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UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 3 पारितन्त्र में जैविक व अजैविक संघटकों का अन्तर्सम्बन्ध

UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 3 पारितन्त्र में जैविक व अजैविक संघटकों का अन्तर्सम्बन्ध

UK Board Solutions for Class 9th Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 3 पारितन्त्र में जैविक व अजैविक संघटकों का अन्तर्सम्बन्ध

• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – जैविक संघटक का वर्णन कीजिए।
उत्तर— पारितन्त्र में जैविक संघटकों के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के जीवों एवं पादपों को सम्मिलित किया जाता है। पोषण सम्बन्धों के आधार पर इनको निम्नवर्णित तीन वर्गों में विभक्त किया जाता है-
  1. उत्पादक—जैविक संघटकों में उत्पादकों का विशेष महत्त्व है। उत्पादक अपना भोजन स्वयं बनाते हैं इसलिए इनको स्वपोषी भी कहा जाता है। सभी प्रकार के पादप उत्पादकों के अन्तर्गत आते हैं। ये सूर्य की उपस्थिति में अपने शरीर के हरे भागों में कार्बन डाइ ऑक्साइड और जल जैसी सामग्रियों का उपयोग कर प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा क्लोरोफिल नामक पदार्थ का निर्माण करते हैं। दूसरे शब्दों में, ये वनस्पतियाँ सूर्य के प्रकाश को ऊर्जा में परिवर्तित कर अपने पोषण तत्त्वों को प्राप्त करती रहती हैं। इसी कारण पारितन्त्र में उत्पादकों का जैवभार सर्वाधिक होता है और ये दूसरों के लिए भोजन का कार्य करते हैं।
  2. उपभोक्ता – पारितन्त्र के वे जीव जो अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों (उत्पादक एवं द्वितीयक व तृतीयक उपभोक्ता) पर निर्भर होते हैं उपभोक्ता कहलाते हैं। अन्य जीवों पर आश्रित होने के कारण उपभोक्ताओं को परपोषी या परभक्षी कहा जाता है। उपभोक्ता सामान्यत: तीन प्रकार के होते हैं— (i) शाकाहारी (प्राथमिक उपभोक्ता); जैसे— गाय, हाथी, घोड़ा, बकरी आदि । (ii) मांसाहारी ( द्वितीयक उपभोक्ता) ये शाकाहारी जीवों पर आश्रित होते हैं। मेढक, बाघ, भेड़िया आदि इसी श्रेणी के उपभोक्ता हैं। (iii) सर्वभक्षी (तृतीयक उपभोक्ता) ये शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों प्रकार के जीवों पर आश्रित होते हैं अर्थात् तृतीयक उपभोक्ता शाक, पत्ते, फल एवं मांस आदि सभी प्रकार का भोजन ग्रहण करते हैं। मगरमच्छ, लोमड़ी, मानव आदि इसी श्रेणी के प्राणी हैं।
  3. विघटक – पारितन्त्र में मौजूद सूक्ष्म जीव विघटक कहलाते हैं। मृत जीवों पर आश्रित होने के कारण इनको मृतपोषी भी कहते हैं। विभिन्न प्रकार के जीवाणु, कवक आदि इसके मुख्य उदाहरण हैं। जीवाणु प्रायः जानवरों के ऊतकों पर और कवक पौधों पर सक्रिय रहते हैं। विघटक पचाने वाले खमीरों का स्त्रावण करते हैं तथा जीवों के मृत ऊतकों को पचा लेते हैं। अपघटित पदार्थ को पुनः उत्पादकों द्वारा प्रयोग में लाया जाता है।
प्रश्न 2 – पारितन्त्र में जैविक व अजैविक संघटकों का अन्तर्सम्बन्ध है। स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर— पारितन्त्र के घटकों को अध्ययन सुविधा की दृष्टि से जैविक एवं अजैविक संघटकों में विभक्त किया जाता है, किन्तु पारस्परिक निर्भरता के कारण इन दोनों संघटकों को अलग नहीं किया जा सकता है। जैविक एवं अजैविक संघटकों की पारस्परिक निर्भरता एवं अन्तःक्रिया से ही पारितन्त्र की रचना होती है।
