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UK Board 10 Class Hindi Chapter 1 – सूरदास (काव्य-खण्ड)

UK Board 10 Class Hindi Chapter 1 – सूरदास (काव्य-खण्ड)

UK Board Solutions for Class 10th Hindi Chapter 1 सूरदास (काव्य-खण्ड)

1. कवि-परिचय
प्रश्न – सूरदास का परिचय निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिए-
जीवन-परिचय, कृतियाँ तथा शैली।
उत्तर – जीवन – परिचय – महाकवि सूरदास का जन्म मथुरा के निकट रुनकता ( रेणुका) नामक ग्राम में सन् 1478 ई० पं० रामदास के घर हुआ था। पं० रामदास, सारस्वत ब्राह्मण थे। कुछ विद्वान् दिल्ली के समीप सीही नामक स्थान को भी सूरदास का जन्मस्थल मानते हैं। सूरदासजी जन्मान्ध थे या नहीं, इस सम्बन्ध में भी अनेक मत हैं। कुछ लोगों का कहना है कि बाल- मनोवृत्तियों एवं मानव स्वभाव का जैसा सूक्ष्म और सुन्दर वर्णन सूरदास ने किया है, वैसा कोई जन्मान्ध व्यक्ति कर ही नहीं सकता। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि वे सम्भवतः बाद में अन्धे हुए होंगे।.
सूरदासजी महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य थे। वल्लभाचार्य के अष्टछाप के शिष्यों में सूरदास का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान था । सूरदास मथुरा और वृन्दावन के मध्य स्थित गऊघाट पर श्रीनाथजी के मन्दिर में रहते थे और भजन-कीर्तन करते थे। सूरदास का विवाह भी हुआ था। विरक्त होने से पहले वे अपने परिवार के साथ ही रहा करते थे। पहले वे दीनता के पद गाया करते थे, किन्तु वल्लभाचार्यजी के सम्पर्क में आने के बाद वे कृष्णलीला का गान करने लगे। कहा जाता है कि एक बार मथुरा में सूरदासजी तुलसी की भेंट हुई थी और धीरे-धीरे दोनों में प्रेम-भाव बढ़ गया था। सूर से प्रभावित होकर ही तुलसीदास ने ‘श्रीकृष्णगीतावली’ की रचना की थी।
सूरदासजी की मृत्यु सन् 1583 ई० में गोवर्धन के पास पारसौली नामक ग्राम में हुई थी। मृत्यु के समय महाप्रभु वल्लभाचार्य के सुपुत्र विट्ठलनाथजी वहाँ उपस्थित थे। अपने अन्तिम समय में सूर ने गुरु-वन्दना सम्बन्धी यह पद गाया था-
भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो ।
श्रीबल्लभ नख-चन्द्र- छटा – बिनु सब जग माँझ अँधेरो ॥
कृतियाँ – भक्त शिरोमणि सूरदास ने लगभग सवा लाख पदों की रचना की थी। ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ की खोज तथा पुस्तकालय में सुरक्षित नामावली के अनुसार सूरदास संख्या 25 मानी जाती है, किन्तु उनके तीन ग्रन्थ ही उपलब्ध हुए हैं— (1) सूरसागर, (2) सूरसारावली, (3) साहित्य – लहरी | ग्रन्थों की
(1) सूरसागर — ‘सूरसागर’ सूरदास की एकमात्र ऐसी कृति है, जिसे सभी विद्वानों ने प्रामाणिक माना है। इसके सवा लाख पदों में से केवल 8-10 हजार पद ही उपलब्ध हो पाए हैं। ‘सूरसागर’ पर ‘श्रीमद्भागवत’ का प्रभाव है। सम्पूर्ण ‘सूरसागर’ एक गीतिकाव्य है। इसके पद तन्मयता के साथ गाए जाते हैं।
(2) सूरसारावली—यह ग्रन्थ अभी तक विवादास्पद स्थिति में है, किन्तु कथावस्तु, भाव, भाषा-शैली और रचना की दृष्टि से निःसन्देह यह सूरदास की प्रामाणिक रचना है। इसमें 1, 107 छन्द हैं।
(3) साहित्य-लहरी — ‘साहित्य – लहरी’ में सूरदास के 118 दृष्टकूट पदों का संग्रह है। ‘साहित्य – लहरी’ में किसी एक विषय की विवेचना नहीं हुई है। इसमें मुख्य रूप से नायिकाओं एवं अलंकारों की विवेचना की गई है। कहीं-कहीं पर श्रीकृष्ण की बाललीला का वर्णन भी हुआ है तथा एक-दो स्थलों पर ‘महाभारत’ की कथा के अंशों की भी झलक मिलती है।
सूरदास ने अपनी इन रचनाओं में श्रीकृष्ण की विविध लीलाओं का वर्णन किया है। उनकी कविता में भावपक्ष और कलापक्ष दोनों समान रूप से प्रभावपूर्ण हैं। सभी पद गेय हैं; अतः उनमें माधुर्य गुण की प्रधानता है। उनकी रचनाओं में व्यक्त सूक्ष्म दृष्टि का ही कमाल है कि आलोचक अब इनके जन्मान्ध होने में भी सन्देह करने लगे हैं।
शैली – सूरदासजी ने सरल एवं प्रभावपूर्ण शैली का प्रयोग किया है। उनका काव्य मुक्तक शैली पर आधारित है। कथा – वर्णन में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है। दृष्टकूट – पदों में कुछ क्लिष्टता का समावेश अवश्य हो गया है।
2. काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
(1) ऊधौ, तुम ……… ज्यौं पागी ॥
शब्दार्थ – बड़भागी = भाग्यशाली। अपरस = अनासक्त, नीरस, अछूता, अलिप्त । सनेह तगा = प्रेम की डोरी । पुरइनि पात = कमल का पत्ता । दागी = दाग, धब्बे से युक्त, कलंकित । माहँ = बीच में। ताकौं = उसके । प्रीति-नदी = प्रेम की नदी । पाउँ = पाँव । बोरयौ = डुबोया । परागी= मुग्ध होना। गुर चाँटी ज्यौं पागी = जिस प्रकार चींटी गुड़ लिपटती है, उसी प्रकार हम भी कृष्ण के प्रेम में लिपटी हैं, अनुरक्त हैं।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए । ।
(ग) इस पद का भावार्थ स्पष्ट कीजिए
(घ) इस पद का काव्य-सौन्दर्य लिखिए ।
(ङ) उद्धव को सौभाग्यशाली क्यों कहा गया है?
(च) चींटी और गुड़ का उदाहरण किसके लिए दिया गया है?
(छ) कमल पत्र की क्या विशेषता है?
उत्तर –
(क) कवि -सूरदास । कविता का नाम- -पद (सूरसागर से अवतरित ) ।
(ख) इस पद का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय गोपियों का कृष्ण के प्रति प्रेम-प्रदर्शन है।
(ग) भावार्थ – सूरदासजी की गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव ! तुम बहुत सौभाग्यशाली हो; क्योंकि तुम प्रेम के धागे में नहीं बँधे हो और उससे पूर्णतया अनासक्त हो। इतना ही नहीं, वरन् तुम्हारे मन में तो प्रेम की भावना तक नहीं है। कमल – पत्र ( सरोवर के ) जल में रहता है, किन्तु फिर भी उस पर जल की बूँद तक नहीं ठहरती। इसी भाँति तेल से भरी गगरी को जल में डुबाने पर भी उस पर जल की एक बूँद भी नहीं ठहरती । (इसी तरह तुम भी कृष्ण-सरोवर के प्रेमजल में रहते हो, किन्तु फिर भी तुम्हारे हृदय में उनकी प्रेम भावना का कणमात्र भी नहीं है। निःसन्देह तुम नीरस और हृदयहीन हो) । तुमने प्रेम सरिता में पाँव नहीं डुबाया और तुम्हारी दृष्टि (कृष्ण) सौन्दर्य में डूबी है (अर्थात् न तो तुमने किसी को आकर्षित किया और न ही किसी की तरफ आकर्षित हुए)। किन्तु हम इसके बिल्कुल विपरीत हैं। हम तो भोली-भाली दुर्बल नारी हैं, जो कृष्ण प्रेम की मिठास में डूबकर उनसे उसी भाँति लिप्त हो गई हैं, जैसे कि चींटी गुड़ से लिपट जाती है। (और वहीं प्राण तक भी दे देती है)। भाव यह है कि हम तो कृष्ण से अनन्य और अटूट प्रेम करती हैं, चाहे इसके लिए हमें अपने प्राण ही विसर्जित क्यों न करने पड़ें।
(घ) काव्य-सौन्दर्य – (1) गोपियाँ वक्रोक्तिपरक ढंग से उद्धव का उपहास कर रही हैं। (2) भाषा – ब्रजभाषा । (3) अलंकार – उपमा, रूपक, वक्रोक्ति। (4) रस – वियोग श्रृंगार । (5) शब्दशक्ति – लक्षणा । (6) छन्द — गेयपद ।
(ङ) गोपियाँ उद्धव को सौभाग्यशाली कहती हैं; क्योंकि उद्धव प्रेम के धागे में बँधे नहीं हैं, और इससे पूर्णतया अनासक्त हैं। यदि वे श्रीकृष्ण के प्रेम से बँधे होते तो उन्हें भी श्रीकृष्ण के विरह में दुःख ही उठाने ही पड़ते। यदि उन्हें प्रेम का अनुभव होता तो वे गोपियों को कभी भी योग-साधना का उपदेश न देते।
(च) चींटी का उदाहरण गोपियों ने स्वयं के लिए और गुड़ का श्रीकृष्ण के लिए दिया है। इसके द्वारा वे कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम को प्रदर्शित करना चाहती हैं कि जैसे चींटी गुड़ के लिए अपनी जान दे देती है, किन्तु उसे छोड़ नहीं पाती, उसी प्रकार गोपियाँ स्वयं को कृष्ण से पृथक् नहीं कर सकतीं। वे अपने प्राण दे सकती हैं, किन्तु उनसे पृथक् नहीं हो सकतीं।
(छ) कमल – पत्र सरोवर के जल में रहता है, किन्तु उस पर पानी की एक बूँद भी नहीं ठहरती है।
(2) मन की ……… न लही ॥
शब्दार्थ — माँझ = मध्य में | अधार = आधार । आस = आशा । आवन = आगमन। बिथा = व्यथा। बिरहिनि = वियोग में जीनेवाली । बिरह दही = बिरह की आग में जल रही हैं। हुतीं = थीं। गुहारि = रक्षा के लिए पुकारना । उत = उधर, वहाँ | धार = योग की प्रबल धारा। धीर = धैर्य। मरजादा = मर्यादा, मान-प्रतिष्ठा । न लही = नहीं रही, नहीं रखी।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए ।
(ग) इस पद का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(घ) इस पद का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(ङ) ‘मन की मन ही माँझ रही’ के द्वारा गोपियाँ क्या कहना चाहती हैं?
