UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 9 प्राकृतिक संसाधन
UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 9 प्राकृतिक संसाधन
UK Board Solutions for Class 9th Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 9 प्राकृतिक संसाधन
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है? अथवा संसाधन किसे कहते हैं? संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर— संसाधन का अर्थ
कोई भी वह वस्तु या तत्त्व, जो मानव की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने में समर्थ या उपयोगी होता है अथवा उपयोगिता में सहायक होता है, ‘संसाधन’ कहलाता है। प्रकृति ने मानव को अनेक संसाधन; जैसे – मृदा, जल, वायु, सूर्यातप, प्राकृतिक वनस्पति, खनिज पदार्थ तथा ऊर्जा के संसाधन आदि; निःशुल्क उपहारों के रूप में प्रदान किए हैं।
संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता
विश्व में अनेक संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं; अत: उनका अधिकतम एवं सुरक्षित उपयोग करना संरक्षण कहलाता है। दूसरे शब्दों में, “प्राकृतिक संसाधनों का कम-से-कम मात्रा में भरपूर उपयोग ही संसाधन संरक्षण है। “
पिछले 200 वर्षों से विश्व में सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों का मुख्य कारण जनसंख्या में तीव्र वृद्धि का होना, उद्योगों एवं तकनीकी क्षेत्र में क्रान्ति का होना तथा जीवन के प्रति भौतिकवादी दृष्टिकोण का अपनाया जाना है। प्राकृतिक संसाधनों में मृदा, जल, वन, खनिज पदार्थ एवं ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण की सर्वाधिक आवश्यकता है। यही कारण है कि इन संसाधनों के संरक्षण पर अधिक बल दिया जाता है, क्योंकि अन्य संसाधनों में ये सर्वोपयोगी हैं। यदि ये संसाधन विनष्ट हो गए, तो आने वाली पीढ़ी के लिए घोर संकट उत्पन्न हो जाएगा। वनों से प्राप्त होने वाली लकड़ी से ईंधन, इमारती कार्यों के लिए लकड़ी तथा लुग्दी एवं कागज उद्योग की स्थापना की जाती है, परन्तु इसके साथ ही इनके अधिक शोषण से पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। वर्तमान समय में ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण की सर्वाधिक आवश्यकता है। कोयला एवं खनिज तेल ऊर्जा के ऐसे स्रोत हैं जिनकी संचित मात्रा सम्पूर्ण विश्व में निश्चित है। यदि इनका विवेकपूर्ण उपयोग न किया गया तो ये कभी भी समाप्त हो सकते हैं। अतः सभी प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जाना चाहिए।
संसाधन संरक्षण के लिए आवश्यक अवयव – संसाधन के संरक्षण के लिए निम्नलिखित कार्य किए जा सकते हैं-
- संसाधनों की संक्रियात्मक क्षमता में निरन्तर वृद्धि के उपाय किए जाने चाहिए। इसके लिए वैज्ञानिक अनुसन्धान पर बल देते रहना आवश्यक है।
- कुल संसाधन आधार (संचित भण्डार) का मूल्यांकन होता रहना चाहिए। सभी प्रकार के ज्ञात व सम्भाव्य संसाधनों का लेखा-जोखा, परिणाम, गुण व विशेषताएँ भी ज्ञात होना आवश्यक है।
- तत्कालीन आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कम आर्थिक मूल्य वाले संसाधनों को विनष्ट नहीं करना चाहिए। भविष्य में तकनीकी ज्ञान – वृद्धि तथा अनूकूल आर्थिक परिस्थितियों के कारण उनका अधिक लाभदायक उपयोग सम्भव होता है।
