RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 26 शोधक पदार्थ
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Rajasthan Board RBSE Class 12 Home Science Chapter 26 शोधक पदार्थ
RBSE Class 12 Home Science Chapter 26 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनें –
(i) गंदे वस्त्रों की धुलाई के लिए इस्तेमाल होते हैं –
(अ) नील
(ब) कलफ
(स) विरंजक
(द) शोधक पदार्थ
उत्तर:
(ब) कलफ
(ii) कठोर व मृदु जल में क्रियाशीलता कम हो जाती है वो –
(अ) अपमार्जक
(ब) साबुन
(स) शोधक पदार्थ
(द) ये सभी
उत्तर:
(स) शोधक पदार्थ
(iii) टेलो व लार्ड है –
(अ) वनस्पति वसा
(ब) रसायन
(स) प्राणिज वसा
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी
(iv) अधिक आर्द्रक क्षमता वाले शोधक हैं –
(अ) साबुन
(ब) नील
(स) विरंजक
(द) अपमार्जक
उत्तर:
(द) अपमार्जक
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
(i) अपमार्जक ………… एवं ………… जल में समान रूप से क्रियाशील होते हैं।
(ii) वसा व क्षार ………… निर्माण के मुख्य अंग हैं।
(iii) डिटर्जेंट जल के सतही दबाव को ………… करते हैं।
(iv) अपमार्जकों के प्रमुख ………… संघटक हैं।
उत्तर:
(i) कठोर एवं मृदु,
(ii) साबुन
(iii) कम
(iv) छः।
प्रश्न 3.
शोधक पदार्थ किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘शोधक पदार्थ’ वे पदार्थ हैं जो वस्त्र पर लगे मैल, धूलकण, दाग, चिकनाई आदि को धोकर वस्त्र को स्वच्छ, उजला, चमकदार, ताजा, नवीन व जीवन्त बनाते हैं।
प्रश्न 4.
अपमार्जक और साबुन की तुलना कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 5.
उत्तम साबुन व डिटर्जेण्ट के गुण बताइए।
उत्तर:
(1) उत्तम साबुन के गुण –
- साबुन क्षार रहित होना चाहिए।
- साबुन चिकना एवं मुलायम होना चाहिए।
- उपयोग में लाने पर साबुन चटकना नहीं चाहिए।
- साबुन एल्कोहल में विलेय होना चाहिए।
- उत्तम साबुन में 30 प्रतिशत जल और 61-65 प्रतिशत वसीय अम्ल होते हैं।
(2) उत्तम डिटरजेण्ट के गुण –
- उत्तम अपमार्जक क्षार रहित होते हैं।
- ठण्डे-गर्म; कठोर मृदु जल में समान क्रियाशील होते हैं।
- डिटर्जेंट अधिक आर्द्रक क्षमता वाले होते हैं।
- हाथों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- ये वस्त्रों को हानि नहीं पहुँचाते।
- जल के सतही तनाव को और वस्त्र की प्रतिरोधक क्षमता को कम करके धुलाई शीघ्रता से करते हैं।
- वसा के उत्तम पायसीकरण होते हैं।
- श्रम, समय व धन की बचत होती है।
- डिटर्जेंट से वस्त्रों पर गन्दगी दुबारा नहीं लगती है कण जल में निलम्बित हो जाते हैं।
- सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देते हैं।
प्रश्न 6.
