UK 9th Science

UK Board 9th Class Science – Chapter 5 जीवन की मौलिक इकाई

UK Board 9th Class Science – Chapter 5 जीवन की मौलिक इकाई

UK Board Solutions for Class 9th Science – विज्ञान – Chapter 5 जीवन की मौलिक इकाई

अध्याय के अन्तर्गत दिए गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. कोशिका की खोज किसने और कैसे की ?
उत्तर : कोशिका की खोज सर्वप्रथम रॉबर्ट हुक (Robert Hooke, 1665) ने की। रॉबर्ट हुक ने कॉर्क की पतली काट में मधुमक्खी के छत्ते जैसे कोष्ठ देखे और इन्हें कोशिका (cell) कहा । कोशिका शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा ‘शब्द ‘celluld’ से हुई है, इसका तात्पर्य एक छोटा वेश्म (small compartment) है।
प्रश्न 2. कोशिका को जीवन की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई क्यों कहते हैं?
उत्तर : जीवधारियों के शरीर का निर्माण कोशिकाओं से होता है। इस कारण कोशिका को संरचनात्मक इकाई कहते हैं। प्रत्येक जीवित कोशिका मैं जैविक कार्यों को करने की क्षमता होती है। एककोशिकीय जीवों में समस्त जैविक क्रियाओं को एक ही कोशिका सम्पन्न करती है। इसके विपरीत बहुकोशिकीय जीवों में कोशिकाएँ निश्चित कार्य को करने के लिए विशिष्टीकृत हो जाती हैं। कोशिकाएँ कोशिकांगों (organelles) के कारण विशिष्ट कार्य करती हैं। इस कारण कोशिका को जीवन की क्रियात्मक इकाई कहते हैं।
प्रश्न 3. CO2 तथा पानी जैसे पदार्थ कोशिका से कैसे अन्दर तथा बाहर जाते हैं? इस पर चर्चा कीजिए ।
उत्तर : CO2 तथा पानी कोशिका से क्रमशः विसरण एवं परासरण द्वारा आते-जाते हैं।
(1) कोशिका में CO2 तथा O2 का आदान-प्रदान सामान्य विसरण (diffusion) द्वारा होता है। जब कोशिका में CO2 की सान्द्रता अधिक और बाह्य पर्यावरण में CO2 की सान्द्रता कम होती हैं तो CO2 कोशिका से बाह्य पर्यावरण में विसरण द्वारा चली जाती है। इसी प्रकार बाह्य पर्यावरण में ऑक्सीजन (O2) की सान्द्रता कोशिका से अधिक होने के कारण O2 कोशिका में विसरित हो जाती है। विसरण क्रिया पदार्थ के उच्च सान्द्रता वाले स्थान से कम सान्द्रता वाले स्थान की ओर होती है।
(2) जल के अणुओं का आदान-प्रदान परासरण ( osmosis) द्वारा होता है। अर्द्ध- पारगम्य या वरणात्मक पारगम्य झिल्ली से होने वाले विसरण को परासरण कहते हैं। इस क्रिया में जल के अणु वरणात्मक पारगम्य या अर्द्धपारगम्य झिल्ली से जल की उच्च सान्द्रता से जल की निम्न सान्द्रता की ओर साम्य स्थापित होने तक गति करते हैं।
कोशिका को अल्पपरासारी घोल (hypotonic solution); जैसे- जल में रखने पर अन्त: परासरण (endosmosis) की क्रिया होती है। जैसे- किशमिश को पानी में रखने पर किशमिश फूल जाती है। कोशिका ‘को अतिपरासारी घोल (hypertonic solution) में रखने पर बहि:परासरण (exosmosis) की क्रिया होती है। जैसे—अंगूरों को गाढ़े शर्करा या नमक के घोल में रखने पर अंगूर पिचक जाते हैं; क्योंकि कोशिकाओं से जल के अणु बाहर निकल आते हैं।
प्रश्न 4. प्लाज्मा झिल्ली को वरणात्मक पारगम्य झिल्ली क्यों कहते हैं?
उत्तर : प्लाज्मा झिल्ली प्रोटीन तथा लिपिड से बनी होती है। यह अपने में से होकर घोलंक (जल) अणुओं के अतिरिक्त विभिन्न पोषक तत्वों के अणुओं या आयन्स को आने-जाने देती है। यह O2 तथा CO2 को आर-पार आने-जाने देती है। प्लाज्मा झिल्ली से विभिन्न पदार्थों के आयन्स या अणुओं का आना-जाना विसरण द्वारा होता है। सामान्य विसरण में उच्च सान्द्रता वाले स्थान से निम्न सान्द्रता वाले स्थान की ओर आयन्स या अणु गति करते हैं। सक्रिय विसरण में निम्न सान्द्रता से उच्च सान्द्रता की ओर अणु गति करते हैं, इस क्रिया में ऊर्जा व्यय होती है। ऊर्जा ATP से प्राप्त होती है।
प्लाज्मा झिल्ली घोलक के अतिरिक्त कुछ ही पदार्थों के अणुओं को आने-जाने देती है, इस कारण इसे वरणात्मक पारगम्य झिल्ली कहते हैं।
प्रश्न 5. क्या अब आप निम्नलिखित तालिका में दिए गए रिक्त स्थानों को भर सकते हैं, जिससे कि प्रोकैरियोटी तथा यूकैरियोटी कोशिकाओं में अन्तर स्पष्ट हो सके-
प्रश्न 6. क्या आप दो ऐसे अंगकों का नाम बता सकते हैं जिनमें अपना आनुवंशिक पदार्थ होता है?