- जिन सेंसाधनों का भण्डार बढ़ाया जा सकता है, इसके लिए पूर्ण प्रयास किए जाने चाहिए, उदाहरणार्थ – खाद, उर्वरक, सिंचाई तथा फसल-चक्र का प्रयोग करके उपजाऊ भूमि से अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
- जो संसाधन सीमित मात्रा में हैं या समापनीय (exhaustible) हैं उनका पूर्ण वैज्ञानिक ढंग से तथा नितान्त अपेक्षित कार्यों में ही उपयोग होना चाहिए। उनका अन्धाधुन्ध या अनावश्यक उपयोग नहीं करना चाहिए।
- विज्ञान तथा तकनीकी ज्ञान के संवर्द्धन द्वारा अनुसन्धान के क्षेत्र खोजे जाने चाहिए, जो कभी न समाप्त होने वाले हों। उनके विकल्प त में लगातार प्रयास करके सीमित परिमाण वाले पदार्थों के ऐसे विकल्प संसाधनों के रूप में मिलने पर संसाधनों की अपर्याप्तता की समस्या का भी समाधान हो जाता है।
- संसाधनों को विनष्ट होने से बचाना चाहिए। इसके लिए सरकार, प्रशासन व जन सहयोग आवश्यक होता है। प्रचार माध्यमों, विज्ञापनों, समाचार-पत्रों, रेडियो- वार्त्ताओं, दूरदर्शन, फिल्म शो, चित्र – प्रदर्शनी आदि के द्वारा जन-चेतना पैदा करते रहना चाहिए।
- जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ संसाधनों के भण्डारों के लेखा-जोखा का नवीनीकरण करते रहना चाहिए।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – अपरम्परागत ऊर्जा किसे कहते हैं? इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- अपरम्परागत ऊर्जा स्रोत
उपयोग एवं उपलब्धता के आधार पर ऊर्जा को परम्परागत एवं गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत में विभक्त किया जाता है। ऊर्जा के वे संसाधन जो अभी पूरी तरह प्रचलन में नहीं हैं अपरम्परागत ऊर्जा स्रोतों के अन्तर्गत भूतापीय ऊर्जा आदि अपरम्परागत ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। इनमें पवन एवं रखे जाते हैं। पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा का विकास और प्रचलन भारत में धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
ऊर्जा के अपरम्परागत स्रोतों का महत्त्व
विश्व में ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों के भण्डार शीघ्रता से कम होते जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ऊर्जा की माँग में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। वनों का अधिकाधिक शोषण पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि कर रहा है। कृषि कार्यों, उद्योगों तथा परिवहन साधनों में ऊर्जा की माँग में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। अतः इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ऊर्जा के ऐसे स्रोतों को खोजने की आवश्यकता है, जो कभी समाप्त न हों तथा अनवरत रूप में उनसे ऊर्जा प्राप्त होती रहे। ऐसे ऊर्जा स्रोतों में सूर्यातप, पवन, सभी ऊर्जा के सतत स्रोत हैं। जब तक ब्रह्माण्ड में सूर्य एवं पृथ्वी विद्यमान ज्वार-भाटा और भू-तापीय ऊर्जा महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं, क्योंकि ये हैं, तब तक इन स्रोतों पर सरलता से निर्भर रहा जा सकता है। ऊर्जा के इन स्त्रोतों को विकसित करने के लिए नवीन वैज्ञानिक तकनीक की आवश्यकता है।
अतः ऊर्जा के इन स्रोतों को और अधिक व्यापक बनाने के लिए नवीन खोजों और अनुसन्धानों पर बल दिया जाना चाहिए, जिससे इनसे प्राप्त अधिकाधिक ऊर्जा मानवीय आवश्यकताओं में उपयोग की जा सके।
