UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 11 संसाधनों के ह्रास का प्रभाव : प्रकृति में असन्तुलन, सामग्रियों का अभाव, अस्तित्व के लिए संघर्ष तथा आर्थिक विकास की धीमी गति
UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 11 संसाधनों के ह्रास का प्रभाव : प्रकृति में असन्तुलन, सामग्रियों का अभाव, अस्तित्व के लिए संघर्ष तथा आर्थिक विकास की धीमी गति
UK Board Solutions for Class 9th Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 11 संसाधनों के ह्रास का प्रभाव : प्रकृति में असन्तुलन, सामग्रियों का अभाव, अस्तित्व के लिए संघर्ष तथा आर्थिक विकास की धीमी गति
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है?
अथवा ‘काँच गृह’ (Glass House) प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – पृथ्वी को चारों ओर से घेरने वाला वायुमण्डल ‘ग्रीन हाउस’ की ही भाँति कार्य करता है। इसे ‘ग्लास हाउस’ भी कहा जा सकता है। शीतप्रधान देशों में सब्जियों और फूलों के पौधे ‘काँच गृहों’ में उगाए जाते हैं। ‘काँच गृह’ का यह प्रभाव होता है कि वह सूर्यातप को काँच के अन्दर तो आने देता है, परन्तु अन्दर की ऊष्मा ( पार्थिव विकिरण) को तत्काल बाहर नहीं निकलने देता। यह सूर्यातप को अपने में से गुजरने देता है तथा पार्थिव विकिरण को अवशोषित कर लेता है। इसे वायुमण्डल का ‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ (Green House Effect ) कहा जाता है। ठीक इसी प्रकार सूर्यातप वायुमण्डल की विभिन्न परतों से होकर प्रवेश तो कर जाता है, परन्तु वायुमण्डल में व्याप्त जलवाष्प, धूलकण और विभिन्न गैसें इसे सरलता से बाहर नहीं जाने देती हैं। अतः वायुमण्डल पृथ्वी को गर्म रखने के लिए एक कम्बल की भाँति कार्य करता है। वायुमण्डल के अभाव में सम्पूर्ण सूर्यातप पृथ्वी पर आ सकता था जिससे दिन के समय पृथ्वी का तापमान असहनीय हो जाता। इसके विपरीत रात्रि के समय सम्पूर्ण तापमान का पार्थिव विकिरण हो जाता तथा पृथ्वी का तापमान शून्य हो जाता जिससे रातें अत्यधिक ठण्डी हो जाती। फलस्वरूप भूतल पर जीवधारियों का जीवित रहना कठिन हो जाता। इन प्रभावों तथा वायुमण्डल के तापमान में बढ़ोत्तरी को ही ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं। अनुमान है कि यह सन् 2050 तक 4°C से 5°C तक बढ़ जाएगा।
‘ग्रीन हाउस’ प्रभाव को उत्पन्न करने वाली गैसें कार्बन डाइ-ऑक्साइड, मेथेन, क्लोरोफ्लुओरो कार्बन तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड ओजोन हैं। इन गैसों में कार्बन डाइ ऑक्साइड ग्रीन हाउस प्रभाव में मुख्य प्रभावकारी है। इसके प्रमुख स्रोत पेट्रोल तथा अन्य गैसीय तेलों का जलना, कोयला, कल-कारखानों से निकलने वाला धुआँ आदि हैं। अन्य प्रभावकारी गैसों में क्लोरोफ्लुओरो कार्बन नाम से जानी जाती है। यह गैसें सुगन्धहीन एवं अज्वलनशील नाटॉक्कि होती हैं। इन गैसों का उपयोग रेफ्रिजरेटरों तथा एयर कंडीशनरों में किया जाता है। इन गैसों के अत्यधिक प्रयोग के कारण ही वर्तमान समय में ग्रीन हाउस प्रभाव से वायुमण्डल की ओजोन पर्त नष्ट हो रही है। यह पर्त ही पृथ्वी के जीवों को सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बचाती है। वर्तमान समय में अनेक विषैली गैसों के स्रोतों को क्रमशः कम करने हेतु अनेक प्रयास किए जा रहे हैं, फिर भी अभी स्थिति नियन्त्रण में नहीं आई है।
प्रश्न 2 – पृथ्वी के तापमान बढ़ने के कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा वैश्विक उष्णता ( ग्लोबल वार्मिंग ) के लिए उत्तरदायी कारणों का वर्णन करते हुए इसके प्रभाव की समीक्षा कीजिए।
उत्तर- वैश्विक उष्णता (ग्लोबल वार्मिंग)
