UK Board Class 10 Hindi – क्रिया-भेद
UK Board Class 10 Hindi – क्रिया-भेद
UK Board Solutions for Class 10 Hindi – क्रिया-भेद
क्रिया
क्रिया की परिभाषा एवं उदाहरण – जिस शब्द या पद से किसी कार्य के करने या होने का बोध होता है, उसे ‘क्रिया’ कहते हैं।
उदाहरणतया-
क्रिया-भेद
1. चिड़िया आकाश में उड़ रही है।
2. शीला ने सेब खाया।
3. रमेश रोज स्कूल जाता है।
4. यह पुस्तक है।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘उड़ रही है’, ‘खाया’, ‘जाता है’ तथा ‘है’ क्रिया- पद हैं।
क्रिया के भेद
क्रिया के दो मुख्य भेद होते हैं-
(1) अकर्मक क्रिया
वाक्य में प्रयोग करते समय जिस क्रिया में कर्म की आवश्यकता नहीं होती, उसे ‘अकर्मक क्रिया’ कहते हैं; जैसे- हँसना, गाना, जाना, रोना, धोना, बैठना आदि। अकर्मक क्रिया का प्रभाव सीधे कर्त्ता पर पड़ता है और इससे कार्य के होने अथवा करने का स्वतः ही पता चल जाता है; उदाहरण के लिए-
1. राम आता है।
2. पक्षी उड़ रहे हैं।
3. शीला हँसेगी।
4. बच्चा रो रहा है।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘आना’, ‘उड़ना’, ‘हँसना’, ‘रोना’ आदि क्रियाओं को कर्म की अपेक्षा नहीं है इनका प्रभाव क्रमशः केवल अपने कर्त्ताओं अर्थात् ‘राम’, ‘पक्षी’, ‘शीला’ और ‘बच्चा’ पर पड़ रहा है; अतः ये सब अकर्मक क्रिया के उदाहरण हैं।
अकर्मक क्रिया के भेद
अकर्मक क्रिया के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं-
(i) स्थित्यर्थकपूर्ण अकर्मक क्रिया-यह क्रिया बिना कर्म के पूर्ण होती है और कर्त्ता की स्थिरता का बोध कराती है; जैसे-
1. श्याम सो रहा है।
2. नीरज पढ़ रहा है।
3. गीता सोच रही है।
उपर्युक्त वाक्यों में श्याम ‘कर्त्ता’ के ‘सोने’ की दशा, नीरज ‘कर्ता’ के ‘पढ़ने’ की दशा तथा गीता ‘कर्त्ता’ के ‘सोच’ की दशा का ज्ञान हो रहा है इसलिए ये स्थित्यर्थक क्रियाएँ हैं।
(ii) गत्यर्थकपूर्ण अकर्मक क्रिया – यह क्रिया भी बिना कर्म के पूर्ण होती है और कर्त्ता की गतिमान दशा का बोध कराती है।
उदाहरणतया-
मैं घर जा रही हूँ।
इस वाक्य में ‘जा रही हूँ’ इस कर्मरहित क्रिया से कर्त्ता की गति का अर्थबोध होता है। यहाँ क्योंकि कर्त्ता ‘मैं’ की गतिमानता प्रदर्शित होती है इसलिए य गत्यर्थकपूर्ण अकर्मक क्रिया का उदाहरण है। इसी प्रकार –
1. विद्यार्थी परीक्षा भवन में जा रहे हैं।
2. सैनिक बन्दूकें साफ कर रहे हैं।
3. माला कपड़े धो रही है।
4. सूरज पूरब में निकल आया।
(iii) अपूर्ण अकर्मक क्रिया- अपूर्ण अकर्मक वे क्रियाएँ होती हैं, जिन्हें कर्म की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु कर्त्ता से सम्बन्धित किसी-न-किसी ‘पूरक’ शब्द की आवश्यकता अनिवार्यतः होती है। उदाहरण के रूप में-
मैं हूँ।
उपर्युक्त वाक्य कर्त्ता एवं क्रिया की दृष्टि से पूरा है, किन्तु ‘मैं’ से सम्बन्धित, किसी पूरक की अनुपस्थिति से अर्थद्योतन में अपूर्णता बनी हुई है। यदि वाक्य में पूरक को स्थान प्रदान कर दिया जाए तो वाक्य पूर्ण हो जाएगा एवं अर्थ भी स्पष्ट हो जाएगा; यथा—
”मैं स्वस्थ हूँ।’ या ‘मैं अस्वस्थ हूँ।’
‘स्वस्थ’ या ‘अस्वस्थ’ शब्द के प्रयोग से उपर्युक्त वाक्य पूर्णार्थ- द्योतक बन गया है।
ध्यातव्य है कि होना, बनना, निकलना आदि अपूर्ण अकर्मक क्रियाएँ हैं।
(2) सकर्मक क्रिया
