UK Board 9th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 4 भूक्षरण/भूस्खलन
UK Board 9th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 4 भूक्षरण/भूस्खलन
UK Board Solutions for Class 9th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 4 भूक्षरण/भूस्खलन
पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – भूस्खलन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर— पर्वतीय ढालों पर जल तत्त्व की अधिकता एवं आधार इसलिए के कटाव के कारण चट्टानों का गुरुत्व सन्तुलन बिगड़ जाता है, अनेक छोटे व बड़े पर्वतीय भूखण्ड टुकड़े-टुकड़े होकर नीचे की ओर आकस्मिक रूप से तीव्रता के साथ लुढ़कने लगते हैं। यही प्रक्रिया भूस्खलन कहलाती है।
प्रश्न 2 – हिमवाह ( हिमस्खलन ) तथा भूस्खलन में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – हिमवाह (हिमस्खलन ) तथा भूस्खलन में अन्तर
| क्रम स० | हिमवाह (हिमस्खलन) | भूस्खलन |
| 1. | हिमवाह हिमाच्छादित पर्वतीय क्षेत्रों से हिम शिलाओं के टूटकर गिरने की क्रिया है। | भूस्खलन पर्वतीय ढालों से चट्टानों के टूटकर गिरने की क्रिया है। |
| 2. | हिमवाह से जन-धन की हानि नहीं होती क्योंकि हिमाच्छादित पर्वत जनशून्य होते हैं। | भूस्खलन से जन-धन की अपार क्षति होती है। |
| 3. | हिमवाह का मुख्य कारण मौसमी परिवर्तन है। | भूस्खलन का मुख्य कारण चट्टानों की गुरुत्वीय स्थिति में परिवर्तन है। |
प्रश्न 3 – भूस्खलन के क्षेत्रों को भारत के मानचित्र में अंकित कीजिए ।
उत्तर— निम्नांकित चित्र 4.1 भारत : भूस्खलन क्षेत्र का अवलोकन करें।

प्रश्न 4- भूस्खलन के विशिष्ट प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर— भौतिक क्षति एवं जनहानि भूस्खलन के दो महत्त्वपूर्ण प्रभाव हैं। भूस्खलन से रास्ते में आने वाली बस्तियाँ, सड़कें, वनस्पति और कृषि भूमि आदि सभी नष्ट हो जाते हैं। इससे नदियों के मार्ग अवरुद्ध होकर अस्थायी झील बन जाती है जो टूटने पर प्रलयकारी बाढ़ उत्पन्न कर देती है। इसके प्रभाव से तीव्र ढाल पर बनी बस्तियाँ, गिरिपद पर बने भवन और पर्वतीय घाटियों से निकलने वाली नदियों के मुहाने पर बसे घर पूरी तरह तबाह हो जाते हैं। कभी-कभी संचार लाइनें और सड़क मार्ग भूस्खलन के कारण लम्बे समय तक अवरुद्ध हो जाते हैं जिसके कारण यातायात एवं संचार सेवाएँ ठप हो जाती हैं।
प्रश्न 5 – भूस्खलन को प्रेरित करने वाले कुछ कारकों का उल्लेख करें।
उत्तर – भूस्खलन को प्रेरित करने वाले महत्त्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं-
- प्राकृतिक कारक – प्राकृतिक कारकों में भूस्खलन मुख्य रूप से भूविवर्तनिक गतियों का परिणाम है। इन गतियों के कारण भूखण्ड के अस्थिर भागों पर दरार एवं भ्रंश की घटनाओं से जब चट्टानों पर जल तत्त्व की अधिकता होती है तो चट्टानें असन्तुलित होकर पर्वतीय ढालों से विखण्डित होकर गिरने लगती हैं। चट्टानों में इन घटनाओं को उत्प्रेरित करने का कार्य — तापमान, तुषार एवं जल आदि कारक करते हैं।
- मानवीय कारक- भूस्खलन को प्रेरित करने में मानवीय कारकों के अन्तर्गत अनियोजित भूमि उपयोग, वनों का विनाश तथा स्थलीय जलप्रवाह को नियन्त्रित करने के कार्य का विशेष योगदान है। अनियोजित भूमि उपयोग के अन्तर्गत मानव ने अपनी बढ़ती भूमि उपयोग की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अनियन्त्रित, खनन, पहाड़ों का कटान, ढालों पर मकानों का निर्माण आदि कार्य किए हैं जिससे भू-स्खलन की सम्भावनाएँ बढ़ी हैं। इसी प्रकार भूमि को वनविहीन करने से भूमि पर जल तत्त्व ने उसके आधार चट्टानों को क्षीण करके उन्हें असन्तुलित किया है। स्थलीय जल-प्रवाह अनियन्त्रित होने से भी चट्टानों में भूस्खलन की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
अतः विवर्तनिक हलचल, भ्रंश, तीव्र अपरदन, अनियोजित भूमि-उपयोग तथा वनविनाश भूस्खलन को प्रेरित करने वाले मुख्य कारक हैं।
प्रश्न 6 – भूस्खलन की किसी प्रमुख घटना का वर्णन कीजिए ।
उत्तर- वरुणावत भूस्खलन (उत्तरकाशी)
