UK Board 9th Class Social Science – (इतिहास) – Chapter 1 फ्रांसीसी क्रान्ति
UK Board 9th Class Social Science – (इतिहास) – Chapter 1 फ्रांसीसी क्रान्ति
UK Board Solutions for Class 10th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (इतिहास) – Chapter 1 फ्रांसीसी क्रान्ति
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – फ्रांस में क्रान्ति की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई?
उत्तर— फ्रांसीसी क्रान्ति 5 मई, 1789 ई० में हुई, जिसने शीघ्र ही भीषण रूप धारण कर लिया । अन्ततः फ्रांस में निरंकुश राजतन्त्र का अन्त करके लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना की गई। इस क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
- राजनीतिक कारण – फ्रांस के शासक स्वेच्छाचारी और निरंकुश थे। वे राजा के दैवी अधिकारों के सिद्धान्त में विश्वास करते थे। अतः वे प्रजा के सुख-दुःख, हित-अहित की कोई चिन्ता न करके अपनी इच्छानुसार कार्य करते थे। वे जनता पर नए कर लगाते रहते थे और कर के रूप में वसूले गए धन को मनमाने ढंग से विलासिता के कार्यों पर व्यय करते थे। सम्पूर्ण देश के लिए एक समान कानून व्यवस्था भी नहीं थी। इस प्रकार फ्रांस की जनता शासकों की निरंकुशता से बहुत थी।
- सामाजिक कारण – फ्रांस में क्रान्ति से पूर्व बहुत बड़ी सामाजिक असमानता थी । पुरोहित तथा कुलीन श्रेणी के लोगों का जीवन बहुत विलासी था तथा उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त थे। इसके विपरीत किसानों तथा मजदूरों का जीवन नारकीय था। वे विभिन्न प्रकार के करों व बेगार के बोझ के नीचे पिस रहे थे। समाज में बुद्धिजीवी वर्ग अर्थात् वकील, डॉक्टर, अध्यापक आदि का सम्मान नहीं था। अतः फ्रांस की मध्यमवर्गीय धनी एवं शिक्षित जनता; कुलीन वर्ग के लोगों तथा चर्च के उच्च अधिकारियों से सदैव द्वेष रखती थी। अतः क्रान्ति प्रारम्भ होते ही तृतीय वर्ग की सम्पूर्ण जनता ने इसका भरपूर समर्थन किया।
- आर्थिक कारण – अनेक युद्धों में भाग लेने कारण फ्रांस की आर्थिक दशा अत्यन्त दयनीय हो चुकी थी। राजदरबार की शान-शौकत एवं उच्च श्रेणी के व्यक्तियों की विलासप्रियता के कारण साधारण जनता पर अनेक प्रकार के कर लगाए जाते और उनकी वसूली निर्दयतापूर्वक की जाती थी। फ्रांस में उच्च वर्ग और पादरी करों का भार वहन करने में समर्थ थे, परन्तु उन्हें करों से मुक्त रखा गया। इस प्रकार दयनीय आर्थिक दशा भी फ्रांस की क्रान्ति का एक बड़ा कारण बनी।
- दार्शनिकों तथा लेखकों के विचारों का प्रभाव – फ्रांस जैसी दशा यूरोप के लगभग सभी देशों में थी। फ्रांस के दार्शनिकों और लेखकों के क्रान्तिकारी विचारों के परिणामस्वरूप फ्रांस में ही सबसे पहले क्रान्ति हुई। फ्रांस के लेखकों एवं दार्शनिकों के विचारों ने राज्य के खिलाफ क्रान्ति की भावना का बीजारोपण किया। इनमें मॉण्टेस्क्यू, वाल्टेयर, रूसो, दिदरो आदि दार्शनिकों ने फ्रांस की क्रान्ति को जन्म देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- तात्कालिक कारण-फ्रांस की क्रान्ति का तात्कालिक कारण एस्टेट्स जनरल का अधिवेशन बुलाया जाना था । लुई 16वें ने देश की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए वित्त मन्त्री कैलोन के परामर्श से जनता पर नए कर लगाने का निश्चय किया, क्योंकि यह संस्था ही नए कर प्रस्तावों को पारित कर सकती थी। 5 मई, 1789 ई० को एस्टेट्स जनरल के अधिवेशन की तिथि निर्धारित की गई। किन्तु फ्रांस में तो क्रान्ति का बारूद तैयार हो चुका था। अतः उसमें एस्टेट्स जनरल के अधिवेशन ने चिंगारी का काम किया और 5 मई, 1789 ई० को क्रान्ति का विस्फोट हो गया।
प्रश्न 2 – फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रान्ति का फायदा मिला ? कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए? क्रान्ति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी?
