UK Board 9th Class Science – Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं?
UK Board 9th Class Science – Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं?
UK Board Solutions for Class 9th Science – विज्ञान – Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं?
अध्याय के अन्तर्गत दिए गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. अच्छे स्वास्थ्य की दो आवश्यक स्थितियाँ बताइए ।
उत्तर : शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक स्थितियाँ ठीक होनी चाहिए।
प्रश्न 2. रोगमुक्ति की कोई दो आवश्यक परिस्थितियाँ बताइए।
उत्तर : सन्तुलित पौष्टिक आहार एवं सामुदायिक स्वच्छता व्यक्तिगत स्वास्थ्य या रोगमुक्ति के लिए आवश्यक हैं।
प्रश्न 3. क्या उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर एक जैसे हैं अथवा भिन्न, क्यों?
उत्तर : अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक स्थितियाँ और रोग मुक्ति की परिस्थितियाँ एक-दूसरे के पर्याय ही हैं, इन्हें एक-दूसरे से पृथक् करके नहीं देखा जा सकता। अच्छे स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार की आवश्यकता होती है। इसके लिए कार्य करना पड़ेगा। कार्य के लिए सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ आवश्यक हैं। इसी के साथ सामाजिक स्वच्छता भी आवश्यक है। यदि पर्यावरण दूषित हो चारों ओर कूड़ा-करकट फैला हुआ हो तो पौष्टिक आहार उपलब्ध होने पर भी स्वास्थ्य खराब हो जाता है। इससे मानसिक पीड़ा और शारीरिक रोग हो जाते हैं। कुपोषण या अल्पपोषण होने पर अनेक अपूर्णता रोग हो जाते हैं। शरीर की प्रतिरोध क्षमता क्षीण हो जाने से संक्रामक रोगों का संक्रमण सुगमता से हो जाता है। अतः उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर मूलरूप से समान ही हैं, इनमें कोई मौलिक भिन्नता नहीं है।
प्रश्न 4. ऐसे तीन कारण लिखिए जिससे आप सोचते हैं कि आप बीमार हैं तथा चिकित्सक के पास जाना चाहते हैं। यदि इनमें से एक भी लक्षण हो तो क्या आप फिर भी चिकित्सक के पास जाना चाहेंगे? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर : बीमार होने के कारण — सिरदर्द, खाँसी, दस्त, घाव से पस (मवाद) का आना आदि लक्षणों से परिलक्षित होता है कि व्यक्ति अस्वस्थ है और उसे चिकित्सक के पास जाना चाहिए। ये लक्षण किसी अंग या अंगतन्त्र में खराबी का संकेत मात्र हैं। इन लक्षणों से यह तो पता चलता है कि शरीर अस्वस्थ है, लेकिन रोग की स्पष्ट पहचान नहीं हो पाती । चिकित्सक विभिन्न परीक्षणों द्वारा रोग-विशेष के बारे में निश्चित संकेत देते . हैं। इसलिए किसी भी लक्षण के परिलक्षित होने पर चिकित्सक से परामर्श अवश्य करना चाहिए।
प्रश्न 5. निम्नलिखित में से किसके लम्बे समय तक रहने के कारण आप समझते हैं कि आपके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा तथा क्यों?
⇒ यदि आप पीलिया रोग से ग्रस्त हैं।
⇒ यदि आपके शरीर पर जूँ (lice ) हैं।
⇒ यदि आप मुँहासों से ग्रस्त हैं।
उत्तर : पीलिया रोग से ग्रस्त होने के कारण स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है; क्योंकि पीलिया रोग वाइरसजनित है और इस रोग के विषाणु यकृत की जैव – क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। यकृत शरीर का एक अति महत्त्वपूर्ण अंग है। पीलिया रोग ( हिपेटाइटिस) से पीड़ित होने के कारण मृत्यु भी हो सकती है। इसके विपरीत जूँ तथा मुँहासों का प्रभाव शरीर पर अधिक समय तक नहीं रहता। इनका उपचार सुगमता से किया जा सकता है।
प्रश्न 6. जब आप बीमार होते हैं तो आपको सुपाच्य तथा पोषणयुक्त भोजन करने का परामर्श क्यों दिया जाता है?
उत्तर : जीवधारियों के शरीर में प्रतिरक्षा तन्त्र होता है। प्रतिरक्षा तन्त्र निरन्तर रोगाणुओं से लड़ता रहता है। हमारे शरीर में विशिष्ट कोशिकाएँ पाई जाती हैं जो रोगाणुओं का भक्षण करके या प्रतिरक्षी संश्लेषण द्वारा उन्हें नष्ट करती रहती हैं। इससे रोगाणुओं की संख्या नियन्त्रित रहती है और प्रायः रोग प्रदर्शित नहीं होता। रोग प्रतिरक्षा तन्त्र की असफलता को दर्शाता है। अन्य अंगतन्त्रों की भाँति प्रतिरक्षा तन्त्र को भी पर्याप्त पोषकयुक्त सुपाच्य भोजन की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त रोग की स्थिति में आहार नाल की कार्य-क्षमता भी प्रभावित होती है, इसलिए रोगी को सुपाच्य आहार दिया जाना चाहिए। पोषणयुक्त आहार से ही कोशिकाएँ अपने लिए आवश्यक प्रोटीन्स, कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसा प्राप्त करती हैं। “
प्रश्न 7. संक्रामक रोग फैलने की विभिन्न विधियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर : संक्रामक रोग सूक्ष्मजीवों के कारण होते हैं। सूक्ष्मजीव रोगी से स्वस्थ व्यक्तियों तक ब्लायु, जल, संक्रमित भोज्य पदार्थों, व्यक्तिगत एवं लैंगिक सम्पर्क और कीटों द्वारा फैलते हैं। इन्हें संचारी रोग भी कहते हैं।
- वायु द्वारा संक्रमण – खाँसी-जुकाम, निमोनिया, क्षय रोग आदि का संक्रमण वायु द्वारा होता है। खाँसते – छींकते समय रोगी के मुँह- नाक से छोटे-छोटे बूँदक (droplets) तेजी से बाहर निकलकर समीपवर्ती व्यक्ति के शरीर में श्वास के साथ प्रवेश कर जाते हैं। अधिक भीड़-भाड़ वाले इलाकों में वायु द्वारा फैलने वाले रोगों के संक्रमण की सम्भावना अधिक रहती है।
- जल द्वारा संक्रमण – रोगी के अपशिष्ट पेयजल में मिल जाने से जल संक्रमित हो जाता है। संक्रमित जल के उपयोग से रोगाणु स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पहुँचकर संख्या वृद्धि करके उसे रोगी बना देते हैं। हैजा (cholera), पोलियो (poliomyelitis), अतिसार (diarrhoea), पेचिश (dysentery) आदि के रोगाणु जल द्वारा फैलते हैं।
- लैंगिक सम्पर्क द्वारा- इन रोगों को लैंगिक सम्बन्धों द्वारा संचारित रोग (STD) कहते हैं। ये यौन सम्बन्धों द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पहुँचते हैं; जैसे— एड्स (AIDS); सिफलिस (syphilis), जननांगों की हर्पीज (genital herpes) आदि ।
- कीटों द्वारा — अनेक रोगों के रोगाणुओं को कीट (मक्खी, मच्छर, खटमल, पिस्सू) संचारित करते हैं; जैसे – मलेरिया, टाइफॉइड, फाइलेरिएसिस, (फीलपाँव), काला-अजार, निद्रारोग आदि।
- सामान्य सम्पर्क द्वारा – अनेक रोगों के रोगाणु प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पहुँचकर रोग उत्पन्न करते हैं; जैसे- रिंगवर्म (दाद, खाज, खुजली); कोढ़, पायरिया आदि।
- संक्रमित जन्तुओं द्वारा – अनेक रोग संक्रमित जन्तुओं से फैलते हैं; जैसे – संक्रमित कुत्ते, बिल्ली, बन्दर द्वारा रैबीज; चूहे, गिलहरी आदि द्वारा प्लेग (plague) आदि रोग फैलते हैं।

प्रश्न 8. संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए आपके विद्यालय में कौन-कौन सी सावधानियाँ आवश्यक हैं?
