UK Board 9th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 7 सूखा
UK Board 9th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 7 सूखा
UK Board Solutions for Class 9th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 7 सूखा
पाठ्यपुस्तक के अन्तर्गत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – सूखे से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – सूखा एक प्राकृतिक आपदा है। इसमें कृषि, पशुपालन तथा मनुष्य की सामान्य जल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी जल का अभाव उत्पन्न हो जाता है। अगर मौसम विज्ञान की सरल शब्दावली में कहें तो दीर्घकालीन औसत के आधार पर किसी स्थान पर 90 प्रतिशत से कम वर्षा होना सूखा की स्थिति माना जाता है। सामान्यतः गम्भीर सूखे की स्थिति ज्यादा देर से आती है। गम्भीर सूखा तब माना जाता है, जब वर्षा में 50 प्रतिशत से अधिक कमी आ जाए या दो वर्ष तक निरन्तर वर्षा न हो ।
प्रश्न 2- सूखा पड़ने के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर- सूखा पड़ने के कारण
सूखा एक भयंकर प्राकृतिक प्रकोप है जो कुछ स्थानों पर विभिन्न प्राकृतिक दशाओं के कारण स्थायी रूप से स्थापित हो जाता है। इससे मानव की आर्थिक क्रियाएँ इतनी प्रभावित होती हैं कि उसे मजबूर होकर उस स्थान से पलायन तक करना पड़ जाता है। वास्तव में इसके विस्तार एवं वृद्धि में प्रकृति के साथ-साथ मानवीय क्रियाएँ भी कम उत्तरदायी नहीं हैं। सूखा उत्पन्न होने के प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-
- सूखे का सबसे प्रमुख कारण वर्षा का न होना है। वर्षा न होने के पीछे विभिन्न भौतिक दशाएँ, जलवायु परिवर्तन एवं वन विनाश महत्त्वपूर्ण कारण हैं।
- वन जलवायु को सन्तुलित रखते हैं तथा वर्षा के लिए अनुकूल दशाएँ उत्पन्न करते हैं। अतः वनों के विनाश से वातावरण में आर्द्रता की मात्रा न्यूनतम हो जाती है और सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- भूमिगत जल का यदि अत्यधिक दोहन किया जाता है, कुएँ तथा अन्य भूमिगत जल स्रोत सूख जाते हैं इसलिए सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान्न आपूर्ति के कारण जल एवं भूमि संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ा है जिसके कारण सूखे की परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
- वैज्ञानिकों का मत है कि पृथ्वी तापन (ग्लोबल वार्मिंग) में वृद्धि भी सूखे के लिए उत्तरदायी है।
प्रश्न 3- सूखे के कारण उत्पन्न प्रभावों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – वास्तव में, सूखा एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध मानव की तीन आधारभूत आवश्यकताओं–वायु, जल और भोजन से है। सूखे से अनेक दुष्परिणाम मानव के सामने उत्पन्न होने लगते हैं, ऐसे ही कुछ दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-
- सूखा पड़ने पर कृषि उपजें नष्ट होने लगती हैं, जिससे भोजन की कमी हो जाती है।
- सूखा पड़ने से पशुओं के लिए चारे की कमी हो जाती है, कभी-कभी चारे की कमी के कारण पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है।
- ग्रामों की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है, परन्तु सूखे के कारण कृषि नष्ट हो जाती है इसलिए ग्रामों में किसानों को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है।
- ग्रामों में कृषि पर आधारित रोजगारों की प्रधानता होती है परन्तु सूखे के कारण ग्रामों में रोजगार की कमी हो जाती है। इससे गाँव के लोगों की क्रय क्षमता कम हो जाती है जिसका प्रभाव सम्पूर्ण वाणिज्य व्यवस्था पर पड़ता है।
