
रोम अधिचर्म के सजीव एवं सक्रिय मैल्पीघी स्तर (Malpighi layer) से निर्मित हैं। इसके निम्नलिखित भाग होते हैं
(a) रोम पुटक (Hair follicle)-रोम का आधार भाग चर्म में धंसा होता है और थैली के आकार की रचना बनाता है। इस थैली को रोमपुटक (Hair follicle) कहते हैं। पुटक की भित्ति दो स्तरों की बनी होती है-
- चर्म का तन्तुमय बाहरी स्तर तथा
- अधिचर्म की कोशिकीय भीतरी स्तर।।
(b) रोम की जड़ (Hair root)-रोम पुटक के तल पर स्थित कोशिकाएँ सक्रियता से विभाजित होती रहती हैं तथा इन्हीं से रोम की जड़ का निर्माण होता है। जड़ चर्म में धंसी रहती है।
(c) रोम पैपिला (Hair papilla)-रोम पुटक की तली पर एक छिछला गड्ढा होता है तथा इसमें चर्म की रुधिर कोशिकाएँ एक घना गुच्छा बना लेती हैं। इस गुच्छे को रोम पैपिला (Hair papilla) कहते हैं। इस पैपिला से रुधिर कोशिकाओं द्वारा पोषक पदार्थ जड़ में पहुँचाये जाते हैं। पुटिका के भीतर पैपिला के ऊपर का जड़ भाग गाँठ के रूप में फूलकर बल्ब (Bulb) का निर्माण करता है।
(d) रोम काण्ड (Hair shaft)-चर्म से बाहर त्वचा की सतह पर निकला हुआ रोम का ठोस भाग रोम काण्ड (Hair shaft) कहलाता है। यह रोम का निर्जीव भाग होता है, क्योंकि इस भाग तक पहुँचते-पहुँचते रोम की कोशिकाओं में किरेटीनीकरण (Keratinization) हो जाता है। रोम-काण्ड के तीन भाग होते हैं
- उपत्वचा (Cuticle)-यह रोम का सबसे बाह्य स्तर होता है। यह अत्यन्त महीन व एककोशिका मोटा स्तर होता है। इसकी कोशिकाएँ शल्करूपी होती हैं व परस्पर आच्छादित रहती हैं।
- वल्कुट (Cortex)-यह मध्य स्तर होता है। इसमें कोशिकाओं के कई स्तर पाये जाते हैं। इस स्तर की कोशिकाओं के मध्य रंगाकण (Pigment particles) पाये जाते हैं जिनके कारण बालों का रंग होता है। रंगा कणिकाओं की कमी हो जाने पर वल्कुटी कोशिकाओं (Cortical cells) में हवा भर जाती है, इस कारण बाल सफेद दिखाई देते हैं।
- मध्यांश (Medulla)-यह रोम का सबसे भीतरी व मुख्य भाग होता है। इसमें परस्पर सटी हुई बहुकोणीय कोशिकाएँ (Polygonal | cells) पायी जाती हैं। ये कोशिकाएँ रोम का अक्ष (Axis) बनाती हैं।
(e) ऐरेक्टर पिलाई पेशियाँ (Arrector pili muscles)-ये विशेष प्रकार की पेशियाँ हैं जो अरेखित तंतुओं की बनी होती हैं। ये पेशियाँ पुटिका (Follicle) से निकलकर चर्म में लगी रहती हैं और बालों की गति का संचालन करती हैं। जब ये संकुचित होती हैं तो बाल खड़े हो जाते हैं। भय की अवस्था में या ठंड लगने पर बालों का खड़ा होना इन्हीं पेशियों द्वारा नियंत्रित होता है। इन पेशियों के चारों और तंत्रिका-तंतु (Nerve fibres) लिपटे रहते हैं तथा
- त्वचा के व्युत्पन्न (Derivative of skin) :
मानवं की त्वचा में विशेष रचनाएँ पायी जाती हैं, जिन्हें त्वचा के व्युत्पन्न कहते हैं, जैसे
- रोम (Hair)
- त्वक ग्रंथियाँ (Cutaneous glands)
रोम तथा इसकी संरचना (Hair and its structure):
