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RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 1 किशोरावस्था में विकास I: शारीरिक, गत्यात्मक एवं यौन विकास

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 1 किशोरावस्था में विकास I: शारीरिक, गत्यात्मक एवं यौन विकास

Rajasthan Board RBSE Class 12 Home Science Chapter 1 किशोरावस्था में विकास I: शारीरिक, गत्यात्मक एवं यौन विकास

RBSE Class 12 Home Science Chapter 1 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के सही उत्तर चुनें –
(i) किशोरावस्था में वृद्धि व विकास की दर तीव्रतम होती है जिसे कहते हैं –
(अ) तीव्र वृद्धि
(ब) वृद्धि स्फुरण
(स) अत्यधिक वृद्धि
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) वृद्धि स्फुरण

(ii) कंधे, कूल्हों से चौड़े होते हैं –
(अ) बालक में
(ब) किशोर में
(स) किशोरी में
(द) युवती में
उत्तर:
(ब) किशोर में

(iii) थायरॉइड है –
(अ) त्वचा का भाग
(ब) पाचन तंत्र का भाग
(स) परिसंचरण तंत्र का भाग
(द) ग्रंथि।
उत्तर:
(द) ग्रंथि।

(iv) पुरुष जनन ग्रंथियाँ परिपक्व आकार प्राप्त करती हैं –
(अ) 10 – 12 वर्ष में
(ब) 14 – 15 वर्ष में
(स) 20 – 21 वर्ष में
(द) 30 – 31 वर्ष में
उत्तर:
(स) 20 – 21 वर्ष में

(v) स्त्री जननांगों के परिपक्व होने का पहला सच्चा सूचक लड़कियों में होता है:
(अ) गुप्तांगों में बालों का उगना
(ब) तेल ग्रंथियों का अत्यधिक सक्रिय होना
(स) प्रथम रज:स्त्राव होना
(द) त्वचा का कठोर व मोटा होना
उत्तर:
(स) प्रथम रज:स्त्राव होना

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
(i) गतियुक्त कामों को करने की योग्यता की वृद्धि लड़कियों में ……वर्ष की आयु में और लड़कों में ….वर्ष की
आयु में अधिकतम होती है।
(ii) किशोर बालकों में औसतन 14 -15 वर्ष की आयु में जब जननेन्द्रियाँ अपने कार्यों के लिए परिपक्व हो जाती हैं।
तब प्रायः ……. होने लगते हैं।
(iii) स्त्री जननेन्द्रियाँ अधिकांशतः शरीर के अन्दर होती हैं। अतः उनकी वृद्धि का पता …….की वृद्धि के अलावा
किसी बात से नहीं चलता।
(iv) मासिक चक्र रजोनिवृत्ति तक नियमितता के साथ…….दिन का होता है।
(v) ……के जमाव के कारण चुचुक और स्तनमंडल वक्ष की सतह से उठकर शंकु के आकार के हो जाते हैं।
(vi) अंडाशय का मख्य कार्य …….पैदा करना होता है जो कि संतानोत्पादन के लिए आवश्यक होता है।

उत्तर:
(i) चौदह, सत्रह
(ii) स्वप्न दोष
(iii) उदर
(iv) 28 – 30
(v) वसा
(vi) डिंब

प्रश्न 3.
बालक का शारीरिक विकास उसके व्यक्तित्व का आधार है। समझाइए।
उत्तर:
विकास की सम्पूर्ण प्रक्रिया में शारीरिक विकास को सर्वाधिक महत्वपूर्ण विकास माना जाता है। शारीरिक विकास अच्छा होने पर अन्य विकास भी अच्छे होते हैं क्योंकि “स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है”। वृद्धि व विकास की यह दर जीवन की भिन्न – भिन्न अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न होती है। शारीरिक विकास की दर में परिवर्तन होने पर व्यक्तित्व का विकास प्रभावित होता है।

बालक – बालिकाओं में वृद्धि स्फुरण का समय अलग – अलग होता है। बालकों में यह 10.5 से 14.5 के मध्य शुरू होकर 15.5 वें वर्ष में शिखर पर पहुँचता है जबकि बालिकाओं में वृद्धि स्फुरण 11.5 वर्ष के आस – पास प्रारम्भ होकर 12.5 वें वर्ष में अपने शिखर पर पहुँचता है। गतियुक्त कार्यों को करने की योग्यता में वृद्धि लड़कियों में 14 वर्ष की आयु में तथा लड़कों में 17 वर्ष की आयु में अधिकतम होती है। अत: बालक का समुचित शारीरिक विकास उसके व्यक्तित्व का आधार होता है।

