RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 10 प्रत्यावर्ती धारा
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 10 प्रत्यावर्ती धारा
Rajasthan Board RBSE Class 12 Physics Chapter 10 प्रत्यावर्ती धारा
RBSE Class 12 Physics Chapter 10 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 12 Physics Chapter 10 बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रत्यावर्ती धारा के वर्ग माध्य मूल का मान होता है
(अ) शिखर मान का दुगुना
(ब) शिखर मान का आधा
(स) शिखर मान के बराबर
(द) शिखर का मान 1√2 गुना।
उत्तर:
(द) शिखर का मान 1√2 गुना।
प्रश्न 2.
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में निम्न में से किसके लगे होने पर धारा, वोल्टता से कला में आगे होगी-
(अ) शुद्ध प्रतिरोध
(ब) शुद्ध प्रेरकत्व
(स) शुद्ध धारिता
(द) इसमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) शुद्ध धारिता
शुद्ध संधारित्र में धारा विभवान्तर से आगे रहती है।
प्रश्न 3.
प्रत्यावर्ती धारा की कला वोल्टता की कला से π/2 कोण से पीछे रहती है, जब परिपथ में
(अ) केवल प्रतिरोध हो
(ब) केवल प्रेरकत्व हो
(स) केवल धारिता हो
(द) धारिता और प्रतिरोध हो।
उत्तर:
(ब) केवल प्रेरकत्व हो
शुद्ध प्रेरकत्व में विभवान्तर धारा से π/2 आगे होता है।
प्रश्न 4.
Cω को मात्रक है-
(अ) ओम
(ब) म्हो
(स) वोल्ट
(द) एम्पियर।
उत्तर:
(ब) म्हो
प्रश्न 5.
परिपथ में संधारित्र-
(अ) प्रत्यावर्ती धारा को गुजरने देता है।
(ब) प्रत्यावर्ती धारा को रोक देता है।
(स) दिष्ट धारा को गुजरने देता है।
(द) प्रत्यावर्ती धारा को रोकता है और दिष्ट धारा को गुजरने देता है।
उत्तर:
(अ) प्रत्यावर्ती धारा को गुजरने देता है।
प्रश्न 6.
किसका मात्रक समान नहीं है
(अ) 1√LC
(ब) √LC
(स) RC
(द) LR
उत्तर:
(अ) 1√LC
प्रश्न 7.
एक प्रत्यावर्ती धारा परिपथ 10kHz आवृत्ति पर अनुनादित होता है। यदि आवृत्ति बढ़ाकर 12Hz कर दी जाए तो परिपथ की प्रतिबाधा पर क्या प्रभाव पड़ेगा-
(अ) अपरिवर्तित रहेगी।
(ब) 1.2 गुना बढ़ जाएगी।
(स) बढ़ जाएगी और धारितीय हो जाएगी।
(द) बढ़ जाएगी और प्रेरणिक हो जाएगी।
उत्तर:
(द) बढ़ जाएगी और प्रेरणिक हो जाएगी।
अनुनाथ की स्थिति में z = R होता है जो परिपथ की आवृत्ति पर निर्भर नहीं करता है।
प्रश्न 8.
एक परिपथ में धारा की कला वोल्टता की कला से π/3 कोण पीछे है, परिपथ में अवयव है।
(अ) R तथा C
(ब) R और L
(स) L और C
(द) केवल L
उत्तर:
(ब) R और L
प्रश्न 9.
शुद्ध प्रेरकत्व या धारिता का शक्ति गुणांक का मान होता है।
(अ) एक
(ब) शून्य
(स) 1
(द) शून्य से अधिक।
उत्तर:
(ब) शून्य
प्रश्न 10.
एक प्रत्यावर्ती परिपथ में शक्ति की हानि किए बिना धारा को कम कर सकता है-
(अ) शुद्ध प्रेरकत्व का प्रयोग कर
(ब) शुद्ध प्रतिरोध प्रयुक्त कर
(स) प्रतिरोध और प्रेरकत्व लगाकर
(द) प्रतिरोध तथा धारिता प्रयुक्त कर ।
उत्तर:
(अ) शुद्ध प्रेरकत्व का प्रयोग कर
शुद्ध प्रेरकत्व का प्रयोग किये बिना।
प्रश्न 11.
धारा I = sin(ωt−π/2) प्रत्यावर्ती परिपथ में प्रवाहित हो रही है। यदि प्रत्यावर्ती वोल्टता V = V0 sin ωt हो तो व्यय होने वाली शक्ति है-
(अ) V0I0/R
(ब) V0I0/√2
(स) VI/2
(द) शून्य।
उत्तर:
(द) शून्य।
प्रश्न 12.
श्रेणी LCR परिपथ में अनुनाद की स्थिति में यदि धारिता C = 1µF तथा L = 1µH हो तो आवृत्ति का मान कितने हज होगा।
(अ)106
(ब) 2π × 106
(स) 106/2π
(द) 2π × 10-6
उत्तर:
(स) 106/2π
प्रश्न 13.
ट्रांसफार्मर की क्रोड पटलित इसलिए होती है, ताकि –
(अ) चुम्बकीय क्षेत्र बढ़ जाए ।
(ब) क्रोड में अवशेष चुम्बकत्व कम हो जाए।
(स) क्रोड की चुम्बकीय संतृप्ति का मान बढ़ जाए
(द) भंवर धाराओं के कारण ऊर्जा हानि कम हो।
उत्तर:
(द) भंवर धाराओं के कारण ऊर्जा हानि कम हो।
भंवर धाराओं को कम करने के लिये इसका प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 14.
संलग्न चित्र में अनुनादी स्थिति को प्रदर्शित करने वाला बिन्दु है
(अ) A
(ब) B
(स) C
(द) D
उत्तर:
(अ) A
अनुनाद की स्थिति में XC तथा XL का मान समान होता है। इसलिये बिन्दु A अनुनाद की स्थिति परिवर्तन करेगा।
प्रश्न 15.
100% दक्षता वाले ट्रांसफॉर्मर की प्राथमिक व द्वितीयक कुण्डलियों में प्रवाहित हो रही धारा का अनुपात 1: 4 है तो प्राथमिक द्वितीयक कुण्डलियों पर वोल्टता का अनुपात है।
(अ) 1 : 4
(ब) 4 : 1
(स) 1 : 2
(द) 2 : 1.
उत्तर:
(ब) 4 : 1
RBSE Class 12 Physics Chapter 10 अति लघूत्तरात्गक प्रश्न
प्रश्न 1.
एक प्रत्यावर्ती वोल्टता का समीकरण निम्न है। V = 2002–√ sin 100 πt इसका वर्ग माध्य मूल मान तथा आवृत्ति लिखो।
उत्तर:
Vrms = V0/2√=200√2/√2=200V
तथा ω = 2πv = 100π
v = 50 Hz.
प्रश्न 2.
प्रत्यावर्ती धारा के वर्ग माध्य मूल तथा शिखर मान में सम्बन्ध लिखो।
उत्तर:
प्रश्न 3.
किसी प्रत्यावर्ती धारा का समीकरण I = I0, sin ωt है तो प्रेरकत्व परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टता का समीकरण लिखो।
उत्तर:
धारा का मान (I) = I0 sin ωt है इस परिपथ में वोल्टता π/2 आगे होती है।
V = V0 sin (ωt + π/2)
प्रश्न 4.
किसी प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में किसी समय वोल्टता V = 200 sin 314t है तो प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति लिखो।
उत्तर:
समी. V = V0 sin ωt से तुलना करने पर-
ω = 314
2πv = 314
v = 314/2×3.14
= 50 Hz.
प्रश्न 5.
