RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 9 आहार-आयोजन
RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 9 आहार-आयोजन
Rajasthan Board RBSE Class 12 Home Science Chapter 9 आहार-आयोजन
RBSE Class 12 Home Science Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनें –
(i) आहार – आयोजन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है –
(अ) गर्भवती के लिए
(ब) धात्री के लिए
(स) बच्चों के लिए
(द) सभी समूह के लिए
उत्तर:
(द) सभी समूह के लिए
(ii) आहार – आयोजन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है –
(अ) दुकानदार
(ब) पड़ोसी
(स) शिशु
(द) गृहिणी
उत्तर:
(द) गृहिणी
(iii) परिवार के सभी सदस्यों की पोषक तत्त्वों की आवश्यकताएँ होती हैं –
(अ) एकसमान
(ब) बराबर
(स) भिन्न – भिन्न
(द) अत्यधिक
उत्तर:
(स) भिन्न – भिन्न
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. मौसमी खाद्य पदार्थों के द्वारा कम आय में भी………बनाया जा सकता है।
2. विभिन्न खाद्य पदार्थों को उनके पौष्टिक गुणों के आधार पर परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए आहार में सम्मिलित करना ही…………हैं।
3. शारीरिक-मानसिक स्थिति एवं आयु आहार-आयोजन को प्रभावित करने वाले अत्यन्त महत्त्वपूर्ण………हैं।
उत्तर:
1. संतुलित आहार
2. आहार – आयोजन
3. कारक।
प्रश्न 3.
स्वयं के आहार – आयोजन को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वयं के आहार – आयोजन को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं –
1. जलवायु एवं मौसम (Weather and Climate):
आहार – आयोजन के निर्धारण के लिए जलवायु एवं मौसम को ध्यान में रखना आवश्यक है। सामान्यत: ठण्डी जलवायु में रहने वाले लोगों को गर्म जलवायु में रहने वालों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिससे वह ठण्डी जलवायु में भी शरीर का तापमान सामान्य बनाये रख सकें।
अत: ठण्डी जलवायु में रहने वाले व्यक्तियों को कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन युक्त भोज्य पदार्थों की अधिक आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, गर्म जलवायु में आहार की कुछ कम मात्रा की आवश्यकता होती है। गर्म जलवायु में पसीना अधिक आने के कारण पसीने के माध्यम से खनिज लवणों की अधिक मात्रा का विसर्जन हो जाता है। अत: गर्म जलवायु में रहने वाले व्यक्तियों के आहार में खनिज लवणों की कुछ अधिक मात्रा का समावेश होना चाहिए।
2. लिंग (Sex):
सामान्य रूप से स्त्री एवं पुरुष के शरीर के वजन तथा लम्बाई में अन्तर पाया जाता है। इस अन्तर के कारण स्त्री तथा पुरुष को भिन्न-भिन्न मात्रा में आहार की आवश्यकता होती है। पुरुषों का शरीर – भार एवं आकार स्त्रियों से अधिक होने के कारण उन्हें ऊर्जादायक भोज्य पदार्थ; जैसे – तेल, गुड़ व घी, शक्कर, अनाज आदि की अधिक आवश्यकता होती है।
लिंग – भेद के प्रभाव को एक अन्य रूप में भी महत्त्व दिया जाता है। स्त्रियों के जीवन में कुछ विशिष्ट अवस्थाएँ भी आती हैं। उदाहरण के लिए, गर्भावस्था एवं स्तनपान कराने की अवस्था। इन अवस्थाओं में स्त्रियों के लिए आहार-आयोजन का निर्धारण भिन्न मापदण्ड के आधार पर किया जाता है।
