UK Board 9th Class Sanskrit – Chapter 3 सोमप्रभम्
UK Board 9th Class Sanskrit – Chapter 3 सोमप्रभम्
UK Board Solutions for Class 9th Sanskrit – संस्कृत – Chapter 3 सोमप्रभम्
सोमप्रभम् (सोमप्रभा)
[ पाठ – परिचय – प्रस्तुत पाठ एकांकी रूप में संकलित है। यह प्रो० राधा वल्लभ त्रिपाठी की नाट्यरचना ‘प्रेक्षणसप्तकम्’ से सम्पादित करके ग्रहण किया गया है। इस एकांकी में दहेज प्रथा के निन्दनीय और घृणित रूप को चित्रित किया गया है। दहेज के लिए प्रताड़ित की जाती अपनी माता की रक्षा के लिए बालिका सोमप्रभा पुलिस की शरण में जाने का साहस जुटाती है, जिससे उसकी माता के दुःखों का अन्त हो जाता है । ]
समस्त पाठ का हिन्दी – अनुवाद
( तदन्तर हथेलियों से आँखें मलती हुई पाँचवर्षीया बालिका सोमप्रभा प्रवेश करती है।)
विमला – अरी जागो ! तो शीघ्रता ( जल्दी ) करो। देर हो रही है विद्यालय जाने का समय हो गया है।
सोमप्रभा – माँ! आज विद्यालय नहीं जाऊँगी।
विमला – (सोमप्रभा को हाथ से पकड़कर) अरी यह क्या कहती हो। विद्यालय तो प्रतिदिन जाना ही चाहिए।
(सोमप्रभा का प्रस्थान )
सास – विमला ! अरी दुष्टा ! कहाँ मर गई है? कितने समय (देर) से आवाज दे रही हूँ?
विमला – (करुणा के साथ सहमकर) यह मेरी सास सदैव मर्मभेदी कटुवचनों से मुझे ताना देती रहती है। (ऊँची आवाज में ) माताजी! यह मैं आ रही हूँ। क्या करना है ? ( घूमती है।)
(इसके बाद घमण्ड दिखाती हुई, क्रोध प्रकट करती सास प्रवेश करती है)
विमला – माताजी! क्या आदेश है?
सास – ( मजाक बनाती या चिढ़ाती हुई) क्या आदेश है ? क्या इस समय भी महादेवी की सुबह नहीं हुई है?
विमला – प्रातः काल में होनेवाले कार्य ही कर रही हूँ।
सास – प्रातः काल में होनेवाले कार्य कर रही है। अब तक भी चाय-पानी नहीं है, क्या कहानी है। क्या चाय तेरा बाप आकर बनाएगा….जिससे कौड़ी भी न दी गई …..|
विमला – मेरे पिताजी को किसलिए कोस रही हो। माताजी! जो कुछ भी कहना है, मुझे ही कहिए ।
सास – (भौंहें बिगाड़े और बाँहें चढ़ाए) (अय हय) सुनो इस दुष्ट्टा का नीच उत्तर ( जवाब )। यदि पिता इतना प्यारा है तो वहीं जाकर क्यों नहीं मरती पिता के घर में …?
विमला – वह तो पीछे सावन में मुझे लेने आए थे। आपके द्वारा ही….. |
सास – अरी दुष्टा ! वेतन का घमण्ड दिखा रही है? बहुत अधिक घमण्ड हो रहा है, तीन-चार पैसे जो कमाकर लाती है। तेरे पैसों पर थूकती हूँ। थू: क्या मानती है, तू कमाकर पैसेवाली हो गई है? कहाँ है तेरा वह धन? तेरा पिता जब तक वचन दिए गए दहेज का धन नहीं देता, तब तक ( अपने वेतन का) आधा ही (हमें) दे।
विमला – अहो तुम्हारी नृशंसता ( क्रूरता)। अहो लालचपन…..|
सास – अरे! तेरा ऐसा साहस ( कि) तू मुझे कोसती है। मुझे आँखें दिखाती है।
(ससुर प्रवेश करके),
ससुर – क्या हुआ ?