(च) गोपियाँ अपने मन की व्यथा किससे कह रही हैं?
(छ) श्रीकृष्ण ने गोपियों को क्या सन्देश भिजवाया है? ?
(ज) गोपियाँ किस कारण धैर्य नहीं रख पा रही हैं
उत्तर –
(क) कवि -सूरदास । कविता का नाम — पद ( सूरसागर से अवतरित ) ।
(ख) इस पद का प्रमुख प्रतिपाद्य गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम प्रकट करता है।
(ग) भावार्थ – गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव ! हमने तो सोचा था कि हमारे श्यामसुन्दर शीघ्र ही हमारे पास लौट आएँगे और हम उनके साथ रास रचाकर अपने इस दुःख को भूल जाएँगी, किन्तु तुमने जो यह सन्देश सुनाया है, उसको सुनकर तो हमारी यह लालसा हमारे मन में ही रह गई। अब हम अपने मन की व्यथा किससे जाकर कहें; क्योंकि हमसे तो अब कुछ कहते ही नहीं बनता। हमने अब तक अपने शरीर और अपने मन की समस्त व्यथाओं को इस आशा के साथ सहन किया कि अपने प्रवास की अवधि समाप्त कर श्रीकृष्ण शीघ्र ही लौट आएँगे, किन्तु तुम्हारे योग के सन्देश को सुनकर तो हमारी आशा का आधार ही समाप्त हो गया हैं, जिस कारण हम विरहिणी कृष्ण के विरह में जली जा रही हैं। हम अब तक जिस कृष्ण को अपनी रक्षा के लिए पुकार रही थीं अब तो वहीं से दुःख की धारा बहने लगी। सूरदासजी की गोपियाँ कहती हैं कि अन्य हम धीरज रखकर क्या करेंगी, जब किसी प्रकार की कोई मर्यादा ही नहीं रही है।
भाव यह है कि हमें यह विश्वास था कि श्रीकृष्ण हमारे दुःखों को दूर कर देंगे, पर अब तो श्रीकृष्ण ने ही उल्टा हमें योग का उपदेश भिजवाया है। अब हमारी रक्षा का सहारा कौन हैं? हे उद्धव ! अब तो आप भी स्वयं अपनी आँखों से हमारी दीनदशा को देख चुके हैं। इस दुःख के समय हमारे साहस की समस्त मर्यादा नष्ट हो गई है अर्थात् अब दुःख सहन करने का साहस हममें नहीं रहा ।
(घ) काव्य-सौन्दर्य – (1) गोपियों का धैर्य श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा करते-करते शिथिल होने लगा है। (2) भाषा – ब्रजभाषा । (3) अलंकार – वक्रोक्ति, अनुप्रास । (4) रस-वियोग श्रृंगार । (5) शब्दशक्ति – लक्षणा । (6) छन्द – गेयपद ।
(ङ) ‘मन की मन ही माँझ रही’ के द्वारा गोपियाँ कहना चाहती हैं कि हमने श्रीकृष्ण को लेकर अपने मन में न जाने क्या-क्या सपने सँजोए थे। हमने सोचा था कि जब कृष्ण लौट आएँगे तो हमारे सारे कष्ट दूर हो जाएँगे और हम परमानन्द को प्राप्त हो जाएँगी, किन्तु उनके सन्देश से हम जान गई हैं कि वे अब कभी हमारे पास लौटकर नहीं आएँगे और हमारे स्वप्न स्वप्न ही रह जाएँगे। हमारी परमानन्द – प्राप्ति की इच्छा हमारे मन में ही रह गई, अब वह कभी पूर्ण न हो सकेगी।
(च) गोपियाँ अपने मन की व्यथा उद्धवजी से कह रही हैं।
(छ) श्रीकृष्णजी ने उद्धव के माध्यम से गोपियों को योग का सन्देश भिजवाया है।
