RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 17 विद्युत चुम्बकीय तरंगें, संचार एवं समकालीन भौतिकी
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 17 विद्युत चुम्बकीय तरंगें, संचार एवं समकालीन भौतिकी
Rajasthan Board RBSE Class 12 Physics Chapter 17 विद्युत चुम्बकीय तरंगें, संचार एवं समकालीन भौतिकी
RBSE Class 12 Physics Chapter 17 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 12 Physics Chapter 17 बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विद्युत चुम्बकीय तरंग में औसत ऊर्जा घनतव सम्बंधित होता है
(अ) केवल विद्युत क्षेत्र से
(ब) केवल चुम्बकीय क्षेत्र से
(स) विद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्र दोनों से बराबर
(द) औसत विद्युत घनत्व शून्य होता है।
उत्तर:
(स) विद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्र दोनों से बराबर
प्रश्न 2.
दूरसंचार से संबंधित तरंगे होती है
(अ) अवरक्त
(ब) दृश्य प्रकाश
(स) सूक्ष्म तरंग
(द) पराबैंगनी किरण
उत्तर:
(स) सूक्ष्म तरंग
प्रश्न 3.
विद्युत चुम्बकीय तरंगे परिवहन नहीं करती है।
(अ) ऊर्जा
(ब) आवेश
(स) संवेग
(द) सूचना
उत्तर:
(अ) ऊर्जा
प्रश्न 4.
यदि
(अ) के
(ब) के
(स) × के
(द) . के
उत्तर:
(स) × के
प्रश्न 5.
निम्न में से कौनसे विकिरण की तरंग दैर्घ्य न्यूनतम होती है।
(अ) X – किरणें
(ब) γ – किरणें |
(स) β – किरणें
(द) 0 – किरणें ।
उत्तर:
(ब) γ – किरणें |
प्रश्न 6.
विद्युत चुम्बकीय तरंगों के गुणधर्म के बारे में कौनसा कथन गलत है?
(अ) विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र सदिश एक ही समय व स्थान पर अधिकतम व न्यूनतम मान ग्रहण करते है।
(ब) विद्युत चुम्बकीय तरंगों में ऊर्जा विद्युत व चुम्बकीय सदिशों में समान रूप से विभाजित होते हैं।
(स) विद्युत व चुम्बकीय दोनों सदिश एक-दूसरे क समान्तर होते हैं व तरंग संरचण की दिशा में लम्बवत होते हैं।
(द) इन तरंगों को किसी पदार्थ माध्यम की आवश्यकता नहीं होती।
उत्तर:
(स) विद्युत व चुम्बकीय दोनों सदिश एक-दूसरे क समान्तर होते हैं व तरंग संरचण की दिशा में लम्बवत होते हैं।
प्रश्न 7.
किसके लिए भू-तरंगें सम्भव हैं-
(अ) लघु परास पर कम रेडियो आवृत्ति
(ब) लघु परास पर उच्च रेडिया आवृत्ति
(स) दीर्घ परास पर निम्न रेडियो आवृत्ति
(द) लघु परास निम्न कम रेडिया आवृत्ति
उत्तर:
(अ) लघु परास पर कम रेडियो आवृत्ति
प्रश्न 8.
एक TV टावर की ऊँचाई h मीटर है यदि पृथ्वी की त्रिज्या R मीटर है तब TV प्रसारण के द्वारा घेरा गया क्षेत्रफल (यदि h< R)
(अ) πR2
(ब) πh2
(स) 2πRh
(द) πRh
उत्तर:
(स) 2πRh
प्रश्न 9.
संचरण के किस तरीके के द्वारा रेडियो तरंगो को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जा सकता है?
(अ) भू-तरंग संचरण
(ब) आकाश तरंग संचरण
(स) अन्तरिक्ष तरंग संचरण
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी
प्रश्न 10.
एक आयाम मॉडूलित तरंग में अधिकतम आयाम 10V व न्यूनतम आयात 2v है। मॉडुलन सूचकांक µ है-
(अ) 2/3
(ब) 1/3
(स) 3/4
(द) 1/5
उत्तर:
(अ) 2/3
प्रश्न 11.
अति मॉडूलित (Over modilated) तरंग का मॉडूलेशन गुणांक है-
(अ) 1
(ब) शून्य
(स) < 1
(द) >1
उत्तर:
(द) >1
RBSE Class 12 Physics Chapter 17 अति लघूत्तरात्गक प्रश्न
प्रश्न 1.
विद्युत चुम्बकीय तरंगे निर्वात में किस वेग से गमन करती है?
उत्तर:
विद्युत चुम्बकीय तरंगे निर्वात में प्रकाश के वेग C = 3 × 102 मी/से से गमन करती है।
प्रश्न 2.
विद्युत चुम्बकीय तरंगों के लिए आयतनमण्डल के अपवर्तनांक पर पृथ्वी तल से ऊँचाई बढ़ने पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
आयन मण्डल की पतर की पृथ्वी तक ऊँचाई बढ़ने पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ता है जिससे माध्यम का प्रभावी अपवर्तनांक घटता जाता है।
प्रश्न 3.
x-दिशा में संचरित विद्युत चुम्बकीय तरंग के सदिश के कंपन Y-अक्ष के समान्तर है तो सदिश कम्पन किस अक्ष के समान्तर होंगे?
उत्तर:
सदिश के कम्पन Z-दिशा में होंगे क्योंकि विद्युत चुम्बकीय तरंगों के संचरण की दिशा × द्वारा दी जाती है।
प्रश्न 4.
अधिक दूरी तक संचरण के लिए किस विधा का उपयोग किया जाता है?
उत्तर:
व्योम तरंग संरचरण का ।
प्रश्न 5.
व्योम तरंगों द्वारा दूरस्थ स्थानों तक संकेतों के प्रसारण हेतु आवृत्ति सीमायें क्या होते हैं?
उत्तर:
रेडियों तरंगे 1.5 MHz से 30 MHz (क्रांतिक आवृत्ति) तक
प्रश्न 6.
संचार तंत्र का वह भाग क्या कहलाता है, जो संदेश को संचार चैनल पर संचरित होने योग्य परिवर्तित कर अभिग्राही को प्रेषित करता है?
उत्तर:
प्रेषित्र (Transmiter)
प्रश्न 7.
सूचना संकेत को वाहक तरंगों पर अध्यारोपित करने की प्रक्रिया क्या कहलाती है?
उत्तर:
मॉडुलन (Modulation)
प्रश्न 8.
नैनो तकनीकी में किस आकार की वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
नैनो तकनीकी में 100nm से छोटी वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है?
