RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था
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Rajasthan Board RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था
RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनें –
(i) एक निषेचित अण्ड कोशिका से शिशु बनने तक का नौ माह सात दिन का अन्तराल कहलाता है –
(अ) बाल्यावस्था
(ब) गर्भावस्था
(स) शैशवावस्था
(द) युवावस्था
उत्तर:
(ब) गर्भावस्था
(ii) गर्भावस्था को कितने चरणों में बाँटा गया है?
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) एक
उत्तर:
(ब) तीन
(iii) कम क्रियाशील गर्भवती महिला को प्रोटीन की आवश्यकता होती है –
(अ) 78.2
(ब) 75.2
(स) 82.2
(द) 55.0
उत्तर:
(स) 82.2
(iv) गर्भावस्था में अतिरिक्त लौह लवण एवं फोलिक अम्ल की आवश्यकता होती है –
(अ) अतिरिक्त ऊर्जा के लिए
(ब) हीमोग्लोबिन का स्तर बनाए रखने के लिए
(स) माता के वजन के लिए
(द) इन सभी के लिए।
उत्तर:
(ब) हीमोग्लोबिन का स्तर बनाए रखने के लिए
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. गर्भावस्था सामान्यतः…………सप्ताह की एक अस्थायी अवस्था है।
2. गर्भावस्था में वजन एवं शरीर के क्षेत्रफल की तीव्र गति से वृद्धि के कारण उपापचय दर…………तक बढ़ जाती है।
3. गर्भकाल में हॉर्मोनल परिवर्तनों के कारण…………समस्याओं से गुजरना पड़ता है।
4. महिला की गर्भावस्था के समय कैल्सियम की आवश्यकता…………मि. ग्रा. होती हैं।
5. …………समूह के विटामिनों की आवश्यकताएँ ऊर्जा की आवश्यकताओं के अनुरूप बढ़ती हैं।
उत्तर:
1. 40
2. 10 ₹ 25 प्रतिशत
3. अनेक
4. 12
5. बी – 121
प्रश्न 3.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें
1. रक्ताल्पता
2. पाचन संबंधी समस्याएँ
3. प्रातःकालीन वमन
4. गर्भवती महिला के लिए दैनिक संतुलित आहार
उत्तर:
1. रक्ताल्पता (Anaemia):
गर्भावस्था में शिशु के विकास के साथ-साथ महिला के शरीर में भी परिवर्तन आते हैं जिसके लिए उसे अधिक मात्रा में पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है। इस अवस्था में न सिर्फ गर्भिणी के भार में वृद्धि होती है, अपितु रक्त की मात्रा में भी 1 – 2 लीटर तक की वृद्धि होती है किन्तु रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा में इस अनुपात में वृद्धि नहीं हो पाती है।
परिणामस्वरूप गर्भवती स्त्री के हीमोग्लोबिन का स्तर; सामान्य (12 -14 ग्राम / 100 मिली.) से कम हो जाता है। इस स्थिति में यदि हीमोग्लोबिन का स्तर 11 ग्राम / 100 मिली. रक्त से कम हो जाता है तो इसे रक्ताल्पता कहते हैं। यदि यह स्तर 7 – 8 ग्राम / 100 मिली. रक्त तक गिर जाने पर महिला के पोषण स्तर एवं शिशु के विकास दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
2. पाचन संबंधी समस्याएँ (Problems of Digestion):