उत्तर : संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए निम्नलिखित सावधानियाँ आवश्यक हैं-
- विद्यालय परिसर में स्वच्छता अति आवश्यक है । मल-मूत्र तथा अन्य कार्बनिक पदार्थों के अपशिष्ट (organic waste) का वैज्ञानिक तरीके से निपटारा किया जाना चाहिए। खुले स्थानों पर मल-मूत्र त्यागने पर पूर्ण प्रतिबन्ध होना चाहिए।
- विद्यालय परिसर में सीवर व्यवस्था बहुत अच्छी होनी चाहिए।
- विद्यालय कैण्टीन में कटे हुए फल, बिना ढकी खाद्य सामग्री की बिक्री प्रतिबन्धित होनी चाहिए।
- विद्यार्थियों को ‘मिड डे मील’ की व्यवस्था होनी चाहिए।
- विद्यार्थियों को शारीरिक स्वच्छता और व्यक्तिगत सफाई के लिए प्रेरित करना चाहिए।
- विद्यार्थियों को सन्तुलित और पौष्टिक आहार की जानकारी दी जानी चाहिए जिससे उनकी प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे ।
- समय-समय पर प्राथमिक चिकित्सक या डॉक्टर को बुलाकर विद्यार्थियों का स्वास्थ्य परीक्षण कराते रहना चाहिए।
- विद्यार्थियों को संक्रामक रोगों, लैंगिक सम्पर्क द्वारा फैलने वाले रोगों की जानकारी दी जानी चाहिए।
- संक्रामक रोगों से पीड़ित विद्यार्थियों को उनके पूर्ण स्वस्थ होने तक विद्यालय में आने से रोक देना चाहिए जिससे अन्य विद्यार्थियों को संक्रामक रोगों से बचाया जा सके।
- समय-समय पर विद्यार्थियों को संक्रामक रोग प्रतिरोधी टीके लगवाने चाहिए।
प्रश्न 9. प्रतिरक्षीकरण करण क्या है?
उत्तर : प्रतिरक्षीकरण
शरीर पर वातावरण में उपस्थित वाइरस, जीवाणु, कवक, परजीवी प्रोटोजोआ तथा अन्य परजीवी जीवों का आक्रमण होता रहता है। ये वायु, … जल, खाद्य पदार्थ, सम्पर्क या अन्य साधनों से शरीर में पहुँचते रहते हैं। इनसे शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं। इन रोगाणुओं के संक्रमण से बचने के लिए शरीर में तीन स्तर की सुरक्षा पाई जाती है-
- प्रथम रक्षात्मक स्तर – त्वचा, आहार नाल, श्वास नाल आदि की श्लेष्म कला, विभिन्न ग्रन्थियों एवं कोशिकाओं से स्त्रावित रोगाणुनाशक रसायनों द्वारा रोगाणुओं को नष्ट या निष्क्रिय कर दिया जाता है।
- द्वितीय रक्षात्मक स्तर – जब रोगाणु प्रथम रक्षात्मक स्तर को पार करके शरीर में पहुँचते हैं तो सुरक्षा का द्वितीय स्तर इनको नष्ट या निष्क्रिय करने का कार्य करता है। इसके द्वारा शरीर को स्वाभाविक या अविशिष्ट सुरक्षा उपलब्ध होती है। श्वेत रुधिराणु रोगाणुओं का भक्षण करके उन्हें नष्ट कर देते है।
- तृतीय रक्षात्मक स्तर या विशिष्ट प्रतिरक्षा – प्रथम एवं द्वितीय रक्षात्मक स्तर की प्रतिरक्षा को पार करके रोगाणु संक्रमण की स्थिति स्थापित कर देते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार की लिम्फोसाइट्स रोगाणुओं को नष्ट करने के लिए प्रतिविष या एण्टीबॉडीज बनाकर रुधिर में मुक्त करती हैं। कुछ लिम्फोसाइट्स स्मृति कोशिकाओं’ (memory cells) के रूप में संचित हो जाती हैं। प्रतिविष या एण्टीबॉडीज रोगाणुओं को नष्ट कर देते हैं। एक बार संक्रामक रोग हो जाने पर दोबारा रोग की सम्भावना नहीं रहती; क्योंकि पुनः संक्रमण होने की स्थिति में स्मृति या स्मरण कोशिकाएँ तुरन्त एण्टीबॉडीज बनाकर रोगाणु को नष्ट कर देती हैं। इस व्यवस्था के अन्तर्गत प्रथम संक्रमण व अपेक्षा द्वितीय संक्रमण शीघ्र समाप्त हो जाता है। यही प्रक्रिया प्रतिरक्षीकरण है! टीकाकरण द्वारा कृत्रिम रूप से रोग के लिए प्रतिरक्षा स्थापित की जाती है।
प्रश्न 10. आपके पास में स्थित स्वास्थ्य केन्द्र में टीकाकरण के कौन-से कार्यक्रम उपलब्ध हैं? आपके क्षेत्र में कौन-कौन सी स्वास्थ्य सम्बन्धी मुख्य समस्या है?
उत्तर : स्वास्थ्य केन्द्रों पर सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रम के अन्तर्गत संक्रामक रोगों से सुरक्षा हेतु डिफ्थीरिया, काली खाँसी तथा टिटैनस हेतु ट्रिपल वैक्सीन DPT, चिकन पॉक्स, चेचक, क्षय रोग, टाइफॉइड, एण्टीरैबीज, हिपेटाइटिस आदि का टीकाकरण किया जाता है। टीकाकरण द्वारा संक्रामक रोगों का निवारण होता है।
हमारे समीपवर्ती क्षेत्र में मुख्य समस्या सड़कों और नालियों में रुका हुआ पानी और चारों तरफ फैला हुआ कूड़ा-करकट है। इसके फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के रोगाणुओं की पनपने के लिए उपयुक्त वातावरण उपलब्ध होता है। इनका संक्रमण वायु, जल, कीट आदि के माध्यम से होता है। आवारा पशुओं और कुत्तों के कारण यह समस्या और विकट हो जाती है। इन सबके फलस्वरूप पीलिया, टाइफॉइड, मलेरिया, हैजा, तपेदिक, रैबीज आदि रोग फैलते हैं।
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. पिछले एक वर्ष में आप कितनी बार बीमार हुए? बीमारी क्या थीं?
