RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 किरण प्रकाशिकी
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 किरण प्रकाशिकी
Rajasthan Board RBSE Class 11 Physics Chapter 11 किरण प्रकाशिकी
RBSE Class 12 Physics Chapter 11 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 12 Physics Chapter 11 बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
गोलीय दर्पणों से प्रतिबिम्ब बनने में केवल पर अक्षीय किरणों पर ही विचार कर सकते हैं, क्योंकि-
(अ) इन्हें ज्यामितीय रूप से काम में लेना आसान होता है।
(ब) इनमें आपतित प्रकाश की अधिकांश तीव्रता निहित होती है।
(स) ये बिन्दु स्रोत का लगभग बिन्दु प्रतिबिम्ब बनाती है।
(द) ये न्यूनतम विक्षेपण दर्शाती है।
उत्तर:
(स) ये बिन्दु स्रोत का लगभग बिन्दु प्रतिबिम्ब बनाती है।
प्रश्न 2.
एक 20 cm फोकस दूरी के अवतल दर्पण से 30 cm की दूरी पर बिम्ब रखा है तो प्रतिबिम्ब की प्रकृति एवं आवर्धन होगा-
(अ) वास्तविक और – 2
(ब) आभासी और – 2
(स) वास्तविक और + 2
(द) आभासी और + 2
उत्तर:
(अ) वास्तविक और – 2
प्रश्न 3.
अवरक्त किरणों के लिए अपवर्तनांक का मान रहता है-
(अ) पराबैंगनी किरणों के समान
(ब) लाल वर्ण की किरणों के समान
(स) पराबैंगनी किरणों से कम
(द) पराबैंगनी किरणों से अधिक।
उत्तर:
(ब) लाल वर्ण की किरणों के समान
प्रश्न 4.
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन होता है यदि
(अ) प्रकाश, प्रकाशीय विरल माध्यम से प्रकाशीय सघन माध्यम में प्रवेश करता है।
(ब) प्रकाश, प्रकाशीय सघन माध्यम से प्रकाशीय विरल माध्यम में प्रवेश करता है।
(स) दोनों माध्यमों के अपवर्तनांक लगभग समीप हों
(द) दोनों माध्यमों के अपवर्तनांक बिल्कुल भिन्न हो।
उत्तर:
(ब) प्रकाश, प्रकाशीय सघन माध्यम से प्रकाशीय विरल माध्यम में प्रवेश करता है।
प्रश्न 5.
जब एक बिम्ब अवसारी लेन्स से 20 cm दूर रखते हैं तो छोटा बनता है। निम्न में से कौन-सा कथन अवश्य सही होगा-
(अ) प्रतिबिम्ब उल्टा है।
(ब) प्रतिबिम्ब वास्तविक हो सकता है।
(स) प्रतिबिम्ब की दूरी 20 cm से अधिक होनी चाहिए।
(द) लेन्स की फोकस दूरी 20 cm से कम हो सकती है।
उत्तर:
(द) लेन्स की फोकस दूरी 20 cm से कम हो सकती है।
प्रश्न 6.
+ 6D शक्ति वाला एक उत्तल लेन्स – 4D शक्ति वाले अवतल लेन्स के सम्पर्क में रखते हैं तो संयुक्त लेन्स की फोकस दूरी एवं प्रकृति क्या होगी-
(अ) अवतल, 25 cm
(ब) उत्तल, 50 cm
(स) अवतल, 20 cm
(द) उत्तल, 100 cm
उत्तर:
(ब) उत्तल, 50 cm
प्रश्न 7.
एक समबाहु प्रिज्म (काँच के) में से एक प्रकाश किरण इस प्रकार गुजरती है कि उसका आपतन कोण एवं निर्गत कोण बराबर होता है। तथा यह प्रत्येक कोण प्रिज्म कोण का 3/4 है तो विचलन कोण होगा-
(अ) 45°
(ब) 70°
(स) 39°
(द) 30°.
उत्तर:
(द) 30°.
प्रश्न 8.
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक लेन्स बना प्रतिबिम्ब होगा-
(अ) आभासी व बड़ा
(ब) आभासी और छोटा ।
(स) वास्तविक और बिन्दु रूप
(द) वास्तविक और बड़ा।
उत्तर:
(द) वास्तविक और बड़ा।
प्रश्न 9.
1.47 अपवर्तनांक के काँच के किसी उभयोत्तल लेन्स को किसी द्रव में डुबोया जाता है तो यह एक समतल शीट (परत) की भाँति व्यवहार करता है। इसका तात्पर्य यह है कि इस द्रव का अपवर्तनांक है।
(अ) काँच के अपवर्तनांक से अधिक
(ब) काँच के अपवर्तनांक से कम ।
(स) काँच के अपवर्तनांक के बराबर
(द) एक से कम।।
उत्तर:
(स) काँच के अपवर्तनांक के बराबर
प्रश्न 10.
किसी प्रिज्म के न्यूनतम विचलन कोण का मान उसके अपवर्तनांक कोण के बराबर होगा यदि प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक हो-
(अ) √2 और 2 के बीच
(ब) 1 से कम
(स) 2 से अधिक
(द) √2 और 1 के मध्य।
उत्तर:
(अ) √2 और 2 के बीच
प्रश्न 11.
किसी समतल दर्पण पर प्रकाश की कोई किरण अभिलम्बवत् आपतित होती है, परावर्तन कोण का मान होगा-
(अ) 90°
(ब) 180°
(स) 0°
(द) 45°.
उत्तर:
(स) 0°
प्रश्न 12.
एक अवतल दर्पण की फोकस दूरी 20 cm है। दर्पण के सामने 20 cm दूरी पर वस्तु रखने पर उसका प्रतिबिम्ब बनेगा-
(अ) 2f पर
(ब) f पर
(स) 0 पर
(द) ∞ पर।
उत्तर:
(द) ∞ पर।
प्रश्न 13.
पृथ्वी पर स्थित प्रेक्षक को तारे टिमटिमाते हुए प्रतीत होते हैं। इसका कारण है-
(अ) यह सत्य है कि तारे निरन्तर प्रकाश उत्सर्जित नहीं करते।
(ब) तारे के प्रकाश का इनके अपने वायुमण्डल द्वारा आवृत्ति अवशोषण
(स) तारे के प्रकाश का पृथ्वी के वायुमण्डल द्वारा आवृत्ति अवशोषण
(द) पृथ्वी के वायुमण्डल में अपवर्तनांक घटना-बढ़ना।
उत्तर:
(द) पृथ्वी के वायुमण्डल में अपवर्तनांक घटना-बढ़ना।
प्रश्न 14.
किसी प्रिज्म से यदि पीला प्रकाश न्यूनतम विचलन कोण पर अपवर्तित होता है तब-
(अ) आपतन कोण तथा निर्गमन कोण बराबर होते हैं।
(ब) आपतन कोण तथा निर्गमन कोण का योग 90° होता है।
(स) आपतन कोण, निर्गमन कोण की अपेक्षा छोटा होता है।
(द) आपतन कोण, निर्गमन कोण की अपेक्षा बड़ा होता है।
उत्तर:
(अ) आपतन कोण तथा निर्गमन कोण बराबर होते हैं।
प्रश्न 15.
स्वस्थ नेत्र के लिए स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी तथा अधिकतम दूरी होती है-
(अ) 25 cm तथा 100 cm
(ब) 25 cm तथा अनन्त दूरी
(स) 100 cm तथा अनन्त दूरी
(द) शून्य तथा शून्य से अनन्त दूरी।
उत्तर:
(ब) 25 cm तथा अनन्त दूरी
प्रश्न 16.
एक साधारण खगोलीय दूरदर्शी की लम्बाई होती है-
(अ) दो लेन्सों की फोकस दूरी में अन्तर के बराबर ।
(ब) फोकस दूरियों के योग की आधी
(स) फोकस दूरियों के योग के बराबर
(द) फोकस दूरियों के गुणनफल के बराबर।
उत्तर:
(स) फोकस दूरियों के योग के बराबर
प्रश्न 17.
वस्तु से बड़े आकार का काल्पनिक प्रतिबिम्ब बनाया जा सकता है-
(अ) उत्तल दर्पण द्वारा
(ब) अवतल दर्पण द्वारा
(स) समतल दर्पण द्वारा
(द) अवतल लेन्स द्वारा।
उत्तर:
(ब) अवतल दर्पण द्वारा
प्रश्न 18.
