RBSE Solutions for Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 1 हिंन्दी गद्य का विकास
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Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 1 हिंन्दी गद्य का विकास
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 1 महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भामह, दण्डी, वामन तथा विश्वनाथ ने गद्य की परिभाषा के विषय में क्या कहा है? लिखिए।
उत्तर:
आचार्य भामह ने गद्य को स्वाभाविक (अकृत्रिम) व्यवस्थित, शब्दार्थ युक्त पदावली कहा है। वामन ने कोई परिभाषा तो नहीं दी है किन्तु ‘गद्य कवियों की कसौटी है।’ ऐसा कहकर गद्य के महत्व का परिचय कराया है। आचार्य दण्डी ने गद्य चरणों या पादों में अविभाजित तथा गण और मात्रा से रहित रचना माना है। विश्वनाथ ने भी गद्य की कोई परिभाषा नहीं दी है। केवल उसको काव्य मानते हुए चार भेदों की चर्चा की है।
प्रश्न 2.
गद्य की सामान्य और सर्वमान्य परिभाषा क्या हो सकती है? पद्य और गद्य में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गद्य की सरल और सभी को मान्य परिभाषा यही हो सकती है कि जिस शब्दार्थ युक्त भाषा को लोक साधारण बातचीत में प्रयोग करते हैं, वही गद्य है। पद्य की भाषा साधारण नहीं होती। उसमें चरण, छंद, ताल, तुक आदि का ध्यान रखा जाता है। गद्य और पद्य के बीच कोई स्थायी विभाजक रेखा नहीं खींची जा सकती। आजकले कविता भी गद्य की भाँति ही छंद मुक्त और साधारण भाषा में . रची जा रही है।
प्रश्न 3.
क्या गद्य आज हमारी सांस्कृतिक गतिविधियों का आधार बन गई है? हाँ, तो कैसे? लिखिए।
उत्तर:
आज का युग गद्य-युग कहा जाता है। दो व्यक्तियों के बीच साधारण बातचीत से लेकर, गंभीर विषयों पर गोष्ठियों के आयोजनों आदि सभी गतिविधियों में गद्य का ही उपयोग होता है। ज्ञान, विज्ञान, कला, शिल्प, तकनीक आदि ऐसे विषय हैं जहाँ ग्रंथरचना से लेकर उन पर व्याख्यान आदि सभी, गद्य के माध्यम से ही संभव हैं।
प्रश्न 4.
हिन्दी गद्य के आरंभिक विकास में किन संस्थाओं, व्यक्तियों तथा पत्र-पत्रिकाओं ने योगदान किया? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी गद्य के आरंभिक विकास में ईसाई धर्म प्रचारकों ने बहुत योगदान दिया था। अपनी प्रचार-सामग्री तथा उपदेश आदि के लिए उनको हिन्दी गद्य की आवश्यकता थी। बंगाल में राजा राम मोहन राय तथा उनके द्वारा स्थापित संस्था ‘ब्रह्म समाज’ ने हिन्दी में वेदान्त सूत्रों का अनुवाद कराया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी आर्यसमाज की गतिविधियों द्वारा तथा स्वयं ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की रचना करके हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। ‘उदंत मार्तंड’, ‘बनारस अखबार’, ‘सुधाकर’ तथा ‘बुद्धि प्रकाश’ आदि पत्रों ने हिन्दी के प्रारंभिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
प्रश्न 5.
भारतेन्दु युग के आरम्भ और हिन्दी के विकास में उसके योगदान पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अनेक विद्वानों ने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को हिन्दी गद्य का जन्मदाता माना है। यद्यपि राजा शिव प्रसाद और राजा लक्ष्मण सिंह हिन्दी गद्य में पहले से रचना कर रहे थे लेकिन हिन्दी गद्य को व्यावहारिकता प्रधान करने का श्रेय भारतेन्दु तथा उनके समकालीन लेखकों को जाता है। भारतेन्दु जी ने गद्य की भाषा को मध्यमार्गी बनाया। अरबी, फारसी और संस्कृत शब्दावली के बोझ को उतार फेंका और व्यवाहारिक भाषा का राजपथ तैयार करके हिन्दी के गद्य रथ को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त किया। भारतेन्दु जी के साथ ही देवकीनंदन खत्री, बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र आदि अनेक गद्यकार सामने आए जिन्होंने गद्य के विकास में उल्लेखनीय सहयोग प्रदान किया।
प्रश्न 6.