प्रश्न 2 – प्राकृतिक संसाधन कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर – वे संसाधन, जिनको प्रकृति ने मानव को निःशुल्क उपहार स्वरूप प्रदान किया है प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। वायु, जल, मृदा, वनस्पति, खनिज, सूर्य प्रकाश, तापमान, ऊर्जा स्रोत, जीव-जन्तु, गुरुत्वाकर्षण शक्ति आदि प्रमुख प्राकृतिक संसाधन हैं प्राकृतिक संसाधनों को नव्यकरणीयता के आधार पर समाप्त होने वाले व समाप्त न होने वाले दो प्रकारों में विभक्त किया जाता है—
(1) समाप्त न होने वाले संसाधन – ये वे संसाधन हैं जिन्हें देर तक प्रयोजनीय रखा जा सकता है। मानव विभिन्न उपायों द्वारा इन्हें परिवर्द्धित भी कर सकता है। कृषि, भूमि, वन, स्थलीय जल संसाधन, मछली व वन्य जीवन ऐसे ही संसाधन हैं। मनुष्य जैविक खादों व उर्वरकों का प्रयोग करके तथा फसल चक्र की विधियों को अपनाकर मिट्टी को लम्बे समय तक उपयोगी रख सकता है। इसी प्रकार, जंगलों को काटकर उनके स्थान पर नए पेड़ लगाकर वनों का पुन: रोपण किया जा सकता है।
(2) समाप्त होने वाले संसाधन – इन संसाधनों में वे पदार्थ सम्मिलित हैं, जिनकी मात्रा संचित है और ये उपयोग के साथ घटते रहते हैं इनके प्राकृतिक गुणों में भी वृद्धि नहीं की जा सकती है। समाप्त होने वाले संसाधनों को निम्नलिखित तीन उपवर्गों में रखा जा सकता है-
(i) संचित संसाधन, (ii) अपेक्षाकृत कम पुनर्शोषण वाले संसाधन, (iii) अपेक्षाकृत अधिक पुनर्शोषण वाले संसाधन ।
प्राकृतिक वातावरण के निर्माण तथा जैव-जगत की आवश्यकताओं की सम्पूर्ति में प्राकृतिक संसाधनों का व्यापक महत्त्व है। इनको ज्ञात, अज्ञात, उपलब्धता, अनुपलब्धता, उपयोगिता, अधिकार तथा संरक्षणात्मकता आदि विभिन्न आधारों पर भी विभाजित किया जाता है।
प्रश्न 3 – जल के विभिन्न उपयोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर— जल ही जीवन है (Water is Life) | पृथ्वी पर समस्त जीवधारियों का संचालन जल के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। उपग्रहों द्वारा लिए गए नीले-हरे छाया चित्रों से ज्ञात हुआ है कि पृथ्वी पर जल की पर्याप्त मात्रा है। अनुमान है कि पृथ्वी पर लगभग 1.4 बिलियन घन है मीटर जल है, परन्तु इस जलराशि का मात्र 3% ताजा जल ही मानव जाति की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवश्यक है। वास्तव में, पृथ्वी पर पाए जाने वाले ताजे जल का तीन-चौथाई भाग आर्कटिक व अण्टार्कटिक क्षेत्रों की हिमानियों में निक्षेपित है। विश्व के कुल ताजे जल संसाधन के मात्र 0-36% तक ही मानव की पहुँच है।
जल संसाधन का उपयोग
मनुष्य जल संसाधन का निम्नलिखित कार्यों में उपयोग करता है-
(1) जल का प्राथमिक उपयोग – घरेलू कार्यों में जल का उपयोग प्राथमिक उपयोग (primary use) कहलाता है। यह पीने, खाना पकाने, कपड़े धोने, नहाने व घरों की सफाई करने में उपयोग होता है। मात्र जीवित रहने के लिए प्रति व्यक्ति को प्रतिदिन 2 से 2.5 लीटर जल पर्याप्त है । परन्तु यदि मानव की सांस्कृतिक आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 300 लीटर जल की आवश्यकता होती है। अमेरिकी अनुसन्धानकर्त्ताओं ने अनुमान लगाया है कि विश्व में 250 मिलियन व्यक्ति जल की निम्न गुणवत्ता या अपर्याप्त जलापूर्ति के कारण बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं। अफ्रीका व एशिया में प्रतिदिन लगभग 25,000 व्यक्ति ट्रकोमा, मियादी बुखार, हैजा तथा आँतों की विभिन्न बीमारियों से मौत के शिकार होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा एकत्रित किए गए आँकड़ों से ज्ञात हुआ है कि इनमें लगभग 80% मौतें दूषित जल के सेवन से होती हैं।
