UK Board 9th Class Social Science – (भूगोल) – Chapter 4 जलवायु
UK Board 9th Class Social Science – (भूगोल) – Chapter 4 जलवायु
UK Board Solutions for Class 9th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (भूगोल) – Chapter 4 जलवायु
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – निम्नलिखित विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए-
(i) नीचे दिए गए स्थानों में किस स्थान पर विश्व में सबसे अधिक वर्षा होती है?
(क) सिलचर
(ख) चेरापूँजी
(ग) मौसिनराम
(घ) गुवाहाटी।
उत्तर – (ग) मौसिनराम ।
(ii) ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी मैदानों में बहने वाली पवन को निम्नलिखित में से क्या कहा जाता है?
(क) काल वैशाखी
(ख) व्यापारिक पवनें
(ग) लू
(घ) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर – (ग) लू।
(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा कारण भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में शीत ऋतु में होने वाली वर्षा के लिए उत्तरदायी है?
(क) चक्रवातीय अवदाब
(ख) पश्चिमी विक्षोभ
(ग) मानसून की वापसी
(घ) दक्षिण-पश्चिम मानसून ।
उत्तर- (ख) पश्चिमी विक्षोभ ।
(iv) भारत में मानसून का आगमन कब होता है?
(क) मई के प्रारम्भ में
(ख) जून के प्रारम्भ में
(ग) जुलाई के प्रारम्भ में
(घ) अगस्त के प्रारम्भ में।
उत्तर- (ख) जून के प्रारम्भ में ।
(v) निम्नलिखित में से कौन-सी भारत में शीत ऋतु की विशेषता हैं?
(क) गर्म दिन एवं गर्म रातें
(ख) गर्म दिन एवं ठण्डी रातें
(ग) ठण्डा दिन एवं ठण्डी रातें
(घ) ठण्डा दिन एवं गर्म रातें ।
उत्तर- (ग) ठण्डा दिन एवं ठण्डी रातें।
प्रश्न 2 – निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए—
(i) भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं?
उत्तर – भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक हैं-
(1) अक्षांश, (2) समुद्र तल से ऊँचाई, (3) वायुदाब एवं पवनें, (4) उच्चावचीय लक्षण|
(ii) भारत में मानसूनी प्रकार की जलवायु क्यों है?
उत्तर – भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है। इस जलवायु में ऋतु परिवर्तन के साथ पवनों की दिशा उलट जाती है। भारत में ग्रीष्म ऋतु में हवाएँ सागर से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु में स्थल से सागर की ओर चलती हैं। इसीलिए भारत की जलवायु को ‘मानसूनी प्रकार की जलवायु’ कहते हैं।
(iii) भारत के किस भाग में दैनिक तापमान अधिक होता है और क्यों?
उत्तर – भारत के थार मरुस्थल में दैनिक तापमान अधिक रहता है। इसका कारण यह है कि यहाँ दूर-दूर तक रेत का विस्तार है। दिन के समय रेत शीघ्र गर्म हो जाती है इसलिए दिन का तापमान बढ़ जाता है।
(iv) किन पवनों के कारण मालाबार तट पर वर्षा होती है?
उत्तर- भारत के पश्चिमी घाट के मालाबार तट पर दक्षिण-पश्चिमी पवनों के कारण वर्षा होती है।
(v) जेट धाराएँ क्या हैं तथा वे किस प्रकार भारत को प्रभावित करती हैं? ‘जलवायु
उत्तर : जेट धाराएँ— जेट धाराएँ ऊपरी वायुमण्डल में अधिक ऊँचाई (12000 मी) पर तेज गति से चलने वाली पवनें हैं। ये पवन धाराएँ एक सँकरी पट्टी में चलती हैं। गर्मियों में इनकी गति 110 किमी तथा शीतकाल में 184 किमी प्रति घण्टा होती है।
भारत की जलवायु पर प्रभाव – भारत की जलवायु पर जेट धाराओं का गहरा प्रभाव पड़ता है। शीत ऋतु में पश्चिमी जेट धाराएँ हिमालय के दक्षिणी भाग में स्थित रहती हैं। जून महीने में ये उत्तर की ओर खिसक जाती हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि उत्तरी भारत में अचानक मानसून के फटने के लिए यही जेट धाराएँ उत्तरदायी होती हैं। इन हवाओं के प्रभाव से ही भारत में बादल उमड़ते-घुमड़ते रहने से वर्षण के लिए बाध्य होते हैं तथा इन हवाओं के प्रसार से ही सारे भारत में आठ दिन में मानसूनी हवाएँ फैल जाती हैं जो व्यापक वर्षा करती हैं।
(vi) मानसून को परिभाषित करें। मानसून में विराम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : मानसून का अर्थ – ‘मानसून’ शब्द की व्युत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ तथा मलायन शब्द ‘मोनसिन’ से हुई है। इस प्रकार की वायुधाराएँ उच्च वायुभार से निम्न वायुभार की ओर वर्ष में क्रमश: दो बार परिवर्तित होती हैं। वे शीत ऋतु स्थलखण्ड से जलखण्ड की ओर तथा ग्रीष्म ऋतु में जलखण्ड से स्थलखण्ड की ओर चला करती हैं। भारत में मानसूनी पवनों के उत्पन्न होने का कारण विस्तृत स्थल एवं जल भागों पर बारी-बारी से निम्न एवं उच्च वायुदाबों का उत्पन्न होना है।
मानसून में विराम – भारत में मानसूनी वर्षा अनियमित होती है। कुछ दिनों तक वर्षा लगातार होने के बाद एक शुष्क अन्तराल अवधि आ जाती है। इसे ‘मानसून विराम’ संज्ञा दी जाती है। ऐसा मानसून गर्त की स्थिति में परिवर्तन के कारण होता है। इस गर्त की स्थिति उत्तर तथा दक्षिण की ओर बदलती रहती है। यह गर्त जिस और स्थित होता है उसी ओर वर्षा होती है इसलिए वर्षारहित क्षेत्र ‘मानसून विराम क्षेत्र’ कहलाता है।
(vii) मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला क्यों समझा जाता है ?
