RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 14 परमाणवीय भौतिकी
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 14 परमाणवीय भौतिकी
Rajasthan Board RBSE Class 12 Physics Chapter 14 परमाणवीय भौतिकी
RBSE Class 12 Physics Chapter 14 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 12 Physics Chapter 14 बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हाइड्रोजन परमाणु की मूल अवस्था में ऊर्जा -13.6 ev है। n = 5 ऊर्जा स्तर में इसकी ऊर्जा होगी।
(अ) -0.54 eV
(ब) -0.85 eV
(स) -5.4 eV
(द) -2.72 eV.
उत्तर:
(अ) -0.54 eV
प्रश्न 2.
हाइड्रोजन परमाणु की n वीं कक्षा में ऊर्जा En = −13.6/n2 eV है। इलेक्ट्रान को प्रथम कक्षा में द्वितीय कक्षा में भेजने के लिए आवश्यक ऊर्जा होगी।
(अ) 10.2 eV
(ब) 12.1 eV
(स) 13.6 eV
(द) 3.4 eV.
उत्तर:
(अ) 10.2 eV
प्रश्न 3.
हाइड्रोजन परमाणु में यदि इलेक्ट्रॉन तीसरी कक्षा से दूसरी कक्षा में संक्रमण करता है तो उत्सर्जित विकिरण की तरंगदैर्ध्य होगी।
(अ) 5R/36
(ब) R/6
(स) 36/5R
(द) 5/R
उत्तर:
(स) 36/5R
प्रश्न 4.
हाइड्रोजन की लाइमन श्रेणी विद्युत चुंबकीय स्पैक्ट्रम के किस भाग में पाई जाती है।
(अ) पराबैंगनी
(ब) अवरक्त
(स) 12.1 eV
(द) X किरण क्षेत्र
उत्तर:
(अ) पराबैंगनी
प्रश्न 5.
किसी हाइड्रोजन परमाणु जो ऊर्जा स्तर n = 4 तक उत्तेजित किया गया है द्वारा उत्सर्जित स्पैक्ट्रमी रेखाओं की संख्या होगी-
(अ) 2
(ब) 3
(स) 4
(द) 6.
उत्तर:
(द) 6.
प्रश्न 6.
हाइड्रोजन की लाइमन श्रेणी के लिए लघुत्तम एवं अधिकतम तरंगदैर्घ्य क्रमशः है।
(अ) 909 A तथा 1212 A
(ब) 9091 A तथा 12120 A
(स) 303 A तथा 404 A
(द) 1000 A तथा 3000 A
उत्तर:
(अ) 909 A तथा 1212 A
प्रश्न 7.
दिया गया चित्र किसी परमाणु के ऊर्जा स्तरों को दर्शाता है। जब इलेक्ट्रॉन ऊर्जा 2E के स्तर से ऊर्जा E के स्तर में संक्रमित होता है तो तरंगदैर्ध्य λ का फोटॉन उत्सर्जित होता है। इलेक्ट्रॉन के ऊर्जा 4E/3 के स्तर से ऊर्जा E के स्तर में संक्रमण करने पर उत्सर्जित फोटॉन की ऊर्जा है।
(अ) λ/3
(ब) 3λ/4
(स) 4λ/3
(द) 3λ.
उत्तर:
(द) 3λ.
प्रश्न 8.
उत्तेजित हाइड्रोजन परमाणु में यदि बोर सिद्धांत के अनुसार कोणीय संवेग (2h/2π) हो तो उसकी ऊर्जा होगी
(अ) 13.6 eV
(ब) – 13.4 eV
(स) -3.4 eV
(द) -12.8 eV.
उत्तर:
(स) -3.4 eV
प्रश्न 9.
उस उत्तेजित अवस्था की मुख्य क्वांटम संख्या क्या होगी जिसमें उत्तेजित हाइड्रोजन परमाणु λ तरंग दैर्घ्य के फोटॉन का उत्सर्जन करने के बाद मूल अवस्था में लौटता है।
उत्तर:
(अ)
प्रश्न 10.
नीचे दिए गए प्राचलों में से कौनसा सभी हाइड्रोजन सदृश आयनों के लिए इनकी मूल अवस्थाओं में समान है ?
(अ) इलेक्ट्रान की कक्षीय चाल
(ब) कक्षा की त्रिज्या
(स) इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग
(द) परमाणु की ऊर्जा.
उत्तर:
(स) इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग
प्रश्न 11.
हाइड्रोजन सदृश किसी आयन की मूल अवस्था में ऊर्जा –54.4 eV है। यह हो सकता है।
(अ) He+
(ब) Li++
(स) ड्यटीरियम
(द) Be+ + +.
उत्तर:
(अ) He+
प्रश्न 12.
हाइड्रोजन में मुख्य क्वांटम संख्या n का मान बढ़ने पर परमाणु की स्थितिज ऊर्जा
(अ) घटती है।
(ब) बढ़ती है।
(स) वही रहती है।
(द) स्थितिज ऊर्जा एकान्तर क्रम से घटती-बढ़ती है।
उत्तर:
(अ) घटती है।
प्रश्न 13.
हाइड्रोजन परमाणु n = 4 से n = 1 अवस्था तक संक्रमण करता है। तब H-परमाणु का प्रतिक्षिप्त संवेग (eV/c मात्रक में) है।
(अ) 13.60
(ब) 12.75
(स) 0.85
(द) 22.1.
उत्तर:
(ब) 12.75
प्रश्न 14.
हाइड्रोजन परमाणु की nर्वी कक्षा में (कोणीय संवेग L) इलेक्ट्रॉन की कक्षीय गति के कारण चुंबकीय आघूर्ण है।
उत्तर:
(ब)
प्रश्न 15.
जब एक हाइड्रोजन परमाणु मूल अवस्था से प्रथम उत्तेजित ऊर्जा अवस्था में संक्रमण करता है तो इसके कोणीय संवेग में वृद्धि है।
(अ) 6.63 × 10-34 Js
(ब) 1.05 × 10-34 Js
(स) 41.5 × 10-34 Js
(द) 2.11 × 10-34 Js.
उत्तर:
(ब) 1.05 × 10-34 Js
RBSE Class 12 Physics Chapter 14 अति लघूत्तरात्गक प्रश्न
प्रश्न 1.
परमाणु का समस्त धनावेश उसके भीतर एक अत्यन्त सूक्ष्म क्षेत्र में संकेन्द्रित होता है। यह किस प्रयोग द्वारा पता चलता है?
उत्तर:
रदरफोर्ड
∝-कण प्रकीर्णन प्रयोगं ।
प्रश्न 2.
परमाणु संरचना से संबंधित रदरफोर्ड मॉडल की कोई दो कमियाँ लिखो।
उत्तर:
- रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या करने में असफल।
- परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या करने में असफल।
प्रश्न 3.
हाइड्रोजन परमाणु में यदि इलेक्ट्रॉन के कोणीय संवेग का मान h/π, तो यह कौन-सी कक्षा में स्थित होगा?
उत्तर
प्रश्न 4.
हाइड्रोजन की लाइमन श्रेणी विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के किस क्षेत्र में पड़ती है?
उत्तर:
पराबैंगनी क्षेत्र में।
प्रश्न 5.
किसी हाइड्रोजन सम-परमाणु की प्रथम बोर कक्षा में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा – 27.2 eV है। तृतीय बोर कक्षा में इसकी ऊर्जा कितनी होगी?
उत्तर:
प्रश्न 6.
हाइड्रोजन परमाणु की विभिन्न कक्षाओं की त्रिज्याओं का अनुपात क्या होता है?