(ज) गोपियों को श्रीकृष्ण से यह आशा थी कि मथुरा लौटकर उनके विरह – दुःख को दूर कर देंगे, किन्तु जब उन्होंने योग-साधना का सन्देश भिजवा दिया तो उनकी आशा का आधार ही समाप्त हो गया। ऐसे में वे क्या सोचकर धैर्य धारण करें। पहले तो उनके पास धैर्य धारण करने का आधार था कि श्रीकृष्ण लौट आएँगे, मगर अब वह आधार ही समाप्त हो गया है; अतः वे धैर्य नहीं धारण कर पा रही हैं।
(3) हमारैं हरि …….. मन चकरी ॥ 
शब्दार्थ- हारिल = हारिल पक्षी, जो अपने पंजे में सदैव एक लकड़ी पकड़े रहता है, उसे नहीं छोड़ता। लकरी = लकड़ी। क्रम = कर्म । नन्द-नन्दन = नन्द के नन्दन अर्थात् श्रीकृष्ण । उर = हृदय । जक री = रटती रहती है। करुई ककरी = कड़वी ककड़ी। सु = वह । व्याधि = रोग, क्लेश। तिनहिं = उनको । मन चकरी = बच्चों के खेलने की चकई के समान सदैव अस्थिर रहनेवाला मन ।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम बताइए ।
(ख) इस पद का भावार्थ स्पष्ट कीजिए ।
(ग) इस पद का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए ।
(घ) मन के चकरी होने से क्या आशय है?
(ङ) हारिल पक्षी की लकड़ी किसे कहा गया है?
(च) गोपियाँ किसे सम्बोधित कर रही हैं?
(छ) चेतन-अचेतन अवस्था में गोपियाँ क्या करती हैं?
(ज) कड़वी ककड़ी किसके लिए कहा गया है?
(झ) ‘ हारिल की लकरी’ से क्या अभिप्राय है? गोपियाँ हरि को हारिल की लकड़ी क्यों कहती हैं?
अथवा काव्यांश में ‘हारिल की लकरी’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है? क्यों?
(ञ) गोपियों को योग की बातें कैसी लगती हैं और क्यों?
अथवा गोपियों को योग ‘करुई ककरी’ क्यों लगता है?
(ट) गोपियाँ योग का उपदेश किन्हें देने को कहती हैं?
अथवा गोपियों ने उद्धव से योग-ज्ञान किसके लिए उपयोगी कहा है?
उत्तर –
(क) कवि -सूरदास । कविता का नाम – पद ( सूरसागर से अवतरित ) ।
(ख) भावार्थ — गोपियाँ कहती हैं कि हे भ्रमर (उद्धव) ! श्रीकृष्ण हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी (आधार) के समान हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी अपने पंजों में हर समय लकड़ी दबाए रहता है; अर्थात् उसका साथ नहीं छोड़ता है; उसी प्रकार नन्दजी के पुत्र अर्थात् श्रीकृष्ण को हमने अपने हृदय में मन, वचन और कर्म से धारण कर लिया है। अब तो हम जागते-सोते, स्वप्न में, दिन-रात कान्हा – कान्हा की रट लगाए रहती हैं; अर्थात् अब हम हर चेतन-अचेतन अवस्था में कृष्ण-कृष्ण जपती रहती हैं और हम खेदपूर्वक (यहाँ उद्धव पर कटाक्ष है) कहती हैं कि आपकी ( उद्धव की) योग की चर्चा हमें कड़वी ककड़ी के समान लगती है; अर्थात् जिस प्रकार कड़वी ककड़ी चखते ही मुँह कड़वा हो जाता है और उसे खाने की इच्छा नहीं रहती, उसी प्रकार आपका योग सम्बन्धी पहला शब्द सुनते ही हम विरक्त हो उठती हैं, तब पूरी चर्चा सुनना तो हमारे लिए असह्य ही है। सूरदासजी कहते हैं— गोपियाँ उद्धव को और भी छकाती हुई कहती हैं कि हे उद्धव ! आप तो हमारे लिए एक ऐसी बीमारी (योग) ले आए हैं, जो न तो हमने कभी देखी, न कभी सुनी और न ही यह बीमारी हमें कभी हुई। यह योगरूपी बीमारी तो आप उन्हें ही ले जाकर सौंपिए, जिनके मन चकरी के समान चलायमान हैं। गोपियों के कहने का तात्पर्य यह है कि योग-साधना उनके लिए आवश्यक होती है, जिनका चित्त चंचल होता है। हमने तो प्रभु कृष्ण के स्मरण में पहले ही चित्त को स्थिर कर लिया है, इसलिए हमें योग-साधना की आवश्यकता ही नहीं है।