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RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 19 भारत की संघीय व्यवस्था के आधारभूत तत्त्व

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 19 भारत की संघीय व्यवस्था के आधारभूत तत्त्व

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 19 भारत की संघीय व्यवस्था के आधारभूत तत्त्व

RBSE Class 12 Political Science Chapter 19 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 12 Political Science Chapter 19 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्तमान में हमारे देश में कितने राज्य हैं?
(अ) 29
(ब) 30
(स) 35
(द) 14

प्रश्न 2.
संघ सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है
(अ) राज्य सरकार
(ब) केन्द्र सरकार
(स) पंचायत को
(द) उच्च न्यायालय।

प्रश्न 3.
संविधान का कौन – सा उपबंध आपातकाल की व्यवस्था देता है?
(अ) 263
(ब) 310
(स) 356
(द) 74

उतर:
1. (अ), 2. (ब), 3. (स)

RBSE Class 12 Political Science Chapter 19 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य सूची में कितने विषय हैं?
उत्तर:
राज्य सूची में 66 विषय हैं।

प्रश्न 2.
संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व कौन-सा सदन करता है?
उत्तर:
राज्यसभा।

प्रश्न 3.
केन्द्र व राज्यों के मध्य विवादों का निपटारा कौन – सी संस्था करती है।
उत्तर:
केन्द्र व राज्यों के मध्य विवादों का निपटारा ‘न्यायपालिका’ करती है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 19 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एकल नागरिकता क्या है?
उत्तर:
एकल नागरिकता – भारतीय संविधान के अंतर्गत संघीय व्यवस्था को अपनाया गया है। यहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका की भाँति दोहरी नागरिकता की व्यवस्था नहीं की गई है। हमारे भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को एकल नागरिकता प्राप्त है।
विशेषताएँ –

  1. प्रत्येक व्यक्ति को समाज में समान रूप से ‘इकहरी या एकल’ नागरिकता प्रदान की गई है।
  2. भारत में कोई भी व्यक्ति एक साथ दो देशों की नागरिकता को ग्रहण नहीं कर सकता है।
  3. एकल नागरिकता से समाज में स्थिरता आती है।
  4. इसका उद्देश्य भावात्मक एकता को सुदृढ़ करना है।

प्रश्न 2.
“विधि के शासन” से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समाज में विधि के शासन’ को स्थापित करने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका का होना अति आवश्यक है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था का आधार – स्तंभ है। इसमें तीन आवश्यक शर्ते निहित हैं

  1. न्यायपालिका को सरकार के अन्य विभागों के हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए।
  2. न्यायपालिका के निर्णय व आदेश कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के हस्तक्षेप से मुक्त होने चाहिए।
  3. न्यायाधीशों को भय या पक्षपात के बिना न्याय करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। इस प्रकार से न्यायपालिका को सशक्त करते हुए केन्द्र व राज्यों के बीच विवादों का संविधान के प्रावधानों के अनुरूप समाधान किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
सरकारिया आयोग का संबंध किससे था?”
उत्तर:
केन्द्र सरकार ने 1983 ई. में संघ व राज्यों के आपसी सम्बन्धों के अध्ययन हेतु न्यायाधीश रणजीत सिंह सरकारिया की अध्यक्षता में सरकारिया आयोग का गठन किया। इस तीन सदस्यीय आयोग ने 1988 ई. में अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार के सम्मुख प्रस्तुत की। सरकारिया आयोग की सिफारिशों द्वारा प्रशासनिक, विधायी और वित्तीय सम्बन्ध की महत्ता पता चलती है।

इसने संविधान की मौलिक संरचना में परिवर्तन की सलाह नहीं दी है। इसके अनुसार संघवाद होना अधिक अच्छी व्यवस्था है बजाय दृढ़ संस्थानिक परिकल्पना के। इस आयोग ने स्थायी अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना पर जोर दिया। इसके अतिरिक्त इसने इस बात पर भी बल दिया कि केन्द्र और राज्य दोनों को ही पिछड़े क्षेत्रों के विकास के प्रति सजग रहना चाहिए।

यदि इसे एक सुव्यवस्थित प्रकार से किया जाए तो अलगाववादी शक्तियाँ स्वतः ही समाप्त हो जायेंगी। आपसी सलाह मशविरे द्वारा संघ और राज्यों की अपने अन्तर्विरोधों को समाप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। राज्यों द्वारा अधिक वित्तीय सहायता की माँग को आयोग ने उचित ठहराया है। केन्द्र – राज्यों के संबंध सुधारने के लिए आयोग ने आर्थिक उदारीकरण और संविधान संशोधनों की सिफारिश की है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 19 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संघीय व्यवस्था की विशेषताओं पर व्याख्यात्मक लेख लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संघीय व्यवस्था की विशेषताएँ – भारतीय संघीय व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(क) संविधान की सर्वोच्चता: भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है। भारत की संसद तथा विधानमण्डल अपनी शक्तियाँ संविधान से ही प्राप्त करती हैं। जो कानून संविधान के अनुरूप नहीं होते, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय अवैध घोषित कर सकता है। राष्ट्रपति, राज्यपाल तथा प्रमुख पदाधिकारियों द्वारा संविधान के अनुसार कार्य करने की शपथ ली जाती है।

(ख) शक्तियों का विभाजन: शासन की शक्तियों को केन्द्र और राज्यों में इस प्रकार विभाजित किया गया हैं

  1. संघसूची – इसमें 97 विषय हैं जिन पर केन्द्र को कानून बनाने का अधिकार है।
  2. राज्य सूची – इसमें 66 विषय हैं जो स्थानीय महत्व के होते हैं। इन पर राज्यों को कानून बनाने का अधिकार है।
  3. समवर्ती सूची – इसमें 47 विषय रखे गये हैं। इस पर केन्द्र व राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार है। अवशिष्ट शक्तियाँ केन्द्र के पास रखी गयी हैं।

(ग) स्वतंत्र न्यायपालिका; संघीय शासन में संविधान की व्याख्या, केन्द्र और राज्यों के विवादों को हल करने के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका होनी चाहिए। भारत में भी स्वतंत्र न्यायपालिका है। सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की व्यवस्था इसी आधार पर की गई है।

(घ) राज्यपाल का पद: राज्यपाल भारतीय संघीय व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग है। राज्यपाल केन्द्र द्वारा नियुक्त होकर राज्य में केन्द्र के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। यद्यपि व्यावहारिक अनुभव के आधार पर राज्यपाल का पद केन्द्र और राज्यों के मध्य विवाद का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। परन्तु केन्द्र राज्य सम्बन्ध में उसकी अपनी उपयोगिता है।

