UK 9th Social Science

UK Board 9th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 8 मानव-निर्मित आपदाएँ — रोकथाम व शमन

UK Board 9th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 8 मानव-निर्मित आपदाएँ — रोकथाम व शमन

UK Board Solutions for Class 9th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 8 मानव-निर्मित आपदाएँ — रोकथाम व शमन

पाठ्यपुस्तक के अन्तर्गत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1— मानवकृत आपदाएँ क्या हैं? उल्लेख कीजिए ।
उत्तर— वह आपदाएँ या खतरे जिनके लिए मानव की असावधानी, भूल, गलतियाँ, अथवा दुष्कर्म उत्तरदायी होते हैं, मानवकृत आपदाएँ कहलाती हैं। ये आपदाएँ नितान्त मानवीय होती हैं, और मनुष्य ही इनके लिए जिम्मेदार होता है। परिवहन दुर्घटना, आग लगना, औद्योगिक या रासायनिक दुर्घटना, महामारी, आतंकवाद आदि मानवकृत आपदाओं के प्रमुख उदाहरण हैं।
प्रश्न 2 – मानवकृत आपदा व प्राकृतिक आपदाओं में दो अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- मानवकृत एवं प्राकृतिक आपदाओं में अन्तर
क्र०सं० मानवकृत आपदा प्राकृतिक आपदा
1. मानवकृत आपदाएँ मनुष्य की असावधानी या दुष्कर्म के कारण उत्पन्न होती हैं। प्राकृतिक आपदाएँ प्रकृति के विभिन्न कारणों जैसे विवर्तनिक घटनाओं, भ्रंश या वायुमण्डलीय प्रक्रमों के कारण उत्पन्न होती हैं।
2. मानवकृत आपदाओं के लिए केवल मनुष्य जिम्मेदार है। इन्हें रोकना सम्भव है। इनके लिए प्राकृतिक प्रक्रम तथा कुछ मात्रा में मनुष्य के प्रकृति विरुद्ध कार्य जिम्मेदार हैं। इन्हें रोकना असम्भव है।
3. मानवकृत आपदाओं में अधिकांश आपदाएँ सर्वव्यापी हैं; जैसे- आग लगना आदि । प्राकृतिक आपदाएँ सर्वव्यापी नहीं होतीं क्योंकि इनके लिए प्राकृतिक प्रक्रम अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 3 – आग आपदा के रूप में कैसे परिवर्तित होती है? समझाइए |
उत्तर— सामान्यतः आग को उसकी लपटों से पहचाना जाता है, जिसमें ताप, धुआँ और प्रकाश समाहित होता है। यह किसी वस्तु में गैस, वाष्प तथा ऊष्मा पैदा करने वाली रासायनिक प्रक्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। यदि इस पर उसी समय काबू न किया जाए तो यह वायु की ऑक्सीजन के साथ मिलकर खतरनाक रूप धारण करके आफ्दा में परिवर्तित हो जाती है। आम वायु एवं ऑक्सीजन की वृद्धि से प्रचण्ड रूप धारण कर लेती है और क्षण-भर में ही विस्तृत क्षेत्र में फैलकर जन-धन को नष्ट कर देती है। जब कोई ज्वलनशील पदार्थ, जैसे— पेट्रोल, गैस, कोयला, लकड़ी, कागज, प्लास्टिक आदि आग के सम्पर्क में आ जाता है तो आपदा और अधिक भयानक रूप धारण कर सब कुछ जलाकर राख में बदल देती है ।
अतः अग्निकाण्ड रूपी आपदा अन्य आपदाओं से अधिक भयानक आपदा है। प्रतिवर्ष इससे लाखों लोगों की जलकर मृत्यु हो जाती है तथा अरबों रुपये की सम्पत्ति सदैव के लिए आग की भेंट चढ़ जाती है।
प्रश्न 4 – आग लगने के मुख्य कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर – आग लगने के मुख्य कारक निम्नलिखित हैं-
  1. आग लगने का प्रधान कारक ऊष्मा का स्रोत है इसीलिए प्रत्येक ज्वलनशील पदार्थ को आग का कारक कहा जाता है।
