UK 9th Science

UK Board 9th Class Science – Chapter 7 जीवों में विविधता

UK Board 9th Class Science – Chapter 7 जीवों में विविधता

UK Board Solutions for Class 9th Science – विज्ञान – Chapter 7 जीवों में विविधता

अध्याय के अन्तर्गत दिए गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. हम जीवधारियों का वर्गीकरण क्यों करते हैं?
उत्तर : जीवधारियों का वर्गीकरण करने से हमें जीवधारियों के अध्ययन में सुविधा होती है। जीवधारियों के विकास-क्रम का ज्ञान होता है। जीवधारियों के पारस्परिक सम्बन्धों का ज्ञान होता है।
प्रश्न 2. अपने चारों ओर फैले जीव रूपों की विभिन्नता के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर : पर्यावरण में पाए जाने वाले जीवधारियों में असीमित जैव-विविधता पाई जाती है; जैसे-
  1. जहाँ सूक्ष्मदर्शीय अमीबा, यूग्लीना जैसे एककोशिकीय प्राणी पाए जाते हैं वहीं इसके विपरीत नीली व्हेल (लगभग 30 मीटर लम्बी ) जैसे विशालकाय प्राणी भी इस पृथ्वी पर पाए जाते हैं।
  2. जहाँ सूक्ष्मदर्शीय जीवाणु, क्लोरेला शैवाल जैसे एककोशिकीय पादप पाए जाते हैं, वहीं दूसरी ओर सिकोया (लगभग 100 मीटर लम्बे ) जैसे विशालकाय वृक्ष पृथ्वी पर पाए जाते हैं।
  3. जहाँ जीवाणु लगभग 20-30 मिनट तक तथा कीट कुछ दिनों तक जीवित रहते हैं, वहाँ सिकोया जैसे वृक्ष हजारों वर्षों तक जीवित रहते हैं। कछुआ लगभग 300 वर्ष तक जीवित रहता है।
प्रश्न 3. जीवों के वर्गीकरण के लिए सर्वाधिक मूलभूत लक्षण क्या हो सकता है?
(a) उनका निवास स्थान।
(b) उनकी कोशिकीय संरचना ।
उत्तर : जीवों के वर्गीकरण हेतु उपयुक्त लक्षण उनकी ‘कोशिकीय संरचना’ होती है।
प्रश्न 4. जीवों के प्रारम्भिक विभाजन के लिए किस मूल लक्षण को आधार बनाया गया?
उत्तर : यूनानी विचारक अरस्तू ने जीवों के वर्गीकरण हेतु आवास मूल लक्षण को आधार बनाया था। इसके आधार पर उन्होंने जीवधारियों को स्थलीय, वायवीय तथा जलीय समूहों में विभाजित किया था।
प्रश्न 5. किस आधार पर जन्तुओं और वनस्पतियों को एक-दूसरे से भिन्न वर्ग में रखा जाता है?
उत्तर : भोजन ग्रहण करने अर्थात् भोजन निर्माण करने की क्षमता के आधार पर जन्तुओं और पौधों को एक-दूसरे से भिन्न वर्ग में रखा जाता है। जन्तु अपना भोजन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों से प्राप्त करते हैं। पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं।
प्रश्न 6. आदिम जीव किन्हें कहते हैं? ये तथाकथित उन्नत जीवों से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर : आदिम जीव अथवा निम्न जीवों की शारीरिक संरचना में प्राचीन काल से लेकर आज तक कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है, जबकि उन्नत या उच्च जीवों की शारीरिक सरंचना में पर्याप्त परिवर्तन हुए हैं अर्थात् शारीरिक संरचना में हुए परिवर्तनों के आधार पर आदिम जीव उन्नत जीवों से भिन्न होते हैं।
प्रश्न 7. क्या उन्नत जीव और जटिल जीव एक होते हैं?
उत्तर : उन्नत और जटिल जीव एक ही होते हैं; क्योंकि जैव विकास के फलस्वरूप साधारण जीवों से आधुनिक जटिल या उन्नत जीवों का विकास हुआ है।
प्रश्न 8. मोनेरा अथवा प्रोटिस्टा जैसे जीवों के वर्गीकरण के मापदण्ड क्या हैं?
उत्तर : एककोशिकीय मोनेरा अथवा प्रोटिस्टा जीवधारियों को पोषण के आधार पर दो समूहों में बाँट सकते हैं— (क) स्वपोषी तथा (ख) परपोषी ।
जैसे – मोनेरा के अन्तर्गत स्वपोषी नीले-हरे शैवाल और परपोषी जीवाणु तथा प्रोटिस्टा के अन्तर्गत स्वपोषी शैवाल, डाएटम और परपोषी प्रोटाजोआ जन्तु आते हैं।
प्रश्न 9. प्रकाश संश्लेषण करने वाले एककोशिक यूकैरियोटी जीव को आप किस जगत में रखेंगे?
उत्तर : पादप जगत में।
प्रश्न 10. वर्गीकरण के विभिन्न पदानुक्रमों में किस समूह में सर्वाधिक समान लक्षण वाले सबसे कम जीवों को और किस समूह में सबसे ज्यादा संख्या में जीवों को रखा जाएगा?
उत्तर : सबसे कम संख्या में समान लक्षण वाले जीवों को जाति ( स्पीशीज) और सबसे ज्यादा संख्या में समान लक्षण वाले जीवों को संघ फाइलम) पदानुक्रम में रखते हैं।
प्रश्न 11. सरलतम पौधों को किस वर्ग में रखा गया है?
उत्तर : सरलतम पौधों (जीवाणुओं तथा नीले-हरे शैवालों) को मोनेरा (monera) जगत में रखा जाता है।
प्रश्न 12. टेरिडोफाइट और फैनेरोगैम में क्या अन्तर है?
उत्तर : टेरिडोफाइट्स में लिंगी जनन छिपा हुआ होता है। इनमें पुष्प तथा बीजों का निर्माण नहीं होता। इसके विपरीत फैनेरोगैम्स में पुष्प तथा बीजों का निर्माण होता है, अर्थात् लिंगी जनन स्पष्ट होता है।
प्रश्न 13. जिम्नोस्पर्म और एन्जियोस्पर्म एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर : जिम्नोस्पर्म और एन्जियोस्पर्म में अन्तर
क्र०सं० जिम्नोस्पर्म (अनावृतबीजी) एन्जियोस्पर्म (आवृतबीजी)
1. संवहन ऊतक में वाहिका तथा सह-कोशिकाएँ नहीं पाई जातीं। संवहन ऊतक में अन्य कोशिकाओं के साथ-साथ वाहिका तथा सह-कोशिकाएँ पाई जाती हैं।
2. इनमें जनन रचनाएँ शंकु कहलाती हैं। इनमें जनन रचनाएँ पुष्प कहलाती हैं।
3. इनमें बीज नग्न होते हैं। इनमें बीज फलावरण से घिरे होते हैं।
4. इनमें एकल निषेचन होता है। इनमें दोहरा निषेचन होता है।
5. इनमें नर युग्मकं (पुमणु) चल होते हैं। इनमें नर युग्मक (पुमणु) अचल होते हैं।
6. भ्रूणपोष निषेचन से पहले बनता है। भ्रूणपोष निषेचन के बाद बनता है।
प्रश्न 14. पोरीफेरा और सीलेण्टरेटा संघ के जन्तुओं में क्या अन्तर है?
