UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 17 अपशिष्ट पदार्थों के सुरक्षित निस्तारण की विधियाँ : कूड़ा फेंकना, कूड़े की खाद बनाना, बहाने से पहले दूषित जल का उपचार कर देना, झाड़ना (मार्जक ) और बिजली के उपकरण का उपयोग
UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 17 अपशिष्ट पदार्थों के सुरक्षित निस्तारण की विधियाँ : कूड़ा फेंकना, कूड़े की खाद बनाना, बहाने से पहले दूषित जल का उपचार कर देना, झाड़ना (मार्जक) और बिजली के उपकरण का उपयोग
UK Board Solutions for Class 9th Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 17 अपशिष्ट पदार्थों के सुरक्षित निस्तारण की विधियाँ : कूड़ा फेंकना, कूड़े की खाद बनाना, बहाने से पहले दूषित जल का उपचार कर देना, झाड़ना (मार्जक) और बिजली के उपकरण का उपयोग
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – अपशिष्ट पदार्थों के सुरक्षित निस्तारण की किन विधियों का प्रयोग किया जाता हैं?
उत्तर- अपशिष्ट पदार्थों के सुरक्षित निस्तारण की विधियाँ
पर्यावरण सन्तुलन एवं प्रदूषणरहित वातावरण को उत्पन्न करने के लिए अपशिष्टों के निस्तारण के समुचित प्रबन्धन की व्यवस्था अपेक्षित है। अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण हेतु सामान्यतः दो विधियाँ प्रयुक्त की जाती है-
(1) ठोस अपशिष्ट निस्तारण विधि । (2) द्रव अपशिष्ट निस्तारण विधि |
- ठोस अपशिष्ट निस्तारण विधि — इस विधि में ठोस पदार्थ कूड़ा-कचरा का निस्तारण किया जाता है। यह विधि निम्नलिखित चरणों में पूरी की जाती है-
- पृथक्करण—इसके अन्तर्गत कूड़ा-कचरा को संवर्गीकृत किया जाता है अर्थात् यदि अपशिष्टों में लोहा, रद्दी कागज, कपड़ा, रसोई की अपशिष्ट कच्ची सब्जी आदि हैं तो इनको अलग-अलग करके इनका विभिन्न तरीकों से निस्तारण किया जाता है।
- फेंकना या गाड़ना—इस चरण के अन्तर्गत ठोस एवं द्रव पदार्थों को अलग-अलग ढंग से निस्तारित किया जाता है। ठोस पदार्थों को सवर्गी श्रेणियों में रखकर उनको निम्न स्थल में या भूमि भराव के स्थान पर संचित कर दिया जाता है, जहाँ उसका निस्तारण हो सके।
- कम्पोस्टिंग — पशु अपशिष्ट एवं वानिका (पेड़-पौधों) के अपशिष्टों का निस्ताम्प कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए किया जाता है। यह खाद· कृषि कार्यों के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।
- भस्मीकरण – अपशिष्ट को जलाकर नष्ट करने की प्रक्रिया को भस्मीकरण कहा जाता है। इसके अन्तर्गत कचरे को विशेष भट्टी में जलाकर ऊर्जा भी तैयार की जाती है तथा शेष अवशेष राख के रूप में प्राप्त होने पर भूमि के भराव आदि में प्रयुक्त किया जाता है।
- द्रव अपशिष्ट निस्तारण विधि – इस विधि के अन्तर्गत द्रव पदार्थों का निस्तारण निम्नलिखित चरणों में पूरा किया जाता है-
- जल निकास या अपवाह- इसके अन्तर्गत प्रदूषित जल एवं अन्य जल को किसी स्थान पर ठहरने से रोकने की व्यवस्था की जाती है. अर्थात् जल निकास की उचित व्यवस्था पर गन्दगी फैलाने से सुरक्षित किया जाता है।
- निष्कासन पूर्व बहि प्रवाही जल का उपचार — इसके अन्तर्गत प्रदूषित जल को विभिन्न विधियों के द्वारा प्रदूषणरहित करके या उपचारित करके उसका निष्कासन जल स्रोतों में किया जाता है।