  2. बिजली की दोषपूर्ण वायरिंग शॉर्ट सर्किट, ओवर लोड, अनधिकृत विद्युत उपकरणों के उपयोग से आग लगने की सम्भावना में वृद्धि होती है।
  3. रिहायशी क्षेत्रों में रसोई कार्यों में असावधानी के कारण आग लगती है।
  4. ज्वलनशील पदार्थ; जैसे— पेट्रोल, गैस, सरेस आदि शीघ्र ही आग पकड़ लेते हैं; अतः इनका रख-रखाव एवं प्रयोग सावधानी एवं सुरक्षा के साथ नहीं किया जाता तो भयंकर अग्निकाण्ड हो सकता है।
  5. यदि कूड़ा-करकट खुले में बिना किसी सावधानी के डाल दिया जाए तो उसमें आग लगने और फैलने की सम्भावना अधिक होती है।
  6. धूम्रपान के समय अपनाई गई असावधानी या जानबूझकर लगाई गई आग की घटना भी अग्नि आपदा का प्रमुख कारक होता है।
प्रश्न 5 – आग लगने पर जोखिम के तत्त्वों तथा शमन की मुख्य युक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : जोखिम के तत्त्व – आग आपदा की दृष्टि से निम्नलिखित तत्त्वों को अधिक संवेदनशील माना जा सकता है-
  1. भीड़-भाड़ वाली बस्तियाँ- बाजार तथा सार्वजनिक स्थल आदि।
  2. घास-फूस की छतों वाली झुग्गी-झोंपड़ियों की मलिन बस्तियाँ।
  3. ज्वलनशील पदार्थों के भण्डार, गोदाम आदि ।
  4. अग्नि शमन व्यवस्था के अभाव में बनी बहुमंजिली इमारतें ।
शमन की मुख्य युक्तियाँ – आग आकस्मिक एवं सर्वव्यापी आपदा है। यह कभी भी, कहीं भी आपदा का रूप धारण कर लेती है। अतः इसके शमन हेतु निम्नलिखित युक्तियाँ कारगर सिद्ध हो सकती हैं-
  1. अग्नि वाले स्थान को शीघ्र छोड़ देना चाहिए किन्तु निकास मार्ग में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए अन्यथा भगदड़ मचने पर अन्य आपदा घटित होने की सम्भावना रहती है।
  2. आग बुझाने के लिए अग्निरोधी वस्त्रों का ही प्रयोग करना उचित रहता है।
  3. अग्निरोधी दल को पूर्णरूप से प्रशिक्षित होना चाहिए तथा आग बुझाने की आधारभूत प्रक्रिया से अवश्य ही अवगत होना चाहिए।
  4. भीड़-भाड़ एवं सार्वजनिक स्थलों पर ज्वलनशील पदार्थ नहीं लाने चाहिए, इनके भण्डार भी सुरक्षित स्थानों पर ही बनाए जाएँ।
  5. विद्युत वायरिंग मानक नियमानुसार ही करनी चाहिए तथा विद्युत उपकरणों का उपयोग एवं रसोई व घर में अन्य कार्य सावधानी से करने चाहिए।
प्रश्न 6 – वनाग्नि के कारणों को समझाइए ।
उत्तर – वनों में लगी आग जब अनियन्त्रित हो जाती है तो इसे aratग्न या वनाग्नि कहते हैं। वन क्षेत्रों की अधिकता वाले राज्यों में प्रतिवर्ष गर्मियों के दिनों में वनाग्नि द्वारा बहुमूल्य वनसम्पदा जलकर नष्ट हो जाती है। वनों की आग का मुख्य कारण मानवीय असावधानी होता है इससे सम्बन्धित कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
  1. वनों में काम करने वाले श्रमिकों (जो वनोत्पादक सामग्री संग्रह करते हैं) द्वारा वनों में आग लगाई जाती है, जिससे अवैध कटान एवं ऐसे ही कार्यों को छिपाया जा सके।
  2. अवैध शिकार के कारण भी वनों में आग लगाई जाती है।
  3. वन्य जन्तुओं को भगाने के लिए भी वनों में आग लगाई जाती है।
  4. इसके अतिरिक्त, नई घास पैदा करने तथा वन भूमि पर अतिक्रमण करने के उद्देश्य से भी आग लगाई जाती है।
  5. कभी-कभी धूम्रपान या अन्य किसी उद्देश्य के लिए असावधानीपूर्वक आग का प्रयोग करने के कारण भी वनों में आग लग जाती है।
वनों में उपर्युक्त आग लगने के मानवीय कारणों के अतिरिक्त कभी-कभी बाँस के जंगल में वृक्षों के आपसी घर्षण से उत्पन्न चिंगारी भी वनाग्नि के लिए जिम्मेदार होती है।