(2) जल का गौण उपयोग — औद्योगिक क्रिया-कलापों में जल का प्रयोग उसका गौण उपयोग है। कल-कारखानों के संचालन में जल की विशेष भूमिका होती है। भाप से चलने वाली मशीनों में वाष्प – निर्माण के लिए, रासायनिक विलयनों को तैयार करने में, वस्त्रों की रँगाई, छपाई ‘धुलाई करने, वातानुकूलन (air-conditioning) तथा शीतलन प्रक्रिया (cooling) करने में जल का औद्योगिक उपयोग होता है। कुछ शीतल पेय पदार्थों— आइसक्रीम व बर्फ (ice ) — के निर्माण में जल को कच्चे माल के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। विभिन्न उद्योगों में जल के उपयोग की मात्रा भी भिन्न-भिन्न होती है।
उद्योगों के अतिरिक्त जल का उपयोग कृषि के अन्तर्गत सिंचाई के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त जल परिवहन, ऊर्जा उत्पादन, खनिज पदार्थों के निष्कर्षण और सार्वजनिक निर्माण कार्यों में भी प्रयोग होता है।
• अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – प्राकृतिक संसाधनों के जैविक वर्ग में कौन-से प्रमुख घटक सम्मिलित हैं?
उत्तर – प्राकृतिक संसाधनों में वे सभी संसाधन जिनमें जीवन होता है, जैविक घटक कहलाते हैं। इनमें — पेड़-पौधे, वनस्पति, पशु-पक्षी तथा सभी जलीय जीव सम्मिलित हैं।
प्रश्न 2 – प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर – संरक्षण का मूल उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का वर्तमान पीढ़ी के द्वारा भावी पीढ़ी के लिए किया गया त्याग है जो विवेकपूर्ण उपयोग के द्वारा पूरा होता है।
प्रश्न 3 – मृदा का निर्माण करने वाले कारक कौन-कौन हैं?
उत्तर – मृदा – निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है। इसका निर्माण अत्यन्त मन्द गति से सम्पन्न होता है। मृदा निर्माण करने वाले कारकों में— जलवायु, पैतृकं शैलों की प्रकृति, भूमि की बनावट, वनस्पति आवरण एवं समय की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
प्रश्न 4 – मृदा अपरदन किन कारकों के द्वारा होता है?
उत्तर- मृदा अपरदन एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है। इसे रेंगती हुई मृत्यु’ कहा जाता है । मृदा की ऊपरी परत के उर्वर तत्त्वों का नष्ट होना अपरदन कहलाता है। मृदा अपरदन के कारकों को दो वर्गों में रखा जाता है-
(i) भौतिक कारक एवं (ii) रासायनिक कारक ।
प्रश्न 5 – वन संसाधनों का क्या उपयोग है?
उत्तर – वन किसी भी राष्ट्र की अमूल्य निधि होते हैं। वनों का विभिन्न कार्यों में उपयोग किया जाता है; जैसे—इमारती लड़की, जलाऊ लकड़ी, उद्योगों के लिए कच्चा माल, वन्य जीवों का आवास, मिट्टी को उर्वरक तत्त्वों की प्राप्ति एवं अपरदन से रक्षा, जलवायु में सन्तुलन की स्थिति बनाए रखना आदि दृष्टियों से वन बहु-उपयोगी संसाधन हैं।
प्रश्न 6 – संसाधन संरक्षण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – विश्व में अनेक संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं; अत: उनका अधिकतम एवं सुरक्षित उपयोग करना ‘संसाधन संरक्षण’ कहलाता है। दूसरे शब्दों में, “प्राकृतिक संसाधनों का कम-से-कम मात्रा में अधिकतम उपयोग ही संसाधन संरक्षण कहलाता है।”