RBSE Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 15 बहुलक
RBSE Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 15 बहुलक
Rajasthan Board RBSE Class 12 Chemistry Chapter 15 बहुलक
RBSE Class 12 Chemistry Chapter 14 अभ्यास प्रश्न
RBSE Class 12 Chemistry Chapter 15 बहुविकल्पीय प्रश्न
1. बहुलकों के बारे में क्या सत्य नहीं है
(a) बहुलक कम अणुभार वाले होते हैं।
(b) बहुलक कोई आवेश नहीं रखते हैं।
(c) बहुलक की श्यानता उच्च होती हैं।
(d) बहुलक प्रकाश फैलाते हैं।
2. बहुलीकरण की विधि के आधार पर, बहुलकों को वर्गीकृत किया गया है
(a) केवल योगज बहुलकों के रूप में
(b) केवल संघनन बहुलकों के रूप में
(c) योगज व संघनन दोनों बहुलकों के रूप में
(d) सहबहुलकों के रूप में
3. टेफ्लॉन, स्टाइरीन व नियोप्रीन सभी बहुलक है
(a) सहबहुलक
(b) समबहुलक
(c) एकलक
(d) संघनन बहुलक
4. निम्न में से संघनन बहुलक है
(a) डेक्रॉन
(b) टेफ्लॉन
(c) PVC
(d) पॉलीथीन
5. बहुलकों के बारे में क्या सत्य नहीं है
(a) ऐथीन
(b) स्टाइरीन
(c) आइसोप्रीन
(d) ब्यूटाडाइईन
6. निम्न में से किसमें ऐस्टर बन्ध मिलता है
(a) नाइलॉन
(b) बैकेलाइट
(c) टेरिलीन
(d) रबर
7. टेरिलिन संघनन बहुलक है-एथिलीन ग्लाइकॉल व
(a) टरथैलिक अम्ल
(b) थैलिक अम्ल
(c) बेन्जोइक अम्ल
(d) ऐसीटिक अम्ल
8. नाइलॉन-6 का एकलक है
(a) ऐडिपिक अम्ल
(b) केप्रोलैक्टम
(c) 1,3 ब्यूटाडाइईन
(d) क्लोरोप्रीन
9. टेफ्लॉन बहुलक है
(a) टेट्राफ्लोरोऐथिलीन
(b) टेट्राआयोडोलीन
(c) टेट्राक्लोरोपेथिलीन
(d) टेट्राब्रोमोऐथिलीन
10. निम्न में से कौन-सा बहुलक जैव निम्नीकृत बहुलक है
(a) PVC
(b) सेलुलोस
(c) पॉलीथीन
(d) नाइलॉन-6
उत्तरमाला:
1. (a)
2. (c)
3. (b)
4. (a)
5. (c)
6. (c)
7. (a)
8. (b)
10. (b)
9. (a)
RBSE Class 12 Chemistry Chapter 15 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 11.
बहुलक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
बहुलक उच्च अणु संहति वाले यौगिक होते हैं, जो अधिक संख्या में छोटे अणुओं के मिलने से बनते हैं।
प्रश्न 12.
प्राकृतिक तथा कृत्रिम बहुलक का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक बहुलक : स्टॉर्च
कृत्रिम बहुलक : पॉलिथीन (पॉलीऐथिलीन)
प्रश्न 13.
समबहुलक तथा सहबहुलक में एक अन्तर बताइए।
उत्तर:
समबहुलक (Homopolymer) एक ही प्रकार के एकलकों से निर्मित होते हैं जबकि सहबहुलक (Copolymer) एक से अधिक प्रकार के एकलकों द्वारा निर्मित होते हैं।
प्रश्न 14.
मुक्त मूलक अभिक्रिया में श्रृंखला समापन कितनी प्रकार से हो सकता है?
उत्तर:
मुक्त मूलक अभिक्रिया में श्रृंखला समापन चार प्रकार से हो । सकता है
- युग्मन द्वारा (By coupling)
- असमानुपातन द्वारा (By disproportionation)
- श्रृंखला स्थानान्तरण द्वारा (By chain Transfer)
- निरोधक द्वारा (By Inhibitors)
प्रश्न 15.
धनायनी बहुलीकरण द्वारा किन एकलकों को बहुलीकरण होता है?
उत्तर:
धनायनी बहुलीकरण द्वारा विनाइल एकलकों का बहुलीकरण होता है।
उदाहरणार्थ: आइसोब्यूटिलीन,
प्रश्न 16.
संख्या औसत अणुभार का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 17.
रबर के वल्कनीकरण में प्रयुक्त पदार्थ का नाम बताइए।
उत्तर:
सल्फर (Sulphur)
प्रश्न 18.
निओप्रीन के एकलक का नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 19.
नाइलॉन-6, 6 का रासायनिक सूत्र लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 20.
संश्लेषित जैव बहुलकों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल।
RBSE Class 12 Chemistry Chapter 15 लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 21.
