RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 6 ग्रामीण समाज में परिवर्तन के उपकरण-पंचायती राज, राजनैतिक दल एवं दबाव समूह
RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 6 ग्रामीण समाज में परिवर्तन के उपकरण-पंचायती राज, राजनैतिक दल एवं दबाव समूह
RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 अभ्यासार्थ प्रश्न
RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
संविधान के कौन से अनुच्छेद में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है?
(अ) 42वाँ
(ब) 41वाँ
(स) 40वाँ
(द) 39वाँ
उत्तरमाला:
(स) 40वाँ
प्रश्न 2.
श्री बलवन्त राय मेहता अध्ययन दल का गठन कब किया गया?
(अ) 1953
(ब) 1954
(स) 1956
(द) 1957
उत्तरमाला:
(द) 1957
प्रश्न 3.
73वाँ संविधान संशोधन कब किया गया?
(अ) 1992
(ब) 1993
(स) 1994
(द) 1995
उत्तरमाला:
(ब) 1993
प्रश्न 4.
पंचायती राज व्यवस्था कितने स्तर की है?
(अ) एक
(ब) दो
(स) तीन
(द) चार
उत्तरमाला:
(स) तीन
प्रश्न 5.
भारत में राजनीतिक दलों के गठन का आधार निम्न में से क्या है?
(अ) क्षेत्रीयता
(ब) धर्म
(स) भाषा
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 6.
इनमें से क्षेत्रीयता पर आधारित दल कौनसा है?
(अ) झारखण्ड मुक्ति मोर्चा
(ब) भारतीय जनता पार्टी
(स) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तरमाला:
(अ) झारखण्ड मुक्ति मोर्चा
प्रश्न 7.
इनमें से राष्ट्रीय दल कौन सा है?
(अ) अकाली दल
(ब) नेशनल कॉन्फ्रेंस
(स) भारतीय जनता पार्टी
(द) डी.एम.के.
उत्तरमाला:
(स) भारतीय जनता पार्टी
प्रश्न 8.
कौन से दबाव समूह अपनी मांगों को पूर्ण करने में सफल होते हैं?
(अ) शक्तिशाली
(ब) कमजोर
(स) उदार
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) शक्तिशाली
प्रश्न 9.
दबाव समूह एक ………… होते हैं।
(अ) राजनीतिक दल
(ब) प्रशासक
(स) स्वयंसेवी समूह
(द) शासन व सत्ता
उत्तरमाला:
(स) स्वयंसेवी समूह
RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
बलवंत राय मेहता के अनुसार पंचायतीराज की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
पंचायती राज की चार विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –
- पंचायती राज के कर्मचारी जन प्रतिनिधियों के अधीन काम करते हैं।
- पंचायती राज संस्थाएँ जनता के लिए निर्वाचित की जाती हैं।
- पंचायती राज प्रणाली में स्थानीय लोगों को कार्य करने की छूट होती है।
- पंचायती राज के तीन स्तर हैं ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, खंड स्तर पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद्।
प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक ……… दल है। (क्षेत्रीय/राष्ट्रीय)
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक ‘राष्ट्रीय’ दल है।
प्रश्न 3.
दो राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- भारतीय जनता पार्टी।
- काँग्रेस पार्टी।
प्रश्न 4.
दो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- झारखंड मुक्ति मोर्चा।
- तेलंगाना राष्ट्र समिति।
प्रश्न 5.
दबाव समूह की परिभाषा एवं अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दबाव समूह का अर्थ:
जब हित समूह सत्ता को प्रभावित करने के उद्देश्य से राजनीतिक दृष्टि से सक्रिय हो जाते हैं, तब ये दबाव समूह बन जाते हैं।
परिभाषा – प्रो. गुप्ता के अनुसार – “दबाव समूह वास्तव में एक ऐसा माध्यम है, जिनके द्वारा सामान्य हित वाले व्यक्ति सार्वजनिक मामलों को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं।”
RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राजस्थान में पंचायतीराज की शुरुआत कब व कैसे हुई है?
उत्तर:
राजस्थान में पंचायतीराज:
ग्रामीण सामाजिक परिप्रेक्ष्य में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण एवं सामुदायिक विकास के कार्यक्रमों को सफल बनाने हेतु पंचायतीराज संस्थाएँ मील का पत्थर साबित हुई हैं। जनता की समाज में सहभागिता सुनिश्चित करने एवं सहयोग प्रयोग करने के लिए पंचायतीराज की त्रिस्तरीय व्यवस्था शुरू की गई।
राजस्थान की विधानसभा में 2 सितंबर, 1959 को पंचायतीराज अधिनियम पारित किया गया। इस नियम के प्रावधानों के आधार पर 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पंचायतीराज का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा किया गया। इसके बाद अनेक राज्य में पंचायतीराज व्यवस्था को प्रारंभ किया गया।
प्रश्न 2.
73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायतीराज व्यवस्था में क्या प्रावधान किये गये हैं?
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायतीराज व्यवस्था में अनेक प्रावधान किये गए हैं, जो निम्न प्रकार से हैं –
- भारतीय संविधान के 73वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को मुख्य रूप से संवैधानिक मान्यता दी गई है।
- संविधान में एक नया अध्याय – 9 भी जोड़ा गया है।
- अध्याय – 9 द्वारा संविधान में 16 अनुच्छेद और एक अनुसूची – ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी गई है।
- 25 अप्रैल, 1993 से 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1993 को लागू किया गया है।
- 11वीं अनुसूची में 29 विषयों पर पंचायतें कानून बनाकर कार्य करेंगी।
प्रश्न 3.
ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में पंचायतीराज की क्यों आवश्यकता है?
उत्तर:
ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में पंचायतीराज की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है –
- भारतीय ग्रामीण समाज में पंचायतीराज व्यवस्था ठोस आधार प्रदान करती है।
- पंचायतीराज व्यवस्था ग्रामवासियों में लोकतांत्रिक संगठनों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करती है।
- इस व्यवस्था के कारण ये जन प्रतिनिधि ग्रामीण समस्याओं से अवगत होते हैं।
- यह स्थानीय समाज व राजनीतिक व्यवस्था के मध्य एक कड़ी का कार्य करते हैं।
- पंचायतें अपने नागरिकों को राजनीतिक अधिकारों के प्रयोग की शिक्षा प्रदान करती हैं।
प्रश्न 4.
राजनीतिक दलों की कोई पाँच विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
राजनीतिक दलों की पाँच विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –
- प्रत्येक राजनीतिक दलों की अपनी विशिष्ट नीतियाँ व उद्देश्य होते हैं।
- प्रत्येक राजनीतिक दल अनेक प्रकार के कार्यक्रमों का क्रियान्वयन व संचालन करते हैं।
- राजनीतिक दल औपचारिक सदस्यों वाले लोगों की एक संगठित संस्था होती है।
- सभी राजनीतिक दलों का लक्ष्य सत्ता को लोकतांत्रिक ढंग से प्राप्त करना है।
- सभी राजनीतिक दलों का अहम् कार्य सरकार को नागरिकों की समस्या से अवगत कराना है।
प्रश्न 5.
राजनीतिक दलों के गठन के 5 आधार लिखिए।
उत्तर:
राजनीतिक दलों के 5 आधार निम्न प्रकार से हैं –
- धार्मिक आधार: कुछ राजनीतिक दलों का गठन धार्मिक आधारों पर किया जाता है, जिससे लोगों को धार्मिक आधार पर सुरक्षा प्राप्त हो सके। मुस्लिम लीग व अकाली दल इसके उदाहरण हैं।
- भाषायी आधार: कुछ राजनीतिक दलों को भाषायी आधार पर गठित किया जाता है जैसे डी. एम. के. आदि।
- क्षेत्रीयता के आधार पर: क्षेत्रीय समानता के आधार पर क्षेत्रीय राजनीतिक दल गठित किये जाते हैं, जैसे झारखंड मुक्ति मोर्चा आदि।
- वातावरण के आधार पर: राजनीतिक दलों पर व्यक्ति की सोच व स्वभाव का प्रभाव पड़ता है जिससे राजनीतिक दलों का निर्माण किया जाता है।
- मनोवैज्ञानिक आधार: मानसिक आधार पर समान सोच या विचार रखने वाले व्यक्ति अपने अलग राजनीतिक दलों को गठित करते हैं।
प्रश्न 6.
राजनीतिक दल का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
राजनीतिक दल नागरिकों के उस संगठित समुदाय को कहते हैं, जिसके सदस्य समान राजनैतिक विचार रखते हैं और जो एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते हुए शासन को अपने हाथ में रखने की चेष्टा करते हैं।
लक्षण:
- यह दल लोगों की समस्याओं का निवारण करता है।
- यह दल राजनीतिक प्रक्रिया को जोड़ने व सरल बनाने का कार्य करते हैं।
प्रश्न 7.
दबाव समूहों का उदाहरण सहित वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
(1) सामाजिक सांस्कृतिक दबाव समूह:
- ऐसे दबाव समूह सामुदायिक सेवाओं से संबंधित होते हैं।
- ये संपूर्ण समुदायों के हितों को बढ़ावा देते हैं।
- यह भाषा एवं धर्म प्रचार का कार्य भी करते हैं जैसे – आर्य समाज, तथा रामकृष्ण मिशन आदि।
(2) संस्थागत दबाव समूह:
- ऐसे दबाव समूह सरकारी तंत्र के अंतर्गत ही कार्य करते हैं।
- ये दबाव समूह राजनीतिक पद्धति में सम्मिलित हुए बिना ही सरकार की नीतियों को अपने हितों के लिए प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 8.