उत्तर— भारत एक विशाल देश है। देश की इस विशालता के कारण ही यहाँ उच्चावच, जलवायु एवं वनस्पति में ही नहीं वरन् जन-जीवन में भी विविधताएँ मिलती हैं। किन्तु मानसून यहाँ एक ऐसा भौगोलिक कारक है जो देश की इन विविधताओं को एक सूत्र में बाँधकर एकता स्थापित करता है। उदाहरण के लिए, आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु में समस्त देश में वर्षा होती है। यहाँ कृषि का कार्य पूरे देश में एक साथ प्रारम्भ हो जाता है। यहाँ तक कि ऋतु में विभिन्न त्योहार भी सारे देश में धूमधाम से मनाए जाते हैं। वास्तव में . मानसून के कारण प्रतिवर्ष ऋतुओं के चक्र की एक लय बनी रहती है। अत: मानसून देश की प्राकृतिक विभिन्नता को सांस्कृतिक लक्षणों द्वारा एक सूत्र में बाँधने का कार्य करता है।
प्रश्न 3 – उत्तर- भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा क्यों घटती जाती है?
उत्तर — भारत में वर्षा का वितरण अत्यन्त असमान है। वर्षा ऋतु में जब यहाँ दक्षिण-पश्चिमी मानसून से बंगाल की खाड़ी की शाखा द्वारा उत्तर की ओर वर्षा होती है तो इसकी मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। इसका कारण यह है कि बंगाल की खाड़ी का मानसून सबसे पहले उत्तर-पूर्व में प्रवेश करता है। यहाँ इसे गारो, खासी तथा जयन्तिया की पहाड़ियाँ आगे नहीं बढ़ने देतीं। वाष्पयुक्त ये हवाएँ यहाँ घनघोर वर्षा करती हैं। इसके पश्चात् हवाएँ हिमालय के सहारे – सहारे जब पश्चिम की ओर आगे बढ़ती हैं तो इनमें वाष्प की मात्रा कम होने लगती है, इसलिए वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है।
प्रश्न 4 – कारण बताएँ-
(i) भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन क्यों होता है?
उत्तर— भारतीय उपमहाद्वीप में शरद ऋतु में (नवम्बर से अप्रैल तक) उत्तर- -पूर्वी मानसून हवाएँ उत्तर – पूर्व से समुद्र की ओर चलने लगती हैं, परन्तु ग्रीष्म ऋतु के आते ही वे अपनी दिशा बदल देती हैं और समुद्र से धरातल की ओर चलने लगती हैं। पवनों की दिशा में ऋतुवत् परिवर्तित होने के निम्नलिखित कारण हैं-
- शरद ऋतु में पूरे उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में उच्च वायुदाब का केन्द्र बन जाता है। इसके विपरीत जल भाग पर इस समय निम्न वायुदाब रहता है। अतः पवनें स्थल से जल की ओर चलती हैं।
- इसके विपरीत ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप अत्यधिक गर्म रहता है। इससे यहाँ की वायु गर्म होकर ऊपर उठ जाती है और यहाँ निम्न वायुदाब का केन्द्र बन जाता है। अत: यहाँ इस समय उच्च वायुदाब रहता है इसलिए पवनें सागर से स्थल की ओर चलती हैं।
(ii) भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है।
उत्तर – भारत में अधिकांश वर्षा (लगभग 75% से अधिक) जून से सितम्बर के मध्य में होती है इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
- ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की उत्तरायण स्थिति के कारण उत्तर – पश्चिमी भारत में भीषण गर्मी पड़ती है।
- अत्यधिक गर्मी पड़ने के कारण उत्तर-पश्चिमी भारत में न्यून वायुदाब केन्द्र स्थापित हो जाता है।
- न्यून वायुदाब के फलस्वरूप पवनें हिन्द महासागर के उच्च वायुदाब क्षेत्रों से उत्तर-पश्चिमी भारत के निम्न वायुदाब क्षेत्रों की ओर आकर्षित होती हैं।
- जल-क्षेत्रों से चलने के कारण ये पवनें आर्द्रता से परिपूर्ण होती हैं।
- इन पवनों से जून से सितम्बर के मध्य व्यापक एवं मूसलाधार वर्षा होती है।
- वायुदाब का यह क्रम ग्रीष्म ऋतु में ही उत्पन्न होता है। अतः भारत में 75 से 90% वर्षा ग्रीष्म ऋतु के चार महीनों में होती है।
(iii) तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होती है।
उत्तर – भारत का पूर्वी तट विशेषकर तमिलनाडु ग्रीष्म ऋतु में शुष्क रहता है, जबकि भारत के अन्य भागों में इन दिनों पर्याप्त वर्षा होती है। तमिलनाडु तट पर जाड़े में वर्षा होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं—
- तमिलनाडु तट दक्षिण-पश्चिमी मानसून के वृष्टिछाया क्षेत्र में पड़ने के कारण गर्मी में वर्षा प्राप्त नहीं करता है।
- जाड़े में तमिलनाडु तट उत्तर-पूर्वी पवनों के प्रभाव के क्षेत्र में पड़ता है। ये पवनें शुष्क होती हैं।
- जब उत्तर-पूर्वी पवनें बंगाल की खाड़ी के ऊपर से गुजरती हैं तो ये नमी ग्रहण कर लेती हैं; अत: जब ये पवनें तमिलनाडु तट पर पहुँचती हैं तो ऊपर उठकर संघनित हो जाती हैं तथा यहाँ खूब वर्षा करती हैं।
इस प्रकार दक्षिणी भारत के तमिलनाडु राज्य के पूर्वी तट पर गर्मियों की अपेक्षा सर्दियों में अधिक वर्षा होती है।
(iv) पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्रायः चक्रवात आते हैं।
उत्तर – अक्टूबर और नवम्बर माह ग्रीष्म ऋतु से शरद् ऋतु में परिवर्तित होने वाला समय होता है। इस समय वातावरण में मौसम सम्बन्धी विषमताएँ अधिक उत्पन्न होती हैं। अक्टूबर में उत्तरी भारत के बहुत से भागों में तापमान गिरने लगता है, इसलिए कम दाब का केन्द्र अब बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ने लगता है। इसी परिवर्तन के परिणामस्वरूप चक्रवात उत्पन्न होने की परिस्थितियाँ बनने लगती हैं। गोदावरी, कृष्णा व कावेरी डेल्टा में इस चक्रवात के प्रभाव एवं उत्पन्न होने के प्रमुख कारण इस प्रकार निम्नलिखित हैं—
- नवम्बर माह में अण्डमान व निकोबार द्वीपसमूह में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात उत्पन्न होते हैं। ये उत्तर- – पूर्वी पवनों के प्रभाव में आकर दक्षिण-पश्चिम में चलते हैं।