गर्भावस्था में अनुचित भोजन का सेवन करने, दूषित पदार्थों के शरीर से बाहर न निकल पाने की स्थिति में पाचन संबंधी परेशानियाँ हो जाती हैं। ऐसे में पेट में गैस उत्पन्न होने लगती है तथा कब्ज की शिकायत हो जाती है। इसकी वजह से सिरदर्द, छाती में जलन तथा बवासीर जैसा कष्ट भी हो सकता पाचन संबंधी समस्याओं से बचने के लिए रेशेयुक्त भोज्य पदार्थों का उचित मात्रा में सेवन करना चाहिए तथा शौच-निवृत्ति में नियमितता रखनी चाहिए। प्रात:काल नियमित रूप से टहलने, फलों का सेवन करने से भी पाचन संबंधी समस्याएँ नहीं होती हैं। रात्रि में दूध में मुनक्का अथवा अंजीर उबालकर पीने से भी पाचन संबंधी समस्या नहीं होती।
3. प्रातःकालीन वमन:
गर्भावस्था के प्रथम 2-3 माह में गर्भवती महिला को प्रात: उठते ही चक्कर आना, जी मिचलाना, उबकाई तथा वमन आने की समस्या रहती है। यह समस्या शरीर में हॉर्मोन परिवर्तन तथा गर्भाशय में भ्रूण की उपस्थिति से महिला का सामंजस्य न होने से उत्पन्न मनोवैज्ञानिक कारणों से होता है। यद्यपि तीन माह के बाद यह समस्या स्वत: ही ठीक हो जाती है।
यदि ऐसा न हो एवं वमन पूरे दिर भर या लम्बे समय तक होती रहे तो निर्जलीकरण या विषाक्तता की स्थिति उत्पन्न होने की आंशका रहती है। महिला उचित ढंग से आहार नहीं ले पाती है एवं उसके पोषण स्तर पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। ऐसी स्थिति में चिकित्सक से परामर्श लेना अनिवार्य है। महिला को प्रात: उठते ही थोड़ा-सा ठोस आहार; जैसे-बिस्कुट, भुने चने आदि खाने चाहिए इसके बाद ही तरल पदार्थ लेने चाहिए।
4. गर्भवती महिला के लिये दैनिक संतुलित आहार:
गर्भवती महिला के लिये दैनिक संतुलित आहार अग्रतालिका के अनुसार देना चाहिए
नोट-माँसाहारी महिला 30 ग्राम दाल के बदले 50 ग्राम अण्डा/माँस, मछली इत्यादि का उपयोग कर सकती है।
प्रश्न 4.
गर्भावस्था महिलाओं के जीवन में आने वाली एक अस्थाई एवं विशिष्ट अवस्था है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गर्भावस्था : एक अस्थायी अवस्था(Pregnancy : A Temporal Phase):
गर्भावस्था महिला के जीवन का एक अस्थायी काल है। गर्भ धारण करने की सामान्य आयु 15 वर्ष से 45 वर्ष होती है। जब माता के गर्भाशय में एक निषेचित अण्डाणु कोशिका वृद्धि तथा विकास द्वारा एक स्वस्थ, सुंदर एवं सजीव शिशु का रूप लेती है, वह अवस्था गर्भावस्था कहलाती है जिसकी सामान्य अवधि 9 माह या 40 सप्ताह की होती है।
गर्भावस्था : एक विशिष्ट अवस्था (Pregnancy : A Special Phase)
गर्भावस्था अस्थायी होने के साथ – साथ विशिष्ट भी होती है। इस अवस्था में एक निषेचित अण्डाणु कोशिका 9 माह के सफर में पहले एक भ्रूण तथा इसके पश्चात् गर्भस्थ शिशु का रूप धारण करती है। जिसका वजन जन्म के समय लगभग 3 किलो होता है। गर्भावस्था के दौरान माता तथा शिशु दोनों में वृद्धि तथा विकास विशिष्ट परिवर्तनों की अवस्थाओं से गुजरता है। इसलिए गर्भावस्था को एक अस्थाई तथा विशिष्ट अवस्था माना जाता है।
प्रश्न 5.