यह क्या सुबह से ही लड़ाई का आडम्बर ( ड्रामा कर रखा है ) ? सुबह का चाय-पानी अब तक नहीं मिला….।
सास – चाय-पानी की क्या बात ( कथा ) । इस दुष्टा द्वारा चाय के बर्तन तोड़ दिए गए हैं। मेरे द्वारा कुछ भी नहीं कहा गया, फिर भी यह मुझे कोसती है। हम सब क्रूर हैं, हम सब लालची हैं, हम सब राक्षस हैं।
ससुर – इसने यह सब कहा ?
विमला – नहीं पिताजी! मैंने ऐसा नहीं कहा है।
सास – देखो, देखो इस कुलक्षिणी की दुष्टता । क्या-क्या बुरे काम यह नहीं करती है? सामने ही जवाब भी देती है, यह मेरे सामने जीभ चलाती है।
ससुर – ( क्रोध के साथ) अहो इसका यह दुस्साहस ! (ससुर और सास उसको (सोमप्रभा को) नहीं देखते हैं, दोनों क्रूरता के साथ हिंसकभाव से विमला को देखते हुए उसके पास जाते हैं। सोमप्रभा प्रवेश करके यह देखती है)
विमला – माताजी! पिताजी! मैंने कुछ भी अपराध ( गलती ) नहीं किया, सत्य के साथ कसम खाती हूँ। तुम सब मुझे इस प्रकार क्यों देख रहे हो? नहीं, नहीं, नहीं, आप मुझे मारना चाहते हैं…..। (दोनों मारने की इच्छा से बलपूर्वक विमला को पकड़कर खींचते हैं)
सोमप्रभा – ( भय के साथ बहुत धीमे स्वर से) माँ…माँ….।
( सास-ससुर उसको न देखते हुए विमला को घसीटते हैं)
सास – इसे रसोईघर में ले चलो, इसे वहीं जलाओ।
(सोमप्रभा सहसा दौड़ती हुई निकलती है। विमला अपनी रक्षा के लिए प्राणपण से प्रयत्न करती है, नेपथ्ये में गाया जाता है)
दुष्टों के द्वारा धन के लिए प्रतिपल हिंसा की भावना बढ़ रही है, अत्यधिक निर्दयी प्राणियों द्वारा मनुष्यता लुप्त की जा रही है। क्रूर मारनेवाले लोगों द्वारा दो विधाएँ — साधुता और मनुष्यता मारी जाती हुई संसार से अलग की जा रही हैं। अत्यधिक दैन्यता आ गई है।
( विमला का तेज चीत्कार। पुलिस इंस्पेक्टर के साथ सोमप्रभा प्रवेश करती है ।)
पुलिस इंस्पेक्टर – ( पास जाकर ) अरे ! क्या कर रहे हो, यहाँ क्या चल रहा है? छोड़ो इसको ।
सास – ( हड़बड़ी / घबराहट के साथ) महोदय ! कुछ भी अहितकारी (गलत ) नहीं है। यह हमारी साध्वी पुत्रवधू बीमार है। हम इसका उपचार ( इलाज ) कर रहे हैं।
पुलिस इंस्पेक्टर – उपचार किया जा रहा है! मैं तुम्हारा उपचार करूँगा। मैं सब जानता हूँ।
( सोमप्रभा की ओर संकेत करके) इस बालिका द्वारा सब बता दिया गया है।
(सास और ससुर विमला को छोड़ते हैं)
विमला – ( कष्ट के साथ सोमप्रभा के समीप जाकर) पुत्रि ! तुम तुम यहाँ कैसे…..|
सोमप्रभा – माँ! जूते टूट गए हैं और पुस्तकों की पेटिका ( स्कूल बैग) भी टूट गई है, अध्यापिका ने मुझे कक्षा से निकाल दिया। तुमने ही कहा था – विद्यालय से बिना देर किए (सीधे ही ) घर आना चाहिए। इसलिए मैं घर आ गई। ( रोती है)
विमला – मत रोओ पुत्रि! सब ठीक हो जाएगा।
सोमप्रभा – यहाँ आकर मैंने देखा कि दादा और दादी तुम्हें मार रहे हैं। इसलिए मैं दौड़ी-दौड़ी थाने चली गई। पुलिस इंस्पेक्टर से मैंने बताया (प्रार्थना की) …..|
विमला – ( आँसू भरकर गद्गद हो सोमप्रभा को गले लगाकर ) तेरे द्वारा मैं बचाई (रक्षा की) गई हूँ। बड़े संकट से तूने मुझे उबार लिया है। मेरे लिए तूने (कितना अच्छा किया।
पाठाधारित अवबोधन-कार्य
(1) (ततः प्रविशति करतलाभ्यां चक्षुषी मार्जयन्ती पञ्चवर्षदेशीया बालिका सोमप्रभा)
विमला – अये जागरिता । त्वरस्व तावत् । परिहीयते विद्यालयगमनवेला |
सोमप्रभा – अम्ब! अद्य न गमिष्यामि विद्यालयम् ।
विमला – (हस्तेन सोमप्रभां गृहीत्वा ) अये किमेतत् कथयसि । विद्यालयस्तु गन्तव्य एव प्रतिदिनम् ।
(सोमप्रभाया: प्रस्थानम् )
श्वभूः – विमले! अयि दुष्टे! कुत्र मृतासि ? कियतः कालात् शब्दापयामि ?