- इसके कारण उत्तर-पश्चिम भारत का निम्न वायुदाब क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में स्थानान्तरित हो जाता है। इनकी दिशा पूर्वी तट की ओर होती है।
- जो चक्रवात पूर्वी तट को पार करते हैं वे बहुत तीव्र गति वाले होते हैं तथा विनाशकारी वर्षा करते हैं। अत: इन चक्रवातों के प्रभाव से यहाँ जन-धन की भारी हानि होती है।
(v) राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट का वृष्टिछाया क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र है।
उत्तर- इसके निम्नलिखित कारण हैं—
- पश्चिमी राजस्थान या थार मरुस्थल में इसलिए कम वर्षा होती है, क्योंकि यहाँ स्थित अरावली पर्वत श्रेणी पवनों के समानान्तर स्थित है, इसलिए यह श्रेणी अरब सागर से उठने वाली पवनों को नहीं रोकती है और पवनें बिना वर्षा किए आगे निकल जाती हैं।
- ग्रीष्म ऋतु में पश्चिमी राजस्थान या थार मरुस्थल का तापमान अधिक रहता है, इसलिए हवाएँ स्वयं शुष्क हो जाती हैं जो वर्षा करने में असमर्थ रहती हैं।
- थार मरुस्थल में वनस्पति का अभाव है जिसके कारण हवाओं में आर्द्रता नहीं रहती इसलिए वर्षा नहीं हो पाती ।
- गुजरात तथा पश्चिमी घाट के आन्तरिक भाग में इसलिए वर्षा कम होती है, क्योंकि यह भाग वृष्टिछाया प्रदेश में स्थित है।
- पश्चिम में पश्चिमी घाट और पूर्व में पूर्वी घाट वर्षा भरी हवाओं को पहले ही रोक लेते हैं, इसलिए गुजरात तथा समीपवर्ती भाग प्रायः शुष्क रह जाता है।
प्रश्न 5- भारत की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर- भारत में जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताएँ
भारत में विभिन्न प्रकार की जलवायु – दशाएँ मिलती हैं। यहाँ एक स्थान से दूसरे स्थान और एक ऋतु से दूसरी ऋतु में विभिन्न प्रकार के जलवायु सम्बन्धी अन्तर देखने को मिलते हैं। देश की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-
- तापान्तर – भारत के विभिन्न भागों में तापमान में पर्याप्त विषमताएँ मिलती हैं। यहाँ राजस्थान तथा दक्षिण-पश्चिमी पंजाब जैसे ऐसे स्थान हैं जहाँ तामपान 55° सेल्सियस तक पहुँच जाता है, दूसरी और जम्मू-कश्मीर (केन्द्रशासित प्रदेश) में ऐसे भी स्थान हैं जहाँ तापमान – 3° सेल्सियस तक नीचे चला जाता है। इसके अतिरिक्त समुद्रतटीय प्रदेशों में तापमान लगभग पूरे वर्ष लगभग समान बना रहता है। अतः जलवायु के प्रमुख घटक ‘तापमान’ के आधार पर देश की जलवायु में पर्याप्त रूप से क्षेत्रीय विभिन्नताएँ प्रकट होती हैं।
- वर्षा – भारत में वर्षा की मात्रा, अवधि एवं वितरण की दृष्टि से पर्याप्त क्षेत्रीय विभिन्नताएँ देखने को मिलती हैं-
- देश में वर्षा की अनियमितता बनी रहती है। यदि मानसून शीघ्र आ जाता है तो वर्षा भी शीघ्र शुरू हो जाती है। इसके विपरीत मानसून के देर से आने पर वर्षा भी देर से होती है।
- देश में वर्षा का वितरण अत्यन्त ही असमान रहता है। यहाँ एक ओर मौसिनराम विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला (लगभग 1,354 सेमी) स्थान है वहीं दूसरी ओर राजस्थान में 5 से 10 सेमी तक वर्षा वाले स्थान भी हैं।
- यहाँ दक्षिण-पश्चिम मानसून द्वारा कभी-कभी अत्यधिक वर्षा से बाढ़ आ जाती है तो कभी-कभी वर्षा औसत से भी कम होती है जिससे देश के कुछ भागों में सूखा पड़ जाता है।
- देश में 75% से 90% वर्षा जून से सितम्बर तक हो जाती है । परन्तु शेष समय में भी देश के किसी-न-किसी भाग में वर्षा होती रहती है। उदाहरण के लिए, दिसम्बर से मार्च तक उत्तर-पश्चिमी भारत में, मार्च से मई तक मालाबार तट एवं सुदूर पूर्वी भारत में तथा अक्टूबर से दिसम्बर तक कोरोमण्डल तट पर वर्षा होती है।
प्रश्न 6 – मानसून अभिक्रिया की व्याख्या करें।
उत्तर- मानसून अभिक्रिया
मानसून के विषय में प्राचीन मत यही था कि इसका सम्बन्ध केवल धरातलीय पवनों से ही है। परन्तु आधुनिक अनुसन्धानों से ज्ञात हुआ है कि ऊपरी जेट पवनें मानसून की अभिक्रिया ( रचना तन्त्र) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। मौसम वैज्ञानिकों को प्रशान्त महासागर तथा हिन्द महासागर के ऊपर होने वाले मौसम सम्बन्धी परिवर्तनों के पारस्परिक सम्बन्ध की जानकारी प्राप्त हुई है। उत्तरी गोलार्द्ध में प्रशान्त महासागर के उपोष्ण कटिबन्धीय प्रदेश में जिस समय वायुभार अधिक होता है, उस समय हिन्द महासागर दक्षिणी भाग में वायुभार कम रहता है। ऋतुओं के अनुसार इन महासागरों में वायुभार की यह स्थिति | उलट जाती है। इसी कारण विभिन्न ऋतुओं में विषुवत् वृत्त के आर-पार पवनों की स्थिति भी बदलती रहती है। विषुवत् वृत्त के आर-पार पवन- पेटियों के खिसकने तथा इनकी तीव्रता से मानसून प्रभावित होता है। 20° उत्तरी अक्षांशों से लेकर 20° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य में स्थित उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों पर मानसून का प्रसार रहता है परन्तु भारतीय उपमहाद्वीप में इन पर हिमालय पर्वतश्रेणियों का बहुत प्रभाव पड़ता है। इनके प्रभाव से पूरा भारतीय उपमहाद्वीप विषुवतीय आर्द्र पवनों के प्रभाव में आ जाता है। मानसूनों का यह प्रभाव 2 से 5 माह तक बना रहता है। यहाँ जून से सितम्बर तक 75% से 90% तक वर्षा इसी मानसून अभिक्रिया के कारण होती है।
अत: भारत में मानसून अभिक्रिया में अरब सागर के चारों ओर तापमान की उच्च स्थिति, गर्मियों में अन्तः उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र की उत्तरी स्थिति, हिन्द महासागर में उच्चदाब, तिब्बत के पठार पर गर्मियों में उच्च तापमान की उपस्थिति एवं गर्मियों में हिमालय के उत्तर में पश्चिमी जेट वायुधारा की गतिविधि तथा प्रायद्वीप पर उष्ण कटिबन्धीय पूर्वी वायुधारा की उपस्थिति का महत्त्वपूर्ण हाथ रहता है।