(ङ) एकल नागरिकता: पारम्परिक संघीय व्यवस्थाओं के विपरीत भारतीय संघवाद में सम्पूर्ण देश के लिए एकल नागरिकता का प्रावधान है। ऐसा भारत की विशाल-बहुलता के कारण भावी विखण्डनकारी सम्भावनाओं को रोकने के लिए किया गया था।

(च) एकात्मकता का प्रभुत्व-भारतीय संघीय व्यवस्था मूल रूप से केन्द्रीकृत अर्थात् एकात्मक प्रभुत्व वाली व्यवस्था ही मानी जा सकती है। भारत की एकता और अखण्डता को सुरक्षित रखने के लिए केन्द्र को मजबूत बनाना। स्वभाविक ही था। यद्यपि कुछ वामपंथी राजनैतिक दल और विघटनकारी विचारधाराएँ इस एकात्मक प्रवृति का विरोध करती। हैं।

यथार्थ में संविधान में अनेक प्रावधानों के माध्यम से केन्द्र को निर्णायक भूमिका प्रदान की गई है। संविधान संशोधन, राज्यों के निर्माण पुनर्सीमांकन, आपातकालीन परिस्थितियों तथा अधिकारों आदि संदर्भो में केन्द्र की स्थिति अत्यन्त मजबूत और निर्णायक रखी गई है।

(छ) केन्द्रीय व्यवस्थापिका में राज्यों का सदन-राज्यसभा- भारतीय संघवाद को सुदृढ़ करने के लिए ही केन्द्रीय व्यवस्थापिका अर्थात् संसद के उच्च सदन राज्यसभा को राज्य की प्रतिनिध्यात्मक संस्था के रूप में स्थापित किया गया है।

प्रश्न 2.
भारत में संघवाद की नवीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत में संघवादं की नवीन प्रवृत्तियाँ: जिस प्रकार भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के स्वरूप के विषय में वाद – विवाद बना हुआ है, उसी प्रकार अथवा उससे भी कहीं अधिक उसके संघीय स्वरूप के विषय में विवाद है और यह विवाद 1950 से आज तक अनवरत बना हुआ है। इस विवाद का मुख्य बिंदु यह है कि भारतीय व्यवस्था संघीय है अथवा नहीं।

के.सी. व्हीयर को सामान्यतया इस विवाद का जन्मदाता कहा जा सकता है, क्योंकि उन्होंने इस विषय में संदेह व्यक्त किया है कि भारतीय संघ वास्तव में संघीय है। इस संबंध में जो दृष्टिकोण उभर कर आए हैं उन्हें सामान्य रूप से दो भागों में विभक्त किया जा सकता है

  1. वैधानिक एवं संस्थागत विचारधारा।।
  2. व्यावहारिक विचारधारा।

हमारा, संविधान संघीय है यद्यपि उसकी संघीयता की मात्रा के विषय में मत भिन्नता हो सकती है। भारतीय संघवाद के विषय में ‘के.सी. व्हीयर’ ने इसे ‘अर्द्धसंघीय’ माना है। ‘गेनविले’ ने इसे ‘सहयोगी संघवाद’ कहा है। स्वयं डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसे कठोर संघीय ढाँचा मानने से इनकार किया है।

मोरिस जोन्स ने इसे सौदेबाजी वाला संघवाद माना है परंतु सत्य यह है कि भारतीय संघवाद विशुद्ध सैद्धांतिक संघवाद नहीं है। विशिष्ट बहुलवादी परिस्थितियों में इसे एकात्मक शक्ति प्रदान की गई है। विधायी कार्यकारी, न्यायिक और आपातकालीन इन सभी क्षेत्रों में अंतिम व निर्णायक भूमिका केन्द्र की ही दी गई है।

व्यावहारिक दृष्टिकोण: व्यवहारवादी दृष्टिकोण ने शीघ्र ही परंपरागत दृष्टिकोण का स्थान प्राप्त कर लिया। व्यवहारवादियों का केन्द्र-बिंदु, केन्द्र व राज्यों के बीच सत्ता – संबंधों का अध्ययन हो गया है। व्यवहारवादी, संघ का अध्ययन उसके व्यावहारिक पहलू को ध्यान में रखकर करते हैं। मोरिस जोन्स व अशोक चंदा आदि ने भारतीय संघ व्यवस्था का व्यावहारिक अध्ययन विशेष रूप से नियोजन के परिप्रेक्ष्य में किया है।

इनका विचार है कि नियोजन के परिणामस्वरूप भारत में न केवल संघीय व्यवस्था का अंत हो गया है अपितु संसदीय प्रणाली भी लुप्त-सी लगती है। अतः संविधान निर्माताओं का दृष्टिकोण संघात्मक ढाँचे की स्थापना अवश्य रहा है किंतु यह भी स्वीकारना होगा कि संविधान में भी एकात्मकता के प्रबल तत्व विद्यमान हैं।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 19 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Political Science Chapter 19 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सत्ता की शक्तियों के वितरण एवं स्तरों के आधार पर अपनायी जानी वाली शासन प्रणाली कहलाती है
(अ) संघवाद
(ब) एकात्मवाद
(स) केन्द्रवाद
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 2.
संघीय शासन के एक प्रकार “पूर्व में अनेक संप्रभु इकाइयों का आपस में एक हो जाना’ का उदाहरण है
(अ) रूस
(ब) संयुक्त राज्य अमेरिका
(स) भारत
(द) स्विट्जरलैण्ड

प्रश्न 3.
संघीय शासन के एक प्रकार”एक बड़ी राजनीतिक इकाई को शासन की कार्यकुशलता की दृष्टि से अलग-अलग इकाइयों में विभाजित कर देना।” का उदाहरण है
(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका
(ब) जर्मनी
(स) भारत
(द) चीन

प्रश्न 4.
वर्तमान में भारत में कितने केन्द्र शासित प्रदेश हैं?
(अ) 25
(ब) 7
(स) 33
(द) 28

प्रश्न 5.
भारतीय संघीय व्यवस्था का प्रमुख तत्व है
(अ) शासन शक्तियों का स्पष्ट विभाजन
(ब) निष्पक्ष व स्वतंत्र न्यायपालिका
(स) एकल नागरिकता
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
संघीय सूची में कितने विषय हैं?
(अ) 47
(ब) 66
(स) 97.
(द) 99

प्रश्न 7.
संघीय सूची में 97 विषय हैं, इसी कारण यह सबसे लंबी सूची है। इसमें किस प्रकार के विषय हैं?
(अ) राष्ट्रीय महत्व के
|(ब) क्षेत्रीय महत्व के
(स) राष्ट्रीय एवं स्थानीय महत्व के
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं

प्रश्न 8.
कितने विषयों पर केन्द्र तथा राज्य दोनों कानून बना सकते हैं?
(अ) 25
(ब) 47
(स) 97
(द) 101