स्रोतों के आधार पर बहुलकों को कितने भागों में विभक्त किया गया है? प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
स्रोत/उत्पत्ति के आधार पर बहुलकों का वर्गीकरण स्रोतों से बहुलक प्राप्त किए जाते हैं उस आधार पर बहुलक प्राकृतिक बहुलक
प्रश्न 22.
ताप सुघय तथा तापदृढ़ बहुलकों में अन्तर बताइए।
उत्तर:
ताप सुघट्य तथा तापदृढ़ बहुलकों में अन्तर:
प्रश्न 23.
हाइड्रोक्विनोन मुक्त मूलक बहुलीकरण अभिक्रिया में कहाँ काम आता है?
उत्तर:
हाइड्रोक्विनोन बढ़ती हुई बहुलक श्रृंखला के समापन के लिए प्रयुक्त निरोधक (Inhibitor) पदार्थ है। यह सक्रिय मुक्त मूलक के साथ जुड़कर बढ़ती हुई बहुलक श्रृंखला का समापन करता है।
प्रश्न 24.
डेक्रॉन के एकलकों के नाम लिखिए तथा बनने की विधि लिखिए।
उत्तर:
टेरीलीन अथवा पॉलीऐथिलीन टरथैलेट (Terelene or Polyethylene Terphthalate, PET) यह एक संतृप्त पॉलीऐस्टर है। इसे डेक्रॉन (Decron) भी कहते हैं।
एकलकः टरथैलिक अम्ल (Terphthalic Acid) अथवा इसके ऐस्टर तथा ऐथिलीन ग्लाइकॉल (Ethylene Glycol)
बहुलीकरण की विधि (Method ofPolymerization): टरथैलिक अम्ल अथवा इसके ऐस्टर तथा ऐथिलीन ग्लाइकॉल के संघनन बहुलीकरण (Condensation Polymerization) से पॉलीऐथिलीन टरथैलेट बहुलक बनता है। इसका व्यापारिक नाम टेरीलीन अथवा डेक्रॉन है।
प्रश्न 25.
बहुपरिक्षेपण घातांक किसे कहते हैं? बताइए।
उत्तर:
बहूपरिक्षेपण घातांक (Polydispersity Index): किसी बहुलक के भार औसत अणुभार तथा संख्या औसत अणुभार )के अनुपात के बहुपरिक्षेपण घातांक (PDI) कहते हैं।
प्रश्न 26.
रबर का वल्कनीकरण क्यों किया जाता है? समझाइए।
उत्तर:
प्राकृतिक रबर के भौतिक गुणों तथा प्रत्यास्थता बढ़ाने, जल अवशोषण क्षमता घटाने तथा ऑक्सीकारकों के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ाने के लिए रबर कास बल्कनीकरण (Vulcanization) कराया जाता है। बल्कनीकरण की प्रक्रिया में प्राकृतिक रबर को 373 – 425 K पर सल्फर के साथ गर्म किया जाता है। इस प्रक्रिया में बहुलक श्रृंखलाओं के मध्य सल्फर सेतु (Sulphur Bridge) या तिर्यक आबन्धन (Cross linkage) निर्मित हो जाते हैं। प्राप्त वल्कनीकृत रबर की प्रत्यास्थता श्रेष्ठ, जल अवशोषित करने की क्षमता निम्न होती है तथा यह कार्बनिक विलायकों तथा ऑक्सीकारकों की क्रिया के प्रति प्रतिरोधक होती है।
प्रश्न 27.
LDPE तथा HDPE क्या सूचित करते हैं? ये कैसे बनते है।
उत्तर:
LDPE = Low Density Polythene or Polyethylene (निम्न घनत्व पॉलिथीन या पॉलीऐथिलीन)
HDPE = High Density Polythene or Polyethylene (उच्च घनत्व पॉलिथीन या पॉलीऐथिलीन)
LDPE का निर्माण मुक्त मूलक योगात्मक अभिक्रिया (Free Radical Addition Reaction) द्वारा होता है, जबकि HDPE का निर्माण जिग्लर नट्टा की उपस्थिति में किया जाता है।
प्रश्न 28.
निम्न के एकलकों के नाम तथा संरचना लिखिए-
(i) टेफ्लॉन
(ii) टेरीलीन उत्तर
(iii) नाइलॉन-6, 6
(iv) बैकलाइट
उत्तर:
प्रश्न 29.
PHBV क्या है? यह कौन-सा बहुलक हैं?
उत्तर:
PHBV= पॉली-β-हाइड्रॉक्सी ब्यूटाइरेट -Co-β- हाइड्रॉक्सीवैलेरेट (Poly-β-Hydroxybutyrate-Co-β-hydroxyvalerate) यह 3 हाइड्रॉक्सी ब्यूटेनोइक अम्ल तथा 3-हाइड्रॉक्सी पेण्टेनोइक अम्ल का तापसुघट्य (Thermoplastic) बहुलक हैं जिसमें दो एकलक इकाइयाँ ऐस्टर आबन्धन द्वारा जुड़ी रहती है।
प्रश्न 30.
प्रोटीन के PDI का मान एक क्यों होता है?