(a) इन बीमारियों को हटाने के लिए आप अपनी दिनचर्या में क्या परिवर्तन करेंगे?
(b) इन बीमारियों से बचने के लिए आप अपने पास-पड़ोस में क्या परिवर्तन करना चाहेंगे?
उत्तर : पिछले वर्ष एक बार मैं मलेरिया रोग से पीड़ित हुआ था।
(a) रोग से बचने के लिए सुपाच्य पौष्टिक आहार आवश्यक है जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हो सके। प्रतिरक्षा तन्त्र का सबल होना आवश्यक है जिससे शरीर की रोगाणुओं से सुरक्षा हो सके। मलेरिया रोग प्लाज्मोडियम प्रोटोजोआ परजीवी के कारण होता है। मादा ऐनोफेलीज मच्छर रोगाणुओं को रोगी स्वस्थ व्यक्तियों तक पहुँचाती है ।
(b) मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए। मच्छर प्रतिरोधी क्रीम या तरल का उपयोग करके मच्छरों से बचा जा सकता है। वयस्क मच्छरों को नष्ट करने के लिए फ्लिट, डी०डी०टी०, पाइरेथ्रम आदि रसायनों का प्रयोग किया जाना चाहिए । पास-पड़ोस में रुके हुए पानी की निकासी के उपाय, कूलर, पानी की टंकियों आदि की सफाई करके मच्छरों के प्रजनन स्थलों को नष्ट करना चाहिए। तालाब आदि में मच्छरों के अण्डों को नष्ट करने के लिए मिट्टी के तेल, पेरिसग्रीन रसायन, आदि का छिड़काव करना चाहिए। अनेक छोटी कीटभक्षी मछलियाँ भी इनके अण्डों, लार्वा आदि को बड़े चाव से खाती हैं; अत: तालाब आदि में कीटभक्षी मछलियों को पालना चाहिए।
प्रश्न 2. डॉक्टर / नर्स/स्वास्थ्य कर्मचारी अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा रोगियों के सम्पर्क में अधिक रहते हैं। पता कीजिए कि वे अपने-आपको बीमार होने से कैसे बचाते हैं?
उत्तर : डॉक्टर, नर्स, स्वास्थ्य कर्मचारी निरन्तर रोगियों के सम्पर्क में रहते हैं। रोगियों से बचने के लिए ये सभी व्यक्तिगत स्वच्छता का विशेष रहते हैं जिससे रोगाणुओं के प्रत्यक्ष सम्पर्क से बचे रहें। रोगी का परीक्षण ध्यान रखते हैं। रोगी का परीक्षण करते समय ये अपने नाक मुँह को ढके करने के पश्चात् ये अपने हाथों को एण्टीसेप्टिक रसायन या साबुन से धोते हैं। परोक्ष रूप में रोगाणुओं से बचने के लिए ये व्यक्तिगत स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं। ये सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार लेते हैं। इससे इनका प्रतिरक्षा तन्त्र सक्रिय बना रहता है। प्रतिरक्षा तन्त्र शरीर में पहुँचने वाले रोगाणुओं को नष्ट करता रहता है।
प्रश्न 3. अपने पास-पड़ोस में एक सर्वेक्षण कीजिए तथा पता लगाइए कि सामान्यतः कौन-सी तीन बीमारियाँ होती हैं? इन बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए अपने स्थानीय प्रशासन को ‘ तीन सुझाव दीजिए।
उत्तर : सामान्यतया मलेरिया, हैजा, पेचिश, अतिसार, टाइफॉइड आदि रोग होते हैं! ये रोग सामाजिक अस्वच्छता एवं प्रदूषित पर्यावरण के फलस्वरूप फैलते हैं। इन रोगों को फैलने से रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए-
- सड़कों के किनारे बनी नालियों की सफाई नियमित रूप से होती रहनी चाहिए जिससे उनमें पानी का बहाव बना रहे। मच्छर रुके हुए जल में अण्डे देते हैं। मच्छरों के कारण मलेरिया होता है।
- रुके हुए जलाशयों में मच्छरों के प्रजनन को रोकने के लिए मिट्टी का तेल, पेरिसग्रीन, ब्लैक ऑयल आदि का छिड़काव करना चाहिए।
- मच्छरों को नष्ट करने के लिए मच्छरों को नष्ट करने वाले रसायनों का छिड़काव (फॉगिंग) करना चाहिए।
- कटे हुए फलों, खुले हुए खाद्य पदार्थों की बिक्री प्रतिबन्धित कर देनी चाहिए।
- रोगों से बचाव हेतु सामाजिक स्वच्छता एवं टीकाकरण कार्यक्रम पर स्थानीय प्रशासन को विशेष ध्यान देना चाहिए ।
प्रश्न 4. एक बच्चा अपनी बीमारी के विषय में नहीं बता पा रहा है। हम कैसे पता करेंगे कि-
(a) बच्चा बीमार है?
(b) उसे कौन-सी बीमारी है?
उत्तर : (a) बीमार होने की स्थिति में बच्चे का व्यवहार सामान्य नहीं रहेगा, वह पीड़ा या रोग के कारण रोएगा, भोजन ग्रहण नहीं करेगा, उल्टी-दस्त, शरीर-ताप बढ़ना, खाँसना, छींकना आदि लक्षण प्रदर्शित करेगा। वह सुस्त दिखाई देगा।
(b) उल्टी-दस्त, भोजन ग्रहण न करना, बुखार आना, सुस्त और बेचैन रहना, परेशानी के कारण रोना आदि से प्रदर्शित होता है कि बच्चे को अतिसार ( diarrhoea) रोग हो गया है। यह रोग प्रदूषित खाद्य पदार्थ या जल के कारण फैलता है। यह रोग जीवाणु ( शिगेला – Shigella) तथा प्रोटोजोआ (एण्टअमीबा हिस्टोलाइटिका – Entamoeba histolytica) के कारण होता है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित में से किन परिस्थितियों में आप बीमार हो सकते हैं? क्यों?