भारतीय दबाव समूह की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भारतीय दबाव समूह की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- दबाव समूहों पर राजनीतिक दलों का नियंत्रण होता है।
- दबाव समूह सरकार के निर्णयों को प्रभावित करते हैं।
- यह केन्द्र की निर्धारित फैसलों को भी प्रभावित करते हैं।
- भारत में परंपरावादी दबाव समूह जैसे – जति व धर्म के आधार पर दबाव समूह बनते हैं।
प्रश्न 9.
“लॉबी’ क्या है? ये सरकारी निर्णयों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
दबाव समूहों की गतिविधियाँ ‘लॉबी’ नाम से प्रचलित है। ‘लॉबी’ एक अमरीकी शब्द है, लेकिन इसका प्रयोग आजकल यूरोप के देश जापान एवं अन्य देशों में भी किया जाता है। यह सदन के भीतर लॉबी की ओर इंगित करता है। जहाँ सदस्य व विधायक सदन से संबंधित कार्यवाहियों पर चर्चा करते हैं।
‘लॉबी’ शब्द को हीन दृष्टि से देखा जाता है और इसे धोखा, भ्रष्टाचार तथा बुराई आदि का प्रतीक माना जाता है। लोकतंत्र के सहयोगी के रूप में भी इसे जाना जाता है।
‘लॉबी’ का महत्त्व अब राजनीतिक क्रियाशीलता एवं सार्वजनिक नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए भी स्वीकार किया जाने लगा है। दबाव समूह या लॉबी सरकार व प्रशासन की नीतियों को प्रभावित करते हैं। विदेशी लॉबी विदेशी सरकार एवं गैर – सरकारी हितों के लिए कार्य करती है। ये ‘लॉबियाँ’ आर्थिक सहायता एवं प्रशासकों को विदेशी कंपनियों में ऊँचे पद देकर सरकारी फैसलों को प्रभावित करती है।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ग्रामीण विकास में पंचायतीराज की भूमिका की विस्तृत व्याख्या करें।
उत्तर:
भारतीय संविधान में 1993 से 73वें संशोधन द्वारा पंचायतीराज अधिनियम, 1993 लागू किया गया है। अब तक पंचायतीराज ने अनेक उपलब्धियाँ हासिल की हैं व भारत में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के द्वारा भारत के ग्रामीण, सामाजिक और आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है जो निम्नलिखित है –
1. आर्थिक विकास में वृद्धि:
पंचायतीराज की स्थापना से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिला है। अनेक लोगों को रोजगार के नए अवसर प्राप्त हुए हैं।
2. जन:
सहभागिता में बढ़ोत्तरी – पंचायतीराज से अनेक क्षेत्रों में विशेष तौर पर आम जनों की सहभागिता में वृद्धि हुई है। उनमें नवीन कार्यों के प्रति जागरूकता का समावेश हुआ है।
3. कमजोर वर्गों के हितों को बढ़ावा:
यह व्यवस्था ग्रामीण कार्यक्रमों में कमजोर व पिछड़े वर्गों को सहायता प्रदान करती है जिससे उनकी स्थिति में काफी सुधार संभव हुआ है।
4. शिक्षा का प्रसार:
पंचायतीराज व्यवस्था ने ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की प्रणाली के प्रचार व प्रसार में काफी योगदान दिया है। इससे दूरस्थ स्थानों पर रहने वाले सदस्यों को भी इसका लाभ मिला है। इससे लोगों की सोच या मानसिकता में बदलाव दृष्टिगोचर हुए व साथ ही अपने अधिकारों के प्रति उनमें सजगता का भी समावेश हुआ है।
5. सार्वजनिक स्वच्छता पर बल:
पंचायतीराज व्यवस्था के फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में अब काफी विकास हुआ है तथा परिवर्तन भी देखने को मिलता है। पक्की सड़कों का निर्माण हुआ है, पक्की निवास के लिए व्यवस्था की गयी है। अब गांव में रहने वाले सदस्य अपनी आस – पास की सफाई का भी ध्यान रखते हैं व स्वयं भी सफाई व स्वच्छता से रहते हैं।
6. सामूहिक भावना को प्रोत्साहन:
इस व्यवस्था ने गांव के सदस्यों में हम की भावना का प्रयास किया है, उन्हें एकता के सूत्र में बांधने के लिए काफी प्रयास किये हैं। इससे उनमें सामुदायिक भावना की विशेषता दृष्टिगोचर रहती है। इस प्रकार से लोगों में सामुदायिकता या एकीकरण की भावना के अंश दृष्टिगोचर हुए हैं।
7. समानता पर बल:
पंचायतीराज प्रणाली का अहम् उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले सदस्यों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराना था। जिससे सभी नागरिकों को स्वयं के विकास के लिए उचित अवसर प्राप्त हो सकें व उचित प्रकार से अपना जीवन – यापन कर सके।
8. पंचायतीराज की अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाएँ या कार्य:
- लोगों के जीवन – स्तर में सुधार करना।
- ग्रामीण जनता में नई आशा व विश्वास को उत्पन्न करना।
- इससे लोगों में राजनीति के प्रति सक्रियता की भावना का उदय हुआ है।
- इससे लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण को बल मिला है।
- इससे ग्रामीण क्षेत्रों में नवीन प्रतिमानों के उदय को बल मिला है।
प्रश्न 2.
वर्तमान पंचायतीराज व्यवस्था की समस्याएँ एवं उनके समाधान के उपाय लिखो।
उत्तर:
वर्तमान पंचायतीराज व्यवस्था की समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
- अशिक्षा:
ग्रामीण जनता अधिकांशतः अशिक्षित है। जिससे वह इस व्यवस्था का महत्त्व समझ ही नहीं पाते हैं। इसके परिणामस्वरूप वे विकास नहीं कर पा रहे हैं तथा ग्रामीण नेतृत्त्व भी विकसित नहीं हो पा रहा है। - सहयोग का अभाव:
ज्ञान के अभाव में ग्रामीण जनता इस प्रणाली के महत्त्व के विषय में अनभिज्ञ पायी गई व उनके इस अज्ञानता के कारण वे पंचायतीराज प्रणाली के सदस्यों को अपना पूर्ण सहयोग भी नहीं भी दे पाते हैं। - वित्त की समस्या:
पंचायतीराज संस्थाओं को उनके विकास के लिए पर्याप्त आर्थिक स्रोत उपलब्ध नहीं कराये गये हैं। संस्थाओं को शासकीय अनुदानों पर ही विकास कार्यों को करना पड़ता है। धन के अभाव के कारण पंचायतें विकास कार्य कराने में असफल रही हैं। - योग्य नेतृत्व का अभाव:
पेशेवर नेता सार्वजनिक हित के स्थान पर स्व हित को ही आर्थिक प्राथमिकता देते हैं। जिसके परिणामस्वरूप इस व्यवस्था में एक योग्य नेतृत्त्व का अभाव पाया जाता है। जिससे पंचायतीराज का कार्य समुचित प्रकार से क्रियान्वनित नहीं हो पाता है। - जातिवाद की भावना:
कुछ नेता जातिवाद के आधार पर स्व हितों की पूर्ति में लीन हो जाते हैं। वे केवल अपने जाति सदस्यों को ही महत्त्व देते हैं जिससे इस व्यवस्था की स्थिति काफी दयनीय हो जाती है। - योग्य कर्मचारियों का अभाव:
कार्यों को उचित रूप में करवाने के लिए इस प्रणाली में योग्य व्यक्तियों का अभाव पाया जाता है जिससे विकास कार्यों में संचालन में बाधा उत्पन्न होती है। - विकास कार्यों की उपेक्षा:
शासकीय अधिकारियों एवं जन प्रतिनिधियों के असहयोग के कारण विकास कार्यों की लगातार उपेक्षा होती रहती है। - राजनीति जागरूकता में कमी:
ग्रामीण लोगों का अधिकांश समय जीवन – यापन एवं परिवार के पालन – पोषण पर ही व्यतीत हो जाता है। ग्रामीण नागरिकों में अभी भी राजनीतिक जागरूकता का अभाव पाया जाता है।
समस्याओं के समाधान के उपाय:
- पंचायती राज व्यवस्था में योग्य प्रशिक्षित कर्मचारियों का चयन किया जाना चाहिए।
- पंचायती राज संस्थाओं में व्याप्त गुटबंदी को समाप्त किया जाना चाहिए।
- पंचायत में विकास कार्य हेतु पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
- पंचायतों को जातिवाद से दूर रखा जाना चाहिए।
- पंचायत चुनावों में मतदान प्रणाली को सदस्यों के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- पंचायततों में चुनाव की प्रक्रिया सरल, सुगम व गुप्त होनी चाहिए।
- निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
- लोगों को जन – सहभागिता के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
- लोगों के लिए शिक्षा की व्यवस्था पर जोर देना चाहिए।
- अधिकारियों में पाए जाने वाले तनावों को कम करने के प्रयास किये जाने चाहिए।
प्रश्न 3.