उत्तर : माइटोकॉण्ड्रिया तथा लवक ( mitochondria and plastids ) में अपना DNA अणु तथा 70S प्रकार के राइबोसोम्स होते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया तथा लवक पूर्व उपस्थित अंगक से बनते हैं।
प्रश्न 7. यदि किसी कोशिका का संगठन किसी भौतिक अथवा रासायनिक प्रभाव के कारण नष्ट हो जाए तो क्या होगा?
उत्तर : कोशिका के संगठन के नष्ट हो जाने के कारण कोशिका का अपशिष्ट निपटाने वाले कोशिका अंगक लाइसोसोम फट जाते हैं और एन्जाइम्स अपनी ही कोशिका का विघटन कर देते हैं फलस्वरूप कोशिका नष्ट हो जाती है।
प्रश्न 8. लाइसोसोम को आत्मघाती थैली क्यों कहते हैं?
उत्तर : कोशिका के क्षतिग्रस्त या मृत हो जाने पर लाइसोसोम्स फट जाते हैं और मुक्त एन्जाइम्स अपनी ही कोशिका को पचा देते हैं, इस कारण लाइसोसोम्स को आत्मघाती थैली कहते हैं।
प्रश्न 9. कोशिका के अन्दर प्रोटीन का संश्लेषण कहाँ होता है?
उत्तर : कोशिकाद्रव्य में । अन्तः प्रद्रव्यी जालिका, केन्द्रक कला तथा केन्द्रकद्रव्य में राइबोसोम्स पाए जाते हैं। राइबोसोम्स प्रोटीन संश्लेषण के लिए उत्तरदायी होते हैं।
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. पादप कोशिकाओं तथा जन्तु कोशिकाओं में तुलना कीजिए। 
उत्तर : पादप कोशिका तथा जन्तु कोशिका में अन्तर
प्रश्न 2. प्रोकैरियोटी कोशिकाएँ यूकैरियोटी कोशिकाओं से किस प्रकार भिन्न होती हैं?
उत्तर : प्रोकैरियोटी (असीमकेन्द्रकी) तथा
यूकैरियोटी (ससीमकेन्द्रकी ) कोशिका में अन्तर
प्रश्न 3. यदि प्लाज्मा झिल्ली फट जाए अथवा टूट जाए तो क्या होगा ? 
उत्तर : प्लाज्मा झिल्ली या कोशिका कला प्रोटीन्स तथा लिपिड्स से बनी सजीव वरणात्मक पारगम्य झिल्ली होती है। यह कोशिका को निश्चित आकार में बनाए रखती है। इसमें पुनरुद्भवन (regeneration) की. क्षमता होती है; अत: यह टूट-फूट से होने वाली क्षति से कोशिका को बचाती है। फटने या टूटने पर इसका पुनः निर्माण हो जाता है।
प्रश्न 4. यदि गॉल्जी उपकरण न हो तो कोशिका के जीवन में क्या होगा?
उत्तर : अन्त: प्रद्रव्यी जालिका में संश्लेषित पदार्थ गॉल्जी उपकरण में पैक करके कोशिका के बाहर तथा अन्दर विभिन्न क्षेत्रों में भेज दिया जाता है। गॉल्जी उपकरण की सिस्टर्नी, रिक्तिकाओं और पुटिकाओं में पदार्थों का संचयन, रूपान्तरण तथा पैक करने की क्रिया होती है। गॉल्जी उपकरण से लाइसोसोम का निर्माण होता है। लाइसोसोम्स कोशिकीय तथा बाह्यकोशिकीय पदार्थों के पाचन का कार्य करते हैं, क्षतिग्रस्त एवं मृत कोशिकाओं का विघटन करते हैं।
अत: गॉल्जी उपकरण के अभाव में उपर्युक्त कार्य सम्पन्न नहीं होंगे।
प्रश्न 5. कोशिका का कौन-सा अंगक बिजलीघर है और क्यों?
उत्तर : माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का बिजलीघर कहलाता है। माइटोकॉण्ड्रिया में भोज्य पदार्थों (ग्लूकोस) का जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण होता है। इसके फलस्वरूप मुक्त ऊर्जा ATP में संचित हो जाती है। ATP में संचित ऊर्जा जैविक क्रियाओं के काम आती है। इस कारण ATP को उपापचय जगत का सिक्का तथा माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का विद्युत गृह कहते हैं।
प्रश्न 6. कोशिका झिल्ली को बनाने वाले लिपिड तथा प्रोटीन का संश्लेषण कहाँ होता है?
उत्तर : खुरदरी अन्त: प्रद्रव्यी जालिका (RER) पर स्थित राइबोसोम्स प्रोटीन का तथा चिकनी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (SER) लिपिड का संश्लेषण करती हैं। प्रोटीन्स तथा लिपिड्स से कोशिका झिल्ली का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया को झिल्ली जीवात् जनन कहते हैं।
प्रश्न 7. अमीबा अपना भोजन कैसे प्राप्त करता है?
उत्तर : अमीबा की कोशिका कला सजीव, लचीली, पारदर्शी तथा वरणात्मक पारगम्य होती है। अमीबा कोशिका कला द्वारा बाह्य पर्यावरण से भोजन ग्रहण करता है। अमीबा द्वारा ठोस भोजन ग्रहण करने की प्रक्रिया को एण्डोसाइटोसिस (endocytosis) तथा कोलॉइडी तरल पदार्थों को ग्रहण करने की प्रक्रिया को पिनोसाइटोसिस (pinocytosis) कहते हैं।
प्रश्न 8. परासरण क्या है?