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में अन्तिम प्रतिबिम्ब बनता है
(अ) वास्तविक एवं सीधा
(ब) आभासी एवं उल्टा
(स) आभासी एवं सीधा
(द) वास्तविक एवं उल्टा।
उत्तर:
(ब) आभासी एवं उल्टा
प्रश्न 19.
परावर्तक दूरदर्शी में अभिदृश्यक के रूप में प्रयोग किया जाता है-
(अ) उत्तल लेन्स ।
(ब) उत्तल दर्पण
(स) प्रिज्म
(द) अवतल दर्पण।
उत्तर:
(द) अवतल दर्पण।
प्रश्न 20.
एक खगोलीय दूरदर्शी के अभिदृश्यक और अभिनेत्र लेन्स की क्षमता 5 एवं 20 डायोप्टर है। इनमें प्रतिबिम्ब अनन्त पर बनता है। दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता होगी-
(अ) 4
(ब) 2
(स) 100
(द) 0.25.
उत्तर:
(अ) 4
प्रश्न 21.
उत्तल लेन्स की शक्ति होती है-
(अ) ऋणात्मक
(ब) धनात्मक
(स) शून्य
(द) काल्पनिक।
उत्तर:
(ब) धनात्मक
RBSE Class 12 Physics Chapter 11 अति लघूत्तरात्गक प्रश्न
प्रश्न 1.
एक समतल दर्पण की फोकस दूरी कितनी होती है ?
उत्तर:
अनन्त।
प्रश्न 2.
किस लेन्स का आवर्धन सदैव 1 से कम होता है ?
उत्तर:
अवतल लेन्स में प्रतिबिम्बे सदैव सीधा एवं वस्तु से छोटा होत है अत: अवतल लेन्स का आवर्धन सदैव 1 से कम होता है।
प्रश्न 3.
प्रकाश के अपवर्तन का कारण बताइये।
उत्तर:
प्रकाश के अपवर्तन का कारण है प्रकाश की चाल का विभिन्न माध्यमों में भिन्न-भिन्न होता है।
प्रश्न 4.
रेगिस्तानी क्षेत्रों में गर्मी के दिनों में मरीचिका दिखाई देने का कारण क्या होता है ?
उत्तर:
गर्मी के दिनों रेगिस्तानी क्षेत्रों में वायु का घनत्व पृथ्वी सतह से ऊपर जाने पर क्रमश: बढ़ता है अतः किसी पेड़ की चोटी से चलने वाली किरणों के ‘पूर्ण आन्तरिक परिवर्तन’ के कारण पेड़ का प्रतिबिम्ब बन जाता है। यही मरीचिका का कारण है।
प्रश्न 5.
समान आपतन कोण के लिए तीन माध्यमों A, B व C में अपवर्तन कोण क्रमशः 15°, 25° व 35° हैं। किस माध्यम में प्रकाश का वेग न्यूनतम होगा ?
उत्तर:
माध्यम का अपवर्तनांक
अर्थात् माध्यम A में प्रकाश का वेग न्यूनतम होगा।
प्रश्न 6.
उस सिद्धान्त का नाम लिखिए जिस पर प्रकाशिक तन्तु कार्य करता है।
उत्तर:
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन ।
प्रश्न 7.
प्रिज्म की न्यूनतम विचलन की स्थिति में आपतन कोण तथा निर्गमन कोण में क्या सम्बन्ध होता है ?
उत्तर:
न्यूनतम विचलन की दशा में,
आपतन कोण (Li) = निर्गत कोण (Le)
प्रश्न 8.
एक अभिसारी लेन्स एक अपसारी लेन्स के साथ समाक्षतः सम्पर्क में है। दोनों की फोकस दूरियाँ समान हैं। संयोजन की फोकस दूरी क्या है ?
उत्तर:
प्रश्न 9.
सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य के लाल दिखाई देने का क्या कारण है ?
उत्तर:
‘प्रकीर्णन’ के कारण सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य हमें लाल दिखाई देता है।
प्रश्न 10.
इन्द्र धनुष दिखाई देने का क्या कारण है ?
उत्तर:
जल की बूंदों द्वारा सूर्य के प्रकाश का ‘विक्षेपण’ ही इन्द्रधनुष का कारण है।
प्रश्न 11.
निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) क्या है ? इसके संशोधन के लिए कैसा लेन्स प्रयुक्त किया जाता है ?
उत्तर:
जब हमारी आँख को निकट की वस्तुएँ तो दिखाई देती हैं। परन्तु दूर की नहीं, तो इस दोष को निकट दृष्टि दोष कहते हैं। इसके निवारण के लिए ‘अवतल लेन्स’ का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 12.
प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता किस पर निर्भर करती हैं ?
उत्तर:
रैले के अनुसार प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता
अतः तीव्रता ‘तरंगदैर्घ्य’ पर निर्भर करती हैं।
प्रश्न 13.
सरल सूक्ष्मदर्शी में कैसा लेन्स प्रयुक्त करते हैं ?
उत्तर:
उत्तल लेन्स ।
प्रश्न 14.
केवल देखकर आप एक यौगिक सूक्ष्मदर्शी एवं दूरदर्शी में अन्तर कैसे ज्ञात करेंगे ?
उत्तर:
यौगिक सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक का द्वारक अभिनेत्र लेन्स की अपेक्षा छोटा होता है जबकि दूरदर्शी के अभिदृश्यक का द्वारक नेत्रिका के द्वारक से बड़ा होता है।
RBSE Class 12 Physics Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
एक वस्तु AB एक अवतल दर्पण के सम्मुख रखी है। जैसाकि संलग्न चित्र (A) में दिखाया गया है।
(i) वस्तु के प्रतिबिम्ब निर्माण को दर्शाने वाला किरण आरेख पूर्ण कीजिए।
(ii) प्रतिबिम्ब की स्थिति तथा तीव्रता किस प्रकार प्रभावित होगी। यदि दर्पण की परावर्तक सतह निचला अर्द्ध भाग काला रंग दिया जाए ?
उत्तर:
(i) प्रतिबिम्ब का निर्माण चित्र (B) में प्रदर्शित किरण आरेख के अनुसार होता है-
(ii) दर्पण का निचला आधा भाग काला कर देने पर प्रतिबिम्ब की पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा परन्तु प्रतिबिम्ब की तीव्रता पहले से आधी रह जायेगी क्योंकि अब केवल दर्पण के अर्द्ध भाग से परावर्तित होकर प्रतिबिम्ब बनायेंगी।
प्रश्न 2.
गोलीय दर्पण के उपयोग लिखिए।
उत्तर:
(A) उत्तल दर्पण के उपयोग (Uses of Convex Mirror)
- मोटर कारों में पश्च दृश्य दर्पण की भाँति (As Rear View Mirror in Motor Cars) – चूँकि उत्तल दर्पण में वस्तु का छोटा व सीधा प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे बनता है और इसका दृष्टि क्षेत्र बहुत अधिक होता है। अतः इसका उपयोग मोटर गाड़ियों में पीछे के दृश्य को देखने के लिए ड्राइवर के आगे पाश्र्व दृश्य दर्पण के रूप में किया जाता है।
- स्ट्रीट लैम्पों में परावर्तक के रूप में (As a Reflector in Street Lamps) – उत्तल दर्पण पर आपतित प्रकाश परावर्तित होकर अवसरित हो जाता है। अत: स्ट्रीट लैम्पों में इसका उपयोग परावर्तक के रूप में किया जाता है ताकि लैम्प का प्रकाश दूर तक फैल सके।
(B) अवतल दर्पण के उपयोग (Uses of Concave Mirror)
(i) हजामती दर्पण के रूप में (As a Shaving Mirror) – जब अवतल दर्पण के सामने कोई वस्तु दर्पण के ध्रुव एवं फोकस के मध्य रखी होती है तो उसका सीधा, बड़ा एवं काल्पनिक प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे बनता है। इसी गुण का लाभ उठाकर अवतल दर्पण को हजामती दर्पण के रूप में प्रयोग किया जाता है।
(ii) सौर तापन युक्तियों में (In Solar Heating Devices) – चूँकि अवतल दर्पण पर आपतित समान्तर प्रकाश किरण पुंज दर्पण के फोकस पर केन्द्रित हो जाता है; अत: सौर तापन युक्तियों में वस्तुओं को गर्म करने के लिए अवतल दर्पण का उपयोग किया जाता है जिसमें गर्म की जाने वाली वस्तु दर्पण के फोकस पर रखा जाता है।
(iii) डॉक्टरों द्वारा शरीर के सूक्ष्म भागों की जाँच करने में (As Doctor’s Head Mirror) – प्रकाश स्रोत को जब अवतल दर्पण के फोकस पर रख देते हैं तो वह समान्तर किरण पुंज में बदल जाता है। अवतल दर्पण के इसी गुण का लाभ उठाकर इसका प्रयोग डॉक्टर शरीर के अत्यन्त छोटे | भागों जैसे नाक, कान, गला, दाँत आदि का परीक्षण करने के लिए प्रकाश को उस भाग पर केन्द्रित (concentric) करते हैं जिससे वे भली भाँति प्रकाशित हो जाते हैं और स्पष्ट दृष्टिगोचर (Visible) होने लगते हैं।
(iv) कार की हेड लाइड एवं टेबिल लैम्पों में परावर्तक के रूप में (As Reflector in Head Light of Cars and Table Lamps) – अवतल दर्पण के फोकस पर रखे प्रकाश स्रोत का प्रकाश दर्पण से परावर्तित होकर समान्तर किरण पुंज में बदल जाता है। इसीलिए इसका उपयोग कारों की हेड लाइट एवं टेबिल लैम्पों के परावर्तक के रूप में किया जाता है।
प्रश्न 3.