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा हिन्दी गद्य के विकास में किए गए योगदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
द्विवेदी जी ने भारतेन्दु जी द्वारा तैयार किए गए समतल मार्ग को पुष्टता और त्रुटिहीनता प्रदान की। हिन्दी गद्य को व्याकरण की दृष्टि से नियमित और नियंत्रित किया। द्विवेदी जी द्वारा संपादित पत्रिका ‘सरस्वती’ ने हिन्दी को अनेक प्रतिभाशाली लेखक प्रदान किए। हिन्दी गद्य में विषयों का विस्तार हुआ।
प्रश्न 7.
कहानी विधा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
‘कहानी’ हिन्दी गद्य की सबसे अधिक व्यापक और प्रभावशाली विधा है। आधुनिक हिन्दी कहानी की प्रथम रचना होने का श्रेय अनेक विद्वान ‘दुलाईवाली’ को देते हैं। कहानी में जीवन की किसी एक घटना का चित्रण होता है- कथावस्तु । पात्र, देश-काल, परिस्थिति कहानी के प्रमुख तत्व माने गए हैं। कहानी की विकास यात्रा के चार चरण माने जाते हैं – (1) उद्भव काल (2) विकास काल (3) उत्कर्ष काल तथा (4) प्रगति-प्रयोग काल ।
प्रश्न 8.
हिन्दी की एकांकी विधा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
‘एकांकी’ हिन्दी को पाश्चात्य साहित्य की देन मानी जाती है। इसमें मानव जीवन के किसी एक पक्ष को कलात्मक रूप से मंच का विषय बनाया जाता है। एकांकी के मुख्यतत्व कथावस्तु, पात्र, संवाद और रंग-संकेत हैं। एकांकी में स्थान, समय और कार्य की एकरूपता होना आवश्यक माना गया है। हिन्दी का प्रथम एकांकी जयशंकर प्रसाद रचित ‘एक पूँट’ को माना जाता है।
प्रश्न 9.
हिन्दी निबंध’ विधा को संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
‘निबंध’ शब्द का प्रयोग एक ऐसी गद्य रचना के लिए होना चाहिए जो बँधी हुई या व्यवस्थित और नियंत्रित हो । परन्तु आज का निबंध इसका ठीक विपरीत रूप पा चुका है। आज का हिन्दी निबन्ध बंधनहीन स्वच्छन्द भाव-विचार प्रकाशन का माध्यम बन चुका है। निबन्ध में भाषा और शैली का विशेष महत्व रहता है। हिन्दी निबंध के विकास के तीन चरण माने जाते हैं- (1) भारतेन्दु काल (2) द्विवेदी शुक्ल काल (3) आधुनिक काल । आधुनिक काल में हिन्दी निबंध का बहुमुखी विकास हुआ है। भाषा, शैली, विषय सभी दृष्टियों से निबंध ने स्वयं को प्रासंगिक बनाया है।
प्रश्न 10.
‘रेखाचित्र’ विधा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
शब्दों की रेखाओं द्वारा पाठक के मन में उभारा गया, किसी व्यक्ति का चित्र रेखाचित्र कहा जा सकता है। रेखाचित्र रचना में किसी एक व्यक्ति को ही केन्द्र में रखा जाता है। रेखाचित्र में लेखक में अनुभव को यथार्थता, संवेदनशीलता, भाषा के प्रयोग में दक्षता तथा सूक्ष्म-निरीक्षण की योग्यता आवश्यक मानी जाती है। पद्म सिंह शर्मा की रचना ‘पद्म पराग’ को हिन्दी का प्रथम रेखाचित्र माना गया है।
प्रश्न 11.
‘संस्मरण’ किसे कहते हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
‘संस्मरण’ एक प्रकार से लेखक द्वारा अपनी किसी पुरानी याद को संजोना और साहित्यिक रूप में प्रस्तुत करना है। यह संस्मरण किसी व्यक्ति या स्थान के बारे में हो सकता है। संस्मरण लेखन में लेखक विषय की सूक्ष्म और साधारण बातों को भी आकर्षक ढंग से परिचित कराता है। हिन्दी में विशिष्ट और साधारण सभी व्यक्तियों के संस्मरण लिखे गए हैं।
प्रश्न 12.
