RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 34 मानव में आर्तव चक्र
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 34 मानव में आर्तव चक्र
Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 34 मानव में आर्तव चक्र
RBSE Class 12 Biology Chapter 34 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 12 Biology Chapter 34 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मादा स्तनियों में हर माह होने वाले प्रजनन चक्र को क्या कहते हैं?
(अ) मद चक्र
(ब) आर्तव चक्र
(स) उपरोक्त दोनों
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) उपरोक्त दोनों
प्रश्न 2.
स्त्रियों में आर्तव चक्र कितने दिनों का होता है?
(अ) 18 दिन
(ब) 28 दिन
(स) 38 दिन
(द) 12 दिन
उत्तर:
(ब) 28 दिन
प्रश्न 3.
आर्तव चक्र के दौरान रजोधर्म की क्रिया कितने दिनों तक होती है ?
(अ) 4-7 दिन
(ब) 8-12 दिन
(स) 13-20 दिन
(द) 26-30 दिन
उत्तर:
(अ) 4-7 दिन
प्रश्न 4.
अण्डोत्सर्ग के लिए आवश्यक हॉर्मोन है-
(अ) FSH
(ब) LH
(स) एस्ट्रोजन
(द) ऑक्सिटोसिन
उत्तर:
(ब) LH
प्रश्न 5.
दुग्ध निष्कासन के लिए आवश्यक हॉर्मोन है-
(अ) FSH
(ब) LH
(स) एस्ट्रोजन
(द) ऑक्सिटोसिन
उत्तर:
(द) ऑक्सिटोसिन
RBSE Class 12 Biology Chapter 34 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आर्तव चक्र कितने दिनों का होता है?
उत्तर:
आर्तव चक्र तीन से पाँच दिनों का होता है।
प्रश्न 2.
मादा स्तनियों में पाए जाने वाले प्रजनन चक्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मादा स्तनियों में पाए जाने वाले प्रजनन चक्रों के नाम हैं-मद चक्र और आर्तव चक्र।
प्रश्न 3.
प्रसव के दौरान कौन-से हार्मोन का स्रावण होता है?
उत्तर:
प्रसव के दौरान ऑक्सिटोसिन हार्मोन का स्रावण होता है।
प्रश्न 4.
गर्भावस्था के दौरान कौन-से हार्मोन का स्रावण होता है?
उत्तर:
गर्भावस्था के दौरान प्रोलैक्टिन हॉर्मोन का स्रावण होता है।
RBSE Class 12 Biology Chapter 34 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मद चक्र क्या है?
उत्तर:
मद चक्र बहुत अल्प समय के लिए होता है। यह लैंगिक परिपक्वता से संबंधित होता है। प्राइमेट स्तनियों को छोड़कर शेष सभी स्तनियों में यह चक्र पाया जाता है। इस अवधि में मादा जन्तु नर को सहवास के लिए प्रेरित करती है।
प्रश्न 2.
आर्तव चक्र क्या है?
उत्तर:
महिलाओं में माहवारी चक्र पाया जाता है, जिसमें जनन काल में एस्ट्रोजन सतत् रूप से स्रावित होता रहता है। यही कारण है कि मादा जनन तन्त्र में नियमित चक्रीय परिवर्तन होते हैं, जो आर्तव चक्र (Menstrual Cycle) कहलाते हैं। मेन्सस् का अर्थ माह होता है। 12-14 वर्ष की उम्र में प्रथम बार माहवारी (Puberty) आरम्भ होती है, जिसे रजोदर्शन (Menarche) कहा जाता है। स्त्रियों में आर्तव चक्र (Menstrual Cycle) औसतन 28 दिन का होता है।
प्रश्न 3.
अण्डोत्सर्ग प्रावस्था कौन-सी होती है?
