UP Board Class 10 Hindi Chapter 7 – पानी में चन्दा और चाँद पर आदमी (गद्य खंड)
UP Board Class 10 Hindi Chapter 7 – पानी में चन्दा और चाँद पर आदमी (गद्य खंड)
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 पानी में चन्दा और चाँद पर आदमी (गद्य खंड)
जीवन-परिचय
लोकप्रिय बाल पत्रिका ‘नन्दन’ के सम्पादक एवं प्रसिद्ध लेखक जयप्रकाश भारती का जन्म 2 जनवरी, 1936 में उत्तर प्रदेश के प्रमुख नगर मेरठ में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रघुनाथ सहाय था, जो मेरठ के प्रसिद्ध वकील और कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे। भारती जी ने अपनी बी.एस.सी. तक की शिक्षा मेरठ में ही पूर्ण की। छात्र जीवन में इन्होंने अपने पिता को अनेक सामाजिक गतिविधियों में संलिप्त देखा था, जिसका व्यापक प्रभाव इनके जीवन पर भी पड़ा। इससे इन्होंने समाजसेवी संस्थाओं में प्रमुखता से भाग लेना आरम्भ कर दिया । साक्षरता के प्रचार-प्रसार में इनका उल्लेखनीय योगदान रहा है, इन्होंने अनेक वर्षों तक मेरठ में निःशुल्क प्रौढ़ रात्रि पाठशाला का संचालन किया। इनका निधन 5 फरवरी 2005 को हो गया। सम्पादन के क्षेत्र में इनकी विशेष रुचि रही। इन्होंने ‘सम्पादन- कला विशारद’ की उपाधि प्राप्त करके मेरठ से प्रकाशित ‘दैनिक प्रभात’ तथा दिल्ली से प्रकाशित ‘नवभारत टाइम्स’ में पत्रकारिता का व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया। ये अनेक वर्षों तक दिल्ली से प्रकाशित ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ के सह-सम्पादक भी रहे।
रचनाएँ
भारती जी की अनेक पुस्तकें यूनेस्को और भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत की गई हैं – हिमालय की पुकार, अनन्त प्रकाश, अथाह सागर, विज्ञान की विभूतियाँ, देश- हमारा देश हमारा, चलो चाँद पर चलें, सरदार भगतसिंह, हमारे गौरव के प्रतीक, उनका बचपन यूँ बीता, ऐसे थे हमारे बापू, लोकमान्य तिलक, बर्फ की गुड़िया, अस्त्र-शस्त्र, आदिम युग से अणु युग तक, भारत का संविधान, संयुक्त राष्ट्र संघ, दुनिया रंग-बिरंगी आदि। इसके अतिरिक्त इन्होंने बहुत सारा बाल – साहित्य भी
भाषा-शैली
अधिकांशतः बाल-साहित्य का सृजन करने वाले जयप्रकाश भारती की रचनाओं की भाषा स्वाभाविक रूप से सरल है। विज्ञान सम्बन्धी रचनाओं में विज्ञान की पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग हुआ है, पर शेष स्थानों पर सरल साहित्यिक हिन्दी का प्रयोग हुआ है। जयप्रकाश भारती ने अपनी रचनाओं में वर्णनात्मक, चित्रात्मक व भावात्मक शैली का प्रयोग किया है।
हिन्दी साहित्य में स्थान
जयप्रकाश भारती जी मुख्यतः बाल-साहित्य और वैज्ञानिक लेखों के क्षेत्र में प्रसिद्ध हुए हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने लेख, कहानियाँ, रिपोर्ताज आदि अन्य साहित्यिक विधाओं से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है। इन्होंने वैज्ञानिक विषयों को हिन्दी में प्रस्तुत करके तथा उसे सरल, रोचक, उपयोगी और चित्रात्मक बनाकर अन्य साहित्यकारों का मार्गदर्शन किया है।
पाठ का सार
परीक्षा में ‘पाठ के सारांश’ से सम्बन्धित कोई प्रश्न नहीं पूछा जाएगा। यह केवल विद्यार्थियों को पाठ समझाने के उद्देश्य से दिया गया है।
चन्द्रतल पर उतरा चन्द्रयान
दुनिया भर के स्त्री-पुरुष और बच्चे उत्सुकता से रेडियो सुन रहे थे और जिनके पास टेलीविजन था, वे पर्दे पर आँखें गड़ाए बैठे थे। वे अत्यन्त उत्सुकता और कौतूहल से मानव इतिहास की सबसे रोमांचक घटना के भागीदार बन रहे थे। हालाँकि हर देश, जाति के लोग चाँद पर जाना चाहते थे, पर इस सपने को 21 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन नामक दो मनुष्यों ने सच कर दिखाया।