विमला – ( सकरुणं निशम्य ) इयं मम श्वश्रूः सदैव मर्मघातिभिः कटुवचनैराक्षिपति माम् । ( उच्चैः स्वरेण ) अम्ब! इयमागच्छामि । किं करणीयम् ? (परिक्रामति ) ।
(ततः प्रविशति सांटोपं कोपं निरूपयन्ती. श्वश्रूः )
प्रश्ना:- 1. एकपदेन उत्तरत-
(क) कियती देशीया बालिका सोमप्रभा ?
(ख) सोमप्रभा कुत्र न गन्तुं कथयति ?
(ग) का कटुवचनै: आक्षिपति ?
(घ) किं निरूपयन्ती श्वश्रूः प्रविशति ?
उत्तरम् — (क) पञ्चवर्षदेशीया ।
(ख) विद्यालयम् ।
(ग) श्वश्रूः ।
(घ) कोपम् ।
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) सोमप्रभा किं कुर्वन्ती प्रविशति ?
(ख) विमलानुसारम् किं कर्त्तव्यं प्रतिदिनम् ?
(ग) श्वश्रूः केन काम् आक्षिपति ?
(घ) विमला उच्चैः स्वरेण किं कथयति ?
उत्तरम् — (क) सोमप्रभा करतलाभ्यां चक्षुषी मार्जयन्ती प्रविशति ।
(ख) विमलानुसारम् विद्यालयं गन्तव्यं प्रतिदिनम् ।
(ग) श्वश्रूः मर्मघातिभिः कटुवचनैः विमलाम् आक्षिपति ।
(घ) विमला उच्चैः स्वरेण कथयति — अम्ब! इयमागच्छामि किं करणीयम् ।
3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-
(क) ‘दिनं दिनं प्रति’ इत्यर्थे अत्र किं पदं प्रयुक्तम् ?
(ख) ‘ मर्मघातिभि:’ इति कस्य पदस्य विशेषणम् अस्ति ?
(ग) ‘इयमागच्छामि’ अत्र ‘इयम्’ सर्वनामपदं कस्यै प्रयुक्तम् ?
(घ) श्वश्रूः साटोप कोपं निरूपयन्ती …………। क्रियापदेन पूरयत।
उत्तरम् — (क) प्रतिदिनम् ।
(ख) वचनैः ।
(ग) विमलायै ।
(घ) प्रविशति ।
(2) विमला – अम्ब! किमादिशसि ?
श्वभूः – (विडम्बयन्ती) किमादिशसि ? किमिदानीमपि महादेव्याः प्रभातकालो न सञ्जातः ?
विमला – प्रातः कालिकं कार्यजातमेव सम्पादयामि ।
श्वभूः – प्रातः कालिकं कार्यजातं सम्पादयसि । इदानीमपि चायपेयस्य नास्ति कापि कथा । तव पिता आगत्य साधयिष्यति किं चायं …… येन काकिणी अपि न दत्ता …..|
विमला – मम पितृपादम् किमर्थं कदर्थयसि अम्ब! यत्किमपि कथनीयं मां प्रत्येव कथय ।
श्वभूः – ( सभ्रूभङ्गं सभुजक्षेपं च) (अय् हय्) शृणुत अस्याः दुष्टायाः अधरोत्तरम् । एतावानेव प्रियो यदि पिता तर्हि तत्रैव गत्वा कथं न मृता पितुर्गृहे …. ?