प्रश्न 7 – वनाग्नि के शमन की विधियाँ बताइए ।
उत्तर- वनाग्नि शमन के उपाय
वनाग्नि शमन हेतु सर्वप्रथम अतिशीघ्र वन विभाग को सूचित करना चाहिए। तत्काल रूप में वनाग्नि शमन के लिए निम्नलिखित कार्यप्रणाली अपनाना उचित रहता है—
  1. सामुदायिक सहभागिता से आग बुझाने का कार्य करें।
  2. अग्निकाल में परिस्थितियों और चेतावनियों का ध्यान रखें।
  3. शान्ति व सतर्कता से निर्णायक कदम उठाएँ। इस दौरान पूरी कार्यवाही अग्नि व्यवहार पर आधारित रखने का प्रयास करें।
  4. अग्निशमन का कार्य आक्रामक रूप से करें किन्तु सम्पूर्ण सुरक्षा को याद रखें।
वनाग्नि के उपर्युक्त उपायों के अतिरिक्त वनाग्नि न्यूनीकरण हेतु . जैसेकुछ अन्य महत्त्वपूर्ण सावधानियों को भी याद रखना चाहिए; . जलती हुई कोई भी वस्तु-बीड़ी, सिगरेट, कैंप फायर या खाना बनाने में प्रयुक्त आग को जलता हुआ नहीं छोड़ें तथा किसी व्यक्तिगत लाभ— वनोत्पादन संग्रह, अवैध कटान, वन्य जीवों से सुरक्षा आदि उद्देश्यों के लिए भी वनों में आग लगाने पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
प्रश्न 8 – सड़क दुर्घटना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर— सड़क आज के युग में यातायात का प्रमुख साधन है। इसका उपयोग पहाड़ी एवं दुर्गम क्षेत्रों में भी किया जाता है। किन्तु जब असावधानी, भूल, गलती या वाहन सम्बन्धी दोष के कारण परिवहन साधन अनियन्त्रित होकर क्षतिग्रस्त हो जाए तो उस वाहन में रखा सामान एवं यात्री घायल हो जाते हैं या उनकी मृत्यु हो जाए तो इस प्रकार की विपत्ति सड़क दुर्घटना कहलाती है। इस प्रकार की दुर्घटनाएँ सड़क परिवहन के नियमों के उल्लंघन, वाहन की तीव्रगति, शराब पीकर गाड़ी चलाने तथा सड़कों एवं वाहनों के रख-रखाव में कमी के कारण अधिक होती हैं।
प्रश्न 9 – सड़क दुर्घटनाओं के जोखिम के तत्त्वों की पहचान कीजिए।
उत्तर— सड़क दुर्घटनाएँ आकस्मिक होती हैं। सामान्यतः इसमें चेतावनी का अवसर नहीं मिलता। इस प्रकार की दुर्घटनाओं में अग्रलिखित जोखिम तत्त्वों पर विशेष ध्यान देना उपयुक्त रहता है-
  1. चालक, महिलाएँ, बच्चे और वृद्धों को सड़क दुर्घटना का जोखिम रहता है ।
  2. व्यस्त सड़कें, चौराहे एवं तीव्र मोड़ पर इन दुर्घटनाओं की आवृत्ति अधिक रहती है।
  3. पर्वतीय प्रदेश में अचानक आने वाले ढाल या गर्त जोखिम में वृद्धि करते हैं।
  4. वाहनों के रख-रखाव एवं वाहन चलाने में असावधानी ।
  5. तूफान, धुँध, कुहरा, भारी वर्षा आदि के समय दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है।
प्रश्न 10 – सड़क दुर्घटना के शमन के उपायों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर— सड़क दुर्घटना के शमन हेतु निम्नलिखित उपाय महत्त्वपूर्ण हैं-
  1. वाहन तभी चलाना चाहिए जब आप उसे चलाने में पूर्णत: सक्षम हों तथा सड़क नियमों की जानकारी हो ।
  2. वाहन को सदैव अपनी ‘लेन’ में चलानां चाहिए तथा सड़कों पर लगे यातायात चिह्नों का पालन करना चाहिए ।
  3. वाहन चलाते समय मौसम सम्बन्धी दशाओं— वर्षा, कुहरा आदि में अतिरिक्त सावधानी रखें।
  4. वाहन की गति पर नियन्त्रण रखें। समय-समय पर हॉर्न आदि का प्रयोग करें।