प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति बढ़ाने पर प्रेरणिक प्रतिघात तथा धारितीय प्रतिघात पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति (v) बढ़ाने पर
XL = WL = 2πvL= प्रेरकत्व बढ़ेगा
अत: प्रेरणिक प्रतिघात अधिक और धारितीय प्रतिघात कम होता है।
प्रश्न 6.
एक कुण्डली का प्रेरकत्व 0.1H है। 50Hz आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा के लिए इसके प्रतिघात का मान ज्ञात करो।
उत्तर:
प्रतिघात (XL) = ωL
XL = 2πvL
= 2 × 3.14 × 50 × 0.1
= 31.4Ω
प्रश्न 7.
एक श्रेणी LCR परिपथ में धारा तथा वोल्टता के मध्य कलान्तर कितना होगा?
उत्तर:
कलान्तर धारा तथा वोल्टता के मध्य 0 से ±π/2 के मध्य होता है।
प्रश्न 8.
श्रेणी LCR अनुनादी परिपथ में प्रेरकत्व तथा धारिता पर विभवान्तर के मध्य कलान्तर कितना होगा ?
उत्तर:
अनुनाद की स्थिति परिणामी विभवान्तर शून्य होता है जिसके कारण कलान्तर 180° होता है।
प्रश्न 9.
श्रेणी LCR अनुनादी परिपथ में प्रतिबाधा का मान कितना होता है ?
उत्तर:
अनुनाद की स्थिति प्रतिबाधा (z) = प्रतिरोध (R)
प्रश्न 10.
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रेरकत्व, धारिता तथा प्रतिरोध के लिए शक्ति गुणांक को क्या मान होता है?
उत्तर:
प्रेरकत्व के लिये-शून्य, संधारित्र के लिये = शून्य
तथा प्रतिरोध के लिये = एक।
प्रश्न 11.
का मात्रक क्या होता है?
उत्तर:
LC−−−√ = [T] = सेकण्ड।
प्रश्न 12.
श्रेणी LCR परिपथ में धारिता को चार गुना करने पर समान अनुनादी आवृत्ति के लिए प्रेरकत्व का मान कितना करना होगा।
उत्तर:
अनुनादी की स्थिति में-
XL = XC
ωrL = 1/ωrC
यदि धारिता 4 गुना बढ़ेगी तो प्रेरकत्व एक चौथाई रह जाएगा
प्रश्न 13.
वाटहीन धारा का वर्ग माध्य मूल मान कितना होगा ?
उत्तर:
I = I0/√2 sin θ.
प्रश्न 14.
एक ट्रांसफार्मर की प्राथमिक और द्वितीयक कुण्डली में घेरों की संख्या का अनुपात 1 : 4 है। यह कौन-सा ट्रांसफार्मर हैं?
उत्तर:
Np < Ns अत: ट्रांसफार्मर उच्चायी होगा।
प्रश्न 15.
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में वाटसेन धारा का मान लिखो।
उत्तर:
वाटहीन धारा (I) = I0 sin φ.
RBSE Class 12 Physics Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
दिष्ट धारा की तुलना में प्रत्यावर्ती धारा को प्राथमिकता क्यों दी जाती है? समझाइए।
उत्तर:
क्योंकि प्रत्यावर्ती धारा को आसानी से निम्न तथा उच्च वोल्टता में परिवर्तित किया जा सकता है तथा ऊष्मा हानि को कम किया जा सकता है।।
प्रश्न 2.
220V पर प्रत्यावर्ती धारा, 220V पर दिष्ट धारा से अधिक घातक है क्यों?
उत्तर:
प्रत्यावर्ती धाय की विशेषताएँ (Properties of A.C)
प्रत्यावर्ती धारा की विशेषताएँ निम्न हैं-
(i) प्रत्यावर्ती धारा को आसानी से दिष्टकारी की सहायता से दिष्ट धारा में परिवर्तित किया जा सकता है।
(ii) प्रत्यावर्ती धारा जनित्र एवं मोटर अधिक दृढ़ एवं प्रचालन में अधिक सुविधाजनक होते हैं तथा इनकी लागत दिष्ट धारा जनित्र मोटर से कम होती है।
(iii) प्रत्यावर्ती वोल्टता को ट्रांसफॉर्मर द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है, जिससे उच्च वोल्टता एवं निम्न धारा पर बहुत कम शक्ति ह्मस से विद्युत संचरण किया जाता है।
दोष (Defects)
प्रत्यावर्ती धारों के दोष निम्नलिखित हैं-
(i) प्रत्यावर्ती धारा का सीधा उपयोग विद्युत अपघटन इलेक्ट्रॉन प्लेटिंग में नहीं किया जा सकता है। इसे विद्युत चुम्बक बनाने में भी प्रयोग नहीं किया जाता है।
(ii) किसी निश्चित मान की प्रत्यावर्ती वोल्टता उसी मान की दिष्ट वोल्टता की तुलना में अधिक खतरनाक होती है, क्योंकि प्रत्यावर्ती वोल्टता का शिखर मान इसके rms, मान को √2 गुना होता है।
(iii) उच्च आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा किसी तार के सम्पूर्ण अनुप्रस्थ परिच्छेद से समान रूप से वितरित होते हुये प्रवाहित नहीं होती, बल्कि तार के पृष्ठ की परतों में से प्रवाहित होती है। अतः जहाँ मोटे तार की आवश्यकता हो, वहाँ अनेक पतले तारों को मिला दिया जाता है। इसे त्वचिक प्रभाव भी कहते हैं।
प्रत्यावर्ती धरा परिपथों में विभवान्तर एवं धरा के मध्य कुलान्तर (Phase Difference between Voltage and Current in A.C. Circuits)
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टता (alternating voltage) एवं धारा की आवृत्ति समान होती हैं, लेकिन दोनों की कला भी समान हो, यह आवश्यक नहीं है। जब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में धारा एवं विभवान्तर समान कला में होते हैं तो दोनों का परिवर्तन किसी समय एक ही जैसा होता है अर्थात् दोनों एक साथ शून्य होते हैं, दोनों एक साथ अधिकतम होते हैं। तथा दोनों एक साथ दिशा बदलते हैं। समान कला की स्थिति में प्रत्यावर्ती धारा एवं विभवान्तर के समीकरण निम्न प्रकार व्यक्त होंगे-
I = I0 sin ωt
जहाँ I धारा का तात्क्षणिक मान एवं I0 शिखर मान है।
एवं V = Vm sin ωt
जहाँ v विभवान्तर का तात्क्षणिक मान (Instantaneous value) एवं V0 शिखर मान है।
यदि इन दोनों को एक ही ग्राफ पर एक साथ खींचा जाय तो आरेख चित्र 10.5 की तरह प्राप्त होगा। प्रायः प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में विभवान्तर एवं धारा समान कला में नहीं (not in same phase) होते हैं अर्थात् दोनों भिन्न समयों पर अधिकतम होते हैं, भिन्न समयों पर दिशा बदलते हैं, भिन्न समयों पर शून्य होते हैं आदि। दोनों के मध्य कलान्तर परिपथ की प्रकृति (nature of circuit) पर निर्भर करता है। जब धारा का मान पहले अधिकतम होता है और विभवान्तर का मान बाद में तो यह कहा जाता है कि “धारा विभवान्तर से कला में आगे है या धारा विभवान्तर से कला में अग्रगामी (leading) है। इसके विपरीत यदि परिपथ में विभवान्तर पहले अधिकतम होता है और धारा बाद में, तो यह कहा जाता है कि “धारा विभवान्तर से कला में पश्चगामी (lagging) है।”
उक्त दोनों कथन विभवान्तर के सापेक्ष धारा की कला (phase of current with respect to voltage) को व्यक्त करते हैं। यदि इन्हीं स्थितियों में धारा के सापेक्ष विभवान्तर की कला को व्यक्त करें तो प्रथम स्थिति में कहा जायेगा कि विभवान्तर, धारा से कला में पश्चगामी (lagging) है और दूसरी स्थिति में यह कहा जायेगा कि विभवान्तर धारा से कला में अग्रगामी (leading) है। यदि धारा एवं विभवान्तर के मध्य कलान्तर (phase difference) ϕ है और विभवान्तर (voltage) धारा से कला में पश्चगामी (lagging) है। (प्रथम स्थिति) तो I = I0 sin ωt तथा V = V0 sin (ωt – ϕ) इन दोनों को जब एक ही ग्राफ पर आरेखित करेंगे तो निम्न आरेख चित्र 10.7 की भाँति खींचा जाता है-
चित्र 10.7
यदि धारा एवं विभवान्तर के मध्य कलान्तर $ है और विभवान्तर धारा से कला में अग्रगामी (leading) है तब द्वितीय स्थिति से
I = I0 sin ωt तथा V = Vo sin (ωt + ϕ)
इन दोनों को यदि एक ही ग्राफ पर खींचा जाय तो आरेख चित्र 10.8 की भाँति बनता है।
चित्र 10.8
यदि धारा एवं विभवान्तर के मध्य कलान्तर ϕ = π/2 है तो धारा
I = I0 sin ωt
तो प्रथम स्थिति में, V1 = V1sin (ωt – π/2) और
द्वितीय स्थिति में, V2 = V2 sin (ωt + π/2)
अगर इन तीनों को एक ही ग्राफ पर खींचा जाए तो आरेख चित्र 10.9 के अनुसार होगा।
चित्र 10.9
प्रश्न 3.