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – ( 1 ) यहाँ ज्ञानयोग पर भक्तियोग की प्रधानता का वर्णन किया गया है। (2) सूरदासजी के ‘भ्रमर गीत’ की यही अनुपम विशेषता है कि गोपियाँ अपनी भीषण प्रहारक परन्तु सुहासपूर्ण तर्क प्रस्तुति से एक ओर योग को अपने लिए अनुपयोगी सिद्ध करती हैं तो लगे हाथों उद्धव को बगलें झाँकने पर मजबूर भी कर देती हैं। (3) हारिल – पक्षी – विशेष, जो हर समय अपने पंजों में सूखी लकड़ी दबाए रहता है। (4) भाषा — ब्रजभाषा । (5) अलंकार — अनुप्रास एवं उपमा । (6) रस – वियोग श्रृंगार । ( 7 ) शब्दशक्ति – लक्षणा । (8) छन्द – गेयपद ।
(घ) मन के चकरी होने से आशय मन के चंचल होने से है।
(ङ) हारिल पक्षी की लकड़ी श्रीकृष्ण को कहा गया है।
(च) गोपियाँ उद्धव को सम्बोधित करती हुई, उन्हें कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति का स्वरूप समझाती हैं।
(छ) चेतन-अचेतन अवस्था में गोपियाँ कृष्ण का नाम जपती रहती हैं।
(ज) उद्धव द्वारा की गई योग की चर्चा को कड़वी ककड़ी कहा गया है।
(झ) ‘हारिल की लकरी’ से अभिप्राय किसी वस्तु के स्मृति में स्थायी रूप से बस जाने से है। व्यक्ति चाहे सोता हो अथवा जागता हो किन्तु वह उसकी स्मृति में बनी रहती है। गोपियाँ हरि को इसीलिए हारिल की लकड़ी कहती हैं; क्योंकि वे उनकी स्मृति में स्थायी रूप से बस गए हैं; सोते-जागते किसी भी अवस्था में उनकी स्मृति में श्रीकृष्ण और उनका साथ नहीं छूटता है ।
(ञ) गोपियों बातें कड़वी ककड़ी जैसी लगती हैं। जिस प्रकार व्यक्ति कड़वी ककड़ी को नहीं खा पाता और उसके मुँह में आते ही उसका स्वाद खराब हो जाता है, उसी प्रकार गोपियाँ जैसे ही योग का शब्द सुनती हैं, उनके मन व्याकुल हो उठते हैं; क्योंकि योग उनके हृदय में बसी कृष्ण की मधुर स्मृतियों में कटु विष घोल देता है।
(ट) गोपियाँ योग का उपदेश उन्हें देने के लिए कहती हैं, जिनके मन चकरी के समान चंचल हैं।
(4) हरि हैं ……… जाहिं सताए ॥ 
शब्दार्थ – समुझी = समझना। मधुकर = भौंरा; उद्धव के लिए गोपियों द्वारा प्रयुक्त सम्बोधन। हुते = थे। पठाए = भेजा। पर हित = दूसरे के उपकार के लिए। लोग आगे के = पूर्वज । डोलत धाए = घूमते-फिरते थे। फेर = फिर से, पुनः । पाइहैं = पा लेंगी। अनीति = अन्याय ।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(घ) इस पद का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ङ) राजनीति पढ़ने में जो व्यंग्य है, उसे स्पष्ट कीजिए।
(च) राजनीति पढ़ने का आरोप किस पर लगाया जा रहा है?
(छ) गोपियाँ श्रीकृष्ण से क्या चाहती हैं?
(ज) राजधर्म की सफलता कब मानी जाती है?
(झ) गोपियाँ पारस्परिक वार्त्तालाप में किसकी ओर लक्ष्य करती हैं?