उत्तर:
प्रश्न 7.
हाइड्रोजन परमाणु की प्रथम कक्षा में इलेक्ट्रॉन की स्थितिज ऊर्जा का मान eV में क्या होगा?
उत्तर:
प्रश्न 8.
यदि हाइड्रोजन परमाणु में प्रथम बोर कक्षा की त्रिज्या .5A ली जाय, तो चौथी बोर कक्षा की त्रिज्या लिखो।
उत्तर:
प्रश्न 9.
बामर श्रेणी की अन्तिम रेखा की तरंगदैर्ध्य लिखो।
उत्तर:
प्रश्न 10.
बोर सिद्धान्त में कोणीय संवेग के क्वाण्टीकरण से संबंधित गणितीय सूत्र लिखो।
उत्तर:
प्रश्न 11.
हाइड्रोजन स्पैक्ट्रम की उस श्रेणी का नाम लिखो, जिसकी कुछ रेखाएँ दृश्य प्रकाश क्षेत्र में पड़ती है?
उत्तर:
बामर श्रेणी।
प्रश्न 12.
बोर सिद्धान्त के द्वितीय अभिगृहीत की व्याख्या किस परिकल्पना के आधार पर संभव है?
उत्तर:
डी-ब्रॉग्ली द्रव्य तरंग परिकल्पना।
RBSE Class 12 Physics Chapter 14 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
थॉमसन परमाणु मॉडल की कमियों का उल्लेख करो।
उत्तर:
अनुच्छेद 14.1 का अवलोकन करें।
परमाणु का शॉन मॉडल (Thomson’s Model of the Atom)
परमाणु संरचना के इतिहास में सबसे पहला नाम जे. जे. थॉमसन का आता है। इन्होंने सन् 1838 में परमाणु का प्रारूप प्रस्तुत किया जो ‘थॉमसन के परमाणु मॉडल’ के रूप में जाना गया। इस मॉडल के अनुसार-
(i) प्रत्येक परमाणु 10-10 m त्रिज्या का एक धनावेशित गोला होता है जिसमें परमाणु का सम्पूर्ण धन आवेश एवं द्रव्यमान एकसमान रूप से (uniformuly) वितरित होता है।
(ii) इस धनावेश को संतुलित करने के लिए गोले के अन्दर ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन जगह-जगह उसी प्रकार धैसे रहते हैं जिस प्रकार कि तरबूज (watermelon) के गूदे में उसके बीज । पैंसे रहते हैं (चित्र 14.1)।
(iii) इलेक्ट्रॉनों का कुल ऋणावेश परमाणु के धनावेश के बराबर होता है ताकि परमाणु विद्युत उदासीन रहे।
थॉमसन मॉडल में इलेक्ट्रॉन धनावेशित गोले में इस प्रकार अन्तः स्थापित माने गए जैसे व्यंजन पुडिंग (Pudding) में सुन्दरता एवं स्वाद के लिए आलूबुखारे (Plum) रखे जाते हैं। अत: इसे प्लम पुडिंग मॉडल भी कहा जाता है।
इस मॉडल के आधार पर तापायनिक उत्सर्जन (thermionic emission), प्रकाश-वैद्युत प्रभाव (photo- electric effect) तथा आयनीकरण (ionisation) की सफलतापूर्वक व्याख्या की गई।
थॉमसन के परमाणु मॉडल के दोष-परमाणु से विद्युत चुम्बकीय विकिरण उत्सर्जन को समझाने के लिए यह माना गया कि जब बाहरी स्रोत से किसी परमाणु को ऊर्जा दी जाती है तो उसके इलेक्ट्रॉन कम्पन करने लगते हैं और अपनी कम्पन आवृत्ति के समान आवृत्ति का प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। इस प्रकार किसी परमाणु से प्राप्त प्रकाश का स्पेक्ट्रम प्राप्त किया जाये तो उस स्पेक्ट्रम में इलेक्ट्रॉनों की कम्पन-आवृत्तियों के संगत रेखाएँ प्राप्त होंगी। अब यदि इस कल्पना के आधार पर हाइड्रोजन परमाणु के स्पेक्ट्रम की व्याख्या करें तो संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता। चूँकि हाइड्रोजन परमाणु में केवल एक ही इलेक्ट्रॉन होता है अतः उसकी केवल एक ही कम्पन आवृत्ति होगी, इस आधार पर हाइड्रोजन परमाणु के स्पेक्ट्रम में एक ही रेखा होनी चाहिए जबकि इस स्पेक्ट्रम में अनेक.रेखाएँ प्राप्त होती हैं। अतः इस मॉडल के आधार पर स्पेक्ट्रम की सफल व्याख्या नहीं की जा सकी। इसके अलावा यह मॉडल रदरफोर्ड के ∝-प्रकीर्णन प्रयोग की व्याख्या करने में भी असफल रहा। इस प्रकार इस मॉडल को अस्वीकृत कर दिया गया।
प्रश्न 2.
रदरफोर्ड परमाणु प्रतिरूप की मुख्य बातों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
दरफोर्ड का परमाणु मॉडल (Rutherford’s Atomic Model)
सन् 1911 में रदरफोर्ड ने अपने -कणों के प्रकीर्णन प्रयोग से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर परमाणु संरचना के सम्बन्ध में एक मॉडल प्रस्तुत किया। इस मॉडल के अनुसार,
(i) प्रत्येक परमाणु का समस्त धनावेश (Ze) तथा लगभग सम्पूर्ण द्रव्यमान (इलेक्ट्रॉनों के द्रव्यमान को छेड़कर) परमाणु के केन्द्र पर 10-14 m की कोटि की त्रिज्या के सूक्ष्म गोले में केन्द्रित रहता है, इसे नाभिक (nucleus) कहते हैं।
(ii) नाभिक के चारों ओर 10-10 m की कोटि की त्रिज्या के खोखले गोले में इलेक्ट्रॉन वितरित रहते हैं। इलेक्ट्रॉनों का कुल ऋण आवेश नाभिक के धन आवेश के बराबर होता है।
(iii) इलेक्ट्रॉन नाभिक के परितः स्थिर अवस्था में नहीं रह सकते क्योंकि ऋणावेशित होने के कारण वे नाभिक के आकर्षण के कारण नाभिक में गिर जायेंगे। इस समस्या के निराकरण के लिए रदरफोर्ड ने यह परिकल्पना की कि इलेक्ट्रॉन नाभिक के परितः वृत्ताकार कक्षाओं में घूमते रहते हैं और इसके लिए आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल उन्हें इलेक्ट्रॉनों एवं नाभिक के मध्य वैद्युत आकर्षण बल से प्राप्त होता है।
प्रश्न 3.
संक्षेप में समझाइये कि किस प्रकार रदरफोर्ड परमाणु मॉडल परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या नहीं कर पाता?