‘आत्मकथा’ विधा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
लेखक द्वारा अपनी जीवनी लिखा जाना ‘आत्मकथा’ कहा जाता है। आत्मकथा लेखक जीवन, रुचियों, गुण-दोषों तथा विचारों पर प्रकाश डालती है। आत्मकथा लेखक को साहसी, आत्मप्रशंसा से दूर और संकोचहीन होना चाहिए। भारतेन्दु जी ने अपनी आत्मकथा लिखकर इस विधा का श्रीगणेश किया था।
प्रश्न 13.
‘यात्रा-वर्णन’ की विशेषताओं का परिचय दीजिए।
उत्तर:
लेखक द्वारा की गई यात्रा का विवरण देना और वर्णन किया जाना यात्रा-वर्णन या यात्री-वृत्त कहा जाता है। यात्रा वर्णन एक प्रकार का संस्मरण ही होता है। यात्रा के मध्य लेखक को हुए अनुभव, प्रभाव और परिचय यात्रावृत्त को मनोरंजक और विश्वसनीय बनाते हैं। यात्रा वर्णन पाठकों को भी यात्राएँ करने को प्रेरित करते हैं।
प्रश्न 14.
रिपोर्ताज’ का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
‘रिपोर्ताज’ फ्रांसीसी भाषा का शब्द है। यह रिपोर्ट’ का ही साहित्यिक रूप होता है। किसी घटना के तथ्यों तथा उपस्थित व्यक्तियों के विचारों को रोचक शैली में प्रस्तुत करना रिपोर्ताज है। दूसरे महायुद्ध, बंगाल के अकाल आदि ने रिपोर्ताज को हिन्दी गद्य साहित्य को अंग बनाया।
प्रश्न 15.
‘साक्षात्कार’ विधा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
महत्वपूर्ण व्यक्तियों, घटना के प्रत्यक्षदर्शियों और नेतागण आदि से किसी विषय पर प्रश्नोत्तर शैली में, उनके विचार जानना और उन्हें एक साहित्यिक रचना के रूप में प्रस्तुत करना ‘साक्षात्कार’ कहा जाता है। समाचार-पत्रों और दूरदर्शन पर इस विधा को प्रायः पढ़ा और देखा जाता है।
प्रश्न 16.
वर्तमान सामाजिक परिवेश में ‘हास्य-व्यंग्य’ विधा के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हिन्दी.में ‘हास्य व्यंग्य’ विधा भारतेन्दु काल से ही चली आ रही है।। हास्य और व्यंग्यकार अपनी रचना द्वारा समाज में व्याप्त आडंबर, भ्रष्टाचार, अंधविश्वास, स्वार्थवादिता आदि विसंगतियों पर अप्रत्यक्ष लेकिन रोचक भाषा-शैली में प्रहार करता है। यह केवल मनोरंजन करने वाली विधा नहीं है, अपितु यह सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध जनमत तैयार करने वाली विधा भी है। आज के परिवेश में इसके महत्व से इन्कार नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 17.
‘गद्य-काव्य’ विधा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
‘गद्य-काव्य’ में लेखक अपने कथ्य को कविता जैसा सरस भावात्मक बनाकर गद्य में प्रस्तुत करता है। इसमें कोई विशिष्ट विषय नहीं होता है। ये रचनायें प्रायः आकार में छोटी होती हैं। वाक्य रचना में लय, अलंकार, गीति तत्व, भाव विभोरता आदि उपस्थित रहते हैं।
प्रश्न 18.
‘फीचर’ विधा क्या है? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
यह विधा अभी पत्र-पत्रिकाओं के स्तम्भों में अधिक दिखाई दे रही है। फीचर द्वारा लेखक किसी स्थान का सजीव वर्णन प्रस्तुत करता है। इसे रूपक भी कहा जाता है। फीचर में प्रस्तुत कथा के साथ एक अन्तर्कथा भी साथ-साथ चलती है। फीचर लेखक का उद्देश्य स्थान विशेष का सर्वांगीण परिचय कराना होता है। ‘फीचर’ विधा हिन्दी गद्य-साहित्य में धीरे-धीरे अपना स्थान बना रही है।
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 1 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आधुनिक जीवन-शैली में गद्य की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आज का सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, वैज्ञानिक अथवा व्यावसायिक जीवन इतना विस्तृत व बहुमार्गी हो चुका है कि परस्पर विचारों के आदान-प्रदान, सूचनाओं के संग्रह, उपयोगी साहित्य के प्रकाशन, ज्ञान के संग्रहण आदि के लिए हमें पग-पग पर गद्य-भाषा का सहारा लेना पड़ता है। शासनादेश हो या धर्माचार्यों के व्याख्यान, नेताओं के भाषण हों या व्यावसायिक गतिविधियाँ और चाहे वैज्ञानिक गोष्ठियाँ, सभी को हिन्दी में गद्य को अनिवार्य सहयोग लेना पड़ता है। कल्पना कीजिए कि यदि हिन्दी गद्य आज इतना विकसित और सक्षम नहीं होता तो हमारे हिन्दी भाषा समाज की क्यों दशा होती।
अत: हिन्दी गद्य आज के समाज की आकांक्षाओं, भावी योजनाओं, सपनों तथा संबोधनों की भाषा बन गया है। कई विदेशी या देशी भाषा का गद्य उसका स्थान नहीं ले सकता।
प्रश्न 2.