उत्तर-
(क) कवि -सूरदास । कविता का नाम – पद सूरसागर से अवतरित ) ।
(ख) इस पद का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय श्रीकृष्ण और उद्धव पर किए गए कटाक्षों से व्याजोक्ति के द्वारा श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम को प्रदर्शित करना है।
(ग) भावार्थ – गोपियाँ व्यंग्य के स्वर में श्रीकृष्ण पर कूटनीति की विद्या सीखने का आरोप लगाकर उनकी खूब खबर लेती हैं। उद्धव ने जो बात कही है वह तो गोपियों ने समझ ली और उससे अपने प्रिय श्रीकृष्ण के सब समाचार भी प्राप्त कर लिए। उद्धव की बातों से गोपियाँ यह निष्कर्ष निकाल रही हैं कि एक तो श्रीकृष्ण पहले से ही बहुत चतुर थे ऊपर से उन्होंने अब राजनीति के बड़े-बड़े ग्रन्थ पढ़कर उनका ज्ञान प्राप्त कर लिया है। इससे उनकी बुद्धि बहुत बढ़ गई लगती है, तभी तो उन्होंने हम युवतियों को ज्ञान और योग का सन्देश भेजा है। परस्पर सखियों को सम्बोधित करती हुई एक गोपी कहती है कि पहले लोग (पूर्वज) बड़े भले होते थे, जो कि परोपकार के लिए बड़ी दौड़-धूप करते थे, कष्ट उठाते थे। एक ये श्रीकृष्ण हैं, जिन्हें दूसरों की (गोपियों की ) कोई चिन्ता ही नहीं। गोपियाँ श्रीकृष्ण से अब और कुछ नहीं चाहतीं, सिर्फ अपने-अपने ‘मन’ को वापस पाना चाहती हैं, जिन्हें श्रीकृष्ण मथुरा प्रस्थान के समय चुराकर अपने साथ ले गए थे।
गोपियाँ एक तर्क यह भी देती हैं कि जब श्रीकृष्ण ने अपनी प्रेम – परम्परा को ही छोड़ दिया तो अपनी नीति मनवाने का उन्हें क्या .. अधिकार रह जाता है; क्योंकि जो स्वयं अपनी परम्पराओं, नीतियों पर नहीं चल सकता, वह दूसरों से क्या कहने योग्य रह जाता है। इस नियम से श्रीकृष्ण को ज्ञान योग का उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं रह जाता। अन्त में सूरदासजी कहते हैं कि राजधर्म की श्रेष्ठता एवं सफलता तभी मानी जा सकती है, जब प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट न हो, उस पर अत्याचार न हो। श्रीकृष्ण अब मथुरा के राजा हो गए हैं और उन्होंने राजनीति भी बहुत पढ़ी है, फिर भी राजा के कर्त्तव्यों का निर्वाह वे नहीं कर रहे हैं। यदि ऐसा होता तो हमारे साथ ऐसा अन्याय नहीं करते। राजनियम अथवा राजा के कर्त्तव्य का उल्लेख करने से कवि की अभीष्ट व्यंजना यह है कि मथुरा प्रवासकाल में श्रीकृष्ण का सम्राट्त्व तभी सार्थक और सफल कहा जाएगा जब उनकी प्रजा (गोपियों) का हृदय न दुःखाया जाए और यह तभी हो सकता है, जब वे उन्हें आकर दर्शन दें।
(घ) काव्य-सौन्दर्य – (1) प्रथम चरण में ही व्याजनिन्दा तथा विपरीत लक्षण का सौन्दर्य द्रष्टव्य है। (2) भाषा — ब्रजभाषा । (3) अलंकार – चपलातिशयोक्ति व निदर्शना । ( 1 ) रस – वियोग श्रृंगार । (5) शब्दशक्ति – लक्षणा और व्यंजना । (6) छन्द — गेयपद ।
(ङ) राजनीति का सबसे प्रमुख सिद्धान्त यह है कि साम दाम दण्ड भेद किसी भी प्रकार से अपना स्वार्थ सिद्ध किया जाए, भले ही इसके लिए दूसरों पर कितना भी अन्याय करना पड़े। श्रीकृष्ण ने अब क्योंकि राजनीति पढ़ ली है, इसलिए उनके स्वभाव में कुटिलता आ गई है, इसीलिए तो वे गोपियों को दर्शन न देकर उनको दुःख पहुँचाकर घोर अन्याय कर रहे हैं।
(च) राजनीति पढ़ने का आरोप गोपियाँ श्रीकृष्ण पर लगा रही हैं।
(छ) गोपियाँ श्रीकृष्ण से अपने ‘मन’ को वापस चाहती हैं, जो मथुरा प्रस्थान के समय चुराकर अपने साथ ले गए थे।
(ज) प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट न हो, उसके साथ अत्याचार न हो, इसी में राजधर्म की सफलता मानी जाती है।
(झ) गोपियाँ पारस्परिक वार्तालाप में उद्भव को सुना सुनाकर श्रीकृष्ण की कुटिलता की ओर लक्ष्य करती हैं।
3. कविता के सन्देश / जीवन-मूल्यों प्रश्नोत्तर तथा सौन्दर्य सराहना पर लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – गोपियों ने उद्धव को सौभाग्यशाली क्यों कहा है?
उत्तर – गोपियों ने उद्भव को सौभाग्यशाली इसलिए कहा है कि वे श्रीकृष्ण प्रेम में आसक्त नहीं हुए, जबकि गोपियाँ कृष्ण – प्रेम में वियोग की अग्नि में जल रही हैं। यदि उद्भव की गोपियों के समान कृष्ण के प्रति प्रेमासक्ति होती तो उन्हें भी गोपियों की भाँति विरह की अग्नि में जलना पड़ता। वे क्योंकि विरहाग्नि में जलने से बच गए हैं; अतः वे सौभाग्यशाली हैं।
प्रश्न 2 – ‘ कमल – पत्र’ की संज्ञा किसे दी गई है ?
उत्तर—  सूरदासजी ने ‘कमल-पत्र’ की संज्ञा उद्धव को दी है। कमल-पत्र सरोवर के जल में रहता है, फिर भी उस पर जल की एक बूँद नहीं ठहरती । इसी प्रकार उद्धव भी श्रीकृष्ण के अत्यन्त निकट होने पर भी उनके प्रेम में आसक्त नहीं हुए।
प्रश्न 3 – हारिल पक्षी की क्या विशेषता बताई गई है?