प्रश्न 4.
किशोरों में शारीरिक विकास के निम्नलिखित प्रतिमानों पर टिप्पणी कीजिए
(1) लम्बाई
(2) भार
(3) शारीरिक अनुपात।।
उत्तर:
(1) लम्बाई – लड़के तथा लड़कियों की लम्बाई 9 से 10 वर्ष की उम्र के समय लगभग बराबर – सी रहती है। लड़कों की लम्बाई में तीव्र वृद्धि दर औसतन 12वें से 15वें वर्ष के मध्य होती है जो 16वें वर्ष में धीमी होकर 20 – 22 वर्ष पर आकर रुक जाती है। लड़कियों की लम्बाई 10 -14वें वर्ष के मध्य तीव्र गति से बढ़ती है जो धीमी गति से 16 -18 वर्ष तक रहती है। देर से परिपक्व होने वाले किशोर/किशोरियों की तुलना में शीघ्र परिपक्व होने वाले किशोर – किशोरियों की लम्बाई पूर्ण होने के बाद भी बढ़ती रहती है।

(2) भार – किशोरावस्था में भार में वृद्धि केवल वसा की वृद्धि से ही नहीं होती, बल्कि अस्थि और वसा के ऊतकों की वृद्धि से भी होती है। 17 वर्ष की अवस्था तक लड़कियों की अस्थियाँ आकार और विकास की दृष्टि से परिपक्व हो जाती हैं। लड़कों में अस्थि पंजर का विकास लगभग दो वर्ष बाद पूर्ण होता है। लड़कियों में भार की वृद्धि प्रथम रज:स्राव के ठीक पहले। और ठीक बाद में होती है। यह समय 11-15 वर्ष का होता है। इसी प्रकार लड़कों में अधिकतम भार वृद्धि 13वें से 16वें वर्ष में होती है। इसी कारण 10 -15 वर्ष के मध्य लड़कियों का अपनी आयु के लड़कों से भार प्रायः अधिक होता है।

(3) शारीरिक अनुपात – यद्यपि यौवनारंभ होने पर शरीर बढ़ता रहता है परन्तु शरीर के समस्त अंग समान रूप से नहीं बढ़ते हैं। फलस्वरूप बाल्यावस्था के लाक्षणिक अंगविषमानुपात बने रहते हैं। जैसे; नाक, पाँवों और हाथों में ये प्रमुख रूप से दिखाई देते हैं। लैंगिक परिपक्वता के बाद सिर की परिधि में केवल 5 प्रतिशत की वृद्धि ही शेष रह जाती है। चेहरे की आनुपातिक वृद्धियों के कारण प्रारम्भ में माथा ऊँचा और चौड़ा हो जाता है और नाक लम्बी एवं चौड़ी, किन्तु धीरे – धीरे परिपक्व होने पर लड़के का चेहरा कुछ ऊँचा – नीचा और नोकदार हो जाता है और लड़की का अण्डे की भाँति गोल।

लड़के में वृद्धिस्फुरण से पहले बाँहों की वृद्धि हो जाती है जिससे ये बहुत लम्बी लगती हैं। बड़े किशोर का लम्बा व पतला धड़, कूल्हों एवं कंधों पर चौड़ा होने लगता है और कमर की रेखा स्पष्ट हो जाती है। फलत: लड़कों के कंधे, कूल्हों से चौड़े और लड़कियों के कूल्हे कंधों से चौड़े हो जाते हैं।

प्रश्न 5.
“किशोरावस्था तूफान और तनाव की आयु है” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किशोरावस्था – तूफान और तनाव की आयु (Adolescence-Age of Storm and Stress) – किशोरावस्था को तूफान और तनाव की आयु कहे जाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

  1.  इस अवस्था में किशोर अपने सामाजिक, शारीरिक तथा मानसिक परिवर्तनों के साथ समायोजन नहीं कर पाते। परिणामस्वरूप इस अवस्था में आत्महत्या तथा मानसिक रोगों की संख्या अन्य अवस्थाओं की तुलना में सर्वाधिक होती है।
  2. उचित मार्गदर्शन के अभाव में किशोरावस्था में अपराध प्रवृत्ति अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जाती है।
  3. इस अवस्था में किशोरों के आवेगों और संवेगों में इतनी तीव्र परिवर्तनशीलता होती है कि वह प्रायः विरोधी व्यवहार करता है तथा ऐसे में उसे समझाना कठिन हो जाता है।
  4. किशोरावस्था में किशोर अपने मूल्यों, आदर्शों तथा संवेगों के मध्य पारस्परिक संघर्ष का अनुभव करता है, जिसके कारण वह अपने को दुविधापूर्ण स्थिति में अनुभव करता है।
  5. इस समय किशोर न तो बालक होता है और न ही पूर्ण वयस्क, जिसके कारण उसकी सामाजिक स्थिति अत्यन्त तानवपूर्ण हो जाती है।
  6. इस अवस्था में किशोर की पारिवारिक स्थिति अत्यन्त दुविधापूर्ण होती है, उसे स्वतंत्रता नहीं दी जाती तथा उससे बड़ों की आज्ञापालन की अपेक्षा रखी जाती है।
  7. किशोरों में शारीरिक परिवर्तन के कारण घृणा, चिड़चिड़ापन, क्रोध, उदासीनता आदि दुर्गुण उत्पन्न हो जाते हैं।
  8. इस आयु में किशोर प्रायः उद्दण्ड, कठोर तथा पशुओं के प्रति निष्ठुर हो जाते हैं।
  9. किशोर में आत्मप्रदर्शन की प्रवृत्ति, कल्पना, अव्यवस्था तथा दिवास्वप्नों में विचरण की प्रवृत्ति विकसित हो जाती है।
  10.  किशोरावस्था में अहम् की भावना अधिक बलवती हो जाती है जिसके कारण किशोरों का माता – पिता, शिक्षकों तथा दोस्तों
    के साथ अनेक बार संघर्ष हो जाता है। कभी – कभी वे उचित सलाह को भी अस्वीकार कर देते हैं।