RBSE Class 12 Physics Chapter 17 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के घटको के नाम बताते हुए तरंगदैर्घ्य के बढ़ते क्रम में लिखो।
उत्तर:
गामा किरणें : 10-14 मी. से 10-10 मी.
X-किरणें : 10-12 मी. से 10-2 मी.
पराबैंगनी किरणें : 10-9 मी. से 10-7 मी.
दृश्य किरणें : 4 × 10-7 मी. से 7.8 × 10-7 मी.
अवरक्त किरणें : 7.8 x 10-7 मी. से 10-3 मी.
सूक्ष्म तरंगे : 10-3 मी. से 0.3 मी.
रेडियो तरंगें : 0.3 मी. से 104 मी.
प्रश्न 2.
विद्युत चुम्बकीय तरंगों के चार मुख्य गुण लिखिये। उत्तर-विद्युत चुम्बकीय तरंगों के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं
उत्तर:
विद्युत चुम्बकीय तरंगों के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं |
- विद्युत चुम्बकीय तरंगे निर्वात में भी गमन कर सकती है निर्वात में विद्युत चुम्बकीय तरंग का वेग सभी आवृत्तियों के लिए समान (अर्थात् C = 3 × 108 मी/से) होता है।
- विद्युत चुम्बकीय तरंगों में विद्युत क्षेत्र एवं चुम्बकीय क्षेत्र दोनों समान कला में संचारित होते है तथा इनकी दिशा तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत एवं परस्पर लम्बवत होती है। अर्थात् विद्युत चुम्बकीय तरंगें अनुप्रस्थ प्रगामी तरंगे होती हैं।
- विद्युत चुम्बकीय तरंगें जब किसी सतह पर आपतित होती है तो उसे सतह पर दाब आरोपित करती है जिसे विकिरण दाब कहते हैं।
- विद्युत चुम्बकीय तरंगें तरंगों के गुण जैसे परावर्तन, अपवर्तन, व्यतिकरण, विवर्तन इत्यादि प्रदर्शित करती है। .
प्रश्न 3.
भू-तरंगों तथा व्योम तरंगों को समझाइये।
उत्तर:
विद्युत-चुम्बकीय तरंग संचरण के प्रकार (Types of Electromagnetic Wave Propagation)
रेडियो तरंगें तथा सूक्ष्म तरंगें अर्थात् विद्युत-चुम्बकीय तरंगें आवृत्ति के आधार पर प्रेषी से ग्राही तक कई विधियों द्वारा गमन कर सकती हैं। इसका कारण यह है कि भिन्न-भिन्न आवृत्ति परासों के लिए वातावरण का व्यवहार भिन्न-भिन्न होता है। विभिन्न तरंग संचरण की विधियाँ या प्रकार जिनके द्वारा ये विद्युत-चुम्बकीय तरंगें (अर्थात् रेडियो तथा सूक्ष्म तरंगें) प्रेषी से ग्राही एण्टीना तक संचरण कर सकती हैं, निम्न हैं
1. भू-तरंगें अथवा पृष्ठ तरंगें (Ground Waves or Surface Waves)-ये प्रेषी के एण्टीना द्वारा विकिरित वे तरंगें हैं जो पृथ्वी की वक्रता का अनुकरण (along radius of curvature) करते हुए, लगभग पृथ्वी के पृष्ठ के समान्तर चलती हैं। संचरण की यह विधा तभी तक प्रभावी रहती है जब तक कि प्रेषी तथा ग्राही एण्टीना पृथ्वी के निकट हों।
2. अन्तरिक्ष या क्षोभमण्डलीय तरंगें (Space or Tropospheric Waves)-ये वे तरंगें होती हैं जो प्रेषी एण्टीना तथा ग्राही एण्टीना के बीच अन्तरिक्ष में होकर सीधे चलती हैं। ये तरंगें वायुमण्डल के क्षोभमण्डलीय क्षेत्र (Tropospherical region) के भीतर होती हैं।
संचरण को परास बढ़ाने के लिए इन्हें संचार उपग्रह से परावर्तित करते हैं। संचरण की यह विधा (mode) टेलीविजन, रडार तथा आवृत्ति मॉडुलित तरंग संचरण में विशेष रूप से उपयोगी है।
3. व्योम अथवा आयन मण्डलीय तरंगें (Sky or lonospheric Waves) – ये तरंगें वायुमण्डल में होकर संचरित होती हैं तथा प्रेषी एण्टीना से पृथ्वी के सापेक्ष बड़े कोणों पर
ऊपर की ओर चलकर क्षोभ मण्डल (troposphere) को पार करके आयन मण्डल तक पहुँच जाती हैं और वहाँ से परावर्तित होकर ग्राही एण्टीना तक पहुँचती हैं। ये तरंगें प्रेषी एण्टीना से ग्राही एण्टीना तक व्योम में होकर आती हैं, इसलिए इन्हें व्योम तरंगें अथवा आयन मण्डलीय तरंगें कहते हैं। चित्र 17.7(a) तथा (b) में तरंग संचरण के विभिन्न प्रकार प्रदर्शित होती हैं।
प्रश्न 4.
संचार किसे कहते हैं?
उत्तर:
संचार शब्द का अर्थ है सन्देश (Information) या सूचनाओं को पूर्ण सही रूप से एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक पहुँचाना।
प्रश्न-5.
संचार तंत्र में कितने और कौन-कौन से भाग होते हैं?
उत्तर:
संचार तंत्र में मुख्य रूप से तीन भाग होते हैं-
- प्रेषी (Transmitter)
- संचरण का माध्यम (Communication Medium)
- ग्राही (Receiver)
संचार तंत्र का ब्लॉक आरेख निम्न होगा-
प्रश्न 6.
मॉडुलन को समझाइये।
उत्तर:
मॉडूलन (Modulation)-अधिकांश संदेश, सूचना या वाक् सन्देश निम्न आकृति के होते हैं जिन्हें लम्बी दूरी तक संचरित नहीं किया जा सकता। यद्यपि उच्च आवृत्ति संकेतों को विकिरित या संचरित करना संभव है। इसीलिए निम्न आवृत्ति संकेतों को कभी-कभी उच्च आवृत्ति तरंग पर वाहित या अध्यारापित किया जाता है जो सूचना के वाहक की तरक हार्य करती है तथा वाहक तरंगे कहलाती है। यह प्रक्रम मॉडूलन कहलाता है। वाहक तरंगें सतत (ज्यावफ्रीय) या स्पंद रूप में हो सकती है। एक ज्यावक्रीय वाहक तरंग को इस प्रकार दर्शाया जा सकता है-
c(t) =Acsin (ωct.1 + φ)
जहाँ c (t) संकेती तीव्रता, Ac आयाम, ωc, कोणीय आवृत्ति तथा वाहक तरंग की प्रारंभिक कला है। मॉडुलन के प्रक्रम के दौरान, वाहक तरंग के इन तीन प्राचलों में से कोई भी सन्देश या सूचना संकेत से नियंत्रित किया जा सकता है। इस प्रकार मॉडूलन निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है-
- आयाम मॉडूलन (Amplitude modulation)
- आवृत्ति मॉडूलन (Frequency modulation)
- कला मॉडूलन (Phase molulation)
प्रश्न 7.