उत्तर : पोरीफेरा और सीलेण्टरेटा संघ
के जन्तुओं में अन्तर
क्र०सं० पोरीफेरा सीलेन्टरेटा
1. शरीर संगठन कोशिकीय स्तर का होता है। शरीर संगठन ऊतक स्तर का होता है।
2. शरीर में स्पंजगुहा पाई जाती है। शरीर में सीलेण्टरॉन गुहा पाई जाती है।
3. देहभित्ति में असंख्य छिद्र ऑस्टिया पाए जाते हैं। ऑस्टिया से जल स्पंजगुहा में पहुँचता है और ऑस्कुलम से बाहर निकल जाता है। जल मुख से सीलेण्टरॉन में पहुँचता है और मुख से ही बाहर निकल जाता है; अर्थात् मुख ही गुदा का कार्य करता है ।
4. ये स्थिर होते हैं। समूह में पाए जाते हैं। उदाहरण- साइकन, यूप्लैक्टेला, स्पन्जिला आदि । ये चल होते हैं। एकाकी या समूह में रहते हैं। उदाहरण — हाइड्रा, समुद्री एनीमोन, जेलीफिश. आदि ।
प्रश्न 15. ऐनेलिडा के जन्तु, आर्थोपोडा के जन्तुओं से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर : ऐनेलिडा तथा आर्थ्रोपोडा
के जन्तुओं में अन्तर
क्र०सं० ऐनेलिडा आर्थोपोडा
1. इस संघ के जन्तुओं में बाह्य कंकाल नहीं होता । इस संघ के जन्तुओं में बाह्य कंकाल काइटिन से बना होता है।
2. आहारनाल सीधी नलिका होती है। आहारनाल कुण्डलित नलिका होती है।
3. रुधिर परिसंचरण तन्त्र बन्द प्रकार का होता है। रुधिर परिसंचरण तन्त्र खुले प्रकार का होता है।
4. इनमें नेत्र नहीं होते । इनमें संयुक्त नेत्र पाए जाते हैं।
5. प्रचलन शूक, चूषक या पैरापोडिया द्वारा होता है। प्रचलन सन्धियुक्त उपांगों द्वारा होता है।
6. ये एकलिंगी या द्विलिंगी होते हैं। उदाहरण- केंचुआ (फेरेटिमा) जोंक (हिरुडिनेरिया) नेरीज । ये एकलिंगी होते हैं। उदाहरण – तिलचट्टा (पेरीप्लैनेटा) घरेलू मक्खी ( मस्का डोमेस्टिका) बिच्छू (पैलेम्निअस), पैलीमॉन आदि।
प्रश्न 16. जल-स्थलचर और सरीसृप में क्या अन्तर हैं?
उत्तर : जल-स्थलचर और सरीसृप में अन्तर
क्र०सं० जल-स्थलचर सरीसृप
1. त्वचा नम, लचीली तथा पतली होती है। यह श्वास क्रिया में सहायक होती है। बाह्य कंकाल का अभाव होता है। त्वचा शुष्क, मोटी तथा शल्कीय होती है। यह श्वास क्रिया में सहायक नहीं होती। बाह्य कंकाल शल्कों बना होता है।
2. ये जल तथा स्थल दोनों स्थानों पर रह सकते हैं। ये मुख्यतया स्थल पर रहते हैं। ये रेंगकर चलने वाले प्राणी हैं।
3. हृदय में दो अलिन्द तथा एक निलय होता है। हृदय में दो अलिन्द तथा अपूर्णरूप से विभाजित निलय होता है।
4. श्वसन क्लोम, त्वचा अथवा फेफड़ों द्वारा होता है। श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है।
5. ये अण्डे सदैव जल में देते हैं। अण्डे कवच रहित होते हैं। ये स्थल पर अण्डे देते हैं। अण्डे कवच युक्त होते हैं।
प्रश्न 17. पक्षी वर्ग और स्तनपायी वर्ग के जन्तुओं में क्या अन्तर है?
उत्तर : पक्षी तथा स्तनपायी वर्ग में अन्तर
क्र०सं० पक्षी स्तनपायी
1. शरीर परों (feathers) से ढका रहता है। शरीर बालों (hairs) से ढका रहता है।
2. अग्रपाद पंख (wing) में रूपान्तरित हो जाते हैं। ये उड़ने में सहायक होते हैं। अग्रपाद प्रचलन या वस्तुओं को पकड़ने के लिए उपयोजित होते हैं।
3. जबड़े चोंच के रूप में बदल जाते हैं। चोंच में दाँत नहीं होते। जबड़े दाँत युक्त होते हैं। दाँत विषमदन्ती होते हैं।
4. कर्ण पल्लव तथा स्तनग्रन्थियाँ नहीं पाई जातीं। कर्ण पल्लव तथा स्तन ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं।
5. ये अण्डज (oviparous) होते हैं। ये जरायुज (viviparous) होते हैं।
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. जीवों के वर्गीकरण से क्या लाभ है?
उत्तर : जीवों के वर्गीकरण से लाभ या महत्त्व जीवों के वर्गीकरण से निम्नलिखित लाभ हैं-
  1. अध्ययन में सहायक – किसी वर्ग या संघ के एक जीवधारी का अध्ययन कर लेने से उस समूह के अन्य जीवधारियों के बारे में सुगमता से अनुमान लगाया जा सकता है।
  2. विकास क्रम का ज्ञान – वर्गीकरण में जीवधारियों को उनके गुणों की जटिलता के आधार पर रखा गया है। इससे उनके विकास का क्रम ज्ञात हो जाता है। जैसे—कॉर्डेटा के अन्तर्गत मत्स्य, जलस्थलचर, सरीसृप, पक्षी तथा स्तनी प्राणियों का वर्गीकरण उनके लक्षणों की जटिलता के आधार पर किया गया है।
  3. संयोजी कड़ियों का ज्ञान- जब किसी जीवधारी में दो समुदाय के लक्षण पाए जाते हैं तो उसे उन दो समूहों के मध्य की संयोजी कड़ी कहते हैं। इससे विकास क्रम का ज्ञान होता है; जैसे आर्किऑप्टेरिक्स में सरीसृप तथा पक्षी वर्ग के लक्षण पाए जाते हैं। इसके आधार पर यह अनुमान लगाया गया कि पक्षियों की उत्पत्ति सरीसृप वर्ग के प्राणियों से हुई है।
  4. जलीय प्राणियों से स्थलीय प्राणियों के विकास का ज्ञान – वर्गीकरण के अध्ययन से ज्ञात होता है कि सरल जलीय जन्तुओं से बहुकोशिकीय जन्तुओं तथा स्थलीय जन्तुओं का विकास हुआ है।
इसके अतिरिक्त वर्गीकरण के फलस्वरूप पर्यावरण पारितन्त्र के घटकों, कृषि एवं इसे हानि पहुँचाने वाले जीवों, रोगजनक, रोगवाहक जीवों, जनस्वास्थ्य के घटकों का अध्ययन करने में सुगमता होती है।
प्रश्न 2. वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारण के लिए दो लक्षणों में से आप किस लक्षण का चयन करेंगे?