उत्तर:
रदरफोर्ड परमाणु मॉडल के दोष (Draw-backs of Rutherford’s Atomic Model) – रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल कई प्रायोगिक तथ्यों की व्याख्या करने में सफल रहा तथा तत्वों की आवर्त सारणी (periodic table) से भी इसे समर्थन प्राप्त हुआ, परन्तु यह मॉडल निम्न दो बिन्दुओं की व्याख्या करने में असफल रहा-
(i) परमाणु का स्थायित्व (Stability of the Atom) – रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या करने में असफल रहा। वैद्युत-गतिकी के अनुसार त्वरित आवेश ऊर्जा का उत्सर्जन करता है और रदरफोर्ड के अनुसार इलेक्ट्रॉन नाभिक के परितः वृत्ताकार कक्षाओं में गति करते हैं। अतः अभिकेन्द्रीय त्वरण के कारण इलेक्ट्रॉन की गति त्वरित गति की श्रेणी में आती है, फलस्वरूप उसे ऊर्जा का उत्सर्जन करना चाहिए। ऊर्जा का उत्सर्जन करने के कारण उसकी ऊर्जा में कमी आयेगी जिससे उसके मार्ग की त्रिज्या क्रमशः कम होती जायेगी और अन्ततोगत्वा उसे नाभिक में गिर जाना चाहिए परन्तु वास्तव में ऐसा होता नहीं है।
(ii) रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या (Explanation of Line Spectrum) – रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल परमाणुओं के रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या करने में भी असफल रहा। इस मॉडल के अनुसार परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर सभी सम्भव त्रिज्याओं की वृत्ताकार कक्षाओं में घूम सकते हैं अर्थात् उनके घूमने की आवृत्ति बदलती रहती है। इसके फलस्वरूप इलेक्ट्रॉन सभी सम्भव आवृत्तियों की विद्युत्-चुम्बकीय तरंगें उत्सर्जित करेंगे और फलस्वरूप परमाणु द्वारा उत्सर्जित प्रकाश का स्पेक्ट्रम अविरत (continuous) होना चाहिए परन्तु वास्तव में परमाणुओं का स्पेक्ट्रम रेखीय होता है जिसमें कुछ निश्चित आवृत्तियों का प्रकाश ही होता है।
प्रश्न 4.
बोर के सिद्धान्त की कमियों का उल्लेख करो।
उत्तर:
बोर मॉडल की कमियाँ (Limitations of Bohr Model)
बोर द्वारा प्रतिपादित परमाणु मॉडल ने रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की कमियों को दूर किया, परन्तु यह मॉडल भी कुछ महत्त्वपूर्ण प्रायोगिक तथ्यों की व्याख्या करने में असफल रहा।
- इस सिद्धान्त द्वारा केवल एक इलेक्ट्रॉन वाले परमाणु जैसेहाइड्रोजन, आयनित हीलियम इत्यादि की ही व्याख्या की जा सकती है।
- हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की प्रत्येक रेखा को अधिक विभेदन क्षमता (high resolving power) वाले उपकरण से देखने पर यह पाया जाता है। कि प्रत्येक रेखा में कई रेखाएँ होती हैं। बोहर के सिद्धान्त द्वारा इन रेखाओं की व्याख्या नहीं की जा सकती है।
- बोर के सिद्धान्त द्वारा स्पेक्ट्रम में रेखाओं की तीव्रता के बारे में। कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है।
- यह सिद्धान्त परमाणु में इलेक्ट्रॉन वितरण सम्बन्धी कोई सूचना नहीं देता है।
- यह मॉडल विद्युत क्षेत्र के विपाटन स्टार्क प्रभाव (Stark effect) तथा चुम्बकीय क्षेत्र के विपाटन जीमान प्रभाव (Zeeman effect) की व्याख्या नहीं कर सका।
- बोर मॉडल में कक्षायें वृत्ताकार मानी गईं जबकि व्युत्क्रम बल के प्रभाव के कारण गतिशील इलेक्ट्रॉन की कक्षायें दीर्घवृत्ताकार होनी चाहिये।
- बोर मॉडल में इलेक्ट्रन की स्थिति व वेग को एक साथ ज्ञात किया गया है। जबकि यह हाइजेनबर्ग के अनिश्चितता सिद्धान्त के विरूद्ध है।
प्रश्न 5.
हाइड्रोजन परमाणु में केवल एक इलेक्ट्रॉन है, परन्तु उसके उत्सर्जन स्पेक्ट्रम में कई रेखाएँ होती हैं। ऐसा कैसे होता है, संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
प्रत्येक परमाणु के कुछ निश्चित ऊर्जा स्तर होते हैं। सामान्यतया हाइड्रोजन परमाणु का इलेक्ट्रॉन निम्नतम ऊर्जा-स्तर में रहता है। जब परमाणु बाहरी स्रोत से ऊर्जा प्राप्त होती है, तो यह इलेक्ट्रॉन निम्न ऊर्जा स्तर से उच्च ऊर्जा स्तर में संक्रमण कर जाता है अर्थात् परमाणु उत्तेजित हो जाता है। लगभग 10-8 सेकण्ड रुककर इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर छेड़ देता है तथा यहाँ दो सम्भावनायें होती हैं|
- इलेक्ट्रॉन सीधे ऊर्जा स्तर से निम्नतम ऊर्जा स्तर में संक्रमण कर जाय |
- इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से अन्य निम्न ऊर्जा स्तरों से होते हुये निम्नतम ऊर्जा स्तर में लौट सकता है।
चूँकि प्रकाश स्रोत जैसे-हाइड्रोजन लैम्प में असंख्य परमाणु होते हैं, अतः स्रोत में सभी सम्भव संक्रमण होने लगते हैं तथा स्पेक्ट्रम में अनेक रेखाएँ दिखाई देती हैं।
प्रश्न 6.
रैखिल स्पेक्ट्रम के अध्ययन से तत्वों की पहचान कैसे की जा सकती है?
उत्तर:
प्रत्येक तत्व के परमाणुओं के ऊर्जा-स्तर सुनिश्चित होते हैं। तथा दूसरे तत्वों के ऊर्जा स्तरों से भिन्न होते हैं, अत: किसी एक तत्व के परमाणुओं से उत्सर्जित विकिरण के स्पेक्ट्रम में सदैव सुनिश्चित आवृत्तियों की रेखायें मिलती हैं तथा ये अन्य सभी तत्वों की रेखाओं से भिन्न होती। है। इसी कारण, पदार्थ के रैखिक स्पेक्ट्रम का अध्ययन उसकी पहचान करने के लिये “फिंगर प्रिन्ट” का कार्य करता है।
प्रश्न 7.
हाइड्रोजन गैस के किसी प्रतिदर्श में अधिकांशतः परमाणु n = 1 ऊर्जा स्तर में है। इस गैस में से दृश्य प्रकाश गुजारे जाने पर कुछ स्पेक्ट्रमी रेखाओं का अवशोषण हो जाता है। किस श्रेणी (लाइमन अथवा बामर) की स्पेक्ट्रमी रेखाओं का अधिकतम अवशोषण होता है। तथा क्यों?
उत्तर:
हाइड्रोजन से भरी नलिको में से दृश्य प्रकाश गुजारें, तो हाइड्रोजन के परमाणु इसमें से उपयुक्त ऊर्जा के प्रकाश फोटोनों को अवशोषित करके, निम्नतम ऊर्जा स्तर से विभिन्न उच्च ऊर्जा स्तरों में चले। जायेंगे, क्योंकि सभी संक्रमण निम्नतम ऊर्जा स्तर (n = 1) से प्रारम्भ हो रहे हैं, अतः सभी संक्रमण लाइमन श्रेणी के होंगे।
बामर श्रेणी के अवशोषण संक्रमण वे होंगे जो कि दूसरे ऊर्जा-स्तर (n = 2) से प्रारम्भ होंगे, परन्तु साधारण अवस्था में सभी परमाणु निम्नतम ऊर्जा स्तर (n = 1) में ही रहते हैं, अतः हाइड्रोजन परमाणु के अवशोषण स्पेक्ट्रम में केवल लाइमन श्रेणी प्राप्त होती है। शेष अन्य श्रेणियाँ प्राप्त नहीं होती हैं।
प्रश्न 8.