(a) जब आपकी परीक्षा का समय है।
(b) जब आप बस तथा रेलगाड़ी में दो दिन तक यात्रा कर चुके हैं।
(c) जब आपका मित्र खसरा से पीड़ित है।
उत्तर : (c) जब आपका मित्र खसरा से पीड़ित है।
‘खसरा’ एक वाइरसजनित संक्रामक रोग है । अतः खसरा पीड़ित मित्र के सम्पर्क में रहने से वाइरस का संक्रमण हो जाता है और सम्पर्क में रहने वाला व्यक्ति रोगी हो जाता है।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. एड्स से क्या तात्पर्य है? इस रोग के कारक, कारक की संरचना, संक्रमण विधियाँ तथा सुरक्षा के उपाय लिखिए।
उत्तर : एड्स (AIDS)
एड्स का पूरा नाम उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता सिण्ड्रोम (Acquired Immuno Deficiency Syndrome) है। इस रोग का ज्ञान सन् 1981 में हुआ तथा इसके विषाणु की खोज सन् 1983 में हुई।
कारक – यह रोग HIV के कारण होता है। HIV का पूरा नाम ‘मानव प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु” (Human Immunodeficiency Virus) है। यह विषाणु मानव शरीर में पहुँचकर प्रतिरक्षा तन्त्र (immunity system) की प्रमुख कोशिकाओं लिम्फोसाइट्स T तथा TH को नष्ट करता है। शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है, इसके फलस्वरूप रोगी संक्रामक रोगों से पीड़ित होकर मर जाता है।
HIV की संरचना — यह लगभग 90-120 nm व्यास का गोलाकार विषाणु होता है। इसमें एकसूत्री RNA के दो समान टुकड़े होते हैं। यह चारों ओर से ग्लाइकोप्रोटीन्स के दोहरे आवरण से घिरा रहता है। इसकी सतह पर अनेक सवृन्त खूँटी सदृश घुण्डियाँ (knobs) निकली रहती हैं। संक्रमित व्यक्तियों में थकावट, ज्वर, सिरदर्द, खाँसी, कमजोरी, अतिसार आदि प्रारम्भिक लक्षण प्रदर्शित होते हैं। बाद में त्वचा में सफेद चकत्ते दिखाई देने लगते हैं। अन्त में व्यक्ति संक्रमित रोगों से प्रभावित होकर मर जाता है।

HIV का संक्रमण – HIV का संक्रमण संक्रमित व्यक्तियों के साथ सम्भोग, समलैंगिक सम्भोग, संदूषित (infected) रुधिर, मादक पदार्थों के आदी व्यक्तियों द्वारा साझा इन्जेक्शन सुई के प्रयोग से फैलता है।
एड्स से बचाव – HIV से बचाव के लिए एड्स रोग की जानकारी आवश्यक है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं—
(1) रुधिर आधान के समय यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि रुधिर HIV मुक्त हो।
(2) इन्जेक्शन की सुई का प्रयोग एक बार ही करना चाहिए।
(3) लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने में सावधानी बरतनी चाहिए। सम्भोग के समय कॉण्डोम का प्रयोग करना चाहिए ।
(4) जीनी प्रौद्योगिकी (gene technology) द्वारा रोग की रोकथाम के प्रयास किए जा रहे हैं। इसका टीका (vaccine) अभी तैयार नहीं हो सका है।
(5) जनसाधारण का ध्यान आकर्षित करने के लिए हर वर्ष एक दिसम्बर को विश्व एड्स दिवस (World AIDS Day) मनाया जाता है।
उपचार – एड्स की जाँच ELISA विधि द्वारा की जाती है। एड्स का अभी तक कोई प्रभावी उपचार नहीं है। इसलिए एड्स की जानकारी ही बचाव का उपाय है।
प्रश्न 2. अतिसार के कारण, लक्षण तथा रोकथाम व नियन्त्रण के उपाय लिखिए।
उत्तर : अतिसार के कारक एवं लक्षण
यह रोग ई० कोलाई (Escherichia coli), शिगेला, (Shigella) नामक जीवाणु तथा एण्टअमीबा हिस्टोलाइटिका (Entamoeba histolytica) नामक प्रोटोजोआ के कारण होता है। इस रोग में बार-बार दस्त तथा वमन के कारण निर्जलीकरण होता है। शरीर में पानी की बहुत कमी हो जाने से रोगी चिड़चिड़ा हो जाता है । आँखें गड्ढों में धँसी हुई प्रतीत होती हैं। मुँह सूखने लगता है। नाक सिकुड़ने लगती है। शरीर भार में कमी आ जाती है। नाड़ी की गति धीमी हो जाती है। श्वास गहरी और शरीर ताप बढ़ जाता है। मूत्र गाढ़ा पीला हो जाता है।
रोकथाम – (i) संक्रमण से बचाव के लिए खाद्य पदार्थों को ढककर रखना चाहिए।

(ii) कटे तथा रखे फल नहीं खाने चाहिए। फल तथा कच्ची सब्जियों का प्रयोग करने से पूर्व उन्हें अच्छी तरह धो लेना चाहिए।
(iii) व्यक्तिगत एवं सामुदायिक स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए।
(iv) अधिक समय तक रखा हुआ बासी भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन करने से पूर्व हाथों को साबुन से अच्छी तरह धो लेना चाहिए।
नियन्त्रण के उपाय – (i) रोगी को जीवनरक्षक घोल (ORS) या नमक- चीनी का घोल या इलेक्ट्रोलाइट युक्त जल देना चाहिए।
(ii) रोगी को पूर्ण विश्राम देना चाहिए।
(iii) चिकित्सक की सलाह के अनुसार प्रति पेचिश, प्रति सूक्ष्मजैविक औषधि (antibiotics) देनी चाहिए ।
(iv) दही के साथ ईसबगोल की भूसी लेने से आराम मिलता है।
(v) कच्चे केले का उबला हुआ गूदा, नमक, हल्दी तथा नींबू का प्रयोग अतिसार नियन्त्रण में सहायक होता है।
प्रश्न 3. मलेरिया के कारक, संवाहक, लक्षण तथा नियन्त्रण के उपायों का विवरण लिखिए।
उत्तर : मलेरिया रोग का कारक – यह रोग परजीवी प्रोटोजोआ प्लाज्मोडियम (Plasmodium) के कारण होता है।
मलेरिया संवाहक – यह रोग मादा ऐनोफेलीज मच्छर के काटने से रोगी से स्वस्थ व्यक्ति में पहुँचता है। इसका पता रोनाल्ड रॉस (1887) ने लगाया था।