प्रश्न 9.
संघ सूची पर केन्द्र और राज्य सूची पर राज्य कानून बनाता है, परंतु समवर्ती सूची पर कौन कानून बनाता है?
(अ) केन्द्र सरकार
(ब) राज्य सरकार
(स) केन्द्र व राज्य दोनों ही सरकारें
(द) स्थानीय निकाय

प्रश्न 10.
निम्न में से भारतीय संविधान की एकात्मकता का लक्षण नहीं है
(अ) एक संविधान
(ब) शक्तियों का विभाजन
(स) राज्यपाल का पद
(द) राज्यों को पृथक का अधिकार नहीं।

प्रश्न 11.
निम्न में से किसने भारतीय संघवाद को अर्द्धसंघीय कहा?
(अ) ग्रेनविले ऑस्टिन ने
(ब) के. सी. व्हीयर ने
(स) डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने
(द) मोरिस जॉन्स ने

प्रश्न 12.
निम्न में से किस विद्वान ने भारतीय संघवाद को सौदेबाजी वाला संघवाद माना?
(अ) मोरिस जॉन्स ने।
(ब) ऑस्टिन ने
(स) अम्बेडकर ने
(द) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने।
उतर:
1. (अ) 2. (ब) 3. (स) 4. (ब) 5. (द) 6. (स) 7. (अ) 8. (ब)
9. (स) 10. (स) 11. (ब) 12. (अ)।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 19 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संघवाद से क्या आशय है?
उत्तर:
सत्ता की शक्तियों के वितरण एवं स्तरों के आधार पर अपनायी जाने वाली शासन प्रणाली को संघवाद कहा जाता है।

प्रश्न 2.
संघीय शासन प्रणाली का संचालन किसके माध्यम से होता है?
उत्तर:
संघीय शासन प्रणाली का संचालन केन्द्र तथा उसकी विभिन्न इकाइयों के माध्यम से होता है।

प्रश्न 3.
संघीय शासन का निर्माण कितने प्रकार से होता है?
उत्तर:
संघीय शासन का निर्माण दो प्रकार से होता है-

  1. पूर्व में अनेक संप्रभु इकाइयों का आपस में एक हो जाना
  2. एक बड़ी राजनीतिक इकाई को शासन की कार्य-कुशलता की दृष्टि से अलग-अलग इकाइयों में विभाजित कर देना।

प्रश्न 4.
सफल संघीय व्यवस्था वाले देश कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, रूस, कनाडा तथा भारत आदि देश सफल संघीय व्यवस्था वाले देश हैं।

प्रश्न 5.
भारत में संघीय शासन की स्थापना किसके अंतर्गत की गयी है ?
उत्तर:
भारत में संविधान के तहत संघीय शासन की स्थापना की गयी है।

प्रश्न 6.
संविधान में ‘संघवाद’ के स्थान पर किस शब्द का प्रयोग किया गया है?
उत्तर:
संविधान में ‘संघवाद’ के स्थान पर राज्यों का संघ’ शब्द का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 7.
भारत में कितने केन्द्र शासित प्रदेश हैं?
उत्तर:
भारत में 7 केन्द्र शासित प्रदेश हैं।

प्रश्न 8.
किस देश को ‘विनाशी राज्यों का अविनाशी संघ’ की संज्ञा दी जाती है?
उत्तर:
भारत को “विनाशी राज्यों का अविनाशी संघ” की संज्ञा दी जाती है।

प्रश्न 9.
भारत के किस राज्य का अपना एक संविधान है?
उत्तर:
जम्मू और कश्मीर राज्य का।

प्रश्न 10.
भारतीय संसद का उच्च सदन कौन-सा है?
उत्तर:
राज्यसभा।

प्रश्न 11.
राज्य में केन्द्र के प्रतिनिधि के रूप में कौन कार्य करता है?
उत्तर:
राज्यपाल।

प्रश्न 12.
भारतीय संघीय व्यवस्था के कोई दो तत्व लिखिए।
उत्तर:

  1. स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका,
  2. संविधान की सर्वोच्चता।

प्रश्न 13.
भारतीय संविधान को एकात्मक रूप देने वाले कोई दो तत्व लिखिए।
उत्तर:

  1. एक संविधान,
  2.  सीमाओं में परिवर्तन हेतु राज्यों की सहमति अनिवार्य ।

प्रश्न 14.
किस अनुच्छेद के अंतर्गत अवशिष्ट शक्तियों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 248 के अन्तर्गत अवशिष्ट शक्तियाँ केन्द्र सरकार को प्रदान की गई हैं।

प्रश्न 15.
संविधान में शक्तियों का विभाजन किसके पक्ष में है?
उत्तर:
संविधान में शक्तियों का विभाजन केन्द्र के पक्ष में है।

प्रश्न 16.
राज्य सूची में अंकित विषयों पर कानून का निर्माण कौन करता है?
उत्तर:
राज्यसूची में अंकित विषयों पर राज्य विधानमंडल कानून बनाता है।

प्रश्न 17.
किन अनुच्छेदों के अंतर्गत राष्ट्रपति संकटकाल की उद्घोषणा कर सकता है?
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 352, 356 तथा 360 के अनुसार राष्ट्रपति आपात स्थिति की घोषणा कर सकता है।

प्रश्न 18.
संविधान के किस अनुच्छेद के तहत राज्यों में केन्द्र द्वारा राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।
उत्तर:
अनुच्छेद 35 के तहत।

प्रश्न 19.
राज्यसभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व किसके आधार पर किया जाता है?
उत्तर:
राज्यसभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व समानता के आधार पर नहीं बल्कि जनसंख्या के आधार पर किया गया है।

प्रश्न 20.
किस देश में दोहरी नागरिकता की प्रणाली पायी जाती है?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विटजरलैण्ड में दोहरी नागरिकता की प्रणाली पायी जाती है।

प्रश्न 21.
अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्यों की नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्यों की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है।

प्रश्न 22.
एकल संगठित न्याय व्यवस्था किसका लक्षण मानी जाती है?
उत्तर:
एकल संगठित न्याय व्यवस्था संघात्मक राज्य की नहीं बल्कि एकात्मक राज्य का लक्षण मानी जाती है।

प्रश्न 23.
क्या राज्यों को भारत संघ से अलग होने का अधिकार प्राप्त है ?
उत्तर:
भारत संघ के राज्यों को संघ से पृथक होने का अधिकार प्राप्त नहीं है।

प्रश्न 24.
अनुच्छेद 312 किससे संबंधित है ?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 312 में अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन से संबंधित प्रावधान किए गए हैं।

प्रश्न 25.
संघवाद की प्रवृत्ति बताइए। उत्तर-शासन की शक्तियों का केन्द्र व राज्यों में विभाजन संघवाद की प्रवृत्ति है।

