UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 5 भू-उपयोग के बदलाव से पारिस्थितिक तन्त्र की क्षति
UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 5 भू-उपयोग के बदलाव से पारिस्थितिक तन्त्र की क्षति
UK Board Solutions for Class 9th Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 5 भू-उपयोग के बदलाव से पारिस्थितिक तन्त्र की क्षति
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – भारत में जनसंख्या वृद्धि पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- भारत में जनसंख्या वृद्धि
विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से चीन के बाद भारत का स्थान आता है। सन् 2001 ई० की जनगणना के आधार पर भारत की जनसंख्या 102.70 करोड़ हो गई है तथा विश्व के 2.4% क्षेत्रफल में विश्व की 16.7% जनसंख्या निवास करती है।
सन् 1921 के बाद भारत की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। सन् 1981 ई० की जनगणना के अनुसार 1971-81 ई० के बीच 13 करोड़ 70 लाख के लगभग जनसंख्या में वृद्धि हुई है। इसी प्रकार सन् 1991 में भारत की जनसंख्या 84.34 करोड़ थी जो बढ़कर 2001 ई० के शुरू में 102.70 करोड़ हो गई है। इस प्रकार सन् 1901 से लेकर सन् 2001 तक 100 वर्षों के अन्तराल में भारत की जनसंख्या में लगभग 5 गुना वृद्धि अंकित की गई है।
भारत की जनसंख्य 1 करोड़ 60 लाख की दर से प्रतिवर्ष बढ़ रहीं है । यह वृद्धि ऑस्ट्रेलिया की समस्त जनसंख्या के लगभग बराबर है, जबकि उसका क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल से ढाई गुना अधिक है।
भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण
भारत में जनसंख्या वृद्धि के दो कारण निम्नलिखित हैं-
(1) मृत्यु-दर में गिरावट – भारत में मृत्यु-दर निरन्तर घटती जा रही है। मृत्यु-दर में इस गिरावट का प्रमुख कारण आधुनिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार के कारण विभिन्न बीमारियों पर नियन्त्रण पा लेना है जिससे अनेक भयंकर एवं असाध्य रोगों का उपचार सम्भव हो सका है। इस प्रकार अनेक संक्रामक रोगों एवं महामारियों पर पर्याप्त नियन्त्रण पर लिया गया है। अतः स्पष्ट है कि भारत में विगत् कुछ दशकों से मृत्यु-दर में निरन्तरी कमी आई है, जबकि उसी अनुपात में जन्म दर में कमी नहीं हो पाई है। यही कारण है कि भारत में जनसंख्या वृद्धि तीव्र गति से होती जा रही है।
(2) परिवार नियोजन हेतु आवश्यक सुविधाओं की कमी – भारत की अधिकांश जनसंख्या अशिक्षित है। असंख्य दम्पती परिवार नियोजन सुविधाओं (गर्भ-निरोधक उपायों) एवं साधनों से अनभिज्ञ हैं। वे नवीन एवं कारगर उपायों से वंचित ही रहते हैं; क्योंकि इनका उन्हें ज्ञान ही नहीं है । अधिकांश गरीब एवं अशिक्षित व्यक्ति परिवार नियोजन कार्यक्रमों को नहीं अपना पाते, फलस्वरूप वे परिवार को सीमित नहीं रख पाते तथा जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि करते जा रहे हैं।
भारत में तीव्र गति से हुई जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित समस्याएँ प्रमुख रूप से उत्पन्न हुई हैं-
(1) तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण भारत में आज भी लगभग 26% लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं।
(2) बेरोजगारी की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है; क्योंकि जिस अनुपात में जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, उस अनुपात में आजीविका के साधन नहीं बढ़ पा रहे हैं।
(3) तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण पर्यावरण प्रदूषण की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।
(4) जनाधिक्य के कारण जन सेवाओं; जैसे— शिक्षा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, परिवहन एवं संचार तथा शुद्ध पेयजल आदि का अभाव हो गया है।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1– औद्योगीकरण से पारिस्थितिक तन्त्र किस प्रकार प्रभावित होता है? समझाइए ।
उत्तर – औद्योगीकरण का पारिस्थितिक तन्त्र पर प्रभाव
औद्योगीकरण से पर्यावरण तथा विभिन्न प्रकार के पारितन्त्रों को भारी क्षति पहुँची है। औद्योगिक क्षेत्रों में ऊर्जा के स्रोतों का सघन रूप से प्रयोग होता है। इससे औद्योगिक क्षेत्र तथा उनके समीपवर्ती वातावरण का जल, मिट्टी, वनस्पति एवं वायुमण्डल के विनाश एवं ह्रास का तीव्र अनुभव किया जा सकता है। आज मानव को औद्योगीकरण का पारिस्थितिक तन्त्र पर प्रभाव का सामना निम्नलिखित रूपों में करना पड़ता है-