नैनो संरचना के प्रेक्षण के लिए प्रयोग किये जाने वाले उपकरणों के नाम दीजिए।
उत्तर:
नैनो संरचना का अध्ययन करने के लिए निम्नलिखत प्रमुख उपकरणों का प्रयोग किया जाता है-
- स्केनिंग प्रोष सूक्ष्मदर्शी
- इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी
- स्केनिंग टनलिंग सूक्ष्मदर्शी
- प्रकाशीय सूक्ष्मदर्शी
RBSE Class 12 Physics Chapter 17 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विद्युत चुम्बकीय तरंगों की क्या प्रकृति होती है ? विद्युत चुम्बकीय तरंगों से सम्बन्धित हर्ट्ज के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विद्युत चुम्बकीय तरंगे एवं इनके अभिलक्षण (Electro Magnetic Waves and their Characteristics)
मैक्सवेल का विद्युत चुम्बकीय तरंग सिद्धांत (Max Well’s Electromagnetic Wave Theory)
इस सिद्धांत के अनुसार एक त्वरित आवेश को विद्युत चुम्बकीय तरंगें उत्सर्जित करनी चाहिए। इन तरंगों में विद्युत एवं चुम्बकीय दोनों क्षेत्र साथ-साथ समान कला में सरल आवर्ती रूप से परिवर्तित होते हैं। इन तरंगों में विद्युत क्षेत्र. सदिश ( ) और चुम्बकीय क्षेत्र सदिश (\overrightarrow{\mathrm{B}}) परस्पर लम्बवत होते हैं और दोनों तरंग संचरण की दिशा के भी लम्बवत होते हैं। इस प्रकार विद्युत चुम्बकीय तरंगे अनुप्रस्थ तरंगे होती हैं। इन तरंगों में दोनों सदिश व समान रूप से तरंग के अभिलाक्षणिक गुण प्रदर्शित करते हैं।
विद्युत चुम्बकीय तरंगों को उत्पादन (Production of Electro Magnetic Waves)
नियत चाल से गतिमान आवेश या नियत धारा विद्युत क्षेत्र के साथ-साथ चुम्बकीय क्षेत्र भी स्थापित करता है। इस प्रकार से स्थापित विद्युत क्षेत्र एवं चुम्बकीय क्षेत्रों के कारण व्योम में ऊर्जा घनत्व होता है।
किन्तु यह ऊर्जा घनत्व समय के साथ अपरिवर्तित रहता है। इस प्रकार की आवेश व्यवस्था के कारण दूरस्थ बिंदुओं तक किसी विक्षोभ का संचरण नहीं होता है तथा कोई विद्युत चुम्बकीय तरंग संचरित नहीं होती। अब यदि आवेश त्वरित हो या परिवर्तशील धारा हो तो इस प्रकार की व्यवस्था एक परिवर्तनशील विद्युत क्षेत्र की उत्पत्ति का कारण होता है जो मैक्सवेल समीकरणों के अनुरूप परिवर्तनशील चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करेगी। इस प्रकार विद्युत चुम्बकीय की उत्पत्ति होती। इस प्रकार विद्युत चुम्बकीय तरंग को ऊर्जा त्वरित आवेश से प्राप्त किया जा सकता। कोई दोलनी आवेश भी त्वरित आवेश ही होता है अतः विभिन्न दोलनी विद्युत परिपथ ही कई प्रकार की विद्युत चुम्बकीय तरंगों के प्रयोगिक उत्पादन के मूल होते हैं।
(i) हर्ट्ज का प्रयोग (Hertz’s Experiment)
विद्युत चुम्बकीय तरंगों का प्रयोगिक प्रदर्शन सर्वप्रथम हेनरिच रूडोल्फ हर्ट्ज ने सन् 1887 में दोलित आवेशों द्वारा किया था। प्रयोग व्यवस्था तथा हर्ट्ज के प्रयोग का सैद्धान्ति आरेख चित्र 17.4 में दर्शाया गया है। इसमें s1 व S2 दो बड़ी चालक प्लेटें है जो पीतल की छड़ों R1 व R2 से जुड़ी रहती हैं। पीतल की छड़े दो धातु की गोलियों A1 व A2 से जुड़ी रहती हैं। इन गोलियों के मध्य वायु का अन्तराल (Airgap) होता है। दोनों गोलियों का सम्बन्ध एक प्ररेण कुण्डली की द्वितीयक कुण्डली से होता है, ताकि उनके मध्य उच्च विभवान्तर लगाया जा सके। विद्युत चुम्बकीय तरंगों के संसूचन के लिए हर्ट्ज़ ने एक संसूचक बनाया जा दो गोलों D1 व D2 से जुड़े तार के एक लूप के रूप में है।
कार्यविधि-प्रेरण कुण्डली में धारा प्रवाहित करने पर गोलों A1 व A2 के बीच वायु अन्तराल में उच्च वोल्टता आरोपित होती है। उच्च वोल्टता गोलों के मध्य वायु को आयनित कर देती हैं गोलों के मध्य वायु के आयनीकरण के फलस्वरूप उत्पन्न इलेक्ट्रॉन व धनायन विसर्जन के लिए चालक पथ प्रदान करते हैं जिससे अन्तराल में चिनगारी उत्पन्न होती है। ये आवेशित कण आगे-पीछे दोलन करने लगते हैं जिससे विद्युत चुम्बकीय तरंग उत्पनन होती है। उत्पन्न विद्युत चुम्बकीय तरंगों की आवृत्ति प्लेटों के मध्य धारिता एवं कुण्डली के प्रेरकत्व द्वारा निर्धारित की जाती है जो निम्नांकित सूत्र से मिलती है-
f = 1/2π