बोर सिद्धान्त के अनुसार इलेक्ट्रॉन की स्थायी कक्षा से क्या आशय है तथा इसके लिये शर्त क्या है?
उत्तर:
बोर के अनुसार इलेक्ट्रॉन की स्थायी कक्षा वह होती है, जिसमें घूमते हुये इलेक्ट्रॉन ऊर्जा उत्सर्जित नहीं करता।
शर्त – इन कक्षाओं में घूमते इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग h/2π का पूर्ण गुणज होता है। जहाँ h प्लांक नियतांक है। इसे क्वाण्टम प्रतिबंध कहते हैं।
प्रश्न 9.
बामर श्रेणी, अन्य श्रेणियों से पहले प्रेक्षित तथा विश्लेषित हुई थी। क्या आप इसके लिये कोई कारण सुझा सकते हैं?
उत्तर:
बामर श्रेणी की कुछ रेखायें दृश्य प्रकाश क्षेत्र में प्राप्त होती हैं, अत: ये सर्वप्रथम प्रेक्षित तथा विश्लेषित हुई थीं।
प्रश्न 10.
बोर मॉडल में n वीं कक्षा की कुल ऊर्जा का परिमाण |En तथा कोणीय संवेग Ln है, तो इनमें क्या संबंध होगा?
उत्तर:
RBSE Class 12 Physics Chapter 14 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
रदरफोर्ड के ∝-कण प्रकीर्णन प्रयोग का संक्षिप्त वर्णन कीजिये। इससे नाभिक की खोज कैसे हुई?
उत्तर:
एल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग और परमाणु का रदरफोर्ड मॉडल (∝-Particles Scattering Experiment and Rutherford Model of the Atom)
सन् 1911 में वैज्ञानिक रदरफोर्ड एवं उसके दो सहयोगियों गीगर एवं मार्सडन (Geiger and Marsden) ने परमाणु की संरचना का पता लगाने के लिए एक प्रयोग किया जिसकी रूपरेखा चित्र 14.2 में दिखायी गई है। इस प्रयोग में एक रेडियो-ऐक्टिव पदार्थ पोलोनियम (या रेडॉन) को सीसे के
बॉक्स A में रखा जाता है। इस बॉक्स के छिद्र O से उच्च गतिज ऊर्जा के ∝-कण (जो वास्तव में हीलियम परमाणु 2He4 के नाभिक होते हैं) तीव्र वेग से निकलते हैं। डॉयफ्राम D1 व D2 से गुजरने के बाद -कण संकीर्ण सीसे के किरण पुंज के रूप में पतली स्वर्ण पन्नी G पर आपतित होते हैं। स्वर्ण पन्नी की मोटाई लगभग 10-5cm होती है तथा इसके पतले होने के कारण ∝-कण का विक्षेप एक अकेली टक्कर से होता है। सोने की पन्नी इसलिए ली जाती है क्योंकि (i) सोने की पन्नी अत्यधिक पतली बनाई जा सकती है और (ii) सोने का नाभिक भारी होता है जिससे ∝-कण का विक्षेप अधिक होता है। रदरफोर्ड ने यह देखा कि पन्नी से गुजरते हुए -कण विभिन्न दिशाओं में विक्षेपित हो जाते हैं। ∝-कणों के पदार्थ के परमाणुओं के टक्कर के कारण अपने मार्ग से विक्षेपित होने की घटना को प्रकीर्णन (scattering) कहते हैं। प्रकीर्णित ∝-कण एक प्रस्फुरणशील पर्दै (scintillating screen) S पर डाले जाते हैं जिससे प्रत्येक ∝-कण एक प्रस्फुरण उत्पन्न करता है। सूक्ष्मदर्शी को किसी भी दिशा में घुमाकर निश्चित दिशा में उत्पन्न प्रस्फुरणों को गिना जा सकता है अर्थात् उस दिशा में प्रकीर्णित ∝-कणों को गिना जा सकता है। प्रस्फुरणशील पर्दे तथा सूक्ष्मदर्शी के स्थान पर प्रस्फुर गणित्र (scintillation counter) भी प्रयुक्त किया जा सकता है। इस सम्पूर्ण प्रबन्ध को निर्वात में रखा जाता है जिससे कि ∝-कणों की वायु के कणों से कोई टक्कर न होने पाये।
इस प्रयोग से रदरफोर्ड ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त किये-
(i) “अधिकांश ∝-कण बिना प्रकीर्णित हुए पन्नी को पार करके सीधे निकल जाते हैं।” इस प्रेक्षण से रदरफोर्ड ने यह निष्कर्ष निकाला कि परमाणु का अधिकांश भाग खोखला होता है। स्पष्ट है कि यह प्रेक्षण थॉमसन के परमाणु मॉडल के विरुद्ध है। थॉमसन के अनुसार परमाणु धनावेश का ठोस गोला होता है। यदि परमाणु ठोस गोला होता तो ∝-कण उसे कैसे पार कर जाते हैं।
(ii) कुछ ∝-कण छोटे-छोटे कोण बनाते हुए अपने मार्ग से विक्षेपित हो जाते हैं। चूँकि ∝-कणों पर धनावेश होता है अतः इनका प्रकीर्णन किसी धनावेशित वस्तु से ही सम्भव है। इस प्रकार रदरफोर्ड ने यह निष्कर्ष निकाला कि परमाणु का समस्त धनावेश एक ही स्थान पर केन्द्रित होना चाहिए। इस प्रेक्षण के द्वारा भी थॉमसन के मॉडल को गलत बताया गया जिसके अनुसार धनावेश परमाणु में समान रूप से वितरित होता है।
(iii) बहुत कम ∝-कण (8000 में एक) पश्च प्रकीर्णन प्रदर्शित करते हैं अर्थात् अपने मार्ग से 90° या इससे भी अधिक कोण पर विक्षेपित होकर वापस लौट जाते हैं। इस प्रेक्षण से यह निष्कर्ष निकाला गया कि परमाणु नाभिक के केन्द्रित धनावेश का आकार अत्यन्त सूक्ष्म होता है। इसे नाभिक (nucleus) कहते हैं। परमाणु की समस्त द्रव्यमान भी नाभिक में केन्द्रित रहता है।
नाभिक का आकार जितना छेटा होगा, उतने ही कम ∝-कण नाभिक के समीप पहुँचेंगे अर्थात् अधिक कोण पर प्रकीर्णित होने वाले ∝-कणों की संख्या उतनी ही कम होगी। गणना करने पर नाभिक की त्रिज्या 10-14 m की कोटि की प्राप्त होती है। इस प्रकार नाभिक का आकार परमाणु के आकार का केवल दस हजारवाँ भाग होता है। परमाणु के शेष रिक्त स्थान में केवल इलेक्ट्रॉन होते हैं।
नाभिक की अभिधारणा परमाणु की संरचना की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है तथा इससे रदरफोर्ड के प्रायोगिक परिणामों की सफल व्याख्या होती है। रदरफोर्ड ने अपने प्रेक्षणों की व्याख्या चित्र 14.3 की भाँति की। चित्र से स्पष्ट है कि जो ∝-कण नाभिक से बहुत दूर होते हैं वे सीधे बिना विचलित हुए पन्नी से आर-पार निकल जाते हैं। जैसे-जैसे -कण नाभिक के निकट पहुँचता जाता है, उसका प्रकीर्णन आरम्भ हो जाता है। नाभिक से दूरी घटने पर प्रकीर्णन कोण बढ़ता जाता है।
(iv) ∝-कणों के प्रकीर्णन का प्रयोग कूलॉम के नियम की सत्यता को सिद्ध करता है। रदरफोर्ड ने यह माना था कि धनावेशित ∝-कण
एवं धनावेशित नाभिक के मध्य लगने वाला प्रतिकर्षण बल कूलॉम के नियम द्वारा दिया जाता है। अर्थात् प्रतिकर्षण बल कण की नाभिक से दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। इस बल के कारण ∝-कण का मार्ग अतिपरवलयाकार (hyperbolic) हो जाता है जैसा (चित्र 14.4) में दिखाया गया है। जैसे-जैसे दूरी r का मान घटता है, F का मान तेजी से बढ़ता जाता है, अतः परमाणु से गुजरते समय जो कण नाभिक से दूर रहता है, उस पर लगने वाला प्रतिकर्षण बल इतना कम होता है कि | वह बिना विक्षेपित हुए अपने प्रारम्भिक मार्ग पर सीधे निकल जाता है, | परन्तु जो ∝-कण नाभिक के जितने समीप से गुजरता है, उस पर उतना ही अधिक प्रतिकर्षण बल लगता है और फलस्वरूप वह उतने ही अधिक कोण (θ) से प्रकीर्णित होता है (चित्र 14.5)। नाभिक से ∝-कण की दूरी के साथ प्रकीर्णन कोण θ का परिवर्तन (चित्र 14.6) में दिखाया गया है। चूंकि इस प्रयोग में किसी विशेष ∝-कण के लिए दूरी r के साथ प्रकीर्णन कोण θ का परिवर्तन ज्ञात नहीं किया जा सकता है,