गर्भवती महिला हेतु आहार आयोजन करते समय महत्त्वपूर्ण बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
गर्भवती महिला के लिए आहार व्यवस्था करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
- एक ही बार में अधिक मात्रा में भोजन न देकर 5-6 बार में थोड़ा-थोड़ा करके भोजन दें।
- प्रात:काल कुछ ठोस पदार्थ; जैसे – बिस्कुट, टोस्ट, चने आदि देने के उपरान्त ही तरल पदार्थ; जैसे-चाय, कॉफी, दूध, छाछ इत्यादि दें।
- गर्भवती को अधिक तला-भुना व गरिष्ठ भोजन नहीं देना चाहिए।
- गर्भवती के लिए आहार – आयोजन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह गर्भावस्था के किस चरण में है? क्योंकि गर्भावस्था के विभिन्न चरणों में पौषणिक आवश्यकताएँ भी भिन्न होती हैं।
- कब्ज की समस्या से बचने हेतु मैदे की रोटी तथा इससे बने अन्य पदार्थों के सेवन से बचें।
- तरल पदार्थ; जैसे – जल, दूध, छाछ, फलों का रस, नींबू की शिकंजी आदि का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें।
- छिलके तथा चोकरयुक्त भोज्य पदार्थों का सेवन अधिक करें।
- रेशेयुक्त फल, साबुत दालों, छिलके वाली दालों, फलों आदि को अपने भोजन में वरीयता देनी चाहिए।
- बादीकारक भोज्य पदार्थ कम मात्रा में लेने चाहिए।
- रात को सोते समय गुनगुने दूध के साथ ईसबगोल की भूसी लेने से कब्ज में फायदा होता है।
- चिकित्सक जिस भी दवा के लिए लिखें उसका सेवन नियमित रूप से करना चाहिए।
- रात्रि में सोने से कम – से – कम 2 – 3 घण्टे पूर्व हल्का तथा सुपाच्य भोजन लें।
- गर्म पेय पदार्थ जैसे चाय या कॉफी का सेवन कम करें।
- मादक पदार्थों अथवा तम्बाकू का सेवन बिल्कुल भी न करें। 15. भोजन में सलाद तथा मौसमी फलों का उपयोग अवश्य करें।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
गर्भावस्था कितने सप्ताह की होती है?
(अ) 36 सप्ताह की
(ब) 40 सप्ताह की
(स) 45 सप्ताह की
(द) 42 सप्ताह की
उत्तर:
(ब) 40 सप्ताह की
प्रश्न 2.
गर्भधान से दो सप्ताह तक की अवस्था कहलाती है –
(अ) डिम्बावस्था
(ब) भ्रूणावस्था
(स) गर्भस्थशिशु अवस्था
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) डिम्बावस्था
प्रश्न 3.
गर्भवती महिला के शरीर भार में कितनी वद्धि होती है?
(अ) 8 – 10 किग्रा
(ब) 6 – 8 किग्रा
(स) 10 – 12.5 किग्रा
(द) 12 – 16 किग्रा
उत्तर:
(स) 10 – 12.5 किग्रा
प्रश्न 4.
गर्भकाल में वजन एवं शरीर दोनों के वृद्धि होने से उपापचय दर बढती है –
(अ) 20 प्रतिशत
(ब) 10 – 25 प्रतिशत
(स) 10 प्रतिशत
(द) 5 – 10 प्रतिशत
उत्तर:
(ब) 10-25 प्रतिशत
प्रश्न 5:
गर्भकाल में रक्त की कुल मात्रा में वृद्धि होती है –
(अ) 2 लीटर
(ब) 1 लीटर
(स) 1 से 2 लीटर
(द) 3 लीटर
उत्तर:
(स) 1 से 2 लीटर
प्रश्न 6.
गर्भकाल में कैल्सियम की कितनी मात्रा प्रतिदिन दी जानी चाहिए?