रोम अधिचर्म के सजीव एवं सक्रिय मैल्पीघी स्तर (Malpighi layer) से निर्मित हैं। इसके निम्नलिखित भाग होते हैं
(a) रोम पुटक (Hair follicle)-रोम का आधार भाग चर्म में धंसा होता है और थैली के आकार की रचना बनाता है। इस थैली को रोमपुटक (Hair follicle) कहते हैं। पुटक की भित्ति दो स्तरों की बनी होती है-
- चर्म का तन्तुमय बाहरी स्तर तथा
- अधिचर्म की कोशिकीय भीतरी स्तर।।
(b) रोम की जड़ (Hair root)-रोम पुटक के तल पर स्थित कोशिकाएँ सक्रियता से विभाजित होती रहती हैं तथा इन्हीं से रोम की जड़ का निर्माण होता है। जड़ चर्म में धंसी रहती है।
(c) रोम पैपिला (Hair papilla)-रोम पुटक की तली पर एक छिछला गड्ढा होता है तथा इसमें चर्म की रुधिर कोशिकाएँ एक घना गुच्छा बना लेती हैं। इस गुच्छे को रोम पैपिला (Hair papilla) कहते हैं। इस पैपिला से रुधिर कोशिकाओं द्वारा पोषक पदार्थ जड़ में पहुँचाये जाते हैं। पुटिका के भीतर पैपिला के ऊपर का जड़ भाग गाँठ के रूप में फूलकर बल्ब (Bulb) का निर्माण करता है।
(d) रोम काण्ड (Hair shaft)-चर्म से बाहर त्वचा की सतह पर निकला हुआ रोम का ठोस भाग रोम काण्ड (Hair shaft) कहलाता है। यह रोम का निर्जीव भाग होता है, क्योंकि इस भाग तक पहुँचते-पहुँचते रोम की कोशिकाओं में किरेटीनीकरण (Keratinization) हो जाता है। रोम-काण्ड के तीन भाग होते हैं
- उपत्वचा (Cuticle)-यह रोम का सबसे बाह्य स्तर होता है। यह अत्यन्त महीन व एककोशिका मोटा स्तर होता है। इसकी कोशिकाएँ शल्करूपी होती हैं व परस्पर आच्छादित रहती हैं।
- वल्कुट (Cortex)-यह मध्य स्तर होता है। इसमें कोशिकाओं के कई स्तर पाये जाते हैं। इस स्तर की कोशिकाओं के मध्य रंगाकण (Pigment particles) पाये जाते हैं जिनके कारण बालों का रंग होता है। रंगा कणिकाओं की कमी हो जाने पर वल्कुटी कोशिकाओं (Cortical cells) में हवा भर जाती है, इस कारण बाल सफेद दिखाई देते हैं।
- मध्यांश (Medulla)-यह रोम का सबसे भीतरी व मुख्य भाग होता है। इसमें परस्पर सटी हुई बहुकोणीय कोशिकाएँ (Polygonal cells) पायी जाती हैं। ये कोशिकाएँ रोम का अक्ष (Axis) बनाती हैं। | (e) ऐरेक्टर पिलाई पेशियाँ (Arrector pili muscles)-ये विशेष प्रकार की पेशियाँ हैं जो अरेखित तंतुओं की बनी होती हैं। ये पेशियाँ पुटिका (Follicle) से निकलकर चर्म में लगी रहती हैं और बालों की गति का संचालन करती हैं। जब ये संकुचित होती हैं तो बाल खड़े हो जाते हैं। भय की अवस्था में या ठंड लगने पर बालों का खड़ा होना इन्हीं पेशियों द्वारा नियंत्रित होता है। इन पेशियों के चारों और तंत्रिका-तंतु (Nerve fibres) लिपटे रहते हैं।
- त्वक ग्रन्थियाँ (Cutaneous glands)
त्वचा की ग्रंथियाँ बहिस्रावी (Exocrine) होती हैं क्योंकि इनमें नाल होती है जो अधिचर्म की सतह पर खुलती है। ये ग्रंथियाँ अधिचर्म के मैल्पीधी स्तर के चर्म में अन्तर्वलन (Invagination) से बनती हैं।