अतः r – θ ग्राफ को प्रयोगात्मक रूप से नहीं खींचा जा सकता है। रदरफोर्ड ने कूलॉम के नियम के आधार पर विभिन्न कोणों पर प्रकीर्णित
होने वाले ∝-कणों की संख्या की गणना की तथा उन्होंने पाया कि किसी कोण (θ) पर प्रकीर्णित होने वाले कणों की संख्या N का मान sin4(θ/2)
N व θ के मध्य ग्राफ चित्र 14.7 में दिखाया गया है। उक्त सम्बन्ध को सन् 1913 में गीगर तथा मार्सडन (Geiger & Marsden) ने प्रयोग द्वारा सत्य पाया। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि नाभिक द्वारा ∝-कणों का प्रकीर्णन कूलॉम के नियम के अनुसार है अर्थात् कूलॉम का नियम परमाण्वीय दूरियों (10-4m तक) के लिए भी लागू रहता है।
(v) रदरफोर्ड ने प्रयोग द्वारा विभिन्न धातुओं (जैसे-सोना, चाँदी, प्लैटिनम आदि)की पन्नियों से एक निश्चित दिशा में प्रकीर्णित होने वाले ∝-कणों की संख्या ज्ञात की तथा उन्होंने पाया कि यह संख्या भिन्न-भिन्न धातुओं की पन्नियों के लिए भिन्न-भिन्न आती है। इससे उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि भिन्न-भिन्न धातुओं के नाभिकों में धनावेश की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। किसी नाभिक में धनावेश जितना अधिक होगा, ∝-कण उस नाभिक से उतने ही अधिक बल से प्रतिकर्षित होगा और फलस्वरूप प्रकीर्णन कोण उतना ही अधिक होगा (चित्र 14.8)। कूलॉम के नियम द्वारा रदरफोर्ड ने गणना करके दिखाया कि किसी निश्चित कोण परास में प्रकीर्णित होने वाले ∝-कणों की संख्या प्रयुक्त धातु वे नाभिक में धन आवेश की मात्रा के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है (क्योंकि नाभिक में धनावेश जितना अधिक होगा, आपतित ∝ कण पर उतना ही अधिक बल लगेगा और वह उतने ही अधिक कोण पर प्रकीर्णित होगा)। इस आधार पर सन् 1920 में वैज्ञानिक चैडविक (Chadwick) ने पाया कि किसी धातु के नाभिक में धनावेश की मात्रा Ze होती है, जहाँ z, उस धातु के लिए नियतांक है जिसे ‘परमाणु क्रमांक’ (atomic number) कहते हैं और e, इलेक्ट्रॉन का आवेश है।
प्रश्न 2.
रदरफोर्ड के मॉडल में क्या कमियाँ रह गई थीं? इनका निराकरण बोर ने अपने मॉडल में कैसे किया? विस्तार से समझाइये।
उत्तर:
रदरफोर्ड परमाणु मॉडल के दोष (Draw-backs of Rutherford’s Atomic Model) – रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल कई प्रायोगिक तथ्यों की व्याख्या करने में सफल रहा तथा तत्वों की आवर्त सारणी (periodic table) से भी इसे समर्थन प्राप्त हुआ, परन्तु यह मॉडल निम्न दो बिन्दुओं की व्याख्या करने में असफल रहा-
(i) परमाणु का स्थायित्व (Stability of the Atom) – रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या करने में असफल रहा। वैद्युत-गतिकी के अनुसार त्वरित आवेश ऊर्जा का उत्सर्जन करता है और रदरफोर्ड के अनुसार इलेक्ट्रॉन नाभिक के परितः वृत्ताकार कक्षाओं में गति करते हैं। अतः अभिकेन्द्रीय त्वरण के कारण इलेक्ट्रॉन की गति त्वरित गति की श्रेणी में आती है, फलस्वरूप उसे ऊर्जा का उत्सर्जन करना चाहिए। ऊर्जा का उत्सर्जन करने के कारण उसकी ऊर्जा में कमी आयेगी जिससे उसके मार्ग की त्रिज्या क्रमशः कम होती जायेगी और अन्ततोगत्वा उसे नाभिक में गिर जाना चाहिए परन्तु वास्तव में ऐसा होता नहीं है।
(ii) रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या (Explanation of Line Spectrum) – रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल परमाणुओं के रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या करने में भी असफल रहा। इस मॉडल के अनुसार परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर सभी सम्भव त्रिज्याओं की वृत्ताकार कक्षाओं में घूम सकते हैं अर्थात् उनके घूमने की आवृत्ति बदलती रहती है। इसके फलस्वरूप इलेक्ट्रॉन सभी सम्भव आवृत्तियों की विद्युत्-चुम्बकीय तरंगें उत्सर्जित करेंगे और फलस्वरूप परमाणु द्वारा उत्सर्जित प्रकाश का स्पेक्ट्रम अविरत (continuous) होना चाहिए परन्तु वास्तव में परमाणुओं का स्पेक्ट्रम रेखीय होता है जिसमें कुछ निश्चित आवृत्तियों का प्रकाश ही होता है।
हाइड्रोजन परमाणु एवं हाइड्रोजन सदृश आयनों के लिये बोर मॉडल (Bohr Model for Hydrogen Atom and Hydrogen Like Ions)
वैज्ञानिक नील्स बोर ने चिरसम्मत भौतिकी एवं प्रारम्भिक क्वाण्टम संकल्पनाओं को संयुक्त करके हाइड्रोजन तथा हाइड्रोजन सदृश आयनों जैसे He+, Li++ जिनमें एक कक्षीय इलेक्ट्रॉन होते हैं को समझाने के लिये तीन अभिगृहीत प्रस्तुत किये।
(i) परमाणु में इलेक्ट्रॉन निश्चित त्रिज्याओं की कक्षाओं में नाभिक के चारों ओर परिक्रमण करते हैं, इन कक्षाओं में परिक्रमण करते समय इलेक्ट्रॉन विद्युत चुम्बकीय विकिरण उत्सर्जित नहीं करते हैं। ये विशिष्ट कक्षाएँ स्थायी कक्षाएँ (Stationary) कहलाती हैं। जब ये इलेक्ट्रॉन इन कक्षाओं में परिक्रमण करते हैं तो इलेक्ट्रॉन व नाभिक के मध्य कार्य करने वाला कुलाम (आकर्षण) बल इलेक्ट्रॉनों को परिक्रमण के लिये आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल प्रदान करता है।
यदि एक इलेक्ट्रॉन Ze आवेश के नाभिक के चारों ओर n र्वी स्थायी कक्षा में परिक्रमा करता है तो
(iii) स्थायी कक्षाओं में रहते हुए इलेक्ट्रॉन ऊर्जा का उत्सर्जन नहीं करते हैं और इस प्रकार परमाणु का स्थायित्व बना रहता है। जब इलेक्ट्रॉन को बाहर से ऊर्जा दी जाती है तो वह उसका अवशोषण करता है और निम्न ऊर्जा की कक्षा से उच्च ऊर्जा की कक्षा में जाता है। इसके विपरीत जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा की कक्षा से निम्न ऊर्जा की कक्षा में आता है। तो वह ऊर्जा का उत्सर्जन करता है। यह उत्सर्जित ऊर्जा फोटॉन के रूप में होती है।
यदि इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा E2 वाली कक्षा से निम्न ऊर्जा E1 वाली कक्षा में जाता है तो उत्सर्जित फोटॉन की ऊर्जा
परन्तु प्लांक के सिद्धान्त से ∆E = hv, जहाँ v उत्सर्जित फोटॉन की आवृत्ति है।
hv = E2 – E1 … (3)
प्रश्न 3.