प्रश्ना:- 1. एकपदेन उत्तरत-
(क) विमला किं कार्यं सम्पादयति ?
(ख) विमलापित्रा किं न दत्ता ?
(ग) का विमलापितरम् कदर्थयति ?
(घ) अत्र कस्यै पिता प्रियः अस्ति ?
उत्तरम् — (क) प्रात: कालिकम् ।
(ख) काकिणी ।
(ग) श्वश्रूः ।
(घ) विमलायै ।
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) श्वश्रूः कैः शब्दैः विडम्बयति ?
(ख) श्वश्र्वाः कटूक्त्यनुसारम् कः आगत्य चायं साधयिष्यति ?
(ग) अत्र का केन दुष्टा कथिता ?
उत्तरम् — (क) श्वश्रूः एतैः शब्दैः विडम्बयति — किमादिशसि ? किमिदानीमपि महादेव्याः प्रभातकालो न सञ्जात: ?
(ख) श्वश्र्वा: कटूक्त्यनुसारम् पिता आगत्य चायं साधयिष्यति ।
(ग) अत्र विमला श्वश्र्वा दुष्टा कथिता ।
3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-
(क) ‘महादेव्या:’ इति पदे का विभक्ति: ?
(ख) ‘माता’ पदस्य समानार्थकं पदं नाट्यांशात् चित्वा लिखत ।
(ग) कथं न मृता पितुर्गृहे’ अत्र प्रयुक्तम् अव्ययपदं किम् ?
(घ) ‘प्रत्येव’ इति पदस्य सन्धिच्छेदं कुरुत ।
उत्तरम् – (क) षष्ठी।
(ख) अम्ब ।
(ग) कथम्।
(घ) प्रत्येव = प्रति + एव।
(3) विमला – स तु मां नेतुमागतः श्रावणे विगते। भवतीभिरेव …….
श्वभूः – अयि दुष्टे ! वेतनस्य गर्वमुद्वहसि ? अतिमात्रं त्रिचतुरान् पणकानर्जयित्वा आनयसीत्येतेन । निष्ठीवनं करोमि तव पणकेषु । थुः ! किं मन्यसे त्वम् अर्जयित्वा धनमानयसि ? किं तव धनं तत् ? तव पिता यावन्तं यौतकराशि प्रतिज्ञातवान् तावतोऽर्धमेव समर्पितवान्।
विमला – अहो नृशंसता युष्माकम् । अहो लोलुपता…….
श्वभूः – अये! एतावत्तव साहसम् त्वं मामाक्षिपसि। नेत्रे दर्शयसि माम् ।
( श्वसुरः प्रविश्य)
श्वसुरः – प्रात: किं जातम्! कोऽयं कलहाडम्बरः कालादेव ? प्रातः कालिकं चायमपीदानीं यावन्न लब्धम् …….
श्वश्रूः – का कथा चायपानस्य । त्रोटितानि अनया दुष्टया चायभाजनानि । न मया किमपि भणितम्, तथापि अधिक्षिपति मामियम् । वयं नृशंसाः, वयं लोलुपाः, वयं राक्षसाः।
प्रश्ना:- 1. एकपदेन उत्तरत-
(क) श्वश्रूः केषु निष्ठीवनं करोति ?
(ख) विमलायाः पिता कं प्रतिज्ञातवान् ?
(ग) अत्र विमला के दर्शयति ?
(घ) विमलया कानि त्रोटितानि ?
उत्तरम्- (क) पणकेषु ।
(ख) यौतकराशिम्।
(ग) नेत्रे ।
(घ) चायभाजनानि ।
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) विगते श्रावणे कः कां नेतुम् आगत: ?
(ख) त्रिचतुरः पणकान् अर्जयित्वा कः आनयति ?
(ग) किं न लब्धम् इदानीम् अपि श्वसुरम् ?
(घ) अत्र का काम् आक्षिपति ?
