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RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 22 भारत भी महाशक्ति बन सकता है।

RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 22 भारत भी महाशक्ति बन सकता है।

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 22 भारत भी महाशक्ति बन सकता है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 22 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 22 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सोने की चिड़िया किस देश को कहा जाता था?
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) अमेरिका
(घ) भारत
उत्तर:
(घ) भारत

प्रश्न 2.
राष्ट्रनिष्ठ खण्डोबल्लाल पुस्तक के लेखक हैं
(क) तुलसीदास
(ख) श्रीधर पराड़कर
(ग) अमृताप्रीतम
(घ) नंदकिशोर पाण्डेय
उत्तर:
(ख) श्रीधर पराड़कर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 22 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत को सोने की चिड़िया क्यों कहा जाता था?
उत्तर:
भारत में अकूत वैभव एवं ऐश्वर्य था, सोना-चाँदी, मोती अपार मात्रा में थे। इस कारण भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। यहाँ अपार संपदा थी।

प्रश्न 2.
परमाणु परीक्षण करने पर भारत पर लगाए गए वैश्विक प्रतिबन्धों का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
वैश्विक प्रतिबन्ध का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। हमारे देश का कोई काम नहीं रुका। देशवासियों को किसी विशेष कष्ट का सामना नहीं करना पड़ा।

प्रश्न 3.
भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति को किसने तहस-नहस किया?
उत्तर:
अंग्रेजों ने सोची-समझी साजिश के तहत हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति को तहस-नहस कर दिया।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 22 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की प्राकृतिक संपदा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में प्रकृति का विपुल भंडार है। यहाँ की सदाबहार नदियाँ, अनेक प्रकार के वन, अनेक प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। उत्तर भारत के विशाल मैदान में उपजाऊ कांप मिट्टी बिछी हुई है जो अन्न का विशाल भण्डार है। गंगा-यमुना-जैसी विशाल नदियाँ हैं जो भारत के लोगों का माँ के समान पालन-पोषण करती हैं। विशाल नदियाँ पर विशाल बहुपरियोजनाएँ बनाई गई हैं जिनसे वनों का विस्तार, मछली पालन, मिट्टी का कटाव रोकना, विद्युत का उत्पादन आदि अनेक उद्देश्य पूरे किए जाते हैं। भारत में विभिन्न जलवायु के कारण अनेक प्रकार की फसलों का उत्पादन हो रहा है। कह सकते हैं कि भारत की प्राकृतिक संपदा अपार है।

प्रश्न 2.
विश्व के लोग भारतीयों पर क्या-क्या आरोप लगाते हैं?
उत्तर:
विश्व के लोग भारत के निवासियों को संकुचित मस्तिष्क का एवं प्रतिगामी बताकर उपेक्षा करते हैं। वे कहते हैं कि हिन्दुस्तान को आदमी कायर है, मूढ़ है, निकम्मा है। किन्तु यह धारणा भ्रामक है। द्वितीय विश्वयुद्ध में और चीन तथा पाकिस्तान से युद्ध के समय भारतीय वीरों ने जो साहस दिखाया वह अविस्मरणीय है।

प्रश्न 3.
भारत की दुर्गति होने का क्या कारण है?
उत्तर:
भारत की दुर्गति का मूल कारण भारतीयों में आत्मविश्वास की कमी व आत्मप्रत्यय का अभाव है। हमारी समस्या गलत दिशा के चुनाव की है। हमने स्वतंत्रता के बाद भारत को भारत बनाने का प्रयास नहीं किया। हमने अपनी प्राथमिकता तय नहीं की। यहाँ परिस्थिति भिन्न हैं, समाज का गठन और आवश्यकताएँ भिन्न हैं। भौगोलिक स्थिति और समाज की मानसिकता तथा आवश्यकता के अनुरूप विकास का प्रारूप तैयार नहीं किया। हमने सत्ता को सब कुछ मान लिया। नैतिकता को तिलांजलि दे दी। इसके लिए हम स्वयं दोषी हैं। चहुँओर भ्रष्टाचार व्याप्त है। व्यवस्थापक ही अव्यवस्था फैला रहे हैं। इस कारण भारत की दुर्गति हो रही है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 22 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत अब भी महाशक्ति बन सकती है। समझाइए।
उत्तर:
हम अपने इतिहास पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि हमारा देश वही हिन्दुस्तान है जो सोने की चिड़िया कहलाता था। विश्व के किसी भी देश के पास ऐसी भूमि और संसाधन नहीं हैं जो उसे सब प्रकार से सम्पन्न बना सकें। हमें अपनी आवश्यकताओं के लिए दूसरों की ओर नहीं देखना पड़ता। हमने परमाणु परीक्षण किया और विश्व को अपनी शक्ति का अनुभव करा दिया। आज विज्ञान का युग है। विज्ञान पश्चिम की देन है। यह एक मिथक है। जीवन के सभी क्षेत्रों में भारत के मनीषियों ने अद्भुत आविष्कार किए। बात अंतरिक्ष विज्ञान की हो, रसायन विज्ञान की हो, भौतिक विज्ञान की हो, चिकित्सा विज्ञान की हो अथवा निर्माण विज्ञान की हो, भारत ने सभी क्षेत्रों में कार्य किया है। आधुनिक भारतीय वैज्ञानिकों में सर जे.सी.बोस, सी.बी.रमन, डॉ. होमी जहाँगीर भाभा, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आदि की वैज्ञानिक उपलब्धियों को भुलाया नहीं जा सकता।

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा न्यूनतम खर्च में अपना स्वदेशी उपग्रह मंगलग्रह पर भेजना आज भी सम्पूर्ण विश्व को आश्चर्यचकित कर रहा है। विदेशी हमारी बौद्धिक क्षमता से भयभीत हैं। भारत ने इतने महान कार्य किये हैं। केवल आत्मविश्वास की आवश्यकता है। विश्व के किसी भी देश के पास ऐसी भूमि और संसाधन नहीं हैं। वे साधन हमारे पास हैं, जिनके बल पर हम फिर से उसी सम्पन्नता को अर्जित कर सकते हैं। केवल संसाधनों के दोहन की आवश्यकता है। और अपनी आवश्यकता के अनुसार उनके उपयोग की है। जब हम आवश्यक सन्तुलन बना लेंगे तो पुरानी वैभव फिर से प्राप्त कर लेंगे। इस प्रकार भारत महाशाक्ति बन सकता है।

प्रश्न 2.
भारत को महाशक्ति बनने से रोकने में बाधक तत्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत को महाशक्ति बनने में सबसे बड़ी बाधा हमारे आत्मविश्वास की कमी है। हम यह सोचते हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता, सब गड़बड़ हो रहा है, इस देश का भगवान ही मालिक है। यहाँ चहुंओर भ्रष्टाचार फैला हुआ है। व्यवस्थापक स्वयं अव्यवस्था फैला रहे हैं। हमारा दृष्टिकोण नकारात्मक हो गया है। भविष्य की ओर भारतीयों का ध्यान ही नहीं है। क्या हो चुका है, क्या हो रहा है और क्या किया जा सकता है, इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। विश्व के किसी देश के पास ऐसी भूमि और संसाधन नहीं हैं। इन संसाधनों के आधार पर हम फिर से पुराने वैभव को प्राप्त कर सकते हैं। केवल संसाधनों के उचित दोहन की आवश्यकता है। हम पर पाश्चात्य शिक्षा पद्धति की छाप पड़ी है। हम उसी के गीत गा रहे हैं। अपने गौरवपूर्ण इतिहास को जानने का प्रयत्न नहीं कर रहे हैं। हम यदि अपने देश की बौद्धिक शक्ति का उपयोग करें तो आज भी हम महाशक्ति बन सकते हैं। विदेशी हमारे बुद्धिमान व्यक्तियों का उपयोग कर रहे हैं। इन आन्तरिक कारणों के अतिरिक्त बाहरी कारण भी हैं। विदेशी हमारे परमाणु परीक्षण पर भी प्रतिबन्ध लगा रहे हैं। दो ओर से घेरे हुए हैं। जिसके कारण भी भारत के महाशक्ति बनने में बाधा है।