प्रेरणिक प्रतिघात तथा धारितीय प्रतिघात का आवृत्ति के साथ लेखाचित्र बनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 4.
संधारित्र दिष्ट धारा का मार्ग अवरुद्ध करता है, जबकि प्रत्यावर्ती धारा को जाने देता है, क्यों?
उत्तर:
संधारित्र का प्रतिरोध XC = 1/ωC=1/2πvC
दिष्ट धारा के लिये v = 0
∴ XC = ω अत: दिष्ट धारा के संधारित्र अन्तत π प्रतिरोध का कार्य करता है, जिससे वह दिष्ट धारा को रोकता है।
प्रश्न 5.
एक कुण्डली के ओमीय प्रतिरोध 6Ω है। यदि कुण्डली की प्रतिबाधा 10Ω हो तो XL, प्रेरणिक प्रतिघात ज्ञात करो।
उत्तर:
परिपथ का ओमीय प्रतिरोध (R) = 6Ω
प्रतिबाधा (z) = 10Ω, XL = ?
प्रश्न 6.
किसी प्रत्यावर्ती परिपथ में धारा और विभवान्तर के मध्य कला सम्बन्ध बताओ, जब
(i) f = fr,
(ii) f < fr,
(iii) f > fr, यहाँ fr अनुनादी आवृत्ति है।
उत्तर:
प्रश्न 7.
बैण्ड चौड़ाई किसे कहते है? LCR परिपथ में इसका मान लिखो।
उत्तर:
श्रेणी LCR परिपथ में धारा आवृत्ति वक्र पर स्थित अर्द्धशक्ति बिन्दुओं के मध्य के अन्तराल को बैण्ड चौड़ाई कहते हैं। इसे ∆f से प्रदर्शित करते हैं।
प्रश्न 8.
अर्द्ध शक्ति बिन्दु आवृत्तियाँ किसे कहते हैं ? इन पर धारा को मान कितना होता है?
उत्तर:
अर्द्ध शक्ति बिन्दु आवृत्तियाँ, श्रेणी LCR परिपथ के लिये खींचे गये अनुनाद वक्र पर आवृत्ति के वे मान हैं जिन पर परिपथ में शक्ति परिपथ की अधिकतम शक्ति की आधी रह जाती है तथा धारा का मान, धारा के शिखर मान का 1/√2 गुना रह जाता है। f1 तथा f2 के संगत धारा का मान = I0/√2 होता है।
प्रश्न 9.
किसी कुण्डली के प्रतिरोध व प्रतिघात बराबर होने पर उसका शक्ति गुणांक कितना होगा ?
उत्तर:
शक्ति गुणांक-
प्रश्न 10.
विद्युत शक्ति संचरण में प्रयुक्त परिपथों के लिए शक्ति गुणांक कम होने का अर्थ है, अधिक शक्ति क्षय। समझाइए।
उत्तर:
शक्ति क्षय Pav = IrmsVrms cos ϕ
ϕ = कम होने पर
cos ϕ = का मान बढ़ता है
इसलिये शक्ति क्षय बढ़ता है।
प्रश्न 11.
अनुनादी LCR परिपथ में प्रतिबाधा, आवृत्ति तथा शक्ति गुणांक का मान कितना होगा? व्यंजक लिखो।
उत्तर:
LCR परिपथ में अनुनादी की स्थिति में
z = R
प्रतिबाधा = प्रतिरोध
आवृत्ति = अपरिवर्तित रहती है।
शक्ति गुणांक
(cos ϕ) = 1
प्रश्न 12.
ट्रांसफार्मर किस सिद्धान्त पर कार्य करता है? इसका उपयोग लिखो।
उत्तर:
अन्योय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। इसका उपयोग वोल्टता को बढ़ाने तथा कम करने के लिये किया जाता है।
प्रश्न 13.