संसूचक ऐसी स्थिति में रखा जाता है कि दोलित आयनों द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र संसूचक कुण्डली के लम्बवत रहे। यह दोलित चुम्बकीय क्षेत्र संसूचक कुण्डली के अंतराल D1 व D2 में दोलित विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है तथा अंतराल में चिनगारी उत्पन्न करता है। यह विद्युत चुम्बकीय तरंगों की उत्पत्ति का प्रदर्शन है। जब संसूचक कुण्डली का अन्तराल D1D2 अन्तराल A1A2 के लम्बवत था तो हज विद्युत चुम्बकीय तरंगों का संसूचन नहीं कर पाये। स्पष्ट है कि विद्युत चुम्बकीय तरंगे अनुप्रस्थ होती है। इस प्रयोग द्वारा 5m तरंगदैर्ध्व वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगें उत्पन्न हुई थी।
(ii) बोस की खोज (Discovery of Bose) – वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस ने हज के प्रयोग के बाद कम तरंगदैर्घ्य 5 mm से 25 mm परास तक की विद्युत चुम्बकीय तरंगों को उत्पन्न किया एवं संसूचित किया।
(iii) मार्कोनी की खोज (Discovery of Marcony)-जी मार्कोनी ने हर्टज् के कार्यों को आगे बढ़ाते कई किलोमीटर की दूरियों तक विद्युत चुम्बकीय तरंगों का सफलतापूर्वक संचार प्रणाली के युग की शुरूआत हुई |
विद्युत चुम्बकीय तरंगों के अभिलक्षण (Characteristic of Electromagnetic Waves)
(i) विद्युत चुम्बकीय तरंगें परिवर्ती विद्युत क्षेत्र एवं चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में संचरण करती है।
(ii) विद्युत चुम्बकीय तरंगों में विद्युत क्षेत्र सदिश तथा चुम्बकीय सदिश एक-दूसरे के लम्बवत् होते है तथा तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् होते हैं। इस प्रकार विद्युत चुम्बकीय तरंग संचरण की दिशा सदिश गुणन × की दिशा में होती है।
समतल धुवित विद्युत चुम्बकीय तरंग का ग्राफीय निरूपण
धनात्मक दिशा में गतिमान एक समतल ध्रुवित विद्युत चुम्बकीय तरंग चित्र 17.5 में दर्शायी है। यह तरंग x दिशा में गमन कर रही है। जिसका दोलनशक्ति क्षेत्र y दिशा में तथा दोलनकारी चुम्बकीय क्षेत्र z दिशा के अनुदिश है।
इस प्रकार विद्युत चुम्बकीय तरंगों के लिए विद्युत क्षेत्र Ey तथा चुम्बकीय क्षेत्र Bz को निम्नानुसार लिख सकते हैं-
यहाँ Ey व Bz क्रमशः विद्युत व चुम्बकीय क्षेत्रों के तात्क्षणिक मान हैं तथा Em एवं Bm इन क्षेत्रों के आयाम हैं। k = 2π/λ कोणीय तरंग संख्या है, λ तरंग दैर्घ्य है तथा ω कोणीय आवृत्ति है।
(iii) ये मुक्त आकाश में प्रकाश के वेग (C = 3 × 108 m/s) से चलती है और इनकी चाल तरंगदैर्ध्य पर निर्भर नहीं करती है। निर्यात में विद्युत चुम्बकीय तरंग की चाल
(iv) किसी माध्यम में विद्युत चुम्बकीय तरंगों की चाल v = 1/√με0जहाँ µ एवं
ε क्रमशः माध्यम की चुम्बकीय पारगम्यता एवं विद्युतशीलता है।
v = C/n
जहाँ n = √μrεr माध्यम का अपवर्तनांक है।
(v) विद्युत चुम्बकीय तरंग का ऊर्जा घनत्व-विद्युत क्षेत्र के एकांक आयतन की ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा घनत्व कहलाती है। अर्थात्
इसी प्रकार चुम्बकीय क्षेत्र में संबद्ध चुम्बकीय ऊर्जा घनत्व
अतः कुल ऊर्जा घनत्व u = uE+ uB
अतः स्पष्ट है विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के विद्युत ऊर्जा घनत्व µE तथा चुम्बकीय ऊर्जा घनत्व समान होते हैं। अतः विद्युत चुम्बकीय तरंग का ऊर्जा घनत्व
u = 2uE = 2uB
एक पूर्ण चक्र में sin2(kx – ωt) का औसत मान विद्युत चुम्बकीय तरंग की कुल माध्य ऊर्जा घनत्व
(vi) विद्युत चुम्बकीय तरंगों द्वारा ऊर्जा का स्थानान्तरण हो सकता है। विद्युत चुमबकीय तरंगों द्वारा प्रति एंकाक क्षेत्रफल से ऊर्जा स्थानान्तरण की दर को पायटिंग सदिश (Poyting Vector) कहते हैं। इस सदिश को द्वारा प्रदर्शित करते हैं।
(viii) विद्युत चुम्बकीय तरंगों का संवेग-विद्युत चुम्बकीय तरंगे जिस सतह पर गिरती हैं उस पर दाब (Pressure) डालती है। विद्युत चुम्बकीय तरंगों द्वारा डाले गये दाब को विकिरण दाब (Radiation Pressure) कहते हैं।
p = U/c
जहाँ U स्थान्तरित ऊर्जा है। यदि सतह पूर्ण परावर्तक है तब स्थानतरित ऊर्जा
p = 2U/c
यदि सतह पूर्ण अवशोषक है तब विद्युत चुम्बकीय तरंगो का दाब
p = 2I/c
जहाँ I तरंग की तीव्रता है |
(ix) विद्युत चुम्बकीय तरंगे अध्यारोपण के सिद्धांत का पालन करती है इस प्रकार तरंगो द्वारा प्रदर्शित गुण जैसे परावर्तन, अपवर्तन, व्यतिकरण, विवर्तन आदि विद्युत चुम्बकीय तरंगों द्वारा दर्शाए जाते हैं। अनपुप्रस्थ प्रकृति होने के कारण इनका ध्रुवण भी किया जा सकता है। अप्रगामी विद्युत चुम्बकीय तरंगे भी उत्पनन की जा सकती हैं तथा इनके लिए डॉप्लर प्रभाव भी प्रेक्षित होता है।
प्रश्न 2.
