UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 10 संसाधनों के ह्रास के कारण : अत्यधिक उपयोग/विवेकहीन उपयोग, संसाधनों का अनुचित वितरण, प्रौद्योगिकी एवं औद्योगिक विकास, जनसंख्या
UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 10 संसाधनों के ह्रास के कारण : अत्यधिक उपयोग/विवेकहीन उपयोग, संसाधनों का अनुचित वितरण, प्रौद्योगिकी एवं औद्योगिक विकास, जनसंख्या
UK Board Solutions for Class 9th Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 10 संसाधनों के ह्रास के कारण : अत्यधिक उपयोग/विवेकहीन उपयोग, संसाधनों का अनुचित वितरण, प्रौद्योगिकी एवं औद्योगिक विकास, जनसंख्या
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – प्राकृतिक संसाधनों के महत्त्व तथा आवश्यकता पर प्रकाश डालिए। .
उत्तर – प्राकृतिक संख्याओं का महत्त्व एवं आवश्यकता महत्त्व – प्राकृतिक संसाधन प्रकृति द्वारा प्रदत्त वह सम्पदा है जिससे मानव और विभिन्न जीव-जन्तु अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। इनके महत्त्व को विभिन्न रूपों में निम्नलिखित प्रकार से वर्णित किया जा सकता है—
- इनका वितरण एवं उपयोग पृथ्वी पर असमान रूप से पाया जाता है। मानव इनका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों से करता है।
- संसाधनों के उपयोग और मात्रा के आधार पर उनका मूल्य निर्धारित होता है। इसलिए कुछ संसाधन दुर्लभ होने के कारण अधिक मूल्यवान होते हैं।
- बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण इनका दोहन अधिक मात्रा में होने लगा है। इसलिए कुछ संसाधन समाप्ति के निकट पहुँच गए हैं।
- प्रकृति द्वारा प्रदत्त कुछ संसाधन ऐसे होते हैं जिनको पुनः निर्मित नहीं किया जा सकता तथा उनके अभाव में जीवन समाप्त हो जाता है; जैसे— जल, हवा, मृदा, सूर्य प्रकाश आदि ऐसे ही संसाधन हैं।
- संसाधनों की अधिकता और अल्पता किसी देश की समृद्धि और विकास का मापदण्ड होती है।
- संसाधनों के अन्धाधुन्ध उपयोग ने पर्यावरण ह्रास की समस्या को उत्पन्न कर दिया है; अतः इनका संरक्षण अत्यन्त आवश्यक है।
आवश्यकता – प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता का उल्लेख निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
- संसाधन जीवन का आधार है-जल, भोजन, ईंधन तथा जीवन की अन्य आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति प्राकृतिक संसाधनों द्वारा ही होती है।
- विभिन्न प्रकार के व्यापार, उद्योग और कृषि व्यवसाय का आधार यही प्राकृतिक संसाधन हैं।
- विभिन्न पदार्थों की मूल्य वृद्धि और उपयोगिता में निखार लाने के लिए संसाधनों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। मनोरंजन और दैनिक जीवन की अनेक वस्तुओं की पूर्ति संसाधनों द्वारा ही होती है।
- शक्ति और खनिज के सभी स्रोत संसाधनों से ही प्राप्त होते हैं। जीवन के लिए आवास, सजावट व कलात्मक वस्तुएँ और जीवन के विभिन्न भौतिक सुखों की प्राप्ति संसाधनों पर ही निर्भर है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्राकृतिक संसाधन मनुष्य एवं अन्य जीव-जगत के लिए अत्यन्त उपयोगी और महत्त्वपूर्ण हैं; अतः यह हम पर निर्भर है कि हम इनका उपयोग कल्याणार्थ करें या विनाश के लिए करें। किन्तु यह सत्य है कि प्राकृतिक संसाधन जीवन को चलाने के आवश्यक तन्त्र के क्रियाशील अवयव हैं।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – प्राकृतिक संसाधनों के नष्ट होने के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- प्राकृतिक संसाधनों के नष्ट होने के कारण
प्राकृतिक संसाधनों का जब अनुचित ढंग से उपयोग किया जाता है तब वें नष्ट होने लगते हैं। मानव की ऐसी अनेक गतिविधियाँ या क्रिया-कलाप हैं जब प्राकृतिक संसाधन नष्ट होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
इस प्रकार के कुछ प्रमुख क्रिया-कलाप निम्नलिखित हैं-
(1) जल का अत्यधिक प्रयोग या अविवेकपूर्ण उपयोग।
(2) लकड़ी का ईंधन के रूप में या वैकल्पिक उपयोग ।
(3) मिट्टी संसाधन द्वारा बिना किसी योजना के कृषि उत्पादन एवं उसके अन्य उपयोग।