जिस क्रिया के प्रयोग में ‘कर्म’ की आवश्यकता पड़ती है और उसका सीधा सम्बन्ध कर्म से होता है अर्थात् क्रिया का प्रभाव कर्म पर पड़ता है, उसे सकर्मक क्रिया’ कहते हैं। उदाहरण के लिए-
1. मोहन मकान देख रहा है।
2. शीला ने सेब खाया।
3. वह पानी पी रहा है।
4. कुली सामान उठाता है।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘देख रहा है’ क्रिया का कर्म ‘मकान’, ‘खाया’ क्रिया का कर्म ‘सेब’, ‘पी रहा है।’ क्रिया का कर्म ‘पानी’ तथा ‘उठाता है’ क्रिया का कर्म ‘सामान’ है; क्योंकि क्रियाओं के प्रयोग में ‘कर्म’ की आवश्यकता बनी हुई है तथा इन कर्मों का लोप करने से वाक्य अपूर्ण अर्थवाला हो जाएगा; अतः ये सभी सकर्मक क्रियाएँ हैं।
सकर्मक क्रिया के भेद
सकर्मक क्रिया के निम्नलिखित तीन भेद माने गए हैं-
(i) पूर्ण एक -कर्मक क्रियाएँ – जिन क्रियाओं को एक कर्म की आवश्यकता होती है तथा कर्म को हटा देने पर वाक्य अपूर्ण लगने लगता है, उन क्रियाओं को पूर्ण एक-कर्मक क्रियाएँ कहते हैं। सामान्यतः यही क्रियाएँ सकर्मक क्रिया के रूप में जानी जाती हैं। उदाहरण के रूप में-
बिल्ली ने दूध पी लिया।
इस वाक्य में बिल्ली ‘कर्ता’ है, दूध ‘कर्म’ है तथा ‘पी लिया’ क्रिया है। यदि कर्म ‘दूध’ को हटा लिया जाए तो अर्थ में अपूर्णता आ जाएगी। इसलिए यह पूर्ण एक कर्मक क्रिया है। इसी प्रकार –
1. उसने खाना खाया।
2. वह पुस्तक पढ़ेगा।
3. मैं चादर ओढूँगा।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘खाया’, ‘पढ़ेगा’ तथा ‘ओढूँगा’ क्रियाएँ पूर्ण एक कर्मक क्रियाएँ हैं।
(ii) पूर्ण द्विकर्मक क्रियाएँ – जिन क्रियाओं ‘दो कर्मों’ की आवश्यकता होती है तथा दोनों में से एक कर्म को भी हटाने पर वाक्य अपूर्ण लगने लगता है, उन क्रियाओं को पूर्ण द्विकर्मक क्रियाएँ कहते हैं; यथा-
1. मोहन ने सोहन को अपनी घड़ी दी।
2. रमेश ने सुरेश से मकान खरीदा।
3. शीला ने रमा को गाना सुनाया।
4. रेखा ने सीमा को अपना पता बताया।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘दी’, ‘खरीदा’, ‘सुनाया’, ‘बताया’ आदि द्विकर्मक क्रिया के उदाहरण हैं; क्योंकि इनमें प्रत्येक के साथ दो-दो कर्म हैं।
(iii) अपूर्ण सकर्मक क्रियाएँ—वे क्रियाएँ, जिनमें कर्म रहते हुए भी एक पूरक कर्म की आवश्यकता बनी रहती है, अपूर्ण सकर्मक क्रियाएँ कहलाती हैं। उदाहरण के लिए- संगीता मनीष को मित्र मानती है। इस वाक्य में ‘मनीष को’ कर्म है तथा ‘मित्र’ इसका पूरक पद है। यदि इनमें से कर्म के पूरक पद ‘मित्र’ को हटा लिया जाए तो वाक्यार्थ अस्पष्ट हो जाएगा। पूरक ‘मित्र’ शब्द के आने से ही यहाँ अर्थ स्पष्ट होता है, अन्यथा ‘संगीता मनीष को मानती है’ या ‘संगीता मित्र मानती है’ इस प्रकार के वाक्यों से अर्थ में अस्पष्टता साफ दिखाई देती है।
अकर्मक तथा सकर्मक क्रिया में परिवर्तन अथवा अन्तरण
क्रियाओं का अकर्मक या सकर्मक होना उनके प्रयोग पर निर्भर करता है, उनके धातु-रूपों पर नहीं। इसलिए कभी अकर्मक क्रियाएँ सकर्मक रूप में प्रयोग होती हैं और कभी सकर्मक क्रियाएँ अकर्मक रूप में प्रयोग होती हैं। उदाहरण के लिए कुछ क्रियाओं का सकर्मक/अकर्मक रूप नीचे दिया गया है—
1. पढ़ना’ (सकर्मक क्रिया) — मोहन पुस्तक पढ़ता है।
2. पढ़ना (अकर्मक क्रिया) — सीता पढ़ती है ।
3. टहलना (सकर्मक क्रिया) — बच्चे मैदान में टहलते हैं।
4. टहलना (अकर्मक क्रिया) — बच्चे टहलते हैं।
ये अकर्मक तथा सकर्मक क्रियाएँ अनेक प्रकार की होती है और इनका अनेक रूपों में प्रयोग होता है, जिसका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-