विद्युत चुम्बकीय तरंगों के विभिन्न घटकों का वर्णन करते हुए इनके गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम(Electromagnetic Magnetic Spectrum)
न्यूटन ने सूर्य के प्रकाश का स्पेक्ट्रम प्राप्त किया और देखा कि इस स्पेक्ट्रम में बैंगनी रंग से लेकर लाल रंग तक होते हैं। यह स्पेक्ट्रम दृश्य स्पेक्ट्रम (visible spectrum) कहलाता है। यह स्पेक्ट्रम 4000 Å में से 7800 Å तक (अर्थात् बैंगनी रंग से लाल रंग तक) फैला होता है। न्यूटन के बाद अनेक वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया कि सूर्य के प्रकाश का स्पेक्ट्रम केवल बैंगनी रंग से लेकर लाल रंग तक ही सीमित नहीं है। बल्कि बैंगनी रंग के नीचे तथा लाल रंग के ऊपर भी स्पेक्ट्रम काफी विस्तार में फैला हुआ है। चूंकि स्पेक्ट्रम के ये भाग आँखों से दिखायी नहीं पड़ते, अत: इन्हें अदृश्य स्पेक्ट्रम (invisible spectrum) कहते हैं। बैंगनी रंग के नीचे छोटी तरंगदैर्ध्व वाले भाग को पराबैंगनी स्पेक्ट्रम (ultraviolet spectrum) तथा लाल रंग के ऊपर बड़ी तरंगदैर्ध्व वाले भाग को अवरक्त स्पेक्ट्रम (infrared spectrum) कहते हैं। बाद के अन्वेषणों से एक्स-किरणों, गामा किरणों तथा रेडियो तरंगों का आविष्कार (discovery) हुआ।
इस प्रकार बैंगनी रंग के नीचे छोटी तरंगदैर्ध्व वाली पराबैंगनी किरणें, X-किरणें तथा गामा किरणें हैं एवं लाल रंग के ऊपर बड़ी तरंगदैर्ध्व वाली अवरक्त किरणें, हज तरंगें तथा रेडियो तरंगें हैं। ये सभी विद्युत-चुम्बकीय तरंगें हैं। ये तरंगें निर्वात में चल सकती हैं तथा इनकी चाल 3 × 108 ms-1 (प्रकाश की चाल) के बराबर होती है। सभी किरणें परावर्तन, अपवर्तन, व्यतिकरण, विवर्तन तथा ध्रुवण के गुण प्रदर्शित करती हैं। सभी तरंगें प्रकृति में अनुप्रस्थ (transverse) होती हैं। इन तरंगों की तरंगदैर्यों का मान एक निश्चित मान न होकर कुछ परिसर (range) में इस प्रकार फैला होता है कि एक वर्ग के विकिरण दूसरे वर्ग के विकिरण में आंशिक रूप से अतिव्यापित (overlapped) होते हैं। उक्त सभी तरंगों को तरंगदैर्यों के आधार पर एक क्रम में रखा जा सकता है।
इस क्रम को ही ‘विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम’ कहते हैं। यह स्पेक्ट्रम अग्र चित्र 17.6 में प्रदर्शित तालिका में दिया गया है-
विभिन्न प्रकार की वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों का आरोही तरंगदैर्घ्य के क्रम में संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
1. गोमा किरणें (γ-rays)-यह किरणें विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के ऊपरी आवृत्ति के क्षेत्र में होती हैं तथा इनकी तरंगदैर्घ्य 10-10 m से लेकर 10-14 m से भी कम होती है। गामा किरणों की खोज सन् 1896 में बेकेरल तथा क्यूरी ने की थी। उच्च आवृत्ति (higher frequency) का यह विकिरण नाभिकीय अभिक्रियाओं में उत्पन्न होता है। यह रेडियो नाभिकों द्वारा भी उत्सर्जित होता है। यह किरणें आवेश रहित होती हैं और इनकी वेधन क्षमता (penetrating power) काफी अधिक होती है। यह प्रतिदीप्ति आयनीकरण (fluorescence ionisation) उत्पन्न करती हैं। तथा फोटोग्राफिक प्लेट को भी प्रभावित करती हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में इनका उपयोग कैंसर के इलाज में बीमार कोशिकाओं को नष्ट करने में किया जाता है।
तरंग दैर्ध्य का परास 10-14m से 10-10 m
आवृत्ति का परास 1018 Hz से 1022 Hz
2. एक्स किरणें (X-rays)-विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में तरंगदैर्घ्य के आरोही क्रम में γ-किरणों के बाद X-किरणों का क्षेत्र आता है। इनकी तरंगदैर्घ्य 10-9m (11 nm) से लेकर नीचे 10-12m (10-3 nm) तक होती है। x-किरणों की उत्पत्ति तीव्रगामी इलेक्ट्रॉनों के भारी लक्ष्य पर टकराने से होती है। इनकी खोज सन् 1895 में प्रोफेसर रोंजन ने की थी। इनमें γ-किरणों के सभी गुण होते हैं परन्तु वेधन क्षमता उनसे कम होती है। चिकित्सा क्षेत्र (medical science) में x-किरणों का विशेष योगदान है। शरीर के अन्दर छुपायी गई किसी मूल्यवान वस्तु, छरें या अन्य कोई धातु की वस्तु एवं टूटी हुई हड्डी का पता X-किरण फोटोग्राफी से ज्ञात किया जाता है। कैंसर के इलाज में भी इनका उपयोग किया जाता है। क्रिस्टलों की संरचना के अध्ययन
3. पराबैंगनी किरणें (Ultra-violet Rays)-इन किरणों की तरंगदैर्घ्य 4 × 10-7 m (400 nm) से 6 × 10-10 m(0.6 nm) तक होती है। इनकी खोज स 1801 में रिटर ने की थी। सूर्य पराबैंगनी किरणों का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है परन्तु सौभाग्य से इनका अधिकांश भाग वायुमण्डल की लगभग 40-50 km की ऊँचाई पर स्थित ओजोन परत में अवशोषित हो जाता है। अधिक परिमाण में पराबैंगनी किरणों के सम्पर्क में आने से मानव शरीर पर हानिकारक प्रभाव होता है। पराबैंगनी किरणों के त्वचा पर पड़ने से त्वचा में अधिक मेलानिन का उत्पादन होता है जिससे त्वचा ताम्र रंग की हो जाती है। सामान्य काँच द्वारा इनका अवशोषण हो जाता है, अत: काँच लगी खिड़कियों से छनकर आने वाले प्रकाश में धूप-ताम्रता (sun-burn) नहीं होती है।