3. आयु एवं शारीरिक स्थिति (Age and Physical Condition):
शारीरिक स्थिति एवं आयु आहार – आयोजन को प्रभावित करने वाले कारकों में अति महत्त्वपूर्ण कारक है। विभिन्न आयु-वर्गों में पोषक तत्त्वों की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। एक बच्चे की अपेक्षा एक वयस्क व्यक्ति को अधिक ऊर्जा चाहिए, क्योंकि उसके शरीर का आकार अधिक होता है जबकि एक बढ़ती उम्र के बच्चे को ऊर्जा एवं प्रोटीन की आवश्यकता प्रति किलोग्राम भार के हिसाब से अधिक होती है।
एक रोगी व्यक्ति की आहारीय आवश्यकताएँ भी स्वस्थ व्यक्ति की आवश्यकताओं से भिन्न होती हैं। वृद्ध व्यक्ति के आहार निर्धारण के समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इनका आहार सुपाच्य हो, क्योंकि वृद्धावस्था में व्यक्ति की पाचन – शक्ति घट जाती है। अतः वृद्धावस्था में अधिक वसायुक्त आहार उचित नहीं माना जाता।
4. आय (Income):
प्रत्येक परिवार की आय का प्रमुख भाग आहार पर ही खर्च होता है। सामान्य तौर पर मनुष्यों की आम धारणा होती है कि निर्धन व्यक्ति की अपेक्षा धनवान व्यक्ति ही पौष्टिक भोजन का सेवन कर सकता है।
आहार – आयोजन के निम्न सिद्धान्तों को ध्यान में रखते हुए हम सीमित आय द्वारा भी संतुलित आहार प्राप्त कर सकते हैं –
- गृहिणी दो – तीन दुकानों से मोल-भाव करके अथवा थोक की दुकान से अनाज व दालों को इकट्ठा खरीद सकती है।
- विभिन्न भोज्य समूहों के सम्मिश्रण द्वारा कम व्यंजन; जैसे – रोटी, दाल, सब्जी के स्थान पर गेहूं का आटा, बेसन, – आलू, पालक, तेल आदि से पराठा बना सकती है।
- दूध, अण्डा, पनीर, मांस, मछली, काजू, बादाम आदि महँगे भोज्य पदार्थों की जगह सोयाबीन एवं प्रोटीनयुक्त अन्य दालों का प्रयोग कर सकती है।
- गृहिणी सस्ते मौसमी फल व सस्ती सब्जियाँ प्राप्त कर सकती है।
- गृहिणी बचे हुए भोज्य पदार्थों के विभिन्न व्यंजन बनाकर; जैसे – बची हुई खिचड़ी, दाल, चावल व सब्जी का उपयोग आटे में गूंथकर पराठे बनाने के लिए कर सकती है। इसी प्रकार सूखी सब्जी का उपयोग पराठों में भरावन के रूप में किया जा सकता है।
इस प्रकार यह आवश्यक नहीं है कि अधिक आय वाले व्यक्ति ही महँगे खाद्य पदार्थों के प्रयोग द्वारा भोजन को संतुलित बना सकते हैं। कम आय वाले व्यक्ति भी आहार-आयोजन के सिद्धान्तों को ध्यान में रखते हुए अपने पारिवारिक सदस्यों के लिए संतुलित आहार बना सकते हैं।
5. क्रियाशीलता (Activeness):
व्यक्ति को किसी भी प्रकार का कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। सामान्य से अधिक श्रम करने वाले व्यक्ति के आहार में ऊर्जादायक तत्त्वों की मात्रा सामान्य से अधिक होती है। यही कारण है। कि अधिकांश श्रमिक गुड़, शक्कर आदि की अधिक मात्रा ग्रहण करते हैं।
कम शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्तियों के आहार में ऊर्जादायक तत्त्वों की मात्रा कुछ कम होनी चाहिए, क्योंकि यदि इस वर्ग के व्यक्ति अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट तथा वसा ग्रहण करते हैं तो इनके शरीर का वजन बढ़ जाता है और इन्हें मोटापे का शिकार हो जाने पर विभिन्न परेशानियों का शिकार होना पड़ जाता है।
प्रश्न 4.