प्रश्न 26.
भारतीय संघ को किन-किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर:
भारतीय संघ को अर्द्धसंघात्मक व सहयोगी संघवाद के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 27.
साझा सरकारों के दौर में केन्द्र की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
साझा सरकारों के दौर में केन्द्र की स्थिति कमजोर होती है।

प्रश्न 28.
सरकारिया आयोग का गठन कब किया गया ?
उत्तर:
1983 ई में।

प्रश्न 29.
सरकारिया आयोग का गठन क्यों किया गया ?
उत्तर:
संघ व राज्यों के आपसी उम्तधों के अध्ययन हेतु सरकारिया आयोग गठित किया गया।

प्रश्न 30.
सरकारिया आयोग ने अपनी रिपोर्ट कब प्रस्तुत की व क्या सुझाव दिया?
उत्तर:
सरकारिया आयोग ने 1988 ई. में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें मजबूत केन्द्र एवं सुदृढ़ राज्यों का सुझाव दिया गया था।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 19 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संघीय या संघात्मक सरकार का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संघीय या संघात्मक सरकार का अर्थ – संघवाद अंग्रेजी भाषा के “फेडरलिज्म” का हिंदी अनुवाद है। इसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘फोडस’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ ‘संधि अथवा ‘समझौता’ है। जब दो या दो से अधिक स्वतंत्र राज्य मिलकर एक समझौते द्वारा अपने लिए सामान्य सरकार की स्थापना करें और साथ ही अपने आंतरिक क्षेत्र में स्वतंत्र रहें तो शासन का वह रूप संघात्मक होता है। संघात्मक शासन व्यवस्था में दो प्रकार की सरकारें होती हैं।

इसमें एक ओर, संघ की सरकार होती है तथा दूसरी ओर विभिन्न इकाइयों की सरकारें होती हैं। भारत की संघीय व्यवस्था कनाडा से प्रभावित है। डायसी के अनुसार-“संघात्मक सरकार वह योजना है जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता और राज्यों के अधिकारों में सामंजस्य स्थापित करना है।” मॉण्टेस्क्यू के अनुसार, “संघात्मक सरकार एक ऐसा समझौता है, जिसके द्वारा बहुत से एक जैसे राज्य एक बड़े राज्य का सदस्य बनने को तैयार हो जाएँ ।”

प्रश्न 2.
भारतीय संघीय व्यवस्था के किन्हीं दो तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संघीय व्यवस्था के तत्व: भारतीय संघीय व्यवस्था के दो प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं
(i) संविधान की सर्वोच्चता – भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है। भारत की संसद तथा विधानमण्डल अपनी शक्तियाँ संविधान से प्राप्त करते हैं। जो कानून संविधान के अनुरूप नहीं होते उन्हें सर्वोच्च न्यायालय अवैध घोषित करता है राष्ट्रपति, राज्यपाल तथा प्रमुख पदाधिकारियों द्वारा संविधान के अनुसार कार्य करने की शपथ ली जाती है।

(ii) एकल नागरिकता – पारम्परिक संघीय व्यवस्थाओं के विपरीत भारतीय संघवाद में सम्पूर्ण देश के लिए एकल नागरिकता का ही प्रावधान है। ऐसा भारत की विशाल-बहुलता के कारण भावी विखण्डनकारी सम्भावना को रोकने के लिए किया गया है।

प्रश्न 3.
केन्द्र – राज्यों के विधायी संबंधों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
केन्द्र – राज्य विधायी संबंध – संघ व राज्यों के विधायी संबंधों का संचालन उन तीन सूचियों के आधार पर होता है, जिन्हें संघ सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची कहा जाता है
(क) संघ सूची – इस सूची में 97 विषय हैं। राष्ट्रीय महत्व के समस्त विषयों को इस सूची में रखा गया है। इसमें सुरक्षा, संचार, युद्ध तथा मुद्रा आदि विषयों को शामिल किया गया है।

(ख) राज्य सूची – राज्य सूची में 66 विषय हैं। प्रांतीय अथवा क्षेत्रीय महत्व के विषयों को इस सूची में सम्मिलित किया गया है। इस सूची में विषयों पर विधि – निर्माण का पूर्णाधिकार सामान्यतया राज्य विधानमंडलों को दिया गया है किंतु कुछ अवस्थाओं में राज्य सूची के विषयों पर संसद भी कानून बना सकती है।

(ग) समवर्ती सूची-इस सूची में 47 विषय हैं। भारतीय संसद और राज्य विधानमंडल दोनों को इन विषयों पर विधि – निर्माण का अधिकार प्राप्त है। इस सूची में ऐसे विषयों को सम्मिलित किया गया है जो न तो पूरी तरह से संघीय महत्व के हैं और न किसी क्षेत्र विशेष के।

प्रश्न 4.
“भारतीय संघीय व्यवस्था मूलतः केन्द्रीकृत अर्थात् एकात्मक प्रभुत्व वाली मानी जा सकती है।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संघीय व्यवस्था मूलतः केन्द्रीकृत अर्थात् एकात्मक प्रभुत्व वाली मानी जा सकती है। भारत की एकता व अखण्डता को सुरक्षित रखने के लिए केन्द्र को मजबूत बनाया गया है। संविधान में अनेक प्रावधानों के माध्यम से केन्द्र को निर्णायक भूमिका प्रदान की गयी है।

संविधान संशोधन नए राज्यों के निर्माण, पुनर्सीमांकन, आपातकालीन परिस्थितियों, आर्थिक अधिकारों आदि के सन्दर्भ में केन्द्र की स्थिति अत्यन्त मजबूत एवं नियंत्रित रहती है। विभिन्न उदाहरण भी स्पष्ट करते हैं, कि सशक्त केन्द्र वाले भारतीय संघवाद ने भारत की एकता व अखण्डता को स्थापित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान के किन्हीं तीन एकात्मक तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान के एकात्मक तत्व: भारतीय संविधान के तीन एकात्मक तत्व अग्रलिखित हैं
(i) एक संविधान – भारत में केन्द्र एवं राज्यों के लिए एक ही संविधान है। अपवाद जम्मू – कश्मीर राज्य है। इसका अपना एक संविधान है। अमेरिका तथा स्विट्जरलैण्ड आदि देशों में संघात्मक प्रणाली है तथा वहाँ पूरे देश के लिए एक ही संविधान है जिसमें केन्द्र तथा राज्यों के शासन की व्यवस्था के सम्बन्ध में प्रावधान है।

(ii) एकल नागरिकता – भारतीय संविधान में एकल नागरिकता का प्रावधान किया गया है। सभी व्यक्ति भारत के ही नागरिक हैं। सभी को समानता के आधार पर संविधान की ओर से अधिकार प्राप्त हैं। राज्य की अपनी कोई अलग से नागरिकता नहीं है।