γ-किरणों के सभी गुण पराबैंगनी किरणों में होते हैं लेकिन इनकी बेधन-क्षमता कम होती है। ये प्रकाश वैद्युत प्रभाव उत्पन्न करती हैं, कीड़े मारने तथा प्रकाश-संश्लेषण में प्रयुक्त होती हैं।
वेल्डिग करने वाले लोग, वेल्डिंग चिनगारियों से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों से अपनी आँखों की सुरक्षा के लिए विशिष्ट काँचयुक्त धूप के चश्मे पहनते हैं। अपनी छोटी तरंगदैर्यों के कारण पराबैंगनी किरणों को अति परिशुद्ध अनुप्रयोगों जैसे लासिक (LASIK-Laser-assisted in situ keratomileusis) नेत्र शल्यता में उपयोग हेतु अत्यन्त संकीर्ण किरण-पुंजों में फोकसित किया जा सकता है। जलशोधक में पराबैंगनी लैम्पों का उपयोग जीवाणुओं को मारने में होता है।
4. दृश्य प्रकाश तरंगें (VisibleLight Waves)-यह विद्युत्- चुम्बकीय तरंगों का सर्वाधिक सुपरिचित रूप है। यह स्पेक्ट्रम का वह भाग है जिसके लिए मानव नेत्र संवेदनशील होते हैं। इनकी तरंगदैर्ध्य 3800 A से 7800 A तक होती है। दृश्य प्रकाश तरंगों की खोज सन् 1666 में न्यूटन ने की थी। आयनित गैसें एवं तापदीप्त वस्तुएँ दृश्य प्रकाश का स्रोत हैं। उत्तेजित परमाणु जब अपनी मूल अवस्था को वापस लौटता है तो इन तरगों का उत्पादन होता है। हमारे चारों ओर की वस्तुओं से उत्सर्जित या परावर्तित होने वाला प्रकाश हमें हमारे परिवेश के विषय में सूचनाएँ देता है।
प्रकाश वैद्युत प्रभाव की खोज ही दृश्य प्रकाश से हुई है। दृश्य प्रकाश तरंगें फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करती हैं। यह वस्तुओं को देखने के लिए प्रयुक्त होने वाली एक मात्र किरणें हैं।
5. अवरक्त तरंगें (Infra-red Waves)-इन तरंगों की खोज सन् 1800 में हरशैल ने की थी। इनकी तरंगदैर्घ्य 7800 A से 1 mm तक होती है। ये गर्म पिण्डों एवं अणुओं से उत्पन्न होती हैं। अवरक्त तरंगों को ही हम ऊष्मा तरंगें भी कहते हैं क्योंकि ये ऊष्मीय प्रभाव उत्पन्न करती हैं। रात्रि में फोटोग्राफी करने में तथा रोगों के उपचार हेतु काय-चिकित्सा में अवरक्त लैम्प का उपयोग किया जाता है। उपग्रहों में लगे अवरक्त संसूचकों का उपयोग सैनिक उद्देश्यों एवं फसलों की वृद्धि का प्रेक्षण करने के लिए किया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक युक्तियाँ (जैसे-प्रकाश उत्सर्जक डायोड) भी अवरक्त तरंगें उत्सर्जित करती हैं तथा घरेलू इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों, जैसे-टी. वी. सेट, वीडियो-रिकॉर्डर एवं हाई-फाई प्रणालियों के रिमोट नियन्त्रकों में ये बहुलता से प्रयोग की जाती हैं।
6. सूक्ष्म तरंगें (Micro Waves)-इन तरंगों की खोज सन् 1895 में वैज्ञानिक मार्कोनी ने की थी। इनकी तरंगदैर्ध्य 0.1 mm से 1m तक होती है। इन्हीं तरंगों को माइक्रो तरंगें भी कहते हैं। इनकी उत्पत्ति स्फुलिंग विसर्जन द्वारा होती है। विशेष प्रकार की निर्वात नलिकाओं जिन्हें क्लाइस्ट्रॉन, मैग्नेट्रॉन अथवा गन डायोड कहते हैं, द्वारा ये उत्पन्न होती हैं। यह तरंगें अपने लघु तरंगदैर्घ्य के कारण विमान संचालन में रडार प्रणाली के लिए उपयुक्त हैं। सूक्ष्म तरंगें रडार, तेज गेदों जैसे कि टेनिस में सर्व की गई गेंदों या वाहनों की गति ज्ञात करने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले यन्त्र, चाल गनों (speed guns) की कार्यप्रणाली का भी आधार हैं। माइक्रोवेव ऑवन इन तरंगों का एक घरेलू अनुप्रयोग है। माइक्रोवेव ऑवन में सूक्ष्म तरंगों की आवृत्ति इस प्रकार चुनी जाती है। कि वे जल के अणुओं की अनुनादी आवृत्ति से मेल खा सकें, ताकि तरंगों की ऊर्जा प्रभावी रूप से अणुओं की गतिज ऊर्जा बढ़ाने के लिए स्थानान्तरित की जा सके। इससे किसी भी जलयुक्त खाद्य पदार्थ का । ताप बढ़ जाता है।
7. रेडियो तरंगें (Radio Waves)-इनकी खोज सन् 1895 में मारकोनी ने की थी। इनकी तरंगदैर्ध्य 1 m से 10,000 km तक होती है। दोलित्र विद्युत परिपथों द्वारा इनकी उत्पत्ति होती है। इनका आवृत्ति परास सामान्यत: 500 kHz से 1710 kHz के बीच होता है। इससे उच्चतर 54 MHz की आवृत्तियाँ लघु तरंग बैण्डों के रूप में उपयोग की जाती हैं। टी. वी. तरंगों का परास 54 MHz से 890 MHz के बीच होता है। FM (Frequency Modulated आवृत्ति मॉडूलित) रेडियो बैण्ड 88 MHz से 108 MHz के बीच फैला होता है। सेल्यूलर फोनों में अति उच्च आवृत्ति । (UHF) बैण्ड की रेडियो तरंगों का उपयोग करके ध्वनि सन्देशों के आदान-प्रदान की व्यवस्था की जाती है।
विद्युत-चुम्बकीय तरंगों का संक्षिप्त विवरण- : एक दृष्टि में ।
विभिन्न विद्युत्-चुम्बकीय तरंगों का विस्तृत विवरण ऊपर दिया जा चुका है। प्रत्येक तरंग की संक्षिप्त एवं क्रमबद्ध जानकारी नीचे दी गयी तालिका में प्रस्तुत है
प्रश्न 3.
मॉडुलन व विमांडूलन की प्रक्रिया समझाइए। यह किस प्रकार सन्देश संचरण में उपयोग में लाये जाते हैं ?