उत्तर – फ्रांसीसी समाज के तीसरे एस्टेट के लोगों को क्रान्ति से सबसे अधिक लाभ हुआ। इन वर्गों में श्रमिक, किसान, अधिकारी, वकील, डॉक्टर, अध्यापक, व्यापारी आदि सम्मिलित थे। पहले उन्हें. सभी प्रकार के कर देने पड़ते थे तथा समय-समय पर सामन्त तथा पादरियों द्वारा अपमानित किया जाता था। फ्रांस की क्रान्ति के पश् तीसरे एस्टेट के लोगों को भी राजनीतिक अधिकार दिए गए।
इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप पहले और दूसरे प्रकार के एस्टेट, जिन्हें सभी प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त थीं, को सत्ता छोड़नी पड़ी। ऐसी श्रेणी में पादरी और सामन्त थे । वस्तुतः ऊपरी वर्ग की विशेष सुविधाएँ समाप्त होने के पश्चात् फ्रांसीसी समाज का गठन सामाजिक समानता के आधार पर हुआ। अतः स्वाभाविक रूप से सुविधा प्राप्त वर्ग – पादरी तथा सामन्त ही क्रान्ति के परिणामों से निराश हुए होंगे।
प्रश्न 3 – उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ्रांसीसी क्रान्ति कौन-सी विरासत छोड़ गई ?
उत्तर— सन् 1789 की फ्रांस की क्रान्ति से न केवल फ्रांस अपितु विश्व के अनेक देश स्थायी रूप से प्रभावित हुए। 19वीं शताब्दी में यूरोप के प्रत्येक भाग में समानता, स्वतन्त्रता और भ्रातृत्व का सन्देश गूँजा । यूरोप के लगभग सभी देशों भावी क्रान्तियों के लिए यह मार्गदर्शक बना । मानव अधिकारों का घोषणा-पत्र सम्पूर्ण विश्व में स्वतन्त्रता का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण अधिकार था ।
फ्रांसीसी क्रान्ति के कारण फ्रांस तथा यूरोप के अन्य देशों में राष्ट्रीयता की भावना का जन्म हुआ। कालान्तर में इसी भावना के कारण जर्मनी, इटली आदि देशों में संगठन के आन्दोलन प्रबल हुए और वहाँ शक्तिशाली राष्ट्रों की स्थापना हुई। सामन्तवाद का स्थान प्रजातन्त्र ने लेना आरम्भ कर दिया।
वस्तुतः इस क्रान्ति ने प्रचलित कानूनों का रूप बदल दिया; सामाजिक मान्यताएँ बदल डाली और आर्थिक ढाँचे में आश्चर्यजनक परिवर्तन किए गए। नेपोलियन के काल में पेरिस में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। यूरोप के अन्य देशों में भी विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। इस क्रान्ति से मार्गदर्शन प्राप्त करके अन्य देशों के शासक वर्ग ने अपनी जनता का अधिक-से-अधिक कल्याण करने का प्रयत्न आरम्भ कर दिया।
प्रश्न 4 – उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रान्ति में है।
उत्तर — फ्रांसीसी क्रान्ति ही प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सभी अधिकारों का उत्पत्ति स्रोत है। स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व फ्रांसीसी क्रान्ति के मार्गदर्शन के सिद्धान्त हैं । भारतवर्ष में हमारे संविधान ने स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व के सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए सभी नागरिकों को छह मौलिक अधिकार प्रदान किए। अतः हम भारतवासी छह मूल अधिकारों से लाभप्रद हो रहे हैं। ये अधिकार हैं-
- समानता का अधिकार,
- स्वतन्त्रता का अधिकार,
- शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार,
- धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार,
- शोषण के विरुद्ध अधिकार,
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार ।
प्रश्न 5 – क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के सन्देश में नाना अन्तर्विरोध थे?