उत्तरम् — (क) विगते श्रावणे विमलायाः पिता विमलां नेतुम् आगतः ।
(ख) त्रिचतुरः पणकान् अर्जयित्वा विमला आनयति ।
(ग) चायम् न लब्धम् इदानीम् अपि श्वसुरम् ।
(घ) अत्र विमला श्वश्रूम् आक्षिपति ।
3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-
(क) ‘नेतुम्’ अस्य पदस्य प्रकृति-प्रत्ययः लिखत ।
(ख) ‘पणकानर्जयित्वा आनयसीत्येतेन’ अत्र क्रियापदं किम् ?
(ग) ‘चायम् अपि इदानीम्’ इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम् ?
(घ) ‘का कथा चायपानस्य’ अत्र ‘कथा’ पदं कस्मिन् अर्थे प्रयुक्तम् ?
उत्तरम् – (क) नी + तुमुन्।
(ख) आनयसि ।
(ग) चायमपीदानीम् ।
(घ) वार्त्ता ।
(4) श्वसुरः – एतत्सर्वं कथितमनया ?
विमला – न मयैतत् कथितं पित: !
श्वश्रूः – पश्यत पश्यत अस्या दौरात्म्यं दुर्भगायाः । किं किं दुष्कृत्यमियं न करोति ? सम्मुखमेव प्रत्युत्तरमपि ददाति, जिह्वां चालयतीयं मत्समक्षम्।
श्वसुरः – (सक्रोधम्) अहो अस्या दुस्साहसम् !
( श्वसुरः श्वश्रूश्च तां न पश्यतः उभौ सक्रौर्यं सहिंस्रभावं विमलां निभालयन्तौ तामुपसर्पतः । सोमप्रभा प्रविश्य एतत् पश्यति । )
विमला – अम्ब! पितः ! न मया किमपि अपराद्धं सत्येन शपामि । किमिति यूयं मामेवं पश्यथं ? नहि, नहि, न मां ताडयितुमर्हन्ति भवन्त: …। (उभौ जिघांसया बलाद् विमलां गृहीत्वा प्रधर्षयत: )
सोमप्रभा – ( भयग्रस्तेनातिमन्दस्वरेण ) – अम्ब अम्ब …
( श्वसुरौ तामपश्यन्तौ विमलां कर्षतः)
प्रश्ना:- 1. एकपदेन उत्तरत-
(क) श्वश्रूः दुर्भगायाः विमलायाः किं द्रष्टुं कथयति ?
(ख) श्वसुरौ क्रौर्यं कः पश्यति?
(ग) विमला केन शपति ?
(घ) अत्र भयग्रस्ता का चित्रिता ?
उत्तरम् – (क) दौरात्म्यम्।
(ख) सोमप्रभा ।
(ग) सत्येन ।
(घ) सोमप्रभा ।
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) ‘जिह्वां चालयति’ इति कस्योपरि अयम् आक्षेप: ?
(ख) श्वश्रूः श्वसुरः च किं भावं विमलां निभालयन्तौ तामुपसर्पत: ?
(ग) विमलायाः श्वसुरादयः तां किं कर्तुम् अर्हन्ति ?
(घ) श्वसुरौ कया बलाद् विमलां प्रधर्षयत: ?
उत्तरम् — (क) ‘जिह्वां चालयति’ इति विमलायाः उपरि अयम् आक्षेपः ।
(ख) श्वश्रूः श्वसुरः च सक्रौर्यं सहिस्रभावं विमलां निभालयन्तौ तामुपसर्पतः ।
(ग) विमलायाः श्वसुरादयः तां ताडयितुम् अर्हन्ति ।
(घ) श्वसुरौ जिघांसया बलाद् विमलां प्रधर्षयतः ।
3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-
(क) ‘क्रोधेण सहितम्’ इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम् ?
(ख) ‘न मयैतत् कथितम्’ अत्र ‘मया’ शब्दः कस्मै प्रयुक्तः ?
(ग) ‘बलाद्’ इति पदे का विभक्तिः प्रयुक्ता ?