उत्तर : परासरण – अर्द्ध पारगम्यं या वरणात्मक पारगम्य झिल्ली से होने वाले विसरण को परासरण (Osmosis) कहते है। इसमें जल के अणु उच्च जल की सान्द्रता से निम्न जल की सान्द्रता की ओर अर्द्धपारगम्य था वरणात्मक पारगम्य झिल्ली से होकर जाते हैं।
(अथवा ) कम सान्द्रता वाले विलयन से अधिक सान्द्रता वाले विलयन की ओर विलायक (जल) के अणु अर्द्धपारगम्य या चरणात्मक झिल्ली से साम्य स्थापित होने तक गति करते रहते हैं।
परासरण ( osmosis) की क्रिया में कोशिका द्वारा जल का अवशोषण अथवा कोशिका से जल का निष्कासन बाह्य माध्यम में घुलित पदार्थों की सान्द्रता पर निर्भर करता है। पादप कोशिका को शुद्ध जल या अल्पपरासारी विलयन (hypotonic solution) में रखें तो जल परासरण द्वारा कोशिका में प्रवेश करेगा। इस क्रिया को अन्त: परासरण (cendosmosis) कहते हैं। यदि पादप कोशिका को अतिपरासारी विलयन (hypertonic solution) में रखें तो कोशिका के कोशारस से जल कोशिका से बाह्य माध्यम में विसरित हो जाता है।
प्रयोग द्वारा परासरण का प्रदर्शन
एक बड़े आलू को छीलकर बीच में से दो टुकड़े कर लें। दोनों के मध्य भाग से गूदा निकालकर प्याली की तरह बना लें। एक अर्द्धांश में शक्कर का सान्द्र विलयन डालकर उसको एक आलपिन से आलू के अन्दर अंकित कर दें तथा इसे एक पेट्रीडिश में जल में आधा डूबा हुआ रखें। दूसरे अर्द्धांश में जल डालकर आलपिन से अंकित करें। इस अर्द्धांश को शक्कर के विलयन में रखें। कुछ समय पश्चात् देखने से ज्ञात होगा कि पहले अर्द्धांश में जल की मात्रा विलयन के अन्दर बढ़ी है यह अन्तः परासरण के कारण होता है, जबकि दूसरे अर्द्धांश में जल की मात्रा कम हुई है। यह बहिः परासरण के कारण होता है।
प्रश्न 9. निम्नलिखित परासरण प्रयोग कीजिए :
छिले हुए आधे-आधे आलू के चार टुकड़े लो, इन चारों को खोखला करो जिससे कि आलू के कप बन जाएँ। इनमें से एक कप को उबले आलू में बनाना है। आलू के प्रत्येक कप को जल वाले बर्तन में रखो। अब-
(a) कप ‘A’ को खाली रखो,
(b) कप ‘B’ में एक चम्मच चीनी डालो,
(c) कप ‘C’ में एक चम्मच नमक डालो तथा
(d) उबले आलू में बनाए गए कप ‘D’ में एक चम्मच चीनी डालो।
आलू के इन चारों रूपों को दो घण्टे तक रखने के पश्चात् उनका अवलोकन कीजिए तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-
(i) ‘B’ तथा ‘C’ के खाली भाग में जल क्यों एकत्र हो गया? इसका वर्णन कीजिए।
(ii) ‘A’ आलू इस प्रयोग के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
(iii) ‘A’ तथा ‘D’ आलू के खाली भाग में जल एकत्र क्यों नहीं हुआ? इसका वर्णन कीजिए।
उत्तर : (i) कच्चे आलू के कप ‘B’ तथा ‘C’ की कोशिकाओं की वरणात्मक पारगम्य कोशिका कला के कारण, इनमें अन्त: परासरण क्रिया के फलस्वरूप जल संग्रह हो जाता है। चीनी तथा नमक के कारण कप की कोशिकाओं की सान्द्रता बढ़ जाती है। अतिपरासारी विलयन के कारण बर्तन जलालू के खोखले भाग में एकत्र हो जाता है।
(ii) ‘A’ आलू का खोखला कप नियन्त्रण उपकरण (control apparatus) की तरह कार्य करता है। ‘B’, ‘C’ तथा ‘D’ आलू में होने वाले परिवर्तनों की ‘A’ से तुलना करते हैं। आलू की कोशिकाएँ जल अवशोषित करके स्फीत हो जाती हैं, लेकिन इसके खोखले भाग में जल संग्रह नहीं होता ।
(iii) ‘A’ आलू के कप की कोशिकाओं में जितना जल बर्तन से आता है, उतना ही कोशिकाओं से बर्तन में चला जाता है । ‘D’ आलू के कप की शिकाओं के मृत हो जाने के कारण परासरण क्रिया नहीं होती; अतः ‘A’ तथा ‘D’ में जल की मात्रा में वृद्धि नहीं होती।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. एक प्रारूपिक पादप कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए । चार कोशिकांगों के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : पादप कोशिका की संरचना – पादप कोशिका चारों ओर से निर्जीव कोशिका भित्ति से घिरी होती है। कोशिका के सजीव पदार्थ को जीवद्रव्य (protoplasm) कहते हैं। कोशिकाद्रव्य में सजीव कोशा अंगक (organelles) तथा निर्जीव अन्तर्वेशन (inclusions) पाए जाते है।
कोशा अंगक या कोशिकांग