त्वचीय ग्रंथियाँ निम्नलिखित प्रकार की होती हैं
(a) स्वेद ग्रंथियाँ (Sweat glands)-ये ग्रंथियाँ सरल नलिकाकार (Tubular) ग्रंथियाँ हैं। इनका निचला कुण्डलित भाग चर्म में नीचे धंसा रहता है। इनकी महीन नलिका अधिचर्म की सतह पर बाहर खुलती है। इन ग्रंथियों से पसीने का स्रावण होता है। पसीने में जल, कुछ लवण, यूरिया की कुछ मात्रा और CO2 होते हैं, इन्हीं कारणों से पसीना नमकीन होता है। ये एक्राइन (Acrine) या मोरोक्राइन (Merocrine) प्रकार की ग्रंथियाँ होती हैं जिनका स्रावी पदार्थ कोशिका झिल्ली से रिस-रिस कर बाहर आता है। मनुष्य में लगभग 25 लाख स्वेद ग्रंथियाँ पाई जाती हैं। मानव में ऐपोक्राइन स्वेद ग्रंथियाँ आँख की पलकों, जननांगों के पास, गुदा तथा चुचकों के पास पायी जाती हैं। स्वेद ग्रंथियाँ हथेली, तलुओं और काँख (Armpit) में सर्वाधिक होती हैं।
स्वेद ग्रंथियों का मुख्य कार्य शरीर के ताप का नियमन करना है।
(b) तेल या सीबेसियस ग्रंथियाँ (Sebaceous glands)—ये ग्रंथियाँ बालों की जड़ों एवं पुटिकाओं (Follicles) के पास पायी जाती हैं। तथा पुटिका की एपिथीलियम के वलन से बनती हैं। ये ग्रंथियाँ पुटिका में । ही खुलती हैं। तेल ग्रंथियाँ होलोक्राइन (Holocrine) प्रकार की होती हैं, जिनमें स्राव भर जाने पर ग्रंथि कोशिका टूट कर स्रावित पदार्थ के साथ ही बाहर चली जाती है। तेल ग्रंथियाँ रचना में शाखित एवं कोष्ठीय होती हैं। इन ग्रंथियों में दूध के समान, गाढ़ा तेल जैसा पदार्थ बनता है जिसे सीबम (Sebum) कहते हैं। यह सीबम रोम काण्ड (Hair shaft) को चिकना रखता है, इससे त्वचा चिकनी एवं जलरोधी रहती है।
तेल ग्रंथियाँ शरीर के सारे भागों पर पायी जाती हैं किन्तु हथेली और तुलओं पर अनुपस्थित होती हैं। होंठ, शिश्न मुण्ड, स्तन की घुण्डियों पर बाल तो नहीं पाये जाते हैं किन्तु ये ग्रंथियों पायी जाती हैं। इन ग्रंथियों में सूर्य के प्रकाश में विटामिन डी का संश्लेषण भी हो सकता है।
(c) स्तन ग्रंथियाँ (Mammary glands)-मानव में ये ग्रंथियाँ वक्ष भाग में स्थित होती हैं। ये ग्रंथियाँ चर्म की गहराई में स्थित होती हैं। इनकी रचना संयुक्त नलिकाकार या संयुक्त कूपकीय प्रकार की होती है। स्तन में कई नलिकाएँ मिलकर सह नलिकाएँ बनाती हैं। ये ग्रंथियाँ एपोक्राइन (Apocrine) प्रकार की होती हैं। स्तन ग्रंथियाँ मादा में सक्रिय होती हैं तथा दुग्ध का स्रावण करती हैं जिससे शिशु का पोषण किया जाता है। स्तन ग्रंथियों की वृद्धि एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन्स द्वारा नियंत्रित होती है तथा इनसे दुग्ध का निष्कासन ऑक्सीटोसीन हॉर्मोन के द्वारा होता है। साधारणत: स्तन ग्रंथियाँ तेल ग्रंथियों के रूपान्तरण से बनती हैं।