उत्तर – हारिल पक्षी अपने पंजों में हर समय एक लकड़ी दबाए रहता है, उसका साथ नहीं छोड़ता। इसी प्रकार गोपियों ने भी अपने हृदय में श्रीकृष्ण को धारण कर लिया है, जिन्हें अब उनका हृदय किसी भी प्रकार त्याग नहीं सकता है।
4. रचनात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – पठित पदों के आधार पर सूर के भ्रमर गीत की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है, “सूरसागर का सबसे मर्मस्पर्शी और वाग्वैदग्ध्यपूर्ण अंश ‘भ्रमर गीत’ है, जिसमें गोपियों की वचनवक्रता अत्यन्त मनोहारिणी है। ऐसा सुन्दर उपालम्भ-काव्य और कहीं नहीं मिलता।” सूर के भ्रमर गीत की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) पात्र – योजना – सूर के भ्रमर गीत के मुख्य पात्र हैं— गोपियाँ, उद्भव, राधा और यशोदा । पठित पद्यांशों में केवल दो ही पात्र हैं— गोपियाँ और उद्धव । सूरदासजी ने ज्ञानी उद्धव को अहंकार में डूबा दिखाया है, जबकि गोपियाँ कृष्ण प्रेम निमग्न हैं। गोपियों द्वारा उद्धव को जो सन्देश दिया जाता है, वह अत्यन्त भावपूर्ण है।
(2) प्रेमप्रसूत वृत्तियों का उद्घाटन -सूरदास रचित भ्रमर – गीत प्रसंग में गोपियों की प्रेमप्रसूत वृत्तियों का मार्मिक उद्घाटन हुआ है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भ्रमर गीत को सूरकाव्य की ‘संगीत भूमि’ माना है, जिसमें वचन की भावप्रेरित वक्रता द्वारा प्रेमप्रसूत न जाने कितनी अन्तर्वृत्तियों का उद्घाटन परम मनोहर है।’ गोपियों की प्रेमप्रसूत वृत्ति का उदाहरण निम्नलिखित पंक्ति है—
“जागत सोबत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।”
(3) वियोग की अन्तर्दशाओं का चित्रण -डॉ० रामकुमार वर्मा ने लिखा है, “सूरदास ने मानव हृदय के भीतर जाकर बियोग और करुण के जितने भाव हो सकते हैं, उन्हें अपनी कुशल लेखनी से ऐसे अंकित कर दिया है कि वे अमर हो गए हैं। भावों में ऐसी स्पष्टता है, मानो हम स्वयं उन्हें अनुभव कर रहे हों।” पठित पद भी वियोग की सभी अन्तर्दशाओं से परिपूरित हैं।
(4) भाषागत वैशिष्ट्य- भाषा पर तो सूर का असाधारण अधिकार है। भावों को उन्होंने विविध प्रकार से, अत्यन्त कलात्मक ढंग से व्यक्त किया है। उनकी भाषा सर्वत्र भावानुकूल और प्रसादगुणसम्पन्न है। वियोग श्रृंगार की दृष्टि से सूर के भ्रमर गीत का अभूतपूर्व स्थान है।
5. पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1 – गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान् कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर – गोपियाँ उद्भव को भाग्यवान् इसलिए कहती हैं; क्योंकि वे श्रीकृष्ण के अत्यन्त निकट रहकर भी उनके प्रेम में आसक्त नहीं हैं और एक वे (गोपियाँ) हैं कि दूर रहकर भी श्रीकृष्ण के प्रेम में विह्वल हैं। इसमें पास रहकर भी प्रेम न कर सकने पर व्यंग्य निहित है।
प्रश्न 2 – उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किससे की गई है ?