(i) माइटोकॉण्ड्रिया- – यह दोहरी इकाई झिल्ली से बना अण्डाकार या शलाका के आकार का कोशिकांग है। भीतरी इकाई झिल्ली गुहा की ओर अत्यधिक वलित होकर अनेक उभार बनाती है, इन्हें क्रिस्टी (cristae) कहते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया के मैट्रिक्स में श्वसन विकर पाए जाते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया में भोजन के जैव रासायनिक ऑक्सीकरण के फलस्वरूप मुक्त ऊर्जा ATP में संचित हो जाती है।
(ii) लवक – ये दोहरी इकाई झिल्ली से बनी संरचनाएँ होती हैं। हरे रंग के लवक हरितलवक या क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) कहलाते हैं। इनमें हरा वर्णक पर्णहरित या क्लोरोफिल (chlorophyll) होता है। हरितलवेक प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं। रंगहीन लवक, अवर्णीलवक या ल्यूकोप्लास्ट (leucoplasts) कहलाते हैं। ये विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का संग्रह करते हैं। वर्णीलवक या क्रोमोप्लास्ट (chromoplast) रंगीन होते हैं, ये परागण एवं फल और बीजों के प्रकीर्णन में सहायता करते हैं।
(iii) अन्तः प्रद्रव्यी जालिका – यह इकाई झिल्ली से बनी विभिन्न प्रकार की संरचनाएँ बनाने वाला जाल है जो — (i) कोशिका में कंकाल का निर्माण करता है। (ii) विभिन्न प्रकार के पदार्थों का कोशिकाद्रव्य में संवहन (transport) करता है। (iii) विभिन्न प्रकार की रासायनिक अभिक्रियाओं के लिए सतह प्रदान करता है। (iv) प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होता है।
(iv) राइबोसोम्स – ये अति सूक्ष्म कण होते हैं। ये कोशाद्रव्य, केन्द्रकद्रव्य में एवं अन्तः प्रद्रव्यी जालिकाओं की सतह पर पाए जाते हैं। ये प्रोटीन संश्लेषण के केन्द्र होते हैं।
प्रश्न 3. निम्नलिखित पर विस्तृत सचित्र टिप्पणी कीजिए-
(i) माइटोकॉण्ड्रिया, (ii) हरितलवक, (iii) कोशिका की ‘खोज एवं कोशिका सिद्धान्त ।
उत्तर : (i) माइटोकॉण्ड्रिया
इनकी खोज सर्वप्रथम कॉलिकर (Kollicker, 1880) ने कीटों की रेखित पेशियों में की। आल्टमैन ( Altman, 1890) ने इन्हें बायोप्लास्ट (bioplast) तथा बेण्डा (Benda, 1897) ने माइटोकॉण्ड्रिया (mitochondria) नाम दिया। इनकी लम्बाई 1.5u से 5p तथा व्यास 0.5 से 1 होता है। असीमकेन्द्रकी (प्रोकैरियोटिक ) कोशिकाओं में इनका अभाव होता है। इनकी संख्या विभिन्न कोशिकाओं में भिन्न-भिन्न होती है।
ये गोलाकार या दण्डाकार दोहरी इकाई झिल्ली से घिरी रचनाएँ हैं। इनकी बाह्य झिल्ली सपाट (smooth) होती है। भीतरी झिल्ली माइटोकॉण्ड्रिया की गुहा में अनेक अँगुलीनुमा उभार बनाती है, इन्हें क्रिस्टी (cristae) कहते हैं। क्रिस्टी की सतह पर 80-100 Å लम्बाई के F कण या ऑक्सीसोम (oxysomes ) लगे होते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया में प्रोटीन 65-70%, फॉस्फोलिपिड 25%, RNA 0.5% तथा DNA सूक्ष्म मात्रा में पाया जाता है।
कार्य — माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का विद्युत गृह (power house of cell) कहते हैं। इसमें भोज्य पदार्थों के जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण से ऊर्जा मुक्त होकर ATP में संचित होती है। जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा ATP से प्राप्त होती है।
(ii) हरितलवक
पादप कोशिकाओं में तीन प्रकार के लवक पाए जाते हैं-
(i) अवर्णीलवक, (ii) हरितलवक तथा (iii) वर्णीलवक। लवक शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम हैंकेल (Haeckel, 1865) ने किया था। विभिन्न प्रकार के लवक आवश्यकतानुसार एक-दूसरे में बदल सकते हैं।
हरितलवक पौधों के उन भागों में पाए जाते हैं जो प्रकाश में रहते हैं। पत्तियाँ तथा तने का हरा रंग हरितलवक में पाए जाने वाले पर्णहरित (chlorophyll) के कारण होता है। हरितलवक की खोज शिम्पर (Schimper, 1883) ने की थी।
हरितलवक दोहरी इकाई झिल्ली से घिरी रचनाएँ होती हैं। इकाई झिल्ली से घिरे आधारीय पदार्थ को स्ट्रोमा (stroma) कहते हैं। स्ट्रोमा में सिक्कों के ढेर जैसी रचनाएँ ग्रैना (grana) होती हैं। ग्रैना परस्पर स्ट्रोमा . पटलिकाओं (stroma lamellae) द्वारा जुड़े रहते हैं। ग्रैना की इकाई को थाइलैकॉयड (thylakoid) कहते हैं। थाइलैकॉयड का निर्माण प्रोटीन, पर्णहरित, फॉस्फोलिपिड तथा प्रोटीन की पर्त से होता है। हरितलवक में 35-55% प्रोटीन 25-35% लिपिड्स, 5-10% पर्णहरित, 1-4.5% कैरोटिनॉइड्स, 2-3% आर० एन०ए०, 0.5% डी० एन० ए० तथा सूक्ष्म मात्रा मैं विटामिन, धातुएँ आदि पाई जाती हैं।