उत्तर:
प्रोटीन के भार औसत अणुभार तथा संख्या औसत अणुभार का मान समान होता है। इसलिए प्रोटीन का PDI . (परिक्षेपण घातांक) का मान होता है।
RBSE Class 12 Chemistry Chapter 15 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 31.
बहुलकों का वर्गीकरण निम्न आधार पर कीजिए
(i) एकलकों के आधार पर
(ii) बहुलीकरण के आधार पर
(iii) आण्विक बलों के आधार पर
उत्तर:
(i) एकलकों के आधार पर:
एकलकों के प्रकार के आधार पर बहुलकों का वर्गीकरण एकलकों के प्रकार के आधार पर बहुलकों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है
(1) समबहुलक(Homopolymers): वे बहुलक जिनमें एक ही प्रकार की पुनरावृत्त संरचनात्मक इकाइयाँ या एकलक (Monomers) होते हैं, समबहुलक (Homopolymers) कहलाते हैं।
उदाहरणार्थ: पॉलीथीन (पॉलीऐथिलीन), पॉली विनाइल क्लोराइड (PVC) एक ही प्रकार के एकलकों से निर्मित होते हैं।
(2) सहबहुलक (Copolymers): वे बहुलक जिनमें एक से अधिक प्रकार की पुनरावृत्त संरचनात्मक इकाइयाँ (Repeating Structural Units) या एकलक पाये जाते हैं, सहबहुलक (Copolymers) कहलाते हैं।
उदाहरणार्थ: नाइलॉन–6, 6 दो प्रकार की एकलकों से निर्मित बहुलक हैं।
(ii) बहुलीकरण के आधार पर:
बहुलकन या बहुलीकरण के प्रकार के आधार पर बहुलकों का वर्गीकरण (Classification of Polymers on the Basis of Types of Polymerization)-केरोथर्स (Carothers) ने 1929 में बहुलकन की विधि के आधार पर बहुलकों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया था
(1) योगज अथवा योगात्मक बहुलक (Addition Polymers)
(2) संघनन बहुलक (Condensation Polymers)
लेकिन कुछ बहुलकों को इन दो वर्गों में विभक्त नहीं किया जा सकता है। अतः एच. एफ. मार्क (H. F. Mark) में 1950 में बहुलकों को उनके विरचन में प्रयुक्त बहुलकन क्रिया विधि (Mechanism of Polymerisation) के आधार पर दो वर्गों में वर्गीकृत किया था-
(i) श्रृंखला वृद्धि बहुलक (Chain Growth Polymers)
(ii) पदशः वृद्धि बहुलक (Step Growth Polymers)
1. योगज अथवा योगात्मक बहुलक (Addition Polymers): द्वि अथवा त्रिआबन्ध युक्त एकलक अणुओं अर्थात् असंतृप्त एकलक अणुओं के पुनरावर्तित योगात्मक बहुलीकरण प्रक्रिया से निर्मित बहुलक योगात्मक बहुलक (Addition Polymers) कहलाते हैं। इस बहुलीकरण प्रक्रिया में सहउत्पाद (By Product) का निर्माण नहीं होता है इसलिए बहुलक का अणुभार (Molecular weight) एकलक अणुओं के अणुभार का गुणक (Multiple) होता है। उदाहरणार्थ-
[नॉन स्टिक बर्तनों में टेफ्लॉन (Teflon) का लेपन किया जाता है।]
(2) संघनन बहुलक (Condensation Polymers):
दो भिन्न द्वि अथवा त्रि क्रियात्मक एकलक अणुओं के पुनरावृत्त संघनन बहुलीकरण प्रक्रिया से निर्मित बहुलक संघनन बहुलक (Condensation Polymers) कहलाते हैं। चूँकि इनका निर्माण संघनन अभिक्रियाओं द्वारा होता है अत: इन अभिक्रियाओं में छेटे अणुओं जैसे-H2O, ऐल्कोहॉल, HCl आदि का निष्कासन होता है। अतः संघनन बहुलकों का आण्विक भार एकलक अणुओं के आण्विक भार का गुणक नहीं होता है।
उदाहरण: नाइलॉन-6, 6 पॉलीऐस्टर संघनन बहुलक के उदाहरण है।
(iii) आण्विक बलों के आधार पर :