उत्तर – उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल – पत्र और तेल भरी गगरी से की गई है।
प्रश्न 3 – गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर – गोपियों द्वारा दिए गए उलाहनों को निम्नलिखित पंक्तियाँ प्रकट करती हैं—
(i) ऊधौ ! तुम हो अति बड़भागी।
(ii) सुनत जोग लागत है ऐसौ ज्यौं करुई ककरी ।
(iii) सुतौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी ।
(iv) हरि हैं राजनीति पढ़ि आए ।
प्रश्न 4- उद्धव द्वारा दिए गए योग के सन्देश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर – गोपियों को यह विश्वास था कि श्रीकृष्ण शीघ्र ही लौट आएँगे, परन्तु श्रीकृष्ण ने उलटा उद्धव के माध्यम से योग का उपदेश भिजवा दिया। इस उपदेश ने आग में घी का काम किया और उनकी विरहाग्नि और अधिक प्रज्वलित हो उठी। गोपियाँ उद्धव से कहने लगीं कि हमारे साहस की मर्यादा अब समाप्त हो गई है, इस विरह दुःख को सहने का साहस अब हममें (गोपियों में) नहीं रहा है।
प्रश्न 5 – मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर- ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से गोपियों के साहस की मर्यादा न रहने की बात की जा रही है। गोपियाँ उद्भव से कहती हैं कि अब धीरज रखकर क्या करेंगे, जब किसी प्रकार की मर्यादा ही न रही।
प्रश्न 6 – कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर – सूरदास की गोपियों में एक ओर वचनचातुरी है तो दूसरी ओर कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम । वे व्यंग्य करने में पूर्ण समर्थ हैं। पीछे नहीं हैं। उन्होंने कृष्ण और उद्धव का उपालम्भ देने में भी पर्याप्त उपहास किया, किन्तु कहीं भी हृदय की कटुता और कठोरता के लेशमात्र भी दर्शन नहीं होते, अपितु कृष्ण के प्रति प्रेम ही सर्वत्र विराजता है। अग्रलिखित पंक्तियाँ इसका सुन्दर उदाहरण हैं-
(i) ‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौ पागी ।
(ii) अवधि अधार आस आवन की तन मन बिथा सही ।
(iii) मन क्रम बचन नंद नंदन उर, यह दृढ़ कर पकरी ।
प्रश्न 7 – गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है? –
उत्तर – गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा उन लोगों को देने की बात कही है, जिनके चित्त चंचल हैं।
प्रश्न 8- प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर – गोपियाँ कृष्ण प्रेम में विहल थीं। उद्भव उन्हें योग का सन्देश देते हैं। गोपियों को योग कड़वी ककड़ी के समान प्रतीत होता है। योग अर्थात् निर्गुण-निराकार की भक्ति या योग-साधना से प्राप्त होनेवाला ब्रह्म कठिन और दुष्कर है; साथ ही अरुचिकर ( कड़वी ककड़ी) भी है।
प्रश्न 9 – गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर – गोपियों के अनुसार राजा का धर्म होना चाहिए – प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट न हो, प्रजा पर अत्याचार न हों।
“राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए । “
प्रश्न 10 – गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए, जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर – गोपियों ने उद्भव का सन्देश सुना और यह निष्कर्ष निकाला कि एक तो श्रीकृष्ण पूर्व से ही अत्यन्त चतुर थे अब तो उन्होंने राजनीति पढ़ ली है, जिससे उनकी चतुरता ( कुटिलता ) में और अधिक वृद्धि हो गई है; इसी कारण उन्होंने उनके लिए ज्ञान- योग का सन्देश भेजा है। वे समझ गई कि अब कृष्ण उनके पास वापस नहीं आना चाहते, फिर ऐसे निर्मोही व्यक्ति को मन देने का क्या लाभ है? इसीलिए वे अपना ‘मन’ वापस लेने की बात कहती हैं ।
प्रश्न 11 – गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर – भ्रमर गीत में गोपियों के वाक्चातुर्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित शब्दों में प्रकट की जा सकती हैं-
‘गोपियों की तीव्र विरह वेदना मन को छूनेवाली है। गोपियाँ उद्धव के उपदेश के प्रति अपनी झुंझलाहट इन शब्दों में व्यक्त करती हैं-
हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए ।
गोपियों के वचनों में वक्रता के साथ भावुकता का भी सुन्दर मिश्रण हुआ है। गोपियों के उपालम्भों में उनकी अपनी प्रेमानुभूति और विरहानुभूति प्रकट होती है-
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि सुनि, बिरहिनि बिरह दही ॥
ऐसी वाक्चातुरी गोपियों के मुख से केवल सूरदास ही प्रकट कर सकते हैं, जो कि उनकी काव्यकला की उत्कृष्टता का प्रतीक है।
प्रश्न 12 – संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमर गीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर – ‘रचनात्मक प्रश्नोत्तर’ शीर्षक के अन्तर्गत प्रश्न 1 का उत्तर देखें।
6. परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – निम्नलिखित पंक्तियों द्वारा कवि व्यंग्य के माध्यम से क्या सन्देश देना चाहता है- 
ऊधौ, तुम हो अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी ॥
उत्तर – कवि इन पंक्तियों के द्वारा व्यंग्य के माध्यम से यह सन्देश देना चाहता है कि प्रेम कोई ऐसा बाह्य आवरण नहीं है, जिसे कोई भी अपनी इच्छा से उठाकर ओढ़ ले। इसके लिए तो व्यक्ति को अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं। जो व्यक्ति कष्टों से घबराता है, उसे प्रेम से दूर ही रहना चाहिए। गोपियाँ इसीलिए उद्धव को बड़भागी बताती हैं; क्योंकि वे किसी के प्रेम के बन्धन में नहीं बँधे हैं और इसलिए सब प्रकार के कष्टों से मुक्त हैं। गोपियाँ कृष्ण प्रेम – बन्धन में बँधी हैं, इसीलिए विरह का दारुण दुःख उठा रही है।

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