पृथ्वी तथा वायुमण्डल सूर्य से सतत रूप में ऊष्मा प्राप्त करते रहते हैं, तथापि उनका ऊष्मा भण्डार न तो सामान्य से अधिक हो पाता है न ही कम । इससे ज्ञात होता है कि पृथ्वी एवं वायुमण्डल के ऊष्मा भण्डार में सदैव सन्तुलन की स्थिति बनी रहती है, अर्थात् वे जितनी ऊष्मा सूर्य से प्राप्त करते हैं; उतनी ही मात्रा का बाद में विकिरण कर देते हैं। वर्तमान में आधुनिक प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रयोग से जीवाश्मीय ईंधनों के उप वृद्धि हुई है जिससे उत्सर्जित गैसें; जैसे—- कार्बन डाइ ऑक्साइड, मेथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, हाइड्रो-फ्लुओरो कार्बन, सल्फर हेक्सा फ्लुओराइड, डाइ – फ्लुओरो मेथिल, सल्फर पेण्टा – फ्लुओराइड की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ गई है। ये गैसें पृथ्वी से बाहर जाने वाले ऊष्मा विकिरण, जो दीर्घ तरंगीय अवरक्त किरणों (long wave infra red rays) के रूप में होता है, को अवशोषित कर लेती हैं; अतः इन गैसों को ऊष्मारोधी गैसें कहा जाता है; फलस्वरूप इनसे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो जाती है जिसे वैश्विक उष्णता या ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है। इस प्रकार समस्त पृथ्वी के वातावरण में कृत्रिम गैसीय रिसाव के कारण प्रतिवर्ष तापमान में हो रही वृद्धि को ग्लोबल वार्मिंग की संज्ञा दी गई है।
वैश्विक उष्णता के कारण
(1) कृत्रिम गैसों में वृद्धि – विश्वव्यापी ताप वृद्धि का प्रमुख कारण कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस है, जिसे ‘ग्रीन हाउस गैस’ कहा जाता है। मेथेन एवं नाइट्रस ऑक्साइड भी इसी प्रकार की गैसें हैं। ये सभी गैसें पर्यावरण की ऊष्मा सोख लेती हैं और ‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ उत्पन्न करती हैं। ‘ग्रीन हाउस गैस’ पृथ्वी पर आ रही सूर्य की किरणों के प्रति तो पारदर्शी होती हैं, परन्तु पृथ्वी के परावर्तित ‘इन्फ्रारेड रेडिएशन’ को अवशोषित कर लेती हैं। इस प्रकार पृथ्वी एवं वायुमण्डल के तापमान में वृद्धि कर देती हैं।
(2) वाहनों के संचालन से प्राप्त अवशिष्ट पदार्थ — वाहनों के संचालन से निःसृत गैसें एवं अवशिष्ट पदार्थ तथा अन्य स्थानों पर जलने वाला ईंधन कार्बन डाइ ऑक्साइड एवं नाइट्रस ऑक्साइड का मानवजनित सबसे प्रमुख स्रोत है जबकि कार्बन अवशिष्ट का, उत्क्रमण मेथेन का मुख्य स्रोत है। इन स्रोतों से वैश्विक उष्णता में वृद्धि होती है।
(3) क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन की वृद्धि – ग्लोबल वार्मिंग के लिए क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन भी सहायक है। इसका निर्माण अमेरिका में सन् 1930-31 में आरम्भ हुआ। ज्वलनशील रसायन के रूप में निकलना एवं अविषाक्त होने के कारण औद्योगिक रूप में इसकी पहचान आदर्श प्रशीतक के रूप में की जाती है। क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन का प्रयोग रेफ्रिजरेटर (फ्रिज), इलेक्ट्रॉनिक, प्लास्टिक, औषध उद्योग एवं एरोसोल आदि में होता है। ओजोन से रासायनिक क्रिया कर यह क्लोरीन के अणुओं को तोड़ती है तथा सूर्य की पराबैंगनी किरणों को धरातल तक भेजने में सक्षम होती है। अत्यधिक गर्म पराबैंगनी किरणें धरातल के तापमान में वृद्धि करने में . सहायक हुई हैं।
(4) औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव – औद्योगीकरण में तीव्रता लाने के लिए भारी मात्रा में ऊर्जा संसाधनों – कोयला, खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस का उपयोग किया गया जिससे कार्बन डाइ ऑक्साइड, क्लोरोफ्लुओरो कार्बन, मेथेन और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों के जमाव पर्यावरण में होते रहे। निर्वनीकरण के लिए वृक्षों के जलाने से भी इन गैसों में वृद्धि हुई जिससे वातावरण के तापमान में वृद्धि होती गई।