आण्विक बलों के आधार पर बहुलकों का वर्गीकरण (Classification of Polymers on the Basis of Molecular Forces)-विभिन्न क्षेत्रों में बहुलकों के अनुप्रयोग उनके यांत्रिक गुणों (Mechanical Properties) जैसे तनन सामर्थ्य (Tensile Strength), प्रत्यास्थता (Elasticity), दृढ़ता (Regidity), कठोरता (Hardness) आदि पर निर्भर करते हैं तथा यान्त्रिक गुण उनमें उपस्थित अन्तराण्विक आकर्षण बलों, हाइड्रोजन बन्धन आदि पर निर्भर करते हैं। ये बल बहुलक श्रृंखलाओं को परस्पर जोड़ते हैं। इन आण्विक बलों के आधार पर बहुलकों को निम्न वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है।
(1) प्रत्यास्थ बहुलक (Elastomers):
ये बहुलक प्रायः रबर (Rubber) कहलाते हैं। इनमें बहुलक श्रृंखलाएँ परस्पर दुर्बल अन्तराण्विक बलों द्वारा जुड़ी रहती है। इन दुर्बल बलों के कारण ही इन बहुलकों को एक सीमा तक खींचकर लम्बा किया जा सकता है। श्रृंखलाओं के मध्य त्रिर्यक बन्ध होते हैं जो बल हटाने पर बहुलक श्रृंखलाओं को खींचकर पुन: पूर्ववत् लाने में सहायक होते हैं। साथ ही इन बहुलकों की श्रृंखलाएँ कुण्डलीनुमा होती है तथा ये खींचने पर खुलकर लम्बी हो जाती है। कुछ क्रॉस बन्धों को प्रवेशित कराके प्रत्यास्थ बहुलकों की प्रत्यास्थता को बढ़ाया भी जा सकता है।
उदाहरणार्थ: प्राकृतिक रबर की प्रत्यास्थता सल्फर के साथ वल्कनीकरण (Vulcanization) कराने पर बढ़ती है। इसलिए वल्कनीकृत रबर प्राकृतिक रबर की तुलना में अधिक प्रत्यास्थ (Elastic) होता है। इस वर्ग के अन्य उदाहरण ब्यूना-S तथा ब्यूना-N हैं।
(2) रेशे (Fibers)-इन बहुलकों को सामान्यतः
धागा (Threads) कहते हैं तथा इनका उपयोग वस्त्र उद्योग में होता है। इन बहुलकों की श्रृंखलाएँ प्रबल अन्तराण्विक बलों द्वारा बँधी रहती है। इन प्रबल बलों के कारण श्रृंखलाएँ निकट संकुलित (Closely Packed) हो जाती है तथा क्रिस्टलों के समान व्यवस्थित संरचना बनाती हैं। इन बहुलकों की तनन सामर्थ्य (Tensile Strength) तथा गलनांक (Melting Point) उच्च होते हैं।
उदाहरणार्थ: पॉलीऐस्टर (टेरीलिन), पॉलीऐमाइड (नाइलॉन-6,6) प्राकृतिक रेशे (सिल्क, ऊन, कपास), रेयॉन आदि। बहुलकों के वर्गीकरण की रूप रेखा सारणी में प्रदर्शित है।
प्रश्न 32.
योगात्मक बहुलीकरण क्या हैं? एक उदाहरण मुक्त मूलक योगात्मक बहुलीकरण क्रियाविधि समझाइए।
उत्तर:
बहुलीकरण की विधियाँ (Methods of Polymerization) बहुलीकरण की प्रमुख दो विधियाँ निम्नवत हैं।
1. योगात्मक बहुलीकरण (Addition Polymerization)
2. संघनन बहुलीकरण (Condensation Polymerization)
1. योगात्मक बहुलीकरण (Addition Polymerization):
जब असंतृप्त एकलक अणु (Unsaturated Monomer Molecules)परस्पर योगात्मक अभिक्रिया द्वारा बहुलक का निर्माण करते हैं तब यह प्रक्रिया योगात्मक बहुलीकरण (Addition Polymerization) कहलाती है। बहुलीकरण में प्रयुक्त एकलक अणु एक ही प्रकार के अथवा भिन्न प्रकार के हो सकते हैं। असंतृप्त एकलक अणु ऐल्कीन, ऐल्केडाइईन और उनके व्युत्पन्न होते हैं। चूँकि इस प्रक्रम में एकलक इकाइयाँ उत्तरोतर बढ़ने वाली श्रृंखला में जुड़ती रहती है इसलिए यह प्रक्रम श्रृंखला वृद्धि बहुलीकरण (Chain Growth Polymerisation) कहलाता है। योगात्मक बहुलीकरण में एकलक अणु असंतृप्त अणु होते हैं तथा अक्रिय होते हैं।