गंगोत्री जाने वाले मार्ग को घेरे हुए वरुणावत पर्वत उत्तरकाशी नगर के किनारे स्थित है। इस पर्वत के गिरिपद प्रदेश में ही उत्तरकाशी शहर का अधिकांश आवासीय क्षेत्र बसा है। इस पर्वत पर लम्बे समय से एक दरार शिखर से आधार तक दिखाई दे रही थी, परन्तु इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया था कि यह दरार कभी विनाशकारी भूस्खलन का कारण भी बन सकती है। 24 सितम्बर से 10 अक्टूबर, 2003 तक इस पर्वत से विशालकाय शिलाखण्डों के गिरने का सिलसिला चलता रहा। इससे नगर की कई आवासीय कॉलोनी, होटल, दुकानें तथा निकट ही स्थित राजकीय महाविद्यालय के कई भवन क्षतिग्रस्त हो गए। पूरा रामलीला मैदान मलबे से भर गया और गंगोत्री जाने वाला मार्ग लम्बे समय तक अवरुद्ध हो गया। इस भूस्खलन के कारण सैकड़ों परिवार प्रभावित हुए और हजारों लोगों को सुरक्षित स्थान पर जाना पड़ा। अभी भी वरुणावत पर्वत के भूस्खलन की विनाशलीला समाप्त नहीं हुई है, यद्यपि इसका उपचार जारी है फिर भी प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में इससे भूस्खलन होता रहता है।
प्रश्न 7 – भूस्खलन के प्रति सुभेद्य क्षेत्रों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।
उत्तर – भूस्खलन की दृष्टि से अत्यधिक सुभेद्य या संवेदनशील क्षेत्र भारत में हिमालय प्रदेश तथा पश्चिमी घाट हैं। केन्द्रीय सड़क अनुसन्धान संस्थान ने हिमालय प्रदेश को उच्चतम एवं पश्चिमी घाट को उच्च भूस्खलन सुभेद्य क्षेत्रों में रखा हैं। हिमालय पर्वत में विवर्तनिक अस्थिरता अधिक होने के कारण कई भ्रंश रेखाएँ विद्यमान हैं। इनके कारण यहाँ भूस्खलन की घटनाएँ देश में सर्वाधिक होती रहती हैं। वर्षा ऋतु में तो समस्त हिमालय पर्वतीय प्रदेश ही इस आपदा से प्रभावित रहता है। हिमालय प्रदेश में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखण्ड में भूस्खलन से प्रतिवर्ष सैकड़ों लोगों की जानें चली जाती हैं। हजारों यात्रियों को इस समस्या के कारण कभी-कभी विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, जुलाई 2004 को बद्रीनाथ से आ रहे 2,000 से अधिक तीर्थयात्रियों को ऐसी ही समस्या का सामना करना पड़ा था, जब तीन दिन तक ये लोग देश . के अन्य भाग से अलग-थलग रहे क्योंकि सड़क मार्ग पूरी तरह तबाह हो गया था और राहत कार्य भी ठीक प्रकार से प्राप्त नहीं हो रहा था । अतः हिमालय पर्वतीय प्रदेश भूस्खलन की दृष्टि से सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र हैं।
प्रश्न 8 – भूस्खलन के न्यूनीकरण की युक्तियाँ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – भूस्खलन के न्यूनीकरण हेतु निम्नलिखित युक्तियाँ महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकती हैं-
- नियोजित भूमि उपयोग — नियोजित भूमि उपयोग भूस्खलन न्यूनीकरण की महत्त्वपूर्ण युक्ति है। इसके अन्तर्गत विभिन्न कार्यों के लिए उपयुक्त भूमि का चुनाव सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। यदि मकानों का निर्माण सुरक्षित स्थानों पर किया जाए तथा वनस्पति के लिए निर्धारित अनुपात में भूमि का उपयोग हो तो भूस्खलन का जोखिम कम हो जाता है।
- प्रतिधारण दीवारों का निर्माण- भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में सड़कों के किनारे तीव्र ढाल को रोकने के लिए विशेष प्रकार की प्रतिधारण दीवारों का निर्माण किया जाता है। रेल लाइनों के लिए बनाई गई सुरंग तथा सड़क मार्ग के किनारे काफी दूर तक इन दीवारों को बनाने से पर्वतीय ढाल से आने वाले मलबे को रोका जा सकता है।
- स्थलीय जल प्रवाह को नियन्त्रित करना – वर्षा तथा अन्य स्रोतों से बहने वाले जल के निकास की उचित व्यवस्था करने से जल तत्त्व चट्टानों पर अपना दबाव नहीं बनाता है। इसलिए आधार चट्टानें सुरक्षित रहती हैं, जिससे भूस्खलन की सम्भावनाओं में कमी आती है।
- इंजीनियरी संरचना — कुशल अभियन्ताओं द्वारा निर्धारित मानकों के आधार पर भवनों की संरचनाएँ अधिक टिकाऊ होती हैं। अतः भूस्खलन सम्भावित क्षेत्रों में इंजीनियरों के मार्गदर्शन में ही भवनों का निर्माण उपयुक्त है।
- वनस्पति आवरण – भूस्खलन को नियन्त्रित एवं न्यूनतम करने में वनस्पति आवरण सबसे सरल और सस्ता उपाय है। इसके द्वारा चट्टानों को सुरक्षाकवच प्राप्त होता है तथा चट्टानें जल तत्त्व के प्रभाव से सुरक्षित रहकर भूस्खलन से प्रेरित नहीं होती हैं।