आधुनिक हिन्दी गद्य किन-किन सोपानों और योगदानों से वर्तमान स्वरूप को प्राप्त हुआ? लिखिए।
उत्तर:
भारतेन्दुयुग से हिन्दी गद्य के विकास का आरम्भ होता है। इससे पूर्व हिन्दी गद्य अत्यन्त अविकसित स्थिति में था। भारतेन्दु जी ने हिन्दी गद्य को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान किया। उसे ऐसी भाषा प्रदान की जिसके विकास की सम्भावनाएँ थीं। उन्होंने हिन्दी गद्य में नए-नए विषयों का समावेश भी किया। भारतेन्दु जी के बाद महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने हिन्दी गद्य को सँवारा। उन्होंने इसे व्याकरणसम्मत बनाया। उसे मानक रूप प्रदान किया। भाषा के साथ ही नए विषयों पर स्वयं भी गद्य निर्माण किया और अनेक लेखकों को प्रोत्साहित किया। ‘सरस्वती’ के माध्यम से द्विवेदी जी ने हिन्दी गद्य की बहुत बड़ी सेवा की। शुक्ल जी के गद्य-क्षेत्र में पदार्पण से हिन्दी गद्य में प्रौढ़ता और प्रामाणिकता आई। गम्भीर विषयों पर निबन्ध रचना, समालोचन शैलियों की विविधता आदि का आगमन हुआ।
इसके पश्चात् तो अनेक मेधावी, प्रतिभाशाली और नव-नवे प्रयोगकर्ता गद्यकार सामने आते गए और आज भी विद्यमान हैं।
प्रश्न 3.
‘रेखाचित्र’ और ‘संस्मरण’ विधा में क्या अंतर और समानताएँ हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रेखाचित्र’ द्वारा लेखक शब्द-संकेतों से हमारे मन में किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का चित्र-सा उतार देता है। हमें लगता है। जैसे वह व्यक्ति हमारे सामने सशरीर उपस्थित है, जी रहा है, कार्यरत है। व्यक्ति ही नहीं रेखाचित्रकार, किसी वस्तु या स्थान को भी हमारे मन में साकार कर सकता है। ‘संस्मरण’ व्यक्ति प्रदान रचना होती है। उसमें लेखक स्वयं अपने विगत जीवन की यादों को पाठकों से साझा करता है। संस्मरण भी किसी व्यक्ति अथवा स्थान के बारे में हो सकता है। रेखाचित्रकार और संस्मरण लेखक दोनों एक जैसी भाषा शैली का प्रयोग करते देखे जाते हैं। दोनों ही में यथार्थ अनुभव, संवेदनशीलता, कलात्मक प्रस्तुतीकरण की क्षमता, सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति आदि गुण होना आवश्यक है। इस प्रकार कोई रचना रेखाचित्र और संस्मरण दोनों का रोचक मेल हो सकती है।
पाठ – सारांश :
गद्य का स्वरूप – ‘गद्य’ क्या है, इस विषय में संस्कृत साहित्य के आचार्यों का मत वर्तमान मत से भिन्न रहा है। संस्कृत साहित्य के आचार्यों ने गद्य को ‘गद्य-काव्य’ नाम से संबोधित किया है। गद्य के अंतर्गत आख्यायिका, वृत्त तथा कथा को माना है। आचार्य ‘भामह’ के अनुसार गद्य ‘प्रकृत, अनाकुल, श्रव्य शब्दार्थ पद वृत्ति’ है। आचार्य दण्डी ने ‘अपाद, गण और मात्रा रहित रचना को गद्य माना है। आचार्य ‘वामन’ ने गद्य की कोई परिभाषा न देकर उसकी विशेषताओं का ही वर्णन किया है। वामन कहते हैं- मद्य कवीनां निकषं वदन्ति’ अर्थात् गद्य कवियों की कसौटी है। आचार्य विश्वनाथ ने भी गद्य की परिभाषा न देकर उसके भेदों का उल्लेख किया है।
वर्तमान परिभाषा – आजकल ‘गद्य’ वह रचना मानी जाती है जिसमें साधारण बातचीत में प्रयोग होने वाली शब्दार्थ युक्त भाषा का प्रयोग होता है। गद्य में पद्य की भाँति कृत्रिम भाषा, उल्लेख, छंद-बद्धता तथा असाधारण वाक्य रचना का प्रयोग नहीं होता। वैसे आजकल छंद और तुकरहित कविता भी लिखी जा रही है। अतः पद्य और गद्य में मुख्य अंतर उनके बाहरी स्वरूप के आधार पर नहीं किया जा सकता। आज निबंध, आलोचना, कथा साहित्य, व्याख्या, यात्रावृत्त, समाचार, रिपोर्ताज आदि के लिए गद्य ही सर्वस्वीकृत माध्यम बन चुका है। समाज के, शासन के, व्यक्ति के सभी व्यावहारिक कार्य गद्य के माध्यम से ही सम्पन्न हो रहे हैं। तर्क-वितर्क, अनुसंधान, शिक्षा कार्य सभी के लिए गद्य अनिवार्य बन चुका है।
हिन्दी का प्रारम्भिक गद्य – हिन्दी को प्रारम्भिक गद्य बहुत अविकसित अवस्था में था। इसके कई कारण विद्वानों ने माने हैं। कुछ का कहना है कि संस्कृत के प्रभाव के कारण हिन्दी-साहित्य का आरम्भ पद्य-प्रधान रहा। पर ऐसा नहीं लगता क्योंकि संस्कृत में उच्चकोटि की गद्य रचनाएँ भी हुई हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि हिन्दी-साहित्य के आदिकाल, भक्तिकाल तथा रीतिकाल के समय की सामाजिक परिस्थितियाँ तथा जीवन के प्रति दृष्टिकोण गद्य के अनुकूल नहीं था।
आधुनिक हिन्दी गद्य का विकास – हिन्दी के गद्य को लोकप्रिय व विकसित बनाने में कई संस्थाओं और व्यक्तियों का योगदान स्मरणीय है। ईसाई धर्म-प्रचारकों को अपने उपदेशों को सामान्य लोगों तक पहुँचाने के लिए हिन्दी-गद्य की आवश्यकता हुई । राजाराम मोहन राय तथा उनकी संस्था ‘ब्रह्मसमाज’ ने हिन्दी गद्य के विकास में योगदान किया। ‘वेदान्त-सूत्र’ का हिन्दी में अनुवाद करने के साथ ही उन्होंने ‘बंगदूत’ नामक हिन्दी पत्रिका प्रकाशित की। हिन्दी गद्य के विकास में आर्यसमाज और उसके संस्थापक दयानंद सरस्वती का योगदान भी अविस्मरणीय रहा। इसी के साथ अन्य अनेक पत्र-पत्रिकाएँ भी सामने आई हैं। ‘उदन्त मार्तण्ड’, ‘बनारस अखबार’, ‘सुधाकर’ बुद्धि प्रकाश आदि ऐसे ही नाम थे।
आधुनिक हिन्दी गद्य का व्यवस्थित विकास
भारतेन्दुयुग – हिन्दी गद्य का सही अर्थों में विकास भारतेन्दु हरिशन्द्र के आगमन के साथ होता है। भारतेन्दु जी ने हिन्दी गद्य को व्यवस्थित और व्यावहारिक रूप प्रदान किया। उन्होंने हिन्दी गद्य को आगे बढ़ाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया। भाषा शैली और विषय की विविधता लाकर भारतेन्दु ने हिन्दी के बहुमुखी विकास का द्वार खोल दिया।
भारतेन्दु युग के अंतर्गत राजा शिव प्रसाद सितारे हिन्द, लक्ष्मण सिंह, देवकी नंदन खत्री, बाल मुकुन्द गुप्त , बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र, किशोरीलाल गोस्वामी, बद्री नारायण चौधरी आदि अनेक गद्यकार आते हैं।
द्विवेदीयुग – आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के हिन्दी गद्य क्षेत्र में उतरने के बाद, हिन्दी गद्य का मानक स्वरूप आकार लेने लगा। द्विवेदी जी ने अपनी पत्रिका ‘सरस्वती’ के माध्यम से न केवन नए गद्यकारों को प्रोत्साहित किया अपितु हिन्दी गद्य के विकास के लिए एक समतल और सुदृढ़ आधार भी प्रदान किया। व्याकरण की दृष्टि से भी हिन्दी गद्य को व्यवस्थित और मानक रूप प्रदान किया।
शुक्ल और शुक्लोत्तर युग – महावीर प्रसाद द्विवेदी के पश्चात् शुक्ल जी तथा अन्य गद्यकारों के उदय ने हिन्दी गद्य को भाषा की गम्भीरता, प्रौढ़ता तथा विविधता से सम्पन्न बनाया। जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद, हजारी प्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा आदि के साथ हिन्दी गद्य की सामर्थ्य और व्यापकता में बहुत सुधार हुआ। नए-नए गद्यकार आते गए और हिन्दी की अभिव्यंजना शक्ति में विस्तार और प्रामाणिकता भरते गए। आज का युग तो गद्य-युग ही कहा जाने लगा है।
हिन्दी गद्य की विविध विधाएँ – परंपरागत विषयों के साथ ही हिन्दी गद्य में अनेक नवीन विधाएँ आई हैं। इन विधाओं ने हिन्दी गद्य को समृद्ध बनाने में उल्लेखनीय योगदान किया है।
कहानी – कहानी हिन्दी गद्य की एक सशक्त विधा रही है। समय के साथ कहानी ने अपने विषय, भाषा शैली और वर्तनी को बदला है। कहानी में जीवन, भाषा शैली, किसी घटना विशेष को आधार बनाया जाता है। आधुनिक कहानी का आगमन सन् 1901 में माना जाता है। हिन्दी कहानी का परिचय (1) उद्भवकाल (2) विकासकाल (3) उत्कर्षकाल तथा (4) प्रगति-प्रयोग काल में विभाजित किया जा सकता है।
एकांकी – हिन्दी का आधुनिक एकांकी पश्चिमी एकांकी से प्रभावित माना जाता है। एकांकी नाटक का एक विशेष स्वरूप है। जिसमें जीवन की किसी घटना को अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। एकांकी के प्रमुख अंग- कथावस्तु, पात्र, संवाद तथा रंगमंच योजना है। एकांकी में स्थान, कार्य तथा समय तीनों की एकता पर बल दिया जाता है। जयशंकर प्रसाद के एक पूँट’ को हिन्दी का प्रथम एकांकी माना जाता है।
निबंध – आजकल निबंध उस गद्य-रचना को कहा जाता है जिसमें लेखक किसी विषय पर मुक्त भाव से प्रकाश डालता है। आज निबंध विधा पर्याप्त विकसित हो चुकी है। निबंध के विकास को तीन चरणों में बाँटा गया है- (1) भारतेन्दु काल (2) द्विवेदी-शुक्लकाल तथा (3) आधुनिक काल।
रेखाचित्र – शब्दों के माध्यम से किसी घटना, वस्तु या व्यक्ति का पाठक के मन पर एक चित्र-सा अंकित कर देना, रेखाचित्र विधा कही जाती है। एक कुशल रेखाचित्रकार में भाषा पर अधिकार, संवेदनशीलता, तटस्थता तथा सूक्ष्म निरीक्षण आदि गुण होने चाहिए। पद्म सिंह शर्मा रचित ‘पदम पराग’ को इस विधा का जनक कहा जाता है। इस विधा का तेजी से विकास हुआ है।
संस्मरण – संस्मरण लेखक के जीवन के अतीत के अनुभवों पर आधारित होता है। रेखाचित्र और संस्मरण के बीच रेखा खींच पाना सरल नहीं है। दोनों एक दूसरे से घुले-मिले रहते हैं। संस्मरण द्वारा लेखक किसी व्यक्ति, वस्तु तथा स्थान आदि से जुड़ी अपनी यादों को रोचक भाषा में, आकर्षक शैली में प्रस्तुत करता है।
आत्मकथा – लेखक का अपने जीवन का सम्पूर्ण या आंशिक परिचय दिया जाना आत्मकथा कहा जाता है। एक आत्मकथा लेखक को साहसी, सत्य का प्रस्तोता और तटस्थ प्रेक्षक होना चाहिए।
यात्रावृत्त – किसी स्थान विशेष की लेखक द्वारा की गई यात्रा का यथा-तथ्य वर्णन यात्रा-वर्णन’ या यात्रा के मार्ग तथा स्थान का वर्णन’ मात्र नहीं होता, लेखक इस यात्रा में मिलने वाले व्यक्तियों के स्वभाव आदि का वर्णन तथा अपने अनुभव भी अंकित करना चाहता है।
रिपोर्ताज – किसी घटना का क्रमिक रूप से पूरा वर्णन प्रस्तुत करना ‘रिपोर्ट’ कहा जाता है। रिपोर्ट का साहित्यिक रूप ही रिपोर्ताज है। रिपोर्ताज तथ्य-प्रधान रचना होती है। तथ्य को रोचक तथा कलात्मक रूप से प्रस्तुत करना ही रिपोर्ताज की विशेषता है।
साक्षात्कार – व्यक्ति-विशेष, प्रत्यक्षदर्शी, विशेषज्ञ व्यक्ति आदि से किसी तथ्य, घटना या उसके विचारों के बारे में प्रश्नों के द्वारा सूचना प्राप्त करना साक्षात्कार कहा जाता है। एक सफल साक्षात्कार कर्ता होने के लिए व्यक्ति में मनोवैज्ञानिक समझ, चतुराई, विनम्रता आदि गुण होने चाहिए। इस विधा के हिन्दी में प्रारम्भकर्ता पद्मसिंह शर्मा, कमलेश’ माने जाते हैं।
हास्य व्यंग्य – हास्य और व्यंग्य जुड़वाँ भाइयों जैसे हैं। एक के बिना दूसरा अधूरा है। दोनों का लक्ष्य सामाजिक जीवन में व्याप्त विसंगतियों पर साहित्यिक भाषा शैली में चोट करना । इस विधा की विशेषता है। व्यंग्य का उद्देश्य विसंगतियों या दोषों को सुधारना होता है। हरिशंकर परसाई एक सफल तथा लोकप्रिय हास्य-व्यंग्यकार हुए हैं।
गद्य-काव्य – गद्य काव्य वह गद्य रचना होती है जिसमें कविता जैसी भावुकतापूर्ण शैली में किसी एक भाव, विचार का व्यक्ति को केन्द्र बनाकर लेखक अपनी बात कहता है। भाषा आलंकारिक हो सकती है, तुकों का मिलान भी देखा जा सकता है।
फीचर – यथातथ्य सूचनाओं को तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत करना इस विधा की प्रधान विशेषता है। इसे रूपक भी कहा है। इस में । एक प्रधान कथा और एक अंतर्कथा साथ-साथ चलती है। अभी यह विधा समाचार पत्रों तक ही सीमित है। स्वतंत्र साहित्यिक विधा बनने के मार्ग पर है।
कठिन शब्दार्थ
भामह, दण्डी तथा वामन = संस्कृत साहित्य के आचार्य तथा गद्यकारे। आख्यायिका = उपदेशप्रद कहानी, किस्सा। अनाकुल= व्यवस्थित । प्रकृत = स्वाभाविक, कृत्रिमता रहित। प्रयोजन = उद्देश्य । छन्दोबद्ध = छन्दों में बँधी हुई। भंमिमा= छवि, मुद्रा। वक्रता = तिरछापन, सीधे ने कहा जाना। निर्विवाद = जिस पर कोई विरोध या विवाद न हो। बोध वृत्ति = ज्ञान की प्रधानता। विश्लेषण = अलग-अलग किया जाना। वस्तुवादी = तथ्यप्रधान । विषयवस्तु = कथानक, संबंधित विषय। पाश्चात्य = पश्चिमी, योरोप आदि का। आडम्बरहीनता = दिखावे से रहित होना, स्वाभाविकता। उद्भव = उत्पत्ति, आरम्भ। आत्मपरिष्कार = अपनी शुद्धि, अपने को सुधारना । कालान्तर = समय बीतना। निष्कर्ष = नतीजा। अन्तर्निहित = भीतर या मन में छिपा हुआ।