हाइड्रोजन परमाणु के लिये बोर सिद्धान्त के अभिग्रहीत लिखिए। इसकी वीं कक्षा में इलेक्ट्रॉन की कुल ऊर्जा के लिये सूत्र स्थापित करो।
उत्तर:
हाइड्रोजन परमाणु एवं हाइड्रोजन सदृश आयनों के लिये बोर मॉडल (Bohr Model for Hydrogen Atom and Hydrogen Like Ions)
वैज्ञानिक नील्स बोर ने चिरसम्मत भौतिकी एवं प्रारम्भिक क्वाण्टम संकल्पनाओं को संयुक्त करके हाइड्रोजन तथा हाइड्रोजन सदृश आयनों जैसे He+, Li++ जिनमें एक कक्षीय इलेक्ट्रॉन होते हैं को समझाने के लिये तीन अभिगृहीत प्रस्तुत किये।
(i) परमाणु में इलेक्ट्रॉन निश्चित त्रिज्याओं की कक्षाओं में नाभिक के चारों ओर परिक्रमण करते हैं, इन कक्षाओं में परिक्रमण करते समय इलेक्ट्रॉन विद्युत चुम्बकीय विकिरण उत्सर्जित नहीं करते हैं। ये विशिष्ट कक्षाएँ स्थायी कक्षाएँ (Stationary) कहलाती हैं। जब ये इलेक्ट्रॉन इन कक्षाओं में परिक्रमण करते हैं तो इलेक्ट्रॉन व नाभिक के मध्य कार्य करने वाला कुलाम (आकर्षण) बल इलेक्ट्रॉनों को परिक्रमण के लिये आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल प्रदान करता है।
यदि एक इलेक्ट्रॉन Ze आवेश के नाभिक के चारों ओर n र्वी स्थायी कक्षा में परिक्रमा करता है तो
(iii) स्थायी कक्षाओं में रहते हुए इलेक्ट्रॉन ऊर्जा का उत्सर्जन नहीं करते हैं और इस प्रकार परमाणु का स्थायित्व बना रहता है। जब इलेक्ट्रॉन को बाहर से ऊर्जा दी जाती है तो वह उसका अवशोषण करता है और निम्न ऊर्जा की कक्षा से उच्च ऊर्जा की कक्षा में जाता है। इसके विपरीत जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा की कक्षा से निम्न ऊर्जा की कक्षा में आता है। तो वह ऊर्जा का उत्सर्जन करता है। यह उत्सर्जित ऊर्जा फोटॉन के रूप में होती है।
यदि इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा E2 वाली कक्षा से निम्न ऊर्जा E1 वाली कक्षा में जाता है तो उत्सर्जित फोटॉन की ऊर्जा
परन्तु प्लांक के सिद्धान्त से ∆E = hv, जहाँ v उत्सर्जित फोटॉन की आवृत्ति है।
∆v = E2 – E1 … (3)
वीं कक्षा में इलेक्ट्रॉन की कुल उर्जा (Total Energy of Electron in nth Orbit)
किसी भी स्थायी कक्षा में कुल ऊर्जा (E), गतिज ऊर्जा तथा स्थितिज ऊर्जा के योग के बराबर होती है।
इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा,
Kn = 1/2mv2
अनुच्छेद 14.3.1 के समी. (2) से,
प्रश्न 4.
बोर परमाणु मॉडल के आधार पर हाइड्रोजन परमाणु के रैखिल स्पेक्ट्रम की व्याख्या करो।
उत्तर:
रेखीय स्पेक्ट्रम गैसों तथा धातुओं की वाष्पों से प्राप्त होता है, जबकि वे परमाणु अवस्था में होती है अतः रेखीय स्पेक्ट्रम को परमाण्वीय स्पेक्ट्रम भी कहते हैं।
बोर सिद्धान्त द्वारा हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की व्याख्या (Explanation of Hydrogen Spectrum by Bohr’s Theory)
सामान्य या कक्षीय ताप पर हाइड्रोजन परमाणु अपनी मूल अवस्था (n = 1) में होते हैं परन्तु गैस को ऊष्मा, विद्युत धारा द्वारा ऊर्जा दी जाती है तो गैस के परमाणुओं के कुछ इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तरों में संक्रमण कर जाते हैं परन्तु जब इलेक्ट्रॉन निम्न ऊर्जा स्तरों में पुन: लौटते हैं तो परमाणु विद्युत चुम्बकीय विकरण उत्सर्जित करते हैं। बोर मॉडल के तृतीय अभिगृहीत के अनुसार,
परमाणु से प्राप्त विद्युत चुम्बकीय विकिरणों की विभिन्न तरंगदैर्घ्य विभिन्न श्रेणियों से सम्बद्ध होती हैं।
1. लाइमन श्रेणी-इस श्रेणी के लिये n1 = 1 व n2 = 2, 3, 4, …
जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से प्रथम ऊर्जा स्तर में संक्रमण करता है तो विद्युत चुम्बकीय विकिरण की जो तरंगदैर्ध्य प्राप्त होती है वह लाइमन श्रेणी से सम्बद्ध होती है।
(i) इस श्रेण की सबसे बड़ी तरंगदैर्घ्य के लिये n2 = 2 होगा। λ = 1216A है।
(ii) इस श्रेणी की सबसे छोटी तरंगदैर्घ्य जिसे श्रेणी सीमा कहते हैं के लिये n2 = ∞ होगा। λ = 912A है।
2. बामर श्रेणी-जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से द्वितीय ऊर्जा स्तर में संक्रमण करता है तो विद्युत चुम्बकीय विकिरण की जो तरंगदैर्ध्य प्राप्त होती है वह बामर श्रेणी से सम्बद्ध होती है।
(i) इस श्रेणी की सबसे बड़ी तरंगदैर्घ्य के लिये n2 = 3 होगा। λ = 6563A है।
(ii) इस श्रेणी की सबसे छोटी तरंगदैर्घ्य जिसे श्रेणी सीमा कहते हैं के लिये n2 = ∝ होगा। λ = 3646A है।
3. पाश्चन श्रेणी-जब इलेक्ट्रान उच्च ऊर्जा स्तर से तृतीय ऊर्जा स्तर में संक्रमण करता है तो विद्युत चुम्बकीय विकिरण की जो तरंगदैर्घ्य प्राप्त होती है वह पाश्चन श्रेणी से सम्बद्ध होती है।
(i) इस श्रेणी की सबसे बड़ी तरंगदैर्घ्य के लिये n2 = 4 होगा। λ = 18751A है।
(ii) इस श्रेणी की सबसे छोटी तरंगदैर्घ्य जिसे श्रेणी सीमा कहते हैं। के लिये n2 = ∝ होगा। λ = 82204 है।।