उत्तर : वर्गीकरण के पदानुक्रम में जीवों को विभिन्न लक्षणों के आधार पर छोटे-छोटे समूहों में बाँटते हुए वर्गीकरण की आधारभूत इकाई जाति (species) तक पहुँचते हैं। सभी जीवधारियों को उनकी शारीरिक संरचना, पोषण के स्त्रोत भोजन ग्रहण करने की विधि तथा कार्य के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। विकास क्रम के साथ-साथ शारीरिक लक्षणों में अधिक परिवर्तन होता है। विकास क्रम में जो लक्षण सबसे पहले प्रदर्शित होते हैं, उन्हें उनके मूल लक्षण कहते हैं। जैव विकास के फलस्वरूप मूल लक्षणों में निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं, जिससे जीवधारी अधिक सफलतापूर्वक जीवनयापन कर सकें।
वर्गीकरण के विभिन्न पदानुक्रम निम्नवत् हैं-
जगत → संघ → वर्ग → गण → कुल → वंश → जाति ।
प्रश्न 8. जीवों के पाँच जगत में वर्गीकरण के आधार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : आर० एच० हिटेकर (R.H. Whittaker, 1959) ने ममस्त जीवधारियों को कोशिकीय संरचना, पोषण के स्रोत तथा भोजन ग्रहण करने की विधि और शारीरिक संगठन के आधार पर निम्नलिखित 5 जगत में बाँटा था-
(1) जगत मोनेरा (monera ) के अन्तर्गत प्रोकैरियोटिक, एककोशिकीय जीवधारियों को रखा गया है। पोषण के आधार पर ये परपोषी या स्वपोषी होते हैं। अधिकांश जीवाणु परपोषी तथा नीले-हरे शैवाल स्वपोषी होते हैं। इनमें प्राय: कोशिका भित्ति पाई जाती है।
(2) जगत प्रोटिस्टा (Protista) के अन्तर्गत यूकैरियोटिक, एककोशिकीय जीवधारियों को रखा गया है। कोशिकाओं में कोशिकाभित् उपस्थित या अनुपस्थित होती है। कोशिका भित्तियुक्त कोशिकाएँ पादप जगत तथा कोशिका भित्ति रहित कोशिकाएँ जन्तु जगत की सदस्य होती है। विभिन्न प्रकार के शैवाल, डाएटम स्वपोषी तथा अमीबा, पैरामीशियम आदि प्रोटोजोआ कोशिकाएँ परपोषी होती हैं। जन्तु कोशिकाओं में प्रचलन हेतु सीलिया, फ्लैजेला आदि सरंचनाएँ पाई जाती हैं।
(3) फंजाई (fungi) के अन्तर्गत यूकैरियोटिक हरितलवक रहित परपोषी पादप आते हैं। ये परजीवी या मृतजीवी होते हैं। परजीवी अपना . भोजन जीवित पोषद (host) से प्राप्त करते हैं। परजीवी एवं पोषद में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। मृतजीवी पोषण के लिए मृत सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर करते हैं। जैसे— राइजोपस, कुकुरमुत्ता (मशरूम), यीस्ट, गुच्छी, पेनिसिलियम आदि।
(4) प्लाण्टी (plantae) के अन्तर्गत बहुकोशिकीय, यूकैरियोटिक कोशिका वाले विकसित पादप आते हैं। ये स्वपोषी होते हैं। . प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। इसके अन्तर्गत थैलोफाइटा, ब्रायोफाइटा, टेरिडोफाइटा, जिम्नोस्पर्म, एन्जियोस्पर्म आदि पादप आते हैं।
(5) ऐनिमेलिया (animalia) के अन्तर्गत बहुकोशिकीय, कोशिका भित्तिरहित यूकैरियोटिक कोशिका वाले ‘जन्तु’ आते हैं। ये पोषण की दृष्टि से परपोषी होते हैं। इसके अन्तर्गत अकशेरुकी तथा कशेरुकी जन्तु आते हैं।
प्रश्न 4. पादप जगत के प्रमुख वर्ग कौन हैं? इस वर्गीकरण का क्या आधार है?
उत्तर : पादप जगत के प्रमुख वर्ग-
(i) थैलोफाइटा,
(ii) ब्रायोफाइटा,
(iii) टेरिडोफाइटा,
(iv) जिम्नोस्पर्म,
(v) एन्जियोस्पर्म।
पादप जगत के वर्गीकरण के मुख्य आधार —
(i) पादप शरीर के विभिन्न भागों का विकास एवं विभेदन |
(ii) पादप शरीर में जल, खनिज तथा कार्बनिक भोज्य पदार्थों का – संवहन करने वाले विशिष्ट ऊतकों (जाइलम, फ्लोएम) की अनुपस्थिति अथवा उपस्थिति।
(iii) पादपों में बीजाणु (spores) अथवा बीजों (seeds) द्वारा जनन ।
(iv) बीज का नग्नबीजी अथवा आवृतबीजी होना ।
प्रश्न 5. जन्तुओं और पौधों के वर्गीकरण के आधारों में मूल अन्तर क्या है?
उत्तर : जन्तुओं और पौधों के वर्गीकरण
   के आधारों में मूल अन्तर
क्र०सं० जन्तु पौधे
1. जन्तु प्रचलन अर्थात् स्थान परिवर्तन करते हैं। पौधे स्थिर रहते हैं।
2. कोशिका भित्ति का अभाव होता है। शारीरिक संरचना एवं संगठन जटिल होता है। कोशिका भित्ति सेलुलोस से बनी होती है। शारीरिक संरचना एवं संगठन सरल होता है।
3. इनमें पर्णहरित का अभाव होता है। इनमें पर्णहरित पाया जाता है।
4. ये परपोषी या विषमपोषी होते हैं। जन्तु भोजन प्राप्त करने के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों पर निर्भर रहते हैं। ये स्वपोषी होते हैं। सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपना भोजन CO2 तथा जल से स्वयं बना लेते हैं।
5. जन्तु एक निश्चित आयु तक वृद्धि करते हैं। पौधे जीवनपर्यन्त वृद्धि करते रहते हैं।
प्रश्न 6. वर्टीब्रेटा (कशेरुक प्राणी) को विभिन्न वर्गों में बाँटने के आधार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : सभी वर्टीब्रेटा (कशेरुक प्राणियों) में मेरुदण्ड पाई जाती है। यह पृष्ठीय खोखली मेरुरज्जु को घेरे रहती है । ग्रसनी विदर या क्लोम विदर प्राय: भ्रूण अवस्था में ही पाए जाते हैं। जलीय जन्तुओं; जैसे मछली की वयस्क अवस्था में क्लोम ( gills) पाए जाते हैं। मेरुरज्जु का अग्रभाग मस्तिष्क बनाता है। सिर पर नेत्र, कर्ण तथा घ्राणग्राही आदि संवेदी अंग होते हैं। अन्त:कंकाल सुविकसित होता है। पेशियाँ अन्त: कंकाल से लगी होती हैं। पेशियाँ तथा अस्थियाँ प्रचलन में सहायक होती हैं।