(iii) अवशिष्ट शक्तियाँ – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 248 के अनुसार अवशिष्ट शक्तियाँ केन्द्र सरकार को प्रदान की गई हैं। यह व्यवस्था कनाडा के संविधान से ग्रहण की गई है।

प्रश्न 6.
भारतीय संविधान में शक्तियों का विभाजन केन्द्र के पक्ष में है।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संघीय व्यवस्था होते हुए भी भारतीय संविधान में शक्तियों का विभाजन केन्द्र के पक्ष में रखा गया है। संघ सूची में राज्य सूची की अपेक्षा बहुत महत्वपूर्ण विषय सम्मिलित किए गए हैं। इनमें विदेश नीति, रक्षा, बैंकिंग, संचार, मुद्रा आदि प्रमुख हैं। संघीय सूची में 97 विषय अंकित किए गए हैं। समवर्ती सूची में कुल 47 विषय अंकित हैं। संघीय सूची में अंकित विषयों पर केन्द्रीय सरकार व संसद कानून बनाती है।

राज्य सूची में वर्णित विषयों पर राज्य विधानमण्डल कानूनों का निर्माण करता है किन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर भी संसद कानून बना सकती है। समवर्ती सूची में अंकित विषयों में दोनों अर्थात् केन्द्र व राज्य सरकार कानून बना सकती हैं। परन्तु यदि राज्य सरकार द्वारा निर्मित कानून केन्द्रीय कानून का विरोध करता है तो राज्य सरकार द्वारा निर्मित कानून को रद्द कर केन्द्रीय कानून को लागू कर दिया जाता है। इस प्रकार शक्तियों का यह विभाजन केन्द्र को मजबूती प्रदान करता है।

प्रश्न 7.
संविधान में कितने प्रकार के आपातकालों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर:
सामान्य परिस्थिति में भारतीय संविधान संघीय आधार पर कार्य करता है किन्तु संकट काल में राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा करने पर राज्यों की स्वायत्तता समाप्त हो जाती है। संविधान में तीन प्रकार के आपातकालों की व्यवस्था है

  1. संविधान के अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत युद्ध या बाह्य आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण आपातकाल की घोषणा की जाती है।
  2. अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत राज्यों में संवैधानिक तन्त्र की असफलता होने पर आपातकाल की घोषणा की जा । सकती है।
  3. अनुच्छेद 360 के अन्तर्गत वित्तीय स्थिरता पर संकट के समय संघीय व्यवस्था एकात्मक रूप ग्रहण कर लेती है।

प्रश्न 8.
“सीमाओं में परिवर्तन हेतु राज्यों की सहमति अनिवार्य नहीं।” भारतीय संघवाद के इस एकात्मक लक्षण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संघवाद में संविधान के अनुसार संघीय संसद को राज्यों की सहमति के बिना भी राज्यों का पुनर्गठन अथवा उनकी सीमाओं में परिवर्तन का अधिकार प्राप्त है। ऐसा परिवर्तन विधान की सामान्य प्रक्रिया के अनुसार साधारण बहुमत से किया जा सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 7 में स्पष्ट है कि इसके लिए संसद को प्रभावित राज्य के विधानमण्डल की सहमति प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

केवल संसद को सिफारिश करने के प्रयोजन हेतु राष्ट्रपति के लिए यह आवश्यक है कि वे प्रभावित राज्य के विधानमण्डल के विचार प्राप्त कर लें। यह बाध्यता भी पूर्ण रूप से आज्ञापरक नहीं है। राष्ट्रपति द्वारा प्रभावित राज्य को अपने विचार व्यक्त करने हेतु समय सीमा का निर्धारण किया जा सकता है।

प्रश्न 9.
भारत में किस कारण से संघात्मक व्यवस्था को लागू किया गया है? कोई पाँच कारण लिखिए।
उत्तर:
भारत में संविधान निर्माताओं ने एकात्मक शासन के स्थान पर संघात्मक शासन को अपनाया। इसके चार प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  1. भारत का विशाल भौगोलिक क्षेत्रफल होना।
  2. भारत में विशाल जनसंख्या का होना।
  3. भूमि, कृषि एवं वन सम्बन्धी प्रांतीय समस्याओं का समाधान स्थानीय सरकार ही सफलतापूर्वक कर सकती है।
  4. भारत में अनेक रीति – रिवाज, प्रथाओं एवं परम्पराओं के कारण भी संघीय व्यवस्था को लागू किया गया है।
  5. देश में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए भी संघीय व्यवस्था अपनायी गयी है।

प्रश्न 10.
भारतीय संघवाद की प्रवृत्ति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संघवाद की प्रवृत्ति: भारतीय संघवाद विशुद्ध रूप से सैद्धांतिक संघवाद नहीं है। इसे विशिष्ट परिस्थितियों में एकात्मक रूप प्रदान किया गया है। केन्द्र को अत्यधिक शक्तिशाली बनाया गया है। कानून निर्माण, कार्यपालिका एवं न्यायिक के साथ-साथ आपातकाल में अन्तिम व निर्णायक भूमिका केन्द्र को ही दी गयी है।

अखिल भारतीय सेवाएँ यथा भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा आपातकालीन उपबन्ध यथा धारा 352,356 एवं 360 के साथ – साथ वित्त आयोग आदि संस्थागत रूप से केन्द्रीकरण के माध्यम रहे हैं। संविधानविद् के. सी. व्हीयर के अनुसार भारतीय संघवाद अर्धसंघीय है। ग्रेनविले ऑस्टिन ने इसे सहयोगी संघवाद कहा है। मोरिस जोन्स ने इसे सौदेबाजी वाला संघवाद कहा है।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने इसे कठोर संघीय ढाँचा मानने से इंकार कर दिया है। इस एकात्मक आत्मा वाले संघवाद में इकाइयों को अनेक संस्थाओं के माध्यम से उचित महत्व व भागीदारी भी प्रदान की गयी है। राष्ट्रीय विकास परिषद अन्तर्राष्ट्रीय परिषद एवं मंत्री-परिषद तथा नीति आयोग के माध्यम से राज्य की भागीदारी को सुनिश्चित किया गया है।

प्रश्न 11.
अंतर्राज्यीय परिषद् की स्थापना किन कार्यों के लिए की जाती है?
उत्तर:
अंतर्राज्यीय परिषद्: संविधान के अनुच्छेद 263 के अनुसार केन्द्रीय सरकार राष्ट्रीय तथा सार्वजनिक हित में अंतर्राज्यीय परिषद् की स्थापना कर सकती है। इसकी स्थापना मुख्यत: तीन कार्यों के लिए की जाती है