कार्य — हरितलवक प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन (ग्लूकोस) का निर्माण करते हैं। प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशिक अभिक्रिया (light reaction) हरितलवक के ग्रैना (grana) में तथा अप्रकाशिक अभिक्रिया (dark reaction) स्ट्रोमा (stroma) में सम्पन्न होती है।
(iii) कोशिका की खोज एवं कोशिका सिद्धान्त
कोशिका का अध्ययन सर्वप्रथम सन् 1665 ई० में रॉबर्ट हुक (Robert Hooke) ने किया था। उन्होंने बोतल के कॉर्क की एक पतली पर्त की आन्तरिक संरचना का अध्ययन अपने द्वारा निर्मित एक संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की सहायता से किया। बोतल के कॉर्क में उन्होंने मधुमक्खी के छत्ते के सदृश संरचना देखी तथा इस संरचना को उन्होंने कोशिका कहा। कोशिका लैटिन भाषा के शब्द सेलुला (cellula) से लिया गया है, जिसका अर्थ है कक्ष या छोटा कमरा ।
एन्टोनी वॉन ल्यूवेनहॉक (Antony Von Leeuwenhoek, 1674) ने एककोशिकीय जन्तुओं, जीवाणुओं आदि को देखा।
कोशिका सिद्धान्त
जर्मन के वनस्पति विज्ञानशास्त्री मैथिअस श्लीडन (Mathias Schleiden, 1838 ) और प्राणी विज्ञानशास्त्री थियोडोर श्वान (Theodor Schwann, 1839) ने कोशिका सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। कोशिका सिद्धान्त से यह स्पष्ट हो जाता है कि जन्तुओं एवं वनस्पतियों के शरीर एक या अनेक कोशिकाओं से बने होते हैं, जो शरीर की रचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाइयाँ हैं तथा जीवद्रव्य इनका भौतिक आधार होता है।
कोशिका सिद्धान्त के प्रमुख आधार (विशेषताएँ) निम्नलिखित हैं-
(1) कोशिकाएँ शरीर की संरचनात्मक इकाइयाँ होती हैं।
(2) कोशिकाएँ शरीर की सभी क्रियाओं अथवा उपापचय (metabolism) की क्रियात्मक इकाइयाँ होती हैं।
(3) कोशिका की उत्पत्ति पूर्ववर्ती कोशिका के विभाजन से ही होती है। अत: कोशिकाएँ जीवधारी के शरीर की आनुवंशिक इकाइयाँ ( hereditary units) होती हैं।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. प्रोकैरियोटी या असीमकेन्द्रकी कोशिका की रचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर : असीमकेन्द्रकी (प्रोकैरियोटिक ) कोशिकाएँ- ऐसी कोशिकाएँ, जिनमें सत्य केन्द्रक (संगठित केन्द्रक) नहीं पाया जाता, केन्द्रक कला के अभाव में गुणसूत्र कोशिकाद्रव्य ( cytoplasm) के सम्पर्क में रहते हैं, प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ कहलाती हैं। इनके गुणसूत्र में हिस्टोन प्रोटीन नहीं होती। इनमें राइबोसोम्स 70S प्रकार के. होते हैं। इन कोशिकाओं में केन्द्रिक गॉल्जीकाय, माइटोकॉण्ड्रिया, अन्त: प्रद्रव्यी जालिका आदि का अभाव होता है। इनमें असूत्री कोशिका विभाजन होता है; जैसे— जीवाणु तथा नीली- हरी शैवालों की कोशिकाएँ ।
प्रश्न 2. राइबोसोम्स की संरचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : राइबोसोम्स – इनकी खोज सर्वप्रथम पैलेड (Palade, 1955) ने की थीं। ये 150Å- 250Å व्यास के गोलाकार सूक्ष्म कण होते हैं। ये कोशिकाद्रव्य, केन्द्रकद्रव्य, माइटोकॉण्ड्रिया, हरितलवक तथा अन्तः प्रद्रव्यी जालिका पर पाए जाते हैं। ये राइबोन्यूक्लिक अम्ल (RNA) तथा प्रोटीन से बने होते हैं। आकार एवं अवसादन गुणांक (sedimentation coefficient) ) के आधार पर ये दो प्रकार के होते हैं—
(i) 70S राइबोसोम्स- ये असीमकेन्द्रकी (प्रोकैरियोटिक ) कोशिकाओं में पाए जाते हैं; जैसे—जीवाणु, नीले-हरे शैवाल आदि ।
(ii) 80S राइबोसोम्स – ये ससीमकेन्द्रकी (यूकैरियोटिक) कोशिकाओं में पाए जाते हैं।
प्रत्येक राइबोसोम दो उप इकाइयों (sub-units) से बना होता है। दोनों इकाइयाँ Mg++ द्वारा परस्पर जुड़ी रहती हैं।
कार्य — राइबोसोम्स प्रोटीन संश्लेषण के लिए उत्तरदायी होते हैं।
प्रश्न 3. अन्तः प्रद्रव्यी जालिका की संरचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : अन्तः प्रद्रव्यी जालिका—इनकी खोज पोर्टर ने सन् 1945 में की थी। अन्त:प्रद्रव्यी जालिका की नलिकाओं का निर्माण दोहरी इकाई झिल्ली से होता है। अन्त: प्रद्रव्यी जालिका निम्नलिखित तीन प्रकार की रचनाओं की बनी होती है-