(अ) 1.2 ग्राम
(ब) 2 ग्राम
(स) 3 ग्राम
(द) 2.5 ग्राम
उत्तर:
(अ) 1.2 ग्राम
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(अ) एक कोशिका से पूर्ण परिपक्व शिशु विकसित होने का अन्तराल…………कहलाता है।
(ब) गर्भावस्था में वजन और…………दोनों के क्षेत्रफल में तीव्र गति से वृद्धि होती है।
(स) गर्भावस्था में त्वचा…………रंग की हो जाती है व पेशियाँ ढीली व…………हो जाती है।
(द) प्रोजेस्ट्रान हॉर्मोन के अधिक स्रवण से…………मुलायम होकर ढीली पड़ जाती है।
(य) प्रोटीन की पूर्ति के लिये गर्भिणी को अपने…………में………… वाले खाद्य पदार्थ लेने चाहिए।
(र) ग्रीष्म ऋतु में गर्भिणी को जल की मात्रा…………देनी चाहिए।
उत्तर:
(अ) गर्भावस्था
(ब) शरीर
(स) नीले, लचीली
(द) पेशियाँ
(य) उच्च गुणवत्ता
(र) बढ़ा।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 अति लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
गर्भावस्था की अवधि कितनी होती है ?
उत्तर:
गर्भावस्था की अवधि 9 माह या 40 सप्ताह होती है।
प्रश्न 2.
गर्भावस्था क्या है?
उत्तर:
गर्भाशय में शुक्राणु द्वारा निषेचित अण्डाणु से शिशु के बनने तक 9 माह की अवधि गर्भावस्था कहलाती है।
प्रश्न 3.
गर्भावस्था किस प्रकार की अवस्था होती
उत्तर:
गर्भावस्था महिलाओं के जीवन में आने वाली एक अस्थाई और विशिष्ट शारीरिक अवस्था है।
प्रश्न 4.
महिलाओं के रक्त में हीमोग्लोबिन की सामान्य मात्रा कितनी होती है?
उत्तर:
महिलाओं के रक्त में हीमोग्लोबिन की सामान्य मात्रा 12-14 ग्राम/100 मिली रक्त होती है।
प्रश्न 5.
गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप की सम्भावना क्यों हो जाती है?
उत्तर:
गर्भ में पल रहे शिशु के कारण हृदय पर रक्त के परिवहन का अतिरिक्त कार्य-भार पड़ने से उच्च रक्तचाप की सम्भावना हो जाती है।
प्रश्न 6.
गर्भावस्था में प्रायः किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
गर्भावस्था में प्रायः रक्ताल्पता, उच्च रक्तचाप, सजन, अपच तथा प्रात:कालीन वमन आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
प्रश्न 7.
गर्भावस्था में अतिरिक्त पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
गर्भस्थ शिशु की वृद्धि एवं विकास गर्भवती स्त्री के शारीरिक स्वास्थ्य पर निर्भर होता है। अतः गर्भिणी को अतिरिक्त पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 8.
महिलाओं में हीमोग्लोबिन के किस स्तर से नीचे हो जाने पर रक्ताल्पता मानी जाती है?
उत्तर:
हीमोग्लोबिन स्तर 11 ग्राम/100 मिली. रक्त से कम हो जाने पर महिला को रक्ताल्पता की अवस्था में माना जाता है।
प्रश्न 9.
गर्भावस्था में माँसपेशियों में ऐंठन किस तत्व की कमी के कारण होती है?
उत्तर:
कैल्सियम तत्व की कमी के कारण।
प्रश्न 10.
गर्भावस्था में अतिरिक्त कैल्सियम की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
गर्भ में बढ़ते शिशु की अस्थियों एवं दाँतों के निर्माण के लिए अतिरिक्त कैल्सियम की आवश्यकता होती
प्रश्न 11.
गर्भावस्था में नमक का सेवन कम क्यों करना चाहिए?
उत्तर:
नमक के अत्यधिक सेवन से सूजन की सम्भावना बढ़ जाती है।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला किस प्रकार की चीजें खाना अधिक पसन्द करती हैं?
उत्तर:
गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला खाने की कुछ चीजों से अधिक लगाव तथा कुछ चीजों से विशेष घृणा करने लगती हैं। उन्हें अखाद्य चीजें; जैसे-चॉक, चूना, स्लेट की बत्ती, मिट्टी, कुल्लड़, चिप्स, पेन्ट की पपड़ी, बर्फ खाना अधिक पसन्द होता है।
प्रश्न 2.