(घ) ‘सुकृत्यम्’ अस्य विलोमपदं नाट्यांशात् चित्वा लिखत |
उत्तरम् — (क) सक्रोधम् ।
(ख) विमलायै ।
(ग) पञ्चमी ।
(घ) दुष्कृत्यम्।
(5) श्वश्रूः – नयतु एनां महानसम् इयं तत्रैव ज्वलतु ।
(सोमप्रभा सहसा प्रधावन्ती निष्क्रामति । विमला आत्मत्राणाय सप्राणपणं प्रययते, नेपथ्ये गीयते) क्षणे क्षणे प्रवर्धते धनाय हिंस्रता खलै-
र्विलोप्यतेऽतिनिर्दयं च जन्तुभिर्मनुष्यता ।
विभाजितं जगद्विधा निहन्यते च घातकै—
रतीव दैन्यमागतास्ति साधुता मनुष्यता ।।
(विमलायास्तीव्रश्चीत्कारः । पुरुषनिरीक्षकेण सह सोमप्रभा प्रविशति )
पुरुषनिरीक्षकः – ( उपसृत्य) हे! किं क्रियते, किं प्रचलत्यत्र ? मुञ्चत एनाम् ।
श्वभूः – (सम्भ्रमम् ) महाभाग ! न किमप्यत्याहितम् । इयमस्माकं साध्वी स्नुषा रुग्णो वर्तते । एनामुपचरामः ।
निरीक्षकः – उपचारः क्रियते ! युवयोरुपचारमहं करिष्ये । सर्वमहं जानामि । ( सोमप्रभां निर्दिश्य ) सर्वं निवेदितमनया बालिकया।
( श्वश्रूः श्वसुरश्च विमलां मुञ्चतः)
प्रश्ना:- 1. एकपदेन उत्तरत-
(क) श्वश्रूः विमलां कुत्र नयतुं कथयति ?
(ख) क्षणे क्षणे किं प्रवर्धते ?
(ग) केन सह सोमप्रभा प्रविशति ?
(घ) अत्र रुग्णा का कथिता ?
उत्तरम्- (क) महानसम् ।
(ख) हिंस्रता।
(ग) पुरुषनिरीक्षकेण ।
(घ) विमला।
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत—
(क) श्वश्रूः किमर्थं विमलां महानसे नयतुम् इच्छति ?
(ख) आत्मत्राणाय का प्रयतते ?
(ग) जन्तुभिः का विलोप्यते ?
(घ) विमलायाः प्रताडनविषये श्वश्रूः निरीक्षकं प्रति किं कथयति ?
उत्तरम् — (क) श्वश्रूः ज्वलयितुं विमलां महानसे नयतुम् इच्छति ।
(ख) आत्मत्राणाय विमला प्रयतते ।
(ग) जन्तुभिः मनुष्यता विलोप्यते ।
(घ) विमलायाः प्रताडनविषये श्वश्रूः निरीक्षकं प्रति कथयति यत् इयम् अस्माकं साध्वी स्नुषा रुग्णा वर्तते ।
3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-
(क) रिक्तस्थानं पूरयत …….. उपचारमहं करिष्ये ।
(ख) ‘मुञ्चत एनाम्।’ अत्र ‘एनाम्’ इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम् ?
(ग) ‘तीव्रश्चीत्कार:’ अनयोः विशेष्यपदं किम् ?
(घ) ‘रक्षणाय’ अस्य पर्यायपदं नाट्यांशात् चित्वा लिखत ।
उत्तरम् – (क) युवयोः ।
(ख) विमलायै ।
(ग) चीत्कारः ।
(घ) त्राणाय ।
(6) विमला – (सकष्टं सोमप्रभामुपसृत्य ) – पुत्रि! त्वम् ….. कथं त्वमिह …
सोमप्रभा – अम्ब! मम उपानहौ त्रुटिते, पुस्तकमञ्जूषा च त्रुटि अध्यापिका निष्कासितवती । त्वया विद्यालयाद् गृहमेव मां कक्षाया: उक्तमासीत्— अविलम्बमागन्तव्यम्। अतोऽहं गृहमागता ( रोदिति)
विमला – मा रोदी: पुत्रि ! सर्वमुपपन्नं भविष्यति ।
सोमप्रभा – अत्रागत्य मया दृष्टं यत् पितामहः पितामही च त्वां मारयतः । अतोऽहं धावं धावं स्थानकं गता । पुरुषनिरीक्षकाय मया निवेदितम् …
विमला – (सवाष्पं सगद्गदं कण्ठमालिङ्ग्य सोमप्रभाम् ) त्वया. अहं त्राता । महतः सङ्कटात् त्वं मामुद्धृतवती। प्रियं कृतं त्वया मे।
प्रश्ना:- 1. एकपदेन उत्तरत-
(क) सकष्टं विमला कम् उपसृति ?