उत्तर:
दोनों हार्मोन LH व FSH आर्तव चक्र को मध्य 14वें दिन अपने उच्चतम स्तर को प्राप्त करते हैं। मध्य चक्र के दौरान LH का स्तर अधिकतम स्तर पर पहुँच जाता है। इसे LH सर्ज कहा जाता है। यह सर्ज अण्डोत्सर्ग के लिए आवश्यक होता है।
आर्तव चक्र के 14वें दिन ग्राफीयन पुटक कट जाता है एवं इसमें स्थित परिपक्व अण्डाणु मुक्त हो जाता है। यह प्रक्रिया अण्डोत्सर्ग (Ovulation) कहलाती है। इस क्रिया को LH (Luteinizing Hormone) द्वारा नियन्त्रित किया जाता है।
RBSE Class 12 Biology Chapter 34 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आर्तव चक्र का सविस्तार विवरण दीजिए।
उत्तर:
महिलाओं में माहवारी चक्र पाया जाता है। जिसमें जनन काल में एस्ट्रोजन नियमित रूप से स्रावित होता रहता है। यही कारण है कि मादा जनन तन्त्र में नियमित चक्रीय परिवर्तन होते हैं, जिन्हें आर्तव चक्र (Menstrual cycle) कहा जाता है। मेन्सस् का अर्थ माह होता है। 12-14 वर्ष की उम्र में प्रथम बार माहवारी (Puberty) शुरू होती है, जिसे रजोदर्शन (Menarche) कहा जाता है। इस चक्र का अन्त लगभग 50 वर्ष की आयु तक होता है। इस अवस्था को रजोनिवृत्ति (Menopause) कहा जाता है। महिलाओं में आर्तव चक्र औसतन 28 दिन का होता है। आर्तव चक्र का निम्ननिखित बिन्दुओं के आधार पर समझा जा सकता है-
(1) आर्तव चक्र (Menstrual cycle)-प्राइमेट स्तनियों में होने वाले जनन चक्र को आर्तव चक्र कहा जाता है। रजस्राव प्रारम्भ के प्रथम दिन से यह चक्र प्रारम्भ होता है जो तीन से पाँच दिन तक रहता है। इसे रजो गर्म या ऋतुस्राव (Menstruation or menses) भी कहा जाता है। इस प्रावस्था में रक्त, ऊतक द्रव (Tissue fluid) श्लेष्मा (Mucous) व उपकला कोशिकाओं का आवर्ती अव (Periodic discharge) होता है । इस प्रावस्था में गर्भाशय के अन्त:स्तर (Endometrium) का अस्थाई स्तर स्ट्रेटम फंक्शनेलिस (Stratum functionalis) जुड़ जाती है। गर्भाशय अंतः स्तर बहुत पतली हो जाती है क्योंकि अब स्ट्रेटम-बेसेलिस (Stratum basalis) ही शेष बचती है। यह स्राव गर्भाशयी गुहा से गर्भाशय-ग्रीवा में होता हुआ योनि (Vagina) से बाहर चला जाता है। सामान्यत: यह आस्राव पाँचवें दिन तक रुक जाता है। जब रजस्राव नहीं होता है, तो यह गर्भधारण का संकेत होता है।
(2) पुट्टकीय प्रावस्था (Follicular phase)-पुट्टकीय प्रावस्था महावारी के 6 वें दिन से 13वें दिन तक होती है जिससे हाइपोथैलेमस के FSH-RF के उद्दीपन द्वारा पीयूष ग्रन्थि द्वारा FSH का स्रावण बढ़ जाता है। जिसके द्वारा प्राइमरी फॉलिकल को ग्राफियन फॉलिकल में परिवर्तित होने के लिए उद्दीपन करता है। फालिकुलर कोशिकाओं से एस्ट्रोजन नामक हार्मोन स्रावित होता है। एस्ट्रोजन का बढ़ता हुआ स्तर एण्डोमैट्रियम को मोटा करता है व इसे पुनर्निर्मित करता है। टूटी रूधिर वाहिनियों द्वारा ऊतकों व श्लेष्म झिल्ली की मरम्मत की जती है। इस प्रावस्था में सबसे अधिक ऐस्ट्रोजन हार्मोन का स्राव होता है। 13वें दिन एकदम से LH हार्मोन बढ़ जाता है।
3. अण्डोत्सर्ग प्रावस्था (Ovulatory phase)-आर्तव चक्र के 14वें दिन LH व FSH दोनों ही हार्मोन अपने उच्चतम स्तर को प्राप्त करते हैं। मध्य चक्र के दौरान LH का स्तर अधिकतम स्तर पर पहुँच जाता है। इसे LH सर्ज कहते हैं। यह सर्ज अण्डोत्सर्ग के लिए आवश्यक होता है।
आर्तव चक्र के 14वें दिन ग्राफीयन पुटक फट जाता है एवं इसमें स्थित परिपक्व अण्डाणु स्वतन्त्र हो जाते हैं। इस क्रिया को अण्डोत्सर्ग (Ovulation) कहा जाता है। यह क्रिया LH (Luteinizing hormone) द्वारा नियन्त्रित की जाती है।
(4) पश्च अण्डोत्सर्ग प्रावस्था (Post-ovulatory phase)-पश्च अण्डोत्सर्ग प्रावस्था 15वें दिन से 28 दिन तक की होती है। अण्डोत्सर्ग के बाद LH का स्रावण कार्पस ल्यूटियम (Corpus luteum) के परिवर्द्धन को प्रेरित करता है। अब कॉर्पस ल्यूटियम से एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरॉन का अधिक स्रावण होता है। यह प्रोजेस्टेरॉन गर्भाशय की अंतः स्तर को निषेचित अण्डाणु के आरोपण रोपण के लिए तैयार करता है। प्रोजेस्टोरान गर्भाशयी अन्तःस्तर को बनाए रखता है। जिसमें गर्भाशय अंत:स्तर का मोटा होना, ग्लाइकोजन संग्रह करना तथा ऊतक द्रव की मात्रा में वृद्धि होती है।
प्रश्न 2.