दर्पण की फोकस दूरी एवं वक्रता त्रिज्या में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
दर्पण सूत्र (Mirror Formula)
दर्पणों की फोकस दूरी (Focal Length of Mirros)
(i) उत्तल दर्पण के लिए-माना एक उत्तल दर्पण की फोकस दूरी f व वक्रता त्रिज्या R है। OA मुख्य अक्ष के समान्तर आने वाली आपतित किरण है और AS परावर्तित किरण है जो फोकस F से आती हुई एक प्रतीत होती है। AN मुख्य अक्ष पर अभिलम्ब है। परावर्तन के नियम से,
प्रश्न 4.
(i) सूर्योदय या सूर्यास्त पर सूर्य लाल क्यों प्रतीत होता है ?
(ii) किस रंग के लिए प्रिज्म का अपवर्तनांक अधिक तथा न्यूनतम होता है ?
उत्तर:
प्रकीर्णन से सम्बन्धित कुछ घटनाएँ (Some Phenomena Relating to Scattering)
(1) स्वच्छ आकाश का नीला रंग (Blue Colour of Cleaned Sky) – सूर्य से आने वाली किरणें वायुमण्डल में अपवर्तन के कारण पृथ्वी तक तिरछी पहुँचती हैं, अत: हमारी आँखों में प्रकीर्णित प्रकाश पहुँचता है।
रैले के नियमानुसार Is∝1/λ4 छोटी तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रकीर्णन अधिक होता है। बैंगनी व नीले रंग की तरंगदैर्ध्य कम होती है (a < < λ), अत: उसका प्रकीर्णन अधिक होता है और हमारी आँख तक इन रंगों के प्रकाश की तीव्रता अधिक होती हैं। चूँकि मानव नेत्र नीले रंग के लिए अधिक सुग्राही होता है। इसीलिए आसमान का रंग हमें नीला दिखायी देता है। अत्यधिक ऊँचाई पर वायुमण्डल नहीं होता है, अत: वहाँ प्रकीर्णन नहीं होता है। फलस्वरूप वहाँ आकाश का रंग काला दिखायी देता है। इसीलिए अन्तरिक्ष यात्रियों को आसमान काला दिखायी देता है।
(2) बादलों का रंग सामान्यतः सफेद दिखाई देता है (Clouds are Generally seen white) – बादलों में धूल के कण एवं जल की बूंदें होती हैं जिनको आकार प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की तुलना में काफी बड़ा होता है (a > > λ) , अतः उनसे प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं होता है। फलस्वरूप सभी रंगों का प्रकाश हमारी आँखों तक पहुँचता है, इसीलिए बादलों का रंग सफेद दिखायी देता है।
(3) खतरे के सिग्नल लाल रंग के होते हैं (Danger Signals arered in colour) – रैले के अनुसार, प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता
स्पष्ट है कि λ का मान जितना अधिक होगा, उसका प्रकीर्णन उतना ही कम होगा। चूँकि लाल रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होती है अतः इसका प्रकीर्णन सबसे कम होता है, फलस्वरूप लाल रंग काफी दूर तक दिखायी दे जाता है। इसीलिए खतरे के सिग्नल लाल रंग के बनाये जाते हैं।
(4) सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य लाल दिखाई देता है (At the time of Sun-rise and Sun-set the Sun Appears to be Reddish) – रैले के अनुसार प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता
अर्थात् छेटी तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रकीर्णन अधिक और बड़ी तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रकीर्णन बहुत कम होता है।
सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय क्षितिज से आने वाली सूर्य की किरणें वायुमण्डल में एक लम्बी दूरी तय करके हमारे पास आती हैं, अतः वायुमण्डल में छोटी तरंगदैर्ध्य का प्रकाश अधिकांशतः प्रकीर्तित हो जाता है और शेष प्रकाश में लाल रंग का बाहुल्य होता है, इसीलिए सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य हमें लाल दिखायी देता है।
प्रश्न 5.
(i) किसी पदार्थ के क्रान्तिक कोण एवं अपवर्तनांक में क्या सम्बन्ध है?
(ii) क्या क्रान्तिक कोण प्रकाश के रंग पर निर्भर करता है ? समझाइये।
उत्तर:
(i) विरल माध्यम के सापेक्ष सघन माध्यम का अपवर्तनांक
∴ अपवर्तनांक µ का मान प्रकाश के रंग पर निर्भर करता है अतः क्रान्तिक कोण का मान भी प्रकाश के रंग पर निर्भर करेगा।
प्रश्न 6.
किसी लेन्स की फोकस दूरी किन-किन कारणों पर निर्भर करती है ?
उत्तर:
लेन्स की फोकस दूरी
अतः फोकस दूरी (f) का मान निम्न कारकों पर निर्भर करता है-
- लेन्स की वक्रता त्रिज्याओं पर।
- लेन्स के पदार्थ के अपवर्तनांक पर।
- उस माध्यम के अपवर्तनांक पर जिसमें लेन्स रखा है।
प्रश्न 7.
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता कैसे बढ़ायी जा सकती है ?
उत्तर:
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की अधिक आवर्धन क्षमता के लिए f0 व fe दोनों के मान कम होने चाहिए। दृश्य क्षेत्र को बढ़ाने के लिए f0 < fe होना चाहिए।
प्रश्न 8.
प्रकाश के प्रकीर्णन से क्या अभिप्राय है ? इसका दैनिक जीवन में उपयोग बताइये ?
उत्तर:
प्रकीर्णन से सम्बन्धित कुछ घटनाएँ (Some Phenomena Relating to Scattering)
(1) स्वच्छ आकाश का नीला रंग (Blue Colour of Cleaned Sky) – सूर्य से आने वाली किरणें वायुमण्डल में अपवर्तन के कारण पृथ्वी तक तिरछी पहुँचती हैं, अत: हमारी आँखों में प्रकीर्णित प्रकाश पहुँचता है।
रैले के नियमानुसार Is∝1/λ4 छोटी तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रकीर्णन अधिक होता है। बैंगनी व नीले रंग की तरंगदैर्ध्य कम होती है (a < < λ), अत: उसका प्रकीर्णन अधिक होता है और हमारी आँख तक इन रंगों के प्रकाश की तीव्रता अधिक होती हैं। चूँकि मानव नेत्र नीले रंग के लिए अधिक सुग्राही होता है। इसीलिए आसमान का रंग हमें नीला दिखायी देता है। अत्यधिक ऊँचाई पर वायुमण्डल नहीं होता है, अत: वहाँ प्रकीर्णन नहीं होता है। फलस्वरूप वहाँ आकाश का रंग काला दिखायी देता है। इसीलिए अन्तरिक्ष यात्रियों को आसमान काला दिखायी देता है।
(2) बादलों का रंग सामान्यतः सफेद दिखाई देता है (Clouds are Generally seen white) – बादलों में धूल के कण एवं जल की बूंदें होती हैं जिनको आकार प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की तुलना में काफी बड़ा होता है (a > > λ) , अतः उनसे प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं होता है। फलस्वरूप सभी रंगों का प्रकाश हमारी आँखों तक पहुँचता है, इसीलिए बादलों का रंग सफेद दिखायी देता है।
(3) खतरे के सिग्नल लाल रंग के होते हैं (Danger Signals arered in colour) – रैले के अनुसार, प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता
स्पष्ट है कि λ का मान जितना अधिक होगा, उसका प्रकीर्णन उतना ही कम होगा। चूँकि लाल रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होती है अतः इसका प्रकीर्णन सबसे कम होता है, फलस्वरूप लाल रंग काफी दूर तक दिखायी दे जाता है। इसीलिए खतरे के सिग्नल लाल रंग के बनाये जाते हैं।
(4) सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य लाल दिखाई देता है (At the time of Sun-rise and Sun-set the Sun Appears to be Reddish) – रैले के अनुसार प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता
अर्थात् छेटी तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रकीर्णन अधिक और बड़ी तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रकीर्णन बहुत कम होता है।
सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय क्षितिज से आने वाली सूर्य की किरणें वायुमण्डल में एक लम्बी दूरी तय करके हमारे पास आती हैं, अतः वायुमण्डल में छोटी तरंगदैर्ध्य का प्रकाश अधिकांशतः प्रकीर्तित हो जाता है और शेष प्रकाश में लाल रंग का बाहुल्य होता है, इसीलिए सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य हमें लाल दिखायी देता है।
प्रश्न 9.