(ख) सोमप्रभा कं गता ?
(ग) सोमप्रभया मातुः वृत्तान्तं कस्मै निवेदितम् ?
(घ) विमला काम् आलिङ्गति:
उत्तरम् — (क) सोमप्रभाम् ।
(ख) स्थानकम् ।
(ग) पुरुषनिरीक्षकाय ।
(घ) सोमप्रभाम्।
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) अध्यापिका कथं सोमप्रभां निष्कासितवती ?
(ख) सोमप्रभामात्रा किं उक्तम् ?
(ग) गृहम् आगत्य सोमप्रभा किं पश्यति?
(घ) सोमप्रभा निरीक्षकाय किं कथं निवेदितम् ?
उत्तरम् — (क) सोमप्रभाया: उपानहौ त्रुटिते, पुस्तकमञ्जूषा च त्रुटितेति; अत: अध्यापिका मां निष्कासितवती ।
(ख) सोमप्रभामात्रा उक्तम् — विद्यालयाद् गृहमेव अविलम्बमागन्तव्यम्।
(ग) गृहम् आगत्य सोमप्रभा पश्यति यत् पितामहः पितामही च तस्या: मातरम् मारयतः ।
(घ) सोमप्रभा निरीक्षकाय स्वमातुः वृत्तान्तं तां त्रातुम् निवेदितम् ।
3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-
(क) किं पदद्वयं विपरीतम् अर्थं प्रकटयति ?
(ख) ‘ त्वया अहं त्राता’ अत्र ‘अहम्’ इति पदं कस्यै प्रयुक्तम् ?
(ग) ‘निष्कासितवती’ इति पदे कः प्रत्यय: ?
(घ) ‘कष्टेन सहितम्’ इति स्थाने किं समस्तपदमत्र प्रयुक्तम् ?
उत्तरम् — (क) पितामहः पितामही ।
(ख) विमलायै ।
(ग) क्तवतु ।
(घ) सकष्टम्।
पाठ्यपुस्तक के अभ्यास प्रश्नोत्तर
1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(क) अध्यापिका सोमप्रभां कक्षायाः किमर्थं निष्कासितवती?
उत्तरम् – अध्यापिका सोमप्रभां कक्षायाः निष्कासितवती यतः तस्याः उपानहौ त्रुटिते, पुस्तकमञ्जूषा च त्रुटितेति ।
(ख) विद्यालयात् गृहम् आगत्य सा (सोमप्रभा ) किम् अपश्यत् ?
उत्तरम्— विद्यालयात् गृहम् आगत्य सा अपश्यत् यत् तस्याः पितामहः पितामही च तस्याः मातरं मारयतः ।
(ग) विमलायाः श्वसुरः श्वश्रूः च तां कुत्र किमर्थञ्च नयतः ?
उत्तरम् – विमलायाः श्वसुरः श्वश्रूः च तां महानसं ज्वलयितुञ्च नयतः ।
(घ) सोमप्रभा कथम् मातुः त्राणम् अकरोत् ?
उत्तरम्— सोमप्रभा धावं धावं स्थानकं गता, तत्र पुरुषनिरीक्षकाय निवेदितम् समस्तवृत्तान्तम् । निरीक्षकः तस्या मातुः त्राणम् अकरोत्।
(ङ) सोमप्रभायाः आयुः कति वर्षाणि आसीत्?
उत्तरम् — सोमप्रभायाः आयुः पञ्चवर्षाणि आसीत्।
(च) अस्मिन् नाटके पुरुषनिरीक्षकस्य ( आरक्षिणः ) कर्त्तव्यपरायणता वर्णिताऽस्ति भ्रष्टाचारपरायणता वा?