प्रश्न 7 – शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ बताइए |
उत्तर— शीत ऋतु की अवस्था
भारत में दिसम्बर, जनवरी एवं फरवरी महीनों में शीत ऋतु होती है। इस ऋतु में उत्तरी मैदानी भागों में उच्च वायुभार की उत्पत्ति होती है। इस समय देश के ऊपर उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें चलती हैं। अधिकांश भागों में ये पवनें स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। स्थल भागों से चलने के कारण ये पवनें शुष्क होती हैं। इस ऋतु में दक्षिण से उत्तर की ओर जाने में तापमान घटता जाता है। चेन्नई एवं कालीकट का तापमान 24° से 25° सेल्सियस रहता है, जबकि उत्तरी मैदानी भागों में औसत तापमान 10° से 15° सेल्सियस के मध्य रहता है। इस ऋतु में दिन सामान्यतः कोष्ण (अल्प उष्ण) एवं रातें ठण्डी होती हैं। हिमालय | के ऊँचे स्थानों पर कहीं-कहीं हिमपात भी हो जाता है।
शीत ऋतु की विशेषताएँ
शीत ऋतु बड़ी सुहावनी एवं आनन्ददायक होती है। स्वच्छ आकाश, निम्न तापमान एवं आर्द्रता, शीतल, मन्द समीर तथा वर्षारहित दिन इस ऋतु की प्रमुख विशेषताएँ हैं। परन्तु इस सुहावने मौसम में कभी-कभी पश्चिमी अवदाबों के आ जाने से मौसम बदल जाता है। इन्हें पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) भी कहा जाता है। इनकी उत्पत्ति पूर्वी भूमध्यसागर में होती है, जहाँ से ये पूर्व की ओर बढ़ते हैं तथा पश्चिमी एशिया – इराक, ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान को पार करते हुए भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में पहुँचते हैं। ये मार्ग में पड़ने वाले कैस्पियन सागर एवं फारस की खाड़ी से कुछ आर्द्रता ग्रहण कर लेते हैं, जिस कारण उत्तरी भारत में हल्की वर्षा हो जाती है।
उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनों से भारत के केवल तमिलनाडु राज्य को ही विशेष लाभ मिलता है। उदाहरण के लिए – चेन्नई में इन पवनों से पर्याप्त वर्षा होती है। भारत में इन पवनों को ‘उत्तर-पूर्वी मानसून’ के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 8 – भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- भारत में मानसूनी वर्षा
सामान्यतः भारत में मानसूनी वर्षा की अवधि 15 जून से 15 सितम्बर तक है। इस समय देश में होने वाली वर्षा का 75 से 90% भाग प्राप्त हो जाता है। इसे वर्षा ऋतु कहा जाता है। यह वर्षा ग्रीष्मकालीन मानसून ( दक्षिण-पश्चिम मानसून) की अरबसागरीय शाखा एवं बंगाल की खाड़ी की शाखा द्वारा प्राप्त होती है।
भारतीय मानसूनी वर्षा की प्रमुख विशेषताएँ
भारत में वर्षा का वितरण समान नहीं है। पश्चिमी तट तथा उत्तर-पूर्वी भागों में उच्चावचीय लक्षणों के कारण अधिक वर्षा होती है (300 सेमी या उससे भी अधिक), जबकि पश्चिमी राजस्थान तथा उसके निकटवर्ती भागों में वर्षा बहुत ही कम (50 सेमी से भी कम ) होती है। देश में होने वाली वर्षा अनिश्चित एवं अनियमित होती है। भारतीय मानसूनी वर्षा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- मानसूनी वर्षा- भारत में अधिकांश वर्षा दक्षिण-पश्चिमी ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों से होती है। शीतकालीन मानसूनों से यहाँ बहुत ही कम ( मात्र 2%) वर्षा होती है।
- वर्षा की निश्चित अवधि – भारत की 75 से 90% वर्षा 15 जून से 15 सितम्बर के मध्य एक निश्चित अवधि में ही होती है।
- मूसलाधार वर्षा—भारत में तेज गति से अर्थात् मूसलाधार वर्षा होती है। यहाँ एक ही दिन में 50 सेमी तक वर्षा हो जाती है।
- वर्षा की अनियमितता – भारतीय वर्षा बहुत ही अनियमित होती है। कभी अधिक एवं मूसलाधार वर्षा हो जाने से बाढ़ आ जाती है और कभी वर्षा की कमी के कारण सूखा भी पड़ जाता है।
- वर्षा की अनिश्चितता – भारतीय वर्षा बहुत ही अनिश्चित होती है। कभी मानसून शीघ्र आ जाते हैं और कभी देर से। कभी-कभी मानसूनी वर्षा के बीच में एक लम्बा अन्तराल भी आ जाता है।
- वितरण की असमानता – भारतीय वर्षा का वितरण सभी स्थानों पर एकसमान नहीं है। एक ओर मौसिनराम (चेरापूँजी) में 1,354 सेमी से भी अधिक वर्षा होती है, वहीं दूसरी ओर राजस्थान में केवल 10 सेमी से भी कम वर्षा होती है।
- पर्वतीय वर्षा- भारत में 95% वर्षा पर्वतीय है। केवल 5% वर्षा ही चक्रवातों द्वारा होती है।
प्रश्न- भारत के रेखा – मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाएँ-
(i) 400 सेमी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र
(ii) 20 सेमी से कम वर्षा वाले क्षेत्र
(iii) भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशा ।
उत्तर- दिए गए चित्र का अवलोकन करें-

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – मानसून भारत में एकता कैसे स्थापित करता है? समझाइए |
उत्तर — तापमान एवं वर्षा के स्वरूप को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में जलवायु विषमताएँ अधिक हैं। परन्तु फिर भी भारत अपनी जलवायु ( मानसून) सम्बन्धी एकता के लिए जाना जाता है। भारतीय मानसून ने देश में एकता स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई है। देश के समस्त सांस्कृतिक पर्व और रीति-रिवाज इस मानसून एकता के अनेक प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। भारत में मानसून एकता को प्रकट करने में हिमालय पर्वत और वर्षा की प्रवृत्ति मुख्य रूप से उत्तरदायी हैं।