साबुन की विशेषता बताते हुए इनका वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
साबुन की विशेषताएँ:
- वस्त्रों की धुलाई के लिए सर्वाधिक प्रचलित शोधक पदार्थ साबुन ही है।
- यह वस्त्रों की सतह से आसानी से गन्दगी हटाने में सक्षम है।
- साबुन वसा अम्लों एवं क्षारों का यौगिक है।
- साबुन जल में शीघ्रता से घुलकर अधिक झाग देता है।
- उत्तम गुणों वाला साबुन त्वचा व वस्त्रों पर मुलायम और चिकना होता है।
साबुन का वर्गीकरण:
उपयोग आधार पर साबुन 5 प्रकार का होता है –
- कपड़े धोने का साबुन
- नहाने का साबुन
- विसंक्रामक साबुन
- दाढ़ी बनाने का साबुन
- पारदर्शी साबुन।
1. कपड़े धोने के साबुन – यह साबुन कास्टिक सोडे से बनाया जाता है एवं कठोर होता है।
2. नहाने का साबुन – यह साबुन कॉस्टिक पोटाश से बनाया जाता है तथा इसमें आवश्यकतानुसार सुगन्ध व रंग मिलाया जाता है।
3. विसंक्रामक साबुन – जब साबुन में लैड ओलिएट मिला देते हैं तो यह विसंक्रामक के रूप में कार्य करता है।
4. दाढ़ी बनाने का साबुन – यदि नहाने के साबुन में ग्लिसरीन, रेजिन एवं गोंद आदि पदार्थ मिला हो तो इसके झाग देर में सूखते हैं। इसे दाढ़ी बनाने के प्रयोग में लाया जाता है।
5. पारदर्शी साबुन – यह साबुन, साधारण साबुन को एल्कोहॉल में घोलकर फिर एल्कोहॉल को वाष्पित करके बनाया जाता है।
प्रश्न 7.
अपमार्जक एवं साबुन की कार्यप्रणाली बताइए।
उत्तर:
अपमार्जक की कार्यप्रणाली:
अपमार्जक को ठंडे – गर्म तथा कठोर-मृदु सभी प्रकार के जल में घोला जा सकता है। अत्यधिक आर्द्रक क्षमता होने के कारण ये जल में शीघ्रता से घुल जाते हैं। ये जल के सतही दबाव अथवा वस्त्र की प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देते हैं; जिससे ये जल के साथ मिलकर वस्त्रों के रेशे के अन्दर तक चले जाते हैं और पूर्ण रूप से वस्त्र की गंदगी को साफकर उज्ज्वला प्रदान करते हैं।
साबुन की कार्यप्रणाली – वस्त्रों की गीला करके जब साबुन लगाया जाता है तो वस्त्र के ऊपरी सतह की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है। जिससे साबुन वस्त्र पर जमी चिकनाई, मैल व गन्दगी को छोटे – छोटे कणों में तोड़ देते हैं। ये कण पानी में तैरने लगते हैं या पायस के रूप में कपड़े का साथ छोड़कर पानी में मिल जाते हैं। अब इनको साफ पानी में खंगाल दिया जाता है और वस्त्र साफ हो जाते हैं।
प्रश्न 8.
साबुन का संगठन बताइए।
उत्तर:
साबुन मुख्यतया वसा व क्षार के भाग होते हैं परन्तु सोडियम सिलिकेट, फ्रेंच चॉक / शॉप स्टोन, स्टार्च, नमक व रेजिन आदि का उपयोग भी साबुन की मात्रा बढ़ाने; ठोस करने व भराव करने के लिए किया जाता है।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 26 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Home Science Chapter 26 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
वस्त्रों की धुलाई के लिए सर्वाधिक प्रचलित शोधक पदार्थ है –
(अ) साबुन
(ब) डिटर्जेण्ट
(स) साबुन की जैली
(द) सर्फ पाउडर
उत्तर:
(अ) साबुन
प्रश्न 2.
मृदु साबुन बनाने में प्रयुक्त होता है –
(अ) कास्टिक सोडा
(ब) कास्टिक पोटाश
(स) कास्टिक सोडा व कास्टिक पोटाश
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) कास्टिक पोटाश
प्रश्न 3.
साबुन बनाने में फ्रैंच चॉक की कितनी मात्रा डाली जाती है?
(अ) 10 – 15 प्रतिशत
(ब) 5 – 10 प्रतिशत
(स) 15 – 20 प्रतिशत
(द) 20 से 25 प्रतिशत
उत्तर:
(स) 15 – 20 प्रतिशत
प्रश्न 4.
अपमार्जक का निर्माण हुआ है –
(अ) 1807 में.
(ब) 1897 में
(स) 1997 में
(द) 1907 में
उत्तर:
(द) 1907 में
प्रश्न 5.