प्रश्न 3.
भारत के गौरवमयी अतीत का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अगर हम अपने अतीत के इतिहास को देखें तो पता चलेगा कि भारत सोने की चिड़िया था। हमारे सारे प्राचीन ग्रन्थों में सुख-शान्ति, अकूत वैभव और ऐश्वर्य का वर्णन मिलता है। हमारे वैभव ने ही विदेशी आक्रमणकारियों को भारत की ओर आकर्षित किया था। वे यहाँ लूटने के उद्देश्य से ही आए थे। ये आक्रमणकारी यहाँ से अपार सोना-चाँदी, हीरे-मोती लूटकर ले गए। मुहम्मद गजनवी सोमनाथ मन्दिर की अपार सम्पदा को लूटकर ले गया। भारत की चमक से चकित होकर अंग्रेज भारत आए और यहाँ की अपार संपदा को इंग्लैण्ड ले गए। हमारी यह सम्पन्नता लूट का परिणाम नहीं है। बल्कि संसाधनों के उचित दोहन का परिणाम है। जीवन के सभी क्षेत्रों में भारत के मनीषियों ने अद्भुत आविष्कार किए। बात अन्तरिक्ष विज्ञान की हो, रसायन विज्ञान की हो, भौतिक विज्ञान की हो, चिकित्सा विज्ञान की हो अथवी निर्माण विज्ञान की हो सभी क्षेत्रों में यहाँ के वैज्ञानिकों ने चमत्कार कर दिखाया है।

प्रश्न 4.
आपकी दृष्टि में क्या भारत विश्वशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भारत का भविष्य उज्ज्वल दिखाई दे रहा है। भारत की राजनीतिक, सामाजिक और वैज्ञानिक स्थिति को देखते हुए ऐस्य आभास होने लगा है कि निकट भविष्य में भारत एशिया ही नहीं अपितु विश्व में महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हो रहा है। दूसरे संस्थान के माध्यम से आज भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के अन्य देशों के उपग्रहों को भी अन्तरिक्ष में प्रतिस्थापित किया जा रहा है। जिससे भारत की आर्थिक स्थिति में बहुत विकास हो रहा है। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का छटवाँ स्थान है।

खाद्यान्न उत्पादन में हम आत्मनिर्भर हो चुके हैं। सौर ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के सहयोग से त्रिशूल, पृथ्वी, अग्नि, आकाश मिसाइलें छोड़ीं। मंगल की खोज के लिए एक उपग्रह अंतरिक्ष में भेजा। इसरो के द्वारा तीन वैलस्टिक मिसाइल तैयार किए गए जो किसी भी युद्धपोत से थल और वायु में भी मार कर सकते हैं। यह सुविधा केवल अमेरिका और रूस के पास ही है। चीन की तर्ज पर समुद्री प्लेटफार्म बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

आधुनिक हथियारों के क्षेत्र में ओटोमेटिक लेजर गन खरीदे गए हैं जो रात में भी निशाना लगा सकती हैं। भारत इस तकनीक को तैयार करने का प्रयास कर रहा है। जापान के साथ बुलेट ट्रेन का समझौता किया है। सुखोई 30 फाइटर प्लेन की तकनीक को रूस के साथ मिलकर विकसित कर रहा है। न्यूनतम खर्च में अपना स्वदेशी उपग्रह मंगलग्रह पर भेजा जो वहाँ की मिट्टी का अध्ययन करेगा। इस प्रकार कह सकते हैं कि भारत विश्वशक्ति बनने की ओर अग्रसर है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) यदि हम अपने इतिहास पर……………केंद्र हुआ करता था।
(ख) हिंदुस्तानी मूढ़ भी नहीं…………….बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ डेरा क्यों लगाती हैं?
उत्तर:
इन गद्यांशों की व्याख्या महत्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ शीर्षक के अन्तर्गत देखिए।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 22 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 22 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
“अबे कुछ नहीं हो सकता- इस देश का भगवान ही मालिक है’ देशवासियों की यह धारणा लेखक को –
(क) निराशा कर देती है।
(ख) झकझोर देती है।
(ग) उद्वेलित कर देती है।
(घ) भावुक कर देती है।
उत्तर:
(ख) झकझोर देती है।

प्रश्न 2.
विदेशों में भारत का डंका बजा रहे हैं –
(क) भारतीय वैज्ञानिक
(ख) भारतीय छात्र
(ग) भारतीय विद्वान
(घ) भारतीय उद्योगपति
उत्तर:
(घ) भारतीय उद्योगपति

प्रश्न 3.
भारत को पुनः महाशक्ति एवं विश्वगुरु बनाने के लिए आवश्यक है –
(क) आत्मविश्वास जगाने की
(ख) वैज्ञानिक शक्ति बढ़ाने की
(ग) उद्योगों को बढ़ाने की
(घ) हथियारों की वृद्धि की।
उत्तर:
(क) आत्मविश्वास जगाने की

प्रश्न 4.
जिनके जिम्मे व्यवस्था संभालने का दायित्व है वे फैला रहे हैं –
(क) भ्रष्टाचार
(ख) अनैतिकता
(ग) अव्यवस्था
(घ) अत्याचार
उत्तर:
(ग) अव्यवस्था

प्रश्न 5.
सभ्य कहे जाने वाला उच्च वर्ग हो गया है –
(क) स्वार्थी।
(ख) भ्रष्ट
(ग) अनैतिक
(घ) अत्याचारी
उत्तर:
(क) स्वार्थी।

प्रश्न 6.
क्या-क्या हो चुका है, क्या-क्या हो रहा है, क्या-क्या किया जा सकता है, इसका भारतीय विचार नहीं करता, क्योंकि उसका सोच हो गया है। (क) भावात्मक
(ख) सकारात्मक
(ग) नकारात्मक
(घ) विचारात्मक
उत्तर:
(ग) नकारात्मक

प्रश्न 7.
यदि हम अपने इतिहास पर दृष्टि डालें तो पता चलेगा कि हमारा देश था –
(क) जगत गुरु
(ख) सोने की चिड़िया
(ग) अध्यात्मवादी
(घ) वैज्ञानिकों का गढ़
उत्तर:
(ख) सोने की चिड़िया

प्रश्न 8.
विदेशी आक्रमणकारियों को हिन्दुस्तान की ओर आकर्षित किया था –
(क) विज्ञान ने
(ख) वैभव ने
(ग) धर्म ने।
(घ) दर्शन ने
उत्तर:
(ख) वैभव ने

प्रश्न 9.
विदेशी हिन्दुस्तान आए थे –
(क) रहने के लिए।
(ख) आध्यात्मिकता के लिए
(ग) लूटने के लिए
(घ) ग्रन्थ पढ़ने के लिए।
उत्तर:
(ग) लूटने के लिए

प्रश्न 10.
विदेशों की अपेक्षा भारत को सब प्रकार से सम्पन्न बनाने वाली कौन सी चीज है?
(क) विज्ञान और अध्यात्म
(ख) धर्म और दर्शन
(ग) ग्रन्थ और मनीषी
(घ) भूमि और संसाधन
उत्तर:
(घ) भूमि और संसाधन

प्रश्न 11.
अपनी आवश्यकता के लिए दूसरों पर निर्भर रहने वाला देश स्वीकार करता है –
(क) अवांछित समझौता
(ख) अवांछित नीति
(ग) अवांछित शासन
(घ) अवांछित वस्तुएँ।
उत्तर:
(क) अवांछित समझौता

प्रश्न 12
आज भी हम जिस कारण अपनी सम्पन्नता को अर्जित कर सकते हैं, वह है –
(क) आध्यात्मिकता
(ख) वैज्ञानिक शक्ति
(ग) भूमि और संसाधन
(घ) प्राकृतिक साधन
उत्तर:
(ग) भूमि और संसाधन

प्रश्न 13.
भारतीय वैज्ञानिकों ने न्यूनतम खर्च में अपना स्वदेशी उपग्रह भेजा था
(क) शुक्र ग्रह पर
(ख) शनि ग्रह पर
(ग) मंगल ग्रह पर
(घ) चन्द्रमा पर
उत्तर:
(ग) मंगल ग्रह पर

प्रश्न 14.
हमारे विकास में अवरोध पैदा करने वाली समस्या है
(क) वैज्ञानिक सोच की कमी
(ख) संसाधनों का अभाव
(ग) धन का अभाव
(घ) आत्मविश्वास की कमी
उत्तर:
(घ) आत्मविश्वास की कमी

प्रश्न 15.
हमने सर्वोपरि लिया है –
(क) सत्ता को
(ख) धन को
(ग) भ्रष्टाचार को
(घ) स्वार्थ को
उत्तर:
(क) सत्ता को

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 22 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
श्रीधर पराड़कर ने अनुभूत साहित्य का सृजन करने के लिए क्या किया?
उत्तर:
श्रीधर पराड़कर ने इंग्लैण्ड, श्रीलंका का आदि देशों की यात्रा के साथ-साथ भारत में भी साहित्य संवर्धन की यात्राएँ करके ‘अनुभूत सहित्य का सृजन किया।