  1. विभिन्न राज्यों के बीच झगड़ों की जाँच कर उन पर परामर्श देना।
  2. राज्यों के सामान्य हितों हेतु अन्वेषण करना।
  3. अंतर्राज्यीय विषयों से सम्बन्धित नीतियों में समन्वय करना।

इस परिषद के माध्यम से केन्द्रीय सरकार राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है। इस प्रकार की अंतर्राज्यीय परिषदों पर केन्द्रीय सरकार प्रतिवर्ष राज्यों को आर्थिक सहायता तथा अनुदान देती है। इस सहायता की पृष्ठभूमि में केन्द्रीय सरकार राज्यों पर अनेक प्रतिबंध भी लगा सकती है।

प्रश्न 12.
सरकारिया आयोग की मुख्य सिफारिशों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1983 में सरकारिया आयोग बनाया गया, जिसकी रिपोर्ट में अनेक सिफारिशें प्रस्तुत की गई थीं, जो निम्नलिखित हैं

  1. आयोग के प्रतिवेदन में सुदृढ़ केन्द्र की अवधारणा पर बल दिया गया है।
  2. अखिल भारतीय सेवाओं को सुदृढ़ व सक्षम बनाने की आयोग ने सिफारिश की है।
  3. आयोग का मत है कि अनुच्छेद 356 का प्रयोग पूरी तरह से सोच-विचार करने के बाद ही किया जाना चाहिए।
  4. अनुच्छेद 263 के अन्तर्गत एक अन्तर्राष्ट्रीय परिषद का गठन किया जाना चाहिए। इसमें राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  5. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में योजना आयोग तथा वित्त आयोग के बीच समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया है।
  6. राष्ट्रीय विकास परिषद का नाम बदलकर राष्ट्रीय आर्थिक एवं विकास परिषद रखा जाना चाहिए।
  7. आयोग द्वारा केन्द्र व राज्यों के बीच विवादों का समाधान करने हेतु एक अंतर्राज्यीय परिषद की स्थापना के पक्ष में भी विचार प्रकट किया गया है।
  8. संविधान संशोधन द्वारा राज्यों को अनुच्छेद 252 के अधीन राज्य सूची के कानूनों में संशोधन का अधिकार प्रदान करना चाहिए।

 

RBSE Class 12 Political Science Chapter 19 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संघीय शासन प्रणाली के गुणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
संघीय शासन व्यवस्था के गुण: संघीय शासन व्यवस्था के प्रमुख गुण इस प्रकार हैं
(क) राष्ट्रीय एकता में वृद्धि-इस शासन व्यवस्था में राष्ट्रीय एकता की भावना प्रबल होती है तथा राष्ट्रीय भावनाओं में दृढ़ता आती है क्योंकि कई राज्य मिलकर एक संघ का निर्माण करते हैं।

(ख) निर्बल व छोटे राज्यों के लिए उपयुक्त – यह शासन व्यवस्था निर्बल तथा छोटे-छोटे राज्यों के लिए उपयुक्त है। इससे वे शक्तिशाली बन जाते हैं।

(ग) स्थानीय संस्थाओं को प्रोत्साहन – इस शासन व्यवस्था में स्थानीय संस्थाओं के विकास पर बल दिया जाता है। स्थानीय समस्याओं का निराकरण करने को उत्तरदायित्व स्थानीय संस्थाओं पर ही छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार, इससे नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती है तथा स्थानीय संस्थाओं का विकास होता है।

(घ) शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत का व्यावहारिक रूप – इस शासन व्यवस्था में शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत अपनाया जाता है क्योंकि शासन की शक्तियों का विभाजन संघ सरकार तथा उसकी इकाई अथवा राज्यों की सरकारों में होता है। इसमें संघर्ष की भावना भी कम होती है।

(ङ) निरंकुशता का अभाव – इस शासन व्यवस्था में संविधान लिखित तथा कठोर होता है। इसमें नागरिकता तथा सरकारी कार्य क्षेत्र की स्पष्ट व्याख्या होती है और राज्य अथवा सरकार अपने क्षेत्र की सीमाओं से हटकर कार्य नहीं कर सकते हैं क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक पुनर्व्याख्या का अधिकार होता है। इससे इसमें शासन भी निरंकुश नहीं हो सकता है।

(च) विश्वबंधुत्व की भावना पर बल – संघात्मक शासन में सभी इकाइयाँ परस्पर सहयोग से कार्य करती हैं। ये. इकाइयाँ आंतरिक क्षेत्र में स्वतंत्र रहती हैं और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में संघ सरकार ही सर्वेसर्वा रहती है। इस प्रकार के शासन में विश्व के सभी राष्ट्रों से राज्य का संबंध स्थापित होता है। अतः विश्व बंधुत्व की भावना इस प्रणाली की विशेषता है। वस्तुतः इस व्यवस्था से विश्व के राज्यों में पारस्परिक सहयोग की भावना का उदय होता है।

प्रश्न 2.
संघीय शासन प्रणाली के दोषों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
संघीय शासन प्रणाली के प्रमुख दोष-संघीय शासन प्रणाली के प्रमुख दोष निम्न प्रकार हैं

1. संघीय शासन व्यवस्था संकटकाल में अनुपयुक्त होती है क्योंकि युद्ध अथवा आंतरिक संकटों के समय संघ सरकार राज्यों की सहमति के बिना कोई भी निर्णय लेने में असमर्थ होती है।

2. यह व्यवस्था केवल बड़े देशों के लिए ही उपयुक्त है, छोटे-छोटे राज्यों के लिए नहीं।

3. संघीय शासन व्यवस्था में दो प्रकार की सरकार होती हैं। इस प्रकार एक ही तरह की दो प्रकार की सरकारें होती हैं जिसके फलस्वरूप धन का अपव्यय होता है।

4. संघीय शासन व्यवस्था में नागरिक को दोहरी नागरिकता प्राप्त होती है। ऐसी स्थिति में संघ के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो जाता है।

5. इस व्यवस्था में वैधानिक संघर्षों का भय बना रहता है क्योंकि कभी – कभी संघ सरकार व राज्य सरकार दोनों ही एक ही विषय पर कानून बना देती हैं। इस संघर्ष को दूर करने के लिए न्यायालय की शरण लेनी होती है।

6. यह व्यवस्था एक कठोर शासन व्यवस्था है जिसमें सरलता से परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। इस शासन व्यवस्था में संविधान कठोर होता है, जिसमें संशोधन या परिवर्तन करने की प्रक्रिया साधारण कानून निर्माण की प्रक्रिया से भिन्न तथा कठोर होती है। अतः इसमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।