पंचायतीराज संस्थाओं द्वारा ग्रामीण समाज में हुए परिवर्तन पर लेख लिखो।
उत्तर:
पंचायतीराज संस्थाओं द्वारा ग्रामीण समाज में हुए परिवर्तनों को अग्रलिखित बिंदुओं के माध्यम से दर्शाया जा सकता है –
1. महिलाओं की भागीदारी:
पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को 33% आरक्षण प्रदान किया गया है जिससे इस व्यवस्था में उनकी भागीदारी निश्चित हो जाती है।
2. ग्रामीण सत्ता का विकेन्द्रीकरण:
जहाँ सत्ता पहले कुछ हाथों में ही पायी जाती थी। अब पंचायतीराज व्यवस्था की स्थापना के परिणामस्वरूप ग्रामीण सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो गया है अर्थात् सत्ता की डोर अब कुछ व्यक्तियों के हाथों में न होकर सब के हाथों में आ गयी है।
3. शिक्षा के स्तर में वृद्धि:
जहाँ पहले गाँव के सदस्यों व बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे। अब पंचायतीराज व्यवस्था के कारण वयस्क सदस्यों के लिए प्रौढ़ कार्यक्रम व बालकों व बालिकाओं के लिए विद्यालयों की स्थापना की गई है। जिससे दूरस्थ स्थानों पर भी लोगों को शिक्षा प्राप्ति के अवसर हुए हैं।
4. लोकतांत्रिक प्रणाली को बढ़ावा:
इस व्यवस्था से लोगों में लोकतंत्र के गुणों का समावेश होते हुए परिवर्तन को देखा गया है। इससे ग्रामीण समाज में न्याय व समानता की भावना को बल मिला है तथा मतदान प्रणाली में भी लोगों में जागरूकता का संचार हुआ है।
5. स्वच्छता:
पंचायतीराज व्यवस्था ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता संबंधी अनेक अभियानों का संचालन किया है, जिसके कारण गाँव के सदस्यों में सफाई की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है व लोगों में पायी जाने वाली बीमारियाँ भी कम हुई हैं।
6. कृषि विकास कार्यक्रम को बढ़ावा:
पंचायतीराज व्यवस्था से ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि में काफी वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। कृषि में नवीन तकनीक, उपकरण व नये बीज के कारण खेती में काफी पैदावार हुई है। किसानों को कृषि विकास कार्यक्रम के जरिये नई विधियों का ज्ञान हुआ है।
7. भेदभाव में कमी:
ग्रामीण समाजों में जो जाति का धर्म के आधार पर लोगों के साथ जो भेदभाव की नीति अपनायी जाती थी, उसमें कमी आयी है। ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पृश्यता एवं छुआछूत की भावना का इस हुआ है।
8. प्रकाश व सड़कों की व्यवस्था:
पंचायतीराज व्यवस्था ने गाँवों में समुचित बिजली, पानी, पक्की नालियाँ व शहरों से जोड़ने के लिए पक्की सड़कों का निर्माण करवाया है जिससे लोगों को अनेक सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं।
9. जीवन स्तर में सुधार:
पंचायतीराज प्रणाली ने ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को अनेक सुख – सुविधाएँ उपलब्ध करायी हैं जिससे उनके जीवन – स्तर में अत्यधिक सुधार हुआ है।
10. ग्रामीण क्षेत्रों में हुए अन्य परिवर्तन:
- रोजगार के नए अवसरों की प्राप्ति।
- महिलाओं के स्वास्थ्य व बच्चों के टीकाकरण पर विशेष बल दिया गया।
- लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आयी है।
- उनको अपने कर्तव्यों के विषय में जानकारी प्राप्त हुई है।
- पंचायतीराज के कारण निम्न स्तर के लोगों को उच्च स्तर के लोगों के शोषण से मुक्ति मिली है।
प्रश्न 4.
राजनीतिक दल की परिभाषा लिखते हुए उसके महत्त्वपूर्ण कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर:
“राजनीतिक दल लोगों की एक संगठित संस्था है, जिनमें देश व समाज की राजनीतिक व्यवस्था के संबंध में सर्वमान्य सिद्धांत व लक्ष्य होते हैं।”
राजनीतिक दलों के महत्त्वपूर्ण कार्य:
- चुनावों का संचालन:
राजनीतिक दल चुनावों से संबंधित सभी प्रक्रियाओं का संचालन करते हैं। जैसे – घोषणा – पत्र को जारी करना व उनका प्रचार – प्रसार करना आदि। - सदस्यों की समस्याओं से सरकार को अवगत कराना:
राजनीतिक दल सदस्यों की समस्याओं से सरकार को अवगत कराने का एक मुख्य कार्य करते हैं जिससे सदस्यों की समस्याओं को दूर करने की उचित नीतियाँ बनायी जा सकें व उन्हें उचित समय पर क्रियान्वित भी किया जा सके। - शासन का संचालन:
राजनीतिक दल चुनाव में बहुमत प्राप्त कर सरकार का निर्माण करते हैं जिससे शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाया जा सके। - नीतियों का निर्माण:
राजनीतिक दल जनता के विकास व उनके हितों की रक्षा के लिए उचित व सशक्त नीतियों का निर्माण करते हैं जिससे उनके जीवन में कल्याण हो सके व समस्त सुविधाओं का लाभ भी उठा सके। - शासन व जनता के मध्य एक कड़ी का कार्य करना:
राजनीतिक दल जनता की इच्छाओं व समस्याओं को सरकार के समक्ष रखते हैं। जनता की स्थिति से सरकार को अवगत कराते हैं। इस प्रकार से राजनीतिक दल सरकार एवं जनता के बीच मध्यस्थ का कार्य करते हैं। - लोकमत का निर्माण करना:
राजनीतिक दलों के अभाव में जनता दिशाहीन हो सकती है। इस कारणवश राजनीतिक दल शासन की नीतियों पर लोकमत प्राप्त करते हैं। - सामाजिक व सांस्कृतिक कार्य:
समाज में राजनीतिक दल सदस्यों के सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन को ऊँचा उठाने का अहम् कार्य भी करते हैं। - उत्थान के लिए कार्य करना:
राजनीतिक दल समाज में जनता के कल्याण के लिए व उनके जीवन को उन्नत करने के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाओं का सृजन भी करते हैं।
प्रश्न 5.
राजनीतिक दलों के सामाजिक आधार का लोकतंत्र पर प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में राजनीतिक दलों द्वारा निम्न सामाजिक आधारों पर भारतीय लोकतंत्र पर अपना प्रभाव डाला है –
सकारात्मक प्रभाव:
- राजनीतिक दलों ने भारत के गरीब मजदूर एवं किसानों के हितों को लाभबन्द कर भारत की सत्ता में उनकी भागीदारी निश्चित की है।
- राजनीतिक दलों ने धर्म के आधार पर सरकारी निर्णय को संतुलित बनाये रखने में सहयोग दिया है।
- राजनीतिक दलों के योगदान के कारण ही भारत में समता मूलक समाज का निर्माण होने में सहायता मिली है।
- राजनीतिक दलों के कारण ही निम्न वर्ग एवं पिछड़ी जातियों को उनकी सत्ता में सहभागिता को सुनिश्चित कराया है।
- राजनीतिक दलों ने निम्न जातियों में राजनीतिक जागरूकता उत्पन्न कर मतदान करने के लिए प्रेरित किया है।
नकारात्मक प्रभाव:
- राजनीतिक दलों ने समाज को अनेक जातीय समूह में विभक्त कर दिया है।
- राजनीतिक दलों ने समाज में जातिगत तनावों व संघर्ष को जन्म दिया है।
- राजनीतिक दलों ने समाज में विषमता की जड़ें को काफी गहरा किया है।
- राजनीतिक दलों ने देश में क्षेत्रवाद व भाषावाद जैसी समस्याओं को समाज में उत्पन्न किया है।
- राजनीतिक दलों ने अपने स्वार्थपूण हितों की पूर्ति की है।
- राजनीतिक दलों ने समाज में वर्ग – विभेद की समस्या को बढ़ावा दिया है।
- राजनीतिक दलों ने राष्ट्रीय भावना के स्थान पर क्षेत्रीय भावना को अधिक महत्त्व दिया है।
प्रश्न 6.
वर्तमान राजनीतिक दलों की चुनौतियाँ एवं समाधान हेतु अपने सुझाव व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
समाज में राजनीतिक दलों की चुनौतियाँ निम्न प्रकार से हैं –
- धन के बढ़ते प्रभाव के कारण आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों की राजनीतिक दलों में भागादारी कमजोर हुई है।
- राजनीतिक दलों में अपराधीकरण के कारण योग्य एवं ईमानदार व्यक्तियों में राजनीति के प्रति उदासीनता बढ़ी है।
- राजनीतिक दलों में अनेक विकल्प होने से मतदाता भ्रमित हो जाते हैं।
- राजनीतिक दलों में दल बदल के कारण भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
- राजनीतिक दलों में पूरी तरह से लोकतंत्र कायम नहीं हो पाया है।
- राजनीतिक दलों में भाई – भतीजावाद की प्रवृत्ति पायी जाती है।
उपाय:
- अपराधी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने पर रोक लगानी चाहिए।
- चुनाव के लिए उम्मीदवारों की योग्यता निर्धारित करनी चाहिए।
- राजनीतिक दलों में अपराधीकरण को रोकने के लिए सख्त कानून बनाना चाहिए।
- चुनाव के समय जनता को लुभाने वाली योजनाओं पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
- सरकार को चुनाव का खर्च स्वयं वहन करना चाहिए।
- चुनाव के समय सभी राजनीतिक दलों को आचार – संहिता को पालन करने के लिए बाध्य करना चाहिए।
- चुनावों में खर्च होने वाली राशि की एक निश्चित सीमा बनायी जाए।
प्रश्न 7.