उत्तर— वस्तुतः सार्वभौमिक अधिकारों का संन्देश परस्पर विरोधाभासों पर ही अवलम्बित था। इन अधिकारों की व्याख्या निम्नवत् है—
- समानता और स्वतन्त्रता के आदर्शों की अवधारणा अनेक देशों में समान रूप से उभरी, लेकिन प्रत्येक राष्ट्र द्वारा इनका अर्थ एवं व्यवहार अपने-अपने देश की परिस्थितियों के अनुसार स्वीकार किया गया। अतः अधिकांश देशों ने उपनिवेशों की जनता को अनेक वर्षों तक स्वतन्त्रता नहीं दी।
- महिलाओं को पुरुषों के समान अनेक राष्ट्रों में सभी अधिकार एक साथ नहीं दिए गए थे।
- विश्व भर में दास प्रथा किसी-न-किसी रूप में अनेक वर्षों तक प्रचलित रही। रंगभेद, जाति-भेदभाव व बेगार तो 20वीं शताब्दी के अन्तिम दशक के प्रारम्भ होने तक जारी रहा।
- सभी देशों में एक निश्चित आयु के बाद मताधिकार नहीं दिया गया। अनेक देशों में 25 वर्ष या उससे अधिक के उन्हीं पुरुषों को मताधिकार मिला जो सरकार को कम-से-कम मजदूरों की तीन दिन की मजदूरी के बराबर की राशि कर के रूप में भुगतान करते थे।
- इसमें सार्वजनिक शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा गया था।
- इसमें व्यापार तथा व्यवसाय की स्वतन्त्रता का अधिकार नहीं दिया गया था।
- इन अधिकारों का सबसे बड़ा दोष यह था कि इनके साथ मानव के कर्त्तव्य निश्चित नहीं किए गए थे। अतः कर्तव्य के बिना अधिकार महत्त्वहीन ही थे।
प्रश्न 6 – नेपोलियन के उदय को कैसे समझा जा सकता हैं?
उत्तर- जैकोबिन सरकार के पतन के बाद एक नया संविधान बना। इस संविधान में दो चुनी गई विधान परिषदों का प्रावधान था । इन परिषदों ने पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका ‘डायरेक्टरी’ को नियुक्त किया। डायरेक्टरी का प्रायः विधान परिषदों से विवाद बना रहता था। डायरेक्टरी की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर नेपोलियन सेना की मदद से तानाशाह बन गया और सन् 1804 में स्वयं को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया। उसका शासन असीम एवं निरंकुश था। वह सम्पूर्ण यूरोप का शासक बनना चाहता था। शासक के रूप में उसने फ्रांस में एक कुशल एवं सक्षम शासन की स्थापना की और फ्रांसीसी जनता को क्रान्ति से उत्पन्न अराजकता से मुक्ति दिलाई। नेपोलियन ने शिक्षा को बढ़ावा दिया और व्यापार एवं उद्योग को सुधारने के लिए उपयुक्त कदम उठाए । उसने निजी सम्पत्ति की सुरक्षा लिए कानून बनाए और दशमलव पद्धति पर आधारित नाप-तौल की प्रणाली समान रूप से पूरे देश में चलाई।
प्रारम्भ में तो जनता को नेपोलियन मुक्तिदाता लगता था और उससे जनता को स्वतन्त्रता दिलाने की उम्मीद थी, परन्तु शीघ्र ही उसकी सेनाओं को लोग हमलावर मानने लगे। आखिरकार सन् 1815 में वाटरलू के युद्ध में उसकी हार हुई और उसके शासन का अन्त हो गया।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – फ्रांस की क्रान्ति के परिणामों पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर — फ्रांस की क्रान्ति ( 1789 ई०) विश्व की महानतम घटना थी। इसके दूरगामी परिणाम हुए, जिसमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-
- इस क्रान्ति ने सदियों से चली आ रही यूरोप की पुरातन व्यवस्था (Ancient Regime ) का अन्त कर दिया।
- इस क्रान्ति की महत्त्वपूर्ण देन मध्यकालीन समाज की सामन्ती व्यवस्था का अन्त करना रहा।
- फ्रांस के क्रान्तिकारियों द्वारा की गई ‘मानव अधिकारों की घोषणा’ (27 अगस्त, 1789 ई०), मानव जाति की स्वाधीनता के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
- इस क्रान्ति ने समस्त यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास और प्रसार किया। परिणामस्वरूप यूरोप के अनेक देशों में क्रान्तियों का सूत्रपात हुआ।
- फ्रांस की क्रान्ति ने धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा को जन्म दिया।
- इस क्रान्ति ने लोकप्रिय सम्प्रभुता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
- फ्रांसीसी क्रान्ति ने मानव जाति को स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुत्व का नारा प्रदान किया ।
- इस क्रान्ति ने इंग्लैण्ड, आयरलैण्ड तथा अन्य यूरोपीय देशों की विदेश नीति को प्रभावित किया।
- कुछ विद्वानों के अनुसार फ्रांस की क्रान्ति समाजवादी विचारधारा का स्त्रोत थी, क्योंकि इसने समानता का सिद्धान्त प्रतिपादित कर समाजवादी व्यवस्था का मार्ग भी खोल दिया था।
- इस क्रान्ति के फलस्वरूप फ्रांस ने कृषि, उद्योग, कला, साहित्य, राष्ट्रीय शिक्षा तथा सैनिक गौरव के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व प्रगति की ।
प्रश्न 2 – नेपोलियन की साम्राज्यवादी नीति का वर्णन कीजिए। यह नीति नेपोलियन के पतन में किस सीमा तक सहायक रही?
