UK Board 9th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 5 बाढ़/त्वरित बाढ़
UK Board 9th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 5 बाढ़/त्वरित बाढ़
UK Board Solutions for Class 9th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 5 बाढ़/त्वरित बाढ़
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – बाढ़ किसे कहते हैं?
उत्तर— बाढ़ का सामान्य अर्थ किसी क्षेत्र में लगातार वर्षा होने या नदियों का जल फैल जाने से समीपवर्ती क्षेत्र का जलमग्न होना है। बाढ़ मुख्यत: वर्षा ऋतु में आती है। वर्षाकाल में कभी-कभी अधिक वर्षा होने से नदियों का जल तटबन्धों को तोड़कर अन्य क्षेत्रों में फैल जाता है, फलस्वरूप वह क्षेत्र जल में डूबने लगता है तो जल के इसी विस्तृत फैलाव को ‘बाढ़’ कहते हैं।
प्रश्न 2 – बाढ़ प्राकृतिक आपदा है या मानवकृत आपदा स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर— बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है किन्तु जब यह मानव जीवन एवं सम्पत्ति को नष्ट करती है तो आपदा बन जाती है। इस आपदा का सम्बन्ध वास्तव में प्राकृतिक कारकों से है किन्तु वर्तमान में विभिन्न मानवीय कारक भी इसके लिए उत्तरदायी हैं। प्राकृतिक कारकों में लम्बी अवधि तक उच्च तीव्रता वाली जलवर्षा, नदियों का अत्यधिक मोड़दार मार्ग, नदी जलधारा की प्रवणता में आकस्मिक परिवर्तन, भूस्खलन, ज्वालामुखी विस्फोट अथवा भूकम्प के कारण नदी मार्ग में बाधा उत्पन्न होना आदि प्रमुख हैं। बाढ़ के लिए मानवजनित कारकों में अनियोजित निर्माण कार्य, नगरों में खाली कच्ची भूमि का अभाव, नदियों पर बने कृत्रिम बाँध, अनियोजित भूमि उपयोग प्रतिरूप तथा वनों का अत्यधिक विनाश महत्त्वपूर्ण है।
वर्तमान में बाढ़ उत्पन्न करने में प्राकृतिक कारकों को उत्प्रेरित करने में मानवजनित कारकों की सक्रिय भूमिका है। मानव के पर्यावरण कुप्रबन्धन के कारण समस्त प्राकृतिक प्रक्रियाएँ बांधित या उत्तेजित हो गई हैं; अत: बाढ़ जैसी आपदा प्राकृतिक घटना होते हुए भी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मानवजनित आपदा बन गई है।
प्रश्न 3 – बाढ़ के तीन प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – बाढ़ के तीन विशिष्ट प्रभाव निम्नलिखित हैं-
- बीमारीं एवं मृत्यु का आतंक – बाढ़ प्रकोप से बेकार जल एवं अपशिष्ट पदार्थों का मिश्रण हो जाता है जिससे जीवाणु उत्पन्न होने से विभिन्न प्रकार के संक्रामक रोग फैल जाते हैं— मलेरिया, पेचिश आदि इनमें प्रमुख बीमारियाँ हैं जिनसे बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में महामारी फैलने से जनसमुदाय की पर्याप्त हानि होती है। बाढ़ वास्तव में साझी विपदा है। इसके आतंक से कई बार बच्चे, वृद्ध, गर्भवती महिलाएँ और असहाय व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है।
- भौतिक क्षति – वर्षा ऋतु में बाढ़ आने पर खेतों में खड़ी कृषि फसलें नष्ट हो जाती हैं। बाढ़ के साथ आने वाला मलबा फसलों को ही नहीं वरन् आवासीय क्षेत्रों में भी सम्पत्ति को भारी क्षति पहुँचाता है। यातायात एवं संचार-साधन नष्ट हो जाते हैं; जीर्ण मकान गिर जाते हैं तथा आवश्यक सेवाएँ बाढ़ के कारण ठप हो जाती हैं।
- मृदा अपरदन—यद्यपि जलोढ़ मैदानों में नदियाँ उर्वरक मिट्टी का प्रसार करती हैं तथापि बाढ़ के समय तीव्र जल-प्रवाह के कारण उपजाऊ मिट्टी का कटाव होने से मिट्टी की विशेषता बदल जाती है।
प्रश्न 4 – बाढ़ आने के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर— बाढ़ आने के प्रमुख कारण
- किसी क्षेत्र में लगातार अत्यधिक मानसूनी या चक्रवातीय वर्षा के कारण नदियों के जल स्तर में वृद्धि हो जाती है। बढ़ा हुआ जल-स्तर नदियों के तटबन्धों को तोड़कर निकटवर्ती क्षेत्र को जलमग्न कर देता है। अतः अत्यधिक वर्षा बाढ़ का प्रमुख कारण है।
- पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाएँ अधिक होने से नदियों का जल-प्रवाह मार्ग अवरुद्ध हो जाने से भी बाढ़ आ जाती है।
- नदी के ऊपरी भाग में बड़ी मात्रा में वनों का विनाश भी बाढ़ आने का एक प्रमुख कारण है। पर्वतीय क्षेत्रों में वनविनाश से बाढ़ की घटनाएँ अधिक होती हैं। इस प्रकार की बाढ़ मानवजनित बाढ़ का मुख्य उदाहरण है।
- मैदानी क्षेत्रों में अनियोजित नगरीकरण तथा मानव का अविवेकपूर्ण भूमि उपयोग बाढ़ का प्रमुख कारण है। नगरों में जल-क्षेत्रों पर अतिक्रमण तथा कच्ची भूमि की अल्पता बाढ़ प्रकोप में वृद्धि करता है।
प्रश्न 5 – बाढ़ के शमन की विधियों के बारे में बताइए ।
उत्तर – बाढ़ एक प्राकृतिक प्रकोप है, फिर भी इसे विभिन्न शमन विधियों द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है। इस सन्दर्भ में कुछ मुख्य विधियाँ निम्नलिखित हैं-
- जल क्षेत्रों का सर्वेक्षण – जल सर्वेक्षण नदियों और अन्य जल-प्रवाह मार्गों का व्यवस्थित ज्ञान प्राप्त करने की एक कला है। इसमें .नदी की धारा का व्यवहार महत्त्वपूर्ण विषय है जिसका अध्ययन करके नदी की सम्भावित बाढ़ का आकलन किया जा सकता है और शमन हेतु रणनीति निर्धारित की जा सकती है; जैसे यदि नदी का मार्ग टेढ़ा-मेढ़ा है तो उसे सीधा करके बाढ़ की सम्भावना को समाप्त किया जा सकता है।
- कृत्रिम जलाशयों का निर्माण – बाढ़ सम्भावी क्षेत्रों में कृत्रिम जलाशय बनाकर बाढ़ के जल को फैलने से रोका जा सकता है; इससे वर्षा के जल को भी संचित करने में सहायता मिलती है।
- नदियों की सम्बद्धता – बाढ़ उत्पन्न करने वाली नदियों को अल्पजल वाली नदियों से जोड़कर एक नदी तन्त्र विकसित किया जा सकता है, जिससे बाढ़ की सम्भावना समाप्त हो सकती है।
- कृत्रिम तटबन्ध – बाढ़ों से सुरक्षा हेतु ऊँचे चबूतरों पर आवास क्षेत्रों का विकास तथा भित्तियों या तटबन्धों से बाढ़ के जल को फैलने से रोका जा सकता है। सिन्धु घाटी सभ्यता में इस प्रकार के उपायों का अधिक प्रचलन था । इस प्रकार के तटबन्ध बनाने के लिए वर्तमान में रेत के भरे थैलों का उपयोग सस्ता व सरल उपाय है।
प्रश्न 6 – बाढ़ की चेतावनी व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर— भारत में बाढ़ सम्बन्धी पूर्वानुमान चेतावनी देने का कार्य आयोग ने लगभग 132 बाढ़ पूर्वानुमान केन्द्रों की स्थापना की है जो देश का ‘केन्द्रीय जल आयोग’ करता है। देश भर में केन्द्रीय जल अन्तर्राज्य बाढ़ सम्भावी नदियों पर नजर रखते हैं। इन केन्द्रों से प्रतिवर्ष लगभग 6,000 बाढ़ पूर्वानुमान जारी किए जाते हैं। इन पूर्वानुमानों की जानकारी इस आयोग द्वारा देश के मौसम विभाग एवं बाढ़ – नियन्त्रण के कर्मिकों को कम्प्यूटर नेटवर्क द्वारा दी जाती है तथा देश-भर में इसकी सूचना विभिन्न संचार माध्यमों द्वारा प्रदान कर दी जाती है।
प्रश्न 7 – बाढ़ के सन्दर्भ में ‘सम्भावना अवधि’ के बारे में बताइए |
उत्तर— बाढ़ के सन्दर्भ में ‘सम्भावना अवधि’ (Probability Period) का सम्बन्ध उस समय से है जिसके अन्तर्गत प्रशासनिक अधिकारी सतर्क हो सकें और बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के निवासियों को चेतावनी देकर सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने की व्यवस्था कर सकें। वास्तव में ‘सम्भावना अवधि’ संचार माध्यमों और प्रशासन के अधिकारियों को इतना समय देती है कि वे अग्रिम चेतावनी दे सकें और बाढ़ प्रभावित क्षेत्र को खाली कराने का काम आरम्भ कर सकें।
प्रश्न 8- भारत के मानचित्र में बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों को चिह्नित कीजिए।
उत्तर— संलग्न मानचित्र 5.1 का अवलोकन कीजिए।