प्रश्न 6.
किशोर एवं किशोरियों के सफल गत्यात्मक विकास में एक शिक्षक एवं माता-पिता का क्या योगदान रहता है? समझाइए।
उत्तर:
किशोरावस्था में विविध कौशलों को सीखने का और जब तक वे सीख न लिए जाएँ तब तक अभ्यास करते रहने का अभिप्रेरण बहुत तीव्र होता है। इसके अतिरिक्त किशोर को यह भी सुविधा रहती है कि उसे कौशल सिखाने वाला कोई न कोई होता है, चाहे वह शिक्षक हो, माता – पिता में से कोई हो या सामान्य किशोर हो जो उन कौशलों में दक्षता प्राप्त कर चुका हो, जिन्हें वह सीखना चाहता है सीखने में इस प्रकार पथ प्रदर्शन मिलता रहता है और साथ ही सीखने का जो प्रबल अभिप्रेरण होता है, उससे न केवल किशोर कौशलों को शीघ्रता से सीख जाता है बल्कि इतनी अच्छी तरह से सीख भी लेता है।

कि वह युवा के कौशल की बराबरी भी कर सकता है। अतः किशोरावस्था में शिक्षक व माता – पिता कुशल प्रशिक्षक व मार्गदर्शक सिद्ध होते हैं। कौशल प्रशिक्षण में किशोर – किशोरियों को इनके मार्गदर्शन से गत्यात्मक विकास में उचित मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है।

प्रश्न 7.
किशोर एवं किशोरियों में यौन विकास के दौरान आए परिवर्तनों के बारे में विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
किशोरावस्था में शारीरिक विकास के साथ – साथ यौन विकास भी प्रारम्भ हो जाता है। यौवनारंभ से ही यौन अंगों में बदलाव प्रारम्भ हो जाते हैं। किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तनों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –

1. मुख्य लैंगिक लक्षण (Primary Sex Characteristics) – बाल्यावस्था में जननेन्द्रियाँ छोटी तथा कार्य की दृष्टि से अपरिपक्व होती हैं। अतः इनमें सन्तानोत्पत्ति की क्षमता नहीं होती है। किशोरावस्था में जननेन्द्रियाँ आकार में बड़ी हो जाती हैं एवं कार्य की दृष्टि से परिपक्व हो जाती हैं। पुरुष जननेन्द्रियाँ वृषण कोष के अंदर रहती हैं, चौदह वर्ष की आयु में अपने परिपक्व आकार की केवल 10 प्रतिशत ही होती हैं जो कि 20 – 21 वें वर्ष में परिपक्व आकार प्राप्त कर लेती हैं।

इनकी ग्रन्थियों में शुक्राणु बनते हैं तथा सन्तानोत्पत्ति के लिए आवश्यक शारीरिक एवं मानसिक समायोजनों पर नियंत्रण हेतु हार्मोन भी उत्पन्न होते हैं। शिश्न की वृद्धि पहले लम्बाई में और बाद में मोटाई में हो जाती है। स्त्री जननेन्द्रियाँ अधिकांशतः शरीर के अन्दर होती हैं। अतः उनकी वृद्धि का पती उदर की वृद्धि के अतिरिक्त और किसी बात से नहीं चल पाता है।

बारह वर्ष की आयु में अंडाशय का भार परिपक्व भार का 40 प्रतिशत होता है जो कि 20 – 21 वर्ष तक परिपक्व आकार व भार प्राप्त कर लेता है। अंडाशय का मुख्य कार्य डिंब उत्पन्न करना है जो कि संतानोत्पत्ति के लिए आवश्यक है। इसके अलावा यह गर्भावस्था के नियामक हार्मोन प्रोजेस्टेरॉन, पुटन हार्मोन, कार्पस ल्यूटियम आद का भी निर्माण करता है। इनके कारण ही स्त्री जननेन्द्रियों की रचना एवं कार्यों का विकास होता है। उनके लाक्षणिक मासिक चक्र चलते हैं। वे गौण – लैंगिक लक्षण विकसित होते हैं।