गर्भावस्था के प्रथम 2 – 3 माह में महिला को प्रायः चक्कर आना, जी मिचलाना, वमन करना आदि का क्या कारण है?
उत्तर:
गर्भावस्था के प्रथम 2 – 3 माह में महिला को सुबह-सुबह उठते ही चक्कर आना, बीमार-सा महसूस करना, जी मिचलाना, उबकाई आना व उल्टी आने की समस्याएँ रहती हैं। ऐसा शरीर में हॉर्मोन परिवर्तन तथा गर्भाशय में भ्रूण की उपस्थिति से महिला का सामंजस्य नहीं हो पाने से उत्पन्न मनोवैज्ञानिक कारणों से होता है। इस स्थिति में महिला को सुबह उठते ही थोड़ा-सा ठोस आहार; जैसे – टोस्ट, बिस्कुट, ब्रैड आदि लेना चाहिए।
प्रश्न 3.
गर्भावस्था में रक्ताल्पता क्यों होती है ? इसका क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
गर्भावस्था में वजन बढ़ने के साथ-साथ रक्त की कुल मात्रा में भी 1-2 लीटर तक की वृद्धि होती है। लेकिन तरल रक्त में वृद्धि होने के साथ-साथ हीमोग्लोबिन में आनुपातिक वृद्धि नहीं हो पाती जिससे हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य स्तर 12-14 ग्राम प्रति मिली. से कम हो जाता है। हीमोग्लोबिन का स्तर 11 ग्राम / 100 मिली. से कम होने पर रक्ताल्पता की अवस्था मानी जाती है। भयंकर रक्ताल्पता होने पर महिला के पोषण-स्तर एवं शिशु के विकास दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 4.
रक्ताल्पता से निपटने के लिए गर्भवती महिला को क्या करना चाहिए?
उत्तर:
रक्ताल्पता से निपटने के लिए गर्भवती महिला को लौह तत्व से भरपूर भोज्य पदार्थों का नियमित सेवन करना चाहिए। चिकित्सक द्वारा दी गई लौह तत्व एवं फोलिक अम्ल की गोलियों का चिकित्सीय निर्देशों के अनुरूप नियमित सेवन करना चाहिए। उच्च रक्तचाप एवं सूजन की स्थिति में भोजन में नमक का प्रयोग कम-से-कम करना चाहिए।
प्रश्न 5.
गर्भावस्था में बी समूह के विटामिनों की क्यों आवश्यकता होती है?
उत्तर:
बी-समूह की विटामिन; जैसे – थायमीन, राइबोफ्लेविन व नियासिन की आवश्यकताएँ ऊर्जा आवश्यकताओं के अनुरूप बढ़ती हैं, क्योंकि ये तीनों विटामिन ऊर्जा के उपापचय अर्थात् कार्बोज, वसा व प्रोटीन का ऑक्सीकरण कर ऊर्जा मुक्त करके उपयोग में आते हैं। गर्भस्थ शिशु की वृद्धि व विकास के लिए विटामिन बी-12 व ए की अतिरिक्त आवश्यकता बहुत कम है जिनकी आपूर्ति प्रतिदिन के लिए प्रस्तावित सामान्य मात्राओं से ही हो जाती है।
प्रश्न 6.
गर्भावस्था में पोषण सम्बन्धी निम्न समस्याओं को समझाइए –
1. रक्ताल्पता,
2. पैरों से बायटें आना
उत्तर:
1. गर्भावस्था में वजन बढ़ने के साथ-साथ रक्त की कुल मात्रा में भी 1-2 लीटर तक की वृद्धि होती है। लेकिन तरल रक्त में वृद्धि होने के साथ – साथ हीमोग्लोबिन में आनुपातिक वृद्धि नहीं हो पाती जिससे हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य स्तर 12-14 ग्राम प्रति मिली. से कम हो जाता है। हीमोग्लोबिन का स्तर 11 ग्राम / 100 मिली. से कम होने पर रक्ताल्पता की अवस्था मानी जाती है। भयंकर रक्ताल्पता होने पर महिला के पोषण – स्तर एवं शिशु के विकास दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
2. पैरों में बायटे आना-गर्भावस्था में माता एवं गर्भस्थ शिशु के लिए कैल्सियम तत्व की अत्यधिक आवश्यकता होती है। यदि ऐसी स्त्री के भोजन में कैल्सियम की कमी हो जाती है तो पैरों में बायटे आ जाते हैं। इस स्थिति में पैरों पर अत्यधिक सूजन आ जाती है।
प्रश्न 7.