(d) सेमिनस ग्रंथियाँ (Seruminous glands)-ये बाह्य कर्णनाल की त्वचा में स्थित होती हैं। ये कुण्डलित व नलिकाकार ग्रंथियाँ होती हैं। ये स्वेद ग्रंथियाँ की रूपान्तरण होती हैं। ये सीबेसियस ग्रंथियों के साथ मिलकर सेरूमन (Serumin) नामक कर्ण मोम (Ear wax) का स्रावण करती हैं। यह सेरूमन कर्ण पटह की सुरक्षा करता है।(e) मूलाधार या वक्षण ग्रंथियाँ (Perineal galnds)-ये सीबेसियस ग्रंथियों का रूपान्तरण होती हैं। ये ग्रंथियाँ गुदा तथा मूत्र जनन छिद्र के बीच मूलाधार या वक्षण क्षेत्र में स्थित होती हैं। ये एक गंध युक्त पदार्थ का स्रावण करती हैं। अतः इन्हें गन्ध ग्रंथियाँ (Scent glands) भी कहते हैं। ये एपोक्राइन (Apocrine) प्रकार की ग्रंथियाँ होती हैं।
(f) मीबोमियन ग्रंथियाँ (Meibomain glands)-ये सीबेसियस ग्रंथियों के रूपान्तरण से बनती हैं। ये ग्रंथियाँ पलकों की बरौनिया (Eye lashes) के नीचे पायी जाती हैं। ये एक तैलीय पदार्थ का स्रावण करती हैं जो कार्निया को चिकना बनाए रखता है। कार्निया पर पतली परत बनाता है व उसकी सुरक्षा करता है।
(g) जेस ग्रंथियाँ (Zeis glands)-ये भी सीबेसियस ग्रंथियों का रूपान्तरण होती हैं। ये ग्रंथियों भी पलकों की बरौनियों की पुटिकाओं में स्थित होती हैं। ये भी तैलीय पदार्थ का स्रावण करती हैं जो बरौनियों को चिकना बनाये रखने में सहायक होती हैं का अध्ययन करें।
प्रश्न 3.
मानव की त्वचा में पायी जाने वाली विभिन्न ग्रंथियों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर:
कृपया अनुच्छेद त्वक ग्रन्थियाँ (Cutaneous glands):
त्वचा की ग्रंथियाँ बहिस्रावी (Exocrine) होती हैं क्योंकि इनमें नाल होती है जो अधिचर्म की सतह पर खुलती है। ये ग्रंथियाँ अधिचर्म के मैल्पीधी स्तर के चर्म में अन्तर्वलन (Invagination) से बनती हैं।
- त्वचीय ग्रंथियाँ निम्नलिखित प्रकार की होती हैं —
(a) स्वेद ग्रंथियाँ (Sweat glands)-ये ग्रंथियाँ सरल नलिकाकार (Tubular) ग्रंथियाँ हैं। इनका निचला कुण्डलित भाग चर्म में नीचे धंसा रहता है। इनकी महीन नलिका अधिचर्म की सतह पर बाहर खुलती है। इन ग्रंथियों से पसीने का स्रावण होता है। पसीने में जल, कुछ लवण, यूरिया की कुछ मात्रा और CO2 होते हैं, इन्हीं कारणों से पसीना नमकीन होता है। ये एक्राइन (Acrine) या मोरोक्राइन (Merocrine) प्रकार की ग्रंथियाँ होती हैं जिनका स्रावी पदार्थ कोशिका झिल्ली से रिस-रिस कर बाहर आता है। मनुष्य में लगभग 25 लाख स्वेद ग्रंथियाँ पाई जाती हैं। मानव में ऐपोक्राइन स्वेद ग्रंथियाँ आँख की पलकों, जननांगों के पास, गुदा तथा चुचकों के पास पायी जाती हैं। स्वेद ग्रंथियाँ हथेली, तलुओं और काँख (Armpit) में सर्वाधिक होती हैं।
स्वेद ग्रंथियों का मुख्य कार्य शरीर के ताप का नियमन करना है।