  5. रात्रि के समय वाहन लाइट का उपयुक्त प्रयोग करें तथा पहाड़ी प्रदेश में वाहन चलाते समय विशेष सावधानी रखें।
  6. चलती गाड़ी से न उतरें, वाहन से बाहर शरीर का अंग न निकालें तथा चालक से अधिक बात करने का प्रयास न करें।
  7. शराब पीकर, थकावट या बीमारी की अवस्था में वाहन न चलाएँ।
  8. यदि दुर्भाग्य से दुर्घटना हो जाए तो घबराए नहीं वरन् शान्त रहकर उचित निर्णय लें।
  9. यदि वाहन में आग लग जाए तो यथाशीघ्र वाहन से बाहर आ जाएँ सामान आदि लाने में समय नष्ट न करें। जीवन सामान से मूल्यवान् है।
प्रश्न 11 – रेल दुर्घटना से आप क्या समझते हैं? किन्हीं दो कारकों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – रेलगाड़ी का पथ विचलित होने तथा डिब्बों के पटरियों से उतर जाने या दो गाड़ियों के एक ही पटरी पर आमने-सामने से टकराने की घटना रेल दुर्घटना कहलाती है। इसका मुख्य कारण मानवीय त्रुटि या असामाजिक तत्त्वों द्वारा पटरियों में की गई तोड़-फोड़ होता है। कभी-कभी मानवीय भूल के कारण दो रेलगाड़ियाँ पटरी पर विपरीत दिशाओं से आकर आपस में टकराने से भी रेल दुर्घटनाएँ हो जाती हैं।
प्रश्न 12 – रेल यात्रा के दौरान क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए ? उल्लेख कीजिए।
उत्तर – रेल यात्रा के दौरान निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी उपयोगी रहती हैं-
  1. रेल यात्रा के समय अपने साथ ज्वलनशील पदार्थ नहीं ले जाना चाहिए।
  2. चलती हुई गाड़ी के दरवाजे पर न तो खड़े हों और न ही बाहर की ओर झुकें।
  3. गाड़ी में धूम्रपान न करें तथा अनावश्यक रूप से आपातकालीन चैन का उपयोग न करें।
  4. गाड़ी के उपयुक्त स्थान पर रुकने पर ही गाड़ी से नीचे उतरें।
प्रश्न 13 – रेल दुर्घटना के शमन की विधियाँ बताइए ।
उत्तर – रेल दुर्घटना के शमन के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं-
  1. रेलगाड़ी को किसी पुल या सुरंग पर खड़ा न करें। ऐसे स्थानों पर आवश्यकता पड़ने पर निकासी में कठिनाई उत्पन्न हो सकती है।
  2. मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग पर रेल की पट्टी के दोनों ओर देखकर ही सावधानी से चलें ।
  3. रेलवे फाटक पर सिग्नल को ध्यान से देखकर ही चलना उपयुक्त रहता है।
  4. फाटक बन्द होने पर उसके नीचे से होकर जाने से खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  5. रेलवे पटरियों, फाटकों, पुलों, सुरंग तथा सिग्नल आदि के रख-रखाव, सुरक्षा आदि पर विशेष ध्यान देना चाहिए। अधिकांश रेल दुर्घटनाएँ इनके कारण ही घटित होती हैं।
  6. यात्रियों को सुरक्षित रेल यात्रा हेतु जागरूक करने के प्रयास किए जाएँ ।
प्रश्न 14 – वायु दुर्घटना से आप क्या समझते हैं? इसके दो कारकों के विषय में बताइए ।
उत्तर— वायुयान द्वारा यात्रा सबसे अधिक जोखिमपूर्ण होती है। वायुयान जब तकनीकी गड़बड़ी या पर्यावरणीय दशाओं के कारण अथवा मानव के किसी दुष्कर्म के कारण पथ- विचलित होकर क्षतिग्रस्त हो जाए तो इस प्रकार की घटना को वायुयान दुर्घटना कहते हैं। इस प्रकार की दुर्घटना का प्रमुख कारण – तकनीकी गड़बड़ी, आग लगना, बम फटने जैसी घटना होना या पर्यावरणीय विपरीत परिस्थितियाँ होती हैं।
प्रश्न 15 – वायु यात्रा के दौरान किन-किन सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए ? उल्लेख कीजिए ।