सार्वजनिक एवं सामाजिक हित में दवाब समूह के कार्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दवाब समूह के निम्नलिखित कार्यों का उल्लेख इस प्रकार से है –
- ये समूह राजनीतिक दलों की तरह चुनावों में भाग नहीं लेते।
- ये समूह राजनीतिक में अपनी एक अहम् भूमिका निभाते हैं।
- लोकतंत्र की सफलता के लिए ये लोकमत तैयार करते हैं।
- दबाव समूह सरकार को कठिनाइयों से परिचित कराते हैं।
- यह समूह सरकार की निरंकुशता को रोकते हैं।
- ये समूह शोध के लिए आंकड़ों को एकत्रित करते हैं।
- इन समूहों के कारण प्रभावशील सत्ता का उदय नहीं होता है।
- यह सामाजिक हितों के लिए संतुलन बनाये रखने का कार्य करते हैं।
- दबाव समूह अपने हितों के लिए सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं।
- ये समूह जनता व सरकार के मध्य एक कड़ी का कार्य करते हैं।
- इन समूहों का संबंध मीडिया, प्रशासन व सरकार से होता है।
- ये दबाव समूह भाषा एवं धर्म प्रचार के लिए कार्य करते हैं।
- ये समूह प्राकृतिक आपदाओं के समय सरकार की नीतियों को प्रभावित करते हैं।
- ये समूह संपूर्ण समुदाय के हितों को बढ़ावा देने के लिए कार्य करते हैं।
- जनमत को लामबंद करने में दबाव समूह अपनी प्रमुख भूमिका का निर्वाह करते हैं।
- ये समूह अनेक माध्यमों के द्वारा सरकार पर अपना दबाव बनाते हैं।
- यह व्यक्तिगत हितों के साथ राष्ट्रीय हितों में भी सामंजस्य स्थापित करते हैं।
प्रश्न 8.
वर्तमान राजनीति में दबाव समूह की आवश्यकता पर लेख लिखिए।
उत्तर:
वर्तमान राजनीति में दबाव समूह की आवश्यकता को निम्न बिंदुओं के द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं –
- भारत में दबाव समूह राष्ट्रीय जागरूकता एवं वर्ग – चेतना को सुनिश्चित का एक ठोस आधार प्रदान करते हैं।
- यह समाज में शिक्षा व कर्मचारियों को जनमत द्वारा लामबंद करते हैं।
- यह अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं।
- कुछ दबाव समूह भाषा एवं धर्म के प्रचार के लिए कार्य करते हैं।
- दबाव समूह प्रभावशाली नेतृत्त्व का निर्माण करते हैं तथा भविष्य में नेताओं को एक प्रशिक्षण मंच मुहैया कराते हैं।
- ये दबाव समूह आर्थिक एवं वाणिज्य नीतियों पर सरकार के विचार सुनते हैं व उन्हें अपनी सलाह देकर प्रभावित करते हैं।
- ये समाज के लोगों को सामाजिक एवं आर्थिक मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।
- ये समूह समाज के अनेक परंपरागत मूल्यों के बीच पाये जाने वाले अंतर को कम करने का प्रयास करते हैं।
- ये लोगों के कल्याण के लिए कार्य करते हैं जिसमें उनका जीवन – स्तर समाज में उच्च हो सके।
- यह समूह राज व्यवस्था को स्थिरता प्रदान करते हैं।
- यह समूह सामाजिक व राजनीतिक प्रणाली में अपनी एक अहम् भूमिका का निर्वाह करते हैं।
- ये समाज में विषमता को कम करते हुए लोगों के मध्य एकात्मकता या एकीकरण की भावना का संचार करते हैं जिसमें लोगों में आपसी दूरी कम हो और वह मिलकर एक साथ कार्य करें।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
“यदि गांव नष्ट होते हैं तो भारत नष्ट हो जाएगा”, यह कथन किसका है?
(अ) गांधी जी
(ब) नेहरू जी
(स) गोखले जी
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) गांधी जी
प्रश्न 2.
किस वर्ष पंचायती राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दी गई?
(अ) 1992
(ब) 1993
(स) 1994
(द) 1995
उत्तरमाला:
(ब) 1993
प्रश्न 3.
किस अनुसूची में पंचायतों के कार्यों के व्यापक प्रबंध किये गए?
(अ) 9वीं
(ब) 10वीं
(स) 11वीं
(द) 12वीं
उत्तरमाला:
(स) 11वीं
प्रश्न 4.
श्री बलवंत राय मेहता समिति का गठन कब हुआ?
(अ) 1954
(ब) 1955
(स) 1956
(द) 1957
उत्तरमाला:
(द) 1957
प्रश्न 5.
देश की प्रगति किस पर निर्भर है?
(अ) गांवों पर
(ब) कस्बों पर
(स) नगरों पर
(द) काई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) गांवों पर
प्रश्न 6.
मेहता अध्ययन दल ने अपनी रिपोर्ट को किस नाम से संबोधित किया?
(अ) पूँजी विकेन्द्रीकरण
(ब) लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण
(स) समाजवादी विकेन्द्रीकरण
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण
प्रश्न 7.
73वां संविधान संशोधन अधिनियम कब लागू किया गया?
(अ) 20 अप्रैल, 1993
(ब) 21 अप्रैल, 1993
(स) 23 अप्रैल, 1993
(द) 25 अप्रैल, 1993
उत्तरमाला:
(द) 25 अप्रैल, 1993
प्रश्न 8.
पंचायतीराज को कितने स्तरों की व्यवस्था माना जाता है?
(अ) द्विस्तरीय
(ब) त्रिस्तरीय
(स) पंचस्तरीय
(द) सभी
उत्तरमाला:
(ब) त्रिस्तरीय
प्रश्न 9.
किस अनुच्छेद में त्रिस्तरीय पंचायतीराज का प्रावधान है?
(अ) 241 (अ)
(ब) 242 (ब)
(स) 243 (ख)
(द) 244 (स)
उत्तरमाला:
(स) 243 (ख)
प्रश्न 10.
पंचायतीराज संस्थाओं का कार्यकाल कितने वर्षों का है?
(अ) 2 वर्ष
(ब) 3 वर्ष
(स) 4 वर्ष
(द) 5 वर्ष
उत्तरमाला:
(द) 5 वर्ष
प्रश्न 11.
11वीं अनुसूची में कितने विषयों को शामिल किया गया है?
(अ) 15
(ब) 20
(स) 25
(द) 29
उत्तरमाला:
(द) 29
प्रश्न 12.
पंचायतों में महिलाओं के लिए कितने प्रतिशत स्थान आरक्षित किया गया है?
(अ) 30%
(ब) 33%
(स) 36%
(द) 40%
उत्तरमाला:
(ब) 33%
प्रश्न 13.
पंचायतीराज का उद्घाटन किस जिले में किया गया था?
(अ) नागौर
(ब) कानपुर
(स) सहारनपुर
(द) जयपुर
उत्तरमाला:
(अ) नागौर
प्रश्न 14.
राजस्थान में कुल कितनी पंचायत समितियाँ हैं?
(अ) 236
(ब) 237
(स) 240
(द) 242
उत्तरमाला:
(ब) 237
प्रश्न 15.
देश में पंचायतीराज की शुरुआत को कैसी घटना मानी जाती है?
(अ) सामाजिक
(ब) आर्थिक
(स) ऐतिहासिक
(द) सांस्कृतिक
उत्तरमाला:
(स) ऐतिहासिक
प्रश्न 16.
पंचायतीराज अधिनियम किस वर्ष पारित किया गया?
(अ) 1956
(ब) 1957
(स) 1958
(द) 1959
उत्तरमाला:
(द) 1959
प्रश्न 17.
फिक्की किस क्षेत्र का प्रभावशाली संगठन है?
(अ) सार्वजनिक
(ब) मिश्रित
(स) निजी
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) निजी
प्रश्न 18.
‘लॉबी’ किस भाषा का शब्द है?
(अ) अमरीकी
(ब) पुर्तगाली
(स) ग्रीक
(द) लैटिन
उत्तरमाला:
(अ) अमरीकी
प्रश्न 19.
केन्द्र व राज्यों में जब सत्ता शक्तिशाली होती है, तब दबाव समूह की स्थिति कैसी होती है?
(अ) शक्तिशाली
(ब) कमजोर
(स) मिश्रित
(द) सभी
उत्तरमाला:
(ब) कमजोर
प्रश्न 20.
सरपंच की अनुपस्थित में कार्यों का संचालन कौन करता है?
(अ) सचिव
(ब) प्रधान
(स) उप – सरपंच
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) उप – सरपंच
RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पंचायतराज संस्था को संवैधानिक मान्यता कब प्रदान की गई?
उत्तर:
संविधान का 73वाँ संशोधन, वर्ष 1993 में पंचायतराज को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई।
प्रश्न 2.
पंचायतीराज की शुरुआत क्यों की गई?
उत्तर:
लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण तथा विकास कार्यक्रमों में जनता का सहयोग लेने के ध्येय से पंचायतीराज की शुरुआत की गई।
प्रश्न 3.
पंचायतों का मूल उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
पंचायतों का मूल उद्देश्य ग्रामीण समाज के विकास के प्रयासों और जनता के बीच तारतम्य स्थापित करना है।
प्रश्न 4.
पंचायतीराज का कार्यकाल कितना है?
उत्तर:
पंचायतीराज का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए निश्चित किया गया है।
प्रश्न 5.