हिमालय पर्वत – भारत की उत्तरी सीमा पर उत्तर-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तक हिमालय पर्वत का विस्तार वास्तव में जलवायु विभाजक का कार्य करता है। शीतकाल में यह पर्वत दीवार मध्य एशिया से चलने वाली ठण्डी और शुष्क पवनों को भारत में प्रवेश करने से रोकती है जिसके कारण समस्त भारत अत्यधिक ठण्डी हवाओं से सुरक्षित रहता है। दूसरी ओर दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवनें जो उष्णार्द्र होती हैं, उन्हें रोककर ये पर्वतमालाएँ वर्षा करने को बाध्य करती हैं। इस प्रकार भारत में वर्षा के वितरण को प्रभावित करने में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
वर्षा की प्रवृत्ति– भारत के विभिन्न भागों में वर्षा की प्रवृत्ति . उच्चावच दशाओं पर निर्भर है। यहाँ कुछेक अपवादों को छोड़कर भारत का प्रत्येक क्षेत्र मानसूनी पवनों से वर्षा प्राप्त करता है। भारत में 15 जून से 15 सितम्बर तक चार माह की अवधि में अधिकतर वर्षा होती है। वर्ष के अन्य महीने प्रायः सारे देश में सूखे ही रहते हैं। यही कारण है कि जल की प्यास इन महीनों में लगभग समस्त देश में अनुभव की जाती है। रबी फसल के बाद कन्याकुमारी से कश्मीर तक और गुजरात से असम तक किसान बड़ी उत्सुकता से आकाश में बादलों को वर्षा के लिए निहारता रहता है ताकि वह कृषि कार्य में लग सके। लेकिन वर्षा की प्रवृत्ति मानसून की अनिश्चितता पर निर्भर रहती है।
इस प्रकार भारत में हिमालय और मानसून ने मिलकर जलवायु पर आधारित एकता स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
प्रश्न 2 – आगे बढ़ते मानसून और पीछे लौटते मानसून की ऋतुओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – आगे बढ़ते मानसून और पीछे लौटते मानसून की ऋतुओं का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है-

- आगे बढ़ते मानसून की ऋतु – सम्पूर्ण देश में जून, जुलाई, अगस्त और सितम्बर में ही अधिकांश वर्षा हो जाती है। वर्षा की अवधि एवं मात्रा उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में यह अवधि केवल दो महीनों की होती है तथा वर्षा का 75 से 90% भाग इसी अवधि में प्राप्त हो जाता है। देश में विकसित उत्तर-पश्चिम का निम्न वायुदाब क्षेत्र हिन्द महासागर के उच्च वायुदाब को अपनी ओर आकर्षित करने लगता है, फलस्वरूप पवनें समुद्र से स्थल की ओर चलने लगती हैं। हिन्द महासागर में विषुवत् वृत्त को पार करते ही इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम जाती हो जाती है। इसीलिए इन्हें ‘दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवनें’ कहा जाता है। ये पवनें देश के विभिन्न भागों में व्यापक वर्षा करती हैं।
- पीछे लौटते मानसून की ऋतु — अक्टूबर और नवम्बर में मानसून पीछे लौटने लगता है, क्योंकि इस ऋतु में निम्न वायुदाब का कमजोर पड़ने लगता है तथा उसका स्थान उच्च वायुदाब लेने लगता है। अक्टूबर माह के अन्त तक मानसून विशाल मैदान से पूर्णतः पीछे हट जाता है। इस समय शुष्क ऋतु का आगमन हो जाता है तथा आकाश स्वच्छ हो जाता है। तापमान में कुछ वृद्धि होती है तथा भूमि आर्द्र बनी रहती है। उच्च तापमान और आर्द्रता के कारण मौसम कष्टदायी हो जाता है। ‘क्वार की उमस’ इसका लोक प्रचलित नाम है। निम्न वायुदाब के क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में स्थानान्तरित हो जाते है। इस अवधि में अण्डमान द्वीपसमूह के पास सागर में पुनः चक्रवात बनने लगते हैं तथा पूर्वी तट पर व्यापक वर्षा होती है। सम्पूर्ण कोरोमण्डल तट पर अधिकांश वर्षा इन्हीं चक्रवातों और अवदाबों के कारण होती है।

प्रश्न 3 – भारत में वर्षा के असमान वितरण के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- वर्षा के असमान वितरण के प्रभाव
पर्यावरण के सभी अंगों में जलवायु मानव-जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करती है। मानव की वेशभूषा, खान-पान, गृह-प्रकार, जनसंख्या के स्वास्थ्य तथा व्यवसाय आदि सभी पर जलवायु का गहरा प्रभाव पड़ता है। भारत में कृषि राष्ट्र के अर्थतन्त्र की धुरी है, जो वर्षा की विषमता से सबसे अधिक प्रभावित होती है। कृषि के अतिरिक्त अन्य क्रिया-कलाप; जैसे – उद्योग, व्यवसाय, परिवहन एवं संचार व्यवस्था आदि, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से वर्षा से प्रभावित होते हैं। भारत में मानव-जीवन पर वर्षा के निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं-
- भारत में खरीफ फसलों की बुवाई वर्षा के आरम्भ होने के साथ शुरू हो जाती है। जब वर्षा समय से प्रारम्भ हो जाती है और नियमित अन्तराल पर होती रहती है, तब कृषि उत्पादन यथेष्ट मात्रा में प्राप्त होता है।
- जिन भागों में कम वर्षा होती है अथवा सूखा पड़ता है वहाँ कृषि फसलें सिंचाई के बिना पैदा नहीं की जा सकती हैं।
- मूसलाधार वर्षा होते रहने से बाढ़ आ जाती हैं और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में कृषि फसलें नष्ट हो जाती हैं।
- समय से पूर्व वर्षा आरम्भ होने तथा समय से पहले वर्षा समाप्त होने से भी आर्थिक क्रिया-कलाप प्रभावित होते हैं।
- भारत में वर्षा का प्रभाव गृह – विन्यास पर देखा जाता है जहाँ वर्षा की मात्रा अधिक है उन प्रदेशों में पर्वतीय क्षेत्र एवं पश्चिमी घाट पर मकानों की छतें ढालदार होती हैं जबकि अन्य भाग जहाँ वर्षा कम होती है मकानों की छतें सपाट होती हैं।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – दक्षिण-पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति के क्या कारण हैं?