4. बैकेट श्रेणी-जब इलेक्ट्रान उच्च ऊर्जा स्तर से चतुर्थ ऊर्जा स्तर में संक्रमण करता है तो विद्युत चुम्बकीय विकिरण की जो तरंगदैर्घ्य प्राप्त होती है वह ब्रैकेट श्रेणी से सम्बद्ध होती है।
(i) इस श्रेणी की सबसे बड़ी तरंगदैर्घ्य के लिये n2 = 5 होगा। λ = 40477A है।
(ii) इस श्रेणी की सबसे छोटी तरंगदैर्घ्य जिसे श्रेणी सीमा कहते हैं के लिये n2 = ∞ होगा। λ = 14572A है।
5. फुण्ड श्रेणी-जब इलेक्ट्रान उच्च ऊर्जा स्तर से पंचम ऊर्जा स्तर में संक्रमण करता है तो विद्युत चुम्बकीय विकिरण की जो तरंगदैर्घ्य प्राप्त होती है वह फुण्ड श्रेणी से सम्बद्ध है।
(i) इस श्रेणी की सबसे बड़ी तरंगदैर्घ्य के लिये n2 = 6 होगा। λ = 74515A है।
(ii) इस श्रेणी की सबसे छोटी तरंगदैर्घ्य जिसे श्रेणी सीमा कहते हैं | के लिये n2 = ∞ होगा। λ = 22768A है।
हाइड्रोजन परमाणु का अवशोषण स्पेक्ट्रम (Absorption Spectrum of Hydrogen Atom)
जैसा कि हम जानते हैं, उत्सर्जन एवं अवशोषण दोनों एक साथ होने वाली क्रियाएँ हैं। अन्तर इतना है कि अवशोषण संक्रमण केवल मूल अवस्था
से ही सम्भव है जबकि उत्सर्जन संक्रमण उत्तेजित अवस्थाओं में भी सम्भव होता है। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि हाइड्रोजन परमाणु के अवशोषण स्पेक्ट्रम में केवल लाइमन श्रेणी ही मिलेगी (चित्र 14.16)। बॉमर श्रेणी के अवशोषण-संक्रमण वे होंगे जोकि दूसरे ऊर्जा-स्तर (n = 2) से प्रारम्भ होंगे। परन्तु चूँकि साधारण अवस्था में सभी परमाणु निम्नतम ऊर्जा-स्तर (n = 1) में ही रहते हैं, अतः अवशोषण संक्रमण केवल n = 1 स्तर में ही प्रारम्भ हो सकते हैं (n = 2, 3, …. से नहीं)। अतः हाइड्रोजन परमाणु के अवशोषण स्पेक्ट्रम में केवल लाइमन श्रेणी ही प्राप्त होती है, अन्य कोई भी श्रेणी प्राप्त नहीं होती (जबकि उत्सर्जन स्पेक्ट्रम में सभी श्रेणियाँ प्राप्त हो जाती हैं)।
सूर्य में हाइड्रोजन परमाणु उपस्थित होते हैं, अतः सूर्य के अवशोषण स्पेक्ट्रम में हाइड्रोजन की लाइमन श्रेणी के अतिरिक्त बामर श्रेणी भी पायी जाती है। इसका कारण यह है कि सूर्य का ताप अत्यधिक होने के कारण इसमें मौजूद हाइड्रोजन परमाणु का ताप भी अत्यधिक होता है जिससे अनेक परमाणु उच्च ऊर्जा स्तर (n = 2) में भी होते हैं, अत: उनके लिए यह अवस्था ही मूल अवस्था की तरह व्यवहार करती है। इसीलिए सूर्य के अवशोषण स्पेक्ट्रम में बामर श्रेणी भी मिल जाती है।
प्रश्न 5.
बोर के परमाणु मॉडल की कमियाँ लिखिये। समझाइये कि किस प्रकार डी-ब्रॉग्ली की द्रव्य तरंग परिकल्पना द्वारा कक्षीय कोणीय संवेग के क्वाण्टीकरण की व्याख्या संभव है?
उत्तर:
बोर मॉडल की कमियाँ (Limitations of Bohr Model)
बोर द्वारा प्रतिपादित परमाणु मॉडल ने रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की कमियों को दूर किया, परन्तु यह मॉडल भी कुछ महत्त्वपूर्ण प्रायोगिक तथ्यों की व्याख्या करने में असफल रहा।
- इस सिद्धान्त द्वारा केवल एक इलेक्ट्रॉन वाले परमाणु जैसेहाइड्रोजन, आयनित हीलियम इत्यादि की ही व्याख्या की जा सकती है।
- हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की प्रत्येक रेखा को अधिक विभेदन क्षमता (high resolving power) वाले उपकरण से देखने पर यह पाया जाता है कि प्रत्येक रेखा में कई रेखाएँ होती हैं। बोहर के सिद्धान्त द्वारा इन रेखाओं की व्याख्या नहीं की जा सकती है।
- बोर के सिद्धान्त द्वारा स्पेक्ट्रम में रेखाओं की तीव्रता के बारे में। कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है।
- यह सिद्धान्त परमाणु में इलेक्ट्रॉन वितरण सम्बन्धी कोई सूचना नहीं देता है।
- यह मॉडल विद्युत क्षेत्र के विपाटन स्टार्क प्रभाव (Stark effect) तथा चुम्बकीय क्षेत्र के विपाटन जीमान प्रभाव (Zeeman effect) की व्याख्या नहीं कर सका।
- बोर मॉडल में कक्षायें वृत्ताकार मानी गईं जबकि व्युत्क्रम बल के प्रभाव के कारण गतिशील इलेक्ट्रॉन की कक्षायें दीर्घवृत्ताकार होनी चाहिये।
- बोर मॉडल में इलेक्ट्रन की स्थिति व वेग को एक साथ ज्ञात किया गया है। जबकि यह हाइजेनबर्ग के अनिश्चितता सिद्धान्त के विरूद्ध है।
द्रव्य तरंग से बोर के द्वितीय अशिग्रहीत की व्याख्या
(Explanation of Bohr’s Second Postulate by Bohr’s Theory)
बोर के परमाणु मॉडल में तीन अभिगृहीत हैं जिनमें दूसरे अभिगृहीत के अनुसार, “नाभिक के परितः इलेक्ट्रॉन केवल उन्हीं कक्षाओं में नाभिक की परिक्रमा कर सकता है जिनके लिए कोणीय संवेग का मान h/2π का पूर्ण गुणज होता है।” अर्थात्
इस अभिगृहीत में समस्या यह है कि कोणीय संवेग का मान का ही पूर्ण गुणज क्यों होता है ? सन् 1923 में फ्रांसीसी भौतिकविद् लुईस डी-ब्रॉग्ली ने इस समस्या का समाधान प्रस्तुत किया।