उत्तर— नेपोलियन अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था। उसकी महत्त्वाकांक्षाओं का कोई अन्त नहीं था । उसमें साम्राज्यवादी भावना प्रबल रूप में थी। उसके पतन का एक प्रमुख कारण उसका सैनिकवाद था। उसका साम्राज्यवाद सैनिक शक्ति पर आधारित था। क्रान्ति के युग में फ्रांस के युद्ध-मन्त्री कार्नो ने एक विशाल सेना का निर्माण करके शत्रुओं से अपने देश की रक्षा की थी। फ्रांस के सैनिकवादी नेपोलियन के उत्थान को सम्भव बनाया था। राष्ट्रीय सम्मेलन ने भी सैनिकवाद को प्रोत्साहन दिया और डायरेक्टरी के शासन में नेपोलियन ने सैनिकवाद को चरम सीमा पर पहुँचाने का कार्य अपने हाथ में ले लिया। उसकी निरन्तर विजयों ने फ्रांस की सैनिक शक्ति का अत्यधिक विस्तार कर दिया और अब फ्रांस अपनी सैनिक शक्ति के बल पर यूरोप के अन्य राज्यों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने लगा।
सैनिकवाद के प्रसार ने यूरोप में भीषण युद्धों को जन्म दिया, जिनमें फ्रांस की सैनिक शक्ति निरन्तर कम होती गई। नेपोलियन ने सैनिकों की कमी को पूरा करने के लिए फ्रांस में सैनिक सेवा अनिवार्य कर दी। उसने युवा तथा वृद्ध सभी को सेना में भर्ती होने के लिए विवश किया। परन्तु उसकी यह नीति अधिक समय तक सफल न हो सकी जो अन्त में उसके लिए विनाशकारी सिद्ध हुई। उसने अपनी असीमित साम्राज्यवादी लिप्सा को पूरा करने के लिए इंग्लैण्ड के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की और इसी के फलस्वरूप उसका पतन हो गया। अत: नेपोलियन की महत्त्वाकांक्षा, युद्धप्रियता एवं सैनिकवाद ने उसके पतन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1-फ्रांस की क्रान्ति से पूर्व फ्रांस की आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर— फ्रांस की आर्थिक दशा अनेक युद्धों में भाग लेने के कारण अत्यधिक शोचनीय हो गई थी। फ्रांस के सम्राटों-लुई चौदहवें, लुई पन्द्रहवें एवं लुई सोलहवें की विलासितापूर्ण जीवन-शैली ने देश की आर्थिक स्थिति को अस्त-व्यस्त कर दिया था। जनसाधारण पर करों का अत्यधिक भार था और उच्चवर्गीय पादरी व कुलीन करों से मुक्त थे । लुई सोलहवें की रानी मेरी आन्तोआन्त की फिजूलखर्ची ने फ्रांस के राजकोष को रिक्त कर दिया और राष्ट्रीय ऋण को 60 हजार करोड़ रु० तक पहुँचा दिया।
प्रश्न 2 – 18वीं शताब्दी में फ्रांस की सामाजिक दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर — सन् 1789 की फ्रांसीसी क्रान्ति से पूर्व फ्रांस का समाज तीन वर्गों में विभाजित था। फ्रांस की सामाजिक स्थिति इस प्रकार थी—
- पादरी वर्ग — इस वर्ग में रोमन कैथोलिक चर्च के उच्च श्रेणी के पादरी थे। उन्हें कई विशेषाधिकार प्राप्त थे तथा कोई कर नहीं देना पड़ता था। इस वर्ग के लोगों का जीवन ऐश्वर्यपूर्ण व विलासी था ।
- कुलीन वर्ग—इस वर्ग में उच्च सरकारी अधिकारी व बड़े-बड़े जमींदार होते थे। उन्हें भी अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे कृषकों से उपज का 1/2 भाग लेते थे। इतना ही नहीं; इन लोगों के पास अपनी जागीर होती थी।
- साधारण वर्ग- – इस वर्ग में किसान, छोटे कर्मचारी, मजदूर, वकील तथा डॉक्टर आदि शामिल थे। इन लोगों पर करों का अत्यधिक बोझ था। इसके अतिरिक्त इनसे बेगार भी ली जाती थी। यह वर्ग अधिकारों से विहीन था। फ्रांस की राज्य क्रान्ति के विस्फोट में इस वर्ग ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।
प्रश्न 3 – फ्रांस की क्रान्ति के राजनीतिक कारण क्या थे?