मानव में प्रसव पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
मानव मे निषेचन से लेकर प्रसव तक औसत 9 महीने अथवा लगभग 266 दिन का समय लगता है। इस काल को गर्भकाल (Gestation period) कहा जाता है। प्रसव एक जटिल तंत्रिका अन्त:स्रावी क्रियाविधि द्वारा प्रेरित होता है। पूर्ण विकसित गर्भ व अपरा से प्रसव के संकेत उत्पन्न होते हैं। प्रसव की प्रक्रिया के दौरान विभिन्न प्रकार के तन्त्रिकीय अन्तःस्रावी हार्मोन्स की जटिल प्रक्रिया द्वारा गर्भाशय (Uterus) का तीव्र संकुचन होता है। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप नवजात शिशु का जन्म होता है। नवजात शिशु के जन्म लेने की प्रक्रिया को प्रसव (Parturition) कहा जाता है। सर्विक्स (Cervix) के संकुचन व मुख खुलने से प्रसव पीड़ा की शुरुआत होती है।
विकसित गर्भ व अपरा से उत्पन्न संकेतों के कारण गर्भाशय में हल्के संकुचन उत्पन्न होते हैं जिन्हें गर्भ उत्क्षेपण प्रतिवर्त (Foetal ejection Reflex) कहा जाता है। ये प्रतिवर्त पीयूष ग्रन्थि को आक्सीटोसिन स्रावण के लिए प्रेरित करते हैं। यह हार्मोन गर्भाशय की चिकनी पेशियों को संकुचन के लिए प्रेरित करता है जिसके परिणामस्वरूप संकुचन तीव्र हो जाते हैं। जिससे गर्भ को सर्विक्स की तरफ धकेला जाता है जिससे ऑक्सिटोसिन स्रावित होता है तथा संकुचन तीव्रतम हो जाते हैं एवं गर्भ प्रसव नाल से बाहर आ जाता है जिसे प्रसव निष्कासन (Expulsion) कहा जाता है। डॉक्टरों द्वारा प्रसव पीड़ा को प्रेरित करने के लिए मिसोप्रोस्टोल (Misoprostol) या पिटोसिन का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 3.
मानव में दुग्ध स्रावण पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
गर्भावस्था के पाँचवें सप्ताह से लेकर प्रसव तक प्रोलैक्टिन (Prolactin, PRL) का स्राव अग्रपीयूष ग्रन्थि द्वारा होता है, जो दुग्ध स्रावण के लिए उत्तरदायी होता है। इसके अलावा आँवल के द्वारा भी अधिक मात्रा में ह्युमन कॉरिओनिक सोमेटोमेमोट्रोपिन (HCST) का स्राव होता है जो दुग्ध स्रावण में मदद करता है। जन्म के समय व कुछ दिनों तक मादा के स्तनों से एक तरल स्रावित होता है जिसे कोलॉस्ट्रम (Colostrum) या खीस कहा जाता है। इसमें दुग्ध के समान प्रोटीन व लैक्टोस की समान मात्रा होती है, इसमें प्रतिरक्षी (lgA) पाये जाते हैं जो जन्म लेने वाले शिशु में निष्क्रिय प्रतिरक्षा उत्पन्न करते हैं।
कूपिकाओं के द्वारा दुग्ध स्रावण होता है, जिसके बाद दूध → पाली (Ductule) → स्तन वाहिनी (Mammary duct) → स्तन तंत्रिका (Mammary sinus) → दुग्ध वाहिनी (Lactifevous duct) → वक्ष चुचुक (Breast nipple) के द्वारा नवजात शिशु द्वारा ग्रहण किया जाता है। इसके स्रावण में तन्त्रिकीय व हार्मोनी प्रतिवर्त की आवश्यकता होती है।
दुग्ध के स्रावण के लिए पीयूष ग्रन्थि द्वारा स्रावित आक्सीटोसिन (Oxytocin) उत्तरदायी होता है। जब जन्म लेने वाला शिशु स्तनों से चूषण करता है तब कायिक तन्त्रिकीय संवेदी आवेग हाइपोथेलेमस तक पहुँचकर ऑक्सीटोसिन स्रावण करता है। यह रक्त के द्वारा स्तन तक पहुँचकर कूपिकाओं की स्तन ग्रन्थि की पेशी उपकला कोशिकाओं को संकुचित कर दुग्ध को नलिकाओं में प्रवाहित करता है जिससे नवजात को दुग्ध प्राप्त होता है।
प्रोलैक्टिन हार्मोन अग्र पिट्यूटरी द्वारा स्रावित होता है जो स्तनग्रन्थियों में दुग्ध संश्लेषण के लिए उत्तरदायी होता है जबकि पश्चपिट्यूटरी द्वारा स्रावित ऑक्सीटोसिन हार्मोन संश्लेषित दूध के स्रावण के लिए उत्तरदायी होता है। दुग्ध स्रावण एक प्रतिबन्धित प्रतिवर्त (Conditional relex) है। जिसमें चूषण प्रतिवर्त (Sucking reflex) एवं निष्कासन प्रतिवर्त (Ejection reflex) दोनों की सम्मिलित प्रक्रिया द्वारा दुग्ध स्रावण होता है। एक स्वस्थ शिशु के सर्वांगीण विकास के लिए प्रसव के बाद कुछ माह तक, स्तनपान अवश्य कराना चाहिए।