पंचायत के किस अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप में किया जाता है?
उत्तर:
मध्यवर्ती तथा जिला – स्तर के पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।
प्रश्न 6.
पंचायत के वित्त आयोग का गठन कौन करता है?
उत्तर:
राज्य के राज्यपाल के द्वारा पंचायत के वित्त आयोग का गठन किया जाता है।
प्रश्न 7.
महाराष्ट्र में पंचायतीराज का उद्घाटन कब हुआ था?
उत्तर:
वर्ष 1962 में महाराष्ट्र में पंचायती राज का उद्घाटन हुआ था।
प्रश्न 8.
राजस्थान में नया पंचायतीराज अधिनियम कब बनाया गया?
उत्तर:
वर्ष 1994 में संशोधन करके पंचायतीराज अधिनियम बनाया गया।
प्रश्न 9.
पंचायतीराज की शुरुआत किस प्रधानमंत्री ने की थी?
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू ने सर्वप्रथम पंचायतीराज की शुरुआत 2 अक्टूबर, 1959 में राजस्थान के जिले नागौर से की थी।
प्रश्न 10.
ग्राम पंचायत का अध्यक्ष कौन होता है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत का अध्यक्ष सरपंच होता है जो ग्राम पंचायत के समस्त कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है।
प्रश्न 11.
पंचायतीराज की सबसे निचले स्तर की संस्था कौन – सी है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत पंचायतीराज की सबसे निचले स्तर की एक महत्त्वपूर्ण संस्था है।
प्रश्न 12.
पंचायतीराज व्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण स्तर किसे माना जाता है?
उत्तर:
त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण स्तर ‘पंचायत समिति’ को माना गया है।
प्रश्न 13.
ग्राम पंचायत के कार्यों का प्रावधान किस अनुसूची में किया गया है?
उत्तर:
पंचायतीराज अधिनियम 1994 की प्रथम अनुसूची में ग्राम पंचायत के कार्यों के संबंध में प्रावधान किये गए हैं।
प्रश्न 14.
पंचायत समिति की स्थापना किस प्रकार से की गई है?
उत्तर:
पूरे जिले को कुछ खण्डों में विभाजित कर प्रत्येक खण्ड स्तर पर पंचायत समिति की स्थापना की गई है।
प्रश्न 15.
पंचायत समिति में होने वाली बैठकों की अध्यक्षता कौन करता है?
उत्तर:
पंचायत समिति का प्रधान परिषद् की बैठकों की अध्यक्षता करता है एवं प्रशासनिक तंत्र पर नियत्रंण व पर्यवेक्षण भी करता है।
प्रश्न 16.
बैठक का कोरम कब पूर्ण माना जाता है?
उत्तर:
बैठक का कोरम तब पूरा माना जाता है, जब कुल सदस्यों में एक – तिहाई सदस्य बैठक में उपस्थित हों।
प्रश्न 17.
जिला परिषद् के लिए निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या कौन निर्धारित करता है?
उत्तर:
राज्य सरकार जिला परिषद् के लिए निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या निर्धारित करती है।
प्रश्न 18.
अन्य वर्गों के लिए निर्वाचन में स्थान किस आधार पर आरक्षित किये जायेंगे?
उत्तर:
अन्य वर्गों के लिए उनकी जनसंख्या के आधार पर स्थान चक्रानुक्रम के आधार पर आरक्षित किये जायेंगे।
प्रश्न 19.
परिषद् का निर्माण कौन करता है?
उत्तर:
जनता द्वारा निर्वाचित सदस्य ही परिषद् का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 20.
अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को परिषद् में किस नाम से संबोधित किया जाता है?
उत्तर:
अध्यक्ष को ‘जिला प्रमुख’ एवं उपाध्यक्ष को ‘उप – जिला प्रमुख’ कहा जाता है।
प्रश्न 21.
जिला परिषद् की बैठकें कब आयोजित की जाती हैं?
उत्तर:
जिला परिषद् की बैठकें 3 माह में एक बार आयोजित की जाती हैं, जो जिला परिषद् मुख्यालय पर होती हैं।
प्रश्न 22.
निर्वाचन के बाद प्रथम बैठक कौन आयोजित करता है?
उत्तर:
निर्वाचन के पश्चात् प्रथम बैठक मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) द्वारा आयोजित की जाती है।
प्रश्न 23.
बैठक में निर्णय किस आधार पर लिये जाते हैं?
उत्तर:
बैठक में सभी निर्णय बहुमत के आधार पर लिये जाते हैं।
प्रश्न 24.
भाषा व धर्म का प्रचार करने वाले दो दबाव समूहों का नाम लिखिए।
उत्तर:
- संस्कृत साहित्य अकादमी।
- शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी।
प्रश्न 25.
दो संस्थागत समूहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- सिविल सर्विस एसोसिएशन।
- पुलिस वेलफेयर संगठन।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 लधूसरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पंचायतराज की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
पंचायतराज की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –
- सभी पंचायती राज संस्थाएँ जनता द्वारा निर्वाचित होती हैं।
- पारस्परिक तनावों और संघर्षों को कम करके स्थानीय आधार पर न्याय प्रणाली की स्थापना करना।
- इसकी मुख्य विशेषता ग्रामीण समाज को स्वावलंबी व स्व – शासित बनाना है।
- ग्रामीण जीवन पद्धति का विकास करना।
- ग्रामीण क्षेत्रों को एक सुसंगठित इकाई बनाना है।
प्रश्न 2.
पंचायतीराज व्यवस्था के मुख्य उद्देश्य बनाइए।
उत्तर:
पंचायतीराज व्यवस्था के मुख्य उद्देश्य:
- कृषि उत्पादन में वृद्धि करके ग्रामीण समाज को आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न बनाना तथा देश को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाना पंचायतराज का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।
- ग्रामों में लघु उद्योगों का विस्तार करना भी पंचायतराज का उद्देश्य है।
- देश में सहकारिता का विस्तार करना।
- सत्ता का विकेन्द्रीकरण करके स्थानीय प्रतिनिधियों का सामाजिक, आर्थिक नियोजन, राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था से संबंधित अधिकार प्रदान करना और लोकतांत्रिक प्रणाली का विस्तार करना।
प्रश्न 3.
पंचायत व्यवस्था के विकास में मुख्य बाधाएँ क्या हैं?
उत्तर:
पंचायत व्यवस्था के विकास में अनेक बाधाएँ हैं –
- लोगों में राजनीतिक चेतना का पाया जाना।
- ग्रामों में परपंरागत अधिनायकवादी प्रवृत्ति का पाया जाना।
- गांवों में प्रभु जाति व उच्च वर्गों का प्रभुत्व का पाया जाना।
- ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयंसेवी संगठनों की निष्क्रियता का होना।
प्रश्न 4.
सामुदायिक विकास योजना किसे कहते हैं?
उत्तर
भारत में “ग्रामीण पुनर्निर्माण” के लिए किये गये कार्यों में ‘सामुदायिक विकास योजना’ का विशेष महत्त्व है। सामुदायिक विकास योजना का तात्पर्य सामुदायिक विकास से संबंधित योजना व कार्यक्रम से है। इस प्रकार ‘सामुदायिक’ का तात्पर्य एक निश्चित भू – भाग पर रहने वाले समूह से संबंधित अन्तः क्रियाओं से है। ‘विकास’ का तात्पर्य प्रगति व उत्कर्ष से है।
संक्षिप्त अर्थ में ‘सामुदायिक विकास’ का तात्पर्य है – ‘समुदाय या ग्रामीण समुदाय की प्रगति व उत्कर्ष’। अतः सामुदायिक विकाय योजना का तात्पर्य एक ऐसे कार्यक्रम व आंदोलन से है, जिसमें समुदाय व ग्रामीण समुदाय के व्यक्ति श्रेष्ठतर जीवन व्यतीत करने अर्थात् अपनी बहुमुखी प्रगति करने के लिए स्वयं प्रयास करते हैं तथा इसके लिए सरकार से भी सहयोग प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं।
प्रश्न 5.
सामुदायिक विकास योजना के मुख्य उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
सामुदायिक विकास योजना के उद्देश्य निम्न हैं –
- ग्राम के सामाजिक आर्थिक जीवन में परिवर्तन करना।
- गांवों को आत्म – निर्भर तथा प्रगतिशील बनाना।
- ग्रामों में उत्तरदायी और क्रियाशीलता नेतृत्त्व तैयार करना।
- सुधारों को व्यावहारिक बनाने के लिए गांवों की स्त्रियों तथा परिवारों की दशा को उन्नत बनाना।
- राष्ट्र के भावी नागरिकों का समुचित विकास करना।
प्रश्न 6.
सामुदायिक विकास कार्यक्रम की मुख्य समस्याएँ क्या हैं?
उत्तर:
सामुदायिक विकास कार्यक्रम की मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
- ग्रामीण क्षेत्रों में जन – सहभागिता का अभाव पाया जाना।
- सरकारी सहायता में विलंब का होना।
- जनप्रतिनिधियों तथा जनसेवकों में मतभेद का होना।
- गांव में दलगत राजनीति का होना।
- सामूहिक भावना का अभाव।
प्रश्न 7.
पंचायत में सरपंच की प्रमुख शक्तियाँ कौन – कौनसी हैं?