अमेरिका द्वारा 16 जुलाई, 1969 को छोड़े गए चन्द्रयान में नील आर्मस्ट्रांग, माइकल कालिंस और एडविन एल्ड्रिन नामक तीन यात्री थे, पर चन्द्रयान के चन्द्रतल पर उतरते समय माइकल कालिंस मूलयान में 96 किलोमीटर की ऊँचाई पर चन्द्रमा की परिक्रमा कर रहे थे।
नील आर्मस्ट्रांग की चन्द्रतल पर उतरने की अधीरता
चन्द्रयान की स्थिति का ठीक से निरीक्षण करके आर्मस्ट्रांग चन्द्रयान की सीढ़ियों से सावधानीपूर्वक बाहर निकले। अच्छी तरह से उसकी सतह को जाँच-परख कर वे यान के आस-पास कुछ कदम चले। चन्द्रतल पर पाँव रखते हुए उन्होंने कहा- यद्यपि यह मानव का छोटा-सा कदम है, लेकिन मानवता के लिए यह बहुत ऊँची छलांग
चन्द्रतल पर स्थापित हुए विशेष उपकरण
मानव अरबों डॉलर खर्च करके चन्द्रमा पर पहुँचा था। उन्हें वहाँ कई तरह के उपकरण स्थापित करने थे, जो बाद में भी पृथ्वी पर वैज्ञानिक जानकारी भेजते रहें। इन चन्द्र विजेताओं ने चन्द्रतल पर भूकम्पमापी यन्त्र एवं लेसर परावर्तक स्थापित किए। इन्होंने एक धातु-फलक वहाँ रखा, जिस पर तीनों यात्रियों तथा अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के हस्ताक्षर थे। धातु-फलक पर लिखे शब्दों को आर्मस्ट्रांग ने जोर से पढ़ा- जुलाई 1969 में पृथ्वी ग्रह के मानव चन्द्रमा के इस स्थान पर उतरे।
प्रथम प्रयास में असाधारण सफलता
मानव को अपने प्रथम प्रयास में ही चन्द्रमा पर कदम रखने की असाधारण सफलता मिली। चन्द्रतल पर मानव के निशान इसके प्रमाण हैं। मानव ने चन्द्रमा पर कदम रखकर चिर- पुरातन सैकड़ों अन्धविश्वासों और कल्पनाओं पर प्रहार किया और चन्द्रमा को जीवनहीन और बदसूरत कह दिया।
अन्तरिक्ष युग का प्रारम्भ
अन्तरिक्ष में यात्रा करने का प्रारम्भ 4 अक्टूबर, 1957 को हुआ था, जब सोवियत रूस के पहले स्पूतनिक में ‘यूरी गागरिन’ ने अन्तरिक्ष यात्रा की थी। उस यात्रा के 11 वर्ष, 9 माह, 17 दिन पश्चात् मानव ने चाँद पर कदम रखा। दिसम्बर, 1968 में अपोलो-8 के तीनों यात्री चन्द्रमा के पड़ोस तक पहुँचे थे।
अन्तरिक्ष यात्रियों की पृथ्वी पर वापसी
दोनों चन्द्र विजेताओं ने ऊपरी भाग में उड़ान भरी और परिक्रमा कर रहे मूलयान से अपने यान को जोड़ा। अब चन्द्रयान को उसकी कक्षा में छोड़ दिया गया और इंजन दागकर पृथ्वी की ओर चल पड़े। फिर वे यात्री प्रशान्त महासागर में उतरे। अब उन्हें चन्द्र प्रयोगशाला ले जाया गया। उनके अनुभव रिकॉर्ड किए गए और उनकी गहन जाँच की गई। अब उनके द्वारा लाई गई धूल और चन्द्र चट्टानों के नमूनों को अनुसन्धान हेतु विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों को सौंप दिया गया। इसके पश्चात् अमेरिका ने अपोलो-12 को तीन यात्रियों के साथ भेजा। फिर अपोलो-13 को दुर्घटना के कारण नहीं भेजा जा सका। चन्द्रमा के अन्य रहस्यों को जानने के लिए अभी और भी प्रयास जारी रहेगा। अज्ञात की खोज में मनुष्य कहाँ पहुँच सकता है, कुछ कहा नहीं जा सकता।
गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
1. दुनिया के सभी भागों में स्त्री-पुरुष और बच्चे रेडियो से कान सटाए बैठे थे, जिनके पास टेलीविजन थे, वे उसके पर्दे पर आँखें गड़ाए थे। मानवता के सम्पूर्ण इतिहास की सर्वाधिक रोमांचक घटना के एक क्षण के वे भागीदार बन रहे थे-उत्सुकता और कौतूहल के कारण अपने अस्तित्व से बिल्कुल बेखबर हो गए थे। [2018]
प्रश्न
(क) उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(ग) रोमांचक घटना के भागीदार कौन बन रहे थे?