प्रश्न 2.
‘भारत भी महाशक्ति बन सकता है’ निबन्ध का मुख्य उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर:
भारतीयों में राष्ट्र के प्रति निराशा और भ्रम को दूर कर आशा और उत्साह के साथ राष्ट्रीयता का भाव पैदा करना ही लेखक का मुख्य उद्देश्य है।

प्रश्न 3.
भारतीयों ने सबसे बड़ी भूल क्या की है?
उत्तर:
भारतीयों ने अपने गौरवमयी अतीत को भूलकर अपने आत्मसम्मान और स्वाभिमान को विस्मृत कर दिया है। यह भूल की है।

प्रश्न 4.
भारत को महाशक्ति और विश्वगुरु बनाने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
भारतीयों को विदेशों की ओर ताकना बन्द करके आत्मविश्वास और आत्मगौरव के भाव को जगाना चाहिए। प्रश्न 5. देश की परिस्थिति के बारे में सामान्य आदमी क्या सोचता है? उत्तर- सामान्य आदमी की सोच है कि अब कुछ नहीं हो सकता, सब गड़बड़ हो रहा है। इस देश का भगवान ही मालिक है।

प्रश्न 6.
देश के विकास के प्रति सामान्य आदमी की नकारात्मक सोच क्या है?
उत्तर:
सामान्य आदमी अपना आत्मविश्वास और आत्मगौरव खो चुका है। दूसरे उसके सामने चारों ओर फैला भ्रष्टाचार है तथा व्यवस्थापक स्वयं अव्यवस्था फैला रहा है इस कारण नकारात्मक सोच है।

प्रश्न 7.
सामान्य आदमी किस बात पर विचार नहीं कर रहा है?
उत्तर:
सामान्य आदमी विचार नहीं कर रहा है कि क्या-क्या हो चुका है, क्या-क्या हो रहा है, क्या-क्या किया जा सकता है? वह इसका विचार नहीं करता है और न उसे वास्तविकता का ही अनुभव होता है।

प्रश्न 8.
हमारे प्राचीन ग्रन्थों में किस बात का वर्णन मिलता है?
उत्तर:
हमारे सारे प्राचीन ग्रन्थों में सुख-शान्ति, अकूत वैभव व ऐश्वर्य का वर्णन मिलता है।

प्रश्न 9.
आक्रमणकारी किस उद्देश्य से भारत आए थे?
उत्तर:
हमारे वैभव ने आक्रमणकारियों को हिन्दुस्तान की ओर आकर्षित किया। वे यहाँ लूटने के उद्देश्य से आए थे। हर बार प्रत्येक आक्रमणकारी अपने साथ यहाँ का बेहिसाब सोना-चाँदी, हीरे-मोती लूटकर ले गए।

प्रश्न 10.
अंग्रेज भारत क्यों आए थे?
उत्तर:
अंग्रेज भारत की चमक से चकित होकर यहाँ आए थे। वे यहाँ की अपार संपदा को इंग्लैण्ड ले गए।

प्रश्न 11.
भारत के पास विदेशों की अपेक्षा ऐसी कौन सी चीज है जो उसे अधिक सम्पन्न बना सकती है?
उत्तर:
विदेशों की अपेक्षा भारत के पास उपजाऊ भूमि और संसाधन हैं जो उसे सम्पन्न बना सकते हैं।

प्रश्न 12.
परमाणु परीक्षण पर प्रतिबन्ध के बाद भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
परमाणु परीक्षण पर विश्व द्वारा लगाए गए प्रतिबन्ध का भारत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। हमारा कोई काम नहीं रुका। देशवासियों को किसी विशेष कष्ट का सामना नहीं करना पड़ा।

प्रश्न 13.
भारत पुरानी सम्पन्नता कैसे अर्जित कर सकता है?
उत्तर:
भारत के पास उपजाऊ भूमि और पर्याप्त संसाधन हैं। केवल उनके उचित दोहन की आवश्यकता है। यदि उनका उचित उपयोग किया जाय तो भारत पुरानी सम्पन्नता अर्जित कर सकता है।

प्रश्न 14.
‘यह एक मिथक है।’ क्या मिथक है?
उत्तर:
विज्ञान के बारे में यह कहना कि विज्ञान पश्चिम की देन है और आज के सारे ज्ञात आविष्कार अधिकतर पश्चिम में ही हुए हैं। यह धारण एके मिथक ही है।

प्रश्न 15.
हमारी दुर्गति क्यों है?
उत्तर:
हमारी दुर्गति का कारण संसाधनों की कमी, मूढ़ता, आलस्य, अकर्मण्यता नहीं है बल्कि आत्मविश्वास की कमी और आत्मप्रत्यय का अभाव है। इसलिए हमारी दुर्गति है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 22 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत का व्यक्ति हताशा और निराशा भरे उद्गार क्यों प्रकट कर रहा है?
उत्तर:
भारत को सामान्य व्यक्ति हताश और निराश है क्योंकि वह चहुंओर फैला भ्रष्टाचार देखता है जिनके जिम्मे व्यवस्था सँभालने का उत्तरदायित्व है, वे अव्यवस्था फैलाने में सक्रिय सहयोग प्रदान कर रहे हैं। जिन पर देश के नीति निर्धारण का दायित्व है, उनमें नैतिकता का अभाव दिखाई देता है। सभ्य कहे जाने वाले उच्चवर्ग में भी स्वार्थ-साधन का प्रयत्न देखा जाता है। इन्हीं सब कारणों से चिन्तित होकर वह कहता है अब कुछ नहीं हो सकता, सब गड़बड़ हो रहा है, इस देश को भगवान ही मालिक है। इसी कारण वह हताश और निराश है।

प्रश्न 2.
सामान्य व्यक्ति के निराशाभरे उद्गारों की वास्तविकता पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
सामान्य व्यक्ति के निराशा भरे उद्गार वास्तविक नहीं हैं। कारण उसके सोच की दिशा सही नहीं है। सामान्य व्यक्ति परिस्थितियों के केवल नकारात्मक पक्ष को लेकर ही अपने विचार प्रकट करता हैं। भविष्य की बात करते समय जिन बातों पर विचार किया जाना चाहिए, उस ओर उसका ध्यान ही नहीं होता। क्या-क्या हो चुका है, क्या-क्या हो रहा है, क्या-क्या किया जा सकता है, इसका वह विचार नहीं करता और उसे वास्तविकता का भान भी नहीं होता । ऐसी स्थिति में उसके निराशा भरे विचार वास्तविक नहीं हैं। उसकी सोच सकारात्मक होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
भारत के अतीत के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
भारत का अतीत बड़ा गौरवशाली था। यह धन-धान्य से सम्पन्न था और सोने की चिड़िया कहलाता था। प्राचीन ग्रन्थों को पढ़ने से पता लगता है कि यहाँ सुख-शान्ति व्याप्त थी और अकूत वैभव व ऐश्वर्य व्याप्त था। सोने-चाँदी, हीरे-मोती के अपार भण्डार थे। विदेशी आक्रमणकारी जिसे लूटकर ले गए। इतना ही नहीं जीवन के सभी क्षेत्र में भारत के मनीषियों ने अद्भुत आविष्कार किए। उन्होंने अन्तरिक्ष विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिकविज्ञान, चिकित्सा विज्ञान और निर्माण विज्ञान में अद्भुत आविष्कार किए। इससे स्पष्ट होता है कि भारत का अतीत बड़ा गौरवशाली था।

प्रश्न 4.
श्रीधर पराड़कर ने भारतीयों को क्या सन्देश दिया है?
उत्तर:
श्रीधर पराड़कर ने भारतीयों को नकारात्मक सोच बदलने का सन्देश दिया है। हम अपने आत्मगौरव और स्वाभिमान को न भूलें । हम अपने गौरवपूर्ण वास्तविक इतिहास को जानने का प्रयत्न करें। हमारे मनीषियों ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अद्भुत आविष्कार किए हैं, उन्हें जानने का प्रयास करें। आधुनिक भारतीय वैज्ञानिकों में सर जे.सी. बोस, सी.वी रमन, होमी जहाँगीर भाभा, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आदि की वैज्ञानिक उपलब्धियों को नहीं भूलना चाहिए। भारतीय वैज्ञानिकों ने न्यूनतम खर्च पर जो स्वदेशी उपग्रह मंगलग्रह पर भेजा उसे भी ध्यान में रखना चाहिए। अपनी सोच को बदलें और देश की उपलब्धियों पर ध्यान दें। यही सन्देश दिया है।