प्रेरणार्थक क्रिया
परिभाषा – जब कर्ता स्वयं कार्य नहीं करता, वरन् किसी को प्रेरणा देकर कार्य करवाता है, तब वह ‘प्रेरणार्थक क्रिया’ कहलाती है अर्थात् कर्त्ता जब स्वयं कार्य न करके दूसरे से करवाए, तब वहाँ प्रेरणार्थक क्रिया होती है। उदाहरणतया –
1. मोहन सोहन से काम करवाता है।
2. माँ नौकरानी से बच्चे को दूध पिलवाती है।
प्रेरणार्थक क्रिया के भेद – हिन्दी में प्रेरणार्थक क्रिया के दो भेद है-
(1) प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया- जब कर्त्ता स्वयं क्रिया तो करता है, परन्तु साथ में एक प्रेरक कर्त्ता भी होता है, जो क्रिया-निष्पादन का प्रेरणास्त्रोत होता है, तब प्रथम प्रेरणार्थक क्रियायुक्त वाक्य बनता है; जैसे-
माँ बेटे को दवा पिलाती है।
‘माँ’ इस वाक्य में बेटे को दवा पिलाती है इसलिए वह ‘कर्त्ता’ है। पर यह कार्य वह डॉक्टर की प्रेरणा से करती है; अतः यहाँ प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया है।
(2) द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया- जब कर्त्ता से क्रिया करवाने के लिए ‘प्रथम प्रेरक’, किसी दूसरे प्रेरक को सहायता लेकर कार्य-निष्पादन करता है, तब वहाँ द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया होती है। उदाहरण के लिए-
पिता ने माँ से बेटे को खाना दिलवाया।
यहाँ प्रथम प्रेरक ‘पिता’ तथा द्वितीय प्रेरक ‘माँ’ है। दोनों कर्त्ता मिलकर एक क्रिया सम्पन्न करते हैं— खाना दिलवाने की ।
प्रेरणार्थक क्रिया में शब्द रचना के लिए मूलधातु में परिवर्तन इस प्रकार होता है-
मूलधातु | प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के लिए धातु रूप में ‘ना’ जुड़ता है; जैसे- | द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के लिए क्रिया में धातु के बाद प्रायः ‘वाना’ जुड़ता है; जैसे— |
हँस
दे
देख
जाग
बेच
सिल
जोड़
पी
पढ़
|
हँसाना
दिलाना
दिखाना
जगाना
बेचना
सिलना
जोड़ना
पिलाना
पढ़ाना
|
हँसवाना
दिलवाना
दिखवाना
जगवाना
बिकवाना
सिलवाना
जुड़वाना
पिलवाना
पढ़वाना
|
संयुक्त क्रिया
परिभाषा – दो या दो से अधिक धातुओं के योग से बनी हुई क्रिया, ‘संयुक्त क्रिया’ कहलाती है; जैसे-
1. मैं पढ़ लिया करता हूँ।
2. वह बोलता ही चला जा रहा था।
3. सुमन को प्रवेश करने दिया जा सकता है।
संयुक्त क्रिया के भेद – संयुक्त क्रिया के चार भेद हैं-
(1) मुख्य क्रिया – संयुक्त क्रियाओं में एक क्रिया मुख्य होती है। वह कर्त्ता या कर्म के मुख्य व्यापार को प्रकट करती है। उदाहरणतया – उपर्युक्त वाक्यों में ‘पढ़’, ‘बोलता’ एवं ‘प्रवेश करने’ मुख्य क्रियाएं हैं।
(2) सहायक क्रिया-काल का ज्ञान करानेवाले क्रिया-रूप, ‘सहायक क्रिया’ कहलाते हैं। उदाहरण के लिए उपर्युक्त वाक्यों में ‘हूँ’, ‘था’, ‘है” आदि सहायक क्रियाएँ हैं। ये मुख्य क्रिया की रचना में सहायता देती हैं इसलिए सहायक क्रिया कहलाती हैं।
(3) संयोजी क्रियाएँ – मुख्य क्रिया की वृत्ति, पक्ष और वाच्य की सूचना देनेवाली क्रियाएँ, ‘संयोजी क्रियाएँ’ कहलाती हैं; जैसे—
वृत्ति – इच्छा, अनिच्छा, सामर्थ्य, असमर्थता, विवशता आदि ।
पक्ष – अभ्यास, प्रगति, आरम्भ, सातत्य, पूर्णता आदि ।
वाच्य – कर्मवाच्य, भाववाच्य।
वृत्ति, पक्ष और क्रिया को निम्नलिखित वाक्यों की सहायता से भली-भाँति समझा जा सकता है-
1. मैं पढ़ना चाहता हूँ। (चाहना — इच्छा)