मलेरिया रोग के लक्षण – इस रोग में सिरदर्द, वमन, पेशीय पीड़ा, तीव्र ज्वर होता है। मलेरिया ज्वर के निम्नलिखित तीन चरण होते हैं-
(क) शीत चरण – इसमें सर्दी तथा कँपकँपी महसूस होती है।
(ख) उष्ण चरण- इसमें तीव्र ज्वर होता है। श्वास दर तथा हृदय स्पन्दन की दर बढ़ जाती है।
(ग) स्वेदन चरण – अत्यधिक पसीना आने से शरीर का ताप सामान्य स्तर से कम हो जाता है।
मलेरिया प्रकोप के पश्चात् व्यक्ति कमजोर हो जाता है, रुधिर की कमी हो जाती है। यकृत तथा प्लीहा का आकार बढ़ जाता है।
नियन्त्रण के उपाय-मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी, जाली वाले दरवाजे लगाने चाहिए। मच्छर मारने वाले तथा भगाने वाले कीट रसायनों का प्रयोग करना चाहिए। मच्छरों के प्रजनन स्थलों को नष्ट करना चाहिए। रुके हुए जल पर मिट्टी का तेल, पेरिसग्रीन नामक रसायन छिड़कने से मच्छरों के अण्डे, लार्वा, प्यूपा आदि नष्ट हो जाते हैं। जल में कीटभक्षी मछलियाँ (जैसे— ट्राउट, मिनोस, गेम्बूसिया आदि) तथा बत्तख पालनी चाहिए। एलन पोर्टर एवं उनके साथियों द्वारा राष्ट्रीय संस्थान सिंगापुर में आनुवंशिक इन्जीनियरिंग द्वारा ऐसे जलीय जीवाणु का विकास किया गया है जिसे मच्छर के लार्वा खा जाते हैं, तब लार्वा की मृत्यु हो जाती है। यह एक प्रभावी जैव नियन्त्रण तकनीक सिद्ध हो सकती है।
उपचार – मलेरिया रोग में कुनैन नामक औषधि का उपयोग करना चाहिए।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. विटामिन ‘A’, ‘B5‘, ‘C’ तथा ‘D’ की हीनता से होने वाले रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर :
| विटामिन की कमी | रोग |
| विटामिन ‘A’ (रेटिनॉल) | रतौंधी (Night blindness) |
| विटामिन ‘B5‘ (निकोटिनिक अम्ल) | पेलाग्रा (Pellagra) |
| विटामिन ‘C’ (ऐस्कॉर्बिक अम्ल) | स्कर्वी (Scurvy) |
| विटामिन ‘D’ (कैल्सीफेरॉल) | सूखा रोग (Rickets) |
प्रश्न 2. संचरणीय तथा असंचरणीय रोगों में अन्तर कीजिए ।
उत्तर : संचरणीय तथा असंचरणीय रोग में अन्तर
| क्र०सं० | संचरणीय या संक्रामक रोग | असंचरणीय या असंक्रामक रोग |
| 1. | ये रोग हानिकारक सूक्ष्मजीवों (रोगाणुओं pathogens) द्वारा होते हैं। | ये रोग परजीवी जीवधारियों के कारण, पोषक तत्वों की हीनता के कारण या उपापचयी त्रुटियों के कारण होते हैं। |
| 2. | रोगाणु (विषाणु, जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ आदि ) वायु, जल, भोजन, कीट या शारीरिक सम्पर्क द्वारा रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में पहुँचते हैं। | ये रोग, रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में नहीं फैलते । |
| उदाहरण – एड्स, चेचक, फ्लू, क्षय रोग, हैजा, मलेरिया आदि। | उदाहरण – मैरैस्मस, क्वाशियोरकॉर, अरक्तता, घेंघा, स्कर्वी, सूखा रोग, मधुमेह आदि। |
प्रश्न 3. निम्नलिखित रोगों के कारक जीव का नाम लिखिए-
मलेरिया, रैबीज, इन्फ्लुएन्जा, क्षय रोग, टाइफॉइड
उत्तर : रोग तथा कारक जीव
| क्र०सं० | रोग | कारक जीव |
| 1. | मलेरिया (Malaria) | प्लाज्मोडियम (Plasmodium) प्रोटोजोआ परजीवी |
| 2. | रैबीज (Rabies) | रैबीज विषाणु (Rabies Virus) |
| 3. | इन्फ्लुएन्जा (Influenza) | मिक्सोवाइरस इन्फ्लुएन्जाई (Myxovirus influenziae) |
| 4. | क्षय रोग (Tuberculosis) | माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) |
| 5. | टाइफॉइड (Typhoid) | साल्मोनेला टाइफी ( Salmonella typhi) |
प्रश्न 4. हीनताजन्य रोग किसे कहते हैं?
उत्तर : हीनताजन्य रोग — सन्तुलित एवं पर्याप्त आहार उपलब्ध न होने के कारण कुछ विकार या रोग उत्पन्न हो जाते हैं, इन्हें हीनताजन्य या अपूर्णता रोग (deficiency diseases) कहते हैं; जैसे—बेरी-बेरी, स्कर्वी, सूखा रोग, घेंघा, अरक्तता आदि ।
प्रश्न 5. पाँच हीनताजन्य रोगों के नाम तथा कारण लिखिए।
उत्तर :
| क्र०सं० | हीनताजन्य रोग | कारण |
| 1. | मैरैस्मस (Marasmus) | प्रोटीन की कमी तथा अपर्याप्त भोजन के कारण। |
| 2. | क्वाशियोरकॉर ( Kwashiorkor) | प्रोटीन कुपोषण के कारण। |
| 3. | घेंघा ( Goiter) | आयोडीन की कमी के कारण। |
| 4. | रतौंधी (Night-blindness) | विटामिन ‘ए’ की कमी से। |
| 5. | सूखा रोग (Rickets) | विटामिन ‘डी’ की कमी से। |
प्रश्न 6. विषाणुजनित तीन रोगों के नाम लिखिए तथा किसी एक का पूर्ण विवरण भी लिखिए।
उत्तर : विषाणुजनित रोग
विषाणु परजीवी होते हैं। पोषक कोशिका में विषाणु की उपस्थिति के कारण रोग उत्पन्न होते हैं; जैसे— हिपेटाइटिस, रैबीज, इन्फ्लुएन्जा, एड्स, पोलियो, खसरा, चेचक आदि। ये रोग संक्रामक होते हैं।
हिपेटाइटिस – यह यकृत का रोग है। यकृत शरीर का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग है। इस रोग में यकृत में सूजन आ जाती है। प्रारम्भ में भूख न लगना, जी मिचलाना, वमन के साथ तीव्र ज्वर, सिरदर्द तथा जोड़ों में दर्द होता है। संक्रमण के 3.10 दिनों के पश्चात् मूत्र गहरे पीले रंग का तथा विष्ठा (मल) हल्के रंग की आने लगती है।