उत्तर– दक्षिण पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति: विपरीत वायुदाब परिस्थितियों का परिणाम है। इन परिस्थितियों को उत्पन्न करने में सूर्य किरणों का कोण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
21 जून को सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकती हैं, फलस्वरूप समस्त उत्तरी भारत में तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है । इस अत्यधिक गर्मी के परिणामस्वरूप भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में निम्न वायुदाब के क्षेत्र उत्पन्न हो जाते हैं। इसके विपरीत हिन्द | महासागर में तापमान निम्न होने के कारण वायुदाब उच्च हो जाता है ।
इसका परिणाम यह होता है कि निम्न वायुदाब, उच्च वायुदाब को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। अर्थात् पवनें महासागरों की ओर से स्थलखण्डों की ओर चलने लगती हैं। सागर के ऊपर से चलने के कारण ये पवनें आर्द्रता से परिपूर्ण हो जाती हैं और दक्षिण से उत्तर की ओर चलना आरम्भ कर देती हैं। परन्तु जैसे ही ये पवनें विषुवत् रेखा को पार करती हैं, पृथ्वी की दैनिक गति के कारण इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है, जो ‘दक्षिण-पश्चिमी मानसून’ कहलाता है । इस प्रकार विपरीत वायुदाबों की उत्पत्ति ही दक्षिण-पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति का प्रमुख कारण है।
प्रश्न 2 – “कोरोमण्डल तट पर वर्षा अक्टूबर-नवम्बर में होती है । ” क्यों ?
अथवा “चेन्नई में उत्तर-पूर्वी मानसूनी पवनों से वर्षा अधिक होती है।” कब और क्यों ?
उत्तर – शीत ऋतु में उत्तरी भारत में सर्दी अधिक पड़ने के कारण उच्च वायुदाब तथा हिन्द महासागर में अत्यधिक गर्मी पड़ने के कारण निम्न वायुदाब केन्द्र स्थापित हो जाते हैं। अत: इस ऋतु में पवनें स्थल से सागर की ओर चलने लगती हैं। स्थल की ओर से आने के कारण इन पवनों में आर्द्रता नहीं होती है। यही कारण है कि इन पक्ों से उत्तरी भारत में कहीं भी वर्षा नहीं हो पाती। इन पवनों को शीतकालीन मानसून या उत्तर-पूर्वी मानसून अथवा लौटता हुआ मानसून कहा जाता है। परन्तु पूर्वी भूमध्यसागर से उठने वाले चक्रवात या पश्चिमी विक्षोभों द्वारा उत्तरी भारत के मैदानी भागों में कुछ वर्षा हो जाती है।
जब उत्तर-पूर्वी मानसूनी पवनें बंगाल की खाड़ी से होकर गुजरती हैं तो कुछ मात्रा में आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। जब ये पवनें दक्षिण-पश्चिम की ओर बढ़ती हैं तो इनके मार्ग में पूर्वी घाट की पहाड़ियाँ बाधक बनती हैं तथा इन पवनों से कोरोमण्डल तट (तमिलनाडु) पर लगभग 50 सेमी तक वर्षा हो जाती है। इस प्रकार इन पवनों द्वारा दक्षिणी आन्ध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्वी कर्नाटक तथा दक्षिण-पूर्वी केरल में भी वर्षा होती है।
प्रश्न 3 – भारतीय वर्षा की कोई चार विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर- भारतीय वर्षा की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- भारत की 75 से 90% वर्षा ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों द्वारा होती है। यह वर्षा केवल 4 महीनों (जून से सितम्बर के मध्य) में ही प्राप्त हो जाती है।
- भारत में वर्षा प्रारम्भ होने का कोई निश्चित समय नहीं है और सभी स्थानों पर एक साथ वर्षा नहीं होती है।
- भारत में वर्षा करने वाली मानसूनी पवनें पंजाब से सितम्बर के मध्य में, उत्तर प्रदेश से सितम्बर के अन्त तक, पश्चिम बंगाल व महाराष्ट्र से अक्टूबर के मध्य तक लौट जाती हैं। इन लौटने वाली पवनों से वर्षा नहीं होती है।
- भारत में वर्षा का वितरण भी बहुत असमान है। यहाँ मेघालय (चेरापूँजी) में वार्षिक वर्षा का औसत 1,200 सेमी (मात्र 17 किमी दूर मौसिनराम गाँव में 1,354 सेमी ) तथा राजस्थान में मात्र 10 सेमी ही होती है।
प्रश्न 4 – मानसून फटने का क्या अर्थ है ?