गर्भावस्था में महिलाओं को पाचन सम्बन्धी समस्याओं से निपटने के लिए क्या उपाय करना चाहिए?
उत्तर:
गर्भावस्था में गर्भवती स्त्री को पाचन सम्बन्धी विभिन्न परेशानियाँ होती हैं। इन परेशानियों एवं कष्टों से बचने के लिए उसकी आहार व्यवस्था में निम्नलिखित परिवर्तन करने चाहिए –
- गर्भवती महिला को एक बार में भरपेट भोजन न करके 5-6 बार में थोड़ा-थोड़ा भोजन करना चाहिए।
- भोजन में जल व रेशेयुक्त भोज्य पदार्थों की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए।
- भोजन में प्राकृतिक रेचक भोज्य पदार्थों को सम्मिलित करना चाहिए।
- आहार एवं शौच के समय में नियमितता बरतनी चाहिए।
- शौच जाने से पहले गुनगुने पानी में नींबू का रस पीना चाहिए।
- हल्का – फुल्का व्यायाम करते रहें, जिससे पेशीय गतिशीलता बनी रहे।
- भोजन में पौष्टिक तत्वों की उपयुक्त मात्रा उपस्थित हो।
- भोजन में मिर्च-मसालों का कम प्रयोग करना चाहिए।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
गर्भावस्था के दौरान कौन-कौन से आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन होते हैं?
उत्तर:
गर्भावस्था के दौरान आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन (Physiological changes during pregnancy)गर्भावस्था एक ऐसी अवस्था है जब माता के शरीर में सबसे अधिक परिवर्तन होते हैं। इस दौरान स्त्री के शरीर में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं –
(1) आधारीय उपापचय की दर में बढ़ोत्तरी:
गर्भावस्था में स्त्री के शरीर का आकार तथा शारीरिक वजन बढ़ जाने के कारण तथा विकास की तीव्र गति होने के कारण माता के शारीरिक अवयवों की क्रियाएँ बढ़ जाती हैं। ऐसा होने से आधारीय उपापचय की दर बढ़ जाती है।
(2) पाचन क्रिया का प्रभावित होना:
इस अवस्था में माता के शरीर में होने वाले परिवर्तनों से पाचन क्रिया भी प्रभावित हो जाती है। जी मिचलाना, उल्टियाँ होना, कब्ज रहना आदि सामान्य रोग गर्भवती स्त्रियों को प्रायः हो जाते हैं।
(3) गुर्दे का कार्य प्रभावित होना:
कैल्सियम, लोहा आदि तत्वों की अवशोषण क्षमता, गर्भावस्था के दौरान बढ़ जाने के कारण गुर्दो का कार्य-भार भी बढ़ जाता है। स्त्री के गुर्दे उसके शरीर के वर्ण्य पदार्थों के अतिरिक्त भ्रूण के वर्ण्य पदार्थों का भी उत्सर्जन करते हैं। गर्भावस्था के मध्य भाग में पानी का उत्सर्जन बढ़ जाता है। मूत्र में अमीनो अम्ल तथा आयोडीन के विसर्जन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।
(4) रक्त संगठन में परिवर्तन:
गर्भावस्था में रक्त संगठन में परिवर्तन आ जाता है। शरीर में रक्त की मात्रा में वृद्धि के साथ – साथ हीमोग्लोबिन की कुल मात्रा में वृद्धि हो पाती व हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य (12-14 ग्राम/100 मिली.) से नीचे गिर जाता है। रक्त के सीरम में प्रोटीन की कमी हो जाती है।
(5) उच्च रक्तचाप व शिराओं का फूलना:
इस अवस्था में अधिक रक्त परिवहन का कार्य-भार हृदय पर पड़ने से उच्च रक्तचाप हो जाता है व अधिक रक्त को बहने देने के लिए शिराएँ विस्फारित होकर फूल जाती हैं।