उत्तर— फ्रांस के राजा स्वेच्छाचारी थे और वे राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास करते थे। देश में सर्वत्र भ्रष्टाचार व्याप्त था। फ्रांस का तत्कालीन राजा लुई 16वाँ एक निरंकुश व अयोग्य शासक था। वह सदा भोग-विलास और ऐश्वर्य में लीन रहता था। उसका अपने अधिकारियों पर कोई नियन्त्रण नहीं था। वे सदा मनमानी करते थे। देश में शासन नाम की कोई चीज नहीं थी। देश में कर बहुत अधिक थे जो मुख्यत: जनसाधारण को ही देने पड़ते थे। सैनिकों के वेतन बहुत कम थे जिससे उनमें असन्तोष व्याप्त था।
प्रश्न 4 – बास्तील के दुर्ग के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर – पेरिस के पूर्वी भाग में स्थित बास्तील एक दुर्ग था। इसे फ्रांस के शासकों द्वारा जेल के रूप में प्रयोग किया जाता था। इसे मुख्यतया फ्रांस के शासकों द्वारा स्थापित निरंकुश शासन का प्रतीक माना जाता था। फ्रांस की जनता ने राजा के अत्याचारों से दुःखी होकर 14 जुलाई, 1789 ई० को बास्तील के दुर्ग को घेर लिया और उसके द्वार तोड़कर सभी कैदियों को स्वतन्त्र करा दिया। इस घटना से फ्रांस में निरंकुश शासन का अन्त हो गया और राजनीतिक शक्ति विधानमण्डल के हाथ में आ गई।
प्रश्न 5 – ‘ओलम्प दे गूज’ के घोषणा-पत्र में दिए गए स्त्रियों के मूल अधिकारों की जानकारी दीजिए।
उत्तर- ‘ओलम्प दे गूज’ एक महान फ्रांसीसी महिला थी, जिसने फ्रांस की महिलाओं के अधिकारों के अपना जीवन न्योछावर कर दिया। उसके घोषणा-पत्र में दिए गए कुछ मूल अधिकार अग्रवत् थे-
- नारी स्वतन्त्र पैदा होती है और उसके अधिकार पुरुष के समान होते हैं।
- सभी राजनीतिक संस्थाओं का लक्ष्य नारी और पुरुष के नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा करना होता है। ये अधिकार – स्वतन्त्रता, सम्पत्ति, सुरक्षा और सबसे बढ़कर शोषण के प्रतिरोध का अधिकार है।
- सभी नारी – पुरुष को उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार प्राप्त करने के समान अवसर मिलने चाहिए।
- ‘कानून’ सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति होना चाहिए। सभी नारी एवं पुरुष नागरिकों की या तो व्यक्तिगत रूप से या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से विधि-निर्माण में भागीदारी होनी चाहिए ।
- कानून की दृष्टि से नारी अपवाद नहीं है। वह विधि सम्मत प्रक्रिया द्वारा अपराधी ठहराई जा सकती है, गिरफ्तार और नजरबन्द की जा सकती है। अतः पुरुषों की भाँति नारी भी इस कठोर कानून का पालन करे ।
प्रश्न 6 – नेपोलियन बोनापार्ट के पतन के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए |
उत्तर – नेपोलियन बोनापार्ट के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे—
- नेपोलियन बोनापार्ट की अत्यधिक महत्त्वाकांक्षा ।
- नेपोलियन का अभियान ।
- नेपोलियन का सैनिकवाद ।
- नेपोलियन का रूस पर आक्रमण ।
- नौ-शक्ति का अभाव।
- नेपोलियन की स्पेनिश नीति।
- रोम के पोप के साथ दुर्व्यवहार ।
- महाद्वीपीय योजना की असफलता।
प्रश्न 7 – नेपोलियन संहिता ( कोड ) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – फ्रांस की न्याय प्रणाली में क्रान्ति से पूर्व अनेक दोष थे। अतः नेपोलियन ने फ्रांस के लिए विधि – संहिताओं का निर्माण करवाया। नेपोलियन का पहला कोड ‘वृहत् सिविल कोड’ था। उसने अपराधों के लिए भिन्न-भिन्न दण्डों का विधान लागू किया। व्यापार सम्बन्धी नियमों का उल्लेख ‘कॉमर्शियल कोड’ में किया गया। इसके अतिरिक्त ब्याज दर तथा सम्पत्ति सम्बन्धी नियम भी पारित किए गए। अतः 1 मार्च, 1804 ई० को कोड नेपोलियन (संहिता) फ्रांस में लागू कर दी गई। यह कोड सरल और स्पष्ट होने के साथ ही आधारित रहा।
• अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – क्रान्ति के समय फ्रांस का शासक कौन था ?