वर्टीब्रेटा के वर्गीकरण के मुख्य आधार
वर्टीब्रेटा के वर्गीकरण के मुख्य आधार निम्नलिखित हैं-
(1) वयस्क अवस्था में या भ्रूण अवस्था में क्लोम विदर का पाया जाना। (2) त्वचा पर श्लेष्म ग्रन्थियाँ, स्वेद ग्रन्थियाँ, तैल ग्रन्थियाँ, दुग्ध ग्रन्थियाँ आदि का पाया जाना। (3) बाह्य कंकाल शल्क, हॉर्नीप्लेट्स, पर ( feathers), बाल से बना हुआ। (4) अन्तः कंकाल उपास्थि या अस्थि से बना हुआ। (5) श्वसन क्लोम, त्वचा या फेफड़ों द्वारा । (6) हृदय में वेश्मों की संख्या । (7) अग्रपादों का पंखों में रूपान्तरण । (8) असमतापी या समतापी । (9) अण्डज या जरायुज । ( 10 ) अण्डे जल में देना या जल से बाहर देना । अण्डे कवच रहित या कवच युक्त ।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वनस्पति जगत् के वर्गीकरण की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए। उपजगत थैलोफाइटा के विभिन्न समूहों की विशेषताओं का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर : वनस्पति या पादप जगत के वर्गीकरण की रूपरेखा
उपजगत : थैलोफाइटा
इन पौधों में शारीरिक विभेदीकरण नहीं पाया जाता। इनमें लैंगिक जनन के समय भ्रूण नहीं बनता । थैलोफाइटा के अन्तर्गत शैवाल, कवक, जीवाणु तथा लाइकेन आते हैं।
(क) शैवाल की विशेषताएँ
शैवालों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
(1) हरितलवक की उपस्थिति के कारण शैवाल स्वपोषी होते हैं। (2) ये प्रायः जलीय होते हैं। कुछ शैवाल नम मिट्टी में भी उगते हैं। (3) शारीरिक संरचना सरल होती है तथा किसी प्रकार के ऊतक नहीं पाए जाते । (4) पौधा युग्मकोद्भिद् होता है। यह बिना अर्द्धसूत्री विभाजन के युग्मक बनाता है। (5) इनमें जनन इकाइयाँ चल (motile) होती हैं। (6) कोशिका भित्ति सेलुलोस से बनी होती है।
उदाहरण— क्लैमाइडोमोनास (Chlamydomonas ), यूलोथ्रिक्स (Ulothrix), स्पाइरोगाइरा (Spirogyra) आदि ।
(ख) कवक की विशेषताएँ
कवकों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
(1) हरितलवक के अभाव में ये विषमपोषी होते हैं अर्थात् प्राय: मृतजीवी या परजीवी होते हैं। अधिकतर अपघटनकर्ता हैं।
(2) शारीरिक संरचना सरल सूत्रों या धागों की तरह के कवक सूत्रों (hyphae) से होती है। कवक सूत्र परस्पर मिलकर कवक जाल (mycelium) बनाते हैं।
(3) जनन अनेक विधियों से होता है तथा किसी-न-किसी प्रकार के बीजाणु (spores) बनते हैं। बीजाणु आदि अचल (non-motile) होते हैं। इनका प्रकीर्णन वायु द्वारा होता है।
(4) कोशिका भित्ति कवक सेलुलोस से बनी होती है।
उदाहरण – राइजोपस (Rhizopus), कुकुरमुत्ता ( toadstools); गुच्छ आदि।
(देखिए चित्र 3 )
(ग) जीवाणु की विशेषताएँ
जीवाणुओं की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
(1) ये सर्वव्यापी होते हैं।
(2) ये विभिन्न आकार एवं आकृति के होते हैं। जैसे—गोला, दण्डाणु, सर्पिलाणु, कोमाक्वी आदि ।
(3) इनमें संगठित केन्द्रक (कोशिका कला के अभाव में गुणसूत्र कोशिकाद्रव्य के सम्पर्क में रहता है) का अभाव होता है।
(4) कोशिकाद्रव्य में ग्लाइकोजन, वसा; संचित भोजन के रूप में पाई जाती हैं।
(5) जीवाणु कोशिका में माइटोकॉण्ड्रिया, अन्त: प्रद्रव्यी जालिका, लवक, गॉल्जीकाय आदि का अभाव होता है। इनमें 70 S प्रकार के राइबोसोम्स होते हैं। ये प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं को प्रदर्शित करते हैं।
(6) ये प्राय परजीवी या मृतजीवी होते हैं। कुछ जीवाणुओं में प्रकाशसंश्लेषी वर्णक की उपस्थिति के कारण ये स्वपोषी होते हैं।
(7) जीवाणु लाभदायक तथा हानिकारक दोनों प्रकार के होते हैं।
उदाहरण – बैसिलस, माइक्रोकॉक्स, सारसिना माइक्रोस्पाइरा, विब्रियो आदि ।
(घ) लाइकेन की विशेषताएँ
लाइकेन की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
(1) ये प्रायः नम जलवायु में वृक्षों के तनों या चट्टानों पर पाए जाते हैं।
(2) ये शैवाल तथा कवक के सहयोग से बने सहजीवी (symbiotic) पौधे हैं।
(3) कवक शैवाल को निवास स्थान तथा वातावरण से जल अवशोषित करके प्रदान करता है। शैवाल कवक को भोजन प्रदान करता है। इस प्रकार दोनों जीव एक-दूसरे को लाभान्वित करते हैं।
(4) कवक तन्तुओं के बीच में नीली-हरी शैवाल; जैसे— नॉस्टॉक, एनाबीना आदि रहते हैं।
(5) इनका शरीर पपड़ी या पत्ती सदृश अथवा शाखायुक्त सूकाय (thallus ) होता है।
(6) इनमें जनन कायिक, अलैंगिक तथा लैंगिक विधियों से होता है।
उदाहरण- पार्मेलिया (Parmelia), गायरोफोरा (Gyrophora), ग्रैफिस (Graphis), असनिया ( Usnea ) आदि ।
प्रश्न 2. संघ कॉर्डेटा के मुख्य लक्षण क्या हैं? इसका लक्षणों एवं उदाहरण सहित वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर : संघ कॉर्डेटा के मुख्य लक्षण
(1) पृष्ठ रज्जु का पाया जाना – इस संघ के सभी जन्तुओं में जीवन की किसी-न-किसी अवस्था में एक लचीली ठोस छड़ पृष्ठ रज्जु (notochord ) होती है, जो शरीर की मध्य पृष्ठ रेखा में आहारनाल के ऊपर तथा तन्त्रिका रज्जु के नीचे पाई जाती है। कुछ जन्तुओं में पृष्ठ रज्जु जीवनपर्यन्त पाई जाती है, किन्तु उच्च जन्तुओं में पृष्ठ रज्जु मेरुदण्ड में बदल जाती है।