उत्तर – भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून का आगमन आकस्मिक होता है। ग्रीष्म ऋतु में उत्तर पश्चिमी मैदानी भागों में वायुदाब और भी निम्न हो जाता है। जून के आरम्भ तक न्यून वायुदाब का यह गर्त इतना प्रबल हो जाता है कि दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें भी इस ओर आकर्षित हो जाती हैं। इन पवनों की उत्पत्ति सागर में होती है। हिन्द महासागर में विषुवत् वृत्त को पार कर ये पवने बंगाल की खाड़ी में आ जाती हैं। तत्पश्चात् ये पवनें भारतीय वायु संचरण का अंग बन जाती हैं। विषुवतीय गर्म जलधाराओं के ऊपर से गुजरने के कारण ये पवनें भारी मात्रा में आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। परन्तु विषुवत् वृत्त को पार करते ही इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है जिससे इन्हें ‘दक्षिण-पश्चिमी मानसून’ कहते हैं। ये पवनें बड़ी तीव्र गति से चलती हैं। इनकी औसत गति 30 किमी प्रति घण्टा होती है। उत्तर – पश्चिमी भागों को छोड़कर ये पवनें एक माह की अवधि में सम्पूर्ण देश में फैल जाती हैं। जून के प्रारम्भ में विद्युत चमक तथा आर्द्रता से युक्त तूफान और मेघ गर्जना के साथ मूसलाधार वर्षा प्रारम्भ हो जाती है। इसे मानसून का प्रस्फोटन या फटना कहते हैं।
प्रश्न 5– यदि भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत न होता तो उसका भारत की जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ता ?
उत्तर — हिमालय पर्वत की स्थिति का भारत की जलवायु पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है-.
- हिमालय पर्वत उत्तर में साइवेरिया तथा उत्तरी ध्रुव की ओर से आने वाली शीतल तथा बर्फीली पवनों के मार्ग में बाधक बनकर उन्हें भारत में आने से रोक देता है। यदि ये पवनें भारत में प्रवेश कर जातीं तो सम्पूर्ण उत्तरी भारत हिम से जम जाता।
- हिमालय पर्वत दक्षिण की ओर से आने वाली ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों को रोककर उन्हें भारत में वर्षा करने को विवश कर देता है। यदि भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत न होता तो उत्तर का विशाल मैदान शुष्क मरुस्थल में परिणत हो गया होता।
- हिमालय पर्वत के उच्च शिखरों पर जमी हुई हिम, ग्रीष्म ऋतु में भी नदियों को सतत रूप जल प्रदान करती रहती है तथा उन्हें सदानीरा बनाए रखती है। इससे समस्त उत्तरी भारत को ग्रीष्म ऋतु में भी कृषि फसलों की सिंचाई के लिए जल उपलब्ध होता रहता है।
प्रश्न 6 – वृष्टि – छाया प्रदेश किसे कहते हैं?
अथवा पर्वतीय वर्षा का क्या अर्थ है?
उत्तर – यदि उच्च वायुभार राशि किसी जल आप्लावित क्षेत्र होकर गुजरे तो वह आर्द्रतायुक्त हो जाती है। जब इसके मार्ग में कोई पर्वत शिखर या पठार अवरोधस्वरूप उपस्थित होता है तो वायुराशि द्रवीभूत होकर वर्षा करती है। इस प्रकार होने वाली वर्षा को ‘पर्वतीय वर्षा’ या ‘उच्चावचीय वर्षां’ कहते हैं।
वायुराशियों द्वारा अवरोध के सम्मुख वाले भाग में अत्यधिक वर्षा होती है जबकि विमुख भागों तक पहुँचते-पहुँचते वायुराशियों की आर्द्रता समाप्त हो जाती है। इन प्रदेशों को ‘वृष्टि – छाया प्रदेश’ के नाम से पुकारा जाता है। उदाहरण के लिए — भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवनों की अरब सागरीय शाखा द्वारा पश्चिमी घाट के वायु-अभिमुख ढाल पर 640 सेमी (महाबलेश्वर में ) वर्षा हो जाती है जबकि इसके विमुख ढाल पर पुणे में मात्र 40 सेमी या उससे भी कम वर्षा होती है। अतः दक्षिणी भारत का यह क्षेत्र वृष्टि छाया प्रदेश कहलाता है।
प्रश्न 7 – पश्चिमी विक्षोभ’ से क्या तात्पर्य है? भारत की शीत इनसे किस प्रकार प्रभावित होती है?
उत्तर- शीत ऋतु में भूमध्यसागर की ओर से भारत की ओर चलने वाली तूफानी पवनों को ‘पश्चिमी विक्षोभ’ (Western) Disturbances) के नाम से जाना जाता है। भारत में शीत ऋतु बड़ी सुहावनी एवं आनन्ददायक होती है। परन्तु इस सुहावने मौसम में कभी-कभी पश्चिमी अवदावों (Depressions) के आ जाने के कारण मौसम बदल जाता है। ये अवदाब जब पूर्व की ओर बढ़ते हैं तो मार्ग में पड़ने वाले कैस्पियन सागर एवं फारस की खाड़ी से कुछ आर्द्रता ग्रहण कर लेते हैं, जिस कारण उत्तरी भारत में हल्की वर्षा हो जाती है। यद्यपि वर्षा की मात्रा बहुत कम होती है, परन्तु रबी की फसल, विशेष रूप से गेहूँ की कृषि के लिए यह बहुत लाभप्रद होती है।
प्रश्न 8 – क्या कारण है कि चेरापूँजी में अत्यधिक वर्षा होती है?
उत्तर- चेरापूंजी, मेघालय राज्य में एक ऐसी घाटी की तलहटी में स्थित है जो तीन ओर से गारो, खासी तथा जयन्तिया की पहाड़ियों से घिरा है। इन पहाड़ियों के दक्षिणी भाग में चेरापूँजी स्थित है। इसकी स्थिति कीप की आकृति वाली घाटी के शीर्ष पर है। अतः इस स्थलाकृति की विशिष्टता के कारण आर्द्रतायुक्त पवनें यहाँ घनघोर वर्षा करती हैं। यहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 1200 सेमी से अधिक रहता है।
• अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – जेट धाराएँ क्या हैं?
उत्तर- जेट वायुधाराएँ (स्ट्रीम) तेज गति से चलने वाली वे हवाएँ हैं जो वायुमण्डल के ऊपरी भाग (क्षोभमण्डल) में चलती हैं। भारत में यह वायुधारा पश्चिम से चलती है; अत: इन्हें ‘पश्चिमी जेट स्ट्रीम’ कहते हैं।
प्रश्न 2 – मानसून का क्या अर्थ है?