प्रश्न 2 – अपशिष्ट किस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं? विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए ।
उत्तर – अपशिष्टों को पर्यावरण प्रदूषण का मूल कारण माना जाता है। पर्यावरण प्रदूषण तभी होता है जब किसी स्थान पर ठोस, द्रव या गैसीय अवस्था में कचरा, कूड़ा-करकट, सड़े-गले पदार्थ, गन्दा पानी, मल-मूत्र आदि डाल दिया जाए । यह पदार्थ गन्दगी का विस्तार करते हैं तथा स्वच्छ वातावरण – वायु, जल, भूमि एवं मिट्टी आदि आधारभूत पर्यावरण तत्त्वों में सम्मिलित होकर प्रदूषण फैलाते हैं। इसीलिए अपशिष्ट पदार्थों को पर्यावरण प्रदूषण का कारण कहा जाता है।
पर्यावरण-प्रदूषण के कारक
ये कारक तीन रूपों में पाए जाते हैं अर्थात् ठोस द्रव एवं गैसीय ।
- ठोस अपशिष्ट – ठोस अपशिष्ट पदार्थों में रद्दी कागज, चिथड़े, मृत पशु, चिकित्सीय अपशिष्ट पदार्थ, रेडियोधर्मी तत्त्व, घरेलू कचरा, वाणिज्य या दुकानों का कूड़ा, औद्योगिक अपशिष्ट आदि सम्मिलित हैं। यह पदार्थ मिट्टी, जल एवं वायु तीनों में सम्मिलित होकर मृदा प्रदूषण, जल- प्रदूषण और वायु- प्रदूषण तीनों को बढ़ाते हैं।
- द्रव अपशिष्ट – द्रव रूप में अपशिष्ट पदार्थों के स्रोत, घरेलू गन्दा जल, मल-मूत्र, और औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाले पानी के रूप में होते हैं। यह जल स्वच्छ जल - -स्रोतों में सम्मिलित होकर जल प्रदूषण में वृद्धि करता है। यह प्रदूषित जल जल स्रोतों में उत्पन्न होने वाले.. खाद्य पदार्थों में मिलकर समस्त भोजन श्रृंखला को दूषित कर देता है।
- गैसीय अपशिष्ट – औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाली विभिन्न प्रकार की विषैली गैस, वाहनों के धुएँ से निकलने वाले विषैले कण और गैस, घरेलू एवं औद्योगिक धुआँ, धूलकण आदि अपशिष्ट पदार्थ पर्यावरण की वायु में सम्मिलित होकर दूर तक वायु प्रदूषण को फैलाते हैं। गैसीय अपशिष्ट केवल वायु को ही प्रदूषित नहीं करते बल्कि ओजोन परत का क्षय, अम्ल वर्षा और ग्रीन हाउस प्रभाव में भी वृद्धि करते हैं।
अतः निश्चित ही यह कहना सर्वोचित है कि अपशिष्ट पदार्थ प्रदूषण के वाहक होते हैं। इसीलिए अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण के लिए सुरक्षित विधियों का प्रयोग करना अत्यन्त आवश्यक है। वर्तमान समय में आधुनिक साज-सज्जा और भौतिक सुख-सुविधाओं ने अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अतः जहाँ यह आवश्यक समझा जाता है कि अपशिष्ट पदार्थों का निस्तारण सुरक्षित विधियों से होना चाहिए वहीं यह भी जरूरी है कि अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा पर अंकुश लगे। लोगों के व्यवहार में परिवर्तन उत्पन्न किया जाए तथा उन्हें पर्यावरण सुरक्षा के प्रति जागरूक बनाया जाए।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – पृथक्करण की प्रक्रिया समझाइए ।