स्त्री जननांगों के परिपक्व होने का पहला सच्चा सूचक लड़कियों का प्रथम रज:स्राव होता है। रजोनिवृत्ति 45 से 55 वर्ष के मध्य कभी भी हो सकती है। रज:स्राव के समय डिब विकास एवं अंडाशय के पुटक से डिंब का मोचन नहीं होता। फलतः लड़की गर्भवती नहीं हो सकती। प्रारम्भ में रज:स्राव के दौरान प्रायः सिर दर्द, पीठ दर्द, ऐंठन एवं उदरशूल होता है तथा साथ में चक्कर आना, मतली, त्वचा प्रदाह और यहाँ तक कि टाँगों और टखनों में शोथ भी हो जाता है।

2. गौण लैंगिक लक्षण (Secondary Sex Characteristics) – यौवनारम्भ में प्रगति के साथ-साथ लड़के व लड़कियाँ आकृति में असमान होते जाते हैं जिसका कारण मुख्य लैंगिक लक्षणों के विकास के साथ – साथ द्वितीयक / गौण लक्षणों का विकास होना है। लड़के व लड़कियों में गौण लैंगिक लक्षणों का क्रमिक विकास निम्नानुसार होता है

लड़कों में:

  1. वृषण ग्रंथियों व शिश्न के आकार में वृद्धि शुरू होने के लगभग 1 वर्ष बाद गुप्तांगों के ऊपर बाल उगना।
  2. बगल में व चेहरे पर बाल उगना एवं दाढ़ी-मूंछ आना।
  3. बाँहों, टाँगों, कंधों एवं छाती पर बाल उगना।
  4. सभी तरह के बालों का प्रारम्भ में हल्के रंग, थोड़े व मुलायम होना तत्पश्चात् घने, कड़े, काले रंग के एवं घुमावदार हो जाना।
  5. त्वचा का कठोर, मोटी एवं पीलापन लिए हुए खुरदरी हो जाना।
  6. तेल ग्रंथियों की अत्यधिक सक्रियता से कील – मुंहासे होना।
  7. बगल की गंधोत्सर्गी स्वेद ग्रंथियों को सक्रिय होना जिससे बगल में पसीना आता है एवं एक खास गंध निकलती है।
  8. स्वर का पहले फटना एवं फिर भारी होना।
  9. बारह से चौदह वर्ष में दुग्ध ग्रंथियों के आस – पास गाँठ होना, जो कुछ सप्ताह तक रहकर स्वत: खत्म हो जाती हैं। इसी प्रकार दुग्ध ग्रंथियों का अल्प काल के लिए बढ़ जाना तत्पश्चात् बाल्यावस्था की तरह चपटे हो जाना।

लड़कियों में:

  1.  श्रोणि अस्थि के बढ़ने व अधस्त्वक वसा (चर्बी) के विकास के कारण नितंबों की चौड़ाई एवं गोलाई में वृद्धि होना।
  2. चुचुक और स्तनमंडल के उठान के साथ – साथ वसा का जमाव होना, जिससे स्तनमंडल वक्ष की सतह से उठकर शंकु के आकार का हो जाता है।
  3. दुग्ध ग्रंथियों के विकास के कारण स्तनों का बड़ा व गोलाकार होना।
  4. नितंब वे स्तनों के विकास के बाद गुप्तांगों पर काले व घने बाल उगना।
  5. बगलों में बाल उगना एवं बगल की गंधोत्सर्गी स्वेद ग्रंथियों का सक्रिय होना।
  6. ऊपरी होंठ, गालों, चेहरे के किनारों तत्पश्चात् ठोड़ी के निचले किनारे पर रोएँ उगना।
  7. त्वचा की तेल ग्रंथियों का सक्रिय होना एवं कील – मुंहासे निकलना।
  8. बालोचित आवाज का पतली, भरी हुई एवं सुरीली हो जाना। इस प्रकार मुख्य व गौण लैंगिक लक्षणों के विकास के पूर्ण होने के साथ ही एक किशोर युवा तथा किशोरी युवती बन जाती है।

प्रश्न 8.
किशोरावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किशोरावस्था की विशेषताएँ –
1. किशोरावस्था शैशवावस्था के लक्षणों की पुनरावृत्ति है:
किशोरावस्था के अनेक लक्षण शैशवावस्था के लक्षणों से मिलते – जुलते हैं, इसलिए इसे बाल्यावस्था के लक्षणों की पुनरावृत्ति कहा गया है। किशोर बाल्यावस्था की तरह चंचल व अधिक संवेदनशील होते हैं।

2. किशोरावस्था सांवेगिक अस्थिरता की अवस्था है:
किशोरावस्था में बालक के व्यवहार में पायी जाने वाली अस्थिरता अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जाती है। इसलिए इसे “तूफान और तनाव की आयु भी कहा जाता है। इस अवस्था में संवेगों की अस्थिरता किशोरों के व्यवहार, सामाजिक सम्बन्धों आदि में अधिक पायी जाती है।