उत्तरम् — अस्मिन् नाटके पुरुषनिरीक्षकस्य कर्त्तव्यपरायणता वर्णिताऽस्ति । ( आरक्षिणः)
2. निम्नलिखितस्य श्लोकस्य आशयं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत-
क्षणे- क्षणे प्रवर्धते धनाय हिंस्रताखलै—
र्विलोप्यतेऽतिनिर्दयं च जन्तुभिर्मनुष्यता ।
विभाजितं जगद्विधा निहन्यते च घातकै—
रतीव दैन्यमागतास्ति साधुता मनुष्यता ।।
उत्तरम् – श्लोक का हिन्दी में अनुवाद – इस संसार में दुष्ट लोग धन के लिए हिंसा का सहारा ले रहे हैं। वे थोड़े-से पैसों के लिए किसी के प्राण तक ले लेते हैं। इस प्रकार धन के लोभी समाज में हिंसा की भावना फैला रहे हैं। इन निर्दयी प्राणियों की दृष्टि में मनुष्यता का कोई महत्त्व नहीं है। ये क्रूर हत्यारे हिंसा में इस सीमा तक रमे हैं कि इनके कर्मों को देखकर लगता है कि ये मानो संसार से सज्जनता और मनुष्यता को अलग करके उनका अस्तित्व ही समाप्त करना चाहते हैं। इस हिंसक वातावरण के कारण समाज में दीनता व्याप्त हो गई है। दहेज का कारण भी लोगों में बढ़ती यही धन- लोलुपता, हिंसक प्रवृत्ति और अमानवीय दृष्टिकोण ही है।
3. (क) अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं पाठात् चित्वा लिखत-
(i) पुत्रवधू — …………
(ii) पदत्राणे — …………
(iii) पाकशालाम् — …………
(iv) शीघ्रं कुरु — …………
(v) पात्राणि — …………
(vi) हन्तुम् इच्छा — …………
उत्तरम् – पदम् पर्यायपदम्
(i) पुत्रवधू — स्नुषा
(ii) पदत्राणे — उपानहौ
(iii) पाकशालाम् — महानसम्
(iv) शीघ्रं कुरु — त्वरस्व
(v) पात्राणि — भाजनानि
(vi) हन्तुम् इच्छा — जिघांसया
(ख) सन्धि कुरुत –
(i) कलह + आडम्बरः — …………
(ii) प्रचलति + अत्र — …………
(iii) न + अस्ति — …………
(iv) प्रति + एव — …………
(v) मया + एतत् — …………
(vi) तंत्र + एव — …………
उत्तरम् — सन्धिच्छेदं सन्धिः
(i) कलह + आडम्बरः = कलहाडम्बर:
(ii) प्रचलति + अत्र = प्रचलत्यत्र
(iii) न + अस्ति = नास्ति
(iv) प्रति + एव = प्रत्येव
(v) मया + एतत् = मयैतत्
(vi) तंत्र + एव = तत्रैव
4. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) अद्य विद्यालयं न गमिष्यामि ।
उत्तरम् – अद्य कुत्र न गमिष्यामि ?
(ख) अनया दुष्टया चायभाजनानि त्रोटितानि ।
उत्तरम् — कया चायभाजनानि त्रोटितानि ?
(ग) विमला आत्मत्राणाय प्रयतते ।
उत्तरम् – विमला कस्मै प्रयतते ?
(घ) त्वं सङ्कटात् माम् उद्धृतवती।
उत्तरम् – त्वं कस्मात् माम् उद्धृतवती ।
(ङ) त्वम् वेतनस्य गर्वम् उद्वहसि ।
उत्तरम् — त्वं कस्य गर्वम् उद्वहसि ।
5. घटनाक्रमानुसारं वाक्यानि पुनः लिखत-
(क) सोमप्रभा आरक्षिणः समीपम् अगच्छत्।
(ख) विमलायाः श्वश्रूः ताम् कटुवचनैः आक्षिपति।
(ग) सा आत्मत्राणाय प्रयत्नं करोति ।
(घ) विमलायाः श्वश्रूः श्वसुरः च ताम् ज्वालयितुम् महानसं नयतः ।
(ङ) पुरुषनिरीक्षकः सोमप्रभया सह आगच्छति तस्याः त्राणं करोति ।
उत्तरम् — (ख) विमलायाः श्वश्रूः ताम् कटुवचनै: आक्षिपति ।
(घ) विमलायाः श्वश्रूः श्वसुरः च ताम् ज्वालयितुम् महानसं नयतः ।
(ग) सा आत्मत्राणाय प्रयत्नं करोति ।
(क) सोमप्रभा आरक्षिणः समीपम् अगच्छत्।
(ङ) पुरुषनिरीक्षकः सोमप्रभया सह आगच्छति तस्याः त्राणं करोति ।