बहुलीकरण की प्रक्रिया के लिए इनका सक्रिय होना आवश्यक होता है। अतः बहुलीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ करने के लिए किसी प्रारम्भिक पदार्थ (Initiator) की आवश्यकता होती है। इस प्रारम्भिक पदार्थ का कोई सक्रिय अणु अक्रिय एकलक अणु से क्रिया करके उसे सक्रिय कर देता है। यह प्रारम्भिक या समारंमक पदार्थ मुक्त मूलक (Free Radical) या आयनिक स्पीशीज (Ionic Species) होती है। क्रियाकारी अणु की प्रकृति के अनुसार योगात्मक बहुलीकण दो प्रकार का होता है।
- मुक्त मूलक योगात्मक बहुलीकरण (Free Radical Addition Polymerization)
- आयनिक योगात्मक बहुलीकरण (lonic Addition polymerization)
उपरोक्त दोनों ही प्रकार के योगात्मक बहुलीकरण में तीन चरण होते है।
(अ) श्रृंखला प्रारम्भिक पद
(ब) श्रृंखला संचरण पद
(स) शृखला समापन पद
मुक्त मूलक योगात्मक बहुलीकरण (Free Radical Addition Polymerization)
पद (Step): 1
मुक्त मूलक योगात्मक बहुलीकरण में प्रारम्भिक या समारम्भक पदार्थ परॉक्साइड या परॉक्सी अम्ल होते हैं। ये ता५ अथवा प्रकाश की उपस्थिति में वियोजित होकर मुक्त मूलक (Free radicals) बनाते हैं। ये मुक्त मूलक एकलक अणु से क्रिया करके नया और अधिक बड़ा मुक्त मूलक बनाता है। इस पद को श्रृंखला समारम्भन पद (Chain initiation Step) कहते हैं।
पद (Step): 2
दूसरा पद श्रृंखला संचरण पद कहलाता है। इसमें पहले पद में बना मुक्त मूलक एक और एकलक अणु से क्रिया करता है तथा इस प्रकार एक के बाद एक एकलक अणु श्रृंखला से जुड़ते जाते
पद (Step):3
यह पद अंतिम पद या श्रृंखला समापन पद (Chain Terminating Step) कहलाता है। उपरोक्त दोनों पद तब तक जारी रहते हैं जब तक कि अभिक्रिया मिश्रण में एकलक अणु उपस्थित रहते हैं और जब एकलक अणु समाप्त हो जाते हैं, तब मूलक आपस में क्रिया करके उदासीन अणु बनाते हैं। इसलिए यह पद श्रृंखला समापन पद कहलाता है। कभी-कभी बाह्य पदार्थों का प्रयोग भी श्रृंखला समापन के लिए किया जाता है।
पद (1) श्रृंखला समारंभन पद (Chain Initiating Step):
पद (2) श्रृंखला संचरण पद (Chain Propagating Step)
पद (3) श्रृंखला समापन पद (Chain Termination Step) श्रृंखला का समापन चार प्रकार से हो सकता है।
(i) युग्मन (Coupling)-दो मुक्त मूलक युक्त बढ़ती हुई बहुलक श्रृंखलाएँ परस्पर संयोग करके उदासीन बहुलक अणु बनाती हैं।
(ii) असमानुपातन (Disproportionation):इसमें मुक्त मूलक असमानुपातित हो जाते हैं। अर्थात् हाइड्रोजन के स्थानान्तरण द्वारा उदासीन अणु बनाते हैं।
(iii) श्रृंखला स्थानान्तरण (Chain Transfer)- यह निम्नवत होता है-
यह RH श्रृंखला अंतरणकर्मक (Chain transfer agent) है। बहुलीकरण अभिक्रिया में एकलक, प्रारम्भिक पदार्थ अथवा विलायक श्रृंखला अंतरणकर्मक हो सकते हैं, परन्तु सामान्यतः बहुलीकरण की प्रक्रिया शुरू होने पर एकलक की सान्द्रता कम होने लगती है, तथा प्रारम्भिक पदार्थ वैसे ही कम अनुपात में लिए जाते हैं अतः जब कभी भी श्रृंखला समापन, श्रृंखला स्थानान्तरण द्वारा होता है तो यह विलायक द्वारा ही होता है।
(iv) निरोधक (Inhibitors): बढ़ती हुई बहुलक श्रृंखला का समापन निरोधक के रूप में भी किया जा सकता है। निरोधक रासायनिक पदार्थ होते हैं जो सक्रिय मुक्त मूलक के साथ जुड़ जाते हैं। हाइड्रोक्विनोन, नाइट्रोबेन्जीन, डाइनाइट्रोबेन्जीन सामान्यत: प्रयोग किए जाने वाले निरोधक पदार्थ (Inhibitors) हैं। यदि P बढ़ती हुई बहुलक श्रृंखला है तथा नाइट्रोबेन्जीन निरोधक पदार्थ है तब यह निम्न प्रकार श्रृंखला का समापन करता है-
प्रश्न 33.