3. किशोरावस्था परिवर्तन की अवस्था है:
ई० हरलोक के अनुसार किशोरावस्था के परिवर्तनों का ज्ञान किशोर को धीरे – धीरे होता जाता है और इस ज्ञान की वृद्धि के साथ-साथ वह वयस्क व्यक्तियों की भाँति व्यवहार प्रारम्भ कर देता है क्योंकि वह वयस्क दिखाई देता है। किशोर में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं संवेगात्मक विकास तीव्र गति से होते हैं।

4. किशोरावस्था समस्या बाहुल्य की अवस्था है:
प्रत्येक आयु – वर्ग की समस्याएँ होती हैं किन्तु किशोरावस्था की समस्याएँ अन्य अवस्थाओं की अपेक्षा अधिक होती हैं और कठिन भी लगती हैं। किशोरों की समस्याएँ आकृति व स्वास्थ्य, घर के अन्दर व बाहर वालों के साथ सामाजिक सम्बन्ध, विषमलिंगीय सम्बंध, भविष्य की योजनाएँ, शिक्षा, व्यवसाय का चयन, जीवन-साथी का चुनाव, रुपया-पैसा आदि से सम्बन्धित होती हैं।

5. किशोरावस्था संक्रमण की अवस्था है:
इस अवस्था में किशोर न तो बालक होता है और न ही वह प्रौढ़ होता है। अतः इसे संक्रमण काल कहा जाता है। जब किशोर बाल्यावस्था का व्यवहार करता है और उसे किसी बात पर डाँटा जाता है। तब वह प्रौढ की भाँति व्यवहार करता है, तब उस पर बड़े बनने का आरोप लगाया जाता है। इस प्रकार वह असमंजस की स्थिति में पड़ जाता है।

6. किशोरावस्था कामुकता के जागरण की अवस्था है;
फ्रायड के अनुसार किशोर बालक की विषम लैंगिक कामुकता में। उनकी शैशवकालीन कामुकता की बड़ी स्पष्ट झलक मिलती है। किशोरावस्था में काम शक्ति का विकास पाया जाता है।

7. किशोरावस्था निश्चित विकास प्रतिमान की अवस्था है:
आयु में वृद्धि के साथ – साथ व्यवहार में भी निश्चित परिवर्तन पाया जाता है; जैसे-यौवनारंभ से अलिंगता समाप्त होकर लिंगता आ जाती है। यह अवस्था बाल्यावस्था की समाप्ति के कुछ बाद तक चलती है; जैसे – सभी किशोरों की यह अभिलाषा होती है कि उनके बड़े-बुजुर्ग उनका अनुमोदन करें।

8. किशोरावस्था विकसित सामाजिकता की अवस्था है:
इस अवस्था में बालक के समाज का क्षेत्र अत्यधिक विकसित हो जाता है। इस अवस्था में बालकों में प्रगाढ़ मित्रता का विकास होता है और उनके बीचं बिना जाति, धर्म, आर्थिक – सामाजिक भेदभाव, एक – दूसरे के प्रति घनिष्ठता बढ़ती जाती है।

9. किशोरावस्था एक दुःखदायी अवस्था है:
किशोरावस्था की कल्पनाएँ उमंगपूर्ण होती हैं। इन कल्पनाओं में वह अपनी उन समस्याओं के समाधान के लिए कल्पना करता है जो अपूर्ण रह जाती हैं। इस अवस्था में किशोर दूसरों के लिए व अपने लिए भी समस्या बनता है।

10. किशोरावस्था कल्पना बाहुल्य की अवस्था है:
किशोरावस्था के लिए कहा जाता है कि यह जीवन की सुनहरी अवस्था है, उमंगों से भरी अवस्था है। किशोर उमंगपूर्ण कल्पनाएँ एकान्त में करता है।

RBSE Class 12 Home Science Chapter 1 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनें:
(i) किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमें एक विकासशील व्यक्ति बाल्यावस्था से…….की ओर बढ़ता है।
(अ) अधिगम
(ब) किशोरावस्था
(स) परिपक्वता
(द) विकास
उत्तर:
(स) परिपक्वता

(ii) पूर्व किशोरावस्था 13-14 वर्ष से लेकर………की होती है।
(अ) 15-16 वर्ष
(ब) 16-17 वर्ष
(स) 17-18 वर्ष
(द) 18-19 वर्ष
उत्तर:
(ब) 16-17 वर्ष

(iii) किशोरावस्था का अपना एक निश्चित……..पाया जाता है।
(अ) स्तर
(ब) प्रक्रिया
(स) प्रतिमान
(द) दर
उत्तर:
(स) प्रतिमान