(b) तेल या सीबेसियस ग्रंथियाँ (Sebaceous glands)—ये ग्रंथियाँ बालों की जड़ों एवं पुटिकाओं (Follicles) के पास पायी जाती हैं। तथा पुटिका की एपिथीलियम के वलन से बनती हैं। ये ग्रंथियाँ पुटिका में । ही खुलती हैं। तेल ग्रंथियाँ होलोक्राइन (Holocrine) प्रकार की होती हैं, जिनमें स्राव भर जाने पर ग्रंथि कोशिका टूट कर स्रावित पदार्थ के साथ ही बाहर चली जाती है। तेल ग्रंथियाँ रचना में शाखित एवं कोष्ठीय होती हैं। इन ग्रंथियों में दूध के समान, गाढ़ा तेल जैसा पदार्थ बनता है जिसे सीबम (Sebum) कहते हैं। यह सीबम रोम काण्ड (Hair shaft) को चिकना रखता है, इससे त्वचा चिकनी एवं जलरोधी रहती है।
तेल ग्रंथियाँ शरीर के सारे भागों पर पायी जाती हैं किन्तु हथेली और तुलओं पर अनुपस्थित होती हैं। होंठ, शिश्न मुण्ड, स्तन की घुण्डियों पर बाल तो नहीं पाये जाते हैं किन्तु ये ग्रंथियों पायी जाती हैं। इन ग्रंथियों में सूर्य के प्रकाश में विटामिन डी का संश्लेषण भी हो सकता है।
(c) स्तन ग्रंथियाँ (Mammary glands)-मानव में ये ग्रंथियाँ वक्ष भाग में स्थित होती हैं। ये ग्रंथियाँ चर्म की गहराई में स्थित होती हैं। इनकी रचना संयुक्त नलिकाकार या संयुक्त कूपकीय प्रकार की होती है। स्तन में कई नलिकाएँ मिलकर सह नलिकाएँ बनाती हैं। ये ग्रंथियाँ एपोक्राइन (Apocrine) प्रकार की होती हैं। स्तन ग्रंथियाँ मादा में सक्रिय होती हैं तथा दुग्ध का स्रावण करती हैं जिससे शिशु का पोषण किया जाता है। स्तन ग्रंथियों की वृद्धि एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन्स द्वारा नियंत्रित होती है तथा इनसे दुग्ध का निष्कासन ऑक्सीटोसीन हॉर्मोन के द्वारा होता है। साधारणत: स्तन ग्रंथियाँ तेल ग्रंथियों के रूपान्तरण से बनती हैं।
(d) सेमिनस ग्रंथियाँ (Seruminous glands)-ये बाह्य कर्णनाल की त्वचा में स्थित होती हैं। ये कुण्डलित व नलिकाकार ग्रंथियाँ होती हैं। ये स्वेद ग्रंथियाँ की रूपान्तरण होती हैं। ये सीबेसियस ग्रंथियों के साथ मिलकर सेरूमन (Serumin) नामक कर्ण मोम (Ear wax) का स्रावण करती हैं। यह सेरूमन कर्ण पटह की सुरक्षा करता है।
(e) मूलाधार या वक्षण ग्रंथियाँ (Perineal galnds)-ये सीबेसियस ग्रंथियों का रूपान्तरण होती हैं। ये ग्रंथियाँ गुदा तथा मूत्र जनन छिद्र के बीच मूलाधार या वक्षण क्षेत्र में स्थित होती हैं। ये एक गंध युक्त पदार्थ का स्रावण करती हैं। अतः इन्हें गन्ध ग्रंथियाँ (Scent glands) भी कहते हैं। ये एपोक्राइन (Apocrine) प्रकार की ग्रंथियाँ होती हैं।
(f) मीबोमियन ग्रंथियाँ (Meibomain glands)-ये सीबेसियस ग्रंथियों के रूपान्तरण से बनती हैं। ये ग्रंथियाँ पलकों की बरौनिया (Eye lashes) के नीचे पायी जाती हैं। ये एक तैलीय पदार्थ का स्रावण करती हैं जो कार्निया को चिकना बनाए रखता है। कार्निया पर पतली परत बनाता है व उसकी सुरक्षा करता है।
(g) जेस ग्रंथियाँ (Zeis glands)-ये भी सीबेसियस ग्रंथियों का रूपान्तरण होती हैं। ये ग्रंथियों भी पलकों की बरौनियों की पुटिकाओं में स्थित होती हैं। ये भी तैलीय पदार्थ का स्रावण करती हैं जो बरौनियों को चिकना बनाये रखने में सहायक होती हैं का अध्ययन करें।
प्रश्न 4.