(1) सिस्टर्नी—अन्त:प्रद्रव्यी जालिका में ये लम्बी, चपटी शाखाहीन नलिकाएँ होती हैं। ये समान्तर क्रम में व्यवस्थित रहती हैं।
(2) थैलियाँ-ये अण्डाकार या लगभग गोल रचनाएँ होती हैं।
(3) नलिकाएँ — ये नलिकाकार, शाखान्वित एवं विभिन्न प्रकार की होती हैं।
कार्य-अन्त: प्रद्रव्यी जालिका की सतह पर जब राइबोसोम्स (ribosomes ) पाए जाते हैं इन्हें खुरदरी या कणिकामय ( granulated) अन्त: प्रद्रव्यी जालिका (RER) कहते हैं। ये प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होती हैं। राइबोसोम्स के अभाव में इन्हें सपाट (smooth) अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (SER) कहते हैं। ये लिपिड्स या वसा के संश्लेषण में सहायक होती हैं। इसके अतिरिक्त ER कोशिका को दृढ़ता प्रदान करती हैं और पदार्थों के स्थानान्तरण में सहायक होती हैं।
प्रश्न 4. प्लाज्मा झिल्ली और कोशिका भित्ति में क्या अन्तर हैं? प्रत्येक के कार्य बताइए।
उत्तर : प्लाज्मा झिल्ली तथा कोशिका भित्ति में अन्तर
प्रश्न 5. कौन-से कोशिकांग कोशिका के ऊर्जा संयन्त्र हैं? संक्षेप में इनके कार्य बताइए।
अथवा माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का विद्युत गृह क्यों कहा जाता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : कोशिका का ऊर्जा संयन्त्र माइटोकॉण्ड्रिया ( mitochondria) को कहते हैं।
माइटोकॉण्ड्रिया के मैट्रिक्स में श्वसन विकर (respiratory enzymes) पाए जाते हैं। इसमें भोज्य पदार्थों का ऑक्सीजन की उपस्थिति में जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण होता है। इसके फलस्वरूप ऊर्जा मुक्त होती है। मुक्त ऊर्जा का लगभग 44 से 65% गतिज ऊर्जा में बदलकर ए०टी०पी० में संचित हो जाता है। ए०टी०पी० में संचित गतिज ऊर्जा द्वारा समस्त जैविक क्रियाओं का संचालन होता है, इसी कारण माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का विद्युत संयन्त्र कहते हैं।
प्रश्न 6. क्रोमैटिन, क्रोमैटिड और क्रोमोसोम ( गुणसूत्र ) में अन्तर बताइए।
उत्तर : क्रोमैटिन, क्रोमैटिड तथा क्रोमोसोम में अन्तर
प्रश्न 7. जीन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : जीन- ये गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं। जीन DNA से निर्मित होते हैं। जीन (gene) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जोहनसन (Johanssen, 1909) ने किया था। जीन लक्षणों के निर्धारक, नियन्त्रक एवं वाहक होते हैं। जीन लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाते हैं। सामान्यतया एक जीन एक लक्षण का निर्धारण करता है। कुछ लक्षणों का निर्धारण अनेक जीन मिलकर करते हैं। कुछ जीन अनेक लक्षणों को प्रभावित करते हैं। जीन को कार्य की इकाई सिस्ट्रॉन (cistron), उत्परिवर्तन की इकाई म्यूटॉन (muton) या पुन: संयोजन की इकाई रिकॉन (recon) मानते हैं।
प्रश्न 8. जीवद्रव्य के भौतिक एवं रासायनिक गुणों का वर्णन कीजिए। इसे जीवन का भौतिक आधार क्यों कहते हैं?
उत्तर : जीवद्रव्य- कोशिका के जीवित पदार्थ को जीवद्रव्य कहते – हैं। इसकी खोज डुजारडिन (Dujardin, 1835 ) ने की । पुरकिन्जे (Purkinje, 1839) ने इसे जीवद्रव्य (protoplasm) नाम से पुकारा। ह्यूगो वॉन मोल (Hugo von Mohl, 1846) ने जीवद्रव्य का वर्णन किया।
जीवद्रव्य के भौतिक गुण – (1) यह रंगहीन, अर्द्धपारदर्शी, अर्द्धतरल जेली सदृश लचीला पदार्थ होता है।
(2) यह उद्दीपनों के प्रति संवेदनशील होता है। यह उद्दीपनों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया प्रदर्शित करता है।
(3) यह विलयन, निलम्बन तथा जटिल कोलॉइडी विलयन के गुणों को प्रदर्शित करता है।
(4) यह सॉल (sol) तथा जेल (gel) अवस्थाओं में पाया जाता है। ये दोनों एक-दूसरे में बदलते रहते हैं।
(5) सॉल के अन्दर निलम्बित कण एक-दूसरे से टकराकर इधर-उधर घूमते रहते हैं। कणों की इस गति को ब्राउनी गति (Brownian movement) कहते हैं।
जीवद्रव्य के रासायनिक गुण — (1) जीवद्रव्य का जीवित अवस्था मैं रासायनिक विश्लेषण सम्भव नहीं है। इसलिए इसके रासायनिक गुणों का ठीक विश्लेषण सम्भव नहीं है।
(2) जीवद्रव्य अनेक रासायनिक यौगिकों का जटिल मिश्रण होता है।
(3) इसकी संरचना में लगभग 40 तत्व भाग लेते हैं।