लेन्स की क्षमता की परिभाषा कीजिए। इसका मात्रक लिखिए। समाक्षतः सम्पर्कित दो पतले लेन्सों के लिए सम्बन्ध
उत्तर:
सम्पर्क में रखे दो पतले लेसों के संयोजब की फोकस दूरी (Focal Length of Combination of Two Thin Lenses in Contact)
माना f1 व f2 फोकस दूरियों के दो लेन्स L1 वे L2 परस्पर सम्पर्क में रखे हैं। इस संयोजन के सम्मुख u दूरी पर एक बिन्दु वस्तु O रखी है। जिसका लेन्स संयोजन द्वारा प्रतिबिम्ब I बनता है। पहले लेन्स द्वारा बना प्रतिबिम्ब I’ दूसरे लेन्स के लिए आभासी वस्तु का कार्य करता है।
प्रथम लेन्स के लिए, लेन्स-सूत्र से,
इस सूत्र की सहायता से लेस संयोजन की फोकस दूरी ज्ञात की जा सकती है।
विशेष स्थितियाँ –
(i) यदि संयोजन के दोनों लेन्स उत्तल हैं तो f1 व f2 दोनों धनात्मक होंगी, अतः F भी धनात्मक होगी अर्थात् संयोजन उत्तल लेन्स की भाँति कार्य करेगा।
(ii) यदि दोनों लेन्स L1 अवतल हैं तो f2 दोनों ऋणात्मक होंगी अतः F भी ऋणात्मक होगी अर्थात् संयोजन अवतल लेन्स की भाँति कार्य करेगा।
(iii) यदि एक लेन्स L1 उत्तल और दूसरा लेन्स L2 अवतल है तो f1 धनात्मक एवं f2 ऋणात्मक होंगी। इस स्थिति में
इस स्थिति में निम्न तीन सम्भावनाएँ हैं-
(a) यदि f2 < f1 तो (f2 – f1) का मान ऋणात्मक होगा अतः F का मान भी ऋणात्मक होगा अर्थात् संयोजन अवतल लेन्स की भाँति कार्य करेगा।
(b) यदि f2 < f1 तो (f2 – f1) का मान धनात्मक होगा अतः F का मान भी धनात्मक होगा अर्थात् संयोजन उत्तल लेन्स की भाँति कार्य करेगा |
(c) जब f2 = f1 तो (f2 – f1) = 0
अर्थात् संयोजन समतले पारदर्शी प्लेट की भाँति व्यवहार करेगा।
निष्कर्ष – यदि अवतल लेन्स की फोकस दूरी उत्तल लेन्स की फोकस दूरी से कम है तो संयोजन अवतल लेन्स की भाँति व्यवहार | करेगा और यदि अवतल लेन्स की फोकस दूरी उत्तल लेन्स की फोकस दूरी से अधिक है तो संयोजन उत्तल लेन्स की भाँति और दोनों फोकस दूरियाँ बराबर होने पर संयोजन समतल पारदर्शी प्लेट की भाँति व्यवहार करेगा।
RBSE Class 12 Physics Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
गोलीय दर्पण को परिभाषित कीजिए। इसके लिए बिम्ब की दूरी, प्रतिबिम्ब की दूरी एवं फोकस दूरी में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
गोलीय दर्पण (Spherical Mirrors)
काँच के किसी खोखले गोले से एक भाग काटकर उसके एक पृष्ठ पर पॉलिश कर दी जाये तो वह दर्पण की तरह व्यवहार करने लगता है। अर्थात् प्रकाश का परावर्तन करने लगता है। इस दर्पण को गोलीय दर्पण कहते हैं। गोलीय दर्पण निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(i) अवतल दर्पण (Concave mirror),
(ii) उत्तल दर्पण (Convex mirror)
(iii) अवतल दर्पण (Concave Mirror) – जब गोलीय भाग के उत्तल पृष्ठ (अर्थात् उभरे हुए पृष्ठ पर) पॉलिश की जाती है तो बनने वाला गोलीय दर्पण अवतल दर्पण कहलाता है [चित्र 11.4]।
गोलीय दर्पण से सम्बन्धित कुछ परिभाषाएँ (Some Definitions Related to Spherical Mirror)
(i) ध्रुव (Pole) – गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के मध्य-बिन्दु को ध्रुव कहते हैं। इसे P से व्यक्त करते हैं।
(ii) वक्रता केन्द्र (Centre of Curvature) – उस गोले का केन्द्र, जिसका भाग गोलीय दर्पण होता है, दर्पण का वक्रता केन्द्र कहलाता है। इसे C से प्रदर्शित करते हैं।
(iii) वक्रता त्रिज्या (Radius of Curvature) – जिस खोखले गोले के एक भाग को काट कर गोलीय दर्पण बनाया जाता है, उस गोले का केन्द्र वक्रता केन्द्र एवं उसकी त्रिज्या वक्रता त्रिज्या कहलाती है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि “वक्रता केन्द्र एवं ध्रुव के बीच की दूरी वक्रता त्रिज्या कहलाती है।” इसे R से व्यक्त करते हैं।
(iv) मुख्य अक्ष (Principal Axis) – दर्पण के ध्रुव एवं वक्रता केन्द्र से होकर जाने वाली रेखा मुख्य अक्ष कहलाती है। मुख्य अक्ष दर्पण पर अभिलम्बवत् होती है।
गोलीय दर्पण के वक्रता केन्द्र तथा उस पर किसी बिन्दु को मिलाने वाली रेखा को दर्पण की अक्ष कहते हैं। इस प्रकार गोलीय दर्पण के अनन्त अक्ष होते हैं। इनमें से जो अक्ष ध्रुव से होकर जाती है उसे मुख्य अक्ष कहते हैं।
(v) दर्पण का द्वारक (Aperture of Mirror) – दर्पण के संदर्भ में दर्पण का प्रकाशिक परावर्तित क्षेत्रफल वाला प्रभावी व्यास ही दर्पण का द्वारक होता है। चित्र 11.6 में MM’ दर्पण का द्वारक है।
(vi) मुख्य फोकस अथवा फोकस (Principal Focus or Focus) – मुख्य अक्ष के समान्तर आने वाली किरणें दर्पण से परावर्तन के बाद जिस बिन्दु पर मिलती हैं (अवतल दर्पण के लिए) अथवा जिस बिन्दु से आती हुई प्रतीत होती हैं (उत्तल दर्पण के लिए), दर्पण का मुख्य फोकस या फोकस कहलाता है। इसे F से व्यक्त करते हैं।
(vii) फोकस दूरी (Focal Length) – ध्रुव एवं फोकस के बीच की दूरी को फोकस दूरी कहते हैं। इसे f से व्यक्त करते हैं।
दर्पण समीकरण (Mirror Equation)
दर्पण की फोकस दूरी (f), दर्पण से वस्तु की दूरी (u) व दर्पण से प्रतिबिम्ब की दूरी (v) के मध्य सम्बन्ध बताने वाले सूत्र को दर्पण समीकरण (Mirror equation) कहते हैं। यह सूत्र निम्नलिखित है-
(A) उत्तल दर्पण के लिए दर्पण-सूत्र (Mirror Formula for Convex Mirror) – M1M2 उत्तल दर्पण है। इसके सामने रखी वस्तु AB का प्रतिबिम्ब A’B’ बनता है। मुख्य अक्ष के समान्तर किरण के आपतन बिन्दु E से मुख्य अक्ष पर डाला गया अभिलम्ब EN है।
(B) अवतल दर्पण के लिए दर्पण-सूत्र (Mirror Formula for Concave Mirror)-M1M2, एक अवतल दर्पण है जिसके सामने रखी वस्तु AB का प्रतिबिम्ब A’B’ बनता है।
(C) दर्पण में आवर्धन (Magnification in Mirror) – दर्पण द्वारा बने प्रतिबिम्ब की लम्बाई (I) एवं वस्तु की लम्बाई (O) के अनुपात को ही आवर्धन कहते हैं। इसे m से व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 2.