साबुन निर्माण की प्रक्रिया में स्टार्च पाउडर के रूप में मिलाया जाता है –
(अ) मैदा
(ब) अरारोट
(स) बेसन
(द) ये तीनों
उत्तर:
(द) ये तीनों
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. साबुन वस्त्रों की सतह से आसानी से ………… हटाने में सक्षम है।
2. साबुन को आकर्षक बनाने के लिए विभिन्न ………… व रंगों का प्रयोग किया जाता है।
3. वसा का प्रमुख भाग वसीय अम्ल तथा ………… होता है।
4. द्वितीय श्रेणी के अपमार्जकों में ………… नहीं की जा सकती है।
5. अकार्बनिक वर्ग के निर्माण तत्त्व मुख्यतः ………… होते हैं।
6. अपमार्जक अत्यधिक ………… क्षमता वाले होते हैं।
उत्तर:
1. गन्दगी
2. सुगन्धों
3. ग्लिसरीन
4. मिलावट
5. फॉस्फेट
6. आर्द्रका
RBSE Class 12 Home Science Chapter 26 अति लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वस्त्रों में शोधक पदार्थों का प्रयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
वस्त्रों को फिर से पहनने योग्य अर्थात् साफ-सुथरा, स्वच्छ, दागरहित बनाने के लिए शोधक पदार्थों का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 2.
शोधक पदार्थ कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
शोधक पदार्थ कई प्रकार के होते हैं; जैसे-साबुन, डिटर्जेण्ट, रीठे का सत, चोकर, समुद्री झाग।
प्रश्न 3.
सर्वाधिक लोकप्रिय शोधक पदार्थ कौन-सा
उत्तर:
‘साबुन’ सर्वाधिक लोकप्रिय शोधक पदार्थ है।
प्रश्न 4.
साबुन के निर्माण में मुख्यतः किसका प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
साबुन के निर्माण में मुख्यत: वसा एवं क्षार का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 5.
साबुन की मात्रा को बढ़ाने एवं ठोस बनाने के लिए किन पदार्थों का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
साबुन की मात्रा को बढ़ाने एवं ठोस बनाने के लिए सोडियम सिलिकेट, फ्रेंच चॉक, सोप स्टोन, स्टार्च एवं रेजिन आदि का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 6.
साबुन बनाने के लिए किस प्रकार की वसा का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर:
साबुन बनाने के लिए जान्तव एवं वनस्पतिज दोनों स्रोतों से प्राप्त वसा का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 7.
उत्तम साबुन में कितने प्रतिशत जल होता
उत्तर:
उत्तम साबुन में 30 प्रतिशत जल होता है।
प्रश्न 8.
साबुन में कड़ापन लाने के लिए किसका प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
साबुन में कड़ापन लाने के लिए 2 – 4% मात्रा स्टार्च मिलायी जाती है। इसकी अधिक मात्रा होने पर साबुन । कठोर हो जाता है एवं साबुन का वजन बढ़ जाता है। ऐसे साबुन कम प्रभावी होते हैं।
प्रश्न 9.
साबुन की लागत कम करने के लिए किस क्षार का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
साबुन की लागत कम करने के लिए रेजिन का प्रयोग साबुन बनाने में किया जाता है। इसकी उपस्थिति द्वारा श्वेत वस्त्रों में पीलापन आ जाता है तथा साबुन की मात्रा एवं आकार में वृद्धि आती है।
प्रश्न 10.
डिटर्जेण्ट का निर्माण सर्वप्रथम कब किया गया ?
उत्तर:
सर्वप्रथम सन् 1907 में डिटर्जेण्ट का निर्माण किया गया।
प्रश्न 11.
सोडियम सिलिकेट का डिटर्जेण्ट में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
सोडियम सिलिकेट का उपयोग डिटर्जेण्ट में वाशिंग मशीन में कल पुों की सुरक्षा एवं धुलाई के वर्तनों की सुरक्षा करता है।
प्रश्न 12.
डिटर्जेण्ट का अत्यधिक प्रयोग वातावरण के लिए क्यों हानिकारक है?