डी-ब्रॉग्ली परिकल्पना के अनुसार गतिशील द्रव्य कण जैसे इलेक्ट्रॉन, तरंग जैसे लक्षण प्रदर्शित करते हैं। डेविसन-जर्मर प्रयोग द्वारा इलेक्ट्रॉनों की तरंग प्रकृति का सत्यापन सम्भव हुआ। अतः डी-ब्रॉग्ली ने तर्क दिया कि इलेक्ट्रॉन को बोर द्वारा प्रस्तावित कक्षा में कण तरंग के रूप में देखा जाना चाहिए। जिस प्रकार डोरियों में उत्पन्न तरंगें अनुनादी अवस्था में अप्रगामी तरंगें उत्पन्न करती हैं उसी प्रकार कण तरंगें भी अनुनादी अवस्थाओं में अप्रगामी तरंगें उत्पन्न कर सकती हैं। किसी डोरी में अप्रगामी तरंगें तभी बनेंगी जब तरंग द्वारा डोरी में एक ओर जाने में तथा वापस आने में तय की गई कुल दूरी, एक तरंगदैर्घ्य, दो तरंगदैर्घ्य
अथवा कोई भी पूर्णांक संख्या की तरंगदैर्घ्य के बराबर हो। अन्य स्थितियों में (तरंगदैर्घ्य के अन्य गुणांकों) परावर्तन के पश्चात् अध्यारोपण होता है और उनके आयाम शून्य हो जाते हैं। यदि कक्षा की त्रिज्या rn है तो nर्वी कक्षा में इलेक्ट्रॉन द्वारा कक्षा की परिधि में तय की गई कुल दूरी 2πrn होगी। अतः
यही बोर के परमाणु मॉडल का द्वितीय अभिगृहीत है। इस प्रकार डी-ब्रॉग्ली की परिकल्पना परिक्रामी इलेक्ट्रॉन के कोणीय संवेग के क्वाण्टमीकरण की बोर द्वारा प्रस्तावित द्वितीय अभिगृहीत के लिए। व्याख्या प्रस्तुत करती है। इलेक्ट्रॉन की क्वाण्टित कक्षाएँ तथा ऊर्जा स्थितियाँ, इलेक्ट्रॉन की तरंग प्रकृति के कारण और केवल अनुनादी अप्रगामी तरंगें ही अवस्थित रह सकती हैं।
प्रश्न 6.
बोर मॉडल के अनुसार हाइड्रोजन परमाणु की स्थायी कक्षाओं के लिये त्रिज्या के लिये सूत्र स्थापित कीजिये तथा सिद्ध कीजिये कि हाइड्रोजन परमाणु में स्थायी कक्षाओं की त्रिज्याओं का अनुपात 1:4:9 होता है।
उत्तर:
बोर की त्रिज्या (Bohr’s Radius) या स्थायी कक्षाओं की त्रिज्याएँ (Radii of Stable Orbits)
माना किसी परमाणु की n वीं कक्षा की त्रिज्यो rn है और इसमें एक इलेक्ट्रॉन vn वेग से गति कर रहा है। यदि इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान m हो तो बोहर के | नाभिक द्वितीय अभिगृहीत से,
RBSE Class 12 Physics Chapter 14 आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
हाइड्रोजन परमाणु की द्वितीय बोर कक्षा की त्रिज्या, इसमें इलेक्ट्रॉन की चाल तथा कक्षा की कुल ऊर्जा ज्ञात करो।
(दिया है – इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान m = 9.1 × 10kg, e = 1.6 × 10-19, h = 6.6 × 10-34J-s)
हल :
प्रश्न 2.
यदि लाइमन श्रेणी की प्रथम रेखा की तरंगदैर्घ्य 1216 A है, तो बामर तथा पाश्चन श्रेणी की प्रथम रेखाओं की तरंगदैर्घ्य ज्ञात करो।
हल :
प्रश्न 3.
किसी परमाणु में ऊर्जा स्तर A से cमें संक्रमण में 1000 A तथा ऊर्जा स्तर B से c में संक्रमण 5000 A तरंगदैर्घ्य के फोटॉन उत्सर्जित होते हैं। ऊर्जा स्तर A से B में संक्रमण से उत्सर्जित फोटॉन की तरंगदैर्घ्य कितनी होगी?
हल :
प्रश्न 4.
द्वि आयनित लीथियम जिसका परमाणु क्रमांक 3 है। हाइड्रोजन सदृश होता है
(i) इस परमाणु में इलेक्ट्रॉन की प्रथम कक्षा से तृतीय कक्षा में उत्तेजित करने के लिये आवश्यक विकिरण की तरंगदैर्घ्य ज्ञात करो।
(ii) उत्तेजित निकाय के उत्सर्जन स्पेक्ट्रम में कितनी स्पेक्ट्रमी रेखाएँ प्रेक्षित होंगी?
हल :
प्रश्न 5.
बामर श्रेणी की प्रथम रेखा का तरंगदैर्घ्य 6564A हो, तो रिडबर्ग नियतांक तथा तरंग संख्या का मान ज्ञात करो। …
हल:
प्रश्न 6.
हाइड्रोजन सदृश कोई आयन n = 2 से n = 1 तक के संक्रमण में 2.467 × 107Hz आवृत्ति के विकिरण उत्सर्जित करता है। संक्रमण n = 3 से n = 1 में उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति ज्ञात करो।
हल :
प्रश्न 7.
λ तरंगदैर्घ्य के एकवर्णी विकिरण किसी हाइड्रोजन प्रतिदर्श पर आपतित हैं, जिसके परमाणु मूल ऊर्जा अवस्था में हैं। हाइड्रोजन परमाणु विकिरण अवशोषित करते हैं तथा फिर छः भिन्न तरंगों के तरंगदैर्घ्य उत्सर्जित करते हैं। λ का मान ज्ञात करो। (दिया है-hc = 1242 eV-nm हाइड्रोजन की मूल अवस्था E = 13.6 eV)
हल :
प्रश्न 8.
हाइड्रोजन परमाणुओं में संक्रमण n = 4 से n = 2 के संगत प्रकाश किसी धातु जिसका कार्यफलन 1.9 eV हैपर आपतित होता है। उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा ज्ञात करो।
हल :
प्रश्न 9.
हाइड्रोजन का एक प्रतिदर्श किसी उत्तेजित अवस्था विशेष A में है। इस प्रतिदर्श द्वारा 2.55 eV के फोटॉनों के अवशोषण से यह आगे किसी अन्य उत्तेजित अवस्था B में पहुँचता है। अवस्थाओं A तथा B के लिये मुख्य क्वाण्टम संख्या ज्ञात करो।
हल :
प्रश्न 10.
एक परमाणु का ऊर्जा स्तर आरेख चित्र में दर्शाया गया है। संक्रमण B तथा D के संगत फोटोनों के तरंगदैर्घ्य ज्ञात करो।
हल :
प्रश्न 11.
हाइड्रोजन परमाणु के लिये एक स्थायी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकतम कोणीय चाल ज्ञात करो।
हल :
प्रश्न 12.
n = 5 अवस्था से n = 1 अवस्था में जाने में फोटॉन के उत्सर्जन के पश्चात् हाइड्रोजन परमाणु का प्रतिक्षिप्त संवेग क्या है ? (दिया है R = 1.097 × 107m-1 = 6.63 × 10-34J-s तथा हाइड्रोजन का द्रव्यमान = 1.67 × 10-27 kg ।
हल :