उत्तल लेन्स एवं अवतल लेन्स द्वारा विभिन्न स्थितियों में प्रतिबिम्ब का निर्माण समझाइये। प्रतिबिम्ब की स्थिति, आकार एवं प्रकृति किरण चित्र द्वारा समझाइये।
उत्तर:
लेन्स से प्रतिबिम्ब निर्माण (Image Formation by Lenses)
1. पतले लेन्स द्वारा प्रतिबिम्ब बनने के नियम (Rules for Image Formation by Thin Lens)
लेन्स द्वारा प्रतिबिम्ब बनाने के लिए किरण आरेख निम्न तीन नियमों के अनुसार खींचा जाता है-
(i) प्रकाशिक केन्द्र से होकर जाने वाली किरणें बिना विचलित हुए अपवर्तित हो जाती हैं। [चित्र 11.62 (a)]
(ii) मुख्य अक्ष के समान्तर आने वाली किरणें उत्तल लेन्स से अपवर्तित होकर फोकस से होकर जाती है और अवतल लेन्स से अपवर्तित होकर फोकस से आती हुई प्रतीत होती है। [चित्र 11.62 (b)]
(iii) उत्तल लेन्स के फोकस से होकर जाने वाली एवं अवतल लेन्स के फोकस की ओर आने वाली किरणें अपवर्तित होकर मुख्य अक्ष के समान्तर हो जाती हैं। [चित्र 11.62 c)]
2. पतले लेन्स से प्रतिबिम्ब बनाना (Formation of Image by Thin Lens)
(a) अवतल लेन्स द्वारा (By Concave Lens)- अवतल लेन्स द्वारा किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब बनना चित्र (1.63) में दिखाया गया है। AB का सीधा, छेटा और आभासी प्रतिबिम्ब लेन्स के द्वितीय फोकस एवं प्रकाशिक केन्द्र के मध्य बन रहा है। जैसे-जैसे वस्तु की दूरी लेन्स स
बढ़ाते हैं, उसका प्रतिबिम्ब छोटा होता जाता है और वस्तु के लेन्स के पास जाने पर प्रतिबिम्ब बड़ा होता जाता है लेकिन प्रतिबिम्ब सदैव वस्तु से छोटा ही रहेगा और हमेशा फोकस और प्रकाशिक केन्द्र के मध्य ही बनेगा।
(b) उत्तल लेन्स द्वारा (By Convex Lens) – लेन्स से वस्तु की भिन्न-भिन्न दूरियों पर बनने वाले प्रतिबिम्ब की स्थितियाँ नीचे दर्शायी गई
(i) जब वस्तु अनन्त पर हो – अनन्त पर रखी हुई वस्तु से आने वाली किरणें समान्तर होती हैं। यदि ये किरणें मुख्य अक्ष के समान्तर होती हैं तो लेन्स के द्वितीय फोकस पर वास्तविक, अत्यन्त छोटा (बिन्दुनुमा) एवं उल्टा प्रतिबिम्ब बनता है (चित्र 11.64 (a)]। यदि लेन्स पर आपतित किरणें मुख्य अक्ष के समान्तर नहीं हैं तो लेन्स के द्वितीय फोकस तल में वस्तु का काफी छोटा, वास्तविक एवं उल्टा प्रतिबिम्ब A’B’ बनता है। (चित्र 11.64 (b)]।
(ii) जब वस्तु अनन्त एवं 2F1, के मध्य हो-इस स्थिति में वस्तु AB का उल्टा, छोटा एवं वास्तविक प्रतिबिम्ब A’B’ लेन्स के दूसरी ओर F, व 2F) के मध्य बनता है (चित्र 11.65)।
(iii) जब वस्तु 2F1, पर हो – इस स्थिति में वस्तु AB का प्रतिबिम्ब A’B’ वस्तु के बराबर, उल्टा एवं वास्तविक लेन्स के दूसरी ओर 2F2, पर बनता है (चित्र (11.66))।
(iv) जब वस्तु 2F1, व F1 के मध्य हो – इस स्थिति में वस्तु AB का उल्टा, बड़ा, वास्तविक प्रतिबिम्ब लेन्स के दूसरी ओर 2F2, व अनन्त के मध्य बनता है (चित्र 11.67)।
(v) जब वस्तु फोकस F1 पर हो – इस स्थिति में वस्तु AB का प्रतिबिम्ब A’B’ वस्तु से काफी बड़ा, उल्टा एवं वास्तविक लेन्स के दूसरी ओर अनन्त पर बनेगा (चित्र 11.68)।
(vi) जब वस्तु F1, वे लेन्स के मध्य हो – इस स्थिति में वस्तु AB का सीधा, बड़ा एवं आभासी प्रतिबिम्ब लेन्स के उसी ओर अर्थात् वस्तु की ओर बन जाता है। यही सरल सूक्ष्मदर्शी का सिद्धान्त है (चित्र 11.69))।
प्रश्न 3.
लेन्स कितने प्रकार के होते हैं ? लेन्स के लिए बिम्ब की दूरी, प्रतिबिम्ब की दूरी एवं फोकस दूरी में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
लेन्स (Lens)
“दो वक़ अथवा एक वक़ और एक समतल अपवर्तक फलकों के मध्य घिरे हुए समांगी (homogeneous) एवं पारदर्शी (transparent)
माध्यम को लेन्स कहते हैं।” वक्र पृष्ठ गोलाकार (spherical), बेलनाकार (cylindrical) या परवलयाकार (parabolic) हो सकता है। सामान्यत: वक्र पृष्ठ गोलाकार ही होता है। लेन्स मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं|
(i) उत्तल लेन्स और
(ii) अवतल लेन्स।
1. उत्तल लेन्स (Convex Lens)-जो लेन्स किनारे पर पतले एवं बीच में मोटे होते हैं वे उत्तल लेन्स की श्रेणी में आते हैं। ये निम्न तीन प्रकार के होते हैं
(i) उभयोत्तल अथवा द्विउत्तललेन्स (Double Convex Lens) – जब लेन्स के दोनों पृष्ठ उत्तल होते हैं [चित्र 11.41 (a)] तो वह उभयोत्तल लेन्स कहलाता है। दोनों पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याएँ समान भी हो सकती हैं और भिन्न-भिन्न भी हो सकती हैं। समान वक्रता त्रिज्याओं वाले उत्तल लेन्स को समोत्तल या समद्विउत्तल लेन्स (equi-convex lens) कहते हैं।
(ii) समतलोत्तल लेन्स (Plano-convex Lens) – जब लेन्स का प्रथम पृष्ठ समतल एवं द्वितीय पृष्ठ उत्तल होता है (चित्र 11.41 (b)] तो उसे समतलोत्तल लेन्स कहते हैं। समतल पृष्ठ की वक्रता त्रिज्या अनन्त होती है (अर्थात् R1 = ∞ )।
(iii) अवतलोत्तल लेन्स (Concavo-Convex Lens) – इस लेन्स का पहला पृष्ठ अवतल एवं दूसरा पृष्ठ उत्तल होता है (चित्र 11.41 (c)]। इन पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याएँ भिन्न होती हैं (अर्थात् R1 > R2)।
2. अवतल लेन्स (Concave Lens)-जो लेन्स किनारे पर मोटे और। बीच में पतले होते हैं, वे अवतल लेन्स कहलाते हैं। ये भी निम्न तीन प्रकार के होते हैं-
(i) उभयावतल या द्विअवतल लेन्स (Double Convave Lens) – इस लेन्स के दोनों पृष्ठ अवतल होते हैं (चित्र 11.42 (a)].