उत्तर:
मॉडूलन या मॉडूलेशन (Modulation)
मॉडूलेशन एक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत निम्न आवृत्ति स्तर के सिग्नल को अधिक दूरी तक भेजने के लिए इसे उच्च आवृत्ति के सिग्नल के साथ अध्यारोपित करके भेजा जाता है। निम्न आवृत्ति की अध्यारोपित की जाने वाली तरंगों को मॉडुलेटिंग तरंगें (modulating waves), उच्च आवृत्ति की तरंगों को वाहक तरंगें (carrier waves) तथा मॉडुलन प्रक्रिया में प्राप्त परिणामी तरंगों को मॉडूलित तरंगें (modulated waves) कहते हैं।
मॉडूलेशन का प्रकार इस बात पर निर्भर करता है कि वाहक तरंगों के किस गुण को सूचना संकेत (information signal) के अनुरूप परिवर्तित किया जा रहा है।
वाहक तरंगें दो प्रकार की हो सकती हैं
(1) सतत ज्या वक्रीय तरंगें-ज्या वक्रीय तरंगों को निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है-
e = e0 sin(ωct + φ)
जहाँ e = वोल्टेज का तात्क्षणिक (instantaneous) मान
e0 = वोल्टेज का शिखर (peak) मान
ωc = कोणीय आवृत्ति और φ = कला कोण
कला कोण (phase angle) φ को शून्य मानकर उक्त समीकरण को ग्राफ पर चित्र 17.16 की भाँति दिखा सकते हैं।
वाहक तरंग का मॉडूलन निम्न तीन प्रकार से किया जा सकता है-
(a) आयाम मॉडूलन (Amplitude Modulation),
(b) आवृत्ति मॉडूलन (Frequency Modulation),
(c) कला मॉडूलन (Phase Modulation) ।
(2) स्पन्दी तंरगे-स्पन्द तरंगों के विशिष्ट गुण हैं-स्पन्द आयाम, स्पन्द अवधि या स्पन्द चौड़ाई तथा स्पन्द स्थिति (जो स्पन्द के आयाम में वृद्धि या क्षय को दर्शाती है)। अतः स्पन्द तरंगों का मॉडुलन भी तीन प्रकार से होता है-
(a) स्पन्द आयाम मॉडूलन (Pulse Amplitude Modulation),
(b) स्पन्द अवधि मॉडूलन (Pulse Time Modulation),
(c) स्पन्द कोड मॉडूलन (Pulse Code Modulation)।
(a) आयाम मॉइलन (Amplitude Modulation)
मॉडुलन की वह प्रक्रिया जिसमें वाहक तरंग का आयाम मॉडूलक तरंग के तात्क्षणिक मान द्वारा परिवर्तित किया जाता है और अन्य दो प्राचल (factors) आवृत्ति तथा कला अपरिवर्तित (unchanged) रहते हैं, आयाम, मॉडूलन कहलाता है। इस प्रकार मॉडूलन में मॉडूलित तरंग का आयाम मॉडूलक तरंग के तात्क्षणिक मान का रैखिक फलन (linear function) होता है।
(b) आवृत्ति मॉडूलन (frequency modulation)- मॉडूलन की वह प्रक्रिया जिसमें वाहक तरंग की आवृत्ति मॉडूलक सिग्नल के अनुसार परिवर्तित की जाती है जबकि वाहक तरंग के अन्य दो प्राचल (factors) आयाम तथा कला नियत रहते हैं। इस प्रकार सूचना आवृत्ति के पदों में नियत रहती है।
(c) कला मॉडूलन (Phase modulation)-मॉडूलन की वह प्रक्रिया जिसमें वाहक तरंग की कला मॉडुलक सिग्नल के अनुसार परिवर्तित की। जाती है जबकि अन्य दो प्राचल आयाम और आवृत्ति नियत रहते हैं। इस प्रकार सूचना (phase)कला के पदों में निहित रहती है।
विमॉडुलन (Demodulation)
वाहक आवृत्ति को किसी मध्य आवृत्ति चरण (intermediate frequency stage) पर संसूचन से पहले निम्न (lower) आवृत्ति में परिवर्तित कर लेते हैं। संसूचित सिगनल इतना प्रबल नहीं होता कि उसका उपयोग किया जा सके अतः उसको प्रबल बनाने के लिए प्रवर्धन किया जाता है। इस प्रक्रिया में उपयुक्त ग्राही (receiver) का ब्लाक आरेख अगले पृष्ठ पर दिया गया है-
मॉडुलन की विपरीत प्रक्रिया विमॉडुलन कहलाती है। मॉडूलित तरंगों (modulated waves) से मॉडूलक एवं वाहक तरंगों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया को विमॉडुलन अथवा संसूचने कहते हैं।
विमॉडुलन की प्रक्रिया चित्र 17.21 (b) द्वारा समझायी गयी है।
विमॉडुलन की आवश्यकता-जब उच्च आवृत्ति की मॉडूलित रेडियो तरंगें प्रेषी एण्टीना (transmitting antenna) से विकिरित होती हैं। तथा संचरण माध्यम में चलने के पश्चात् ग्राही एण्टीना द्वारा ग्रहण की जाती हैं तो वे उसमें क्षीण रेडियो आवृत्ति धाराएँ प्रेरित करती हैं। ये रेडियो आवृत्ति धाराएँ श्रव्य आवृत्ति संसूचकों जैसे हेडफोन अथवा लाउडस्पीकर पर कोई प्रभाव उत्पन्न नहीं करती हैं क्योंकि ध्वनि उपकरण अपनी कम्पनशील डिस्कों तथा झिल्लियों (membrane) के अधिक जड़त्व के कारण इस प्रकार की रेडियो आवृत्तियों के सिग्नल के प्रति संवेदना उत्पन्न नहीं करते हैं। ये मॉडूलित तरंगें मानव-कान पर कोई प्रभाव उत्पन्न नहीं करती हैं। अतः श्रव्य सिग्नल (audio signal) को वाहक तरंगों से अलग करना अनिवार्य है।
आयाम मॉडूलित तरंग के विमॉडूलन में दो क्रियाएँ होती हैं-
(i) मॉडूलित तरंग का दिष्टकरण और
(ii) मॉडूलित तरंग के रेडियो आवृत्ति घटक का विलोपन। इसका ब्लॉक आरेख चित्र 17.21(c) में प्रदर्शित है।
आयाम मॉडूलित तरंगों के लिए डायोड संसूचक, रेखीय संसूचक (linear detector) कहलाता है क्योंकि इसका निर्गत (output) निवेशी (input) सिग्नल के वोल्टेज के अनुक्रमानुपाती होता है।
प्रश्न 4.