वैश्विक उष्णता का प्रभाव
अधिकांश मौसम-विज्ञानियों का मत है कि 19वीं शताब्दी से ही पृथ्वी का औसत तापमान 0.5° सेल्सियस बढ़ रहा है। यदि यही स्थिति बनी रही तो अगले 50-60 वर्षों के भीतर पृथ्वी का तापमान 4°C से 5°C तक बढ़ सकता है।
ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर 1990 का दशक 20वीं शताब्दी का सबसे गर्म दशक रहा तथा इसका दुष्परिणाम ‘एलनीनो’ के रूप में सामने आया है। यदि तापमान बढ़ने की यही गति रही तो पृथ्वी का पर्यावरण अस्त-व्यस्त हो जाएगा। वैश्विक उष्णता में ध्रुवीय हिमखण्ड पिघल जाएँगे जिससे विश्वभर में समुद्री जल स्तर में वृद्धि हो जाएगी। विश्व स्तर पर इसका दुष्परिणाम वनों, कृषि आदि के विनाश के रूप में झेलना पड़ेगा। • वास्तव में, वैश्विक उष्णता का प्रमुख कारण ‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ ही है।
विश्व मौसम संगठन (WMO) एवं संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा प्रायोजित तथा विश्व के 100 राष्ट्रों के वैज्ञानिकों के ‘इण्टरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’ (IPCC) की ताजा रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है कि आगामी 100 वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग की दर पहले लगाए गए अनुमान से दोगुनी हो सकती है। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि इस शताब्दी के अन्त तक विश्व के औसत तापमानों में 1.4° से 5.8° सेल्सियस तक की वृद्धि हो सकती है। इससे पूर्व सन् 1995 में प्रस्तुत IPCC की रिपोर्ट में 100 वर्षों में औसत तापमान में 3° सेल्सियस तक की वृद्धि का ही अनुमान लगाया गया था। IPCC की 2001 की ताजा रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक तापमान में उपर्युक्त वृद्धि कारण सन् 2100 तक समुद्र तल में 88.5 सेमी (34.5 इंच) तक की वृद्धि हो सकती है जिसके फलस्वरूप चीन के पर्ल नदी डेल्टा, मिस्र के नील नदी डेल्टा तथा बांग्लादेश सहित विश्व के निचले क्षेत्रों में करोड़ों लोगों के लिए खतरा पैदा हो सकता है। रिपोर्ट के अनुसार बीसवीं सदी में विश्व के औसत तापमान में होने वाली वृद्धि 0.6° सेल्सियस थी। इसके साथ ही विश्व में बाढ़ एवं सूखे में भी वृद्धि हुई। इसके साथ ही औद्योगीकरण के पश्चात् वायुमण्डल में कार्बन डाइ-ऑक्साइड के स्तर में 31% वृद्धि अंकित की गई है, परन्तु औद्योगिक प्रदूषण के कारण उत्पन्न होने वाले सल्फेट एरोसोल्स को चरणबद्ध रूप में हटाए जाने के कारण ग्लोबल वार्मिंग की दर बढ़ रही है।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – ग्रीन हाउस प्रभाव से संरक्षण के दो उपाय बताइए।
उत्तर – ग्रीन हाउस प्रभाव से संरक्षण के दो प्रमुख कारगर उपाय निम्नलिखित हैं-
(1 ) ‘ग्रीन हाउस’ प्रभाव को पैदा करने वाली गैसों- कार्बन डाइ-ऑक्साइड, मेथेन, क्लोरोफ्लुओरो कार्बन तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड ओजोन आदि के उपयोग पर नियन्त्रण किया जाए।
(2) ‘ग्रीन हाउस’ प्रभाव समस्या क्षेत्रीय या राष्ट्रीय स्तर की समस्या नहीं है। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है। अत: विकसित देशों को अत्याधुनिक तकनीक विकसित करके औद्योगिक एवं वाहनों द्वारा होने वाले वायुमण्डल के प्रदूषण को नियन्त्रित करने हेतु प्रयास किए जाने चाहिए। ग्रीन हाउस प्रभाव की समस्या के विस्तार में इन देशों का सर्वाधिक हाथ है। अत: स्वयं इस पर नियन्त्रण के लिए तकनीकी स्तर पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए जिसमें समस्त मानव समुदाय को सहयोग प्रदान करना चाहिए।