आहार – आयोजन के किन्हीं दो सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. आहार – समय (Meal Schedules):
गृहिणी को आहार – आयोजन करते समय दो आहारों के मध्य समय के अन्तरे का विशेष ध्यान रखना चाहिए। साथ ही गृहिणी को आहार की बारम्बारता का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। सामान्यतया प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन सुबह का नाश्ता, शाम की चाय, दोपहर एवं रात का भोजन, इस प्रकार चार बार भोजन करता है।
मजदूर वर्ग दिन में केवल दो ही बार भोजन करता है एवं छोटे बालक को दिन में पाँच-छ: बार भोजन दिया जाता है, क्योंकि वह एक बार में थोड़ी मात्रा में ही भोज्य पदार्थ ग्रहण कर पाता है। अतः गृहिणी को आहार-आयोजन करते समय आहार – समय की ओर विशेष ध्यान रखना चाहिए।
2. भोजन पकाने की उचित विधियाँ (Proper Method of Cooking):
गृहिणी को आहार-आयोजन करते समय भोजन पकाने की उचित विधियों का ज्ञान होना अनिवार्य है। पाक-क्रिया द्वारा भोजन में मोहक सुगन्ध आ जाती है। पाक-क्रिया द्वारा कुछ खाद्य – सामग्रियों की सामान्य रूप से अरुचिकर प्रतीत होने वाली गन्ध को भी समाप्त किया जा सकता है।
पाक – क्रिया करते समय गृहिणी को उचित पाक – क्रिया का ही चयन करना चाहिए; यथा – चावल बनाते समय यदि गृहिणी उसका मांड निकाल देती है तो चावल की पौष्टिकता समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार सब्जियों को काटने के बाद धोने से एवं दाल – सब्जियों को पकाने के उपरान्त पानी निकाल देने पर तथा भोज्य पदार्थों को बहुत अधिक समय तक पकाने पर उनकी पौष्टिकता समाप्त हो जाती है, अत: गृहिणी को आहार – आयोजन करते समय पकाने की उचित विधियों की जानकारी होनी चाहिए।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित बिन्दुओं का आहार आयोजन में महत्त्व समझाइये।
(1) विविधता
(2) पोषण संबंधी ज्ञान
(3) महिला का कामकाजी होना
(4) परिवार आय।
उत्तर:
(1) विविधता – आहार – आयोजन करते समय गृहिणी को आहार में विविधता का प्रतिदिन ध्यान रखना चाहिए। जिससे भोजन रुचिकर बन सके क्योंकि प्रतिदिन एक ही प्रकार का भोजन खाने से (उस भोज्य पदार्थ से) सन्तुष्टि नहीं मिलती है। सुबह से शाम तक के भोजन में एवं प्रतिदिन के भोजन में विविधता होनी ही चाहिए। भोजन में विविधता निम्न प्रकार से लाई जा सकती है –
1. भोज्य – पदार्थों के आकार-प्रकार में विविधता लाकर (By Making Difference in the Types of Food Grains):
गृहिणी ताजे फल एवं सब्जियों को विभिन्न आकार एवं प्रकार में कोटकर विविधता ला सकती है, जिससे भोज्य पदार्थ देखने में सुन्दर, आकर्षक एवं खाने में स्वादिष्ट प्रतीत होता है।
2. भोज्य – पदार्थों के स्वाद व सुगन्ध में विविधता लाकर (By Making Difference in Taste and Smell):
गृहिणी को आहार-आयोजन में भोज्य – पदार्थों के स्वाद व सुगन्ध में विविधता का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि बच्चों को हल्की सुगन्ध के एवं मीठे भोज्य पदार्थ पसन्द होते हैं एवं किशोरों को तीखी गंध वाले तथा चटपटे भोज्य पदार्थ पसन्द होते हैं।
3. भोजन पकाने की विधि में परिवर्तन लाकर (By Making Difference in the Methods of Preparing Food):
आहार – आयोजन में गृहिणी भोजन पकाने की विधि में परिवर्तन लाकर भोज़न को रुचि के अनुकूल एवं स्वादिष्ट बना सकती है; जैसे – गेहूँ के आटे से रोटी, पूरी, पराठा एवं बाटी बनाकर तथा रोटी के लिए गेहूं के आटे के स्थान पर जौ, बांजरा, मक्का या मिस्से आटे का प्रयोग करके विविधता लायी जा सकती है।
4. भोज्य – पदार्थों की बनावट में विविधता लाकर (By Making Difference in the Types of Food – Grains):
भोजन में करारे, कुरकुरे, ठोस, अर्द्धठोस, मुलायम एवं तरल सभी प्रकार के भोज्य-पदार्थों को सम्मिलित करके गृहिणी को आहार – योजना बनानी चाहिए।
(1) पोषण संबंधी ज्ञान (Knowledge of Nutrition):
पोषण सम्बन्धी ज्ञान द्वारा गृहिणी आहार – आयोजन उचित प्रकार से कर सकती है। पोषण सम्बन्धी ज्ञान होने पर गृहिणी को विभिन्न भोज्य समूहों की आहार में दैनिक आवश्यकता की जानकारी होती है, जिससे गृहिणी परिवार के सभी सदस्यों के अनुरूप आहार-आयोजन कर सकती है।
(2) महिला का कामकाजी होना (Working Lady):
कामकाजी महिलाएँ आहार – आयोजन में परिवार के अन्य सदस्यों एवं नौकरों के सहयोग द्वारा पौष्टिकता ला सकती हैं। वे बाजार में उपलब्ध बने-बनाये या बनाने के लिए तैयार भोज्य पदार्थों; जैसे – जैम, जैली, अचार, मुरब्बे, चटनी, ब्रेड, मिठाई एवं भोज्य पदार्थों के तैयार शुष्क पाउडर का प्रयोग कर भोजन को पौष्टिक बना सकती हैं।
(3) पारिवारिक आय (Income of Family):
पारिवारिक आय का आहार – आयोजन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जहाँ अधिक आय वाले व्यक्ति अपने भोजन में दूध, अंडा, पनीर, बादाम, माँस, मछली, काजू आदि महँगे भोज्य पदार्थों का प्रयोग करके संतुलित आहार प्राप्त कर सकते हैं, वहीं कम आय वाले व्यक्ति सोयाबीन, मूंगफली, मौसमी हरी सब्जियों एवं दालों का आहार-आयोजन में प्रयोग कर संतुलित भोजन प्राप्त कर सकते हैं। अत: यह आवश्यक नहीं है कि अधिक आय वाले परिवार द्वारा खरीदे गये महँगे खाद्य-पदार्थ ही संतुलित हों।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 9 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Home Science Chapter 9 क्स्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
आहार – आयोजन का मुख्य उद्देश्य है –
(अ) भोजन को रुचिकर बनाना
(ब) भोजन को सुगंधित बनाना
(स) भोजन में सभी पोषक तत्त्वों का समावेश करना
(द) ये सभी।
उत्तर:
(द) ये सभी।
प्रश्न 2.