उत्तर:
इसके अत्यधिक प्रयोग से जल प्रदूषण उत्पन्न होता है तथा पारितंत्र में सूक्ष्मजीवों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 26 लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
साबुन निर्माण में क्षार का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
साबुन निर्माण के लिए क्षार एक महत्त्वपूर्ण पदार्थ है। क्षार के लिए प्रमुख रूप से कॉस्टिक सोडे या कॉस्टिक पोटाश का प्रयोग किया जाता है। कॉस्टिक सोडा (NaOH) अथवा कॉस्टिक पोटाश बाजार में पपड़ी, बट्टी एवं तरल अवस्था में उपलब्ध हैं। साबुन को अधिक झागयुक्त बनाने में कॉस्टिक पोटाश (KOH) का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 2.
प्राणिज वसा एवं वनस्पतिज वसा से निर्मित साबन में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
प्राणिज वसा एवं वनस्पतिज वसा से निर्मित साबुन में यह अन्तर है कि प्राणिज वसा से निर्मित साबुन कम झाग देता है लेकिन धुलाई अच्छी करता है, जबकि वनस्पतिज वसा से निर्मित साबुन की धुलाई क्षमता अधिक होती है तथा ये कम दामों वाले होते हैं। ये साबुन अधिक झाग देते हैं।
प्रश्न 3.
उत्तम साबुन के गुण बताइये।
उत्तर:
- उत्तम साबुन जल में शीघ्रता से घुलते हैं।
- साबुन में क्षार एवं रेजिन की मात्रा अधिक नहीं होती है।
- उत्तम साबुन में 30 प्रतिशत जल एवं 61 – 64 प्रतिशत वसीय अम्ल होते हैं।
प्रश्न 4.
डिटर्जेण्ट किसे कहते हैं ?
उत्तर:
डिटर्जेण्ट एक विशेष प्रकार के कार्बनिक पदार्थ हैं, जिनमें साबुन के समान ही सफाई का गुण पाया जाता है, परन्तु ये स्वयं साबुन नहीं होते हैं। ये कठोर जल के साथ भी खूब झाग देते हैं। साधारण अपमार्जक सोडियम लौरिल सल्फेट है। इनका उपयोग महँगे कपड़े, काँच, स्टील के बर्तन, सनमाइका के फर्नीचर आदि साफ करने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 5.
बाजार में डिटर्जेण्ट कितने रूपों में मिलता है?
उत्तर:
बाजार में यह निम्नलिखित तीन रूपों में मिलता है –
- डिटर्जेण्ट पाउडर
- डिटर्जेण्ट केक
- तरल डिटर्जेण्ट।
प्रश्न 6.
डिटर्जेण्ट बनाने में कौन-कौन से पदार्थ प्रयुक्त किये जाते हैं ?
उत्तर:
डिटर्जेण्ट बनाने में निम्नलिखित मुख्य पदार्थ प्रयोग में लाये जाते हैं –
- एसिड स्लरी:
यह डाडीसाइल बैन्जीन सल्फोनिक अम्ल है, जो काले – भूरे रंग का होता है तथा जल में बहुत कम विलेय है। इसमें हल्की-सी गन्ध होती है। - कॉस्टिक सोडा:
यह सफेद ठोस पदार्थ होता है जो जल में विलेय है। - अन्य पदार्थ:
डिटर्जेण्ट का भार बढ़ाने, सफाई करने की क्षमता बढ़ाने, अधिक झाग उत्पन्न करने आदि के लिए सोडा ऐश, सोडियम सिलिकेट का बारीक बुरादा, सोडियम ट्राई पॉली फॉस्फेट, रेजिन, व्हाइटनर, फोम बूस्टर एवं सुगन्धित पदार्थ आदि अन्य पदार्थों का भी प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 7.
साबुन किसे कहते हैं?
उत्तर:
साबुन का प्रयोग हम प्रतिदिन कपड़े धोने एवं नहाने के लिए करते हैं। आज से लगभग 2000 वर्ष पहले से ही मनुष्य को साबुन का ज्ञान था। प्राचीनकाल में रोम के लोग बकरी की चर्बी तथा करेन्ज की लकड़ी की राख से साबुन बनाते थे। आज हम जिस साबुन का उपयोग करते हैं, वह प्राचीनकाल के साबुन की अपेक्षा अधिक सुधरे रूप में है।
यह सर्वाधिक लोकप्रिय एवं प्रचलित शोधक पदार्थ है। क्षार के वसा के साथ मिल जाने पर साबुन का निर्माण होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि किसी वसा या तेल को कॉस्टिक क्षार के साथ गर्म करने पर प्राप्त ग्लिसरीन तथा सोडियम लवण को साबुन कहते हैं तथा यह क्रिया साबुनीकरण कहलाती है।
प्रश्न 8.