प्रत्यावर्ती धारा के प्रथम अर्द्धचक्र में औसत मान को ज्ञात करो।
उत्तर:
प्रत्यावर्ती य और वोल्टता के तत्क्षणिक, शिखर, औसत और वर्ग-मध्य-मूल मन (Instantaneous, Peak, Average and Root Mean Square Value of Alternating Current and Voltage)
तात्क्षणिक मान (Instantaneous Value)
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में किसी क्षण धारा या वोल्टता के मान को तात्क्षणिक मान कहते हैं। इसकी माने शून्य, धनात्मक या ऋणात्मक हो सकता है। वोल्टेज तथा धारा के समीकरण निम्न प्रकार प्रदर्शित हैं-
V =V0 sin ωt …… (1)
I = I0 sin (ωt + ϕ)
जहाँ ϕ किसी क्षण पर धारा तथा वोल्टता के मध्य कलान्तर है।
शिखर मान (Peak Value)
प्रत्यावर्ती परिवर्तन के पूर्ण चक्र में धारा या वोल्टता का अधिकतम मान शिखर मान कहलाता है।
समी. (1) व (2) में V0 तथा I0 में वोल्टता तथा धारा के शिखर माना है।
औसत मान (Average Value)
प्रत्यावर्ती धारा का परिमाण व दिशा दोनों ही आवर्त रूप से बदलते रहते हैं। एक पूरे चक्र में प्रत्यावर्ती धारा पहले आधे चक्र (first half cycle) में एक दिशा में एवं दूसरे अर्द्ध-चक्र (second half cycle) में विपरीत दिशा में अधिकतम मान को प्राप्त करती है। इस प्रकार एक पूरे चक्र के लिए प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान शून्य होता है। इसीलिए जब एक चलकुण्डल धारामापी (moving cycle galvanometer) प्रत्यावर्ती धारा के मार्ग में जोड़ते हैं तो उसके संकेतक (pointer) में कोई विक्षेप उत्पन्न नहीं होता है। इसका कारण यह है कि चलकुण्डल धारामापी में उत्पन्न विक्षेप उसमें बहने वाली धारा के अनुक्रमानुपाती होता है। धारा बहने पर धारामापी की कुण्डली पर एक बलयुग्म (torque) कार्य करता है और इसके आघूर्ण के प्रभाव में कुण्डली घूमती है साथ ही साथ धारा का मान बढ़ने पर बलयुग्म का मान भी बढ़ता है और उसी के अनुसार कुण्डली का विक्षेप भी बढ़ता है। चूंकि प्रत्यावर्ती धारा एक चक्र में दो बार दिशा बदलती है और दो बार परस्पर विपरीत दिशा में अधिकतम होती है। इस प्रकार 50 Hz आवृत्ति वाली प्रत्यावर्ती धारा एक सेकण्ड में कुण्डली पर 100 बार परस्पर विपरीत दिशा में बलयुग्म का आघूर्ण लगाती है। कुण्डली के जड़त्व आघूर्ण (moment of inertia) के कारण वह इस आवृत्ति से परस्पर विपरीत दिशा में घूर्णन गति नहीं कर पाती है और धारामापी का संकेतक शून्य विक्षेप (zero deflection) को ही प्रदर्शित करता रहता है।
प्रत्यावर्ती धारा के आधे चक्र के लिए धारा का औसत मान ज्ञात किया जा सकता है।
प्रथम आधे चक्र के लिए धारा का औसत मान-यदि प्रत्यावर्ती धारा का शिखर मान l है तो उसका तात्क्षणिक मान-
I = I0 sin ωt …. (1)
आधे चक्र के लिए धारा का औसत मान
चूँकि धारा के चुम्बकीय व रासायनिक प्रभाव धारा के औसत मान पर निर्भर करते हैं और प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान पूरे चक्र के लिए शून्य | होता है, अतः प्रत्यावर्ती धारा चुम्बकीय एवं स्थायी रासायनिक प्रभाव (magnetic and stable chemical effect) प्रदर्शित नहीं करती है। कारण | स्पष्ट है, यदि 50 Hz आवृत्ति वाली प्रत्यावर्ती धारा को वैद्युत अपघटन के लिए प्रयोग करें तो एक ही प्लेट एक सेकण्ड में 50 बार ऐनोड व 50 बार कैथोड बनेगी। फलस्वरूप कोई विद्युत्-अपघटन (electrolysis) नहीं होगा। इसी प्रकार यदि किसी कुण्डली में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित की जाये | तो उसके केन्द्र पर रखी चुम्बकीय सुई में कोई विक्षेप उत्पन्न नहीं होगा।
प्रश्न 14.
ट्रांसफार्मर में ऊर्जा हानि किन-किन कारणों से होती हैं ? इन्हें किस प्रकार कम किया जा सकता है?
उत्तर:
ट्रांसफार्मर के प्रकार (Types of Transformers)
ट्रांसफार्मर मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
(i) उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर (Step-up transformer)—यह ट्रान्सफॉर्मर निम्न विभवे वाली प्रबल प्रत्यावर्ती धारा (strong alternating current of low potential) को उच्च विभव वाली निर्बल प्रत्यावर्ती धारा (weak alternating current of high potential) में बदलने के काम आता
(ii) अपचायी ट्रान्सफॉर्मर (Step-down transformer) यह ट्रान्सफॉर्मर उच्च विभव वाली निर्बल प्रत्यावर्ती धारा (weak alternating current of high potential) को निम्न विभव वाली प्रबल प्रत्यावर्ती धारा (strong alternating current of low potential) में बदलने के काम आता | ट्रान्सफॉर्मर में ऊर्जा की हानि-ट्रान्सफॉर्मर में ऊर्जा की हानि निम्न प्रकार से सम्भव है-
(i) ताम्रिक हानि (Copper Loss)-ट्रान्सफॉर्मर की कुण्डलियों में धारा बहने पर उनके ओमीय प्रतिरोध (ohmic resistance) के कारण ऊष्मा के रूप में कुछ ऊर्जा क्षय हो जाती है; इसी ऊर्जा क्षय को ताम्रिक हानि कहते हैं। इस हानि को कम करने के लिए कुण्डलियों का प्रतिरोध कम रखने का प्रयास किया जाता है।
(ii) लौह हानि (Iron Loss) ट्रान्सफॉर्मर की क्रोड में भंवर धाराओं (eddy currents) के कारण जो ऊर्जा क्षय हो जाती है, उसे लौह हानि कहते हैं। इसी हानि को कम करने के लिए क्रोड को पटलित (laminated) बनाया जाता है।
(iii) शैथिल्य हानि (Hysteresis Loss) ट्रान्सफॉर्मर की क्रोड प्रत्यावर्ती धारा के कारण बार-बार चुम्बकित एवं विचुम्बकित (magnetised and demagnetised) होती रहती है जिससे डोमेनों के बार-बार घूर्णन से आन्तरिक घर्षण (internal friction) के कारण क्रोड गर्म हो जाती है। इसी हानि को शैथिल्य हानि कहते हैं। इस हानि को कम करने के लिए क्रोड नर्म लोहे या सिलिकॉन स्टील की बनायी जाती है।
(iv) चुम्बकीय क्षरण (Magenetic Leakage) – प्राथमिक कुण्डली में उत्पन्न चुम्बकीय फ्लक्स की कुछ क्षेत्र रेखाएँ क्रोड के बाहर वायु मार्ग से गुजर जाती हैं जिससे द्वितीयक के साथ सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स प्राथमिक की अपेक्षा कुछ कम हो जाता है। इससे ऊर्जा में होने वाली हानि को ही चुम्बकीय क्षरण (magnetic leakage) कहते हैं। इस हानि को कम करने के लिए क्रोड अधिक चुम्बकशीलता (more permeability) वाले पदार्थ की बनायी जाती है (जैसे-कच्चा लोहा, सिलिकॉन स्टील आदि)।
प्रत्यावर्ती वोल्टता के प्रेषण में ट्रान्सफॉर्मर का उपयोग (Use of Transformer in A.C. Transmission)
पावर हाउस में उत्पन्न विद्युत् ऊर्जा को तारों के माध्यम से उपभोक्ता तक पहुँचाया जाता है। यदि किसी संचरण लाइन (transmission line) का प्रतिरोध R है और उसमें I धारा बहती है, तो उसमें उत्पन्न ऊष्मा H = I2Rt होगी अर्थात् इतनी ऊर्जा की हानि होगी जो ऊष्मा के रूप में वातावरण को चली जायेगी। इस प्रकार प्रत्यावर्ती धारा को दूरस्थ स्थानों (distance places) तक भेजने में होने वाली हानि निम्न कारकों पर निर्भर करती है –
(i) तारों के प्रतिरोध R पर,
(ii) प्रवाहित धारा के वर्ग (I2) पर।
स्पष्ट है कि यदि विद्युत् ऊर्जा के स्थानान्तरण में होने वाली हानि हमें कम करनी है, तो
(i) तारों के प्रतिरोध को यथा सम्भव कम किया जाये और
(ii) धारा को यथा सम्भव कम किया जाये।
स्पष्ट है कि प्रतिरोध (R) को कम करने के लिए मोटे तार (thickwires) का उपयोग किया जाये। तार को मोटा करने की भी सीमाएँ हैं, क्योंकि तार जितना अधिक मोटा बनाया जायेगा उतना ही उसका भार अधिक होगा और उतनी ही अधिक उसकी लागत होगी, अत: दूसरे विकल्प की ओर भी ध्यान जाता है और वह है धारा को कम करके। प्रत्यावर्ती धारा के लिए यह कार्य हम उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर की सहायता से आसानी से कर सकते हैं। उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर से जितना अधिक विभवान्तर हम बढ़ा लेंगे, धारा उतनी ही कम हो जायेगी और ऊर्जा की हानि भी उतनी ही कम हो जायेगी।
पॉवर हाउस से नियत शक्ति P पर उत्पादन हो रहा है और इसका सम्प्रेषण करना है।
स्पष्ट है कि v का मान जितना अधिक होगा, I का मान उतना ही कम होगा और शक्ति हानि (power loss) भी उतनी कम होगी। इसीलिए प्रत्यावर्ती धारा को यथा सम्भव उच्च वोल्टता पर दूरस्थ स्थानों के लिए भेजा जाता है और इस कार्य में उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर हमारी सहायता करता है। गन्तव्य स्थान पर अपचायी ट्रान्सफॉर्मर की सहायता से फिर उच्च वोल्टता को मनवांछित निम्न वोल्टता (उच्च धारा) में बदल लेते हैं।
प्रश्न 15.