(iv) किशोरावस्था ……… बाहुल्य की अवस्था है।
(अ) सफलता
(ब) समस्या
(स) असफलता
(द) विकास
उत्तर:
(ब) समस्या

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) किशोरावस्था को …….. की आयु कहा जाता है।
(ii) किशोरावस्था …….. के लक्षणों की पुनरावृत्ति है।
(iii) किशोरावस्था……… के जागरण की अवस्था है।
(iv) किशोरावस्था की कल्पनाएँ………होती हैं।
(v) किशोरावस्था में ………का लचीलापन समाप्त होने लगता है।

उत्तर:
(i) तनाव
(ii) शैशवावस्था
(iii) कामुकता
(iv) उमंगपूर्ण
(v) हड्डियों।

प्रश्न 3.
किशोरावस्था क्या है? इसकी आयु बताइये।
उत्तर:
किशोरावस्था शब्द अंग्रेजी शब्द “Adolescence” का हिन्दी पर्याय है। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा से । मानी जाती है, जिसका सामान्य अर्थ है बढ़ना या विकसित होना। अत: बाल्यावस्था से प्रौढ़ावस्था तक के महत्वपूर्ण परिवर्तनों; जैसे-शारीरिक, मानसिक एवं अल्पबौद्धिक परिवर्तन की अवस्था किशोरावस्था है। वस्तुतः किशोरावस्था यौवनारम्भ से परिपक्वता तक वृद्धि एवं विकास का काल है। मनोवैज्ञानिक किशोरावस्था की समयावधि 13 से 18 वर्ष के बीच मानते हैं। जबकि कुछ की धारणा यह है कि यह अवस्था 24 वर्ष तक रहती है।

प्रश्न 4.
करमाइकेल ने किशोरावस्था को किस प्रकार समझाया है? समझाइए।
उत्तर:
एल० करमाइकेल (1968) के अनुसार, “किशोरावस्था जीवन का वह समय है, जहाँ से एक अपरिपक्व व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक विकास एक चरम सीमा की ओर अग्रसर होता है। दैहिक दृष्टि से एक व्यक्ति तब किशोर बनता है जब उसमें वय:संधि प्रारम्भ होती है और उसमें सन्तान उत्पन्न करने की योग्यता प्रारम्भ हो जाती है।

वास्तविक आयु की दृष्टि से बालिकाओं में वय:संधि अवस्था 12 से 15 वर्ष के बीच प्रारम्भ होती है। इस आयु अवधि में 2 वर्ष की आयु किसी ओर घट – बढ़ सकती है। बालकों के लिए वय:संधि का प्रारम्भ इसी आयु में प्रारम्भ होता है, प्राय: यह बालिकाओं की अपेक्षा 1 या 2 वर्ष देर से प्रारम्भ होता है।’

प्रश्न 5.
किशोरावस्था को कौन-कौन सी दो उप-अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है? समझाइए।
उत्तर:
किशोरावस्था की दो उप – अवस्थाएँ पूर्व – किशोरावस्था तथा उत्तर – किशोरावस्था है।

  • पूर्व – किशोरावस्था – यह अवस्था 13 -14 वर्ष से लेकर 16 या 17 वर्ष की होती है। लड़कियों में यह अवस्था 13 वर्ष की आयु से 16 वर्ष तक होती है तथा लड़कों में यह 1 वर्ष बाद प्रारम्भ होती है।
  • उत्तर – किशोरावस्था – यह लड़कियों की 16 या 17 से 20-21 वर्ष तक की अवस्था है और लड़कों की 18 वर्ष से 21 वर्ष तक की है। पूर्व और उत्तर – किशोरावस्था की विभाजक रेखा सत्रहवें वर्ष के आस – पास मानी जाती है।

प्रश्न 6.
“किशोरावस्था, शैशवावस्था के लक्षणों की पुनरावृत्ति है।” समझाइए।
उत्तर:
किशोरावस्था की मानसिक विशेषताओं का विश्लेषण करने पर यह पाया गया है कि इस अवस्था के अनेक लक्षण शैशवावस्था के लक्षणों से मिलते –  जुलते हैं। इसीलिए इसे बाल्यावस्था के लक्षणों की पुनरावृत्ति कहा गया है। किशोर बाल्यावस्था की तरह चंचल होते हैं। उनमें बालकों की तरह संवेगशीलता भी अधिक होती है। जैसे-किशोरावस्था के संवेग बहुत कुछ वही हैं जो बाल्यावस्था के प्रकार और अभिव्यक्ति के रूप में होते हैं।