2. मैं पढ़ नहीं सकता। (असमर्थता)
3. मुझे पढ़ना पड़ता है। (विवशता)
4. नहीं जाना चाहता। (अनिच्छा)
5. मैं पढ़ लिया करता हूँ। (अभ्यास)
6. वह चढ़ता ही चला गया। (प्रगति)
7. मैं गाने लगा हूँ। (आरम्भ)
8. माँ खाना खा रही है। (सातत्य )
9. वह गाती रहती है। (अभ्यास)
10. मैं खा चुका। (पूर्णता)
11. पुस्तक पढ़ी जा रही है। (कर्मवाच्य )
12. अब मुझसे गाया नहीं जाता। (भाववाच्य)
(4) रंजक क्रियाएँ — ये क्रियाएँ मुख्य क्रिया के अर्थ को रंजित करती हैं अर्थात् उसे विशिष्टता प्रदान करती हैं। सामान्यतया ये क्रियाएँ आठ हैं- आना, जाना, उठना बैठना, लेना, देना, पड़ना और डालना।
उदाहरणतया –
‘आना’ के वाक्य – प्रयोग ( अनायासता )-
1. उसकी दशा देख मुझे रोना आने लगा।
2. उसका यूँ भाग आना ठीक नहीं रहा ।
‘जाना’ के वाक्य प्रयोग (पूर्ण क्रिया या शीघ्रता ) –
1. मीना का चला जाना ठीक रहा।
2. मैं जाता हूँ, तुम पहुँच जाना।
‘उठना’ के वाक्य प्रयोग (आकस्मिकता) –
1. राम का विलाप सुन मेरा हृदय भी रो उठा।
2. दुर्घटना देख मेरा कलेजा काँप उठा।
‘बैठना’ के वाक्य प्रयोग (आकस्मिकता) —
1. क्रोध में मैं स्वयं अपना ही नुकसान कर बैठा ।
2. जन – विरोधी बातें कहकर नेताजी जनता को अपना ही विरोधी बना बैठे।
‘लेना’ के वाक्य प्रयोग (पूर्ण क्रिया, विवशता )-
1. मैंने प्रण कर लिया है।
2. मीरा ने विष का प्याला पी लिया।
‘देना’ के वाक्य प्रयोग (पूर्ण क्रिया, विवशता ) –
1. मैंने बालकों को बुला लिया।
2. चोरों के डर से उसने अपना पर्स फेंक दिया।
‘पड़ना’ के वाक्य प्रयोग (स्वतःस्फूर्त, शीघ्रता)
1. बेटे की आत्महत्या के समाचार से सब रो पड़े।
2. विद्यालय से मैं जल्दी निकल पड़ा।
‘डालना’ के वाक्य – प्रयोग ( बलात् भाव, क्रिया पूर्णता ) –
1. राम ने रावण को मार डाला।
2. यह कार्य तुमने बड़ी जल्दी समाप्त कर डाला।
इसी प्रकार मरना, मारना, निकलना, बसना, लगना आदि के वाक्य-प्रयोग भी देखिए-
मरना – 1. नकल करने की अपेक्षा डूब मरना श्रेष्ठ है।
2. बदनामी कराने से तो तू मर जाता तो ही अच्छा होता।
मारना – 1. आज पैसा कमाने के लिए साहित्यकार न जाने क्या-क्या लिख मारते हैं।
2. उसने ऐसा दाँव मारा कि सब चित रह गए।
निकलना — आजकल इस प्रकार के वस्त्रों का फैशन चल निकला है।
बसना – मेरी माता पिछले वर्ष चल बसी ।
लगना- मुझे लगा कि तुम आ जाओगे ।
निषेधात्मक वाक्यों में मुख्य क्रिया के साथ रंजक क्रिया का प्रयोग नहीं किया जाता है; यथा—
1. उसे नींद आ रही है। → उसे नींद नहीं आती।
2. मोहन जाग गया। → मोहन नहीं जागा ।
3. सुनील ने गृह-कार्य कर लिया। → सुनील ने गृह-कार्य नहीं किया।
समापिका और असमापिका क्रियाएँ
“समापिका क्रियाएँ वे होती हैं, जो वाक्य को समाप्त करती हैं और प्रायः वाक्य के अन्त में होती हैं।” उदाहरण के रूप में-
1. लड़का पढ़ता है।
2. मोहन गाता है।
3. वह जा रहा है।
4. दूध उबल रहा है।
5. मुझे रात में संगीत सुनना अच्छा लगता है।
6. मीना अभी सोकर उठी है।
7. सुमन कपड़े धो रही है।
उपर्युक्त वाक्यों में मोटे छपे वाक्य पद समापिका क्रिया को स्पष्ट करते हैं।
“असमापिका क्रियाएँ वे होती हैं, जो वाक्य की समाप्ति नहीं करतीं, बल्कि अन्यत्र प्रयोग होती हैं। ” ऐसी क्रियाओं को ‘क्रिया’ का ‘कृदन्ती रूप’ भी कहा जाता है। उदाहरण के लिए-
1. सरोवर में खिले कमल कितने सुन्दर लग रहे हैं !
2. बाग में उड़ती तितली कितनी प्यारी है !