अथवा वायु दुर्घटना के न्यूनीकरण की विधि को समझाइए |
उत्तर – वायु यात्रा के समय निम्नलिखित सावधानियाँ उपयोगी रहती हैं-
  1. वायुयान कर्मीदल द्वारा बताए गए या दर्शाए गए सुरक्षा – नियमों का ध्यानपूर्वक पालन करना चाहिए ।
  2. निकटतम निकास खिड़की को जानें और आवश्यकता पड़ने पर उसे खोलने की विधि को सीखें।
  3. जब तक अपनी सीट पर बैठे हो सुरक्षा पेटी को बाँधे रखें।
  4. सुरक्षा कार्ड को ध्यान से पढ़ें और दर्शाए गए उपायों का पालन करें।
  5. दुर्घटना की अवस्था में शान्त रहें घबराए नहीं और चेतावनी एवं निर्देशों पर ध्यान दें।
  6. आपात खिड़की से बाहर की ओर देखें, यदि बाहर आग है तो इसे न खोलें और वैकल्पिक मार्ग का प्रयोग करें।
  7. फर्श पर लगी लाइटों का अनुसरण करें ये लाइट निकास खिड़की की दिशा को बताती हैं।
  8. यदि वायुयान में धुआँ है तो इसके नीचे ही रहिए, क्योंकि धुआँ सदैव ऊपर की ओर उठता है। उपयुक्त रहेगा किसी कपड़े से अपनी नाक और मुँह ढक लें।
प्रश्न 16 – आतंकवादी घटनाओं से बचने के लिए सामान्य नियमों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – आतंकवादी घटनाएँ देश के आन्तरिक एवं बाह्य गुमराह व्यक्तियों द्वारा उत्पन्न की जाती हैं। ऐसी घटनाएँ बड़ी घातक होती हैं – इनसे बचने के लिए कुछ सामान्य नियम निम्नलिखित हैं-
  1. यात्रा के दौरान किसी भी लावारिस वस्तु को न छुएँ तथा इसकी सूचना सम्बन्धित व्यक्ति को दें। इस वस्तु में बम भी हो सकता है।
  2. ऐसी वस्तुओं से स्वयं एवं अन्य लोगों को दूरी बनाए रखने के लिए जागरूक करें।
  3. शान्त रहें और खलबली न मचाएँ अन्य लोगों को भी धैर्य रखने के लिए प्रेरित करें।
  4. सन्देहास्पद वस्तुओं, व्यक्तियों एवं स्थानों की जानकारी पुलिस को दें।
प्रश्न 17 – औद्योगिक दुर्घटना से आप क्या समझते हैं? उल्लेख कीजिए ।
उत्तर— मानवकृत आपदाओं में आंद्योगिक दुर्घटनाओं का प्रमुख स्थान है। जब कभी अव्यवस्थित औद्योगिक विकास, उचित प्रबन्ध की कमी, सुरक्षा उपायों के अभाव में किसी औद्योगिक केन्द्र पर भवनों की एवं शारीरिक क्षति हो जाती है तो उसे औद्योगिक दुर्घटना कहते हैं। इस प्रकार की दुर्घटनाएँ कभी – कभी इतनी भयानक होती हैं कि इनसे औद्योगिक केन्द्र ही नहीं निकटवर्ती क्षेत्र भी प्रभावित हो जाता है। ऐसी घटनाओं में रासायनिक विस्फोट या रिसाव, आग लगना आदि अधिक हानिकारक स्थिति हैं, जिसमें भवन एवं मानव सम्पदा ही नहीं वरन् जीव जन्तु भी बड़ी संख्या में प्रभावित होते हैं।
प्रश्न 18 – किसी एक औद्योगिक दुर्घटना का वर्णन कीजिए। 
उत्तर- भोपाल गैस त्रासदी
भोपाल रासायनिक गैस रिसाव आपदा 2-3 दिसम्बर, 1984 ई० को घटने वाली अभी तक की सबसे विनाशकारी औद्योगिक दुर्घटना थी। इस दुर्घटना में हाइड्रोजन साइनाइड तथा अन्य अभिक्रिया उत्पादों सहित 45 टन ‘मिथाइल आइसोसाइनेट’ नामक जहरीली गैस यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक कारखाने से रिसकर भोपाल में हवा के साथ बह गई थी । सरकारी सूत्रों के अनुसार इस त्रासदी में 1989 ई० तक मरने वालों की संख्या 3,598 तक पहुँच गई थी। अनेक प्रभावित लोग आज भी नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