(6) उपापचय की दर में वृद्धि:
इस अवस्था में विविध हॉर्मोनों की क्रियाशीलता में भी वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप उपापचय की दर में वृद्धि हो जाती है।
(7) उदर की पेशियों का ढीला व लचीला हो जाना:
उदर की पेशियाँ ढीली व लचीली होकर गर्भावस्था की वृद्धि के लिए स्थान देती हैं। उदर प्रदेश की त्वचा में खिंचाव से लम्बी-लम्बी धारियों के निशान पड़ जाते हैं।
(8) अन्य परिवर्तन:
प्रसव के लिए योनि मार्ग व ग्रीवा की श्लेष्मिक झिल्ली मोटी हो जाती है। रक्त कोशिकाओं का जाल बढ़ जाता है, त्वचा नीले रंग की हो जाती है व पेशियाँ ढीली व लचीली हो जाती हैं। साथ – ही – साथ श्रोणि मेखला के जोड़ व स्नायु भी ढीले पड़ जाते हैं, जिससे प्रसव के समय शिशु को बाहर आने के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके।
प्रश्न 2.
गर्भवती महिला की पौषणिक आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
गर्भवती महिला की पौषणिक आवश्यकताएँ (Nutritive needs of an expectant mother):
गर्भवती महिला को अपने साथ-साथ अपने गर्भस्थ शिशु के पोषण की आवश्यकता होती है। गर्भिणी की पौषणिक आवश्यकताओं का वर्णन हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत कर सकते हैं –
ऊर्जा (Energy):
शिशु की वृद्धि तथा गर्भवती महिला के स्वयं के शरीर में आने वाले परिवर्तनों के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसके लिए गर्भवती महिला को उचित मात्रा में घी, तेल, शर्करा तथा मेवों का सेवन करना चाहिए।
प्रोटीन (Protein):
कोशिकाओं की वृद्धि तथा विकास हेतु प्रोटीन की आवश्यकता होती है। अत: दूध, पनीर, अण्डा, मछली, माँस, सोयाबीन, सूखे मेवे आदि का प्रथम 6 माह में उचित मात्रा में सेवन करना चाहिए।
विटामिन (Vitamin):
गर्भावस्था में विटामिन्स की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। विशेष रूप से विटामिन ‘डी’ की आवश्यकता होती है, क्योंकि शरीर में कैल्सियम तथा फॉस्फोरस का प्रयोग इसी के संयोग से होता है। इसके अतिरिक्त विटामिन A, B, C तथा E भी आवश्यक हैं। थायमिन, राइबोफ्लोविन एवं नियासिन की आवश्यकताएँ ऊर्जा की आवश्यकताओं के अनुरूप बढ़ती हैं।
जल एवं रेशेयुक्त भोजन (Water and roughage):
गर्भवती महिला को जल तथा अन्य तरल पेय पदार्थों (Liquids) का सेवन पहले से अधिक मात्रा में करना चाहिए। कब्ज की समस्या से बचने के लिए रेशेयुक्त भोज्य पदार्थों; जैसे-ईसबगोल की भूसी, चोकर युक्त आटा, हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए।
खनिज लवण (Minerals):
गर्भस्थ शिशु माता की हड्डियों में संचित लवणों का शोषण करके अपनी पूर्ति कर लेता है तथा इस समय गर्भवती महिला को कैल्सियम, फॉस्फोरस तथा लौह तत्वों की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। अत: दूध, फल, पालक, पत्तागोभी, शलजम का सेवन करना चाहिए।
वसा (Fats):
वसा की अधिक मात्रा को गर्भवती महिला के भोजन में सम्मिलित नहीं करना चाहिए। किन्तु फिर भी कुछ मात्रा में घी, मक्खन, चावल, आलू आदि का उपयोग आवश्यक है।
प्रश्न 3.