(4) जीवद्रव्य में सभी पदार्थ आण्विक इकाइयों के रूप में पाए जाते हैं।
(5) जीवद्रव्य एक सुव्यवस्थित, नियमबद्ध, कलिल विलयन (colloidal solution) के रूप में होता है।
(6) जीवद्रव्य के विशिष्ट तन्त्र में ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें ऊर्जा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त की जाती है, ऊर्जा संचित की जाती है और ऊर्जा उपभोग की जाती है; अतः यह एक सक्रिय रासायनिक व्यवस्था को प्रदर्शित करता है।
(7) जीवद्रव्य की मूलभूत संरचना समान होती है, लेकिन एक ही जीवधारी की विभिन्न कोशिकाओं में इसका संगठन और विशेषताएँ अलग-अलग होती हैं।
(8) इसके संगठन में कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन्स, वसा एवं लिपिड्स तथा इनके व्युत्पन्न होते हैं।
(9) जीवद्रव्य में अकार्बनिक पदार्थ प्रायः आयनिक ( ionic) अवस्था मैं पाए जाते हैं।
(10) जीवद्रव्य में विटामिन्स, एन्जाइम्स, हॉर्मोन्स आदि पाए जाते हैं।
जीवद्रव्य की रासायनिक संरचना- जीवद्रव्य एक जटिल मिश्रण है। इसमें लगभग 88-92% जल, 5-9% प्रोटीन्स, 0.5-1.5% लिपिड्स, 1.5-2.5% कार्बोहाइड्रेट्स, 0.5-1.5% अकार्बनिक पदार्थ, 0.7% आर०एन०ए० तथा 0.4% डी०एन०ए० पाया जाता है। जीवद्रव्य की रासायनिक संरचना बदलती रहती है।
जीवधारियों में होने वाली समस्त जैविक क्रियाएँ जीवद्रव्य के द्वारा सम्पन्न होती हैं; अत: थॉमस हक्सले (Thomas Huxley, 1868) ने इसे “जीवन का भौतिक आधार” कहा था।
प्रश्न 9. जन्तु कोशिका की संरचना को नामांकित चित्र से स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर : जन्तु कोशिका की संरचना
• अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. कोशिका के तीन प्रमुख कार्यात्मक क्षेत्र कौन से हैं?
उत्तर : कोशिका के प्रमुख कार्य क्षेत्र – (i) कोशिका कला (plasmalemma), (ii) कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) तथा (iii) केन्द्रक (nucleus) हैं।
प्रश्न 2. कोशिका के प्रमुख कोशिकांगों के नाम लिखिए।
उत्तर : कोशिका की सजीव संरचनाएँ कोशिकांग कहलाती हैं; जैसे – अन्तः प्रद्रव्यी जालिका, माइटोकॉण्ड्रिया, लवक, गॉल्जीकाय, लाइसोसोम, तारककाय, पर ऑक्सीसोम आदि।
प्रश्न 3. यूकैरियोटी कोशिका की विशेषता लिखिए।
उत्तर : ऐसी कोशिकाएँ जिनमें केन्द्रक कला से घिरा हुआ केन्द्रक तथा सुविकसित कोशिकांग पाए जाते हैं तथा राइबोसोम्स 80S प्रकार के होते हैं यूकैरियोटी या ससीमकेन्द्रकीय कोशिकाएँ कहलाती हैं।
प्रश्न 4. कौन-सा कोशिकांग पाचक थैली कहलाता है और क्यों? 
उत्तर : लाइसोसोम को कोशिका की पाचक थैली कहते हैं। लाइसोसोम्स में पाचक विकर भरे होते हैं। ये अन्तःकोशिकीय तथा बाह्य कोशिकीय पदार्थों का पाचन करते हैं।
प्रश्न 5. बाह्य पर्यावरण तथा कोशिकाओं में O2 तथा CO2 का आदान-प्रदान किस विधि द्वारा होता है
उत्तर : विसरण प्रक्रिया द्वारा। इसमें उच्च सान्द्रता से निम्न सान्द्रता की ओर पदार्थ के अणु गति करते हैं।
प्रश्न 6. पारगम्यता किसे कहते हैं?
उत्तर : झिल्ली का वह गुण जिसके द्वारा झिल्ली अपने में से होकर गुजरने वाले पदार्थों पर नियन्त्रण रखती है, पारगम्यता (permeability) कहलाता है।
प्रश्न 7. पारगम्यता के आधार पर झिल्लियाँ कितने प्रकार की होती हैं ?
उत्तर : पारगम्यता के आधार पर झिल्लियाँ चार प्रकार की होती हैं-
(i) पारगम्य, (ii) अपारगम्य, (iii) अर्द्धपारगम्य तथा (iv) वरणात्मक पारगम्य ।
प्रश्न 8. जन्तु कोशिका की अपेक्षा पादप कोशिका बाह्य वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को सुगमता से सहन कर लेती है, क्यों?
उत्तर : सरल संरचना तथा कोशिका भित्ति के पाए जाने के कारण पादप कोशिकाएँ परिवर्तनशील वातावरण को सुगमता से सहन कर लेती हैं।
प्रश्न 9. निम्नलिखित वैज्ञानिक किस खोज से सम्बन्धित हैं?
(i) श्लीडन एवं श्वान
(ii) वाटसन एवं क्रिक
(iii) ल्यूवेनहॉक
(iv) रॉबर्ट ब्राउन ।
उत्तर : (i) श्लीडन एवं श्वान कोशिका सिद्धान्त प्रस्तुत करने के लिए।
(ii) वाटसन एवं क्रिक डी०एन०ए० का मॉडल प्रस्तुत करने के लिए।
(iii) ल्यूवेनहॉक सूक्ष्मदर्शी द्वारा सूक्ष्मदर्शीय एककोशिकीय जीवों को देखने के लिए।
(iv) रॉबर्ट ब्राउन केन्द्रक का पता लगाने के लिए।
प्रश्न 10. कोशा अंगक या कोशिकांग किसे कहते हैं?