उत्तर- मानसून उन पवनों को कहते हैं जो वर्ष में 6 महीने ग्रीष्म ऋतु) सागरों से स्थल की ओर तथा शेष 6 महीने (शीत ऋतु) स्थल से सागरों की ओर चलती हैं। वास्तव में मानसून जलीय-स्थलीय समीर है, जो दैनिक क्रम से न चलकर वार्षिक क्रम से चलती है।
प्रश्न 3 – भारत में कितनी ऋतुएँ मानी जाती हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर— भारत में चार ऋतुएँ मानी जाती हैं- (1) शीत ऋतु, (2) ग्रीष्म ऋतु, (3) आगे बढ़ते मानसून की ऋतु, (4) लौटते मानसून की ऋतु । .
प्रश्न 4- ‘लू’ शब्द से क्या अर्थ है?
उत्तर- भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में मई एवं जून महीनों में निम्न वायुदाब गर्त के क्षेत्र में दोपहर बाद चलने वाली गर्म एवं शुष्क पवनों को ‘लू’ कहते हैं।
प्रश्न 5- मानसूनी वर्षा की दो विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर – भारतीय मानसूनी वर्षा की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- (1) भारत में मानसूनी वर्षा का वितरण असमान है। (2) मानसूनी वर्षा अनियमित एवं अनिश्चित होती है।
प्रश्न 6 – भारत में ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों की दो शाखाओं के नाम बताइए ।
उत्तर – भारत में ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों की दो शाखाएँ हैं— (1) अरबसागरीय मानसून की शाखा, (2) बंगाल की खाड़ी के मानसून की शाखा ।
प्रश्न 7 – भारत में अधिकतम और न्यूनतम तापमान के क्षेत्र बताइए |
उत्तर- भारत में अधिकतम तापमान राजस्थान राज्य में थार मरुस्थल के पश्चिम में ( 55° सेल्सियस) तथा न्यूनतम तापमान लेह-लद्दाख क्षेत्र में ( – 45° सेल्सियस) पाया जाता है।
प्रश्न 8 – अतिवृष्टि या बाढ़ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – तीव्र एवं मूसलाधार तथा निरन्तर वर्षा होते रहने से नदियों के प्रवाह मार्ग में अधिक जल नहीं समा पाता तथा वह बाहर की ओर फैल जाता है, जिसे अतिवृष्टि या बाढ़ कहते हैं ।
प्रश्न 9 – ‘पीछे हटता मानसून’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- अक्टूबर के अन्त तक भारत में वर्षा का जोर लगभग समाप्तप्राय हो जाता है और दाब में वृद्धि हो जाती है इसलिए दक्षिण-पश्चिमी मानसून धीरे-धीरे पीछे हटने लगता है। अक्टूबर के शुरू में पंजाब से तथा नवम्बर के प्रारम्भ तक मानसून दक्षिणी भारत से विदा हो जाता है। इसे ही पीछे हटता मानसून कहते हैं।
प्रश्न 10 – ‘दक्षिणी दोलन’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – उत्तरी गोलार्द्ध में प्रशान्त महासागर पर जब वायुदाब अधिक होता है, उस समय हिन्द महासागर के दक्षिण भाग में वायुदाब . कम होता है। कभी-कभी वायुदाब की यह स्थिति उलट जाती है। इसके कारण विभिन्न ऋतुओं में विषुवत् वृत्त के आर-पार पवनों की स्थिति बदलती रहती है। इस प्रक्रिया को ‘दक्षिणी दोलन’ कहते हैं।
प्रश्न 11 – आम्रवृष्टि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – ग्रीष्म ऋतु के अन्त में केरल और कर्नाटक के तटीय भागो मे मानसून से पूर्व की वर्षा ‘आम्रवृष्टि’ कहलाती है। यह वर्षा आम की फसल के लिए उपयोगी होती है, इसीलिए इसे आम्रवृष्टि कहा जाता है।
प्रश्न 12 – काल वैसाखी का क्या अर्थ है ?
उत्तर – ग्रीष्म ऋतु के अन्त में पश्चिम बंगाल तथा असम में वर्षा की तेज बौछार पड़ती हैं। अतः उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तरी पवनों द्वारा वैसाख माह में होने वाली तेज वर्षा को ‘काल वैसाखी’ कहा जाता है।
• बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1 – एक विशाल क्षेत्र में लम्बी समयावधि में मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं का कुल योग है-
(a) वायुमण्डल
(b) जलवायु
(c) निम्न वायुदाब क्षेत्र
(d) मानसूनी गर्त।
उत्तर – (b) जलवायु
प्रश्न 2 – भारत की जलवायु को कहा जाता है-
(a) मानसूनी जलवायु
(b) गर्म जलवायु
(c) ठण्डी जलवायु
(d) शुष्क जलवायु ।
उत्तर – (a) मानसूनी जलवायु
प्रश्न 3 – वह स्थान जहाँ पर दिन और रात के तापमान में अधिक अन्तर होता है-
(a) पूर्वी घाट मैदान
(b) पश्चिमी तट
(c) थार का मरुस्थल
(d) पूर्वी तट ।
उत्तर – (c) थार का मरुस्थल
प्रश्न 4 – भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाला कारक है—
(a) ऊँचाई
(b) अक्षांश
(c) वायुदाब
(d) ये सभी।
उत्तर – (d) ये सभी।
प्रश्न 5 – भारत में शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर बहने वाली पवनें कहलाती हैं-
(a) उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें
(b) उत्तर-पश्चिमी व्यापारिक पवनें
(c) चक्रवाती पवनें
(d) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं ।
उत्तर – (a) उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें
प्रश्न 6 – शीतकाल की वर्षा किस फसल के लिए महत्त्वपूर्ण है—
(a) खरीफ
(b) रबी
(c) जायद
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर – (b) रबी
प्रश्न 7 – ‘काल बैसाखी’ का सम्बन्ध किस राज्य से है-
(a) केरल
(b) मध्य प्रदेश
(c) असम
(d) उत्तर प्रदेश |
उत्तर – (c) असम