(2) पृष्ठीय नलिकाकार तन्त्रिका रज्जु – यह पृष्ठ रज्जु के ऊपर मध्य पृष्ठ सतह पर स्थित खोखली नलिकाकार संरचना होती है। उच्च कॉर्डेटा जन्तुओं में इसका अग्रभाग मस्तिष्क तथा शेष भाग रीढ़ रज्जु (spinal cord) बनाता है।
(3) ग्रसनी तथा क्लोम दरारें—ये कॉर्डेटा जन्तुओं या उसकी भ्रूण अवस्था में पाई जाती हैं। ये श्वसन क्रिया में सहायक होती हैं। जलीय कॉर्डेटा में ये क्लोम (gills) में बदल जाती हैं। स्थलीय व वायवीय जन्तुओं में ये बन्द हो जाती हैं।
(4) यकृत निवाहिका तन्त्र – आहारनाल के विभिन्न भागों से शिराएँ रुधिर को यकृत निवाहिका शिरा द्वारा यकृत में पहुँचाती हैं। यकृत से रुधिर हृदय में पहुँचता है।
(5) पेशीय अधर हृदय – सभी कॉर्डेटा जन्तुओं में हृदय देहगुहा में अधर तल पर पाया जाता है।
(6) लाल रुधिर कणिकाओं की उपस्थिति — रुधिर की लाल – रुधिर कणिकाओं में हीमोग्लोबिन के कारण रुधिर का रंग लाल प्रतीत होता है। हीमोग्लोबिन श्वसन में सहायक होता है।
(7) पूँछ की उपस्थिति – सभी कॉर्डेटा जन्तुओं में गुदा के पीछे एक पेशीयुक्त पूँछ पाई जाती है, जो कुछ जन्तुओं में भ्रूणावस्था के पश्चात् समाप्त हो जाती है और कुछ में जीवनपर्यन्त बनी रहती है।
संघ कॉर्डेटा का वर्गीकरण
इस संघ के प्राणियों को दो उपसंघों में बाँटा गया है-
(क) पोटोकॉर्डेटा (protochordata)
(ख) वटबेटा (vertebrata)
(क) उपसंघ प्रोटोकॉर्डेटा के लक्षण
उपसंघ प्रोटोकॉडेंटा के लक्षण निम्नलिखित हैं-
(i) ये द्विपार्श्व सममित, त्रिस्तरीय एवं वास्तविक देहगुहा युक्त होते हैं।
(ii) जीवन की किसी-न-किसी अवस्था में नोटोकॉर्ड अवश्य पाई जाती है।
(iii) इन जन्तुओं में जीवन की सभी अवस्थाओं में नोटोकॉर्ड उपस्थित नहीं रहती; जैसे— हर्डमानिया (Herdmania) में लार्वा अवस्था में यह उपस्थित तथा वयस्क अवस्था में अनुपस्थित होती है।
(iv) प्रसनीय गिल दरारें पाई जाती है।
उदाहरण – बैलैनोग्लोसस, ऐम्फिऑक्सस, हर्डमानिया, साल्पा आदि।
(ख) उपसंघ वर्टीब्रेटा के लक्षण 
उपसंघ वर्टीब्रेटा के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-
(i) ये द्विपार्श्व सममित, त्रिस्तरीय एवं वास्तविक देहगुहा युक्त होते हैं।
(ii) इनमें कशेरुक दण्ड तथा मेरुरज्जु पाया जाता है।
(iii) ग्रसनीय गिल दरारें प्रायः भ्रूण अवस्था में ही पाई जाती हैं।
जलीय जन्तुओं में वयस्क अवस्था में श्वसन हेतु क्लोम पाए जाते हैं। वर्टीब्रेटा उपसंघं को मुख्य रूप से 5 वर्गों में विभाजित करते हैं-
(1) वर्ग : मत्स्य — उदाहरण : रोहू, शार्क, डॉगफिश, टॉरपीडो एक्सोसीट्स, हिप्पोकैम्पस आदि ।
(2) वर्ग : एम्फिबिया – उदाहरण : मेढक (राना टिग्रीना), टोड (ब्यूफो), हाइला (वृक्षीय मेढक ), इक्थियोफिस आदि।
(3) वर्ग : रेप्टीलिया – उदाहरण: छिपकली (हेमीडैक्टाइलस), घड़ियाल, साँप, मगरमच्छ, कछुआ आदि।
(4) वर्ग : एवीज — उदाहरण : कबूतर (कोलम्बा), कौआ (कॉर्वस), गौरैया (पैसर) आदि ।
(5) वर्ग : मैमेलिया – उदाहरण : एकिडना, कंगारू, चूहा, चमगादड़, शेर, बन्दर, मानव आदि ।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित में अन्तर लिखिए-
(क) शैवाल तथा कवक ।
(ख) ब्रायोफाइटा तथा टेरिडोफाइटा ।
(ग) द्विबीजपत्री तथा एकबीजपत्री पौधे ।
उत्तर : (क) शैवाल तथा कवक में अन्तर
क्र०सं० शैवाल कवक
1. ये जलीय होते हैं। ये स्थलीय होते हैं।
2. पर्णहरित के कारण स्वपोषी होते हैं। पर्णहरित के अभाव में परपोषी होते हैं।
3. कोशिका भित्ति सेलुलोस की बनी होती है। कोशिका भित्ति कवक सेलुलोस की बनी होती है।
4. इनमें संचित भोजन मण्ड के रूप में होता है। इनमें संचित भोजन ग्लाइकोजन (glycogen) के रूप में होता है।
5.
जनन इकाइयाँ चल ( motile) होती हैं।
उदाहरण – यूलोथ्रिक्स, स्पाइरोगाइरा वॉलवॉक्स, क्लोरेला आदि।
जनन इकाइयाँ अचल (non-motile) होती हैं।
उदाहरण- म्यूकर, राइजोपस, यीस्ट, पक्सीनिया आदि।
(ख) ब्रायोफाइटा तथा टेरिडोफाइटा में अन्तर
क्र०सं० ब्रायोफाइटा टेरिडोफाइटा
1. मुख्य पौधा युग्मकोद्भिद होता है। मुख्य पौधा बीजाणु-उद्भिद् होता है।
2. कुछ पौधों का शरीर सूकाय होता है, जबकि कुछ में जड़, तना व पत्तियों जैसी रचनाएँ होती हैं। पौधों का शरीर वास्तविक जड़, तना तथा पत्तियों में बँटा होता है।
3. वास्तविक संवहन ऊतक नहीं पाया जाता है। वास्तविक संवहन ऊतक होते हैं।
4. बीजाणु – उद्भिद् युग्मकोद्भिद् पर पूर्ण या आंशिक परजीवी होता है। बीजाणु – उद्भिद् शिशु अवस्था में युग्मकोद्भिद् पर परजीवी होता है।
5.
इसके पुमणु में दो सीलिया होते हैं।
उदाहरण — रिक्सिया, मार्केन्शिया, फ्यूनेरिया आदि।
इसके पुमणु में अनेक सीलिया होते हैं।
उदाहरण – फर्न, सिलेजिनेला, लाइकोपोडियम आदि।
(ग) द्विबीजपत्री एवं एकबीजपत्री पौधों में अन्तर
क्र०सं० द्विबीजपत्री एकबीजपत्री
1. बीज में दो बीजपत्र होते हैं। बीज में एक बीजपत्र होता है।
2. इनके तने में संवहन बण्डल वलय में तथा वर्धी होते हैं। इनके तने में संवहन बण्डल भरण ऊतक में बिखरे हुए एवं अवर्धी होते हैं।
3. इनके बीज प्राय: अभ्रूणपोषी होते हैं। इनके बीज भ्रूणपोषी होते हैं।
4. इनके पुष्प प्रायः चतुष्तयी या पंचतयी होते हैं। इनके पुष्प प्रायः त्रितयी होते हैं।
5. पत्तियों में शिराविन्यास जालिकावत् होता है। इनकी पत्तियों में समान्तर शिराविन्यास होता है।
6.