उत्तर : कोशाद्रव्य में पाई जाने वाली इकाई झिल्ली से घिरी सजीव संरचनाओं को कोशिकांग (organelles) कहते हैं। प्रत्येक कोशिकांग एक विशिष्ट कार्य सम्पन्न करता है।
प्रश्न 12. हरितलवक तथा अवर्णीलवक में अन्तर लिखिए।
उत्तर : हरितलवक पर्णहरित वर्णक की उपस्थिति के कारण हरे रंग के होते हैं; ये प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोज्य पदार्थों का निर्माण करते हैं। अवर्णीलवक वर्णक की अनुपस्थिति के कारण रंगहीन होते हैं, ये भोजन संचय में सहायक होते हैं।
प्रश्न 12. कणिकामय तथा कणिकाविहीन अन्तः प्रद्रव्यी जालिका किन पदार्थों के संश्लेषण में सहायक होती है?
उत्तर : कणिकामय या खुरदरी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (RER) की सतह पर राइबोसोम्स पाए जाते हैं; अतः ये प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होती हैं। कणिकारहित या चिकनी अन्त: प्रद्रव्यी जालिका (SER) की सतह पर राइबोसोम्स नहीं पाए जाते। ये वसा या लिपिड्स का संश्लेषण करती हैं।
प्रश्न 13. एक कोशिका में सेण्ट्रिओल नहीं पाया जाता, यह किस प्रकार की कोशिका है?
उत्तर : पादप कोशिकाओं में सेण्ट्रिओल का प्राय: अभाव होता है; अतः यह पादप कोशिका है।
प्रश्न 14. जीन क्या है?
उत्तर : जीन डी०एन०ए० का एक भाग होता है जो सामान्यतया एक लक्षण का निर्धारण करता है। जीन गुणसूत्र पर रेखीय क्रम में व्यवस्थित रहते हैं।
प्रश्न 15. कोशिकाद्रव्य क्या है?
उत्तर : कोशिका भित्ति, कोशिका कला तथा केन्द्रक को छोड़कर कोशिका का शेष भाग कोशिकाद्रव्य कहलाता है। इसमें सजीव कोशिकांग तथा निर्जीव कोशिका अन्तर्वेशन पाए जाते हैं। कोशिकांगों की उत्पत्ति पूर्व-उपस्थित कोशिकांगों से होती है, जबकि कोशा अन्तर्वेशन उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप बनते हैं।
प्रश्न 16. प्याज की झिल्ली की कोशिकाएँ किस प्रकार की होती हैं?
उत्तर : प्याज की झिल्ली बहुभुजीय मृदूतकीय कोशिकाओं से बनी होती है। कोशिकाओं के मध्य अन्तराकोशिकीय अवकाश नहीं होता। सभी कोशिकाएँ समान संरचना वाली सजीव होती हैं। सामान्य संयुक्त सूक्ष्मदर्शी से देखने पर हमें कोशिका भित्ति एवं केन्द्रक ही दिखाई देते हैं।
प्रश्न 17. किसी ऐसी कोशिका का नाम लिखिए जिसका आकार लगभग स्थिर रहता है।
उत्तर : तन्त्रिका कोशिका ।
• एक शब्द या एक वाक्य वाले प्रश्न
प्रश्न 1. कोशिका की खोज सर्वप्रथम किस वैज्ञानिक ने की?
उत्तर : रॉबर्ट हुक (Robert Hooke, 1665) ने।
प्रश्न 2. जीवन की कार्यात्मक एवं संरचनात्मक इकाई क्या है?
उत्तर : कोशिका (cell ) ।
प्रश्न 3. राइबोसोम्स का क्या कार्य है?
उत्तर : राइबोसोम्स प्रोटीन संश्लेषण का कार्य करते हैं।
प्रश्न 4. कोशिका सिद्धान्त के प्रतिपादक का नाम लिखिए।
उत्तर : मैथिअस श्लीडन तथा थियोडोर श्वान ।
प्रश्न 5. प्लाज्मा झिल्ली किससे बनी होती है?
उत्तर : प्रोटीन तथा लिपिड से।
प्रश्न 6. माइटोकॉण्ड्रिया के अन्दर पाई जाने वाली अँगुलियों के समान संरचना को क्या कहते हैं?
उत्तर : क्रिस्टी (cristae)।
प्रश्न 7. प्रकाश संश्लेषण क्रिया में अप्रकाशिक अभिक्रिया कहाँ होती है?
उत्तर : हरितलवक के स्ट्रोमा में।
प्रश्न 8. राइबोसोम्स की खोज किसने की थी ?
उत्तर : पैलेड ने।
प्रश्न 9. प्याज की अस्थायी स्लाइड बनाने के लिए किस घोल (स्टेन) का प्रयोग करते हैं?
उत्तर : आयोडीन विलयन का ।
प्रश्न 10. एककोशिकीय या सरल बहुकोशिकीय प्राणी और पौधे जल किस विधि द्वारा ग्रहण करते हैं?
उत्तर : परासरण द्वारा।
प्रश्न 11. DNA का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर : D.N.A.—डिऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल ।
प्रश्न 12. आर०एन०ए० का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर : R.N.A.—राइबो न्यूक्लिक अम्ल |
प्रश्न 13. कोशिका की आत्मघाती थैली किसे कहते हैं?
उत्तर : लाइसोसोम (lysosome) को ।
प्रश्न 14. लाइसोसोम का निर्माण किस कोशिकांग से होता है?
उत्तर : गॉल्जीकाय (golgi apparatus) से ।
प्रश्न 15. माइटोकॉण्ड्रिया के क्रिस्टी पर पाई जाने वाली टेनिस के रैकिट जैसी रचनाओं को क्या कहते हैं?
उत्तर : ऑक्सीसोम्स या F1 कण ।

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