उत्तर:
सरपंच की मुख्य शक्तियाँ:
- ग्राम पंचायतों की बैठकों की अध्यक्षता करना।
- पंचायत के समस्त अभिलेखों व दस्तावेजों की रक्षा करना।
- पंचायत की वित्तीय व्यवस्था पर नियंत्रण रखना।
- सरकार द्वारा दिये गये कार्यों को सही तरीके से संचालित करना।
- पंचायत की प्रशासनिक व्यवस्था पर नियंत्रण रखना।
प्रश्न 8.
जिला परिषद् के सदस्य कौन – कौन होते हैं?
उत्तर:
जिला परिषद् जिले की सर्वोच्च स्तर की परिषद् होती है। जिला परिषद् में निम्न सदस्य होते हैं –
- निर्वाचन क्षेत्रों से निर्वाचित सभी सदस्य।
- जिला परिषद् क्षेत्र के अंतर्गत प्रतिनिधित्व करने वाले लोक सभा एवं राज्य विधान सभा के सभी सदस्य।
- जिला परिषद् क्षेत्र के अंतर्गत निर्वाचकों के रूप में पंजीकृत य नामांकित राज्य सभा के सभी सदस्य।
- जिला परिषद् क्षेत्र के सभी पंचायत समितियों के प्रधान।
प्रश्न 9.
जिला प्रमुख की शक्तियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पंचायतीराज अधिनियम, 1994 में जिला प्रमुख को निम्नलिखित शक्तियाँ प्रदान की गई हैं –
- जिला परिषद् की संपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था पर नियंत्रण रखना।
- प्राकृतिक आपदाओं के समय सहायता के लिए वित्तीय एवं प्रशासनिक स्वीकृति प्रदान करना।
- जिले के विकास कार्यक्रमों को प्रोत्साहन के लिए विभिन्न योजनाओं का निर्माण करना।
- जिले के सभी पंचायतीराज संस्थाओं पर नियंत्रण रखना।
- जिले में ग्रामीण विकास के लिए योजनाओं को संचालित करना।
प्रश्न 10.
मेरियम ने राजनीतिक दलों के कौन – कौन से कार्य बताए हैं?
उत्तर
मेरियम ने राजनीतिक दलों के पाँच प्रमुख कार्य बताए हैं, जो निम्नलिखित हैं –
- नीतियों का निर्धारण करना।
- पदाधिकारियों का चुनाव करना।
- राजनीतिक शिक्षण एवं प्रचार करना।
- सरकार के रूप में शासन का संचालन करना तथा उसकी रचनात्मक आलोचना करना।
- जनता व शासन के मध्य मधुर संबंधों की स्थापना करना।
प्रश्न 11.
दबाव समूह के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दबाव समूह के निम्नलिखित महत्त्व हैं –
- शासन के लिए सूचनाएँ एकत्रित करने वाले संगठन के रूप में दबाव समूह एक गैर – सरकारी स्रोत के रूप में अपनी
भूमिका निभाते हैं। - दबाव समूह अपने साधनों के द्वारा सरकार की निरंकुशता पर अंकुश लगाते हैं।
- दबाव समूह सामाजिक एवं सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिए सरकारी मशीनरी पर अपना प्रभाव डालते हैं।
- दबाव समूह लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में व्यक्तियों के हितों का राष्ट्रीय हितों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हैं।
प्रश्न 12.
संस्थागत दबाव समूह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संस्थागत दबाव समूह वे संगठन हैं, जो सरकारी तंत्र के अंदर ही अपना कार्य करते हैं।
संस्थागत दबाव समूह की विशेषताएँ:
- ये समूह राजनीतिक प्रक्रिया में सम्मिलित हुए बिना ही सरकार की नीतियों को अपने हित में प्रभावित करते हैं।
- इन दबाव समूहों के कारण ही स्थानान्तरण, अवकाश नियम, महँगाई भत्ता निर्धारण, मकान भत्ता आदि मामलों पर दबाव बनाया जता है।
- ये दबाव समूह सरकार के अधीन ही रहते हुए अपनी मांगे उठाते हैं व उन्हें मनवाते भी हैं।
- आर्मी ऑफीसर संगठन व रेड क्रॉस सोसायटी इसी दबाव समूह के उदाहरण हैं।
प्रश्न 13.
राजनीतिक दलों के गठन के मनोवैज्ञानिक आधार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समान विचारधारा वाले व्यक्ति राजनीतिक कार्यक्रम को क्रियान्वित करने के लिए विभिन्न दलों में सम्मिलित हो जाते हैं। समाज में मुख्य रूप से चार प्रकार की सोच वाले लोग पाये जाते हैं –
- प्रतिक्रियावादी लोग: वे लोग जो प्राचीन संस्थाओं एवं रीति – रिवाजों की ओर वापस लौटना चाहते हैं।
- अनुदारवादी लोग: वे लोग जो वर्ततान में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं करना चाहते हैं।
- उदारवादी लोग: वे लोग जो वर्तमान परिस्थितियों में सुधार करना चाहते हैं।
- उग्रवादी लोग: वे लोग जो वर्तमान संस्थाओं का उन्मूलन करना चाहते हैं।
अत: यह स्पष्ट है कि लोगों के जैसे विचार एवं स्वभाव होते हैं, वैसे – वैसे ही समाज में प्रतिक्रियावादी, अनुदारवादी, उदारवादी तथा उग्रवादी राजनीतिक दल के रूप में विभक्ति होने लगते हैं।
प्रश्न 14.
पंचायत समिति के दो प्रमुख कार्य बताइए।
उत्तर:
पंचायत समिति अपने क्षेत्रों में निम्न कार्य करती है –
(1) कृषि संबंधी कार्य:
- कृषि के विकास के लिए किसानों को उन्नत बीज व खाद की व्यवस्था करती है।
- सिंचाई के साधनों का विकास करती है।
- किसानों को यंत्र खरीदने की व्यवस्था के अंतर्गत बैंकों से सस्ते ऋण की सिफारिश करती है।
- किसानों को समय – समय पर प्रशिक्षण प्रदान कराती है।
(2) भूमि सुधार संबंधी कार्य:
- किसानों को अपने खेत की मिट्टी की जाँच कराने की सलाह देती है।
- भूमि सुधार कार्यक्रम एवं योजनाओं को क्रियान्वियत करती है।
प्रश्न 15.
जिला परिषद् के तीन महत्त्वपूर्ण कार्यों के विषय में बताइए।
उत्तर:
जिला परिषद् के तीन महत्त्वपूर्ण कार्य:
- सिंचाई कार्य: ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था करना तथा क्षेत्र के विकास के लिए नये व पुराने जल स्रोतों का विकास किया जाना।
- ग्रामीण विद्युतीकरण: ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण के लिए राज्य सरकार के ऊर्जा विभाग से ग्रामीण विद्युतीकरण योजना को अपने क्षेत्रों में लागू करना।
- प्रशिक्षण कार्यक्रम: ग्रामीण लोगों को प्रशिक्षण देकर उन्हें लघु उद्योग लगाने के लिए प्रेरित करना व सोथ ही उन्हें सस्ते ऋण की व्यवस्था करना।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ग्राम पंचायतों के कार्यों व उनके अधिकारों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ग्राम पंचायतों के कार्यों का विवरण निम्नलिखित है –
- कृषि एवं बागवानी का विकास तथा उन्नति तथा भूमि का विकास एवं साथ ही अनाधिकृत अधिग्रहण एवं प्रयोग की
रोकथाम करना। - भूमि विकास, भूमि सुधार तथा भूमि चकबंदी में सरकार एवं अन्य एजेन्सियों की सहायता करना।
- लघु वन उत्पादों की उन्नति एवं विकास करना।
- सामाजिक एवं कृषि वानिकी रेशम उत्पादन का विकास एवं उन्नति, वृक्षारोपण एवं वृक्षों की रक्षा करना।
- कुटीर व लघु ग्रामीण उद्योगों के विकास में सहायता करना।
- गैर – पारंपरिक ऊर्जा के स्रोतों का विकास एवं रक्षा करना।
- प्रौढ़ एवं अनौपचारिक शिक्षा में उन्नति करना।
- सांस्कृतिक क्रियाकलापों एवं खेलकूद का विकास करना।
- ग्राम पंचायत क्षेत्र के आर्थिक विकास हेतु योजना तैयार करना।
- महिला (प्रसूति) तथा बाल विकास कार्यक्रमों में भाग लेना।
- सामाजिक न्याय के लिए योजनाओं की तैयारी एवं क्रियान्वयन करना।
- सड़कों, पुलियों, पुलों, जल – मार्गों का निर्माण, रक्षा एवं सार्वजनिक स्थानों पर से अतिक्रमण को दूर करना।
ग्राम पंचायत के अधिकार:
- अपने क्षेत्र में तालाबों, कुओं एवं जमीन पर अधिकार जिनमें ग्राम पंचायत आवश्यक परिवर्तन कर सकती है।
- उपर्युक्त सार्वजनिक स्थानों के उपयोग के संबंध में नियमों के निर्माण का अधिकार।
- प्राथमिक पाठशालाओं पर नियंत्रण रखने का अधिकार।
- अपने क्षेत्र के किसी भी पदाधिकारी के कार्य की जाँच कर उसके संबंध में शासन को रिपोर्ट देने का अधिकार।
- अपने क्षेत्र के अंतर्गत कार्य करने वाले सचिव एवं अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति और उनके वेतन निर्धारण का अधिकार।
प्रश्न 2.