7. इस व्यवस्था में प्रशासकीय शक्तियों का विभाजन रहता है। इस विभाजन के परिणामस्वरूप प्रशासकीय कार्यों में शिथिलता आ जाती है। उत्तरदायित्वों का केन्द्र व राज्यों की सरकारों में विभाजन हो जाने के फलस्वरूप प्रशासन का कोई भी कार्य आसानी से नहीं किया जा सकता है।

8. संघीय शासन व्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अथवा अंतर्राष्ट्रीय नीति में पूर्ण सफल नहीं रहती है। इसमें अंतर्राष्ट्रीय नीति का निर्धारण सरकार एक प्रक्रिया के तहत करती है। संघ सरकार को इकाई राज्यों के सहयोग पर निर्भर रहना पड़ता है। कभी – कभी इकाई राज्यों की सरकारें एकजुट होकर संघ सरकार की विदेश नीति का विरोध करने लगती हैं।

इस प्रकार इसमें संघ सरकार को कभी-कभी अंतर्राष्ट्रीय नीति में पूर्ण सफलता नहीं मिल पाती है। उपर्युक्त विवरण से यह निष्कर्ष निकलता है कि इस शासन व्यवस्था में अनेक दोषों के होते हुए भी आधुनिक काल में इसे एक कुशल तथा शक्तिशाली शासन प्रणाली माना जाता है।

प्रश्न 3.
केन्द्र व राज्यों के मध्य तनावों को दूर करने हेतु सुझावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
केन्द्र व राज्यों के मध्य तनाव को दूर करने हेतु सुझाव – केन्द्र व राज्यों के मध्य तनावों को दूर करने हेतु अनेक सुझाव प्रस्तुत किए जाते रहे हैं, जो निम्नलिखित हैं

  1. केन्द्र के पास राज्यों को विवेकानुसार अनुदान देने की शक्ति न रहे।
  2.  वित्त आयोग को स्थायी संस्था के रूप में परिवर्तित किया जाए और इस आयोग का परामर्श केन्द्र के रूप में विकास किया जाय।
  3. नीति आयोग को स्वायत्त संवैधानिक स्तर प्रदान किया जाए।
  4. अनुच्छेद 263 के अनुसार अन्तर्राज्यीय परिषद स्थापित की जाए जो राष्ट्रपति को परामर्श देने का कार्य करे।
  5. राष्ट्रपति के परामर्श के लिए एक समिति बनायी जाय, जिसके परामर्श पर राज्यपालों, न्यायाधीशों, नीति आयोग के सदस्यों आदि की नियुक्ति हो।
  6. प्रशासन, वित्त और विधायी क्षेत्रों में केन्द्रीय नियंत्रण की व्यवस्थाएँ शिथिल हों।
  7. अखिल भारतीय सेवा के जो अधिकारी राज्य सेवा में रहें उन पर पूरा नियंत्रण राज्य सरकार का हो।
  8. अंतर्राष्ट्रीय परिषद की स्थापना के अलावा प्रत्येक राज्य के लिए एक संवैधानिक सलाहकार समिति की स्थापना हो, यह समिति संघीय प्रश्नों पर राज्य सरकार को परामर्श दे।
  9. केन्द्र, राज्य सूची के विषयों में बिलकुल भी हस्तक्षेप न करे। राज्य सूची के विषयों से सम्बन्धित कार्यक्रम को लागू करने, उन पर धन व्यय करने आदि का पूरा उत्तरदायित्व राज्य सरकारों पर रहे।
  10. केन्द्र को अधिकाधिक उदार बनाना चाहिए कि वह महत्वपूर्ण मसलों पर राज्यों को अपने विश्वास में लेकर चले। अतः ‘सम्मेलन और विचार-विमर्श प्रणाली’ को अधिकाधिक प्रभावशाली बनाने की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए।
  11. समवर्ती सूची के कुछ ऐसे विषय राज्य सूची में रख दिए जाएँ, जिनसे राज्यों के अधिकारों में तो वृद्धि हो, लेकिन केन्द्र की शक्ति पर कोई आँच न आती हो। यह भी सम्भव है कि इन विषयों को सशर्त राज्यों को सौंपा जाए।
  12. राज्यों की आर्थिक समस्या को सुलझाने के लिए भी एक स्थायी किंतु गैर-राजनीतिक समिति गठित की जाए, जो केन्द्र व राज्यों के मध्य आर्थिक समन्वय का कार्य करे।
  13.  राष्ट्रपति एवं राज्यपाल सम्बन्धी संवैधानिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन करके उनकी शक्तियों में इस प्रकार वृद्धि की जाए कि वे बिना किसी विवशता के स्वविवेक से कार्य कर सकें।

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान के एकात्मक लक्षणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान के एकात्मक लक्षण- भारतीय संविधान के एकात्मक लक्षण निम्नलिखित हैं
(i) संघ व राज्यों के लिए एक ही संविधान – अमेरिका व स्विट्जरलैण्ड में संघीय व्यवस्था में केन्द्र व राज्यों के अलग-अलग संविधान हैं, लेकिन भारत में केन्द्र व राज्यों के लिए एक ही संविधान है।

(ii) केन्द्र के पक्ष में शक्तियों का वितरण – भारत के संविधान में शक्तियों का विभाजन केन्द्र के पक्ष में किया गया है। संघ सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को ही है। समवर्ती सूची के विषयों पर यद्यपि संसद व राज्य विथानमण्डल दोनों कानून बना सकते हैं किन्तु टकराव होने पर केन्द्र का कानून ही मान्य होगा। अवशिष्ट शक्तियाँ केन्द्र में निहित की गई हैं। अतः शक्ति सन्तुलन केन्द्र के पक्ष में झुक गया है।

(iii) अवशिष्ट शक्ति – भारतीय संविधान ने अनुच्छेद 248 के अनुसार अवशिष्ट शक्तियाँ केन्द्र सरकार को प्रदान की हैं। अवशिष्ट शक्ति का अर्थ किसी ऐसे विषय से है जो तीनों में से किसी भी सूची में अंकित नहीं हैं। यह व्यवस्था कनाडा के संविधान से ग्रहण की गई हैं।

(iv) संविधान संशोधन – संविधान के संशोधन करने के सम्बन्ध में केन्द्र को राज्यों की अपेक्षा अधिक अधिकार प्राप्त हैं। संविधान के अधिकांश भाग को संसद साधारण बहुमत से निश्चित विधि द्वारा परिवर्तित कर सकती है। संविधान का बहुत कम भाग ऐसा है जिसमें संशोधन के लिए कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडलों का समर्थन आवश्यक है।

(v) एकल नागरिकता – भारत में दोहरी शासन व्यवस्था होते हुए भी एकल नागरिकता है। इसमें संघ एवं राज्यों की कोई पृथक नागरिकता नहीं है। यह व्यवस्था राज्यों की तुलना में केन्द्र को शक्तिशाली बनाती है।