मानसिक कार्य करने वाले लोगों को ऊर्जा की आवश्यकता होती है –
(अ) कम
(ब) अधिक
(स) सामान्य
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) कम
प्रश्न 3.
प्रत्येक व्यक्ति की पोषणिक आवश्यकताएँ निर्भर करती हैं –
(अ) श्रम पर
(ब) लिंग व आयु पर
(स) शारीरिक स्थिति पर
(द) इन तीनों पर
उत्तर:
(द) इन तीनों पर
प्रश्न 4.
आहार – योजना में भोज्य पदार्थों का चयन किया जाता है –
(अ) रुचि के आधार पर
(ब) आय के आधार पर
(स) परिवार के सदस्यों के आधार पर
(द) गृहिणी की इच्छानुसार
उत्तर:
(अ) रुचि के आधार पर
प्रश्न 5.
आहार – योजना होनी चाहिए –
(अ) व्यावहारिक
(ब) लचीली
(स) विविधता लिये हुए
(द) इन तीनों गुणों वाली
उत्तर:
(द) इन तीनों गुणों वाली
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. शरीर में पोषक तत्त्व हमारी शारीरिक स्थिति तथा …………के अनुरूप होने चाहिए।
2. आहार आयोजन द्वारा परिवार के सभी सदस्यों को …………भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है।
3. मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों को कम…………की आवश्यकता होती है।
4. आहार-आयोजन में भोज्य पदार्थों के………… व मात्रा का ध्यान रखना चाहिए।
5. बढ़ते बच्चों को ऊर्जा एवं…………की मात्रा वयस्क एवं वृद्ध की तुलना में अधिक होनी चाहिए।
उत्तर:
1. क्रियाशीलता
2. संतुलित
3. ऊर्जा
4. चयन
5. प्रोटीन।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 9 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
परिवार के विभिन्न सदस्यों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएँ भिन्न – भिन्न क्यों होती हैं?
उत्तर:
परिवार के विभिन्न सदस्यों की उम्र, लिंग, स्थिति व क्रियाशीलता भिन्न – भिन्न होने के कारण पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएँ भिन्न – भिन्न होती हैं।
प्रश्न 2.
आहार – आयोजन में कौन-कौन सी प्रक्रियाएँ सम्मिलित होती हैं ?
उत्तर:
आहार – आयोजन में भोजन की योजना से । लेकर खरीदना, पकाना, संग्रहण करना व परोसने तक की क्रियाएँ सम्मिलित हैं।
प्रश्न 3.
आहार – आयोजन क्या है?
उत्तर:
परिवार के सदस्यों को उनकी पोषणिक आवश्यकताओं के अनुसार भोजन उपलब्ध कराना ही आहार-आयोजन है।
प्रश्न 4.
गृहणियों के लिए आहार-आयोजन क्यों लाभदायक है?
उत्तर:
आहार – आयोजन के द्वारा गृहिणी अपने समय, शक्ति एवं धन तीनों साधनों की बचत कर सकती है।
प्रश्न 5.
आहार – आयोजन किससे प्रभावित होता
उत्तर:
आहार – आयोजन आयु, लिंग, जलवायु, आय, भोज्य पदार्थों की उपलब्धता, पसन्द-नापसन्द, रीति-रिवाज, संस्कृति, व्यवसाय आदि से प्रभावित होता है।
प्रश्न 6.