एक कम क्रियाशील गर्भवती महिला का आहार-आयोजन करते वक्त आप किन – किन बातों का ध्यान रखेंगे? विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
एक कम क्रियाशील गर्भवती महिला का आहार-आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:
एक कम क्रियाशील गर्भवती महिला को प्रतिदिन कम – से – कम 2000 कैलोरी ऊर्जा की आवश्यकता होती है, क्योंकि गर्भ में विकसित हो रहे शिशु को माता के आहार द्वारा ही पोषण मिलता है।
इस समय गर्भिणी के आहार में कार्बोज की मात्रा कम कर देनी चाहिए तथा प्रोटीन की मात्रा में वृद्धि कर देनी चाहिए। कम क्रियाशील गर्भवती स्त्री के लिए 20 ग्रा. वसा प्रतिदिन के हिसाब से पर्याप्त है। इस समय गर्भवती स्त्री को खनिज लवणों तथा विटामिन की अधिक आवश्यकता होती है।
गर्भिणी के लिए अधिक तला-भुना तथा मसालेयुक्त घी, मक्खन, आलू, चावल वाले भोजन का कम प्रयोग करना चाहिए। चोकर युक्त अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियों, फलों के रस, सलाद को वरीयता देनी चाहिए। एक ही बार में अधिक मात्रा में भोजन न देकर 5-6 बार में थोड़ा-थोड़ा करके भोजन दें।
प्रात:काल ठोस पदार्थ; जैसे – बिस्कुट, चने इत्यादि देने के उपरान्त ही तरल पेय दूध, छाछ, चाय इत्यादि दें। भोजन में खून बढ़ाने वाले तथा भ्रूण के निर्माण में सहायक तत्वों; जैसे – प्रोटीन, लौह तत्व आदि को उचित मात्रा में सम्मिलित करना चाहिए। दूध, दाल, हरी पत्तेदार सब्जियों का उचित मात्रा में सेवन करना चाहिए।
कम क्रियाशील गर्भवती महिला के लिए पौष्टिक तत्वों की दैनिक प्रस्तावित आहारिक मात्राएँ 1989 में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् द्वारा इस प्रकार प्रस्तुत की गई हैं –
RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 प्रयोगात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
गर्भवती महिला के लिये संतुलित व आहार (भोजन इकाइयों सहित) तालिका बनाइये।
उत्तर:
गर्भवती महिला के लिए दैनिक सन्तुलित आहार-तालिका
प्रश्न 2.
एक मध्यम क्रियाशील महिला के लिए एक दिन के आहार-आयोजन तालिका बनाइये।
उत्तर:
मध्यम क्रियाशील महिला के लिए एक दिन का आहार – आयोजन भोजन का
नोट-मसाले, हरी मिर्च, हरा धनिया, लहसुन आदि का प्रयोग कम मात्रा में किया जाता है। अत: उपरोक्त तालिका में इनका उल्लेख नहीं किया गया है।
दिन भर के भोजन में भोज्य इकाइयों का विभाजन एवं कुल योग
ऊपर दी गई आहार – आयोजन तालिका से एक मध्यम श्रम करने वाली गर्भवती महिला को सभी पौष्टिक तत्त्वों की दैनिक आवश्यकताएँ प्राप्त होंगी। उपरोक्त आहार अनुसार वांछित परिवर्तन करते हुए कम श्रम एवं कठोर श्रम करने वाली गर्भवती महिला के लिए आहार-आयोजन आप स्वयं करे। आहार आयोजन करते समय अध्याय में दर्शाये गए सुझावों को ध्यान में रखे।