उत्तर – पृथक्करण का अर्थ है – विभिन्न ठोस अपशिष्ट पदार्थों को संवर्गीकृत करना अर्थात् अपशिष्टों में मौजूद विविध प्रकार की वस्तुओं को उनके प्रकार के अनुसार अलग-अलग करना। ऐसा करना इसलिए आवश्यक समझा जाता है ताकि विभिन्न वस्तुओं को उनके भिन्न-भिन्न तरीकों या विधियों के द्वारा निस्तारित किया जा सके। उदाहरण के लिए- अपशिष्ट पदार्थों के किसी ढेर में प्लास्टिक, काँच, टिन, लोहा, रद्दी कागज, चिथड़े, धूल, पत्ते, टहनियाँ, घास-फूस आदि मिश्रित हैं। तब पहले प्रत्येक वस्तु को इस ढेर से अलग-अलग किया जाता है तथा उनका अलग-अलग तरीकों से निस्तारण किया जाता है; जैसे लोहा, टिन, प्लास्टिक आदि का पुन:चक्रण किया जाना, पत्ते, टहनियाँ, घास-फूस को ईंधन के रूप में जलाना या कम्पोस्टिंग करना तथा रद्दी कागज व चिथड़े आदि की लुगदी बनाकर कागज तैयार करना और शेष पदार्थ का भूमि भराव आदि के लिए उपयोग होना चाहिए । यही सब कार्य पृथक्करण प्रक्रिया के अन्तर्गत किया जाता है।
प्रश्न 2 – संक्रामक अपशिष्ट क्या है? वर्णन कीजिए।
उत्तर— संक्रामक अपशिष्ट
संक्रामक अपशिष्ट पदार्थों के अन्तर्गत उन खतरनाक पदार्थों को सम्मिलित किया जाता है जिनमें संक्रामक रोगाणु सम्मिलित होते हैं। जब संक्रामक बीमारियों से प्रभावित मरीजों के ऑपरेशन या शव परीक्षण के बाद प्राप्त अपशिष्ट पदार्थ एवं सुई, सिरिंज, आरी, ब्लेड, टूटे काँच एवं घावों में चीरा लगाए हुए औजार आदि का उचित निस्तारण नहीं किया जाता तो इनसे रोगाणु वायु एवं जल में सम्मिलित होकर अन्य स्वस्थ लोगों को संक्रमित कर रोगी बना देते हैं। अतः इन चिकित्सीय एवं संक्रमक अपशिष्ट पदार्थों का समुचित निस्तारण सुरक्षित विधियों द्वारा किया जाना अत्यन्त आवश्यक है।
प्रश्न 3 – रोगात्मक तथा औषधीय अपशिष्टों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : रोगात्मक अपशिष्ट — इसके अन्तर्गत मानव के बीमार शरीर के ऊतक, अंग तथा शरीर से निकले अपशिष्ट चमड़ी, भ्रूण, खून एवं अन्य विविध प्रकार के शारीरिक द्रव्य पदार्थ सम्मिलित होते है। इनको चिकित्सीय अपशिष्ट कहा जाता है, जो शहरों के अस्पतालों एवं नर्सिंग होम से बड़ी मात्रा में निकलते हैं। इन पदार्थों का उचित विधि द्वारा निस्तारण अत्यन्त आवश्यक है।
औषधीय अपशिष्ट — इसके अन्तर्गत वह औषधियाँ/ दवाइयाँ सम्मिलित हैं जो पुरानी हो गई हैं या अन्य किसी कारण से रोगी के खाने योग्य नहीं रही हैं; अतः अस्पतालों, नर्सिंग होम और मेडिकल स्टोर आदि की अनुपयोगी दवाइयाँ इसी प्रकार के अपशिष्ट पदार्थों में आती हैं।
• अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – कम्पोस्टीकरण प्रक्रिया कितने प्रकार की होती है?
उत्तर- कम्पोस्टीकरण प्रक्रिया दो प्रकार की होती है-
(1) वायुजीवी कम्पास्टिंग तथा (2) अवायवीय कम्पोस्टिंग |
प्रश्न 2 – भूमि कटाव का क्या अर्थ है?
उत्तर – किसी प्राकृतिक अभिकर्ता – जल, वायु आदि अथवा मानवीय क्रिया वन-विनाश आदि के द्वारा जल भूमि की ऊपरी परत लम्बवत् या क्षतिज रूप में अपने स्थान से हट जाती है तो उसे भूमि कटाव कहते हैं।
प्रश्न 3 – जल निकास से क्या तात्पर्य है?
उत्तर – ग्रामीण या नगरीय बस्तियों, औद्योगिक संस्थानों आदि से अनुपयोगी जल का उचित रूप में प्रवाह होना जल निकास कहलाता है।
प्रश्न 4- स्थिर अवक्षेपक का सिद्धान्त क्या है?
उत्तर – स्थिर अवक्षेपक का सिद्धान्त यह है कि एरेजॉल से युक्त प्रदूषित वायु को जब दो इलेक्ट्रोडों के बीच प्रवाहित किया जाता है तो ये कण इलेक्ट्रोडों पर अवक्षेपित हो जाते हैं और वायु शुद्ध हो जाती है।