प्रश्न 19 – औद्योगिक दुर्घटना के शमन की युक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- औद्योगिक दुर्घटना के शमन की युक्तियाँ निम्नलिखित हैं-
  1. औद्योगिक क्षेत्र में अग्नि प्रतिरोधक तथा संसूचक के संयन्त्रों का पूरा प्रबन्ध होना चाहिए।
  2. जहरीले पदार्थों के भण्डारण की क्षमता को सीमित करना चाहिए।
  3. प्रदूषणकारी तत्त्वों से निपटने की सही व्यवस्था की जानी चाहिए।
  4. किसी भी सम्भावित दुर्घटना की चेतावनी को गम्भीरता से लिया जाना चाहिए।
प्रश्न 20 – औद्योगिक दुर्घटना के सम्बन्ध में कानूनी कार्यवाही का वर्णन कीजिए ।
उत्तर- औद्योगिक दुर्घटनाएँ उद्योगों में प्रबन्धन अभाव का परिणाम होता है जिसके लिए उद्योगों हेतु बनाए गए कानूनों का अभाव या इन कानूनों के प्रति की गई अवहेलना अथवा कानून की शिथिलता अधिक जिम्मेदार होती है। अतः इस प्रकार दुर्घटनाओं को रोकने के लिए विशेष प्रकार के कानूनों का निर्माण एवं उनका क्रियान्वयन अत्यन्त आवश्यक है। दोषी प्रबन्धकों को औद्योगिक तथा रासायनिक दुर्घटनाओं से पीड़ित लोगों की क्षति पूर्ति के लिए कानूनी रूप से उत्तरदायी बनाना चाहिए। इसके अतिरिक्त ऐसे कानून बनाने चाहिए कि औद्योगिक इकाइयाँ सुरक्षा व्यवस्था करने पर विवश हो जाएँ। इस प्रकार की व्यवस्था से अवश्य ही औद्योगिक दुर्घटनाओं में कमी आएंगी।
प्रश्न 21 – परमाणु विस्फोट से क्या तात्पर्य है?
उत्तर — यूरेनियम तथा थोरियम परमाणु ऊर्जा के दो आधारभूत खनिज हैं। इन खनिजों की अल्प मात्रा से ही बहुत अधिक ऊर्जा पैदा की जा सकती है। अतः जब परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों में किसी तकनीकी कमी, असावधानी या मानवीय दुष्कर्म के कारण विस्फोट या परमाणु अणुओं का रिसाव हो जाता है तो उसे परमाणु विस्फोट कहते हैं। चैरनेबल परमाणु केन्द्र से रेडियोधर्मी रिसाव होना तथा संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु बम गिराना परमाणु विस्फोट के उदाहरण हैं।
प्रश्न 22 – परमाणु विस्फोट के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर — परमाणु विस्फोट से अपार जन-धन की हानि के अतिरिक्त पर्यावरण प्रदूषण भी बड़े पैमाने पर फैलता है। अनुमान है कि सीमित परमाणु युद्ध की स्थिति में भी लगभग 10 करोड़ टन कालिख (Soot) धुआँ अथवा विषैली गैसें हमारे वायुमण्डल में फैल जाएँगी। इससे सूर्य की किरणों को पृथ्वी के धरातल तक पहुँचने में बाधा आएगी और परमाणुशीत का वातावरण उत्पन्न हो जाएगा।
परमाणु विस्फोट से हमारे वायुमण्डल में नाइट्रोजन ऑक्साइड बड़ी मात्रा में प्रवेश करती है जिससे ओजोन गैस का ह्रास होता है। ओजोन एक विशिष्ट प्रकार की ऑक्सीजन गैस है जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों का अवशोषण कर मानव शरीर को सुरक्षा कवच प्रदान करती हैं। अत: परमाणु विस्फोट से भौतिक, शारीरिक एवं आर्थिक क्षति ही नहीं बल्कि पर्यावरणीय क्षति अधिक होती है जिसका प्रभाव दीर्घकाल तक बना रहता है।
प्रश्न 23 – महामारी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर— महामारी एक ऐसी घटना है जिसमें संक्रामक बीमारी तेजी से फैलती है, जो समुदाय के एक सदस्य से दूसरे सदस्य को प्रभावित करते हुए विस्तृत क्षेत्र में फैल जाती है। इसके आगमन का अनुमान रोगग्रस्त लोगों की संख्या में वृद्धि से लगाया जा सकता है। वर्ष 2020 में फैला कोराना वायरस रोग, भारत में फैली महामारी का सबसे भयानक उदाहरण है जिसने भारत को प्रत्येक स्तर पर प्रभावित किया।