(4) बहते हुए पानी की उचित निकास व्यवस्था न होने के कारण उपजाऊ मिट्टी का कटाव ।
(5) अधिक कृषि उत्पादन के लिए अनुचित व अनियोजित ढंग से रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग से मृदा संसाधन का ह्रास।
(6) अनेक वन्य जीव-जन्तुओं का शिकारियों द्वारा शिकार ।
(7) भूमिगत जल भण्डारों का अनावश्यक रूप से अनुचित मात्रा में दोहन।
(8) वैकल्पिक संसाधनों का अनुचित ढंग से उपयोग ।
अत: जब-जब प्राकृतिक संसाधनों का उचित, उपयुक्त तथा बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग नहीं किया जाएगा तब-तब प्राकृतिक संसाधन नष्ट होते रहेंगे जो पर्यावरण सन्तुलन लिए खतरा माना जाता है।
प्रश्न 2 – संसाधनों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – प्रकृति-प्रदत्त निःशुल्क उपहार ; जैसे – मृदा, जल, वायु, सूर्य प्रकाश, पेड़-पौधे, खनिज पदार्थ, जंगली पशु आदि जिनसे मानव की अनेक आवश्यकताएँ पूर्ण होती हैं या उसके लिए उपयोगी होती हैं अथवा सहायक होती हैं, ‘संसाधन’ कहलाते हैं। प्रकृति ने मानव को अमूल्य प्राकृतिक उपहार प्रदान किए हैं, परन्तु इन्हें मानव के लिए उपयोगी बनाने में कुछ अदृश्य तत्त्वों का हाथ रहता है। स्वास्थ्य, इच्छा-शक्ति, तकनीकी ज्ञान एवं राष्ट्रीय संगठन आदि ऐसे अदृश्य तत्त्व हैं, जो महत्त्वपूर्ण संसाधन हैं। संसाधन का अर्थ केवल प्राकृतिक तत्त्व ही नहीं है, अपितु मानवीय या सांस्कृतिक तथ्य भी महत्त्वपूर्ण संसाधन होते हैं। इस प्रकार कोई भी वह वस्तु, जो मानव के लिए उपयोगी हो अथवा उपयोगिता में सहायक हो, संसाधन कहलाती है।
प्रश्न 3 – मानव प्राकृतिक उपहारों (संसाधनों ) को किस प्रकार उपयोगी बनाता है?
उत्तर– भूमि, मृदा, नदियाँ, पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तु पर्यावरण के विभिन्न अंग हैं, परन्तु मानव की आवश्यकताएँ सर्वत्र समान नहीं होती हैं, क्योंकि किसी देश या प्रदेश का भौतिक पर्यावरण वहाँ के निवासियों को प्रभावित करता है। किसी देश या प्रदेश में निवास करने वाली जनसंख्या के सांस्कृतिक तथा तकनीकी विकास के स्तर के अनुरूप उनमें अन्तर पाया जाता है; उदाहरण के लिए— उत्तरी अमेरिका के विशाल प्रेयरी मैदान का वहाँ के मूल निवासी रेड इण्डियनों के लिए शिकार के अतिरिक्त, संसाधन के रूप में कोई मूल्य नहीं था। इसी प्रकार लोहे और इस्पात के कारखानों की स्थापना से पूर्व भारत में छोटा नागपुर पठार के लौह-अयस्क के विशाल भण्डारों का संसाधन के रूप में कोई महत्त्व नहीं था, परन्तु जब मानव में कौशल तथा तकनीकी ज्ञान का विकास हुआ तो उसने इन प्राकृतिक उपहारों को उपयोगी बना दिया। इस प्रकार मानव अपने वैज्ञानिक तकनीकी ज्ञान के आधार पर भौतिक संसाधनों को उपयोगी बनाता है।
• अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग से क्या लाभ हैं?
उत्तर- संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग से पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक घटकों के मध्य परस्पर सन्तुलन बना रहता है जो पारिस्थितिक विकास के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 2 – औद्योगिक विकास से संसाधनों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर – औद्योगिक विकास के कारण कुछ संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया गया है, इसके कारण ऐसे संसाधनों के भण्डार समाप्त होने का खतरा उत्पन्न हो गया है, जबकि कुछ संसाधन औद्योगिक विकास से उत्पन्न प्रदूषण से ह्रास की ओर बढ़ रहे हैं।
प्रश्न 3 – संसाधनों के हास के कारण मानव जीवन पर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर – संसाधनों के ह्रास के कारण मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी नहीं होंगी तथा स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
प्रश्न 4- किसी राष्ट्र का भविष्य किन तथ्यों पर निर्भर करता है?
उत्तर – किसी राष्ट्र का भविष्य उसमें उपलब्ध प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों पर निर्भर करता है।