[चित्र 11.42 (a)]। इन दोनों पृष्ठे की वक्रता त्रिज्याएँ समान भी हो
सकती हैं और भिन्न भी हो सकती हैं। समान वक्रता त्रिज्याओं काले अवतल लेन्स को समावतल या समद्विअवतल लेन्स (equi-concave lens) कहते हैं।
(ii) समतलावतल लेन्स (Plano-Concave Lens) – जब लेन्स को प्रथम तल समतल एवं द्वितीय तल अवतल होता है तो उसे समतलावतल लेन्स कहते हैं। समतलावतल पृष्ठ की त्रिज्या अनन्त होती है (अर्थात् R1 = ∞)।
(iii) उत्तलावतल लेन्स (Convexo-Concave Lens) – इस लेन्स का पहला तल उत्तल एवं दूसरा तल अवतल होता है (चित्र 11.42 (c)]। इन पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याएँ भिन्न होती हैं (अर्थात् R1 > R2 = ∞)।
उत्तल लेन्स की अभिसारी क्रिया तथा अवतल लेन्स की अपसारी क्रिया-उत्तल लेन्स इस पर आपतित प्रकाश किरणों को मुख्य अक्ष की ओर मोड़कर उन्हें एक बिन्दु पर केन्द्रित कर देता है, अतः इसे अभिसारी लेन्स (Convergent lens) कहते हैं। इसके विपरीत अवतल लेन्स इस पर आपतित किरणों को मुख्य अक्ष से दूर हटा देता है अर्थात् फैला देता है। इसलिए इसे अपसारी लेन्स (Divergent lens) कहते हैं।
लेन्सों की इन क्रियाओं को समझने के लिए हम लेन्स को छोटे-छोटे प्रिज्म खण्डों से मिलकर बना हुआ मान सकते हैं। इन प्रिज्मों के प्रिज्म कोण भिन्न-भिन्न होते हैं। हम जानते हैं कि प्रिज्म किसी किरण को आधार की ओर मोड़ता है और प्रिज्म कोण जितना अधिक होता है, प्रकाश किरण का विचलन भी उतना ही अधिक होता है।
उत्तल लेन्स के प्रत्येक प्रिज्म खण्ड का आधार लेन्स के केन्द्रीय भाग। की ओर होता है, अत: उत्तल लेन्स पर आपतित किरणें आधारों की ओर अर्थात् मुख्य अक्ष की ओर मुड़ जाती हैं और एक बिन्दु पर मिल जाती हैं [चित्र 11.43 (a)]।
अवतल लेन्स में प्रत्येक प्रिज्म का आधार लेन्स के केन्द्रीय भाग से बाहर की ओर होता है, अतः इन पर आपतित किरणें विभिन्न कोणों पर मुड़कर फैल जाती हैं [चित्र 11.43 (b)]।
प्रश्न 4.
उपयुक्त किरण आरेख की सहायता से एक उत्तल गोलाकार सतह के लिए जब प्रकाश किरण विरल से सघन में प्रवेश करती है तो वस्तु की दूरी (u), प्रतिबिम्ब की दूरी (v) तथा वक्रता त्रिज्या (R) में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
गोलीय पृष्ठों से अपवर्तन (Refraction Through Spherical Surfaces)
गोलीय पृष्ठों पर भी प्रकाश का अपवर्तन उन्हीं नियमों के अनुसार होता है जो समतल पृष्ठों पर लागू होते हैं।
(1) उत्तल गोलीय पृष्ठ पर अपवर्तन का सूत्र (Formula for Refraction at Convex Spherical Surface) – माना AB एक उत्तले गोलीय पृष्ठ है जिसके बार्थी ओर एक माध्यम (विरल) एवं दायीं ओर दूसरा माध्यम (सघन) है। P गोलीय पृष्ठ का ध्रुव है तथा C वक्रता केन्द्र है। चित्र (11.37) के किरण आरेख के अनुसार मुख्य अक्ष पर स्थित एक बिन्दु वस्तु 0 का प्रतिबिम्ब I बनता है। M से मुख्य अक्ष पर डाला गया अभिलम्ब MP’ है।
प्रश्न 5.
एक यौगिक सूक्ष्मदर्शी के लिए नेत्र के निकट बिन्दु पर प्रतिबिम्ब निर्माण की दर्शाने वाला नामांकित किरण आरेख बनाइये।
उत्तर:
संयुक्त या यौगिक सूक्ष्मदर्शी (Compound Microscope)
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग अत्यन्त सूक्ष्म वस्तुओं के उच्च आवर्धित प्रतिबिम्ब देखने के लिए किया जाता है। रचना-इसमें दो उत्तल लेन्स होते हैं। एक लेन्स जो छेटी फोकस दूरी एवं छेटे द्वारक का होता है और वस्तु की ओर रहता है, इसे अभिदृश्यक लेन्स (Objective lens or field lens) कहते हैं। दूसरा लेन्स बड़ी फोकस दूरी एवं बड़े द्वारक का होता है और आँख की ओर रहता है, यह अभिनेत्र लेन्स (eye lens) कहलाता है। दोनों लेन्स समाक्ष रूप से एक नली के दो सिरों पर लगे होते हैं। दोनों लेन्सों के बीच की दूरी को दण्ड चक्रीय क्रम (rack and pinion) विधि से घटाया या बढ़ाया जा सकता है। समायोजन एवं प्रतिबिम्ब का बनना-समायोजन की प्रक्रिया में सबसे पहले नेत्रिका का समायोजन करते हैं। इसके लिए नेत्रिका को | इतना आगे या पीछे गति देते हैं कि क्रॉस-तार (cross-wire) स्पष्ट रूप से दिखायी देने लगे। अब वस्तु को अभिदृश्यक के सामने रखकर अभिदृश्यक की वस्तु से दूरी, अभिदृश्यक को चलाकर, इस प्रकार समायोजित करते हैं कि वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब दिखायी देने लगे। इस दशा में वस्तु का उल्टा, बड़ा एवं आभासी प्रतिबिम्ब क्रॉस-तार पर बनता है |
AB एक सूक्ष्म वस्तु है जिसका प्रतिबिम्ब अभिदृश्यक द्वारा बड़ा, उल्टा, वास्तविक A’B’ बनता है। यही प्रतिबिम्ब अभिनेत्र लेन्स के लिए वस्तु का कार्य करता है, अत: अभिनेत्र लेन्स को इतना आगे या पीछे खिसकाते हैं कि यह प्रतिबिम्ब अभिनेत्र लेन्स के फोकस के अन्दर आ जाये। इस स्थिति में A’B’ का सीधा, बड़ा एवं काल्पनिक प्रतिबिम्ब अभिनेत्र लेन्स के इसी ओर A”B” बन जाता है। यही अन्तिम प्रतिबिम्ब होता है।
(ii) यदि अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बने-अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर तभी बनेगा जब अभिदृश्यक द्वारा बनने वाला प्रतिबिम्ब A’B’ अभिनेत्र लेन्स के प्रथम फोकस F’e पर बने, अतः
विवेचना (Discussion)-
- आवर्धन क्षमता m का मान ऋणात्मक होने का अर्थ है कि सूक्ष्मदर्शी में वस्तु के सापेक्ष प्रतिबिम्ब उल्टा बनता है।
- चूँकि माध्यमिक प्रतिबिम्ब (intermediate image) दोनों लेन्स के मध्य बनता है, अतः क्रॉस-तार यो मापक स्केल का प्रयोग किया जा सकता है।
- अधिक आवर्धन क्षमता के लिए f0 व fe वे दोनों के मान कम होने चाहिए। दृश्य क्षेत्र को बढ़ाने के लिए, f0 < fe लेना चाहिए।
- चूंकि सूक्ष्मदर्शी में दोनों लेन्सों का द्वारक छोटा होता है अतः प्रतिबिम्ब का गोलीय विपथन दोष भी कम हो जाता है।
- एक अच्छे संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में अभिदृश्यक एवं नेत्रिका दोनों को संयुक्त लेन्स के रूप में प्रयोग करते हैं जिसके प्रतिबिम्ब का वर्ण विपथन दोष (एक अकेले लेन्स में वर्ण विपथन दोष होता है) समाप्त हो जाता है।
- वस्तु अभिदृश्यक के फोकस तल के बाहर होनी चाहिए अर्थात् u0 > f0, अन्यथा माध्यमिक प्रतिबिम्ब (A’B’) लेन्स के मध्य नहीं बनेगा। इसीलिए अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी (f0) कम ली जाती है |
प्रश्न 6.