त्वचा को हरफनमौला’ अंग क्यों कहा गया है? अपनी विस्तृत टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
कृपया अनुच्छेद त्वचा के कार्य (Functions of Skin):
शरीर में त्वचा अनेक महत्वपूर्ण कार्य करती है अत: इसे शरीर का हरफनमौला अंग (Jack of all trades) कहा जाता है।
त्वचा के प्रमुख कार्य इस प्रकार है|
- शरीर की सुरक्षा (Protection of body)- त्वचा शरीर का सुरक्षात्मक आवरण बनाती है जो आन्तरांगों को बाहरी चोट, रगड़, धक्कों आदि से बचाती है। यह हानिकारक जीवाणुओं, कृमियों, फफूद आदि के प्रवेश को रोकती है तथा इनसे सुरक्षा करती है। त्वचा से व्युत्पन्न संरचनाओं जैसे-रोम, नाखून आदि की सहायता से शरीर के कोमल अंगों को सुरक्षित रखती है। त्वचा जल अवरोधक का कार्य करती है। तीव्र प्रकाश में उपस्थित पराबैगनी किरणों (Ultraviolet rays) से रक्षा करती है।
- शरीर का ताप नियंत्रण (Temperature regulation of body)-मानव समतापी प्राणी है। अतः वातावरण के ठंड़े व गर्म होने पर शरीर का तापक्रम निश्चित ही रहता है। स्वस्थ मनुष्य के शरीर का तापक्रम 98.4°F होता है। त्वचा के नीचे उपस्थित वसीय स्तर ताप निरोधी स्तर बनाता है। स्वेद ग्रंथियाँ (Sweat glands) शीतलन प्रणाली (Cooling system) बनाती हैं। शरीर का ताप बढ़ने पर स्वेद ग्रंथियाँ अधिक सक्रिय हो जाती हैं व पसीने का स्रावण करने लगती हैं जो त्वचा की सतह से भाप बनकर उड़ता है व शरीर को ठण्डा करता है। ताप का नियमन हाइपोथैलेमस स्थित तापस्थायी केन्द्र के निर्देशों के अनुसार किया जाता है।
- शरीर की आकृति (Shape of the body)-त्वचा शरीर की आकृति बनाये रखने में सहायक होती है।
- खाद्य संग्रह (Storage of food material)-त्वचा के वसीय ऊतक में वसा का संचय किया जाता है जो खाद्य भण्डार का कार्य करता है।
- उपयोगी पदार्थों का स्रावण (Sercetion of useful substances)-त्वचा में पाई जाने वाली विभिन्न ग्रंथियाँ तेल, कर्णमोम, दूध, व विटामिन डी आदि उपयोगी पदार्थों का स्रावण करती हैं।
- उत्सर्जन (Excretion)-त्वचा द्वारा स्रावित पसीने में लवण, यूरिया तथा CO2, पाये जाते हैं। अतः इन्हें बाहर निकाल कर उत्सर्जन में सहायता करती है।
- गमन (Locomotion)-त्वचा लचीली होने के कारण गमन में सहयोगी होती है।
- कंकाल निर्माण (Skeletion formation)-त्वचा की। चर्म के संयोजी ऊतक से कलाजात अस्थियों (Membranous bones) का निर्माण होता है।
- अवशोषण (Absorption)-त्वचा तैल आदि के लिए पारगम्य होती है। अतः इनकी मालिश करने पर त्वचा इनका अवशोषण कर ऊतकों को लाभ पहुँचाती है।
- उद्दीपन ग्रहण (Reception of stimuli)-त्वचा की चर्म में उपस्थित विभिन्न संवेदांग संवेदनाओं को ग्रहण कर उसे संवेदी अंग। का दर्जा प्रदान करते हैं।
- दाँतों का निर्माण (Formation of teeth)-दाँतों के कुछ भागों का निर्माण त्वचा की चर्म (Dermis) से होता है। दाँत भोजन चबाने में सहायक होते हैं।
- लैंगिक आकर्षण (Sexual attraction)-त्वचा में स्थित बालों का रंग, विन्यास तथा मूलाधार ग्रंथियों द्वारा स्रावित गंध युक्त पदार्थ लैंगिक आकर्षण में सहायक होते हैं।
- पुनरूदभवन (Regeneration)-चोट लग जाने पर त्वचा की अधिचर्म में पुनरूद्भवन द्वारा घाव को भरने की बहुत क्षमता होती है।
का अध्ययन करें।