उपर्युक्त वाक्यों में ‘खिले कमल’ और ‘उड़ती तितली’ असमापिका क्रिया के उदाहरण हैं; क्योंकि इनसे वाक्य समाप्त नहीं हो रहा। ये क्रिया- पद ‘कमल’ व ‘तितली’ की विशेषता बनकर आए हैं।
असमापिका क्रियाओं का विवेचन तीन दृष्टियों से किया जाता है-
(1) रचना की दृष्टि से इन क्रियाओं की रचना चार प्रकार से होती है, वह भी प्रत्ययों के योग से। ये चारों भेद इस प्रकार हैं-
1. अपूर्ण कृदन्त – ता, ती, ते : बहता झरना, आती स्त्री, झरते फूल।
2. पूर्ण कृदन्त — आ, ई, ए : बैठा बन्दर, बैठी हिरनी, बैठे बन्दर ।
3. क्रियार्थक कृदन्त — ना, नी, ने : जाना है, जानी है, जाने हैं।
4. पूर्वकालिक कृदन्त + कर : पढ़कर, सोकर, खाकर, नहाकर ।
(2) शब्द-भेद की दृष्टि से – कृदन्ती शब्द या तो संज्ञा होते हैं या फिर विशेषण या क्रिया-विशेषण। उदाहरणतया –
संज्ञा – ना – मुझे दौड़ना आता है।
ने – मुझे दौड़ने दो।
विशेषण – ता – बहता पानी स्वच्छ होता है।
ती – जलती आग में हाथ न डालें।
ते – सीढ़ी चढ़ते समय ध्यान दें।
क्रिया-विशेषण- ते-ही – पत्र पढ़ते ही चल पड़ा।
ते-ते – उठते-बैठते तुम्हें याद करता हूँ।
कर – नहाकर पूजा करने बैठो।
ए – ए – खड़े-खड़े थक गया हूँ।
(3) प्रयोग की दृष्टि से — प्रयोग की दृष्टि से कृदन्त छह प्रकार के होते हैं-
(i) क्रियार्थक कृदन्त पढ़ने के लिए लिखने के लिए।
(ii) कर्तृवाचक कृदन्त मारनेवाला, बोलनेवाला ।
(iii) वर्तमानकालिक कृदन्त टहलता हुआ, देखता हुआ।
(iv) भूतकालिक कृदन्त पढ़ी हुई, बुझा हुआ ।
(v) तात्कालिक कृदन्त उठते ही, गिरते ही ।
(vi) पूर्वकालिक कृदन्त । नहाकर लिखकर आदि ।
(i) क्रियार्थक कृदन्त का प्रयोग भाववाचक संज्ञा के रूप में होता है; जैसे-पढ़ना, लिखना, खेलना आदि । उदाहरण-
1. उच्चारण सुधारने के लिए जोर से पढ़ना चाहिए।
2. लिखावट सुन्दर बनाने के लिए खूब लिखना चाहिए।
3. मुझे खेलना है।
4. श्याम पढ़ने के लिए शहर गया।
(ii) कर्तृवाच्य कृदन्त — इससे कर्तृवाच्य संज्ञा बनती है। उदाहरणतया –
धातु + ने + वाला, वाली, वाले
जैसे – ‘भाग’ धातु से भागनेवाला, भागनेवाली, भागनेवाले। वाक्य-प्रयोग—
1. रात को भागनेवाला सेठ का लड़का ही था।
2. घर से भागनेवाली को कौन पूछेगा ?
3. यहाँ से भागनेवाले को तुरन्त पकड़ो।
(iii) वर्तमानकालिक कृदन्त – ये वर्तमानकाल की किसी क्रियात्मक विशेषता का बोध कराते हैं। प्राय: ये विशेषण के रूप में प्रयोग होते हैं। उदाहरण के लिए-
1. बच्चा टहलता हुआ नदी की ओर चला गया।
2. बच्चे को देखती हुई वह चुप ही रही।
(iv) भूतकालिक कृदन्त — ये कृदन्त भी वर्तमानकालिक कृदन्त की तरह विशेषण रूप में प्रयोग होते हैं, परन्तु ये भूतकाल की क्रिया का बोध कराते हैं; यथा-
1. यह पुस्तक मेरी पढ़ी हुई है।
2. बुझा हुआ चूना कैसे बेकार होता है?
(v) तात्कालिक कृदन्त – इनकी समाप्ति पर मुख्य क्रिया भी तुरन्त समाप्त हो जाती है। इनका रूप ‘धातु + ते-हीं’ के द्वारा बनता है; जैसे – आते ही, जागते ही, उठते ही आदि।
वाक्य-प्रयोग—
1. मेरे आते ही सब खुशी से नाच उठे।
2. पत्र पढ़ते ही वह अपने होश खो बैठा।
(vi) पूर्वकालिक कृदन्त — मुख्य क्रिया से पूर्व क्रिया का ज्ञान पूर्वकालिक कृदन्त क्रिया से होता है। इसका निर्माण ‘धातु + कर’ से होता है; जैसे— सोकर जागकर उठकर आदि । उदाहरणतया—
1. मैं सोकर उठा तो वह जा चुका था।
2. उठकर बैठो और लिखकर पाठ याद करो।
3. चार बजे सुबह जागकर क्या करोगे?