एक वर्णी प्रकाश किरण के काँच के प्रिज्म से गुजरने पर अपवर्तन को दर्शाने वाला किरण आरेख बनाइये। प्रिज्म कोण तथा न्यूनतम विचलन कोण के पदों में काँच के अपवर्तनांक का व्यंजक प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
प्रिज्म द्वारा विचलन (Deviation by Prism) – जब एकवर्षीय प्रकाश की कोई किरण प्रिज्म के अपवर्तक पृष्ठ पर आपतित होती है तो किरण का दो बार अपवर्तन होता है जिससे किरण की दिशा में विचलन उत्पन्न हो जाता है (किरण आरेख चित्र 11.71 (b) में)। “निर्गत किरण की दिशा एवं आपतित किरण की दिशा के मध्य जो कोण बनता है उसे विचलन कोण कहते हैं।” चित्र में इसे δ से प्रदर्शित किया गया है।
न्यूनतम विचलन कोण (Angle of Minimum Deviation) (δm)
यदि प्रिज्म पर प्रकाश का आपतन कोण बदल-बदल कर संगत
विचलन कोणों के मान ज्ञात करके उन्हें ग्राफ पर प्लॉट किया जाये तो | प्राप्त वक्र चित्र 11.72 की भाँति मिलता है। वक्र से स्पष्ट है कि आपतन कोण बढ़ने के साथ विचलन कोण का मान घटता है और एक न्यूनतम मान के बाद फिर बढ़ने लगता है। विचलन कोण के इसी न्यूनतम मान को न्यूनतम विचलन कोण (angle of minimum deviation) कहते हैं और δm से व्यक्त करते हैं।
ग्राफ से यह स्पष्ट है कि किसी भी विचलन कोण के संगत आपतन कोण के दो मान i1 व i2 प्राप्त होते हैं लेकिन न्यूनतम विचलन कोण के संगत आपतन कोण का केवल एक ही मान (i) प्राप्त होता है। आपतन कोण के दो मानों i1 वे i2 में एक आपतन कोण होता है और दूसरा निर्गमन कोण होता है, क्योंकि प्रकाश का पथ उत्क्रमणीय (reversible) होता है। जब
आपतन कोण i1 = i2 होंगे तो अपवर्तन कोण r1 = r2 होंगे। अतः न्यूनतम विचलन की अवस्था में,
- आपतन कोण निर्गमन कोण के बराबर होता है।
अपवर्तित किरण प्रिज्म के आधार के समान्तर होती है।
प्रिज्म के पदार्थ के अपवर्तनांक के लिए सूत्र (Formula for Refractive Index of the Prism) – न्यूनतम विचलने की दशा में प्रिज्म से किरण आरेख चित्र 11.73 में दिखाया गया है। स्नेल के नियम से प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक,
स्पष्ट है कि पतले प्रिज्म द्वारा उत्पन्न विचलन कोण का मान केवल प्रिज्म कोण (A) व प्रिज्म के पदार्थ के अपवर्तनांक (µ) पर निर्भर करता है। यद्यपि उक्त समीकरण में न्यूनतम विचलन कोण पतले प्रिज्म के लिए प्राप्त किया गया है लेकिन पतले प्रिज्म के लिए इसे हम व्यापक रूप दे सकते हैं जिसके अनुसार,
प्रश्न 7.
लेन्स को दो गोलाकार पृष्ठों से घिरा मानकर u, v, f में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
निबन्धात्मक प्रश्न 3 का उत्तर देखिए।
लेव्स (Lens)
“दो वक़ अथवा एक वक़ और एक समतल अपवर्तक फलकों के मध्य घिरे हुए समांगी (homogeneous) एवं पारदर्शी (transparent)
माध्यम को लेन्स कहते हैं।” वक्र पृष्ठ गोलाकार (spherical), बेलनाकार (cylindrical) या परवलयाकार (parabolic) हो सकता है। सामान्यत: वक्र पृष्ठ गोलाकार ही होता है। लेन्स मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं|
(i) उत्तल लेन्स और
(ii) अवतल लेन्स।
1. उत्तल लेन्स (Convex Lens)-जो लेन्स किनारे पर पतले एवं बीच में मोटे होते हैं वे उत्तल लेन्स की श्रेणी में आते हैं। ये निम्न तीन प्रकार के होते हैं
(i) उभयोत्तल अथवा द्विउत्तललेन्स (Double Convex Lens) – जब लेन्स के दोनों पृष्ठ उत्तल होते हैं [चित्र 11.41 (a)] तो वह उभयोत्तल लेन्स कहलाता है। दोनों पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याएँ समान भी हो सकती हैं और भिन्न-भिन्न भी हो सकती हैं। समान वक्रता त्रिज्याओं वाले उत्तल लेन्स को समोत्तल या समद्विउत्तल लेन्स (equi-convex lens) कहते हैं।
(ii) समतलोत्तल लेन्स (Plano-convex Lens) – जब लेन्स का प्रथम पृष्ठ समतल एवं द्वितीय पृष्ठ उत्तल होता है (चित्र 11.41 (b)] तो उसे समतलोत्तल लेन्स कहते हैं। समतल पृष्ठ की वक्रता त्रिज्या अनन्त होती है (अर्थात् R1 = ∞ )।
(iii) अवतलोत्तल लेन्स (Concavo-Convex Lens) – इस लेन्स का पहला पृष्ठ अवतल एवं दूसरा पृष्ठ उत्तल होता है (चित्र 11.41 (c)]। इन पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याएँ भिन्न होती हैं (अर्थात् R1 > R2)।
2. अवतल लेन्स (Concave Lens)-जो लेन्स किनारे पर मोटे और। बीच में पतले होते हैं, वे अवतल लेन्स कहलाते हैं। ये भी निम्न तीन प्रकार के होते हैं-
(i) उभयावतल या द्विअवतल लेन्स (Double Convave Lens) – इस लेन्स के दोनों पृष्ठ अवतल होते हैं (चित्र 11.42 (a)].
[चित्र 11.42 (a)]। इन दोनों पृष्ठे की वक्रता त्रिज्याएँ समान भी हो
सकती हैं और भिन्न भी हो सकती हैं। समान वक्रता त्रिज्याओं काले अवतल लेन्स को समावतल या समद्विअवतल लेन्स (equi-concave lens) कहते हैं।
(ii) समतलावतल लेन्स (Plano-Concave Lens) – जब लेन्स को प्रथम तल समतल एवं द्वितीय तल अवतल होता है तो उसे समतलावतल लेन्स कहते हैं। समतलावतल पृष्ठ की त्रिज्या अनन्त होती है (अर्थात् R1 = ∞)।
(iii) उत्तलावतल लेन्स (Convexo-Concave Lens) – इस लेन्स का पहला तल उत्तल एवं दूसरा तल अवतल होता है (चित्र 11.42 (c)]। इन पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याएँ भिन्न होती हैं (अर्थात् R1 > R2 = ∞)
उत्तल लेन्स की अभिसारी क्रिया तथा अवतल लेन्स की अपसारी क्रिया-उत्तल लेन्स इस पर आपतित प्रकाश किरणों को मुख्य अक्ष की ओर मोड़कर उन्हें एक बिन्दु पर केन्द्रित कर देता है, अतः इसे अभिसारी लेन्स (Convergent lens) कहते हैं। इसके विपरीत अवतल लेन्स इस पर आपतित किरणों को मुख्य अक्ष से दूर हटा देता है अर्थात् फैला देता है। इसलिए इसे अपसारी लेन्स (Divergent lens) कहते हैं।
लेन्सों की इन क्रियाओं को समझने के लिए हम लेन्स को छोटे-छोटे प्रिज्म खण्डों से मिलकर बना हुआ मान सकते हैं। इन प्रिज्मों के प्रिज्म कोण भिन्न-भिन्न होते हैं। हम जानते हैं कि प्रिज्म किसी किरण को आधार की ओर मोड़ता है और प्रिज्म कोण जितना अधिक होता है, प्रकाश किरण का विचलन भी उतना ही अधिक होता है।
उत्तल लेन्स के प्रत्येक प्रिज्म खण्ड का आधार लेन्स के केन्द्रीय भाग। की ओर होता है, अत: उत्तल लेन्स पर आपतित किरणें आधारों की ओर अर्थात् मुख्य अक्ष की ओर मुड़ जाती हैं और एक बिन्दु पर मिल जाती हैं [चित्र 11.43 (a)]।
अवतल लेन्स में प्रत्येक प्रिज्म का आधार लेन्स के केन्द्रीय भाग से बाहर की ओर होता है, अतः इन पर आपतित किरणें विभिन्न कोणों पर मुड़कर फैल जाती हैं [चित्र 11.43 (b)]।
प्रश्न 8.