इनमें प्रायः मूसला जड़-तन्त्र होता है।
उदाहरण – गुड़हल, सूर्यमुखी, मटर, सरसों इत्यादि ।
इसमें प्रायः अपस्थानिक जड़-तन्त्र होता है।
उदाहरण – गेहूँ, मक्का, ज्वार, प्याज, गन्ना इत्यादि ।
प्रश्न 2. संघ सीलेण्टरेटा या निडेरिया के मुख्य लक्षण लिखिए।
उत्तर : संघ सीलेण्टरेटा के मुख्य लक्षण
इस संघ के अन्तर्गत आने वाले जन्तुओं के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) ये जलीय होते हैं। अधिकांश समुद्री होते हैं। इनका शरीर बहुकोशिकीय व इनका आकार निश्चित होता है।
(2) शरीर त्रिज्या – सममित (radially symmetrical) होता है।
(3) देहभित्ति द्विस्तरीय ( diploblastic ) होती है।
(4) कुछ जन्तु बहुरूपी (polymorphic ) होते हैं। बेलनाकार रचना को पॉलिप (polyp) तथा तश्तरीनुमा रचना को मेड्यूसा (medusa) कहते हैं।
(5) इन जन्तुओं में दंशिकाएँ (nematocysts) पाई जाती हैं जो शत्रुओं से इनकी रक्षा करती हैं तथा शिकार को पकड़ने में सहायक होती हैं।
(6) शरीर- गुहा को सीलेण्टरॉन (coelenteron) कहते हैं।
(7) तन्त्रिका तन्त्र (nervous system) अल्पविकसित होता है।
(8) श्वसन, उत्सर्जन तथा संवहन तन्त्र नहीं पाए जाते हैं।
(9) मुख के चारों ओर स्पर्शक (tentacles) होते हैं।
(10) प्रजनन अलैंगिक तथा लैंगिक दोनों प्रकार का होता है।
उदाहरण – हाइड्रा, जेलीफिश (ऑरेलिया), समुद्री – एनीमोन (मेट्रीडियम), फाइसेलिया, ओबीलिया व मूंगा आदि ।
प्रश्न 3. संघ एस्केल्मिन्थीज या निमेटोडा के मुख्य लक्षण लिखिए। सचित्र उदाहरण दीजिए।
उत्तर : संघ एस्केल्मिन्थीज या निमेटोडा के मुख्य लक्षण
इस संघ के अन्तर्गत आने वाले जन्तुओं के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) ये आभासी – देहगुहा ( pseudocoel ) वाले खण्डरहित, बेलनाकार, दोनों सिरों पर नुकीले कृमि हैं।
(2) शरीर कठोर तथा अवरोधी उपचर्म (cuticle) से घिरा होता है।
(3) आहार नलिका सरल सीधी नलिका होती है।
(4) तन्त्रिका तन्त्र एवं जनन तन्त्र विकसित होता है, परिसंचरण तन्त्र व श्वसन तन्त्र अनुपस्थित होता है।
(5) ये परजीवी या स्वतन्त्र – जीवी होते हैं।
(6) जन्तु एकलिंगी होते हैं अर्थात् नर तथा मादा अलग-अलग होते हैं।
दीजिए। उदाहरण – ऐस्कैरिस, हुकवर्म, एन्टीरोबियस, वूचेरेरिया आदि ।
प्रश्न 4. संघ मोलस्का के मुख्य लक्षण लिखिए। उदाहरण भी
उत्तर : संघ मोलस्का के मुख्य लक्षण
इस संघ के अन्तर्गत आने वाले जन्तुओं के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं—
(1) ये प्राय: जलीय होते हैं, परन्तु स्थलीय जातियाँ भी पाई जाती हैं।
(2) शरीर कोमल तथा खण्डरहित होता है।
(3) शरीर तीन भागों सिर, मांसल पाद तथा पिण्डक ( visceral mass) में बँटा होता है।
(4) शरीर पर कैल्सियम कार्बोनेट से बना कवच (shell) होता है, जो प्रावार (mantle) से स्रावित होता है।
(5) प्रचलन पेशीय पाद द्वारा होता है।
(6) श्वसन क्लोम (gills) द्वारा होता है।
(7) आहारनाल पूर्ण विकसित होती है और पाचक ग्रन्थियाँ पाई जाती है।
(8) रुधिर में हीमोसायनिन नामक श्वसन वर्णक होता है जिसके कारण रुधिर लाल न होकर कुछ नीला-सा होता है।
(9) उत्सर्जन गुर्दों द्वारा होता है।
(10) जन्तु एकलिंगी एवं अण्डज (oviparous) होते हैं।
उदाहरण—घोंघा (पाइला), सीप (यूनियो), ऑक्टोपस, सीपिया, नियोपिलाइना आदि।
प्रश्न 5. इकाइनोडर्मेटा संघ के मुख्य लक्षणों का वर्णन कीजिए। दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर : संघ इकाइनोडर्मेटा के मुख्य लक्षण
इस संघ के अन्तर्गत आने वाले जन्तुओं के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) इस संघ के सभी सदस्य समुद्री होते हैं।
(2) जन्तु त्रिस्तरीय, अरीय सममित व देहगुहा युक्त होते हैं।
(3) सिर का अभाव रहता है।
(4) शरीर में स्पष्ट मुख तथा अपमुख सतह होती है।
(5) रुधिर परिसंचरण तन्त्र खुले प्रकार का होता है।
(6) देहगुहा जल संवहन तन्त्र (water vascular system) में परिवर्तित होती है।
(7) शरीर में अन्तःकंकाल पाया जाता है, जो कैल्सियम कार्बोनेट की अस्थिकाओं तथा कंटिकाओं का बना होता है, जिसके कारण त्वचा कड़ी महसूस होती है।
(8) प्रचलन नाल पाद (tube feet) द्वारा होता है।
(9) ये एकलिंगी होते हैं। जीवन वृत्त में कायान्तरण होता है।
(10) इनमें पुनरुद्भवन (regeneration) की क्षमता होती है।
उदाहरण – तारा मछली (एस्टेरियास), ब्रिटिल स्टार (एन्टीडोन ), समुद्री खीरा ( होलोथ्यूरिया), समुद्री अर्चिन (इकाइनस) आदि।
प्रश्न 6. नॉन-कॉर्डेट तथा कॉर्डेट में अन्तर लिखिए।
उत्तर : नॉन-कॉर्डेट और कॉर्डेट जन्तुओं में अन्तर
क्र०सं० नॉन-कॉर्डेट्स कॉर्बेट्स
1. नोटोकॉर्ड नहीं होती है। जीवन की किसी-न-किसी अवस्था में नोटोकॉर्ड अवश्य ही पाई जाती है।
2. केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र ठोस होता है तथा यह आहारनाल के नीचे अधर तल पर स्थित होता है। केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र आहारनाल के पृष्ठ तल पर स्थित होता है तथा यह खोखला एवं नलिकाकार होता है।
3. क्लोम विदर नहीं होते। जीवन की किसी-न-किसी अवस्था में क्लोम विदर अवश्य ही पाए जाते हैं।
4. हृदय आहारनाल ऊपर के पृष्ठ तल पर स्थित होता है। हृदय आहारनाल के नीचे अधर तल पर स्थित होता है।
प्रश्न 7. वर्ग उभयचर के मुख्य लक्षण लिखिए। चार उदाहरण लिखिए ।
उत्तर : वर्ग उभयचर या जलस्थलचर के मुख्य लक्षण इस वर्ग के अन्तर्गत आने वाले जन्तुओं के मुख्य लक्षण. निम्नलिखित हैं-
(1) ये जन्तु असमतापी एवं उभयचर ( amphibious) होते हैं। ये अलवणीय जल में या नम स्थानों पर पाए जाते हैं।
(2) त्वचा कोमल, नम तथा ग्रन्थिल होती है । श्वसन में सहायक होती है।