काल पक्ष और वृत्ति
काल और उसके भेद
“क्रिया के जिस रूप से उसके होने का समय ज्ञात होता है, उसे ‘काल’ कहते हैं।” वास्तव में व्याकरणिक दृष्टि से कथन के क्षण और क्रिया होने या करने के क्षण का समयपरक सम्बन्ध काल से है । काल के तीन भेद हैं-
(1) वर्तमानकाल – वर्तमानकाल का अभिप्राय है कि क्रिया हो रही है अथवा कार्य-व्यापार अभी चल रहा है, समाप्त नहीं हुआ है; अर्थात् कथन के क्षण के साथ-साथ क्रिया- व्यापार का होना अर्थात् अभी जो समय चल रहा है, उसमें क्रिया का निरन्तर चलते रहना वर्तमानकाल के अन्तर्गत आता है। इसके चिह्न हैं— ‘है’, ‘हो’, ‘हूँ’, ‘हैं”, रहा है, रहे हो, रहा हूँ, रहे हैं; उदाहरण के लिए-
1. मैं जाता हूँ।
2. तुम जाते हो ।
3. वह जाता है।
4. छात्र पढ़ रहा है।
5. तुम पढ़ रहे हो ।
6. मैं खाना खा रहा हूँ ।
7. वे सब बाजार जा रहे हैं।
(2) भूतकाल – जिस क्रियारूप से कार्य के सम्पन्न होने या समाप्त हो जाने का समय ज्ञात होता है; वह ‘भूतकाल’ कहलाता है; अर्थात् कथन के क्षण के पूर्व क्रिया – व्यापार का समाप्त होना अर्थात् बीते हुए समय में होना भूतकाल है। इसके चिह्न हैं- ‘था’, ‘थी’, ‘थे’। उदाहरणतया –
1. मोहन पुस्तक पढ़ रहा था ।
2. शीला ने पुस्तक पढ़ी।
3. मोहन और सोहन ने पुस्तक पढ़ी
(3) भविष्यत्काल- कथन के क्षण के बाद क्रिया व्यापार का होना ‘भविष्यत्काल’ कहलाता है; अर्थात् क्रिया के जिस रूप से कार्य के भविष्य में, आगे आनेवाले समय में होने का बोध होता है, वहाँ भविष्यत्काल होता है। इसके चिह्न हैं— ‘गा’, ‘गी’, ‘गे’ । उदाहरणतया-
1. वे जाएँगे।
2. मोहन कल बनारस जाएगा।
3. तुम सोमवार को घर आओगे ।
4. शीला गाना गाएगी।
पक्ष और उसके भेद
“क्रिया के जिस रूप से उसकी प्रक्रिया की अवस्था का ज्ञान होता है, उसे क्रिया का ‘पक्ष’ कहते हैं।” क्रिया के चार महत्त्वपूर्ण पक्ष निम्नलिखित हैं-
(1) नित्यताबोधक अपूर्ण पक्ष – इसमें क्रिया सामान्य रूप से चलती रहती है, जैसे-
1. बाहर हवा चल रही है।
2. मोहन डॉक्टर है।
(2) आवृत्तिमूलक पक्ष — इसमें क्रिया सदैव बनी रहती है; जैसे-
1. मोहन प्रतिदिन पढ़ता है।
2. निकिता हरपल सोचती रहती थी।
3. सूरज पूरब में निकलता है।
(3) सातत्यद्योतक पक्ष — इसमें उस समय का बोध होता है, जब कार्य निरन्तर चल रहा हो; जैसे—
1. मोहन सोच रहा होगा।
2. सीता लिख रही थी।
3. सतीश पढ़ रहा था।
(4) पूर्णताद्योतक या पूर्णकालिक पक्ष- इसमें कार्य – व्यापार पूरा या समाप्त हो चुका होता है; जैसे—
1. मोहन घर गया।
2. सुरेश काफी दौड़ चुका है।
3. शीला ने पुस्तक पढ़ी है ।
वृत्ति और उसके भेद
वृत्ति का अर्थ है- ‘मनःस्थिति’ । “क्रिया के जिस रूप से वक्ता की मनःस्थिति या वृत्ति का बोध होता है, उसे ‘वृत्ति’ कहते हैं;”
जैसे— शंका, सम्भावना, निश्चय, अनुरोध, आदेश आदि मानव की प्रमुख स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ हैं । ‘वृत्ति’ को ‘क्रियार्थ’ भी कहते हैं। वृत्ति के निम्नलिखित सात भेद हैं-.
(1) आज्ञार्थ – आज्ञा, अनुरोध, इच्छा, उपदेश, कर्त्तव्य, प्रार्थना आदि ।
(2) इच्छार्थ – इच्छा, कामना, वरदान, अभिशाप आदि ।
(3) सम्भावनार्थ — सम्भावना या अनुमान, कार्य होने में सन्देह हो ।
(4) निश्चयार्थ – कार्य के निश्चित रूप से होने का ज्ञान ।
(5) संकेतार्थ – वाक्य में दो क्रियाएँ और उनमें कार्य कारण सम्बन्ध |
(6) प्रश्नार्थ – वक्ता की जिज्ञासा या शंका, निर्णय के लिए प्रश्न |
(7) सन्देहार्थ – क्रिया के सम्पन्न होने का लगभग निश्चय हो, लेकिन सन्देहपूर्ण स्थिति हो।
उदाहरण के लिए निम्नलिखित वाक्य द्रष्टव्य हैं-
1. कपड़े ले आओ। (आदेश)
2. चलो, खाना खाओ। (अनुरोध)
3. मुझे माफ कर दीजिए । (प्रार्थना)
4. सदा सत्यं बोलो। (उपदेश)
5. ईश्वर सबका भला करे । (कामना)
6. सदा सौभाग्यवती रहो। (आशीर्वाद)
7. युद्ध में तुम्हारी ही विजय पताका फहरे। (आशीष )
8. मेरी इच्छा है कि मैं सेना में चुना जाऊँ । (इच्छा)
9. कदाचित् वह अभी तक वहीं हो। (सम्भावना)
10. आज शायद पानी न बरसे। (अनुमान)
11. शायद हम फिर कभी न मिलें। (अनुमान)
12. सम्भवत: मैं कल न आऊँ । (सम्भावना)
13. मुझे आज नैनीताल जाना पड़ेगा। (निश्चय)
14. हम परीक्षा देने जा रहे हैं। (निश्चय)
15. मोहन कल फिल्म देखने गया था । (निश्चय)