आयाम मॉडुलन, आवृत्ति मॉडूलन व कला मॉडुलने का सचित्र वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मॉडूलन या मॉडूलेशन (Modulation)
मॉडूलेशन एक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत निम्न आवृत्ति स्तर के सिग्नल को अधिक दूरी तक भेजने के लिए इसे उच्च आवृत्ति के सिग्नल के साथ अध्यारोपित करके भेजा जाता है। निम्न आवृत्ति की अध्यारोपित की जाने वाली तरंगों को मॉडुलेटिंग तरंगें (modulating waves), उच्च आवृत्ति की तरंगों को वाहक तरंगें (carrier waves) तथा मॉडुलन प्रक्रिया में प्राप्त परिणामी तरंगों को मॉडूलित तरंगें (modulated waves) कहते हैं।
मॉडूलेशन का प्रकार इस बात पर निर्भर करता है कि वाहक तरंगों के किस गुण को सूचना संकेत (information signal) के अनुरूप परिवर्तित किया जा रहा है।
वाहक तरंगें दो प्रकार की हो सकती हैं
(1) सतत ज्या वक्रीय तरंगें-ज्या वक्रीय तरंगों को निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है-
e = e0 sin(ωct + φ)
जहाँ e = वोल्टेज का तात्क्षणिक (instantaneous) मान
e0 = वोल्टेज का शिखर (peak) मान
ωc = कोणीय आवृत्ति और φ = कला कोण
कला कोण (phase angle) φ को शून्य मानकर उक्त समीकरण को ग्राफ पर चित्र 17.16 की भाँति दिखा सकते हैं।
वाहक तरंग का मॉडूलन निम्न तीन प्रकार से किया जा सकता है-
(a) आयाम मॉडूलन (Amplitude Modulation),
(b) आवृत्ति मॉडूलन (Frequency Modulation),
(c) कला मॉडूलन (Phase Modulation) ।
(2) स्पन्दी तंरगे-स्पन्द तरंगों के विशिष्ट गुण हैं-स्पन्द आयाम, स्पन्द अवधि या स्पन्द चौड़ाई तथा स्पन्द स्थिति (जो स्पन्द के आयाम में वृद्धि या क्षय को दर्शाती है)। अतः स्पन्द तरंगों का मॉडुलन भी तीन प्रकार से होता है-
(a) स्पन्द आयाम मॉडूलन (Pulse Amplitude Modulation),
(b) स्पन्द अवधि मॉडूलन (Pulse Time Modulation),
(c) स्पन्द कोड मॉडूलन (Pulse Code Modulation)।
(a) आयाम मॉइलन (Amplitude Modulation)
मॉडुलन की वह प्रक्रिया जिसमें वाहक तरंग का आयाम मॉडूलक तरंग के तात्क्षणिक मान द्वारा परिवर्तित किया जाता है और अन्य दो प्राचल (factors) आवृत्ति तथा कला अपरिवर्तित (unchanged) रहते हैं, आयाम, मॉडूलन कहलाता है। इस प्रकार मॉडूलन में मॉडूलित तरंग का आयाम मॉडूलक तरंग के तात्क्षणिक मान का रैखिक फलन (linear function) होता है।
(b) आवृत्ति मॉडूलन (frequency modulation)- मॉडूलन की वह प्रक्रिया जिसमें वाहक तरंग की आवृत्ति मॉडूलक सिग्नल के अनुसार परिवर्तित की जाती है जबकि वाहक तरंग के अन्य दो प्राचल (factors) आयाम तथा कला नियत रहते हैं। इस प्रकार सूचना आवृत्ति के पदों में नियत रहती है।
(c) कला मॉडूलन (Phase modulation)-मॉडूलन की वह प्रक्रिया जिसमें वाहक तरंग की कला मॉडुलक सिग्नल के अनुसार परिवर्तित की। जाती है जबकि अन्य दो प्राचल आयाम और आवृत्ति नियत रहते हैं। इस प्रकार सूचना (phase)कला के पदों में निहित रहती है।
प्रश्न 5.
प्रकृति में प्रेक्षित नैनोतकनीक के उदाहरणों को समझाइये।
उत्तर:
प्रकृति में नैनो संरचनाएं (Nano Structure in Nature)
प्रकृति में हमारे आस-पास पाए जाने वाले पौधों एवं जन्तुओं की सूक्ष्मता का अध्ययन करने पर हमें अनेकों नैनों संरचनाएं मिलती जिनमें कुछ विशेषताएं है। इनके प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं-
1. कीटों जैसे मक्खी की आँख पर बहुत छोटे-छोटे उभार होते हैं जो नैनो मीटर परास (380nm-780 nm) के षटकोषी होते है। इनकी सूक्ष्मता दृश्य प्राकश की तरंगदैर्ध्य परास की होती है। जिससे ये जीव मनुष्य की तुलना में कम प्रकाश में बेहतर देख पाते है। वैज्ञानिकों ने इसी प्रकार की नैनो संरचना का अविष्कार भी किया है जो अधिक अवरक्त, प्रकाश को अवशोषित कर सकती है। इस संरचना को थर्मो बोल्टाईक सेल में उपयोग कर उसकी दक्षता बढ़ाई जा सकती है।
2. तितली के पंखों पर बहुपरतीय नैनो संरचनाएं होती हैं। ये संरचनाएं प्रकाश को फिल्टर कर एक विशेष तरंगदैर्घ्य वाले प्रकाश को परावर्तित कर देती है। तितली के पंखों की नैनो संरचना का आकार दृश्य प्रकाश की तरंग दैर्ध्य की कोटि का होता है इसी कारण इसकी बहुपरतीय सतह पर व्यतिकरण होता है।
3. एडेलवाइस (Edelweiss) पादक का पुष्प 100 से 200 nm के नैनो आकार के खोखले तन्तुओं से ढका होता है। यह उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला अल्पाइन (Alpine) पादप होता है। उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में पराबैंगनी किरणों की अधिकता पाई जाती है। इस पापद में पाये जाने वाले तन्तु पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर दृश्य प्रकश को परावर्तित करता है जिस कारण यह सफेद रंग का अन्तर नजर आता है। इन्हीं नैनो संरचना के कारण पुष्प का उच्च ऊर्जा विकिरण से बचाव होता है। इसी आधार पर वैज्ञानिकों द्वारा विकिरण हानियों को रोकने वाली युक्तियों को बनाया जा रहा है।
RBSE Class 12 Physics Chapter 17 आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
X-दिशा में संचरित समतल ज्यावक्रीय विद्युत चुम्बकीय तरंग के E सदिश का अधिकतम मान किसी क्षण बिन्दु पर 600 वोल्ट/मीटर है। इस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र का मान ज्ञात कीजिए।
प्रकाश का वेग = 3 × 10,sup>8 मी./से.
हल :
प्रश्न 2.
एक दूरदर्शन मीनार की ऊँचाई 75m हैं। किस महत्तम दूरी व क्षेत्रफल में यह दूरदर्शन संचरण प्राप्त किया जा सकता है ? पृथ्वी की त्रिज्या = 6.4 × 106m
हल :