प्राकृतिक रबर कैसे प्राप्त करते हैं? इसका संघटन तथा संरचना लिखिए।
उत्तर:
प्राकृतिक रबर (Natural Rubber)-प्राकृतिक रबर एक प्रत्यास्थ बहुलक (Elastomer) है। यह अत्यधिक नरम होता है प्राकृतिक रबर का उत्पादन रबर के पेड़ ( हेविया व्रसिलियेन्सिस Heved brasiliensis), गट्टा पार्चा (Gatta Percha) से प्राप्त दूध जैसा पदार्थ जिसे रबरक्षीर (Latex) कहते हैं, से किया जाता है। क्षीर (Latex) रबर का जल में कोलॉइडी परिक्षेपण होता है। रबर के पेड़ मुख्यतः भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया, मलेशिया तथा दक्षिणी अमेरिका में पाए जाते हैं।
1. प्राकृतिक रबर प्राप्त करने की विधि (Method for Obtaining Natural Rubber): प्राकृतिक रबर प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम रबर के पेड़ों के तनों में विशेष प्रकार का चीरा लगाकर क्षीर (Latex) एकत्रित किया जाता है। फिर इस क्षीर को जल की सहायता से इतना तनु करते हैं कि इसमें रबर की मात्रा 10-20% रह जाए। इसके पश्चात इसमें ऐसीटिक अम्ल मिलाया जाता है जिससे रबर के कालॉइडी कण स्कंदित (Coagulate) होकर अवक्षेपित हो जाते हैं। इन्हें अनकर अलग कर लिया जाता है। यह रबर क्रेप रबर (Crape Rubber) कहलाती है। यह अधिक उपयोगी नहीं होती है। इसके प्रमुख कारण निम्नवत् हैं।
- इसकी प्रत्यास्थता कम होती है।
- यह उच्च ताप (> 335K) पर नरम तथा निम्न ताप (< 283K) पर भंगुर हो जाती है।
- इसकी जल अवशोषण क्षमता (Water absorbing capacity) उच्च होती है।
- यह अध्रुवीय विलायकों जैसे-ईथर, बेन्जीन, पेट्रोल आदि में विलेय होती हैं।
- यह ऑक्सीकरण कर्मकों के प्रति प्रतिरोधी नहीं है। प्राकृतिक रबर के भौतिक गुणों में सुधार के लिए इसका वल्कनीकरण (Vulcanization) कराया जाता है।
उपयोग (Uses): प्राकृतिक रबर का प्रमुखतः प्रयोग जूते, बरसाती कोट, गोल्फ की गेंद आदि बनाने में किया जाता है।
2. संघटन तथा संरचना (Composition and Structure): प्राकृतिक रबर आइसोप्रीन (2-मेथिल-1,3.- ब्यूटाडाइईन) का रैखिक बहुलक होती है। इसका संघटन (CGH), होता है।
आइसोप्रीन इकाइयों के 1,4 योग से दो समावयवी समपक्ष (cis), विपक्ष (trans) प्राप्त होते हैं। प्राकृतिक रबर समपक्ष (cis) समावयवी होती है जिसमें बहुलक अणुओं की श्रृंखलाएँ दुर्बल वाण्डर वाल्स बलों द्वारा जुड़ी रहती है एवं कुण्डलित और स्प्रिंग सदृश्य संरचनाएँ बनाती हैं। इन संरचनाओं के कारण ही रबर प्रत्यास्थता (Elasticity) का गुण प्रदर्शित करती है क्योंकि इसे स्प्रिंग के समान खींचा जा सकता है। गट्टा पर्चा (Gutta Percha) से प्राप्त प्राकृतिक रबर में आइसोप्रीन इकाइयों का पूर्ण विपक्ष (trans) विन्यास होता है।
प्रश्न 34.
बहलकों का अणभार औसत अणभार क्या होता है? समझाइए। बहुलकों के औसत अणुभार को कितने प्रकार से व्यक्त करते हैं? प्रत्येक प्रकार को समझाइए।
उत्तर:
बहुलकों का आण्विक द्रव्यमाने (Molecular Mass of Polymers): किसी बहुलक के गुण उसके आण्विक द्रव्यमान, आकार और संरचना से घनिष्ठ रूप में सम्बन्धित होते हैं। बहुलक अणु में उपस्थित एकलक अणुओं की संख्या बहुलीकरण की कोटि (Order of Polymerization) कहलाती है तथा एकलक अणुओं की संख्या ही बहुलक अणु का आकार (size) निर्धारित करती है। एकलक (कार्बनिक अणु) का आण्विक द्रव्यमान निश्चित होता है। चाहे उसको निर्माण किसी भी विधि द्वारा किया जाये। उदाहरणार्थ ऐथिलीन अणु का आण्विक द्रव्यमान 284 है, लेकिन बहुलक के रूप में इसे निम्नवत प्रदर्शित किया जाता है।