भोजन में विविधता कैसे उत्पन्न की जाती है?
उत्तर:
भोजन के रंग – रूप, आकार, स्वाद और बनाने के तरीकों में परिवर्तन लाकर भोजन में विविधता उत्पन्न की जाती है।
प्रश्न 7.
क्षुधा सन्तुष्टि का क्या अर्थ है?
उत्तर:
क्षुधा सन्तुष्टि से अर्थ“भूख शान्त करने के साथ-साथ पूर्ण तृप्ति प्राप्त करना है।”
प्रश्न 8.
लिंग के आधार पर पोषणिक आवश्यकताएँ भिन्न क्यों होती हैं?
उत्तर:
स्त्री तथा पुरुष के शरीर के वजन तथा लम्बाई में अन्तर होता है। पुरुषों की शारीरिक संरचना में भी कार्यशील मांसपेशियाँ अधिक तथा वसा का जमाव कम होता है। अतः ऊर्जादायक आहार की जरूरत होती है। इसलिए उनकी पोषणिक आवश्यकताओं में अन्तर होता है।
प्रश्न 9.
कम आय में भी पौष्टिक भोजन किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है?
उत्तर:
सस्ते एवं मौसमी भोज्य पदार्थों को आहार-आयोजन में शामिल करके कम आय में भी पौष्टिक भोजन प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 10.
गर्म प्रदेश में रहने वाले लोगों की अपेक्षा ठण्डे प्रदेशों में रहने वाले लोगों को ऊर्जा देने वाले भोज्य पदार्थों की अधिक आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर:
शरीर का तापमान उचित बनाये रखने के लिए ठण्डे प्रदेश में रहने वाले लोगों को ऊर्जा की अधिक आवश्यकता होती है।
प्रश्न 11.
अधिक शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्ति को किस प्रकार का भोजन देना चाहिए?
उत्तर:
अधिक शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्ति को अधिक ऊर्जा प्रदान करने वाला भोजन देना चाहिए।
प्रश्न 12.
आहार – आयोजन पूरे दिन में कितनी बार किया जाता है?
उत्तर:
आहार – आयोजन पूरे दिन में केवल एक बार ही किया जाना चाहिए।
प्रश्न 13.
बच्चों को दूध के स्थान पर उसकी पोषक तत्त्वों की कमी कैसे पूरी की जा सकती है?
उत्तर:
बच्चों को दूध के स्थान पर दही, छाछ, खीर, कस्टर्ड, पनीर आदि देकर उसकी पोषक तत्त्वों की कमी पूर्ण की जा सकती है।
प्रश्न 14.
परिवार की आय का मुख्य भाग किस कार्य पर खर्च होता है?
उत्तर:
परिवार की आय का मुख्य भाग भोजन पर खर्च होता है।
प्रश्न 15.
कामकाजी महिला समय व श्रम बचाने के लिये क्या कर सकती है?
उत्तर:
कामकाजी महिला समय व श्रम बचाने के लिये श्रम व शक्ति बचाने वाले उपकरणों का उपयोग कर सकती है।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA-1)
प्रश्न 1.
मनुष्य की क्रियाशीलता आहार – आयोजन को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
व्यक्ति को विभिन्न कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। सामान्य से अधिक श्रम करने वाले व्यक्ति को ऊर्जादायक तत्वों की आवश्यकता अधिक होती है। कम श्रम करने वाले व्यक्ति को ऊर्जादायक तत्वों की आवश्यकता कम होती है। यदि कम श्रम करने वाले व्यक्ति अधिक ऊर्जादायक तत्त्व-कार्बोहाइड्रेट तथा वसा ग्रहण करते हैं। तो इनके शरीर का वजन बढ़ जाता है तथा मोटापे का शिकार हो जाते हैं। फलस्वरूप अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके विपरीत, ऊर्जादायक तत्त्वों की कमी होने पर कमजोरी आ जाती है।
प्रश्न 2.
आहार – आयोजन एक कला के साथ विज्ञान भी है, कैसे ?