नहाने के साबुन एवं कपड़े धोने के साबुन में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
नहाने एवं कपड़े धोने के साबुन में अन्तर
प्रश्न 9.
मृदु साबुन एवं कठोर साबुन में अन्तर बताइये।
उत्तर:
मृद एवं कठोर साबन में अन्तर मृदु साबुन
RBSE Class 12 Home Science Chapter 26 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
साबुन के निर्माण में प्रयोग होने वाले मुख्य पदार्थों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
साबुन के निर्माण में प्रयोग होने वाले मुख्य पदार्थ –
1. क्षार:
क्षार साबुन बनाने के लिए एक अति महत्त्वपूर्ण पदार्थ है। क्षार के लिए मुख्य रूप से कॉस्टिक सोडा (NaOH) अथवा कॉस्टिक पोटाश (KOH) काम में लाया जाता है। ये दोनों पदार्थ बाजार में बट्टी, तरल अथवा पपड़ी रूप में मिलते हैं। कॉस्टिक पोटाश का उपयोग साबुन को नरम तथा अधिक झागयुक्त बनाने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग घरेलू साबुन के निर्माण में अधिक होता है।
2. वसा:
वसीय अम्ल तथा ग्लिसरीन वसा के मुख्य भाग हैं जिन्हें जन्तुजन्य तथा वनस्पतिजन्य दोनों स्रोतों से प्राप्त किया जाता है। यह दोनों प्रकार की वसा निम्न रूप में होती है –
- जन्तुजन्य वसा:
साबुन निर्माण में लॉर्ड तथा टेलो वसा का उपयोग किया जाता है जिनमें सभी वसीय अम्ल उपस्थित होते हैं। ये वसीय अम्ल साबुन की बनावट को एकरूपता प्रदान करते हैं। इस प्रकार के साबुन में झाग कम होते हैं किन्तु धुलाई अच्छी होती है। - वनस्पतिजन्य वसा:
वनस्पतिजन्य वसा में महुआ, सोयाबीन, कपास के बीज, नारियल तेल, मूंगफली, जैतून, अरण्डी, रतनजोत प्रमुख रूप से प्रयोग में लाए जाते हैं। वनस्पतिजन्य वसा युक्त साबुनों की धुलाई क्षमता अधिक होती है तथा ये झाग भी अधिक देते हैं। ये साबुन मूल्य में कम होते हैं।
3. सोप स्टोन:
साबुन निर्माण में 15 – 20% तक सोप स्टोन का प्रयोग किया जाता है। सोप स्टोन में किसी प्रकार का स्वच्छक गुण नहीं होता। इसका प्रयोग मात्र साबुन के भराव हेतु किया जाता है। यह साबुन की मात्रा तथा भार में वृद्धि करता है जिससे साबुन का लागत मूल्य कम हो जाता है।
4. रेजिन:
रेजिन का प्रयोग साबुन निर्माण की लागत कम करने हेतु किया जाता है। इसका प्रयोग साबुन की मात्रा तथा आकार में वृद्धि करता है। इसकी उपस्थिति वाले साबुन का प्रयोग करने से श्वेत वस्त्रों में पीलापन आ जाता है।
5. स्टार्च:
साबुन में कड़ापन लाने हेतु 2 – 4% स्टार्च की मात्रा का प्रयोग किया जाता है। स्टार्च की मात्रा अधिक हो जाने पर साबुन के वजन में वृद्धि हो जाती है तथा साबुन अधिक कठोर हो जाता है। इस प्रकार के साबुन में स्वच्छक गुण कम होते हैं। ऐसे साबुन कम प्रभावी होते हैं।
6. सोडियम सिलिकेट:
सोडियम सिलिकेट एक क्षारीय पदार्थ है जो काँच के समान प्रतीत होता है। यह एक उत्तम शोधक पदार्थ है जो ठोस तथा तरल दोनों ही रूपों में मिलता है। सोडियम सिलिकेट का निर्धारित मात्रा से अधिक प्रयोग साबुन को जल्दी गला देता है।
प्रश्न 2.