उत्तर
(क) सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के ‘गद्य खण्ड’ में संकलित ‘पानी में चन्दा और चाँद पर आदमी’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक ‘जयप्रकाश भारती’ हैं।
(ख) लेखक कहता है कि मानव का चन्द्रमा पर उतरना मनुष्य के अब तक के • इतिहास की सबसे अधिक रोमांचक घटना थी। दुनिया के सभी स्थानों के स्त्री-पुरुष और बच्चे इस महत्त्वपूर्ण घटना के अद्भुत क्षण का हिस्सा बन रहे थे। यह सब सुनकर प्रत्येक व्यक्ति उत्सकुता और आश्चर्य से अपने आप से बेखबर हो गया था।
(ग) संसार के समस्त व्यक्ति अर्थात् प्रत्येक स्त्री-पुरुष और बालक जो रेडियो तथा टेलीविजन पर मानव के चाँद पर उतरने की खबर सुन और देख रहे थे, ये सभी इस रोमांचक घटना के भागीदार बन रहे थे।
2. मानव को चन्द्रमा पर उतारने का यह सर्वप्रथम प्रयास होते भी हुए असाधारण रूप से सफल रहा यद्यपि हर क्षण हर पग पर खतरे थे। चन्द्रतल पर मानव के पाँव के निशान, उसके द्वारा वैज्ञानिक तथा तकनीकी क्षेत्र में की गई असाधारण प्रगति के प्रतीक हैं, जिस क्षण डगमग डगमग करते मानव के पग उस धूलि धूसरित अनछुई सतह पर पड़े, तो मानो वह हजारों-लाखों वर्षों से पालित-पोषित सैकड़ों अन्धविश्वासों तथा कपोल कल्पनाओं पर पद – प्रहार ही हुआ। कवियों की कल्पना के सलोने चाँद को वैज्ञानिकों ने बदसूरत और जीवनहीन करार दे दिया- भला अब चन्द्रमुखी कहलाना किसे रुचिकर लगेगा। Imp [2013, 10]
प्रश्न
(क) उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ख) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(ग) चन्द्रतल पर मानव के पाँव के निशान किस बात के प्रतीक थे?
उत्तर
(क) सन्दर्भ पूर्ववत् ।
(ख) लेखक कहता है कि जिस समय अमेरिकी चन्द्रयान चन्द्रमा की सतह पर पहुँचा और मानव ने अपने लड़खड़ाते हुए कदम सफलतापूर्वक चन्द्रमा की सतह पर रखे, उस समय ही चन्द्रमा के सम्बन्ध में प्राचीनकाल से आज तक चली आ रही कोरी कल्पनाएँ तथा अन्धविश्वास व निरर्थक अनुमान असत्य सिद्ध हो गए। प्राचीन कवियों ने चन्द्रमा को सुन्दर कहते हुए नारियों के. मुख की तुलना उससे की थी, परन्तु चन्द्रमा की सतह पर पहुँचकर वैज्ञानिकों ने कवियों की इन भ्रान्तियों व सन्देह को असत्य सिद्ध कर दिया। वैज्ञानिकों ने चन्द्रमा के विषय में बताया कि वह बहुत कुरूप, ऊबड़-खाबड़ और जीवन रहित है। आज यदि कोई व्यक्ति किसी सुन्दर मुख वाली स्त्री की तुलना चन्द्रमा से करेगा तो अब वह स्वयं को चन्द्रमुखी कहलाना कैसे पसन्द करेगी?