दूरदर्शी कितने प्रकार के होते हैं ? अपवर्तक दूरदर्शी की बनावट, कार्यप्रणाली एवं आवर्धन क्षमता के लिए सूत्र की स्थापना कीजिए।
उत्तर:
खगोलीय दूरदर्शी (Astronomical Telescope)
दूरदर्शी वह प्रकाशिक उपकरण है जो दूर की वस्तुओं (जो हमें नेत्र द्वारा स्पष्ट दिखायी नहीं देती हैं) को देखने के लिए प्रयोग किया जाता है। खगोलीय दूरदर्शी का उपयोग खगोल वैज्ञानिक आकाशीय पिण्डों | (सितारों आदि) को देखने के लिए करते हैं। यह दूरदर्शी संरचना के आधार पर दो प्रकार के होते हैं-
(1) अपवर्ती प्रकार का दूरदर्शी,
(2) परावर्ती प्रकार का दूरदर्शी।
(1) अपवर्ती प्रकार का दूरदर्शी (Refracting Telescope)-
रचना-इस दूरदर्शी में दो लेन्स होते हैं जिनमें एक का मुख्य फोकस एवं मुख्य व्यास (द्वारक) बड़ा होता है और यह वस्तु की ओर रहता है, इसे अभिदृश्यक (Objective lens or field lens) कहते हैं। दूसरा लेन्स छोटे मुख्य फोकस एवं छोटे द्वारक का होता है और यह आँख की ओर रहता है, इसे अभिनेत्र लेन्स (eye lens) कहते हैं। दोनों लेन्स एक नली के दोनों सिरों पर लगे होते हैं और इनके बीच की दूरी दण्ड चक्रीय क्रम (rack and pinion) से घटायी या बढ़ाई जा सकती है।
समायोजन एवं किरण आरेख-सबसे पहले नेत्रिका को आगे-पीछे खिसकाकर क्रॉस-तार (cross wire) पर समायोजित कर लेते हैं। इसके बाद अभिदृश्यक का रुख दृश्य (जो वस्तु देखनी है) की ओर करके छेटी नली को लम्बी नली में इतना आगे या पीछे खिसकाते हैं कि वस्तु का प्रतिबिम्ब क्रॉस-तार पर बनने लगे। इस दशा में वस्तु स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगती है।
दूरदर्शी से प्रतिबिम्ब बनने की क्रिया चित्र में दिखाई गई है।
अनन्त पर रखी किसी वस्तु AB से आने वाली समान्तर किरणे अभिदृश्यक से अपवर्तित होकर इसके फोकस F0 पर वस्तु का उल्टा, छोटा एवं वास्तविक प्रतिबिम्ब AB’ बनाती हैं। नेत्रिका को इतना आगे या पीछे खिसकाते हैं कि यह प्रतिबिम्ब उसके प्रथम फोकस Fe के अन्दर आ जाये। इस स्थिति में A’B’ का सीधा, बड़ा एवं काल्पनिक प्रतिबिम्ब | A”B” बनता है। यही अन्तिम प्रतिबिम्ब होता है।
यदि अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्त (Infinity) पर बनता है तो इस अवस्था में दूरदर्शी को सामान्य समायोजन की स्थिति में कहा जाता है (Normal adjustment)
विवेचना (Discussion)
(i) आवर्धन क्षमता ऋणात्मक होने का अर्थ है कि दूरदर्शी में अन्तिम प्रतिबिम्ब उल्टा बनता है।
(ii) माध्यमिक प्रतिबिम्ब दोनों लेन्सों के मध्य बनता है, अतः क्रॉस-तार या मापक स्केल का उपयोग किया जा सकता है।
(iii) दूरदर्शी के सामान्य समायोजन में अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बनता है, आवर्धन क्षमता न्यूनतम होती है। जब अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है तो आवर्धन क्षमता अधिकतम होती है। अतः
(iv) अधिक आवर्धन क्षमता प्राप्त करने के लिए यथासम्भव ६ को मान अधिक और / का मान कम होना चाहिए।
(v) दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता एवं विभेदन क्षमता बढ़ाने के लिए | अभिदृश्यक का द्वारक यथासम्भव बड़ा लिया जाता है।
RBSE Class 12 Physics Chapter 10 आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
एक 24 cm फोकस दूरी वाले अवतल दर्पण के सामने 36 cm दूरी पर रखे एक बिम्ब के प्रतिबिम्ब की दूरी ज्ञात कीजिए।
हल :
दिया है : -24 cm; u = -36 cm; V= ?
दर्पण सूत्र से-
∴ v = -72 cm.
∴ प्रतिबिम्ब की दूरी = दर्पण से 72 cm बिम्ब की ओर
प्रश्न 2.
किसी माध्यम का निर्वात के सापेक्ष अपवर्तनांक 1.33 है। निर्वात में प्रकाश का वेग c = 3 × 108 ms-1 हो तो माध्यम में प्रकाश का वेग ज्ञात कीजिए।
हल :
प्रश्न 3.
किसी 20 cm फोकसे दूरी वाले काँच के उत्तल लेन्स के पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याएँ क्रमशः 18 cm एवं 24 cm है। लेन्स के काँच का अपवर्तनांक ज्ञात कीजिए।
हल :
प्रश्न 4.
एक प्रकाश की किरण किसी काँच के गुटके पर 50° कोण पर आपतित होती है। यदि अपवर्तन कोण 30° हो तो काँच का अपवर्तनांक ज्ञात कीजिए।
हल :
प्रश्न 5.
एक बिम्ब 0.01m फोकस दूरी के उत्तल लेन्स से 0.06m की दूरी पर स्थित है। प्रतिबिम्ब की स्थिति ज्ञात कीजिए।
हल :
दिया है : +0.10m= + 10 cm ; u = -0.06m = -6 cm; v = ?
∵ लेन्स-सूत्र से
1/v−1/u=1/f
अतः प्रतिबिम्ब लेन्स से 15 cm दूर बिम्ब की ओर बनेगा।
प्रश्न 6.
क्राउन काँच से बने 6° अपवर्तक कोण के प्रिज्म के पदार्थ का लाल तथा बैंगनी प्रकाश की किरणों के लिए अपवर्तनांक क्रमशः 1.514 एवं 1.523 हैं। प्रिज्म द्वारा कोणीय विक्षेपण ज्ञात कीजिए।
हल :
प्रश्न 7.
+ 5D तथा – 7D के दो लेन्सों को परस्पर सम्पर्क में रखकर बनाये गये संयुक्त लेन्स की क्षमता ज्ञात कीजिए। संयुक्त लेन्स अभिसारी होगा या अभसारी ?
हल :
प्रश्न 8.
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक तथा नेत्रिका की फोकसे दूरियाँ क्रमशः 0.95 तथा 5 cm हैं और वे एक-दूसरे से 20 cm की दूरी पर हैं। अन्तिम प्रतिबिम्ब नेत्रिका से 25 cm की दूरी पर बनता है। सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता ज्ञात कीजिए।
हल :
प्रश्न 9.
एक पतले अभिसारी काँच के लेन्स (µg = 1.5) की शक्ति +5.0D है जब यह लेन्स µl अपवर्तनांक वाले द्रव में डुबोया जाता है। यह अपसारी लेन्स की तरह व्यवहार करता है जिसकी फोकस दूरी 100 cm है तो µl का मान कितना होना चाहिए।
हल :
प्रश्न 10.
एक प्रिज्म का अपवर्तन कोण A है तथा प्रिज्म का अपवर्तनांक cot (A/2) है तो न्यूनतम विचलन कोण का मान क्या होगा ?
हल :