(vi) एकीकृत न्याय व्यवस्था – अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया में संघ व राज्यों के न्यायालय पृथक्-पृथक् होते हैं परन्तु भारत में एक ही सर्वोच्च न्यायालय है। देश के समस्त न्यायालय उच्चतम न्यायालय के अधीन हैं। उच्चतम न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय सभी अधीनस्थ न्यायालयों के लिए बाध्यकारी होते हैं।

(vii) राज्यसभा में राज्यों का असमान प्रतिनिधित्व – संघीय प्रणाली में दूसरा सदन प्रायः समानता के आधार पर राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है। जिस प्रकार अमेरिका के द्वितीय सदन सीनेट में प्रत्येक राज्य दो-दो प्रतिनिधि भेजता है। भारत की राज्यसभा में राज्यों को प्रतिनिधित्व समानता के आधार पर नहीं बल्कि जनसंख्या के आधार पर दिया गया है जो संघात्मक प्रणाली के सिद्धान्तों के विरुद्ध है।

(viii) संकटकाल में एकात्मक रूप – सामान्य परिस्थिति में भारतीय संविधान संघीय आधार पर कार्य करता है किन्तु संकटकाल में राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा करने पर राज्यों की स्वायत्तता समाप्त हो जाती है। संविधान के अनुच्छेद 352, 356 तथा 360 के अनुसार राष्ट्रपति आपात स्थिति की घोषणा कर सकता है।

(ix) प्रारम्भिक बातों में एकरूपता – कुछ प्रारम्भिक बातों की एकरूपता भारतीय संविधान की एक मुख्य विशेषता है, जैसे-पूरे देश के लिए एक ही प्रकार के दीवानी एवं फौजदारी कानून का प्रबन्ध किया गया है। पूरे देश के लिए एक ही चुनाव आयोग है। अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्य केन्द्र एवं राज्यों में शासन का प्रबन्ध करते हैं। जबकि इन सेवाओं के अधिकारियों की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है। परन्तु वे राज्य सरकारों के उच्च पदों पर कार्य करते हैं। इन बातों से संविधान की एकात्मकता की ओर झुकाव प्रतीत होता है।

(x) राज्यों को पृथक का अधिकार नहीं – भारत संघ के राज्यों को संघ से पृथक् होने का अधिकार नहीं है। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि 1963 में संविधान के 16वें संशोधन द्वारा  यह स्पष्ट किया गया है कि संघ से पृथक् होने के पक्षपोषण को वाक् स्वातंत्र्य संरक्षण प्राप्त नहीं होगा।

(xi) सीमाओं में परिवर्तन हेतु राज्यों की सहमति अनिवार्य नहीं – भारतीय संविधान के अनुसार संघीय संसद राज्यों की सहमति के बिना भी राज्यों का पुनर्गठन अथवा उनकी सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है। ऐसा संविधान की सामान्य प्रक्रिया के अनुसार साधारण बहुमत से किया जा सकता है।

(xii) लोकसेवाओं का विभाजन – भारत में लोकसेवाओं का विभाजन नहीं है। अधिकांश लोक सेवकों का नियोजन राज्यों द्वारा किया जाता है किन्तु वे अपने – अपने राज्यों पर लागू होने वाली संघ एवं राज्य दोनों द्वारा निर्मित विधियों से प्रशासन करते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 312 के अन्तर्गत अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन से सम्बन्धित प्रावधान किए गए। हैं किन्तु ये सेवाएँ संघ एवं राज्य दोनों के लिए सामान्य हैं।

संघ द्वारा नियुक्त भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य या तो संघ के किसी विभाग के अधीन नियोजित किए जा सकते हैं अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन लोकसेवकों की सेवाएँ। अन्तरणीय होती हैं। संघ के अधीन नियोजित किए जाने पर भी वे प्रश्नगत विषय पर लागू होने वाली संघ एवं राज्य दोनों द्वारा निर्मित विधियों से प्रशासन करते हैं। राज्यों के अधीन सेवा करते हुए भी अखिल भारतीय सेवा के सदस्य को केवल संघीय सरकार द्वारा ही पद से हटाया जा सकता है। राज्य सरकार इस प्रयोजनार्थ अनुषंगी कार्यवाही शुरू करने हेतु सक्षम है।

प्रश्न 5.
“भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है परन्तु आत्मा एकात्मक।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान का ढाँचा संघात्मक है, इस बात की पुष्टि उन तत्वों या विशेषताओं से होती है जो भारत के संविधान में संघीय विशेषताओं के रूप में पाई जाती हैं। भारत राज्यों का संघ है। इसमें 29 राज्य तथा 7 केन्द्र शासित इकाइयाँ हैं। केन्द्र व राज्यों की शक्तियों का तीन सूचियों द्वारा विभाजन किया गया है –

  1. केन्द्र सूची
  2. राज्य सूची
  3. समवर्ती सूची संविधान को सर्वोच्च बनाया गया है।

यह लिखित तथा कठोर संविधान है। स्वतंत्र न्यायपालिका है। इस प्रकार भारत एक संघ है परन्तु इसमें पूरक एकात्मक लक्षण भी मौजूद हैं। केन्द्र राज्य संबंधों को देखते हुए प्रतीत होता है कि केन्द्र अधिक शक्तिशाली है। राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति केन्द्र द्वारा की जाती है जो केन्द्र के एजेंट के रूप में कार्य करते हैं। भारत में इकहरी नागरिकता है। संसद के ऊपरी सदन में राज्यों का असमान प्रतिनिधित्व रखा गया है। संघीय ढाँचे को छेड़े बिना। यहाँ न्यूनतम साझा प्रशासनिक स्तर बनाया गया है।

इसके लिए अखिल भारतीय सेवायें जैसे – आई. ए. एस. तथा आई. पी. एस. का गठन किया गया है जो कि केन्द्र द्वारा नियंत्रित होती हैं। वित्तीय मामलों में भी राज्य केन्द्रों के ऊपर आश्रित रहते हैं। वित्तीय संकट के समय केन्द्र राज्य की वित्तीय स्थिति पर अपना पूरा नियन्त्रण रखना आरम्भ कर देता है।

इस प्रकार राज्यों की शक्तियों को कम करते हुए सभी नीतियाँ केन्द्र सरकार के पक्ष में झुकती हैं। राज्य केन्द्र द्वारा निर्धारित नीतियों के अनुसार ही कार्य करने को बाध्य होते हैं। इस प्रकार भारतीय संविधान अपने स्वरूप में तो संघीय हैं किन्तु आत्मिक रूप से एकात्मक है इसलिए भारत को अर्द्ध-संघात्मक राज्य भी कहा जाता है।

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