(3) श्वसन, क्लोम, त्वचा तथा फेफड़ों द्वारा होता है।
(4) हृदय में तीन कक्ष होते हैं-दो अलिन्द तथा एक निलय ।
(5) बाह्य कर्ण का अभाव होता है। मध्य कर्ण में कॉल्यूमेला होती है।
(6) लाल रुधिर कणिकाएँ केन्द्रक युक्त होती हैं।
(7) अण्डों का निषेचन तथा भ्रूण विकास शरीर से बाहर जल में होता है। वयस्क का निर्माण कायान्तरण द्वारा होता है।
उदाहरण- मेढक (राना टिग्रीना), भेक (ब्यूफो), हाइला ( वृक्षीय मेढक), सैलामैण्डर, इक्थियोफिस, साइरेन आदि ।
प्रश्न 8. वर्ग स्तनी के मुख्य लक्षण लिखिए। स्तनियों के उपवर्गों का उल्लेख करते हुए उनके विशिष्ट लक्षण लिखिए।
उत्तर : वर्ग स्तनी के मुख्य लक्षण
इस वर्ग के अन्तर्गत आने वाले जन्तुओं के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) इनकी त्वचा शुष्क, मोटी तथा बालयुक्त होती है। त्वचा में तैल ग्रन्थियाँ, स्वेद ग्रन्थियाँ, दुग्ध ग्रन्थियाँ आदि पाई जाती हैं।
(2) ये सभी जन्तु समतापी होते हैं।
(3) इनमें बाह्य कर्ण या पिन्ना (pinna) पाए जाते हैं।
(4) जबड़े दाँत युक्त होते हैं। दाँत विषमदन्ती होते हैं। जीवन में दाँत दो बार निकलते हैं।
(5) ग्रीवा में कशेरुकाओं की संख्या सात होती है।
(6) हृदय में दो अलिन्द तथा दो निलय होते हैं।
(7) अग्र तथा पश्चपादों में पाँच-पाँच अंगुलियाँ होती हैं।
(8) सामान्यतया स्तनी जरायुज (viviparous) होते हैं। ये शिशुओं को जन्म देते हैं।
वर्ग स्तनी को निम्नलिखित दो उपवर्गों में बाँटते हैं-
(क) प्रोटोथीरिया, (ख) थीरिया ।
इन उपवर्गों के मुख्य लक्षण निम्नांकित प्रकार हैं-
(क) उपवर्ग-प्रोटोथीरिया
उपवर्ग प्रोटोथीरिया के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) ये अण्डज ( oviparous) होते हैं। अण्डे बड़े, कवच एवं पीतकयुक्त होते हैं।
(2) ये आंशिक रूप समतापी होते हैं।
(3) इनमें कर्णपल्लव (pinna) नहीं होते हैं।
(4) ये सरीसृप तथा स्तनियों की संयोजी कड़ी को प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरण – एकिडना, ऑर्निथोरिंक्स आदि ।
(ख) उपवर्ग-थीरिया
इस उपवर्ग के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) ये समतापी होते हैं।
(2) बाह्यकर्ण या कर्णपल्लव पाए जाते हैं।
(3) नर में वृषण (testes) शरीर से बाहर वृषण कोषों (scrotal sacs) में स्थित होते हैं।
(4) मादा प्राणियों में गर्भाशय पाया जाता है।
(5) ये जरायुजी (viviparous) होते हैं।
उपवर्ग थीरिया को मेटाथीरिया तथा यूथीरिया अधोवर्गों में बाँटते इनके लक्षण निम्नलिखित हैं-
(i) अधोवर्ग मेटाथीरिया के लक्षण-
(1) ये अपरिपक्व शिशुओं को जन्म देते हैं।
(2) अपरिपक्व शिशुओं का विकास शिशुधानी (मार्सुपियम) में होता है।
उदाहरण – कंगारू आदि ।
(ii) अधोवर्ग यूथीरिया के लक्षण-
(1) ये पूर्ण विकसित शिशुओं को जन्म देते हैं।
(2) स्तन ग्रन्थियाँ चूचुक (teats) पर खुलती हैं।
(3) भ्रूण का विकास गर्भाशय में होता है। भ्रूण का पोषण जरायु (placenta ) द्वारा होता है।
उदाहरण – चूहा (रैटस), शेर ( पैन्थेरा ), चमगादड़ ( टैरोपस), व्हेल, बन्दर, चिम्पैंजी, मानव (होमो सैपियन्स) आदि ।
प्रश्न 9. जीवों के स्थानीय नाम क्यों पर्याप्त नहीं हैं? वैज्ञानिक नामों के क्या लाभ हैं?
उत्तर : जीवधारियों को एक-दूसरे से पहचानने के लिए हम उन्हें विभिन्न नामों से पुकारते हैं। ये नाम स्थानीय, क्षेत्रीय प्रदेशीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। इस कारण विभिन्न क्षेत्रों प्रचलित नाम एक-दूसरे के लिए अन्जान होते हैं। इसलिए जीवधारियों के ऐसे नाम होने चाहिए जिसे पूरे विश्व में समान रूप से समझा जा सके। ऐसे नाम को वैज्ञानिक नाम (द्विपदनाम) कहते हैं। कैरोलस लीनियस (Carolus Linnaeus) ने अन्तर्राष्ट्रीय नाम (वैज्ञानिक नाम, द्विपदनाम ) देने की प्रथा प्रचलित की। इसके अन्तर्गत प्रत्येक जीवधारी के दो नाम होते हैं, इनमें पहला नाम वंश (genus) को और दूसरा नाम जाति (apocion) को प्रदर्शित करता है; जैसे- गौरैया को पैसर डोमेस्टिकस ( Passer domesticus), मनुष्य को होमो सैपियन्स (Homo sapiens) कहते हैं।
वैज्ञानिक नाम का महत्त्व
(i) वैज्ञानिक नाम अनन्य ( unique) होता है, यह विश्वभर में समझा और अनुसरण किया जाने वाला एवं स्थायी होता है।
(ii) नामकरण वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित होने के कारण जीवधारी की विशेषताओं का बोध करता है।
प्रश्न 10. प्राणियों के कोई दो विशेषतासूचक लक्षण बताइए।
उत्तर : प्राणियों के विशिष्ट लक्षण (विशेषतासूचक लक्षण) निम्नलिखित हैं-
(i) कोशिकाओं में कोशिका भित्ति तथा लवक को अभाव होता है।
(ii) प्राणी परपोषी होते हैं।
(iii) प्राणी भोजन प्राप्त करने और सुरक्षा के लिए स्थान परिवर्तन करते हैं।
(iv) प्राणियों में वृद्धि एक निश्चित सीमा तक होती है। इससे इनकी आकृति एवं आकार सुनिश्चित होता है।
• अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. संघ प्रोटोजोआ के दो सामान्य लक्षण लिखिए।
उत्तर : (1) ये सूक्ष्मदर्शीय तथा अकोशिकीय होते हैं।
(2) श्वसन तथा उत्सर्जन सामान्य विसरण द्वारा होता है।
उदाहरण – अमीबा, यूग्लीना, प्लाज्मोडियम, एण्टअमीबा आदि।
प्रश्न 2. स्तनधारी तथा उभयचर में दो अन्तर लिखिए ।
उत्तर : स्तनधारी तथा उभयचर में अन्तर
क्र०सं० स्तनधारी उभयचर
1. ये समतापी होते हैं। ये प्रायः स्थल पर पाए जाते हैं। ये असमतापी होते हैं। जल एवं स्थल दोनों पर पाए जाते हैं।
2. त्वचा शुष्क तथा मोटी होती है, इस पर बाल (hairs) पाए जाते हैं। त्वचा नम तथा कोमल होती है, इस पर बाल नहीं होते।
प्रश्न 3. अमीबा किस संघ का प्राणी है? इसका प्राप्ति स्थान क्या है ? यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर कैसे जाता है ?