उत्तर:
विविध रूपों में तैयार तथा आकर्षक तरीके से परोसा गया भोजन न केवल भूख बढ़ाता है, बल्कि गृहिणी की कलात्मकता को भी दर्शाता है। सीमित संसाधनों को उपयोग में लाते हुए सभी भोज्य समूहों में से विविध भोज्य पदार्थों का चयन कर पारिवारिक सदस्यों की पोषणिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना गृहिणी की बौद्धिक क्षमता को भी प्रदर्शित करता है।
आहार-आयोजन केवल कागज पर दिन-भर की योजना बनाना ही नहीं है, बल्कि इसमें भोजन की योजना, खरीदना, पकाना, संग्रहण तथा परोसना भी सम्मिलित है। जहाँ भोजन को आकर्षक ढंग से परोसना कला है, वहीं स्वादिष्ट तथा पौष्टिक भोजन को क्रमबद्ध रूप से तैयार करना विज्ञान है।
प्रश्न 3.
आहार – आयोजन से क्या लाभ होते हैं ?
उत्तर:
आहार – आयोजन से निम्नलिखित लाभ होते हैं –
- परिवार के प्रत्येक सदस्य को सन्तुलित आहार प्राप्त हो जाता है। जिससे वह शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ बना रहता है।
- आहार आयोजन से गृहिणी को काम करने में समय कम लगता है जिससे समय की बचत होती है तथा उसे समय में और दूसरे काम पूरे किये जा सकते हैं।
- आहार – आयोजन से परिवार के प्रत्येक सदस्य को उसकी रुचि के अनुसार भोजन दिया जा सकता है जिससे गृहिणी उनको खुश रख सकती है।
- आहार – आयोजन से धन की बचत होती है।
प्रश्न 4.
आहार – आयोजन के सिद्धान्तों के बारे में बताइए।
उत्तर:
- आहार – आयोजन में विविधता का होना
- आहार – समय का आयोजन
- पोषणिक आवश्यकताओं की पूर्ति
- दिने एक पूर्ण इकाई
- भोजन की स्वीकार्यता
- क्षुधा सन्तुष्टि
- पकाने की उचित विधियाँ।
प्रश्न 5.
क्षुधा सन्तुष्टि में आहार-योजना का क्या योगदान है? समझाइए।
उत्तर:
भोजन की योजना इस प्रकार बनायी जानी चाहिए कि आहार में लिया गया भोजन भूख शान्त करने के साथ पूर्ण तृप्ति का अहसास भी दिलाये जिससे अगले भोजन के समय तक भूख न लगे। जैसे कि सुबह के नाश्ते में यदि हम केवल चाय के साथ केवल एक टोस्ट लें तो हमें शीघ्र ही भूख लगने लगेगी और क्षुधा सन्तुष्टि नहीं मिलेगी। यदि हम आहार – योजना बनाकर एक गिलास दूध के साथ पराठा व सब्जी/अचार लें तो हमें दोपहर के भोजन तक क्षुधा सन्तुष्टि बनी रहेगी। इस प्रकार क्षुधा सन्तुष्टि की दृष्टि से आहार-आयोजन महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 6.
आहार – आयोजन को प्रभावित करने वाले कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
RBSE Class 12 Home Science Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA – II)
प्रश्न 1.
संक्षेप में आहार – आयोजन के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
परिवार के सभी सदस्यों को उनकी पोषणिक आवश्यकताओं के अनुरूप भोजन उपलब्ध कराना ही आहार-आयोजन है। दूसरे शब्दों में हम इस प्रकार कह सकते हैं कि परिवार के सदस्यों की सम्पूर्ण आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न भोज्य पदार्थों को पौष्टिक रणों के आधार पर आहार में सम्मिलित करना आहार-आयोजन कहलाता है, जिसके आधार पर परिवार के सभी सदस्यों को संतुलित भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है। आहार – आयोजन में परिवार के प्रत्येक सदस्य की रुचि एवं आयु के साथ-साथ भोजन की विविधता की ओर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है।
आहार – आयोजन कम मूल्य पर पौष्टिक भोजन कराने का भी अद्वितीय साधन है। साथ ही आहार-आयोजन द्वारा गृहिणी समय-शक्ति एवं धन की भी बचत कर सकती है। कई दिन पूर्व आहार – योजना बना लेने से गृहिणी को घर में उपस्थित पदार्थों एवं बाजार से खरीदे जाने वाले पदार्थों के बारे में पहले से ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
गृहिणी को आहार – आयोजन द्वारा भोज्य पदार्थों को संग्रहण करने की सुविधा एवं मौसम के अनुरूप भोज्य पदार्थों की उपलब्धता के बारे में जानकारी मिलती है तथा इसके द्वारा बचे हुए पदार्थों का उपयोग भी भली प्रकार से किया जा सकता है। संक्षेप में, इस प्रक्रिया में भोजन की योजना से लेकर खरीदना, पकाना, संग्रहण वं परोसने तक की क्रियाएँ सम्मिलित हैं। सारांशतः आहार-आयोजन से पौष्टिक, स्वादिष्ट, सुरुचिपूर्ण भोजन तैयार किया जा सकता है, जिसमें आकर्षक रंग, सुगन्ध, स्वाद आदि का अद्भुत संगम होता है।
प्रश्न 2.