16. जैसा करोगे वैसा भरोगे। (संकेतार्थ)
17. यदि तुम पढ़ते तो उत्तीर्ण हो जाते। (संकेतार्थ)
18. बिजली आ जाए तो कपड़े इस्तरी करें। (संकेत)
19. अब मैं कैसे जाऊँ? (प्रश्न)
20. क्या तुम मेरा काम कर दोगे ? (प्रश्न)
21. शीला विद्यालय पहुँच चुकी होगी! (सन्देह)
22. उसने मेरा खाना भी बना लिया होगा ! (सन्देह)
पाठ्यपुस्तक ‘शिक्षार्थी व्याकरण और व्यावहारिक हिन्दी के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1 – क्रिया किसे कहते हैं? इसके भेद उदाहरणसहित बताइए |
अथवा क्रिया की परिभाषा लिखिए।
उत्तर- क्रिया की परिभाषा
“जिस शब्द से किसी कार्य के सम्पन्न होने या करने का बोध होता है, उसे ‘क्रिया’ कहते हैं;” जैसे-चलना, खानां, नहाना, पढ़ना आदि।
क्रिया के भेद
क्रिया के दो भेद हैं-
1. अकर्मक क्रिया, 2. सकर्मक क्रिया ।
(1) अकर्मक क्रिया- जो क्रिया-शब्द ‘कर्म’ के बिना भी पूरा अर्थ व्यक्त कर देते हैं; वे अकर्मक क्रिया कहलाते हैं, जैसे-
1. राम हँसता है।
2. सीता गाती है।
3. रमेश खाता है।
उपर्युक्त वाक्यों में हँसने, गाने व खाने की क्रियाएँ सम्पन्न हो रही हैं, परन्तु उनका कर्म अनुपस्थित है, इसलिए ये अकर्मक क्रिया के उदाहरण हैं।
(2) सकर्मक क्रिया (2008) — जो क्रिया शब्द ‘कर्म’ के बिना अर्थपूर्ण नहीं होते; अर्थात् उनमें कर्म की आवश्यकता बनी रहती है; वे सकर्मक क्रिया कहलाते हैं। जैसे—
1. मोहन चाय पी रहा है।
2. रमा कपड़े सिल रही है।
3. सोहन उपन्यास पढ़ रहा है।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘पी रहा है’, ‘सिल रही है’ तथा ‘पढ़ रहा है’ क्रियाएँ क्रमशः ‘चाय’, ‘कपड़े’ तथा ‘उपन्यास’ कर्म के बिना अपूर्ण अर्थ या अस्पष्ट अर्थ देती हैं। इनके बिना वाक्य इस प्रकार होंगे-
1. मोहन पी रहा है।
2. रमा सिल रही है।
3. सोहन पढ़ रहा है।
इस रूप में ये वाक्य पूर्णार्थ के द्योतक नहीं हैं।
क्रिया के सकर्मक होने का बोध प्राप्त करने के लिए ‘क्या’, ‘कौन’ आदि का उत्तर मिलना चाहिए। यदि उत्तर वाक्य में है तो क्रिया सकर्मक है और यदि नहीं है तो क्रिया अकर्मक है। इसलिए — ‘मोहन खा रहा है’ यह वाक्य अकर्मक क्रिया का उदाहरण है और ‘मोहन फल खा रहा है’ सकर्मक क्रिया का।
प्रश्न 2- संयुक्त क्रिया से क्या अभिप्राय है? उदाहरणसहित समझाइए |
उत्तर- संयुक्त क्रिया
” जिस क्रिया – पद में एक से अधिक क्रियाएँ आती हैं, उसे ‘संयुक्त क्रिया’ कहते हैं।” अर्थात् जब दो या दो से अधिक मूलधातु संयुक्त होकर आती हैं, तब वे संयुक्त क्रिया कहलाती हैं। उदाहरण के लिए-
1. मैंने कहा – तुम खाना खा कर जाना।
2. स्वेटर पहन कर घर से जाना ।
3. वह उठ कर चल दिया।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘खा’, ‘कर’, ‘पहन’, ‘उठ’, ‘चल’ आदि मूलधातुओं का प्रयोग संयुक्त रूप से वाक्यों में हुआ है। इस प्रकार की एकाधिक क्रिया – पदोंवाली क्रिया को संयुक्त क्रिया कहते हैं।
प्रश्न 3 – काल के कितने भेद हैं? प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए ।
उत्तर- काल के भेद
काल के तीन भेद होते हैं। उनके उदाहरणसहित नाम इस प्रकार है-
(1) वर्तमानकाल – 1. मैं विद्यालय जाता हूँ।
2. तुम घर जा रहे हो।
(2) भूतकाल – 1. मैं घर गया था।
2. तुमने अच्छा गीत गाया था।
(3) भविष्यत्काल – 1. वे सब कल आएँगे।
2. मैं वहाँ नहीं जाऊँगा।
प्रश्न 4- वृत्ति से क्या तात्पर्य है ? सभी वृत्तियों का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर- वृत्ति
‘वृत्ति’ का अर्थ है- स्वभाव या प्रवृत्ति या प्रयोजन। “क्रिया के जिस रूप से कर्त्ता की मनःस्थिति या वृत्ति का बोध होता है, उसे ‘वृत्ति’ कहते हैं”; जैसे – आज्ञा, इच्छा, निश्चय, सम्भावना, संकेत तथा प्रश्न|
सभी वृत्तियों का एक-एक उदाहरण इस प्रकार है-
(1) आज्ञार्थ (आज्ञा, प्रार्थना, उपदेश); जैसे – तुम तुरन्त घर जाओ।
(2) इच्छार्थ (वक्ता की इच्छा, शाप या आशीष ); जैसे – ईश्वर सबको सुखी रखे।
(3) सम्भावनार्थ (सम्भावना व्यक्त हो); जैसे – शायद मैं कल आऊँ।
(4) निश्चयार्थ ( निश्चित सूचना ); जैसे- मैं कल समय पर पहुँच जाऊँगा ।
(5) संकेतार्थ (कार्यसिद्धि में एक-दूसरे पर निर्भरता ); जैसे—यदि तुम तेज भागते तो चोर को पकड़ लेते।
(6) प्रश्नार्थ ( प्रश्न पूछने का भाव ); जैसे- क्या तुमने किताब पढ़ ली?