साबुन बनाने की ठण्डी तथा गर्म विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
साबुन बनाने की ठण्डी विधि-ठण्डी विधि से साबुन बनाने के लिये कॉस्टिक सोडा, कोई तेल (अलसी, तिल, मूंगफली) अथवा वसा, मैदा या बेसन की आवश्यकता होती है।
आवश्यक सामग्री –
कॉस्टिक सोडा – 250 ग्राम
तेल या वसा – 1लीटर
मैदा या बेसन – 250 से 400 ग्राम तक
पानी – 1 लीटर
विधि:
पानी तथा कॉस्टिक सोडे को 6 घण्टे पहले मिट्टी के बर्तन में घोलना चाहिए। दूसरे बर्तन में तेल या वसा के साथ मैदा या बेसन को मिलाकर रख लीजिए। इसके बाद मिट्टी के उपकरण या कढ़ाई में सोडे को डाल लीजिये और बेसन या मैदा मिले तेल को थोड़ा-थोड़ा धार बाँधकर डालते जाइये और लकड़ी के पाटे से उसे एक ही दिशा में उस समय तक चलाते जाइये जब तक घोल अच्छी तरह से गाढ़ा न हो जाये।
घोल के गाढ़ा होने के बाद छोटे – छोटे साँचों में या आयताकार टब में डाल दीजिए। इस टब को टाट से ढक देना चाहिए। यदि साबुन के मिश्रण में सोप स्टोन या सोडियम सिलिकेट मिलाना हो तो – किलो के हिसाब से मिलाया जा सकता है। इसके अभाव में भी अच्छा साबुन बनाया जा सकता है।
गर्म विधि से साबुन बनाना:
यदि साबुन बनाते समय सोडियम सिलिकेट मिलाना हो तो आधे जल में सोडा कॉस्टिक भिगोयें और आधे जल में सोडियम सिलिकेट मिश्रित करके गर्म करें और जब घुल जाये तो सोडा कास्टिक के घोल में मिश्रित कर लें तथा ठण्डा होने दें। इसके बाद तेल में सोप स्टोन डालकर मिश्रण को गाढ़ा होने पर जमा दें। इससे साबुन में कड़ापन आ जाता है। इस विधि से साबुन बनाते समय वसायुक्त अम्ल, जैसे-नारियल का तेल और कॉस्टिक सोडे का प्रयोग करना पड़ता है।
प्रश्न 3.
डिटर्जेण्ट की श्रेणियाँ बताते हुए उसके संगठन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
डिटर्जेण्ट की श्रेणियाँ:
डिटर्जेण्ट की मुख्यत: तीन श्रेणियाँ हैं –
(i) प्रथम श्रेणी:
इस श्रेणी के डिटर्जेण्ट की शोधक क्षमता एवं स्वच्छक गुण बहुत अच्छे होते हैं किन्तु इन डिटर्जेण्ट का मूल्य बहुत अधिक होता है।
(ii) द्वितीय श्रेणी:
दूसरी श्रेणी के डिटर्जेण्ट वह होते हैं जिनमें किसी प्रकार की मिलावट नहीं की जाती। इनकी शोधक क्षमता अच्छी होती है तथा इनका मूल्य भी कम होता है।
(iii) तृतीय श्रेणी:
इस श्रेणी के डिटर्जेण्ट में कुछ ऐसे रसायनों का सम्मिश्रण किया जाता है जो इनकी शोधक क्षमता में वृद्धि कर देते हैं। ये डिटर्जेण्ट कम दामों वाले रंगीन तथा गहरे रंग के होते हैं।
डिटरजेण्ट का संगठन:
डिटर्जेण्ट के निर्माण में विभिन्न रासायनिक पदार्थों को एक निश्चित अनुपात में सम्मिश्रित किया जाता है। ये रासायनिक पदार्थ निम्न हैं –
(i) सोडियम सिलिकेट:
वाशिंग मशीन के कल – पुर्जो की सुरक्षा एवं धुलाई के बर्तनों की सुरक्षा की दृष्टि से डिटर्जेण्ट में सोडियम सिलिकेट का प्रयोग किया जाता है।