जिला पंचायत या परिषद् की संगठन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(1) जिला पंचायत की रचना:
राज्य सरकार गजट में अधिसूचना के आधार पर प्रत्येक जिले के लिए एक जिला पंचायत का गठन करेगी जिसका नाम जिले के नाम पर होगा। प्रत्येक जिला पंचायत निर्गमित निकाय होगी। जिला परिषद् में एक अध्यक्ष, जिले की समस्त क्षेत्र पंचायतों के प्रमुख, निर्वाचित सदस्य, लोकसभा व राज्य विधनसभा के सदस्य व राज्य सभा एवं राज्य की विधान परिषद् आदि को सम्मिलित किया जाता है। प्रत्येक जिला परिषद में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे। जिला परिषद् में निर्वाचित स्थानों की कुल संख्या के कम से कम एक तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे।
(2) जिला पंचायत के सदस्यों की योग्यता:
- ऐसे सभी व्यक्ति, जिनका नाम उस जिला पंचायत के किसी प्रादेशिक क्षेत्र के लिए निर्वाचक नामावली में शामिल है।
- जिन्होंने 21 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो जिला पंचायत के किसी पद के लिए चुने जा सकते हैं।
(3) अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष: जिला पंचायत के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से एक व्यक्ति अध्यक्ष तथा एक व्यक्ति उपाध्यक्ष चुना जायेगा।
(4) जिला पंचायत और उसके सदस्यों का कार्यकाल:
प्रत्येक जिला पंचायत आदि धारा 232 के अंतर्गत उसे पहले से ही विघटित नहीं कर दिया गया हो तो अपनी प्रथम बैठक के लिए निश्चित दिनांक से 5 वर्ष की अवधि तक के लिए बनी रहेगी। यदि किसी जिला पंचायत को धारा 232 के अंतर्गत विघटित कर दिया गया है तो नई जिला पंचायत के चुनाव विघटन के दिनांक से 6 माह पूर्व करा लिये जायेंगे। जिला पंचायत के सदस्य अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का कार्यकाल भी जिला पंचायत के साथ ही समाप्त होगा। इस प्रकार जिला पंचायत तथा उसके सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा।
(5) जिला पंचायत समितियाँप्रमुख समितियाँ:
- कार्य समिति।
- वित्त समिति।
- शिक्षा व जनस्वास्थ्य समिति।
- नियोजन समिति।
- समता समिति।
- कृषि उद्योग एवं निर्माण समिति।
प्रश्न 3.
ग्रामीण सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन में ग्राम पंचायतों के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
ग्रामीण सामाजिक जीवन में ग्राम पंचायतों का महत्त्व निम्नलिखित है –
- सामाजिक सुधार:
ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक प्रकार की सामाजिक समस्याएँ पायी जाती हैं। जैसे बाल – विवाह, पर्दा – प्रथा तथा विधवा पुनर्विवाह आदि। ग्राम पंचायतें गांवों के सदस्यों को इन समस्याओं से छुटकारा दिलाने में मदद करती हैं। - बाल कल्याण कार्य:
ग्राम पंचायतें बालकों के लिए पार्क निर्माण करना, मनोरंजन की व्यवस्था तथा पुस्तकालय का निर्माण इत्यादि पर बल देती हैं। - मद्यपान निषेध:
प्रायः ग्रामवासी अफीम, शराब, भांग आदि के सेवन में लीन रहते हैं जिससे उन्हें आर्थिक एवं शारीरिक दोनों प्रकार की हानि उठानी पड़ती है। ग्राम पंचायतें ग्रामों में मध्य निषेध संपादित कर सकती है। - सार्वजनिक बाजारों तथा मेलों की देखरेख:
ग्राम पंचायतें वस्तुओं को खरीदने व मुनाफाखोरी आदि से बचाने में मार्ग दर्शन तथा देखरेख का कार्य करती हैं तथा इसके अलावा लोगों में मनोरंजन के लिए मेलों की व्यवस्था भी करती हैं।
ग्रामीण राजनीतिक जीवन में ग्राम पंचायतों का महत्त्व:
- प्रशासन संबंधी शिक्षा:
ग्राम पंचायतें सामुदायिक विकास योजनाओं को सफल बनाने तथा ग्रामोन्नति को सफल बनाने के लिए ग्रामवासियों को प्रशासन संबंधी ज्ञान से परिचित करा सकती है। - शांति तथा सुरक्षा की व्यवस्था:
ग्रामीण जीवन में प्रत्यक्ष कार्य तथा नियंत्रण द्वारा ग्राम पंचायतें शांति तथा सुरक्षा की भलीभाँति व्यवस्था कर सकती हैं। जो सुखमय जीवन बिताने के लिए अति आवश्यक है। - ग्राम उन्नति:
ग्रामीण पंचायतें ग्रामीणों में राष्ट्रीय चेतना तथा स्वावलंबन की भावना को विकसित करते हुए श्रमदान, साप्ताहिक स्वास्थ्य दिवस तथा सचल पुस्तकालय आदि कार्यों द्वारा ग्रामोन्नति में सफल सहायक सिद्ध हो सकती है। - मुकदमेबाजी की समस्या का हल:
ग्राम पंचायतें अनेक छोटे – मोटे विवादों व झगड़ों का निपटारा कराती है तथा ग्रामीण वासियों के लिए ऐसा वातावरण प्रस्तुत करती हैं जिसके परिणामस्वरूप ग्रामवासियों में आपस में द्वेष व कलह न हो।
प्रश्न 4.
पंचायतों की उन्नति के सुझावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंचायतों की उन्नति के लिए निम्नलिखित सुझावों को कुछ बिंदुओं के द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं –
- संविधान में वर्णित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ग्राम पंचायतों को स्थानीय स्वराज की इकाई के रूप में काम करने के
साथ – साथ सामाजिक न्याय एवं समस्त निवासियों की उचित आय के साधनों की भी व्यवस्था करनी चाहिए। - राज्य की तरफ से ग्राम पंचायतों को कर वसूली, ऋण, व्यापार आदि कार्यों में हाथ बटाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिए।
- ग्राम पंचायतों के द्वारा कुशल नेतृत्व के विकास के लिए प्रयत्न करना चाहिए ताकि सारे समुदाय के कार्य भलीभांति
क्रियान्वित हो सकें। - सरकार को ग्राम पंचायत की संस्था के द्वारा आर्थिक और राजनैतिक विकेन्द्रीकरण के लिए व्यवस्थित तथा गंभीर कदम उठाने चाहिए।
- ग्राम पंचायतों को दलबंदी और राजनीतिक पार्टी बंदी से यथाशक्ति पृथक् रखना चाहिए।
- ग्राम पंचायत का निर्वाचन बालिग मताधिकार के आधार पर होना चाहिए एवं ग्राम सभा के समस्त सदस्य बालिग होने चाहिए।
- ग्राम पंचायतों के कार्यों का निरीक्षण करने के लिए एक तहसील के सरपंचों द्वारा चुना हुआ एक निरीक्षक होना चाहिए।
- समस्त योजनाएँ ग्राम पंचायत के आधार पर बननी चाहिए।
- ग्राम पंचायत की निर्वाचित पद्धति गुप्त तथा सरल होनी चाहिए ताकि ग्रामों में वैमनस्य फैलने की संभावना न हो।
- धीरे – धीरे ग्राम पंचायतों को जमीन कर वसूल करने का कार्य सौंप देना चाहिए तथा उन्हें लगान का 15 से 25 प्रतिशत तक हिस्सा तथा पंचायतों के दैनिक कार्यों को करने के लिए दे देना चाहिए।
- ग्राम पंचायतों को म्युनिसिपिल को सामाजिक, आर्थिक तथा न्यायिक कार्यों को करने का अवसर प्रदान करना चाहिए।
प्रश्न 5.
दबाव समूह किसे कहते हैं? दबाव समूह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु कौन – कौन से साधनों का प्रयोग करते हैं?
उत्तर:
किसी भी देश में विभिन्न हितों के आधार पर संगठित वे हित समूह दबाव समूह कहलाते हैं जिनका उद्देश्य शासन पर दबाव डालकर अपने हितों को पूर्ण करना होता है। ये दबाव समूह सरकार के भाग नहीं होते हैं।
अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दबाव समूहों द्वारा विभिन्न साधन या तरीके अपनाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख निम्नवत् हैं –
- लॉबिंग:
इसका सामान्य अर्थ है विधानमंडल के सदस्यों को प्रभावित करके उनके हित में कानूनों का निर्माण करवाना है। लॉबिंग में व्यवस्थापिका के अधिवेशन काल में किसी विशेष विधेयक को कानून बनवाने या न बनने देने में रुचि ली जाती है। इस लक्ष्य से विधायकों से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित किया जाता है। - आँकड़े प्रकाशित करना:
नीति निर्माताओं के सामने अपने पक्ष को प्रभावशाली ढंग से पेश करने के लिए दबाव समूह आँकड़े प्रकाशित करते हैं ताकि अपने हितों को पूरा करवा सकें। - गोष्ठियाँ आयोजित करना:
दबाव समूह विचार – विमर्श और वाद – विवाद के लिए गोष्ठियाँ, सेमिनार एवं वार्ताएं आयोजित करते रहते हैं। इन गोष्ठियों में विधायकों तथा प्रमुख प्रशासकीय अधिकारियों को बुलाते हैं और अपने विचारों से उन्हें प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। - प्रचार व प्रसार के साधन:
दबाव समूह समाचार – पत्रों, पोस्टरों विज्ञापनों तथा गोष्ठियों आदि के द्वारा अपने हितों का प्रचार करते हैं ताकि उनके पक्ष में वातावरण का निर्माण हो सके। - शांतिपूर्ण आंदोलन:
जिन दबाव समूहों के पास अधिक जनशक्ति होती है। वे अपने हितों की सिद्धि के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन भी करते हैं। वे जन – सभाएँ करते हैं व प्रदर्शन भी करते हैं। लोकतांत्रिक देशों में मजदूर संघ इन्हीं साधनों का प्रयोग करते हैं। भारत के किसान यूनियनें सशक्त दबाव समूह हैं, वह भी इन्हीं साधनों का उपयोग कर सरकार व राजनीति को प्रभावित करती हैं। - सांसदों के मनोनयन में रुचि
दबाव समूह ऐसे व्यक्तियों के चुनाव में दलीय प्रत्याशी मनोनीत करवाने में मदद देते हैं जो बाद में संसद में उनके हितों की अभिवृद्धि में सहायक हों। सांसदों को चुनाव लड़ने के लिए धन चाहिए और अनेक बार यह धन दबाव समूह उपलब्ध करवाते हैं।
प्रश्न 6.