उत्तर – क्रान्ति के समय फ्रांस का शासक लुई 16वाँ था ।
प्रश्न 2 – लुई 16वाँ फ्रांस की क्रान्ति के लिए किस प्रकार उत्तरदायी था ?
उत्तर – लुई 16वें के अधीन फ्रांस ने तेरह अमेरिकी उपनिवेशों को ब्रिटेन से स्वाधीनता प्राप्त करने में सहायता की। इस युद्ध ने पहले से चल रहे ऋण में दस अरब लिव्रे ( फ्रांस की मुद्रा) का कर्ज और जोड़ दिया । वह स्वयं भी भोगविलासी व अपव्ययी था।
प्रश्न 3 – जैकोबिन क्या था? उसका नेता कौन था ?
उत्तर – जैकोबिन सम्पन्न वर्ग से सम्बन्धित फ्रांस के नेताओं का क्लब था । उनका नेता रोब्सपियर था।
प्रश्न 4 – रोब्सपियर के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर— रोब्सपियर जैकोबिन क्लब का सबसे महत्त्वपूर्ण नेता था । उसने फ्रांस पर 1792 ई० से 1793 ई० तक शासन किया। उसके शासन को ‘आतंक के शासन’ के नाम जाना जाता है।
प्रश्न 5 – फ्रांस की क्रान्ति का तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर – एस्टेट्स जनरल का अधिवेशन ।
प्रश्न 6 – बास्तील के दुर्ग (जेल) का पतन कब हुआ ?
उत्तर – 14 जुलाई, 1789.
प्रश्न 7 – डायरेक्टरी किसे कहा जाता है?
उत्तर- डायरेक्टरी उस कार्यकारिणी को कहा जाता है जिसमें पाँच सदस्य थे। यह फ्रांस की शासन व्यवस्था के लिए उत्तरदायी थी ।
• बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1 – ‘टाइद’ क्या था-
(a) प्रत्यक्ष कर
(b) धार्मिक कर
(c) सैन्य कर
(d) अप्रत्यक्ष कर ।
उत्तर – (b) धार्मिक कर
प्रश्न 2 – फ्रांसीसी क्रान्ति कब प्रारम्भ हुई थी –
(a) 1787 ई० में
(b) 1789 ई० में
(c) 1792 ई० में
(d) 1795 ई० में।
उत्तर – (b) 1789 ई० में
प्रश्न 3 – क्रान्ति के समय फ्रांस का राजा कौन था-
(a) लुई 14वाँ
(b) लुई 15वाँ
(c) लुई 16वाँ
(d) लुई 18वाँ ।
उत्तर – (c) लुई 16वाँ
प्रश्न 4 – फ्रांस की क्रान्ति का तात्कालिक कारण क्या था-
(a) लुई 16वें की निरंकुशता
(b) रिक्त राजकोष
(c) दार्शनिकों की भूमिका
(d) एस्टेट्स जनरल का अधिवेशन ।
उत्तर – (d) एस्टेट्स जनरल का अधिवेशन ।
प्रश्न 5 – ‘द सोशल कॉन्ट्रेक्ट’ किसकी रचना है-
(a) हॉब्स
(b) लॉक
(c) रूसो
(d) मॉण्टेस्क्यू ।
उत्तर – (c) रूसो
प्रश्न 6 – ‘द स्पिरिट ऑफ द लॉज’ किसकी रचना है—
(a) हॉब्स
(b) लॉक
(c) रूसों
(d) मॉण्टेस्क्यू।
उत्तर – (d) मॉण्टेस्क्यू।