(7) सन्देहार्थ (क्रिया के सम्पन्न होने का लगभग निश्चय हो, लेकिन सन्देह भी हो); जैसे—उसने कार्य कर लिया होगा!
प्रश्न 5 – पक्ष से क्या अभिप्राय है? पक्ष कितने प्रकार के होते हैं? उदाहरण देकर प्रत्येक को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- पक्ष से अभिप्राय
क्रिया के जिस रूप से प्रक्रिया की अवस्था का पता चलता है, उसे ‘पक्ष’ कहते हैं।
पक्ष के प्रकार
कार्य की पूर्ण अवस्था, अपूर्णता या क्रिया की निरन्तरता अथवा आवृत्ति आदि के आधार पर ‘पक्ष’ के निम्नलिखित चार मुख्य प्रकार होते हैं-
(1) नित्यताबोधक अपूर्ण पक्ष- इसमें क्रिया सामान्य रूप से चलती है, पूर्णता नहीं होती। उदाहरण के लिए-
1. महेश इंजीनियर है।
2. नीरजा अध्यापिका है।
(2) आवृत्तिमूलक पक्ष – क्रिया आवृत्ति पर होती रहती है। उदाहरण के लिए—
1. पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती रहती है।
2. सूर्य पूरब में निकलता है।
(3) सातत्यबोधक पक्ष- इसमें कार्य की निरन्तरता बनी रहती है; जैसे-
1. राम पढ़ रहा है।
2. तब वह जा रही थी।
(4) पूर्णकालिक पक्ष – इसमें कार्य – व्यापार या क्रिया के सम्पन्न हो जाने की सूचना प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए-
1. मैं स्नान कर चुका हूँ।
2. मोहन खेलकर आ गया।
प्रश्न 6 – निम्नलिखित शब्दों के प्रथम तथा द्वितीय प्रेरणार्थक रूप बनाइए—
पीना, सुनना, रोना, चलना, देना, बनना, काटना।
उत्तर-
शब्द | प्रथम प्रेरणार्थक रूप | द्वितीय प्रेरणार्थक रूप |
पीना
सुनना
रोना
चलना
देना
बनना
काटना
|
पिलाना
सुनाना
रुलाना
चलाना
दिलाना
बनाना
कटाना
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पिलवाना
सुनवाना
रुलवाना
चलवाना
दिलवाना
बनवाना
कटवाना
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अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1 – अकर्मक एवं सकर्मक क्रिया का अन्तर सोदाहरण स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – अकर्मक एवं सकर्मक क्रिया का अन्तर – वाक्य में जिस क्रिया का कर्म नहीं होता है, वह अकर्मक क्रिया कहलाती है और जिस क्रिया का कर्म होता है, वह सकर्मक क्रिया कहलाती है; जैसे—
(क) विवेक सोता है।
(ख) बालक आम खाता है।
इन वाक्यों में ‘सोता है क्रिया का कोई कर्म नहीं हैं, अतः यह अकर्मक क्रिया है; जबकि ‘खाता है’ क्रिया का कर्म ‘आम’ है, अतः कर्मयुक्त होने के कारण यह सकर्मक क्रिया है ।
प्रश्न 2 – निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर उसका भेद लिखिए-
(क) आज माँ ने पकवान बनाए ।
उत्तर – बनाए – समापिका, मुख्य और सकर्मक क्रिया ।
(ख) तुमने मेरे मित्र को अपनी कविता सुनाई।
उत्तर – सुनाई – समापिका, मुख्य और सकर्मक क्रिया ।
(ग) रास्ते पर पेड़ गिरा था।
उत्तर – गिरा था — समापिका, संयुक्त और अकर्मक क्रिया ।
(घ) सुबह होते ही जाऊँगा ।
उत्तर – जाऊँगा – समापिका, मुख्य और अकर्मक क्रिया ।