परिवार के लिए आहार – आयोजन की आवश्यकता बताइए।
उत्तर:
परिवार में आहार – आयोजन का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि परिवार में विभिन्न आयु, लिंग एवं भिन्न – भिन्न। प्रकार के कार्य करने वाले सदस्य होते हैं। प्रत्येक सदस्य की आयु, उनके लिंग एवं कार्यों के अनुसार उनके भोजन में पोषणिक आवश्यकताएँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं; जैसे – अधिक शारीरिक परिश्रम करने वाले व्यक्ति के आहार में अधिक ऊर्जा देने वाले पदार्थों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षक अथवा कार्यालय में बैठकर मानसिक कार्य करने वाले पारिवारिक सदस्य के भोजन में प्रोटीनयुक्त भोज्य पदार्थों की अधिक आवश्यकता एवं ऊर्जायुक्त पदार्थों की कम आवश्यकता होती है।
इसी प्रकार बढ़ती उम्र के किशोरों, गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली माताओं को विटामिन, प्रोटीन एवं खनिज लवणयुक्त भोज्य पदार्थों की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त जलवायु, भोज्य पदार्थों की उपलब्धता, समय, आय, पारिवारिक सदस्यों की रुचि, भोज्य पदार्थों के चयन एवं उपभोग को प्रभावित करते हैं। अतः परिवार में सभी सदस्यों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए आहार-आयोजन अति आवश्यक है।
प्रश्न 3.
भोजन की स्वीकार्यता से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
भोजन की स्वीकार्यता (Acceptability of Food):
तैयार पके – पकाए भोजन की स्वीकार्यता आहार-आयोजन का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। यदि पूर्ण सन्तुलित, स्वादिष्ट वे आकर्षक रूप में परोसे व्यंजन परिवार के सदस्यों द्वारा खाए ही न जाएं तो आहार – आयोजन की सम्पूर्ण मानसिक व शारीरिक प्रक्रिया तथा समय व श्रम व्यर्थ हो जाता है।
अतः आहार का आयोजन करते समय ध्यान रहे कि आहार-योजना में भोज्य पदार्थों तथा पकाए गए व्यंजनों का चयन परिवार के सदस्यों की रुचि के अनुरूप हो। उदाहरण के लिए बच्चों को दाल एवं हरी सब्जियाँ कम पसन्द होती हैं, परन्तु यही भोज्य पदार्थ बच्चे भरवाँ पराठे, पकौड़े, मिठाई के रूप में बहुत पसन्द करते हैं। भोजन के दौरान एक आहार में दिए गए व्यंजनों की मात्रा भी बहुत अधिक या बहुत कम नहीं होनी चाहिए। इस प्रकार भोजन की स्वीकार्यता के अनुरूप ही आहार आयोजन किया जाना चाहिए।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित कारक किस प्रकार आहार – आयोजन को प्रभावित करते हैं?