(ii) जंग विरोधी तत्त्व:
हाथों की त्वचा तथा धुलाई के पात्रों की सुरक्षा की दृष्टि से डिटर्जेण्ट का निर्माण करते समय जंग विरोधी तत्त्व मिला दिया जाता है।
(iii) निक्षेपण प्रतिकारक तत्त्व:
डिटर्जेण्ट में मिश्रित निक्षेपण प्रतिकारक तत्त्व वस्त्र से निकली गंदगी को जल में निलंबित कर देते हैं तथा उसे पुन: वस्त्र पर चिपकने से रोकते हैं। परिणामस्वरूप जल से वस्त्र को खंगाल देने पर मैल, गंदगी, धूलकण इत्यादि जल में घुलकर निकल जाते हैं।
(iv) विरंजक:
सफेद वस्त्रों को श्वेत, उज्ज्वल, नवीन, ताजा तथा जीवंत बनाए रखने के लिए डिटर्जेण्ट का निर्माण करते समय इसमें उज्ज्वलकारी अथवा प्रकाशीय विरंजक मिश्रित किये जाते हैं। रंगीन वस्त्रों के विरंजक की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
(v) निर्माणक तत्त्व:
डिटर्जेण्ट की शोधक क्षमता बढ़ाने हेतु कार्बनिक तथा अकार्बनिक निर्माणक तत्त्व मिलाए जाते हैं।
(vi) सुगंध:
उपभोक्ताओं को आकर्षित करने हेतु डिटर्जेण्ट में सुगंधित तत्त्व मिलाए जाते हैं।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 26 प्रयोगात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जल के तापमान का वस्त्रों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
प्रश्न 2.
साबुन व डिटर्जेण्ट बनाने की विधि लिखिए।
उत्तर:
साबुन व डिटर्जेण्ट बनाना साबुन
आवश्यक सामग्रीकास्टिक सोडा 250 ग्राम
पानी 1 लीटर
तेल (महुए या रतनजोत या अलसी या तिल) 1लीटर
मैदा या बेसन इच्छानुसार 250 ग्राम
विधि:
- मिट्टी के पात्र में पानी एवं कास्टिक सोडा को 6 घंटे तक घोलकर रख दीजिए।
- दूसरे पात्र में बेसन या मैदे को तेल में मिला लीजिए।
- अब कास्टिक सोडे वाले पात्र में तेल को थोड़ा – थोड़ा धार बाँधकर डालते जाइये और लकड़ी के डण्डे से हिलाते एवं घोलते जाइये जब तक कि घोल गाढ़ा न हो जाये।
- मिश्रण को आयताकार ट्रे या टब में डाल दीजिए। इस टब को टाट से ढक दीजिए, ठण्डा हो जाने व जमने पर बट्टियाँ एवं बार के रूप में काट लें। इस प्रकार साबुन बनकर तैयार हो जाता है।
डिटर्जेण्ट पाउडर
आवश्यक सामग्री –
सोडा एश 4 किग्रा.
सोडा बाई कार्ब 1 किग्रा.
(खाने का सोडा)
एसिड स्लरी 1 किग्रा.
पानी 500 मि. ली
रंग 2 ग्राम
विधि:
- हाथों पर रबर या प्लास्टिक के दस्ताने पहन लें।
- सोडा एश एवं सोडा बाई कार्ब को छलनी से छान लें।
- पानी को गुनगुना कर प्लास्टिक बाल्टी में डाल दें।
- पानी में एसिड स्लरी धीमे-धीमे डालें तथा लकड़ी के डण्डे की सहायता से मिलायें।
- पत्थर के फर्श पर सोडे के मिश्रण को ढेरी बनाकर बीच में जगह बनाकर स्लरी घोल डाल दें।
- लकड़ी के डण्डे तथा हाथ ( दस्ताने पहनने के बाद) की सहायता से मिश्रित कर रंग भी मिला दें।
- छलनी से छानकर हवा में सुखाकर थैलियों में पैक कर दें।