जहाँ n का मान विभिन्न बहुलक अणुओं में भिन्न-भिन्न होता है। अर्थात् बहुलक प्रतिदर्श (Polymer Sample) में उपस्थित सभी बहुलक अणुओं का आण्विक द्रव्यमान भिन्न होता है क्योंकि बहुलक बनाते समय विभिन्न बहुलक (बृहद) अणुओं की बहुलीकरण की कोटि भिन्न-भिन्न होती है अर्थात् उसकी श्रृंखला लम्बाइयाँ भिन्न-भिन्न होती है। अतः किसी बहुलक में उपस्थित बहुलक (बृहद) अणुओं की संहति भिन्न-भिन्न होती है इसलिए बहुलकों का आण्विक द्रव्यमान या अणुभार निश्चित नहीं होता है। अतः इसे औसत द्रव्यमान या अणुभार के रूप में निम्न दो प्रकार से व्यक्त किया जाता है।
1. संख्या औसत अणुभार (Number average Molecular Weight)
2. भार औसत अणुभार (Weight average Molecular Weight)
1. संख्या औसत अणुभार (Number Average Molecular Weight): किसी बहुलक नमूने (Polymer Sample) में उपस्थित सभी अणुओं की कुल संहति (Molecular Weight) को अणुओं की संख्या से विभाजित करने पर प्राप्त परिणाम को संख्या औसत अणुभार कहते हैं। यदि किसी बहुलक नमूने में उपस्थित अणुओं की कुल संख्या n है तथा n1 अणुओं का अणुभार m1,n2 अणुओं का अणुभार m2 तथा इसी प्रकार n1 अणुओं का अणुभार mi हो तो
संख्या औसत अणुभार परासरण दाब मापन अथवा अन्य अणुसंख्य गुणधर्मों वाली विधियों से ज्ञात किए जाते हैं।
2. भार औसत अणुभार (Weight Average Molecular Weight): इसे Mw से प्रदर्शित किया जाता है। किसी बहुलक नमूने (Polymer Sample) में विभिन्न संहति वाले अणुओं के समूह की कुल संहति को उनकी आण्विक संहति से गुणा करने पर तथा गुणनफल को जोड़कर प्राप्त योगफल को सभी अणुओं की संहति से भाग (Division) देने पर प्राप्त परिणाम को भार औसत अणुभार कहते हैं।
यदि किसी बहुलक नमूने में कुल अणुओं की संख्या n हो तथा n1 अणुओं का अणुभार m1,n2 अणुओं का अणुभार m2 तथा इसी प्रकार n1
अणुओं का अणुभार mi हो तो
n1 अणुओं की कुल संहति = n1m1
n2अणुओं की कुल संहति = n2m2
ni अणुओं की कुल संहति = nimi
तथा इनकी आण्विक संहति के गुणनफल के मान निम्नवत होंगे-
(n1 x m1 x m1), (n2 x m2 x m2) एवं (ni mi x mi) या (ni m12), ((n2 m22)) एवं (ni mi2)
भार औसत अणुभार प्रकाश प्रकीर्णन (Ligh Scattering) अवसादन (Sedimentation) तथा द्रुत अपकेन्द्रण (Fast centrifugation) आदि विधियों से ज्ञात किए जाते हैं।
प्रश्न 35.
निम्न बहुलकों को बनाने की विधि तथा उपयोग लिखिए
(i) बैकेलाइट
(ii) पी.वी.सी. (PVC)
(iii) पॉलीऐस्टर
(iv) नायलॉन-6,6
उत्तर:
(i) बैकेलाइट:
बैकेलाइट (Bakelite)- यह फीनॉल तथा फॉर्मेल्डिहाइड के संघनन द्वारा प्राप्त तापदृढ़ (Thermosetting) बहुलक (रेजिन) है।
एकलक : फीनॉल तथा फॉर्मेल्डिहाइड की क्रिया अम्ल अथवा क्षार की उपस्थिति में कराने पर मध्यवर्ती ० तथा p- हाइड्रॉक्सी बेन्जिल एल्कोहॉल बनते हैं। जो एकलक के रूप में पुनरावृत्ति करके बैकलाइट बहुलक का निर्माण करते हैं।
बहुलीकरण की विधि (Method of Polymerization) : फीनॉल तथा फॉर्मेल्डिहाइड की क्रिया दो प्रकार से सम्भव हैं-
(1) तनु अम्ल की उपस्थिति में क्रिया कराने पर रेखीय बहुलक प्राप्त होता है जिसे नोवोलेक (Novolac) कहते हैं। यह ताप सुघट्य (Thermoplastic) होता है। नोवोलेक बनाते समय फॉर्मेल्डिहाइड और फीनॉल का अनुपात एक से कम होता है।
नोवोलेक (Novolac) में कई मुक्त: CH2OH समूह होते हैं। फॉर्मेल्डिहाइड का अनुपात अधिक लेकर जब उचित ताप तथा दाब पर इन्हें गर्म करते हैं तब श्रृंखलाओं के मध्य तिर्यक बन्ध बन जाते है तथा त्रिविमीय जालक संरचना बन जाती है। इस प्रकार प्राप्त बहुलक बैकेलाइट (Bakelite) कहलाता है। अर्थात् फीनॉल तथा फॉर्मेल्डिहाइड को उच्च ताप तथा दाब पर किया कराने पर तापदृढ़ बहुलक ‘बैकलाइट’ प्राप्त होता हैं।
(2) फॉर्मेल्डिहाइड तथा फीनॉल का अनुपात एक से अधिक लेकर क्षार की उपस्थिति में संघनन क्रिया कराने पर ताप दृढ़ पदार्थ प्राप्त होता है, जिसे रिसॉल (Resol) कहते हैं।
उपयोग (Uses):
बैकलाइट फोनॉल तथा फॉर्मेल्डिहाइड से बना | एक तापदृढ़ रेजिन है। यह ताप तथा ऊष्मा रोधी होता है। इसका उपयोग