- लम्बी अवधि तक सूखा पड़ने पर दुर्भिक्ष (Famine) जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिससे भुखमरी के कारण व्यापक रूप में मानव एवं पशुओं की मृत्यु होने लगती है।
- सरकार को सूखे से निपटने के लिए विविध उपायों पर धन व्यय करना पड़ता है जिससे राष्ट्रीय बचत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा विकास कार्यों में धन की मात्रा में गिरावट आने लगती है।
- सूखा पड़ने पर उद्योगों के लिए कृषि आधारित कच्चे माल की कमी हो जाती है जिससे औद्योगिक उत्पादन में गिरावट के कारण कीमत ऊँची हो जाती है।
- सूखे के कारण लोग अपने मूल स्थान से पलायन करने लगते हैं इसलिए अन्य क्षेत्रों में जनसंख्या असन्तुलन की समस्या उत्पन्न होने लगती है।
प्रश्न 4 – सूखे के प्रभाव से मुक्त होने के लिए युक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – वास्तव में, सूखे का सबसे बड़ा कारण वर्षा की अल्पता या जल का अभाव है, जिसके लिए मानव के प्रकृति विरोधी कार्य अधिक उत्तरदायी हैं; अतः समग्र रूप से विभिन्न प्रयासों द्वारा जलवायु एवं पर्यावरण को सन्तुलित बनाए रखना सूखा से मुक्ति पाने का सबसे उत्तम उपाय है, जिसके लिए निम्नलिखित युक्तियाँ महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकती हैं-
- वर्षाजल का संरक्षण एवं संवर्द्धन करना, नहरों एवं नदियों के जल का समुचित उपयोग, वातावरण में उपलब्ध आर्द्रता का संरक्षण आदि के प्रबन्धन की समुचित रणनीतियाँ बनाई जाएँ।
- हरित पट्टी का विस्तार किया जाए, क्योंकि हरित पट्टी या वृक्ष पर्यावरण की शुद्धता बनाएं रखने के साथ-साथ पर्यावरण में आर्द्रता बनाए रखने में भी सहयोगी होते हैं।
- सड़क मार्ग के दोनों और 5 मीटर में हरित पेटी का विकास किया जाना सर्वाधिक उपयोगी रहता है, इससे सूखे पर नियन्त्रण और क्षेत्रीय पर्यावरण सन्तुलन दोनों में सहायता मिलती है।
- सार्वजनिक स्तर पर जनसेवी संस्थाओं के माध्यम से गन्दे जल के निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। उस जल को एकत्रकर पुन: चक्रण द्वारा शुद्ध करके इसका उपयोग सिंचन कार्यों एवं पशुओं के लिए किया जा सकता है।
- क्षेत्रीय स्तर पर जनसहयोग के माध्यम से बन्द पड़े कुओं, पोखरों एवं तालाबों को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए तथा वर्षा के जल का पोखरों एवं तालाबों में संग्रह करके ग्रीष्म ऋतु में उपयोग करना चाहिए।
- ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में वर्षा जल का संचय अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। यह जल सिंचन कार्यों के अतिरिक्त पशुओं के लिए तथा मल निकास हेतु उपयोगी रहता है।
- देश में नदियों को आपस में जोड़कर बाढ़ एवं सूखा दोनों आपदाओं पर नियन्त्रण किया जा सकता है। नदी संगम ( नदियों को जोड़ना) योजना से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है साथ ही इससे देश में विद्युत उत्पादन को भी बढ़ाया जा सकता है।
- सूखा एवं बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की भूमि उपयोग नियोजन प्रणाली अपनाई जानी चाहिए। इन क्षेत्रों में कम-से-कम 35% भूमि हरित पट्टी के लिए सुरक्षित रखी जानी चाहिए। इन क्षेत्रों में वृक्षों एवं कृषि उपजों का चयन विशेषज्ञों के अनुसार किया जाना चाहिए क्योंकि कुछ विशेष कृषि फसलें और वृक्ष ऐसे होते हैं जिनसे जल संरक्षण में सहायता मिलती है।
प्रश्न 5 – भारत के मानचित्र में सूखाग्रस्त क्षेत्रों को चिह्नित कीजिए ।
उत्तर — निम्नांकित मानचित्र 7.1 का अवलोकन करें।