(1) वायु प्रदूषण, (2) जल प्रदूषण, (3) मृदा प्रदूषण, (4) ध्वनि प्रदूषण, (5) वन विनाश, (6) अम्ल वर्षा, (7) नाभिकीय दुर्घटनाएँ तथा (8) रासायनिक दुर्घटनाएँ।
उपर्युक्त समस्याएँ एवं पर्यावरणीय संकट तीव्र एवं अव्यवस्थित औद्योगीकरण की देन हैं। इसका प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि पारिस्थितिक तन्त्र के अजैविक और जैविक संघटकों पर भी अत्यधिक मात्रा में पड़ा है। वर्तमान समय में पारितन्त्र विकृति, पारिस्थितिक असन्तुलन तथा पर्यावरण के मूल में यही कारण निहित है। औद्योगिक विकास यद्यपि आर्थिक विकास का आधार है तथा इसके परित्याग करने की कल्पना भी सम्भव नहीं, परन्तु पर्यावरण विनाश के मूल्य पर यह विकास करना भावी पीढ़ी के लिए विनाश को निमन्त्रण देना है। अतः वर्तमान समय में औद्योगीकरण और पर्यावरण संरक्षण के मध्य सन्तुलन बनाने के लिए सुरक्षित औद्योगिक विकास पर ही बल देना उपयुक्त है।
प्रश्न 2 – दावाग्नि ( वनाग्नि ) या दावानल पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- दावाग्नि (वनाग्नि)
जंगलों में अचानक लगने वाली आग एक प्राकृतिक आपद है। प्रचण्ड वायु के चलने से वृक्षों की शाखाएँ आपस में रगड़ती हैं तथा आग उत्पन्न होने पर सूखी पत्तियाँ जल जाती हैं जिससे धीरे-धीरे विस्तृत भाग जंगल जलकर राख हो जाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में 1955 से – 1964 ई० तक 10 लाख वर्ग किमी क्षेत्र से अधिक वन भूमि दावाग्नि की चपेट में आई है। मई-जून 1995 ई० की भीषण गर्मी में उत्तर प्रदेश (उत्तराखण्ड) गढ़वाल-कुमाऊँ क्षेत्र में लगने वाली आग से विस्तृत भू-भाग जंगल जलकर नष्ट हो गए तथा वन्य जीवों को सुरक्षित स्थान न मिलने से पर्याप्त क्षति हुई। इस दावाग्नि का प्रभाव गढ़वाल-कुमाऊँ क्षेत्र के 8 जिलों (नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चमोली, टिहरी, उत्तराकाशी, पौड़ी, देहरादून) के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर, मण्डी, ऊना, काँगड़ा, बिलासपुर व सोलन जिलों के जंगलों पर भी पड़ा। अनुमान लगाया गया है कि गढ़वाल-कुमाऊँ मण्डलों में 8,000 वर्ग किमी का क्षेत्र तथा हिमाचल प्रदेश में 4,000 हेक्टेयर क्षेत्र के जंगल दवाग्नि में जलकर नष्ट हो गए।
• अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – वनों का अतिक्रमण पर्यावरण के अनुकूल है अथवा विपरीत?
उत्तर – वनों का अतिक्रमण या विनाश पर्यावरण के अनुकूल कदापि नहीं। पर्यावरण से सम्बन्धित विभिन्न संकटों या समस्याओं का नियन्त्रण वनों के संरक्षण से ही सम्भव है।
प्रश्न 2 – पर्यटन हेतु सुविधाएँ पर्यावरण के लिए खतरा हैं अथवा नहीं?
उत्तर – पर्यटन या अन्य किसी भी प्रकार की ऐसी सुविधा का विस्तार जिसमें वन क्षेत्र को संकुचित किया जाता हो, पर्यावरण के लिए खतरा उत्पन्न करता है। किन्तु पारिस्थितिक पर्यटन (इको टूरिज्य : eco-tourism) अथवा अन्य किसी प्रकार के पर्यटन हेतु पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखकर सुविधाओं के विस्तार से पर्यावरण सम्बन्धी खतरे से बचा जा सकता है।
प्रश्न 3 – दवाग्नि ( वनाग्नि) के कारण बताइए।
उत्तर – वनों में आग लगने से पारिस्थितिक तन्त्र को भारी क्षति उठानी पड़ती है। आग लगने का मुख्य कारण प्राकृतिक रूप से वृक्षों का आपस में रगड़ना या मानव द्वारा वनों को जलाना है।
प्रश्न 4 – विकास व विनाश के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर- (1) औद्योगीकरण एवं नगरीयकरण द्वारा आर्थिक विकास करना।
(2) औद्योगीकरण के लिए वनों का विनाश करना जिससे वन संकुचित होकर अनेक प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न करते हैं।
प्रश्न 5 – बाँधों का निर्माण विकास के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तर – बाँधों के द्वारा जलविद्युत का उत्पादन किया जाता है। जलविद्युत द्वारा प्राप्त ऊर्जा कृषि एवं उद्योगों के लिए आवश्यक है जिसके द्वारा आर्थिक विकास को गति प्राप्त होती है। अतः बाँधों का निर्माण विकास के लिए आवश्यक है किन्तु इनका निर्माण पर्यावरण सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