संक्रमण – हिपेटाइटिस विषाणु का संक्रमण रुधिरदान, इन्जेक्शन सुई का एक-से-अधिक व्यक्तियों द्वारा प्रयोग, गोदना, चुम्बन, एक ही ब्लेड का उपयोग करने आदि, संक्रमित जल या खाद्य पदार्थों से होता है।
रोकथाम – क्लोरीनीकृत या ओजोन उपचारित जल का प्रयोग करना चाहिए। रोगी के वस्त्र, बिछौने तथा बर्तन आदि को समय-समय पर निःसंक्रमित करते रहना चाहिए। हिपेटाइटिस-बी (एन्जीरीक्स – बी, शैन वैक बी) का टीका लगवाना चाहिए।
उपचार — चिकित्सक की सलाह पर इण्टरफेरॉन इन्जेक्शन से रोग का नियन्त्रण सम्भव है। रोगी को पर्याप्त विश्राम करना चाहिए। प्रोटीन तथा वसा का उपयोग सीमित मात्रा में करना चाहिए। ऊर्जायुक्त स्वच्छ ग्लूकोज, गन्ने के रस आदि का प्रयोग करना चाहिए।
प्रश्न 7. ‘रोग’ को परिभाषित कीजिए।
उत्तर : रोग-शारीरिक क्रियाओं के असन्तुलन, पोषक तत्वों की कमी, मनोवैज्ञानिक कारण, उपापचय त्रुटियों अथवा रोगाणुओं के संक्रमण से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस असहज स्थिति को रोग (Disease-Disease अर्थात् असहज) कहते हैं।
रोग का तात्पर्य अच्छे स्वास्थ्य में गतिरोध या रुकावट उत्पन्न होना है।
प्रश्न 8. फ्लू के कारक, लक्षण, रोकथाम एवं उपचार के उपाय लिखिए।
उत्तर : इन्फ्लुएन्जा या फ्लू – यह विषाणुजनित संक्रामक रोग है। यह ऑर्थोमिक्सो विषाणु या मिक्सोवाइरस इन्फ्लुएन्जाई के कारण होता है। विषाणु का संक्रमण वायु द्वारा एवं नाक से स्त्रावित तरल द्वारा होता है। यह रोग तीव्रता से फैलता है।
लक्षण – सिरदर्द, थकावट, पेशियों में दर्द, साधारण ज्वर, गर्मी-सर्दी का महसूस होना, खाँसी, बलगम, छींक आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। इन्फ्लुएन्जा विषाणु श्वास नाल में पहुँचकर उसे प्रभावित करता है । इन्फ्लुएन्जा के साथ निमोनिया होना खतरनाक हो सकता है।
रोकथाम – इन्फ्लुएन्जा के रोगी से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए। फ्लू का टीका लगवा लेना चाहिए।
उपचार — इन्फ्लुएन्जा के नियन्त्रण का कोई प्रभावी तरीका नहीं है।
प्रश्न 9. रैबीज के कारक, लक्षण तथा रोकथाम के उपाय लिखिए।
उत्तर : रैबीज – इस रोग का विषाणु संक्रमित कुत्ते, बिल्ली, बन्दर आदि की लार में पाया जाता है। संक्रमित जन्तु के काटने से विषाणु लार के माध्यम से मनुष्य के रुधिर में पहुँच जाता है।

लक्षण – रोग के लक्षण संक्रमण के 1.3 माह पश्चात् दिखाई देते हैं। इससे सिरदर्द, तीव्र ज्वर, गले एवं वक्ष की पेशियों के संकुचन से दर्द होता है। रोगी को तरल आहार ग्रहण करने में भी कठिनाई होती है। रोगी हो जाने से पक्षाघात (लकवा) हो जाता है। अन्त में रोगी की मृत्यु हो जाती जल से भय लगता है। मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु की कोशिकाओं के नष्ट है।
रोकथाम — कटे हुए स्थान को डेटॉल या कार्बोलिक साबुन तथा स्वच्छ जल से साफ करके एण्टीसेप्टिक औषधि लगानी चाहिए। पालतू कुत्तों को एण्टीरैबीज का टीका लगाकर प्रतिरक्षण कराना चाहिए। संक्रमित जन्तु को मार देना चाहिए।
उपचार – एण्टीरैबीज के पाँच टीके संक्रमित कुत्ते के काटने 0-3-7-14 तथा 30वें दिन लगाने चाहिए।
प्रश्न 10. हैजा के कारण, लक्षण तथा रोकथाम के उपाय लिखिए।
उत्तर : हैजा – यह रोग विब्रियो कॉलेरी (Vibrio cholerae) नामक जीवाणु से होता है। इसका संक्रमण मक्खी, संक्रमित जल एवं भोजन द्वारा होता है। यह रोग मेलों में तथा बाढ़ के बाद स्वच्छता की कमी के कारण महामारी के रूप में फैलता है।
लक्षण – हैजा में पतले दस्त, उल्टी व ऐंठन होती है। दस्त के कारण निर्जलीकरण होता है। पेशीय ऐंठन तथा भार में कमी होने लगती है। आँखें चेहरे में धँस जाती हैं।
रोकथाम – हैजे का टीका लगाकर प्रतिरक्षण करना चाहिए। टीके का प्रभाव छह मास तक रहता है। पानी उबालकर पीना चाहिए। व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

उपचार – जीवनरक्षक घोल ( सोडियम क्लोराइड – 3.5 ग्राम, सोडियम बाइकार्बोनेट – 2.5 ग्राम, पोटैशियम क्लोराइड – 1.5 ग्राम, ग्लूकोज – 20 ग्राम तथा चीनी – 40 ग्राम का एक लीटर जल में विलयन) का थोड़े-थोड़े अन्तराल पर प्रयोग करना चाहिए। रोगी को तुरन्त अस्पताल पहुँचाना चाहिए।
प्रश्न 11. विकासशील देशों में कुपोषण तथा अल्पपोषण के कारण लिखिए।
उत्तर : विकासशील देशों में कुपोषण
तथा अल्पपोषण के कारण
विक्रासशील देशों में कुपोषण के कारण अधिकांश बच्चों की जन्म से 4 वर्ष की आयु तक ही मृत्यु हो जाती है। कुपोषण के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(1) निर्धनता एवं अस्वच्छ वातावरण।
(2) जनसंख्या की अधिकता ।
(3) अन्न तथा अन्य भोज्य पदार्थों का कम उत्पादन ।
(4) शिक्षा का अभाव (सन्तुलित आहार का ज्ञान अधिकांश लोगों को न होना) ।
(5) प्राकृतिक आपदाएँ; जैसे – अकाल, सूखा अथवा बाद।
(6) शुद्ध, साफ, पौष्टिक एवं दोषमुक्त भोजन का ज्ञान न होना ।
(7) नवजात शिशुओं एवं बढ़ते बच्चों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं के बारे में अनभिज्ञता एवं उदासीनता ।
(8) भोजन पकाने की विधियों का उचित ज्ञान न होना।
प्रश्न 12. “ हरी पत्तेदार सब्जियाँ तथा फलों का उपयोग समुचित मात्रा में किया जाना चाहिए” कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : हरी पत्तेदार सब्जियाँ एवं फल विटामिन एवं खनिज तत्वों के प्रमुख स्रोत होते हैं। इनमें विटामिन्स एवं खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। अत: शरीर की सामान्य वृद्धि, विकास एवं स्वास्थ्य के लिए हरी सब्जियाँ एवं फल आवश्यक हैं। इसके अतिरिक्त हरी सब्जियों और फलों से हमें प्रचुर मात्रा में रूक्षांश प्राप्त होता है। रूक्षांश की प्रचुरता हमारे पाचन तन्त्र को नियमित बनाए रखती है। रूक्षांश एक प्रकार से आहारनाल की सफाई करते हैं।
हरी सब्जियों तथा फलों से हमें निम्नलिखित विटामिन्स एवं खनिज तत्व प्राप्त होते हैं—
विटामिन ‘A’, ‘B2‘, ‘B5’ तथा ‘E’ और लोहा, कैल्सियम, फॉस्फोरस आदि खनिज तत्व |
प्रश्न 13. विटामिन ‘सी’ स्वास्थ्य के लिए क्यों आवश्यक है? इसकी कमी से होने वाले रोग के लक्षण लिखिए।
उत्तर : विटामिन ‘C’ (ऐस्कॉर्बिक अम्ल) का प्रमुख कार्य ऊतकों में कोशिकाओं को परस्पर बाँधे रखने वाले आन्तरकोशिकीय पदार्थ के मैट्रिक्स, कोलैजन तन्तुओं के मैट्रिक्स, अस्थियों के मैट्रिक्स तथा दाँतों के डेण्टीन के निर्माण को सामान्य अवस्था में बनाए रखना है।
इसकी कमी से घाव भरने में अधिक समय लगता है। दाँतों और अस्थियों की वृद्धि रुक जाती है। रुधिर केशिकाओं की भित्ति कमजोर हो जाने से इनसे रुधिर रिसने लगता है। मसूड़े फूल जाते हैं, दाँत गिरने लगते हैं। इस रोग को स्कर्वी (Scurvy) रोग कहते हैं।
खट्टे ताजे फल; जैसे— नींबू, सन्तरा, आँवला विटामिन ‘सी’ के अच्छे स्रोत हैं।
प्रश्न 14. अल्पपोषण एवं कुपोषण के फलस्वरूप प्रदर्शित होने वाले सामान्य लक्षण लिखिए।
उत्तर : अल्पपोषण एवं कुपोषण के सामान्य लक्षण-
(1) व्यक्ति दुबला-पतला दिखाई देता है।
(2) मांसपेशियों के अभाव में त्वचा झुर्रीदार हो जाती है।
(3) चेहरा पीलापन प्रदर्शित करता है।
(4) नेत्र थके हुए एवं पलकें भारी-भारी दिखाई देती हैं।
(5) व्यक्ति कार्य करते समय जल्दी थक जाता है।
प्रश्न 15. चेचक रोग के कारक, लक्षण, रोकथाम तथा उपचार के उपाय लिखिए।
उत्तर : चेचक — यह विषाणुजनित रोग है। यह वैरिओला वाइरस के कारण होता है। इस रोग में शरीर पर छोटे-बड़े दाने हो जाते हैं। इन दानों में तरल भरा रहता है। कुछ समय पश्चात् दाने सूख जाते हैं। दानों की पपड़ी खुरण्ट के रूप में उखड़ जाती है। दानों के निशान त्वचा पर शेष रह हैं। इस रोग में प्रारम्भ में रोगी को बुखार आता है। दानों के पानी तथा खुरण्ट से विषाणु का संक्रमण होता है। विषाणु वायु द्वारा फैलते हैं।
रोकथाम – रोगी को अलग कमरे में रखना चाहिए। रोगी के वस्त्रों, बिस्तर एवं बर्तनों को पृथक् रखना चाहिए।
उपचार – नवजात शिशुओं को चेचक का टीका लगवाना चाहिए।
प्रश्न 16. रुधिर स्त्राव (हैमरेज) किस विटामिन की कमी से होता है? यह विटामिन किस प्रकार शरीर को प्रभावित करता है?
उत्तर : रुधिर स्त्राव – यह रोग विटामिन ‘के’ ( नैफ्थोक्विनोन ) की कमी से होता है। यह यकृत में प्रोथ्रॉम्बिन संश्लेषण के लिए आवश्यक होता है। प्रोथ्रॉम्बिन चोट लगने पर रुधिर का थक्का जमने के लिए आवश्यक होता है। हरी सब्जियाँ, सोयाबीन, यकृत, अण्डा आदि विटामिन ‘के’ के स्रोत हैं।
प्रश्न 17. यदि किसी को एक बार चेचक हो जाए तो उसे पुनः चेचक नहीं होती, क्यों?
उत्तर : यदि कोई व्यक्ति एक बार चेचक रोग से ग्रसित हो जाता है तो उसे पुनः यह रोग नहीं होता। चेचक का वाइरस ( रोगाणु) जब शरीर के प्रतिरक्षा तन्त्र पर पहली बार आक्रमण करता है तो प्रतिरक्षा तन्त्र रोगाणुओं को नष्ट करने के लिए प्रतिक्रिया करता है। इसके अन्तर्गत विशिष्ट प्रकार की लिम्फोसाइट कोशिकाएँ बनती हैं जो प्रतिरक्षी (एण्टीबॉडीज) बनाकर रोगाणुओं को नष्ट करती हैं। कुछ लिम्फोसाइट्स स्मरण कोशिकाओं के रूप में संचित कर ली जाती हैं। जब ये रोगाणु पुनः संक्रमण करते हैं तो स्मरण कोशिकाएँ (लिम्फोसाइट्स) पूरी शक्ति से उसे नष्ट कर देती हैं। इसके फलस्वरूप पहले संक्रमण की अपेक्षा दूसरा संक्रमण शीघ्र ही समाप्त हो जाता है। यह प्रतिरक्षाकरण का सिद्धान्त है।
प्रश्न 18. यदि आपका घर स्वच्छ है, किन्तु पास-पड़ोस स्वच्छ नहीं है तो आप स्वस्थ रह सकते हैं? यदि नहीं, तो क्यों?
उत्तर : हमारे स्वास्थ्य पर पर्यावरण का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। यदि हमारा पर्यावरण अस्वच्छ है तो हम निश्चित रूप से स्वच्छ नहीं रह सकते। यदि हमारा घर स्वच्छ है, किन्तु पास-पड़ोस के अस्वच्छ होने के कारण रोगाणु पनपते हैं तो रोगाणु वायु द्वारा, कीटों (मक्खी, मच्छर आदि) द्वारा संचारित होकर हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। अतः स्वस्थ रहने के लिए व्यक्तिगत एवं सामुदायिक स्वच्छता आवश्यक है ।
• अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. असंचरणीय रोग की परिभाषा लिखिए।
उत्तर : असंचरणीय (असंक्रामक ) रोग—जो रोग एक व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति में स्थानान्तरित नहीं होते, असंक्रामक या असंचरणीय रोग कहलाते हैं।
प्रश्न 2. आप जीवन रक्षक घोल (पुनर्जलीकरण पेय विलयन) किस प्रकार तैयार करेंगे?