प्रश्न 7.
किशोरावस्था को संक्रमण काल क्यों कहा जाता है? समझाइए।
उत्तर:
किशोरावस्था एक संक्रमण की अवस्था है, जिसमें बालक, न तो बालक ही रहता है और न ही प्रौढ़। डी०पी० आसुबेल के अनुसार “हमारी संस्कृति में किशोरावस्था को व्यक्ति की जैव-सामाजिक स्थिति का एक संक्रमण काल कहा जा सकता है। इस अवस्था में कर्तव्यों, जिम्मेदारियों, विशेषाधिकारों और अन्य लोगों के साथ सम्बन्धों में बहुत परिवर्तन आ जाते हैं। ऐसी स्थितियों में अपने माता – पिता, साथियों और दूसरों के प्रति अभिवृत्तियों का बदल जाना अनिवार्य हो जाता है।”

प्रश्न 8.
“किशोरावस्था विकसित सामाजिकता की अवस्था है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
किशोरावस्था में बालक के समाज को क्षेत्र अत्यधिक विकसित हो जाता है। इस अवस्था में बालकों में प्रगाढ़ मित्रता का विकास होता है और उनके बीच बिना जाति, धर्म, आर्थिक – सामाजिक भेदभाव, एक-दूसरे के प्रति घनिष्ठता बढ़ जाती है। इस अवस्था में किशोरों का समूह बहुत व्यापक होता है। यह विशेष बात है कि घनिष्ठ मित्रों की मण्डली कुछ छोटी होती है किन्तु समूह बड़ा होता जाता है। उसकी रुचि समलैंगिक वर्ग से हटकर विषम लैंगिक वर्ग की ओर अधिक अग्रसर होती जाती है। किशोर दूसरे के प्रति मित्रवत व्यवहार करते हैं। सामाजिक कार्यों के प्रति उत्साह बढ़ जाता है।

प्रश्न 9.
किशोरावस्था कल्पना बाहुल्य की अवस्था है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किशोरावस्था के लिए कहा जाता है कि यह जीवन की सुनहरी अवस्था है। यह उमंगों से भरी अवस्था है और उसकी कल्पनाएँ उमंगपूर्ण होती हैं। ऐसी उमंगपूर्ण कल्पनाएँ वह एकान्त में करता है। जब कभी वह दु:खी होता है अथवा अपनी समस्याओं का समायोजन नहीं कर पाता है या निराश होता है तो वह एक प्रकार से अपने उमंगपूर्ण कल्पना लोक में विचरण कर सुख प्राप्त करता है। इन कल्पनाओं में वह अपनी उन समस्याओं के समाधान के लिए कल्पना करता है जो अपूर्ण . रह जाती हैं।

प्रश्न 10.
किशोरावस्था को सांवेगिक अस्थिरता और परिवर्तन की अवस्था क्यों माना जाता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किशोरावस्था सांवेगिक अस्थिरता की अवस्था है – किशोरावस्था में बालक के व्यवहार में पाई जाने वाली अस्थिरता अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जाती है। इसीलिए इसे तूफान एवं तनाव’ की आयु भी कहा जाता है। इस अवस्था में शरीर और ग्रन्थियों के परिवर्तनों के कारण संवेगात्मक तनाव बहुत बढ़ जाता है। ऐसेल (1956) के अनुसार, इस आयु में वह अपने संवेगों पर नियंत्रण करने की प्रबल इच्छा निश्चित रूप से रखता है।

इस प्रकार जैसे – जैसे पूर्व – किशोरावस्था समाप्ति की ओर बढ़ती है वैसे – वैसे परम्परागते तूफान और तनाव के प्रमाण कम होते जाते हैं। इस प्रकार किशोरों के संवेग प्रायः तीव्र, अनियंत्रित, अभिव्यक्ति वाले और विवेकशून्य होते हैं परन्तु संवेगात्मक व्यवहार में प्राय: प्रतिवर्ष उत्तरोत्तर सुधार होता जाता है। इस अवस्था में संवेगों की अस्थिरता उनके व्यवहार, सामाजिक सम्बंधों आदि में अधिक देखी जा सकती है। इसी अस्थिरता के कारण वह अपने भविष्य के बारे में योजनाएँ नहीं बना पाते हैं। इसी प्रकार उनकी पसंदों में भी अस्थिरता पाई जाती है। इसका कारण किशोरों में हुई असुरक्षा की भावना है।

किशोरावस्था परिवर्तन की अवस्था है –
ई० हेरलॉक (1964) के अनुसार किशोरावस्था के परिवर्तनों का ज्ञान किशोरों को धीरे-धीरे होता जाता है और इस ज्ञान की वृद्धि के साथ-साथ वयस्कों की भाँति व्यवहार करना प्रारम्भ कर देता है क्योंकि वह वयस्क दिखाई देता है। एम० मरेश (1955) के अनुसार किशोरावस्था में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं संवेगात्मक अर्थात् सम्पूर्ण विकास तीव्र गति से होते हैं।