मुख्यत: स्विच, बर्तनों के हैण्डल, विद्युतरोधी उपकरण रेडियो, टेलीविजन तथा कम्प्यूटर के केस बनाने में किया जाता है। इसके अलावा रसोई के बर्तन, खिलौने आदि के निर्माण में भी बैकलाइट का प्रयोग किया जाता
(ii) पी.वी.सी. (PVC) :
बहुलीकरण की विधि (Method of Polymerization)
पॉलीवाइनिल क्लोराइड (PVC) वाइनिल क्लोराइड एकलकों के योगात्मक बहुलीकरण क्रियाविधि (Addition Polymerzation Mechanism) द्वारा निर्मित किया जाता है। यह वाइनिल क्लोराइड का समबहुलक (Homopolymer) है। बेहुलीकरण की क्रिया परॉक्साइड की उपस्थिति में सम्पन्न होती है।
उपयोग (Uses):
- PVC एक सस्ता तथा सर्वाधिक उपयोग में लाये जाने वाला प्लास्टिक बहुलक है। मुख्यत: इसका उपयोग पाइप, दरवाजे, केबल, छड़, चद्दरें आदि बनाने में किया जाता है।
- PVC को क्लोरोबेन्जीन (CHCl) में विलेय करने पर इसका क्लोरीनीकरण हो जाता है, तथा प्राप्त उत्पाद क्लोरीनीकृत PVC कहलाता है। क्लोरीनीकृत PVC (Clorinated PVC) का उपयोग चिपकाने वाले पदार्थों, लेपन तथा रेशों में किया जाता है।
- इसे ऐस्टर में प्लास्टीकर्मक (Plastisizer) के रूप में मिलाने पर ऐस्टर मुलायम (Soft) हो जाता है तथा इसका उपयोग वाइनिल चमड़े (Vinyl Leather) के रूप में किया जाता है। वाइनिल चमड़े का उपयोग बरसाती कोट, फर्श की पॉलिश, हैण्डबैग, परदे के कपड़े आदि में किया जाता है।
- 200°C तापमान के बाद PVC को निम्नीकरण (Degradation) होने लगता है तथा HCl गैस निकलती है। इससे बचने के लिए उपयुक्त स्थायीकारक रसायन (Stabilizers) का उपयोग किया जाता है।
(iii) पॉलीऐस्टर :
पॉलीऐस्टर (Polyester)
एकलकः
(i) द्विकार्बोक्सलिक अम्ल तथा डाइऑल
(ii) डाइऐस्टर तथा डाइऑल
(iii) डाइहाइड्रोक्सिलिक अम्ल
बहुलीकरण की विधि (Method of Polymerization):
पॉलीऐस्टर का निर्माण संघनन बहुलीकरण (Condensation Polymerization) अभिक्रिया द्वारा होता है।
(i) द्विकार्बोक्सिलिक अम्ल तथा डाइऑल का संघनन बहुलीकरण (Condensation Polymerization of Dicarboxylic Acid and Diol)
(ii) डाइऐस्टर तथा डाइऑल का संघनन बहुलीकरण (Condensation Polymerization of Diester and diol)
(iii) डाइहाइड्रोक्सिलिक अम्लों का स्वसंघनन (Self Condensation of Dicarboxylic Acids)
उपयोग (Uses): पॉलीऐस्टर का सर्वज्ञात उदाहरण टेरीलिन (डेक्रॉन) है। इसका मुख्यतः उपयोग कृत्रिम रेशे बनाने में किया जाता है तथा इसका उपयोग शिरस्त्राणों या हेलमेट (Helmets) बनाने में किया जाता है। यदि पॉलीऐस्टर का निर्माण ऐलिफैटिक एकलकों द्वारा होता है, तो उन्हें ऐलिफैटिक पॉलीऐस्टर कहा जाता है। जिनका गलनांक काफी कम (50 – 80°C) होता है, लेकिन ऐरोमैटिक समूह उपस्थित होने पर इनका गलनांक बढ़ जाता है। उदाहरण-टेरीलीन। ऐरोमैटिक पॉलीऐस्टर की तुलना में एलिफैटिक पॉलीऐस्टर का व्यावसायिक उपयोग काफी कम है।
(iv) नायलॉन-6,6 :
नायलॉन-6,6 (Nylon-6,6)-यह एक पॉलीऐमाइड बहुलक (Polyamide Polymer) है।
एकलकः हेक्सामेथिलीन डाइऐमीन तथा ऐडिपिक अम्ल बहुलीकरण की विधि (Method of Polymerization) नायलॉन-6,6 का निर्माण हेक्सामेथिलीन डाइऐमीन तथा ऐडिपिक अम्ल के संघनन बहुलीकरण (Condensation Polymerization) द्वारा होता है।
चूँकि हेक्सामेथिलीन डाइऐमीन तथा ऐडिपिक अम्ल दोनों में 6, 6 कार्बन परमाणु उपस्थित होते हैं इसलिए इसे नायलॉन 6, 6 कहते हैं। पहला 6 डाइऐमीन के कार्बन परमाणुओं को तथा दूसरा द्विकार्बोक्सिलिक अम्ल के 6 कार्बन परमाणुओं को प्रदर्शित करता है।
उपयोग (Uses): यह उच्च तनन सामर्थ्य तथा घर्षण प्रतिरोध वाला बहुलक है। इसका प्रयोग प्लास्टिक तथा रेशों दोनों रूप में में किया जाता है। इसका सर्वाधिक प्रयोग टायर के धागे (Tyre Cord) बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसका प्रयोग वस्त्रों, पैराशूट, रस्सों, आदि के बनाने में किया जाता है।