प्रश्न 24 – महामारी के आगमन के प्रकार बताइए ।
उत्तर – महामारी का आगमन तीव्र या मन्द किसी भी प्रकार का हो सकता है। इसके आगमन की तीव्रता या धीमी गति का पता रोगियों की संख्या से लगाया जा सकता है। यदि अल्प समय में ही किसी संक्रामक बीमारी के रोगियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है तो महामारी तीव्र प्रकार की मानी जाती है। किन्तु इसके विपरीत यदि रोगियों की संख्या में तेजी से वृद्धि नहीं हो रही है तो महामारी को मन्द प्रकार की कहा जाता है।
प्रश्न 25 – जनसंख्या विस्फोट से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर- जनसंख्या विस्फोट जनसंख्या में वृद्धि की तीव्रगति की अवस्था है। इस अवस्था में जब लम्बे समय तक मृत्यु-दर जन्म-दर से कम बनी रहे तो एक सीमा ऐसी आ जाती है जब जनसंख्या अत्यधिक हो जाती है जिसे जनाधिक्य या जनसंख्या विस्फोट की स्थिति कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, जब किसी देश में उपलब्ध संसाधन के अनुपात में जनसंख्या बहुत अधिक हो जाए और फिर भी जनसंख्या वृद्धि की दर ऊँची बनी रहे तो उसे जनसंख्या विस्फोट कहा जाता है।
प्रश्न 26 – जनसंख्या में लिंग अनुपात के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर- कुल जनसंख्या में स्त्री- -पुरुष का अनुपात लिंग अनुपात कहलाता है जिसका सन्तुलित होना सामाजिक-आर्थिक विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यदि किसी क्षेत्र का जनसंख्या लिंग अनुपात सन्तुलित नहीं है तो वहाँ जनसंख्या सम्बन्धी एवं अन्य अनेक सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ भी उत्पन्न होने लगती हैं। भारत के कई तो वहाँ सामाजिक व्यवस्था, विवाह आदि की अनेक समस्याएँ पैदा राज्य जहाँ स्त्री अनुपात पुरुषों की अपेक्षा कम है (जैसे- हरियाणा ) होने लगती हैं जिससे सामाजिक नैतिकता को भी खतरा पैदा होने का डर उत्पन्न हो जाता है।
प्रश्न 27 – जनसंख्या में वृद्धि की दर के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – जनसंख्या वृद्धि के लिए कई कारण उत्तरदायी होते हैं, किन्तु निम्नलिखित दो कारण अधिक प्रभावी होते हैं—
  1. जन्म-दर- प्रति 1000 व्यक्तियों के पीछे वर्ष में जितने बच्चे पैदा होते हैं, उस संख्या को जन्म दर कहते हैं। यदि किसी देश में जन्म-दर ऊँची होती है तो जनसंख्या वृद्धि दर भी अधिक रहती है।
  2. मृत्यु – दर – प्रति 1000 व्यक्तियों के पीछे वर्ष में जितने लोगों की मृत्यु होती है उस संख्या को मृत्यु दर कहते हैं। यदि किसी देश में मृत्यु-दर, जन्म-दर से ऊँची होती है तो वहाँ जनसंख्या वृद्धि की दर भी निम्न होती है।
वास्तव में जनसंख्या वृद्धि के कारणों में जन्म – मृत्यु दर एवं जनसंख्या स्थानान्तरण का विशिष्ट महत्त्व है, परन्तु इसके अतिरिक्त विभिन्न स्थानों या देशों की सामाजिक एवं धार्मिक दशाएँ, साक्षरता दर, आर्थिक विकास तथा सरकारी नीति आदि कारक भी जनसंख्या वृद्धि को प्रभावित करते हैं।

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