प्रश्न 2 – आवास की समस्या पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – वर्तमान बढ़ती हुए जनसंख्या के कारण मानव के लिए उपयुक्त आवास एक गम्भीर समस्या के रूप में विद्यमान है। भारत जिसमें 1 अरब से अधिक जनसंख्या है सभी के लिए आवास उपलब्ध हो जाए अत्यन्त दुरूह कार्य है। नेशनल बिल्डिंग ऑर्गेनाइजेशन (NBO ) के अनुसार देश में सन् 2002 तक 4 करोड़ आवासों की कमी थी। भारत में ग्रामों से नगरों की ओर ग्रामीण जनसंख्या के निरन्तर पलायन से नगरीयकरण की प्रवृत्ति भी तीव्र हुई है जिसके कारण नगरों में आवास समस्या ने और भी जटिल रूप धारण कर लिया है। देश के सभी महानगरों में आवास समस्या के कारण गन्दी बस्तियों का विस्तार भी तेजी से हो रहा है। मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरु, दिल्ली ही अब इस समस्या से प्रसित नहीं है बल्कि मेरठ, गाजियाबाद, आगरा, फरीदाबाद, कानपुर और देहरादून आदि नगरों में भी गन्दी बस्तियों का विस्तार तेजी से हो रहा है। आवास समस्या के कारण पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर भी भारी दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। आवास के लिए भूमि के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं, भूमि उपयोग प्रतिरूप में विशेष परिवर्तन के कारण पर्यावरण ह्रास उत्पन्न हो रहा है। इतना ही नहीं उपयुक्त आवास उपलब्ध न होने के कारण मनुष्य के सामाजिक-आर्थिक विकास में भी उत्तरोत्तर गिरावट उत्पन्न हो रही है; अतः आवास समस्या वर्तमान सदी की अत्यन्त गम्भीर समस्या के रूप में विस्तृत रूप धारण करती जा रही है।
प्रश्न 3 – खाद्यान्न की उपलब्धता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर— उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में खाद्यान्न यथेष्ट मात्रा में उपलब्ध हैं। गत 20 वर्षों (1980-81 से 2001-02 ) से प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 500 ग्राम से अधिक खाद्यान्न उपलब्ध है। जबकि एक सन्तुलित भोजन के रूप में प्रति व्यक्ति को प्रतिदिन 425 ग्राम खाद्यान्न (325 ग्राम अनाज तथा 100 ग्राम दाल) पर्याप्त होता है। किन्तु फिर भी देश के लाखों लोग कुपोषण के शिकार हैं, इनको भरपेट भोजन नहीं मिलता है। इसके पीछे मूल कारण वितरण अव्यवस्था है। इसके अतिरिक्त समुचित प्रबन्ध न होने के कारण देश में तमाम अनाज नष्ट हो जाता है। इसलिए भी कभी – कभी खाद्यान्न अभाव का कृत्रिम संकट उत्पन्न हो जाता है।
• अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार वनों का क्षेत्रफल बताइए ।
उत्तर – राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार किसी देश के समस्त भू-भाग एक तिहाई भू-भाग अर्थात् 33% भाग पर वन क्षेत्र होना चाहिए।
प्रश्न 2 – प्रति व्यक्ति के अनुसार सन्तुलित भोजन की मात्रा क्या है?
उत्तर – प्रति व्यक्ति के लिए सन्तुलित भोजन के रूप में 425 ग्राम खाद्यान्न (325 ग्राम अनाज 100 ग्राम दाल) प्रस्तावित है।
प्रश्न 3 – भारत की जनसंख्या प्रतिवर्ष कितनी बढ़ती है?
उत्तर – भारत में प्रतिवर्ष लगभग 2 करोड़ की दर से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है।
प्रश्न 4 – सामाजिक वानिकी कार्यक्रम किस उद्देश्य संचालित किया गया है?
उत्तर – सामाजिक वानिकी कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य वन संरक्षण तथा स्थानीय स्तर पर वनोत्पाद – ईंधन, चारा आदि की आवश्यकता को पूरा करना है।
प्रश्न 5 – जल-संसाधन ह्रास से उत्पन्न दो समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- (1) पेयजल का अभाव, (2) दूषित जल का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव ।