UK 9th Science

UK Board 9th Class Science – Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

UK Board 9th Class Science – Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

UK Board Solutions for Class 9th Science – विज्ञान – Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

अध्याय के अन्तर्गत दिए गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. अनाज, दाल, फल तथा सब्जियों से हमें क्या प्राप्त होता है? 
उत्तर : अनाज से कार्बोहाइड्रेट्स, दालों से प्रोटीन्स, फल तथा सब्जियों से हमें मुख्य रूप से विटामिन्स, खनिज लवण से प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 2. जैविक तथा अजैविक कारक किस प्रकार फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं?
उत्तर : फसलों के उत्पादन पर जैविक तथा अजैविक कारकों का सीधा प्रभाव पड़ता है।
जैविक कारकों का प्रभाव – सूक्ष्मजीवों, कीट तथा निमेटोड्स के . कारण विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं। सूक्ष्मजीव खाद्यान्नों को खराब करते हैं। जैविक कारकों के कारण अनाज के भार में कमी, उनका बदरंग हो जाना, अनेक विषैले पदार्थों का बनना आदि लक्षण प्रदर्शित होते हैं। पक्षी, चूहे आदि भी फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं।
अजैविक कारकों का प्रभाव – सूखा, जलाक्रान्ति, क्षारकता, गर्मी, सर्दी, पाला आदि विभिन्न अजैविक कारक फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं। सूखा पड़ने से फसल जलाभाव के कारण नष्ट हो जाती है। जलाक्रान्ति के कारण फसलों की जड़ें गल जाती हैं और फसल नष्ट हो जाती है। क्षारकता, गर्मी, सर्दी, पाला आदि के कारण फसल उत्पादन कम हो जाता है। पाला पड़ने से आलू आदि की फसलें बुरी तरह प्रभावित होती हैं। अधिक ताप (गर्मी) या कम ताप (सर्दी) एन्जाइम्स की क्रियाशीलता को प्रभावित करके उत्पादन को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 3. फसल सुधार के लिए ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण क्या है ?
उत्तर : पशुओं के लिए चारा प्राप्त करने के लिए ऐसी फसलें अधिक उपयुक्त होती हैं जिनमें पौधे लम्बे तथा सघन शाखाओं वाले हों, अर्थात् यह फसल का ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण है। इसी प्रकार अनाज उत्पादन के लिए बौने पौधे उपयुक्त ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण है; क्योंकि इनको उगाने के . लिए कम पोषक तत्वों की आवश्यकता होगी। इनके गिरने की सम्भावनाएँ भी कम होंगी। फसलों के उगाने से लेकर कटाई तक कम समय लगना आदि उपयुक्त ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण कहलाते हैं। ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुणों. वाली किस्में अधिक उत्पादन प्राप्त करने में सहायक होती हैं।
प्रश्न 4. वृहत् पोषक क्या हैं और इन्हें वृहत् पोषक क्यों कहते हैं?
उत्तर : फसलों या पौधों को वृद्धि के लिए विभिन्न 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें कार्बन, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन के अतिरिक्त 6 पोषक तत्वों की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है, इस कारण इन्हें वृहत् पोषक तत्व कहते हैं। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम, सल्फर वृहत् पोषक तत्व हैं।
प्रश्न 5. पौधे अपना पोषक कैसे प्राप्त करते हैं?
उत्तर : पौधों को वृद्धि के लिए विभिन्न पोषक पदार्थ (तत्वों) की आवश्यकता होती है। इन्हें पौधे वायु, जल और मृदा से प्राप्त करते हैं। वायु से कार्बन तथा ऑक्सीजन, जल से ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन तथा मृदा से 13 पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। इनमें से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम तथा सल्फर अधिक मात्रा में उपयोग किए जाते हैं, इन्हें वृहत् पोषक तत्व कहते हैं। आयरन, मैंगनीज, बोरॉन, जिंक, कॉपर, मॉलिब्डेनम, क्लोरीन का उपयोग कम मात्रा में होने के कारण सूक्ष्म पोषक तत्व कहलाते हैं। वायु से कार्बन को पौधे कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में ग्रहण करते हैं। ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड सामान्य विसरण द्वारा ग्रहण की जाती हैं। मृदा से विभिन्न पोषक तत्व घुलनशील अवस्था में जड़ों द्वारा ग्रहण किए जाते हैं।
प्रश्न 6. मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलना कीजिए ।
उत्तर : मिट्टी की उर्वरता की दृष्टि से खाद तथा
उर्वरक के उपयोग की तुलना
क्र०सं० खाद उर्वरक
1. यह जन्तुओं के अपशिष्ट तथा पौधों के कचरे के अपघटन से प्राप्त होती है। ये कृत्रिम रूप से तैयार किए जाते हैं।
2. ये मुख्य रूप से कार्बनिक पदार्थ होते हैं। ये मुख्य रूप से अकार्बनिक पदार्थ होते हैं।
3. इनमें नाइट्रोजन, पोटैशियम, फॉस्फोरस आदि पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में नहीं होते । इनमें नाइट्रोजन, पोटैशियम, फॉस्फोरस आदि पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
4. खाद ‘पोषक तत्व’ विशेष नहीं होती है। उर्वरक पोषक तत्व विशेष होते हैं, इस कारण मृदा में वांछित पोषक तत्व मिलाए जा सकते हैं।
5. खाद में कार्बनिक पदार्थों की अधिकता मृदा के गठन को प्रभावित करती है। इसके कारण रेतीली मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ जाती है और चिकनी मिट्टी में वायु संचार अच्छा हो जाता है। उर्वरक मृदा के गठन को प्रभावित नहीं करते।
6. खाद के जल में अघुलनशील होने के कारण इनका अवशोषण धीरे-धीरे होता रहता है। उर्वरक जल में घुलनशील होते हैं। इस कारण फसल को तुरन्त उपलब्ध हो जाते हैं, लेकिन ये जल में घुलकर सुगमता से बह जाते हैं।
प्रश्न 7. निम्नलिखित में से कौन-सी परिस्थिति में सबसे अधिक लाभ होगा और क्यों?
(a) किसान उच्चकोटि के बीज का उपयोग करें, सिंचाई ना करें अथवा उर्वरक का उपयोग ना करें।
(b) किसान सामान्य बीजों का उपयोग करें, सिंचाई करें तथा उर्वरक का उपयोग करें।
(c) किसान अच्छी किस्म के बीज का प्रयोग करें, सिंचाई करें, उर्वरक का उपयोग करें तथा फसल सुरक्षा की विधियाँ अपनाएँ।
उत्तर : परिस्थिति (c) में सबसे अधिक लाभ होगा। अच्छी किस्म के बीजों का चयन परिस्थितियों के अनुसार, उनकी रोगों के प्र प्रतिरोधकता, उत्पादन की गुणवत्ता एवं उच्च उत्पादन क्षमता के अनुसार करने से उत्पादन अच्छा होता है। गुणवत्ता के कारण फसल का अच्छा मूल्य मिलता है। समय-समय पर सिंचाई करने और उर्वरकों का उपयोग करने से फसल अच्छी होती है।
फसल को कीटों, पीड़कों तथा खरपतवार से बचाने के लिए कीटनाशकों, पीड़कनाशकों, खरपतवारनाशकों का उपयोग करना चाहिए। उचित फसल चक्र अपनाकर भी खरपतवार और पीड़कों से फसल की सुरक्षा की जा सकती है।
प्रश्न 8. फसल की सुरक्षा के लिए निरोधक विधियाँ तथा जैव नियन्त्रण क्यों अच्छा समझा जाता है?
उत्तर : फसल की सुरक्षा के लिए आवश्यक निरोधक विधियाँ तथा जैव नियन्त्रण अति आवश्यक है। अनेक जैविक तथा अजैविक कारक फसल को हानि पहुँचाते हैं, इसके फलस्वरूप किसान को आर्थिक हानि होती है। खरपतवार कृषि-योग्य भूमि में उगने वाले अनावश्यक पौधे होते हैं। ये फसल साथ प्रतिस्पर्धा करके उत्पादन को प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त कीट एवं पीड़क विभिन्न प्रकार से फसल को खराब करके उत्पादन एवं गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। इन्हें विभिन्न प्रकार के कीटनाशक, पीड़कनाशक, खरपतवारनाशक रसायनों का प्रयोग करके नियन्त्रित करते हैं, लेकिन विभिन्न रसायनों के उपयोग के कारण पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है। ये रसायन खाद्य श्रृंखला के माध्यम से मनुष्य के शरीर में पहुँचकर उसे हानि पहुँचाते हैं।
कीट एवं पीड़कों को नियन्त्रित करने के लिए रोग-प्रतिरोधक प्रजातियों का उपयोग करना चाहिए । अन्तरा फसलीकरण तथा उचित फसल चक्र द्वारा खरपतवार एवं पीड़कों को नियन्त्रित किया जा सकता है। ग्रीष्मकाल में गहरी जुताई करके खेत को खुला छोड़ देने से भी खरपतवार और पीड़कों को नष्ट किया जा सकता है।
प्रश्न 9. भण्डारण की प्रक्रिया में कौन-से कारक अनाज की हानि के लिए उत्तरदायी हैं?
उत्तर : भण्डारण प्रक्रिया उपयुक्त न होने से अनेक अजैविक तथा जैविक कारक अनाज आदि को हानि पहुँचाते हैं। जैविक कारकों के अन्तर्गत कृन्तक, कीट, कवक तथा जीवाणु आदि आते हैं। अजैविक कारकों के अन्तर्गत भण्डारण के स्थान पर उपयुक्त नमी तथा ताप का अभाव मुख्य कारक है।
भण्डारण में उपर्युक्त कारकों के कारण उत्पाद की गुणवत्ता एवं अंकुरण क्षमता प्रभावित होती है। उत्पाद का वजन कम हो जाता है और वह बदरंग हो जाता है। इससे उत्पाद का बाजार भाव कम हो जाता है।
प्रश्न 10. पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः कौन-सी विधि का उपयोग किया जाता है और क्यों?
उत्तर : पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए संकरण तकनीक का उपयोग किया जाता है; जैसे- गाय की देशी नस्लों—- रेड सिंधी, साहीवाल की रोग-प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। विदेशी नस्ल की जर्सी, ब्राउन स्विस, होल्स्टीन-फ्रीजियन आदि का दुग्ध स्त्रावण काल अधिक होने के कारण ये अधिक दुग्ध उत्पादन करती हैं। देशी तथा विदेशी नस्लों के संकरण से उत्पन्न संकर प्रजातियों करन स्विस, करन फ्राइस, फ्राइसवाल में उपर्युक्त दोनों गुण पाए जाते हैं अर्थात् ये अधिक दुग्ध उत्पादन करती हैं और रोगों के प्रति प्रतिरोधी भी होती है।
प्रश्न 11. निम्नलिखित कथन की विवेचना कीजिए—
”यह रुचिकर है कि भारत में कुक्कुट, अल्प रेशे के खाद्य पदार्थों को उच्च पोषकता वाले पशु प्रोटीन आहार में परिवर्तित करने के लिए सबसे अधिक सक्षम है। अल्प रेशे के खाद्य पदार्थ मनुष्यों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।”
उत्तर : यह कथन सत्य है कि कुक्कुटों का उपयोग अल्प रेशे वाले खाद्य पदार्थों को उच्च पोषकता वाले पशु प्रोटीन आहार में बदलने के लिए किया जाता है। अल्प रेशे वाले आहार; जैसे- चावल, ज्वार, गेहूँ, जौ, बाजरा आदि के क्षतिग्रस्त उत्पाद एवं अन्य व्यर्थ खाद्य पदार्थ जो मनुष्य के लिए उपयुक्त नहीं होते, कुक्कुटों को आहार स्वरूप दिए जाते हैं। इन पदार्थों का उपयोग करके मुर्गे / मुर्गियाँ उच्च पोषकता वाले पशु प्रोटीन आहार का उत्पादन करती हैं। इनके अण्डे तथा मांस में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन्स, खनिज तथा विटामिन्स होते हैं। अण्डे देने वाली मुर्गियों को लेयर्स तथा मांस प्रदान करने वाले मुर्गों को बौलर कहते हैं।
प्रश्न 12. पशुपालन तथा कुंक्कुटपालन की प्रबन्धन प्रणाली में क्या समानता है?
उत्तर : अच्छे पशुपालन एवं कुक्कुटपालन के लिए उपयुक्त प्रबन्धन प्रणाली की आवश्यकता होती है। पशु आहार एवं कुक्कुट आहार की गुणवत्ता, उपयुक्त आवास स्थल, उचित ताप नियन्त्रण एवं स्वच्छ पर्यावरण अच्छे उत्पादन हेतु आवश्यक है। रोगों से बचाव के लिए रोगाणुओं एवं पीड़कों का नियन्त्रण, उनसे बचाव एवं उपचार आवश्यक है। संक्रामक रोगों से बचाव के लिए टीके लगवाना आवश्यक है। इन सावधानियों के फलस्वरूप मृत्युदर को कम किया जा सकता है और उत्पादों की गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है। नस्लों को सुधारने के लिए संकरण तकनीक का उपयोग करके संकर प्रजातियाँ विकसित की जाती हैं।
प्रश्न 13. बौलर तथा अण्डे देने वाली लेयर में क्या अन्तर है? इनके प्रबन्धन के अन्तर को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : बौलर – जिन कुक्कुटों का उपयोग मांस प्राप्त करने के लिए किया जाता है, उन्हें बौलर कहते हैं। जैसे—देशी एसील विदेशी नस्ल रोडे आईलैण्ड रेड तथा संकर नस्ल — IBL- 80,H H-260, B-77 आदि ।
लेयर— अण्डे देने वाली कुक्कुट को लेयर्स (Layers) कहते हैं। जैसे—लेगहॉर्न नस्लें। .
बौलर की आवास, पोषण, पर्यावरणीय आवश्यकताएँ लेयर्स से भिन्न होती हैं। ब्रौलर के आहार में प्रोटीन तथा वसा प्रचुर मात्रा में होनी चाहिए। इसके विपरीत अण्डे देने वाली कुक्कुट के आहार में विटामिन ”A’ तथा ‘K’ प्रचुर मात्रा में होने चाहिए।
प्रश्न 14. मछलियाँ कैसे प्राप्त करते हैं?
उत्तर : मछलियाँ प्राप्त करने के लिए दो युक्तियाँ प्रयोग की जाती हैं—
  1. मछली पकड़ना – मछलियों को उनके प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त करते हैं। इसके अन्तर्गत स्वच्छ जलीय स्रोतों; जैसे— जलाशय, नदियों, तालाब आदि से तथा समुद्रों से मछली पकड़ते हैं। मछली पकड़ने के लिए विविध प्रकार के जालों का प्रयोग किया जाता है। खुले समुद्र से मछली पकड़ने के लिए सैटेलाइट तथा प्रतिध्वनि गभीरतामापी की सहायता से मछलियों के बड़े-बड़े समूहों का पता लगाया जाता है।
  2. मछली संवर्धन – यह स्वच्छ जलीय तथा समुद्री पारितन्त्र में किया जाता है। स्वच्छ जल में कटला, रोहू, मृगल, कॉमन कार्प आदि का संवर्धन किया जाता है जबकि समुद्री जल में मुलेट, भेटकी, पर्लस्पॉट, झींगा, मस्सल तथा ऑएस्टर का संवर्धन किया जाता है। नदी मुख (एस्चुरी) तथा लैगून महत्त्वपूर्ण मछली भण्डार हैं।
प्रश्न 15. मिश्रित मछली संवर्धन के क्या लाभ हैं?
उत्तर : मिश्रित मछली संवर्धन के अन्तर्गत एक ही तालाब में 5-6 . प्रकार की मछलियों का संवर्धन किया जा सकता है। ये मछलियाँ जल के विभिन्न स्तरों से भोजम प्राप्त करती हैं। अतः इनमें प्रतिस्पर्धा नहीं होती; जैसे कटला मछली जल की ऊपरी सतह से भोजन ग्रहण करती है। रोहू मछली तालाब के मध्य क्षेत्र से अपना भोजन लेती है।
मृगल, कॉमन कार्प तालाब की तली से अपना भोजन प्राप्त करती हैं। इस प्रकार तालाब के हर क्षेत्र में स्थित आहार का उचित प्रयोग हो जाता है।
प्रश्न 16. मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त मधुमक्खी में कौन-से ऐच्छिक गुण होने चाहिए? 
उत्तर : मधुमक्खी में मधु उत्पादन क्षमता अधिक होनी चाहिए; जैसे – इटली मक्खी (ऐपिस मेलीफेरा)। ये डंक कम मारती हैं। इनकी प्रजनन दर अधिक होती है। ये अपने निर्धारित छत्ते में अधिक समय तक रहती हैं।
प्रश्न 17. चरागाहृ क्या हैं और ये मधु उत्पादन से कैसे सम्बन्धित हैं?
उत्तर : मधुमक्खियाँ जिन स्थानों से मधु एकत्र करती हैं, उसे मधुमक्खी का चरागाह कहते हैं। मधुमक्खी पुष्पों से मकरन्द तथा पराग एकत्र करती हैं। चरागाह के पुष्पों की किस्में शहद के स्वाद को प्रभावित करती हैं।
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. फसल उत्पादन की एक विधि का वर्णन कीजिए जिससे अधिक पैदावार प्राप्त हो सके।
उत्तर : अधिक उत्पादन हेतु मिश्रित फसल या अन्तराफसलीकरण विधि का प्रयोग किया जाता है।
  1. मिश्रित फसल में दो अथवा दो से अधिक फसलों को एक-साथ एक ही खेत में उगाते हैं; जैसे- (i) गेहूँ + चना, (ii) गेहूँ + सरसों, (iii) मूँगफली + सूर्यमुखी। मिश्रित फसलीकरण के फलस्वरूप हानि की सम्भावना भी कम हो जाती है; क्योंकि अगर पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण एक फसल नष्ट होती है तो दूसरी फसल से उत्पादन की आशा बनी रहती है।
  2. अन्तराफसलीकरण में दो या अधिक फसलों को एकसाथ एक ही खेत में एक निश्चित पैटर्न के अनुसार उगाते हैं; जैसे—कुछ पंक्तियों में एक प्रकार की फसल तथा उनके एकान्तर में स्थित पंक्तियों में दूसरे या तीसरे प्रकार की फसल उगाते हैं। फसलों का चुनाव इस प्रकार किया जाता है कि फसलो के लिए आवश्यक पोषक तत्व भिन्न-भिन्न होते हैं। इससे मृदा के अधिकतम पोषक तत्वों का उपयोग हो जाता है। इन फसलों को उनकी आवश्यकता के अनुसार उर्वरक भी दिए जा सकते हैं। फसल के पकने पर इन्हें काटकर अलग-अलग रखा जा सकता है; जैसे- सोयाबीन + मक्का; बाजरा + लोबिया आदि ।
इससे उत्पादन तो अधिक होता ही है साथ ही पीड़कों को नियन्त्रित करने में भी सहायता मिलती है।
प्रश्न 2. खेतों में खाद तथा उर्वरक का उपयोग क्यों करते हैं?
उत्तर : खेतों में खाद का उपयोग करने से मिट्टी की संरचना या गठन (texture) में सुधार आता है। कार्बनिक ह्यूमस के कारण मिट्टी की जलधारण क्षमता मे वृद्धि हो जाती है। इसमें वायु का संचार अच्छा हो जाता है। फसलों को पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। इसके परिणामस्वरूप फसल उत्पादन एवं गुणवत्ता में वृद्धि होती है ।
उर्वरकों के उपयोग से खेत की मिट्टी की संरचना या गठन प्रभावित नहीं होता। इनके उपयोग से मिट्टी में आवश्यकतानुसार नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम आदि पोषक तत्व फसल को प्रदान किए जा सकते हैं। इससे फसल के पौधों की. कायिक वृद्धि अच्छी होती है और उत्पादन में भी वृद्धि होती है।
उर्वरकों का आवश्यकता से अधिक उपयोग फसल के लिए हानिकारक होता है, जबकि खाद की अधिकता फसल पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालती
प्रश्न 3. अन्तराफसलीकरण तथा फसल चक्र के क्या लाभ हैं?
उत्तर : अन्तराफसलीकरण विधि से फसल उगाने पर किसी खेत में एकसाथ दो या दो से अधिक फसल उगाई जा सकती हैं। इससे मृदा के पोषक तत्वों का अधिकतम उपयोग हो जाता है तथा अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। पीड़कों तथा रोगों को नियन्त्रित किया जा सकता है। फसल की आवश्यकतानुसार अलग-अलग उर्वरक भी दिए जा सकते हैं।
किसी खेत में क्रमवार पूर्व-नियोजित कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न फसलों को उगाना ‘फसल चक्र’ कहलाता है। फसल चक्र सामान्यतया नमी तथा सिंचाई पर निर्भर करता है। फसल चक्र के माध्यम से एक वर्ष में । दो अथवा तीन फसलें उगाकर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 4. आनुवंशिक फेरबदल क्या हैं? कृषि प्रणालियों में ये कैसे उपयोगी हैं?
उत्तर : आनुवंशिक फेरबदल का तात्पर्य जीवों में ऐच्छिक गुणों के जीन को डालना या ऐच्छिक गुणों का समावेश करना है। यह कार्य संकरण विधि द्वारा सम्पन्न किया जाता है। फसलों से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए विभिन्न उपयोगी गुणों (जैसे- रोग-प्रतिरोधक क्षमता, उर्वरक के प्रति अनुरूपता, उत्पादन की गुणवत्ता तथा उच्च उत्पादन) का चयन करके उन्हें संकरण विधि द्वारा सन्तति में पहुँचाया जा सकता है। संकरण अन्तराकिस्मीय, अन्तरास्पीशीज अथवा अन्तरावंशीय हो सकता है।
संकरण के फलस्वरूप प्राप्त आनुवंशिकीय रूपान्तरित फसलों से अधिक मात्रा एवं गुणवत्ता वाले उत्पाद प्राप्त होने के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति में बहुत सुधार हुआ है।
प्रश्न 5. भण्डार गृहों (गोदामों) में अनाज की हानि कैसे होती है?
उत्तर : भण्डारण के समय अनाज की हानि निम्नलिखित दो कारकों से होती है-
(क) जैविक कारक तथा   (ख) अजैविक कारक।
(क) जैविक कारक — कृन्तक, कीट, जीवाणु तथा कवक आदि अनाज के भण्डार को हानि पहुँचाते हैं। इनके कारण अनाज का भार कम हो जाता है, अनाज बदरंग हो जाता है; इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है, अंकुरण क्षमता में कमी आ जाती है। पीड़कों को नष्ट करने के लिए धूमकों का प्रयोग उचित रहता है।
(ख) अजैविक कारक — उपयुक्त नमी तथा ताप के अभाव में भण्डारित अनाज को क्षति पहुँचती है। अनाज को भण्डारण से पूर्व पहले धूप में और फिर छाया में सुखा लेना चाहिए। अनाज में नमी की मात्रा 14% से अधिक नहीं होनी चाहिए । भण्डार जल तथा नमी के लिए अभेद्य होने चाहिए। भण्डारित खाद्य पदार्थों का समय-समय पर निरीक्षण करते. रहना चाहिए।
प्रश्न 6. किसानों के लिए पशुपालन प्रणालियाँ कैसे लाभदायक हैं?
उत्तर : मनुष्य की जनसंख्या वृद्धि तथा रहन-सहन के स्तर में वृद्धि के कारण पशु उत्पादों का महत्त्व बढ़ रहा है। पशुपालन के मुख्य उद्देश्य हैं-
(क) कृषि कार्यों (हल चलाना, बोझा ढोना, सिंचाई आदि सहायता) के लिए पशुपालन। बैल, भैंसा, घोड़े, खच्चर, ऊँट आदि का उपयोग विभिन्न कृषि कार्यों में किया जाता है ।
(ख) दूध तथा मांस के लिए पशुपालन। गाय, भैंस, बकरी, भेड़ आदि से दूध मिलता है। दूध एक पूर्ण आहार है। इसमें शरीर की वृद्धि के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व उपस्थित होते हैं। गाय, भैंस, बकरी, भेड़ आदि से मांस प्राप्त होता है। मांस प्रोटीन का अच्छा स्रोत है।
(ग) पशुओं के गोबर आदि उत्सर्जी पदार्थों से खाद (ह्यूमस) प्राप्त होती है। ह्यूमस मृदा की संरचना या गठन को सुधारती है और मृदा को अधिक उपजाऊ बनाती है।
प्रश्न 7. पशुपालन के क्या लाभ हैं?
उत्तर : पशुपालन के लाभ –
  1. दुधारू पशुओं; जैसे- गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि से दूध प्राप्त होता है। इसमें सभी पोषक तत्व पाए जाते हैं। दूध में वसा लगभग 3.6%, प्रोटीन 4%, शर्करा 4.5%, खनिज 0.7%, तथा जल 87% होता है। दूध में विटामिन ‘A’ तथा ‘D’, कैल्सियम तथा फॉस्फोरस आदि खनिज पाए जाते हैं।
  2. पशुओं से मांस प्राप्त होता है। मांस उच्च प्रोटीन का स्रोत हैं।
  3. भेड़, बकरी, ऊँट से हमें ऊन प्राप्त होती है। इसका विविध उपयोग किया जाता है।
  4. बैल, भैंसा, ऊँट, घोड़ा, खच्चर आदि पशु बोझा ढोने के काम में लाए जाते हैं।
  5. पशुओं का उपयोग कृषि कार्यों (हल चलाना, सिंचाई कार्य, अनाज की गहाई (थ्रेसिंग), पेराई आदि) में किया जाता है।
  6. जन्तु अवशिष्ट से खाद तैयार की जाती है।
प्रश्न 8. उत्पादन बढ़ाने के लिए कुक्कुटपालन, मत्स्यपालन तथा मधुमक्खीपालन में क्या समानताएँ हैं?
उत्तर : कुक्कुटपालन, मत्स्यपालन तथा मधुमक्खीपालन में उत्पादन बढ़ाने के लिए अच्छी प्रबन्धन प्रणालियाँ आवश्यक हैं; जैसे-
  1. उपयुक्त आवास, आवास की स्वच्छता, उपयुक्त ताप एवं स्वच्छता।
  2. उचित आहार, आहार की गुणवत्ता ।
  3. रोगों तथा पीड़कों पर नियन्त्रण तथा उनसे बचाव ।
प्रश्न 9. प्रग्रहण मत्स्यन, मेरीकल्चर तथा जल संवर्धन में क्या अन्तर है?
उत्तर : प्रग्रहण मत्स्यन — स्वच्छ (अलवणीय) जल स्रोतों; जैसे- – तालाब, पोखर, नदी आदि या मिश्रित जल (समुद्री तथा अलवणीय) स्रोतों; जैसे – नदी मुख तथा लैगून आदि से मछली पकड़ना अन्तःस्थली मत्स्यकी या प्रग्रहण मत्स्यन कहलाता है। इसमें उत्पादन अधिक नहीं होता ।
मेरीकल्चर – अनेक आर्थिक महत्त्व वाली समुद्री मछलियों; जैसे—मुलेट, भेटकी, पर्लस्पॉट, झींगा, मस्सल तथा ऑएस्टर आदि का समुद्री जल में संवर्धन किया जाता है, इसे मेरीकल्चर कहते हैं।
जल संवर्धन — तालाब में भिन्न-भिन्न प्रकार की मछलियों का संवर्धन करके उत्पादन में वृद्धि की जाती है; जैसे—कटला मछली जल की सतह से रोहू तालाब के मध्य से, मृगल, कॉमन कार्प तालाब की तली से भोजन प्राप्त करती हैं। इस प्रकार इन विभिन्न प्रजातियों की मछलियों के मध्य स्पर्धा नहीं होती। इससे तालाब से मछली उत्पादन में वृद्धि होती है। इसे जल संवर्धन कहते हैं।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. फसल चक्र से क्या तात्पर्य है? फसल चक्र के नियमों का उल्लेख कीजिए। बारानी क्षेत्रों में किस प्रकार की फसल उगानी चाहिए?
उत्तर : फसल चक्र
किसी निश्चित क्षेत्र पर एक निश्चित अवधि में फसलों को इस प्रकार .अदल-बदल कर बोना जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्रास न हो, फसल चक्र कहलाता है।
फसल चक्र के नियम
किसानों को फसल की अच्छी उपज लेने के लिए फसल चक्र बनाते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
  1. गहरी जड़ वाली फसलों के बाद सतह पर फैली जड़ वाली फसल बोनी चाहिए जिससे फसल मृदा के विभिन्न स्तरों से पोषक पदार्थों को ग्रहण कर सके; जैसे— कपास – गेहूँ; गेहूँ-गन्ना ।
  2. दलहनी फसलों के बाद खाद्यान्न फसल बोनी चाहिए; क्योंकि दलहनी फसलों की जड़ों की ग्रंथिकाओं में पाया जाने वाला राइजोबियम जीवाणु वायुमण्डल की स्वतन्त्र नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में बदलकर पौधे को प्रदान करता है। फसल के कटने के पश्चात् नाइट्रोजन यौगिक मृदा में मिल जाते हैं। अत: खाद्यान्न फसल मृदा से नाइट्रोजन प्राप्त कर अपना जीवन चक्र पूर्ण करती है; जैसे—मूँग – गेहूँ; आलू मटर आदि ।
  3. अधिक पानी चाहने वाली फसल के बाद कम पानी चाहने वाली फसल बोनी चाहिए; क्योंकि लगातार अधिक पानी चाहने वाली फसल उगाने से मृदा में वायु संचार अवरुद्ध हो जाता है। जड़ों की क्रियाशीलता प्रभावित होती है। फसलों की वृद्धि तथा उपज प्रभावित होती है; जैसे—धान – चना; बरसीम – लोबिया ।
  4. अधिक खाद चाहने वाली फसलों के बाद कम खाद चाहने वाली फसल उगानी चाहिए जिससे भूमि की उर्वरता बनी रहे; जैसे—धान – चना; गन्ना- मसूर ।
  5. फसल चक्र में वे सभी फसलें सम्मिलित होनी चाहिए जिससे किसान की घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे ।
  6. फसल चक्र में ऐसी फसलों को चुनना चाहिए जो रोग व कीट की दृष्टि से समान न हों, इससे फसलें सुरक्षित रहती हैं।
बारानी क्षेत्रों (जहाँ वर्षा की मात्रा कम होती है) में खरीफ की फसल बोते हैं और रबी की फसल के समय खेतों को खाली छोड़ देते हैं।
प्रश्न 2. मिश्रित फसली कृषि में फसलों का चुनाव क्यों आवश्यक है?
उत्तर : मिश्रित फसली कृषि के लिए फसलों का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखते हैं—
  1. फसल अवधि – मिश्रित फसली में एक फसल जल्दी पककर तैयार हो जाती है और दूसरी फसल देर से पककर तैयार होती है।
  2. जड़ों का प्रकार – एक फसल की जड़ें सतह भोजी (surface feeder) तथा दूसरी फसल की जड़ें गहरे भोजी (deep feeder ) होती हैं।
  3. जल की माँग – दोनों फसलों में से एक फसल की जल आवश्यकता दूसरी फसल की तुलना में कम होती है।
  4. पोषक तत्वों की माँग – दोनों फसलों में से एक फसल अधिक पोषक तत्वों का उपभोग करती है और दूसरी फसल कम पोषक तत्वों का अवशोषण करती है।
  5. वृद्धि स्वभाव – इसमें एक फसल अधिक ऊँचाई तक वृद्धि करती है और दूसरी फसल कम ऊँचाई तक वृद्धि करती है, इससे दोनों फसलों को प्रकाश उचित मात्रा में उपलब्ध हो जाता है।
मिश्रित फसली के लिए उचित फसलों का चुनाव इसलिए आवश्यक है, ताकि फसलों में आपस में प्रकाश, पोषक तत्व और जल के लिए प्रतिस्पर्धा कम-से-कम हो और एक फसल के क्षतिग्रस्त होने पर दूसरी फसल इस जोखिम की आपूर्ति कर सके। एक जैसे स्वभाव वाली दोनों फसलों के होने से इनमें होने वाली प्रतिस्पर्धा घातक होगी।
प्रश्न 3. पशुपालन के सिद्धान्त अथवा पशुओं के आवास एवं खाद्य प्रबन्धन का वर्णन कीजिए।
उत्तर : पशुपालन के सिद्धान्त
पशुपालन के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त निम्नवत् हैं-
  1. पशु आवास या पशुशाला – पशुओं के रहने तथा चारा खाने के लिए दो पृथक्-पृथक् आवास होने चाहिए। यदि किसी कारणवश दो आवास बनाना सम्भव न हो तो जो एक आवास बनाया जाए वह इतना लिए पर्याप्त स्थान मिल सके। एक गाय को लगभग 6 वर्ग मीटर तथा भैंस बड़ा और विस्तृत होना चाहिए कि प्रत्येक पशु को उठने बैठने व लेटने के को कुछ अधिक जगह की आवश्यकता होती है।
    आवास पक्का एवं साफ-सुथरा होना चाहिए जिसमें वायु के आवागमन हेतु पर्याप्त खिड़कियाँ तथा रोशनदान का प्रावधान होना चाहिए। बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए। आवास को प्रतिदिन साफ करना चाहिए। इसकी धुलाई के पश्चात् किसी कृमिनाशक दवा का छिड़काव करना आवश्यक है।
  2. नाँद – प्रत्येक पशु के लिए दो-दो नाँदें होनी चाहिए। एक जल पीने तथा दूसरी चारे के लिए। नाँदों को प्रतिदिन धोकर साफ कर लेना चाहिए। नाँदों में बचे हुए चारे को नियमित रूप से प्रतिदिन आवास से हटाकर दूर कम्पोस्ट के गड्ढे में डाल देना चाहिए।
  3. रोगों से सुरक्षा – पशुओं में अनेक बीमारियों का प्रकोप होता है। हमारे देश में खुरपका, मुँहपका आदि के अतिरिक्त मनुष्य को होने वाले रोग; जैसे – चेचक, हैजा, तपेदिक, सूखा आदि भी होते हैं। इन रोगों की रोकथाम के लिए पहले ही टीके लगवाने चाहिए तथा बीमार पशुओं की सावधानी से देखभाल होनी चाहिए। बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना आवश्यक है।
  4. पशु आहार – प्रत्येक पशु को सूखा और हरा दोनों प्रकार का चारा मिलना चाहिए। हरा चारा ताजा और स्वच्छ होना चाहिए। हरे और सूखे चारे में 1 और 3 का अनुपात होता है। कुछ ज्यादा काम करने वाले पशुओं तथा दूध देने वाले पशुओं के स्वास्थ्य के लिए अतिरिक्त भोजन की आवश्यकता होती है। खली और खनिज लवण आदि पशु आहार में अवश्य होने चाहिए, ताकि पशु-रोगों के प्रति इनका प्रतिरोध बना रहे। सूखा चारा सामान्यतः भूसा और पुआल से बनता है। हरे चारे के रूप में बरसीम, चरी, मक्का, ज्वार, बाजरा, हरी घास आदि होती हैं। अलसी की खली पौष्टिकता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होती है।
  5. परजीवी – पशुओं के शरीर का नियमित निरीक्षण कर उन पर लगे परजीवी; जैसे― चींचड़ी एवं जूँ आदि को निकाल देना चाहिए।
  6. स्वच्छ जल — प्रत्येक पशु को स्वच्छ जल देना आवश्यक है । प्रत्येक पशु के आवास में जल की टंकी बनी रहनी चाहिए। पशुओं को नियमित रूप से नहलाना आवश्यक है। पशुओं को लगभग 30-35 लीटर जल पिलाना आवश्यक है।
  7. दूध देने वाले पशुओं की देखभाल- दूध दुहने से पूर्व गायों तथा भैंसों के थनों को भली-भाँति धोकर सफाई कर लेनी चाहिए। गन्दगी में रखने से पशुओं को तो हानि होती ही है, इससे मनुष्य भी अछूता नहीं रहता। अनेक रोग; जैसे— तपेदिक, (बोवाइन ट्यूबरकुलोसिस) दूध द्वारा एवं गन्दगी के कारण फैलते हैं। इसलिए पशुओं की सफाई नियमित रूप से अवश्य की जानी चाहिए।
प्रश्न 4. पादप प्रजनन की परिभाषा बताइए । पादप प्रजनन की विभिन्न विधियों का विवरण दीजिए ।
उत्तर : पादप प्रजनन 
पौधों के आर्थिक उपयोग के सन्दर्भ में उसकी आनुवंशिक बनावट में सुधार लाने के विज्ञान और कला को पादप प्रजनन कहते हैं। आनुवंशिक सुधार हेतु अपनाए जाने वाले विभिन्न उपायों को पादप प्रजनन तकनीक या विधि कहते हैं।
पादप प्रजनन की प्रमुख विधियाँ या तकनीक निम्नलिखित हैं-
  1. फसल का पुरः स्थापन — किसी फसल के पौधों को उसके कृषि क्षेत्र से ऐसे स्थान पर ले जाकर उगाना जहाँ उसे पहले कभी नहीं उगाया गया हो अथवा देश-विदेश से अच्छी-से-अच्छी किस्म के पौधे लेकर अपने देश में उगाना ही पौधा प्रवेश या पुर: स्थापना कहलाता है। यह बात आवश्यक है कि इस प्रकार से लिए गए नए पौधों को पहले उस स्थान, देश या विदेश की जलवायु के अधीन करना होता है, जहाँ कि उन्हें उगाना है, इस क्रिया को अनुकूलन कहते हैं। अनुकूलन सामान्यत: अनुसन्धान केन्द्रों पर किया जाता है।
  2. वांछित गुणों का चयन – फसल की नई किस्म तैयार करने के लिए पहले दो मौजूदा किस्मों को चुनते हैं। प्रत्येक में वांछित गुण का होना आवश्यक है; जैसे— रोगों की प्रतिरोधकता अथवा अधिक उपज । चयन वास्तव में वह प्रक्रिया है जो अपेक्षाकृत उत्तम लक्षणों वाले कुछ पौधों के प्रवर्धन और अन्तरजीविता को प्रोत्साहित करती है। चयन फसली पौधों के गुणों को चयनित करता है, जो गुणवत्ता, प्रतिरोधकता, उपज आदि से सम्बन्धित होते हैं।
  3. संकरण – आनुवंशिक रूप से एक ही जाति के दो भिन्न जनकों के मध्य निषेचन (क्रॉस कराकर) द्वारा नई किस्म उत्पन्न करने की विधि को संकरण कहते हैं। इस विधि में आनुवंशिक रूप से भिन्न पौधों के मध्य क्रॉस कराया जाता है।
संकरण निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं—
  1. अन्तः किस्मीय संकरण-एक ही किस्म के दो पादपों में जिनकी आबादी में जीन प्रारूपों का मिश्रण है और वे स्वपरागित होते हैं। परस्पर क्रॉस कराया जाता है। यह विधि उन किस्मों में उपयोगी रहती है स्वपरागित फसलों में यह विधि किस्म को सुधारने व बनाए रखने के लिए प्रयोग में लाई जाती है।
  2. अन्तरा – किस्मीय संकरण-एक ही जाति की दो विभिन्न किस्मों के पादपों में परस्पर क्रॉस कराया जाता है इसको अन्तरा – किस्मीय संकरण कहते हैं। अनाज की अधिकांश फसलों की संकर किस्में इसी विधि द्वारा प्राप्त की गई हैं।
  3. अन्तरा – जातीय संकरण-जब एक वंश की दो भिन्न जातियों में क्रॉस कराया जाता है, तब सूखा या रोग प्रतिरोधक; जैसे- कुछ महत्त्वपूर्ण जीन एक जाति से दूसरी में स्थानान्तरित किए जाते हैं।
  4. अन्तरा – वंशीय संकरण – जब दो भिन्न-भिन्न वंशों के दो पौधों में क्रॉस कराया जाता हैं तो एक नई किस्म का पौधा उत्पन्न हो जाता है। इसे अन्तरा वंशीय संकरण कहते हैं।
संकरण विधि की पूर्वापेक्षित आवश्यकताएँ – संकरण कार्यक्रम को शुरू करने से पहले निम्नलिखित आवश्यकताओं की पूर्ति होना आवश्यक है—
  1. स्थानीय जन-आवश्यकताओं के अनुरूप वांछित गुणों का निर्धारण ।
  2. स्थानीय वातावरणीय तथा व्यापारिक परिस्थितियों का ज्ञान ।
  3. संकरण कार्यक्रम के लिए आवश्यकताओं का प्रबन्ध ।
  4. जनक पादपों का चयन।
  5. मृदा प्रकृति का पूर्ण ज्ञान ।
  6. उद्देश्य का निर्धारण जिसे क्रियान्वित करना है।
प्रश्न 5. मिश्रित फसली किसे कहते हैं? मिश्रित फसली के क्या लाभ हैं?
उत्तर : मिश्रित फसली प्रणाली
एक ही खेत में दो फसलों को साथ-साथ उगाना मिश्रित फसली खेती कहलाती है। हमारे देश में प्राचीनकाल से ही मिश्रित फसली खेती की परम्परा रही है। इसमें दो फसलों के बीजों को मिलाकर साथ-साथ बोया जाता है। मिश्रित फसली का मुख्य उद्देश्य जोखिम को कम करना है। मौसम के असामान्य हो जाने पर भी फसल से कुछ लाभ प्राप्त करना ही इसका मुख्य उद्देश्य होता है। फसल उत्पादन की यह प्रक्रिया बारानी क्षेत्रों (rainfed area) में अपनाई जाती है। इससे मिट्टी की उर्वरता एवं गुणवत्ता भी बनी रहती है।
मिश्रित फसल प्रणाली के लाभ
  1. विभिन्न उत्पाद प्राप्ति – मिश्रित फसली प्रणाली से एक ही खेत से विभिन्न उत्पाद एकसाथ प्राप्त किए जा सकते हैं; जैसे—धान्य, दालें, पशुओं के लिए चारा तथा सब्जी आदि एकसाथ प्राप्त किए जा सकते हैं। इससे किसान के परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है।
  2. मिट्टी की उर्वरता में सुधार – धान्य फसलें मृदा से पोषक तत्व अधिक मात्रा में अवशोषित करती हैं। निरन्तर धान्य फसलों को उगाने से मृदा की उर्वरता कम हो जाती है। फलीदार फसलें मृदा की उर्वरता को बढ़ाती हैं। इस कारण धान्य फसलों के साथ-साथ फलीदार फसलें उगाने से मृदा की उर्वरता बनी रहती हैं। फलीदार फसलों की जड़ों की ग्रंथिकाओं में नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरस (Rhizobium leguminosarum) पाया जाता है।
  3. फसल नष्ट होने का जोखिम नहीं – मिश्रित फसली प्रणाली में अलग-अलग स्वभाव की फसलें उगाने से वर्षा की अनिश्चितता के कारण फसल के नष्ट होने का जोखिम कम हो जाता है।
  4. मृदा के पोषक तत्वों का उचित प्रयोग — सतह भोजी तथा. गहरे भोजी (surface feeder and deep feeder ) जड़ वाली फसलों को साथ-साथ उगाने से मृदा की विभिन्न गहराई से पोषक तत्वों का उचित उपयोग हो जाता है; क्योंकि पानी में घुलकर पोषक तत्व मृदा की गहराई में रिसते रहते हैं।
  5. पीड़क जीवों द्वारा न्यूनतम क्षति – विभिन्न प्रकार की फसलों को उगाने से पीड़क जीवों (कवक, कीट आदि) तथा खरपतवार से होने वाली क्षति कम होती है।
मिश्रित फसली के उदाहरण-
(i) गेहूँ + चना
(ii) गेहूँ + सरसों
(iii) अरहर + मूँग
(iv) कपास + मूँग
(v) सूरजमुखी + मूँगफली
(vi) जौ + चना
(vii) सोयाबीन + अरहर
(viii) ज्वार + अरहर
(ix) मक्का + उड़द
(x) जौ + मटर ।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भण्डारित अनाज में कीटों तथा सूक्ष्म जीवों की संख्या किस प्रकार नियन्त्रित की जा सकती है?
उत्तर : भण्डारित अनाज में कीटों तथा सूक्ष्मजीवों की संख्या का नियन्त्रण निम्नलिखित विधियों द्वारा किया जा सकता है-
1. भण्डारगृह का समय-समय पर निरीक्षण आवश्यक है जिससे कीटों आदि के सम्भावित आक्रमण को नियन्त्रित किया जा सके।
2. भण्डारगृह में पीड़कनाशक ( insecticides ) का छिड़काव अथवा धूमकों (fumigant) का धूमन आदि किए जाने से कीटों व सूक्ष्मजीवों पर प्रभावी नियन्त्रण किया जाता है।
प्रश्न 2. धूमन तथा छिड़काव परस्पर किस प्रकार भिन्न हैं? 
उत्तर : धूमन तथा छिड़काव में अन्तर
क्र०सं० धूमन छिड़काव
1. इस विधि के लिए वाष्पशील पीड़कनाशियों का प्रयोग किया जाता है; जैसे—ऐलुमिनियम फॉस्फॉइड, एथिलीन डाइब्रोमाइड (EDB) आदि। इस विधि के लिए जिन पीड़कनाशियों का प्रयोग किया जाता है, वे वाष्पशील नहीं होते; जैसे—मैलाथिऑन (malathion), पायरेथ्रम (pyrethrum) आदि ।
2. यह भरे हुए भण्डारगृह के लिए उपयुक्त विधि है; क्योंकि अनाज पर ये प्रभाव नहीं डालते । ये अनाज को प्रभावित नहीं करते। भण्डारण से पूर्व भण्डारगृह को नाशीजीवों से मुक्त करने के लिए यह विधि उपयुक्त है; क्योंकि खाद्यान्नों पर इन रसायनों का हानिकारक प्रभाव होता है। अनाज को प्रयोग करने से पहले धोकर सुखा लेना चाहिए।
प्रश्न 3. गाय की उन्नत संकर नस्लों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर : गाय की उन्नत संकर नस्लें – कुछ सफल संकर नस्लें अग्रलिखित हैं-
  1. करन स्विस – यह साहीवाल और ब्राउन स्विस के संकरण द्वारा तैयार संकर नस्ल है। यह एक दुधारू नस्ल है। यह औसतन 16-18 लीटर दूध प्रतिदिन और 3200 लीटर दूध प्रतिवर्ष देती है।
  2. करन फ्राइस – यह थारपरकर तथा होल्स्टीन फ्रीजियन के बीच संकरण द्वारा विकसित की गई संकर दुधारू नस्ल है।
  3. फ्राइसवाल – यह होल्स्टीन – फ्रीजियन तथा साहीवाल के बीच संकरण द्वारा विकसित की गई दुधारू संकर नस्ल है।
प्रश्न 4. पशुओं में संकरण किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर : पशुओं में संकरण द्वारा वांछित गुण; जैसे- रोग प्रतिरोधक क्षमता, अधिक उत्पादकता, दुग्ध स्रावण काल में वृद्धि आदि लक्षण वाले पशु उत्पन्न किए जा सकते हैं। संकरण कृत्रिम वीर्यसेचन तथा भ्रूण स्थानान्तरण द्वारा किया जाता है। ऑपरेशन फ्लड (Operation Flood) या श्वेत क्रान्ति (White Revolution) के फलस्वरूप दुग्ध उत्पादन क्षमता को कई गुना बढ़ाया गया है।
प्रश्न 5. कृत्रिम वीर्यसेचन की परिभाषा लिखिए!
उत्तर : कृत्रिम वीर्यसेचन – इस विधि में वांछित गुणों वाले नर पशुओं के संचित वीर्य को, जिसे वीर्य बैंक (semen bank) में सुरक्षित रखते हैं; एक विशेष पिचकारी द्वारा मादा पशु के गर्भाशय में पहुँचाया जाता है । इस क्रिया को कृत्रिम वीर्यसेचन कहते हैं।
प्रश्न 6. गाय की द्विउद्देश्यीय नस्लों के नाम तथा उपयोगिता लिखिए।
उत्तर : गाय की द्विउद्देश्यीय नस्ल – इस वर्ग की गायें दूध भी अच्छा देती हैं और इनके बैल कृषि कार्यों (जैसे – बोझा ढोने, जुताई आदि) के लिए अच्छे रहते हैं। हरियाणा, थारपरकर, कोसी, कॉकरेज, नीलौर आदि ।
ग्रामीण क्षेत्रों में किसान द्विउद्देश्यीय नस्लें पालते हैं जिससे उन्हें परिवार के पोषण हेतु दूध और कृषि कार्यों हेतु बैल प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 7. पशु आहार का निर्धारण किस प्रकार करते हैं?
उत्तर : पशु आहार का निर्धारण निम्नलिखित कारकों के आधार पर करते हैं—
  1. पशु की आयु, स्वास्थ्य एवं उसके कार्य की प्रकृति ।
  2. पशु की संरचना और आमाशय क्षमता ।
  3. चारे या आहार के पोषण सम्बन्धी गुण ।
  4. दुधारू पशु की दुग्ध उत्पादन क्षमता।
प्रश्न 8. “दूध एक प्रचुर (सम्पूर्ण) पोषक आहार है।” इस कथन की पुष्टि सारणी की सहायता से कीजिए ।
उत्तर : दूध एक प्रचुर (सम्पूर्ण) पोषक आहार है; क्योंकि इसमें सभी पोषक तत्व पाए जाते हैं; जैसे— कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज तथा जल। दूध में वसा लगभग 3.60%, प्रोटीन 4%, शर्करा 4.50%, 0.70% खनिज तथा 87.20% जल होता है। दूध में विशेष प्रोटीन्स, विटामिन A तथा D, कैल्सियम तथा फॉस्फोरस आदि खनिज पाए जाते हैं।
खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की प्रतिशत मात्रा
खाद्य पदार्थ पोषक तत्व (प्रतिशत मात्रा में )
वसा प्रोटीन शर्करा खनिज जल
गाय का दूध 3.60 4.00 4.50 0.70 87.20
अण्डा 12.00 13.00 अल्प मात्रा में 1.00 74.00
मांस 3.60 21.10 अल्प मात्रा में 1.10 74.20
मछली 2.50 19.00 अल्प मात्रा में 1.30 77.20
9. हरित क्रान्ति पर टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर : हरित क्रान्ति
भारत में हरित क्रान्ति गेहूँ की मैक्सिकन किस्म से हुई है। इस किस्म को एन०ई० बोरलॉग ने तैयार किया था। भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने मैक्सिकन किस्म का संकरण भारतीय देशी किस्मों से कराया, जिससे यह भारतीय जलवायु के लिए उपयुक्त हो सके। हरित क्रान्ति के फलस्वरूप भारत खाद्यान्न की दृष्टि से आत्मनिर्भर हो गया। हरित क्रान्ति के फलस्वरूप मृदा की भौतिक संरचना भी प्रभावित हुई है; क्योंकि अत्यधिक मात्रा में उर्वरकों, कीटनाशक, पीड़कनाशक तथा कवकनाशक रसायनों का उपयोग होने से मृदा की उर्वरता कम हो गई है, मृदा में जीवांश की मात्रा भी कम हुई है।
प्रश्न 10. जानवरों में होने वाले रोगों की रोकथाम हेतु कुछ उपाय बताइए | 
उत्तर : पशुओं में होने वाले रोगों की रोकथाम हेतु निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए-
  1. पशुओं को अच्छी आवासीय परिस्थितियों में रखना चाहिए, इससे रोगों की सम्भावना कम हो जाती है। आवास स्थल को फिनाइल से धोते रहना चाहिए।
  2. पशुओं को पौने के लिए शुद्ध जल तथा खाने के लिए पोषक एवं ताजा आहार देना चाहिए।
  3. पशुओं की स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए। उन्हें नियमित रूप से नहलाना चाहिए।
  4. पशुओं की नियमित जाँच होती रहनी चाहिए।
  5. रोगी पशु को स्वस्थ पशुओं से पृथक् रखना चाहिए।
  6. रोगी पशु के मल-मूत्र तथा मृत पशुओं का यथा – शीघ्र निपटारा कर देना चाहिए।
  7. अधिकांश रोगों के प्रतिरोधक टीके उपलब्ध हैं। अतः पशुओं का अनिवार्य रूप से टीकाकरण करवा लेना चाहिए।
प्रश्न 11. कुक्कुटों में होने वाले रोगों के कारक क्या हैं? इन रोगों की रोकथाम किस प्रकार कर सकते हैं?
उत्तर : कुक्कुट में होने वाले रोगों के कारक एवं रोकथाम के उपाय – कुक्कुट में विषाणु, जीवाणु, कवक, अन्य परजीवियों तथा कुपोषण के कारण अनेक रोग हो जाते हैं। इन रोगों से बचाव और होने वाली क्षति को रोकने के लिए कुक्कुट पालकों को पर्याप्त सावधानी बरतनी चाहिए | कुक्कुटपालकों को स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए । समय-समय पर विसंक्रमी पदार्थों का छिड़काव करते रहना चाहिए। समुचित टीकाकरण से संक्रमणीय रोगों की रोकथाम की जा सकती है। संक्रामक रोगों से कुक्कुट पालन को व्यापक क्षति पहुँचती है।
प्रश्न 12. अलवणजलीय खाद्य स्रोतों के नाम लिखिए। हमारे देश में मत्स्यपालन हेतु प्रचुर अवसर हैं, क्यों?
उत्तर : नदियाँ, तालाब, झील, झरने आदि अलवणजलीय मछलियों के स्रोत हैं। भारतीय या देशी नस्लों में कटला, रोहू, मृगल तथा विदेशी नस्लों में सिल्वर कॉर्प, ग्रास कॉर्प अलवणजलीय जल-प्रदायों में पाई जाने वाली मछलियाँ हैं। कटला में वृद्धि सबसे तीव्र होती है।
हमारे देश में मत्स्य उत्पादन के पर्याप्त अवसर हैं। हमारे देश में 16 लाख हेक्टेयर अन्तः स्थलीय जलीय क्षेत्र तथा 6500 किलोमीटर लम्बी समुद्री तट रेखा मत्स्य उत्पादन के लिए उपयुक्त है।
प्रश्न 13. फसल चक्र क्यों अपनाना चाहिए?
उत्तर : एक खेत में निरन्तर एक ही फंसल को उगाते रहने से अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होने लगती हैं; जैसे- खेत में निश्चित पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। खरपतवार एवं पीड़क जीवों की संख्या बढ़ “जाती है। इन समस्याओं से बचने के लिए फसल चक्र (crop rotation) को अपनाने की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 14. फसल चक्र में फलीदार फसलें क्यों आवश्यक हैं? 
उत्तर : फसल चक्र में फलीदार फसलें उगाने से मृदा की उर्वरता बढ़ती है; क्योंकि फलीदार फसलों की जड़ों की ग्रन्थिकाओं में पाए जाने वाला सहजीवी राइजोबियम (Rhizobium) जीवाणु वायुमण्डल की स्वतन्त्र नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में बदलकर पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करता है। फसल कटने के पश्चात् जड़ ग्रन्थिकाओं के नाइट्रोजन यौगिक मृदा में मिल जाते हैं, जिससे मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है।
प्रश्न 15. टिकाऊ कृषि की क्या आवश्यकता है?
उत्तर: टिकाऊ कृषि की आवश्यकता – मनुष्य को निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ अपने प्राकृतिक संसाधनों को बनाए रखने का प्रयत्न करना है। प्राकृतिक संसाधनों को बिना क्षति पहुँचाए बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्य आपूर्ति हेतु उत्पादन को टिकाऊ कृषि ( sustainable agriculture) द्वारा बढ़ाया जा सकता है। हम फसल चक्र, मिश्रित कृषि, मिश्रित फसली तथा उन्नत किस्मों का उचित एवं सफल प्रबन्धन करके कृषि में टिकाऊपन ला सकते हैं।
प्रश्न 16. खेती क्या है? उपयुक्त उदाहरणों सहित व्याख्या दीजिए ।
उत्तर : खेती या कृषि — यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें हरे पौधे सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करके खाद्य सामग्री (आर्थिक उत्पाद) में बदल देते हैं। इनमें संचित ऊर्जा (भोज्य पदार्थ) पर पृथ्वी के जीवधारियों का जीवन निर्भर करता है।
चारे का प्रयोग करके दुग्ध उत्पादक पालतू पशु, पौधों द्वारा संचित ऊर्जा को दुग्ध (खाद्य पदार्थ ) में स्थानान्तरित कर देते हैं; अतः डेयरी उद्योग भी कृषि का एक स्वरूप ही है। इसी प्रकार कुक्कुटपालन, सूअरपालन, मछलीपालन, रेशमकीटपालन, मधुमक्खीपालन आदि भी भिन्न-भिन्न प्रकार की कृषि ही हैं।
प्रश्न 17. उर्वरक क्या होते हैं? उर्वरकों को उपयुक्त उदाहरण सहित वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर : उर्वरक~ये कृत्रिम रासायनिक खाद है जो मृदा में आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं। ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
  1. नाइट्रोजन उर्वरक — यूरिया, अमोनियम सल्फेट, कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट आदि मृदा को नाइट्रोजन प्रदान करने वाले उर्वरक हैं।
  2. फॉस्फोरस उर्वरक — सुपर फॉस्फेट, ट्रिपल सुपर फॉस्फेट और डाइकैल्सियम फॉस्फेट आदि मृदा को फॉस्फोरस प्रदान करने वाले उर्वरक हैं।
  3. पोटैशियम उर्वरक — पोटैशियम सल्फेट, पोटैशियम क्लोरेट (म्यूरेट ऑफ पोटाश) आदि मृदा को पोटैशियम प्रदान करने वाले उर्वरक हैं।
  4. मिश्रित उर्वरक — नाइट्रोफॉस्फेट, अमोनियम फॉस्फेट, एन०पी० के० उर्वरक ( इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश होता है ) ।
प्रश्न 18. खरपतवार नियन्त्रण के विभिन्न उपाय लिखिए।
उत्तर : खरपतवार नियन्त्रण के विभिन्न उपाय निम्नलिखित हैं-
  1. हाथ द्वारा खरपतवार को उखाड़ते हैं।
  2. खुस्पे द्वारा निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को जड़ सहित उखाड़ा जाता है।
  3. खरपतवारनाशकों; जैसे – 2.4 – डी०, आइसोप्रोटरोन आदि रसायनों का छिड़काव करके इन्हें नष्ट कर दिया जाता है।
• अति उत्तरीय लघु प्रश्न
प्रश्न 1. हमारे भोजन के प्रमुख स्रोत क्या हैं?
उत्तर : हमारे भोजन के प्रमुख स्रोत हैं-
  1. वनस्पतियाँ – इनसे हमें अन्न, दालें, सब्जियाँ, फल, मसाले, शर्कराएँ, अनेक स्फूर्तिदायक पेय पदार्थ आदि प्राप्त होते हैं।
  2. जन्तु—इनसे हमें दूध, अण्डा, मांस, मछली आदि प्राप्त होती हैं।
प्रश्न 2. जान्तव स्त्रोत से प्राप्त होने वाले खाद्य पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर : जान्तव स्रोत से हमें दूध, अण्डा, मांस, मछली आदि खाद्य पदार्थों के रूप में प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 3. गाय तथा भैंस की किन्हीं दो भारतीय नस्लों के नाम लिखिए।
उत्तर : गाय की भारतीय नस्लें — रेड सिन्धी ( red sindhi), साहीवाल, (sahiwal)।
भैंस की भारतीय नस्लें — मुर्रा (murrah), मेहसाना (mehsana) ।
प्रश्न 4. निम्नलिखित में केवल एक अन्तर लिखिए-
(i) साहीवाल तथा ब्राउन स्विस,
(ii) मुर्रा तथा थारपरकर,
(iii) रूक्ष अंश तथा संकेन्द्रित खाद्य ।
उत्तर : (i) साहीवाल देशी नस्ल की दुधारू गाय है, जबकि ब्राउन स्विस विदेशी नस्ल की द्विउद्देश्यीय गाय है।
(ii) मुर्रा भैंस की दुधारू नस्ल है, जबकि थारपरकर गाय की द्विउद्देश्यीय नस्ल है।
(iii) रूक्ष अंश रेशेदार सेलुलोसयुक्त खाद्य पदार्थ है, इसका पोषक मान लगभग शून्य है, जबकि संकेन्द्रित खाद्य (अनाज, चना, खली, गुड़, शीरा आदि) का पोषक मान अधिक होता है।
प्रश्न 5. कुक्कुट की एक देशी नस्ल का नाम लिखिए। इसकी उपयोगिता लिखिए।
उत्तर : कुक्कुट की देशी नस्ल (Indigenous breed) एसील है। इससे अधिक मात्रा में ( औसतन 4-5 kg) मांस प्राप्त होता है। ये अण्डे कम संख्या में देती हैं।
प्रश्न 6. गाय पालने से हमें क्या लाभ हैं?