1. पारिवारिक रीति-रिवाज एवं संस्कृति
2. पोषण सम्बन्धी ज्ञान
3. महिला का कामकाजी होना
4. भोज्य पदार्थों की उपलब्धता
5. सदस्यों की पसन्द।
अथवा
आहार – आयोजन क्या है? आहार-आयोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
उत्तर:
आहार – आयोजन (Meal Planning):
परिवार के सदस्यों को उनकी पोषणिक आवश्यकताओं के अनुसार भोजन उपलब्ध कराना ही आहार – आयोजन है। विभिन्न कारक आहार आयोजन को निम्न प्रकार प्रभावित करते हैं –
1. पारिवारिक रीति – रिवाज एवं संस्कृति (Family Culture and Customs):
प्रत्येक परिवार अपने रीति-रिवाज एवं परम्पराओं के अनुरूप ही आहार – आयोजन करता है। दो समय के भोजन करने वाले परिवार को आहार-आयोजन दो समय के भोजन से प्रारम्भ करना चाहिए। धीरे – धीरे उनके आहार में परिवर्तन लाना चाहिए। विशेष अवसरों; जैसे – जन्म – दिन, त्योहार, विवाह आदि के मौकों पर आहार – आयोजन प्रतिदिन से भिन्न होता है, परन्तु यह आयोजन भी पारिवारिक रीति – रिवाजों एवं संस्कृति के अनुरूप ही होना चाहिए; जैसे-क्रिसमस के त्योहार पर केक बनाना, ईद के त्योहार पर सेंवई बनाना, मकर संक्रान्ति के त्योहार पर तिल के व्यंजन बनाना तथा होली एवं दीपावली के त्योहार पर अनेक प्रकार के व्यंजन बनाना इत्यादि।
2. पोषण सम्बन्धी ज्ञान (Knowledge of Nutrition):
गृहिणी को आहार-आयोजन के लिए पोषण सम्बन्धी ज्ञान होना अनिवार्य है। विभिन्न भोज्य समूहों तथा आहार में दैनिक आवश्यकताओं की जानकारी द्वारा गृहिणी परिवार के विभिन्न सदस्यों की आवश्यकता के अनुरूप आहार सम्बन्धी आयोजन कर सकती है।
3. महिला का कामकाजी होना (Working Lady):
अधिकांशतः कामकाजी महिलाएँ समयाभाव के कारण आहार – आयोजन नहीं कर पाती हैं, अतः ऐसी महिलाओं को संतुलित आहार उपलब्ध करवाने के लिए तथा अन्य गृह सम्बन्धी कार्यों में परिवार के अन्य सदस्यों अथवा नौकरों की मदद लेनी चाहिए। अवकाश के दिनों में गृहिणी सूखा राशन, दालें आदि साफ कर सकती है। टी. वी. देखते समय अथवा आगन्तुकों से वार्तालाप करते समय हरी पत्तेदार सब्जियों को काटने एवं मटर तथा हरे चने आदि छीलने का कार्य कर सकती है।
गृहिणी रसोईघर में समय एवं शक्ति की बचत के उपकरणों, यथा-कुकर, टोस्टर, बिजली की केतली, ओवन, सोलर कुकर आदि का प्रयोग करते हुए संतुलित आहार का आयोजन कर सकती है। कामकाजी महिलाएँ बाजार में उपलब्ध बने – बनाये अथवा बनाने के लिए तैयार (Ready to Eat or Ready to Cook) भोज्य पदार्थों का प्रयोग करते हुए; जैसे – ब्रेड, मिठाई, अचार, मुरब्बे, सॉस, चटनी, जैम एवं व्यंजनों के लिए तैयार शुष्क पाउडर के प्रयोग द्वारा आहार – आयोजन कर सकती हैं।
4. भोज्य पदार्थों की उपलब्धता (Availability of Food-Grains):
हर मौसम में एवं हर स्थान पर सभी प्रकार के भोज्य पदार्थ उपलब्ध नहीं होते हैं। सभी प्रकार के मौसमी फल एवं सब्जियाँ मौसम के अनुकूल ही सस्ते दामों में उपलब्ध होती हैं; जैसे – सर्दियों की अपेक्षा गर्मियों में आम का रस एवं तरबूज का रस सरलता से तथा सस्ते दामों में उपलब्ध किया जा सकता है।
इसी प्रकार दक्षिण भारत में चावल की अधिक उपलब्धता के कारण इडली, साँभर, भात, डोसा आदि व्यंजनों की भरमार रहती है, जबकि उत्तर भारतीयों के लिए आहार-आयोजन में गेहूं की रोटी एवं दाल-सब्जी की भरमार होती हैं। इस प्रकार भोज्य पदार्थों की उपलब्धता आहार-आयोजन को प्रभावित करती है।
5. सदस्यों की पसन्द (Choice of Members):
गृहिणी को आहार-आयोजन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि भोजन सदस्यों की न केवल शारीरिक आवश्यकता के अनुकूल हो, अपितु रुचिकर भी हो। गृहिणी के लिए प्रत्येक सदस्य की रुचि एवं पसन्द के अनुकूल आहार – आयोजन करना अत्यन्त जटिल कार्य है। गृहिणी विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों को बनाकर भोजन पदार्थों के प्रति रुचि जाग्रत कर सकती है, यथा – प्रतिदिन दालों एवं हरी पत्तेदार सब्जियों के स्थान पर दाल के पकौड़े, भरवाँ पराठे, दूध के स्थान पर खीर, पालक एवं मेथी के पकौड़े अधिक रुचि के अनुसार खाये जाते हैं। इस प्रकार आहार – आयोजन में भोजन को परिवार की रुचि के अनुकूल एवं संतुलित बनाया जा सकता है।