श्रेणी R-L परिपथ में धारा और वोल्टता के मध्य कलान्तर तथा प्रतिबाधा का व्यंजक ज्ञात करो।
उत्तर:
L-R परिपथ (L-R-Circuit)
जब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रतिरोध (R) एवं प्रेरकत्व (L) दोनों होते हैं, तो प्रतिरोध के सिरों पर प्रत्यावर्ती विभवान्तर Vp एवं प्रेरकत्व के सिरों के मध्य Vp उत्पन्न होगा। हम जानते हैं कि प्रतिरोध में प्रत्यावर्ती धारा एवं विभवान्तर समान कला में होते हैं और प्रेरकत्व में विभवान्तर धारा से कला में π/2 आगे होता है, अतः
यदि इन तीनों को सदिश आरेख पर प्रदर्शित करें तो सदिश आरेख चित्र 10.29 की भाँति प्राप्त होगा। इस आरेख से स्पष्ट है कि परिपथ का परिणामी विभवान्तर ।
चित्र 10.29
v =
∴ परिणामी विभवान्तर धारा से कला में ϕ आगे है, अतः परिणामी विभवान्तर को समीकरण
V = V0 sin (ωt + ϕ) …(8)
उक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि L-R परिपथ में कलान्तर (phase difference) ϕ का मान सदैव शून्य से अधिक परन्तु 90° से कम होगा।
चित्र 10.30 में प्रतिबाधा आरेख प्रदर्शित है।
चित्र 10.30 प्रतिबाधा आरेख
चित्र 10.31 श्रेणी R-C परिपथ में V और I के कला आरेख (फेजर) को प्रदर्शित करता है।
चित्र 10.31 श्रेणी R-C में
V और I के मध्य कला आरेख
प्रतिघात अक्ष
चित्र 10.32 प्रतिबाधा R-C परिपथ में फेजर आरेख
RBSE Class 12 Physics Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
एक प्रत्यावर्ती वोल्टता परिपथ में शुद्ध प्रेरकत्व लगा है। परिपथ में धारा का मान, कलान्तर, प्रतिघात तथा औसत व्यय ऊर्जा दर ज्ञात करो। फेजर आरेख भी बनाओ।
उत्तर:
प्रतिरोध की आवृत्ति पर निर्भरता शुद्धकीय परिपथ(Circuit contains Pure Inductor)
जब प्रत्यावर्ती धारा स्रोत से एक नगण्य प्रतिरोध वाली (L प्रेरकत्व वाली) कुण्डली जोड़ दी जाती है तो उसे केवल प्रेरकत्व वाला प्रत्यावर्ती धारा परिपथ कहते हैं। प्रत्यावर्ती धारा की दिशा एवं परिमाण समय के साथ लगातार बदलते रहते हैं; अत: कुण्डली में स्वप्रेरण के कारण एक प्रत्यावर्ती विभवान्तर (alternating potential difference) उत्पन्न हो जाता है जो आरोपित वोल्टेज का विरोध करता है जिसके कारण परिपथ में धारा कम हो जाती है अर्थात् प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रेरकत्व रुकावट डालता है। इसके द्वारा डाली गई रुकावट को प्रेरणिक प्रतिघात (Inductive reactance) कहते हैं। इसे XL से व्यक्त करते हैं।
प्रत्यावर्ती धारा स्रोत
चित्र 10.17
माना तात्कालिक आरोपित वोल्टता
V = V0 sin ωt …(1)
यदि प्रेरकत्व में तात्कालिक धारा हो तो तात्कालिक स्वप्रेरित वि. वा. बल।
e = −L di/dt … (2)
किरचॉफ के द्वितीय नियम से,
V + e = 0
धारा एवं विभवान्तर का ग्राफीय निरूपण चित्र 10.18 (a) में एवं वेक्टर निरूपण 10.18 (b) में प्रदर्शित है।
यदि प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति f हो, तो
ω = 2πf
∴ XL = ωL = 2πfL
स्पष्ट है कि XL ∝ f
अर्थात् प्रेरणिक प्रतिघात (inductive reactance) प्रत्यावर्ती धारा की । आवृत्ति के अनुक्रमानुपाती होता है। XL का आवृत्ति के साथ परिवर्तन (change of XL with frequency f) चित्र 10.19 में प्रदर्शित है।
चित्र 10.19
प्रत्यावर्ती धारा एवं दिष्ट धारा में शुद्ध प्रेरकत्व का व्यवहार (Behaviour of Pure Inductance in Case of D.C. & A.C.)
∵ प्रेरणिक प्रतिघात XL = L = 2πfL
और दिष्ट धारा के लिए f = 0
∴ XL = 0
स्पष्ट है कि दिष्ट धारा के लिए प्रेरकत्व का प्रतिघात शून्य है अर्थात् शुद्ध प्रेरकत्व (pure inductance) दिष्ट धारा के मार्ग में कोई रुकावट नहीं डालता है। परन्तु प्रत्यावर्ती धारा के लिए नियत है अतः
∴ XL = 2πfL = निश्चित
अर्थात् शुद्ध प्रेरकत्व निश्चित आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा के मार्ग में एक निश्चित रुकावट (hinderance) डालता है।
प्रेरणिक अधिकल्पित प्रवेश्यता (Inductive Susceptance) – प्रेरणिक प्रतिधात के व्युत्क्रम को प्रेरणिक अधिकल्पित प्रवेश्यता कहते हैं। और इसे SL से व्यक्त करते हैं।
∴ प्रेरणिक अधिकल्पित प्रवेश्यता
अत: वोल्टता धारा से π/2 या 90° आगे है।
चुम्बकीय फ्लक्स ϕ = LI अर्थात्
ϕ ∝ I
परिपथ में शक्ति P =VI
उपर्युक्त चारों राशियों वोल्टता, धारा, फ्लक्स तथा शक्ति को निम्न आरेख द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यहाँ धारा, वोल्टता से π/2
कला कोण पश्चगामी है।
किसी प्रेरकत्व में चुम्बकन तथा विचुम्बकन को चित्र 10.21 से समझाया जा सकता है। चित्र (अ) में प्रदर्शित कुण्डली में प्रवाहित धारा बिन्दु A से प्रवेश करती है तथा शून्य से अधिकतम मान तक बढ़ती है। इस स्थिति में चुम्बकीय फ्लक्स भी बढ़ता है अर्थात् क्रोड चुम्बकित हो जाता है। वोल्टता तथा धारा के धनात्मक होने के कारण शक्ति P भी धनात्मक होती है। अर्थात् इस स्थिति में ऊर्जा का अवशोषण होता है।
चित्र (b) में कुण्डली में T/4 से T/2 समय तक धारा कम हो रही है और T/2 समय पर क्रोड विचुम्बकित हो जाता है तथा कुल फ्लक्स शून्य हो जाता है। वोल्टता ऋणात्मक तथा धारा धनात्मक होने से इनका गुणनफल शक्ति ऋणात्मक है अर्थात् ऊर्जा स्रोत को लौटाई जाती है।
चित्र (c) में T2 से 3T/4 समय तक धारा ऋणात्मक दिशा में बढ़ रही है तो चुम्बकीय फ्लक्स भी विपरीत दिशा में बढ़ेगा। धारा और वोल्टता दोनों ऋणात्मक होने से शक्ति धनात्मक होती है। अर्थात् ऊर्जा अवशोषित होती है।
चित्र (d) में 3T/4 से T समय तक धारा कम हो रही है और T समय पर शून्य हो जाती है तथा क्रोड विचुम्बकित हो जाता है अर्थात् फ्लक्स शून्य है। वोल्टता धनात्मक और धारा ऋणात्मक होने से शक्ति ऋणात्मक है अर्थात् ऊर्जा स्रोत को लौटाई जाती है। इसीलिए एक पूर्ण चक्र में किसी प्रेरक को दी गई औसत शक्ति का मान शून्य है। विशेष तथ्य-उच्च आवृत्तियों (higher frequencies) पर, केवल तार के पृष्ठ (surface) पर ही धारा का प्रभाव होता है। अत: अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल कम हो जाने से तार का प्रतिरोध उच्च हो जाता है। इस प्रभाव को त्वाचिक प्रभाव (skin effect) कहते हैं। इस प्रभाव को कम करने के लिए AC प्रवाह वाले चालक के पतले तारों को समान्तर क्रम में उनके सिरों पर जोड़ते हैं और उसके ऊपर कुचालक की परत चढ़ देते हैं इससे पृष्ठ क्षेत्रफल बढ़ जाता है और तार का प्रतिरोध कम हो जाता है।
प्रश्न 2.