उत्तर : अमीबा प्रोटियर्स (Amoeba proteus) संघ प्रोटोजोआ का ( एककोशिकीय) प्राणी है।
यह साधारणतः पोखरों, तालाबों की कीचड़ में पाया जाने वाला सूक्ष्म जीव है। इसमें चलन पादाभ या कूटपाद द्वारा होता है।
प्रश्न 4. आवृतबीजी पौधे अनावृतबीजी पौधों से अधिक विकसित माने जाते हैं, क्यों?
उत्तर : आवृतबीजी पौधे अनावृतबीजी पौधों से निम्नलिखित लक्षणों के आधार पर विकसित माने जाते हैं-
(1) जनन अंग पुष्प में बनते हैं।
(2) बीज अण्डाशय बन्द होते हैं।
(3) इन पौधों के जाइलम में वाहिकाएँ ( vessels) तथा फ्लोएम में सह-कोशिकाएँ (companion cells) पाई जाती हैं।
प्रश्न 5. मोनेरा तथा प्रोटिस्टा जगत में मुख्य अन्तर लिखिए।
उत्तर : मोनेरा (monera) जगत के अन्तर्गत असीमकेन्द्रकी (प्रोकैरियोटिक ) कोशिका वाले एककोशिकीय जीवधारी आते हैं।
प्रोटिस्टा (protista) जगत के अन्तर्गत ससीमकेन्द्रकी (यूकैरियोटिक ) कोशिका वाले एककोशिकीय जीवधारी आते हैं।
प्रश्न 6. फैनेरोगेम क्या है?
उत्तर : फैनेरोगेम (phanerogam) उपजगत के अन्तर्गत बीजयुक्त पौधे आते हैं। पादप वास्तविक जड़, तना तथा पत्तियों में विभेदित होता है। सत्य संवहन ऊतक (जाइलम तथा फ्लोएम) पाया जाता है।
प्रश्न 7. सीलेण्टरॉन क्या है? किन्हीं दो जन्तुओं का नाम लिखिए जिनमें सीलेण्टरॉन पाई जाती है।
उत्तर : सीलेण्टरॉन देहगुहा तथा आहारनाल दोनों का कार्य करने वाली गुहा (cavity) होती है। उदाहरण- हाइड्रा तथा ओबीलिया ।
प्रश्न 8. कवक अपना भोजन क्यों नहीं बना पाते हैं?
उत्तर : कवकों में पर्णहरित ( chlorophyll) नहीं होता; अतः ये अपना भोजन नहीं बना पाते। ये विषमपोषी ( heterotrophic ) या परपोषी होते हैं। ये मृतजीवी, परजीवी या सहजीवी होते हैं।
• एक शब्द या एक वाक्य वाले प्रश्न
प्रश्न 1. स्पंज किस संघ से सम्बन्ध रखते हैं?
उत्तर : संघ पोरीफेरा (porifera) से।
प्रश्न 2. प्राणी जगत का सबसे बड़ा संघ कौन-सा है?
उत्तर : आर्थ्रोपोडा (arthropoda) |
प्रश्न 3. मनुष्य का वैज्ञानिक नाम क्या है?
उत्तर : होमो सैपियन्स सैपियन्स (Homo sapiens sapiens)।
प्रश्न 4. वनस्पति जगत के दो उपजगतों के नाम बताइए ।
उत्तर : (i) थैलोफाइटा (thallophyta) तथा (ii) एम्ब्रियोफाइटा ( embryophyta) ।
प्रश्न 5. जिन पौधों में वास्तविक जड़, तना तथा पत्ती का अभाव है, उन्हें किस डिवीजन में रखा जाता है?
उत्तर : थैलोफाइटा में।
प्रश्न 6. जिम्नोस्पर्म और एन्जियोस्पर्म में भेद करने वाला प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर : जिम्नोस्पर्म नग्नबीजी तथा एन्जियोस्पर्म के बीज फल में बन्द रहते हैं।
प्रश्न 7. जैव विविधता के अस्तित्व का कारण बताइए ।
उत्तर : जैव विविधता गत लगभग 350 करोड़ वर्षों में हुए जैव विकास का परिणाम है।
प्रश्न 8. द्विनाम पद्धति के जन्मदाता का नाम लिखिए।
उत्तर : द्विनाम पद्धति के जन्मदाता स्वीडन के वैज्ञानिक कैरोलस लीनियस थे।
प्रश्न 9. अविकसित बच्चे देने वाले किसी एक स्तनधारी का नाम लिखिए।
उत्तर : कंगारू ।
प्रश्न 10. पानी में रहने वाले किसी स्तनी का नाम लिखिए।
उत्तर : व्हेल (whale)।
प्रश्न 11. समुद्री घोड़ा किस संघ तथा वर्ग में वर्गीकृत किया जाता है?
उत्तर : संघ – कॉर्डेटा तथा वर्ग- पिसीज में।
प्रश्न 12. संघ मोलस्का का एक मुख्य लक्षण लिखिए।
उत्तर : मोलस्का जन्तुओं के शरीर के बाहर कैल्सियम कार्बोनेट का बना कठोर कवच (खोल) होता है।
प्रश्न 13. किसी एक संघ का नाम बताइए जिसमें खुला रुधिर परिसंचरण तन्त्र होता है।
उत्तर : संघ आर्थोपोडा के जन्तुओं में खुला रुधिर परिसंचरण तन्त्र होता है।
प्रश्न 14. किसी गोल कृमि का नाम बताइए जो मनुष्य में अन्त: परजीवी होता है।
उत्तर : ऐस्कैरिस (Ascaris)।
प्रश्न 15. उभयचर वर्ग के किसी ऐसे प्राणी का नाम बताइए जिसमें पूँछ सम्पूर्ण जीवनकाल तक उपस्थित रहती है।
उत्तर : सैलामैण्डर ( Salamender) में।
प्रश्न 16. सबसे सरल संरचना वाले पौधों को क्या कहते हैं?
उत्तर : जीवाणु ।
प्रश्न 17. वर्गीकरण की सबसे छोटी इकाई को क्या कहते हैं ?
उत्तर : जाति (species)
प्रश्न 18. मृतजीवी अपना पोषण किस प्रकार प्राप्त करते हैं?
उत्तर : मृतजीवी जीवधारी मृत, सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से पोषण प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 19. ” पादप जगत के उभयचर” किन पौधों को कहते हैं?
उत्तर : ब्रायोफाइटा के अन्तर्गत आने वाले पौधों को ‘पादप जगत के उभयचर’ कहते हैं।
प्रश्न 20. जिन पौधों में लैंगिक जनन स्पष्ट नहीं होता, उन्हें क्या कहते हैं?
उत्तर : क्रिप्टोगैम्स (cryptogames) |
प्रश्न 21. फैनेरोगैम्स पौधों की मुख्य विशेषता लिखिए।
उत्तर : ये लैंगिक प्रजनन द्वारा फलावरण युक्त बीजों (फलों) का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 22. सहजीवी पौधों के दो उदाहरण दीजिए ।
उत्तर : लाइकेन, मटरकुल के पौधों की ग्रन्थिल जड़ें।
प्रश्न 23. स्पजों में नाल प्रणाली का क्या महत्त्व है?
उत्तर : स्पंजों में नाल प्रणाली के माध्यम से जल, ऑक्सीजन तथा भोज्य पदार्थ प्राप्त होते हैं एवं उत्सर्जी पदार्थ निष्कासित होते हैं।
प्रश्न 24. सीलेण्टरेटा संघ के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर : हाइड्रा, समुद्री एनीमोन ।

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