उत्तर : जीवन रक्षक घोल – सोडियम क्लोराइड (नमक) 3.5 ग्राम, सोडियम बाइकार्बोनेट 2.5 ग्राम, पोटैशियम क्लोराइड 1.5 ग्राम, ग्लूकोज 20 ग्राम तथा चीनी 40 ग्राम का एक लीटर जल में विलयन जीवन रक्षक घोल कहलाता है।
प्रश्न 3. क्षय रोग के रोगाणु का नाम लिखिए।
उत्तर : माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) जीवाणु ।
प्रश्न 4. स्कर्वी रोग किस विटामिन की कमी से होता है? इस विटामिन का एक स्रोत लिखिए।
उत्तर : स्कर्वी रोग विटामिन ‘C’ (ऐस्कॉर्बिक अम्ल) की कमी से होता है। नींबू, आँवला, सन्तरा आदि इस विटामिन के स्रोत हैं।
प्रश्न 5. पेलाग्रा रोग किस विटामिन की कमी से होता है?
उत्तर : पेलाग्रा (pallagra) रोग विटामिन ‘B5‘ (निकोटिनिक अम्ल) की कमी से होता है।
प्रश्न 6. सर्दी-जुकाम में कौन-सा फल उपयोगी होता है?
उत्तर : सन्तरा, नींबू, आँवला आदि विटामिन ‘C’ युक्त फल सर्दी-जुकाम में उपयोगी हैं।
प्रश्न 7. ऐन्यैक्स के कारक का नाम लिखिए। यह रोग किस प्रकार फैलता है?
उत्तर : ऐन्यैक्स – यह बैसिलस ऐन्थ्रैसिस (Bacillus anthracis) जीवाणु से होता है।
संक्रमण – संक्रमित पालतू पशुओं का अधपका मांस खाने से यह रोग फैलता है।
प्रश्न 8. एक वर्ष तक के बच्चे को कौन-कौन से टीके लगाए जाते हैं?
उत्तर : (1) B.C.G. — क्षय रोग से बचाव के लिए।
(2) D.P.T. — डिफ्थीरिया, कुकुर खाँसी, टिटेनस से बचाव के लिए तीन टीके।
(3) खसरा — छोटी माता या खसरे से बचाव के लिए।
(4) पोलियो ड्रॉप्स — मुँह द्वारा, पोलियो से बचाव के लिए।
प्रश्न 9. वाहक किसे कहते हैं?
उत्तर : रोगाणुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाले जीवों को वाहक कहते हैं; जैसे— घरेलू मक्खी हैजा, क्षय रोग, पेचिश के रोगाणुओं की वाहक है।
प्रश्न 10. प्रतिजैविक (antibiotics) किसे कहते हैं?
उत्तर : सूक्ष्मजीवों के उपापचय उत्पाद जो अन्य सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को रोकते हैं, प्रतिजैविक कहलाते हैं।
प्रश्न 11. संक्रामक रोगों के उपचार के कौन-से उपाय किए जाते हैं?
उत्तर : रोग के प्रभाव को कम करना तथा रोग के कारण (रोगाणु) को नष्ट करना।
• एक शब्द या एक वाक्य वाले प्रश्न
प्रश्न 1. PEM का पूरा नाम क्या है?
उत्तर : PEM – प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण (Protein Energy Malnutrition)
प्रश्न 2. किस रोग के विरुद्ध BCG टीके का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर : क्षय रोग (तपेदिक) के विरुद्ध BCG टीके का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 3. BCG का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर : बैसीलस काल्मेट, ग्यूरिन (Bacillus Calmatte Guerin)!
प्रश्न 4. वसा में विलेय उस विटामिन का नाम लिखिए जिसे सौर विटामिन भी कहते हैं।
उत्तर : विटामिने ‘डी’ (कैल्सीफेरॉल))
प्रश्न 5. विटामिन C, B1, B5 तथा D में से कौन-से विटामिन वसा में विलेय हैं?
उत्तर : विटामिन ‘D’ वसा में विलेय है।
प्रश्न 6. अगर भोजन में विटामिन ‘C’ की कमी हो तो इससे कौन-सी बीमारी होगी?
उत्तर : विटामिन ‘C’ की कमी से स्कर्वी (scurvy) रोग होता है।
प्रश्न 7. संचरणीय रोग किस प्रकार फैलते हैं?
उत्तर : संचरणीय रोग वायु, जल, भोजन, शारीरिक सम्पर्क, रोगवाहक कीटों द्वारा फैलते हैं।
प्रश्न 8. प्रोटीन कुपोषण से होने वाले दो रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर : मैरैस्मस ( marasmus) तथा क्वाशियोरकॉर (kwashiorkor)!
प्रश्न 9. थाइरॉक्सिन हॉर्मोन के निर्माण के लिए किस तत्व की आवश्यकता होती है?
उत्तर : आयोडीन (iodine) की।
प्रश्न 10. वायु से फैलने वाले विषाणुजनित रोग का नाम लिखिए।
उत्तर : चेचक, खसरा, इन्फ्लुएन्जा वायु द्वारा फैलने वाले विषाणुजनित रोग हैं।
प्रश्न 11. विटामिन ‘A’ की कमी से कौन-सा रोग होता है?
उत्तर : विटामिन ‘A’ की कमी से रतौंधी (night-blindness) नामक रोग होता है।
प्रश्न 12. पॉलिश किया हुआ चावल खाने से कौन-सा रोग हो सकता है?
उत्तर : पॉलिश किया हुआ चावल खाने से बेरी-बेरी (beriberi) रोग हो सकता है।
प्रश्न 13. HIV शरीर की किन कोशिकाओं को नष्ट करता है?
उत्तर : T4 तथा TH लिम्फोसाइट्स कोशिकाओं को ।
प्रश्न 14. टीकाकरण के फलस्वरूप शरीर में विकसित प्रतिरक्षाकी खोज किसने की थी ?
उत्तर : ई० वी० बेहरिंग ने।
प्रश्न 15. पीलिया के रोगाणुओं ( हिपेटाइटिस वाइरस) का संक्रमण किस माध्यम से होता है?
उत्तर : जल के द्वारा ।
प्रश्न 16. ‘शोथ’ प्रक्रिया का शरीर पर सामान्यतया क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर : सूजन, दर्द, बुखार आदि ।
प्रश्न 17. लैंगिक सम्पर्क द्वारा फैलने वाले दो रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर : सिफलिस, सुजाक |
प्रश्न 18. फीलपाँव रोग किस परजीवी के द्वारा होता है?
उत्तर : वूचेरेरिया कृमि द्वारा |
प्रश्न 19. विषाणुजनित दो रोगों के नाम लिखिए ।
उत्तर : खाँसी जुकाम, डेंगू बुखार ।
प्रश्न 20. अधिक भीड़ वाले स्थान पर संक्रामक रोग किस माध्यम से जल्दी फैलते हैं?
उत्तर : वायु द्वारा ।
प्रश्न 21. अच्छे स्वास्थ्य के लिए किस-किस बात की आवश्यकता होती है?
उत्तर : अच्छी आर्थिक स्थिति, पौष्टिक आहार, सामुदायिक स्वच्छता।
प्रश्न 22. चेचक के टीके की खोज किसने की ?
उत्तर : एडवर्ड जेनर ने।