उत्तर : गाय से हमें दूध तथा अन्य पदार्थ प्राप्त होते हैं। गाय के बछड़े बड़े होकर बैल के रूप में किसान के लिए बोझा ढोने, जुताई करने तथा अन्य कृषि कार्यों में सहायता करते हैं।
प्रश्न 7. पशुओं द्वारा प्रयुक्त हरे चारे के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर : मक्का, बाजरा, चरी, हाथी घास, बरसीम, रिजका, लोबिया आदि का प्रयोग हरे चारे के रूप में किया जाता है।
प्रश्न 8. गाय के चारे में रूक्षांश (रफेज) की कितनी मात्रा होती है?
उत्तर : हरे चारे ( रूक्षांश के रूप में बरसीम, लोबिया, चरी, बाजरा, मक्का तथा शुष्क चारे के रूप में पुआल तथा भूसा आता है। गाय को रूक्षांश या हरा चारा 15-20 किलो प्रतिदि । मिलना चाहिए।
प्रश्न 9. प्राकृतिक संसाधनों को क्षति पहुँचाए बिना बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्य पूर्ति हेतु उत्पादन कैसे बढ़ाया जा सकता है?
उत्तर: टिकाऊ कृषि द्वारा — मिश्रित खेती, मिति फसली, अन्तर्फसली, फसल चक्र तथा किस्मों को सुधार कर ।
प्रश्न 10. कृषि में टिकाऊपन कैसे स्थापित किया जा सकता है?
उत्तर : मिश्रित खेती, मिश्रित फसली, अन्तर्फसली, फसल चक्र तथा किस्मों को सुधार कर ।
प्रश्न 11. मिश्रित खेती क्या है?
उत्तर : किसी फार्म पर खेती की वह प्रणाली जिससे किसान की निर्वाह सम्बन्धी मूल आवश्यकताएँ पूरी हो सकें, मिश्रित कृषि कहलाती है।
प्रश्न 12. हरित क्रान्ति किसे कहते हैं?
उत्तर : गत सदी के साठ के दशक परम्परागत गेहूँ की लम्बी किस्म के स्थान पर बौनी किस्में प्रचलित की गईं। इसके फलस्वरूप अन्न की रिकॉर्ड तोड़ पैदावार हुई। इस रिकॉर्ड तोड़ पैदावार को हरित क्रान्ति कहा गया।
प्रश्न 13. अन्तर्फसली प्रणाली का क्या अर्थ है?
उत्तर : एक निश्चित पंक्तिबद्ध तरीके से एक ही खेत में दो या अधिक फसलें एक साथ उगाना अन्तर्फसली प्रणाली कहलाता है।
प्रश्न 14. पादप प्रजनन किसे कहते हैं?
उत्तर : पादप प्रजनन – पौधों के आर्थिक उपयोग के सन्दर्भ में उसकी आनुवंशिक बनावट में सुधार लाने के विज्ञान और तकनीक या विधि को पादप प्रजनन कहते हैं।
प्रश्न 15. कृषि क्षेत्र में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए हमें क्या करना होगा?
उत्तर : कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक प्रणालियाँ एवं प्रबन्धन, अन्तरा – फसलीकरण तथा अन्य सम्बन्धित कृषि प्रणालियाँ अपनानी होंगी।
प्रश्न 16. संकरण किन-किन में हो सकता है?
उत्तर : विभिन्न किस्मों में अन्तराकिस्मीय, एक ही वंश की दो विभिन्न प्रजातियों में अन्तरास्पीशीज तथा विभिन्न वंश के सदस्यों में अन्तरावंशीय |
प्रश्न 17. कृषि प्रणालियों के तीन प्रमुख चरण लिखिए।
उत्तर : (1) बीजों का चुनाव, (2) फसल की देखभाल (निराई-गुड़ाई, सिंचाई, उर्वरक देना आदि), (3) फसल की कटाई, गहाई तथा उत्पादन की सुरक्षा ।
• एक शब्द या एक वाक्य वाले प्रश्न
प्रश्न 1. लेइंग पीरियड क्या होता है?
उत्तर : लैंगिक परिपक्वता से अण्डे देने तक का काल लेइंग पीरियड कहलाता है।
प्रश्न 2. VHS का विस्तृत नाम लिखिए।
उत्तर : VHS – वायरल हीमोरेजिक सेप्टीसेमिया (Viral Haemorrhagic Septicemia)।
प्रश्न 3. पशु आहार में कौन-से दो प्रकार होने चाहिए?
उत्तर : रूक्षांश (मोटा चारा) तथा सान्द्र ( कम रेशे वाला) ।
प्रश्न 4. विदेशी नस्ल की दो गायों के नाम लिखिए।
उत्तर : गाय की विदेशी नस्लें – जरसी, होल्स्टीन-फ्रीजियन ।
प्रश्न 5. दो प्रकार की भारतीय मछलियों के नाम लिखिए।
उत्तर : भारतीय मछलियों के नाम-कतला (Catla ), रोहू (Rohu)।
प्रश्न 6. साहीवाल गाय का दुग्ध काल कितने दिन होता है?
उत्तर : साहीवाल गाय वर्ष में लगभग 300 दिन दूध देती है।
प्रश्न 7. मुर्गी की संकर नस्लों के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर : मुर्गी की उन्नत संकर नस्लें – HH – 260, IBL – 80 तथा B-77 हैं।
प्रश्न 8. भारत में श्वेत क्रान्ति का जनक किसे कहते हैं?
उत्तर : डॉ० वी० कुरियन (Dr. V. Kurien) को ।
प्रश्न 9. मांस प्रदान करने वाले कुक्कुट क्या कहलाते हैं?
उत्तर : ब्रौलर्स ।
प्रश्न 10. अण्डे देने वाले कुक्कुट को क्या कहते हैं?
उत्तर : लेयर्स ।
प्रश्न 11. राष्ट्रीय डेयरी अनुसंन्धान संस्थान कहाँ स्थित है?
उत्तर : करनाल, हरियाणा में।
प्रश्न 12. मछली में प्रोटीन की कितनी मात्रा होती है?
उत्तर : लगभग 19% ।
प्रश्न 13. गाय की एक द्विउद्देश्यीय नस्ल का नाम लिखिए।
उत्तर : थारपरंकर, कॉकरेज, नीलौर आदि ।
प्रश्न 14. कृषि के लिए सर्वोत्तम मृदा कौन-सी होती है?
उत्तर : दोमट मिट्टी |
प्रश्न 15. अन्तर्फसली कृषि प्रणाली की मुख्य विशेषता क्या है?
उत्तर : बीजों को पंक्तियों के निश्चित क्रम में बोते हैं।
प्रश्न 16. एकवर्षीय फसल चक्र के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर : (i) मक्का — सरसों तथा (ii) चावल – गेहूँ एकवर्षीय फसल चक्र के उदाहरण हैं।
प्रश्न 17. तीन वर्षीय फसल चक्र का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर : कपास—जई— गन्ना – मटर – मक्का — गेहूँ तीन वर्षीय फसल चक्र का उदाहरण है। – – –
प्रश्न 18. भारत में हरित क्रान्ति का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर : प्रो०एम०एस० स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रान्ति का जनक कहा जाता है।
प्रश्न 19. सिल्वर रिवोल्यूशन कार्यक्रम किससे सम्बन्धित है?
उत्तर : अण्डों के उत्पादन में वृद्धि से।
प्रश्न 20. शीत ऋतु में उगाई जाने वाली फसलों को किस नाम से जानते हैं?
उत्तर : रबी की फसलें।
प्रश्न 21. खरीफ की फसलों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर : सोयाबीन, धान, अरहर, मक्का आदि ।
प्रश्न 22. पौधों को कितने वृहत् पोषकों की आवश्यकता होती है?
उत्तर : छह पोषक तत्वों की (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम, सल्फर)।
प्रश्न 23. जैविक प्रतिरोधकता किसके लिए होती है?
उत्तर : रोगाणु, कीट, निमेटोड के प्रति ।
प्रश्न 24. समुद्र में बड़े-बड़े मत्स्य समूहों का पता किस प्रकार लगाया जाता है?
उत्तर : सैटेलाइट तथा प्रतिध्वनि गभीरतामापी से।
प्रश्न 25. व्यावसायिक स्तर पर मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त देशी मधुमक्खी प्रजातियों के नाम लिखिए।
उत्तर : ऐपिस सेरना इंडिका, ऐपिस फ्लोरी ।
प्रश्न 26. समुद्र में मछलियों के अतिरिक्त किनका संवर्धन मत्स्य पालन के अन्तर्गत माना जाता है?
उत्तर : प्रॉन ( झींगा ), मस्सल, ऑएस्टर आदि ।

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