एक प्रत्यावर्ती वोल्टता R-L परिपथ पर आरोपित है। परिपथ में प्रतिबाधा, धारा के व्यंजक निगमित कीजिए तथा फेजर आरेख बनाओ।
उत्तर:
L-R परिपथ (L-R-Circuit)
जब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रतिरोध (R) एवं प्रेरकत्व (L) दोनों होते हैं, तो प्रतिरोध के सिरों पर प्रत्यावर्ती विभवान्तर Vp एवं प्रेरकत्व के सिरों के मध्य Vp उत्पन्न होगा। हम जानते हैं कि प्रतिरोध में प्रत्यावर्ती धारा एवं विभवान्तर समान कला में होते हैं और प्रेरकत्व में विभवान्तर धारा से कला में π/2 आगे होता है, अतः
यदि इन तीनों को सदिश आरेख पर प्रदर्शित करें तो सदिश आरेख चित्र 10.29 की भाँति प्राप्त होगा। इस आरेख से स्पष्ट है कि परिपथ का परिणामी विभवान्तर ।
चित्र 10.29
v =
∴ परिणामी विभवान्तर धारा से कला में ϕ आगे है, अतः परिणामी विभवान्तर को समीकरण
V = Vo sin (ωt + ϕ) …(8)
उक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि L-R परिपथ में कलान्तर (phase difference) ϕ का मान सदैव शून्य से अधिक परन्तु 90° से कम होगा।
चित्र 10.30 में प्रतिबाधा आरेख प्रदर्शित है।
चित्र 10.30 प्रतिबाधा आरेख
चित्र 10.31 श्रेणी R-C परिपथ में V और I के कला आरेख (फेजर) को प्रदर्शित करता है।
चित्र 10.31 श्रेणी R-C में
V और I के मध्य कला आरेख
प्रतिघात अक्ष
चित्र 10.32 प्रतिबाधा R-C परिपथ में फेजर आरेख
प्रश्न 3.
अनुनादी परिपथ से क्या तात्पर्य है? श्रेणी LCR अनुनादी परिपथ के लिए आवश्यक प्रतिबन्ध बताइए तथा अनुनादी आवृत्ति का व्यंजक स्थापित करो। इस परिपथ का कहाँ उपयोग होता है।
उत्तर:
श्रेणी L-CR अनुनादी परिपथ (Series L-C-R Resonance Circuit)
(i) श्रेणी अनुनादी परिपथ (Series Resonant Circuit) – श्रेणी अनुनादी परिपथ में प्रेरकत्व (L), संधारित्र (C) तथा प्रतिरोध (R) तीनों श्रेणी क्रम में एक प्रत्यावर्ती धारा स्रोत से जोड़ दिये जाते हैं (चित्र 10.46) । इस परिपथ की प्रतिबाधा
चित्र 10.46
जो कि प्रतिबाधा का न्यूनतम मान (minimum value) है, अतः परिपथ में प्रवाहित धारा (i = V/Z) का मान अधिकतम होगा। L-C-R परिपथ में यह अनुनाद की स्थिति है। जिस आवृत्ति पर परिपथ में धारा अधिकतम मिलती है; उसे अनुनादी आवृत्ति (resonant frequency) कहते हैं। इस प्रकार, “श्रेणीबद्ध (series) L-C-R परिपथ के लिए निश्चित प्रत्यावर्ती विभवान्तर की वह आवृत्ति जिसके लिए परिपथ में प्रवाहित धारा अधिकतम होती है, परिपथ की अनुनादी आवृत्ति (resonant frequency) कहलाती है। इसे f0 से व्यक्त करते हैं।
अनुनाद की स्थिति में,
“अनुनाद की स्थिति में धारा एवं विभवान्तर समान कला (same phase) में होते हैं।”
इस अवस्था में श्रेणी L-C-R परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टता तथा धारा के फेजर आरेख चित्र 10.48 तथा प्रतिबाधा आरेख चित्र 10.47 में प्रदर्शित है |
चित्र 10.48 अनुनादी LCR परिपथ का फेजर आरेख
अनुनाद वक़ (Resonance Curve) – अनुनाद की स्थिति में XL = XC होता है, तो परिपथ में बहने वाली धारा I अधिकतम होती है और जिस आवृत्ति पर यह स्थिति मिलती है, वह अनुनादी आवृत्ति fr होती है।
अत: धारा I = v/Z को मान अनुनादी धारा (resonant current) से कम होगा। चाहे XL > XC हो अथवा XL < XC हो Z > R ही मिलेगा। इसी प्रकार आवृत्ति f का मान चाहे fr से अधिक हो अथवा कम हो, धारा का मान अनुनादी धारा से कम ही मिलेगा। f का मान fr से जितना दूर होगा, प्रतिबाधा उतनी ही अधिक होगी और फलस्वरूप धारा का मान उतना ही कम होगा। धारा का आवृत्ति के साथ परिवर्तन चित्र 10.49 में प्रदर्शित है। इसी वक्र को अनुनाद वक़ कहते हैं।
वैद्युत अनुनाद की ध्वनि अनुनाद से तुलना-वैद्युत अनुनाद की तुलना ध्वनि अनुनाद (sound resonance) से कर सकते हैं। जब प्रणोदित दोलन (forced oscillations) कर रही वस्तु के प्रणोदित दोलनों की आवृत्ति उसकी स्वाभाविक आवृत्ति (natural frequency) के बराबर हो जाती है तो वस्तु का कम्पन-आयाम (vibration amplitude) काफी बढ़ जाता है और वस्तु से महत्तम तीव्रता (maximum intensity) की ध्वनि उत्पन्न होने लगती है। इस घटना को ध्वनि अनुनाद (acoustic resonance) कहते हैं। यदि प्रणोदित दोलनों की आवृत्ति स्वाभाविक आवृत्ति से कम या अधिक है तो ध्वनि की तीव्रता कम हो जाती हैं। इसी प्रकार जब L-C-R परिपथ की अनुनादी आवृत्ति के बराबर आवृत्ति का वि. वा. बल आरोपित किया जाता है, तो परिपथ में बहने वाली धारा अधिकतम हो जाती है, यह घटना वैद्युत-अनुनाद (electric resonance) कहलाती है। और वह विशिष्ट आवृत्ति ‘अनुनादी आवृत्ति’ कहलाती है।