पारितन्त्र के अजैविक एवं जैविक संघटकों के अन्तर्सम्बन्धों को हम इस प्रकार जान सकते हैं कि हरे पेड़-पौधे क्लोरोफिल द्वारा सूर्य से ऊर्जा ग्रहण करके अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा बनाते हैं। इसी प्रकार, मांसाहारी जीव शाकाहारी जीवों से तथा शाकाहारी जीव पेड़-पौधों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। विघटनकर्त्ता मृत या सड़े-गले पौधों और जीवों से भोजन लेते हैं। यही विघटनकर्त्ता अन्तिम चरण में खनिज एवं अन्य अजैविक घटकों को प्रकृति को वापस कर देते हैं जिसके प्रयोग से पौधे पुनः अपना भोजन बनाना प्रारम्भ कर देते हैं। इस प्रकार पारितन्त्र का प्रत्येक घटक श्रृंखलाबद्ध रूप से एक-दूसरे पर निर्भर है और अन्तर्क्रिया द्वारा परस्पर एक- दूसरे को सहयोग प्रदान करके पारितन्त्र को सक्रियता प्रदान करता रहता है।
वास्तव में, अजैविक और जैविक संघटकों के अन्तर्सम्बन्धों की यह अत्यन्त सरल व्याख्या है, जबकि यह काफी जटिल होती है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि जैविक घटकों का सम्बन्ध अजैविक घटकों के साथ होता है। तभी जीवन का संचार होता है। केवल जैविक या अजैविक घटक अपने में पूर्ण नहीं होते। ये मिलकर ही जीवन को सजीवता प्रदान करने में और पारितन्त्र को गतिशील रखने में समर्थ होते हैं।
प्रश्न 3 – उपभोक्ताओं को कितने भागों में वर्णित किया गया है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर — पारितन्त्र के वे प्राणी जो अपने भोजन के लिए अन्य जीवों. पर निर्भर होते हैं उपभोक्ता कहलाते हैं। इनको अन्य जीवों पर आश्रित होने के कारण ही परपोषी कहा जाता है। उपभोक्ताओं को साधारणत: चार वर्गों में विभाजित किया जाता है-
(क) प्राथमिक उपभोक्ता, (ख) द्वितीयक उपभोक्ता, (ग) तृतीयक उपभोक्ता, (घ) विघटक या अपरदभोजी उपभोक्ता ।
(क) वे जीव, जो अपना भोजन केवल पेड़-पौधों, घास, तृणमूल ‘आदि से प्राप्त करते हैं, शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता कहलाते हैं; उदाहरण के लिए — हिरन एवं खरगोश शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता हैं।
(ख) जो जीव अन्य जीवों का भक्षण करते हैं, वे मांसाहारी या गौण उपभोक्ता कहलाते हैं; उदाहरण के लिए – शेर एवं चीता मांसाहारी उपभोक्ता हैं। ये मांसाहारी उपभोक्ता; शाकाहारी उपभोक्ता अथवा अन्य जीवों को मारकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं।
(ग) ऐसे जीव जो जन्तुओं और पेड़-पौधों दोनों से ही अपना भोजन प्राप्त करते हैं, सर्वाहारी या सर्वभक्षी उपभोक्ता कहलाते हैं। मनुष्य इसका उत्तम उदाहरण है, क्योंकि वह शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों ही प्रकार का भोजन करता है।
(घ) कुछ ऐसे जीव जो सड़े-गले पौधों एवं पदार्थों तथा मृत जीव जन्तुओं के ऊतकों का विघटन या अपचयन कर अपना भोजन प्राप्त करते हैं, अपघटक या अपरदभोजी उपभोक्ता कहलाते हैं। जीवाणु, कवक, दीमक, केंचुए और मैगट ऐसे ही विघटक जीव हैं।
इस प्रकार उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं का यह चक्र पूर्ण हो जाता है। अपघटक जीव, जैव पदार्थों को अजैव पदार्थों में परिणत कर देते हैं। पुन: इन अजैव पदार्थों को सौर ऊर्जा की सहायता से पेड़-पौधे अपना भोजन बना लेते हैं। इस प्रकार यह क्रम अबाध गति से चलता रहता है तथा यह चक्रीय प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – अजैविक संघटकों के अन्तर्गत कौन-से पदार्थ आते हैं?
उत्तर – अजैविक संघटकों के अन्तर्गत अकार्बनिक एवं कार्बनिक पदार्थों को सम्मिलित किया जाता है। जलवायु सम्बन्धी घटक भी अजैविक संघटकों के ही अन्तर्गत आते हैं।
अकार्बनिक पदार्थों को निर्जीव या भौतिक पदार्थ भी कहा जाता है। इनमें कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम आदि अधिक मात्रा में और लोहा, मैग्नीशियम, जस्ता, कोबाल्ट आदि अल्प मात्रा में होते हैं। इन्हें पोषक तत्त्व कहा जाता है। इन्हीं पदार्थों के संश्लेषण से जैविक तत्त्वों; जैसे—कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा आदि तरल तत्त्वों का सृजन होता है। इसीलिए इन अकार्बनिक तत्त्वों को जीवन का जनक माना जाता है।
कार्बनिक तत्त्वों को जीवों का शरीर निर्माणकर्त्ता तत्त्व कहा जाता है। इनका उद्भव जीवों के उत्सर्जन ( मल-मूत्र ) आदि के द्वारा होता है। ये पदार्थ यौगिक रूप में होते हैं। प्रोटीन, लिपिड, कार्बोहाइड्रेट तथा ह्यमस आदि कार्बनिक पदार्थ ही पारितन्त्र के अजैविक तत्त्वों को जैविक तत्त्वों से जोड़ते हैं।
प्रश्न 2 – उत्पादक तथा उपभोक्ता में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – उत्पादक तथा उपभोक्ता में अन्तर
क्र०सं० उत्पादक उपभोक्ता
1. उत्पादक वे जीव हैं, जो भौतिक पर्यावरण से अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। उपभोक्ता ऐसे जीव हैं, जो अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों पर आश्रित रहते हैं।
2. इन्हें स्वपोषी जीव कहते हैं। इन्हें परपोषी जीव कहा जाता है।
3. इसके अन्तर्गत हरे पौधे तथा जीवाणु आदि महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसके अन्तर्गत प्राणी, पशु-पक्षी और अपघटक आदि सम्मिलित होते हैं।
4. उत्पादक सौर ऊर्जा की सहायता से अजैव पदार्थों को जैव पदार्थों में परिणत कर देते हैं। उपभोक्ता शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही प्रकार के होते हैं।
5. सौर ऊर्जा की सहायता से जैव पदार्थों का संश्लेषण किया जाता है। उपभोक्ता पौधों और जीवों दोनों से ही अपने भोजन की प्राप्ति करते हैं।
प्रश्न 3 – प्रकाश संश्लेषण के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर – प्रकाश संश्लेषण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा हरे पौधे सूर्य की ऊर्जा की सहायता से अजैव पदार्थों को जैव पदार्थों में परिवर्तित कर देते हैं।
प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में पौधे वायुमण्डल से कार्बन डाइ-ऑक्साइड और मृदा से खनिज व जल लेकर, सूर्य की ऊर्जा द्वारा जैव पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। पेड़-पौधों की पत्तियों में व्याप्त पर्णहरित (Chlorophyll) नामक हरे वर्णक के द्वारा प्रकाश संश्लेषण सम्भव होता है। महासागरीय जल में पादप प्लवक प्राथमिक उत्पादक हैं क्योंकि वे सौर ऊर्जा का उपयोग कर अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं।
• अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – पारिस्थितिक तन्त्र की संरचना किन दो घटकों के सम्मिलन से हुई है?
उत्तर – पारिस्थितिक तन्त्र की संरचना जैविक एवं अजैविक घटकों द्वारा हुई है।
प्रश्न 2 – अकार्बनिक पदार्थ कौन से हैं?
उत्तर— अकार्बनिक पदार्थों के अन्तर्गत कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, लोहा, मैगनीशियम, जस्ता, कोबाल्ट आदि पदार्थों को सम्मिलित किया जाता है।
प्रश्न 3 – तृतीयक उपभोक्ता किन्हें कहते हैं?
उत्तर – कुछ प्राणी एक से अधिक श्रेणी के उपभोक्ता हो सकते हैं; जैसे-बिल्ली, मनुष्य आदि । ये मांसाहारी एवं शाकाहारी दोनों होते हैं। तृतीयक उपभोक्ता कहलाते हैं।
प्रश्न 4 – अपघटक से क्या तात्पर्य है?
उत्तर — अपघटक वे मृतोपजीवी जीवाणु या कवक आदि होते हैं जो पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं तथा कार्बनिक पदार्थों को सड़ा-गलाकर एवं विघटित करके सूक्ष्म एवं सरल कार्बनिक एवं अकार्बनिक यौगिकों में बदल देते हैं।

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