प्रश्न 5.
हिन्दुस्तान का आदमी कायर, मूढ़, निकम्मा है। यह धारणा गलत है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिन्दुस्तान का आदमी कायर, मूढ़, निकम्मा नहीं है। विदेशों में इसके विद्वानों की धाक जमी हुई है। अमेरिका हमारी बौद्धिक क्षमता से भयभीत है। यदि भारतीय मूढ़ होते तो विश्व में भारतीय वैज्ञानिकों की माँग क्यों होती। आज विश्व के प्रत्येक देश में महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ हिन्दुस्तानियों ने संभाल रखी हैं। विश्व के जाने-माने विद्यालयों में हिन्दुस्तानी अध्यापक अध्यापन का कार्य कर रहे हैं। विश्व की अधिकांश प्रयोगशालाओं में भारतीय वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं। कई देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रशासनिक अधि किारी और सांसद भारतीय या भारतीय मूल के व्यक्ति हैं। अत: कह सकते हैं कि भारतीय कायर, मूढ़ और अकर्मण्य नहीं हैं।

प्रश्न 6.
भारत के प्राचीन और आधुनिक वैज्ञानिकों की उपलब्धियों पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
जीवन के सभी क्षेत्रों में भारत के वैज्ञानिकों ने अद्भुत आविष्कार किए हैं। बात अन्तरिक्ष विज्ञान की हो, रसायन विज्ञान की हो, भौतिक विज्ञान की, चिकित्सा विज्ञान की हो अथवा निर्माण विज्ञान की हो, सभी क्षेत्रों में यहाँ के वैज्ञानिकों ने चमत्कारिक आविष्कार किए हैं। आधुनिक भारतीय वैज्ञानिकों में सर जे.सी.बोस, सी.वी. रमन, डॉ. होमी जहाँगीर भाभा, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की वैज्ञानिक उपलब्धियों को हम भुला नहीं सकते। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा न्यूनतम खर्च में अपना स्वदेशी उपग्रह मंगलग्रह पर भेजा जिससे सारा विश्व आश्चर्यचकित है। हमारे वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि को देखकर सभी भारत का लोहा मानते हैं।

प्रश्न 7.
विदेश में भारतीयों की जो स्थिति है, उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विदेश में भारतीय विद्वानों ने अपनी धाक जमा रखी है। अमेरिका हमारी बौद्धिक क्षमता से भयभीत है। विदेश में भारतीय विद्वानों की माँग बढ़ती जा रही है। सभी विकसित देशों में हिन्दुस्तानियों ने महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ संभाल रखी हैं। विश्व के जाने-माने विश्वविद्यालयों में हिन्दुस्तानी अध्यापक ही अध्यापन कार्य कर रहे हैं। विश्व की अधिकांश प्रयोगशालाओं में भारतीय वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं। कई देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी भारतीय या भारतीय मूल के हैं। कई देशों की संसद में भारतीयों ने जनप्रतिनिधि बनकर वहाँ के समाज जीवन में अपने महत्व को प्रतिपादित किया है। उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि विदेश में भारतीयों की स्थिति अच्छी है।

प्रश्न 8.
स्पष्ट कीजिए कि हिन्दुस्तानी मूढ़ नहीं हैं।
उत्तर:
हम अकर्मण्य, आलसी और मूढ नहीं हैं। यदि भारतीय मूढ़ होते तो विदेश में उनकी इतनी माँग नहीं होती। अमेरिका जैसा विकसित देश भारतीय बौद्धिक क्षमता से भयभीत है। यदि भारतीय मूढ़ होते तो विदेश में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का पद कैसे सँभालते। भारत के प्रमुख औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के बाहर बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ डेरा क्यों जमार्ती । विश्व की अनेक प्रयोगशालाओं में भारतीय वैज्ञानिक कार्य क्यों करते। यदि भारतीय मूढ़ होते तो विदेश में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सांसद और प्रशासनिक अधिकारी के पद पर कैसे कार्य करते। अत: स्पष्ट है कि भारतीय मूढ नहीं हैं, विद्वान हैं और हर विकसित देश यहाँ के विद्वानों को गौरव प्रदान कर रहा है।

प्रश्न 9.
भारत की दुर्गति का कारण यहाँ के लोग ही हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत की दुर्गति हुई है, इसके जिम्मेदार यहाँ के निवासी ही हैं। हमारी भूमि उपजाऊ है, संसाधन भी अपार हैं। हम मूढ़, आलसी और अकर्मण्य भी नहीं हैं फिर भी हमारी दुर्गति है। इसका कारण यह है कि हम विदेशों की नकल कर रहे हैं। पहले हम भारत को रूस बनाना चाहते थे अब इसे अमेरिका बनाना चाहते हैं। विदेशों के विकास के प्रारूप यहाँ के लिए उपयुक्त नहीं हो सकते। यहाँ की परिस्थिति भिन्न है, यहाँ के समाज की रचना भिन्न है, हमारी आवश्यकताएँ भिन्न हैं। इस कारण हमारी दुर्गति है। हमें अपने देश की परिस्थिति, भौगोलिक स्थिति, समाज की मानसिकता तथा आवश्यकता के अनुरूप विकास का प्रारूप तैयार करना होगा तभी हमारी दुर्गति दूर हो सकती है। हमें दूसरों की नकल करना छोड़ना होगा।

प्रश्न 10.
‘हमारी कठिनाई यह भी है।’ लेखक श्रीधर पाड़कर ने किस कठिनाई का उल्लेख किया है?
उत्तर:
हमारी महत्त्वपूर्ण कठिनाई यह है कि हमने सत्ता को सब कुछ समझ लिया है। हमारे लिए सत्ता सर्वोपरि हो गई है। योग्यता अब सत्ता की कसौटी नहीं रह गई है। अच्छे-बुरे का अन्तर हमने भुला दिया है। नैतिकता को तिलांजलि दे दी है। सत्ता प्राप्त करना ही हमारा मुख्य ध्येय हो गया है। इसके लिए हम स्वयं दोषी हैं। यदि हम सत्ता के पीछे भागना छोड़ दें और जनहित में कार्य करें, विद्वानों का सम्मान करें तो हमारी प्रगति हो सकती है क्योंकि हमारी जैसी भूमि, हमारे जैसे संसाधन और हमारी जैसी जलवायु किसी देश के पास नहीं

प्रश्न 11.
आपकी दृष्टि में क्या भारत आज भी महाशक्ति बनने की क्षमता रखता है। विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
इसमें कोई सन्देह नहीं किया जा सकता कि भारत आज भी महाशक्ति बन सकता है, केवल आत्मविश्वास जगाने की आवश्यकता है। हमारे पास विदेशों से अच्छी भूमि और संसाधन हैं, कमी है केवल उनके उचित दोहन की। हमारे पास बौद्धिक क्षमता की भी कमी नहीं है। हमारे औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों से निकलने वाले मेधावी छात्रों को लेने के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ डेरा डाले रहती हैं। हमारे वैज्ञानिकों ने अन्तरिक्ष विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान और निर्माण विज्ञान के अद्भुत आविष्कार किये हैं। आधुनिक भारतीय वैज्ञानिकों में सर जे. सी. बोस, सी. वी. रमन, डा. होमी जहाँगीर भाभा, ए.पी. जे अब्दुल कलाम आदि की वैज्ञानिक उपलब्धियों को हम कैसे भुला सकते हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने न्यूनतम खर्च पर अपना स्वदेशी उपग्रह मंगलग्रह पर भेजकर विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया। अत: हम कह सकते हैं कि भारत अब भी महाशक्ति बन सकता है। केवल आवश्यकता दृढ़ इच्छाशक्ति की है।

प्रश्न 12.
आक्रमणकारियों के भारत में आने के कारण पर विचार कीजिए।
उत्तर:
भारत प्राचीनकाल में सोने की चिड़िया कहलाता था। यहाँ की चकाचौंध ने विदेशियों को आकर्षित किया। विदेशी आक्रमणकारी यहाँ लूटने के उद्देश्य से आए थे। उन्होंने यहाँ से अपार सोना-चाँदी, हीरे-मोती लूटे और अपने साथ ले गए। मुहम्मद गजनवी सोमनाथ मन्दिर की बेहिसाब संपदा को लूटकर ले गया। अंग्रेज भारत की चमक से चकित होकर यहाँ आए और यहाँ की अपार संपदा को लूटकर अपने साथ इंग्लैण्ड ले गए। आक्रमणकारियों का मुख्य उद्देश्य शासन करना नहीं भारत को लूटना था। उन्होंने भारत को गुलाम बनाकर लूटा ही लूटा।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 22 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत भी महाशक्ति बन सकता है’ निबन्ध के मूल कथ्य को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘भारत भी महाशक्ति बन सकता है।’ निबन्ध में लेखक ने भारतीयों में राष्ट्र के प्रति निराशा और भ्रम की स्थिति को दूर कर भारतीय जनमानस में आशा और उत्साह के साथ राष्ट्रीयता का ज्वार पैदा करने का प्रयास किया है। देशवासियों का भारत के बारे में यह सोचना कि अब कुछ नहीं हो सकता सब गड़बड़ हो रहा है। इस देश का भगवान ही मलिक है, अनुचित है। सोने की चिड़िया भारत का अतीत बड़ा गौरवमयी है, जिसे भूलकर हमने अपने आत्मसम्मान और स्वाभिमान को भुला दिया है। आज भी विदेशों में भारतीयों की सर्वाधिक माँग है। भारतीय उद्योगपति विदेशों में अपना डंका बज रहे हैं। विदेशों में उच्च पद पर भारतीय अथवा भारतीय मूल के व्यक्ति आज भी विद्यमान हैं। हमने युद्ध भी जीते हैं और वैश्विक प्रतिबन्धों का हँसकर सामना भी किया है। भारत को पुन: महाशक्ति बनने के लिए विदेशों की ओर ताकना बन्द करके हमें भारतीयों में आत्मविश्वास और आत्मगौरव का भाव पैदा करके सोच में सुधार करना होगा और सही नेतृत्व चुनना होगा।

प्रश्न 2.
देश की परिस्थिति के बारे में सामान्य व्यक्ति के क्या विचार हैं?
उत्तर:
देश की परिस्थिति के बारे में सामान्य व्यक्ति के विचार निराशाजनक हैं। वह सोचते हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता सब गड़बड़ हो रहा है, इस देश का भगवान ही मालिक है। वह अपने चारों ओर फैले भ्रष्टाचार को देख रहा है। जो व्यवस्थापक हैं वे स्वयं ही अव्यवस्था फैला रहे हैं। जिन पर देश की नीति निर्धारण का दायित्व है उनमें नैतिकता का अभाव दिखाई दे रहा है। सभ्य कहलाने वाले उच्चवर्ग के लोग अपने स्वार्थ-साधन में लगे हुए हैं। देश के संसाधनों का उचित प्रयोग नहीं हो रहा है। मेधावी छात्र विदेशों की ओर भाग रहे हैं। उनका देश को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। इसलिए देश की दुर्गति हो रही है। ऐसे ही निराशा भरे विचार सामान्य व्यक्ति के हैं।

प्रश्न 3.
उन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए जिससे भारत महाशक्ति बन सकता है।
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। इसका अतीत बड़ा गौरवमयी रहा है। यह आज भी महाशक्ति बन सकता है। इसके पास ऐसी भूमि और संसाधन तथा जलवायु है जो विश्व में किसी देश के पास नहीं है, केवल उनके उचित दोहन की आवश्यकता है। हमारी वैज्ञानिक शक्ति अपार है। आधुनिक भारतीय वैज्ञानिकों में सर जे.सी. बोस, सी.वी.रमण, डॉ होमी जहाँगीर भाभा, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आदि की वैज्ञानिक उपलब्धियाँ में प्राप्त हुई हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने न्यूनतम खर्च पर अपना स्वदेशी उपग्रह मंगलग्रह पर भेजकर विश्व की चकित कर दिया है। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की छटवाँ स्थान है। इससे संस्थान के माध्यम से भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के अन्य देशों के उपग्रहों को भी अन्तरिक्ष में प्रतिस्थापित किया जा रहा है। खाद्यान्न उत्पादन में हम आत्मनिर्भर हो चुके हैं। सौर ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। ए.पी. जे. अब्दुल कलाम के सहयोग से त्रिशूल, पृथ्वी, अग्नि, आकाश मिसाइलें छोड़ी। इसरो के द्वारा तीन वैलेस्टिक मिसाइल तैयार किए जो किसी भी युद्ध पोत से थल और वायु में भी मार कर सकते हैं। समुद्री प्लेटफार्म बनाने का प्रयास किया जा रहा है। आधुनिक हथियारों के क्षेत्र में ओटोमेटिक लेजर गन खरीद रहा है। इन विशेषताओं के आधार पर कह सकते हैं कि भारत भी महाशक्ति बन सकता है।

प्रश्न 4.
क्या भारत दुर्गति की ओर अग्रसर है? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
भारत दुर्गति की ओर अग्रसर है, यह विचार भ्रामक है। हम अपना आत्मविश्वास खो बैठे हैं। हममें आत्मप्रत्यय का अभाव हो गया है। इस कारण हमारी सोच नकारात्मक हो गई है। हमारा अतीत गौरवशाली था। हम सोने की चिड़िया थे और अब भी सोने की चिड़िया बन सकते हैं। हमारे पास उर्वरा भूमि है और अपार संसाधन हैं। हमारे वैज्ञानिकों ने प्रत्येक क्षेत्र में नये-नये आविष्कार किए हैं। भारत धीरे-धीरे आर्थिक स्थिति में सम्पन्न होता जा रहा है। ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के सहयोग से त्रिशूल, पृथ्वी, अग्नि, आकाश जैसी मिसाइलें छोड़ीं। मंगल की जलवायु एवं मिट्टी की जानकारी के लिए एक उपग्रह अन्तरिक्ष में भेजा।

इसरो के द्वारा तीन वैलेस्टिक मिसाइल तैयार किए जो किसी भी युद्धपोत से थल और वायु से भी मार कर सकते हैं। चीन की तरह समुद्री प्लेटफार्म बनाने का प्रयास किया जा रहा है। आधुनिक हथियारों के क्षेत्र में ओटोमेटिक लेजर गन खरीद रहा है जो रात में भी निशाना लगा सकती है। भारत इस तकनीक को तैयार करने का प्रयास कर रहा है। सुखोई 30 फाइटर प्लेन की तकनीक को रूस के साथ मिलकर विकसित कर रहा है। इन प्रगतियों को देखकर हम कैसे मान लें कि भारत दुर्गति की ओर अग्रसर हो रहा है। भारत उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है। और इसमें सन्देह नहीं कि वह एक दिन विश्व की महाशक्ति बन जाएगा।

लेखक – परिचय :

श्रीधर पराड़कर का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 15 मार्च, 1954 को हुआ । इनके पिताजी का नाम गोविन्द भाई पराड़कर और माता का नाम श्रीमती इन्द्राबाई पराड़कर है। वाणिज्य में निष्णात की शिक्षा प्राप्त कर अपने एकाउंटेंट जनरल कार्यालय में ऑडिटर के रूप में शासकीय सेवा प्रारंभ की, किन्तु राष्ट्रप्रेम के वशीभूत होकर श्रीधर ने 1986 में शासकीय सेवानिवृत्ति लेकर अपना जीवन राष्ट्रोत्थान को समर्पित कर दिया।

साहित्यिक परिचय-साहित्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति और राष्ट्र की अलख जगा रहे श्रीधर ने इंग्लैण्ड, श्रीलंका आदि देशों की यात्रा की और साथ-साथ भारत में भी साहित्य संवर्धन यात्राएँ र्की ताकि लेखक अनुभूत साहित्य का सृजन कर सके।

श्रीधर ने 1857 के प्रतिसाद, अद्भुत संत स्वामी रामतीर्थ, अप्रतिम क्रान्ति दृष्टा भगतसिंह, राष्ट्रसंत तुकड़ी जी, राष्ट्रनिष्ठ खण्डोबल्लाल, सिद्ध योगी उत्तम स्वामी तथा अन्य महापुरुषों के जीवन चरित्र पर पुस्तकें लिखीं। श्रीधर ने दत्तोपंत ठेगड़े की पुस्तक सामाजिक क्रान्ति की यात्रा और डॉ. अम्बेडकर’ का मराठी से हिन्दी में अनुवाद किया।

पाठ – सार

सामान्य आदमी की धारणा है कि अब कुछ नहीं हो सकता, सब गड़बड़ हो रहा है, इस देश का भगवान ही मालिक है। उसकी चिन्ता का कारण है देश में फैला हुआ भ्रष्टाचार और व्यवस्थापक ही अव्यवस्था फैला रहे हैं। नीति-निर्धारक अनैतिक हो गये हैं। सभ्य समाज स्वार्थ साधन में लिप्त है। इसी कारण व्यक्ति निराश है।

सामान्य आदमी की सोच नकारात्मक है। भविष्य की बातों पर उसका ध्यान नहीं है। क्या-क्या हो चुका है, क्या-क्या हो रहा है, क्या-क्या किया जा सकता है, इस पर विचार नहीं करता और न उसे वास्तविकता का ज्ञान है। हमारा देश सोने की चिड़िया कहलाता था। हमारे प्राचीन ग्रन्थों में सुख-शान्ति और अकूत वैभव का वर्णन मिलता है। यहाँ के वैभव को देखकर विदेशी यहाँ आकर्षित हुए थे। पहले-पहल आक्रमणकारी लूटने के उद्देश्य से यहाँ आए। हर बार प्रत्येक आक्रमणकारी अपार सम्पति यहाँ से लूट ले गया। अंग्रेज यहाँ की सम्पदा को इंग्लैण्ड ले गए। यह विदेशियों के आकर्षण का केन्द्र था ”

विश्व के किसी देश के पास भारत की सी भूमि और संसाधन नहीं हैं। प्रत्येक देश को आवश्यकता के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। जिसके कारण उसे दबना पड़ता है और अवांछित समझौते करने पड़ते हैं। हमारी ऐसी कोई मजबूरी नहीं है। परमाणु परीक्षण के बाद विश्व ने हम पर प्रतिबन्ध लगाए। पर हमारे देश का कोई काम नहीं रुका। देशवासियों को कष्ट का सामना भी नहीं करना पड़ा। हमारे देश की सम्पन्नता लूट का परिणाम नहीं है। सब कुछ अपने ही देश में उत्पन्न किया था। वह भूमि और सम्पदा हमारे पास है, जिससे हम सम्पन्नता प्राप्त कर सकते हैं। केवल उनके उपयोग करने की आवश्यकता है। आवश्यक सन्तुलन बनाने पर हम पुरानी सम्पन्नता प्राप्त कर सकेंगे।

यह विज्ञान का युग है। कहते हैं विज्ञान पश्चिम की देन है, दीखता भी ऐसा ही है। पर यह गलत है। यह एक साजिश थी। जब हम गुलाम थे तब ये आविष्कार हुए थे। हमारी शिक्षा पद्धति को नष्ट किया और उन्होंने अपनी शिक्षा पद्धति को हम पर लादा । विज्ञान के नाम पर 19 वीं शताब्दी के आविष्कार पढ़ाए। विकृत इतिहास पढ़ाकर भारतीयों के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाई और आत्मविस्मृति की गहरी खाई में ढकेल दिया। यह पढ़ाया कि यहाँ कुछ नहीं था। स्वतंत्रता के बाद भी हम उसी राग को अलाप रहे हैं। हमने अपने गौरवपूर्ण इतिहास को जानने का प्रयत्न नहीं किया। पर भारत के मनीषियों ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अद्भुत आविष्कार किए। आधुनिक वैज्ञानिकों में सर जे सी बोस, सी.वी. रमन, डॉ. होमी जहाँगीर भाभा, ए.पी.जे अब्दुल कलाम को कैसे भूल सकते हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वदेशी उपग्रह मंगलग्रह पर भेजा। आज इस बात की आवश्यकता है कि हम अपने पुराने ज्ञान-विज्ञान को खंगालें। इससे सबको भला होगा।

कहा जाता है कि भारत का आदमी कायर, मूढ़ और निकम्मा है। यह एक भ्रम है। 1962 में चीन का सामना इसी देश के वीरों ने किया था। 1971 में पाकिस्तान को इसी देश के वीरों ने धूल चटाई थी। हिन्दुस्तानी मूढ़ भी नहीं है। आज विश्व में भारतीय विद्वानों की माँग है। विदेशों में महत्वपूर्ण पदों पर भारतीय विद्वान विराजमान हैं। विश्व की अधिकांश प्रयोगशालाओं में भारतीय वैज्ञानिक कार्य करे रहे हैं। कई देशों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, सांसद भारतीय मूल के ही व्यक्ति हैं। प्रश्न यह है कि इतना सबकुछ होते हुए भी हमारी दुर्गति क्यों है? इसका कारण संसाधनों की कमी नहीं है वरन् हमारे आत्मविश्वास की कमी है।

मूल समस्या गलत दिशा के चुनाव की है। स्वतंत्रता के बाद भारत को भारत बनाने का प्रयत्न नहीं किया, हमने अपनी प्राथमिकता तय नहीं की। विदेशों की परिस्थितियाँ अलग हैं। हमें अपने देश की परिस्थिति, भौगोलिक स्थिति और समाज की मानसिकता तथा आवश्यकता के अनुसार विकास का प्रारूप तैयार करना होगा। चीन का उदाहरण सामने है। हमारे राजनेता और प्रशासनिक अधिकारियों की आँखों पर अंग्रेज परस्ती का चश्मा चढ़ा है। हमने सत्ता को सर्वोपरि मान लिया है। हमने अच्छे-बुरे का अन्तर भुला दिया। नैतिकता खो दी, सत्ता प्रधान हो गई। इसके लिए हम स्वयं दोषी हैं। आज भी हम महाशक्ति बन सकते हैं केवल दृढ़ संकल्प और दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

कठिन शब्दार्थ :

(पृष्ठ 132-133) स्वाभाविक = स्वभाव से, प्राकृतिक, नैसर्गिक । चहुँओर = चारों ओर,सर्वत्र। सक्रियता = जो क्रियात्मक रूप में हो, जिसमें कुछ करके दिखलाया जाय । नीति = राज्य या राष्ट्र द्वारा जनता के लिए निर्धारित रीति या व्यवहार । निर्धारण = कोई बात निश्चित करना । उद्गार = विचार, भाव। वास्तविकता = यथार्थता । नकारात्मक = नहीं का बोध कराने वाला, निराशाजनक । प्राचीन = पुराने। अकूत =अपार । बेहिसाब = बिना हिसाब के असीम । संपदा = धन, दौलत, सम्पत्ति । वैभव = संपदा, धन, दौलत । योजनापूर्वक = योजना के अनुसार । भ्रम का निर्माण = भ्रम पैदा किया। साजिश = किसी के विरुद्ध कोई काम करने में सहयोग देना, चाल। पद्धति = रीति । तहस-नहस = नष्ट करना।

(पृष्ठ 134-135) विकृत = दूषित । विडम्बना = किसी की हँसी उड़ानी, दुर्भाग्य प्रमाण = सबूत। मनीषियों = बुद्धिमानों, ज्ञानियों । उपलब्धि = प्राप्ति । विस्मृत = भूलना। न्यूनतम = कम से कम, बहुत कम। संकुचित =जो दूसरों के विचार ग्रहण न करे, अनुदार । दुर्गति = बुरी दशा । संसाधन = पूरा करना, तैयारी, अंजाम देना। अकर्मण्य = निकम्मा, बेकाम । आत्मप्रत्यय = आत्मविश्वास । सर्वोपरि = सबसे ऊपर । तिलांजलि = त्याग कर। प्रारूप = ढाँचा, स्वरूप।

महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ।

1. यदि हम अपने इतिहास पर दृष्टि डालें तो पता चलता है हमारा देश वही हिन्दुस्तान है जो पहले ‘सोने की चिड़िया कहा जाता था। हमारे सारे प्रचीन ग्रन्थों में सुख-शान्ति, अकूत वैभव व ऐश्वर्य का वर्णन मिलता है। यह हमारा वैभव ही तो था जो विदेशी आक्रमणकारियों को हिन्दुस्तान की ओर आकर्षित करता था। पहले-पहल आए सारे आक्रमणकारियों का एकमात्र उद्देश्य हिन्दुस्तान को लूटना ही था। हर बार प्रत्येक आक्रमणकारी अपने साथ बेहिसाब सोना-चाँदी, हीरे-मोती लूटकर ले गया। यह सत्य है कि मुहम्मद गजनवी सोमनाथ मन्दिर को लूटकर उसकी बेहिसाब संपदा को ले गया। भारत की चमक से चकित होकर अंग्रेज भारत में आएं, यहाँ की अपार संपदा को इंग्लैण्ड ले गए। विश्वास ही नहीं होता। आज बात-बात में विदेशों की ओर देखने वाला भारत, कभी विदेशियों के आकर्षण का केन्द्र हुआ करता था। (पृष्ठ 133)

संन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के निबन्ध’ भारत भी महाशक्ति बन सकता है’ से उद्धृत है। इसके लेखक श्रीधर पराड़कर हैं। लेखक यह स्पष्ट कर रहा है कि अतीत में भारत बड़ा सम्पन्न था। इसकी चमक को देखकर विदेशी यहाँ आए और अपार संपदा लूट कर ले गए। इसी प्रसंग में वे आगे लिखते हैं|

व्याख्या – यदि हम अपने अतीत के इतिहास को खंगाल कर देखें तो पता लगेगा कि भारत कभी सोने की चिड़िया था। धन-धान्य से सम्पन्न था। हमारे प्राचीन ग्रन्थ इस बात के प्रमाण हैं कि यहाँ सुख-शान्ति व्याप्त थी। इसका मूल कारण हमारा अकूत वैभव और ऐश्वर्य ही था। हमारे वैभव को देखकर ही विदेशी आक्रमणकारी भारत की ओर आकर्षित हुए और उन्होंने आक्रमण किए। इन आक्रमणकारियों का उद्देश्य भारत को लूटना था । वे लूटकर यहाँ से सोना-चाँदी, हीरे-मोती ले गए। यह सम्पत्ति भारत ने स्वयं अर्जित की थी, जिसे लुटेरे आक्रमणकारी लूटकर ले गए। इतिहास इस बात का साक्षी है कि मुहम्मद गजनवी ने आक्रमण करके सोमनाथ मन्दिर को लूटा और बेहिसाब सम्पदा को लूटकर ले गया। भारत की संपदा, वैभव और ऐश्वर्य को देखकर अंग्रेजों का भी मन ललचाया। वे यहाँ आए और यहाँ की अपार सम्पदा को इंग्लैण्ड ले गए। इन लुटेरों ने भारत की सम्पत्ति को लूटकर इसे खोखला करने का प्रयास किया। जो भारत कभी विदेशियों के आकर्षण का केन्द्र था। आज वही भारत बात-बात में विदेशियों की ओर देख रहा है।

विशेष –

  1. भारत की सम्पन्नता का वर्णन है।
  2. आक्रमणकारियों द्वारा भारत की सम्पदा को लूटने का वर्णन है।
  3. भारत आज बात-बात विदेशों की ओर देख रहा है इस तथ्य से अवगत कराया है।
  4. सोमनाथ की बेहिसाब सम्पदा की लूट का वर्णन है।

2. क्या उसके सोचे की दिशा सही है? गम्भीरता से विचार करने पर ध्यान में आएगा कि सामान्य आदमी परिस्थितियों के केवल नकारात्मक पक्ष को लेकर अपने विचार प्रकट करता है। भविष्य की बात करते समय जिन बातों पर विचार किया जाना चाहिए उस ओर उसका ध्यान ही नहीं होता। क्या-क्या हो चुका है, क्या-क्या हो रहा है, क्या-क्या किया जा सकता है, इसका न तो वह विचार करता है और न ही उसे वास्तविकता का भान ही होता है। (पृष्ठ 133)

संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश’ भारत भी महाशक्ति बन सकता है,’ निबन्ध से लिया गया है, जिसके लेखक श्रीधर पराड़कर हैं। यह निबन्ध हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित है। लेखक स्पष्ट कर रहा है कि हम निराश हो गए हैं, हमारी सोच नकारात्मक हो गई है। भारत में क्या उन्नति हो गई है और हो रही है, इस ओर हमारा ध्यान ही नहीं है।

व्याख्या – भारतीय यह सोचने लगे हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता, सब गड़बड़ हो रहा है, इस देश का भगवान ही मालिक है। हमारी यह सोच वास्तविक नहीं है। सामान्य आदमी को सोच नकारात्मक है। वह अन्धकार पक्ष पर ही विचार करता है। भविष्य के सम्बन्ध में वह विचार नहीं करता। भविष्य की बात करते समय उसे किन बातों पर विचार करना चाहिए, इस ओर उसका ध्यान ही नहीं जाता। भारत में क्या-क्या हो चुका है, हम कितनी उन्नति कर चुके हैं और हम क्या कर रहे हैं। विकास की ओर हम अग्रसर हैं। हमें अपनी परिस्थिति के अनुसार भविष्य में क्या करना चाहिए, इस पर सामान्य आदमी विचार ही नहीं कर रहा है। अगर वह अपनी प्रगति को समझे और भविष्य के सम्बन्ध में सोचे तो उसकी नकारात्मक सोच सकारात्मक बन जाएगी। अगर वह भारत की परिस्थितियों पर विचार करे, उसकी प्रगति को समझे तो वास्तविकता सामने आ जायेगी। उसे पता लगेगा कि हम कितना आगे बढ़ गए हैं और आगे बढ़ने के लिए क्या प्रयत्न कर रहे हैं। अत: यह निश्चित है कि उसकी सोच वास्तविक नहीं है। उसे भारत की परिस्थितियों का भान ही नहीं है।

विशेष –

  1. भारतीयों के नकारात्मक पक्ष को दिखाया है।
  2. सकारात्मक सोच की आवश्यकता है।
  3. भविष्य की योजना पर विचार करना आवश्यक है।
  4. भारत की परिस्थितियों से परिचित होना आवश्यक है।

3. हमारी जिस सम्पन्नता का वर्णन इतिहास में मिलता है, वह कहीं से लूटकर तो नहीं लाए थे। सब कुछ अपने ही देश में उत्पन्न किया था। भूमि संसाधन वे आज भी हमारे पास हैं, जिनके बल पर हम फिर से उसी सम्पन्नता को अर्जित कर सकते हैं। केवल संसाधनों के उचित दोहन व अपनी आवश्यकता के अनुसार उपयोग करने की है। जैसे ही हम आवश्यक संतुलन बना लेंगे, हम अपना पुराना वैभव फिर से प्राप्त कर लेंगे। (पृष्ठ 133)

संदर्भ एवं प्रसंग – उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के निबन्ध’ भारत भी महाशक्ति बन सकता है’ से उद्धृत है। इसके लेखक श्रीधर पराड़कर हैं। हमारी सम्पन्नता लूट का परिणाम नहीं है। हम यदि अपने संसाधनों का उचित उपयोग करने लगे तो फिर से पुरानी सम्पन्नता प्राप्त कर सकते हैं। उनके उपयोग की आवश्यकता है।

व्याख्या – इतिहास को देखने से पता लगता है कि हम अतीत में सम्पन्न थे, सोने की चिड़िया कहलाते थे। सम्पन्नता लूट का परिणाम नहीं था, बल्कि हमने अपनी शक्ति के आधार पर वह सम्पन्नता प्राप्त की थी। वह उर्वरा भूमि और वे संसाधन आज भी हमारे पास हैं जिनके आधार पर हमने सम्पन्नता प्राप्त की थी, उन्हीं के आधार पर हम आज भी सम्पन्न बन सकते हैं। केवल उन संसाधनों के उचित दोहन की आवश्यकता है। उनका अपनी आवश्यकतानुसार उपयोग की आवश्यकता है। यदि हम अपनी आवश्यकता के अनुसार उनका उपयोग कर लें तो हम पुनः सम्पन्न हो सकते हैं। यदि आज हम उनका आवश्यकतानुसार संतुलन बना लें तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि हम पुनः अपना पुराना वैभव प्राप्त न कर लें, हम फिर से वैभव सम्पन्न हो जाएँगे और सोने की चिड़िया कहलाने लगेंगे।

विशेष –

  1. हमारी सम्पन्नता लूट का परिणाम नहीं है।
  2. इस तथ्य से परिचय कराया गया है।
  3. संसाधनों के उचित दोहन पर जोर दिया है।
  4. हमारी सम्पन्नता पुन: प्राप्त हो सकती है।

4. जिस नई शिक्षा पद्धति को हम पर लादा गया, उसके द्वारा हमें वही पढ़ाया गया जो अंग्रेज चाहते थे। उन्होंने विज्ञान के नाम पर मात्र 19वीं शताब्दी में हुए आविष्कार ही पढ़ाए। इतिहास के नाम पर विकृत इतिहास पढ़ाकर भारतीय समाज के आत्मसम्मान को नष्ट करने का प्रयत्न किया तथा उसे आत्मविस्मृति की गहरी खाई में ढकेल दिया। हमें पढ़ाया गया कि यहाँ पहले कुछ था ही नहीं उसे अन्धकार युग का नाम दिया और बाद में किए सारे कार्यों को अपना बताया। (पृष्ठ 133-34)

संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश पाठ्यपुस्तक के निबन्ध ‘ भारत भी महाशक्ति बन सकता है’ से लिया गया है। इसके लेखक श्रीधर पराड़कर हैं। अंग्रेजों ने अपनी शिक्षा पद्धति को हम पर लादकर हमें भ्रमित किया। हमारे इतिहास को विकृत रूप में प्रस्तुत किया। भारत के अतीत को अन्धकार युग की संज्ञा प्रदान की।

व्याख्या – अंग्रेजों ने अपनी कूटनीतिक चाल से भारतीय शिक्षा पद्धति को नष्ट कर दिया। उसे दोषयुक्त बताया और अपनी शिक्षा पद्धति हम पर थोप दी। हमें वही पढ़ाया और सिखाया गया जो अंग्रेज चाहते थे। हमारी मानसिकता को बदलने का भरसक प्रयत्न किया। उन्होंने विज्ञान के नाम पर 19 वीं शताब्दी में उनके द्वारा जो आविष्कार हुए उन्हें ही पढ़ाया। हमारे इतिहास को विकृत करके हमें पढ़ाया और हमारे आत्मसम्मान को नष्ट किया। हमें आत्मविस्मृति की गहरी खाई में ढकेल दिया। हम अपने गौरव को भूल गए। हमें पढ़ाया गया कि भारत में पहले कुछ नहीं था और उसे अन्धकार युग कहा। जो कुछ उन्नति हुई उसे अपना ही प्रयत्न बताया। यह अंग्रेजों की एक चाल थी, जिसके आधार पर उन्होंने भारतीयों को अन्धकार में रखा, जिससे हम अपने गौरव को और विकास को भूल जायें।

विशेष –

  1. अंग्रेजों ने भारतीय शिक्षा पद्धति को नष्ट किया।
  2. भारतीय इतिहास को विकृत रूप में प्रस्तुत किया।
  3. अपने आविष्कारों को ही महत्त्व दिया।

5. हिन्दुस्तानी मूढ़ भी नहीं हैं। यदि ऐसा होता तो विश्व में भारतीय विद्वानों की माँग क्यों होती? आज ऐसा कौनसा विकसित देश है जहाँ महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ हिन्दुस्तानी न संभाले हुए हों? विश्व के सभी जाने-माने विश्वविद्यालयों में अध्यापन का कार्य करने वालों में हिन्दुस्तानी अध्यापकों की संख्या कम नहीं है। विश्व की अधिकांश प्रयोगशालाओं में भारतीय वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं। कई देशों के राष्ट्रपति, मन्त्री, प्रशासनिक अधिकारी भारतीय अथवा भारतीय मूल के हैं। कई देशों की संसद में भारतीयों ने जनप्रतिनिधि बनकर वहाँ के समाज-जीवन में अपने महत्व को प्रतिपादित किया है। यह सब क्या मूढ़ कही जाने वाली जाति के लोग कर सकते हैं? यदि भारतीय मूढ़ हैं तो देश के प्रमुख औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं के बाहर बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ डेरा क्यों लगाती हैं? (पृष्ठ 134)

संन्दर्भ एवं प्रसंग – उपर्युक्त गद्यांश श्रीधर पराड़कर द्वारा रचित निबन्ध’ भारत भी महाशक्ति बन सकता है’ से लिया गया है। यह निबन्ध हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित है। भारतीय मूढ़ नहीं हैं। इन्होंने अपनी विद्वत्ता के आधार पर विदेशों में अपनी धाक जमा ली है। उच्च पदों को ग्रहण कर लिया है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ यहाँ के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के छात्रों को सहर्ष ले जाती हैं।

व्याख्या – विदेशियों ने यह धारणा बना ली है कि हिन्दुस्तानी मूढ़ हैं। यदि भारतीय मूढ़ होते तो विश्व में भारतीय विद्वानों की माँग नहीं होती। विश्व का ऐसा कौन सा देश है जहाँ भारतीयों ने महत्त्वपूर्ण पद ग्रहण नहीं कर रखा है। भारतीय विद्वानों ने अपनी विद्वत्ता के कारण विदेशों में उच्चपद ग्रहण कर रखा है। विश्व के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में हिन्दुस्तानी अध्यापन का कार्य कर रहे हैं। फिर कैसे हिन्दुस्तानियों को मूढ़ कहा जा सकता है। अध्यापन करने वाला व्यक्ति मूढ़ कैसे हो सकता है। इतना ही नहीं विश्व की अधिकांश प्रयोगशालाओं में भारतीय वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं और अपनी बुद्धि तथा विवेक का परिचय दे रहे हैं। विश्व के कई देश ऐसे हैं। जहाँ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री या प्रशासनिक अधिकारी भारतीय या भारतीय मूल के व्यक्ति हैं।

कई देशों में भारतीय संसद में जनप्रतिनिधि बनकर समाज सेवा का महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। यह सब कार्य मूढ़ व्यक्ति नहीं कर सकता। देश के प्रमुख औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के बाहर बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ डेरा डाले पड़ी रहती हैं। यदि भारतीय मूढ़ होते तो भारतीयों को बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने यहाँ सेवा का अवसर क्यों देर्ती। अत: धारणा भ्रामक है कि भारतीय मूढ़ और अकर्मण्य हैं।

विशेष –

  1. भारतीयों के प्रति मूढ़ता की धारणा भ्रामक है।
  2. विदेशों में भारतीय उच्च पदों पर कार्य कर रहे हैं।
  3. विदेशी विश्वविद्यालयों में भारतीय अध्यापक हैं।
  4. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में भारतीय छात्र सेवारत हैं।

6. हमारी एक कठिनाई यह भी है कि हमने सत्ता को सब कुछ समझ लिया है। हमारे लिए सत्ता सर्वोपरि हो चुकी है। योग्यता अब सत्ता की कसौटी नहीं रह गई। अच्छे या बुरे का अन्तर हमने भुला दिया। नैतिकताओं को लगभग तिलांजलि देकर सत्ता प्राप्ति ही मुख्य ध्येय हो गया। इसके लिए अन्य कोई नहीं हम स्वयं ही दोषी है। अतः कहना होगा कि एक समय भारत महाशक्ति था और अब भी महाशक्ति बनने की पूरी क्षमता, योग्यता व जरूरी संसाधनों से परिपूर्ण है। कमी केवल महाशक्ति बनने के लिए आवश्यक दृढ़ इच्छा शक्ति की है।

(पृष्ठ 135) संदर्भ एवं प्रसंग- उपर्युक्त गद्यांश भारत भी महाशक्ति बन सकता है’ निबन्ध से उद्धृत है। इस निबन्ध के निबन्धकार श्रीधर पराड़कर हैं। यह निबन्ध हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित है।

हम सत्ता लोलुप हो गए हैं। हमने नैतिकता खो दी है। हमारी दुर्गति के दोषी हम स्वयं ही हैं। हममें दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव है।

व्याख्या – हमारी सबसे बड़ी कमी यह है कि हम सत्ता के लोलुप हो गए हैं। सत्ता के पीछे भाग रहे हैं। हमने सत्ता को ही सब कुछ समझ लिया है। योग्यता के स्थान पर सत्ता ही महत्त्वपूर्ण हो गई है। योग्य व्यक्ति ही सत्ता को ग्रहण करें, ऐसा कुछ नहीं रह गया है। कौन अच्छा है कौन बुरा, इसका भेद हमने भुला दिया है। हमने नैतिकता खो दी है और सत्ता के पीछे दौड़ना आरम्भ कर दिया है। सत्ता प्राप्ति के लिए नैतिकता को भी भुला दिया है। साम, दाम, दण्ड, भेद किसी प्रकार से सत्ता प्राप्त होनी चाहिए। चाहे हम नैतिकता की दृष्टि से कितने भी गिर जायें। इसके लिए कोई और दोषी नहीं है हम स्वयं दोषी हैं। किसी दूसरे को दोष देना अनुचित है। अत: यह कहना कि एक समय भारत महाशक्ति था अब महाशक्ति नहीं बन सकता गलत है। भारत के पास महाशक्ति बनने की क्षमता है, योग्यता है और जरूरी संसाधन भी हैं। केवल महाशक्ति बनने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। यदि भारतीय दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास जगा लें तो आज भी भारत महाशक्ति बन सकता है।

विशेष –

  1. भारतीय सत्ता लोलुप हो गए हैं।
  2. भारतीय नैतिकता खो चुके हैं।
  3. भारत दृढ़ इच्छाशक्ति के आधार पर महाशक्ति बन सकता है।
  4. अपने पतन के हम स्वयं दोषी हैं।

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