स्पष्ट है कि यदि किसी परिपथ पर विभिन्न आवृत्तियों के अनेक प्रत्यावर्ती वि. वा. बल आरोपित किये जायें तो अनुनादी आवृत्ति के बराबर आवृत्ति वाले वि. वा. बल के लिए परिपथ में बहने वाली धारा अधिकतम होगी। वैद्युत अनुनाद के इस गुण का उपयोग अनेक भिन्न आवृत्तियों वाले वि. वा. बलों में से किसी आवृत्ति विशेष के विद्युत् वाहक बल को छाँटने (select) के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, श्रेणी अनुनादी परिपथ का उपयोग रेडियोग्राही (radio receiver) में किया जाता है। रेडियो में एक श्रेणी L-C-R परिपथ होता है जो एण्टिना से जुड़ा होता है। विभिन्न प्रसारण स्टेशनों से आने वाली तरंगें इस परिपथ पर विभिन्न आवृत्तियों के विभवान्तर आरोपित करती हैं। ट्यूनर की घुण्डी घुमाकर परिवर्ती संधारित्र की धारिता का मान इस प्रकार समायोजित करते हैं कि L-C-R परिपथ किसी एक स्टेशन की आवृत्ति के साथ अनुनादित हो जाये तब उस आवृत्ति के संगत धारा का मान बहुत बढ़ जाता है। अन्य आवृत्तियों की संगत धाराएँ बहुत क्षीण रहती हैं, अत: हमें केवल उसी स्टेशन से प्रसारित कार्यक्रम सुनाई देता है। किसी वांछित आवृत्ति के वैद्युत दोलनों को इँटने (select) की इस क्रिया को सम-स्वरण (tuning) कहते हैं। अतः L-C-R परिपथ को सम-स्वरण परिपथ (tuning circuit) भी कहते हैं।
प्रश्न 4.
श्रेणी L-C-R परिपथ के लिए आवृत्ति एवं धारा के मध्य सम्बन्ध को ग्राफ द्वारा प्रदर्शित करो। अर्द्धशक्ति बिन्दु आवृत्तियों को दर्शाते हुए बैण्ड चौड़ाई के लिए आवश्यक सूत्र स्थापित करो।
उत्तर:
श्रेणी अनुनादी परिपथ में अर्द्धशक्ति बिन्दु आवृत्ति कैड चौड़ाई तथा विशेषता गुणांक (Half PowerPoint Frequencies, Band Width and Quality Factor of a Series Resonance Circuit)
अर्द्ध शक्ति बिन्दु या आवृत्तियाँ (Half Power Frequencies) L-C-R परिपथ में यदि अनुनादी आवृत्ति (f) के प्रत्येक ओर आवृत्ति के मान में थोड़ा-सा भी परिवर्तन करने पर धारा के मान में अत्यधिक कमी हो जाये, तो अनुनाद तीक्ष्ण (sharp) कहलाता है। अनुनाद की तीक्ष्णता (sharpness of resonance) को एक विमाहीन राशि (dimensionless quantity) से व्यक्त करते हैं जिसे Q-गुणक (Quality factor अथवा Q-Factor) कहते हैं।
चित्र 10.53
L-C-R परिपथ की अनुनादी आवृत्ति और उसके दोनों ओर की उन दो आवृत्तियों जिनके संगत धारा का आयाम अनुनादी धारा के आयाम का 1/√2 गुना होता है, के अन्तर के अनुपात को उस परिपथ का Q-गुणक कहते हैं। इसे Q से प्रदर्शित करते हैं। तथा परिपथ की शक्ति आधी रह जाती है इन्हें अर्द्धशक्ति बिन्दु या आवृत्तियाँ कहते है।
बैण्ड चौड़ाई (Band Width) – अर्द्ध शक्ति आवृत्तियों के मध्य आवृत्ति अंतराल में LCR श्रेणी परिपथ स्रोत से अधिक ऊर्जा ग्रहण करने में समर्थ होता है। अर्द्ध शक्ति आवृत्तियों के मध्य आवृत्ति अंतराल को परिपथ की बैण्ड चौड़ाई कहते हैं। अर्थात्
बैण्ड चौड़ाई = f2 – f1
अर्द्ध शक्ति आवृत्तियों f1, और हैं f2, पर-
प्रश्न 5.
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में शक्ति का सूत्र स्थापित करो। प्रतिघात रहित एवं प्रतिरोध रहित परिपथ के लिए उपयुक्त सूत्र में क्या परिवर्तन होता है? शक्ति गुणांक को भी परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
परिपथ का शक्ति गुणांक (Power Factor of Circuit) दिष्ट धारा परिपथ में व्यय सामर्थ्य (power) का मान परिपथ के विभवान्तर एवं धारा के गुणनफल (P = V.I) से प्राप्त होता है, परन्तु प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में व्यय सामर्थ्य का मान विभवान्तर एवं धारा के वर्ग माध्य मूल मान के गुणनफल में एक और गुणक ‘cos ϕ’ का गुणा करने पर (P = VrmsIrms. cos ϕ) प्राप्त होता है। इसी गुणक को परिपथ का ‘शक्ति गुणांक’ (power factor) कहते हैं।
अतः शक्ति गुणांक = cos ϕ =
यदि प्रत्यावर्ती धारा परिपथ का प्रतिरोध R एवं प्रतिघात x है, तो
स्पष्ट है कि शक्ति गुणांक (power factor) का मान परिपथ के प्रतिरोध एवं प्रतिबाधा के अनुपात के बराबर होता है। | परिपथ को शक्ति गुणांक एक महत्त्वपूर्ण राशि है। प्रत्यावर्ती धारा परिपथों में मोटर, पंखे, चोक, ट्रान्सफॉर्मर आदि ऐसे अनेक उपकरण हैं। जिनमें कुण्डलित तार (spiral wiring) होते हैं। इन कुण्डलित तारों के कारण परिपथ का प्रेरणिक प्रतिघात बढ़ता है और प्रतिघात X का मान बढ़ने से धारा एवं विभवान्तर के मध्य कलान्तर $ बढ़ता है, फलस्वरूप cos ) का मान कम हो जाता है। यह परिपथ का एक दोष (shortcoming) है। क्योंकि शक्ति गुणांक कम होने से परिपथ में कम शक्ति से कार्य होगा अर्थात् विद्युत् धारा की ऊर्जा का कम उपयोग होगा। दूसरे शब्दों में, कहा जा सकता है कि निश्चित शक्ति प्राप्त करने के लिए दिष्ट धारा परिपथ में जितनी धारा या विभवान्तर की आवश्यकता होती हैं, प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में शक्ति गुणांक कम होने से उतनी ही शक्ति के लिए उतनी ही अधिक धारा या विभवान्तर की आवश्यकता होगी।
RBSE Class 12 Physics Chapter 10 आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
किसी प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टता V= 50 sin (157t + ϕ) v है तो ज्ञात कीजिए
(अ) प्रत्यावर्ती वोल्टता का वर्ग माध्य मूल मान
(ब) प्रत्यावर्ती वोल्टता की आवृत्ति ।
हल :
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टता-
V= 50 sin (15t + ϕ) V को समीकरण V= Vo sin (ωt + ϕ) से तुलना करने पर-
प्रश्न 2.