दबाव समूहों के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दबाव समूहों का वर्गीकरण किसी एक आधार पर नहीं, बल्कि अनेक आधारों पर किया जाता है। इसी कारण इनका वर्गीकरण एक कठिन कार्य हो गया है। सामान्यतया ये वर्गीकरण समूहों के उद्देश्यों उनके संगठन की प्रकृति तथा कार्य – क्षेत्र आदि के आधार पर किया जाता है।
दबाव समूहों का वर्गीकरण उनके हितों के आधार पर अधिक अच्छी तरह से किया जा सकता है। इस आधार पर वर्गीकरण निम्नलिखित हो सकता है –
- राजनीतिक दबाव समूह:
विभिन्न दबाव समूहों में राजनीतिक दल सबसे अधिक शक्तिशाली होते हैं। आधुनिक युग में राजनीतिक दलों को दबाव समूह नहीं माना जाता है क्योंकि उनका उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना न होकर सत्ता पर दबाव डालना होता है। - सांप्रदायिक दबाव समूह:
विभिन्न संप्रदाय अपने हितों को पूरा करने हेतु साम्प्रदायिक आधार पर संस्थाओं का गठन करते हैं। भारत में साम्प्रदायिक हितों की रक्षार्थ राजनीतिक दलों का गठन भी होता है। - भाषायी दबाव समूह:
गुजरात, पंजाब तथा हरियाणा आदि राज्यों का निर्माण भाषा के आधार पर किया गया है। भाषायी दबाव समूह केन्द्र सरकार पर सशक्त रूप से दबाव डालते हैं। - क्षेत्रीय दबाव समूह:
क्षेत्रीयता के आधार पर ही ये अपने क्षेत्र के विकास या मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व के लिए दबाव बनाये रहते हैं। ये दबाव समूह केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय स्तर पर कार्य करते रहते हैं। - जातीय दबाव समूह:
समाज में अनेक जातीय दबाव समूह बन गये हैं, जो शासन के निर्णयों को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। उच्चतर शासकीय अधिकारियों की नियुक्ति और मंत्रियों की नियुक्ति जातीय दबाव समूहों के कारण होती है। - आर्थिक दबाव समूह:
मनुष्य अपने आर्थिक हितों की रक्षा और उनकी अभिवृद्धि के लिये उनके आर्थिक समूहों का निर्माण करता है। ये आर्थिक समूह शासन पर अपने आर्थिक व व्यावसायिक हितों के लिए दबाव डालते रहते हैं। - महिला अधिकार संरक्षण दबाव समूह:
महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने हेतु अनेक प्रकार के दबाव समूह बनते हैं। जो जन आंदोलन करते हैं तथा महिलाओं को उनके हक की प्राप्ति के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं। - नैतिक दबाव समूह:
भारतीय जन – जीवन पर नैतिकता का विशेष महत्त्व है। इसी वजह से नैतिक आधार पर भी विभिन्न दबाव समूहों का गठन होता है। नैतिक दबाव समूह मद्यनिषेद्य, दहेज विरोधी आदि नैतिक अभियान चलाते रहते हैं।
प्रश्न 7.
राजनीतिक दल एवं दबाव समूह में अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक दल एवं दबाव समूह में निम्न आधारों पर अंतर को स्पष्ट किया जा सकता है –
- राजनीतिक दल दबाव समूह की अपेक्षा अधिक विशाल संगठन है। राजनीतिक दल के कार्यक्रम होते हैं, जबकि दबाव समूह के सामने मुख्य उद्देश्य समूह के हितों की रक्षा करना होता है। दबाव समूह का कार्यक्रम सीमित तथा प्रभाव का क्षेत्र भी संकुचित होता है।
- राजनीतिक दल का सर्वप्रथम और घोषित उद्देश्य शासन सत्ता पर नियंत्रण प्राप्त करना होता है। इसके विपरीत दबाव समूह शासन शक्ति प्राप्त करने का प्रयास नहीं करते हैं।
- राजनीतिक दल खुद अपने लिये सत्ता पाना चाहते हैं, जबकि दबाव समूह औपचारिक रूप में शासन से बाहर रहकर शासन को प्रभावित करने की चेष्टा में लगे रहते हैं।
- राजनीतिक दल का संबंध राष्ट्रीय हित की सभी समस्याओं और प्रश्नों से होता है। अतः स्वाभाविक रूप से उनका अत्यधिक व्यापक कार्यक्रम होता है। लेकिन दबाव समूह एक विशेष वर्ग के हितों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए दबाव समूहों का कार्यक्रम सीमित एवं संकुचित होता है।
- राजनीतिक दल अपने उद्देश्यों की पूर्ति के पश्चात् भी समाप्त नहीं होते, जबकि दबाव समूह अपने हितों या उद्देश्यों की पूर्ति के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं।
- राजनीतिक दल अनिवार्य रूप से औपचारिक संगठन होते हैं लेकिन दबाव समूह औपचारिक रूप से संगठित या असंगठित दोनों ही स्थितियों में हो सकते हैं। कई बार शक्तिशाली दबाव समूह भी असंगठित स्थिति में होते हैं।
- राजनीतिक दलों से यह आशा की जाती है कि वे अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिये केवल संवैधानिक साधनों को ही अपनायेंगे, लेकिन दबाव समूह जरूरत पड़ने पर संवैधानिक और असंवैधानिक व अनैतिक सभी प्रकार के साधन अपना सकते हैं।
- राजनीतिक दल सामाजिक व राजनीतिक कार्यक्रम पर आधारित होते हैं, उनके उद्देश्य व कार्य बहुमुखी होते हैं, जबकि विचारधारा व कार्यक्रम की दृष्टि से दबाव समूह राजनीतिक दल की अपेक्षा अधिक संयुक्त और सताजीय समूह होते हैं। दबाव समूह उन्हीं व्यक्तियों का गुट होता है जिनके समान हित व रुचि होती है।
प्रश्न 8.
राजनीतिक दलों की निर्माण प्रक्रिया पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
विभिन्न विद्वानों के मतानुसार राजनीतिक दलों के निर्माण के मूल में वस्तुतः निम्नलिखित आधार प्रमुख रूप से उत्तरदायी होते हैं –
- मानव स्वभाव के आधार पर:
मानव मात्र विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार स्वयं से संबंधित विभिन्न संस्थाओं के स्वरूपों, गतिविधियों आदि में परिवर्तन को स्वीकार करता है। इससे स्पष्ट होता है कि मानव स्वभाव भी महत्त्वपूर्ण रूप से राजनैतिक दलों के निर्माण हेतु उत्तरदायी कारक होता है। - राजनैतिक उद्देश्यों के आधार पर: विभिन्न राजनीतिक हितों या उद्देश्यों के आधार पर राजनीतिक दलों का निर्माण होता है।
- धार्मिक तथा साम्प्रदायिक आधार पर:
देशों में राजनैतिक दलों का निर्माण धार्मिकता और साम्प्रदायिकता के आधार पर भी संपन्न होता है। वामपंथी धर्म विरोधी दल भी धार्मिक दल के उदाहरण हैं। इसके अलावा मुस्लिम लीग, अरबी दल आदि धार्मिक व साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक दल हैं। - आर्थिक तत्त्वों के आधार पर:
राजनीतिक दलों के निर्माण में आर्थिक कारक ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक होता है। कोई भी राजनीतिक दल तभी विकास करता है, जब उसके पास एक ठोस कार्यक्रम हो। अत: आर्थिक तत्त्वों के आधार पर ही राजनीतिक दलों का निर्माण किया जाता है। - सामाजिक – आर्थिक कारकों के आधार पर:
राजनीतिक दलों के निर्माण की प्रक्रिया में विभिन्न प्रकार के सामाजिक – आर्थिक कारकों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। किसी भी देश या समाज में आर्थिक विकास का स्तर ही अन्तगोगत्वा दल की संरचना पर इस स्वरूप को प्रभावित करता है। - विचारधाराओं के आधार पर:
कुछ व्यक्ति अपनी विचारधाराओं के आधार पर राजनीतिक दलों की सदस्यता ग्रहण करते हैं। भारत में शिवसेना, अकाली दल, तेलुगूदेशम, अन्नाद्रमुक तथा फ्रण्ट आदि राजनीतिक दलों का निर्माण वस्तुतः क्षेत्रीय विचारधारा के आधार पर ही हुआ है।