इसमें बाल्यावस्था का शरीर, जीवन के प्रति बालसुलभ दृष्टिकोण और बाल्यकाल का व्यवहार पीछे छूट जाते हैं और उनके स्थान पर परिपक्व शरीर व बलवती हुई अभिवृत्तियाँ ले लेते हैं। किशोरावस्था में बाल्यावस्था की रुचियाँ, आदतें धीरे-धीरे समाप्त होती जाती हैं। वे इस अवस्था में अपनी जिम्मेदारी समझने की कोशिश करते हैं। किशोरावस्था में ये परिवर्तन बहुत तीव्र गति से होते हैं इसलिए इनमें समायोजन करना मुश्किल हो जाता है किन्तु धीरे-धीरे समायोजन में सफलता मिलती जाती है।

प्रश्न 11.
किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तन तथा उसके वैज्ञानिक महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तन व उनका मनोवैज्ञानिक महत्व – किशोरावस्था में किशोर एवं किशोरियों में विभिन्न प्रकार के शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक परिवर्तन होते हैं। पूर्व-किशोरावस्था में शारीरिक वृद्धि धीमी पड़ जाती है, परंन्तु उसे आसानी से पहचाना या देखा नहीं जा सकता है। लम्बाई एवं भार की वृद्धि या गौण लक्षणों के विकास को देखा जा सकता है।

जे०पी० मैकी एवं डी०एच० इकोरन:
के अनुसार, आन्तरिक वृद्धि पूर्व – किशोरावस्था में बहुत होती है और लम्बाई एवं भार में वृद्धि के साथ उसका निकट सह-सम्बन्ध होता है। किशोरावस्था में तीव्र गति से होने वाले शारीरिक और यौन परिपक्वता का बालक के मानसिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। पूर्व – किशोरावस्था के अन्त तक बालकों की ज्ञानेन्द्रियाँ लगभग परिपक्व हो जाती हैं तथा इनकी गौण यौन – विशेषताएँ भी लगभग परिपक्व हो जाती हैं जिसमें सन्तानोत्पादन सम्भव होता है। पूर्व – किशोरावस्था के अन्त तक लड़के व लड़कियाँ आकार और सामान्य आकृति में पुरुषों व स्त्रियों के समान लगते हैं।

पूर्व-किशोरावस्था में जनन ग्रन्थियों की सक्रियता में वृद्धि के फलस्वरूप सम्पूर्ण अन्त:स्रावी तंत्र में एक अस्थायी असंतुलन आ जाती है। इस समय लिंग ग्रन्थियाँ तेजी से विकसित होती हैं और सक्रिय हो जाती हैं, किन्तु ये परिपक्व आकार उत्तर – किशोरावस्था तक ही प्राप्त करती हैं। बालकों में होने वाले गौण परिवर्तनों में मूंछ, दाढ़ी, हाथ, पैर, बगल तथा शरीर के गुप्त अंगों में बालों का उगना, कंधों का चौड़ा होना, वाणी परिवर्तन तथा मुख-मण्डल के परिवर्तन आदि हैं। इसी प्रकार लड़कियों में वाणी परिवर्तन, शरीर का चौड़ाई तथा गोलाई लेना, वक्षस्थल को विकास, मुखमण्डल में परिवर्तन, यौन सम्बन्धी परिवर्तन गौण परिवर्तन कहलाते हैं।

आन्तरिक परिवर्तनों में पाचन तंत्र के अंगों के आकार में परिवर्तन हो जाता है। आमाशय और आंतों की पेशियाँ अधिक शक्तिशाली और मोटी हो जाती हैं। यकृत का. भार बढ़ जाता है। बालकों में रक्त – संचार तंत्र में हृदय के आकार और रुधिर वाहनियों की दीवार की लम्बाई और मोटाई में वृद्धि हो जाती है। फेफड़ों के भार और आयतन में सबसे अधिक वृद्धि यौवनारंभ में होती है। किशोरों की हड्डियों का विकास 18 वर्ष तक की अवस्था तक पूर्ण हो जाता है। इस आयु के बाद पेशियों का विकास होता रहता है। किशोरावस्था में उत्पन्न होने वाले उपरोक्त शारीरिक, आन्तरिक लक्षणों का किशोर बालक, बालिकाओं में मानसिक जीवन तथा व्यवहार पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।

किशोरावस्था में बालकों का शारीरिक विकास अथवा प्रौढ़ता प्राप्त न होने पर बालक का सामाजिक, मानसिक विकास भी प्रभावित होता है। जन्म लेने के कुछ माह बाद तक बालक को किसी भी वस्तु का ज्ञान नहीं होता। उसे समझ सकने की शक्ति नहीं होती। धीरे-धीरे परिपक्वता, प्रशिक्षण और सीखने की प्रक्रिया द्वारा बालक में समझने की शक्ति आने लगती है। जन्म लेने के समय उसमें चेतना का विकास अवश्य होने लगता है किन्तु वह इतनी अविकसित होती है कि वह वातावरण को ठीक तरह समझ नहीं पाता। किसी भी अवधारणा को समझने का ज्ञान उसमें नहीं होता। आयु वृद्धि के साथ उसका भावी विकास होता है।

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