किस समय t पर ज्यावक्रीय प्रत्यावर्ती धारा का मान अपने शिखर मान का (i) आधा (ii) √3/2 गुना होगा ?
हल :
ज्यावक्रीय प्रत्यावर्ती धारा का तात्क्षणिक मान-
प्रश्न 3.
10Ω का एक प्रतिरोध तथा 100mH का एक प्रेरकत्व श्रेणी क्रम में एक प्रत्यावर्ती वोल्टता स्रोत V = 100 cos 100t से जुड़े हैं। परिपथ में प्रवाहित धारा और वोल्टता के मध्य कलान्तर ज्ञात करो।
उत्तर:
प्रतिरोध (R) = 10Ω
तथा प्रेरकत्व (L) = 100 mH
वोल्टता स्रोत (V)= Vo cos = 100t से तुलना करने पर
प्रश्न 4.
1kHz आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा के लिए 100 mH के प्रेरकत्व का प्रतिघात ज्ञात करो। यदि स्रोत की वोल्टता 6.28V हो तो प्रेरकत्व में धारा का मान ज्ञात करो।
हल :
प्रश्न 5.
एक कुण्डली का प्रेरकत्व 1 हेनरी है।
(i) किस आवृत्ति पर इसका प्रतिघात 3140Ω होगा ?
(ii) एक संधारित्र की धारिता क्या होनी चाहिए कि उसी आवृत्ति पर उसका प्रतिघात उतना ही रहे?
हल :
प्रेरकत्व (L) = 1 हेनरी
प्रतिघात (XL) = 2πvL
XL =3140Ω
प्रश्न 6.
एक 120H का संधारित्र 50Hz के स्रोत से जुड़ा है। इसके धारितीय प्रतिघात को मान ज्ञात करो। यदि प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति 5MHz कर दी जाए तो प्रतिघात में क्या परिवर्तन होगा ?
हल :
प्रश्न 7.
एक कुण्डली का प्रतिरोध R = 10Ω तथा प्रेरकत्व L = 0.4H है। इसे 6.5v, 30/π Hz के प्रत्यावर्ती धारा स्रोत से जोड़ते हैं। परिपथ में औसत शक्ति व्यय ज्ञात करो।
हल :
कुण्डली का प्रतिरोध (R)= 10Ω
प्रेरकत्व (L) = 0.4H
स्रोत की वोल्टता (V) = 6.5V
आवृत्ति (v) = =30/π H
परिपथ का प्रतिघात (XL) = ωL = 2πvL
प्रश्न 8.
एक 60V तथा 10W का बल्बे 100v के प्रत्यावर्ती स्रोत से जुड़ी है। इसके श्रेणीक्रम में एक प्रेरक कुण्डली जुड़ी है। यदि बल्ब पूर्ण तीव्रता से प्रकाशित होता है तो कुण्डली के प्रेरकत्व का मान ज्ञात करो। (f = 60Hz)
हल :
बल्ब पर अंकित वोल्टता (V) = 60 वोल्टता
बल्ब की शक्ति (P) = 10 watt
प्रश्न 9.
Vrms = 120V तथा f = 60Hz का एक प्रत्यावर्ती स्रोत L = 200mH, C = 40 F तथा R = 20Ω के श्रेणी परिपथ से जुड़ी है। निम्न राशियों के मान ज्ञात करो-
(i) कुल प्रतिघात
(ii) प्रतिबाधा
(iii) शक्ति गुणांक
(iv) औसत शक्ति ।
हल :
प्रश्न 10.
एक प्रेरकत्व, संधारित्र और प्रतिरोध श्रेणीक्रम में जुड़े हैं। यदि L = 0.1 H, C = 20 F, R= 10Ω हो तो किस आवृत्ति पर परिपथ अनुनादित होगा?
हल :
परिपथ में प्रेरकत्व (L) = 0.1H
संधारित्र की धारिता (C) = 20µF
प्रतिरोध (R) = 10Ω
अनुनाद की स्थिति में-
प्रश्न 11.
किसी LCR परिपथ में 10mH का प्रेरकत्व 3Ω का प्रतिरोध तथा 1F की धारिता श्रेणीक्रम में 15 cos ωt V के स्रोत से जुड़े हैं। अनुनादी आवृत्ति से 10% कम आवृत्ति पर धारा का शिखरे मान ज्ञात करो।
हल :
परिपथ में प्रेरकत्व (L) = 10mH = 10 × 10-3H
परिपथ का प्रतिरोध (R) = 3Ω
परिपथ में संधारित्र की धारिता (C) = 1µF = 10-6F
परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टता (V) = 15 cos ωt V
समीकरण V = Vo cos ωt से तुलना करने पर-
V0 = 15 वोल्ट
प्रश्न 12.
एक प्रेरकत्व L= 200 mH, C = 500 HF, R = 100Ω श्रेणीक्रम में 100V के प्रत्यावर्ती स्रोत से जुड़े हैं। ज्ञात करो-
(i) वह आवृत्ति जिस पर परिपथ को शक्ति गुणांक 1 हो
(ii) इस आवृत्ति पर धारा का शिखर मान
(iii) विशेषता गुणांक
हल :
प्रेरकत्व (L) = 200mH = 200 × 10-3
संधारित्र की धारिता (C) = 500µH = 500 × 10 – 6F
प्रतिरोध (R) = 100Ω परिपथ में प्रत्यावर्ती स्रोत की वोल्टता (V)= 100V
(i) आवृत्ति जब शक्ति गुणांक 1 हो तो स्थिति अनुनाद की होती है।
प्रश्न 13.
एक कुण्डली का शक्ति गुणांक 60 Hz आवृत्ति पर 0.707 है, यदि आवृत्ति 120 Hz हो जाए तो शक्ति गुणांक क्या होगा?
हल :
कुण्डली का शक्ति गुणांक (cos ϕ) = 0.707
आवृत्ति (v1) = 60 Hz
आवृत्ति (v2) = 120 Hz
प्रश्न 14.
एक श्रेणी LCR परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टता 230V का स्रोत जुड़ा है। यदि L = 5H, C = 80 HeF, R= 40Ω है तो
(i) अनुनादी आवृत्ति
(ii) परिपथ की प्रतिबाधा और अनुनादी आवृत्ति पर धारा का शिखर मान
(iii) परिपथ के तीनों अवयवों के सिरों पर वोल्टता के वर्ग माध्य मूल मान ज्ञात कीजिए।
हलः
प्रत्यावर्ती वोल्टता (V) = 230V
प्रेरकत्व (L) = 5H
संधारित्र की धारिता (C) = 80µF = 80 × 10-6F
प्रतिरोध (R) =40Ω
(i) अनुनादी आवृत्ति-
प्रश्न 15.
एक अपचायी ट्रांसफार्मर 2200v को 220V में परिवर्तित करता है। इसकी प्राथमिक कुण्डली में 5000 फेरे हैं। यदि ट्रांसफार्मर की दक्षता 80% तथा निर्गत शक्ति 8kw है तो ज्ञात करो-
(i) Ns
(ii) Ip
(iii) Is
(iv) निवेशी शक्ति ।
हल :
प्राथमिक कुण्डली में वोल्टता (Ep) = 2200V
द्वितीय कुण्डली में वोल्टता (Es) = 220V
प्राथमिक कुण्डली में फेरे (Np) = 5000
ट्रांसफार्मर की दक्षता (η) = 80%
निर्गत शक्ति (Pout) = 8kw