(ग) चन्द्रतल पर मनुष्य के पैरों के निशान मनुष्य की वैज्ञानिक और तकनीकी ‘ प्रगति के अतिरिक्त उसके अदम्य साहस, अलौकिक इच्छा और अलौकिक वैज्ञानिक प्रगति के प्रतीक थे।
3. हमारे देश में ही नहीं संसार की प्रत्येक जाति ने अपनी भाषा में चन्द्रमा के बारे में कहानियाँ गढ़ी हैं और कवियों ने कविताएँ रची हैं। किसी ने उसे रजनीपति माना तो किसी ने उसे रात्रि की देवी कहकर पुकारा। किसी विरहिणी ने उसे अपना दूत बनाया, तो किसी ने उसके पीलेपन से क्षुब्ध होकर उसे बूढ़ा और बीमार ही समझ लिया। बालक श्रीराम चन्द्रमा को खिलौना समझकर उसके लिए मचलते हैं, तो सूर के श्रीकृष्ण भी उसके लिए हठ करते हैं। बालक को शान्त करने के लिए एक ही उपाय था – चन्द्रमा की छवि को पानी में दिखा देना । [ 2017]
प्रश्न
(क) उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ख) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ग) राम और कृष्ण चन्द्र के लिए क्यों हठ करते थे ? उनके हठ को कैसे शान्त किया जाता था ?
उत्तर
(क) सन्दर्भ पूर्ववत् ।
(ख) लेखक कहता है कि किसी कवि ने चन्द्रमा को रात्रि के अधिपति की उपमा दी है, तो किसी ने इसका निशा देवी के रूप में वर्णन किया है। प्रेमी के वियोग में दुःखी प्रेमिका ने भी चन्द्रमा को दूत बनाकर स्वयं के सन्देशों को प्रियतम तक पहुँचाने का असफल प्रयत्न किया है, तो कभी उसका पीलापन देखकर उसे बूढ़ा, बीमार और दुर्बल समझ लिया गया है। बाल्यकाल में श्रीराम और श्रीकृष्ण जैसे श्रेष्ठ पुरुष भी इस चन्द्रमा की ओर आकर्षित हुए, तो उन्होंने इसे खिलौने के रूप में लेने की हठ कर ली। बालक की जिद के समक्ष मजबूर माँ कौशल्या और यशोदा क्या करतीं? उनके सम्मुख बालक राम और कृष्ण के हठ को शान्त करने का एक ही उपाय था, चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब ( परछाईं) को पानी में दिखा दिया जाए। उस समय उन्हें इस बात का बोध नहीं था कि एक दिन वास्तव में, चन्द्रमा के पास पहुँचना सम्भव हो सकेगा, किन्तु आज मानव ने इतनी प्रगति कर ली है कि इस असम्भव कार्य को सम्भव करके दिखा दिया है।
(ग) बालक चन्द्रमा को खिलौना समझकर उसे पाने की बार-बार जिद करते थे। उनकी जिद को पूरा करने के लिए थाली में पानी रखकर उसमें चाँद का प्रतिबिम्ब दिखाकर उन्हें शान्त किया जाता था।
4. मानव मन सदा से ही अज्ञात के रहस्यों को खोलने और जानने-समझने को उत्सुक रहा है। जहाँ तक वह नहीं पहुँच सकता था, वहाँ वह कल्पना के पंखों पर उड़कर पहुँचा। उसकी अनगढ़ और अविश्वसनीय कथाएँ उसे सत्य के निकट पहुँचाने में प्रेरणा शक्ति का काम करती रहीं । अन्तरिक्ष युग 4 अक्टूबर, 1957 को हुआ था, जब सोवियत रूस ने अपना पहला स्पुतनिक छोड़ा। प्रथम अन्तरिक्ष यात्री बनने का गौरव यूरी गागरिन को प्राप्त हुआ । अन्तरिक्ष युग के आरम्भ के ठीक 11 वर्ष, 9 माह, 17 दिन बाद चन्द्रतल पर मानव उतर गया। [2024]
प्रश्न
(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ग) प्रथम अन्तरिक्ष यात्री कौन था?
उत्तर
(क) सन्दर्भ पूर्ववत् ।
(ख) लेखक कहता है कि मनुष्य का मन प्राचीन काल ही नई-नई बातों व रहस्यों को जानने के लिए उत्सुक रहा है। जहाँ तक सम्भव हुआ, मानव अपनी कल्पना द्वारा उसे जानने की चेष्टा की। उसने अज्ञात रहस्यों के विषय में अनेक कल्पनाओं का निर्माण किया। भले ही वे कल्पनाएँ निराधार व सत्य से परे हों, परन्तु वह उन्हीं कल्पनाओं को साकार करने का प्रयास करता रहा और सत्य के निकट पहुँचने की प्रेरणा प्राप्त करता रहा ।
(ग) प्रथम अन्तरिक्ष यात्री सोवियत रूस का ‘यूरी गागरिन’ था।
